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भारत, विदेश नीति और नरेंद्र मोदी

सुना है भारत को पंगू विदेश नीति से छुटकारा मिला है. यह भी सुनने को मिल रहा है कि नरेंद्र मोदी ने भारत की साख वैश्विक मंच पर बढ़ा दी है. शायद सही है. मीडिया यही समझा रही हैं. मगर पंगू के पांव उगते ही वह किस ओर भाग रहा है, और उसकी साख कैसी बन रही है? क्या यह सोचने और देखने की जरूरत नहीं है? शायद नहीं है. दिखाया यह जा रहा है, कि पंगू भाग रहा है. सरपट दौड़ रहा है, और यही बड़ी बात है. इस बात को छुपाया जा रहा है, कि जिस विदेश नीति को पंगू बताया जा रहा है, वह पंगू नही थी, उसके पांव थे और वह अपने पांव पर खड़ी थी. नरेंद्र मोदी एक पांव पर टंग गये हैं, और दूसरे पांव को लकवा मरवा रहे हैं. जिससे उसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि बनी है, उसकी गुट निरपेक्षता को हमें खत्म मान लेना चाहिये. हमें यह मान लेना चाहिये कि वह अमेरिकी साम्राज्यवाद के खेमें में खड़ा है. पूंजीवादी-साम्राज्यवाद के विरूद्ध विश्व के वैकल्पिक व्यवस्था से उसने किनारा कर लिया है. जिसका मतलब है, कि वह तीसरी दुनिया का ऐसा देश बन रहा है, जिसे एशिया में, अमेरिकी हितों के लिये काम करना है. और इस बात को भारत की मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों के रूप में देखती है.

इस बीच यदि आपने ‘जी-20’ और ‘आसियान’ शिखर सम्मेलनों की भारतीय मीडिया की रिर्पोटिंग को देखा होगा, तो आपको ऐसा लगेगा कि वार्तायें मोदी के वक्तव्यों से नियंत्रित होती रहीं और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उनके हां में हां मिलाते रहे. मोदी उनकी ओर देखते रहे और ओबामा के इशारों पर बोलते रहे. वो बोलते रहे कि दुनिया की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है. भारत का पड़ोसी देश (पाकिस्तान) आतंकवाद का उत्पादन और निर्यात कर रहा है. ऐसे निर्यातक देश को विश्व समुदाय से अलग-थलग कर देना चाहिये. उन्होंने ब्रिक्स देशों के आपसी बैठक में भी यही कहा.

मोदी को यह समझने की जरूरत ही नहीं है, कि पाकिस्तान की यह स्थिति अमेरिकी शोहबत और अमेरिकी हितों के लिये काम करने का परिणाम है. अमेरिकी सैन्य अधिकारी और सीआईए ने पाक-अफगान सीमा पर आतंकी शिविरों में तालिबान और अलकायदा के आतंकियों को प्रशिक्षित किया. उसने ही उसे इराक-लीबिया और सीरिया तक फैलाया. यूरो-अमेरिकी और उसके सहयोगी देशों ने ही ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया‘ -आईएसआईएस- को खड़ा किया. और जिसे खड़ा किया, चाहे वह अलकायदा और उससे जुड़े आतंकी संगठन हों, या इस्लामिक स्टेट, उनके ही खिलाफ आतंकवाद विरोधी युद्ध की घोषणा कर अपने साम्राज्वादी हितों को साधा.

भारत पर हुए आतंकी हमलों में पाक सेना और उसकी गुप्तचर इकाई आईएसआई यदि शामिल है, तो अमेरिकी गुप्तचर इकाई सीआईए की सम्बद्धता को प्रमाणित करने की जरूरत नहीं है. और अब अमेरिका चीन से रार लगाये बैठा है, जिसमें भारत की सम्बद्धता अमेरिकी सहयोगी के रूप में बढ़ती जा रही है. भारत ने हिंद महासागर में अमेरिकी वर्चस्व को स्वीकार कर लिया है, दक्षिण चीन सागर के विवाद में वह अमेरिकी पक्ष की बातें कर रहा है, चीन से सहयोग और विरोध की नीति पर चलता हुआ पाकिस्तान में बनते आर्थिक गलियारे को पाक अधिकृत कश्मीर में निर्माण के मसले से जोड़ कर, चीन-पाक सहयोग को आतंकी देश के सहयेग की चिंता जता रहा है, जिसका मकसद अमेरिकी पिवोट टू एशिया की अमेरिकी नीति का समर्थन है. अमेरिका विश्व एवं एशिया में बढ़ते चीन के वर्चस्व के खिलाफ है.

नरेंद्र मोदी भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने की सकारात्मक परिस्थितियों का फायदा उठाने के बजाये, अमेरिकी हितों को तरजीह दे चीन से नये विवादों को बढ़ा रहे हैं. पाक को अपना बनाने के गैर-राजनीतिक पहल की नाकामी को ढंक छुपा कर, अब वो उसके खिलाफ सख्त तेवर दिखा रहे हैं. जबकि कश्मीर का मुद्दा उलझा हुआ है, और स्थितियां पकड़ से बाहर हो गयी हैं. कश्मीर से मोदी सरकार खारिज हो गयी है.

आतंकवादी देशों के अमेरिकी गढ़ में भारत को घुसाने के बाद नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के जरिये चीन को आतंकवादी देशों का सहयोगी करार दे रहे हैं. बराक ओबामा यह प्रचारित कर रहे हैं, कि भारत से अमेरिकी सैन्य समझौतों एवं बहुआयामी संबंधों से चीन को डरने की जरूरत नहीं है. जबकि डरने की जरूरत भारत को है, कि वह अपने परम्परागत मित्र देश और विश्व की वैकल्पिक व्यवस्था करने वाले ब्रिक्स देशों से कट रहा है. वह कट रहा है, एशिया की शांति और स्थिरता से. वह पतनशील उन ताकतों से जुड़ गया है, जो जनविरोधी हैं. और जन समस्याओं के समाधान के खिलाफ हैं. जिसकी शुरूआत इस देश में यूपीए की मनमोहन सरकार ने की थी. जिसके खिलाफ नरेंद्र मोदी ने ‘आर्थिक सुधारों में तेजी‘ के वायदे के साथ कॉरपोरेट के सहयोग से सत्ता हासिल किया. जो अब अर्थव्यवस्था के निजीकरण, युद्धपरक उन्मादी फॉसिस्टवाद और बाजारवादी युद्ध की ओर बढ़ रहा है. बाजारवादी सरकारें एक बड़े युद्ध को अनिवार्य बना रही हैं.

जिन्हें लग रहा है, कि पंगू विदेशनीति से छुटकारा मिला, उन्हें यह भी लगना चाहिये कि साम्राज्यवादी देशों में शामिल होना विश्व जनमत और विश्व समुदाय के खिलाफ खड़ा होना है. गुण्डों की जमात में शामिल होना, नये गुण्डे के पक्ष में भी नहीं है. यदि आज की स्थिति में दक्षिण चीन सागर का तनाव, युद्ध के मुहाने पर पहुंचता है, जिससे हम इन्कार भी नहीं कर सकते, तो भारत की स्थिति विश्व समुदाय और ब्रिक्स देशों में सबसे बुरी होगी. और यदि युद्ध का विस्तार हुआ, तो भारत वहां खड़ा होगा, जहां उसे नहीं होना चाहिये.

सचमुच एक नशे का नाम है अमिताभ बच्चन

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मार्कन्डेय काटजू के बारे में अब हर कोई समझने लगा है कि वे जब भी कुछ बोलेंगे वह लगभग बेतुका ही होगा, लेकिन वह दिलचस्प होगा और उसमें कोई न कोई संदेश होगा इस बात की गारंटी भी उनमे दिलचस्पी रखने वाले लोगों को रहती है जो संख्या में बहुत कम हैं. काटजू ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली है जिसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन को बिना दिमाग वाला इंसान करार दिया है.

बक़ौल काटजू अमिताभ बच्चन में एक अच्छा एक्टर होने के अलावा और क्या है? क्या उन्होंने कभी देश की किसी समस्या को सुलझाया है? कभी नहीं. जब अमिताभ बच्चन मीडिया चैनलों पर आते हैं तो अच्छी बातें करते हैं और उपदेश देते नजर आते हैं. कभी कभी वह पैसा लेकर अच्छी बातें करते नजर आते हैं. सीधे सीधे कहा जाए तो काटजू अमिताभ बच्चन की तुलना उन ब्रांडेड धर्म गुरुओं से कर रहे हैं, जो प्रवचन कर पैसा बटोरते हैं. कुछ और हो न हो पर देश में प्रवचन वाकई सनातनी और शाश्वत धंधा है, फर्क इतना है कि अमिताभ भगवा, गेरुए वस्त्र नहीं पहनते, लेकिन अपनी नैतिकता की चाशनी में लिपटी बातों से आम लोगों को बेवकूफ बनाते हैं ऐसा काटजू मानते हैं, लेकिन देश उनके मानने न माने से प्रभावित नहीं होता तो वे और झल्ला उठते हैं.

काटजू की बातों में कोई संदर्भ प्रसंग नहीं होता, व्यवस्था और आस पास पसरी बिखरी उदासीनता और सुस्ती के प्रति भड़ास भर होती है. यह हर्ज की  बात कतई नहीं. हर्ज की बात है चर्चित लोकप्रिय और अपने क्षेत्र के कामयाब लोगों से बेवजह चिढ़ना और उनके प्रति अपने भीतर मकड़ी सा जाल बुन रही ईर्ष्या को तार्किक तरीके से व्यक्त करने की असफल कोशिश करना. दरअसल में काटजू का गुस्सा शासकों पर यह कहते था कि कार्ल मार्क्स धर्म को जनता के लिए अफीम की तरह मानता था, जिसका इस्तेमाल सत्ता धारी दवा की तरह करते थे, जिससे जनता को शांत रखा जा सके और वह विद्रोह न कर सके, लेकिन भारतीय जनता को शांत रखने के लिए कई तरह की ड्रग्स की जरूरत होती है.

धर्म के अलावा फिल्मे, क्रिकेट, ज्योतिष, बाबा और मीडिया आदि भी इसी तरह की ड्रग्स हैं. फिल्मों की बात करते करते उनका दिमाग भी अमिताभ बच्चन पर आकर ठहर गया, तो बात हैरानी की बिलकुल नहीं, बल्कि यह साबित करती है कि वे भी अमिताभ के जादू सम्मोहन और व्यक्तित्व से मुक्त भारतीय नहीं हैं. पर खुद को बुद्धिजीवी और लीक से हटकर सोचने बाला बताने के चक्कर में गच्चा खा गए और अटक गए अमिताभ बच्चन के खाली दिमाग में जिससे कम से कम अमिताभ को तो कोई फर्क नहीं पड़ना, जिनकी अभिनय प्रतिभा और व्यसायिक बुद्धि किसी सबूत की मोहताज नहीं. जो कलाकार बोलने के भी करोड़ों वसूलता हो, वह कितने दिमाग वाला होगा यह अंदाजा काटजू नहीं लगा पाये, जिनकी फैसला सुनाने की आदत रिटायरमेंट के बाद भी पीछा नहीं छोड़ रही.

अब वक्त है कि काटजू बताएं कि उन्होने देश के लिए क्या उल्ले खनीय किया है जो लोग अमिताभ बच्चन के बाबत उनकी राय या कुंठा से इत्तेफाक रखें. बिलाशक अमिताभ बच्चन एक अभिनेता भर हैं, जिसका काम और पेशा लोगों का मनोरंजन करना है. अब अगर उस पर सत्ताधीशों के हाथ की कठपुतली होने का इल्जाम लगाया जाये, तो काटजू को शुरुआत ऊपर से करना चाहिए थी नीचे से नहीं इन कठपुतलियों की लिस्ट मे कई दिग्गज शुमार हैं. अमिताभ बच्चन तो मौके पर अपना उल्लू सीधा करने की कला में माहिर हैं. इसलिए उन्हे बाबाओं की तरह बरगला कर एशोंआराम की ज़िंदगी की जीने बाला शख्स नहीं कहा जा सकता.

आम लोगों के लिए अमिताभ वाकई किसी नशे से कम नहीं, जिसने अपनी अधिकांश फिल्मों में दबे कुचले आक्रोशित युवा की भूमिका को जिया और दर्शकों का दिल जीता. रही बात उपदेशों की तो देश चल ही उपदेशकों से रहा है. अब तो सोशल मीडिया ने उपदेशकों की एक फौज पैदा कर दी है जो देश को खोखला बनाए दे रही है.  

‘मिर्जिया’ पर राकेश ओमप्रकाश मेहरा की सफाई

जब से राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अपनी प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ के संगीत का भव्य समारोह में लोकार्पण किया है, तब से चर्चाएं गर्म हैं कि फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ पुनर्जन्म की कहानी है. तो वहीं कुछ लोग कह रहे हैं कि यह फिल्म दक्षिण भारतीय फिल्म ‘‘मगधीरा’’ की तरह है.

मगर इन दोनों ही बातों को सिरे से खारिज करते हुए फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा कहते हैं-‘‘देखिए, मैं बंधी बंधाई लकीर पर फिल्म बनाना पसंद नहीं करता. मैं अपनी हर फिल्म के माध्यम से कहानी सुनाना चाहता हूं. कहानी सुनाने के लिए मैं हमेशा ‘नान लीनियर’ तरीका अपनाता हूं. यह तरीका फिल्म एडीटिंग कला का उपयोग करके बेहतर फिल्म बनाने में मदद करता है. शायद लोग मेरी फिल्म को पुनर्जन्म की कहानी का नाम इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें यह पता चला है कि हमारी फिल्म में हर्षवर्धन कपूर ने कई सदी पुराने काल का किरदार मिर्जा निभाने के साथ ही वर्तमान समय के राजस्थानी युवक आदिल का किरदार निभाया है, जो कि क्रमश: साहिबान और शुचि से प्यार करता है. साहिबान और शुचि के किरदारों को सैयामी खेर ने निभाया है. मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि हमारी फिल्म में पुनर्जन्म का का कोई मसला नहीं है. बल्कि मैने ‘नान लीनियर’ तरीके से कहानी कहते हुए दो अलग अगल काल की कहानी पेश की हैं.

‘मिर्जा साहिबान’ एक लीजेंडरी प्रेम कहानी है. यह कहानी रोमियो ज्यूलिएट या ‘हीर रांझा’ से काफी अलग है. हमारी फिल्म में ‘मिर्जा साहिबान’ की कहानी अपने दायरे से बाहर भी होती है. इनकी प्रेम कहानी को पंजाब  व राजस्थान में लोकगीत शैली में सुनाया जाता है. तो हमारी फिल्म में ‘मिर्जा साहिबान’ की कहानी लोकगीत शैली में और मूक है. इस कहानी में इन दोनो किरदारों के बीच कोई संवाद नही है, बल्कि फिल्म में एक कथा वाचक है, जो कि इस कहानी को लोकगीत शैली में सुना रहा है.’’

वह कहते हैं-‘‘राजस्थान के जो बंजारे हैं, वह नाचते हैं, गाते हैं. राजस्थान में भी लोहार हैं. लोहारों की गलियां हैं. और कथावाचक कहता है- यह गली है लोहारों की, हमेशा दहका करती है, यहां गर्म लोहा जब पिघलता है, तो सुनहरी आग निकलती है, कभी चिंगारीयां उड़ती हैं भट्टी से, तो कभी…..सुना है दास्तान कोई गुजरती है इस गली से..हमेशा घोड़ों की टापों की आवाज आती है, यह वादियां ….इसमें सदियां गुजरती हैं, मरता नहीं इश्क में मिर्जा, साहिबान जिंदा रहती है, तो यह मिर्जा साहिबान की कहानी है…’’

राकेश ओम प्रकाष मेहरा आगे कहते हैं-‘‘वर्तमान राजस्थान का एक युवक आदिल, शुचि से प्यार करता है. आदिल व शुचि, ‘मिर्जा साहिबान’ की प्रेम कहानी को सुनकर किस तरह से अपनी प्रेम कहानी को रूप देते हैं, वह एक अलग कहानी है. ‘मिर्जा साहिबान’ और ‘आदिल शुचि’ की प्रेम कहानियां समानांतर चलती हैं, साथ में कथा वाचक भी है. इस तरह हमारी फिल्म की प्रेम कहानी तीन स्तरो पर कही गयी है.’’

राकेश ओमप्रकाश मेहरा आगे कहते हैं-‘‘जहां तक फिल्म ‘मगधीरा’ का सवाल है, तो मैंने यह फिल्म अब तक देखी नहीं है. जहां तक मुझे पता है ‘मगधीरा’ तो पुनर्जन्म लेने वाली राज कुमारी और एक योद्धा की प्रेम कहानी है, जबकि हमारी फिल्म ‘मिर्जा साहिबान’ की कहानी है.’’

वह आगे कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म ‘मिर्जिया’ तो सच्चे प्यार को नए सिरे से परिभाषित कर उसे ज्यादा समृद्ध करती है. हमारी फिल्म उन दो प्रेमियों की कहानी है, जो कि एक दूसरे को समझते हैं, एक दूसरे को उनका अपना स्थान देते है. वह कहते हैं, मैं तुमसे प्यार करता हूं, तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी का कोई अस्तित्व नही है. लेकिन तुम्हारी जो जिंदगी है, उसमें तुम आगे बढ़ो.’ और यही हमारी फिल्म का संदेश है.’’

‘बैंजो’ से बौलीवुड तक, आखिर क्या सोचती हैं नरगिस

अमरीका के न्यूयार्क शहर में जन्मी और अमरीकन माडल के रूप में शोहरत बटोरने के बाद फिल्म ‘‘राक स्टार’’ से बौलीवुड फिल्मों में कदम रखने वाली नरगिस फाखरी पिछले कुछ समय से उदय चोपड़ा के साथ अपने रिश्तों और अपनी बीमारी को लेकर चर्चा में रही हैं. कहा जा रहा था कि नरगिस फाखरी बौलीवुड को अलविदा कह कर हमेशा के लिए अमरीका जा बसी हैं. मगर नरगिस फाखरी मुंबई वापस आयी हैं. वह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म सर्जक रवि जाधव निर्देशित फिल्म ‘‘बैंजो’’ का जमकर प्रमोशन भी कर रही हैं.

जहां तक नरगिस फाखरी के अभिनय करियर का सवाल है, तो नरगिस फाखरी ने पांच साल के अंतराल में करीबन दस फिल्मों में अभिनय किया है, मगर‘‘राक स्टार’’ व ‘‘मद्रास कैफे’’ को छोड़कर उनकी किसी भी फिल्म को लेकर बाक्स आफिस पर अपेक्षित सफलता नसीब नहीं हुई. पर नरगिस फाखरी इसके लिए खुद के बजाय बौलीवड के फिल्मकारों को ही कटघरे में खड़ा करती हैं.

जब नरगिस फाखरी से मुंबई के बांदरा इलाके में स्थित ‘‘पाली विलेज कैफे’’ में मुलाकात हुई, तो हमने उनसे बिना किसी लाग लपाट के सीधा सवाल किया कि जब उनकी कोई फिल्म असफल होती है, तो उन्हे कैसा महसूस होता है? इस पर ‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए नरगिस फाखरी ने बड़ी साफ गोई के साथ कहा-‘‘बहुत तकलीफ होती है. ईमानदारी की बात तो यही है कि हर फिल्म एक जुआ है. जब हम किसी फिल्म से जुड़ने का फैसला करते हैं, उस वक्त हमें उस फिल्म के भविष्य को लेकर कुछ भी नहीं पता होता. फिल्म के असफल होने पर मैं रोती नहीं हूं. मगर बुरा लगता है. हमें लगता है कि गाड़ी फंस गयी.’’

जब हमने उनसे पूछा कि क्या वजहें हैं कि बालीवुड फिल्में असफल हो रही हैं, पर हालीवुड फिल्में हिंदी में डब होकर भारत में अच्छा व्यापार कर रही हैं? इस पर नरगिस ने आश्चर्य जताते हुए कहा-‘‘अच्छा..ऐसा है, मुझे नहीं पता. यदि यह सच है, तो बालीवुड के फिल्मकारों को इस पर गहन विचार करना चाहिए कि वह किस तरह की पटकथाओं पर फिल्म बना रहे हैं. इसके मायने यही हैं कि बालीवुड के फिल्मकार सही पटकथाएं व सही कहानियां नहीं चुन रहे हैं. पर मैं फिल्म निर्माता या निर्देशक नहीं.’’

नरगिस फाखरी उन अभिनेत्रियों मे से हैं, जिनकी परवरिश हौलीवुड फिल्में देखते हुए हुई है. वह ‘स्पाई’ जैसी हौलीवुड फिल्म में अभिनय कर चुकी हैं. तो वहीं वह हौलीवुड फिल्म ‘‘फाइव वेडिंग’’ करने वाली हैं. और वह बौलीवुड फिल्मों में अभिनय कर रही हैं. ऐसे में उन्हें बौलीवुड फिल्मों में कहां व किस तरह की कमी नजर आती है? मेरे इस सवाल पर नरगिस फाखरी ने कहा-‘‘मैं इस सवाल का जवाब नहीं दे पाउंगी. देखिए, मेरी संजीदगी बहुत अलग है. दर्शक की हैसियत से भी मेरी सोच, मेरी संजीदगी और मेरी पसंद बहुत अलग है. मैं बचपन से ही हौलीवुड व विश्व सिनेमा देखते हुए बड़ी हुई हूं. मैं जिस माहौल में बड़ी हुई हूं, उसी के चलते मुझे पश्चिमी देशों की फिल्में ज्यादा पसंद आती हैं. मैं बौलीवुड में काम कर रही हूं, पर अभी तक बौलीवुड का गणित मेरी समझ में नही आया है. सच कहती हूं. कई बार जब मुझे पता चलता है कि फलां बौलीवुड फिल्म हिट हो गयी है, तो मुझे बड़ा आश्चर्य भी होता है. मैं सोचती हूं कि अरे, यह इतनी खराब फिल्म थी, तो फिर इसने अच्छा व्यापार कैसे कर लिया? मगर मैं चुप रह जाती हूं. मैं अपने इस विचार को अभिव्यक्त नहीं कर पाती हूं.

मैने कई घटिया और स्तरहीन बौलीवुड फिल्मों को हिट होते हुए देखा है. कई बार मूर्खतापूर्ण तरीके से बनायी गयी फिल्में सफल हो जाती हैं. कई बार कुछ अच्छी फिल्में भी असफल हो जाती हैं. यह सब देखते हुए मुझे लगता है कि या तो मैं कन्फ्यूज्ड हूं या लोग कन्फ्यूज्ड हैं. मुझे लगता है कि धीरे धीरे दर्शकों की सोच, उनकी मेंटालिटी बदल रही है. वह कुछ नया चाहते हैं. पर मैं पूरे यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकती. हर इंसान अलग अलग तरह की फिल्में देखकर इंज्वाय करता है.’’

जब हमने नरगिस से कहा कि उनकी संजीदगी बहुत अलग है. तो फिर  सवाल उठता है कि उन्होने बौलीवुड फिल्म ‘‘हाउसफुल 3’’ क्या सोचकर की? इस पर नरगिस ने कहा-‘‘जब मैंने इस फिल्म की कहानी सुन रही थी, उस वक्त मैं बहुत हंस रही थी. सच कहूं तो मुझे खुद नहीं पता, मगर जब निर्देशक ने फिल्म की पटकथा व कहानी सुनायी, तो यह बहुत फनी थी. तीन लड़कियां हैं, जो कि विदेश में रहती हैं, उनका पहनावा दो तरह का है. मुझे लगा कि यह फनी होगा. इसलिए मैंने किया. पर मैं नहीं जानती कि इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर अच्छी कमायी की या नहीं. पर मैंने इस फिल्म को करते समय बहुत फन/मौज मस्ती की थी.’’

यदि पटकथा पढ़ते समय फिल्म उन्हे अच्छी लगी थी, तो क्या पटकथा को सिनेमा के परदे पर उतारते समय कुछ गड़बड़ी हो गयी? इस पर नरगिस ने बड़े भोलेपन के साथ कहा-‘‘मैं नहीं जानती. मैं उस तरह की प्रोफेशनल इंसान नहीं हूं, जो यह विश्लेषण करते हैं कि क्या चलता है और क्या नहीं. दूसरी बात मैंने बालीवुड के अपने करियर में भी बहुत ज्यादा फिल्में नहीं की है. मेरे करियर में मैने अब तक सिर्फ तीन फिल्में ही की हैं, जिन्होने मेरे दिल को छुआ. यह फिल्में हैं-राक स्टार, मद्रास कैफे और बैंजो. जब मैने इन तीनों फिल्मों की पटकथा पढ़ी थी, तो मैने इन फिल्मों को अपने दिमाग में देख लिया था. यह फिल्में मेरे दिल से जुड़ गयी थी. मुझे नहीं पता कि ‘राक स्टार’ हिट थी या नहीं, पर यह बहुत सुंदर फिल्म थी. ‘मद्रास कैफे’ भी मेरे दिल में बसी हुई है. इसकी कहानी व इसका किरदार मुझे बहुत पसंद आया था. और अब ‘बैंजो’ की कहानी भी मेरे दिल को छू चुकी है .इन तीन फिल्मों के अलावा मैंने जो फिल्में की, वह महज इसलिए कि चलो कि कुछ फन मिल जाएगा, कुछ नया अनुभव मिल जाएगा या यह सोचकर किया कि कुछ तो काम करना ही पड़ेगा. पर यह फिल्में मेरे दिल से नही जुड़ी.’’

फिल्म ‘‘बैंजो’’ की चर्चा करते हुए नरगिस फाखरी ने कहा-‘‘फिल्म ‘बैंजो’ में मेरा किरदार बहुत अलग है. मैंने इसमें क्रिस्टिना नामक एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया है, जिसका जन्म व परवरिश अमरीका के न्यूयार्क शहर में हुआ है. जिसे भारतीय संगीत से बहुत लगाव है. वह भारतीय संगीत के लगाव व भारतीय संगीत के एक खास वाद्ययंत्र बैंजो की धुन से प्रभावित होकर पहली बार भारत आती है. जब क्रिस्टिना मुंबई आती है, तो इसके अनुभव बहुत फनी होते हैं. उसे बहुत सी बातों की जानकारी नहीं है. उसे मुंबई के बारे में, यहां की जीवनशैली की जानकारी नहीं है, पर संगीत उसे यहां खींच लाया है. वह बैजो वादक से मिलती है, उससे प्रभावित होती है. उसके लिए संगीत की कोई सीमा नहीं है. वह निडर है. क्रिस्टिना के किरदार की शूटिंग करते समय मैं पहली बार अमरीका से मुंबई आने के अपने दिनों को याद कर हंस रही थी. लेकिन जब निजी जिंदगी में इस तरह की घटनाएं घटती हैं, तब हम हंसते नहीं है. उस वक्त गुस्सा आता है.’’

नरगिस फाखरी की बीमारी की भी खबरें काफी रही है. इस पर नरगिस ने कहा-‘‘आप जानते हैं कि मैं अपनी जिंदगी को लेकर कोई चर्चा नही करती.’’ उदय चोपड़ा के साथ अपने बनते बिगड़त रिश्ते को लेकर फैली अफवाहों पर नरगिस फाखरी ने कहा-‘‘अफवाहों को अफवाहें ही रहने दें. लोगो को अफवाहें फैलाने दें. मैं चुप रहना ही पसंद करुंगी.’’

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अंकुश और सोनाली ने जड़ा एक दूसरे को चांटा

टीवी सीरियलों में अभिनय कर रातों रात घर घर के सदस्य बनकर शोहरत बटोरने वाले कलाकार लगातार काम के दबाव में फ्रस्ट्रेशन का इस कदर शिकार हो रहे हैं, कि इन्हे जरा जरा सी बात पर गुस्सा आ जाता है. और अब अपने गुस्से पर काबू रखने की बजाय अपने सह कलाकार को चांटा जड़ने जैसा घृणित कर्म भी करने लगे हैं. टीवी इंडस्ट्री में आम चर्चा है कि अब वह वक्त आ गया है, जब हर टीवी सीरियल में अभिनय कर रहे कलाकार को हर तीन माह में एक बार मनोवैज्ञानिक डाक्टर के पास भेजा जाना चाहिए.

वास्तव में टीवी कलाकार सीरियल का एपीसोड समय पर देने के लिए लगातार बारह से 14 घंटे काम करते हैं. परिणामतः इनकी अपनी जिंदगी रह ही नहीं जाती है. जिसके चलते कई बार फ्रस्ट्रेशन, तो कई बार दूसरी मजबूरियों या दबाव के चलते इन्हे गुस्सा आता है. यूं तो इन टीवी कलाकारों के बीच आपसी तूतू मैंमैं की खबरें आम हैं. लेकिन हाल ही में जीटीवी पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘यह वादा रहा’ ’के सेट पर सीरियल के लीड कलाकारों अंकुष अरोड़ा और सोनल वेंगुर्लेकर ने तो एक दूसरे को न सिर्फ चांटा जड़ दिया, बल्कि पुलिस को भी बुला लिया.

जी हां! एक वेब साइट की खबर को सच माना जाए तो सीरियल ‘‘यह वादा रहा’’ के सेट पर अभिनेत्री सोनल वेंगुर्लेकर और अभिनेता अंकुश अरोड़ा ने गुस्से में एक दूसरे को चांटा जड़ दिया. सूत्रों का दावा है कि अंकुश अरोड़ा और सोनल वेंगुर्लेकर सीन के फिल्मांकन से पहले रिहर्सल कर रहे थे. दोनों अपने संवाद पढ़ने में व्यस्त थे. जब निर्देशक ने सीन के फिल्माने की घोषणा की, तो अंकुश तुरंत कैमरे के सामने पहुंच गए, मगर सोनल अपने आप में ही खोयी रही. बस अंकुश अरोड़ा को गुस्सा आ गया.

देखते ही देखते अंकुश व सोनल के बीच बहस शुरू हो गयी. धीरे धीरे यह बहस गाली गलौज में बदल गयी. अचानक अंकुश के मुंह से सोनल के लिए गंदी गाली निकली और तैश में आकर सोनल ने अंकुश को जोरदार चांटा जड़ दिया. गुस्से से तमतमाए हुए अंकुश अरोड़़ा ने सोनल को चांटा जड़ दिया. चांटे की आवाज सुनकर पूरी युनिट और सीरियल के निर्माताओं ने दोनो को शांत करने का प्रयास किया. मगर सोनल वेंगुर्लेकर ने पुलिस को फोन कर बुला लिया.

सूत्र बताते हैं कि सीरियल के निर्माता ने दोनों कलाकारों को यह याद दिलाया कि यदि यह मामला बढ़ा, तो किस तरह दोंनों को आए दिन पुलिस स्टेषन के चक्कर गाने पड़ेंगे, और सीरियल की शूटिंग भी बाधित होगी, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा इन्ही को भुगतना पड़ेगा. उसके बाद सोनल ने अंकुश से पूरी यूनिट के सामने माफी मंगवाने के बाद शूटिंग करनी शुरू कर दी. पर सूत्रों के अनुसार पुलिस ने अभी तक अपनी तरफ से इस केस को बंद नहीं किया.

परिणामतः सीरियल से जुड़े सभी लोगों की सांसे अटकी हुई हैं कि पता नहीं कब इस सीरियल की शूटिंग पर ब्रेक लग जाए. उधर इस प्रकरण पर सीरियल से जुड़े हर शख्स व निर्माताओं ने चुप्पी साध रखी है.

क्या सैयामी खेर सिर्फ बाथरूम सिंगर हैं..?

मशहूर फिल्म सर्जक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की पहली रोमांटिक फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की नायिका सैयामी खेर और उनके बीच कई समानताएं हैं. दोनों का संबंध स्पोर्ट्स के क्षेत्र से है. इसके अलावा दोनों की संगीत में रूचि एक समान है. जिसके चलते इनके बीच बहुत जल्द एक अच्छी बांडिंग हो गयी थी. इस बात को स्वीकार करते हुए सैयामी खेर ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका को बताया-‘‘फिल्म ‘मिर्जिया’ के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा व हम स्पोर्टस के क्षेत्र से जुड़े रहे हैं. इसके अलावा हम दोनों की संगीत की रूचि भी एक जैसी है. मेरी संगीत की रूचि देखकर वह अक्सर कहते हैं कि क्या तुम सत्तर वर्ष की हो गयी? किशोर कुमार या मुकेश के गाने सुनती हूं. राकेश सर भी इन्ही के गीत सुनना पसंद करते हैं.’’

जब हमने उनसे पूछा कि यह संगीत की रूचि कैसे बनी? तौ सैयामी ने कहा-‘‘इस सवाल का सही जवाब मुझे पता नहीं. मगर मैं सुनने लगी और यह रूचि बन गयी. यह संगीत आज की तारीख में सुनने को मिलता ही नहीं है. ‘आ गले लग जा’ जैसा गीत कौन सुनता है?’’

तब तो आप पार्श्वगायन भी करती होंगी? इस सवाल पर सैयामी खेर ने खुद को महज बाथरूम सिंगर बताते हुए कहा-‘‘अभी तो संगीत सीख रही हूं. अभी तो मैं बाथरूम सिंगर हूं. 20 साल लग जाएंगे. मेरे संगीत के गुरू हैं अमोल. सिंगिंग ऐसी कला है, जिसे बीस साल तक सीखने के बाद कह पाते हैं कि हां थोड़ा आता है.’’

जब हमने सैयामी से कहा कि यह माना जाए कि यदि दो लोगों की रूचि समान हो तो उनके बीच एक अच्छी बांडिंग हो जाती है? इस पर सैयामी ने कहा-‘‘जी हां! मेरे व राकेश सर के बीच स्पोर्ट्स व संगीत सेतु है.’’

हाल ही में मुंबई के पांच सितारा होटल में फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ के संगीत के लोकार्पण का भव्य समारोह आयोजित हुआ. जिसमें गुलजार, शबाना आजमी, जावेद अख्तर सहित कई जानी मानी फिल्मी हस्तियों के बीच सैयामी खेर के माता पिता भी मौजूद थे. सैयामी खेर के माता पिता को संगीत बहुत पसंद आया. खुद सैयामी बताती हैं-‘‘मेरे माता पिता को गाने बहुत पसंद आए. मेरी राय में शंकर एहसान लाय का यह बेहतरीन अलबम होगा. दस बारह वर्ष बाद भी इस फिल्म के गाने रिलीवेंट होने वाले हैं. इस फिल्म के गाने मेरी रूचि के हैं. ‘पिया की डोली’ गाना है, जिसे गुलजार साहब ने बहुत अच्छा लिखा है. ‘कागा रे कागा..’गाना भी बहुत अच्छा है.’’

फिल्म के गानों की शूटिंग के दौरान आपको नहीं लगा कि इसमें से कोई एक गाना आपको गाना चाहिए था? इस पर सैयामी खेर ने कहा-‘‘मैने पहले ही कहा कि मैं तो बाथरूम सिंगर हूं. मैं खुद को उस मुकाम पर देखती ही नहीं हूं.’’

एफएमसीजी प्रोडक्ट बन गया पान

दीवारों को पीक से लाल रंग में रंगने वाले पान की छवि को एफएमसीसी सेक्टर बदलने में लगा हुआ है. फूड रेगुलेटर ने बिना पीक वाले मॉडर्न पान को इजाजत दे दी है जो फैक्टरियों में असेंबल और पैक किए जाते हैं और इनको छह महीने के बाद भी खाया जा सकता है. मुंबई के माउथ फ्रेशनर सप्लायर चंदन मुखवास के पंकज शाह कहते हैं, 'हम हर महीने पान के लगभग एक लाख पीस बेचते हैं. कंज्यूमर अब सुविधा और स्वच्छता पसंद करते हैं और पान चबाने की बात पर वे अब नाक भौं नहीं सिकोड़ते.' बाजार में डिजल, यामुज पंचायत, मैपरो मजाना, पेठावाला आगरा, सुरभि, दिल बहार और नटराज जैसे पान के कई ब्रांड्स हैं.

मुखवास यानी माउथफ्रेशनर्स सबसे बड़ी फूड कैटेगरी में से एक है और बहुत हद तक अनऑर्गनाइज्ड है. लेकिन रिटेलर्स का मानना है कि अगर सही से मार्केटिंग की जाए तो इसकी ग्रोथ वेस्टर्न डेजर्ट्स से ज्यादा हो सकती है. सुपरमार्केट्स की फूड बाजार चेन चलाने वाले फ्यूचर ग्रुप में एफएमसीजी और ब्रांड्स प्रेसिडेंट देवेंद्र चावला कहते हैं, 'अगर इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ाई जाए, नुकसानदेह सामग्री हटाई जाए और सही से ब्रांडिंग की जाए तो यह आफ्टर एट मिंट्स का इंडियन ऑप्शन हो सकता है.'

देशभर में 7 लाख दुकानें हैं, जहां पान बिकते हैं. भागवत पुराण में भगवान श्रीकृष्ण के पान चबाने का जिक्र है. अमेरिका में यह पिछले पांच साल से बिक रहा है.भारत में इसका हुलिया बदला है क्या? आम पन्ना से लेकर जलजीरा तक की ट्रेडिशनल रेसिपी की ब्रांडिंग करके उसको ऑर्गनाइज्ड ट्रेड का हिस्सा बना दिया गया है.

व्हाट्सएप पर ऐसे शो करें फेक लास्ट सीन

व्हाट्सएप इस समय दुनिया का सबसे पॉपुलर मैसेजिंग ऐप है. इस ऐप में यूजर्स की सहूलियत और सुविधा के अनुसार कई फीचर्स दी गए हैं. हाल ही में ऐप में एक नया फीचर्स दिया है जिसके जरिए यूजर्स लो लाइट सेल्फी के फ्रंट फ्लैश और जिफ भेजे जा सकते हैं. व्हाट्सएप का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है.

सोशल मीडिया का बढ़ता क्रेज कभी कभी लोगों के लिए काफी नुकसानदायक होता है. जैसे अब व्हाट्सएप के कुछ फीचर्स ही ले लो, इन फीचर्स के चलते यूजर्स की मुश्किलें बढ़ जाती हैं. हम बात कर रहे हैं लास्ट सीन की! लास्ट सीन के चक्कर में यूजर्स को काफी परेशानी झेलनी पड़ जाती है.

मान लीजिए आप व्हाट्सएप पर कुछ काम के लिए सिलसिले में ऑनलाइन आए, लेकिन अपने दोस्त को रिप्लाई करने का समय आपके पास नहीं है तो ऐसे में हो सकता है कि आपकी दोस्ती में खटास आ जाए. साथ ही यदि आप अपने लास्ट सीन को हाईड करते हैं तो आप भी किसी का लास्ट सीन नहीं देख पाएंगे.

आज हम यहां पर आपके लिए आसान और मजेदार ट्रिक लेकर आए हैं, जिसकी मदद से आप व्हाट्सएप पर फेक लास्ट सीन बना सकते हैं.

मैसेज का बैकअप

फेक लास्ट सीन क्रिएट करने से पहले आप अपने व्हाट्सएप मैसेज का बैकअप बना लें. इसके लिए आपको व्हाट्सएप में सेटिंग्स में जाना होगा. फिर चैट सेटिंग्स में जाएं और इसके बाद बैकअप कन्वर्सेशन का ऑप्शन सेलेक्ट करें. बैकअप लेने के बाद अन्य स्टेप्स फॉलो करें.

जीबीव्हाट्सएप+ एपीके ऐप

सबसे पहले आपको अपने फोन में जीबीव्हाट्सएप+ ऐपीके एप डाउनलोड करनी होगी.

व्हाट्सएप का मॉडिफाइड वर्जन

जीबीव्हाट्सएप+ एपीके व्हाट्सएप का ही मॉडिफाइड वर्जन है. इस ऐप से लास्ट सीन को फ्रीज करने के लिए ओरिजिनल व्हाट्सएप को रिप्लेस करना होगा.

मेनू पर टैप करें

मॉडिफाइड व्हाट्सएप को इंस्टॉल करने के बाद जीबीव्हाट्सएप+ एपीके आइकॉन को खोलें और मेनू पर टैप करें.

प्राइवेसी टैप

आपको कई सारे ऑप्शन मिलेंगे. इन सभी में से आपको प्राइवेसी टैप पर क्लिक करना होगा. प्राइवेसी में जाने के बाद हाईड ऑनलाइन स्टेटस ऑप्शन पर क्लिक करें.

लास्ट सीन रिकॉर्ड हो जाएगा

जैसे ही आप हाईड ऑनलाइन स्टेटस ऑप्शन पर क्लिक करेंगे, यह एप आपका लास्ट सीन रिकॉर्ड कर लेगी और वही टाइम आपके लास्ट सीन के रूप में शो होगा.

डेरी खोल कर बने युवाओं के रोल मौडल

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की हरैया तहसील का परशुरामपुर ब्लाक खेती के लिहाज से धनी इलाका माना जाता है. इसी ब्लाक के परशुरामपुरलकड़मंडी मार्ग पर पड़ने वाले गांव वेदीपुर के युवा किसान ध्रुवनारायन ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद नौकरी न करने की ठानी और वे अपनी पारिवारिक खेतीबारी को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी ले कर आगे बढ़े.

उन्होंने खेतों में काम करते हुए पाया कि फसलों में उत्पादन बढ़ाने के लिए अंधाधुंध रासायनिक खादों व कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा?है, जिस की वजह से पैदावार सही नहीं मिल पा रही है.

कृषि के उत्पादन को बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने खेतों में जैविक खादों व जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की ठानी. इस के लिए उन्हें जरूरत थी पशुओं के गोबर की. लेकिन उन के पास केवल 2 गायें और 1 भैंस होने की वजह से यह मंशा पूरी होती नहीं दिख रहीथी. फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न  खेती के साथसाथ डेरी का कारोबार भी किया जाए. इस से न केवल जैविक खेती के लिए गोबर की व्यवस्था होगी, बल्कि दूध से आमदनी भी बढ़ेगी.

सब से पहले उन्होंने 5 गायों से डेरी उद्योग शुरू करने की ठानी. उन्होंने पशुपालन विभाग व उस से जुड़े दूसरे विभागों से जानकारी इकट्ठा करने के बाद डेरी के लिए जरूरी टीनशेड, पशुशाला व रखरखाव का इंतजाम किया. फिर उन्होंने 5 गायों से अपनी डेरी की शुरुआत की.

शुरू में हर गाय से करीब 14 से 16 लीटर दूध मिल रहा था. इस तरह उन्होंने रोजाना करीब 80 लीटर दूध का उत्पादन करना शुरू किया. लेकिन जितनी लागत आती थी, उतना मूल्य नहीं मिल पाता था. इसलिए उन्होंने अपनी डेरी के दूध से डेरी उत्पाद बनाने की सोची. उन की डेरी से मिलने वाला दूध डेरी कारोबार शुरू करने के लिए काफी नहीं था. इस के लिए उन्हें और अधिक दूध की जरूरत थी, जिस से वे डेरी उत्पाद बनाने की शुरुआत कर सकें. उन्होंने सरकार द्वारा चलाए जा रहे डेरी उद्योगों में जा कर वहां की मशीनों और उत्पादन तकनीकी की जानकारी ली और फिर घर वापस आने के बाद आसपास के दूसरे दूध उत्पादकों से दूध की खरीदारी कर बड़े स्तर पर डेरी उद्योग की शुरुआत करने का मन बनाया.

ध्रुवनारायण ने गांवगांव जा कर दूध उत्पादकों से मुलाकात की. उन्होंने दूध उत्पादकों को यकीन दिलाया कि वे सरकार द्वारा तय दूध की कीमत से ज्यादा पर उन के दूध को खरीदेंगे, जिस से उन्हें अच्छा मुनाफा मिलेगा. इस के बाद जब लोगों ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उन के द्वारा शुरू किए जा रहे डेरी कारोबार के लिए बड़ी मात्रा में दूध उपलब्ध हो जाएगा, तो उन्होंने 5 लाख रुपए की लागत से चिलिंग प्लांट व प्रेस मशीन की खरीदारी की और डेरी उत्पादों को बनाने का काम शुरू किया.

शुद्धता बनी पहचान : शुरू में ध्रुवनारायन ने अपने डेरी उद्योग में पनीर, दही, खोआ, पेड़ा आदि बनाने की शुरुआत की और वे खुद अपनी बनाई हुई चीजों को मार्केट में बेचते थे. धीरेधीरे उन के द्वारा बनाए गए डेरी उत्पादों की शुद्धता की वजह से दूरदराज के ग्राहक उन के यहां से खरीदारी करने लगे, जिस की वजह से लोगों को उन के  दूध का अच्छा दाम भी मिलना शुरू हो गया.

इस समय ध्रुवनारायन के डेरी उत्पाद भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण द्वारा प्रमाणित और लाइसेंसशुदा हैं, जिस की वजह से उन के डेरी उत्पादों की मांग पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, गोंडा, अंबेडकरनगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर सहित तमाम जिलों में है.

बेरोजगारों को रोजगार से जोड़ने में सफलता :  उन के यहां डेरी उत्पादों को तैयार करने के लिए आईटीआई डिगरी धारक तकनीकी रूप से जानकार कर्मचारी की देखरेख में कई लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं, जो उत्पादों को तैयार करने, पैकेजिंग व गुणवत्ता निर्धारण की जिम्मेदारी निभाते हैं, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है.

जैविक खादों की बिक्री से दोगुना फायदा : अपनी खेती को जैविक तरीके से करने के लिए शुरू किए गए इस डेरी कारोबार से ध्रुवनारायन इस मुकाम तक पहुंचेंगे, उन्होंने कभी सोचा भी न था.

उन के द्वारा बनाई गई जैविक खाद डी कंपोस्ट को गोबर, राख, लकड़ी का बुरादा, सुपर फास्फेट व माइक्रोबायो कंट्रोल एजेंट मिला कर बनाया जाता है. इस के प्रयोग से फसल की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हुई है, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी इजाफा हुआ है. इस के अलावा उन के यहां फसलों को कीटों व बीमारियों से बचाने के लिए तंबाकू, लहसुन, नीम की पत्ती, धतूरा, मदार की जड़, गोमूत्र वगैरह मिला कर तमाम तरह के जैविक कीटनाशक व दवाएं बनाई जाती हैं, जिन की किसानों में भारी मांग है.

अगर कोई भी किसान डेरी उत्पाद तैयार करने के लिए जानकारी हासिल करना चाहता है, तो धु्रवनारायन के मोबाइल नंबरों 09565163909, 9984407515 या 9918616970 पर संपर्क कर सकता है.

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