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याद नहीं आता

तेरे माथे की बिंदिया से

कुछ याद नहीं आता

चमकती चूंडि़यों की खनक

माथे में सुर्ख सिंदूर

सुहागन का सा सौंदर्य

देख कर भी

कुछ याद नहीं आता

वो हसीन पल

जो हमारे अपने थे

दफन हैं किसी तहखाने के भीतर

इसीलिए शायद

कुछ याद नहीं आता

न करो कोशिश अब

कुछ याद दिलाने की मुझे

कुछ याद नहीं आता

बंद कमरे में चीख लूंगा

जी भर कर रो लूंगा

स्मृतियों को आंसुओं से ढक लूंगा

तब भी यही कहूंगा

कुछ याद नहीं आता.

       

– सम्राट विद्रोही

 

क्रिकेट मेरी पहली प्राथमिकता: हरभजन सिंह

स्पिनर गेंदबाज के रूप में प्रसिद्ध हुए क्रिकेटर हरभजन सिंह पंजाब के शहर जालंधर के हैं. उन्होंने अपने कोच चरणजीत सिंह भुल्लर द्वारा बैट्समैन का प्रशिक्षण प्राप्त किया.

कोच की अचानक मृत्यु के बाद वे स्पिनर बौलर के रूप में उभर कर आए और क्रिकेट के इतिहास में 32 विकेट्स ले कर हैट्रिक बनाने वाले पहले भारतीय बौलर बने. साल 2009 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया. साल2015 में उन्होंने मौडल व ऐक्ट्रैस गीता बसरा से शादी की. अब वे टीवी पर एक कौमेडी शो में जज की भूमिका निभा  रहे हैं.

शो से जुड़ने की वजह पूछने पर हरभजन बताते हैं, ‘‘मैं कौमेडी को ऐंजौय करता हूं. फिर चाहे वह टीवी शोज हों या फिल्में. मैं पंजाबी और पाकिस्तानी ड्रामा खूब देखता हूं. जब मेरे पाकिस्तानी दोस्त खेलने आते थे तो उन से कौमेडी की सीडी मंगवाया करता था. इस के अलावा कई टीवी शोज पर गेस्ट बन कर गया हूं. यहां पर आने की वजह यह है कि यहां काफी मजा आ रहा है जिन की मैं सीडी खरीद कर देखता था, वे लाइव यहां परफौर्म कर रहे हैं और सब का मनोरंजन कर रहे हैं. मैं खुद भी इसे करने में खुश हो रहा हूं.”

हरभजन कहते हैं कि ‘‘हर पंजाबी के खून में ह्यूमर होता ही है. फनी बातें मुझे पसंद हैं. कुछ लोग मुझे ‘फनी’ कहते हैं तो कुछ सीरियस. जबकि मैं सीरियस नहीं हूं. मुझे सभी से मिलना, मजेदार बातें करना आदि सब पसंद है. जिंदगी एक बार मिलती है उसे हंसखेल कर गुजारना चाहिए. मैं वहां से आया हूं जहां लोग एकदूसरे से मिलते हैं,हंसतेबोलते हैं. वही मेरे स्वभाव में भी आ गया है. मैं जिसे नहीं भी जानता हूं उस से भी मजाक कर लेता हूं.’’

प्लेयर्स में सैंस औफ ह्यूमर अधिक होता है. ऐसे में कौन से प्लेयर के मजाक पसंद हैं, इस बाबत वे बोलते हैं, ‘‘विराट कोहली बहुत बड़ा ऐक्टर है. वह किसी की भी नकल कर लेता है. मेरे हिसाब से हर किसी को यह पता नहीं होता कि वह क्याक्या कर सकता है.’’

शोएब अख्तर के साथ शो में काम करने को ले कर हरभजन बताते हैं, ‘‘मैं शोएब को सालों से जानता हूं. वे मेरे दोस्त और बड़े भाई की तरह हैं. बहुत साल पहले भी हम मिले थे. बड़ा अच्छा लगा. इतने सालों बाद एक शो में मिल रहा हूं. ग्राउंड में तो इतनी बात नहीं हो पाती. शोएब बड़ा जौली किस्म का इंसान है. खूब हंसाता है.’’

जज बनने की तैयारी पर वे बताते हैं, ‘‘इस में तकनीक अधिक नहीं है. जब कोई मजाक होता है तो हर व्यक्ति को पता चल जाता है कि हंसी आई या नहीं. हंसी आई तो ठीक है. अगर हंसने वाली बात न होने पर भी आप हंसते हैं तो लोग आप को देख कर हंसेंगे. यहां पर क्या हो रहा है, उसे देखना जरूरी होता है. यह कोई ट्रिकी काम नहीं है. आम बातों से मजेदार बात निकलती है.’’

क्या कभी खुद आप किसी मजाक के पात्र बने हैं, जहां मजा भी आया हो, इस पर वे याद करते हुए कहते हैं, ‘‘प्लेन की सवारी में हम काफी मजे करते हैं. पिचकारी ले कर चलते हैं. कोई सो रहा हो तो उस के ऊपर पानी फेंकते हैं. अगर कोई अधिक खर्राटे मारता है तो उस के जूते के फीते निकाल देते हैं या बांध देते हैं, ऐसा चलता रहता है.’’

कौमेडी में किस बात का ध्यान रखना जरूरी है, इस पर उन की राय कुछ यों है, ‘‘जो भी कहें, अच्छा जोक हो, ‘बिलो द बैल्ट’ न हो, डबल मीनिंग वाले शब्द न हों, किसी को दुख न पहुंचे इस का खयाल हो. परिवार के साथ बैठ कर देखने लायक हो.’’

किस कौमेडियन के फैन हैं? इस पर हरभजन कई नाम लेते हुए कहते हैं, ‘‘मुझे पुराने और नए सभी कौमेडियन पसंद हैं. अभी कपिल शर्मा, राजू श्रीवास्तव, कृष्णा अभिषेक, सुदेश लाहिड़ी, सुनील ग्रोवर पसंद हैं. कई पाकिस्तानी कौमेडियन बहुत अच्छी कौमेडी करते हैं. कौमेडी में चेहरे के भाव और संवाद खास माने रखते हैं.’’

खेल के साथ इस शो को मैनेज करने के लिए वे कहते हैं, ‘‘अभी मैं कुछ समय के लिए फ्री हूं. वेस्टइंडीज के टूर में नहीं हूं. मैं अभी मुंबई में भी हूं. इस की शूटिंग भी रोजरोज नहीं होती. ऐसे में बाकी चीजें भी तो करनी हैं और जब मौका मिलता है तो कर लिया. बारिश की वजह से प्रैक्टिस इंडोर ही होती है. मैं जिम और दूसरे काम कर रहा हूं, हालांकि क्रिकेट मेरी पहली प्राथमिकता है. ड्रैसिंग रूम का माहौल काफी मजाकिया होता है. ड्रैसिंगरूम में गाने चलते रहते हैं, सब का मुंह चलता रहता है, सब कुछ न कुछ खाते रहते हैं. आजकल तो अच्छीअच्छी चीजें रखते हैं, जिन में खासकर ड्राईफ्रूट्स होता है. क्रिकेट एक हाईप्रैशर गेम है, उस के तनाव को ले कर अगर आप ड्रैसिंगरूम में आ गए तो आप ग्राउंड पर अच्छा परफौर्मेंस नहीं कर पाएंगे. इसलिए हम वहां अपनेआप को तनावमुक्त रखते हैं. थोड़ा सोना, रैस्ट करना आदि करते हैं. खाना खाते हुए हम कोई भी हास्य शो देखते हैं. कभी खेल अच्छा होता है तो कभी खराब. न्यूज वाले भी हमें गालियां देते हैं. सभी लोग सभी कुछ अच्छा देखना चाहते हैं.’’

जिंदगी में कोई मलाल रह गया है? इस पर वे कहते हैं, ‘‘नहीं, मैं कहां से आया हूं, मुझे पता है. आज मैं कहीं भी जा सकता हूं, कुछ भी कर सकता हूं, कुछ भी खा सकता हूं, यह मेरे लिए बहुत है. लोगों से मिलना, बात करना आदि सब हो रहा है. कोई मलाल नहीं. मेरा दोस्त संदीप मेरे काम का ध्यान रखता है.’’

खेल में राजनीति का प्रभाव खिलाडि़यों पर कितना पड़ता है? इस पर वे बताते हैं कि हर काम में राजनीति होती है. कोई न कोई आप की टांग खींचने में लगा रहता है. लाइफ ऐसी ही होती है. अगर आप स्ट्रौंग हैं तो आप इसे डील कर लेते हैं. हार गया जो, वह बंदा ही नहीं है. वह दौर अगर निकल गया तो आप का रास्ता आसान हो जाता है.     

मुश्किलों से लड़ कर जीता पदक

ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में आयोजित पैरालिंपिक में विजेताओं की जितनी प्रशंसा की जाए,कम है. सब की कहानी एक से बढ़ कर एक. किसी के हाथ नहीं हैं तो किसी के पैर काम नहीं करते, तो कोई रीढ़ की हड्डी से लाचार है पर इन शारीरिक परेशानियों को इन्होंने कमजोरी नहीं समझा, बल्कि इन्हीं कमजोरियों को इन्होंने हथियार बनाया और अपनेअपने सपनों को पूरा किया.

राजस्थान के चुरु जिले के देवेंद्र झाझरिया ने जैवलिन थ्रो के एक 46 इवैंट में 63.97 मीटर जैवलिन फेंक कर एथैंस ओलिंपिक में 62.15 मीटर के वर्ष 2004 के अपने ही रिकौर्ड को तोड़ते हुए गोल्ड मैडल जीता.

36 साल के देवेंद्र जब 8 साल के थे तो पेड़ पर चढ़ते वक्त 11 हजार वोल्ट की हाइटैंशन लाइन की चपेट में आ गए थे. डाक्टरों ने बहुत कोशिश की लेकिन अंत में उन का बायां हाथ काटना पड़ा.

हरियाणा की रहने वाली 45 वर्षीया दीपा मलिक ने महिला एफ-53 गोला फेंक स्पर्धा में 4.61 मीटर दूर गोला फेंक कर रजत पदक जीता. दीपा के कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है. पिछले 17 वर्षों से वे व्हीलचेयर पर हैं. वे सेना अधिकारी की पत्नी और 2 बच्चों की मां हैं. 17 साल से रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर होने के कारण वे चलफिर सकने में असमर्थ थीं. इस के लिए दीपा के 3 बड़े औपरेशन हो चुके हैं. जिस के लिए उन की कमर और पांव के बीच 183 टांके लगे थे.

दीपा में मेहनत करने व जनून की हद तक काम करने का दृढ़ निश्चय है. वे तैराकी में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पदक जीत चुकी हैं. उन की कड़ी मेहनत की वजह से पूरी दुनिया आज दीपा के जज्बे को सलाम ठोक रही है.

इसी तरह तमिलनाडु के मरियप्पन थंगवेलु ने पुरुषों के टी-42 ऊंची कूद मुकाबले में 1.89 मीटर की छलांग लगा कर स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया.

मरियप्पन तमिलनाडु के सेलम जिले के छोटे से गांव पेरिया 95 खनपट्टी के रहने वाले हैं. जब वे 5 वर्ष के थे तो एक बस ने उन के दाएं पांव को कुचल दिया. कुली का काम करने वाले पिता और सब्जी बेचने वाली मां के बेटे मरियप्पन ने अपने दर्द को ताक पर रख कर जोश व जज्बे को जिंदा रखा और देश का नाम रोशन किया.

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के जमालपुर गांव के रहने वाले वरुण सिंह भाटी ने 1.86 मीटर कूद कर जैसे ही कांस्य पदक जीता तो पूरा देश व प्रदेश उन की कड़ी मेहनत की सराहना करने लगा.

21 वर्षीय वरुण को बचपन में ही पोलियो हो गया था. मगर वरुण ने इस से हार नहीं मानी. वे स्कूल के दिनों से ही एक अच्छे ऐथलीट रहे हैं. पर पिछले 2 वर्षों से उन्होंने कड़ी मेहनत की थी जिस का नतीजा आज सब के सामने है.

रियो ओलिंपिक में इस बार भारत ने अपनी सब से बड़ी टीम भेजी थी और कयास लगाया जा रहा था कि कम से कम 10-15 पदक तो आएंगे ही. पर मात्र

2 पदक ही भारत की झोली में आए. जबकि रियो ओलिंपिक खेलों की तैयारियों व संसाधनों के मुकाबले उपेक्षित पैरालिंपिक के खिलाडि़यों ने बहुत ही सीमित सुविधाओं के बीच बेहतर प्रदर्शन किया और अपनी शारीरिक व मानसिक कमी को पीछे छोड़ देश का नाम रोशन किया.

पैरा स्पोर्ट्स के बारे में इतनी चर्चा कभी नहीं हुई थी पर अब मीडिया में भी इस की खबरें बढ़चढ़ कर आने लगी हैं. हालांकि दीपा मलिक मानती हैं कि पैरा स्पोर्ट्स को ले कर नीतियां और सुविधाएं देश में बेहतर हैं पर लोगों में इसे ले कर जागरूकता नहीं है. दुख की बात यह है कि समाज अपंग व्यक्ति को लाचार समझता है. उसे सामाजिक कलंक मान लिया जाता है, उसे कभी प्रोत्साहित नहीं किया जाता. अपंग व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति दिखाई जाती है पर उन्हें आगे बढ़ाने के बारे में कोई नहीं सोचता. देवेंद्र, मरियप्पन, दीपा व वरुण ने कभी भी अपंगता को अपनी कमजोरी नहीं बनाई बल्कि उन कमजोरियों को धता बता कर यह साबित कर दिया कि अपंगता सामाजिक कलंक या बोझ नहीं. जोश व जज्बा हो तो कुछ भी असंभव नहीं है.

हालांकि तमाम उत्साह व मैडलों के बीच चिंताजनक पहलू यह भी है कि हम ओलिंपिक खेलों में पड़ोसी देश चीन के सामने मुकाबले में तो दूर आसपास भी नहीं टिकते. आबादी व पिछड़ना शर्मिंदगी का विषय है. खेल की दुनिया में हमारा मुख्य फोकस चीन की तरह जबरदस्त प्रतिभा दिखाना होना चाहिए.

चिढ़ गए सलमान

इसे सलमान का ईगो कहें या फिर दुश्मनी निभाने में माहिराना तेवर, कि वे जिस के पीछे पड़ जाते हैं उसे बदनाम, बेरोजगार और काफी हद तक तक बरबाद कर के ही दम लेते हैं. हिमेश रेशमिया और विवेक ओबेराय से ले कर ऋतिक रोशन इस बात की तसदीक करते हैं. इस बार उन के हत्थे चढ़ गए हैं गायक अरिजीत सिंह. पहले सलमान ने उन का गाया गीत फिल्म ‘सुलतान’ से हटवाया. अब सुना है कि उन की अगली फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ में भी अरिजीत सिंह एक गाना गा रहे हैं लेकिन डर है कि कहीं सलमान सुलतान की तह फिर से उस गाने को फिल्म से हटवा न दें. हालांकि वे सलमान से माफी भी मांग चुके हैं.

अजय-करण की नूराकुश्ती

यशराज फिल्म्स ने अभिनेता अजय देवगन के साथ कुछ साल पहले ‘जब तक है जान’ और ‘सन औफ सरदार’ की रिलीज के दौरान ज्यादा सिनेमाघरों में कब्जा किया तो अजय देवगन ने खुल कर मामले की शिकायत कर अपने साथ हुई नाइंसाफी का हिसाब मांगा. अब वही देवगन करण जौहर का स्टिंग औपरेशन कर साबित करने में जुटे हैं कि करण  ने उन की फिल्म ‘शिवाय’ को मैदान से खदेड़ने और अपनी फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ के लिए हवा बनाए रखने के लिए स्वघोषित समीक्षक और पिटे हुए अभिनेता कमाल आर खान को पैसे खिलाए हैं ताकि कमाल फिल्म ‘शिवाय’ की जम कर बुराई करें. बहरहाल, करण  और अजय की इस नूराकुश्ती में कमाल नाम का मुंहफट शख्स खूब सुर्खियां बटोर रहा है.  

फिल्म से पहले राष्ट्रगान

नवोदित अभिनेता हर्ष नागर, जिन की फिल्म ‘लव डे’ रिलीज हुई है, चाहते हैं कि सिनेमाघरों में फिल्म शुरू करने से पहले राष्ट्रगान चलाना अनिवार्य किया जाए. इस बाबत यह युवा अभिनेता कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिख चुका है. इस मांग से संबंधित पत्र हर्ष नागर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ केंद्रीय मंत्रियों वेंकैया नायडू, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अरुण जेटली को भी लिखा है.

हर्ष नागर बताते हैं, ‘कुछ साल पहले मैं दक्षिण भारत गया था. वहां एक थिएटर में राष्ट्रगान चलाया जाता है और मुझ से राष्ट्रगान के दौरान सीट से खड़ा होने को कहा गया. जब मैं मुंबई शिफ्ट हुआ, तो वहां के सिनेमाघरों में मुझे यही कुछ देखने को मिला.’ अपनी इस मुहिम को ले कर हर्ष नागर बेहद संजीदा हैं.

रिश्वत का सच

कई बार सच बोलना न सिर्फ मजाक का पात्र बना देता है बल्कि कानूनी झमेले में भी उलझा देता है. टीवी कलाकार कपिल शर्मा, जो अपने फूहड़ और पौपुलर हास्य के लिए कई सैलिब्रिटी से ज्यादा फीस पाते हैं, ने पिछले दिनों बीएमसी यानी बृहन मुंबई महानगरपालिका के एक अधिकारी की ओर से 5 लाख रुपए की रिश्वत मांगे जाने का आरोप लगाते हुए ट्वीट किया था. हालांकि इस बात के सुबूत जमा करना बेचारे भूल गए. फिर क्या था. उलटा  बीएमसी ने कपिल शर्मा के खिलाफ अवैध निर्माण को ले कर केस दर्ज करा डाला. बीएमसी के उप इंजीनियर अभय जगताप ने इस संबंध में थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. बेचारे कपिल ने अपने ट्वीट में पीएम मोदीजी क्या मैंशन किया, उन की टैंशन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही.

प्रतिभा की उपेक्षा

फिल्मी दुनिया 2 थ्योरियों पर चलती है. पहली यह कि यहां सिर्फ कला और प्रतिभा की कद्र होती है और शौर्टकट की कोई जगह नहीं भाई. इस के इतर दूसरी थ्योरी, पहली थ्योरी की धज्जियां उड़ाती हुई कहती है कि प्रतिभा और कला किसी चूहे की तरह बिल में दुम दबा कर दुबक जाती हैं जब बगैर प्रतिभा के गोरी चमड़ी वाले कलाकार फिगर और सैक्सी इमेज के दम पर करोड़ों कमाते हैं. आजकल के ज्यादातर कलाकार इन्हीं दोनों थ्योरियों पर गाहेबगाहे अपनी त्योरियां चढ़ाते रहते हैं. अभिनेत्री स्वरा भास्कर पहली वाली थ्योरी की हिमायती हैं, इसलिए कहती हैं कि बौलीवुड में कलाकारों को उन के सौंदर्य के आधार पर आंका जाता है. इस सबक ने मुझे इस कहावत का अनुसरण करना सिखा दिया कि अगर आप रोम में हैं, तो वही करें जो रोमेनियन करते हैं.

रिश्ते बेहद जटिल हो गए हैं: इलियाना डिक्रूज

गोआ की इलियाना डिक्रूज ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत टौलीवुड से की. करीब 18 फिल्मों के बाद अनुराग बसु की फिल्म ‘बर्फी’ से बौलीवुड में कदम रखते हुए उन्होंने एक संजीदा अदाकारा के रूप में अपनी पहचान बनाई. मगर उस के बाद वे ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’, ‘मैं तेरा हीरो’, ‘हैप्पी ऐंडिंग’ जैसी कमर्शियल फिल्में करती रहीं. पर इस बार फिर इलियाना डिक्रूज ने रिश्तों की बात करने वाली एक संजीदा फिल्म ‘रुस्तम’ में अक्षय कुमार के साथ अभिनय कर सब को चौंका दिया है. इस में इलियाना ने एक ऐसी औरत का किरदार निभाया जो अपने पति को धोखा दे कर दूसरे पुरुष के साथ प्रेम संबंध बनाती है. चूंकि फिल्म बेहद सफल हो चुकी है और उन का काम भी खासा पसंद किया जा रहा है तो उन का उत्साहित होना स्वाभाविक है.

इलियाना से जब मुलाकात हुई, तो उन के कैरियर के अलावा रिश्तों को ले कर भी बातचीत हुई, बौलीवुड में ‘बर्फी’ से ले कर ‘रुस्तम’ तक के अपने कैरियर को ले कर वे कहती हैं, ‘‘मैं ने कभी कुछ प्लान नहीं किया. मुझे जो भी अवसर मिले वे अच्छे ही मिले. मैं हमेशा कहानी, किरदार आदि पर ध्यान देते हुए सोचती हूं कि यह फिल्म अच्छी है. लोगों को पसंद आएगी, उन्हें मनोरंजन मिलेगा, तो मैं कर लेती हूं. सच कह रही हूं मैं ने ‘बर्फी’ भी प्लान कर के नहीं की थी. ‘रुस्तम’ भी प्लान कर के नहीं की.’’

फिल्म ‘रुस्तम’ में सिंथिया का किरदार निभाया जो कि वैवाहिक होते हुए भी दूसरे पुरुष के साथ संबंध रखती है. क्या समाज में आप को ऐसे पात्र नजर आते हैं? इस पर उन का जवाब है, ‘‘जी हां, अब यह सब बहुत आम नजर आने लगा है. मुझे लगता है कि पहले भी यह सब होता था, पर शायद पुराने जमाने में इस बारे में बातें नहीं होती थीं. पर अब लोग इतने स्वतंत्र हो गए हैं कि खुल कर बातें करते हैं. सिर्फ पति की ही तरफ से नहीं, बल्कि पत्नी की तरफ से भी समस्याएं पैदा होती हैं. दोनों के अवैध संबंध हो सकते हैं. मुझे लगता है कि वर्तमान में पति व पत्नी दोनों ने समझौता कर लिया है. दोनों को पता होता है कि कौन क्या कर रहा है. दोनों के बीच अनकहा समझौता है कि, ‘हां मुझे पता है कि तुम घर से बाहर क्या कर रहे हो या कर रही हो, पर हम उस मुद्दे पर कभी बात नहीं करेंगे और हम साथ में रहेंगे.’ सच कहूं तो इस तरह एकसाथ रहना या इस तरह का अनकहा समझौता मेरी समझ से परे है. आज की तारीख में हर रिश्ता बहुत ज्यादा उलझा और बहुत अलग है.’’

तो क्या वे इस तरह के समझौतावादी रिश्तों के खिलाफ हैं? इस पर वे कहती हैं, ‘‘मैं कौन होती हूं किसी की जिंदगी पर टिप्पणी करने वाली. हर मर्द और औरत अपने हिसाब से जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र है. मुझे पता है कि मेरी कुछ सहेलियां और कुछ सहकलाकार भी इसी तरह के रिश्ते में रह रहे हैं. मैं ने कई बार उन से सवाल किया कि क्या उन्हें अच्छा लगता है कि उन के पति या पत्नी या जो आप के पार्टनर हैं,किसी और के साथ रिश्ता रखते हैं? तो उन्होंने बहुत साधारण सा जवाब दिया कि इस में कुछ भी गलत नहीं है. उन के जवाब से मुझे लगा कि जैसे यह सामान्य सी बात है.

‘‘शायद उन कपल्स के बीच इतना अधिक प्यार है कि उन्हें सबकुछ सामान्य लग रहा है. उन्हें लगता है कि पति या पत्नी का किसी अन्य से संबंध रखना एक छोटी सी बात है, इस से उन के अपने रिश्ते या वैवाहिक जिंदगी पर असर नहीं पड़ेगा. पर जहां तक मेरा अपना सवाल है, मैं इस तरह के रिश्तों से रिलेट नहीं कर सकती. मुझे नहीं लगता कि मैं कभी ऐसा कर पाऊंगी. मैं कभी किसी के साथ अपने पति को बांट नहीं पाऊंगी या अपने प्रेमी को बांट नहीं पाऊंगी. पर इन दिनों जिस तरह से समाज में रिश्ते जटिल होते जा रहे हैं, ऐसे में यदि 2 लोगों के बीच एक समझदारी है, एकदूसरे के प्रति इज्जत है, तो ठीक है. यह उन की अपनी समझ है.’’

तो क्या वे यह मानती हैं कि इस तरह के जो रिश्ते पल्लवित हो रहे हैं, वहां प्यार के बजाय एकदूसरे की जरूरत पूरी करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है? इस सवाल का जवाब वे कुछ यों देती हैं, ‘‘शायद, आज की तारीख में हर इंसान को धनदौलत व शोहरत चाहिए. हर कोई प्रतिस्पर्धा में आगे रहना चाहता है. इस के लिए लोग एकदूसरे पर निर्भर हो जाते हैं. शायद उन्हें  लगता है कि एकदूसरे के सहयोग से ही वे जीवन में आगे बढ़ सकते हैं. इसलिए भी आपसी रिश्तों में समझौता कर लेते हैं. इस संबंध में मैं गारंटी के साथ कुछ नहीं कह सकती. पर मैं ने ज्यादातर इस तरह के रिश्तों में देखा है कि वहां इज्जत का अभाव होता है. पति व पत्नी दोनों एकदूसरे की इज्जत नहीं करते हैं. दोनों को लगता है कि हम एकदूसरे की जरूरतें पूरी कर रहे हैं.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘मैं जब दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम कर रही थी तब मेरे एक सहकलाकार ने मुझे बताया था कि वह नारी स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाती है. तो मैं ने उस से कहा था कि नारी स्वतंत्रता के मुद्दे पर इतना हंगामा करने की जरूरत क्या है, नारी अपनेआप में महान है. बेवजह नारी स्वतंत्रता और नारी सशक्तीकरण के नारे लगाना बेवकूफी है. इस तरह की नारेबाजी कर के हम स्वयं नारी के महत्त्व को कम कर रहे हैं.’’

निजी जिंदगी में रोमांस को ले कर वे सोचते हुए बताती हैं, ‘‘मैं प्यार में यकीन करती हूं, शादी में यकीन करती हूं. मेरा मानना है कि कोई भी रिश्ता हो या शादी ही क्यों न हो, उस में खुशी ही मिलती है. पर इसे बनाए रखने के लिए हमें काफी मेहनत करनी पड़ती है. मैं खुशहाल औरत की जिंदगी जीना पसंद करती हूं. शादीशुदा जिंदगी सदैव खुशहाल नहीं हो सकती है. पर हमें उस के लिए प्रयास करने पड़ेंगे. रिलेशनशिप को मजबूत करने के लिए काम करना पड़ता है. उस में जितना अधिक परिवर्तन करते हैं,उतना ही वह टिकाऊ हो सकती है.’’

‘बर्फी’ जैसी फिल्म के बाद बौलीवुड में जो मुकाम मिलना चाहिए था, वह क्यों नहीं मिला? इस बाबत इलियाना कहती हैं, ‘‘देखिए, ‘बर्फी’ की रिलीज के बाद मेरे पास ‘बर्फी’ जैसी बंगाली लड़की के किरदार के औफर बहुत आए. पर मैं किसी एक तरह की इमेज में बंधना नहीं चाहती थी. दक्षिण भारत में 15 सुपरहिट फिल्में कर के सुपरस्टार बनने के बाद बर्फी जैसी एक लीक से हट कर फिल्म में अभिनय करना मेरे लिए एक चुनौती थी. मैं ने अपने कैरियर में पहली बार ‘बर्फी’ जैसी फिल्म की थी. जिसे करने के लिए मेरे कई सहकलाकारों ने मना किया था. इस से पहले मैं ने टौलीवुड में कमर्शियल व मसाला फिल्में ही की थीं. पर मैं ने बौलीवुड में कुछ अलग काम करने के मकसद से ‘बर्फी’ की थी.’’

किसी फिल्म के किसी किरदार ने आप की जिंदगी पर प्रभाव डाला? इस सवाल पर वे कहती हैं, ‘‘यों तो हर किरदार का मेरी जिंदगी पर कुछ न कुछ असर रहा है पर ‘बर्फी’ और ‘रुस्तम’ के किरदारों ने मेरी जिंदगी पर काफी असर डाला. ‘बर्फी’ करते हुए मुझे लगा कि मैं थोड़ा मैच्योर हो रही हूं. मुझे लगा कि अब रिश्ते ज्यादा समझ में आने लगे हैं जबकि ‘रुस्तम’ करने के बाद तो रिश्तों के प्रति समझदारी बढ़ी है. पतिपत्नी के रिश्ते में भावनात्मक संबंध बहुत जरूरी होता है. यदि यह कहूं तो इन 2 फिल्मों के किरदारों ने मुझे जिंदगी व रिश्तों को समझने में मदद की, तो कुछ भी गलत नहीं होगा.’’

‘बर्फी’ और ‘रुस्तम’ में जो रिश्ते चित्रित किए गए हैं, उन में उन्हें क्या अंतर लगता है? इस पर वे कहती हैं, ‘‘दोनों फिल्मों की कहानी और इन फिल्मों में जो रिश्ते दिखाए गए हैं, उन में जमीनआसमान का अंतर है.‘बर्फी’ में मेरा किरदार टीनएजर का था. उस में मैच्योरिटी नहीं थी. उस वक्त मेरी समझ में भी नहीं आ रहा था कि यह लड़की क्या करेगी? जबकि ‘रुस्तम’ में मेरा सिंथिया का किरदार एक मैच्योर औरत का है. वह शादीशुदा है. वह एक ऐसी परिपक्व औरत है जो कि गलती करती है. उसे गलती का एहसास भी है और उस गलती से उबरना चाहती है. गलती का एहसास भी होने के बाद उसे समझ में नहीं आता कि वह क्या करे? ‘बर्फी’ में मेरा किरदार मासूम था, ‘रुस्तम’ में मैच्योर है पर मजबूर है.’’

दक्षिण टौलीवुड को हमेशा के लिए बायबाय कहने की बात पर इलियाना कहती हैं, ‘‘फिलहाल तो पूरा ध्यान बौलीवुड में है. पर कल को कुछ बहुत ही चुनौतीपूर्ण व एक्साइटिंग किरदार निभाने का औफर मिले, तो दक्षिण में फिर से जा कर काम कर सकती हूं. दोनों में संतुलन बिठाना पड़ता है. रही बात दोनों इंडस्ट्री के फर्क की तो दक्षिण भारत में मैं सिर्फ शूटिंग करती थी. वहां पर मैं डबिंग नहीं करती थी. यहां पर हमें शूटिंग पूरी होने के बाद डबिंग भी करनी पड़ती है. डबिंग करने का अर्थ होता है फिल्म को फिर से करना. वहां पर प्रमोशन भी नहीं होता था, तो मेरा इन्वौल्वमैंट कम होता था. बौलीवुड में रिहर्सल बहुत होते हैं. मुझे दक्षिण भारत में काम करने का बहुत अनुभव है मगर बौलीवुड में काम करने का अनुभव एकदम अलग है. मैं यह नहीं जानती थी कि कभीकभी डबिंग अभिनय में मददगार भी होती है.’’   

भाजपा में ‘बाहर वालों’ से परेशान ‘घर वाले’

भाजपा में ‘बाहर वालों’ बनाम ‘घर वालों’ के बीच पाला खिच चुका है. यह मैच जीत हार के फैसले पर चुनाव के बाद पहुंचेगा. पर इसका असर पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर पड़ेगा. भाजपा के लोग मानते हैं कि जब पार्टी के पक्ष में हवा चल रही है तो बाहरी नेताओं को शामिल क्यो किया जा रहा है? बाहरी नेता घर वालों से तालमेल के पक्ष में न होकर पार्टी हाईकमान के आगे पीछे घूमने में ही लगे हैं. जिससे बाकी संगठन में अंसतोष बढ़ रहा है.

असल में भाजपा में बड़ी संख्या में बाहरी नेताओं को शामिल किया जा रहा है जो दलबदल कर आ रहे हैं. इनमें से ज्यादातर अपने लिये और कुछ लोग अपने परिवार के लोगों के लिये विधानसभा का टिकट मांग रहे हैं और इसी शर्त पर वह भाजपा में शामिल भी हो रहे हैं. इससे भाजपा के वह कार्यकर्ता परेशान हो रहे हैं जो सालों साल से पार्टी के साथ अपना, खून पसीना बहा रहे हैं. बाहर से आने वाले यह नेता पार्टी के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्व भी नहीं है. कई लोग तो ऐसे भी है जो कल तक भाजपा उसकी नीतियों और नेताओं को पानी पी पी कर कोसते थे. अब भाजपा के साथ हैं.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उत्तर प्रदेश में एक ऐसी टीम बनाना चाहते हैं जो पूरी तरह से उनके दबाव में रहे. पार्टी के दूसरे नेताओं के गुट में शामिल न हो. जिससे उनके आदेश का कहीं से कोई उल्लघंन न हो सके. प्रदेश के किसी नेता का कद बढ़ाने का काम नहीं किया जा रहा है. यही वजह है कि भाजपा मुख्यमंत्री पद के लिये अपना चेहरा सामने नहीं ला रही है. अमित शाह की सोच है कि सीनियर नेताओं को किनारे करके जूनियर नेताओं की एक टीम तैयार हो, जो उनके किसी काम में हस्तक्षेप न कर सके. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 को लेकर भाजपा ने अभी भी अपने सभी प्रत्याशी घोषित नहीं किये हैं. इसकी वजह है कि भाजपा दूसरे दलों से उन लोगों को पार्टी में शामिल कर रही है जो विधानसभा सीट जितवाने की हैसियत रखता हो.

भाजपा के पुराने कार्यकर्ता अभी खुलकर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं, टिकट वितरण के समय इन लोगों का गुस्सा सामने आयेगा. कई नेता और कार्यकर्ता चुनाव में पूरी तैयारी के साथ नहीं लगेंगे. जिससे बाहरी नेताओं को हराया जा सके. इस तरह का भीतरघात दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सहना पड़ा था. जिसकी वजह से आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीत लिया. बाहरी नेता केवल अपनी सीट जीतने से मतलब रख रहा है. उसे बाकी काम से मतलब नहीं है. पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि बाहरी नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं से ठीक तरह से व्यवहार नहीं कर रहे.

यह लोग पार्टी कार्यालय तभी आते हैं जब राष्ट्रीय अध्यक्ष पार्टी कार्यालय आते हैं. कुछ बडे पदाधिकारियों को छोड़ कर यह बाहरी नेता किसी कार्यकर्ता की बात नहीं सुनते हैं. चुनाव जीतने में बूथस्तर तक के कार्यकर्ता की मेहनत शामिल होती है. यह हर दल को पता होता है. भाजपा में बाहरी नेताओं और घर वालों का जो विवाद चल रहा है उससे साफ लग रहा है कि पार्टी दो हिस्सों में बंटी है. इनके बीच आपस में कोई तालमेल नहीं है. लोकसभा चुनाव में भी यह मानसिकता थी कार्यकर्ता यह सोच रहा था कि उसे मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है. विधानसभा चुनाव में पार्टी का कोई ऐसा चेहरा सामने नहीं है जिसके नाम पर लोग एकजुट हो सके.

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