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किसान मिल कर उत्पादक संघ बनाएं, उपज की बिक्री से ज्यादा कमाएं

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में दौराला के पास एक कसबा है लावड़. यहां के किसान ज्यादातर सब्जियों की खेती करते हैं, लेकिन उन में से ज्यादातर को उपज की वाजिब कीमत नहीं मिलती. इसलिए सब परेशान रहते थे. ऐसा देखा जाता है कि फसल चाहे कोई भी हो, ज्यादा पैदावार होते ही मंडी में उस की कीमतें गिर जाती हैं. लावड़ के सब्जी उत्पादकों ने हिम्मत नहीं हारी और आपस में मिल कर एक रास्ता खोज लिया. वहां के किसानों ने जनकल्याण संस्था की मदद से आपस में मिल कर एक सब्जी प्रोड्यूसर कंपनी बना ली. राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत बैंक से उन्हें आसानी से कर्ज भी मिल गया.

पहले सब किसान अपनीअपनी उपज ले कर अलगअलग मंडियों में जाते थे, बिचौलियों के हाथों लुटते थे व धक्के खाते थे. अब आपस में मिल जाने से उन की सब्जियां लोकल मंडी में न बिक कर ट्रकों में?भर कर दिल्ली की आजादपुर मंडी में बिकने जाती हैं. इसलिए पहले के मुकाबले उन्हें उन की उपज की कीमत ज्यादा मिलती है. खेती से ज्यादा कमाई करने के लिए यह लाजिम है कि किसान फसलें उगाने के साथसाथ थोड़ा आगे बढ़ें. उपज की बिक्री, एग्री बिजनेस व प्रोसेसिंग आदि पर भी खास ध्यान दें. खासकर छोटे किसान खुद इंटरनेट पर मंडियों के भाव नहीं देख सकते, लेकिन यदि वे आपस में मिल कर स्वयं सहायता समूह, कोआपरेटिव सोसायटी या कंपनी बना लें तो एग्री बिजनेस के बड़े काम भी आसानी से कर सकते?हैं.

अभी तक किसान आढ़तियों व दलालों के आसरे रहते थे. अब बदलाव के दौर में सरकार ने मौका दिया है, तो उस का फायदा उठाना चाहिए. यह सच है कि खेती से जुड़े कामधंधे करने, नईनई तकनीकें हासिल करने, एग्री बिजनेस करने व फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए सब से पहले पूरी जानकारी, जगह व पूंजी की जरूरत होती है. एक साथ सभी साधन ज्यादातर किसानों के पास नहीं होते. मोटे ब्याज पर सेठसाहूकारों से कर्ज ले कर खेती करने की बात सोचना अकलमंदी नहीं है. ज्यादातर बैंकों के अफसर भी कर्ज वापस न होने के डर से छोटे किसानों को कर्ज देने से हिचकते?हैं. इसलिए किसानों को खुद आपस में एकदूसरे की मदद करना जरूरी है.

छोटे किसान आपस में मिल कर यदि एकजुट हो जाएं तो वे अपने हुनर व तकनीकी जानकारियों को बढ़ा सकते?हैं. बड़े पैमाने पर निर्यात आदि का फायदा उठा सकते?हैं. इसलिए किसानों को इस बारे में सोचना चाहिए. छोटे किसानों को आपस में एकजुट कर के उन की कंपनियां बनवाने व उन्हें पैसे से मदद मुहैया कराने के मकसद से भारत सरकार के किसान कल्याण मंत्रालय की एक स्कीम चल रही है, जिस के तहत 1994 में लघु कृषक कृषि व्यापार संघ, एसएफएसी के नाम से नई दिल्ली में एक संस्था बनाई गई थी. सफाक नाम का यह संगठन किसानों, उन के समूहों, सहकारी समितियों, साझेदारी फर्मों, एग्री एक्सपोर्ट जोन की इकाइयों व किसानों की कंपनियों को पूंजी मुहैया कराने में मदद करता है. इसलिए ध्यान रहे कि बड़े पैमाने पर कामधंधा करने के लिए अपनी कंपनी सिर्फ बड़े धन्नासेठ या कारखानेदार ही नहीं किसान भी बना सकते?हैं. यह बात अलग?है कि प्रचारप्रसार कम होने की वजह से ज्यादातर किसानों को इस सरकारी स्कीम की जानकारी नहीं है.

बेहतर रास्ता

खेती से जुड़े बहुत से कारोबार, किसानों को पैसे से मजबूत करने के साथसाथ उन को खुशहाल भी बनाते हैं. यदि सरकारी स्कीम में छोटे किसानों को पूंजी जुटाने का मौका मिल जाए तो वह सोने में सुहागा होगा. लघु कृषक कृषि व्यापार संघ खेती के कारोबार में निजी पूंजी निवेश और गांवों में रोजगार व आमदनी बढ़ाने के लिए बैंकों और वित्तीय निगमों आदि के जरीए पूंजी दिलाने व प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाने आदि कामों में मदद करता है. किसान इस का फायदा उठा सकते हैं. केंद्र सरकार के खेती मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक लघु कृषक कृषि व्यापार संघ ने 2013-14 के दौरान देश भर में खेती से जुड़े कारोबार की 213 परियोजनाओं के लिए उद्यम पूंजी दिलाने व उन की रिपोर्ट तैयार कराने में मदद की है. साथ ही साथ अप्रैल 1994 से मार्च 2014 के बीते 20 सालों में इस संस्था ने कुल 850 परियोजनाओं को मदद दी, 3065 करोड़ रुपए का निजी निवेश कराया व 264 करोड़ रुपए की पूंजी दी.

रिपोर्ट के मुताबिक इस माली मदद से 1 लाख 20 हजार किसानों को उपज बिक्री के लिए मंडी व 53 हजार लोगों को रोजगार मिला. हालांकि देश भर में छोटे किसानों की गिनती करोड़ों में देखते हुए यह मदद की रकम बहुत कम है, लेकिन उन किसानों के लिए एक उम्मीद की किरण जरूर है, जो खेती के साथ अपना कारोबार करना चाहते हैं. किसानों को जागरूक होने व खुद आगे आ कर पहल करने की जरूरत है. इस स्कीम के दायरे में कीमती फसलें, पोल्ट्री, एग्रो सर्विस व डेरी आदि खेती से जुड़े सभी धंधे आते हैं.

बदलाव

साल 2013-14 के बजट में 2 ऐलान छोटे किसानों के लिए किए गए थे. पहले खेती के कारोबार में 50 लाख रुपए की लागत वाली परियोजनाएं इस स्कीम का फायदा उठाती थीं. अब इसे घटा कर 15 लाख रुपए और पिछड़े व पूर्वोत्तर के इलाकों में 10 लाख रुपए कर दिया गया है. लिहाजा किसान, उन के समूह व सहकारी समितियां अब ज्यादा फायदा उठा सकती हैं. जरूरत पहल करने की है. साल 2014 से लघु कृषक कृषि व्यापार संघ ने किसान उत्पाद कंपनियों के लिए छूट व कर्ज पर 100 करोड़ रुपए से गारंटी फंड की एक नई स्कीम लागू की है. इस के तहत सदस्यों की हिस्सा पूंजी पर 10 लाख रुपए तक सब्सिडी व 1 करोड़ रुपए तक कर्ज देने वाले बैंकों को गारंटी मुहैया कराई जाती है.

छोटे किसान ज्यादा

पढ़ेलिखे नहीं होते. उन्हें जानकारी कम होती है. इसलिए वे एकजुट भी नहीं होते. उन के संगठनों को बढ़ावा देने के लिए 2011 से खास जोर दिया जा रहा?है. इस में राज्यों, तकनीकी सामाजिक संगठनों व निजी कंपनियों ने भी मदद की है. इसलिए मार्च 2015 तक 29 राज्यों में 459680 किसानों ने मिल कर 570 संगठन यानी एफपीओ बनाए व 225267 किसानों के 429 संगठन बनने वाले हैं. इस के अलावा हमारे देश में तमिलनाडु, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात में 1-1 यानी कुल मिला कर 8 राज्य स्तर की उत्पादक कंपनियां काम कर रही?हैं.

रोजगार के लिहाज से किसान अपने पढ़ेलिखे बच्चों को इस में लगा कर और ज्यादा फायदा उठा सकते?हैं. लघु कृषक कृषि व्यापार संघ ने अपनी स्कीम की सचाई दिखाने व दूसरे किसानों को यकीन दिलाने के लिए कृषि सूत्र 1 व 2 के नाम से 2 किताबें हिंदी में छापी हैं. इन किताबों में छोटे किसानों के 200 संगठनों के सच्चे किस्से फोटो सहित दिए गए हैं, जिन्होंने इस रास्ते पर चल कर अपने संगठन बनाए और खुद खेती की शुरुआत कर के कामयाबी की मिसाल कायम की.

योजनाएं और भी है

भारत सरकार के कृषि एवं सहकारिता विभाग ने नाबार्ड व राष्ट्रीय कृषि विस्तार व प्रबंध संस्थान मैनेज के साथ मिल कर साल 2002 से किसानों के लिए एक और स्कीम चला रखी है. इस स्कीम में एग्री क्लीनिक व एग्री बिजनेस सेंटर खोल कर खेती को फायदेमंद व किसानों को कारोबारी बनाया जाता है. इस में पहले खेती में ग्रेजुएट लिए जाते थे, लेकिन अब खेती की तालीम में कम से कम 12वीं पास किसानों को कारोबार की ट्रेनिंग दे कर बैंकों से कर्ज (44 फीसदी तक छूट) दिला कर कामधंधे शुरू कराए जाते हैं. साल 2013-14 में 2320 व बीते 13 सालों में अब तक खेती से जुड़े 15313 कारोबार चालू कराए गए.

इतने बड़े देश में यह संख्या बहुत कम है. उस पर ज्यादातर किसान कम पढ़ेलिखे हैं, वे खेती नहीं करना चाहते. इसलिए इस स्कीम में फेरबदल कर के इसे आसान बनाया गया है व दायरे को बढ़ाया गया है. इच्छुक युवा इस के लिए अपने जिले के मुख्य बैंक से जानकारी ले सकते हैं या औनलाइन फार्म भर सकते?हैं.  इच्छुक किसान अपना संगठन बना कर आलू चिप्स बनाने, पैक्ड आरगैनिक गुड़ बनाने या कोल्ड ड्रिंक की तरह गन्ने के रस की बोतलबंदी करने आदि की अपनी इकाई लगा कर खेती से ज्यादा कमाई कर सकते हैं. खेती से जुड़े कामधंधे करने वाली कंपनी बना कर चलाने के लिए कारोबारी पूंजी व प्रोजेक्ट रिपोर्ट यानी पूरा खाका बनवाने में मदद हासिल करने के लिए लघु कृषक कृषि व्यापार संघ से पैसे से मदद ले सकते हैं. इस बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

प्रबंध निदेशक, लघु कृषक कृषि व्यापार संघ, 5वां तल, एनएसयूआई आडीटोरियम भवन, अगस्त क्रांति मार्ग, हौज खास, नई दिल्ली :110016

फोन : 01126862365, वेबसाइट : 222.ह्यद्घड्डष्द्बठ्ठस्रद्बड्ड.ष्शद्व

“छक्का 60 मीटर का हो या 90, रन 6 ही मिलते हैं”

टीम इंडिया के जगमगाते सितारे विराट कोहली का खेल मैच दर मैच निखरता जा रहा है. मोहाली वनडे में कोहली ने अपने करियर का 26वां शतक जड़ा है. कोहली ने अपने खेल से आज केवल इंडिया को ही नहीं बल्कि इंडिया के बाहर भी लोगों को अपना मुरीद बना लिया है. इसी कारण लोग आज कोहली के बारे में हर बात जानना चाहते हैं.

कोहली ने कहा था कि साल 2009 के बाद उनके अंदर काफी बदलाव आया है, उनकी सोच बदली है और वो अब कड़े फैसले लेने में भी पीछे नहीं हटते है. मेरे आलोचकों ने मुझे सिखाया कि आक्रामक स्वभाव से नहीं बल्कि खेल से बनो जिससे लोग सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे खेल के बारे में बात करें ना कि दूसरी चीजों के बारे में. और मुझे लगता है कि मेरी ये कोशिश अब रंग ला रही है क्योंकि मैं अब जहां जाता हूं तो लोग मुझसे मेरे खेल के ही बारे में बातें करते हैं.

इतने दिनों में मैंने सिर्फ ये ही चीजें सीखी हैं कि आपको धैर्यपूर्वक खेलना है क्योंकि जब आप देश के लिए खेल रहे होते हैं तो आपके साथ वतन का नाम जुड़ा होता है इसलिए मैं अब पहले जैसा बड़े शॉट्स नहीं लगाता हूं. क्योंकि मुझे ये समझ आ गया है कि आप छक्‍का 60 मीटर का मारे या 90 मीटर का, रन 6 ही मिलते हैं. इसलिए हमारे लिए जीतना जरूरी है, क्योंकि मैच के बाद सभी बोलते हैं कि इंडिया जीती या इंडिया हारी, ना कि कोहली जीता या हारा.

जीमेल ट्रिक्‍स जो आसान कर देंगी आपका काम

जीमेल में कई ऐसे फीचर छिपे हुए हैं जिनकी मदद से हम अपने काम को आसान बना सकते हैं, जैसे आपकी मेल कब किसने पढ़ी इसके बारे में जान सकते हैं, मेल ब्‍लॉक कर सकते हैं साथ में और भी कई फीचर है जीमेल में.

जीमेल दुनिया की सबसे बड़ी मेलिंग सर्विस है जिसमें रोज करोड़ों मेले भेजी और रिसीव की जाती है, पिछले 5 सालों में नजर डालें तो जीमेल में कई तरह के बदलाव हुए है, गूगल ने कई ऐसे फीचर अपनी इस सर्विस में जोड़े हैं जो यूजर्स के काम को काफी फास्‍ट कर देंगे.

साधारण तौर पर हम कुछ चुनिंदा फीचरों को ही यूज करते हैं जैसे मेल भेजना, उसे ड्राफ्ट में सेव करना या फिर मेल फारर्वड करना. चलिए कुछ ऐसे जीमेल फीचरों के बारे में बात करते हैं जिनके बारे में शायद आपने न सुना हो और अगर सुना भी होगा तो इन्‍हें यूज कैसे करेंगे ये देखते हैं.

मेल को शिड्यूल कैसे करें

– सबसे पहले अपने क्रोम एक्‍टेंशन में जाकर "Boomerang" एक्‍टेंशन इंस्‍टॉल करें

– अब अपनी मेल लिखें मेल लिखने के बाद "Send Later" ऑप्‍शन पर क्‍लिक करें – दिन और समय सेट करें "Confirm" बटन पर क्‍लिक कर दें अब आपके द्वारा सेट किए गए दिन और टाइम के हिसाब से मेल अपने आप चली जाएगी.

मेल कीबोर्ड शार्टकट

– मेल सेटिंग में जाएं

– "General" में जाएं

– कीबोर्ड शार्टकट "ON" बटन ऑन करें "Save" बटन पर क्‍लिक करें

– Hit SHIFT + ? बटन सारे शॉर्टकट देखने के लिए

– E = Archive selected emails

– R = Reply

– A = Replay all

! = Mark As spam

Escape a reply – All thread

– इसके लिए सबसे पहले Email Thread पर क्‍लिक करें

– अब "More" बटन पर क्‍लिक करें

– इसके लिए कीबोर्ड में दिया गया शार्टकट बटन M दबाएं अब आप thread से हट चुके हैं.

कैसे जानें किसी ने आपकी मेल खोली है

– अपने क्रोम एक्‍टेंशन में जाकर "Sidekick" इंस्‍टॉल करें ये आपके द्वारा भेजी गई सारी मेल को ट्रैक करेगा

– आपके द्वारा भेजी गई मेल जैसे ही कोई पढ़ेगा उसका एक नोटिफिकेशन आपको मिलेगा.

– साइड में दिये गये साइडकिक की मदद से आप ये भी जान सकते हैं कि पढ़ी हुई मेल को कितनी बार दोबारा पढ़ा गया है.

– सेंड मेल को कैसे रोके सेटिंग ऑप्‍शन में जाएं "Settings" "Undo Send" ऑप्‍शन में जांए

– "Enable" ऑप्‍शन में जाएं

– अब "Cancellation Period" में जाकर "Save" पर क्‍लिक करें. 

लोढ़ा कमिटी ने BCCI को दिया एक और झटका

लोढ़ा पैनल से BCCI को एक और झटका लगा है. IPL के ब्रॉडकास्ट संबंधी टेंडर खोलने की प्रक्रिया में अब कुछ और देरी हो सकती है. लोढ़ा कमिटी ने बोर्ड को ईमेल कर यह बताया है कि उसे बोर्ड से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया में शामिल होने से पहले कमिटी को एक ऐफिडेविट सौंपना होगा.

इस ऐफिडेविट में बोर्ड को यह बताना है कि वह 21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए ऑर्डर को पूरी तरह से मानने को तैयार है. कमिटी ने यह साफ कर दिया है कि इस ऐफिडेविट को जमा करने के बाद ही यह टेंडर प्रक्रिया आगे बढ़ पाएगी.

इस ईमेल से पहले बोर्ड ने IPL के प्रसारण संबंधी टेंडर खोलने के लिए मुंबई में बैठक बुलाई थी. लेकिन एक दिन पहले ही लोढ़ा कमिटी ने यह साफ कर दिया कि इस ऐफिडेविट के बाद ही बोर्ड इस टेंडर प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकता है.

पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया था कि जब तक बीसीसीआई और स्टेट एसोसिएशंस लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को मंजूर नहीं कर लेती तब तक बोर्ड और स्टेट एसोसिएशंस के वित्तीय अधिकारों को सीमित कर दिया जाए. कोर्ट ने लोढ़ा कमिटी को बीसीसीआई के खातों की जांच के लिए स्वतंत्र ऑडिटर नियुक्त करने का भी निर्देश दिया था.

कोर्ट के इस निर्देश के बाद बोर्ड ने लोढ़ा कमिटी से तुरंत संपंर्क किया था, ताकी IPL अधिकारों से जुड़ी निवादाओं संबंधी लोढ़ा कमिटी की शर्तों पर वह स्पष्टीकरण ले सके. इसके बाद लोढ़ा कमिटी ने BCCI को ईमेल कर यह जानकारी दी है किसी भी मुद्दे या प्रक्रिया पर कोई भी फैसला लेने से पहले बोर्ड को हर हाल में सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर मानने संबंधी ऐफिडेविट देना होगा.

इस ईमेल में लोढ़ा कमिटी ने बोर्ड के इस कदम पर भी सवाल उठाए हैं कि अभी जब टीवी प्रसारण अधिकार सोनी पिक्चर्स नेटवर्क इंडिया (एसपीएनआई) के पास हैं, जिसकी समयसीमा आईपीएल 2017 में पूरी होगी, तो इससे पहले इतनी जल्दी आगे के लिए नए टेंडर जारी करने की जल्दबाजी क्या है?

उल्लेखनीय है कि 2008 में सिंगापुर आधारित वर्ल्ड स्पोर्ट्स ग्रुप ने IPL के प्रसारण अधिकार 10 साल के लिए 218 मिलियन डॉलर में अपने नाम किए थे. इसी प्रक्रिया के तहत सोनी को इसके अधिकारिक प्रसारण के अधिकार मिले थे.

मिस्त्री को ‘टाटा’, नए ‘रतन’ की खोज शुरू

रिटायरमेंट के चार साल बाद रतन टाटा फिर सुर्खियों में हैं क्योंकि टाटा संस के बोर्ड ने चेयरमैन सायरस मिस्त्री को हटाने का हैरान करने वाला फैसला लिया है. इससे टाटा और मिस्त्री परिवार के बीच कानूनी जंग शुरू हो सकती है. टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस ने सोमवार शाम को चौंकाने वाले बयान ने बताया कि 'मिस्त्री के परमानेंट रिप्लेसमेंट' के लिए सेलेक्शन कमेटी बनाई गई है, जो 4 महीनों में यह काम पूरा करेगी. इस बीच, मिस्त्री पर खराब परफॉर्मेंस और टाटा ग्रुप के आदर्शों से समझौते के आरोप भी दबी आवाज में लगाए जा रहे हैं.

रतन टाटा ने 20 साल तक बॉस रहने के बाद 2012 में यह जिम्मा मिस्त्री को सौंपा था. उन्हें अब देश के सबसे बड़े बिजनेस ग्रुप का अंतरिम चेयरमैन बनाया गया है. इस बीच, संकेत मिले कि मिस्त्री इस कदम के खिलाफ बोम्बे हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं. सेलेक्शन कमेटी में रतन के अलावा टाटा संस के बोर्ड मेंबर्स वेणु श्रीनिवासन, अमित चंद्रा, रोनेन सेन और लॉर्ड कुमार भट्टाचार्य को शामिल किया गया है. भट्टाचार्य ब्रिटेन में हाउस ऑफ लॉर्ड्स के फॉर्मर मेंबर रहे हैं.

नया चेयरमैन चुनने के लिए जो कमेटी बनाई गई है, इसमें टाटा संस के 9 डायरेक्टर्स में से अजय पिरामल, नितिन नोहरिया और फरीदा खंबाटा सहित 6 शामिल नहीं हैं. बोर्ड के 6 मेंबर्स ने मिस्त्री को हटाने के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि इशात हुसैन और मिसेज खंबाटा वोटिंग में शामिल नहीं हुए.

मिस्त्री को हटाए जाने के बाद टाटा ग्रुप की शापूरजी पालोनजी ग्रुप के साथ कानूनी जंग शुरू हो सकती है. स्टील और टेलीकॉम बिजनेस में कई साल के लॉस के बाद मिस्त्री को ब्रिटेन में मजबूरन स्टील बिजनेस बेचने का फैसला करना पड़ा था. चीन में सुस्ती की वजह से टाटा मोटर्स की सब्सिडियरी जेएलआर के मुनाफे पर दबाव बना था. चीन कभी जेएलआर के लिए सबसे तेजी से बढ़ने वाला बाजार था.

जहरीली गैसें छोड़ती है स्मार्टफोन की बैटरी

एक स्टडी में पता चला है कि स्मार्टफोन और टैब जैसे डिवाइसेज की बैटरियां 100 से ज्यादा जहरीली गैसें पैदा करती हैं. रिसर्चर्स ने ऐसी 100 विषैली गैसों की पहचान की है, जो लीथियम बैटरीज से निकलती हैं. इनमें कार्बन मोनॉक्साइड भी है, जो त्वचा, आंखों और नाक में इरिटेशन पैदा करती है और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक होती है.

अमेरिका के इंस्टिट्यूट ऑफ NBC डिफेंस और चीन की सिन्हुआ यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने कहा कि लोग ओवरहीटिंग या फिर घटिया चार्जर इस्तेमाल करने के खतरों से वाकिफ नहीं हैं. यह स्टडी लीथियम आयन बैटरीज पर की गई है, जो हर साल 2 बिलियन डिवाइसेज में लगाई जाती हैं.

रिसर्चर जाइ सुन ने कहा, 'आजकल दुनिया भर में कई सरकारें हर चीज के लिए लीथियम आयन बैटरीज को प्रमोट कर रही हैं. मोबाइल डिवाइसेज से लेकर इलेक्ट्रिक वीइकल्स तक में ये यूज हो रही हैं. मगर इनसे जहरीली गैसें निकलती हैं.'

पूरी तरह से चार्ज बैटरी से आधी चार्ज बैटरी की तुलना में ज्यादा गैसें निकालती है. इन गैसों का उत्सर्जन बैटरीज में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स की वजह से होता है. रिसर्चर्स का कहना है कि गैसों की पहचान करने से बैटरियां बनाने वाले यह देख सकते हैं कि वे कैसे पैदा हो रही हैं और इनका उत्सर्जन कैसे रोका जा सकता है.

स्टडी के लिए 20 हजार लीथियम आयन बैटरीज को आग पकड़ने के तापमान तक गर्म किया गया. बहुत सी बैटरीज फट गईं और उन्होंने कई जहरीली गैसें छोड़ीं. बैटरीज कई बार चार्जिंग के दौरान या अन्य तरीकों से ओवरहीट होने पर भी ऐसे फट सकती हैं और नुकसान पहुंचा सकती हैं.

उन्होंने ये भी कहा कि, 'अगर आप कार में या किसी बंद जगह पर हों और कार्बन मोनॉक्साइड बैटरियों से निकलती रहे तो यह घातक साबित हो सकती है. भले ही यह कम मात्रा में रिलीज हो रही हो.'

संजय दत्त के अभिनय करियर पर लगा विराम

एक बहुत पुरानी कहावत है-‘एक भूल इंसान को हमेशा के लिए बर्बाद कर देती है.’’ यह कहावत पूरी तरह से अभिनेता संजय दत्त पर सटीक बैठती है. दोस्ती के चक्कर में संजय दत्त ने अपने घर में हथियार छिपाकर रखने की ऐसी भूल की है, जिसका खामियाजा वह अब भी चुका रहे हैं. इसी के चलते वह अदालत द्वारा सुनाई गयी जेल की सजा भी काट चुके हैं. फरवरी माह में जब वह जेल से बाहर निकले थे, तो विजेता की तरह मुस्कुरा रहे थे. जेल से बाहर निकलते ही राजकुमार हिरानी, सुभाष घई, विधु विनोद चोपड़ा व सिद्धार्थ आनंद सहित कई फिल्मकारों ने संजय दत्त को लेकर फिल्म बनाने की घोषणा  कर दी थी. संजय दत्त ने संजय गुप्ता के संग भी अपने संबंध सुधार लिए थे. लेकिन अफसोस की बात है कि उनका करियर संवरने की बजाय बर्बादी की ओर ही जा रहा है. उन्हें लगातार अपमानित भी होना पड़ रहा है. सूत्रों का दावा है कि इसी के चलते वह दिन रात शराब के नशे में डूबे रहने लगे हैं. हाल ही मुंबई में एक फिल्मी समारोह में संजय दत्त ने नशे की हालत में कुछ लोगों के साथ बदतमीजी की. बडी मुश्किल से उनकी पत्नी मान्यता दत्त उन्हे वहां से लेकर गयी.

राजकुमार हिरानी, संजय दत्त की जिंदगी पर आधारित बायोपिक फिल्म बनाने वाले थे, पर यह फिल्म शुरू नहीं हो पायी. यह एक अलग बात है कि इसके लिए रणबीर कपूर पर दोष मढ़ा जा रहा है, पर कुछ लोग इसके लिए भी संजय दत्त के सितारों का गर्दिश में होना मान रहे हैं. इसके बाद संजय दत्त ने सिद्धार्थ आनंद की फिल्म ‘‘बदला’’ के लिए काफी मेहनत की. अपने घर के सामने की जगह पर जिम बनाकर दो माह तक खास ट्रेनिंग हासिल की, लेकिन अंततः फिल्म ‘‘बदला’’ को किसी भी स्टूडियो का समर्थन न मिलने के कारण बंद करना पड़ा.

अब सूत्र दावा कर रहे हैं कि सिद्धार्थ आनंद फिल्म ‘‘बदला’’ पुनः शुरू करने जा रहे हैं. मगर इस बार फिल्म ‘बदला’ में संजय दत्त की जगह पर रितिक रोशन आ गए हैं. सुभाष घई ने बड़े जोश में फरवरी माह में घोषणा की थी कि वह संजय दत्त के साथ अपनी सफलतम फिल्म ‘‘खलनायक’’ का सिक्वअल बनाएंगे, पर अफसोस इस फिल्म का भी कुछ नहीं हुआ. सूत्र बता रहे हैं कि सुभाष घई का सारा ध्यान मुंबई के गोरेगांव इलाके के उनके मल्टीप्लैक्स पर है.

संजय दत्त को ही लेकर फिल्म ‘धमाल’ के सिक्वअल की भी बात हुई थी. इसकी पटकथा भी लिखी गयी. जब इसकी लागत का आकलन हुआ, तो निर्माता भाग खड़े हुए. इतना ही नहीं राजकुमार हिरानी ने संजय दत्त की बायोपिक फिल्म के बदले में ‘मुन्ना भाई’ का सिक्वअल बनाने की बात कही थी. पर इसके बनने की कोई उम्मीद नजर नही आ रही है. अब तो राज कुमार हिरानी खुद कह चुके हैं कि उनके पास अगले दो वर्ष तक समय नहीं है.

इधर संजय दत्त को विधु विनोद चोपड़ा की बहन शैली धर की फिल्म ‘मारको भाई’ से काफी उम्मीदे थी. संजय दत्त को उम्मीद थी कि शैली धर ‘मारको भाई’ से फिल्म निर्देशन में कदम रख रही हैं, इसलिए उनके भाई विधु विनोद चोपड़ा इस फिल्म को जरुर बनाएंगे, लेकिन ‘मारको भाई’ की पटकथा पढ़ने के बाद विधु विनोद चोपड़ा ने इस फिल्म को न बनाने का निर्णय लेते हुए अपनी बहन से साफ साफ कह दिया है कि वह दूसरी पटकथा पर काम करें. सूत्रों का दावा है कि विधु विनोद चोपड़ा के अनुसार ‘मारको भाई’ की पटकथा में दम नहीं है कि वह बाक्स आफिस पर लागत वसूल कर सके. यानी कि सात माह के अंदर संजय दत्त की छह फिल्में बंद हो चुकी हैं. और अब कोई भी निर्माता संजय दत्त के बारे में सोचना भी नहीं चाहता.

फिल्मों के निरंतर बंद होते और अभिनय करियर के आगे न खिसक पाने से संजय दत्त काफी परेशान व दुःखी हैं. अपने इस गम को गलत करने के लिए वह नशे में चूर रहने लगे हैं. बौलीवुड में अब लोग खुलकर कहने लगे हैं कि संजय दत्त को अभिनय की बात भूलकर फिल्म निर्माण अथवा किसी अन्य व्यापार में हाथ आजमाना चाहिए.

बास्को मार्टिस की फिल्म ‘सर्कस’ हुई बंद

हमने ‘सरिता’ में इस स्थान पर 13 सितंबर को ही बताया था कि कंगना के बाद परिणीति चोपड़ा के बास्को मार्टिस की फिल्म ‘सर्कस’ से अलग होने के बाद इस फिल्म का भविष्य अधर में लटक गया है. और हमने सवाल उठाया था कि ‘‘अब क्या होगा फिल्म ‘सर्कस’ का?’’ तो इसका जवाब अब आ चुका है. सूत्रों ने दावा किया है कि बास्को मार्टिस ने फिल्म ‘सर्कस’ को बंद कर दिया है.

बास्को मार्टिस के अति नजदीकी सूत्र दावा कर रहे हैं कि बास्को मार्टिस ने फिल्म ‘‘सर्कस’’ को बंद कर दिया है, मगर बास्को को इस बात का गहरा दुःख पहुंचा है कि कंगना रानोट के बाद परिणीत चोपड़ा ने भी उन्हे धोखा दे दिया.

पहले कंगना रानौत ने बास्को मार्टिस के निर्देशन में फिल्म ‘सर्कस’ में सूरज पंचोली के साथ अभिनय करने के लिए हामी भरी थी. पर बाद में कंगना ने मना कर दिया. इसके बाद बास्को ने परिणीत से बात की. पर परिणीत ने अहम के चलते खुद को ‘सर्कस’ से अलग कर लिया.

बौलीवुड के सूत्रों के अनुसार बास्को मार्टिस फिल्म ‘‘सर्कस’’ से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले थे. उन्हे यकीन था कि कोई भी अभिनेत्री उनके साथ काम करने के लिए तैयार हो जाएगी. आखिर नृत्य निर्देषक के रूप में हर अभिनेत्री से उनके गहरे व अच्छे तालुकात हैं, मगर जिस तरह से उन्हे कंगना व परिणीत ने धोखा दिया है, उसके बाद उनकी हिम्मत दूसरी अभिनेत्री से बात करने की नहीं हो रही है.

मगर कुछ लोग ‘‘सर्कस’’ के बंद होने के लिए सूरज पंचोली को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. वैसे ‘सर्कस’ का बंद होना सूरज पंचोली के लिए सबसे ज्यादा नुकसान की खबर है. लोगों का मानना है कि बास्को मार्टिस अपनी फिल्म ‘‘सर्कस’’ के हीरो सूरज पंचोली को बदलना नही चाहते थे. सूरज पंचोली के सितारे गर्दिश में हैं और वही बास्को मार्टिस को भी ले डूबे.

वास्तव में सूरज पंचोली ने अपने अभिनय करियर की शुरूआत आथिया शेट्टी के साथ फिल्म ‘‘हीरो’’ से की थी. फिल्म ‘हीरो’ बाक्स आफिस पर इस कदर पिटी कि फिल्म ‘हीरो’ के प्रदर्शन के बाद से फिल्म ‘हीरो’ की असफलता का भूत इससे जुड़े लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहा है. ‘हीरो’ के निर्देशक निखिल अडवाणी को उसके बाद दूसरी फिल्म नहीं मिल रही है. फरहान अख्तर व कृति सैनन वाली फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ जिसे निखिल अडवाणी निर्देशित करने वाले थे, उसके बंद होने की खबर दो दिन पहले ही आयी है. उधर फिल्म की हीरोइन आथिया शेट्टी की भी ‘हीरो’ के प्रदर्शन के बाद से कोई फिल्म शुरू नहीं हो पायी.

जहां तक सूरज पंचोली का सवाल है तो ‘हीरो’ की असफलता के बाद उनकी प्रेमिका जिया खान की मौत से जुड़ा मुकदमा अदालत में चल ही रहा है. तो वहीं फरहान अख्तर व रितेश सिद्धवानी की कंपनी ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ ने सूरज पंचोली को लेकर बनाई जाने वाली फुटबाल वाली फिल्म के लिए किसी स्टूडियों का साथ न मिलने पर बंद कर दिया. उसके बाद रेमो डिसूजा के निर्देशन में बनने वाली वह फिल्म भी बंद हो गयी, जिसमें सूरज पंचोली के साथ अजय देवगन अभिनय करने वाले थे. और अब सूरज पंचोली की तीसरी फिल्म ‘‘सर्कस’’ के बंद होने की खबरें आ रही हैं.

पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि फिल्म ‘‘सर्कस’’ को दो हीरोईनों ने छोड़ दिया, तो तीसरी हीरोईन के नाम पर बास्को मार्टिस विचार क्यों नहीं कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब किसी सूत्र के पास नहीं है..जबकि खुद बास्को मार्टिस चुप हैं.

अपने ही चक्रव्यूहों मे फंसती उमा भारती

नरेंद्र मोदी की सरकार मे तेजतर्रार फायर ब्रांड कही जाने बाली साध्वी उमा भारती लीं नहीं गईं थी, बल्कि आरएसएस के दबाब के चलते एक तयशुदा फार्मूले के तहत बतौर मंत्री एडजेस्ट की गईं थी, जिसकी अघोषित शर्त यह थी कि वे अपनी आदत के मुताबिक बेवजह बोलेंगी नहीं, जिससे पार्टी और सरकार की साख पर बट्टा लगे.

ढाई साल उमा ने एक धार्मिक व्रत की तरह इस करार का ईमानदारी से पालन किया पर अब लग रहा है कि वे फिर आपा खो रही हैं, जिसकी मूल वजह हमेशा की तरह उनके चिर परिचित प्रतिद्वंदी कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह और शुरू से ही उनकी आंख की किरकिरी रहे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. इस दिलचस्प विवाद के बीज अब से कोई 13 साल पहले बोये गए थे जब मध्यप्रदेश की सत्ता पर अंगद के पांव की तरह जमे दिग्विजय को उखाड़ फेकने का बीड़ा उमा ने उठाया था और एक साल ताबड़तोड़ तूफानी दौरे करते हुए आम लोगों को कांग्रेसी शासन के भ्रष्टाचार के बारे में बताया था. इसी अभियान के दौरान उमा ने दिग्विजय सिंह पर 1500 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप भी लगाया था, तब उनकी हां में हां मिलाने बालों में 2 दिग्गज भाजपाई नेता सुंदर लाल पटवा और विक्रम वर्मा भी शामिल थे.

कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई और भाजपा उमा की अगुवाई मे सत्ता पर काबिज हुई, लेकिन हुबली वारंट के चलते उमा को कुर्सी छोड़नी पड़ी, तो पार्टी ने बाबूलाल गौर को सीएम बना दिया और उमा को आश्वश्त किया कि हुबली मुकदमा निबटते ही उन्हें दोबारा सीएम बना दिया जाएगा, लेकिन ऐसा किया नहीं गया और शिवराज सिंह को सीएम बना दिया गया, तो उमा तिलमिला उठीं और सीधे अयोध्या का रुख कर लिया और बाद में नई पार्टी भाजश बना ली.

इधर घोटाले के आरोप को दिग्विजय अदालत ले गए और उमा सहित पटवा और विक्रम वर्मा पर मानहानि का दावा ठोक दिया. इस एपिसोड का पार्ट 2 पिछली 29 सितंबर से शुरू हुआ, जब इस वक्त बर्बाद करते मुकदमे पर अदालत ने उमा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिये, जिसे हल्के में लेने की चूक वे नहीं कर सकती थीं, क्योकि इसके पहले पटवा और वर्मा ने दिग्विजय से एक तरह से माफी मांगते उन्हे ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे दिया था, चूंकि अब इन दोनों की कोई हैसियत सत्ता और संगठन में नहीं रह गई है, इसलिए लोगों ने इसे सियासी शिगूफ़ा मानते नजरंदाज कर दिया, पर केंद्रीय मंत्री रहते उमा भी राजीनामे के लिए ऐसी माफी मांगतीं, तो खुद कटघरे में खड़ी होतीं.

इधर दिग्विजय अपनी जिद पर अड़े थे और अभी भी अड़े हैं कि या तो उमा भी माफी मांगे या फिर लगाए गए आरोप साबित करें. भोपाल में 17 अक्तूबर को उमा जब एसीजेएम अजय सिंह ठाकुर की अदालत में पेश हुईं, तो अदालत ने वारंट रद्द कर दिया. इस दिन मीडिया से चर्चा करते उन्होने वही कहा जो मुद्दत से कहती आ रहीं हैं कि कुछ भी हो जाए पर देश, तिरंगा, गंगा, गाय और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करूंगी, पर दिग्विजय के मुकदमे पर क्या करेंगी, इस पर उनका कहना था कि वे मेरे भाई हैं, मामला वापस ले लें तो अच्छा है और उन पर मैंने आरोप पार्टी द्वारा चुनाव के दौरान प्रकाशित पुस्तक के आधार पर लगाए थे.

आज मामूली सी दिख रही उमा की यह सफाई भाजपा को भारी भी पड़ सकती है और कानूनी पेचीदगियों का भी शिकार हो सकती है, क्योंकि वे दिग्विजय पर लगाए आरोपों के बाबत पूरी को पार्टी को जिम्मेदार ठहरा रहीं है, यानि अब या तो आरोप भाजपा साबित करे और अगर न कर पाये जिसकी उम्मीद ज्यादा है तो पूरी पार्टी दिग्विजय से माफी मांगे. उमा भोपाल में यह भी कहती रहीं हैं कि सत्ता उन्होंने दिलाई और उसका मजा दूसरे जाहिर है शिवराज सिंह उठा रहे हैं. कलह के इस यज्ञ में एक आहुती भोपाल आए केंद्रीय मंत्री वैंकैया नायडू ने यह कहते डाल दी कि कुछ लोग नहीं चाहते थे कि शिवराज सीएम बनें.

अब तय है कि जो होगा वो शिवराज और प्रदेश भाजपा के लिहाज से ठीक नहीं होगा. शिवराज के दुश्मनों की तादाद पार्टी के भीतर बढ़ती जा रही है, इनमे उजागर नाम बाबूलाल और कैलाश विजयवर्गीय सहित कई छुटभैयों के भी हैं. हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर तिलमिलाई उमा भारती शिवराज विरोधी गुट की अगुवाई उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद करती नजर आयें.

नीतीश-लालू: यह रिश्ता क्या कहलाता है

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दूसरे राज्यों में जा कर सभाएं करना और भारतीय जनता पार्टी व नरेंद्र मोदी पर तंज कसना उन के सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल को हजम नहीं हो रहा है.

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव तो अपने ‘छोटे भाई’ की इस अदा पर चुप्पी साधे हुए हैं, पर उन के करीबी और पार्टी के थिंक टैंक कहे जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह को नीतीश कुमार का यह रवैया ठीक नहीं लग रहा है. वे कहते हैं कि अपने सियासी फायदे के लिए नीतीश कुमार सहयोगी दलों की अनदेखी कर रहे हैं. उन्होंने उन से कुछ तल्ख सवाल पूछे हैं, जैसे आखिर उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार किस ने बना दिया? किस हैसियत से वे मिशन-2019 की बात कर रहे हैं? क्या अकेले घूम कर नीतीश कुमार सैकुलर ताकतों को कमजोर नहीं कर रहे हैं? दूसरे राज्यों में सभा करने से पहले नीतीश कुमार को क्या सहयोगी दलों से बात नहीं करनी चाहिए? क्या उन्हें भरोसे में नहीं लेना चाहिए? वगैरह.

इतना ही नहीं, नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि पहले तो 10 सालों तक नीतीश कुमार ने खूब शराब बिकवाई और अब कूदकूद कर उसे बंद कराने में लगे हैं. नरेंद्र मोदी की सरकार देश में जो बीमारी फैला रही है, उसे ठीक करना अकेले नीतीश कुमार के बूते की बात नहीं है. ‘हम’ सब से बड़े हैं, यह भावना ठीक नहीं है.

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच की तनातनी की सब से बड़ी वजह नीतीश कुमार की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने की कोशिश है और लालू प्रसाद यादव यह नहीं चाहते हैं. नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली कामयाबी को पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भुनाना चाहते हैं, जबकि लालू प्रसाद यादव इस मसले पर खामोश हैं. वे नहीं चाहते हैं कि महागठबंधन उत्तर प्रदेश में उन के समधी को कोई चुनौती दे या उन के लिए किसी भी तरह की परेशानी खड़ी करे.

लालू प्रसाद यादव इस बात को ले कर कतई खुश नहीं हैं कि नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में धुआंधार चुनाव प्रचार कर रहे हैं और अपना जनाधार बनानेबढ़ाने की जुगत में लगे हुए हैं. लालू प्रसाद यादव इस बात से भी नाराज बताए जाते हैं कि नीतीश कुमार उन से कोई सलाहमशवरा किए बिना उत्तर प्रदेश के वाराणसी, कानपुर, नोएडा और लखनऊ में अकेले लगातार रैलियां कर रहे हैं.

गौरतलब है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी जाति की आबादी अच्छीखासी है और नीतीश कुमार की नजर उस पर गड़ी हुई है. उसी के बहाने वे वहां अपना जनाधार बढ़ाने की चाहत रखते हैं. नीतीश कुमार महागठबंधन की अनदेखी कर उत्तर प्रदेश में ‘एकला चलो रे’ की राजनीति कर रहे हैं. लालू प्रसाद यादव अपनी रिश्तेदारी की वजह से उत्तर प्रदेश में चुप रहना चाहते हैं. वे नहीं चाहते कि सियासी कूवत बढ़ाने के चक्कर में उन के पारिवारिक रिश्ते पर किसी तरह की आंच आए. वे काफी ऊहापोह में हैं. एक तरफ नीतीश कुमार से सियासी रिश्ता भी निभाना है, क्योंकि उन्होंने ही उन्हें बिहार की राजनीति में दोबारा उठने का मौका दिया था, वहीं दूसरी ओर उन की बेटी की शादी मुलायम सिंह यादव के परिवार में हुई है.  वे बारबार यही रट लगाते रहे हैं कि उन की पार्टी उत्तर प्रदेश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों का साथ देगी. उन की नजर में मुलायम सिंह यादव से बड़ा धर्मनिरपेक्ष भला और कौन हो सकता है.

बिहार की राजनीति में ‘बड़े भाई’ (लालू प्रसाद यादव) और ‘छोटे भाई’ (नीतीश कुमार) के नाम से मशहूर दोनों नेताओं के बीच समधी मुलायम सिंह यादव की वजह से खासी खटास पैदा हो चुकी है. सियासी रिश्तेदारी पर पारिवारिक रिश्तेदारी भारी पड़ रही है. राजद के एक बड़े नेता कहते हैं कि अगर दोनों नेताओं के बीच पनपे गड्ढे को नहीं पाटा गया, तो बड़ी खाई बन सकती है. इस के अलावा नीतीश कुमार के शराबबंदी के फैसले की तो लालू प्रसाद यादव तारीफ कर रहे हैं, पर ताड़ी पर पाबंदी लगाने के मामले में वे उन से खासा नाराज चल रहे हैं. लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि ताड़ी पर रोक लगाने से पासी समुदाय के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. इन्हें पासी जाति के वोट की चिंता है, तो नीतीश कुमार को उन औरतों की चिंता सता रही है, जिन के पास पति ताड़ी पी कर बौराते रहते हैं.

गौरतलब है कि साल 1990 में बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद यादव ने ताड़ी को टैक्स फ्री कर दिया था. अंबेडकर जयंती जलसे में नीतीश कुमार ने ताड़ी की वकालत करने वालों की जम कर खिंचाई की थी और खूब खरीखोटी भी सुनाई थी. उन्होंने किसी का नाम लिए बगैर कहा था कि कुछ लोग ताड़ी पर सियासत कर रहे हैं और हायतौबा मचा रहे हैं. ऐसे लोगों को पता नहीं है कि ताड़ी गरीबों और पिछड़ों को कितना नुकसान पहुंचा रही है.

10, सर्कुलर रोड, पटना पर बने राबड़ी देवी के सरकारी आवास पर हुई राजद संसदीय दल की बैठक में शामिल नेताओं ने बैठक के दौरान तो अपने मुंह पर पट्टी बांधे रखी, पर बैठक से बाहर निकलते ही राज्य सरकार पर तीर चलाने शुरू कर दिए. रघुवंश प्रसाद सिंह, तस्लीमुद्दीन, प्रभुनाथ सिंह वगैरह नेताओं ने नीतीश कुमार को जीभर कर कोसा. बैठक के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए तस्लीमुद्दीन ने कहा कि नीतीश कुमार से कानून व्यवस्था संभल नहीं रही है, इसलिए उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए. दूसरे राज्यों में घूम कर के नीतीश कुमार अपनी नाकामी छिपा रहे हैं.

राजद के सांसद रह चुके प्रभुनाथ सिंह ने कहा कि सिवान में पत्रकार राजदेव रंजन मर्डर केस के लिए शहाबुद्दीन दोषी हैं, तो कानून अपना काम करेगा. इस के साथ ही वे यह भी कहते हैं कि जेल में शहाबुद्दीन से मिलने एकसाथ 63 लोग पहुंच गए, यह पूरी तरह से प्रशासनिक नाकामी है. केंद्रीय मंत्री रह चुके रघुवंश प्रसाद सिंह ने महागठबंधन की सरकार पर सवालिया निशान लगाते हुए कह दिया था कि महागठबंधन की सरकार है कहां? इस में केवल कुछ लोग ही शामिल हैं. वहीं सांसद रह चुके जगदानंद सिंह ने कहा कि बिहार में कानून व्यवस्था की हालत में सुधार होना चाहिए, लेकिन इस के साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में अपराध कम हैं.

रघुवंश प्रसाद सिंह के सवालों ने जनता दल (यूनाइटेड) के अंदरखाने में हलचल पैदा कर दी है. जद (यू) का कोई बड़ा नेता इस मसले पर कुछ भी बोलने से परहेज कर रहा है, पर जद (यू) के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि रघुवंश प्रसाद सिंह किसी भी तरह से महागठबंधन धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं. लोकसभा का चुनाव हारने के बाद अब वे राज्यसभा में जाने का रास्ता खोजने में लगे हैं. राजद और जनता दल (यू) के बीच चल रही खींचतान की हवा के बीच 1 सितंबर, 2016 को नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच एक घंटे तक गुफ्तगू चली. दोनों की मुलाकात किस सिलसिले में थी, इसे बताने में दोनों नेता परहेज कर रहे हैं.

जद (यू) के सूत्रों की मानें, तो बोर्ड और निगमों के खाली पड़े पदों पर अपनेअपने भरोसेमंद कार्यकर्ताओं को सैट करने के मसले पर दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी. वहीं राजद सूत्रों ने बताया कि लालू प्रसाद यादव ने दोनों पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बनाने और सरकार को सही तरीके से काम करने के मसले पर बात की. लालू ने नीतीश को समझाया कि प्रधानमंत्री के चक्कर में कहीं मुख्यमंत्री की कुरसी न गंवानी पड़ जाए. इस से जहां महागठबंधन का मकसद पूरा नहीं होगा, वहीं भाजपा को मजबूत होने का मौका भी मिल जाएगा.

गौरतलब है कि 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में इस महागठबंधन का 178 सीटों पर कब्जा है. इस में जद (यू) की झोली में 71, राजद के खाते में 80 और कांग्रेस के हाथ में 27 सीटें हैं. राजग के खाते में 58 सीट ही हैं, जिस से महागठबंधन का हौसला बुलंद है. मुसलिम, यादव, कुर्मी, कुशवाहा, पिछड़े, अतिपिछड़े और महादलित महागठबंधन की ताकत बन चुके हैं, जिन की आबादी तकरीबन 70 फीसदी है. महागठबंधन की जीत के पीछे सब से बड़ी वजह यह भी रही कि पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से सबक लेते हुए नीतीश, लालू और कांगे्रस ने मिल कर महागठबंधन बनाने में जरा भी देरी नहीं की.

महागठबंधन ने शुरू से ही नीतीश कुमार की अगुआई में चुनाव लड़ने का ऐलान किया और आखिरी तक उस पर कायम रहा. जब महागठबंधन बनाने की कवायद परवान चढ़ी थी, तब महागठबंधन के अगुआ रहे मुलायम सिंह यादव ने नीतीश कुमार को स्वार्थी बताते हुए कन्नी काट ली थी, वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने भी महागठबंधन को खास तवज्जुह नहीं दी थी. लेकिन अब लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच बढ़ती खटास से महागठबंधन और बिहार सरकार पर खतरे के काले बादल मंडराने लगे हैं. लालू यादव इस बार अपने स्वभाव के उलट अपनी जबान पर काबू रखे हुए हैं, पर नीतीश कुमार लालू यादव की चुप्पी को उन की सियासी मजबूरी समझ कर महागठबंधन के समझौतों के खिलाफ काम करते जा रहे हैं.

लालू यादव ने खुद कुछ न बोल कर अपनी पार्टी के सीनियर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को नीतीश कुमार के खिलाफ बोलने के लिए लगा रखा है. अगर नीतीश कुमार नहीं संभले, तो महागठबंधन के लठबंधन बनने में देर नहीं लगेगी. भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि जब नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ 17 साल पुराने रिश्ते को झटके में तोड़ डाला, तो लालू यादव को धोखा देने में उन्हें कितना समय लगेगा.

मिशन-2019: नीतीश का सपना

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को धूल चटाने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 4-5 महीने से संघवाद और भाजपा के खिलाफ देशव्यापी मुहिम छेड़ने के लिए तमाम समाजवादियों और सियासी दलों को एक झंडे के नीचे लाने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार में नरेंद्र मोदी को पटकनी देने के बाद अब नीतीश कुमार दिल्ली पहुंच कर मोदी से दोदो हाथ करने की तिकड़म में लग गए हैं. नरेंद्र मोदी के कद के बराबर खड़ा करने के लिए उन की पार्टी जद (यू) ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना दिया है.

आम चुनाव में अभी ढाई साल की देरी है, पर नीतीश कुमार की सोच यही है कि बिहार विधानसभा में मिली करिश्माई जीत के जादू को वे आम लोकसभा चुनाव तक बरकरार रखें. उन्हें इस बात का एहसास है कि बिहार विधानसभा चुनाव उन के और मोदी के बीच ही लड़ा गया था और उस में उन्होंने प्रधानमंत्री को मात दी थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के सामने बौने नजर आए नीतीश कुमार ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपने कद को बड़ा साबित कर डाला था.

विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को मात देने के लिए नरेंद्र मोदी को खुद ही मैदान में उतरना पड़ा था, पर लोकसभा चुनाव में दिखा उन का जादू बिहार में नहीं चल पाया. 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में भाजपा को 53 सीटों पर समेट कर नीतीशलालू गठबंधन ने मोदी को धूल चटा कर आम चुनाव की हार का बदला लिया था.

अब नीतीश कुमार दिल्ली पहुंच कर नरेंद्र मोदी को उन के ही किले में घेर कर शिकस्त देने की कवायद में लग गए हैं. साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर अभी से ही उन्होंने अपनी निगाहें टिका दी हैं. सभी गैरभाजपाई दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश में उन्होंने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया है. यही वजह है कि बिहार को छोड़ वे नैशनल मुद्दों पर बयान देने में लगे हुए हैं. शराबबंदी को वे नैशनल लैवल तक ले जाने की कवायद में लगे हुए हैं और इस के साथ ही महिला आरक्षण और स्टूडैंट्स क्रेडिट कार्ड जैसे मुद्दों को भी हवा देनी शुरू कर दी है.

नीतीश कुमार अपनी सरकार की अनदेखी कर अब भाजपा की पोलपट्टी खोलने में लग गए हैं और हर मंच से भाजपा विरोध की ही बात करने लगे हैं. वे चिल्लाचिल्ला कर कह रहे हैं कि भाजपा और संघ की आजादी की लड़ाई में कोई भी भूमिका नहीं रही है, इस के बाद वे राष्ट्रभक्ति का ढोल पीटते रहे हैं. भगवा झंडा फहराने वालों को तिरंगे से कभी भी कोई वास्ता नहीं रहा, आज वे लोग तिरंगे पर लैक्चर झाड़ रहे हैं.

साल 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने कई वादे और दावे किए थे, पर सारे हवा हो गए. न काला धन देश में आया और न ही लोगों के खाते में 15-15 लाख रुपए आए. किसानों को उचित समर्थन मूल्य भी नहीं मिला. बेरोजगारी खत्म करने के नाम पर केंद्र की सरकार को वोट मिले थे, पर क्या हुआ?

नीतीश कुमार के इस दांव ने भाजपा और संघ को बौखला दिया है. भाजपा नेता और राजग सरकार में नीतीश कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि केंद्र और बिहार में भाजपा के साथ मिल कर 17 साल तक सत्ता की मलाई खाने वाले नीतीश कुमार के मुंह से भाजपा और संघ का विरोध उसी तरह है, जैसे कहा जाता है कि सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. वहीं जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह साफ लहजे में कहते हैं कि नीतीश कुमार की अगुआई में नैशनल लैवल पर गैरसंघवाद और गैरभाजपाई दलों का राजनीतिक मंच बनाने की मुहिम शुरू हो चुकी है.

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