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चैम्पियन्स ट्रॉफी 2017 से नाम वापस ले सकती है टीम इंडिया

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) के बीच घमासान जारी है. बाकी क्रिकेट बोर्ड के साथ पक्षपात मामले में बीसीसीआई ने आईसीसी को धमकी दी है कि वो चैम्पियन्स ट्रॉफी 2017 से अपना नाम वापस ले लेगा.

हमारे पास बहुत विकल्प हैं

सूत्रों के मुताबिक, कुछ दिन पहले आईसीसी की फाइनैंस कमिटी मीटिंग में बीसीसीआई को शामिल नहीं किया गया था, जिसके बाद से बीसीसीआई और आईसीसी के बीच दूरियां और बढ़ गई हैं. बीसीसीआई के सेक्रेटरी अजय शिरके ने इसे बीसीसीआई की बेइज्जती बताया है.

उनके मुताबिक, 'ऐसी मीटिंग में सभी जरूरी फैसले लिए जाते हैं और इसमें भारत का रिप्रेजेंटेटिव नहीं होना हमारी बेइज्जती है. हम आईसीसी को इस बारे में बताएंगे.' उनके मुताबिक, 'आईसीसी या तो इसमें सुधार करे या फिर हम भारत के क्रिकेट इंटरेस्ट को बचाने के लिए कुछ भी करेंगे. हम चैम्पियन्स ट्रॉफी से भी नाम वापस ले सकते हैं. ऐसी नौबत शायद ना आए लेकिन हमारे पास और भी विकल्प हैं.'

यहां से शुरू हुई दिक्कत!

आईसीसी ने चैम्पियन्स ट्रॉफी के लिए इंग्लैंड को 135 मिलियन अमेरिकी डॉलर का बजट दिया है, जबकि इसी साल भारत में हुए टी-20 वर्ल्ड कप के लिए भारत को महज 45 मिलियन अमेरिकी डॉलर दिए गए थे. इसको लेकर बीसीसीआई और आईसीसी में ठनी हुई है.

चैम्पियन्स ट्रॉफी 19 दिन का इवेंट है जिसमें 15 मैच खेले जाने हैं जबकि टी-20 वर्ल्ड कप 27 दिन चला था और इसमें कुल 58 मैच (35 मेंस और 23 महिला टीम के मैच) हुए थे.

खेलों में पिछाड़ी, नौकरशाही में अगाड़ी

अच्छे दिनों की आस में रियो डि जेनेरो गई अब तक की सब से बड़ी ओलिंपिक टीम ने आखिर में भारत की झोली में एक कांस्य व एक रजत पदक डाल कर देश का सिर भले फख्र से ऊंचा कर दिया, फिर भी इतनी बड़ी टीम से मात्र 2 पदक आना निराशाजनक ही कहा जाएगा. इस से तो यही साबित होता है कि भारत में किसी तरह का विकास नहीं हो रहा है, विनाश दिख रहा है. आज के किशोर मोबाइल, जाति, कोचिंग और परीक्षाओं के गुलाम हो रहे हैं और जिन खेलों में शक्ति लगती है, उन में वे फिसलते जा रहे हैं. ‘चक दे इंडिया’, ‘मैरी कौम’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ के नामों से फिल्में बनाने और तिरंगा लहराने से देशभक्ति नहीं आती. देशभक्ति के लिए, देश के लिए, अपने लिए, समाज के लिए, कुछ करना होता है और हमारे राजनीतिक/सामाजिक नेताओं ने ऐसा तंत्र खड़ा कर दिया है जिस में उत्साह, लगन, परीक्षा व लक्ष्य गायब हो गए हैं. इस वातावरण में रियो डि जेनेरो में भारतीय खिलाडि़यों का फीका प्रदर्शन जताता है कि विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था असल में कितनी खोखली है.

खेलों के प्रति उत्साह 6-7 साल की आयु से शुरू हो जाता है, पर देश में तो स्कूलों को पैसा कमाने की लत लग गई है, जिस से खेल की जगह जुगाड़बाजी और इश्तिहारबाजी ने ले ली है. स्कूली शिक्षा के बाद जेईई में आने वाले बच्चों के फोटो छपते हैं, मैडल लेने वालों के नहीं. गांवों के बच्चों ने कुछ दिन ओलिंपिक जैसे खेलों में चमक दिखाई थी पर धीरेधीरे वह भी गायब हो गई है. गांवों में खेल के मैदानों पर मकान उग आए हैं. गांव में अब कुश्ती नहीं होती, वहां डंडों से जाति, धर्म और गौमांस खाने पर लड़ाई होने लगी है. पूरे देश का माहौल दूषित हो गया है और इन में सूरजमुखी और चमेली के फूलों की कोई जगह नहीं है.

ऐसे में हरियाणा, रोहतक के मोखरा गांव की साक्षी का कुश्ती में कांस्य पदक जीतना उस की खुद की उपलब्धि है जबकि उसे भी इस के लिए काफी खिलाफत झेलनी पड़ी. पी वी सिंधु की बैडमिंटन में सफलता उस की व उस के कोच पुलेला गोपीचंद की मेहनत का फल है जबकि पहलवान नरसिंह के मामले में नौकरशाही हावी दिखती है.

रियो ने जता दिया है कि भारत की चमक प्लास्टिक के फूलों की है और वे भी चीन में बने हैं. यहां खेलों की जगह बेहूदा योग ले रहा है, प्रतिस्पर्धा केवल परीक्षा में आए अंकों से है और वे भी बेईमानी से आ जाएं तो बुरी बात नहीं. हमारे खेल मंत्री विजय गोयल अगर ओलिंपिक टीम के साथ सैल्फी खिंचवा रहे थे और मात्र 2 पदक जीत कर खुद की पीठ थपथपा रहे थे तो क्या गलत कर रहे थे. ज्यादा मैडल तो जीते नहीं, यादगार तो रहे कि सरकारी खर्च पर नौकरशाही जिंदा है, जो मंच पर चढ़ कर खिलाडि़यों को धकेल कर अपनी मौजूदगी दिखाने को तैयार है.

बिल पर अटका दिल

फर्स्ट डेट पर जाने की तैयारी कर रहे हैं तो मन में यह सवाल भी जरूर खड़ा होता है कि फर्स्ट डेट पर बिल कौन पे करेगा? जान लें कि युवक या युवती के बिल पे करने से सामने वाला कम या ज्यादा नहीं आंका जाता. अब तक लोग यही सोचते थे कि डेटिंग पर जाना है तो मैं ही खर्च करूंगा/करूंगी और पर्स में कम से कम इतने रुपए तो होने ही चाहिए कि बिल पे कर सकें. यह सोच गलत है, क्योंकि बिल पे करना अब स्टेटस सिंबल नहीं रह गया है. फिर चाहे वह युवक हो या युवती.

युवतियां अगर सोचती हैं कि लड़का ही बिल पे करे तो यह सोच गलत है. युवतियां जहां अपनेआप को किसी से कम नहीं आंकतीं या युवकों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं तो बिल पे करने की पहल करने में देरी कैसी? बिल पे करने से यह साबित नहीं होता कि सामने वाले पर आप का इंप्रैशन अच्छा ही पड़ेगा.

युवतियों की सोच डेटिंग के दौरान

उदाहरण के लिए अमेरिका का एक सर्वे देखें. वाशिंगटन में हुई रिसर्च के मुताबिक 50% युवतियों को यह बात कतई पसंद नहीं कि युवक उन से डेट पर पैसा खर्च करवाएं. कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार 57% युवतियां कहती हैं कि वे पेमैंट की पेशकश करती हैं जबकि 39% की सोच होती है कि उन की पहल को युवक ठुकरा दें. वहीं 44% युवतियों को यही चिंता रहती है कि कहीं पेमैंट उन्हें न करनी पड़ जाए.

युवतियों की सोच गलत

हौलीवुड ऐक्ट्रैस जेसिका अल्बा का मानना है कि डेटिंग या शौपिंग के दौरान बिल की पेमैंट युवकों द्वारा ही की जानी चाहिए. हालांकि जेसिका जैसी कई आम युवतियां भी ऐसी सोच रखती हैं. वे अपनी सफाई में कहती हैं कि वैसे मैं डेटिंग पर जाने से पहले अपने साथ चैक जरूर रखती हूं पर कोशिश करती हूं कि वह चैक वापस ही मेरे साथ लौट आए.

कुछ युवतियां ऐसी सोच रखती हैं कि युवक कहीं यह न समझें कि बिल पे कर के वे उन के क्लोज आने की कोशिश कर रही हैं या ग्रीन सिगनल दे रही हैं, इसलिए भी शायद युवतियां पेमैंट की पहल नहीं करतीं.

अगर युवती को युवक से मिलने के बाद डेट ही पसंद न आई हो तो भी युवतियों की सोच होती है कि एक तो पहले ही समय बरबाद हो गया तो अब जेब पर भार नहीं पड़ने दूंगी. टोटल टाइम ऐंड मनी वेस्ट.

युवतियों की यह सोच भी होती है कि उन का फ्रैंडली बिहेवियर देख कर कहीं डेट पर युवक चिपक ही न जाए.

युवकों की सोच डेटिंग करते वक्त

कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक ज्यादातर लोगों का मानना है कि डेटिंग पर युवकों को खर्च करना चाहिए, लेकिन अगर हम समानता की बात करें तो इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि डेट पर कौन कितना खर्च करता है.

84% युवक बताते हैं कि डेटिंग पर ज्यादातर वे ही खर्च करते हैं जबकि 64% युवक मानते हैं कि डेटिंग पर होने वाले खर्च का आधा हिस्सा युवतियों को देना चाहिए. इसी में 44% युवकों का मानना है कि युवतियां कतई खर्च नहीं करतीं तो ऐसे में डेटिंग कैंसिल. इसी के अलावा 76% युवकों के मन में युवतियों से पैसा लेने में अपराध जैसी भावना आती है.

आज युवतियों की इमेज पैसा खर्च करवाने वाली बनी हुई है जोकि आज के जमाने में फिट नहीं बैठती, पर सोच तो सोच है.

युवतियां कौस्टली चीजें और्डर करती हैं. टेबल भर जाने पर थोड़ा सा चख कर कहती हैं कि पेट भर गया. टोटल मनी वेस्ट करवाती हैं और बिलकुल भी खर्च नहीं करतीं.

युवक शो करते हैं कि वे पैसा खूब खर्च करते हैं और इसी सोच के कारण वे मात खा जाते हैं. वैसे यह कोई फिक्स रूल नहीं है कि युवक ही बिल पे करेगा.

सुझाव

–       अगर आप फैमिनिस्ट हैं तो यह आप को भी अच्छा नहीं लगेगा कि युवक बिल पे करे. आखिर आप किसी से कम थोड़ी न हैं और फिर आप का सामने वाले पर फ्रैंडली इंप्रैशन अच्छा पड़ेगा. अगर आप की तरफ से सब पौजिटिव है.

–       बिल पे करने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप ज्यादा क्लोज जाने की कोशिश कर रही हैं.

–       देखा जाए तो आज के जमाने में यूथ कम उम्र से ही कमाने लगते हैं. हाथ में पैसा होने के कारण वे कंजूसी करना बिलकुल पसंद नहीं करते. तो ऐसे में सभी शोऔफ के लिए भी बिल पे कर सकते हैं.

ऐसे निकलेगा रास्ता

कौन बिल पे करेगा? यह कोई बहुत बड़ा इश्यू नहीं है पर फिर भी बिल पे करना तो जरूरी है. ऐसे में इस दुविधा से बचने के लिए पहली डेट पर इस बात पर बहस न हो जाए, इस के लिए आप पहले ही तय कर लें, तभी आप बिल से बाहर निकल पाएंगे.

पहले से करें बात

अपनी डेट को यादगार बनाने के लिए दोनों ही बिल आधाआधा पे करें. हो सकता है यह तरीका सामने वाले को पसंद न आए, पर इस बात पर ईमानदारी से खुल कर बात करें. इस के लिए बेहतर है कि फोन पर पहले ही डिस्कस कर लिया जाए कि बिल पे कौन करेगा. यकीन मानिए, इसे पहले ही डिस्कस कर लेने से आप की इमेज साफसुथरी रहेगी.

दूर होगी समस्या

मान लीजिए, डेटिंग के दौरान आप 2 बार कौफी पीते हैं, तो एक बार आप पेमैंट करने को आगे बढ़ें और दूसरी बार वह.

नाक नहीं होगी नीची

अगर आप को अपनी डेट पसंद है तो कुछ ऐसे रिस्पौंस दें कि चलो, इस बार बिल मैं पे करूंगा/करूंगी और सैकंड डेट पर तुम. ऐसे में आप दोनों ही बिल पे कर सकेंगे और आप की नाक भी नहीं कटेगी. इस के साथ ही आप अगली डेट के बारे में इशारों में ही बता भी देंगे.

नहीं बनती कंजूसों वाली इमेज

युवक या युवती की ओर से पेमैंट की पहल अगर नहीं हुई है तो इस से आप यह कतई अनुमान न लगाएं कि सामने वाला बड़ा कंजूस है.

पैसों के बारे में पहले ही बात करना जरूर बुरा लग सकता है पर इस से आप यह नहीं सोच सकते कि सामने वाला कमतर है बल्कि आजकल स्मार्ट डेटिंग का कौंसैप्ट, बिल पे करने पर पूरी तरह से लागू होता है और हां, याद रखिए कि रिश्तों में कड़वाहट ही पैसों की वजह से आती है जबकि आप अब प्यार की पहली सीढ़ी पर ही ऐसी गलती करने से बच जाएंगे और फर्स्ट डेट पर बिल पे करते समय कह उठेंगे कि आज की डेट का बिल मेरी तरफ से.                            

अनमोल पल (अंतिम भाग)

अभी तक आप ने पढ़ा…

फेसबुक के माध्यम से मिले विदित और सुहानी को एकदूसरे की सचाई जान अच्छा लगा. विदित शादीशुदा, 2 बच्चों का पिता था जबकि सुहानी 35 वर्षीय अविवाहिता. शादी न कर पाने के कारण मन में इच्छाएं दबी थीं, जिस कारण वह विदित की ओर आकर्षित हुई. दोनों एकदूसरे से इतना बंध गए कि कई बार एकांत मिलने पर हद से गुजर जाने को बेचैन हो उठते, लेकिन विदित खुद को रोक लेता. एक मुलाकात के दौरान वे सुहानी की सहेली के फ्लैट पर मिले तो विदित ने सुहानी को अपने आगोश में ले लिया और दोनों एकदूसरे में समाने का प्रयास करने लगे.          अब आगे…

अचानक पता नहीं क्यों, विदित ने खुद को रोक लिया. सुहानी ने बड़ी मुश्किल से स्वयं को नियंत्रित किया. वह जाना चाहती थी सारे तटबंधों को तोड़ कर, लेकिन विदित ने हांफते हुए कहा, ‘‘नहीं, इस तरह नहीं. तुम्हें यह न लगे कि मैं ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है विदित,’’ सुहानी निश्चिंत हो कर बोली.

‘‘सुहानी,’’ विदित ने सुहानी के हाथों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार दे सकता हूं, अधिकार नहीं.’’

सुहानी ने विदित से लिपटते हुए कहा, ‘‘मुझे प्यार के अलावा कुछ और चाहिए भी नहीं.’’ विदित ने सुहानी के होंठों पर अपने होंठ रखे. सुहानी ने फिर खुद को समर्पित किया, लेकिन विदित ने फिर स्वयं को रोक लिया.

‘‘एक बात पूछूं विदित? ’’सुहानी ने पूछा.

‘‘पूछो.’’

‘‘अपनी पत्नी से अंतरंग क्षणों में तुम मेरी कल्पना करते हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम मेरा शरीर चाहते हो?’’

‘‘हां, लेकिन मन के साथ. केवल तन नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ गहराई तक उतरने को तैयार हूं. फिर तुम पीछे क्यों हट रहे हो?’’

‘‘यही सोच कर कि मैं तुम्हें क्या दे पाऊंगा. न कोई सुनहरा भविष्य, न कोई अधिकार. अपनों के सामने तुम्हारा क्या परिचय दूंगा. इन तथाकथित अपनों के सामने शायद तुम्हें पहचानने से भी इनकार कर दूं. कहीं यह तुम्हारा शोषण तो नहीं होगा,’’ सकुचाते हुए विदित बोला. ‘‘मेरे पास भविष्य के लिए नौकरी है. रही अधिकार की बात, तो मैं जानती हूं कि तुम विवाहित हो. मैं तुम से ऐसी कोई मांग नहीं करूंगी, जिस से तुम स्वयं को धर्मसंकट में फंसा महसूस करो. मैं तो तुम्हारे साथ खुशी के कुछ पल बिताना चाहती हूं. ऐसे पल जिन पर हर स्त्री का अधिकार होता है, लेकिन मेरी नौकरी के कारण मेरे परिवार के लोग ही मुझे अपने स्त्रीत्व से वंचित रखना चाहते हैं और मैं ये पल अब चुराना चाहती हूं, छीनना चाहती हूं.’’

विदित खामोश रहा. विदित को सोच में डूबा देख कर सुहानी ने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ विदित ने कहा, ‘‘मैं यह सोच रहा था और इसलिए सोच कर तुम से कह रहा हूं कि अपने सुख की तलाश में कहीं हम वासना के दलदल में तो नहीं भटकना चाह रहे. तुम्हारी खुशियां मेरे साथ हमेशा नहीं रहेंगी. मैं तुम्हें पाना तो चाहता हूं, लेकिन मैं तुम से प्यार भी करता हूं. स्त्रीपुरुष जब तनमन के साथ एक होते हैं तो बंध जाते हैं एकदूसरे से. मैं तो फिर भी पुरुष हूं. शादीशुदा हूं. तुम मुझ से बंध कर कहीं अकेली न रह जाओ,’’ विदित कहते हुए चुप हो गया. सुहानी चुपचाप सुनती रही, कुछ नहीं बोली.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारे योग्य कहीं एक अच्छा लड़का, चाहे वह अधेड़ हो या फिर विदुर, तलाशा जाए, जिस के साथ तुम जीवन भर खुश रह सको. तुम्हारा अधूरापन हमेशा के लिए दूर हो जाए.’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है, विदित? मैं ने ये सब सोचा नहीं होगा. इस काम में मेरी एक प्रिय सहेली ने मेरी मदद भी की. मैरिज ब्यूरो से संपर्क भी किया, कुछ रिश्ते आए भी, लेकिन वे सब रिश्ते ऐसे आए जो मु झे पसंद नहीं थे. वही कुंडली मिलान, दहेज, घरपरिवार, जातिधर्म, गोत्र. मेरा मन नहीं मिला किसी से. एकदो मेरे मातापिता से मिले भी तो मातापिता ने उन्हें टाल दिया और मु झे सम झाया कि इस उम्र में क्यों शादीब्याह के चक्कर में पड़ रही हो. अपने मातापिता का ध्यान रखो. 70-75 की उम्र में मातापिता से घर नहीं छोड़ा जा रहा और बेटी को तपस्या करने की सलाह दे रहे हैं…’’ कहते हुए सुहानी की आंखों में आंसू आ गए.

विदित ने आंसू पोंछते हुए सुहानी से कहा, ‘‘मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था. मैं तो तुम्हारे भले के लिए यह कह रहा था.’’

‘‘तुम डर रहे हो मु झ से,’’ सुहानी बोली.

‘‘नहीं, तुम्हें सम झा रहा हूं,’’ विदित  आश्वस्त करते हुए बोला.

‘‘इतना आगे आने के बाद,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘अभी इतने भी आगे नहीं आए कि वापस न लौट सकें.’’

‘‘तुम लौटना चाहते हो तो लौट जाओ.’’

‘‘मैं नहीं लौटना चाहता.’’

‘‘मैं भी नहीं लौटना चाहती,’’ फिर दोनों गले मिले और मुसकराते हुए अपनेअपने गंतव्य की तरफ चले गए. रात को विदित को सुहानी का खयाल आया. उसे वे पल याद आए जब एकांत पहाड़ी पर उस ने सुहानी को सिर से ले कर पैर तक चूमा था. उस के शरीर के ऊपरी वस्त्र हटा कर उस के गोपनीय अंगों से छेड़छाड़ करने लगा था और सुहानी मादक सिसकारियां लेते हुए उस का साथ दे रही थी. ‘उफ्फ, मैं क्यों पीछे हट गया. मिलन पूर्ण हो जाता तो यह तड़प, यह बेकरारी तो न सताती. शरीर इस तरह भारी तो न महसूस होता.’ स्वयं को इस भारीपन से मुक्त करने के लिए विदित अपनी पत्नी के पास पहुंचा. पत्नी ने  झिड़कते हुए कहा, ‘‘सो जाइए. आज मेरा मूड नहीं है.’’ विदित अपमानित सा अपने कमरे में आ गया. उस ने मोबाइल उठा कर सुहानी को कई टुकड़ों में एसएमएस किया. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. सुहानी का उत्तर आ गया. विदित ने मोबाइल के एसएमएस बौक्स पर उंगली रखी.

‘‘जब मैं तुम्हारे साथ बहने को तैयार थी तो तुम पीछे हट गए और मु झे दुनियादारी समझाते रहे. क्या तुम मुझ से इसलिए शारीरिक सुख चाहते हो, क्योंकि यह सुख तुम्हें अपनी पत्नी से नहीं मिल रहा है. मैं कोई बाजारू औरत नहीं हूं. यह सुख तो चंद रुपए दे कर कोई वेश्या भी तुम्हें दे सकती है. तुम्हारा बारबार पीछे हटना यह साबित करता है कि तुम डरते हो मु झ से, अपनी पत्नी से, अपने परिवार से, जबकि मैं ने पहले ही तुम से कह दिया था कि मु झे सिर्फ प्यार चाहिए, अधिकार नहीं.

‘‘तुम ने उन अनमोल पलों को न जाने किस डर से गंवा दिया. वह भी ऐसे समय में जब मैं तुम्हारे साथ आगे बढ़ रही थी. उन क्षणों में मैं ने खुद को कितना अपमानित महसूस किया था और अब तुम मुझ से शरीर के ताप से पीडि़त हो कर मिलन की मांग कर रहे हो. क्या इसे तुम प्यार कहते हो या सिर्फ जरूरत? मैं तुम्हारी ही भाषा में बात कर रही हूं. औरत जब किसी के प्रेम में डूबती है तो फिर आगेपीछे नहीं सोचती. जिसे प्रेम करती है उस पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ती है. तुम इतना सोचते हो मेरे साथ होते हुए भी, सब के बारे में, मेरे बारे में भी सब सोचने को रहता है बस, मैं ही नहीं रहती.’’

विदित ने एसएमएस को 4-5 टुकड़ों में पढ़ा. उसे उस पर गुस्सा आ गया. उस ने सीधा नंबर लगाया और कहा, ‘‘तुम्हारी हां है या ना.’’ उधर से सुहानी ने उत्तर दिया, ‘‘इतनी मानसिक तैयारी से शादी की जाती है, सुहागरात मनाई जाती है, प्यार नहीं किया जाता.’’ विदित को गुस्सा आ गया. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘शराफत के कारण पीछे रह गया. नहीं तो बहुत पहले ही सबकुछ कर चुका होता. अब पूछ रहा हूं तो भाव खा रही हो.’’

दूसरी तरफ से मोबाइल बंद हो गया. विदित को खुद पर गुस्सा आया. ‘उफ्फ, यह क्या कह दिया मैं ने. किस बदतमीजी से बात की मैं ने. मेरे बारे में क्या सोच रही होगी सुहानी,’ विदित ने सोचा और फिर नंबर घुमाने लगा, लेकिन सुहानी ने फोन काट दिया. फिर विदित ने एसएमएस किया.

‘‘क्यों तड़पा रही हो? गुस्से में निकल गया मुंह से. इस के लिए मैं माफी मांगता हूं,’’ सुहानी ने एसएमएस पढ़ कर रिप्लाई किया.

‘‘क्या चाहते हो?’’ सुहानी  झुं झला कर बोली.

‘‘तुम्हें चाहता हूं,’’ विदित बोला.

‘‘क्यों चाहते हो?’’

‘‘प्यार करता हूं तुम से.’’

‘‘मु झ से या मेरे शरीर से?’’

‘‘तुम्हारा शरीर भी तो तुम ही हो.’’

‘‘तो ऐसा कहो, शरीर चाहिए मेरा.’’

‘‘तुम गलत सम झ रही हो.’’

‘‘मैं ठीक सम झ रही हूं.’’

‘‘तुम्हारी हां है या ना?’’

‘‘जिद क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें पाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ बिताए पलों के लिए मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूं.’’

‘‘चलो, कीमत ही सम झ कर दे दो.’’

‘‘ठीक है, बताओ कब, कहां आना है?’’ सुहानी ने कहा.

विदित को सम झ नहीं आ रहा था कि जो औरत कल तक उस के लिए बिछने के लिए तैयार थी, जिस के हितअहित के बारे में इतना सोचा कि सुख की चरम अवस्था से लौट कर वापस आ गया. आज वही औरत इस तरह की बात कर रही है. इन औरतों को सम झना बहुत मुश्किल है. एक बार संबंध बनने के बाद अपनेआप काबू में आ जाएगी . स्त्रीपुरुष के बीच जिस्मानी संबंध बनने जरूरी हैं. तभी स्त्री पूर्णरूप से समर्पित हो कर रहेगी. एक बार संबंध बन गए तो फिर वह उसी की राह ताकती रहेगी. खाली प्रेम तो दिल की बातें हैं. आज है कल नहीं है. विदित यों निकला जैसे शिकार पर निकल रहा हो. विदित ने विभागीय औडिट टीम के लिए 3 कमरे होटल रीगल में बुक करवाए. रात 12 बजे की ट्रेन से औडिट टीम जाने वाली थी. उस ने होटल के मैनेजर को फोन कर के कहा, ‘‘एक कमरा कल सुबह तक बुक रहेगा. 2 कमरे खाली कर रहा हूं.’’

‘‘यस सर.’’

विदित के बताए पते पर रात 10 बजे सुहानी पहुंची. घर से वह यह कह कर निकली कि साहब जरूरी काम से बाहर गए हैं. घर पर उन की पत्नी अकेली हैं इसलिए मु झे साथ रहने के लिए उन की पत्नी ने बुलाया है. साहब का निवेदन था, इनकार नहीं कर सकती. विदित होटल के बाहर सुहानी की प्रतीक्षा कर रहा था. सुहानी को देख कर उस के चेहरे पर चमक आ गई.  कमरे के अंदर पहुंचते ही विदित ने दरवाजा बंद किया और सुहानी को जोर से भींच कर कहा, ‘‘आई लव यू.’’ इस के बाद बिना सुहानी से पूछे वह सुहानी के जिस्म को चूमने लगा. सुहानी कहती रही कि इतनी रात को न आने के लिए मैं ने तुम्हें पहले ही मना किया था और तुम ने भी वादा किया था. मु झे  झूठ बोल कर आना पड़ा, लेकिन विदित का ध्यान सुहानी की बातों पर बिलकुल नहीं था. वह तो सुहानी के शरीर के लिए बेकरार था. वह सुहानी के नाजुक अंगों को चूमता रहा, सहलाता रहा. उस के बदन को  झिंझोड़ता रहा. सुहानी कहती रही, ‘‘तुम ने फोन पर मु झ से इस तरह बात की जैसे मैं कोई वेश्या हूं. तुम्हें मेरा शरीर चाहिए था तो लो यह रहा शरीर. बु झा लो अपनी वासना की आग. मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो था वह खत्म हो चुका है. मैं सिर्फ उन पलों की कीमत चुकाने आई हूं, जो मेरे लिए तुम्हारे साथ अनमोल थे. मेरे जीवन के वे सब से अद्भुत क्षण. मेरे स्त्रीत्व होने के वजूद भरे पल.’’ विदित सुहानी की कोई बात नहीं सुन रहा था, न सम झ रहा था. वह सुहानी के जिस्म से खेल रहा था. सुहानी शव के समान पड़ी रही. उस के अंदर कोई भाव नहीं था, शरीर में कोई हरकत नहीं थी, लेकिन इस ओर विदित का ध्यान नहीं गया. वह तो शिकारी बना हुआ था. सुहानी के शरीर को चीरफाड़ रहा था, सुहानी के अंदर न रस था न आनंद. वह निर्जीव सी पड़ी हुई थी और विदित उस के अंदर प्रवेश कर खुद को जीता हुआ महसूस कर रहा था. उस का खुमार उतर चुका था. अब आग जल कर राख हो चुकी थी.

विदित की नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी. उसे सुहानी कहीं नहीं दिखाई दी. न कमरे में न वाशरूम में. उस ने सुहानी को फोन लगाया. सुहानी का मोबाइल बंद था. उस ने मैनेजर से फोन पर पूछा, ‘‘मैडम कहां गईं?’’

‘‘सर, वे तो रात को ही चली गई थीं.’’ मैनेजर बोला.

‘‘कितने बजे?’’ विदित भौचक रह गया.

‘‘तकरीबन 12 बजे,’’ मैनेजर ने कहा.

‘‘कोई मैसेज दिया, कुछ कह कर गई वह?’’ विदित ने पूछा.

‘‘सर, आप के लिए एक पत्र छोड़ कर गई हैं,’’ मैनेजर ने विदित को बताया.

‘‘मेरे कमरे में पहुंचा देना,’’ विदित ने आदेश दिया.

‘‘जी सर,’’ मैनेजर बोला.

थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, ‘‘अंदर आ जाओ,’’ विदित ने कहा, तो वेटर ने अंदर आ कर एक लिफाफा दिया. लिफाफा ले कर विदित ने कहा, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

विदित ने लिफाफा खोल कर पत्र पढ़ा, ‘तुम्हारे दिए अनमोल पलों की कीमत चुका दी है मैं ने और तुम ने भी अच्छी तरह वसूल ली है. तुम कुछ भी हो सकते हो, लेकिन प्रेमी नहीं हो सकते. मैं ने तुम्हें तन दे दिया है जिस की तुम्हें जरूरत थी. मन अपने साथ ले कर जा रही हूं. औरत के शरीर को पा कर तुम यह सम झो कि तुम ने औरत पर नियंत्रण पा लिया है तो तुम्हारी और बलात्कारी की सोच में कोई फर्क नहीं रहा. प्रेम में देह कोई माने नहीं रखती, लेकिन जिसे देह से ही प्रेम हो वह तो महज व्यभिचारी हुआ. मैं ने प्रेम किया था तुम से. देह तो स्वयं ही समर्पित हो जाती, क्योंकि प्रेम प्रकट करने का माध्यम है देह, लेकिन तुम ने स्त्री के मन और तन को अपनी इच्छा और सुविधानुसार अलगअलग कर के देखा. तुम्हारी खोज एक शरीर की खोज थी. इस के लिए इतना परेशान होने की जरूरत नहीं थी. चले जाते किसी वेश्या के पास. मेरी खोज प्रेम की खोज थी. जो मु झे तुम से नहीं मिला. दोबारा मिलने व संपर्क करने की कोशिश मत करना.

‘पुन: प्रेम की खोज में,

सुहानी.’

विदित पत्र पढ़ कर सिर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा, ‘उफ्फ, यह मैं ने क्या कर दिया? तन पा लिया और मन खो दिया. कुछ पल पाए और पूरा जीवन खो दिया. जीत कर भी हार गया मैं. ‘प्रेम में जीतहार जैसी बातें सोच कर प्रेम को अपमानित कर दिया मैं ने. सामने अमृतकुंड था और प्यास बु झाने के लिए खारा पानी पी लिया मैं ने. सुहानी का सबकुछ मेरा था, मन भी और तन भी, लेकिन क्षण भर की वासना में प्रेम की कीमत लगा ली मैं ने. जो सहज और स्वाभाविक रूप से मेरा था उसी को नीलाम कर दिया मैं ने. अपने ही प्रेम की बोली लगा कर हमेशा के लिए खो दिया सुहानी को. अपने प्रेम को अपमानित और प्रताडि़त कर दिया मैं ने. कितना बेवकूफ था मैं, जो सोचने लगा कि औरत को जीता जा सकता है. संपत्ति सम झ लिया था मैं ने औरत को. ‘सुहानी के लिए शरीर प्रेम करने का माध्यम था और मैं शरीर की तृप्ति के लिए कितनी ओछी हरकत कर बैठा सुहानी के साथ. सुहानी ने प्रेम में बिताए अनमोल पलों के लिए शरीर सौंप दिया मु झे. जैसे शव को सौंपते हैं अग्नि में.’ बहुत देर तक उदास और गमगीन बैठा रहा विदित. दोबारा सुहानी से मिलने की हिम्मत नहीं थी उस में और सुहानी प्रेम के अनमोल क्षणों की तलाश में निकल पड़ी. उसे किसी बात का दुख नहीं था. वह ऐसे पुरुष के साथ आगे नहीं बढ़ना चाहती थी जो प्रेम में आगे बढ़ते हुए पीछे हट जाए. जो स्त्रीपुरुष के अंतरंग क्षणों में भलाबुरा सोचते हुए पीछे हट जाए और यह भूल जाए कि इन अनमोल पलों में आगे बढ़ते हुए पीछे हटने से स्त्री अपमानित होती है. सुहानी को प्रेम के वे पल इतने भा गए थे कि उन पलों को वह फिर से जीने के लिए प्रेम की तलाश में निकल पड़ी. उम्र के इस दौर में प्यार मिलता है या नहीं यह अलग बात है, लेकिन सुहानी की तलाश जारी थी. उसे विश्वास था कि वह प्रेम के अनमोल पलों को खोज लेगी.

दास्तान एक दलित अफसर की

‘मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उन के अफसर, ऐसे दलित अफसर चाहते हैं, जो उन के पैरों में बैठे रहें. मुझे मजबूर किया जाता रहा है कि मैं हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित छात्र रोहित वेमुला की तरह खुदकुशी कर लूं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दलितों के लिए अच्छी सोच रखते हैं, जबकि उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री दलितों के साथ नाइंसाफी करते हैं.’ ऐसे ढेरों इलजाम मध्य प्रदेश सरकार और ऊंची जाति वाले अफसरों व मंत्रियों पर लगाने वाले आईएएस रमेश थेटे एक बार फिर सुर्खियों में हैं.

पंचायत और ग्रामीण विकास महकमे में सचिव पद पर तैनात इस अफसर के दिल का दर्द उस वक्त और फूट पड़ा, जब उन्हें उन्हीं के महकमे के एसीएस राधेश्याम जुलानिया ने जाति की बिना पर परेशान कर डाला. रमेश थेटे ने 11 जुलाई, 2016 को बाकायदा एक प्रैस कौंफ्रैंस बुला कर कहा कि उन्हें जातिगत वजहों के चलते सचिव के अधिकार नहीं दिए गए हैं और राधेश्याम जुलानिया ने उन्हें स्वीपर बना दिया है. इस अफसर की ज्यादतियों के विरोध में उन्होंने राज्य सरकार को धौंस भी दी थी कि अगर राधेश्याम जुलानिया को नहीं हटाया गया और उन के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई, तो वे खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाएंगे. इस के जिम्मेदार लोगों के नाम उन्होंने एक लिफाफे में बंद कर दिए हैं.

सरकार के लिए गले की हड्डी बनते जा रहे रमेश थेटे की धौंस का, जैसे की उम्मीद थी, कोई असर नहीं हुआ. उलटे उन्हें ही सरकार ने एक और नोटिस थमा दिया कि आईएएस रैस्ट हाउस के बाहर प्रैस कौंफ्रैंस करना सरकारी नियमों की अनदेखी है, इस पर क्यों न आप के खिलाफ कार्यवाही की जाए. रमेश थेटे ने इस नोटिस का जवाब देने की जरूरत नहीं समझी और आरपार की लड़ाई का मन बना लिया, क्योंकि विवादों का उन के साथ गहरा नाता है.

क्या है विवाद

हालिया विवादों के पहले सरकारी ज्यादतियों के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई जीत चुके रमेश थेटे की मानें, तो 13 जून, 2016 को उन के महकमे के कामों का बंटवारा होना था. इस दिन वे एसीएस राधेश्याम जुलानिया से मिले, तो वे अकड़ कर बात करने लगे. यह अकड़ रमेश थेटे से बरदाश्त नहीं हुई, तो उन्होंने राधेश्याम जुलानिया से कहा, ‘मैं बाबा साहब अंबेडकर की औलाद हूं, किसी किस्म की ज्यादती बरदाश्त नहीं करूंगा.’ इस के जवाब में राधेश्याम जुलानिया ने अंगरेजी में कहा कि कौन बाबा अंबेडकर… बकवास बातें मत करो. काम की बातें करो.

बकौल रमेश थेटे, राधेश्याम  जुलानिया की अकड़ कम नहीं हुई और काम का बंटवारा नहीं हुआ, तो वे पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव के दफ्तर से काम के बंटवारे का आदेश ले आए. इस पर राधेश्याम जुलानिया ने उन्हें कमरे से बाहर जाने को कहा और दोबारा न आने की हिदायत भी दी. इस बातचीत के कुछ हिस्से को रमेश थेटे ने रेकौर्ड भी किया और सुनवाया भी. सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी, तो रमेश थेटे भी चुप नहीं बैठे और मुख्यमंत्री को लंबी जज्बाती चिट्ठी लिखते हुए उस में कहा कि आप मुख्यमंत्री इसलिए बने हैं कि हम ने आप को वोट दिया. क्या आप भी राधेश्याम जुलानिया को बचाएंगे? हम बाबा साहब को मानने वाले लोग हैं और हमारे लिए उन के सम्मान के सामने नौकरी और ओहदा माने नहीं रखता. राधेश्याम जुलानिया दलित विरोधी हैं, यह तो मुझे मालूम था, पर उन के मन में दलितों के प्रति इतनी नफरत भरी है, यह मैं ने पहली दफा महसूस किया.

इस चिट्ठी में रमेश थेटे ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को याद दिलाया कि आप ने कभी कहा था कि आप बाबा साहब की वजह से ही मुख्यमंत्री बने हैं, पर राधेश्याम जुलानिया के चलते आप की इमेज दलित विरोधी हो गई है और पूरे राज्य के दलितों में आप के लिए गुस्सा है. अभी भी वक्त है कि आप जाग जाइए और राधेश्याम जुलानिया को सबक सिखाइए. इस से अंबेडकरवादियों में अच्छा संदेश जाएगा.

जातियां और सरकार

मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर में भाजपा दलित हितों का ढिंढोरा पीट रही है. उस के नेता दलितों को नदी स्नान करा रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी दलितों के घर जा कर खाना खा रहे हैं और शिवराज सिंह चौहान भी ऐसा ही कर रहे हैं. दलितों पर की जा रही सियासत के माने और मंशा अलग बहस के मुद्दे हैं, पर रमेश थेटे ने बारबार अंबेडकर की बात कर के मुद्दे को नाजुक तरीके से उलझाने में कामयाबी पा ली है, जिस का तोड़ शिवराज सिंह चौहान के पास भी नहीं है. इधर भारतीय जनता पार्टी के नए सिरदर्द दलितों के सरकार के खिलाफ चल रहे धरनेप्रदर्शन थे. गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मामलों ने जो तूल पकड़ा, तो शिवराज सिंह की यह मजबूरी हो गई कि वे रमेश थेटे के इलजामों को नजरअंदाज करें और ऐसा कोई रास्ता निकालें, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. लिहाजा, उन्होंने रमेश थेटे के इलजामों पर वक्ती तौर पर खामोशी ओढ़ ली और राधेश्याम जुलानिया लंबी छुट्टी ले कर कनाडा चले गए. यह लड़ाई 2 अफसरों की है या दलित व ऊंची जाति वाले की है, यह तय कर पाना मुश्किल नहीं है कि ऐसी लड़ाइयां गांवदेहातों में भी होती हैं. फर्क लैवल का है. हर जगह दलित सताए जाते हैं. सरकारी महकमे इस से अछूते नहीं हैं. वहां ऊंची जाति वाले मुलाजिम उन्हें सरकारी दामाद कह कर ताना मारते हैं.

अगर चपरासी ऊंची जाति का है, तो उस से पानी भरवाने या जूठे बरतन उठाने जैसे काम नहीं करवाए जाते और दलित साफसुथरा भी हो, तो उस के साथ बैठ कर लंच नहीं खा पाता. रमेश थेटे ने समझदारी या चालाकी यह दिखाई कि बात में दम लाने के लिए अंबेडकर को बीच में घसीट लिया है. अब सरकार अगर ज्यादा सख्ती दिखाते हुए उन्हें दोबारा बरखास्त करती है, तो वाकई यह संदेश जाएगा कि उस की कथनी और करनी में काफी फर्क है और वह ऊंची जाति के दबंग अफसरों के इशारे पर चलती है और अगर कार्यवाही नहीं करती है, तो ऊंची जाति वाले अफसरों का गुस्सा उसे झेलना पड़ेगा. इन दोनों अफसरों की लड़ाई का बीचबचाव कर रहे पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि दोनों अफसरों के बीच किस बात को ले कर विवाद है, मुझे नहीं मालूम. काम के बंटवारे को ले कर राधेश्याम जुलानिया ने नोटशीट लिख कर मुझ से इजाजत मांगी थी, जो मैं ने दे दी थी.

दरअसल, इस नोटशीट में रमेश थेटे को दोयम दर्जे के काम सौंपे गए थे, जो क्लर्क लैवल के होते हैं. मसलन छोटे मुलाजिमों की अपील पर सुनवाई, विधानसभा में पूछे गए सवालों के जवाब तैयार करना और सीएम हैल्प लाइन के मामलों की समीक्षा व निगरानी जैसे दर्जनभर काम, जिन के बाबत रमेश थेटे कह रहे हैं कि उन्हें टायलेट की सफाई का काम सौंप कर जमादार बना दिया गया है. हालांकि यह एसीएस के हक और मरजी की बात है कि वह किसे कौन सा काम दे, पर इस पर जाति को ले कर रमेश थेटे ने एतराज दर्ज कराया, तो राज्य के सियासी और सरकारी गलियारों में हल्ला मच गया.

पहले भी लड़े और जीते

रमेश थेटे से ताल्लुक रखता यह पहला मौका या विवाद नहीं है. इस के पहले भी उन पर कई इलजाम लग चुके हैं, पर हर बार वे कोर्ट से बरी किए गए हैं, इसलिए भी उन के हौसले बुलंद हैं. साल 2002 के बाद लोकायुक्त द्वारा उन के खिलाफ भ्रष्टाचार के 1-2 नहीं, बल्कि 10 मामले दर्ज किए गए थे. ये मामले 10 साल तक अदालत में चले और 9 में वे बाइज्जत बरी हो गए. इस मुद्दे पर रमेश थेटे का आरोप यह है कि लोकायुक्त ने उन्हें केवल दलित होने के चलते फंसाया, जबकि कई ऊंची जाति के बेईमान और भ्रष्ट अफसरों को क्लीन चिट दे दी  बात में दम इस लिहाज से है कि अभी तक कोई आरोप उन पर साबित नहीं हुआ है और सरकार उन्हें नौकरी से पूरी तरह चलता नहीं कर पाई. एक बार रमेश थेटे ने अपने दलित होने का रोना एक मंच से भी रोया था और जातिगत भेदभाव का आरोप लगाते हुए अन्नजल त्यागने की बात भी कही थी. तब उन के साथ दलित संगठन भी थे और राजनीतिक दल भी. लिहाजा, सरकार ने अपने पैर वापस खींच लिए थे. इस दफा सरकार क्या करेगी, यह देखना दिलचस्प बात होगी.

पूरा परिवार रहा परेशान

कई दफा सस्पैंड और बहाल हो चुके रमेश थेटे को खुद को अदालत में बेगुनाह साबित करने के लिए काफी परेशानियां झेलनी पड़ी हैं. साथ ही, उन पर लगाए गए झूठे इलजामों की सजा उन के परिवार वालों को भी भुगतनी पड़ी है. बरखास्तगी के दौरान उन के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वे स्कूल में पढ़ रही अपनी दोनों बेटियों की फीस भी भर पाते. जान कर हैरानी होती है कि बेटियों के स्कूल की फीस के लिए उन्हें महाराष्ट्र के कई शहरों की सड़कों पर नाच गाकर पैसा जमा करना पड़ा था. खुद बेहद तंगहाली में पलेबढ़े रमेश थेटे कभी मुंबई के आजाद मैदान के फुटपाथ पर पढ़ाई किया करते थे. मुकदमों के दौरान उन पर काफी कर्ज हो गया था, जिसे पूरा करने के लिए उन्हें अपनी पत्नी के गहने कई दफा गिरवी रखने पड़े थे. वकीलों की फीस देने के लिए उन के पास पैसे नहीं होते थे. एक दफा तो जबलपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारियों ने चंदा कर उन्हें वकील की फीस के पैसे दिए थे, क्योंकि जबलपुर का कमिश्नर रहते उन्होंने सफाई कर्मचारियों के भले के लिए काफी काम किए थे.

एक दफा लोकायुक्त ने उन के यहां छापा मारा था, तो हैरानी की बात है कि उन के यहां से महज 50 रुपए जब्त किए गए थे. यह हकीकत उन के ईमानदार अफसर होने की इमेज पुख्ता करती है. एक मीटिंग में खुद रमेश थेटे ने कहा था कि परेशानियों ने उन की बीवी की खूबसूरती छीन ली और बच्चियां भी परेशान हुईं. अब देखना दिलचस्प होगा कि ये परेशानियां फिर बढ़ती हैं या खत्म होती हैं.

छुआछूत के शिकार दलित

मोबाइल फोन, टैक्नोलौजी और इंटरनैट से बहुतकुछ बदला है, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह है पिछड़ी जातियों व दलितों से भेदभाव की सोच. यों तो दलितों से भेदभाव की खबरें देशभर में होती रही हैं, लेकिन एक बड़ी हकीकत चौंकाती है. एक गांव ऐसा भी है, जहां गांव के हज्जाम दलितों के बाल नहीं काटते. यह किस्सा साल 2 साल का नहीं, बल्कि पीढि़यों से चली आ रही एक शर्मनाक परंपरा का है.

यह किस्सा दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली से तकरीबन सवा सौ किलोमीटर दूर नैशनल हाईवे नंबर 58 के नजदीक की वह कड़वी सचाई है, जिस से लोग रूबरू हो रहे हैं. यह उन सरकारी योजनाओं, सोच और बड़ी बयानबाजियों पर भी चोट है, जिन के जरीए समान अधिकारों से ले कर भेदभाव का जड़ समेत उखाड़ने की ताल छोटेबड़े मंचों पर ठोंकी जाती है. उत्तर प्रदेश राज्य के मुजफ्फरनगर जिले की खतौली तहसील के इस गांव का नाम है भूपखेड़ी. गांव की आबादी तकरीबन 4 हजार है, जिन में ज्यादातर अगड़ी जातियां हैं. इन में दलितों की तादाद 3 सौ के आसपास है. गांव के दलितों को हज्जाम के यहां बाल कटाने या हजामत बनवाने की इजाजत नहीं है. अगर कभीकभार वे कोशिश भी करते हैं, तो उन्हे बेइज्जत कर के भगा दिया जाता है.

दरअसल, गांव में अछूत होने के डर से बाल न काटने का सिलसिला सालों पुराना है. इस गांव के दलित दूसरे गांवों में बाल कटवाने के लिए जाते हैं. ठाकुर जाति की नई ग्राम प्रधान अनीता देवी ने इस भेदभाव को खत्म करने की ठानी. उन्होंने अपने पति मान सिंह को भी आगे किया और गांव में हज्जाम की दुकान चलाने वाले से बात की, तो उस ने दलितों के बाल काटने से इनकार कर दिया. उस का कहना था कि दूसरे ठाकुर इस के लिए मना करते हैं. उस के पिता या दादा ने भी कभी दलितों के बाल नहीं काटे, तो फिर वह ऐसा क्यों करे?

कुछ दलित इकट्ठा हो कर बाल काटने पहुंचे, तो उन के साथ गालीगलौज की गई. साथ मिलने से दलितों को हौसला बढ़ा, तो उन्होंने बाकायदा इस की लिखित शिकायत थाना रतनपुरी में की, लेकिन पुलिस का रवैया निराशाजनक रहा. उस ने कोई कार्यवाही करने के बजाय तहरीर ले कर रख ली. नतीजतन, गांव में दोनों बिरादरियों में तनाव हो गया. दलितों ने कलक्टर को भी ज्ञापन दिया. पुलिस प्रशासन ने इस भेदभावपूर्ण परंपरा को तोड़ने की कोशिशों में जुटे दलितों को सहारा देने या ठोस हल निकालने के बजाय कानून व्यवस्था न बिगड़े, इसलिए गांव में पुलिस को तैनात कर दिया. हज्जाम पर दलितों ने दबाव बनाया, तो उस ने दलितों के बाल काटने के बजाय दुकान बंद करना बेहतर समझा. उस ने साफ कर दिया कि कई ठाकुर ऐसा नहीं चाहते. ऐसी परंपरा पर पुलिस वाले भी हैरानी जताते हैं. गांव के दलितों को यह भेदभाव लंबे अरसे से कचोटता रहा है, लेकिन गांव में ठाकुर बिरादरी के लोग ज्यादा हैं, इसलिए कोई विरोध नहीं कर पाता. अछूत होने का डर भले ही हो, लेकिन गांव के दलित ठाकुरों के खेतों में मजदूरी भी करते हैं. दलितों की यह मजदूरी व छोटीमोटी नौकरी ही कमाई का जरीया है.

गांव के एक 90 साला दलित बुजुर्ग भिखारीदास से जब पूछा गया कि उन्हें याद है कि उन्होंने आखिरी बार गांव में बाल कब कटवाए, तो उन्होंने बताया कि जब पहली बार ही यहां बाल नहीं कटे, तो आखिरी बार कैसे कटेंगे. उन की बूढ़ी आंखों में बेबसी के साथ वह उम्मीद भी नजर आती है, जिस से दलितों को भेदभाव से छुटकारा मिल जाए. इसी गांव के दलित ऋषिपाल और उस की पत्नी शारदा कहते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों के बाल कटवाने की कोशिश भी की, लेकिन अछूत होने का डर उन में भी था. शारदा जब कभी अपने बच्चों को हज्जाम की दुकान पर ले कर गई, तो खरीखोटी सुना कर चलता कर दिया गया. 45 साल के सलेख की 6 बेटियां और 2 बेटे हैं. न कभी उस के बाल गांव में कटे हैं और न उस के बच्चों के. बुजुर्ग मंगली को ऊंचा सुनाई देता है, लेकिन हर हलचल से वे वाकिफ हैं. इशारों और बातों में वे हमउम्र लोगों से इस पर चर्चा भी करते हैं. उन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वे कहते हैं कि पता नहीं, हज्जाम उन के बाल क्यों नहीं काटता? बाल कटाने की कोशिश करने पर मिली झिड़कियां उन्हें भी याद हैं.

दलित सुनील मजदूरी करता है. वह कहता है कि जब वह मजदूरी के लिए किसी दूसरी जगह जाता है, तो वहीं बालों की कटिंग करा लेता है. गांव में बाकी लोगों का हाल देख कर उस ने कभी कोशिश भी नहीं की. 70 साला जहरू और 55 साला सोमबीर भी ऐसे ही किस्से बयां करते हैं. साथ ही, वे सवाल भी करते हैं कि आखिर उन का गुनाह क्या है? उन्हें भी बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए. गांव का संजीव नामक नौजवान बीडीसी मैंबर है. वह गलत परंपरा को तोड़ना चाहता है, लेकिन कामयाब नहीं हो पा रहा है. गांव के नितिन वालिया, अभिषेक, प्रियांशु, प्रकाश, राजीव, प्रवेश, अवनीश, सुशील व रामभूल सभी इस परंपरा के खिलाफ हैं. वे इसे तोड़ना भी चाहते हैं. भेदभाव उन्हें हर वक्त कचोटता है.

ऐसा नहीं है कि आसपास के नेताओं को दलितों के इस भेदभाव की खबर नहीं है, बल्कि दलित उन के लिए महज वोटों का जरीया हैं. लोग बताते हैं कि चुनाव के समय नेता उन के महल्ले में आते हैं, तब वे बहुत अपनापन दिखाते हैं. बस, उसी वक्त लगता है कि गांव में कोई भेदभाव या ऊंचनीच की दीवार नहीं है. प्रधानपति मान सिंह का कहना है कि वे इस भेदभाव को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें खुद ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है. इस पूरे मामले में प्रशासनिक रवैया ढुलमुल है. सवाल है कि सालों से चली आ रही बुराई से दलितों को नजात कैसे मिले? उस के लिए क्या कोशिश की जाए?

‘खटिया विवाद’ में दब गई किसानों की बदहाली

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की किसानों को यात्रा को प्रचार का तडका देने के लिये 5000 खटिया रैली स्थल पर खासतौर पर लाई गई. यह खटिया पूरी तरह से कमीशन बाजी का शिकार हो गई. खटिया इतनी घटिया क्वालिटी की बनी थी कि बैठते ही टूटने लगी. राहुल गांधी की सभा के खत्म होने के पहले ही सभा में आये लोग टूटी-फूटी घटिया क्वालिटी की खटिया तक लेकर भागने लगे. इन खटिया को देख कर लगता है कि यह किस तरह केवल देखने मात्र के लिये तैयार कराई गई थी.

राहुल कि किसान यात्रा पर खटिया विवाद इस कदर छा गया कि विरोधी दलो से लेकर मीडिया तक में किसान यात्रा की जगह पर खटिया विवाद हावी रहा. इसके पीछे कांग्रेसियों की ही साजिश नजर आती है. मीडिया को हवा देने में प्रशांत किशोर विरोधी गुट की भूमिका अहम है. राहुल की किसान यात्रा कांग्रेस की गुटबाजी का शिकार हो कर खटिया यात्रा में बदल गई.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 6 सितम्बर को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की रूद्रपुर विधानसभा के पंचलडी गांव से किसान यात्रा की शुरूआत की. यही दूधनाथ मंदिर परिसर में राहुल गांधी की पहली खाट सभा का आयोजन किया गया. दिल्ली, बिहार और लखनऊ से 5 हजार खटिया मंगवाई गई थी. यह बेहद खराब किस्म की थी. गाव में ऐसी खटिया आमतौर मरने के बाद होने वाले मृत्युभोज के समय दी जाती है. अपनी यात्रा की शुरूआत के पहले राहुल गांधी ने दूधनाथ मंदिर में पूजापाठ भी किया. यहां राहुल ने जल और बेलपत्र चढाकर पूजा की.

यात्रा को किसान इमेज से जोडने के लिये खटिया सभा के आयोजन की रूपरेखा तय की गई थी. कांग्रेस की उम्मीद थी कि राहुल की किसान यात्रा भट्ठा परसौल की तरह सफल हो सकेगी पर यहां खटिया विवाद ने किसान यात्रा के पूरे महत्व को खत्म कर दिया. खटिया विवाद में उलझी कांग्रेस ने अब तय किया है कि किसान यात्रा में आगे खटिया का प्रयोग नहीं किया जायेगा.

उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस इस बात पर फोकस कर रही है कि जिन 27 सालों में प्रदेश में कांग्रेस का राज नहीं रहा तभी प्रदेश बदहाल हो गया. उत्तर प्रदेश की 21 करोड आबादी में से करीब 17 करोड लोग गांव में रहते हैं. ऐसे में किसान यात्रा एक बेहतर कदम था. जिस तरह से खाट सभा का प्रचार कर गंभीर मुद्दे को नाटकीयता दी गई, उससे किसान यात्रा पर खटिया की लूट हावी हो गई.

राहुल गांधी प्रदेश के 233 विधानसभा क्षेत्रो से होकर 2500 किलोमीटर लंबी यात्रा कर रहे हैं. अपनी इस यात्रा में वह ग्रामीण युवाओं और किसानों की परेशानियों को दूर करने की बात कर रहे हैं. राहुल पार्टी में जान फूकने की तैयारी में लगे हैं तो कांग्रेसी नेता आपसी विवादों में उलझे हैं. कांग्रेस का मीडिया विभाग पूरी तरह से गुटबाजी में फंसा है. जिसकी वजह से बेमतलब का खटिया विवाद खडा हुआ और किसान यात्रा के मर्म को दबा गया.  

शबाना आजमी फिर बनेंगी लेडी माफिया डान

1999 में प्रदर्शित विनय शुक्ला की फिल्म ‘‘गाड मदर’’ में शबाना आजमी ने लेडी माफिया डान का किरदार निभाया था. इस फिल्म के लिए शबाना आजमी को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था. अब पूरे सत्रह वर्षों के बाद वह एक बार फिर लेडी माफिया डान का किरदार निभाने जा रही हैं. मगर इस बार वह इस किरदार को फिल्म नहीं, बल्कि  टीवी सीरियल में निभा रही हैं.

जी हां! जीटीवी पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘एक मां जो लाखों के लिए बनी अम्मा’’ में माफिया क्वीन का किरदार निभाने जा रही हैं. मजेदार बात यह है कि इस सीरियल में पहले लेडी डान का किरदार उर्वशी शर्मा निभा रही थी, मगर अच्छी टीआरपी नहीं मिली. तो निर्माताओं ने इस सीरियल की कहानी को आगे बढ़ाया. तो बड़ी उम्र के किरदार को करने से उर्वशी शर्मा ने इंकार कर दिया, तब इस किरदार के लिए शबाना आजमी को जोड़ा गया.

शबाना आजमी के पति जावेद अख्तर का जीटीवी से काफी पुराना संबंध है. वह इन दिनो जीटीवी के ही दूसरे चैनल ‘जी क्लासिक’ के लिए एक कार्यक्रम कर रहे हैं. इसलिए शायद जीटीवी के लिए शबाना आजमी को इस सीरियल से जुड़ने के लिए मनाना आसान रहा होगा.

शबाना आजमी ने फिल्म ‘‘गाड मदर’’ में गुजरात की लेडी माफिया डान संतोकबेन जडेजा की जिंदगी को परदे पर पेश किया था. जबकि सीरियल ‘‘एक मां जो लाखों के लिए बनी अम्मा’’ में वह सत्तर के दशक की पहली लेडी माफिया डान जेनाबाई दारूवाली के किरदार में नजर आएंगी.

‘बंधुआ’ में शाहरुख के साथ दीपिका नहीं, कटरीना होंगी

‘‘सरिता’’ पत्रिका ने चार माह पहले ही अपने पाठकों को बताया था कि शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण के बीच दीवारें खिंच चुकी हैं. शाहरुख खान अब किसी भी फिल्म में दीपिका पादुकोण के साथ अभिनय नहीं करना चाहते. सबसे पहले ‘‘सरिता’’ पत्रिका ने ही लिखा था कि आनंद एल राय की फिल्म में शाहरुख खान के साथ दीपिका पादुकोण के होने की खबरें गलत हैं और यह खबरें सिर्फ दीपिका पादुकोण की तरफ से फैलायी जा रही हैं. ‘‘सरिता’’पत्रिका यह खबर भी सच साबित हो रही है.

शाहरुख और दीपिका के बीच उपजे नए समीकरण के ही चलते फिल्म ‘‘पद्मावती’’ में भी दीपिका की जगह शाहरुख खान व कंगना रानौट नजर आएंगे. तो वहीं  शाहरुख खान और आनंद एल राय के अति नजदीकी सूत्रों की माने तो आनंद एल राय की फिल्म ‘‘बंधुआ’’ में शाहरुख खान के साथ कटरीना कैफ का होना तय है. यह फिल्म 21 दिसंबर 2018 को प्रदर्शित होगी.

शाहरुख खान के साथ कटरीना कैफ पहले भी सफलतम फिल्म ‘‘जब तक है जान’’ कर चुकी हैं. तो वहीं हाल ही में रणबीर कपूर के संग ब्रेकअप के बाद जिस तरह से कटरीना कैफ ने कदम उठाया है. जिस तरह मीडिया के सामने आकर नए जोश के साथ खुलकर कहा कि है कि वह अपने प्रोफेशन के साथ अन्याय नहीं कर सकती, उससे भी काम के प्रति उनकी संजीदगी को लेकर लोगों में विश्वास बढ़ा है.

यूं तो दीपिका पादुकोण का नाम कट होने के बाद इस फिल्म से जुड़ने के लिए परिणीति चोपड़ा ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था, मगर उनकी मेहनत बेकार साबित हुई.

‘मुबारकां’ का बनना तय, अर्जुन कपूर और अनिल कपूर खुश

तमाम उतार चढाव, तमाम विवादों के बाद अनीस बज़मी को अपनी फिल्म ‘‘मुबारकां’’ के लिए फिल्म निर्माता मिल ही गए. अब अनीस बज़मी की इस फिल्म का निर्माण ‘‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क प्रोडक्शन” के साथ अश्विन वर्दे और मुराद खेतानी की कंपनी ’’सिने वन स्टूडियो’’ कर रही हैं. फिल्म की शूटिंग नवंबर 2016 में शुरू होगी. यह फिल्म 28 जुलाई 2017 को प्रदर्शित होगी.

अनीस बज़मी ने जब इस फिल्म की घोषणा की थी, उस वक्त इस फिल्म में अभिषेक बच्चन अभिनय करने वाले थे, मगर अभिषेक बच्चन की फिल्मों की असफलता के चलते मामला बिगड़ता चला गया. फिर कई कलाकारों के नाम उड़ते रहे. बहरहाल,अब इस फिल्म में चाचा भतीजा यानी कि अनिल कपूर और अर्जुन कपूर के साथ इलियाना डिक्रूजा, आथिया शेट्टी और अमृता सिंह अभिनय कर रही हैं.

फिल्म ‘‘मुबारकां’’ के साथ अर्जन कपूर के जुड़ने से बौलीवुड से जुड़ कुछ लोगों को अर्जुन कपूर की किस्मत से जलन हो रही है. आम तौर बौलीवुड में कलाकार की एक फिल्म के असफल होते ही फिल्मकार उससे दूरी बना लेते हैं, मगर पिछले तीन वर्ष के दौरान ‘‘फाइंडिंग फैनी’’, ‘‘तेवर’’ और ‘‘की एंड का’’ सहित लगातार तीन असफल फिल्मों के बावजूद अनीस बज़मी ने अर्जुन कपूर में विश्वास जताया है.

बहरहाल, फिल्म ‘‘मुबारकां’’ के निर्देशक अनीस बज़मी अपनी इस फिल्म की पटकथा की तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं. वह कहते हैं- ‘‘हमारी इस फिल्म की पटकथा अब तक की अति बेहतरीन पटकथा है. इसी वजह से मैंने इस फिल्म को निर्देशित करने का फैसला किया. हमारी इस फिल्म की सबसे हाईलाइट यह होगी कि पहली बार इस फिल्म में अनिल कपूर और अर्जुन कपूर की जोड़ी हास्य किरदारेां में नजर नजर आएगी.’’जबकि सोनी पिक्चर्स नेटवर्क की स्नेहा रजना कहती हैं-‘‘हम इस हास्य फिल्म का निर्माण करते हुए काफी उत्साहित हैं.’’ 

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