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कपड़े बदलती पाकिस्तानी लड़की का वीडियो बनाया, अब वही सबको कर रही है ‘नंगा’

पाकिस्तान के एक शहर की इस लड़की का वीडियो उस वक्त छिपकर बनाया गया, जब वो अपने घर में ही कपड़े बदल रही थी. ये वीडियो बनाने वाले लड़कों ने कुछ देर बाद उसे ब्लैकमेल करने की नीयत से उसके हाथ एक कागज का पुर्जा थमा दिया. दो लाइन के इस पुर्जे का जवाब उसने फेसबुक पर सरेआम दिया और अब उन लड़कों को छिपने की जगह नहीं मिल रही है.

Girls at Dhabas नाम के फेसबुक पेज पर लड़की ने उस नोट के साथ अपना अनुभव साझा किया.

लड़की ने जो लिखा, वो आपको अंदर तक झकझोर देगा…

''रात करीब 12 बजे जब मैं अपनी दोस्त के साथ फोन पर बात कर रही थी, मैंने अपने कमरे की खिड़की पर किसी को खटखटाते और एक नोट (कागज) लेने का इशारा करते देखा. मेरा घर एक सुरक्षित कालोनी में है, जहां मेरे कमरे की खिड़की बगीचे की तरफ खुलती है. तीन लड़कों ने मेरी ही खिड़की से कपड़े बदलते हुए मेरा वीडियो बना लिया. उन्होंने खिड़की से ही एक नोट दिया और उसे पढ़ने के लिए कहा. नोट में लिखा था कि मैं तुरंत बाहर आकर उनकी बात सुनूं. मैंने मना किया तो उन्होंने चिल्लाते हुए कहा,'' बाहर निकल, तुझे बताते हैं''. इतना सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं अपने पिता के साथ घर के बाहर गई. लेकिन तब तक वो लोग भाग गए थे. अब तो कॉलोनी के लोग भी जान गए कि मेरे साथ क्या हुआ था.

लेकिन उसके बाद कुछ सवाल मेरे चरित्र पर भी उठने लगे, जैसे- उसकी खिड़की क्यों खुली थी? क्या लड़की का ही उनमें से एक के साथ चक्कर तो नहीं था? हालांकि उन सवालों का कोई मतलब ही नहीं था, जब किसी ने मेरे ही कमरे में, मेरी मर्जी के बिना मेरा वीडियो बना लिया हो, और बिना किसी डर के मुझे ब्लैकमेल करने की हिम्मत भी रखता हो, इतनी हिम्मत इसलिए थी क्योंकि वो जानते थे कि वो बच जाएंगे और वो बच भी गए. महिलाओं से उनकी मर्जी जानना तो इस देश का रिवाज ही नहीं है. लेकिन अब बहुत हुआ. मेरे साथ हुई यह घटना कोई घटना पहली नहीं है और न ही मैं वो पहली लड़की हूं जो ये सब झेल रही है. हम अपनी सरकार के आगे इन लोगों के लिए गिड़गिड़ाते हैं, जबकि बलात्कारी खुले घूम रहे हैं, महिलाएं अपने ही घरों में यौन हिंसा और शारीरिक शोषण झेल रही हैं. जो लोग ये सब हरकतें कर रहे हैं, वो तुम्हारे बेटे, भाई, पिता और तुम खुद हो. महिलाओं पर ये सब अत्याचार बंद करो. घर में कैद करो और वहां भी जीना हराम कर दो.

अगर आप चाहें तो इसे शेयर कर  सकते हैं. लेकिन मेरे नाम के बिना. क्योंकि मैं अपने पिता की चिंताएं और बढ़ाना नहीं चाहती. और सच कहूं तो, मेरा नाम इतना जरूरी भी नहीं है.''

अब इस फेसबुक पोस्‍ट को पढ़कर क्‍या कहेंगे? समाज की परवाह किए बगैर जो हिम्मत इस पाकिस्तानी लड़की ने दिखाई, उससे न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि दुनिया की हर लड़की को सबक लेना चाहिए. आखिर समाज का गंदा चेहरा, समाज को ही दिखाने में कैसी शर्म?

हर हाल में बचाना ही होगा पानी

लगातार गिरते जमीन के पानी  के स्तर से हुई पानी की कमी की वजह से जनता परेशान है. जमीन के पानी का सतर यों ही गिरता रहा तो धरती पर जीवन बचाना ही मुश्किल हो जाएगा. पानी का जिस प्रकार से अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है, उस का खमियाजा आने वाली पीढि़यों को भी भुगतना पड़ेगा. मौसम में बदलाव, पानी के स्रोतों में कमी, प्रदूषण और जरूरत से ज्यादा पानी के इस्तेमाल के चलते पूरा देश जल संकट की चपेट में है. जमीन के पानी को बहुत ज्यादा निकालने से कई इलाके डार्क जोन में आ गए हैं. इसलिए पानी के लिए बरसात पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है. फिर भी सरकारी महकमे, जिम्मेदार लोग और आम आदमी कुदरत के दिए पानी को सहेजना नहीं चाहते. सरकार की ओर से भी सही कार्ययोजना न होने की वजह से पानी को बचाने की कोशिशें नहीं हो पा रही हैं.

आज भारत ही नहीं पूरा संसार पानी को ले कर  परेशान है. मौसम में बदलाव, पानी के जरीयों में कमी, प्रदूषण और जरूरत से ज्यादा जमीन से पानी को निकालने के चलते सभी देश पानी के संकट की चपेट में हैं.

डराते हैं ये आंकड़े

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक, साल 2025 से पहले ही पूरे भारत में पानी का जबरदस्त दबाव पैदा हो जाएगा. अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या संगठन के मुताबिक साल 2054 तक 64 देशों के 4 अरब लोग यानी उस समय की 40 फीसदी जनता पानी की किल्लत से जूझ रही होगी. केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुमान के मुताबिक अगर जमीनी पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल का सिलसिला यों ही जारी रहा, तो देश के 15 राज्यों में जमीन के अंदर का पानी 2025 तक पूरी तरह खत्म हो जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश में 2 करोड़, 10 लाख किसान फसलों की सिंचाई के लिए जमीन के पानी का इस्तेमाल करते हैं और कुल सिंचित इलाके में से 2 तिहाई में जमीनी पानी का इस्तेमाल होता है. देश में तकरीबन 40 करोड़ हेक्टेयर मीटर बारिश और बरफ गिरने से जमीनी पानी की मौजूदगी करीब 17 करोड़ 5 लाख हेक्टेयर मीटर है. जमीन की बनावट और दूसरी समस्याओं की वजह से इस में से केवल 50 फीसदी पानी का ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

बारिश के पानी को इकट्ठा न करने व बारिश की कमी के चलते देश में हर साल कहीं न कहीं सूखे की हालत बनी रहती है. जमीन  के पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी पानी की किल्लत बढ़ रही है. दुनियाभर में हर साल जितनी मात्रा में जमीनी पानी निकाला जाता है, उस की भरपाई नहीं हो पाती है. नतीजतन, आज कई राज्यों में जमीनी पानी का लेवल तकरीबन 1 मीटर की दर से हर साल गिर रहा है. राजस्थान की ही बात करें तो 70 फीसदी सिंचाई कुओं व नलकूपों द्वारा ही पूरी की जाती है. साल 2014 तक 40 फीसदी कुएं सूख गए हैं. साल 2014 में स्वीडन में हुए विश्व जल सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने पानी से पैदा होने वाली अकाल जैसी हालत के लिए आगाह किया है. 50 सालों में प्रति व्यक्ति पानी की मौजूदगी तेजी से घटी है, जो साल 1951 में 52 सौ घन मीटर की तुलना से साल 2011 में केवल 1825 घन मीटर ही रह गई और अगर समय रहते कोई हल नहीं निकाला गया तो साल 2050 तक पानी की मौजूदगी घट कर 1140 घन मीटर ही रह जाएगी. देश में बनाए गए ‘पानी दृष्टि 2025’ दस्तावेज के मुताबिक, साल 2025 में 1027 अरब घन मीटर पानी की जरूरत होगी, ताकि खाद्यान सुरक्षा व लोगों की पानी क जरूरत को पूरा किया जा सके.

साल 2025 में हमें 730 अरब घन मीटर पानी सिंचाई के लिए, 70 अरब घन मीटर पानी आबोहवा के लिए, 12 अरब घन मीटर पानी औद्योगिक इलाकों के लिए और बाकी दूसरे इलाकों के लिए चाहिए होगा. देश में बड़े पैमाने पर बारिश के पानी को इकट्ठा करना ही जल संचयन यानी पानी जमा करना कहलाता है. पानी को जमा करने से सूखे से निबटने में मदद मिलेगी व पानी के इस्तेमाल के अच्छे तरीकों से हमारे पानी के साधनों पर पड़ने वाले बोझ में भी कमी आएगी.

बचाना ही होगा

पानी के जरीयों को एक जमाने में जब कुएं, बावड़ी व तालाबों को बनवाया गया था, तब शायद बनाने वालों की यह मंशा थी कि वहां रहने वालों के साथसाथ राहगीरों व पशुओं को भी पीने के पानी के लिए भटकना नहीं पड़े व उन्हें पीने का पानी आसानी से मिल जाए. उस जमाने में भी शायद पानी का संकट लोगों के सामने रहा होगा. गौरतलब है कि इसी संकट से निबटने व लोगों को पानी देने के मकसद से उस जमाने के राजाओं द्वारा कुएं, बावड़ी व तालाब खुदवाए गए थे. गांवों के हजारों जलस्रोत ध्यान न दिए जाने के चलते खत्म होते जा रहे हैं. कभी साफ व मीठे पानी से भरे रहने वाले ये जलस्रोत आज कचराघरों में बदल गए हैं. यह हाल तो तब है, जबकि गरमियों में लोग पानी के लिए बुरी तरह से तरसते हैं. बावजूद इस के जिम्मेदार नगरपालिकाओं, नगर परिषदों व ग्राम पंचायतों द्वारा पानी के स्रोतों की साफसफाई, देखरेख व मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. आम नागरिक भी जलस्रोतों को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. कई जगह तो इन जलस्रोतों को बेकार समझ कर लोग इन्हें मिट्टी या कचरे से भरते जा रहे हैं और इन पर कब्जा करने की जुगत में हैं.

बदहाल पड़े हैं

पुराने तालाब व बांध जल संरक्षण कर के पीने का पानी मुहैया कराने के सरकारी दावे भी झूठे साबित हो रहे हैं. इस के लिए पुराने समय के तालाबों व बांधों को भी यदि सहेज लिया गया होता, तो कम बारिश में भी बांधों, तालाबों व छोटेछोटे तालाबों में पानी जमा किया जा सकता था. गौरतलब है कि जयपुर में पुराने समय के तकरीबन 2600 तालाब हैं. लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते ये आज बुरी हालत में हैं. इन तालाबों में पानी आने के तमाम रास्ते बंद पड़े हैं. भले ही जल स्वावलंबन व मनरेगा जैसी योजनाओं के तहत इन तालाबों से मिट्टी उठा कर सफाई का काम तो किया जा रहा है, लेकिन पानी आने के रास्तों को ठीक किए जाने की कोई योजना नहीं होने से अच्छी बारिश में भी ये तालाब सूखे ही रहते हैं. जयपुर जिले के सब से बड़े व जिला मुख्यालय के सब से नजदीकी रामगढ़ बांध की बदहाली भी आज किसी से छिपी नहीं हैं. ऐसी ही बदहाल स्थिति दूसरे बांधों व तालाबों की भी है.

दम तोड़ती

वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली हर साल लाखों गैलन बरसाती पानी नदीनालों में बह जाता है. इस पानी को इकट्ठा करने के लिए कुछ साल पहले राजस्थान सरकार ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को जरूरी करार दिया था. बरसात के पानी को इकट्ठा करने के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर के प्रदेशभर की तमाम सरकारी इमारतों व सरकारी स्कूलों में बनाए गए वाटर टैंक जर्जर हो कर बेकार पड़े हैं. कई इमारतों में तो इन टैंकों के खुले व अधूरे होने से दुर्घटनाएं होने का खतरा है. इस वजह से बारिश का पानी जमा नहीं होने से जहां योजना का फायदा नहीं मिल पा रहा है, वहीं सरकार के लाखों रुपए बेकार ही पानी में बह गए हैं. बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए छतों के पानी को टैंक में इकट्ठा करने की सरकार की यह खास योजना थी. इस योजना के दायरे में तमाम सरकारी व गैरसरकारी इमारतों समेत 200 वर्गगज रकबे से बड़े मकान व फार्म हाउस आते हैं.

इस के तहत करीब 15-20 फुट की गहराई में टैंक बनाए जाते हैं. फिर छतों पर बरसात के दिनों में गिरने वाले पानी को नलों के जरीए फिल्टर कर के टैंकों में लाया जाता?था. खासतौर से सरकारी स्कूलों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के पीछे सरकार की मंशा यह थी कि इस के जरीए विद्यार्थियों व शिक्षकों को बारिश के पानी को इकट्ठा करने का महत्त्व समझाया जा सके. बरसात का पानी जमीनी पानी से ज्यादा उपयोगी होता है. स्कूलों में इस पानी का इस्तेमाल पीने के साथसाथ पेड़पौधों को सींचने व मिड डे मील पकाने वगैरह में किया जा सकता है. लेकिन सरकारी व प्रशासनिक स्तर की यह योजना हर जगह दम तोड़ती दिख रही है.

ऐसे बचाना होगा पानी

यह पानी की बेतहाशा बरबादी का ही नतीजा है कि अब पानी बचाने के नएनए उपाय ढूंढ़े जा रहे हैं. इस के बाद भी पानी की कमी लगातार बनी हुई है. पानी बचाना और पानी इकट्ठा करना, एक ही बात है. जरूरत के मुताबिक दोनों काम किए जा सकते हैं. अलगअलग इलाकों में ये काम अलगअलग तरीके से किए जा सकते हैं. पानी बचाने के कुछ तरीके ऐसे हैं, जिन्हें आजमा कर हर कोई फायदा उठा सकता है. मेंड़ व तलाई बांधने का तरीका देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर का पुरान तरीका है, जिस में कम लागत में ज्यादा पानी इकट्ठा किया जा सकता?है. मेंड़ हर जगह बांधी जा सकती है. यह किसी भी आकार के खेत की सुविधा के मुताबिक हो सकती है. इस में खेत के चारों ओर मेंड़ें उठा दी जाती हैं, जिस से बरसात का पानी खेत में इकट्ठा हो जाता है. काली भारी मिट्टी वाले इलाकों में यह विधि ज्यादा कारगर होती है. खेत तलाई, नाड़ी, एनिकट व छोटेछोटे पानी हौज व तालाब भी इसी तकनीक का हिस्सा हैं.

सरकार को जनजागरूकता के साथ जल इकट्ठा करने के कारगर व बुनियादी कदम उठाने ही होंगे. तालाबों व पुराने कुएंबावडि़यों को फिर से इस्तेमाल लायक बना कर बारिश के पानी को बरबाद होने से रोकना होगा. वाटर ट्रीटमेंट प्लांटों से रसोईघरों  व स्नानघरों के गंदे पानी को साफ कर के उसे दोबारा शौचालय या पार्कों  के उपयोग में लाने की व्यवस्था की जानी होगी. नदियों को गंदा करने वाले उद्योगों के मालिकों के खिलाफ भी कार्यवाही करनी होगी. पानी जमा करने के पुराने तरीकों को बढ़ावा देना होगा. ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिस से बारिश के पानी के भंडार फिर से पानी से भर जाएं. इस के लिए आम जन को भी जागरूक करना होगा. इस के लिए वार्ड व मोहल्ला स्तर पर जल संरक्षण कमेटियां बनाना भी जरूरी है. इस में आमजन के साथसाथ जल संसाधन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को भी शामिल किया जाए. पानी का इस्तेमाल सब से ज्यादा खेती में होता है. इसलिए कुदरती तौर पर बरबादी भी इसी में ज्यादा होती है. माना कि पानी कुदरत की देन है, पर किसानों को भी इस की कद्र कर के पानी की अहमियत को समझना ही होगा. देशभर के किसान पानी की कमी के संकट से जूझ रहे हैं. सिंचाई के लिए पानी अब पहले की तरह नहीं मिलता. बांध, नहरों और नदीनालों के अलावा अब कुओं में भी पानी कम रह गया है. ऐसे में किसानों को खेती के तौरतरीकों में बदलाव के साथसाथ बूंदबूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई. पाली हाउस, ग्रीन हाउस जैसी तकनीकी खेती करने की ओर ध्यान देना होगा. कम जमीन व कम पानी में ज्यादा पैदावार देने वाली फसलों की खेती करनी होगी.

बारिश के पानी को इकट्ठा करने के कई फायदे हैं. पानी इकट्ठा करने के लिए भंडारण, निर्माण और उस के रखरखाव में सामुदायिक भागीदारी की अच्छी उम्मीदें भी हैं. बारिश का पानी साफ और कार्बनिक पदार्थों से भरा होता है. बारिश के पानी को खासतौर से बनाए गए तालाबों, जलाशयों, गड्ढों और छोटे बांधों में इकट्ठा किया जा सकता है. मकानों की छतों पर बारिश के पानी को इकट्ठा करने का इंतजाम करना चाहिए. घरों और खेतों में पानी के इस्तेमाल में किफायत करनी होगी. घरों से निकलने वाले बेकार पानी का इस्तेमाल घरों में सब्जी पैदा करने के लिए करना चाहिए. फसलों को पानी देने में सिंचाई की मौर्डन तकनीकें अपनानी चाहिए, जिन में बूंदबूंद और छिड़काव सिस्टम खास हैं. फसलों और पेड़ों को पानी जरूरत के मुताबिक दें और एक बार ज्यादा सिंचाई करने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में पानी बारबार दें. पानी की मौजूदगी बढ़ाने के लिए हमें अपने रहनसहन का तरीका बदलना होगा. घरों व कारखानों में पानी का इस्तेमाल सही ढंग से व जरूरत पर ही करना चाहिए. जमीनी पानी का इस्तेमाल करने के लिए बनाए जाने वाले खुले कुएं या बंद कुओं की तादाद व जगह वगैरह के बारे में राज्य सरकारों व नगरपालिकाओं ने नियम बनाए हैं, लेकिन उन का सही तरह से पालन नहीं हो रहा है. किसानों को दी जाने वाली मुफ्त या कम शुल्क की बिजली की सहूलियत से भी जमीनी पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है. इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को जमीनी पानी के इस्तेमाल के लिए भी कानून व नीति बनानी चाहिए, ताकि कुओं व नलकूपों की खुदाई पर काबू पाया जा सके. इस के अलावा जमीनी पानी के गिरते लेवल को ध्यान में रखते हुए खास इलाकों में खेती के लिए फसलों और पौधों का चुनाव भी होशियारी से करना चाहिए. खेती में सिंचाई के लिए आधुनिक सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप इरिगेशन, फव्वारा सिंचाई, मिस्ट इरिगेशन और ड्रम किट इरिगेशन वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए. इन आधुनिक तकनीकों से तकरीबन 40 से 50 फीसदी पानी की बचत होती है, साथ ही पैदावार में भी 20 से 40 फीसदी की बढ़ोतरी होती है

सस्ते में करना है हवाई सफर, तो चुनें ये दिन

दुनिया भर में यह चलन जोरों पर है और अब भारत में भी इसकी झलक देखी जा सकती है. हफ्ते के बीच वाले दिनों में हवाई सफर करने वाले लोगों की संख्या सबसे कम होती है और जाहिर है इस दौरान किराया भी सबसे सस्ता पड़ता है.

ऑनलाइन ट्रैवल कंपनी 'मेक माई ट्रिप' के जुटाए आंकड़ों के मुताबिक मार्च से जुलाई के बीच जिन यात्रियों ने मंगलवार और बुधवार को उड़ान भरी, उन्हें अपने टिकटों के लिए सबसे कम जेब ढीली करनी पड़ी. यह ट्रेंड चुनिंदा रूट पर महीने के हर दिन के औसत किराये पर आधारित है.

ट्रैवल इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि साल के ज्यादातर समय इन दिनों में फ्लाइट्स की डिमांड सबसे कम होती है और यही वजह है कि लोगों को कम किराया देना पड़ता है. रिया ट्रैवल्स के कार्यकारी निदेशक मनोज सैमुअल कहते हैं, 'इसके दो पहलू हैं. एक वे जो छुट्टियों पर सप्ताहांत के दिनों में सफर करते हैं और दूसरे कामकाज के सिलसिले में यात्रा करने वाले लोग जो अमूमन हफ्ते के पहले दिन यात्रा शुरू करते हैं और शुक्रवार तक लौट जाते हैं. हफ्ते के बीच वाले दिनों में सस्ते किराये की यही प्रमुख दो वजहें हैं.'

गूगल आ रहा है नए OS के साथ

गूगल के पास स्मार्टफोन के लिए एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम है, साथ ही क्रोम ओएस भी मौजूद है. लेकिन सर्च इंजन अब एक और ओएस तैयार करने में लगा है. गूगल फ्यूशिया नाम के ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम कर रहा है. बहरहाल अभी नए ओएस के फंक्‍शन के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है. यह किसी भी डिवाइस पर वर्चुअली काम कर सकता है.

इस ऑपरेटिंग सिस्टम को तैयार करने के ल‌िए गूगल ने एक अलग रास्ता अख्तियार किया है. नए ओएस में एंड्रॉयड और क्रोम ओएस की तरह लिनक्स का उपयोग करने के बजाय मैजेंटा कर्नेल आधारित है. यह एम्बेडेड सिस्टम में इस्तेमाल किए जाने वाले "LittleKernel" प्रोजेक्ट पर आधारित है. इसका मतलब है कि ऑपरेटिंग सिस्टम इंटरनेट से जुड़ी डिवाइस पर रन के लिए है.

इसके अलावा, दो इंजीनियर क्रिस्टोफर एंडरसन और ब्रायन स्वेटलैंड एम्बेडेड सिस्टम के प्रोजेक्ट नेक्सस क्यू और एंड्रॉयड टीवी में विशेषज्ञों के रूप में शामिल है.

ये भी हैं अटकलें

एंड्रॉयड पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक नए ऑपरेटिंग सिस्टम के बेस के तीन हिस्से हैं. पहले प्रोग्रामिंग लैंग्वेज जिसको डार्ट कहा जाता है, दूसरा यूजर इंटरफेस जिसको फ्यूटर कहा जाता है और तीसरा हिस्सा Escher है जो लाइट इनफ्यूजन और शेड्स में मदद करता है. Escher काफी सारे एनिमेशन काम करता है.

अभी गूगल ने फ्यूशिया के कोड को अपने खुद की कोड लाइब्ररी और GitHub पर होस्ट किया है. किसी भी लाइब्ररी के रीडमी दस्तावेजों में फीचर्स के बारे में पर्याप्त विवरण नहीं दिया गया है. अटकलें लगाई है कि इससे अंत में एंड्रॉयड और क्रोम ओएस में विलय ‌किया जा सकता है.

भारत को 92 साल में पहला सिल्वर दिला सिंधु ने रचा इतिहास

21 साल की स्टार शटलर पी वी सिंधु ने इतिहास रच दिया है. ओलंपिक 1896 से खेले जा रहे हैं. भारत 1924 से ओलंपिक में महिला एथलीट्स भेज रहा है. उस लिहाज से सिंधु 92 साल में सिल्वर जीतने वाली पहली महिला हैं.

वह ओलंपिक मेडल जीतने वाली सबसे कम उम्र की एथलीट भी बन गई हैं. फाइनल में स्पेन की कैरोलिना मारिन ने जैसे ही गोल्ड जीता, सिंधु खेल भावना दिखाते हुए उनके पास गईं और उन्हें गले से लगा लिया.

सिंधु ने पहला सेट 21-19 से जीता, जबकि कैरोलिना ने दूसरा सेट 21-12 से अपने नाम किया. तीसरे सेट में सिंधु को 21-15 से हार का सामना करना पड़ा. 12 साल बाद ओलंपिक में बैडमिंटन का 80 मिनट लंबा मुकाबला देखा गया.

सिंधु के फाइनल हारने के बावजूद पूरा देश उनकी रजत पदक जीतने पर खुशियां मना रहा है. कोच गोपीचंद ने भी मैच खत्म होने पर उनसे कहा कि तुमने मैच नहीं गंवाया बल्कि रजत पदक जीता है. सिंधु के इस पदक के बाद भारत की झोली में रियो में दो पदक आ गे है.

यह हफ्ता मेरे लिये काफी अच्छा रहा: सिंधु

सिंधु ने मैच गंवाने के बाद कहा, ‘‘मैंने रजत पदक जीता. मैं सचमुच खुश हूं. मुझे काफी गर्व है. मैं स्वर्ण पदक नहीं जीत सकी. लेकिन मैंने इसके लिये सचमुच काफी मेहनत की. यह किसी का भी मैच हो सकता था. एक दिन पहले एक लड़की ने कांस्य पदक जीता था, अब मैंने जीता. हम सभी ने काफी बढ़िया खेल दिखाया. जिंदगी की तरह खेल में भी उतार चढ़ाव होंगे. जैसे एक या दो अंक गंवाना. मैं हर किसी को बधाई देना चाहूंगी. यह हफ्ता मेरे लिये काफी अच्छा रहा.’’

सिंधु ने मारिन की उनके ओलंपिक स्वर्ण पदक के लिये तारीफ की. उन्होंने कहा, ‘‘मैं कैरोलिना को भी बधाई देती हूं. यह हफ्ता मेरे लिये काफी शानदार रहा. किसी भी खिलाड़ी का लक्ष्य ओलंपिक में पदक जीतना होता है. आज के मैच में हम दोनों खिलाड़ी आक्रामक थीं और कोर्ट पर काफी आक्रामकता से खेल रही थी. एक को जीतना था और एक को हारना था. लेकिन आज सेंटर कोर्ट पर उनका दिन था.’’

अपने आगे के खेल के बारे में सिंधु ने कहा, ‘‘भविष्य निश्चित रूप से अच्छा है. काफी खिलाड़ी उभर कर सामने आ रहे हैं और कईयों को सफलता मिलेगी. भारत में बैडमिंटन सचमुच अच्छा कर रहा है. पुरुष एकल में भी श्रीकांत काफी करीबी मैच हार गये.’’

सिंधु ने आखिरी में 5 मिनट में जीता पहला सेट

पहला प्वाइंट मारिन ने लिया, लेकिन इसके बाद सिंधु ने लगातार दो प्वाइंट लेकर जबरदस्त वापसी की. वर्ल्ड नंबर वन कैरोलिना ने लगातार 4 प्वाइंट लेकर स्कोर 5-2 कर दिया. यहां सिंधु ने एक प्वाइंट लिया जरूर, लेकिन कुछ खराब शॉट खेले और प्वाइंट्स गंवाए.

इसका फायदा उठाकर स्पैनिश खिलाड़ी ने 12-6 की बढ़त बना ली. इस दौरान शटल चेंज होने के बाद सिंधु ने जोरदार वापसी की और 3 प्वाइंट जुटाए. अब स्कोर 10-12 हो गया. लेकिन स्पैनिश खिलाड़ी ने फिर वापसी की और स्मैश लगाकर प्वाइंट्स जुटाए. दोनों एक-दूसरे को जोरदार टक्कर देती रहीं.

हालांकि, सिंधु ने आखिरी 5 मिनट में जोरदार वापसी की और स्कोर 19-19 से बराबरी कर ली. इसके बाद दो प्वाइंट्स लेकर 21-19 से पहला सेट अपने नाम कर लिया.

जबरदस्त वापसी, दिखाया डॉमिनेटिंग गेम

दूसरे सेट की शुरुआत में मारिन ने जबरदस्त वापसी की और 11-2 की बढ़त बना ली. जब तक सिंधु 10 तक पहुंचती, तब तक कैरोलिना 18 प्वाइंट तक पहुंच चुकी थी. सिंधु ने वापसी तो की, लेकिन मारिन को शुरुआती समय में ली गई लीड का फायदा मिला. ये सेट मारिन ने 21-12 से अपने नाम किया. इसके साथ ही मैच 1-1 से बराबरी पर पहुंच गया.

तीसरे सेट में जोरदार टक्कर, लेकिन भारी पड़ी कैरोलिना

मैच बराबरी पर होने के बाद तीसरे सेट में दोनों के बीच जोरदार टक्कर देखने को मिली. कैरोलिना मारिन ने तीसरा सेट 15-21 से अपने नाम कर लिया.

सिंधु के अहम पड़ाव

सिंधु ने 8 की उम्र में खेलना शुरू किया. 18 की उम्र में वर्ल्ड चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज जीतकर लाईं. इसी उम्र में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड मिला. 20 में वे पद्मश्री के लिए चुनी गईं और 21 की उम्र में ओलंपिक मेडल जीतकर लाई हैं.

ओलंपिक मेडल जीतने वाली भारत की पांचवीं महिला

2000 – कर्णम मल्लेश्वरी, वेटलिफ्टिंग (ब्रॉन्ज)

2012- मैरी कॉम, बॉक्सिंग (ब्रॉन्ज)

2012- साइना नेहवाल, बैडमिंटन (ब्रॉन्ज)

2016- साक्षी मलिक, रेसिलंग (ब्रॉन्ज)

2016- पी वी सिंधु, बैडमिंटन (सिल्वर)

ईलियाना डिक्रूजा करेगी गौरंग दोषी पर मुकदमा

गौरंग दोषी और विवादों का चोली दामन का साथ रहा है. निजी जिंदगी हो या प्रोफेशनल, हर मोड़ पर वह अक्सर विवादों से घिरे रहते हैं. फिल्म ‘‘आंखें’’ का सिक्वल बनाने को लेकर भी वह लंबे समय तक विवादों से घिरे रहे. अब 17 अगस्त को जब गौरंग दोषी ने अमिताभ बच्चन व अरशद वारसी को लेकर मुंबई के फिल्मसिटी स्टूडियों में भव्य स्तर पर फिल्म ‘‘आंखे 2’’ की शुरुआत की, तो लगा था कि विवादों का अंत हो गया.

मगर गौरंग दोषी हों तो विवादों का अंत कैसे हो सकता है. फिल्म ‘‘आंखे 2’’ की शुरुआत करते हुए गौरंग दोषी व फिल्म के निर्देशक अनीस बज्मी ने एक वीडियो क्लिप दिखाते हुए दावा किया था कि उनकी फिल्म में ईलियाना डिक्रूजा भी अभिनय कर रही हैं. पर वह किसी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त होने की वजह से वहां पर नहीं पहुंच सकी. इससे ईलियाना डिक्रूजा काफी नाराज हैं और अब ईलियाना डिक्रूजा ने खुलेआम गौरंग दोषी को अदालत में खींचने की बात कही है.

ईलियाना डिक्रूजा का दावा है कि उन्होने गौरंग दोषी से कहा था कि वह ‘आंखे 2’ नहीं कर सकती. उनका मना करने के बावजूद गौरंग दोषी ने उनके नाम का उपयोग किया. यह बहुत गलत है. इसलिए वह गौरंग दोषी के खिलाफ कानूनी कारवाही करना चाहती हैं. हम तो यह देखेंगे कि इस विवाद का अंत क्या होता है.

हौसले वाली लड़की ऐलिशिया

इंसान की जिंदगी में यादों का खास महत्त्व होता है. जो यादें सुकून देती हों उन्हें कोई भूलना नहीं चाहता और परेशान करने वाली कड़वी यादों को कोई सहेजना नहीं चाहता, लेकिन दिमाग के दरवाजे पर रहरह कर उन की दस्तक होती रहती है. न इन का कोई वक्त तय होता है और न स्थान. कभीकभी उन्हें काबू करना भी मुश्किल हो जाता है. तकलीफ तब होती है जब कड़वी यादें वर्तमान को भी प्रभावित करती हैं. बुरी यादों का लगातार सफर इंसान की जिंदगी के सुकून को छीन लेता है. कुछ ऐसा ही अमेरिका की रहने वाली ऐलिशिया के साथ भी हुआ लेकिन परिवार की सहानुभूति, मनोचिकित्सकों के उपचार और खुशनुमा माहौल दे कर उसे बामुश्किल निकाला गया था.

ऐलिशिया ने सोच लिया कि जो उस के साथ हुआ, उसे वह किसी दूसरे मासूम के साथ नहीं होने देगी. उस ने अपने साथ हुई भयानक घटना को एक सार्थक उद्देश्य में बदल दिया. हालांकि उस के लिए यह आसान कतई नहीं था, लेकिन हौसले से लबरेज हो कर मजबूत इरादे के साथ उस ने इस की मुहिम चला दी. यह मुहिम थी आधुनिकता की चकाचौंध व साइबर युग में बच्चों को उन पर मंडराते खतरों से बचाने की, जिस के वे शिकार हो जाते हैं. नतीजा यह निकला कि वह बच्चों को जागरूक करने वाली रोलमौडल बन गई. न सिर्फ उस के नाम को सराहना मिली, बल्कि देश की सरकार ने उस के नाम पर बच्चों को सुरक्षा देने वाला एक कानून भी बना दिया.

ऐलिशिया का गुनाह इतना था कि भावनाओं में बह कर उस ने अपनी सोच व समझ को खो दिया था. इंटरनैट पर एक शख्स पर विश्वास करना उस के लिए जानलेवा जैसा साबित हो गया था. आर्थिक समृद्ध देश अमेरिका में पेन्सिल्वेनिया राज्य का एक पुराना व खूबसूरत शहर है पीट्सबर्ग. ऐलिशिया इसी शहर की रहने वाली है. ऐलिशिया के पिता चार्ल्स एक समृद्ध कारोबारी हैं. परिवार में ऐलिशिया के अलावा मां मैरी व उस का एक बड़ा भाई है. ऐलिशिया उन दिनों महज 13 साल की थी. पढ़ाई के दौरान कंप्यूटर इंटरनैट का इस्तेमाल करना उस की आदत में शुमार था. दूसरे शब्दों में वह एक तरह से उस लत की शिकार हो गई थी.

उस के कई दोस्त बने. उन्हीं में एक उस का नया दोस्त स्कौट था. स्कौट आकर्षण व मीठी बातें करने में माहिर लड़का था. उस की बातों का अंदाज ऐलिशिया को गुदगुदाता था. कई बार बच्चों को खुद पता नहीं लगता कि वे स्मार्ट हैं. उन्हें असल खुशी तभी मिलती है जब कोई दूसरा बताता है कि वे खास हैं, सुंदर हैं. ऐलिशिया के साथ भी उस ने यही किया. उस ने उस का विश्वास कुछ ही दिनों में जीत लिया. ऐलिशिया का परिवार एकदूसरे के बहुत करीब था. पिता व्यस्त रहते थे लेकिन फिर भी परिवार की खुशियों के लिए वक्त निकालते थे. मैरी सभी को बहुत प्यार करती थीं. बेटी को इंटरनैट पर उलझे देख कर मैरी उसे अंजान लोगों से सावधान रहने के लिए सतर्क करती रहती थीं.

ऐलिशिया का दोस्त स्कौट बहुत दिलचस्प था. ऐलिशिया का गुडमौर्निंग से गुडनाइट तक का खयाल रखता था. वे घंटों चैटिंग किया करते थे. लेकिन उन के बीच कभी कोई मुलाकात नहीं हुई थी. ऐलिशिया ने उसे अपने परिवार के बारे में सब जानकारियां दे दी थीं. स्कौट उसे समझाता था कि वह अपनी इस दोस्ती के बारे में किसी को न बताए. दिसंबर 2001 में स्कौट ने ऐलिशिया के सामने मिलने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. स्कौट ने खूबसूरत बातें कीं, कसमें दीं. अपने कई महीने की दोस्ती का हवाला दिया और किसी तरह उसे मनाने में कामयाब हो गया. दोनों ने तय कर लिया कि वे 31 दिसंबर की रात में मुलाकात करेंगे.

क्रिसमस के बाद 31 दिसंबर की रात अमेरिकीवासियों सहित उस के परिवार के लिए भी खास थी. सभी ने एकसाथ डिनर किया. 9 बजने को आए थे. ऐलिशिया को सब की नजरों से ओझल हो कर निकलना था. उस ने मैरी से कहा, ‘‘मम्मा, आई एम गोइंग, मुझे नींद आ रही है.’’ ‘‘ओके, हैप्पी न्यू ईयर बेबी.’’ ऐलिशिया नींद के बहाने उन लोगों से अलग हो कर अपने कमरे में चली गई. साढ़े 9-10 बजे स्कौट को आना था. ऐलिशिया को उम्र के बहाव ने चालाक बना दिया था. यह सब गलत था परंतु दोस्ती की खातिर वह इस के लिए मजबूर हो गई थी. साढ़े 9 बजने को आए, तो उस ने चुपके से घर का जायजा लिया. बाकी लोग डाइनिंग हौल में बैठे बातों और टीवी देखने में मशगूल थे. ऐलिशिया चुपके से मुख्य दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल गई.

बाहर बहुत ठंड थी. एकदम सन्नाटा पसरा था. सड़कों पर बर्फ की सफेद चादर बिछी थी. सन्नाटे में उसे बस अपने पैरों के नीचे बर्फ के कुचलने की आवाज सुनाई पड़ रही थी. उस के मन में डर भी था. इंसान भावनाओं में बह कर अपनी सोच और समझ खो देता है. कुछ पल बाद उस के कानों से एक आवाज टकराई, ‘‘ऐलिशिया, प्लीज कम.’’ उस ने आवाज की दिशा में पलट कर देखा. आवाज सड़क किनारे खड़ी एक कार से आई थी. ड्राइविंग सीट पर एक शख्स बैठा नजर आ रहा था. उस के खयाल में वही स्कौट था जो सर्द मौसम में खामोशी से उस का इंतजार कर रहा था. वह उस की तरफ चल कर कार की ड्राइविंग सीट के बगल वाले दरवाजे के नजदीक पहुंची. उस के पहुंचने से पहले ही दरवाजा खोल दिया गया था. ऐलिशिया ने झुक कर देखा, तो अगले ही पल चौंक गई क्योंकि वह उस की कल्पनाओं से परे एक अधेड़ उम्र का शख्स था. वह स्कौट तो कतई नहीं था जिस की फोटो वह इंटरनैट पर मंगा कर देखती रही थी. वह कुछ सोचसमझ पाती कि तभी उस ने बाजू पकड़ कर उसे खींच कर सीट पर बैठा दिया. ऐलिशिया बुरी तरह डर गई. दिमाग जैसे शून्य हो गया. उस ने तेजी से एक रस्सी के जरिए उस के हाथ बांध दिए और गुर्राया, ‘‘शोर मत मचाना वरना मार कर कार की डिक्की में पीछे डाल दूंगा.’’ डरीसहमी ऐलिशिया को जान का खतरा सताने लगा. यह एहसास दस्तक दे चुका था कि वह बड़े खतरे में फंस गई है.

उस अधेड़ शख्स ने कार तेजी से चलानी शुरू कर दी. कार ने ऐलिशिया का घर, सड़क सब पीछे छोड़ दिया. वह सड़कों पर लगे साइनबोर्ड को देख पा रही थी. वे उस के लिए रोज के परिचित थे. उस सड़क पर आगे टोलबूथ पड़ने वाला था. ऐलिशिया को वहां अपने बचने की उम्मीद नजर आई. लेकिन ठंडे मौसम की वजह से एक छोटी खिड़की के जरिए ही कर्मचारी ने टौलटैक्स का लेनदेन किया. कार आगे बढ़ गई. इस के साथ ही ऐलिशिया की उम्मीद टूट गई. करीब 4 घंटे के सफर के बाद कार एक घर के पोर्च में जा कर रुकी. वह नीचे उतरा. उतरने से पहले फिर गुर्राया, ‘‘चुप रहना वरना अच्छा नहीं होगा.’’ उस ने ताला खोल कर घर का दरवाजा खोला. इस के बाद उस ने ऐलिशिया को खींच कर नीचे उतारा और उसे धकेलते हुए घर में बने बेसमैंट में ले गया. वहां एक ताला लगा दरवाजा था. वह बोला, ‘‘तुम्हारे साथ इतना बुरा होने जा रहा है जो तुम ने सोचा नहीं होगा. अब जितना चीखना है, चीख लो.’’

‘‘प्लीज मुझे छोड़ दो,’’ ऐलिशिया गिड़गिड़ाई, लेकिन तब तक उस ने दरवाजा खोल कर उसे अपने साथ अंदर खींच लिया. वह उस के साथ क्रूर ढंग से पेश आ रहा था. उस ने ऐलिशिया के कपड़े उतार कर उस के गले में कुत्ते वाला पट्टा डाल कर उसे जमीन पर खींचा और इसी तरह खींचते हुए बिस्तर पर गिरा दिया. इस के बाद उस ने उस के साथ गलत काम किया. डर, दहशत, दर्द ने उसे बेजान कर दिया. इस के बाद वह उसे अपने बैडरूम में ले गया और बिस्तर से बांध दिया. ऐलिशिया रोती और तड़पती रही. ऐलिशिया की बातों, उस के गिड़गिड़ाने, रोने का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. अगले 3 दिनों तक वह उसे मारता, पीटता और गलत काम करता रहा. वह उसे खानेपीने के लिए बहुत कम देता था. ऐलिशिया के आंसू खत्म हो चुके थे. ऐलिशिया को लगने लगा था कि जब इस का मन भर जाएगा तो वह उसे मार देगा.

चौथे दिन शाम को उस हैवान ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें मारने वाला था, लेकिन मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं, इसलिए जिंदा रखूंगा. तुम अब सबकुछ भूल कर मेरे साथ रहने की आदत डाल लो.’’

‘‘मुझे घर जाने दो.’’

‘‘तुम्हारा यह सपना तो पूरा नहीं होगा. शायद मर कर भी नहीं, क्योंकि मैं तुम्हें ऐसी जगह दफना दूंगा जहां कोई नहीं खोज पाएगा.’’ उस की बातों में कठोरता और चेहरे पर क्रूरता थी. यकीनन वह बेहद खतरनाक किस्म का आदमी था. शाम ढले वह खाना लाने की बात कह कर ऐलिशिया को कमरे में बंद कर के चला गया. प्यार जताने की कोशिश कर के उस ने ऐलिशिया को पूरी तरह बांधा नहीं था. बिस्तर पर खुला छोड़ कर बैडरूम के बाहर का ताला लगा दिया था. जाने से पहले उस के हाथ बांधना वह नहीं भूला था. ऐलिशिया के ऊपरी हिस्से को उस ने बेपरदा ही रहने दिया था. वह अपने दोस्तों से टैलीफोन पर बात किया करता था कि वह जिंदगी के मजे ले रहा और वह उन्हें भी अपने जैसे मजे करा सकता है. ऐलिशिया को यह भी डर कचोटने लगा था कि वह अपने दोस्तों के सामने उसे शिकार की तरह डाल सकता है.

रात हो चुकी थी, तभी ऐलिशिया ने दरवाजे पर एकसाथ कई कदमों की आहट सुनी. वह डर गई. उस ने सोचा कि वह अपने साथ दोस्तों को लाया होगा. ऐलिशिया बिस्तर से उतर कर बैड के नीचे छिप गई. दरवाजा खुला. उसे नीचे से कई बूट दिखाई दिए. एक व्यक्ति ने नीचे उसे ढूंढ़ निकाला. उस ने कहा, ‘‘बाहर निकल आओ, हम तुम्हें बचाने के लिए आए हैं.’’ डरीसहमी ऐलिशिया बाहर निकली. उस के अर्द्धनग्न बदन पर नजर पड़ते ही बंदूकधारी उन लोगों ने पीठ घुमा ली. उन के हाथों में बंदूकें और वरदी देख कर वह समझ गई कि वे लोग पुलिस वाले हैं जो उसे बचाने आए थे. उन में एक महिला पुलिसकर्मी भी थी. उस ने ऐलिशिया के हाथ खोले और सोफे पर पड़ी उस की जैकेट पहनने को दी. उन लोगों के कब्जे में वह हैवान आदमी भी था. उस के हाथों को पीछे कर के हथकडि़यां लगा दी गई थीं. वह कसमसा रहा था.

पुलिस ऐलिशिया को गाड़ी से थाने ले गई. ऐलिशिया को सब से ज्यादा खुशी तब मिली जब उस के मातापिता ने दौड़ कर उसे गले लगा लिया. ऐलिशिया के लिए एक तरह से यह दूसरी जिंदगी थी. पुलिस ने उस आदमी से पूछताछ की, तो पता चला कि ऐलिशिया एक हैवान की घिनौनी मानसिकता का शिकार हुई थी.वास्तव में उस शख्स का नाम टैरी था. 38 वर्षीय टैरी वर्जीनिया का रहने वाला था. किशोर उम्र की लड़कियों को ले कर वह विकृत मानसिकता का शिकार था. वह अकेला रहता था और बुरी आदतों का शिकार था. इंटरनैट चैटिंग पर लड़कियों को अप ने जाल में उलझाता था और उन के साथ गलत बातें किया करता था. उस ने कई नामों से अपनी आईडी बनाई हुई थीं. उस की दिनचर्या का ज्यादातर वक्त चैटिंग में ही बीतता था. ऐलिशिया को भी उस ने अपने जाल में उलझा दिया. ऐलिशिया किशोर थी. बहुत ज्यादा समझ उस में नहीं थी. चंद रोज की चैटिंग में ही टैरी इस बात को समझ गया था. वह दोस्ती की कसमें खाता था. उसे वह अपना आसान शिकार लगी. उस की भावनात्मक बातों से वह उस पर विश्वास करने लगी थी. अपनी उम्र व पहचान छिपा कर वह खुद को उस का हमउम्र लड़का बन कर चैटिंग करता था. उस ने इंटरनैट से एक किशोर के बहुत से फोटो चुरा लिए थे जिन्हें वह ऐलिशिया को भेज देता था.

ऐलिशिया जब पूरी तरह भावनात्मक तरीके से उस से जुड़ गई, तो उस ने मिलने के लिए उसे तैयार कर लिया था. उस ने रिश्ते को खतरनाक बना दिया था. उस के कब्जे में आते ही वह हैवान बन गया था. उधर, ऐलिशिया का परिवार उस के रहस्यमय तरीके से गायब होने से बुरी तरह परेशान हो गया था. किसी की कुछ समझ नहीं आ रहा था. अपने स्तर से उन्होंने उस की बहुत खोजबीन की. नए साल की खुशियां रुखसत हो चुकी थीं. पूरी रात की परेशानी, उलझन के बाद चार्ल्स ने ऐलिशिया का फोटो दे कर पुलिस में उस की गुमशुदगी दर्ज कर दी. पुलिस सक्रिय हो गई और उस ने ऐलिशिया के फोटो व पहचानशुदा इश्तिहार जारी कर दिए. कोई नहीं जानता था, ऐलिशिया कहां चली गई थी.2 दिनों के बाद एक व्यक्ति ने पुलिस को गुप्त सूचना दी कि उस ने इंटरनैट पर एक व्यक्ति को एक बच्ची का यौनशोषण करते औनलाइन देखा. वह मुसीबत में थी और बचने के लिए छटपटा रही थी. ऐलिशिया लापता थी. पुलिस उस की खोज कर रही  थी. लगा कि वह ऐलिशिया भी हो सकती है. ऐलिशिया न भी होती, तो भी वह किसी बच्ची के शोषण का गंभीर मामला था.

पुलिस ने उस व्यक्ति से पूछताछ कर के पता किया, तो उस ने वह इंटरनैट आईडी लिंक पुलिस को दे दिया जिस पर उस ने वीडियो लाइव देखा था. पुलिस छानबीन में जुट गई. पुलिस ने उस आईडी का आईपी ऐड्रैस निकलवाया. वह टैरी का निकला. टैरी की गतिविधियों पर पुलिस ने नजर रखी जो पूरी तरह संदिग्ध थीं. एक शाम पुलिस टीम उस के घर तक पहुंच गई. इत्तेफाक से टैरी भी तभी खाना पैक करा कर वापस आया था. उस को कब्जे में ले कर ऐलिशिया को भी बरामद कर लिया गया. ऐलिशिया को उस के परिवार के सुपुर्द कर के टैरी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भेज दिया गया.

इस घटना के बाद ऐलिशिया को लगने लगा था कि उस के लिए सब खत्म हो गया है. दुनिया में उस के लिए कुछ नहीं बचा है. वह बुरी तरह डर गई थी. दिलोदिमाग पर सिर्फ डर घूमता था. बेटी को दर्द से निकालने के लिए उस के मातापिता ने चिकित्सकों का सहारा लिया. खुद भी वे उस का बड़ा सहारा बने. आमतौर पर ऐसे मामलों में लोग बच्चों को भी दोषी मान लेते हैं, लेकिन चार्ल्स और मैरी ने ऐसा कतई नहीं किया. उन्होंने उसे प्यार से संभाला. लंबे वक्त बाद वह स्कूल गई. समय अपनी गति से चलता रहा. ऐलिशिया की कड़वी यादों ने साथ नहीं छोड़ा था. उधर, एक साल बाद 2003 में अदालत ने टैरी को दोषी पाते हुए उसे 20 साल की कैद की सजा सुनाई.

सार्थक पहल

ऐलिशिया ने पढ़ाई में मन लगाया. वह समझदार भी हो चुकी थी. वह चाहती थी कि वह दूसरे बच्चों के लिए कुछ करे. जो उस के साथ हुआ, वह किसी और के साथ न हो. इस के लिए उस ने झिझक छोड़ कर बिना यह सोचे कि लोग क्या कहेंगे, बच्चों को जागरूक करना शुरू किया. उस ने इंटरनैट के खतरों पर सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू किया. वह स्कूलों में जाती और अपनी आपबीती बता कर बच्चों को आगाह करती. अभिभावकों, शिक्षकों को भी वह आगाह करती. वह जानती थी कि इंटरनैट को ले कर ऐसी बातों की कोई शिक्षा नहीं है कि बच्चों को किस तरह फुसलाया जाता है, लेकिन अब वह खुद उदाहरण बनना चाहती थी और बच्चों को जागरूक भी करना चाहती थी. अपने साथ घटी भयानक घटना को उस ने उद्देश्य में बदल दिया. एक स्कूल में पहली बार वह अपने साथ हुई घटना को पूरी तरह बयान नहीं कर पाई. माइक पर खड़ी रोती रही.

ऐलिशिया ने बच्चों को इंटरनैट के उस जाल से बचाना ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है जिस में वह खुद फंस गई थी. वह चाइल्ड वैलफेयर एक्टिविस्ट बन गई. ऐलिशिया खुद जिस हादसे का शिकार हुई थी उस में पहचान छिपाने की जरूरत थी लेकिन ऐलिशिया का मानना था कि यदि वह ऐसा करेगी तो वे बच्चे खतरे में पड़ जाएंगे जिन्हें जागरूक कर के वह बचा सकती है. इस की परवा को उस ने अपने पास नहीं फटकने दिया. मीडिया में ऐलिशिया सुर्खियां बनने लगी. उस के काम की सराहना होती थी. बच्चों के अधिकारों के लिए वह आगे बढ़ कर सरकार तक उन की बात पहुंचाती थी. वह अलग किस्म की लड़की बन चुकी थी. ऐलिशिया ने पौइंट पार्क यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया तो उस ने अपने लिए ग्रेजुएशन में फौरेंसिक मनोविज्ञान विषय का चुनाव किया. इस की 2 वजहें थीं, एक तो इस विषय की गहराई में जा कर वह खुद की बुरी यादों को धुंधला कर सकती थी, दूसरा, बच्चों को भी मनोवैज्ञानिक ढंग से बात समझा सकती थी.

कड़वी यादों से निकलने का हुनर

ऐलिशिया के इंटरनैट सिक्योरिटी और बच्चों के मानवाधिकार संरक्षण की पैरोकारी व लापता बच्चों के लिए किए जा रहे काम को बहुत ख्याति मिलेगी. ऐलिशिया एक बड़ा नाम बन गई. वर्ष 2007 में उस ने नैशनल एसोसिएशन टू प्रोजैक्ट चिल्ड्रेन संस्था के साथ मिल कर बच्चों को इंटरनैट के खतरों से बचाने, उन्हें शिकार बनाने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाने व उन की तस्करी रोकने का मुद्दा उठा कर सरकार के सामने पुख्ता कानून बनाने की जरूरत के साथ प्रोजैक्ट रखा. सरकार ने उस पर गंभीरता से विचार किया. अमेरिकी सरकार ने इंटरनैट क्राइम्स अगेन्स्ट चाइल्ड टास्क फोर्स यानी आईसीएसी का गठन किया. उस की घटना को उदाहरण बना कर सरकार ने वर्ष 2008 में ‘ऐलिशियाज ला’ नाम से बच्चों को संरक्षण देने वाला कानून भी बना दिया.

इस कानून को वर्जीनिया, टैक्सास, कैलीफोर्निया, टैनिसी व लिदाहो आदि कई राज्यों में लागू कर दिया गया. ऐलिशिया शेष राज्यों में कानून लागू कराने के लिए प्रयासरत है. ऐलिशिया के प्रयासों से न सिर्फ अब तक अनेक बच्चे खतरों से बचे बल्कि उस की सक्रियता की बदौलत पुलिस भी कई लापता लड़कियों को खोजने में कामयाब हो गई. शहर, राज्य व राष्ट्रीय स्तर के सैमिनारों व सरकार के बड़े आयोजनों में ऐलिशिया को बुलाया जाता है. वह शिरकत करती है और अपनी बात रखती है. उस का अनूठा काम सराहा जाता है. वह ‘ऐलिशिया प्रोजैक्ट’ नामक इंटरनैट सिक्योरिटी और जागरूक करने वाला प्रोग्राम करती रहती है. ‘रेडी चिल्ड्रन’, ‘सेफ कौन्फ्रैंस’ नाम से समयसमय पर प्रोग्राम करती है. वह अब फौरैंसिक मनोविज्ञान विषय से मास्टर डिगरी कर रही है. ऐलिशिया का कहना है कि उम्रभर उस का प्रयास रहेगा कि कोई किशोर उम्र लड़की उस की तरह इस तरह के धोखे और शोषण का शिकार न हो. उसे यदाकदा बुरा हादसा परेशान कर जाता है, लेकिन कड़वी यादों से निकलने का हुनर उसे बच्चों के भविष्य को बचाने के उद्देश्य ने सिखा दिया है.

मुखर हो रहा दलित

देश में बहुमत से पहली बार  सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने हिंदू राजाओं जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया. गुजरात में हार्दिक पटेल, हैदराबाद में रोहित वेमुला और दिल्ली में कन्हैया कुमार के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया वह नई सामाजिक और राजनीतिक बहस की ओर समाज को

ले जा रहा है. देश में भले ही दलितों की बात उठाने वाले नेता कमजोर पड़ रहे हैं या फिर वे हाशिए पर हैं पर अभी भी पूरे देश में बड़ी तादाद में अंबेडकरवाद और उन की विचारधारा से जुडे़ लोग मौजूद हैं. वे केवल मौजूद ही नहीं हैं बल्कि मुखर भी होते जा रहे हैं. देखने वाली बात यह है कि इन को किसी मायावती, रामविलास पासवान और रामदास अठावले जैसे राजनीतिक जमात के लोगों की जरूरत नहीं रही. देश में अंबेडकरवाद इन के लिए ताकत का काम करता है.

भाजपा को दलितों के लिए जिस तरह से काम करना चाहिए था, वह उस ने नहीं किया. भाजपा को लगा कि वह कुछ दलित नेताओं को मंत्री बना कर या संगठन में पद दे कर पूरे समाज पर अपनी छाप छोड़ देगी पर ऐसा सफल नहीं हुआ.

भाजपा ने जिन नेताओं को जोड़ा वे पूरे दलित समाज में पकड़ नहीं रखते थे. क्योंकि पद पाने के बाद ये नेता वैसे ही दलित समाज से दूर हो गए जैसे मायावती 4 बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपना प्रभाव उत्तर प्रदेश के बाहर नहीं बढ़ा पाईं. दूसरी तरफ भाजपा अपनी हिंदूवादी नीतियों को ले कर सरकार बनने के बाद ही मुखर हो गई. ‘गो हत्या विवाद’ के बहाने भाजपा ने सोचा था कि इस बहाने वह हिंदू वोटों का धु्रवीकरण कर ले जाएगी. भाजपा को इस बात का एहसास नहीं था कि यह विवाद पार्टी को दलितों से दूर ले जा सकता है. 

गुजरात का ऊना प्रकरण

गुजरात के ऊना में मरी गाय की खाल उतारने को ले कर दलित युवकों की पिटाई हिंदूवादी गो रक्षक दल जैसे संगठन के लोगों के द्वारा की गई. ऐसे लोगों कोे यह पता ही नहीं है कि भारत में बड़ी संख्या में मरे जानवरों की खाल उतारने के कारोबार में दलित जाति का बड़ा वर्ग लगा हुआ है. कई जगहों पर दलित लोगों के लिए गाय का मांस खाना गलत नहीं माना जाता है. ऐसे में जब उत्तर प्रदेश के बिसाहड़ा में मुसलिम युवक की हत्या गाय मांस के सवाल पर होती है तो वोट का धुव्रीकरण होता है. जब यह बात हिंदू समाज की आती है तो दलित-सवर्ण का विवाद उठ खड़ा होता है.

भाजपा ने वोट धुव्रीकरण के लिए जो मुद्दा उठाया वह दलित-सवर्ण जैसे विवाद का कारण बन गया. गुजरात में भाजपा की सरकार है. भाजपा ने पहले इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया. जब पूरे देश में मरी गाय की खाल उतारने वाले युवकों की पिटाई मुद्दा बनने लगी तो गुजरात सरकार हरकत में आई. तब तक देर हो चुकी थी.

गुजरात में कई सालों से भाजपा सत्ता में है. ऐसे में वहां के दलित और पिछडे़ खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. दरअसल, भाजपा केवल उन दलित और पिछड़ों की बात कर रही है जो गांव छोड़ कर शहरों में आ बसे हैं. ये लोग खुद को सवर्ण जैसा दिखाने के लिए वैसा ही व्यवहार करने लगे हैं. ये लोग गिनती में काफी कम हैं. ऐसे में इन को जोड़ कर पूरे दलित व पिछड़े समाज को अपना हिस्सा मानना भाजपा की दूरदर्शिता नहीं मानी जाएगी.

गुजरात में हार्दिक पटेल के आंदोलन को दबाने के लिए वहां की सरकार ने पूरा दमखम लगा दिया. 8 माह जेल में रहने के बाद अब हार्दिक पटेल से किसी समझौते की उम्मीद करना भाजपा के लिए बेकार है. गुजरात की जो तसवीर भाजपा ने देश के सामने पेश की थी उस का रंग अब उतर चुका है. वहां दलित, पिछड़ों की उपेक्षा मुखर हो चुकी है.

गुजरात की ही तरह से मध्य प्रदेश के मंदसौर में गो हत्या को ले कर महिलाओं की पिटाई किया जाना ऐसा ही मुद्दा है. भाजपा के लिए परेशानी की बात यह है कि मध्य प्रदेश और गुजरात में भाजपा की ही सरकारें हैं. ऐसे में वह प्रदेश सरकार और कानून व्यवस्था के बारे में वैसा बयान नहीं दे सकती जैसा उत्तर प्रदेश में दादरी इलाके में अखलाक की हत्या के बाद दिया था.

हैदाराबाद में रोहित वेमुला कांड के बाद जो हुआ, उस ने भाजपा की सोच को उजागर कर दिया. रोहित को ले कर जिस तरह से कैंपेन चलाया गया, उस ने पुरुषवादी सोच को गहरा करने का काम किया. भाजपा को इस मुद्दे पर जिस संवेदनशील ढंग से काम करना चाहिए था उस का अभाव दिखा. यह बात पूरे

देश में फैल गई कि भाजपा केंद्रीय विश्वविद्यालयों के जरिए अपने विचारों को बढ़ावा देने में लगी है. तब की शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी को इस बात के लिए बधाई दी जा रही कि वे संघ के एजेंडे पर चल रही हैं.

जड़ों पर हमला

दिल्ली में कन्हैया कुमार के मामले में भी यही दोहराया गया. कन्हैया कुमार पर जिस तरह से कोर्ट परिसर में हमला हुआ उस पर पूरे देश में सवाल उठे. यह काम भले ही भाजपा के सदस्यों ने न किया हो पर हिंदूवादी लोगों ने किया जो भाजपा के शुभचिंतक हैं. भाजपा ऐसे लोगों की आलोचना नहीं करती है. राजनीतिक मजबूरियों को ले कर भले ही भाजपा ऐसीताकतों का समर्थन न कर सके पर वह इन का विरोध भी नहीं करती है.

भाजपा की यही मजबूरियां दलित, सवर्ण गठजोड़ को सामने लाती हैं. यह बात सच है कि पिछले कुछ सालों में सरकारी नौकरियों में आए दलित और पिछड़ों के कुछ परिवार खुद को सवर्ण समझने लगे हैं. शहर छोड़ कर गांव, कसबों में बस चुके ऐसे लोग भाजपा के विचारों का पालन बड़े जोरशोर से करते हैं. इस के बाद भी गांवों में दलित, पिछड़ों का बहुत बड़ा वर्ग रहता है जो अभी भी सवर्ण या पिछड़ों की संपन्न जातियों के उत्पीड़न का शिकार हो

रहा है.

ऐसे लोग पहले की तरह अनपढ़

नहीं रह गए हैं. कुछ लोग भले ही पढ़नालिखना न सीख पाए हों पर अपने विचारों को समझते हैं. लोकसभा के चुनावों में भाजपा की जीत में कांग्रेस के नकारेपन का प्रमुख हाथ था.  सरकार बनाने के बाद भाजपा ने कोई ऐसा काम नहीं किया है जिस से सामाजिक रूप से समाज में एकजुटता आ सके. गाय के मुद्दे को ले कर जो आंदोलन हिंदूवादी ताकतों के द्वारा चला वह समाज को बिखराव की दिशा में ले जा रहा है.

भाजपा जिस पौराणिक हिंदूवादी समाज की बात करती है उस में बड़ी संख्या में दलित और पिछड़े शामिल नहीं हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों में भाजपा की जीत का गणित कमजोर पड़ता दिख रहा है.

केंद्र की भाजपा सरकार दुधारी तलवार पर सवार है.  एक तरफ हिंदूवादी ताकतें हैं जो उसे अपनी सोच के हिसाब से काम करने को कहती हैं तो दूसरी ओर बाकी समाज है. ऐसे में दोनों को साधना सरल काम नहीं है. केंद्र सरकार दबाव में है. यह दबाव उस के विकासवादी कामों में बाधा बनता है.

भ्रम में दलित

केंद्र सरकार के लिए यह साबित करना कठिन हो रहा है कि वह बाकी देश के साथ है. रोहित वेमुला, कन्हैया कुमार और हार्दिक पटेल ऐसी आवाजें हैं जिन को दबाना संभव नहीं है. दलित वर्ग को अपने साथ लाना है तो पुराने विचारों को त्यागना पडे़गा. दलित नेताओं से एक अलग जमात भी तैयार हो गई है जो अपने मुद्दों को ले कर सजग व जागरूक है.

इन आवाजों को दबाना सरल नहीं है. गाय की हत्या का मुद्दा हिंदू समाज को ही बांटने का काम कर रहा है. जिस तरह की घटनाएं पूरे देश में घट रही हैं उस से दलितों को भ्रम होने लगा है कि क्या वे आजाद देश में नहीं, हिंदू राजाओं के राज में रह रहे हैं?   

जातीय ध्रुवीकरण में जुटी बसपा व भाजपा

उत्तर प्रदेश में हर दल अपने हिसाब से वोट के लिए फसल बोने की तैयारी में है. बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर से दलित के पोलराइजेशन यानी ध्रुवीकरण में जुट गई है.

दयाशंकर सिंह अपने भाषण में मायावती के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल कर गए. बसपा ने इस मुद्दे को जातीय धु्रवीकरण की योजना बना कर काम किया. बसपा ने अपनी नेता मायावती के अपमान को मुद्दा बना कर धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया.   

सवर्ण बनाम दलित की राजनीति : बहुजन समाज पार्टी के लिए दलित बनाम सवर्ण की राजनीति सब से मुफीद रहती है. इस के बहाने बसपा अपने दलित वोटर को यह समझाने की कोशिश करती है कि अगर बसपा सत्ता में नहीं आई तो सवर्ण बिरादरी उस के साथ अत्याचार कर सकती है. पिछले कुछ सालों से बसपा अपनी दलित बिरादरी से पूरी तरह से दूर हो चुकी है. यही कारण है कि 2012 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा.

मुख्यमंत्री मायावती से ले कर उन के कई मंत्रियों और विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. कई जेल गए. बसपा में टिकट के बंटवारे को ले कर नेताओं में आपसी विवाद उठ खड़ा हुआ जिस को ले कर बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य, आर के चौधरी सहित कई नेता पार्टी से बाहर हो गए. ये सभी नेता कहते हैं कि पार्टी में पैसा ले कर टिकट दिया जाता है.  दयाशंकर प्रकरण से बसपा ने अपने उस घाव को भरने के लिए दलित बनाम सवर्ण राजनीति का सहारा लिया है. देखने वाली बात यह है कि बसपा अपनी बात किस तरह से दलित वोटर को समझाती है. जिस तरह से बसपा ने ‘दलित बनाम सवर्ण’ की राजनीति शुरू की है उस से बसपा का ‘सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला’ संकट में पड़ सकता है.

उत्तर प्रदेश के नेताओं ने पिछले चुनाव से सबक न लेते हुए विधानसभा चुनावों के पहले वोटों के धु्रवीकरण की शुरूआत कर दी है. नेता भूल रहे हैं कि अब जनता इस खेल को समझ चुकी है.

माने सवर्णों की तटस्थता के

मौजूदा राष्ट्रीय हालात और दलित अत्याचारों से सवर्णों को कोई सरोकार रह गया है, ऐसा लगता नहीं. कभी समाज की दिशा तय करने वाला यह वर्ग बेवजह अपनेआप में सिमट कर ही नहीं रह गया है बल्कि इस की एक बड़ी मजबूरी अपना वजूद और रसूख बचाए रखने की हो चली  है. इस वर्ग का एक जागरूक और उदारवादी धड़ा कभी दलित अत्याचारों की मुखालफत करता था और पौराणिक मनुवाद को कोसता भी था. पंडेपुजारियों को खटकते रहने वाले इस वर्ग की जगह पैसे वाले होते जा रहे पिछड़ों ने हथिया तो ली पर उन में उदारवादिता न के बराबर है. यह वर्ग भी कभी दलितों की ही तरह शोषित और अनदेखी का शिकार था. यह मनुवाद का घोर विरोधी था लेकिन ब्राह्मणों ने वक्त की नजाकत को समझते इस पर डोरे डाले तो आज इस वर्ग के लोग उन के मुख्य यजमान हैं. यह सवर्णों की तटस्थता का ही असर है कि दलित और पिछड़े धार्मिक व राजनीतिक पहचान को ले कर सड़कों पर हिंसक तरीके से भिड़ रहे हैं. गाय का मुद्दा इस की ताजा मिसाल है जिस में दलितों को मुसलमानों के बराबरी से मार खानी पड़ रही है और हमेशा की तरह ऐसे नाजुक मुद्दों को हवा दे कर विवाद खड़े करवाने वाले पंडे कहीं परिदृश्य में नहीं हैं. 

सवर्णों को अब न गाय से मतलब है न उस पर होने वाले झगड़ों से कोई वास्ता है. लिहाजा, भगवा खेमे का दलितों और  पिछड़ों को लड़ाने का एजेंडा खूब परवान चढ़ रहा है. भगवा राजनेता दलितों को शह देते उकसा रहे हैं तो हिंदुवादी संगठन और ब्रैंडेड धर्मगुरु पिछड़ों को घेरे हुए अपनी दुकानदारी चला रहे हैं.

एक वक्त में कांशीराम की एक आवाज पर इकट्ठा हो जाने वाले शोषित अब 2 हिस्सों में बंट गए हैं या एक साजिश के तहत बांट दिए गए हैं. बात एक ही है कि ये दोनों वर्ग जब एक थे तब किसी की हिम्मत या जुर्रत नहीं होती थी कि कांशीराम या मायावती को यों भद्दी गाली दे पाए. पर अब हो रही है और बुद्धिजीवी सवर्ण इसे इसीलिए हलके में ले रहा है कि उस का कोई  खास दखल समाज में नहीं रह गया है यानी यह वर्ग अब पहले की तरह दलितों की दुर्दशा से कोई हमदर्दी नहीं रख रहा. ऐसे में तय है कि दलितों और पिछड़ों को अब रोका नहीं जा सकता. दरअसल, रोकने की हैसियत रखने वालों ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया है. इन के लिए धर्म ऐच्छिक विवशता है, लड़नेझगड़ने का जरिया नहीं.                  

– साथ में भारत भूषण श्रीवास्तव 

 

निमंत्रण: मान या अपमान

इसे सामाजिक दायित्व कहें या जलसापसंद स्वभाव कि अरसे से लोग अपनी खुशियों में रिश्तेनातेदारों, पासपड़ोसियों व दोस्तों को शरीक करने के लिए निमंत्रण की रस्म पूरी करते हैं. अनोखे अंदाज में निमंत्रणपत्र दिए जाते हैं. कोई अपने करीबी को व्यक्तिगत तौर पर खुद बुलावा देने जाता है तो कोई निमंत्रणपत्रों में बुलावे को विनम्र अंदाज में पेश कर अपनों तक पहुंचा देता है. कोई फोन पर या ईमेल के जरिए सूचित करता है तो कोई कोरियर के जरिए यह काम करता है.

कुल मिला कर निमंत्रण का चलन आज भी बदस्तूर जारी है. कुछ बदला नहीं है. बदला है तो सिर्फ यह कि कहीं निमंत्रण देने का अंदाज सब के लिए मौका और हैसियत देख कर होने लगा है तो कहीं निमंत्रण की आड़ में अपनी अमीरी या शानोशौकत का लिफाफा बढ़े वजन के साथ रिश्तों में खटास घोल रहा है. बहरहाल, जलसे, शादी, बर्थडे, मृत्युभोज और खुशीगमी के मौकों पर निमंत्रण कार्डों का आनाजाना मानअपमान की शक्ल में जारी है.

निमंत्रणपत्र भी कई श्रेणी के छपवाए जाने लगे हैं, साधारण, मध्यम और उच्च. प्रथम श्रेणी के वीआईपी कार्ड के साथ उच्चतम श्रेणी के कीमती उपहार या मेवा आदि लगे होते हैं. द्वितीय श्रेणी में उस से कम श्रेणी के उपहार और काजूबादाम की मिठाई लगी होती है. तृतीय श्रेणी के निमंत्रणपत्र के साथ बूंदी के लड्डू और चतुर्थ श्रेणी के साथ कुछ चौकलेट आदि लगी होती हैं. एक होता है चालू कार्ड. कभी जब अलगअलग व्यक्ति से मिले अलगअलग प्रकार के निमंत्रणपत्र एक ही कार्यक्रम के लिए होते हैं तब निमंत्रित व्यक्ति को कैसा लगता है?

साथ ही, निमंत्रित किए जाने के लिए अलगअलग मानदंड है. एक श्रेणी के व्यक्तियों के लिए मुख्य व्यक्ति सपत्नी बुलाने जाता है. एक श्रेणी जहां वह स्वयं निमंत्रित करता है. कुछ निमंत्रणपत्र भाईबहनों, मित्रों से वितरित कराए जाते हैं और एक वर्ग ऐसा होता है जिसे कोरियर कर दिया जाता है. एक ही विवाह में अलगअलग निमंत्रण विधान हो जाते हैं. यह उन की अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का नहीं, सामने वाले की प्रतिष्ठा का सवाल है कि वह आप को कितनी इज्जत देता है.

अब जबकि एकल परिवार का चलन है लेकिन सामाजिक संबंध भी आदमी बना कर रखना चाहता है, इसलिए वह अधिक से अधिक लोगों को बुलाना चाहता है और मौके बारबार आते नहीं हैं. अगर 100 लोगों को बुलाना है तो 110 लोगों को बुला लीजिए, यह भावना रहती है लेकिन अब आदरमान नहीं, न जाने वाले के अंदर न बुलाने वाले के अंदर. केवल निबटाने की भावना रहती है. अगर निमंत्रित व्यक्ति से भोजन को कहेंगे तो वह सिर हिलाते कहेगा, ‘अरे नहीं, 3 जगह और जाना है’.

‘अरे नहीं, कुछ तो जरूर लीजिए’, वैसे यह बहुत कम जगह सुनने को मिलेगा. घुसिए, लिफाफा थमाइए और सीधे भोजन पंडाल में घुस कर भोजन कर बाहर निकल आइए. कभीकभी तो निमंत्रित केवल स्थान और तिथि देख लेता है. उसे यह भी ज्ञात नहीं होता है कि वह लड़की के विवाह में आया है या लड़के के रिसैप्शन में. और कभीकभी तो लोग मृत्युभोज में जन्मदिन की बधाई दे बैठते हैं.

प्रश्न उठता है निमंत्रित व्यक्ति के मानअपमान का जब, 10 व्यक्ति एक ही स्थान पर खड़े हों और कोई कहे, ‘अरे, कितने फोन आए भाईसाहब के, जरूर आना है तो कैसे नहीं आता.’ कोई कहे, ‘खुद आए थे बुलाने, बहुत कह गए थे’, तब किसी ग्रुप में एकत्रित हुए या किसी संस्था के कार्यक्रम के समय आए और उस समय बांटे गए निमंत्रणपत्र के जरिए आया व्यक्ति कैसा महसूस करेगा.

एक जैसा मान दें

आप कोई कार्यक्रम कर रहे हैं तो वह अपनी खुशी के लिए करते हैं. ऐसे में आप यह न देखें कि कोई गरीब है या अमीर, या फिर कोई अधिकारी, सभी को एकजैसा ही मान दें. इस से कोई भी अपनेआप को अपमानित नहीं महसूस करेगा.

यह तो हमेशा से ही होता आया है कि जैसा व्यवहार वैसी पत्तल या मिठाई जो कि व्यक्ति द्वारा दिए जाने के बाद दी जाती थी. फर्क तो मां भी अपनी गरीबअमीर बेटी में कर देती है. अमीर बेटी के यहां साधारण मिठाई कोई नहीं खाता. वहां तो बादामपिस्ता आदि ही की मिठाई जाएगी. गरीब बेटी के बच्चे तो सब खा लेते हैं, इसलिए उस के लिए कोई भी मिठाई रख दें. लेकिन समाज तो समाज है, किसी का व्यवहार हजारों का है, किसी का

200-250 का. पर आजकल दूरदूर घर, समय की कमी और ऊपर से परिवारजनों की कमी की वजह से दोबारा सामान भेजना भी बहुत मुश्किल होता है.

हालांकि कुछ व्यक्तियों की आदत होती है कि वे सामने वाले व्यक्ति के हर काम में नुक्स निकालते हैं, ‘अरे, यह भी कोई इंतजाम है. लाला, तुम्हें दावत करना नहीं आता, इस के लिए जिगरा चाहिए. खिलाने के लिए हम ने की थी दावत, लोग उंगलियां चाटते रह गए थे.’ जब ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं तब सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है और मन में एक अपमान की लहर दौड़ जाती है.   निमंत्रणपत्रों का बदलता स्वरूप

एक समय में विवाह का निमंत्रणपत्र हलदी वाले पीले चावलों के साथ दिया जाता था, जिसे पीली चिट्ठी कहा जाता था. लेकिन अब बदलते दौर के साथ निमंत्रणपत्रों का रंगरूप पूरी तरह से बदल गया है. अब निमंत्रणपत्र में केवल आयोजनों के मैटर पर ही ध्यान नहीं दिया जाता, बल्कि इस के साथ ही कार्ड के पैटर्न व रंगों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. कहीं एलबमनुमा निमंत्रणपत्र ट्रैंड में हैं तो कहीं मिनीकार्ड. अभी तक तो सिल्वर, गोल्डन ग्लिटर से कार्ड को आकर्षक बनाया जाता था लेकिन अब तो कार्ड में असली सोने व चांदी की जरी लगा कर उस को खूबसूरत बनाया जा रहा है.

हाल ही में मैसूर के महाराज की शादी के लिए गोल्ड प्लेटेड इन्विटेशन कार्ड छपवाए गए. ये कार्ड खासतौर से वीवीआईपी मेहमानों को भेजे गए. एक अन्य ट्रैंड, कार्ड पर परिवार के साथ गुजारे वक्त और अच्छी यादों को फोटोग्राफ्स के साथ पिं्रट करवाने का भी है. टैक्नोलौजी का असर निमंत्रणपत्रों पर भी साफसाफ दिखाई देने लगा है. अब प्री वैडिंग शूट के जरिए सीडी व डीवीडी तैयार की जा रही हैं जिन में दूल्हादुलहन के साथ परिवार के अन्य सदस्यों की व वैवाहिक आयोजनों की जानकारियां दी जाती हैं.

आजकल निमंत्रणपत्र का मकसद केवल आमंत्रण देना नहीं, बल्कि स्टेटस शो करना हो गया है. दिखावे के चक्कर में लोग यह भूलते जा रहे हैं कि खुशियों में निमंत्रण देने का मकसद आप के अपनों को अपनी खुशियों में शामिल करना है, न कि अपने स्टेटस का दिखावा करना. इसलिए निमंत्रणपत्र ऐसा होना चाहिए जिस में बुलाने वाले के लिए प्यार और सम्मान हो. अगर दिखावे से बचना हो तो आज के हाईटैक तरीकों जैसे व्हाट्सऐप, ईमेल, एसएमएस से निमंत्रण भेजे जाने चाहिए ताकि धन व समय दोनों की बचत हो सके और किसी को अपमानित भी न होना पडे़.

अपने ही खिलाड़ियों की खिल्ली उड़ा रहा है पाकिस्तानी मीडिया

रियो ओलिंपिक में भारत का खाता खुल चुका है, साक्षी मलिक ने देश को पहला मेडल दिलाया, लेकिन इस बार का ओलिंपिक पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लिए बेहतर नहीं रहा है.

पाकिस्तान की ओर से सिर्फ सात खिलाड़ी ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई कर पाए, जबकि भारत से 119 प्लेयर्स रियो गए. 

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