कहते हैं जो जितनी जल्दी चढ़ता है उसी तेजी से गिरता भी है. ठीक यही स्थिति सोशल मीडिया की भी हुई है. कई कारणों से यह अपने महत्त्व को खोता जा रहा है. कुल मिला कर लोगों को अब फेसबुक पर ऐक्टिव रहना समय की बरबादी नजर आ रहा है.

पिछले 1-2 साल में जिस तेजी से सोशल साइट्स का क्रेज बढ़ा और युवाओं को फेसबुक का चसका लगा, अब उस की सचाई भी सामने आने लगी है. युवाओं को नई नौलेज देने वाली सोशल साइट्स कई कारणों से अपना महत्त्व खोती जा रही हैं, जिन में एक है समय की बरबादी.

इस विषय पर एक बुद्धिजीवी प्रोफैसर से चर्चा की, तो उन की अभिव्यक्ति हतप्रभ करने वाली थी. हरिद्वार के एक कालेज में वे युवा लेक्चरर हैं और अविवाहित भी. मेरी फेसबुक पर ही उन से मित्रता हुई.

जब मैं ने फेसबुक के बारे में उन के विचार जानने चाहे, तो उन की सब से पहली प्रतिक्रिया यही थी कि इस साइट पर एक संवेदनशील व्यक्ति की कोई अहमियत नहीं होती. तमाम तरह के  झूठ और दिखावे की बातें यहां होती हैं. 

एक शिक्षाविद् होने के नाते उन की अपने विश्वविद्यालय के प्रांगण में अपने स्टूडैंट्स पर भी नजर रहती है. अत: एक शिक्षक के रूप में उन की यही प्रतिक्रिया थी कि ज्यादातर युवकयुवतियां वक्त की बरबादी करते हैं तथा उन्हें न तो समय का खयाल होता है और न ही सामने वाले के ओहदे का.

मसलन, वे खुद व्याख्याता हैं, किंतु सोशल साइट पर यदि वे किसी सुंदर छात्रा पर कमैंट करते हैं, तो उन का स्तर किसी छात्र का सा हो जाता है.

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