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व्यापारियों के खातों में किसानों की रकम

अकसर देशभर में किसानों को मिलने वाली तमाम तरह की राहत की रकम में होने वाली हेराफेरी की शिकायतें सुनाई पड़ती रहती हैं. मगर इस बार उत्तर प्रदेश में प्रशासन के निकम्मेपन की वजह से हेराफेरी का नया रिकार्ड बना है. नए मामले में साल 2014-2015 की ओलावृष्टि से बरबाद हुई फसलों के करोड़ों रुपए की राहतराशि चुपके से सरकारी अफसरों, शातिरों और बैंक वालों की तिकड़ी द्वारा किसानों के बजाय व्यापारियों के पास पहुंचा दी गई है. मजे की बात तो यह है कि बड़े अधिकारियों को इस फर्जीवाड़े की भनक तक नहीं लग सकी. कलई तो तब खुली जब किसानों ने राहत रकम के चैक न मिलने पर आंदोलन छेड़ दिया.

यह पूरा फर्जीवाड़ा करीब 2 करोड़ रुपए का है, जिसे 273 एकाउंट पेई चैकों द्वारा कई खातों में भेजा गया है. लेख लिखे जाने तक पूरे मामले को 1 महीने से भी ज्यादा समय बीत चुका है, मगर जांच पूरी न होने की वजह से दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है.

क्या है मामला : साल 2014-2015 में ओलावृष्टि से बरबाद हुई फसलों की भरपाई के लिए केंद्र सरकार की ओर से राहत की रकम आई थी. यह काम प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के सहयोग से होना था. संभल जिले के उघैती थाना क्षेत्र के गगरौली गांव निवासी किशन यादव और उस के सहयोगी उरमान और अजय ने संभल समेत दूसरे जिलों के राजस्व कर्मचारियों और बैंक मैनेजरों से सांठगांठ कर 273 एकाउंट पेई चैकों का भुगतान कई व्यापारियों के खातों में करा दिया.

दरअसल, इस धांधली का मास्टरमाइंड किशन यादव बदायूं के बिल्सी कसबे में सुगंध वाटिका के नाम से एक ढाबा चलाता है.  किशन यादव स्थानीय व्यापारियों से उधार सामान लेने की वजह से भयंकर तरीके से कर्जे में फंस चुका था.

बस फिर क्या था, उस ने अपने ऊंचे राजनीतिक रसूख के चलते अपने कारोबार का कर्ज सरकारी खजाने से चुकाने की ठान ली. वह राजस्व विभाग, बैंक कर्मियों और अपने साथियों के सहयोग से किसानों की राहत की रकम के चैक व्यापारियों  के खातों में पहुंचने लगा तो उन्हें भी कोई आपत्ति नहीं हुई. इस तरह 273एकाउंट पेई चैकों द्वारा करीब 2 करोड़ रुपए की राहत की रकम किसानों के बजाय व्यापारियों के हवाले हो गई.

मजे की बात तो यह है कि जिले के बड़े अफसरों को इस की भनक तक न लगी. मामले का खुलासा तब हुआ जब किसानों ने आला अफसरों से राहत की रकम देने की मांग की, आला अधिकारियों ने जब मामले की पड़ताल की तो इस फर्जीवाड़े का खुलासा हो गया. खुलासा होते ही एसडीएम बिल्सी ने व्यापारियों समेत14 लोगों पर नामजद एफआईआर दर्ज करा दी, इस से जिले सहित पूरे सूबे में हड़कंप मच गया.

एक एक व्यक्ति के नाम पर 5-5 चैक : आमतौर पर सरकारी रकम लेने में किसानों की एडि़यां घिस जाती हैं, फिर भी उन का वाजिब हक उन्हें नहीं मिल पाता है. मगर इस पूरे फर्जीवाड़े में तिकड़ी ने जो चाहा वही किया. यही कारण था कि एकएक व्यक्ति के नाम पर 5-5 चैक जारी कर दिए गए. विनोद कुमार और सुनीता देवी के संयुक्त खाते में 26 से 28 हजार रुपए तक के 5-5 चैक जारी किए गए. फरीदपुर गांव के संजीव कुमार के नाम पर 23 से 25 हजार तक के 5-5 चैक जारी किए गए. अशोक कुमार के नाम पर 4चैक जारी किए गए. किशन यादव, उस की पत्नी भूरी देवी व बहू के नाम पर 27-27 हजार के 3 चैक जारी किए गए. यहीं के कृष्ण मुरारी के नाम पर 22-22 हजार के 2 चैक, प्रताप मीणा के नाम पर 27-27 हजार के 2 चैक जारी किए गए. भानु प्रकाश पुत्र शिवदयाल, भानु प्रकाश पुत्र बासदेव के नाम पर 2-2 चैक जारी किए गए. सौरभ वार्ष्णेय, सौरभ गुप्ता व सोनम के नाम 2-2 चैक जारी कर खाते में पैसे भी पहुंचा दिए गए.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ये तो चंद उदाहरण भर हैं, जबकि फेहरिस्त तो और भी लंबी है. ऐसे कई नाम हैं जिन के नाम पर अनेक चैक जारी कर के रकम ट्रांसफर कर ली गई है. जांच अधिकारी के मुताबिक सर्वाधिक हेराफेरी पंजाब नैशनल बैक की बहजोई शाखा से हुई है, जिस से करीब 90 चैकों का भुगतान हुआ, जिस में सभी खाताधारक बहजोई क्षेत्र के रहने वाले हैं.

इस मामले के बारे में जब पता चला तो चैक लेने वालों में से करीब 55 व्यापारियों ने अपने को फंसते देख एक शपथपत्र दाखिल करते हुए करीब 30 लाख रुपए आपदा राहत कोष में जमा कर दिए हैं. हालांकि बाद में व्यापारियों ने फर्जीवाड़े के सरगना किशन यादव और फर्जीवाड़े में शामिल अधिकारियों, कर्मचारियों के खिलाफ आवाज उठाई, मगर राजनीतिक रसूख की वजह से खुलासा होने के 1 महीने से भी अधिक का समय बीत जाने के बाद भी दोषियों की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है.

राजस्व विभाग और बैंक की लीपापोती : ऐसे समय में जब सरकार की राहत की रकम पाने में किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और खाली हाथ लौटना पड़ रहा है, तब एक ही व्यक्ति के नाम पर5-5 चैक जारी होने और उस का पैसा खाते में पहुंच जाना चौंका देता है. इस मामले में साफतौर पर घोटाले का सरगना किशन यादव, राजस्वकर्मियों और बैंक अधिकारियों, कर्मचारियों की मिलीभगत दिख रही है.

फर्जीवाड़े पर बिल्सी के तहसीलदार बालकराम का कहना है कि घोटाला चैकों से नाम काट कर दोबारा लिखने के कारण हुआ है. जबकि पंजाब नैशनल बैंक की बल्सी शाखा के मैनेजर एसए खान का कहना है कि लिखापढ़ी में सबकुछ सही होने की वजह से सभी चैक पास किए गए हैं. बैंक मैनेजर का कहना है कि तहसीलदार के हस्ताक्षर असली हैं या नकली इस की किसी माहिर से जांच कराई जाए, तो मामले की पोल खुल जाएगी.

जांच की कुछआ चाल : फर्जीवाड़े की खबर जब पूरे प्रदेश में फैली तो शामली के डीएम सीपी तिवारी ने प्रकरण की जांचपड़ताल के लिए जिले के 3 वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम बना कर 1 हफ्ते का समय दिया, जिस में साथ में बिल्सी थाने के दारोगा स्वर्ण सिंह को विवेचनाधिकारी भी नियुक्त किया गया.1 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद केवल 3 लेखपालों भगवान सिंह, महावीर प्रसाद व सतीश को निलंबित कर के कार्यवाही की खानापूरी कर ली गई है. वहीं दूसरी ओर विवेचनाधिकारी ने जांच करने से साफ इनकार कर के इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) से कराने की मांग की है.

इस मुद्दे पर जांच टीम के सदस्य जिले के एडीएम वित्त एवं राजस्व राजेंद्र प्रसाद यादव का कहना है कि जांच की समयसीमा निकल गई है, लेकिन जांच तीनों सदस्य जल्दी ही निबटाएंगे. सरकारी कामकाज और दूसरे कारणों से जांच में देरी हुई है. तीनों अधिकारी इस जांच को अपनेअपने स्तर से निबटा रहे हैं. नतीजा जल्द ही आ जाएगा.

मामले और भी हैं : ऐसा नहीं है कि यह कोई इकलौता मामला हो, इस के अलावा बदायूं में भी तकरीबन63 लाख तक का घपला मीडिया के माध्यम से उजागर हुआ है. प्रदेश सरकार के निकम्मेपन को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये तो कुछ बड़े मामले थे, जो उजागर हो गए. इस के अलावा यदि पूरे सूबे में सही ढंग से जांच कराई जाए, तो दूसरे जिलों में भी इस तरह के भंडाभोड़ हो सकते हैं.

अकेले हैं तो शहंशाह नहीं

आजकल फैमिली में सिंगल चाइल्ड का ट्रैंड चल पड़ा है जिस से धीरेधीरे उस घर के बच्चे के मन में यह भावना घर करने लगती है कि वह घर पर अकेला है और सबकुछ उसी का है. हर चीज पर उसी का अधिकार है और यह एकछत्र साम्राज्य की भावना धीरेधीरे उस के जीवन पर भी हावी होने लगती है. फिर चाहे घर हो या फ्रैंड सर्किल उसे लगता है कि सिर्फ वही सबकुछ है. वह खुद को सुपर दिखाने की कोशिश करता है, इस से उसे अपनी हर गलती भी सही लगती है, क्योंकि वह इतने लाड़प्यार वाले माहौल में पलाबढ़ा होता है कि समझ ही नहीं पाता कि औरों के भी हक हैं, भावनाएं हैं, उस का यही स्वभाव उस की पर्सनैलिटी पर गलत प्रभाव डालता है, जिस से लोग उस से दोस्ती करने के बजाय उस से दूर भागने लगते हैं. अत: घर में अकेले हैं तो खुद को शहंशाह न समझें बल्कि अकेले होने के बावजूद बढ़ी अपनी जिम्मेदारियों पर ध्यान दें, क्योंकि आप को अकेले ही घर की सभी जिम्मेदारियां निभानी हैं फिर चाहे वह कमाई की हो, रिश्तेदारी की या मातापिता को संभालने की.

फैमिली में अकेली हैं तो क्या न करें

मनमानी न करें

अकसर देखने में आता है कि जिस घर में पेरैंट्स की अकेली लड़की होती है उस घर में उस की खूब केयर होती है और लाड़प्यार में पली ऐसी लड़की को लगता है कि वह अब अपनी कैसी भी इच्छा पूरी करवा सकती है, जिस से मनमानी करना उस के स्वभाव में शामिल होने लगता है.

अगर पेरैंट्स उसे डिनर पर साथ चलने को कहते हैं तो वह घर पर ही डिनर मंगवाने की जिद करने लगती है और अपनी इस जिद में यह भी भूल जाती है कि उस के अलावा औरों की भी इच्छा है.

अंत में पेरैंट्स उस की खुशी के लिए झुक जाते हैं और घर पर ही डिनर करने को राजी हो जाते हैं, जबकि ऐसे में उस को चाहिए कि वह अपने पेरैंट्स की हर बात की रिस्पैक्ट करे और उन की खुशी के लिए हरदम झुकने को तैयार रहे न कि हरदम मनमानी करती रहे.

स्पैशल ट्रीट करवाने की कोशिश न करें

भले ही आप को आप के मम्मीपापा स्पैशल ट्रीटमैंट देते हों लेकिन यह जरूरी नहीं कि यही ट्रीटमैंट फैमिली के और मैंबर्स यानी आप के कजिंस भी दें. इसलिए जब भी आप कजिंस से मिलें तो ऐसे शो न करें जैसे आप बहुत खास हैं, इसलिए सब का फोकस आप पर ही रहे, सब बाकी लोगों को छोड़ कर आप को ही ऐंटरटैन करें. कोई चीज सर्व हो तो शुरुआत आप से ही हो बल्कि आप नौर्मल रहें और सब से शिष्टाचार से बोलें, जिस से वे यह कहने पर मजबूर हो जाएं कि देखा, पूरी फैमिली में अकेली लड़की है फिर भी कितनी समझदार है.

ड्रामा न करें

अगर आप को मामूली सी चोट लगी है या फिर बुखार है तो पूरा घर सिर पर न उठा लें कि मेरे यहां दर्द हो रहा है, हाय मुझ से तो उठा ही नहीं जा रहा जबकि दर्द आप को सिर्फ थोड़ा ही हो रहा है.

लेकिन यह सारा ड्रामा ऐक्स्ट्रा केयर व सब आगेपीछे घूमें इस के लिए ही किया जा रहा है. यहां तक कि जिस किसी का फोन भी आए तो आप उस के सामने अपनी बीमारी का रोना रोने लग जाएं ताकि हर कोई आप को देखने आए. इसलिए मामूली बातों पर ज्यादा रिऐक्ट न करें और जब तक जरूरी न हो अपनी समस्या अपने तक ही रखें. ध्यान रहे आप की ऐसी हरकतें दूसरों की परेशानी बढ़ा सकती हैं.

‘मैं’ वाला कौन्सैप्ट छोडे़ं

पापा देखो न मेरे सिवा घर में बच्चा है ही कौन, जो है सब मेरा ही तो है. मैं ही आप की दुनिया हूं, तो पापा आप के इस ‘मैं’ इमोशन के सामने पिघल कर आप को आप की पसंद का वीडियोगेम दिला देंगे और आप वीडियोगेम हाथ लगते ही खुद को शहंशाह समझने लगेंगी और फिर सब को वीडियो गेम दिखा कर चिढ़ाने लगेंगी कि देखा मेरा वीडियो गेम, मैं कहती हूं न कि मैं शहंशाह हूं.

इस में एक तो आप अपने पेरैंट्स को ‘मैं ही हूं’ शब्द से बारबार पिघलाने की कोशिश कर रही हैं वहीं दूसरी ओर अपनी ‘मैं’ के कारण औरों की नजरों में भी गिर रही हैं इसलिए अपने ‘मैं’ वाले कौन्सैप्ट को छोड़ें.

सब चीजों पर अपना हक न जमाएं

अकेली हैं तो इस का मतलब यह नहीं कि सिर्फ घर में आप की खुशी ही माने रखती है. मसलन, घर में एक टीवी है तो उस का यह मतलब नहीं कि हर वक्त आप की ही पसंद का सीरियल चलेगा. आप के पेरैंट्स भी खुद को रीफ्रैश करने के लिए टीवी देखना चाहते हैं अत: उन की इच्छाओं की भी कद्र करें. साथ ही जब मम्मीपापा लैपटौप या फोन में गेम खेलने लगें तो उन के हाथ से फोन छीन लेना या अपने काम का बहाना बना कर लैपटौप पर कब्जा जमाना ठीक नहीं. याद रखें, दूसरों की भी इच्छाएं हैं, अकेले होने का फायदा न उठाएं बल्कि उन की फीलिंग्स की कद्र करें.

फ्रैंड सर्किल में किन बातों का ध्यान रखें

सैंटर औफ अट्रैक्शन बनने की कोशिश न करें

भले ही आप अपने मम्मीपापा की प्रिंसैस हों लेकिन अगर आप अपने किसी फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई हैं और वहां भी आप यह सोचें कि बर्थडे बौय को भूल कर सब आप पर फोकस करें तो भूल जाएं कि ऐसा होगा.

अगर आप बारबार उलटीसीधी हरकतें कर के सब का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश भी करेंगी तब भी सैंटर औफ अट्रैक्शन नहीं बन पाएंगी. इसलिए अपने को ही सबकुछ समझने की सोच को बाय कहें और अपने कारण किसी के इतने खास दिन को खराब न होने दें.

सिर्फ खर्च ही न करवाती रहें

चाहे 10 भाइयों की एक बहन हों या फिर पूरे ग्रुप में अकेली लड़की, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि हरदम अपने अकेले होने का फायदा उठाते हुए उन्हें लूटती रहें और जब कोई खर्च करने को कहे तो ‘यार अकेली हूं फिर भी मुझ से पैसे लोगे’ कहें. ऐसे में फ्रैंड्स भले ही यह बात सुन कर आप से पैसे न लें लेकिन पीठ पीछे आप की बुराई अवश्य करेंगे. इसलिए हर जगह अपने अकेले होने का फायदा न उठाएं वरना किसी दिन कोई यह कहने में भी देर नहीं लगाएगा कि अकेली है तो कोई शहंशाह थोड़ी न बन गई. अपनी अच्छी आदतों से सब का दिल जीतने की कोशिश करें. 

अपनी पसंद दूसरों पर न थोपें

जब आप फ्रैंड्स के साथ आउटिंग पर जाएं तो वहां अपनी घर वाली दादागीरी न दिखाएं कि मैं तो शाही पनीर ही खाऊंगी या फिर मैगी और जब सब कहें कि यार यह डिश तो हमें पसंद नहीं इसलिए कोई दूसरी डिश मंगवा लेते हैं तो मुंह फुला कर न बैठ जाएं. ऐसे में उन्हें जबरदस्ती आप की खुशी के लिए हामी भरनी पड़ेगी लेकिन अंदर से उन्हें आप पर गुस्सा भी बहुत आएगा. इसलिए जब कभी बाहर जाएं तो ऐडजस्ट करना सीखें वरना अगली बार कोई फ्रैंड आप को इनवाइट करने की भूल नहीं करेगा.

हर बात पर जिद न करें

कहीं बाहर घूमने गई हैं तो वहां बातबात पर जिद कर के फ्रैंड्स का मूड औफ न करें, जैसे कि मुझे रूम में अकेले सोना है, सभी का सुबह घूमने जाने का प्रोग्राम 10 बजे का है लेकिन आप सिर्फ नींद के कारण 12 बजे चलने को बोलें. सब लोकल बस से घूमने की बात कहें लेकिन आप प्राइवेट कार करने की बात पर अड़ी रहें. ये सारी जिद घर में चल जाएगी क्योंकि अकेले होने के कारण पेरैंट्स आप को रोकेंगेटोकेंगे नहीं लेकिन फ्रैंड्स संग नहीं. इसलिए हर बात की जिद न करें.                  

जब अकेले रहते हैं तो इन बातों पर ध्यान दें

कभी भी निकल जाएं घूमने के लिए

आज पढ़ाई व जौब के सिलसिले में किशोरों को घर से दूर जा कर होस्टल या पीजी में रहना पड़ता है. ऐसे में घर से दूर जाते ही उन्हें लगने लगता है कि अब वे आजाद हो गए हैं. ऐसे में पीजी में रहते हुए जब भी मन करता है या फिर बोर हो रहे होते हैं तो घूमने निकल जाते हैं, बेशक तब रात ही क्यों न हो रही हो. भले ही आप अकेले रहें लेकिन कुछ नियमों का पालन घर की तरह ही करें. इस से आप सेफ भी रहेंगे.

जब मरजी सो कर उठें

पीजी रूम में देखने वाला तो कोई है नहीं इसलिए जब मरजी सो कर उठो, मन करे तो कालेज जाओ वरना पूरे दिन सोते रहो. भले ही आप पर नजर रखने वाला अब कोई, नहीं लेकिन ऐसा कर के आप अपने साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, इसलिए रूटीन को फौलो जरूर करें.

कुछ भी देख लेने की आदत

जब घर पर थे तब तो मम्मी की नजर हरदम आप पर ही टिकी रहती थी कि फोन में क्या देख रहे हो, टीवी पर कौन सा चैनल चलाया हुआ है. पर अब कोई टोकने व देखने वाला नहीं है तो फ्रैंड्स के कहने पर पोर्न साइट्स भी देखने से गुरेज नहीं करते. ऐसे में ऐसी चीजें देख कर आप का पढ़ाई से ध्यान तो हटेगा ही साथ ही आप की नैगेटिव इमेज भी बनेगी.

अभद्र भाषा का प्रयोग

अकेले रहना क्या शुरू किया कि दोस्तों के साथ अबे, तू, साला या फिर गंदीगंदी गालियों से बातें करें और छोटी सी बात पर मारपीट करने को तैयार हो जाएं. ध्यान रहे अकेले रहने का मतलब यह नहीं कि आप सारी मर्यादाएं ही भूल जाएं.

इस तरह यदि आप अकेले हैं चाहे सिचुऐशन कैसी भी हो तब भी अपनी जिम्मेदारियों को न भूलें और खुद को अकेला हूं कह कर शहंशाह न समझ बैठ

12वीं के बाद क्या करें

12वीं के बाद कौन सा कैरियर चुनें, किस फील्ड में अच्छा होगा, कालेज में ऐडमिशन लें या फिर कोई अन्य कोर्स करें, बिजनैस में हाथ आजमाएं या फिर नौकरी में. अकसर स्टूडैंट्स को 12वीं करने के बाद इसी समस्या से दोचार होना पड़ता है. कहते हैं कि असली परेशानी स्कूल से निकलने के बाद ही शुरू होती है, जब आप को कैरियर सोचसमझ कर चुनना पड़ता है. आजकल कालेजों की कटऔफ लिस्ट इतनी हाई हो गई है कि किसी अच्छे कोर्स में ऐडमिशन लेना अब हर किसी के बस की बात नहीं रह गई. अगर आप को हाई कटऔफ के चलते कालेज में ऐडमिशन न मिल पाया हो तो परेशान होने की जरूरत कतई नहीं है. यहां कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं जिन्हें अमल में ला कर आप बेहतर कैरियर बना सकते हैं :

प्रोफैशनल कोर्स पर दें ध्यान

आजकल बीबीए, जर्नलिज्म, बीटैक जैसे कोर्सेज की भी काफी डिमांड है. अपनी स्किल्स के हिसाब से आप अपना कैरियर बना सकते हैं. कई यूनिवर्सिटीज और इंस्टिट्यूट्स प्रोफैशनल कोर्सेज कराते हैं. आजकल जर्नलिज्म की भी काफी डिमांड है. आईआईएमसी के अलावा दिल्ली के कई कालेजों से जर्नलिज्म का कोर्स किया जा सकता है. कई बड़े शहरों में भी जर्नलिज्म इंस्टिट्यूट्स हैं जहां से आप यह कोर्स कर सकते हैं. यदि आप कुछ हट कर करना चाहते हैं तो इवैंट मैनेजमैंट, योग, टूरिज्म, आरजे, वीजे और डीजे जैसे कोर्सेज में भी अपने हाथ आजमा सकते हैं. इन में नाम के साथसाथ पैसा भी है और करने के लिए कुछ नया भी.

खुद तय करें अपनी मंजिल

सब से पहले आप को अपना उद्देश्य समझना होगा कि आखिर आप करना क्या चाहते हैं. फिर उस पर फोकस करने के बाद आगे कदम बढ़ाइए. याद रखिए, अगर आप के इरादे मजबूत होंगे तो आप तरक्की करते चले जाएंगे. यदि आप नौकरी नहीं करना चाहते और खुद बौस बनना चाहते हैं, तो आप अपना रास्ता खुद बना सकते हैं. छोटे से बिजनैस से आप शुरुआत कर सकते हैं.

शौक बड़ी चीज है

यदि आप इन सब से हट कर कुछ और करना चाहते हैं तो जरा अपने शौक पर भी गौर फरमाइए. अगर आप को कुकिंग का शौक है तो आप होटल मैनेजमैंट का कोर्स कर सकते हैं. पांचसितारा होटल में शैफ की सैलरी काफी अच्छी होती है और यदि आप किसी होटल में शैफ नहीं बनना चाहते तो खुद का भी कुछ काम शुरू कर सकते हैं. मास्टर शैफ संजीव कपूर हों या फिर शैफ हरपाल सभी आज की तारीख में सैलिब्रिटीज हैं. इन लोगों का संबंध सीधा आम लोगों से है. यही वजह है कि लोग शैफ को सैलिब्रिटी से कम नहीं समझते. अपना खुद का फैसला लें कि आप क्या करना चाहते हैं. हां, आप अपने फैसले पर परिवार या बाहरी लोगों की राय जरूर ले सकते हैं. वे आप के कैरियर को ले कर क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं, उसे ध्यान से सुनें, लेकिन किसी को अपने ऊपर हावी न होने दें.

27 वर्षीय योगेश को 12वीं के बाद उस के घर वालों ने कालेज में पढ़ने की सलाह दी, लेकिन उस की रुचि टूरिज्म में थी, पैसे की तंगी के चलते वह कोर्स नहीं कर पाया. जिस की कसक आज भी योगेश के दिल में है. 12वीं के बाद का समय वह समय है जब आप के कैरियर की दिशा निर्धारित होती है. याद रखिए, कैरियर बारबार नहीं बनता, इसलिए कुछ भी करने से पहले हजार बार सोचें. उस के बाद ही उस पर अमल करें, ताकि भविष्य में होने वाली भूल से बचा जा सके.

कैसे बनते हैं बम पटाखे

किशोर दीवाली पर कई दिन पहले से ही गली महल्लों में बमपटाखे चलाने लगते हैं. दीवाली के दिन तो आधी रात तक खूब बमपटाखों का शोर सुनाई देता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बमपटाखे बारूद से बनाए जाते हैं? यदि बारूद का आविष्कार न होता तो बमपटाखे कैसे बनाए जाते? बारूद से रौकेट अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं और युद्ध के मैदान में तोपों में भी बारूद का इस्तेमाल किया जाता है. बमपटाखे जलाने को आतिशबाजी कहा जाता है. आतिशबाजी शब्द फारसी भाषा का है. आतिश का अर्थ होता है आग. बारूद शब्द तुर्की भाषा का है.  बारूद 3 रसायनों के मिश्रण से बनता है. जब गंधक, शोरा और लकड़ी के कोयले के चूरे को आपस में मिलाया जाता है तो बारूद बनता है. बारूद बनाने के लिए शोरा, गंधक और लकड़ी के कोयले का चूरा मिलाया जाता है. बारूद बनाने के लिए सब से आवश्यक रसायन है शोरा. अंगरेजी में शोरा को ‘साल्ट पीटर’ कहते हैं. वैज्ञानिक शोरा को ‘पोटैशियम नाइट्रेट’ कहते हैं. वैसे शोरा शब्द फारसी भाषा का है. जनसाधारण में शोरे को क्षार कहा जाता है. शोरा एक प्रकार से नमक का खार होता है, जिसे मिट्टी से प्राप्त किया जाता है. आजकल शोरा सोडियम नाइट्रेट और पोटैशियम क्लोराइड से बनाया जाता है.

वैज्ञानिकों ने परीक्षणों से ज्ञात किया है कि कोई भी वस्तु औक्सीजन के बिना नहीं जल सकती, लेकिन बारूद औक्सीजन के बिना जलता है. कुछ वस्तुएं ऐसी भी होती हैं जो जलने के लिए स्वयं औक्सीजन उत्पन्न करती हैं. बारूद भी ऐसी ही वस्तु है. इस में मिलाए गए गंधक और कोयले के चूरे को जलाने के लिए औक्सीजन शोरे से मिलती है. ऐसी स्थिति में बारूद को जलाने के लिए वायुमंडल की औक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती.

बारूद का आविष्कारक यूरोप कहा जाता है, लेकिन वास्तव में बारूद का आविष्कार चीन में हुआ था. प्राचीन काल में चीन में कीमियागार पारसमणि की गोलियां बनाने के लिए दिनरात रासायनिक प्रयोग किया करते थे. कई हजार वर्ष पहले कीमियागरों के प्रयोग से बारूद का जन्म हुआ. किसी कीमियागर ने शोरे, गंधक और लकड़ी के कोयले के चूरे को मिलाया तो अचानक विस्फोट हुआ और बारूद का आविष्कार हो गया.

चीन के एक चिकित्सक सुन सिम्याओ की 618 में लिखी एक पुस्तक से बारूद की जानकारी मिलती है. उस समय चीन में बारूद को ‘हुओयाओ’ कहा जाता था. एक हजार ईस्वी में बारूद को हथगोलों और रौकेटों में इस्तेमाल किया जाने लगा था. ईसा की 11वीं सदी में चीन में रौकेट बनने लगे थे. रौकेटों को चीनी भाषा में ‘हुओ छिंएग’ कहा जाता था.

कुछ वर्ष बाद लोहे की नलियों में बारूद भर कर हथियार बनाए जाने लगे. लोहे की तोपें भी बारूद से बनने लगीं. मंगोल योद्धाओं के माध्यम से बारूद की जानकारी 13वीं सदी में यूरोप में पहुंची. भारत में भी बाबर तोपों के साथ आया था.

दो जासूस और अनोखा रहस्य (अंतिम भाग)

अभी तक आप ने पढ़ा…

अजय के कातिल को ढूंढ़ते हुए उन्होंने यूसुफ से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और अजयजी साथ काम करते थे औैर वह अजयजी के कातिल को ढूंढ़ने हेतु यहां पहुंचा. दरअसल, वे दोनों सीक्रेट एजेंट थे इसलिए यूसुफ ने सीजर कोड जल्दी हल कर लिया. टैनिस बौल के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि उस में एक मैमोरीकार्ड निकला जिसे फोन में लगाने पर एक वीडियो क्लिपिंग दिखी. उस में एक तहखाने में बंदूकों, राइफलों, बमों के ढेर दिख रहे थे. यूसुफ ने बताया कि हमारा डिपार्टमैंट इसी यूनिट की तलाश में था. शायद अजय ने इसे ढूंढ़ कर इस की रिकौर्डिंग कर ली थी. अब इंस्पैक्टर ने वीडियो को दोचार बार देख जगह की पहचान की और गुपचुप तरीके से वहां छापा मार कर सभी अपराधी पकड़ लिए. लेकिन कुछ सवाल अभी बाकी थे और असली कातिल उन से दूर था.

अब आगे…

पुलिस वालों ने अनवर के घर के इर्दगिर्द मोरचाबंदी कर ली. शोरगुल सुन कर घर के  सब लोग उठ कर वहां आ गए और सारी बात पता चलने पर सब के मुंह खुले के खुले रह गए.

‘‘इस से यह बात तो बिलकुल साफ हो जाती है कि उन का कोई न कोई आदमी खुलेआम बाहर घूम रहा है और अब इस केस से जुड़े सभी लोगों को मार कर वह अपने साथियों का बदला लेगा. यूसुफ अंकल आज सुबह घर वापस जाने वाले थे, इसलिए पहले उन्हें निशाने पर लिया गया. अगला नंबर हमारा होगा या फिर इंस्पैक्टर अंकल का,’’ साहिल बोला.

‘‘लेकिन यूसुफ अंकल ने कहा था कि उन लोगों को कल की घटना से पहले उन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और कल जब हम उन्हें पकड़ कर पुलिस स्टेशन लाए, तब से एक औल्टो कार हमारा पीछा कर रही थी. शाम तक वे लोग वहीं बाहर ही छिपे थे जहां से पुलिस ने उन्हें पकड़ा था यानी उन के अलावा गैंग के किसी मैंबर को यूसुफ अंकल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इस का मतलब यह हुआ कि औल्टो वालों ने पकड़े जाने से पहले किसी को इस बारे में बताया और वह जो भी था, वह उन के अड्डे पर नहीं बल्कि कहीं और था.’’

उस की बातों को ध्यान से सुन रहा फैजल बोला, ‘‘और अगर इस तरह की सिचुएशन में कोई आदमी फोन करेगा तो जरूर गैंग के किसी महत्त्वपूर्ण आदमी को ही करेगा. जो रिकौर्डिंग हम ने देखी थी उस के हिसाब से वे कुल 17 आदमी थे. 15 वहां से अरैस्ट हुए और 2 औल्टो वाले, तो पूरे 17 तो हो गए. फिर यह 18वां आदमी कहां से पैदा हो गया?’’ फैजल का दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था, ‘‘17 आदमी वहां काम करते थे, मतलब वर्कर्स थे, तो इन वर्कर्स का कोई मालिक यानी बौस भी होना चाहिए. वही बौस जिसे उन्होंने फोन कर के खबर दी और जिस ने यूसुफ अंकल को मारा. कौन हो सकता है यह आदमी?’’

इतने में इंस्पैक्टर रमेश आ पहुंचे, उन्होंने बताया कि रामगढ़ लौंज नाम के होटल के जिस कमरे में यूसुफ ठहरा हुआ था, वहीं उस की लाश पड़ी मिली है. उस की हत्या भी गोली मार कर की गई है और अस्तबल जैसे ही बड़े जूतों के निशान वहां से भी मिले हैं यानी अजय और यूसुफ दोनों का कातिल एक ही है.

‘‘कोई और खास बात जो आप ने वहां देखी हो?’’ फैजल ने पूछा.

‘‘और तो कुछ खास नहीं, पर यूसुफ के चेहरे पर जो भाव थे, वे कुछ अजीब से थे. जैसे हैरान और कुछ समझ न पा रहा हो.’’

फैजल कुछ सोचने लगा. अचानक उस ने अपना फोन निकाला और जल्दीजल्दी दोचार बटन दबा कर स्क्रीन देखने लगा.

करीब 5 मिनट बाद उस के चेहरे के भाव एकदम बदल गए और वह ऐसे खुश नजर आने लगा, मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. फिर वह इंस्पैक्टर रमेश के पास पहुंचा और बोला, ‘‘अंकल, आप के पास अजय के घर का नंबर है न, वहां फोन लगाइए और आंटी को कहिए कि हम अभी आधे घंटे में उन के घर आ रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि अंकल की अलमारी में एक फाइल थी, जिस से हमें कोई काम की बात पता चल सकती है.’’

‘‘फैजल, इस समय कातिल बौराया हुआ घूम रहा है. तुम लोगों का बाहर जाना ठीक नहीं होगा,’’ इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘अरे, आप फोन लगाइए तो सही. मुझे समझ आ गया है कि कातिल कौन है और मेरे पास उसे पकड़ने का पूरा प्लान भी है.’’

इंस्पैक्टर रमेश ने फोन उठाया और अजय की पत्नी यास्मिन को वैसा ही कह दिया जैसा फैजल ने बताया था.

‘‘अब सब लोग ध्यान से मेरी बात सुनिए…’’ फैजल धीमी आवाज में उन्हें कुछ समझाने लगा.

जब वह चुप हुआ तो सब के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे.

इंस्पैक्टर रमेश ने जल्दीजल्दी 3-4 फोन मिलाए, कुछ हिदायतें दीं और कुछ सामान लाने का और्डर दिया. फिर बैठ कर किसी का इंतजार करने लगा. साहिल, फैजल और अनवर मामू तैयार होने चले गए. कुछ ही देर में एक सिपाही सारा सामान ले कर आ गया और सब लोग बाहर जा कर जीप में बैठ गए.

अजय के घर पहुंच कर वे चारों जब ड्राइंगरूम में पहुंचे तो यास्मिन उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘आइएआइए, मैं ने सुना है कल गांव में बहुत सारे आतंकवादी पकड़े गए. क्या यह सच है? और उस पहेली का कोई हल सूझा तुम्हें फैजल?क्या उसी के लिए तुम्हें वह फाइल चैक करनी है? आओ, तुम खुद ही देख कर निकाल लो, जो फाइल तुम्हें चाहिए.’’

अजय के कमरे से नीले रंग की एक फाइल ले कर वे फिर से ड्राइंगरूम में आ गए.

‘‘तुम इसे चैक करो, मैं चाय ले कर आती हूं,’’ कह कर यास्मिन किचन में चली गई?

कुछ ही पल बीते थे कि अचानक पिछले दरवाजे से दबेपांव एक बड़ेबड़े जूतों वाला नकाबपोश कमरे में दाखिल हुआ. उस के दोनों हाथों में रिवाल्वर थे, जिन में साइलैंसर लगे हुए थे. फाइल पर झुके चारों लोगों ने चौंक कर उस की ओर देखा ही था कि पिट…पिट…पिट…पिट… किसी को पलक झपकाने का मौका दिए बगैर उस ने चारों के सीने में गोलियां उतार दीं. दर्द भरी चीखों के साथ वे नीचे गिर पड़े. जितनी फुरती से नकाबपोश अंदर आया था, उतनी ही फुरती के साथ बाहर की तरफ लपका, लेकिन दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही 8-10 आदमियों ने उसे घेर कर बुरी तरह जकड़ लिया और उस से दोनों रिवाल्वर छीन लिए. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसे रस्सियों से बांध दिया गया. तभी चारों लाशें अपनेअपने कपड़े झाड़ती हुई उठ खड़ी हुईं. उन सब के चेहरे पर शरारती मुसकराहट थी.

‘‘क्यों, कैसी रही यास्मिन आंटी?’’ साहिल ने एक आंख दबाते हुए पूछा और फैजल ने उन का नकाब खींच कर दूर फेंक दिया.

‘‘आप ने क्या समझा था कि हम सब गोलगप्पे हैं जो आप एक मिनट में गटक जाएंगी?’’ कहते हुए फैजल शर्ट का एक बटन खोल कर अंदर पहनी बुलेटप्रूफ जैकेट की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘‘हमें हजम करना इतना आसान नहीं है.’’

यास्मिन गुस्से से बड़बड़ाती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हें छोडं़ूगी नहीं. तुम ने मेरी बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया. मैं ने ये सब करने में अपनी सारी जिंदगी गुजार दी और तुम लोगों की वजह से एक पल में सब तहसनहस हो गया,’’ और फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘मतलब आप बहुत छोटी उम्र से ही इन सब कामों में लगी हुई थीं?’’ इंस्पैक्टर रमेश हैरानी से बोले.

‘‘हां, अनाथाश्रम में रहते हुए मेरी पहचान इन लोगों से हुई थी और तभी से मैं इन के साथ काम कर रही हूं.’’

‘‘क्या आप को पता था कि अजय सीक्रेट एजेंट हैं?’’

‘‘अगर पता होता तो क्या मैं उन से शादी करती? यहां रामगढ़ में आ कर बसने की जिद भी मैं ने ही उन से की थी ताकि मुझे अपना काम करने में आसानी रहे. अगर मुझे जरा भी भनक होती तो मैं कभी यहां नहीं आती.’’

‘‘अजय के लापता होने में भी आप का हाथ था?’’

‘‘बिलकुल नहीं, मैं और मेरे आदमी तो खुद उन्हें ढूंढ़ रहे थे. उन्हें न जाने कब यहां चल रही गतिविधियों पर शक हो गया और एक दिन मेरे आदमी का पीछा करतेकरते वे मेरे अड्डे तक पहुंच गए. जब वे वहां से वापस भाग रहे थे, तो मेरे एक आदमी ने उन्हें देख लिया और मुझे खबर दी. उसे यह नहीं पता था कि अजय ने वहां कुछ रिकौर्ड भी किया है.

‘‘मैं ने तभी फैसला कर लिया कि उन के घर आते ही मैं उन्हें खत्म कर दूंगी, लेकिन वे घर आए ही नहीं. उन्हें रास्ते में ही पता चल गया कि कुछ आदमी उन का पीछा कर रहे हैं. उन्होंने एक पब्लिक बूथ में घुस कर किसी को फोन किया, लेकिन जिस से वे बात करना चाहते थे वह आदमी कुछ दिन के लिए बाहर गया हुआ था. बूथ के बाहर खड़ा मेरा आदमी सारी बातें सुन रहा था. फोन पर बात करने के बाद वे कुछ निराश हो गए और वहां से निकलने के कुछ ही देर बाद उन आदमियों को चकमा दे कर भागने में सफल हो गए.’’

‘‘ओह, अब समझा,’’ बीच में ही फैजल बोला, ‘‘जरूर अजय ने अपने पुराने चीफ को फोन किया होगा और जब वे नहीं मिले तो उन्होंने 15-20 दिन तक मैमोरीकार्ड को इन लोगों से बचाने के लिए अलगअलग भेष बदल कर यह सारा सैटअप किया.’’

‘‘तभी तो हम उन्हें पकड़ नहीं पाए. उसी दिन मैं ने उन के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई. अब मेरे आदमियों के साथसाथ पुलिस भी उन के पीछे थी. 8वें दिन मुझे उन के अस्तबल में होने की खबर मिली और मैं वहां पहुंच गई. मैं ने जानबूझ कर बड़े साइज के मर्दाना जूते पहने थे ताकि मुझ पर किसी को शक न हो.

‘‘मुझे इस रूप में देख कर पहले तो वे दुखी और हैरान हुए लेकिन जल्दी ही संभल गए. जिस तरह से उन्होंने मुझ से मुकाबला किया, उसे देख कर मैं हैरान थी. बड़ा संघर्ष करना पड़ा मुझे उन्हें मारने में. गिरतेगिरते जब उन्होंने मूंछें और भवें उतार कर फेंकीं, तब मैं उन की यह चाल समझ नहीं पाई. वह तो बाद में पता चला कि उन्होंने जानबूझ कर ऐसा किया ताकि उन के पहले के जानने वाले लोग उन्हें आसानी से पहचान सकें.

‘‘मरतेमरते उन्होंने मुझे एक और धोखा दिया. दूसरी गोली लगने के बाद उन्होंने सांस रोक कर ऐसा नाटक किया जैसे मर गए हों. अच्छी तरह चैक करने के बाद मैं वहां से निकल गई और उस के  बाद उन्होंने वह संदेश लिख दिया. सुबह जब मैं रोतीपीटती वहां पहुंची तो उन्हें देख कर चौंकी. लेकिन समझ कुछ नहीं आया. इसीलिए मैं ने तुम लोगों के पीछे 24 घंटे आदमी लगा दिए ताकि तुम्हारी सारी रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहे, लेकिन एक बात समझ नहीं आई. तुम्हें मेरे बारे में पता कैसे चला?’’

‘‘फैजल मुसकराया, मुझे जब से यह पता चला कि अजय सीक्रेट एजेंट थे, तब से मुझे एक बात बारबार खटक रही थी कि अजय इतना बड़ा राज इस तरीके से बता कर गए, पर अपने खूनी का नाम क्यों नहीं बता गए? मुझे लग रहा था कि वह नाम हमारे बिलकुल सामने ही कहीं है, बस नजर नहीं आ रहा है. मैं इसी दुविधा में था जब इंस्पैक्टर रमेश ने बताया कि मरते वक्त यूसुफ के चेहरे पर हैरानी और कन्फ्यूजन के भाव थे. इस का मतलब है कि वे कातिल को पहचाते थे.

‘‘इस गांव में वे किसी और को तो जानते नहीं थे. इसलिए मेरा शक सीधा अजय की पत्नी यास्मिन यानी आप पर ही गया. उसी समय मेरे दिमाग में एक और बात आई. अगर अजय ने कहीं कातिल के बारे में कोई हिंट छोड़ा होगा तो वह सिर्फ उन के आखिरी मैसेज में ही हो सकता है. इसलिए मैं ने उसे निकाल कर दोबारा चैक किया और मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने बिलकुल साफसाफ कातिल का नाम लिख रखा था,’’ कहते हुए फैजल ने कागज की एक स्लिप निकाल कर यास्मिन के आगे रख दी, जिस पर लिखा था, ह्नह्लह्लश्च द्दद्भरूहृह्यढ्ढ ङ्घद्वद्भ श्चस्ठ्ठ्नद्भ3.

‘‘जब पूरा मैसेज स्माल लैटर्स में लिखा है तो बीच में ये कैपिटल लैटर्स क्यों? रूहृढ्ढङ्घस््न. इन्हें आगेपीछे कर के देखा जाए तो बनता है यास्मिन (ङ्घ्नस्रूढ्ढहृ) अगर यह बात पहले ही मुझे सूझ गई होती तो बेचारे यूसुफ अंकल को जान से हाथ न धोना पड़ता. खैर, जो हुआ सो हुआ. ले चलो इन्हें,’’ फैजल फिर बोला.

इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल और साहिल की पीठ थपथपाई और यास्मिन को गिरफ्तार कर लिया.                       

मैं 31 वर्षीय शादीशुदा युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती हूं. शारीरिक संबंध भी बनाए हैं. क्या करना चाहिए.

सवाल

मैं 31 वर्षीय शादीशुदा युवती व 4 वर्षीय बेटी की मां हूं. मैं एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझ से बेइंतहा मुहब्बत करता है. मेरे विवाहिता व एक बच्ची की मां होने के बावजूद हम दोनों का प्रेम संबंध काफी घनिष्ठ है. हम ने बेखौफ हो कर शारीरिक संबंध भी बनाए हैं. लेकिन अब अचानक मुझे लगने लगा है कि यह सब अनाचार नहीं करना चाहिए, इसलिए मैं ने उस लड़के से दूरी बना ली है पर वह बारबार फोन करता है. मुझे मिलने के लिए बुलाता है. क्या एक बार मिल लूं? मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप शादीशुदा महिला हैं, बावजूद इस के किसी और लड़के से अवैध संबंध रख कर न केवल आप अपना दांपत्य जीवन दांव पर लगा रही थीं, बल्कि उस लड़के को भी गुमराह कर रही थीं. अच्छा है कि समय रहते आप को अपराधबोध हो गया और आप ने अपने कदम पीछे खींच लिए. आप पर न केवल आप के घरपरिवार की अपितु अपनी नन्ही बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी है. इसलिए अपने फैसले पर अडिग रहें. अपने प्रेमी से साफसाफ कह दें कि आप उस से नहीं मिलना चाहतीं. वह आप से संपर्क साधने की कोशिश न करें.

 

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मिर्जियाः नहीं चला प्यार का जादू

राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म मिर्जिया में एक पंक्ति है-‘‘एक नदी थी, दो किनारे थामे बैठी थी, कोई किनारा छोड़ नहीं सकती थी.’’ फिल्म खत्म होने के बाद अहसास होता है कि शायद लेखक ने यह पंक्ति फिल्म की नायिका सैयामी खेर के लिए लिखी हैं, जिन्होंने इस फिल्म में सुचित्रा उर्फ सुचि तथा साहिबां का किरदार निभाया है. यह एक कटु सत्य है. फिल्म ‘मिर्जिया’ में अपने अभिनय से सैयामी खेर ना सिर्फ प्रभावित करती हैं, बल्कि उनमें स्टार बनने के गुण भी साफ नजर आते हैं. इसके बाद अनुज चौधरी लोगों के जेहन में बस जाते हैं. भव्य स्तर पर बनायी गयी यह फिल्म उन लोगों को ज्यादा पसंद आएगी, जो कि कला, खूबसूरती, फोटोग्राफी आदि के शौकीन हैं. अन्यथा फिल्म की गति धीमी है. गुलजार लिखित पटकथा का उलझाव ऐसा है कि दर्शक सोचने लगता है कि फिल्म कब खत्म होगी.

फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की कहानी दो स्तर पर चलती है. एक कहानी लोक कथा शैली में सदियों पुरानी प्रेम कथा ‘मिर्जा साहिबां’ की है. जब जब परदे पर ‘मिर्जा साहिबां’ की कहानी आती है, तब तब गाने आ जाते हैं. मिर्जा और साहिबां के किरदारों को क्रमश हर्षवर्धन कपूर और सैयामी खेर ने निभाया है. पर इसमें संवाद नहीं हैं. दूसरी कहानी राजस्थान में मिर्जा साहिबां की कथा के गूंज के रूप में चलती है. यह कहानी शुरू होती है लोहारों की गलियों से. यह कहानी है उदयपुर के गोवर्धन स्कूल में पढ़ रहे मोनीष (हर्षवर्धन कपूर) और सुचित्रा उर्फ सुचि (सैयामी खेर) की. दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं. मोनीष के पिता (ओमपुरी) लोहार हैं. जबकि सुचि के पिता (आर्ट मलिक) पुलिस इंस्पेक्टर हैं. मोनीष की रूचि पढ़ाई में कम है. एक दिन वह स्कूल में होमवर्क करके नही ले जाता है. सुचि उसे अपनी नोटबुक दे देती है. शिक्षक पहले खुश होते हैं पर वह लिखावट देखकर समझ जाते हैं कि यह नोटबुक सुचि की है. सुचि को सजा मिलती है, सुचि अपने प्यार के लिए दर्द सह जाती है. पर मोनीष, सुचि के पिता की बंदूक चुराकर दूसरे दिन सुबह स्कूल के शिक्षक को गोली मार देता है. पकड़ा जाता है और सजा के तौर पर उसे बालसुधारगृह भेज दिया जाता है, जहां से कुछ समय बाद वह भाग जाता है.

इधर सुचि के पिता उसे लेकर वह शहर छोड़कर जोधपुर में बस जाते हैं. सुचि को पढ़ाई के लिए विदेश भेज देते हैं. विदेश में सुचि की मुलाकात महाराजा के बेटे व राजकुमार करण (अनुज चौधरी) से होती है. समय बीतता है. अब पुलिस इंस्पेक्टर, पुलिस कमिश्नर बन गए हैं. उन्होंने सुचि व करण की शादी तय कर दी है. जब सुचि विदेश से वापस लौटती है, तो एअरपोर्ट पर सुचि के पिता व करण के साथ आदिल भी जाता है. पता चलता है कि आदिल अब करण के अस्तबल में घोड़ों की देखभाल करता है, जो कि वास्तव में मोनीष है, पर नाम बदलकर रह रहा है.

सुचि और करण रोज मिलते हैं. उनकी शादी की तैयारी शुरू हो गई हैं. एक दिन सुचि घुड़सवारी सीखने की इच्छा जाहिर करती है, तो करण यह जिम्मेदारी आदिल को सौंपता है. सुची अक्सर आदिल के सामने मोनीष के साथ बिताए दिन की कहानियां सुनाती है. एक दिन आदिल उस कहानी में कुछ चीजें ऐसी कह जाता है, जिससे सुचि समझ जाती है कि यह मोनीष है. मोनीष की पीठ पर सुचि और सुचि की पीठ पर मोनीष का टैटू है. मोनीष के लिए करण को छोड़ने के लिए सुचि तैयार है. पर आदिल नहीं चाहता कि उसकी जिंदगी बर्बाद हो. क्योंकि वह अनपढ़ गंवार है. जिससे एक लोहार की विधवा बेटी जीनत (अंजली पाटिल) प्यार करती है.

एक पूर्णिमा की रात करण, सुचि व आदिल के साथ सफारी में जाते हैं. जहां शेर, करण पर हमला कर देता है. पर अपनी जान जोखिम में डालकर आदिल, करण की जान बचाता है. पर करण को यह बात समझ में आ जाती है कि शेर के मुंह में खून लग चुका है, इसलिए वह फिर उस पर हमला कर सकता है. फिर आदिल पुलिस कमिश्नर के पास जाकर अपना सच बयां कर देता है. पुलिस कमिश्नर उससे कहते हैं कि वह चुपचाप चला जाए और सुचि को भूल जाए. यह बात उनका बचपन का नौकर भी सुनता है, जो कि शुरू से ही मोनीष को सैल्यूट करता रहा है.

फिर महाराजा के पास जाकर पुलिस कमिश्नर हकीकत बताते हैं. महाराजा कहते हैं कि -‘‘कानून को बीच में लाने की जरुरत नही है. इससे राजमहल की बदनामी होगी.’ वह राजमहल के अंदर ही सब ठीक कर लेने का वादा करते हैं. राजमहल में वह सब कुछ अंदर ही अंदर निपटा लेंगे. यह सारी बातचीत करण भी सुन लेता हैं.

दूसरे दिन करण, आदिल के साथ शिकार खेलने के लिए फिर से सफारी जाता हैं. जहां शेर के बहाने करण, आदिल और आदिल के सफेद घोड़े को गोली मार देता है. करण को लगता है कि आदिल मर गया या अब शेर आकर उसे खा जाएगा. पर आदिल बच जाता है.

इधर करण और सुचि की शादी होने जा रही है. सुचि सिंदूरदानी में सिंदूर व जहर दोनों भरती है. इधर मंडप के नीचे करण बैठा है. उधर पुलिस कमिश्नर के घर का घरेलू नौकर बुरके में आदिल से प्रेम करने वाली जीनत को सुचि से मिलवाकर बाहर तक छोड़ आता है. जब मंडप में सुचि को बुलाया जाता है, तो पता चलता है कि सुचि भाग चुकी है और वह विधवा जीनत मरी पड़ी है. उधर सुचि व आदिल भाग रहे हैं. अब सुचि की तलाश में पुलिस कमिश्नर पुलिस की पूरी फौज लगा देता है. करण भी अपने हिसाब से दौड़ रहा हैं.

मिर्जा साहिबां की कहानी चलती है. मिर्जा और साहिबां, साहिबां के भाईयों के डर से भागते भगते रात होने पर एक पेड़ के नीचे सो जाते हैं. सुबह जब उसके भाई लोग आ रहे होते हैं, तो अपने भाई का चेहरा याद कर साहिबां एक तीर छोड़कर सारे तीर तोड़ देती है. जब भाई और उसका मंगेतर सामने आता है, तो मिर्जा के तीर से साहिबां का भाई मारा जाता है. पर साहिबां के भाई मिर्जा को मार देते हैं.

अंततः मिर्जा साहिबां की ही तरह भारत पाक सीमा पर एक पेड़ के नीचे दोनों सो जाते हैं. सोने से पहले आदिल के पास जो बंदूक होती है, उस बंदूक की छह में से पांच गोलियां सुचि अपने हाथ में ले लेती है. सुबह जब करण व पुलिस की फौज पहुंचती है, तो एक गोली वह करण को मार देती है. उसके बाद आदिल को पता चलता हैं कि उसकी बंदूक में गोलियां नहीं है. आदिल, पुलिस कमिश्नर के हाथ मारा जाता है. सुचि भी सिंदूर वाला जहर खा कर मर जाती है.

फिल्म की लोकेशन, फिल्मांकन व फोटोग्राफी कमाल की है. घुड़सवारी व तीरंदाजी के दृश्यों के साथ ही कई सीन बेहतर बन पड़े हैं. मगर इन सारे दृश्यों को जब आप फिल्म के रूप में देखते हैं, तो निराशा होती है. यानी कि पटकथा ने फिल्म की ऐसी की तैसी कर दी. हो सकता है कि लोग यह तर्क दें कि गुलजार की लेखनी हर कोई आसानी से नहीं समझ सकता. पर इसमें बेचारे दर्शक की क्या गलती? गुलजार को भी पता होगा कि वह दर्शकों के लिए फिल्म की पटकथा लिख रहे हैं.

निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने इस फिल्म पर काम करने से पहले शोधकार्य करते हुए एक फ्रेंच डाक्यूमेंट्री देखी थी. जिसमें राजस्थान की लोकशैली के अलावा फ्रेंच ओपेरा का भी समावेश है. तो उन्होंने एक नया प्रयोग करते हुए इस फिल्म में भी ओपेरा किस्म के नाच गाने डालने की कोशिश की है, पर वह फिल्म की कहानी को नुकसान पहुंचाते हैं. परिणामतः यह फिल्म भारतीय दर्शकों को पसंद आएगी, इसमें शक है. हो सकता है कि विदेशों में यह फिल्म राकेश ओमप्रकाश मेहरा को लोकप्रियता दिला दे.

‘मिर्जिया’ को आम बौलीवुड फिल्म नहीं कहा जा सकता. शायद दो कहानियां, दो अलग अलग किस्म के किरदारों और दो अलग अलग काल को एक साथ पेश करने के चक्कर में वह दर्शक को बांध पाने में असफल हो गए. फैंटेसी व यथार्थ  एक साथ नहीं चल पाता. यह दर्शकों को दिग्भ्रमित करता है. कमजोर पटकथा के चलते बेचारा निर्देशक मात खा गया. फिल्म भावनात्मक स्तर पर भी दर्शकों को बांध नहीं पाती. फिल्म में चुंबन दृश्यों की भरमार है, पर दर्शक सिर्फ चुंबन दृश्य देखने के लिए फिल्म देखने नहीं जाता.

फिल्म का पार्श्वसंगीत काफी उम्दा है. फिल्म के गाने ठीक हैं, पर इतने अधिक गानों की जरूरत नहीं थी. संगीतकार शंकर एहसान लाय ने बेहतरीन काम किया है. कैमरामैन पावेल डायलस व एक्शन निर्देशक डैनी बधाई के पात्र हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो पूरी फिल्म में सैयामी खेर छायी हुई हैं. सैयामी खेर एक परिपक्व अदाकारा के रूप में उभरती हैं. कुछ दृश्य तो ऐसे हैं, जिन्हें देखकर कहा जा सकता है कि वह सबसे पहले सोनम कपूर की छुट्टी करेंगी. फिर अनुज चौधरी ने भी अभिनेता के  तौर पर अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज करायी है. पूरा बौलीवुड हर्षवर्धन कपूर की तारीफ करने में लगा हुआ है. मगर इस फिल्म की कमजोर कड़ियों में पटकथा के बाद हर्षवर्धन कपूर का नाम है. हर्षवर्धन कपूर का चेहरा सपाट ही रहता है. उनके चेहरे पर भाव उभरते ही नही है. कुछ दृश्यों में उनकी आंखे कमाल कर जाती है.

लगभग दो घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ का निर्माण ‘राकेश ओमप्रकाश मेहरा पिक्चर्स’ और ‘सिनेस्टान’ ने मिलकर किया है. निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा, पटकथा लेखक गुलजार तथा कलाकार हैं- हर्षवर्धन कपूर, सैयामी खेर, अनुज चौधरी, अंजली पाटिल, ओम पुरी, आर्ट मलिक व अन्य.

व्हाट्सएप लाया नया फोटो फीचर

इंस्टेंट मैसेजिंग एप व्हाट्एसएप ने अपने यूजर्स को एक बड़ा तोहफा दिया है. कंपनी ने अपने एप में एक नया कैमरा फीचर जोड़ा है. जिसके चलते यूजर्स अपनी फोटो या वीडियो पर कुछ भी लिख सकते हैं. इसके अलावा यूजर्स इमोजी भी जोड़ सकते हैं. व्हाट्सएप ने अपने ब्लॉग पर लिखा है, ‘‘आज हम आपके फोटो और वीडियो को और ज्यादा व्यक्तिगत रूप (कस्टमाइज) देने जा रहे हैं. व्हाट्सएप के नए कैमरा फीचर से अब आप अपने वीडियो और फोटो में लिख सकते हैं साथ ही इमोजी भी जोड़ सकते है.“

यूजर जब भी अपनी कोई नई फोटो खींचेंगे या फिर नया वीडियो बनाएंगे तो वो उसे कस्टमाइज कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर फोटो खींचने के बाद जब यूजर उसे शेयर करेंगे तो अपने आप फोटो या वीडियो को एडिट करने का टूल यूजर के सामने आ जाएगा. जिसके बाद वो इस टूल को यूज कर सकते हैं.

इसके अलावा व्हाट्सएप ने एक और नया फीचर एड किया है जो बिल्कुल Snapchat जैसा है. इसके जरिए यूजर्स अपनी फोटो को अलग-अलग तरह से बना सकते हैं. यूजर्स अपनी फोटो को भूतिया रुप भी दे सकते हैं. इन अपडेट्स को अपने फोन में लाने के लिए यूजर को व्हाट्सएप का नया वर्जन डाउनलोड करना होगा.

जाहिर है कि व्हाट्सएप आए दिन अपने यूजर के लिए नए अपडेट पेश करता ही रहता है जिससे यूजर का मैसेजिंग एक्सपीरियंस दोगुना हो जाए. इससे पहले के अपडेट में व्हाट्सएप ने फोटो और वीडियो रिकॉर्ड के दौरान जूम करने का ऑप्शन जोड़ा था जो लोगों मे काफी लोकप्रिय हुआ था.

क्या IPL को बंद कर देना चाहिए?

बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने सभी राज्य संघों को भावनात्मक पत्र लिखकर कहा कि आईपीएल के खिलाफ हाल में की गई टिप्पणियों को देखते हुए सभी सदस्यों को मिलकर यह फैसला करना होगा कि क्या इस खेल टूर्नामेंट को रोक देना चाहिए.

ठाकुर ने लिखा है कि वह ‘आईपीएल को लेकर की गई तल्ख टिप्पणियों से आहत हैं.' उन्होंने अपने पत्र में आईपीएल से बीसीसीआई को हुए वित्तीय फायदे का भी जिक्र किया है. ठाकुर ने लिखा, 'पिछले नौ वर्षों में राज्य संघों को आईपीएल से हुए लाभ के कारण 2406 करोड़ रुपये मिले. बीसीसीआई ने आईपीएल के लाभांश से पूर्व क्रिकेटरों में एकमुश्त लाभ के आधार पर 110 करोड़ रुपये वितरित किए.'

ठाकुर ने इसके साथ ही केपीएमजी के अध्ययन का जिक्र किया जिसके अनुसार 'आईपीएल 2015 का भारतीय अर्थव्यवस्था पर 2650 करोड़ रुपये का आर्थिक प्रभाव रहा और इसके साथ ही इसने सीधे और परोक्ष रुप से कई लोगों को रोजगार मुहैया कराया. भारतीय जीडीपी में इसका योगदान 1150 करोड़ रुपये रहा.'

बीसीसीआई अध्यक्ष ने कहा कि आईपीएल ने नौ वर्षों में विभिन्न करों के रुप में 2244 करोड़ रुपये का भुगतान किया.

हेल्‍थ पर बुरा असर डालता है बैट्री रेडिएशन

आजकल सभी लोग स्‍मार्टफोन का इस्‍तेमाल करते हैं जो कि स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा असर छोड़ता है. दिनों-दिन वातावरण में मोबाइल बैट्री रेडिएशन बढ़ता जा रहा है. अगर आप कई घंटों तक फोन पर लगे रहते हैं और उसे हमेशा साथ में रखते हैं तो आपकी हेल्‍थ पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही पारिवारिक और सामाजिक जीवन भी बदहाल हो जाता है.

क्‍या आप जानना चाहेंगे कि शरीर पर मोबाइल बैट्री रेडिएशन का प्रभाव कैसे पड़ता है और इससे कैसे बचा जा सकता है.

बायोलॉजिकल डिस्‍ऑर्डर

जब भी आप फोन को उठाकर उससे कॉल करते हैं या मैसेज करते हैं. यहां तक कि म्‍यूजिक भी सुनते हैं तो उससे रेडियो फ्रिक्‍वेंसी निकलती हैं जोकि बायोलॉजिकल डिस्‍ऑर्डर के लिए जिम्‍मेदार होती हैं. इससे मेटाबोल्जिम और खान-पान पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही कई शोध में पता चला है कि इसे कई खतरनाक बीमारियां भी हो सकती हैं.

सामान्‍य लक्षण

मोबाइल के ज्‍यादा इस्‍तेमाल से थकान, कमजोरी और चक्‍कर आ सकते हैं या अगर आपको आते हैं तो इसके पीछे आपके द्वारा घंटों तक इस्‍तेमाल किया जाने वाला मेाबाइल ही प्रमुख वजह है.

कॉल को कम करें

अपने फोन का इस्‍तेमाल कम से कम करें. अगर आपको इमरजेंसी है तभी कॉल करें. घंटों तक बात करना शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है.

डायरेक्‍ट कॉन्‍टेक्‍ट न रखें

अपने मोबाइल को डायरेक्‍ट बॉडी से टच न करवाएं. हमेशा पर्स या किसी बैग की जेब में रखें. पॉकेट में या गले में फोन को लटकाने से और भी बुरा असर शरीर पर पड़ता है.

चलती गाड़ी में इस्‍तेमाल न करें फोन

फोन को कभी भी चलती हुई गाड़ी में इस्‍तेमाल न करें. इससे दुर्घटना होने की संभावना रहती है.

बंद गाड़ी में इस्‍तेमाल न करें फोन

फोन को बंद गाड़ी में इस्‍तेमाल न करें. इससे सभी रेडिएशन आपके शरीर पर ही बुरा प्रभाव छोड़ेंगे

पास रखकर न सोएं मोबाइल

मोबाइल को कभी भी अपने पास रखकर न सोएं. इससे बुरी किरणों का प्रभाव दिमाग पर पड़ता है.

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