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पोकीमौन गो की दीवानगी

स्मार्टफोन के बढ़ते वर्चस्व ने मोबाइल गेम्स के क्रेज को काफी बढ़ा दिया है. इन्हीं गेम्स में एक है पोकीमौन गो, जिस की दीवानगी किशोरों में आजकल इस कदर बढ़ रही है कि उन्हें अपनी जान की भी परवा नहीं है. ऐसे में जहां ये गेम्स ऐंटरटेनमैंट देते हैं वहीं खतरा भी बने हुए हैं. इसलिए लिमिट में रह कर खेलें ताकि इन के दुष्परिणामों से बचा जा सके.

दुनिया में जब से वीडियो गेम्स आए हैं, उन्हें ले कर काफी सनसनी रही है. पहले ऐसे गेम्स केवल टीवी स्क्रीन्स पर खेले जाते थे, फिर इन के लिए ऐक्सबौक्स जैसे प्रबंध होने लगे. लेकिन हाल के वर्षों में स्मार्टफोन पर खेले जाने वाले मोबाइल गेम्स ने लोगों को काफी क्रेजी किया है. जैसे कि सब वे सर्फर और कैंडी क्रश आदि. इस क्रम में नई सनसनी फैली है 8 जुलाई, 2016 को अमेरिका में लौंच किए गए मोबाइल गेम ‘पोकीमौन गो’ से.

हालांकि शुरुआत में इसे अमेरिका, न्यूजीलैंड समेत कुछ ही देशों में लौंच किया गया, लेकिन लोगों ने अपनी मोबाइल सैटिंग में बदलाव करते हुए इसे भारत में भी खेलने का प्रबंध कर लिया. दुनियाभर में इसे खेलने वालों की संख्या अब करोड़ों में पहुंच गई है और दावा किया गया है कि जल्द ही यह सोशल मीडिया साइट ट्विटर को पीछे छोड़ देगा.

क्या है पोकीमौन गो

यह एक तरह का वीडियो गेम है जिसे इंटरनैट से लैस स्मार्टफोन पर खेला जाता है. इस की असली शुरुआत जापान में एक कौमिक्स शृंखला ‘पोकीमौन’ से हुई थी, जो ‘पोकीमौन मौन्स्टर’ का संक्षिप्त नाम था. इस का असली अर्थ है जेब में पड़ा हुआ राक्षस. पोकीमौन की रचना करने वाले जापान के मशहूर डिजाइनर सतोशी ताजिरी ने 1990 में इस गेम की एक रूपरेखा तैयार की थी.

सतोशी ताजिरी वही शख्स हैं जो इमोजी बना कर काफी पहले ही ख्याति बटोर चुके हैं. इस के पात्रों के रूप में सतोशी ने बागबगीचों और जंगलों में मिलने वाले कीटपतंगों जैसे कार्टूनों की रचना की, बाद में 1996 में एक अन्य डिजाइनर केन सुगिमोरी ने निन्टेंडो लैब्स लिमिटेड नामक कंपनी के साथ काम करते हुए पोकीमौन गेम के लिए 151 नए कैरेक्टर बनाए और इन्हें कौमिक्स से निकाल कर वीडियो गेम के रूप में पेश किया.

इस तरह खेला जाता है यह गेम

इस गेम में खिलाड़ी अपने स्मार्टफोन के जरिए असली दुनिया में अलगअलग जगहों पर मौजूद वर्चुअल (आभासी) दैत्यों की तलाश करते हैं और उन्हें वर्चुअल ढंग से पकड़ते व मारते हैं. असल में यह गेम एक तरह की वर्चुअल रिएलिटी पर आधारित  है. पोकीमौन गो लोगों के मोबाइल फोन (स्मार्टफोन) के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम और घड़ी का इस्तेमाल करता है. जब कोई व्यक्ति इसे खेलना शुरू करता है, तो उसे फोन पर कार्टून जैसे जंगली जीव यानी पोकीमौन नजर आने लगते हैं. जैसेजैसे गेम में आगे बढ़ा जाता है, लोगों को फोन की स्क्रीन पर कुछ और नए किस्म के पोकीमौन दिखाई देने लगते हैं. यह एक ऐसा गेम है जिस में खेलने वाले को घर के बाहर निकलना पड़ता है. अलगअलग स्थानों पर अलगअलग पोकीमौन मिलते जाते हैं, जिन्हें पकड़ना और मारना एक चुनौती है. इस चुनौती से जूझने में ही लोगों को मजा आता है. गेम के आगे बढ़ने के साथ ही आसपास दूसरे पोकीमौन भी तेजी से दिखने शुरू हो जाते हैं. इन के करीब आने पर इन्हें पकड़ा और इन के साथ खेला जा सकता है.

इसे खेलने के लिए लोगों को अपने गूगल अकाउंट के जरिए लौग इन करना पड़ता है. लौग इन या साइन इन करने के बाद पोकीमौन की ड्रैस चुनने को कहा जाता है. इस गेम में पोकीबौल, इंसैंस, एग इंक्यूबेटर जैसी चीजों का इस्तेमाल होता है जो शुरुआत में ही इस गेम के बैग में मिल जाती हैं. इस्तेमाल होने पर जब ये चीजें खत्म हो जाती हैं, तो इन्हें मोबाइल ऐप के जरिए खरीदा जा सकता है. हर पोकीमौन की अपनी लड़ने की क्षमता होती है जो कुछ देर में खत्म हो जाती है.

इसलिए गेम में आगे बढ़ने के लिए नएनए पोकीमौन खोजते रहना जरूरी है जो किसी शहर में अलगअलग स्थानों पर फैले हो सकते हैं. इसलिए इसे खेलने वाला व्यक्ति शहर की अलगअलग जगहों पर जाएगा और जितना ज्यादा चल कर नए पोकीमौन खोजेगा, गेम में उस का लैवल उतना ही बढ़ता जाएगा. यह गेम कुछ जरूरी चीजों के बिना नहीं खेला जा सकता है, इसलिए खेलने वाले को उन की जानकारी होना भी जरूरी है, जैसे :

एग इंक्यूबेटर

दरअसल, यह गेम ‘एग’ के जरिए ही आगे बढ़ता है. एग हासिल करने के बाद उन्हें इंक्यूबेटर में रखा जाता है, जिस से कुछ निश्चित किलोमीटर तक चला जा सकता है या कहें कि ये एग ही कुछ किलोमीटर तक चलने की पावर देते हैं. चूंकि यह गेम रिएलिटी पर आधारित है इसलिए इसे खेलने वाले को असल में पैदल या किसी वाहन से निश्चित किए गए किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है, उस के बाद ही नए पोकीमौन नजर आते हैं.

इसैंस

यह एक वर्चुअल खुशबू है, जिस की सहायता से पोकीमौन को आधे घंटे तक उलझाए रखा जा सकता है.

पोकीबौल

यह एक किस्म का कांटा है जिस की सहायता से पोकीमौन को पकड़ा जा सकता है. पोकीबौल स्क्रीन पर नजर आते ही उसे तब तक दबा कर रखा जाता है, जब तक कि पोकीमौन के आसपास हरी रिंग न नजर आए. यह रिंग धीरेधीरे छोटी होने लगती है. इस रिंग में से ही पोकीबौल ले कर पोकीमौन को मारना होता है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि पोकीबौल्स खरीदने के लिए ‘पोकस्टौप्स’ पर जाना होता है, जो शहर में अलगअलग फैले हो सकते हैं.

स्टारडस्ट

पोकीमौन को पकड़ने पर ‘स्टारडस्ट’ जैसी पावर मिलती है जो गेम में आगे काफी काम आती है.

प्रोफैसर

अगर किसी ने गेम खेलने के दौरान ज्यादा पोकीमौन इकट्ठे कर लिए हैं और वह उन्हें अपने पास नहीं रखना चाहता तो वह इन्हें ‘प्रोफैसर’ नामक विकल्प के जरिए बेच कर उन के बदले कैंडी ले सकता है. ये कैंडी गेम में आगे काम आती हैं.

कई मुसीबतें भी ला रहा पोकीमौन गो

वैसे तो किशोरों को यह गेम इतना पसंद आ रहा है कि वे इस में नए से नए रिकौर्ड बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे निक जौनसन नामक 28 वर्षीय अमेरिकी नागरिक ने 2 हफ्ते के अंदर अमेरिका में मौजूद सभी 4,629 पोकीमौन पकड़ने का रिकौर्ड बना डाला. इस के लिए उन्होंने रोजाना 8 से 10 किलोमीटर की यात्रा की और 2 हफ्ते में 153 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए इस गेम के 31 लैवल पार कर लिए. जौनसन का कारनामा इस गेम के प्रति लोगों की दीवानगी ही दिखा रहा है.

भारत में भी इस का काफी असर है. यहां लोगों ने मोबाइल सैटिंग में कुछ बदलाव कर के इस गेम को खेलना शुरू किया है, क्योंकि शुरुआत में यह इस गेम की कंपनी की तरफ से यहां उपलब्ध नहीं कराया गया, लेकिन इस की लोकप्रियता का आलम यह है कि दिल्ली के कनाट प्लेस में जुलाई के एक रविवार को पोकीमौन गो के दीवाने लोग एकसाथ जमा हुए और पोकीमौन पकड़ते दिखाई दिए. पर मनोरंजन से अलग इस गेम के कारण कई दुर्घटनाएं भी हो रही हैं.

असली और नकली दुनिया का फर्क मिटाने के कारण यह खेल दुनिया के लिए घातक साबित हो रहा है. जैसे अमेरिका के औरलेंडो में एक व्यक्ति ने ‘पोकीमौन गो’ गेम खेल रहे 2 किशोरों को चोर समझ लिया और उन पर गोली चला दी. दोनों किशोर रात को यह गेम खेल रहे थे और इसे खेलते हुए कार चलाते-चलाते औरलेंडो के उत्तरपूर्वी इलाके के पाम कास्ट एरिया जा पहुंचे, जहां एक व्यक्ति ने उन्हें अपने घर के बाहर देखा तो उन्हें चोर समझ लिया और उन पर गोली चला दी. पोकीमौन खेलते समय कार चलाने के कारण कई अन्य दुर्घटनाएं भी हो रही हैं. कुछ जगहों पर पोकीमौन को पकड़ने के लिए लोग पेड़ पर चढ़ रहे हैं, लेकिन वहां से उतरते वक्त फिसल कर घायल हो रहे हैं

सउदी अरब में तो इस गेम को एक गैरइसलामी गतिविधि करार देते हुए इस के खिलाफ फतवा जारी किया गया है. इसी तरह बोस्निया की सरकार ने जनता को चेताया है कि वे पोकीमौन को पकड़ने की कोशिश में खाली पड़ी उन खदानों पर न चढ़ जाएं जिन्हें खतरनाक घोषित करते हुए 90 के दशक में बंद कर दिया गया था.

मिस्र की सरकार ने इस गेम को प्रतिबंधित करने की आशंका जताते हुए कहा कि इस के जरिए लोग फोटो और वीडियो शेयर करते हैं, इसलिए इस से सुरक्षा को खतरा हो सकता है. रूसी सरकार ने भी इसी तरह की चेतावनी जारी की है.

रूस की एक वैबसाइट पर प्रकाशित चेतावनी में कहा गया है कि यह गेम असल में अमेरिकी जासूसी एजेंसी सीआईए की योजना का हिस्सा है.

कुवैत में पोकीमौन गो ऐप के जरिए सरकारी इमारतों के फोटो लेने पर प्रतिबंध लगाया गया है और सरकारी अधिकारियों को चेताया गया है कि वे यह गेम न खेलें, क्योंकि इस से उन का पर्सनल डाटा चोरी हो सकता है और वह अपराधियों के हाथ में पड़ सकता है.

इंडोनेशिया में भी इस गेम को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है और कहा गया है कि इस के जरिए देश के शत्रु सेना की इमारतोंप्रतिष्ठानों में सेंध लगा सकते हैं. इंडोनेशिया में तो एक फ्रांसीसी नागरिक को एक सैन्य बेस के नजदीक जासूसी के संदेह में गिरफ्तार भी किया गया, जबकि उस ने दावा किया है कि वह तो वहां मौजूद पोकीमौन पकड़ने के लिए गया था.

इजराईल में सैनिकों से कहा गया है कि वे हरगिज पोकीमौन गेम न खेलें, क्योंकि इस से उन की लोकेशन का खुलासा होता है. उधर दक्षिण कोरिया में सुरक्षा कारणों से गूगल मैप को डाउनलोड करने पर प्रतिबंध काफी पहले से लगा हुआ है, इसलिए वहां पोकीमौन गो गेम भी डाउनलोड नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह उसी से जुड़ा हुआ है.

और भी हैं करिश्मे

विज्ञान का करिश्मा कहलाने वाले मोबाइल गेम्स की शुरुआत असल में टीवी स्क्रीन पर खेले जाने वाले वीडियो गेम्स से ही हुई है. वीडियो गेम्स 1950 के दशक में ही सामने आ गए थे, लेकिन इन में थोड़ा रोमांच तब आया जब 1978 में टायटो नामक कंपनी ‘स्पेस इनवेडर’ नामक वीडियो गेम ले कर बाजार में आई थी. ये वीडियो गेम्स टीवी स्क्रीन्स पर खेले जाते थे, जिन में लगी हुई जौयस्टिक अपने बटनों के जरिए गेम्स पर कंट्रोल करने का मौका खिलाडि़यों को देती थी.

स्पेस इनवेडर बहुत शुरुआती किस्म का वीडियो गेम था, लेकिन इस के बाद उन में कई नए फीचर्स जोड़े जाने लगे. वे दिमागी तौर पर ज्यादा पहेलीनुमा या फिर जटिल होने लगे, उन में गति बढ़ गई और ज्यादा मनोरंजक हो गए. जैसे टायटो कंपनी के बाद दूसरी कई कंपनियों ने 90 के दशक में मारियो, कौंट्रा जैसे वीडियो गेम्स बनाए, जो काफी पसंद किए गए. ये सारे गेम्स लंबे समय तक दुनिया के किशोरों और बच्चों के दिलोदिमाग पर छाए रहे.

लेकिन 21वीं सदी में टीवी स्क्रीन की जगह स्मार्टफोन्स ने ले ली है और अब इन पर खेले जाने वाले कई मोबाइल गेम्स और स्मार्ट गेमिंग ऐप्स आ गए हैं. आधुनिक किस्म के इन गैजेट्स में पुराने दौर के वीडियो गेम्स मजेदार नहीं लगते थे इसलिए वीडियो गेम निर्माता ऐंग्री बर्ड, टैंपल रन, कैंडी क्रश, सब वे सर्फर जैसे गेम्स ले कर आए, जो पहले के मुकाबले काफी ज्यादा लोकप्रिय हुए.

गुस्सैल चिडि़या यानी ऐंग्री बर्ड

फिनलैंड की कंपनी रोवियो ऐंटरटेनमैंट ने वर्ष 2009 में इस गेम को बनाया था, जिस में गुस्सैल दिखने वाली चिडि़या अपने निशाने पर हमला करती है और उसे खत्म करती है. सटीक निशाना लगा कर इस खेल में पौइंट्स मिलते हैं, जिस से खेलने वाले खुश होते हैं. इसी कंपनी ने हाल में ऐंग्री बर्ड को एक फिल्म के रूप में भी पेश किया. मोबाइल पर अब तक 2 अरब लोग ऐंग्री बर्ड को डाउनलोड कर चुके हैं.

रंगीन टौफियां बांटता कैंडी क्रश

कैंडी क्रश मोबाइल गेम असल में 4 वर्ष पहले 2012 में फेसबुक के उपभोक्ताओं के लिए बनाया गया था. इस खेल में 330 लैवल होते हैं. खेल में एक जैसी दिखने वाली टौफियां (कैंडी) को एक लाइन में ला कर पौइंट बनाए जाते हैं. अब तक 50 करोड़ से ज्यादा लोग इसे अपने मोबाइल पर डाउनलोड कर चुके हैं.

टैंपल रन

वर्ष 2011 में शुरू किए गए इस गेम का उद्देश्य यह है कि रास्ते में चाहे जितनी बाधाएं आएं, इस के खिलाड़ी को दौड़ते रहना है. पिछले 5 वर्ष में इसे मोबाइल फोन पर डाउनलोड करने वालों की संख्या 50 करोड़ को पार कर चुकी है.

मंदिर से गए सब वे में यानी सब वे सर्फर

हर हाल में दौड़ते रहने का मकसद सब वे सर्फर में भी इसे खेलने वालों को पाना होता है. इस में रेल पटरियां होती हैं, जिन पर गेम के पात्रों को तेजी से दौड़ते समय कई तरह की बाधाएं आती हैं. बाधाओं को पार करते हुए पौइंट अर्जित करना ही लोगों को इस खेल का दीवाना बनाता है.

किस्सा फ्लैपीबर्ड का

इसे डौन गुएंग नामक शख्स ने अपने निजी कंप्यूटर पर बनाया था. गेम में एक चिडि़या फुदकती रहती है, जो अपनी हरकतों से लोगों का मन मोह लेती है. हालांकि 2013 में शुरू किए गए इस खेल को 2014 में ही डौन गुएंग ने बंद करने की घोषणा कर दी थी, लेकिन इसे भी दुनिया में 5 करोड़ लोग अपने मोबाइल फोन पर डाउनलोड कर चुके थे.             

जब आयुष खेड़ेकर को नहीं पता था कि ऑस्कर अवार्ड क्या होता है?

वक्त वक्त की बात है. महज सात वर्ष की उम्र में डैनी बोयले की ऑस्कर विजेता फिल्म ‘‘स्लमडाग मिलेनियर’’ में जमाल मलिक का किरदार निभाकर पूरे विश्व में शोहरत बटोरने के अलावा ‘स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड’ से सम्मानित आयुष खेड़ेकर अब सोलह वर्ष के हो गए हैं. सिविल इंजीनियर पिता महेश खेड़ेकर व शिक्षक माँ सयाली खेड़ेकर के बेटे आयुष खेड़ेकर को जब खबर मिली कि उनकी फिल्म ‘‘ऑस्कर अवार्ड’’ के लिए चुनी गयी है, तो उस वक्त तक आयुष को यह भी नहीं पता था कि ‘‘ऑस्कर अवार्ड’’ क्या होता है.

चार साल की उम्र से अभिनय करते आ रहे आयुष खेड़ेकर आज ग्यारहवीं कक्षा की पढ़ाई करने के साथ साथ योगेश पगारे की फिल्म ‘‘एक था हीरो’’ में शीर्ष भूमिका निभाकर शोहरत पा रहा है, तो उसे कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं लगता. खुद आयुष कहता है- ‘‘पहली फिल्म ‘स्लमडॉग मिलेनियर करने पर काफी शोहरत मिली थी. पर उस वक्त शोहरत क्या होती है, ऑस्कर अवार्ड क्या होता है, इसकी मुझे कोई समझ ही नहीं थी. मैंने यह फिल्म सात वर्ष की उम्र में की थी. जब हमने इस फिल्म में अभिनय किया था. उस वक्त हमें कभी नहीं लगा था कि इतनी शोहरत मिलेगी. लेकिन फिल्म की शूटिंग के दौरान निर्देशक डैनी बोयले का मोटीवेशन देखकर बहुत प्रभावित हुआ था.

जिस दिन ऑस्कर अवार्ड की घोषणा हुई, उस दिन मैंने अपने पिता के साथ बैठकर इंटरनेट पर ऑस्कर अवार्ड के बारे में जानकारी ली. तब मुझे खुशी हुई थी कि बड़े बड़े अंतर्राष्ट्रीय फिल्मकारों से मिलने का अवसर मिलेगा.

उसके बाद ऑस्कर अवार्ड के लिए हम भी अमरीका के लॉस एंजेल्स शहर गए थे. वहां काफी दिग्गज कलाकार, निर्माता व निर्देशक थे. मैं तो किसी को पहचानता नहीं था.पर उन लोगों ने मेरी फिल्म देखी थी, तो वह सभी मुझे पहचान रहे थे. पर मेरे मन में था कि काश! मैं भी उन लोगों को पहचानता होता, तो मैं उनके साथ अच्छी अच्छी तस्वीरें खिंचवाता. उस वक्त वहां कई कलाकारों ने मुझसे बहुत कुछ कहा था, पर मुझे कुछ भी याद नहीं रहा. उसके बाद तो मुझे कई अवार्ड मिल गए. मैने अमिताभ बच्चन, हृतिक रोशन के साथ विज्ञापन फिल्म कर ली. अब ‘एक था हीरो’ की है.’’

मूलतः मराठी भाषी आयुष खेड़ेकर ‘‘स्लमडॉग मिलेनियर’ करने के बाद से लगातार फिल्में करते आ रहे हैं. वह बताते हैं- ‘‘मैंने महेश मांजरेकर के साथ मराठी फिल्म ‘फक्त धग म्हणा’ की है. फिर क्रांति कनाड़े की फिल्म ‘‘गांधी ऑफ द मंथ’’ की है. यह पूरी मुंबईया मसाला फिल्म है. इसमें भी एक हॉलीवुड कलाकार हार्वे कैटल ने काम किया है. मैंने प्रकाश झा की फिल्म ‘‘जय गंगाजल’’ में नागेश नामक बच्चे का किरदार निभाया था. कुछ लघु फिल्में काफी की हैं. एक लघु फिल्म चाइल्ड एब्यूज पर की है. पंकज कपूर के साथ एक फिल्म ‘‘हैप्पी’’ की है, जिसे फिल्म फेस्टिवल में काफी अवार्ड मिले. अब मेरी फिल्म ‘‘एक था हीरो’’ 14 अक्टूबर को प्रदर्शित होने वाली है.’’  

नई बहू लाई पेट में बच्चा

यह दिलचस्प और हैरान कर देने वाला वाकिआ मध्य प्रदेश में भोपाल के परवलिया थाना इलाके का है. 9 जुलाई, 2016 को एक नौजवान जीवनलाल (बदला हुआ नाम) 20 साला सविता (बदला हुआ नाम) को गाजेबाजे के साथ ब्याह कर लाया था.  जिस ने भी बहू का मुंह देखा, वह उस की तारीफ किए बगैर नहीं रह सका. मेहमानों की आवाजाही हफ्तेभर तक चली और बाकायदा सारे नेगदस्तूर भी हुए. जीवनलाल के घर वालों की थकान अभी पूरी तरह उतरी भी नहीं थी कि शादी के ठीक 10 दिन बाद यानी 19 जुलाई, 2016 को सविता के पेट में दर्द होने लगा. बहू की हालत देख घबराए घर वाले उसे अस्पताल ले गए, तो पता चला कि यह कोई मामूली पेट दर्द नहीं था, बल्कि सविता मां बनने वाली थी. इस बात पर जीवनलाल और उस के घर वालों के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. सविता ने अस्पताल में एक बेटे को जन्म दिया, तो बजाय बधाइयों के उसे ताने सुनने पड़े.

गुस्साए ससुराल वालों ने सविता के मायके वालों को शादी के महज 10 दिन बाद बच्चा होने की खबर इस चेतावनी के साथ भेजी कि तुरंत आ कर बात करो, तो सविता के घर वाले भागेभागे यह सोचते हुए आए कि यह चमत्कार कैसे हो गया.

ज्यादती कहें या… अब एक सविता ही थी, जो इस राज से परदा हटा सकती थी. लिहाजा, दोनों के घर वालों ने उस से कड़ाई से पूछा, तो उस ने सच उगल दिया.

तकरीबन एक साल पहले गांव के कांशीराम नाम के शख्स ने उस से ज्यादती की थी और धौंस दी थी कि अगर किसी को बताया तो खैर नहीं. उस ने सविता को बदनाम करने और जान से मारने की धमकी भी दी थी.

डरीसहमी सविता चुप रही, तो कांशीराम उस के साथ ज्यादती करने लगा. पर अपने पेट से हो जाने की बात सविता नहीं समझ पाई. इसी दौरान उस की सगाई जीवनलाल से हो गई और सालभर बाद शादी भी हो गई, तो वह ससुराल परवलिया चली आई. बात पुलिस तक पहुंची, तो उस ने सविता के बयान के बिना पर कांशीराम को बलात्कार के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. पर इधर जीवनलाल की हालत खस्ता थी, जो शादी के 10 दिन बाद ही बाप बन बैठा था.

इस दिलचस्प वाकिए में एक और मोड़ सविता ने यह कहते हुए भी पैदा कर दिया कि सगाई के बाद अकसर जीवनलाल भी उस से मिलने आता रहता था. चूंकि वह उस का होने वाला पति था, इसलिए वह उसे भी सैक्स करने से मना नहीं कर पाती थी. लिहाजा, एक उम्मीद इस बात की भी उस ने पैदा कर दी कि मुमकिन है कि बच्चे का बाप कांशीराम नहीं, बल्कि जीवनलाल ही हो. चूंकि सविता दोनों के साथ एक ही वक्त में सैक्स कर रही थी, इसलिए यह तय कर पाना मुश्किल हो गया था कि आखिरकार बच्चे का असली बाप कौन है? बीच का रास्ता पुलिस वालों ने यह निकाला कि बेहतर होगा कि सविता और कांशीराम का डीएनए टैस्ट कराया जाए, जिस से यह साबित हो सके कि आखिरकार बच्चा है किस का? उन दोनों के खून का सैंपल जांच के लिए पुलिस वालों ने लैबोरेटरी भेज दिया.

अगर और मगर

जांच रिपोर्ट जब आएगी, तब आएगी, जिस में अगर बच्चे का पिता वह नहीं निकला, तो भी वह इस बात पर कलपता रहेगा कि उस की बीवी अपने ही पड़ोसी की ज्यादती का शिकार हुई थी और उस ने यह बात सगाई के बाद भी छिपा कर रखी थी, यानी होने वाले पति पर भरोसा नहीं किया था. लेकिन अगर बच्चा कांशीराम का निकला, तो भी वह कहीं का नहीं रह जाएगा. वजह, मुकदमा तो कांशीराम पर चलेगा, लेकिन अदालत का फैसला आने तक एक तरह से सजा उसे ही भुगतनी पड़ेगी.

शादी के 10 दिन बाद ही बच्चा हो जाने पर लोग और नातेरिश्तेदार उस पर हंस रहे हैं. इस पर सविता ने यह खुलासा कर नया सस्पैंस पैदा कर दिया कि वह तो होने वाले पति के साथ भी हमबिस्तर होती थी. चूंकि पुलिस ने कांशीराम के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया है, इसलिए जीवनलाल सविता पर बदचलनी का इलजाम भी नहीं लगा सकता. यानी तलाक की वजह बीवी से शादी के 10 दिन बाद ही बच्चा पैदा होना वह बताएगा तो भी तलाक की राह आसान नहीं होगी, क्योंकि सविता की इस में कोई कानूनन गलती नहीं मानी जाएगी. ऐसी सूरत में जीवनलाल के वकील की दलील अगर यह रहेगी कि सविता और कांशीराम के संबंध रजामंदी से बने थे, तो यह बात कांशीराम के फायदे की होगी और वह इस बाबत जीवनलाल की हां में हां ही मिलाएगा, ताकि बलात्कार के इलजाम से बरी हो सके.

होती है सौदेबाजी

इस मामले का पूरा सच सामने आने में अभी वक्त है, लेकिन भोपाल के एक वकील विजय श्रीवास्तव की मानें तो ऐसे मामले कभीकभार सामने आते हैं, जिन में सजा बेगुनाह पति को भुगतनी पड़ती है. भोपाल की जिला अदालत में इस अनूठे केस की चर्चा बड़े दिलचस्प तरीके से हो रही है, जिस का एक पहलू यह भी है कि गांवदेहात तो दूर की बात है, शहरों में भी पेट से हो आई लड़कियों की शादी आम बात है. जिस के बाबत तगड़ी कीमत दहेज की शक्ल में लड़की वाले लड़के वालों को देते हैं.

उन का मकसद लड़की की गलती छिपाना और अपनी इज्जत बचाना रहती है, क्योंकि बिनब्याही लड़की के मां बनने पर जो बदनामी होती है, वह पैसे से कहीं ज्यादा अहम होती है. कई मामलों में तो पहले ही लड़के और उस के घर वालों को पेट से होने की बात बता दी जाती है, जिस से लड़की को बाद में परेशानी न उठानी पड़े. इस बाबत मुंहमांगी कीमत लड़के को दे दी जाती है. आमतौर पर पेट से हुई ऐसी लड़कियों को अपनाने वाले लड़के निकम्मे या जरूरतमंद बेरोजगार या फिर किसी ऐब की गिरफ्त में आए हुए होते हैं. जिन के लिए शादी का मकसद एक घरवाली होना भर है. कुछ मामलों में कमजोरी और नामर्दी के शिकार भी आंखों देखी मक्खी निगलने की कीमत वसूलते हैं.

लेकिन जीवनलाल जैसे आम पतियों की आफत किसी सुबूत की मुहताज नहीं. जिन के लिए शादी जी का जंजाल बन जाती है और जो किसी तरह की दरियादिली दिखाने में भरोसा नहीं करते. इस के बाद भी तलाक के लिए उन्हें अदालत के चक्कर काटने पड़ें और बीवी को गुजारा भत्ता देना पड़े, तो यह उन के साथ ज्यादती ही कही जाएगी.      

कटी पतंग सी है विधवा की जिंदगी

30 साला छाया नागले भोपाल के न्यू मार्केट इलाके के एक होटल में रोटी बनाने का काम कर के अपने 2 बच्चों की परवरिश कर रही थी. अब से तकरीबन 3 साल पहले तक छाया की जिंदगी भी आम औरतों की तरह गुलजार थी. हालांकि उस के पति राजेश की आमदनी कोई खास नहीं थी, पर उस से घर की जरूरतें तो पूरी हो ही जाती थीं.  साल 2013 में राजेश की मौत ने छाया को हिला दिया था. तब उसे समझ आया था कि एक विधवा की जिंदगी कितनी परेशानियों से भरी होती है.

इंदौर छोड़ कर छाया भोपाल आई, तो टीटी नगर इलाके की एक झुग्गी बस्ती में रहने लगी. जमापूंजी खर्च हो चली थी, इसलिए छाया नौकरी के लिए भागादौड़ी करने लगी. ऐसे में होटल में रोटी बनाने का काम उसे मुफीद लगा, जिस से गुजारे लायक कमाई हो जाती थी. धीरेधीरे छाया पति की मौत का दुख भूल चली थी, पर तनहाई में जब उस की याद आती थी, तो साथ ही कई दूसरी जरूरतें भी सिर उठाने लगती थीं. जब से उस की जिंदगी में अनजान शख्स राम आया था, तब से मन भी बेचैन रहने लगा था. कहने की जरूरत नहीं है कि उसे राम से प्यार हो गया था, फिर धीरेधीरे यह प्यार परवान चढ़ा.  जब राम पर पूरी तरह भरोसा हो गया, तब छाया जिंदगी की

एक नई शुरुआत के सपने देखने लगी. लेकिन जाने क्या हुआ कि  15 मई, 2016 की रात तकरीबन 11 बजे छाया ने खुद पर केरोसिन छिड़क कर आग लगा ली. तुरंत पड़ोसी जमा हो गए और 100 नंबर पर फोन कर के अंबुलैंस बुला कर इलाज के लिए उसे अस्पताल ले गए, जहां इलाज के दौरान छाया ने दम तोड़ दिया.

भरोसा भी टूटा

पुलिस ने जब जांचपड़ताल की, तो छाया की झोंपड़ी से एक डायरी मिली, जिस में उस ने राम और खुद की मुहब्बत का जिक्र करते हुए यह भी अपने आशिक को लिखा था कि राम, तुम ने मुझ से प्यार का नाटक कर मुझे धोखा दिया. इस से मेरी बदनामी हो जाएगी और मैं कहीं की नहीं रहूंगी. पुलिस ने इस मामले में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली, लेकिन जातेजाते छाया यह कड़वा सच उजागर कर गई कि विधवा की जिंदगी आज भी कटी पतंग जैसी ही है, जिसे हर कोई लूट सकता है.

ज्यों का त्यों नजरिया

विधवा चाहे छाया हो या कोई और, उस पर अनापशनाप बंदिशें इस तरह लगाई जाती हैं कि पति की मौत के बाद उस के लिए जिंदगी एक सजा बन कर रह जाती है. अगर वह हिम्मत जुटा कर नए सिरे से इसे जीना भी चाहे, तो उसे पता चलता है कि जिस में वह सहारा ढूंढ़ रही होती थी, उस की नजर तो उस के जिस्म पर थी और अगर पति पैसा छोड़ गया हो, तो दौलत पर भी थी. समाज के नजरिए का विधवाओं पर लगाई जाने वाली बंदिशों से गहरा नाता है. अव्वल तो पति की मौत के साथ ही उन्हें बैठेबिठाए मनहूस होने का खिताब मिल जाता है. इस वजह से वे शादीब्याह जैसे शुभ कामों में नहीं जा सकतीं, गहने नहीं पहन सकतीं, साजसिंगार नहीं कर सकतीं और खास बात यह कि किसी पराए मर्द से बात करती नजर आएं, तो झट से उन्हें बदचलन कह दिया जाता है.

धार्मिक किताबों से आया यह नजरिया आज भी ज्यों का त्यों बरकरार है. बस थोड़ी सी छूट इस बात की मिली है कि अब सफेद साड़ी पहनना विधवाओं की मजबूरी नहीं रही. धार्मिक किताबों में कहा गया है कि विधवा को कैसे रहना चाहिए और कैसे नहीं रहना चाहिए. अगर कोई विधवा पंडों के बनाए नियमों और उसूलों के खिलाफ जाती है, तो वे उस का चैन से रहना ही दूभर कर देते हैं.

घर में भी शोषण

34 साला प्रेमलता (बदला नाम) के शौहर की मौत अब से तकरीबन 8 साल पहले हुई थी. विदिशा के नजदीक एक कसबे में रहने वाली प्रेमलता के शौहर के हिस्से की 15 एकड़ जमीन उस के जेठ ने नाजायज तरीके से हड़प ली.

इस पर प्रेमलता ने एतराज जताया, तो एक दिन मौका पा कर जेठ ने उस की इज्जत लूट ली. प्रेमलता तब से खून के आंसू पी रही है. जब जेठ की मरजी होती है, तब उसे न चाहते हुए भी वह काम करने को मजबूर होना पड़ता है, जो उजागर हो जाए, तो पाप कहलाने लगता है और इस का जिम्मेदार जेठ या कोई दूसरा मर्द नहीं, बल्कि विधवा ही ठहराई जाती है. कुछ वजह से प्रेमलता मायके नहीं जा सकती थी. अपने दोनों बच्चों की परवरिश की चिंता उसे है, इसलिए जेठ की ज्यादतियां बरदाश्त कर रही है. इस की जानकारी उस की जेठानी को भी है. यह वही समाज है और धर्म है, जो औरतों को देवी की हद तक पूजने की  बातें करता है, पर सच एकदम उलट है. हर कोई विधवा को कलंक बता कर उस की दौलत और जिस्म को लूटना व भोगना चाहता है, जबकि इस में उस का कोई कुसूर नहीं होता.

भोपाल के पौश इलाके शिवाजी नगर में घर में झाड़ूपोंछा करने वाली 28 साला प्रियंका (बदला हुआ नाम) की मानें, तो शौहर की मौत के बाद ससुराल वालों ने कोई खास ज्यादती नहीं की, लेकिन यह फरमान जरूर जारी कर दिया कि खुद कमाओ और खाओ.

जब खुद कमानेखाने निकली, तो प्रियंका को उस समय मायूसी हाथ लगी, जब ज्यादातर घरों में उसे महज विधवा होने की वजह से काम नहीं मिला और जहां मिला, वहां से उसे जल्दी निकाल दिया गया. घर की मालकिनों को डर था, चूंकि प्रियंका विधवा है, इसलिए उन के शौहर को फंसा लेगी. प्रियंका बताती है कि कोई ढंग का नौजवान उस से शादी करने को तैयार नहीं. जिन्होंने दिलचस्पी दिखाई, वे उम्र में 45-50 के ऊपर थे और 2-3 बच्चों के बाप भी, जिन की बीवियां नहीं थीं.

प्रियंका कहती है कि उन के बच्चों को तो मैं अपना समझ कर पाल लूंगी, पर 28 की उम्र में 45-50 की उम्र के मर्द से शादी करूंगी, तो फिर जल्दी ही विधवा हो जाऊंगी. वैसे भी उन की मंशा देख कर मुझे लगा कि उन्हें बीवी नहीं बिस्तर गरम करने वाली औरत चाहिए, जो दिन में नौकरानी बन कर रहे.

क्या होगा नतीजा

हालात सुधरेंगे, ऐसा इन विधवाओं की दास्तां सुन कर लग नहीं रहा. छाया ने प्यार में धोखा खाया और खुदकुशी कर ली. प्रेमलता बच्चों की खातिर मन मार कर नरक में पड़ी है और प्रियंका किसी ऐसे सहारे की तलाश में है, जो उसे इज्जत और गैरत से रख सके. अब तो हालत यह है कि विधवाओं की बदहाली पर चर्चा भी न के बराबर होती है, हां, वे विधवाएं जरूर धर्म और समाज के ठेकेदारों के निशाने पर रहती हैं, जो उन से डरती और दबती नहीं और अपनी मरजी से जिंदगी जी रही हैं. विधवाएं कब तक अपनी जरूरतें दबा कर रख पाती हैं और समाज के कायदेकानूनों पर अमल कर पाती हैं, कह पाना मुश्किल है, पर इन मिसालों से लगता है कि वे हालात से ज्यादा नहीं जूझ सकतीं. देरसवेर ही सही, झक मार कर उन्हें समझौता करना ही पड़ता है. अपनी हिफाजत और आबरू के लिए वे किसी भी ऐरेगैरे मर्द के पल्ले बंधने को मजबूर होती हैं और न बंधें, तो एक पूरी भीड़ उन्हें लूटनेखसोटने के लिए तैयार खड़ी रहती है.                 

मकान मालिकों के हथकंडे

गांव में रहने वाले दिनेश के पास खेतीबारी के लिए अच्छीखासी जमीन व बड़ा सा घर था. उस के गांव के आसपास कोई अच्छा स्कूल नहीं होने की वजह से उस ने अपने बच्चे को अच्छी तालीम दिलाने के लिए शहर के एक नामीगिरामी स्कूल में यह सोच कर दाखिला दिलाया कि वहां उसे पढ़ने के लिए समय से बिजली मिलेगी. दिनेश ने अपने 5 साला बेटे का दाखिला शहर के एक स्कूल में करा दिया था, लेकिन उस के पास शहर में रहने के लिए कोई अपना निजी मकान नहीं था, इसलिए उसे किराए के एक मकान की जरूरत आ पड़ी. बेटे को पढ़ाने के लिए दिनेश ने 2 कमरे का मकान किराए पर लिया. उस का किराया 4 हजार रुपए महीना था. मगर जैसे ही दिनेश ने वहां रहना शुरू किया, तो मकान मालिक ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया. उस ने दिनेश के ऊपर अपनी तमाम तरह की शर्तें लादनी शुरू कर दीं.

मकान मालिक ने कहा कि उस के घर पर ज्यादा लोगों का आनाजाना नहीं होना चाहिए. मकान का मेन गेट रात के 9 बजे के बाद किसी भी हालत में नहीं खुलेगा, इसलिए 9 बजे के पहले घर आ जाना होगा. बिजली और पानी का बिल भी अलग से देना होगा. दिनेश ने जल्दबाजी में किराए का मकान ले तो लिया था, लेकिन मकान मालिक से किसी तरह का कोई एग्रीमैंट नहीं किया गया था, इसलिए वह न चाहते हुए भी फंस सा गया था. मकान मालिक की रोजरोज की नईनई शर्तों से तंग आ कर वह नया मकान ढूंढ़ने में लग गया, लेकिन मकान मालिकों की गैरजरूरी शर्तों के चलते उसे अपने मनमाफिक मकान नहीं मिल पा रहा था. आखिरकार 2 महीने की भागदौड़ के बाद उसे एक ऐसा मकान मिल पाया, जहां पहले से ही नियम व शर्तों का एक एग्रीमैंट किया गया था और वह उस मकान में शिफ्ट हो गया. इस के बावजूद उस मकान मालिक ने भी तमाम शर्तें लादनी शुरू कर दीं. दिनेश ने कोर्ट में जाने की धमकी दी और कहा कि एग्रीमैंट के तहत किए गए नियम व शर्तों को तोड़ने की दशा में वह उस के ऊपर केस करेगा. इस के बाद उस मकान मालिक द्वारा दिनेश को किसी तरह से परेशान नहीं किया गया.

कुछ यही हाल एक प्राइवेट स्कूल में टीचर सुनीता का भी था. वह 2 साल से शहर में रह रही थी, लेकिन मकान मालिक के रोजरोज के नए हथकंडों की वजह से 2 साल में 8 बार मकान बदलने को मजबूर हुई थी. सुनीता का कहना है कि अकसर हम अपने घरों से दूर अच्छी तालीम, नौकरी व कारोबार के लिए शहरों में चले आते हैं, जहां हमें रहने के लिए किराए के मकान की जरूरत होती है. ऐसे में जब हम कोई भी किराए का मकान लेते हैं, तो उसे मकान मालिक द्वारा हमारे ऊपर ऐसे नियम व शर्तें लाद दी जाती हैं, जिन्हें पूरा करना मुमकिन नहीं होता है. सुनीता के मुताबिक, मकान मालिकों द्वारा मकान के किराए के साथ बिजली का बिल भी अलग से लिया जाता है, उस के बावजूद मेन स्विच से अकसर बिजली काट दी जाती है, जिस से कभीकभी अंधेरे में ही गुजारा करना पड़ता है. दोपहिया, चारपहिया गाड़ी रखने वालों के लिए पार्किंग के लिए रोज की किचकिच से दोचार होना पड़ता है.

शहर में रह कर प्राइवेट नौकरी करने वाले अनिल किराए के एक मकान में रहते हैं. उन का कहना है कि मकान लेने के पहले उन्होंने मकान मालिक को 10 हजार रुपए एडवांस पगड़ी के रूप में दिए, लेकिन जब उन्होंने उस रकम की रसीद मांगी, तो मकान मालिक द्वारा देने से इनकार कर दिया गया. बाद में उस मकान को छोड़ते समय मकान मालिक द्वारा पगड़ी के रूप में जमा की गई रकम को वापस करने से मना कर दिया गया.

मकान मालिक ने साफतौर पर कह दिया कि उसे कोई भी रकम पगड़ी के रूप में नहीं दी गई थी. अनिल ने बताया कि उन के यहां आने वाले दोस्तों को ले कर अकसर मकान मालिक द्वारा एतराज जताया जाता था, जबकि मकान मालिक के यहां हर रोज आनेजाने वालों की भीड़ लगी रहती थी, जिस से उन के कमरे से होने वाली बातचीत व होहल्ला की वजह से उन के बच्चों को पढ़नेलिखने में परेशानी होने लगी. जब इस बात की शिकायत उन्होंने मकान मालिक से की, तो उस ने कहा कि वह कमरा छोड़ दे या तो इसी तरह के माहौल में रहना सीख जाए. अकसर शहरों में किराए पर उठने वाले मकानों की हालत जर्जर होती है. उस के हिसाब से मकान मालिकों द्वारा किराए के रूप में भारीभरकम रकम की मांग की जाती है.

किराए पर मकान दिलाने का काम करने वाले संजय ने बताया, ‘‘हम जब भी किराए पर मकान लें, तो मकान मालिक से यह तय कर लें कि किराए की रकम की या तो वे रसीद देंगे या उस रकम का भुगतान मकान मालिक के बैंक खाते में किया जाएगा.

‘‘अगर मकान मालिक द्वारा इस तरह की शर्तों में हीलाहवाली की जाती है, तो इस की शिकायत आप नगरनिगम, नगर पालिका, नगर पंचायतों के दफ्तर में कर सकते हैं, क्योंकि अकसर मकान मालिकों द्वारा नगरनिगमों या नगर पालिकाओं से यह बात छिपाई जाती है कि वे अपने मकान को किराए पर देने का काम करते हैं. वजह, नगरीय इलाकों में नगर निकायों द्वारा किराए पर उठने वाले मकानों के हाउस टैक्स, वाटर टैक्स और उस पर लगने वाले तमाम तरह के टैक्स की दर ज्यादा होती है.

‘‘इसी टैक्स की चोरी के मकसद से मकान मालिकों द्वारा नगर निकायों में मकान किराए पर उठाने की बात दर्ज नहीं कराई जाती है. ‘‘इस के अलावा नगर निकायों में दर्ज किराए पर उठने वाले मकानों के मासिक किराए की रकम को नगर निकायों द्वारा ही तय किया जाता है. ‘‘अगर आप किराए पर मकान लेने जा रहे हैं, तो नगर निकाय के दफ्तर से यह जरूर साफ कर लें कि आप के द्वारा किराए पर लिया जाने वाला मकान नगर निकाय में दर्ज है कि नहीं. अगर वह मकान दर्ज है, तो नगर निकाय द्वारा तय किराए की रकम के बारे में पता कर लें और उस से ज्यादा रकम मांगने की दशा में आप इस की शिकायत नगर निकाय के दफ्तर में कर सकते हैं.’’ संजय ने यह भी बताया कि अगर मकान मालिक द्वारा आप के साथ किसी तरह की बदसुलूकी या नियमशर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो भी आप इस की शिकायत करने से न हिचकें

सवाल 2 रुपए का

यह बात उन दिनों की है, जब महंगाई ज्यादा नहीं थी. महज 10 रुपए में आधा किलो दही आ जाता था. राजनगर नाम के एक महल्ले में रमानाथ नाम के एक रिटायर प्रोफैसर छोटे से मकान में अकेले रहते थे. वे बहुत ही सीधे, सरल, परंतु भुलक्कड़ स्वभाव के थे. वे हर समय किसी न किसी खयाल में खोए रहते थे. एक दिन की बात है. रात के 8 बजे वे खाना खाने बैठे तो देखा कि दही नहीं है. फिर क्या था? वे हाथ में डब्बा और जेब में 10 रुपए का नोट ले कर बाजार की ओर चल पड़े. डेरी की दुकानें अकसर जल्दी बंद हो जाती हैं. रमानाथजी बाजार में बहुत घूमे, पर सभी दुकानें बंद हो चुकी थीं. आखिर में उन्हें एक दुकान खुली मिल ही गई. दुकान वाला दुकान बंद कर ही रहा था कि रमानाथजी वहां पहुंच गए.

‘‘भाई साहब, आधा किलो दही दे दीजिए,’’ रमानाथजी ने दुकानदार के हाथ में डब्बा देते हुए कहा.

‘‘बाबूजी, दही आधा किलो से कुछ कम है… 8 रुपए दे दीजिए,’’ दुकानदार ने डब्बे में दही डालते हुए कहा.

‘‘ठीक है, यह लीजिए 10 रुपए का नोट.’’

‘‘बाबूजी, 2 रुपए तो छुट्टे नहीं हैं. कल सुबह आप बाजार में सब्जियां खरीदने आएंगे, तो अपने 2 रुपए ले लीजिएगा.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं. 2 रुपए कल ले जाऊंगा,’’ रमानाथजी ने दही का डब्बा पकड़ कर जाते हुए कहा. अचानक वे रुके, पीछे मुड़ कर सोचने लगे, ‘मैं भुलक्कड़ हूं. दुकान कहां है, जरा निशान तो देख लूं… ‘हां, दुकान के सामने एक सफेद सांड़ बैठा जुगाली कर रहा है. दुकानदार 60 साल का बूढ़ा है. उस के सिर पर एक भी बाल नहीं है. चेहरे पर दाढ़ीमूंछ भी नहीं है. कुलमिला कर आलू की तरह चिकना.’ रमानाथजी घर पहुंचे, खाना खाया और सो गए. फिर वे सुबह उठे, नहाएधोए, चाय बना कर पी और अखबार देखने लगे. अचानक उन्हें 2 रुपए का खयाल आया. गरमी के दिन थे. कंधे पर छतरी लटका कर रमानाथजी घर से निकल पड़े. वे बाजार में बहुत घूमे, पर उन्हें आलू की तरह चिकने सिर वाला कोई दुकानदार नहीं मिला. तब उन्हें याद आया कि दुकान के सामने सफेद सांड़ बैठा था.

रमानाथजी सांड़ की तलाश में बाजार में घूमने लगे. सूरज सिर पर आ गया था. धूप तेज होने लगी थी. प्यास से गला सूख रहा था. एक होटल में उन्होंने 10 रुपए का चायनाश्ता कर लिया. इस तरह 10 रुपए का चूना लग गया. मगर वह कमबख्त सांड़ कहां मर गया? रमानाथजी माथे का पसीना पोंछते हुए सोच रहे थे. सुबह होते ही सांड़ उठ कर सब्जी मंडी में मुंह मारने चला गया था. सब्जियां खाखा कर उस का पेट भर गया और दुकानदारों के डंडे खाखा कर उस की मोटी चमड़ी में जलन होने लगी. ऊपर से धूप भी तेज हो गई थी. तब वह एक नीम के पेड़ की छाया में बैठ कर जुगाली करने लगा. वहां नाई की दुकान थी. नाई की दाढ़ीमूंछ और सिर के बाल बढ़े हुए थे.

‘‘मिल गया सांड़, मिल गया. अब मैं दही वाले दुकानदार से 2 रुपए मांग लूंगा…’’ खुशी से चहकते हुए रमानाथजी नाई की दुकान में चले गए. नाई को एक ग्राहक की हजामत बनाते देख रमानाथजी हैरानी से बोले, ‘‘वाह बेटा, जिंदगी में पहली बार देख रहा हूं कि एक रात… केवल एक रात में आलू जैसा चिकना सिर भालू बन गया है.’’ ‘‘साहब, आप साफ साफ बोलें. यह आलू और भालू की भाषा मेरी समझ में नहीं आ रही है,’’ नाई ने कहा.

‘‘ऐ मिस्टर, मेरे 2 रुपए निकालिए,’’ रमानाथजी बोले.

‘‘2 रुपए… साहब, क्या आप चंदा मांगने आए हैं?’’

‘‘जी नहीं, रात को मैं ने 8 रुपए का दही खरीदा था. मैं ने आप को 10 रुपए का नोट दिया था. रात को आप के पास छुट्टा नहीं था. सो, अब मैं 2 रुपए लेने आया हूं.’’

‘‘आलू, भालू, दही, 2 रुपए… क्या है यह सब… लगता है, मैं पागल हो जाऊंगा,’’ नाई ने अपने सिर के बाल खुजाते हुए कहा. ‘‘घोर कलयुग आ गया है… अरे, आप ने केवल 2 रुपए मारने के लिए रातोंरात अपना धंधा ही बदल दिया. दाढ़ीमूंछ और सिर के बाल बढ़ा लिए. इतना ही नहीं, 60 साल का बुढ़ापा छोड़ 40 साल का जवान बन गए. ‘‘हाय रे घोर कलयुग, नीम के नीचे बैठा सांड़ सुबूत है कि मैं सच बोल रहा हूं,’’ रमानाथजी हैरानी से बाहर देखते हुए बोले. रमानाथजी के पैरों तले जमीन खिसक गई, क्योंकि वहां अब सांड़ नहीं था. वे झट बाहर निकल कर बोले, ‘‘अरे, अभी तो यहां सांड़ बैठा हुआ था. लगता है, मुझे भरम हो गया था. बेकार ही तुम्हें बेईमान कह दिया.’’

रमानाथजी फिर से सांड़ की तलाश में धूप में छतरी लगा कर घूमने लगे. वे भूखप्यास से बेहाल हो गए. फिर से 10 रुपए का नाश्ता किया. अब धूप में चलना मुश्किल था. रमानाथजी ने घर जाने के लिए 10 रुपए का रिकशा किया. रिकशा उन के घर की ओर चल पड़ा. वे मन ही मन अपने को कोसने लगे, ‘केवल 2 रुपए के लिए 30 रुपए का चूना…’ अचानक रिकशे वाले को उन्होंने रुकने को कहा. एक मकान के नीचे सांड़ आराम कर रहा था. वह नेताजी का मकान था. चमचों से घिरे नेताजी गद्दी पर बैठे चुनाव की बातें कर रहे थे कि रमानाथजी वहां पहुंच गए. ‘‘कहिए मतदाता महोदय, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं? महल्ले में पक्की नालियों का इंतजाम, बिजली, नल…’’ नेताजी बोले. ‘‘नेताजी, अब मैं क्या कहूं? आप तो आप हैं. जनता की गाढ़ी कमाई के लाखों डकारने वाला केवल 2 रुपए मार सकता है? नहींनहीं, वह दही वाला कोई और ही था. अब मैं नहीं कहूंगा कि एक दही बेचने वाला रातोंरात नेता बन गया. वह भी केवल 2 रुपए मारने के लिए.

‘‘जाइए, आप पर 2 रुपए छोड़ दिए. नमस्कार,’’ रमानाथजी जल्दी से निकलते हुए बोले. नेताजी और उन के चमचे कुछ समझ नहीं पाए और वे सब रमानाथजी को देखते रह गए. रमानाथजी सांड़ की ओर देखते हुए रिकशे में बैठ गए. वे सोच रहे थे, ‘मुझे 30 रुपए की बरबादी का गम नहीं है. मुझे तो केवल 2 रुपए नहीं मिलने का दुख ज्यादा है.’

सहेलियों से न छिपाएं प्रेम

अकसर हम अपनी फ्रैंड्स को अपनी जिंदगी में सबकुछ मानते हैं. चाहे खुशी का पल हो या फिर कोई गम का, हम हर बात उन से शेयर करना पसंद करते हैं. लेकिन जब बात बौयफ्रैंड के बारे में फ्रैंड्स को बताने की आती है तो हम इसे अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि यदि यह बात मैं ने फ्रैंड्स को बता दी तो चारों तरफ इस का ढिंढोरा पिट जाएगा. कहीं मेरी फ्रैंड्स ही उस की स्मार्टनैस देख कर उसे लाइन न मारने लगें या फिर मेरी चौइस का मजाक बनाने लगें. इसलिए इसे सीक्रेट बनाए रखते हैं. लेकिन जब उन्हें यही बात किसी और से पता चलती है या फिर वे अपनी आंखों से देख लेती हैं तो रिश्ते में दरार पैदा हो जाती है. ऐसे में भले आप अपने पूरे ग्रुप में यह बात शेयर न करें, लेकिन अपनी भरोसेमंद फ्रैंड्स से इस बात का जिक्र जरूर करना चाहिए. इस से आप को भी सही सलाह समयसमय पर मिलती रहेगी और उन्हें भी लगेगा कि आप वाकई उन्हें दिल से चाहती हैं.

फ्रैंड्स को बताने के क्या हैं फायदे

रोमांटिक आइडियाज की होगी भरमार

हो सकता है आप की फ्रैंड्स पहले से ही रिलेशनशिप में हों. लेकिन आप का यह पहला मौका हो. ऐसे में गलती होना स्वाभाविक है, लेकिन यदि आप फ्रैंड्स को अपनी पहली डेट पर जाने की बात बताएंगी तो वे आप को एक से बढ़ कर एक रोमांटिक आइडियाज दे देंगी, जिस की शायद आप ने कल्पना भी न की हो.

जैसे फर्स्ट डेट पर खुद को रोमांटिक दिखाने के लिए वनपीस ड्रैस पहनें, खासकर रैड कलर की जिस से पार्टनर को आप को देख कर सैक्सी फील हो. गिफ्ट भी ऐसा दें जो दिल को छू जाए. इतना ही नहीं आप के मोबाइल की कौलर ट्यून भी रोमांस भरी हो ताकि जब आप को कौल करे तो रोमांटिक कौलर ट्यून सुन कर तुरंत ही आप से मिलने को बेताब हो उठे.

भले ही आइडियाज आप की फ्रैंड्स के हैं, लेकिन जब आप खुद उन्हें अपने पर अप्लाई करेंगी तो आप का पार्टनर यही सोचेगा कि उस की पार्टनर कितनी रोमांटिक है.

पार्टनर से बेझिझक मिलेंगी

अकसर जब आप अपनी फ्रैंड्स से ऐसी बातें छिपाती हैं तो आप के मन में डर बना रहता है कि कहीं फ्रैंड्स ने उस से मिलते हुए देख लिया तो क्या जवाब देंगी. ऐसे में पार्टनर से मिलने की खुशी से ज्यादा मन में राज खुलने का डर रहता है जिस से आप पार्टनर से खुल कर नहीं मिल पातीं.

अगर वह औफर भी करता है कि चलो थोड़ी देर वहां चलते हैं, तो आप का कहना सिर्फ यही होता है कि यार, वहां फ्रैंड्स का आनाजाना लगा रहता है इसलिए फिर किसी और दिन. ऐसे में बौयफ्रैंड भी नाराज हो सकता है. लेकिन अगर आप पहले से ही फ्रैंड्स को बता देंगी कि आज आप पार्टनर के साथ बिजी रहेंगी तो वे आप को बारबार फोन कर के डिस्टर्ब भी नहीं करेंगी. इस से आप अपने पार्टनर के साथ बेझिझक घूम पाएंगी.

प्रौब्लम्स में फंसने पर फ्रैंड्स कर लेंगी हैंडिल

आप की फैमिली कितनी भी मौडर्न क्यों न हो, लेकिन आप रिलेशनशिप में हैं, इस की भनक घर में नहीं लगने देतीं.

लेकिन यह भी सच है कि भले ही आप पेरैंट्स से बचने की कितनी ही कोशिश क्यों न करें, फिर भी उन्हें शक तो हो ही जाता है. ऐसे में फ्रैंड्स ही आप को मुसीबत से बाहर निकाल सकती हैं.

जैसे अगर आप कालेज टाइम में क्लास बंक कर के पार्टनर से मिलने गई हैं और इस बीच आप की फैमिली का कोई मैंबर आप को मिलने के बहाने कालेज आ जाए और आप वहां न मिलें तो ऐसे में आप का फंसना तय है. लेकिन अगर सभी फ्रैंड्स सीरियसली उन्हें एक ही बात कहें कि वह कालेज आई थी, लेकिन 2-3 दिन में प्रोजैक्ट जमा कराने की डैडलाइन मिलने के कारण उस से संबंधित बुक लेने के लिए जल्दी निकल गई, तो इस से उन्हें आप की बात पर विश्वास हो जाएगा.

बातचीत के दौरान ही कोई फ्रैंड इस की पूरी सूचना आप को मैसेज भी कर देगा, जिस से आप अलर्ट हो जाएं. लेकिन ऐसा तभी संभव हो पाएगा जब आप पहले ही फ्रैंड्स को सब बता देंगी.

छिपछिप कर नहीं करनी पड़ेंगी फोन पर बातें

फ्रैंड्स के साथ गौसिप चल रही है और आप अचानक कौल आते ही वहां से उठ कर चली जाएं और जब वापस आएं तो आप का चेहरा साफ बताए कि आप कुछ छिपा रही हैं. पूछने पर गुस्से वाले हावभाव दिखाने लगें.

फ्रैंड्स द्वारा मजाकमजाक में फोन मांगने पर भी एकदम से भड़क उठें कि यार, यह मेरी पर्सनल लाइफ है तुम कौन होती हो मेरा फोन मांगने वाली. वाशरूम में भी अपना फोन साथ ले कर जाएं ताकि कोई आप के मैसेज न पढ़ पाए.

इस से एक तो आप के बीच कम्युनिकेशन गैप बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर आप डर के मारे कई बार फोन उठाने से भी कतराएंगी. इस से अच्छा है कि आप अपनी क्लोज फ्रैंड्स को बता दें कि यार, मुझे किसी से प्यार हो गया है ताकि जब कोई फोन या मैसेज आए, तब वे सहज रहें न कि यह जानने की इच्छा रखें कि आखिर आप बात किस से करती हैं.

इकोनौमिकली भी हैल्प मिलेगी

हो सकता है आप वर्किंग न हों और जो पौकेटमनी आप को मिलती हो उस में ही आप को सबकुछ मैनेज करना पड़ता हो. ऐसे में सिंगल हों तब तो कोई दिक्कत नहीं, लेकिन साथ में पार्टनर भी हो तो पौकेटमनी से गुजारा करना मुश्किल हो जाता है. साथ ही रोजरोज पार्टनर से खर्च करवाते रहो, यह भी अच्छा नहीं लगता.

कभीकभी खुद भी खर्च करने या फिर उसे गिफ्ट देने को दिल करता है, लेकिन तंगी के कारण चुप्पी साधनी पड़ती है. ऐसे में फ्रैंड्स ही आप की हैल्प कर सकती हैं. आप उन से बेझिझक कुछ पैसे मांग सकती हैं और वे भी आप की प्रौब्लम को समझेंगी. इस से आप की सैल्फ रिस्पैक्ट भी बनी रहेगी और आप के बौयफ्रैंड पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा.

अवेयर भी करेंगी

कई बार हम इंसान को परखने में गलत साबित हो जाते हैं. हो सकता है कि जिस बौयफ्रैंड को आप सिर्फ अपना मानती हों उस का केवल आप से ही नहीं बल्कि कइयों से अफेयर हो और उस की इस हरकत को आप की कोई फ्रैंड भी जानती हो, क्योंकि वह उसे भी धोखा दे चुका है. ऐसे में जब आप उस के बारे में या फिर उस का फोटो फ्रैंड से शेयर करेंगी तो वह आप को सतर्क कर देगी.

भले ही आप अपनी फ्रैंड की बात पर विश्वास न करें, लेकिन जब उस के सतर्क करने पर आप भी नोटिस करना शुरू करेंगी तो हो सकता है कि आप के हाथ कोई ऐसा क्लू लग जाए जो आप के बौयफ्रैंड की पोल खोलने के लिए काफी हो. ऐसे में आप की जिंदगी तबाह होने से बच सकती है.

आप की भी उस की फ्रैंड होने के नाते निम्न जिम्मेदारियां बनती हैं :

न पीटें ढिंढोरा

भले ही आप के पेट में कोई बात न पचती हो, लेकिन इस बात को तो आप को अपने तक ही सीमित रखना होगा, क्योंकि जब आप की फ्रैंड ने आप पर विश्वास कर के अपना इतना बड़ा सीक्रेट आप से शेयर किया है तो फिर आप का भी तो फर्ज बनता है कि आप उस के विश्वास को न तोड़ें.

न बनाएं उस की चौइस का मजाक

हर इंसान की अपनी चौइस होती है. किसी को सिंपल लड़का पसंद होता है तो किसी को हैंडसम. इसलिए अपनी फ्रैंड की चौइस का बिलकुल मजाक न बनाएं, क्योंकि अगर आप उसे ऐसे कहेंगी कि यार, तू कहां और कहां तेरा काला बौयफ्रैंड, क्या पसंद आया तुझे इस लंगूर में? तो, उस समय भले ही वह आप के मुंह पर कुछ न कहे. लेकिन ऐसी हरकतों से आप उस की नजरों से जरूर गिर जाएंगी.

करैक्टर को न करें जज

अधिकांश लोगों की यही सोच होती है कि अगर किसी लड़की का बौयफ्रैंड है तो इस का मतलब उस का करैक्टर सही नहीं है.

अगर आप अपनी फ्रैंड के बौयफ्रैंड बनने से पहले उस से हर बात शेयर करती थीं तो अब भी उस के प्रति अपना पहले वाला ही व्यवहार रखें. यह सोच बिलकुल मन में न लाएं कि आप की फ्रैंड करैक्टरलैस है इसलिए अब इस से दोस्ती नहीं रखनी.

प्यार किसी को भी किसी से भी हो सकता है लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि वह व्यक्ति चरित्रहीन है.

उस की लाइफ में न करें ताकाझांकी

आप से अपना सीक्रेट शेयर करने का यह मतलब नहीं कि आप उस की पर्सनल लाइफ में ताकाझांकी करनी शुरू कर दें कि वह किस से फोन पर बात कर रही है, फोन पर क्या बात चल रही है, यहां तक कि चोरी से उस का फोन भी चैक करने की कोशिश करें. ऐसा कर के आप अपनी ओछी मानसिकता को दर्शाएंगी.

कमैंट्स न करें

जब बौयफ्रैंड बनता है तो चाहे लड़की हो या लड़का दोनों के स्टाइल में चेंज आता ही है. अगर आप के फ्रैंड ने आप को इस बारे में बताया हुआ है तो बारबार यह बोल कर कि आजकल इस के जलवे तो देखो, रोज नएनए कपड़े… क्या बात है, जैसे कमैंट्स न मारें, क्योंकि इस से उसे काफी दुख पहुंचेगा और वह बाद में पछताएगी ही कि उस ने यह बात आप से शेयर ही क्यों की.                                                           

प्लैटोनिक लव: सुरक्षित भी, विश्वसनीय भी

एक नामचीन कथाकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने 1914 में एक कहानी लिखी थी, जिस का शीर्षक था, ‘उस ने कहा था.’ यह कहानी 100 साल बाद भी रुचि और जिज्ञासा से पढ़ी जाती है. यह एक ऐसी प्रेम कहानी है, जिस में नायक लहना सिंह बचपन की अपनी प्रेमिका के पति और बेटे को बचाने के लिए अपनी जान दे देता है. लहना सिंह कहानी की नायिका सूबेदारनी को 12 साल की उम्र में अमृतसर की गलियों में मिला था और हलवाई की दुकान पर रोजाना 8 साल की लड़की से पूछता था कि तेरी सगाई हो गई कि नहीं, जवाब में लड़की एक शोख अदा से शरमा कर धत कह कर भाग जाती थी. पर एक दिन अप्रत्याशित तरीके से यही सवाल पूछने पर वह लहना सिंह को जवाब देती है कि देखते नहीं शादी का दुपट्टा पहने हुए हूं.

इस जवाब पर लहना सिंह अनमना हो उठता है. फिर अरसे बाद वह सूबेदारनी से उस के पति के कहने पर मिलता है तो वह उसे इस वचन से बांध देती है कि युद्ध में वह पति और बेटे की रक्षा करेगा. यह कहानी विश्वयुद्ध के बाद लिखी गई थी, इसलिए युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है. लड़ाई में स्थिति ऐसी बनती है कि लहना सिंह खुद जान दे कर प्रेमिका के सुहाग और बेटे की जान बचाता है. लहना सिंह खुद शादीशुदा है पर आखिरी सांस लेतेलेते उसे सिर्फ बचपन की अपनी प्रेमिका से ताल्लुक रखती बातें ही याद आती हैं. पूरी कहानी में कहीं लहना सिंह सूबेदारनी से अपने प्यार का इजहार नहीं करता पर प्यार करता है, यह पाठक सहज ही समझ जाता है. इस एक कहानी ने चंद्रधर शर्मा को साहित्य जगत में अमर कर दिया, क्योंकि हिंदी की यह पहली गैर धार्मिक कहानी थी, जो प्लैटोनिक लव पर आधारित थी.

सुरक्षित है यह

प्लैटोनिक लव में प्यार व्यक्त नहीं होता और यह अकसर एकतरफा होता है. दूसरे को इस का एहसास होता है पर यह एहसास प्रतिक्रियाहीन होता है, जिसे इजहार भी समझा जा सकता है और इनकार भी. लेकिन जब कोई औपचारिक प्रस्ताव ही नहीं रखा गया तो क्या प्रतिक्रिया और क्या प्रतिक्रियाहीनता यानी यह शब्दों का मुहताज नहीं बल्कि एक एहसास भर है जो उम्र भर रहता है. जाहिर है प्लैटोनिक लव सुरक्षित है, क्योंकि यह अपने महबूब से कोई अपेक्षा या उम्मीद नहीं रखता. सूफियों की तरह यह प्यार की वह अवस्था भी नहीं है, जिस में साकार और निराकार में भेद खत्म हो गए. आम प्यार करने वालों की तरह इस में भी हाड़मांस के 2 पुतलों और चेतना का होना अनिवार्य है, पर यह अनिवार्यता अपने प्रेमी से कुछ चाहती नहीं है, न ही इस में कुछ देने की शर्त होती है. कोई है जिसे हम प्यार करते हैं, चाहते हैं यह अनुभूति जाहिर है किसी को कोई क्षति नहीं पहुंचाती.

आजकल ही नहीं बल्कि सदियों पहले से ‘आई लव यू’ कह कर ‘आई लव यू टू’ सुनने की आदिम ख्वाहिश के बाद प्यार का जो सिलसिला प्रेमियों के बीच शुरू होता है, वह अकसर किसी फसाद या अप्रिय अलगाव पर जा कर ही खत्म होता है, क्योंकि इस में प्यार के बदले प्यार की चाहत होती है और यह न मिले तो असफल प्रेमी या तो खुदकुशी कर लेता है या फिर जिसे जीजान से चाहने का दावा करता है उस की हत्या तक कर देता है. ऐसे समाचार आएदिन अखबारों में छपते रहते हैं और चैनल्स पर भी दिखाए जाते हैं. लेकिन प्लैटोनिक लव इस का अपवाद है, क्योंकि यह व्यक्त नहीं होता, इसलिए किसी प्रतिदान का सवाल ही इस में नहीं उठता. इस में प्रेमी जिसे चाहता है उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाता और न ही उसे पाने की जिद पाले रखता है. उस के लिए प्रेमी का होना ही काफी होता है.

सुरक्षा या असुरक्षा

तमाम चिंतक, साहित्यकार, मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक प्यार की व्याख्याएं तरहतरह से करते रहे हैं, हालांकि वे व्यापक हैं पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचतीं या पहुंचातीं.

प्यार आमतौर पर भावनात्मक और सामाजिक सुरक्षा के लिए किया जाता है यानी असुरक्षा की भावना प्यार का जज्बा पैदा करती है और जब प्यार व्यक्त हो जाता है, तो उस में सैक्स भी आ जाता है जो प्रेमियों में पजेसिवनैस पैदा करता है  इस स्थिति से बचना मुश्किल है इसलिए प्यार को कांटो वाली राह बताया जाता है, जिस पर चलने में तो मजा आता है, लेकिन मंजिल पर पहुंचने के बाद चलने के पहले जैसा एक खालीपन का एहसास प्रेमियों को होने लगता है. वे न तो एक हो पाते हैं और न ही एकदूसरे से आसानी से अलग हो पाते हैं. प्लैटोनिक लव सुरक्षा या असुरक्षा की भावना से कोसों दूर होता है. इस में सैक्स तो दूर की बात है कोई इच्छा भी सामने वाले से नहीं होती. एक ऐसा प्यार जिस में कोई कसमेवादे नहीं होते, इसलिए इस में दिल टूटता ही नहीं. एक ऐसा प्यार जो वाकई दिल की गहराइयों से होता है, पर व्यक्त नहीं किया जाता.

प्लैटोनिक लव प्रेमियों को अपनी मरजी से जीने का हक देता है, इस के बाद भी खत्म नहीं होता. प्रेमिका की शादी कहीं और हो जाना प्रेमी के लिए कोई तनाव या झंझट वाली बात नहीं होती. वह किसी और से प्यार करे तो कोई चिंता या कुढ़न नहीं होती, क्योंकि इस में कोई किसी पर किसी तरह का हक नहीं जताता.

इसलिए भरोसेमंद भी है

तकनीक के इस दौर में प्यार करने का तरीका और सलीका दोनों बदले हैं, जिन्होंने कई चाहतें और जरूरतें पैदा कर दी हैं, ऐसे में हालांकि प्लैटोनिक लव एक अवधारणा भर लगती है, क्योंकि जिंदगी और दुनिया अब बजाय भावनाओं के पैसे से संचालित होने लगी है. इस दौर में लोग खुद मशीन बन गए हैं, इसलिए उन से प्यार में त्याग, बलिदान और सर्वस्व निछावर करने की उम्मीद रखना, उन के साथ ज्यादती है. प्रेमीयुगल एकदूसरे पर शर्तों पर टिका भरोसा करते हैं, जिस से प्यार की अवधि छोटी हो गई है, इसलिए अकसर वह कई गुत्थियों से भरी होती है. प्यार को बंधन कहने वाले भी गलत नहीं ठहराए जा सकते, लेकिन प्लैटोनिक लव तो आजादी देता है. उस की बुनियाद एक पाकसाफ जज्बे पर टिकी होती है इसलिए वह विश्वसनीय भी है. आजादी कभी शक नहीं करती, पर बांधने वाली बातें प्रेमियों को अविश्वास से भर देती हैं.

अकसर युवक अपनी किसी नजदीकी रिश्तेदार मसलन, भाभी या चाची से प्यार कर बैठते हैं, लेकिन उन से कोई शारीरिक इच्छा नहीं रखते, क्योंकि रिश्तेनातों की मर्यादाएं भी वे जानते हैं और उन का पालन भी करते हैं. उन्हें अपना भाई या चाचा दुश्मन नहीं लगते, क्योंकि प्रेयसी की जिंदगी में उन का रोल वे सहज स्वीकार लेते हैं और वक्त रहते खुद भी शादी कर लेते हैं. अवैध संबंध एक अलग मुद्दा और विषय है पर यह वैध प्यार, जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता, किसी अविश्वास का शिकार नहीं होता. उम्र का आकर्षण भी इसे पूरी तरह नहीं कहा जा सकता और न ही दैहिक दायरों में भावनाओं को बंधा कहा जा सकता है सिर्फ प्लैटोनिक लव होता है जो किसी को किसी से भी हो सकता है.

कमजोर नहीं होते ये

अफलातूनी या परालौकिक प्रेम भी प्लैटोनिक लव को कहा जाता है जिस के बारे में प्यार करने वाले मुंह बिदका कर यह कहने का हक रखते हैं कि जब कुछ चाहा नहीं, लियादिया नहीं तो प्यार किस बात का. यह तो बुजदिलों और पागलों वाली सी बात हुई. दरअसल, प्लैटोनिक लव कायर नहीं होता और न ही उस के पीछे प्यार व्यक्त कर देने पर सामने वाले को हमेशा के लिए खो देने का डर होता है. चूंकि डर होता ही नहीं है इसलिए इस में कायरता के होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. प्यार दरअसल, व्यक्त तभी होता है जब उस में कुछ पा लेने या हासिल करने की भावना आ जाती है. जीतहार, बहादुरी और बुजदिली जैसी बातें भी प्यार का जज्बा होने के बाद आती हैं यानी हर प्यार शुरुआत में प्लैटोनिक होता है, लेकिन जल्द ही इच्छाओं से घिर कर प्लैटोनिक नहीं रह जाता.प्लैटोनिक लव की तुलना उस बीज से किया जाना हर्ज की बात नहीं जो जमीन के अंदर है और अंकुरित भी हुआ है पर पेड़ बन कर बाहर नहीं आना चाहता. ऐसा क्यों? इस का जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया और न ही दे पाएगा, क्योंकि बीज से वृक्ष बनने की प्रक्रिया बीज को नष्ट कर देती है, लेकिन अंकुरित बीज का अपना एक अलग अस्तित्व होता है.

सीधेसीधे कहा जाए तो प्लैटोनिक लव करने वाले ज्यादा परिपक्व और धैर्य वाले होते हैं जो यह समझते हैं कि पेड़ कभी भी प्राकृतिक या गैर प्राकृतिक वजहों से नष्ट हो सकता है इसलिए प्यार की जो भावनाएं हैं उन्हें अपने तक रखो, इच्छाएं और वासनाएं मत पालो जो अकसर तकलीफ देती हैं. इसलिए प्यार के प्रचलित प्रकार में प्लैटोनिक लव सब से ज्यादा सुरक्षित और विश्वसनीय है.

बिहार की मुंह सूंघवा पुलिस

बिहार में शराबबंदी को लागू कराने में पुलिस के पसीने छूट रहे हैं. एक ओर जहां पुलिस को मुख्यमंत्री के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा हैं, वहीं दूसरी ओर ब्रेथ एनालाइजर की भारी कमी की वजह से पुलिस ‘मुंह सूंघवा’ बन गई है. किसी के शराब पीने का शक होने पर पुलिस वाले उसका मुंह सूंघ कर पता करने की कोशिश करती है कि उसने वाकई शराब पी रखी है या नहीं?

बिहार पुलिस के पास केवल 200 ब्रेथ एनालाइजर हैं, जिससे पियक्कड़ों की पहचान करने में उसकी भारी फजीहत हो रही है. एक पुलिस औफिसर तो गुस्से में कहते हैं कि पुलिस वालों को दारू सूंघने के काम में लगा दिया गया है और अपराधियों को सूंघने का काम कुत्ते कर रहे हैं. अपराधियों पर नकेल कसने का काम छुड़वा कर पुलिस को पियक्कड़ों की खोज में लगा दिया गया है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को हर हाल में कामयाब करने की मुहिम में लगे हुए हैं, जिससे पुलिसवालों को नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल सरकार ने यह फरमान जारी कर दिया है कि अगर कोई भी वयस्क शराब पीते पकड़ा जाएगा तो उसके पूरे परिवार को सजा दी जाएगी. इसके साथ ही पुलिस को चेतावनी दी गई है कि जिस थाना क्षेत्रा में शराब या शराबी मिलेंगे उस थाना के एसएचओ पर काररवाई की जाएगी. पिछले महीने इस आरोप में 11 एसएचओ को सस्पेंड किया गया था. इतना ही नहीं सस्पेंड हुए पुलिस अफसरों को यह सजा भी मिली है कि अगले 10 सालों तक उनका प्रमोशन नहीं होगा और न ही किसी थाना में ड्यूटी मिलेगी.

सरकार के इस तुगलकी फरमान से पुलिस वालों में हड़कंप मचा हुआ है. बिहार पुलिस मेंस एसोसिएशन सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने की तैयारी कर रही है. पुलिसवालों को कहना है कि शराबबंदी कानून की वजह से उनके कैरियर पर ही खतरा मंडराने लगा है. इस कानून से पुलिस वालों के बीच इतनी दहशत है कि कोई भी इंस्पेक्टर प्रमोशन लेकर एसएचओ नहीं बनना चाह रहा है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक करीब 30 इंस्पेक्टरों ने प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया है. 

गौरतलब है कि पिछले अप्रैल महीने से ही बिहार में किसी भी तरह की शराब बेचने, खरीदने और पीने पर रोक लगी हुई है. होटलों, क्लबों, बार और रेस्टोरेंट में भी शराब परोसने पर पाबंदी है. एक अप्रैल से देसी शराब पर रोक लगाई गई और 5 अप्रैल से विदेशी शराब और ताड़ी पर भी पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई. इससे जहां सरकार को सालाना 4 हजार करोड़ रूपए का नुकसान उठाना पड़ेगा, वहीं शराब की कुल 4771 दुकानों पर ताला लग चुका है.

बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगने से सरकार को करीब 4 हजार करोड़ रूपए का सालाना नुकसान उठाना पड़ रहा है. देसी शराब से 2300 हजार करोड़ और विदेशी शराब से 1700 करोड़ रूपए का राजस्व सरकार को मिलता था. एक अप्रैल 2016 से पहले तक बिहार में 1410 लाख लीटर शराब की खपत होती थी. इसमें 990.36 लाख लीटर देसी शराब, 420 लाख लीटर विदेशी शराब और 512.37 लाख लीटर बीयर की खपत थी.  बिहार में प्रति व्यक्ति प्रति सप्ताह देसी शराब और ताड़ी की खपत 266 मिलीलीटर और विदेशी शराब और बीयर की खपत 17 मिलीलीटर थी. इसके बाद भी शराब और उससे पैदा होने वाली बुराईयों और नुकसान को खत्म करने के लिए नीतीश ने कड़ा कदम उठाया.

सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी सूरत में शराबबंदी को नाकाम नहीं होने देने की जिद पर अड़े हुए हैं. सियासी हालात भी उनके पाले में है. इसलिए वह शराबबंदी के अपने वादे को सच में बदलने के कमर कस चुके हैं. जिससे पियक्कड़ों के साथ-साथ शराब के कारोबारियों को भी काफी परेशानियों को सामना करना पड़ रहा है. उसके बाद इन सब को काबू में रखने के लिए पुलिसवालों को नाको चने चबाने पड़ रहे हैं.

क्या बौलीवुड में सनी लियोन का करियर हुआ खत्म?

लगता है कनाडियन पार्न स्टार सनी लियोन के लिए अब भारत से अपना बोरिया बिस्तर बांधने का समय आ गया है. अब भारतीय दर्शक उन्हें किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करना चाहते. पिछले एक वर्ष के अंदर सनी लियोन की प्रदर्शित फिल्मों ‘कुछ कुछ लोचा है’, ‘लव यू आलिया‘, ‘मस्तीजादे’, ‘वन नाइट स्टैंड’ फिल्मों ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा. इसके चलते अब सनी लियोन की कई प्रदर्शन के लिए तैयार फिल्म को वितरक नहीं मिल रहे हैं. यह एक कड़वा सच है.

निर्माता निर्देशक राजीव चौधरी की फिल्म ‘‘बेईमान लव’’ में सनी लियोन और रजनीश दुग्गल की जोड़ी है. यह फिल्म पहले अगस्त माह में प्रदर्शित होनी थी. पर वितरक न मिलने की वजह से नहीं हो पायी. फिर दो सितंबर को प्रदर्शित होने वाली थी, पर वितरकों के हाथ खींच लेने से फिल्म का प्रदर्शन रुक गया था. सूत्रों के अनुसार इसके बाद राजीव चोधरी ने खुद इस फिल्म को प्रदर्शित करने की योजना बनाकर 30 सितंबर की तारीख तय की. लेकिन इस बार तीस सितंबर को भी फिल्म रिलीज नहीं होगी. क्योंकि सूत्रों का दावा है कि इस बार थिएटर मालिकों ने ‘‘बेईमान लव’’ को अपने थिएटर देने से मना कर दिया है.

जब हमने इस बारे में राजीव चौधरी से बात की, तो उन्होंने कहा -‘‘यह सच है कि हम कई समस्याओं से गुजर रहे हैं. हम खुद अपनी फिल्म को रिलीज कर रहे हैं. 30 सितंबर को ‘एम एस धोनी अनटोल्ड स्टोरी’ रिलीज हो रही है, इसी के चलते हमने अपनी फिल्म 14 अक्टूबर को रिलीज करने का फैसला लिया है.’’

पर बौलीवुड के सूत्र दावा कर रहे हैं कि अब भारतीय दर्शकों का सनी लियोन और उनकी पार्न स्टार की ईमेज से मोहभंग हो चुका है. यही वजह है कि अब सनी लियोन नहीं चाहती हैं कि उन पर बनी डाक्यूमेंटरी फिल्म भारत में रिलीज हो. यदि यह डाक्यूमेंटरी भारत में रिलीज हो गयी, तो सनी लियोन की इमेज जरुरत से ज्यादा खराब हो जाएगी और उनके बौलीवुड करियर पर हमेशा के लिए ताला लग जाएगा.

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