ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में आयोजित पैरालिंपिक में विजेताओं की जितनी प्रशंसा की जाए,कम है. सब की कहानी एक से बढ़ कर एक. किसी के हाथ नहीं हैं तो किसी के पैर काम नहीं करते, तो कोई रीढ़ की हड्डी से लाचार है पर इन शारीरिक परेशानियों को इन्होंने कमजोरी नहीं समझा, बल्कि इन्हीं कमजोरियों को इन्होंने हथियार बनाया और अपनेअपने सपनों को पूरा किया.

राजस्थान के चुरु जिले के देवेंद्र झाझरिया ने जैवलिन थ्रो के एक 46 इवैंट में 63.97 मीटर जैवलिन फेंक कर एथैंस ओलिंपिक में 62.15 मीटर के वर्ष 2004 के अपने ही रिकौर्ड को तोड़ते हुए गोल्ड मैडल जीता.

36 साल के देवेंद्र जब 8 साल के थे तो पेड़ पर चढ़ते वक्त 11 हजार वोल्ट की हाइटैंशन लाइन की चपेट में आ गए थे. डाक्टरों ने बहुत कोशिश की लेकिन अंत में उन का बायां हाथ काटना पड़ा.

हरियाणा की रहने वाली 45 वर्षीया दीपा मलिक ने महिला एफ-53 गोला फेंक स्पर्धा में 4.61 मीटर दूर गोला फेंक कर रजत पदक जीता. दीपा के कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है. पिछले 17 वर्षों से वे व्हीलचेयर पर हैं. वे सेना अधिकारी की पत्नी और 2 बच्चों की मां हैं. 17 साल से रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर होने के कारण वे चलफिर सकने में असमर्थ थीं. इस के लिए दीपा के 3 बड़े औपरेशन हो चुके हैं. जिस के लिए उन की कमर और पांव के बीच 183 टांके लगे थे.

दीपा में मेहनत करने व जनून की हद तक काम करने का दृढ़ निश्चय है. वे तैराकी में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पदक जीत चुकी हैं. उन की कड़ी मेहनत की वजह से पूरी दुनिया आज दीपा के जज्बे को सलाम ठोक रही है.

इसी तरह तमिलनाडु के मरियप्पन थंगवेलु ने पुरुषों के टी-42 ऊंची कूद मुकाबले में 1.89 मीटर की छलांग लगा कर स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया.

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