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दोहरा शतक लगाने वाले पहले भारतीय कप्तान बने कोहली

इंदौर टेस्ट मैच में कप्तान विराट कोहली की 'विराट' पारी ने न्यूजीलैंड को पूरी तरह से बैकफुट पर धकेल दिया है. कोहली ने बड़े ही शाही अंदाज में टेस्ट क्रिकेट का अपना दूसरा दोहरा शतक पूरा किया. उन्होंने 211 रन की शानदार पारी खेली.

इसके साथ ही वो दो दोहरे शतक लगाने वाले भारत के पहले कप्तान बन गए हैं. कोहली ने अपना पहला दोहरा शतक वेस्टइंडीज के खिलाफ लगाया था. उन्होंने बेहतरीन 200 रनों की पारी खेली थी.

कोहली ने लगाया दूसरा दोहरा शतक

'विराट' बल्ले का कमाल एक बार पूरी दुनिया ने देखा. कोहली ने न्यूजीलैंड के खिलाफ मैदान पर हर कोने पर शानदार शॉट्स खेले और कीवी गेंदबाजों की जमकर खबर ली. इंदौर टेस्ट मैच के पहले दिन वो 103 रन बनाकर नॉटआउट रहे थे. लेकिन दूसरे दिन भी उन्होंने पूरे फोकस के साथ बल्लेबाजी की और अपने करियर का दूसरा दोहरा शतक जड़ा. ये कारनामा करने वाले वो पहले भारतीय कप्तान बन गए हैं.

कोहली का पहला दोहरा शतक

टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने टेस्ट मैच में  अपना पहला दोहरा शतक  एंटीगुआ में वेस्टइंडीज के खिलाफ लगाया था. उन्होंने उस मुकाबले में 281 गेंदों का सामना किया और बेहतरीन 200 रनों की पारी खेली थी.

पटौदी ने इंग्लैंड के खिलाफ लगाया था दोहरा शतक

भारत की तरफ से एक कप्तान के दौर पर सबसे पहले नवाब पटौदी ने इंग्लैंड के खिलाफ दोहरा शतक लगाया था. उन्होंने साल 1964 में 203 रन की नॉटआउट पारी खेली थी. ये उनकी यादगार पारियों में शामिल है.

सुनील गावस्कर का दोहरा टेस्ट शतक

सुनील मनोहर गावस्कर ने एक कप्तान के तौर पर वेस्टइंडीज के खिलाफ मुंबई में 205 रनों की बेहतरीन पारी खेली थी. ये मुकाबला भी ड्रॉ रहा था.

सचिन ने न्यूजीलैंड के खिलाफ लगाया दोहरा शतक

कप्तान के तौर पर सचिन तेंदुलकर ने न्यूजीलैंड के खिलाफ 1999 में अहमदाबाद में  217 रनों की शानदार पारी खेली थी. सचिन ने इस शानदार पारी 29 चौके लगाए थे. हालांकि ये मुकाबला ड्रॉ रहा था. लेकिन सचिन की ये एक बेहद यादगार पारियों में से एक थी.

धोनी का टेस्ट क्रिकेट दोहरा शतक

महेंद्र सिंह धोनी ने टेस्ट कप्तान के तौर पर अपना दोहरा टेस्ट शतक साल 2013 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई में लगाया था. उस मुकाबले में उन्होंने बेहतरीन 244 रनों की पारी खेली थी. जिसमें धोनी ने 24 चौके और छह छक्के जड़े थे. भारत ने इस मुकाबले को आठ विकेट से जीता था.

ब्रायन लारा ने जड़े हैं सबसे ज्यादा दोहरे शतक

वेस्टइंडीज के पूर्व कप्तान ब्रायन लारा ने एक कप्तान के तौर पर सबसे ज्यादा पांच दोहरे शतक जड़े हैं. इसके बाद नंबर आता है, ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान सर डॉन ब्रैडमैन, माइकल क्लार्क और साउथ अफ्रीका के पूर्व ग्रेम स्मिथ का.

उन्होंने अपनी कप्तानी में चार बार 200 रनों का आंकड़ा पार किया है. इसके अलावा न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफन फ्लेमिंग और ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल ने अपनी कप्तानी में तीन बार दोहरा शतक लगाया है.

“मैं अभिनेत्री होते हुए भी ‘नन’ हूं”

मॉडल, वीडियो जॉकी, अभिनेत्री सोफिया हयात अपनी नई फिल्म ‘सिक्स एक्स’ को लेकर चर्चा में हैं. मगर बौलीवुड के लोग उनको लेकर भ्रमित हैं. सोफिया हयात को लेकर भ्रम की जो स्थिति पैदा हुई है, वह उन्होंने ही बनायी है.

वास्तव में अप्रैल 2016 में सोफिया हयात ने अचानक सफेद रंग की ‘नन’ जैसी पोषाक में अपनी तस्वीरें वायरल करते हुए पूरी दुनिया को बताया था कि अब वह ‘नन’ बन गयी हैं. पर पांच माह बाद ही सोफिया हयात एक बार फिर काफी ग्लैमरस व सेक्सी तस्वीरों में नजर आयी.

अब सोफिया हयात ने दावा किया है कि वह ईश्वर के आदेश का पालन करते हुए फिर से अभिनय के क्षेत्र में आ गयी हैं. अब वह अभिनय करने के साथ ही साथ लोगों की ‘हीलिंग’ करती रहेंगी.

जब सोफिया से पूछा गया कि वह जिस तरह से रूप बदल रही हैं, उससे लोगों के मन में उनको लेकर भ्रम पैदा होने के साथ साथ यह बात उभर रही है कि आप लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हुए उन्हें धोखा दे रही है. यानी कि आपकी ही वजह से यह बात उभर रही है कि हमारे देश में तमाम साधु संत महज पाखंड फैला रहे हैं. झूठ वे फरेबी हैं.

इस पर सोफिया हयात ने कहा, आपकी बात सही है. लोगों को ऐसा लग रहा है पर लोग जैसा मेरे बारे में सोच रहे है, वैसा नही है. मैं कोई पाखंड नहीं कर रही. मैं लोगों की भावनाओं से खेलने की कोशिश भी नहीं कर रही हूं. मगर आम जनता को हकीकत नहीं पता है. जिस दिन उन्हें हकीकत पता चल जाएगी, उस दिन वह समझ जाएंगे कि मैं पाखंड नही कर रही. मैं किसी को भी धोखा नहीं दे रही. मैं अभिनेत्री होते हुए भी नन हूं. कपड़े से कोई कुछ नहीं बनता. अभिनेत्री के कपड़े पहनकर भी मैं नन हूं. पर मैं शादी नहीं करुंगी. हम सब आत्मा हैं. पर हम इस बात को भूल जाते हैं.

देखिए, मैं जन्म से मुस्लिम हूं. मगर अब मैं ईश्वर के असली रूप से परिचित हो चुकी हूं. अब मेरे घर के अंदर गणेश, कृष्ण, शिव के साथ साथ क्रिश्चन धर्म का क्रास भी है. एक दिन ईश्वर का आदेश मिलने पर मैं ‘नन’ बन गयी थी. वापस ब्रिटेन लौट गयी थी. पर एक दिन लंडन के मेरे मकान में मेरे ध्यान में हिंदुओं के भगवान गणेश, कृष्ण व शंकर जी आए. उन्होंने मुझसे बात की. उसके बाद से मैंने अपने घर में गणेश जी की प्रतिमा भी रख लिया.

मैं नन की हैसियत से लोगों की भलाई करने में जुटी हुई थी. मेरे अंदर ईश्वर ने ‘हीलिंग पॉवर’ भरी है. मैं फोन पर बात करते हुए लोगों की तकलीफ दूर कर देती हूं. फिर एक दिन ईष्वर आए और उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे आम इंसानों की तरह जिंदगी जीते हुए, हर काम को करते हुए लोगों की भलाई करते रहना चाहिए. लोगों के दुखों को दूर करते रहना चाहिए. मैंने लंदन में कईयों के दुख दूर किए.

मुंबई में भी मैंने कुछ लोगों को बताया कि उनके पूर्वज उनसे क्या कहना चाहते हैं. मैं एकाग्रचित होने पर किसी के भी स्वर्गसिधार चुके माता पिता या अन्य परिजन से बात कर लेती हूं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो सोफिया हयात ने चंद्रकांत सिंह निर्मित फिल्म ‘सिक्स एक्स’ में अहम किरदार निभाया है. इस फिल्म व किरदार की चर्चा करते हुए सोफिया हयात ने कहा, इसमें छह लोगों की छह अलग अलग कहानियां हैं. एक कहानी में मैं हूं, मैंने इस फिल्म में ब्रिटिश फैशन आइकॉन बनी हूं. जो अपनी दोस्त से मिलने के लिए भारत आती है. वह मुंबई में अपने एक पुरूष दोस्त के साथ रहती है, पर उसे अपने नजदीक नहीं आने देती. जब वह मेरे करीब आना चाहता है, तो मुझे जलन होती है.

इस फिल्म में मेरे सह कलाकार अश्मित पटेल हैं. वास्तव में इस फिल्म में जजमेंट की बात की गयी है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि हम किसी भी इंसान को उसके पहनावे या उसे बाहर से देखकर उसके बारे में कोई एक निर्णय या राय बना लेते हैं. जबकि वह सच नही होता. जैसे कि लोग मेरी निजी जिंदगी को लेकर इन दिनों राय बना रहे हैं.

जहां छुक-छुक नहीं, रूक-रूक कर चलती हैं ट्रेन

पटना-दीघा रेल लाइन के किनारे ही कई सालों से झोपड़ियां बसी हुई हैं. उसे हटाने की हिम्मत न लोकल प्रशासन और न ही रेल महकमे को है. इतना ही नहीं पटना के बेलीरोड हौल्ट तबेला में और दीघा घाट हौल्ट शराब और शराबियों के अड्डे में तब्दील हो गया है.

पुनाईचक हौल्ट का बुकिंग काउंटर ध्वस्त हो गया है, जबकि शिवपुरी हौल्ट बुकिंग काउंटर पर गाय-भैंस बांधा जा रहा है. पूर्व मध्य रेलवे के इस रूट पर बदइंतजामी की इंतहा ही नजर आती है.

इस रेल रूट पर रेलगाड़ियां छुक-छुक करते हुए नहीं बल्कि रूक-रूक कर चलने को मजबूर हैं. आजादी से पहले ब्रिटिश सरकार ने दीघा घाट से लेकर पटना घाट तक रेलवे ट्रैक बिछाया था. तब से यह ट्रैक कभी अच्छे तो कभी बुरे दौर से गुजरता रहा है.

अंग्रेज सरकार ने इस ट्रैक को व्यापार के लिए से विकसित किया था. आजादी के बाद भी इस ट्रैक का उपयोग व्यापार के लिए किया जाता रहा. इस रूट से दीघा में भारतीय खाघ निगम अनाज भंडारण करने का काम शुरू किया गया.

इसके बाद दीघा-पटना रूट को लावारिस हालत में छोड़ दिया गया. इस रेल लाइन के पास बसी झोपड़ियों के लोग आए दिन ट्रेन के नीचे आकर जान गंवाते रहे हैं या जख्मी होते रहे हैं. इसके बाद भी न सरकार की नींद टूट पा रही है न ही रेलवे को इसकी कोई फिक्र है.

कुछ ऐसा ही हाल पटना से सटे दानापुर अनुमंडल से गुजरने वाले रेलवे लाइनों का हैं. हर हादसों के बाद रेलवे अफसरों की नींद टूटती हैं और पटरियों के आसपास से झोपड़ियों को हटाने का ऐलान करते हैं और मामले के ठंडा होते ही वे भी ठंडे पड़ जाते हैं.

दानापुर राजकीय मध्य विद्यालय में 7 वीं कक्षा में पढ़ रही 13 साल की संजना कुमारी की कहती हैं कि अगर रेलवे के अफसर उसके घर को हटाने की कोशिश करेंगे तो वह जान दे देगी.

उसका परिवार पिछले कई सालों से इंदिरा आवास की मांग कर रहा है, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. समाजशास्त्री हेमंत राव कहते हैं कि सरकारी योजनाओं को जमीन पर उतारने के नाम पर उनके जैसे सैंकड़ों परिवार को इधर-उधर होना पड़ रहा है. सरकार एक जगह से उजाड़ती है तो वे दूसरी जगह अपना झोपड़ा बना लेते हैं. उसके बाद कुछ ही समय बाद सरकार के लोग पिफर से उन्हें उजाड़ने के लिए आ ध्मकते हैं.

दानापुर में ही रेल की पटरियों से सट कर बसे टेसलाल वर्मा नगर की हालत तो और ज्यादा बदतर है. रेल लाइनों के किनारे खाली पड़ी जमीनों पर झोपड़ी बना कर बसे गरीबों के सिर पर हर दिन उजड़ने की तलवार लटकती रहती है.

झोपड़ी में रहने वाला उमेश बिन्द का बेटा धर्मवीर कुमार पास के ही प्राइमरी स्कूल में चैथी क्लास में पढ़ता हैं. वह बड़ी ही मासूमियत से कहता है कि उसके जैसे कई बच्चों ने मुख्यमंत्री अंकल और डीएम अंकल से कहा था कि उन्हें रहने को छोटा सा घर दिया जाए, जिससे झोपड़ी के बच्चे मन लगा कर पढ़ सके और बड़ा आदमी बन सकें, पर कोई सुनता ही नहीं है.

झोपड़पट्टी में 456 झोपड़ियां है जिसमें पिछड़ी जातियों के करीब 3 हजार लोग रहते हैं. यह लोग मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. मिट्टी खोदने कर काम करने वाला देबू बिंद कहता है कि सरकार कहती है कि गरीबों और पिछड़ों को बसाने के लिए इंदिरा आवास बनाया जा रहा है, पर उनके आस-पास बसे लोगों में से किसी को भी इस योजना का फायदा नहीं मिल सका है. अपनी बस्ती का नाम उन्होंने मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता टेसलाल वर्मा के नाम पर टेसलाल वर्मा नगर रख है.

वैसे तो देश भर में रेलवे लाइनों के किनारे झुग्गियों के कुकुरमुत्तें की तरह उगी हुई हैं पर बिहार में तो रेलवे लाइनों को घर के आंगन की तरह इस्तेमाल किया जाता है. दूर-दराज के इलाकों की छोड़िए, पटना के आसपास के इलाकों में भी रेल पटरियों के किनारे बसी झुग्गियां हर समय हादसों को न्यौता देती रहती हैं.

रेल लाइनों झुग्गियों के बच्चें हुड़दंग मचाए रहते हैं. न बच्चों को और न ही उनके मां-बाप को यह चिंता है कि रेलगाड़ी के नीचे आने से जान जा सकती है. बच्चों और जानवरों को हटाने के लिए रेलगाड़ी का ड्राइवर सीटी बजाते-बजाते परेशान रहता है, जिससे गाड़ी अपनी सही चाल से नहीं चल पाती है.

हादसे के बाद होने वाले उपद्रव मारपीट और तोड़-फोड़ के डर से ड्राइवर गाड़ी की सीटी लगातार बजाने और ट्रेन को रूक-रूक कर चलाने के लिए मजबूर हैं. इसका नतीजा यह होता है कि रेलगाड़ियां लेटलतीपफी का शिकार होती रहती है.

सूबे के कई जिलों से पिछले कई दशकों से गरीब लोग रेलवे की खाली जमीन पर या रेल लाइनों के किनारे झोपड़ी बना कर जिंदगी गुजार रहे हैं. उन झोपड़ियों में रहने वाले हर पल मौत का सामना करते हुए जिंदगी बिता रहे हैं. रेलवे उन्हें हटाने की जिद करता हैं तो वे मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं. 

कबड्डी वर्ल्ड कप: पहले मैच में हारा भारत

सात बार की वर्ल्ड चैम्पियन भारतीय पुरुष कबड्डी टीम को 2016 वर्ल्ड कप के पहले ही मैच में हार का सामना करना पड़ा. कोरिया ने सबको चौंकाते हुए भारत को 32-34 से हराया.

भारत को अंतिम पलों की गलती के कारण कबड्डी वर्ल्ड कप के उद्घाटन मुकाबले में कोरिया के हाथों सनसनीखेज हार का सामना करना पड़ा. गत चैंपियन भारत के पास एक समय 24-19 और 29-26 की बढ़त थी.

कोरिया ने वापसी करते हुए 30-29 की बढ़त बनाई. भारत ने स्कोर 30-30 किया और फिर 31-30 से बढ़त बनाई लेकिन कोरिया ने अंतिम मिनटों में सफल रेड लगाते हुए स्कोर 32-31, 33-31 और 34-32 से कर मैच जीत लिया.

कोरिया की जीत के हीरो रहे जांग कुन ली जो प्रो कबड्डी लीग में भी खेलते हैं. जांग कुन ली ने सबसे ज्यादा 10 अंक बनाए. डोंग जियोन ली ने छह और यंग चोंग को ने पांच अंक जुटाए. भारत की तरफ से कप्तान अनूप कुमार ने सबसे ज्यादा नौ अंक जुटाए. मनदीप छिल्लर ने पांच, राहुल चौधरी और प्रदीप नरवाल ने तीन-तीन और धर्मराज चेराथलन और अजय ठाकुर ने दो-दो अंक जुटाए.

बसपा में कांशीराम की नीतियां नहीं बस नाम

बसपा में अब कांशीराम की नीतियां नहीं बस नाम बचा है. कांशीराम का बहुजन समाज अब सर्वजन में बदल चुका है. जिसके बाद बसपा दूसरी पार्टियों की तरह हो गई है. पार्टी दलित वोट के लिये समय समय पर कांशीराम को याद कर यह जताने का काम करती है कि वह मान्यवर कांशीराम के बताये पदचिन्हों पर चल रही है.

असल में बसपा में केवल कांशीराम का नाम बचा है.उनकी बताई नीतियां हाशिये पर चली गई है. बसपा में कांशीराम का नाम भी उसी तरह हो गया है जैसे कांग्रेस में गांधी, भाजपा मे दीनदयाल उपाध्याय, सपा में लोहिया का नाम रह गया है.

बहुजन समाज पार्टी 9 अक्टूबर कों पार्टी संस्थापक कांशीराम के परिर्निवाण दिवस पर लखनऊ में बडी रैली कर रही है.वह अपने वोटर को यह बताने की कोशिश करेगी कि पार्टी कांशीराम के बताये रास्ते पर चल रही है.

बसपा के लिये परेशानी की बात यह है कि अब उसका कैडर खत्म हो रहा है. वहां बाहरी नेताओं का हस्तक्षेप बढ़ रहा है. बसपा अब ‘दलित-ब्राहमण’ समीकरण पर चल रही है. जिसका पार्टी के अंदर बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है.

बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम ब्राहमण और दलित के साथ को दूध और नींबू की तरह से देखते थे. बसपा के गठन काल में वह अपने भाषण के जरिये कार्यकर्ताओं को समझाते थे कि जिस तरह से नीबू के पड़ने से दूध फट जाता है उसी तरह से मनुवादी विचारधारा समाज को अलग कर देती है. बसपा में उस समय ‘ठाकुर, बामन, बनिया चोर‘ का नारा लगता था. अब बसपा ‘दलित-ब्राहमण’ समीकरण को जीत का आधार समझती है.

कांशीराम मूर्तिपूजा को हमेशा विरोध करते थे. उनका कहना था कि मूर्तिपूजा से समाज में मनुवाद की विचारधारा मजबूत होती है. जिससे सामाजिक भेदभाव पैदा होता है. कांशीराम समाज में रह रहे बहुजन वर्ग को मजबूत करने की बात करते थे. उनका कहना था कि हर जाति के लिये लोग सोचते हैं पर बहुजन वर्ग के लिये कोई नहीं सोचता. वह बहुजन समाज की तरक्की के लिये काम करते थे. सत्ता में आने के बाद बसपा और उसकी मुखिया मायावती दलित वर्ग को भूल गईं. बसपा ने मूर्ति पूजा को समर्थन दिया.

बसपा प्रमुख मायावती ने न केवल डाक्टर भीमराव अम्बेडर, कांशीराम की मूर्तियां लगवाई बल्कि खुद की मूर्ति भी लगवाई. अपने शासनकाल में मायावती पार्क और मूर्तियां लगवाने और भ्रष्टाचार को लेकर बदनाम हो गई. सरकार से जाने के बाद मायावती को इस बात का अहसास हो गया कि उनसे गलती हो गई. वह कहती है अब बसपा की सरकार आने पर पार्क और मूर्तियां नहीं लगवाई जायेंगी. बसपा अब दलित और ब्राहमण गठजोड़ को साथ लेकर चलने के प्रयास में मनुवाद के मुद्दे को छोड़ चुकी है. ऐसे में केवल कांशीराम के नाम को लेकर दलितों को जोड़ने का प्रयास कैसे सफल होगा यह देखने वाली बात होगी. कांशीराम के नाम पर बसपा अपने वोट बैंक को सहेजने का काम कर रही है.                     

डे-नाइट टेस्ट की मेजबानी करने वाला तीसरा देश बना इंग्लैंड

इंग्लैंड अगले साल अपने घर में अपना पहला डे-नाइट टेस्ट मैच खेलेगा. इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने यह जानकारी दी. इस टेस्ट मैच की मेजबानी का जिम्मा एजबेस्टन को सौंपा गया है. यह मैच वेस्टइंडीज के इंग्लैंड दौरे का पहला टेस्ट मैच होगा जो कि 17 से 21 अगस्त के बीच गुलाबी गेंद से खेला जाएगा.

ईसीबी के मुख्य कार्यकारी टॉम हैरिसन ने कहा कि ये क्रिकेट प्रशंसको को आकर्षित करने का बहुत ही महान तरीका साबित हो सकता है।

उन्होंने कहा, “पिछले 12 महीनों से रणनीति पर जो मंथन चल रहा है उस पर आगे बढ़ना अच्छा है. यह नए दर्शकों को खेल से जोड़ने के बारे में है. हम इस खेल को हर स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिए जो बन रहा है, वह कर रहे हैं. देखना होगा कि क्या इसका मैच में दर्शकों की तादाद पर असर पड़ता है.”

उन्होंने कहा, “यह मैच लंदन के बाहर हो रहा है. इसलिए दिन-रात के क्रिकेट का कितना असर पड़ता है, यह देखना का अच्छा मौका होगा. इंग्लैंड की टीम एजबेस्टन में खेलना पसंद करती है, यह अच्छा मैदान है.”

डे-नाइट फॉर्मेट में पहला अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच पिछले साल नवम्बर में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच गुलाबी गेंद से एडिलेड में खेला गया था. इस फॉर्मेट का दूसरा टेस्ट मैच पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के बीच संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में इसी महीने खेला जाएगा.

SMS का प्रिंट आउट लेना हो गया बहुत आसान

कुछ साल पहले तक एसएमएस पर न जाने कितने लोगों के तरह तरह के अहम मैसेज होते थे. कई लोग उन्हें फोल्डर बनाकर सहेज कर ये एसएमएस सालों तक रखते थे. अगर बीच में फोन खो गया या खराब हो गया तो न जाने कितने आंसू उसके साथ बहते थे.

व्हाट्सएप के जमाने में अब एसएमएस की अहमियत बहुत कम हो गई है. व्हाट्सएप के मैसेज को तो बहुत आसानी से ईमेल और फिर प्रिंट किया जा सकता है. लेकिन अगर अपने एसएमएस को कागज पर देखना है तो उसके लिए प्रिंट लेने के लिए थोड़ी तैयारी करनी पड़ती है और उसके लिए सभी फोन पर ये काम करना संभव नहीं है.

कई कारणों से ऐसे एसएमएस की कॉपी रखना बहुत जरूरी हो सकता है. कभी अपनी यादों को सहेज कर रखने के लिए तो कभी किसी कानूनी वजहों से ऐसा करना पड़ सकता है. बैंक और दूसरी फिनैंशियन जानकारी वाले मैसेज, इ कॉमर्स की खरीदारी के एसएमएस और कभी कभी ऑनलाइन उचक्कों के अनचाहे मैसेज – इन सब को सहेज कर रखना जरूरी है. इसलिए उन्हें सेव करके रखिए और अगर जरूरत हो तो प्रिंट आउट भी रख लीजिए. न जाने ये कब काम जाए. आइए इसका तरीका बताते हैं. अगर घर में ऐसा प्रिंटर है जो एंड्राइड डिवाइस के गूगल प्रिंट या ऐपल के एयर प्रिंट को सपोर्ट करता है, तो अपने डिवाइस से ही प्रिंट आउट लिया जा सकता है. एंड्राइड डिवाइस के लिए कौन से प्रिंटर काम कर सकते हैं उनकी लिस्ट यहां मिल जाएगी. एप्पल के एयर प्रिंट के लिए काम करने वाले डिवाइस यहां देख सकते हैं.

प्रिंटर के लिए ये जानकारी बहुत अहम है क्योंकि एसएमएस को प्रिंट करने के और कोई रास्ता नहीं है. हैरानी की बात है कि एसएमएस के प्रिंट आउट लेने के बारे में कभी भी किसी ने नहीं सोचा.

एंड्राइड डिवाइस पर गूगल प्ले स्टोर से क्लाउड प्रिंट इस्टॉल करने के बाद प्रिंट आउट लेना संभव है. एंड्राइड डिवाइस से प्रिंट आउट अगर लेने की कोशिश कर रहे हैं तो ये जानकारी बहुत काम आएगी. उसके बाद अपने मैसेज को एक पीडीएफ फाइल बना कर प्रिंट कर सकते हैं.

प्रिंट करने के दूसरे विकल्प भी हैं और कुछ लोग स्क्रीनशॉट लेकर प्रिंट लेना पसंद करते हैं. ये स्क्रीनशॉट लेकर उन्हें अपने कंप्यूटर पर सेव करना होगा. उसके बाद आम तरीके से प्रिंट ले सकते हैं.

एप्पल के Siri को चुनौती देगा गूगल असिस्टेंट!

गूगल के सीईओ भारतीय मूल के सुंदर पिचई का कहना है कि मोबाइल से आ रहे बदलाव में गूगल सबसे आगे रहेगा. गूगल स्मार्टफोन में काफी बड़ा हिस्सा इनवेस्ट कर रहा है.

गूगल पिक्सल सीरीज में एप्पल  के Siri को चुनौती देने के लिए गूगल असिस्टेंट (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस) दिया  है. गूगल असिस्टेंट के इस्तेमाल के लिए यूजर को होम बजट पर क्लिक करके होल्ड करना होगा या फिर “hot word,” ‘jumps into action’ बोलते ही असिस्टेंट ऑन हो जाएगा. कंपनी ने इसका डेमो करके दिखाया.

असिस्टेंट किसी खास समय , जगह पर ली गई तस्वीर आपको महज कमांड देने पर उपलब्ध करा देगा. इसके अलावा आपके पसंदीदा गानों को आपके पसंदीदा म्यूजिक एप के जरिए प्ले कर देगा. इतना ही नहीं आपके कमांड पर ये आपको रेस्टोरेंट का नाम, उसके रिव्यू, पता सब कुछ की जानकारी देगा. आपकी वॉयस कमांड से ये असिस्टेंट आपकी रेस्टोरेंट बुकिंग भी करा देगा.

जाहिर है इससे पहले एप्पल   अपने स्मार्टफोन में (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस)  Siri  माइक्रोसॉफ्ट कोर्टाना (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस)   देता था ये पहली बार है कि गूगल ने अपने डिवाइस में गूगल असिस्टेंट (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस) दिया है. गूगल असिस्टेंट बेहद स्मूथ है जो सिरी को कड़ी टक्कर दे सकता है.

गूगल का दावा है कि उसके पिक्सल स्मार्टफोन्स का कैमरा सबसे बेस्ट है. अपने 5 और 5.5 इंच के स्मार्टफोन में फास्ट चार्जिंग की सुविधा दी है. गूगल का कहना है कि उसके पिक्सल स्मार्टफोन 15 मिनट चार्ज करने पर 7 घंटे की बैटरी लाइफ दे सकते हैं.गूगल के पिक्सल स्मार्टफोन को ताइवानी मोबाइल कम्पनी HTC ने बनाया है. लेकिन गूगल ने अपनी नई पिक्सल सीरीज में बडा बदलाव करते हु्ए मोबाइल बनाने वाली कम्पनी की ब्रैंडिंग बंद कर दी है.

BCCI के राज्यों को फंड देने पर रोक

सुप्रीम कोर्ट में लोढ़ा कमिटी बनाम बीसीसीआई के बीच जारी टकराव में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. अब इस मामले में सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी और इसी दिन कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है. सुप्रीम कोर्ट अगले दस दिनों तक छुट्टियों की वजह से बंद रहेगा.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई द्वारा राज्य एसोसिएशनों को फंड जारी करने पर रोक लगा दी है. यह रोक एसोसिएशनों द्वारा लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को मानने का प्रस्ताव पास करने तक लगी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग ठाकुर से कहा है कि वह आइसीसी चीफ से लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को लेकर हुई अपनी बातचीत को लेकर हलफनामा दाखिल करें.

इससे पहले कोर्ट ने बीसीसीआई से लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को बिना शर्त मानने के लिए कहा था और इस बारे में अंडरटेकिंग देने को कहा था. बीसीसीआई के वकील कपिल सिब्बल के इसमें असमर्थता जताने पर कोर्ट ने बीसीसीआई को एक दिन का वक्त दिया था. हालांकि शुक्रवार को आने वाला फैसला आगे टल गया है और इससे बीसीसीआई को थोड़ी राहत मिल गई है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बीसीसीआई के कामकाज को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट और कोर्ट के सलाहकार गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू को भी काफी खरी-खोटी सुनाई बीसीसीआई ने काटजू को इस केस में नियुक्त किया था. सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के क्रिकेटर होने के दावे पर भी मजाक किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई से सीधे सवाल पूछा था कि आप लोढ़ा कमिटी की सिफारिशें लागू करेंगे या नहीं? सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर इस बात से भी नाराज दिखे कि राज्य असोसिएशनों ने लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को वोटिंग के जरिए मानने से इनकार कर दिया.

बिहार सरकार बोलेगी, मछली ले लो

अब बिहार सरकार खुद भी मछली बेचने के लिए कमर कस चुकी है. राज्य में सरकारी थोक मछली बाजार बनाए जा रहे हैं, जहां सरकार अपने लेवल पर ताजा मछलियां बेचेगी.बिहार में मछली की सालाना खपत 5 लाख, 80 हजार टन है, जबकि उत्पादन 4 लाख, 30 हजार टन ही हो पाता है. 1 लाख, 50 हजार टन की कमी को पूरा करने के चक्कर में बिहार के तकरीबन 350 करोड़ रुपए आंध्र प्रदेश की झोली मेचल ते जाते हैं. राज्य में मछली की पैदावार बढ़ाने और खुद बाजार में उतरने के लिए राज्य सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है. मछली के बड़े बाजार का पूरापूरा फायदा उठाने के मामले में सरकार कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहती है.

पहले फेज में राज्य के मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, मधुबनी, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण में थोक मछली बाजार की शुरुआत की जानी है. इन बाजारों में नदियों, तालाबों और सरकारी जलकरों की ताजा मछलियां बिकेंगी. इन जिलों में थोक मछली बाजार को कामयाबी मिलने के बाद बाकी जिलों में भी इसे शुरू किया जाएगा. पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री अवधेश कुमार सिंह बताते हैं कि थोक मछली बाजारों में मछलियों को वैज्ञानिक तरीके से रखा जाएगा, ताकि वे ज्यादा समय तक जीवित रहें. मछली बाजार में शीत भंडार, मछली बेचने के लिए यार्ड और वैज्ञानिक रखरखाव वगैरह पर ढाई करोड़ रुपए खर्च होंगे. मछली बाजार को बनाने का काम बिहार सरकार और नेशनल फिश डेवलपमेंट बोर्ड मिल कर करेंगे. इस में 40 फीसदी रकम राज्य सरकार द्वारा और 60 फीसदी रकम बोर्ड द्वारा दी जाएगी. राज्य में फिलहाल सरकारी लेवल पर मछली बेचने का कोई इंतजाम नहीं है.

इस के साथ ही बिहार के मछली उत्पादकों को ज्यादा फायदा दिलाने के लिए हर जिले में मछली के होलसेल बाजार बनाने की कवायद शुरू की गई है. नेशनल फिश डेवलपमेंट बोर्ड ने पहले चरण में मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, मधुबनी, समस्तीपुर, खगडि़या, भोजपुर, नालंदा, गया, सारण और दरभंगा जिलों में थोक बाजार बनाने की मंजूरी दे दी है. कृषि विभाग की बाजार समिति की जमीनों पर इन बाजारों को बनाया जाएगा. 1 बाजार 3 एकड़ जमीन पर बनेगा और उसे बनाने में 2 करोड़, 50 लाख रुपए खर्च होंगे. इस में से 60 फीसदी रकम केंद्र सरकार और 40 फीसदी रकम राज्य सरकार खर्च करेगी. बाजार के अंदर सेंट्रलाइज नीलामी हाल भी बनाया जाएगा.

बिहार समेत दूसरे राज्यों के मछली व्यापारी बाजार में पहुंचेंगे. थोक बाजार के कैंपस में लोकल मछली व्यापारियों को भी कारोबार की सुविधा दी जाएगी. गौरतलब है कि फिलहाल बिहार में एक भी व्यवस्थित मछली का थोक बाजार नहीं है, जिस से मछली उत्पादकों को ताजा मछलियां औनेपौने दामों पर बेचनी पड़ती हैं. बिहार सरकार मछलियों को विदेशों में भी बेचेगी. राज्य में मछली का उत्पादन भले ही कम हो और उस कमी को पूरा करने के लिए बिहार दूसरे राज्यों से मछली खरीदने को मजबूर हो, पर बिहार की मछलियों की मांग विदेशों में काफी बढ़ रही है. पूर्वी और पश्चिमी चंपारण से कतला और रोहू मछलियां नेपाल भेजी जा रही हैं, जबकि दरभंगा में पैदा होने वाली बुआरी और टेंगरा मछलियां भूटान में खूब पसंद की जा रही हैं. वहीं भागलपुर और खगडि़या जिलों में पैदा की जाने वाली मोए और कतला मछलियां अपने ही देश में सिलीगुड़ी भेजी जा रही हैं. मुजफ्फरपुर और बख्तियारपुर से बड़ी तादाद में मछलियां चंडीगढ़ और पंजाब के व्यापारियों द्वारा मंगवाई जा रही हैं. बिहार की मछलियों के लाजवाब स्वाद की वजह से दूसरे राज्यों और देशों के लोग इन के दीवाने बन रहे हैं. इस से जहां बिहार की मछलियों की दुनिया भर में डिमांड बढ़ रही है, वहीं उत्पादकों को दोगुना मुनाफा मिल रहा है. इसी वजह से मछली उत्पादक मछलियों को दूसरे देशों और राज्यों में भेजने में दिलचस्पी ले रहे हैं. 

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