पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में दौराला के पास एक कसबा है लावड़. यहां के किसान ज्यादातर सब्जियों की खेती करते हैं, लेकिन उन में से ज्यादातर को उपज की वाजिब कीमत नहीं मिलती. इसलिए सब परेशान रहते थे. ऐसा देखा जाता है कि फसल चाहे कोई भी हो, ज्यादा पैदावार होते ही मंडी में उस की कीमतें गिर जाती हैं. लावड़ के सब्जी उत्पादकों ने हिम्मत नहीं हारी और आपस में मिल कर एक रास्ता खोज लिया. वहां के किसानों ने जनकल्याण संस्था की मदद से आपस में मिल कर एक सब्जी प्रोड्यूसर कंपनी बना ली. राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत बैंक से उन्हें आसानी से कर्ज भी मिल गया.
पहले सब किसान अपनीअपनी उपज ले कर अलगअलग मंडियों में जाते थे, बिचौलियों के हाथों लुटते थे व धक्के खाते थे. अब आपस में मिल जाने से उन की सब्जियां लोकल मंडी में न बिक कर ट्रकों में?भर कर दिल्ली की आजादपुर मंडी में बिकने जाती हैं. इसलिए पहले के मुकाबले उन्हें उन की उपज की कीमत ज्यादा मिलती है. खेती से ज्यादा कमाई करने के लिए यह लाजिम है कि किसान फसलें उगाने के साथसाथ थोड़ा आगे बढ़ें. उपज की बिक्री, एग्री बिजनेस व प्रोसेसिंग आदि पर भी खास ध्यान दें. खासकर छोटे किसान खुद इंटरनेट पर मंडियों के भाव नहीं देख सकते, लेकिन यदि वे आपस में मिल कर स्वयं सहायता समूह, कोआपरेटिव सोसायटी या कंपनी बना लें तो एग्री बिजनेस के बड़े काम भी आसानी से कर सकते?हैं.
अभी तक किसान आढ़तियों व दलालों के आसरे रहते थे. अब बदलाव के दौर में सरकार ने मौका दिया है, तो उस का फायदा उठाना चाहिए. यह सच है कि खेती से जुड़े कामधंधे करने, नईनई तकनीकें हासिल करने, एग्री बिजनेस करने व फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए सब से पहले पूरी जानकारी, जगह व पूंजी की जरूरत होती है. एक साथ सभी साधन ज्यादातर किसानों के पास नहीं होते. मोटे ब्याज पर सेठसाहूकारों से कर्ज ले कर खेती करने की बात सोचना अकलमंदी नहीं है. ज्यादातर बैंकों के अफसर भी कर्ज वापस न होने के डर से छोटे किसानों को कर्ज देने से हिचकते?हैं. इसलिए किसानों को खुद आपस में एकदूसरे की मदद करना जरूरी है.
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