दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सोशल मीडिया में बहुत मजाक उड़ाया जाता है पर वे न केवल चुनाव जीतते जा रहे हैं बल्कि नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नामी भाजपाई सांसद से राज्यसभा का त्यागपत्र दिलवा कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि उन में कुछ खूबी है. वह खूबी है जमीन से जुड़े रहने की. एक ताजा सफल प्रयोग उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पेरैंटटीचर मीटिंग करा कर किया.

आश्चर्य की बात है जिन बच्चों को लगता है कि भविष्य तो पहले से ही लिखा होता है, उन के मातापिता 80 प्रतिशत की संख्या में अपने बच्चों के टीचरों से मिलने स्कूल जा पहुंचे और सरकार को भरोसा था, इसलिए उस ने पूरी तरह का इंतजाम किया था.

सरकारी स्कूलों के बच्चे आम बच्चों की तरह हैं. उन्हें पढ़ाया जाए तो वे अंगरेजी माध्यम के स्कूलों के बच्चों की तरह सफलता पा सकते हैं. पर यदि उन्हें प्रबंधन की दुर्दशा, अध्यापकों की लापरवाही, टूटे स्कूल, अनुशासन की कमी दिखेगी तो वे वही करेंगे जो अपनी संकरी, बदबूदार गलियों, एक कमरे के छोटे मकानों, भीड़ और कूड़े से भरे बाजारों में करते हैं. वे, बस, किसी तरह वक्त गुजारेंगे.

दिल्ली सरकार ने पेरैंटटीचर मीटिंग बुलवा कर अध्यापकों पर दबाव बना दिया है. अध्यापकों का चेहरा पहचानने के बाद मातापिता जान सकेंगे कि उन के बच्चों को क्या, किस ने पढ़ाया या किस ने नहीं पढ़ाया. उन के लिए शिकायतें करना आसान हो जाएगा. और अध्यापकों के लिए बिगड़ैल बच्चों के मातापिताओं को बुला कर शिकायत करना आसान हो जाएगा.

देशभर में सरकारी स्कूलों में ज्यादातर बच्चे दोपहर के मुफ्त खाने के लिए आते हैं पर यदि हर 6 महीने में मातापिता अध्यापकों से मिला करेंगे तो अध्यापक जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगे.

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