तेरे माथे की बिंदिया से
कुछ याद नहीं आता
चमकती चूंडि़यों की खनक
माथे में सुर्ख सिंदूर
सुहागन का सा सौंदर्य
देख कर भी
कुछ याद नहीं आता
वो हसीन पल
जो हमारे अपने थे
दफन हैं किसी तहखाने के भीतर
इसीलिए शायद
कुछ याद नहीं आता
न करो कोशिश अब
कुछ याद दिलाने की मुझे
कुछ याद नहीं आता
बंद कमरे में चीख लूंगा
जी भर कर रो लूंगा
स्मृतियों को आंसुओं से ढक लूंगा
तब भी यही कहूंगा
कुछ याद नहीं आता.
– सम्राट विद्रोही
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