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लोन डिफॉल्टर्स के साथ सख्ती से पेश आएगी सरकार

सरकार चाहती है कि बैंक कुछ बड़े लोन डिफॉल्टर्स पर सख्ती करें ताकि दूसरों को कर्ज जल्द चुकाने की नसीहत मिले. रेगुलेटर्स के बीच विमर्श के बाद सरकार को बैड लोन पर एक नोट सौंपा गया है. सरकार और रिजर्व बैंक का मानना है कि नोट में जो उपाय सुझाए गए हैं, उनको कुछ बड़े लोन डिफॉल्टर्स पर आजमाया जाना चाहिए.

माल्या अभी किंगफिशर एयरलाइंस के 9,000 करोड़ रुपये के लोन डिफॉल्ट में बैंकों और जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं. एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट उनसे मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भी पूछताछ करना चाहता है. माल्या मार्च के बाद से विदेश में रह रहे हैं. उनका कहना है कि उन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की है. उन्होंने कहा है कि वह बैंकों के साथ सेटलमेंट करने की कोशिश कर रहे हैं.

एसेट्स की पूरी जानकारी नहीं देने को लेकर माल्या के खिलाफ अदालत में अवमानना का मुकदमा चल रहा, वहीं बैंक उनकी एसेट्स बेचकर लोन रिकवरी करने की कोशिश में जुटे हैं. लोन डिफॉल्ट के मामले बढ़ने से सरकारी बैंकों का ग्रॉस बैड लोन मार्च 2016 तक 4.76 लाख करोड़ रुपये हो गया था.

रिजर्व बैंक की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी बैंकों का ग्रॉस एनपीए मार्च 2017 तक बढ़कर 10.1% पहुंच सकता है. आरबीआई ने बैंकों के लिए एसेट क्वॉलिटी रिव्यू (एक्यूआर) शुरू किया है, जिसकी वजह से पिछले कुछ क्वॉर्टर्स में बैंकों का रिजल्ट ऐतिहासिक तौर पर खराब रहा है. एक्यूआर के तहत आरबीआई ने बैंकों से बैड लोन की पहचान करने और बैलेंस शीट को साफ-सुथरा बनाने के लिए कहा है. लोन रिकवरी के लिए सरकार इंटर-मिनिस्ट्रियल कंसल्टेशंस भी कर रही है. सरकारी अधिकारी ने बताया कि इसके लिए खासतौर पर पावर और स्टील जैसे सेक्टर्स पर जोर दिया जा रहा है.

कटऔफ का गोरखधंधा

दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस के 6-7 कालेजों में केवल उन छात्रों को ही मनपसंद विषय में प्रवेश मिल पाया है जिन के अंक 95% से अधिक हैं. कालेजों में 95% की सीमा ऐसी हो गई है जैसे किसी गांधी रोड की पटरी हो, जिस पर सैकड़ों लोग चल रहे हों. जिन्हें उम्मीद थी कि उन्हें एक बढि़या कालेज में प्रवेश मिलेगा वे 12वीं में अगर कम अंक लाए तो समझो जीवन बेकार हो गया.

दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई के कालेजों में प्रवेश लेना अब बहुत कठिन हो गया है, क्योंकि इस तरह के नए कालेज बन नहीं रहे और जो हैं उन में कटऔफ बहुत ज्यादा है.

इसी ज्यादा कटऔफ के गोरखधंधे का कमाल है कि लगभग अनपढ़ छात्र बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश से 75-80% अंक ले आते हैं, क्योंकि उन के पेपर व मार्कशीट फेक या नकल पर आधारित होते हैं. यह ठीक है कि बढ़ती जनसंख्या में कुछ चुने हुए कालेजों को वरीयता मिलेगी पर यह समझना कि यदि उन कालेजों में प्रवेश नहीं मिला तो जीवन बरबाद हो जाएगा, गलत है.

आज 12वीं की परीक्षा में 90% से अधिक अंक ही एक भरोसेमंद भविष्य की गारंटी रह गए हैं और यह एक साल या एक परीक्षा जीवन को निर्धारित कर दे, यह एक तरह से गलत है. देश भर में हजारों कोचिंग सैंटर्स इसी वजह से धड़ल्ले से पैसा कमा रहे हैं, क्योंकि मातापिता अपनी सारी जमापूंजी लगा कर उस हद को पार करवाने में लगा देते हैं. अगर बच्चे को वे अंक न मिलें जिन की अपेक्षा थी तो पूरी संपत्ति कई मामलों में समाप्त हो जाती है और हाथ में बेकार हुआ बच्चा बोझ हो जाता है.

पैसे खर्च कराने के बाद भी जब युवाओं के हाथ कुछ नहीं लगता तो वे बुरी तरह कुंठित हो जाते हैं. यही वे युवा हैं जो समाज पर आज बोझ बन रहे हैं. अगर हमारी शिक्षा नीति नहीं सुधरी तो यह 95% की हाय देश के युवाओं को खा जाएगी.

 

हथियारों की खपत और युद्ध का निर्यात

राज्यों के विस्तार और साम्राज्यों के उदय के साथ ही हथियारों का उत्पादन एक उद्योग बन गया है. जैसे-जैसे  हथियारों पर सरकारों की निर्भरता बढ़ती गयी, वैसे-वैसे इस उद्योग का विस्तार होता चला गया. आज संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार उत्पादक देश है, उसके नियंत्रण में आधे से ज्यादा हथियार उद्योग हैं. जिसमें हर उद्योग की तरह व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा, भारी मुनाफा, निजी कम्पनियां और सरकारों के द्वारा किये गये सामरिक संधि एवं समझौते हैं. हथियारों के सबसे बड़े खरीददार तीसरी दुनिया के देश हैं. जहां हथियारों की खपत के लिये युद्ध और युद्ध की आशंकाओं को रोज बढ़ाया जाता है.

हथियार उद्योग उत्पादक देशों की सरकारों और उपभोक्ता देशों की सरकारों के बीच का करार भले ही नजर आता है, जिसे उस देश की सुरक्षा के नाम पर प्रचारित किया जाता है, लेकिन वास्तव में इसमें हथियार उत्पादक निजी कम्पनियों का बड़ा हिस्सा होता है. स्थितियां ऐसी बन गयी हैं, कि हथियार उत्पादक देशों की सरकारें निजी कम्पनियों के लिये काम करती हैं, और हथियार उपभोक्ता देशों की सरकार अपने देश की आम जनता के पैसों से उसकी खरीददारी करती है. हथियारों के होड़ की सबसे बड़ी वजह यही है, कि साम्राज्यवादी देश तीसरी दुनिया के देशों के बीच आपसी असुरक्षा और संघर्ष तथा युद्ध और युद्ध के भय को बना कर रखती है.

अमेरिकी सरकार तो खुलेआम युद्ध का निर्यात करती है. आज विश्व में जहां भी तनाव और युद्ध हो रहे हैं, वहां यूरो-अमेरिकी साम्राज्यवाद की सम्बद्धता है. उसने आतंकवाद को -आतंकवाद के खिलाफ युद्ध को- अपना हथियार बना लिया है. जहां हथियारों की भारी खपत है. हथियारों को बेचने, हथियारों की मांग बढ़ाने के लिये युद्ध के निर्यात की नीति यूरो-अमेरिकी साम्राज्यवाद और हथियार उत्पादक निजी कम्पनियां ही बना सकती हैं.

सउदी अरब, संयुक्त अरब अमिरात, इराक, इस्त्राइल और आॅस्ट्रेलिया अमेरिकी हथियारों के सबसे बड़े खरीददार हैं. रूस भी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार उत्पादक देश है, किंतु विश्व बाजार में उसकी हिस्सेदारी मात्र 14 प्रतिशत है.

अमेरिकी रक्षा बजट दुनिया भर के देशों के रक्षा बजट में सबसे ज्यादा है, इसके बाद भी अमेरिका अपने को असुरक्षित महसूस करता है, इसका प्रचार करता है. यह भी उल्लेखनिय है, कि उसने विश्व में 1000 से अधिक सैन्य अड्डे बसा रखे हैं. अमेरिकी सेना और दुनिया भर के देशों में फैले उसके सैनिकों के बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है, कि सैनिक अपने देश के लिये, अब व्यवस्था का संकट बन गये हैं. यदि उनकी वापसी हो जाये तो अमेरिकी व्यवस्था असंतुलित हो जायेगी.

अमेरिकी अर्थव्यवस्था विध्वंसक हथियारों के उत्पादन पर टिक कर रह गयी है, जो निजी कम्पनियों एवं बड़े कारपोरेट की पकड़ में है. उसके सामरिक खर्च अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर बड़ा बोझ है.

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने अब तक के कार्यकाल के दौरान हथियार उद्योग को काफी लाभ पहुंचाया है. उन्होंने लगभग 200 बिलियन डालर के हथियारों की बिक्री पर अपनी मंजूरी दी है.

साल 2013 में अमेरिकी हथियार उद्योग ने वियतनाम और लीबिया में हथियारों के निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को ढीला करवाने के लिये 170 मिलियन डालर की लाॅबिंग की थी. जिसका भारी मुनाफा वहां के हथियार उद्योग को मिला. लीबिया में कर्नल गद्दाफी के पतन और अमेरिकी साजिशों के तहत उनकी हत्या के बाद, आज लीबिया ही नहीं, उसके पड़ोसी देशों और आपसी संघर्ष में फंसाये गये अफ्रीकी देशों की सरकारों के लिये, अवैध रूप से पहुंचे अमेरिकी हथियार सबसे बड़ी समस्या हैं. जहां विद्रोही और आतंकी राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा कर अमेरिका और यूरोपीय देशों के सैन्य हस्तक्षेप की अनिवार्यतायें बना रहे हैं. हमने हमेशा यह कहा है, कि कर्नल गद्दाफी का पतन और उनकी हत्या लीबिया ही नहीं, अफ्रीकी महाद्वीप के आने वाले कल की हत्या है, जिसमें आपसी सहयोग एवं समर्थन के आधार पर उनकी एकजुटता थी. अफ्रीका के विकास को औपनिवेशिक यूरोप आौर साम्राज्यवादी अमेरिका ने मार डाला है.

दुनिया भर के तमाम विद्रोही, आतंकी संगठनों, मिलिसियायी गुटों और निजी सेनाओं के पास अवैध अमेरिकी हथियार हैं. युद्ध और आतंक को यूरोपीय देश और अमेरिकी सरकार ने नयी ऊचाईयां दी है.

अब पेटीएम भी देगा पर्सनल लोन

डिजिटल पेमेंट्स और ई-कॉमर्स का पॉप्युलर प्लैटफॉर्म पेटीएम जल्दी ही पर्सनल लोन देना भी शुरू कर देगा. कंपनी के एक सीनियर एग्जिक्युटिव ने बताया कि अगले कुछ महीनों में ग्राहकों को पर्सलन लोन देने की शुरुआत कर दी जाएगी. पेटीएम चीनी कंपनी अलीबाबा से जुड़ा हुआ है.

पेटीएम के वाइस प्रेजिडेंट (बिजनस) कृष्ण हेगड़े ने बताया, ‘5 हजार से 10 हजार तक के लोन 30 मिनट में अप्रूव हो जाएंगे जबकि बड़े अमाउंट वाले लोन (1-2 लाख) को अप्रूव होने में एक या दो दिन का वक्त लगेगा.’

पेटीएम अपना एक अलग पेमेंट बैंक बिजनस बना रहा है. फिलहाल कंपनी ने इसके लिए 10 बैंकों के साथ पार्टनरशिप की है, जो लोन देंगे. पेटीएम का हेडऑफिस नोएडा में है.

रियो के बाद नई पारी की शुरुआत करेंगी साक्षी मलिक

हरियाणा सरकार ने रियो ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली साक्षी मलिक को रोहतक में स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में कुश्ती डायरेक्टर नियुक्त करने की घोषणा की.

इसकी घोषणा करते हुए हरियाणा खेल एवं युवा मामलों के मंत्री अनिल विज ने यह भी कहा कि साक्षी को उनके विशेष कोष में से 21 लाख रूपये और 500 वर्ग गज का प्लॉट भी दिया जायेगा.

विज ने कहा कि साक्षी के कोच मंदीप को विशेष नियमों के अंतर्गत पदोन्नति भी दी जायेगी.

हरियाणा सरकार पहले ही साक्षी को खेल नीति के अंतर्गत ढाई करोड़ रूपये के नकद पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है.

खेल मंत्री ने यहां आयोजित एक कार्यक्रम इसकी घोषणा की जिसमें हॉकी खिलाड़ी सविता पूनिया और पूनम रानी तथा पहलवान वीरेंद्र सिंह को भी सम्मानित किया गया.

इसी मौके पर हरियाणा के सहकारिता मंत्री और भाजपा सांसद मनीष कुमार ग्रोवर ने साक्षी के कोच ईश्वर दहिया के लिये 10 लाख रूपये के पुरस्कार की घोषणा की.

नरेंद्र मोदी की वो कहानी, जो शुरू हुई श्मशान से…

नरेंद्र मोदी की राजनीतिक किताब में किसी का स्वागत है तो किसी के लिए दरवाजे बंद हैं. अगर ऐसा लगने लगे कि कोई काम का नहीं रह गया, तो उनकी राजनीतिक किताब के मुताबिक़ उसे बलि का बकरा बनाया जा सकता है. लेकिन सवाल उठता है कि कैसे यह तय होगा कि कौन काम का नहीं रह गया?

धुर हिंदूवादी या हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के पैरोकार मोदी जनभावनाओं को उभारने में अपनी पार्टी के किसी भी नेता से आगे माने जाते हैं. गुजरात का मुख्यमंत्री चयनित होने से पहले मोदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे और जिस समय देश के सर्वाधिक विकसित राज्य की उन्हें कमान सौंपी गई थी उस समय तक उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था.

लेकिन आज हम आपको मोदी की जो कहानी बताने जा रहे हैं, वो बेहद दिलचस्प है. एक ऐसी कहानी, जो अभी तक चर्चा में नही आ पाई. आप भी पढ़िए.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

श्मशान में थे नरेंद्र मोदी, पीएमओ से आया फोन, और फिर

ये बात एक अक्तूबर, 2001 की है. दिल्ली के लोधी रोड श्मशान घाट में एक निजी टीवी चैनल के कैमरामैन गोपाल बिष्ट का अंतिम संस्कार हो रहा था. इसमें कुछ पत्रकारों के अलावा इक्का दुक्का नेता भी शामिल थे. अंतिम संस्कार चल ही रहा था कि एक नेता के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वो फोन प्रधानमंत्री निवास से था. फोन करने वाले ने पूछा, “कहां हैं.” उठाने वाले का जवाब था, “श्मशान में हूं.” उधर से कहा गया, “आकर मिलिए.”

श्मशान में फोन उठाने वाले उस शख्स का नाम नरेंद्र मोदी था. गोपाल बिष्ट की मौत उस हवाई दुर्घटना में हुई थी जिसमें कांग्रेस के कद्दावर नेता माधव राव सिंधिया दिल्ली से कानपुर जा रहे थे. उस हादसे में सिंधिया सहित विमान में सवार सभी आठ लोगों की मौत हो गई थी. अगले दिन दिल्ली के तमाम बडे नेता ग्वालियर में सिंधिया के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते थे. तब नरेंद्र मोदी एक कैमरामैन की अंत्येष्टि में शामिल हो रहे थे.

जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री आवास में जाकर अटल बिहारी वाजपेयी से मिले तो वाजपेयी ने उन्हें गुजरात संभालने की जिम्मेदारी सौंपी. यह एक तरह से राजनीतिक गलियारे में वनवास झेल रहे नरेंद्र मोदी को नया जीवन देने जैसा था. हालांकि उस वक्त किसी को अंदाजा नहीं था कि आने वाले दिनों में मोदी भारतीय राजनीति में शिखर तक जा पहुंचेंगे.

श्मशान में आए इस फोन का दिलचस्प विवरण पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अटल बिहारी वाजपेयी पर अपनी किताब “हार नहीं मानूंगा” (एक अटल जीवन गाथा) में किया है. दरअसल ये अटल बिहारी वाजपेयी ही थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को हाशिए से निकालते हुए एक राज्य की बागडोर थमाई थी.

मोदी को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के विरोधियों का साथ भी मिला था और दूसरी तरफ केशूभाई की छवि रिश्तेदारों और चापलूसों से घिरे नेता की बन गई थी और भाजपा हाईकमान को 2003 में होने वाले गुजरात विधानसभा के चुनाव में हार का डर सताने लगा था. ऐसे में किसी मजबूत नेता को गुजरात भेजने का दबाव भी बढ़ रहा था लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को सितंबर, 2000 में किया अपना एक वादा था.

जब नरेंद्र मोदी को गुजरात की कमान थमाई गई तब वे पार्टी के महासचिव जरूर थे लेकिन राजनीतिक तौर पर उनकी हैसियत बहुत अच्छी नहीं थी. वे जिन राज्यों में पार्टी के प्रभारी थे, वहां पार्टी चुनाव हार गई थी. पंजाब, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में पार्टी को चुनावी हार का सामना करना पड़ा था.

इससे पहले उनके अपने राज्य गुजरात में उनके चलते पार्टी में बगावत की स्थिति बन गई थी. ये स्थिति किसी भी राजनेता को विचलित करने के लिए काफी थी और इन सबके बीच ही नरेंद्र मोदी अमेरिका चले गए थे.

भारतीय जनता पार्टी पर करीब से नजर रखने वाले पत्रकारों की मानें तो पार्टी के बडे नेताओं ने मोदी को कुछ दिनों के लिए पार्टी गतिविधियों से दूर रहने की सलाह दी थी. वे कुछ महीनों से अमेरिका में थे, तभी सितंबर, 2000 में प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी अमेरिकी दौरे पर गए थे. उनके इस दौरे पर न्यूयॉर्क में अप्रवासी भारतीयों का एक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था, जिसमें वाजपेयी ने पहली बार कहा था, मैं स्वयंसेवक हूं और स्वयंसेवक रहूंगा.

लेकिन मोदी इस कार्यक्रम से भी दूर रहे थे. हालांकि बाद में वे आयोजकों में शामिल अपने एक गुजराती कारोबारी दोस्त की मदद से अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने में कामयाब रहे. उस दौरे को पत्रकार के तौर पर राजदीप सरदेसाई ने भी कवर किया था.

राजदीप सरदेसाई याद करते हैं, “वाजपेयी जी से वहां कई लोग मिलने आए थे. हिंदू संत और हिंदू संगठनों से जुडे लोग. उनसे मिलने वालों की कतार में नरेंद्र मोदी भी थे.” इस मुलाकात का जिक्र भी विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब में किया है. मोदी के गुजराती कारोबारी दोस्त से अपनी बातचीत का हवाला देते हुए उन्होंने बताया है कि वाजपेयी ने उस मुलाकात में मोदी से कहा था, “ऐसे भागने से काम नहीं चलेगा, कब तक यहां रहोगे? दिल्ली आओ.”

इस मुलाकात के कुछ ही दिनों बाद नरेंद्र मोदी दिल्ली आ गए. उनकी वापसी में वाजपेयी से मुलाकात की अहम भूमिका रही, दूसरी ओर वाजपेयी को भी मोदी याद रहे और उन्हें श्मशान में फोन करके गुजरात की बागडोर थमाई. वाजपेयी ने उस समय सोचा भी नहीं होगा कि कुछ ही महीनों बाद इन्हीं नरेंद्र मोदी को राजधर्म की दुहाई देनी पड जाएगी.

अम्मा के सच्चे भक्त

ऊपर वाले देवीदेवताओं को किसी ने देखा नहीं, इसलिए उन पर संशय स्वाभाविक है, लेकिन नीचे वाली एक देवी तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता देवी की तरह पूजी जाती हैं. 6 अगस्त को राज्य के कृषि मंत्री दुरइकन्नू ने भरी विधानसभा में लेट कर उन के पैर छुए. इस दौरान सत्तापक्ष के विधायक आरती की तरह अपनी पार्टी का गीत गाते रहे और मेजें थपथपा कर संगीत देते रहे. कई फिल्मों में देवी की भूमिका निभा चुकीं जे जयललिता के लिए यह अस्वाभाविक बात नहीं थी, इसलिए बाकायदा उन्होंने पैर छू रहे मंत्री को हाथ उठा कर आशीर्वाद दिया. इस रिवाज पर यदि रोक नहीं लगी तो मुमकिन है अगली बार से सदन में मंत्री व विधायक पूजा की थाली, अगरबत्ती, नारियल और प्रसाद ले कर भी आने लगें, आखिरकार जयललिता साक्षात दिखने वाली देवी हैं जो श्राप मुद्रा में आ जाएं तो अपनी जिगरी दोस्त शशिकला को भी नहीं बख्शतीं.

मोटोरोला पेश करेगी अपना नया मोटो E3

स्मार्टफोन कंपनी मोटोरोला भारत में जल्द ही एक इवेंट आयोजित करने जा रही है जिसमें कंपनी नया स्मार्टफोन मोटो E3  लांच करने वाली है.

कहा जा रहा है यह इवेंट 19 सितंबर को हो सकता है. जिसके बाद मोटो E3 स्मार्टफोन इस महीने के अंत तक भारत में बिक्री के लिए उपलब्ध होगा. मोटो E3 एक बजट स्मार्टफोन है, जो की काफी शानदार फीचर्स पेश करता है.

मोटो E3  सभी बेसिक फीचर्स के साथ आता है, आपको बता दें कि यह स्मार्टफोन एंड्रायड मार्शमेलो ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है, लेनोवो ने इस फोन को पहले जुलाई में पेश किया था.

डिस्‍प्‍ले

मोटो E3 में 5 इंच की एचडी आईपीएस डिस्प्ले दी गई है, जिसकी रेजोल्यूशन 720*1280 पिक्सल है.

प्रोसेसर

यह स्मार्टफोन 1.0 GHz मीडियाटेक क्वाड कर चिपसेट प्रोसेसर दिया गया है, जिसके साथ फोन में 1 जीबी रैम दी गई है.

मैमोरी

इस फोन में 32 जीबी इंटरनल स्टोरेज मेमोरी दी गई है, जिसे माइक्रो एसडी कार्ड की मदद से बढ़ाया जा सकता है.

कैमरा

मोटो E3 में 8 मेगापिक्सल कैमरा दिया है, फोन का फ्रंट कैमरा 5 मेगापिक्सल है. इस फोन में 2800 mAh बैटरी दी गई है.

वैरियंट

इसी का अन्य वैरिएंट मोटो E3 पावर है. मोटो ई 3 पावर में 5 इंच का डिस्प्ले, यह दोनों ही फोन एंड्राइड 6.0 मार्शमेलो पर काम करते हैं.

रैम

मोटो E3 पावर में 2 जीबी रैम और 16 जीबी स्टोरेज है, जिसे एसडी कार्ड की मदद से 128 जीबी तक बढ़ा सकते हैं.

मोहमुक्त मोदी

18 दिन कुरुक्षेत्र की धूल फांकने के बाद ही अर्जुन को कृष्ण यह समझा पाने में कामयाब हुआ था कि यह मोह ही सारे फसाद की जड़ है. सत्ता की लड़ाई में कोई अपनापराया नहीं होता, इसलिए हथियार उठा और अपनों का वध कर वरना ये तुझे मार डालेंगे. लोकतांत्रिक युग में इस उपदेश को नरेंद्र मोदी ने लोकतांत्रिक तरीके से ही अपनाया और स्मृति ईरानी को अल्पज्ञान देने के बाद गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पर उम्र का सुदर्शनचक्र चलाते इस्तीफा ले लिया. सही मानों में अब नरेंद्र मोदी को समझ आ रहा है कि कमजोर लोग देश तो बाद में डुबोएंगे, उस के पहले खुद उन को ही डुबो देंगे. इसलिए राजनीति की महाभारत में इन प्यादों का कोई काम नहीं.

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