आरबीआई ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों को और सरल बना दिया है. इस बीच वह फॉरेन करेंसी नॉन-रेजिडेंट-बैंक डिपॉजिट के मैच्योर होने पर 26 अरब डॉलर देश से बाहर जा सकने की स्थिति निपटने की तैयारी भी कर रहा है. आरबीआई ने बैंकों और बीमा कंपनियों को छोड़कर अन्य रेगुलेटेड फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनियों में ऑटोमैटिक रूट से 100% फॉरेन इनवेस्टमेंट की इजाजत दी है.

आरबीआई ने स्टार्टअप्स में वेंचर कैपिटल फंड्स के निवेश के नियम भी आसान किए हैं. साथ ही, उसने एक्सटर्नल कमर्शियल बॉरोइंग के नियमों में ढील दी है. भारत में 2015 के दौरान एफडीआई की मात्रा 28% बढ़कर 44.2 अरब डॉलर रही. यूनाइटेड नेशंस की जून में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इस साल इंडिया में एफडीआई का आंकड़ा 60 अरब डॉलर से ज्यादा हो सकता है.

भारत में अधिकांश इक्विटी इनवेस्टमेंट सिंगापुर, मॉरीशस, अमेरिका, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन से आता है. विदेशी निवेश की आवक और बढ़ाने के लिए आरबीआई ने दूसरी फाइनेंशियल सर्विसेज में ऑटोमैटिक रूट से 100% विदेशी निवेश की इजाजत दी है. इनमें ऐसी एक्टिविटीज शामिल हैं, जिन्हें आरबीआई, सेबी और इरडा जैसे रेगुलेटर रेगुलेट करते हों.

आरबीआई ने कहा कि जो फाइनेंशियल सर्विसेज रेगुलेटेड न हों या आंशिक तौर पर रेगुलेटेड हों या जिनके रेगुलेशन के बारे में अस्पष्टता हो, उनमें 100% तक विदेशी निवेश की इजाजत सरकारी मंजूरी के जरिए होगी. जिस एक्टिविटी को खासतौर से किसी एक्ट के जरिए रेगुलेट किया जा रहा हो, उसमें विदेशी निवेश उस एक्ट में बताई गईं फॉरेन इनवेस्टमेंट लेवल्स/लिमिट्स के मुताबिक होगा. 

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