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रेयान हैरिस बने ऑस्ट्रेलिया के नए गेंदबाजी कोच

ऑस्ट्रेलियाई क्रि​केट टीम के पूर्व तेज गेंदबाज रेयान हैरिस को टीम का नया गेंदबाजी कोच बनाया गया है. ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका वनडे सीरीज खेलने वाले हैं और हैरिस इसमें कोच की भूमिका में रहेंगे.

उनके अलावा ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट हेड डैरेन लेहमैन और असिस्टेंट कोच डेविड सेकर भी अपनी जिम्मेदारियां निभाएंगे. 36 वर्षिय हैरिस ने 2015 में क्रिकेट के हर एक फॉर्मेट से अलविदा कह दिया था. ऑस्ट्रे​लिया के लिए कुल 27 टेस्ट मैच, 21 वनडे और तीन टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेलने वाले हैरिस पर अब ऑ​स्ट्रेलिया की गेंदबाजी को और भी बेहतर करने की जिम्मेदारी है.

27 सितंबर से दक्षिण अफ्रीका दौरे की शुरुआत हो रही है. यहां टीम आयरलैंड के खिलाफ 1 वनडे मैच और फिर द​क्षिण अफ्रीका के खिलाफ 5 मैंचों की सीरीज खेलेगी. रेयान हैरिस ने 113 टेस्ट और 44 वनडे विकेट लिए हैं. उन्होंने कहा कि कोच बनने से पहले मैं खुद भी सीखूंगा. आगामी सीरीज से तेज गेंदबाज मिशेल स्टार्क और जोश हेजलवुड को बाहर रखा गया है.

पंजाब को उड़ाने में फिल्मकारों व कलाकारों का योगदान कम नहीं

फिल्म ‘आर राजकुमार’ के अश्लील गीत ‘गंदी बात’ से अभिनेता शाहिद कपूर इतने प्रभावित हुए कि गंदी बात टाइटल ही रजिस्टर्ड करवा लिया. अक्षय कुमार निजी जिंदगी में नशा नहीं करते लेकिन फिल्मों में ‘हां, मैं एल्कोहोलिक हूं’ शान से गुनगुनाते दिखते हैं. पंजाब में ड्रग्स और नशे की समस्या बहुत ही गंभीर है. बहुत अच्छी बात है कि इस पर निर्माता अनुराग कश्यप ने ‘उड़ता पंजाब’ नाम की फिल्म बनाई. इस फिल्म को ले कर जो बात सब से ज्यादा खटकती है वह यह है कि फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ वह बौलीवुड ले कर आया, जिस ने पंजाबी गायकों और हिंदीपंजाबी गीतों के साथ मिल कर पंजाब को उड़ाने में खुद बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. यह विडंबना है कि पंजाब में जैसेजैसे पंजाबी पौप का क्रेज बढ़ा, वैसेवैसे वहां नौजवानों पर नशे व ड्रग्स का शिकंजा भी कड़ा होता गया. ड्रग्स के बढ़ते प्रभाव के साथ वहां ऐसे गायकों की फौज भी बढ़ती गई है. इन गायकों को अपनी कला का इस्तेमाल युवाओं को गलत राह पर जाने से रोकने के लिए करना चाहिए था, मगर उन्होंने ऐसा करने के बजाय उसे बढ़ावा ही दिया. चिंता की बात यह है कि कहीं से कोई आवाज भी नहीं उठी. सब बाजार से नोट खींचने में जुटे रहे.

पंजाबी गानों में और अब उन की देखादेखी अनेक हिंदी गानों में भी, नशे और शराब को मर्दानगी से जोड़ दिया जाता है. इस के बाद इन गानों को इस प्रकार से फिल्माया जाता है कि जैसे शराब पीना, ड्रग्स लेना बड़े शान की बात हो. ये गाने सीधा संदेश देते हैं कि जो शराब नहीं पीता, नशा नहीं करता, वह पंजाबी है ही नहीं, या मर्द है ही नहीं. कुछ उदाहरण देखें : ‘जिन्नी तेरी कालेज दी फीस झल्लिए, ऐनी नागनी जट्टा दा पुत्त खांदा तड़के…’ इस गाने में लड़की से लड़का कह रहा है कि जितनी तुम्हारी कालेज की फीस है, उतने की तो जाट का बेटा सुबहसुबह नागनी (अफीम) खा लेता है.

‘आपणा पंजाब होवे, घर दी शराब होवे…’ इस में शराब को पंजाब के घरघर की पहचान बता दिया गया है.

‘सूखी वोडका न मारया करो, थोड़ा बहुत लिमका वी पा लिया करो…’ इस में भी लड़का ही लड़की से कह रहा है, जिस से यह संदेश जाता है कि वहां के लोग इतने पियक्कड़ हैं कि खालिस शराब पीते हैं और उस में कुछ भी नहीं मिलाते.

‘ऐनना वी न डोपशोप मारया करो…’ यह गाना बताता है कि ड्रग्स का सेवन बहुत अच्छा महसूस कराता है, इस का एहसास बड़ा कूल होता है. पंजाब में नशे को मर्दानगी से जोड़ कर, इसे बढ़ावा देने वाले गीत और इन्हें गाने वाले गायक बड़ी संख्या में हैं. पंजाब में एक से बढ़ कर एक उत्कृष्ट लोकगीतों की परंपरा रही है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से अच्छे गीत नेपथ्य में चले गए हैं और उन की जगह नशे को बढ़ावा देने वाले गीतों ने ले ली है. इन गीतों के जरिए जो भी गायक पंजाबी में लोकप्रिय हुआ, उसे बौलीवुड वालों ने भी हाथोंहाथ लिया और धीरेधीरे ऐसे गीत हिंदी में भी काफी संख्या में आ रहे हैं.

पंजाब के एक गायक हैं योयो हनी सिंह. उन के ‘मैं हूं बलात्कारी…’ और अन्य बेहद अश्लील व हैरतंगेज बोलों वाले गानों को सुन कर कुछ वर्षों पहले पंजाब हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई थी कि ऐसे गायक पर अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की गई. हनी सिंह अपने गानों के खुद ही लेखक भी होते हैं. हनी सिंह कहते हैं कि ‘मैं हूं बलात्कारी…’ उन का गाना नहीं है, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया है कि वे पहले गंदे गाने गाते थे, लेकिन अब वे साफसुथरे गाने गाते हैं. अब उन के गाने कितने साफसुथरे हैं, इस पर भी नजर डाल लेते हैं :

‘चार बोतल वोदका, काम मेरा रोज का, ना मुझ को कोई रोके, ना किसी ने रोका. मैं रहूं सारी रात इन द बार, दारू पीऊं लगातार, एकआधी सब पी लेते हैं, मैं तो पीऊं बोतल चार…’

‘मैं एल्कोहलिक हूं…’

‘वन बोटल डाउन…’

‘मैं शराबी…’

‘पार्टी औल नाइट, दारूशारू चालन दो, व्हिस्की का पैग लगा के सारी दुनिया भूलन दो, आंटी पुलिस बुला लेगी…’

एक समय इन हनी सिंह की लुटिया खुद की ही करतूतों से लगभग डूब ही चुकी थी. लेकिन केवल नोटों पर नजर गड़ाए रहने वाले बौलीवुड वालों ने उन्हें न्योता दे दिया. अक्षय कुमार ने हनी सिंह से अपनी कई फिल्मों में गीत गवाए. हनी सिंह से पहले गायक मीका उन का काम कर रहे थे. अब भी कर रहे हैं. मीका के गाने ‘इश्क की मां की…’ को सुन कर तो शबाना आजमी को इतना धक्का लगा था कि उन्होंने तुरंत रेडियो स्टेशन फोन कर के ऐसे गाने नहीं चलाने का अनुरोध कर डाला था. जैसा कि पहले कहा गया है कि नशे को बढ़ावा देने वाले पंजाबी गीतों और इन्हें गाने वालों से बौलीवुड ने भी परहेज नहीं किया और धीरेधीरे ऐसे गीत हिंदी में भी काफी संख्या में आ रहे हैं. हिंदी फिल्मों के कुछ हालिया गानों के उदाहरण भी देख लीजिए :

‘नो नो नो, मैं ने पी नहीं है, मैं ने पी नहीं है, हां जी मैंनू पिला दी गई है, पिला दी गई है, जो भी है सही है, मजा आ रही है…’ यह अभिनय तो पुरुष कर रहा है मगर आवाज महिला की है.

‘सूरज डूबा है यारों, दो घूंट नशे के मारो…’

‘ओ ना पिलाना पंजाबियों को नापतोल के, दिल वाले हैं ये पीते हैं दिल खोल के. सूर्य अस्त, पंजाबी मस्त, सूर्य अस्त, पंजाबी मस्त.

‘रम ऐंड व्हिस्की…’

‘मैं हूं शराबी या बोतल शराबी…’

‘लल्लालल्ला लोरी, दारू की कटोरी…’

‘अभी तो पार्टी शुरू हुई है…’

आज पंजाब में ऐसा कहने वालों की कमी नहीं है कि आपणा पंजाब होवे, घर दी शराब होवे…जैसे तमाम गानों पर तभी रोक लगनी चाहिए थी जब ये शुरू हुए थे. तब रोक लग जाती तो लग जाती, लेकिन आजकल तो माहौल ही दूसरा है. आजकल सैंसर बोर्ड कुछ आपत्ति करता है तो शोर मच जाता है. महेश भट्ट समेत तमाम फिल्मकार कहते हैं कि सैंसर बोर्ड होना ही नहीं चाहिए. फिल्म कैसे बनानी है, यह कलाकारों व निर्मातानिर्देशकों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. लेकिन अगर फिल्म वालों की बुद्धि, विवेक और समझ पर सब छोड़ दिया गया तो अनर्थ हो नहीं जाएगा. अनर्थ हो भी रहा है. फिल्मवालों की समझ का एक छोटा सा उदाहरण है युवाओं की पसंदीदा अभिनेत्रियों में से एक आलिया भट्ट. करण जौहर के शो ‘कौफी विद करण’ में आलिया भारत के राष्ट्रपति का नाम पृथ्वीराज चौहान बताती हैं.

अब आप कल्पना करिए कि ऐसे सामान्य ज्ञान वाली अभिनेत्री से क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि वे किसी गाने पर अभिनय करते वक्त या किसी संवाद को बोलते वक्त इस बात पर ध्यान देती होंगी कि जो शब्द वे बोल रही हैं, उन का मतलब क्या है या उन शब्दों को उन के मुंह से सुन कर लोगों, खास कर युवाओं, पर क्या असर पड़ेगा. यही हाल लोकप्रिय अभिनेताओं का है. अनेक अभिनेता ऐसे हैं जिन का आज फिल्म इंडस्ट्री में एक मुकाम है. कई फिल्मों के तो वे खुद निर्माता भी हैं. उन की बात सुनी जाती है. ऐसे में अगर वे अश्लील या नशे को बढ़ावा देने वाले गीतों पर अभिनय से इनकार कर दें तो बात बन सकती है, मगर हकीकत यह है कि अभिनेताओं में से अधिकतर का हाल आलिया जैसा ही है. तभी तो यह खबर आती है कि शाहिद कपूर को ‘गंदी बात…’ (फिल्म ‘राजकुमार’ का गाना) गाना इतना पसंद आया कि उन्होंने ‘गंदी बात’ टाइटल ही रजिस्टर्ड करा लिया है. यानी आगे भी गंदी बातें सुनने के लिए तैयार रहिए. दिलचस्प तथ्य है कि आलिया और शाहिद, दोनों ही फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ का हिस्सा हैं.

आमिर खान ने स्वीकार किया था कि अकसर हम फिल्म वाले समझ ही नहीं पाते कि हमारे दिखाए गए चित्रण का समाज पर क्या असर हो सकता है. आमिर ने ऐसी फिल्म में काम करने पर शर्मिंदगी भी जाहिर की, जिस में औरत को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया गया था. लेकिन मुश्किल यह है कि इंडस्ट्री में आमिर जैसे संवेदनशील व्यक्ति गिनती के ही हैं. पिछले दिनों अक्षय कुमार से पूछा गया कि निजी जीवन में शराब को हाथ न लगाने के बावजूद वे शराब को बढ़ावा देने वाले (पिछले दिनों शराब से जुड़े कई गाने आए जिन पर अक्षय ने मुंह चलाया और अभिनय किया) गाने क्यों कर रहे हैं? इस पर उन्होंने जवाब न दे कर उलटा आरोप जड़ दिया. उन का जवाब था कि मेरे ऊपर इंडस्ट्री के अंदर और बाहर के ऐसे लोग उंगली उठा रहे हैं जो शाम होते ही अपने घरों में नशे में टुन्न हो जाते हैं. अब अक्षय कुमार को कौन समझाए कि घर में किसी के पीने और एक लोकप्रिय सितारे के सार्वजनिक रूप से शराबखोरी का समर्थन करने में कितना अंतर है.

‘गंदी बात…’ गाने पर ठुमके लगाने वाली सोनाक्षी सिन्हा कहती हैं कि गाने में जरूर गंदी बात है, लेकिन उन के अंदर कोई गंदी बात नहीं है. वे कोई गंदी बात सहन नहीं करती हैं. फिल्मी सितारों का यही रवैया बहुत ज्यादा खतरनाक है. सारी बुराई, गंदगी समाज में उड़ेल दो और खुद साफसुरक्षित हो जाओ, क्योंकि उन्हें तो कुछ भुगतना पड़ता नहीं है. भुगतना तो उन आम लड़कियों, महिलाओं को पड़ता है जो गांव, कसबों और शहरों में किसी रास्ते, सड़क, बस या अन्य सार्वजनिक जगहों पर सहजता से चलनेफिरने की कोशिश में भी अकसर विफल हो जाती हैं. फिल्म वालों का तर्क है कि ऐसे गाने इसलिए बन रहे हैं क्योंकि युवा उन्हें पसंद कर रहे हैं. यदि पसंद का ही मामला है तो फिर फिल्मकारों को ब्लू फिल्में बनानी चाहिए क्योंकि उन्हें तो युवा और भी ज्यादा पसंद करेंगे. यह कितना भद्दा तर्क है कि युवा शराब पसंद करते हैं तो हम उन्हें शराब पीने को उकसाने वाले गाने ही देंगे. जाहिर है शराब और सैक्स को अगर आप लोकप्रियता के पैमाने पर तौलेंगे तो बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति को जन्म देंगे.

कुछ तथ्य

केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण विभाग द्वारा पंजाब के 10 जिलों में कराए गए सर्वे के अनुसार पंजाब में ड्रग्स और दवाइयों की लत की चपेट में करीब 2.3 लाख लोग हैं. जबकि करीब 8.6 लाख लोगों के बारे में अनुमान है कि उन्हें लत तो नहीं है लेकिन वे नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, नशा करने वालों में 99 फीसदी पुरुष हैं. इन में 89 फीसदी पढ़ेलिखे, 54 फीसदी विवाहित हैं. पंजाब में हेरोइन सब से ज्यादा इस्तेमाल (53 फीसदी) होने वाला मादक पदार्थ है. हेरोइन इस्तेमाल करने वाला इस पर रोजाना करीब 1,400 रुपए खर्च कर डालता है. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में नशे के कारण हर हफ्ते कम से कम एक शख्स की मौत हो रही है. पंजाब में ड्रग्स खरीदने के लिए रोजाना 20 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं.

बेशक पंजाब की इस समस्या के पीछे राजनीति, पुलिस और पाकिस्तान से हो रही तस्करी की भूमिकाएं हैं लेकिन इस समस्या को बढ़ावा देने में, उसे मर्दानगी से जोड़ने में, उसे शान की चीज बताने में हिंदीपंजाबी गीतों, उन्हें लिखने और गाने वालों का भी बहुत बड़ा योगदान है. इसीलिए जब पंजाब को उड़ाने वाली बिरादरी के लोग ही ‘उड़ता पंजाब’ ले कर आते हैं तो बात कुछ अजीब सी लगती है. इस से ‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली’ वाली कहावत याद आ जाती है.

मनीष गोस्वामी की वापसी

‘परंपरा’, ‘दरार’, ‘कर्ज’ सहित कई सफलतम सीरियलों के निर्माता मनीष गोस्वामी लंबे समय तक गायब रहने के बाद एक बार फिर सक्रिय हुए हैं. मनीष गोस्वामी पहली बार ‘‘सब’’ टीवी के लिए एक कामेडी सीरियल का निर्माण कर रहे हैं. इस कामेडी सीरियल का नाम ‘‘दिल दे के देखो’’ है. सूत्रों के अनुसार इसी नाम की फिल्म की तर्ज पर इस सीरियल का टाइटल ट्रैक भी खास तौर पर शूट किया जाने वाला है. इस सीरियल के संदर्भ में मनीष गोस्वामी कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं.

मगर ‘‘सब’’ टीवी के सीनियर एक्ज्यूकेटिब वाइस प्रेसीडेंट और बिजनेस हेड अनुज कपूर से जब हमने बात की, तो अनुज कपूर ने कहा-‘‘यह सीरियल तीन पीढ़ियों की रोमांटिक कामेडी सीरियल है. इसमें एक गाना होगा,-‘दादा को दादी से, बुआ को चाचा से और हीरो को हीरोइन से प्यार है’. इसका शीर्षक गीत होगा ‘‘दिल देके देखो दिल देके देखो दिल देने वालों प्यार करके देखो’’ और यह सीरियल 18 अक्टूबर से प्रसारित होगा.’’ 

पहलाज निहलानी के खिलाफ फूटा राखी सावंत और अवध शर्मा का गुस्सा

शीना वोरा मर्डर आधारित निर्माता अवध शर्मा की फिल्म ‘‘एक कहानी जूली की’’ से पहली बार बडे़ परदे पर हीरोईन बनकर आ रही अभिनेत्री राखी सावंत कुछ दिनो से काफी उत्साहित थी. लेकिन अब वह और उनकी फिल्म के निर्माता अवध शर्मा, ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ और इसके चेयरमैन पहलाज निहलानी के खिलाफ आग उगल रहे हैं. इसकी मूल वजह यह है कि ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ ने उनकी फिल्म ‘‘एक कहानी जूली की’’ को कुछ कट्स के साथ ‘ए’ प्रमाणपत्र प्रदान किया है. अवध शर्मा का आरोप है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने उनकी फिल्म के प्रोमो व ट्रेलर में जिन संवादो को पारित कर ‘यूए’ प्रमाण पत्र दिया था, जो संवाद फिल्म के प्रोमो व ट्रेलर में ‘यूए’ प्रमाणपत्र के साथ चल रहे हैं, उन्हीं संवादों को अब ‘ए’ प्रमाणपत्र के साथ काटने के लिए कैसे कह सकते हैं.

जबकि अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए राखी सावंत कहती हैं-‘‘मुझे पहलाज निहलानी और सेंसर बोर्ड से बहुत नाराजगी है. मैं कोई सनी लियोनी नही हूं कि आप मेरी फिल्म को ‘ए’ सर्टीफिकेट दे दें. सनी लियोनी ने जितनी नग्नता परदे पर दिखायी है, जितने किसिंग सीन किए हैं, उतने मैंने नहीं किए हैं. हमारी फिल्म ‘एक कहानी जूली की’ में जो भी सीन हैं, वह भारतीय जनता का लिहाज करते हुए रखे गए हैं. हमने तो खुद एक लक्ष्मण रेखा बना रखी है. मेरी फिल्म लोग पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं. मेरी समझ में नहीं आता कि सेंसर बोर्ड की इतनी हिम्मत कैसे हो गयी कि उन्होंने राखी सावंत की फिल्म है, इसलिए ‘यूए’ के लिए 34 कट दे दिए.

‘ए’ प्रमाणपत्र के लिए छह कट दे दिए. यह गलत है. फिल्म ‘ओंकारा’ में कितनी गालियां थीं. राखी सावंत का कोई गाड फादर नहीं है, इसलिए आप उसकी फिल्म के साथ इस तरह से व्यवहार करेंगे. यह दुर्भाग्य की बात है कि यह लोग मुझे भी सनी लियोनी समझ रहे हैं. इमरान हाशमी परदे पर चार घंटे तक किस करते रहते हैं और उसे सेंसर पास कर देता है. मैं अपना हक छीन कर रहूंगी. मेरा एक वीडियो था, जिसका नाम कमीनी था. उस पर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति कर दी थी. जबकि फिल्म ‘कमीने’ पास कर दी थी. मैंने लड़ाई लड़ी, जीती. अभी सेंसर बोर्ड ने ‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’, ‘मस्तीजादे’, ‘क्या सुपर कूल हैं हम’ इसलिए पास कर दी, क्योंकि एकता कपूर की फिल्म थीं.’’ 

कम बजट की हवाईसेवा की लंबी उड़ान

एक समय था जब हवाईयात्रा को धनाढ्य वर्ग तक ही सीमित माना जाता था. नेता, अभिनेता, उद्योगपति और शीर्ष अधिकारी ही इस सेवा का लाभ ले पाते थे. समय बदला तो देश में कम बजट की हवाईसेवाएं शुरू हुईं. बहुत लोगों का विश्वास था कि कम कीमत पर हवाई सफर कराने की यह अवधारणा जल्द ही दम तोड़ देगी मगर इस विश्वास को झटका लगा और कम बजट की हवाईसेवा देने वाली विमानन कंपनियों के हौसले बुलंद होते गए. देश का जनसामान्य हवाई सफर करने लगा और कम दाम पर लोगों को गंतव्य तक पहुंचाने वाली उड़ानों में यात्रियों की भीड़ बढ़ने लगी. सभी रूट पर विमान पूरी सीटें भर कर उड़ान भरते रहे. देखते ही देखते इस क्षेत्र में इंडिगो, स्पाइस जेट, गो एअर, एअर एशिया इंडिया जैसी कंपनियां उतर आईं और सभी कंपनियां फायदे में चलने लगीं.

इस प्रतिस्पर्धा का सीधा लाभ यह हुआ कि सरकार ने विमानन क्षेत्र के लिए नई नीति तैयार कर दी और लोगों के बजट के अनुसार हवाईसेवा देने की घोषणा कर दी. इन कंपनियों को कम किराया की वजह से पूरी सवारी मिलने का फायदा हुआ. इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि निजी क्षेत्र की कम बजट वाली तीनों कंपनियों के बाद अब गो एअर ने भी अंतर्राष्ट्रीय मार्गों पर उड़ान भरने का निर्णय लिया है. कंपनी ने चीन, थाईलैंड, मालदीव तथा वियतनाम के साथ ही खाड़ी क्षेत्र के 14 देशों में अपनी उड़ानें शुरू करने की घोषणा की है. कंपनी का कहना है कि इन देशों में पर्यटक ज्यादा नहीं जाते हैं लेकिन वहां अन्य यात्रियों को आकर्षित किया जा सकता है. इस के लिए जरूरी प्रक्रिया पर काम शुरू हो चुका है और अगले वर्ष के आरंभ से धीरेधीरे इन देशों के लिए कंपनी अपनी उड़ान का संचालन शुरू कर देगी.

सरकारी स्कूलों में पीटीएम

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सोशल मीडिया में बहुत मजाक उड़ाया जाता है पर वे न केवल चुनाव जीतते जा रहे हैं बल्कि नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नामी भाजपाई सांसद से राज्यसभा का त्यागपत्र दिलवा कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि उन में कुछ खूबी है. वह खूबी है जमीन से जुड़े रहने की. एक ताजा सफल प्रयोग उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पेरैंटटीचर मीटिंग करा कर किया.

आश्चर्य की बात है जिन बच्चों को लगता है कि भविष्य तो पहले से ही लिखा होता है, उन के मातापिता 80 प्रतिशत की संख्या में अपने बच्चों के टीचरों से मिलने स्कूल जा पहुंचे और सरकार को भरोसा था, इसलिए उस ने पूरी तरह का इंतजाम किया था.

सरकारी स्कूलों के बच्चे आम बच्चों की तरह हैं. उन्हें पढ़ाया जाए तो वे अंगरेजी माध्यम के स्कूलों के बच्चों की तरह सफलता पा सकते हैं. पर यदि उन्हें प्रबंधन की दुर्दशा, अध्यापकों की लापरवाही, टूटे स्कूल, अनुशासन की कमी दिखेगी तो वे वही करेंगे जो अपनी संकरी, बदबूदार गलियों, एक कमरे के छोटे मकानों, भीड़ और कूड़े से भरे बाजारों में करते हैं. वे, बस, किसी तरह वक्त गुजारेंगे.

दिल्ली सरकार ने पेरैंटटीचर मीटिंग बुलवा कर अध्यापकों पर दबाव बना दिया है. अध्यापकों का चेहरा पहचानने के बाद मातापिता जान सकेंगे कि उन के बच्चों को क्या, किस ने पढ़ाया या किस ने नहीं पढ़ाया. उन के लिए शिकायतें करना आसान हो जाएगा. और अध्यापकों के लिए बिगड़ैल बच्चों के मातापिताओं को बुला कर शिकायत करना आसान हो जाएगा.

देशभर में सरकारी स्कूलों में ज्यादातर बच्चे दोपहर के मुफ्त खाने के लिए आते हैं पर यदि हर 6 महीने में मातापिता अध्यापकों से मिला करेंगे तो अध्यापक जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगे.

सरकारी स्कूलों के अध्यापक ज्यादा वेतन व सुविधाएं पाते हैं और वे अंगरेजी माध्यम के स्कूलों के अध्यापकों से ज्यादा योग्य हैं. लेकिन उन्हें जब लगता है कि उन के काम को सराहा ही नहीं जा रहा तो वे निकम्मे हो जाते हैं. अरविंद केजरीवाल ने बिना ज्यादा खर्च किए अध्यापकों और स्कूली बच्चों को जिम्मेदारी का पाठ पढ़वा दिया है. आम आदमी पार्टी, आंतरिक विवादों के बावजूद, मर नहीं रही तो शायद यही एक कारण है. वह जनहित में जुटी हुई है.                             

 

 

ट्विटर पर करें मोबाइल सेवाप्रदाताओं की शिकायत

सरकार जनता की शिकायतों को दूर करने के लिए डिजिटल सेवा को और ज्यादा सरल तथा प्रभावी बना रही है. उपभोक्ता को अब तक रेल मंत्रालय के अलावा विदेश मंत्रालय से संबंधित शिकायतें ट्वीट कर के दर्ज करने की सुविधा थी और इस में बड़ी संख्या में शिकायतें मिल रही हैं और इन का निस्तारण भी हो रहा है. अब टैलिकौम क्षेत्र के उपभोक्ताओं के लिए भी ट्वीट कर के शिकायत दर्ज करने की सुविधा दूरसंचार मंत्रालय ने शुरू कर दी है.

उपभोक्ता दूरसंचार मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर सरकारी और निजी क्षेत्र के मोबाइल सेवाप्रदाताओं के साथ ही डाक विभाग से जुड़ी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं. मंत्रालय ने इन शिकायतों को तत्काल दूर करने के लिए जरूरी निर्देश जारी कर दिए हैं. देश में करीब एक अरब उपभोक्ता मोबाइल फोन सेवा का इस्तेमाल कर रहे हैं और लगभग हर हाथ में मोबाइल फोन है. ग्राहक सार्वजनिक स्थलों पर शिकायत केंद्र के प्रतिनिधि से अकसर उलझते दिखाई देते हैं. उन में अधिक पैसे काटने और अवांछित सेवा बिना मांगे शुरू करने से जुड़ी ज्यादा शिकायतें होती हैं. कंपनियां बेवजह का शुल्क लगा कर उपभोक्ता को लूटती हैं. साधारण उपभोक्ता की इस शिकायत का निराकरण नहीं होता है. परेशान उपभोक्ता पोर्टेबिलिटी सुविधा लेने को विवश होता है लेकिन वहां भी उसे इसी तरह की शिकायत का सामना करना पड़ता है. कई उपभोक्ता सेवाकेंद्र कंप्यूटरीकृत हैं और वहां उपभोक्ता के लिए प्रतिनिधि से बात करने का विकल्प नहीं होता है. अब उपभोक्ता ट्वीट कर के अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है और उस की शिकायत का समय पर उत्तर मिल सकेगा. लेकिन जो कंपनियां लगातार अवैध काम कर रही हैं, उन पर लगाम कसी जानी चाहिए.

निशाने पर न्यायपालिका

भारत के मुख्य न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर आजकल बहुत खिन्न और रुष्ट नजर आ रहे हैं. मोदी सरकार न्यायपालिका के पर कतर कर उसे अपने पौराणिक नियमों से तो नहीं चलाना चाह रही है पर जो भी कर रही है उस का ध्येय शायद ऐसा ही कुछ है.

न्यायपालिका ने संविधान के सहारे वह स्वतंत्रता हासिल कर ली है जिस की संविधान निर्माताओं ने भी कल्पना नहीं की थी. पर इस का साफ कारण था कि 1947 से 1990 के बीच कांगे्रस ने न्यायपालिका को अपनी सरकार का एक अंग मात्र मान लिया था जिस से जैसे मरजी, निर्णय लिए जा सकते थे क्योंकि न्यायाधीशों की नियुक्ति सीधे प्रधानमंत्री के हाथों से होती थी.

अब न्यायपालिका अपने न्यायाधीश स्वयं नियुक्त करती है और कानून मंत्री या प्रधानमंत्री सिवा मूकदर्शक के, कुछ नहीं कर पाते. 2004 से 2014 के बीच सोनिया गांधी ने इस तौरतरीके को मान लिया था. पर मध्यवर्ग की धार्मिक सुनामी पर चढ़ कर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी उसे भारी रुकावट मानते हैं. सो, उन्होंने ताबड़तोड़ आयोग, कमेटियां, कानून बनाए कि जजों की नियुक्ति इंदिरा गांधी के शासन के दौरान की तरह हो जाए पर यह फिलहाल संभव नहीं हो पा रहा है.

इसीलिए न्यायपालिका व सरकार के बीच गतिरोध पैदा हो रहा है और न्यायाधीश चिंतित हैं कि सरकार की लापरवाही या जानबूझ कर पैर घसीटने से उच्च न्यायालयों में आधे स्थान खाली हैं और करोड़ों मामले लंबित हैं. लगता यह है कि केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार न्यायपालिका का भगवाकरण करने की फिराक में है.

न्याय देना और सही न्याय देना राज्य का पहला काम है पर यहां तो लगता है कि धर्म की पुनर्स्थापना पहला काम बनता जा रहा है. न्याय व्यवस्था को काले कोट वालों से ले कर पुराणवादियों के हाथों में डालने की साजिश की जा रही है. यह देश के लिए घातक होगा और पौराणिक युग के समर्थक स्वयं उस का खमियाजा भुगतेंगे.

जब न्याय व्यवस्था कमजोर होती है तो केवल हथियारबंद लोगों का राज चलने लगता है. देश में अगर लग रहा है कि जगहजगह अराजकता के निशान उग रहे हैं तो इसलिए कि न्याय व्यवस्था पहले भ्रष्ट नेताओं के हाथों में थी, अब भ्रष्ट और भगवाइयों के हाथों में लाने की कोशिश की जा रही है. इस में मध्यवर्ग, जो पौराणिकों का अंधभक्त है, खुद फंसेगा क्योंकि उसे ही न्याय के लिए दरवाजा खटखटाना होगा.

न्याय व्यवस्था संपत्ति की सुरक्षा है. यदि अदालतों में मामले दशकों चलते रहेंगे तो न्याय की आड़ में कोई भी संपत्ति पर कर कब्जा कर बैठ सकता है.

क्या सरकार यह चाहती है कि लोग काले कोट वालों की जगह सत्ताधारी नेताओं और स्वामियों के पास जाएं. यह बात संसद या मंचों पर नहीं कही जा रही है पर केंद्र सरकार द्वारा जो कदम शिक्षा, संस्कृति, इतिहास, करों, श्रम कानूनों आदि के बारे में उठाए जा रहे हैं वे इसी ओर इशारा कर रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश की झुंझलाहट समझी जा सकती है कि वे संवैधानिक ओहदे पर होते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे. उन की हालत अरविंद केजरीवाल जैसी है जिन्हें हर फैसले पर उपराज्यपाल की मुहर लगवानी जरूरी है.

रिलायंस जियो के बाद BSNL धमाका करने को तैयार

रिलायंस जियो के लांच होने के बाद तो टेलिकॉम कंपनियों में होड़ मच गई है कि वो क्या ऐसा करें जिससे वो रिलांयस जियो को टक्कर दे सकें. एयरटेल और अनिल अंबानी की कंपनी के बाद अब बीएसएनएल कंपनी  भी भारतीय उपभोक्ताओं के लिए धमाका ऑफर लेकर आयी है. वह अब अपने कस्टमर को एक रुपए से भी कम में एक जीबी डेटा देगी.

बीएसएनएल का ये नया प्लान 9 सितंबर से लागू हो जायेगा. बीएसएनएल ने एक्सपीरियंस अनलिमिटेड बीबी-249 प्लान जारी किया है. बीएसएनएल का ये प्लान अर्बन और रूरल दोनों एरिया में लागू होगा. इस प्लान के तहत मात्र 249 रूपये में 300 जीबी डाटा डाउनलोड किया जा सकता है. इस प्लान की अवधि 6 महीने तक होगी. उपभोक्ताओं को दो एमबीपीएस की स्पीड एक जीबी के लिए मिलेगी.

आलोचना करने का हक

ओलिंपिक खेलों में दीपा करमाकर के आकर्षणीय जिमनास्टिक खेल व 2 और पदकों के साथ भारत का प्रदर्शन संतोषजनक है. दीपा इस अनजाने खेल में चौथा स्थान पा सकी. हां, उस के बारे में राजस्थान की एक युवती द्वारा ट्विटर पर किए गए कमैंट पर हुए हंगामे ने साबित कर दिया कि असल में हम अभी कट्टर देश हैं. और कट्टरपंथी देशों में बहुतकुछ गलत होता ही है.

उस युवती को दीपा द्वारा प्रौडुनोवा वौल्ट का प्रयोग करने पर आपत्ति थी. उस ने अपने ट्वीट में इस बारे में खुले शब्दों में कहा कि इस तरह के देश के लिए अपनी जान पर खेलना गलत है, जहां अमीर देशों के जैसी सुविधाएं नहीं हैं. इस ट्वीट की भाषा में ‘डैम्ड’ शब्द था जिस पर सोशल मीडिया में उस की आलोचना तो हुई ही, पुलिस भी उस युवती के दरवाजे पहुंच गई.

यह असहिष्णुता की निशानी है. देशभक्ति का मतलब यह तो नहीं कि हम भारत को गरीब, गंदा और भ्रष्ट देश न कह सकें जबकि हम सब जानते हैं कि यह देश है ऐसा. सच को छिपा लेने से तथ्य बदल नहीं जाते. दीपा करमाकर ने भारी जोखिम लिया ताकि मैडल मिल सके. पर मैडल पाने वालों के साथ यह देश कैसा व्यवहार करता है, सब को मालूम है. पाई गई सफलता को 4 दिनों बाद यहां भुला दिया जाता है.

रियो में हुए ओलिंपिक खेलों में देश के पुरुष खिलाडि़यों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया. ऐसे में इस के जिम्मेदार लोगों के दरवाजों पर पुलिस को ठकठकाना चाहिए, न कि उस नागरिक के, जो खिन्न हो कर गुस्से का इजहार कर रहा है. दरवाजा तो उन का खटखटाया जाना चाहिए था जिन्होंने रियो जा कर अपना मजाक उड़वाया. उन का क्या किया?

वैसे भी, आलोचना, कटु आलोचना, बेहद कटु आलोचना करने का हक हर भारतीय को है. अगर देश गलत करता है तो फिर किसी के शब्दों के चयन में अगर कुछ गलत है तो वह देश का अपमान नहीं, बल्कि देश के प्रति प्रेम ही है कि देश अपने को सुधारता क्यों नहीं. देश के लिए जो शब्द उस युवती द्वारा इस्तेमाल किया गया वह तो वास्तव में पूरी नौकरशाही व नेताशाही के लिए है. भारत जैसा विशाल देश 10-15 पदक भी न पाए, तो इस से ज्यादा शर्मिंदगी की और क्या वजह हो सकती है.

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