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टोंड बौडी करे कमाल

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अकसर हम तनावग्रस्त रहते हैं. वर्किंग आवर्स के नाइट ऐंड डे कल्चर ने लाइफस्टाइल को पूरी तरह बदल कर रख दिया है. ऐसे में अगर कोई सब से ज्यादा सफर करता है तो वह है हमारा शरीर. कामकाजी युवतियों के लिए यह बड़ी समस्या है, क्योंकि उन्हें घर और बाहर दोनों की ही जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, ऐसे में ब्यूटी और फिगर पर तो असर पड़ता ही है.

पर बदलते वक्त में युवतियों ने अपनी फिगर और ब्यूटी को पूरी तरह मैंटेन करने के उपाय ढूंढ़ लिए हैं. टोंड फिगर आप की ब्यूटी को और निखारती है. कहते हैं अगर बौडी तरोताजा हो तो उस का सीधा असर आप के चेहरे पर दिखता है. थकानरहित शरीर से आप का चेहरा दमक उठता है. इसलिए फेशियल के साथसाथ बौडी मसाज भी ब्यूटी थेरैपी का एक अहम हिस्सा है. हालांकि बहुत सी युवतियां इसे इग्नोर करती हैं. कुछ युवतियां कभीकभार ही फेशियल करवाती हैं, उन्हें बौडी मसाज समय की बरबादी लगती है, जबकि ऐसी धारणा सही नहीं है, अगर आप फिट रहेंगी और लुक भी अच्छा होगा, तो आप का कौन्फिडैंस भी बढ़ेगा, जो आज बहुत जरूरी है.

बौडी मसाज के फायदे

इनर ब्यूटी उभरती है

हम सब जानते हैं कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन बसता है. रैगुलर बौडी मसाज आप की ब्यूटी को लंबे अरसे तक बनाए रखती है. नैचुरल औयल, गुलाब जल, अरोमा से बौडी स्मूद बनती है और यही रिलैक्सेशन आप की इनर ब्यूटी को उभारने का भी काम करती है.

ब्लड सर्कुलेशन व धमनियों को रखती है मैंटेन

रैगुलर बौडी मसाज से शरीर के रोमछिद्र व पोर्स खुल जाते हैं और खून का प्रवाह अच्छी तरह होने लगता है. औक्सीजन की भरपूर सप्लाई से शरीर में चुस्तीफुरती आती है. इस से आप के शरीर की सारी थकान मिटती है और शरीर में नई चमक व ऊर्जा का संचार होता है.

तनाव दूर करती है मसाज

थकावट और काम का ओवरलोड हमारे तनमन को मुरझा देता है. उस की चमक खो जाती है. ऐसे में रैगुलर बौडी मसाज आप को स्ट्रैंथ व पावर देती है. इस तरह मसाज आप की बौडी पर मैजिकल असर करती है. हफ्ते की एक दिन मसाज भी आप की बौडी को टोंड और चेहरे को खिलाखिला बना सकती है.     

क्या करें

– अपनी ब्यूटी अपौइंटमैंट के दौरान एक सैशन बौडी मसाज का भी रखें.

– किसी बौडी मसाजर की होम फैसिलिटी की सुविधा ले सकती हैं.

– क्वालिटी बौडी मसाज औयल का ही इस्तेमाल करें.

– अपनी स्किन के अनुसार ही अरोमा, स्प्रे, औयल या मसाज क्रीम का चुनाव करें.

– किसी ऐक्सपर्ट से ही मसाज सैशन लें.

इन्हें हमेशा ध्यान में रखें

– मसाज लेने वाली सीट कंफर्टेबल हो.

– लोकल व घटिया प्रोडक्ट्स से बचें.

– अनप्रोफैशनल मसाज प्रोवाइडर कभी हायर न करें.

– संभव हो तो माइल्ड म्यूजिक के साथ मसाज का मजा लें.

– मसाज हमेशा परफैक्ट पोश्चर में ही लें, आड़ेतिरछे लेट कर नहीं.

कटघरे में एनकाउंटर

पिछले करीब 16 महीनों से बेटी सोनिया की शादी की तैयारियों में जुटे भोपाल सैंट्रल जेल में प्रधान आरक्षक रमाशंकर यादव की ड्यूटी जब दिवाली की रात भी लगा दी गई, तो वह ज्यादा परेशान नहीं हुए. इस की वजह यह थी कि दूसरे ही दिन यानी 1 नवंबर से उन की डेढ़ महीने की छुट्टी मंजूर हो गई थी.

रमाशंकर यादव मिलनसार और हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे. इसी के चलते जल्द ही भोपाल जेल और पुलिस विभाग में उन की एक अलग पहचान बन गई थी. करीब एक साल पहले उन का तबादला सारंगपुर से भोपाल हुआ था. भोपाल आते ही उन्होंने सोच लिया था कि रहने के लिए इस से बेहतर कोई शहर नहीं हो सकता. रमाशंकर दिल के मरीज थे, इसलिए बहुत नियम करम से रहते थे. भोपाल में हर तरह की चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी, यह उन के लिए और भी अच्छी बात थी.

रमाशंकर ने अपनी पूरी जिंदगी जेल विभाग की नौकरी में खपा दी थी. उन की उम्र 57 साल हो चुकी थी, सेवानिवृत्ति के केवल 3 साल बचे थे. उन्होंने केवल भोपाल में ही रहने का फैसला कर लिया था, बल्कि वहीं पर अपना मकान भी बनवा लिया था. चूंकि इस नए मकान में उन की पहली दिवाली थी, इसलिए यादव परिवार ने अपने इस आशियाने को पूरे तनमन से सजाया था.

मूलत: उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से मध्य प्रदेश आ कर बसे रमाशंकर यादव में देशभक्ति का जज्बा किस तरह कूटकूट कर भरा था, इस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने दोनों बेटों को सेना की नौकरी के लिए खुद प्रशिक्षित और प्रोत्साहित किया था. बेटे भी पिता की तरह मेहनत कर के उन की उम्मीदों पर खरे उतरे तो उन की छाती और चौड़ी हो गई. उन का बड़ा बेटा शुभनाथ यादव असम में और छोटा बेटा प्रभुनाथ हिसार में पदस्थ है.

मिलिट्री वालों को दिवाली पर भी आसानी से छुट्टी नहीं मिलती, इसलिए दोनों बेटे इस बार भोपाल नहीं आ पाए थे. रमाशंकर ने अपनी पत्नी, बेटी, बड़ी बहू और पोते पोती के साथ दिवाली मनाई थी. बेटों से दिन में फोन पर बात हो गई थी. वैसे रमाशंकर का सारा लाडप्यार सोनिया पर उमड़ रहा था, जिस की 9 दिसंबर को शादी होनी थी. शादी के निमंत्रण पत्र भी छप चुके थे. दिवाली की पूजा पाठ के बाद रमाशंकर ने पोते पोती को आतिशबाजी चलवाई और रात करीब एक बजे पैदल ही ड्यूटी पर चले गए. जेल उन के घर के ज्यादा दूर नहीं थी.

भोपाल की सैंट्रल जेल हाईटेक और कड़ी सिक्योरिटी वाली मानी जाती है, जिसे देश का पहला आईएसओ का प्रमाण पत्र मिला हुआ है. इस जेल की गिनती देश की उन जेलों में शुमार होती है, जो हिफाजत के लिहाज से बेहद महफूज कही जाती हैं. इसी के मद्देनजर यहां कई खूंखार कैदियों के अलावा ऐसे नक्सलियों और आतंकियों को भी रखा गया है, जिन पर हिंसा, हत्या, लूटपाट, सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और राष्ट्रदोह के मुकदमे चल रहे हैं.

जेल में करीब 48 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. यह जेल करोंद इलाके में है, जहां से एक रास्ता बैरसिया और दूसरा विदिशा और नरसिंहगढ़ को जाता है. जेल के चारों तरफ हरियाली है, हालांकि अब यह इलाका भी रिहायशी हो चला है. यहां से गुजरने वाले लोग जेल की 32 फुट ऊंची दीवार को देख कर सहज रूप से अंदाजा लगा लेते हैं कि इस जेल से किसी कैदी का भागना नामुमकिन भले ही न हो, लेकिन मुश्किल जरूर है.

वक्त के पाबंद रमाशंकर यादव की आदत थी कि वह ड्यूटी पर 5-10 मिनट पहले ही पहुंच जाते थे, जिस से पाली बदलने पर चार्ज देने वाले सहकर्मियों को परेशानी या देरी न हो. यह निष्ठा और भलमानसाहत कभी जानलेवा भी हो सकती है, उन्होंने कभी सोचा तक नहीं था. घर में शादी का माहौल था, जेवरों और कपड़ों की खरीदारी चल रही थी. इस के बावजूद रमाशंकर ने अपनी ड्यूटी में कोई कोताही नहीं बरती थी.

31 अक्तूबर की देर रात यानी ड्यूटी बदलने के बाद 2 बजे जेल में क्या हुआ, यह किसी को भी ठीकठाक पता नहीं है. रमाशंकर यादव अपनी आमद दर्ज करा कर ड्यूटी के समय से कुछ मिनट पहले ही अंदर पहुंच गए थे. उन्हें मालूम था कि इस जेल में करीब 3400 कैदी या तो अपने जुर्मों की सजा भुगत रहे थे या फिर अदालती फैसले का इंतजार कर रहे थे. इन में से कई खूंखार कैदी थे, जिन्हें खासतौर से अलग बने ब्लौक-बी में रखा गया था. चूंकि दिवाली का दिन था, इसलिए अधिकांश कर्मचारी छुट्टी पर थे. ड्यूटी पर तैनात 70 में से केवल 40 प्रहरी ही ड्यूटी पर आए थे. बाकी ने जैसेतैसे कर के अपनी छुट्टी मंजूर करा ली थी. यह तो तब था, जब कुछ दिनों पहले ही आईबी ने जेल के बाबत सरकार को आगाह कर दिया था.

रमाशंकर यादव ने ड्यूटी संभाली और आदतन रोजाना की तरह ठकठक कर के चलते हुए चहलकदमी शुरू कर दी. इत्मीनान से एक पूरा चक्कर लगा लेने और यह तसल्ली कर लेने में कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है, उन्हें आधा घंटे से भी ज्यादा समय लग गया.

अपनी नौकरी से तो रमाशंकर खुश थे, लेकिन स्टाफ और आला अफसरों से असंतुष्ट रहते थे. जेल में बहुत कुछ ऐसा खुलेआम होता रहता था, जो कायदे कानूनों और नियमों के खिलाफ था. इस पर रमाशंकर खामोश ही रहते थे. लेकिन जब कभी छुट्टियों पर दोनों बेटे आते थे तो उन्हें इस गड़बड़झाले के बारे में जरूर बताते थे. मसलन जेल कर्मचारियों के साथ किस तरह भेदभाव किया जाता है. जो अधीनस्थ कर्मचारी अधिकारियों की जीहुजूरी में लगे रहते हैं, उन्हें उन की पसंद की ड्यूटी दे दी जाती है. कई कर्मचारी जेल में ऐसी चीजें ले जाते हैं, जिन्हें ले जाना प्रतिबंधित है.

रात करीब पौने 2 बजे जब रमाशंकर बी ब्लौक की गैलरी में पहुंचे तो उस समय रात के 3 या पौने 3 बजे होंगे. यह भी संभव है कि जिस वक्त प्रतिबंधित संगठन सिमी यानी स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट औफ इंडिया के 8 कैदी जेल से भागे, वह 2 बजे के आसपास का वक्त रहा हो. वक्त कोई भी रहा हो, अब इस बाबत दावे से कोई नहीं कह पा रहा है कि उस वक्त घड़ी की सुइयां कहांकहां रही होंगी.

31 अक्तूबर की सुबह जब लोग दिवाली की थकान और खुमारी उतार रहे थे, तभी एक दिल दहला देने वाली यह खबर आई कि भोपाल सैंट्रल जेल से सिमी के 8 कैदी सुबह लगभग 2 और 3 बजे के दरम्यान भाग निकले हैं. जिस ने भी सुना, वह सकते में आ गया. खबर जंगल की आग की तरह देश भर में फैली और लोगों ने जी भर कर पुलिस, प्रशासन और जेल विभाग को कोसा.

घटना के मद्देनजर अंदाजा भर लगाया जा सकता है कि जिस वक्त रमाशंकर यादव बी ब्लौक की बैरकों के पास से गुजरे, तब यह देख उन का खून जम गया होगा कि अलग अलग बैरकों में बंद 8 कैदी बाहर आ गए थे. वे आठों बाहर की तरफ भाग रहे थे. यह देख कर रमाशंकर ने उन्हें रोकने की कोशिश की होगी तो उन कैदियों ने उन की हत्या कर देने में ही अपनी भलाई समझी होगी.

उन की हत्या में किसी घातक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया, बल्कि इस के लिए जेल की थाली काट कर हथियार की तरह प्रयोग की गई थी. हत्या कर के भागे कैदियों में हकीकत बताने के लिए अब कोई जिंदा नहीं है. लेकिन इतना जरूर समझा जा सकता है कि जांबाज, ईमानदार और देशभक्त रमाशंकर यादव एक या 2 लोगों के काबू में आने वाले शख्स नहीं थे.

संभावना इस बात की ज्यादा है कि रमाशंकर यादव का यूं आड़े आना इन कैदियों के लिए अप्रत्याशित बात रही होगी, इसलिए उन्हें मार देने में ही उन्हें अपनी बेहतरी दिखी. तय है कि यह अडंगा उन की मिलीभगत की डील के शेड्यूल में नहीं था. उन का रास्ता अभी भी पूरी तरह साफ नहीं हुआ था. अभी ये लोग कुछ कदम ही चल पाए थे कि एक नई अड़चन ड्यूटी दे रहे प्रहरी चंदर सिंह तिलंघे के रूप में सामने आ गई. लेकिन जाने क्यों उन्होंने चंदर की रमाशंकर की तरह बेरहमी से हत्या नहीं की, बल्कि उस के हाथपांव बांध कर मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. इस नजारे को देख बुरी तरह घबराए चंदर ने देखा कि सिमी के आठों आतंकी एक एक कर भाग रहे हैं, चूंकि उस के हाथ पैर बंधे थे और मुंह में कपड़ा ठुंसा हुआ था, इसलिए वह बेबसी से उन्हें भागते देखता रह गया.

जातेजाते इन कैदियों ने चंदर को धमकी भी दी कि अगर शोर मचाया तो गला काट देंगे. उन्होंने उस की जेब में रखी व्हिसल भी तोड़ दी, जिस से अगर वह किसी तरह अपने हाथ पैर खोल भी ले तो किसी को एकदम होशियार न कर सके. बेबस और तिलमिलाया चंदर उन लोगों को भागते देखता रहा. उस का वाकी टाकी संकेत दे रहा था, लेकिन वह कंट्रोल रूम को या दूसरे सहयोगियों को कोई जवाब नहीं दे पाया. चंदर की तरफ से कोई जवाब न मिलता देख कर्मचारियों ने जांच पड़ताल की तो उन्हें सिमी के कैदियों के इतने आसानी से भाग जाने की खबर लगी. कुछ दूरी पर ही रमाशंकर यादव की लाश पड़ी थी.

लेकिन तब तक बकौल चंदर 15 मिनट में ही 8 कैदी 3 दीवारें फांद कर जेल से फरार हो चुके थे. रास्ते में भी इन्हें रोकने वाला कोई नहीं मिला था. जेलर के दफ्तर के बाहर निगरानी केबिन पर तैनात कर्मी भी गायब था. इन खूंखार कैदियों के लिए खासतौर से तैनात किए गए एसएएफ के 4 जवान का भी कोई अतापता नहीं था.

भगोड़े कैदियों ने फिल्मी स्टाइल में 32 फुट ऊंची दीवार फांदी, इस के लिए उन्होंने जेल में मिली चादरों के बीच बांस फंसा कर सीढ़ी बनाई और इस के बाद एक के ऊपर एक चढ़ कर दूसरी तरफ कूद गए. ये लोग कूदे या उतरे यह भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक स्पष्ट नहीं हो पाया था. लेकिन यह तो साफ है कि इतनी ऊंचाई से कूदने पर हाथोंपैरों और शरीर का सलामत रहना कतई मुमकिन नहीं है.

खबर मिलते ही जेल में हड़कंप मच गया. वहां मौजूद कर्मचारियों ने तुरंत इस घटना की खबर शीर्ष अधिकारियों को दी. अधिकारियों ने तुरंत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस घटना से अवगत कराया. उस वक्त रात के करीब 3 बजे थे. इस खबर ने शिवराज सिंह चौहान की नींद उड़ा दी. उन्होंने आला अफसरों को इस हिदायत के साथ कुछ निर्देश दिए कि उन्हें पलपल की खबर दी जाए.

इस बीच जेल का सायरन बजा था या नहीं, इसे ले कर भी दूसरी कई बातों की तरह विरोधाभास है, लेकिन जल्द ही सायरन बजाती गाडि़यां जेल की तरफ भागती दिखीं. उस वक्त भी भोपाल में छिटपुट आतिशबाजी हो रही थी. एकएक कर जेल और पुलिस विभाग के कई अधिकारी जेल पहुंचे और घटना की जानकारी ले कर आंखें फाड़े उन 8 बैरकों की तरफ देखते रहे, जिन की चाबियां सही सलामत डेढ़ किलोमीटर दूर जेलर के कमरे में रखी थीं.

जाहिर है, कैदियों ने ताले तोड़े नहीं, बल्कि खोले थे. कई हैरतअंगेज कारनामों और हिंसक वारदातों को अंजाम दे चुके इन कैदियों के बारे में कहा यह गया कि इन लोगों ने टूथब्रश की चाबियां बना ली थीं. यह शायद सन 2016 का सब से बड़ा मजाक था. सुबह 8 बजे तक लोगों को पता चल गया था कि क्या कुछ हो चुका है और कैसे हुआ है. उस दिन दिवाली के चलते अखबारों का अवकाश था, इसलिए हैरानी के मारे लोग न्यूज चैनल्स खोल कर बैठे रहे. वैसे यह खबर सोशल मीडिया पर ज्यादा वायरल हुई.

सुबह 9 बजे प्रमुख सचिव जेल ने निरीक्षण के बाद माना कि मिलीभगत के चलते ही आतंकी भागने में कामयाब रहे. इस से ठीक आधा घंटा बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने फोन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस मामले की पूरी जानकारी ली. फिर आधा घंटे बाद यानी 10 बजे राज्य सरकार ने जेल अधीक्षक सहित 4 और कर्मचारियों को सस्पैंड कर दिया. 8 कैदी जो अब आतंकी करार दिए जा चुके थे, जेल से भागने में कामयाब रहे थे और अभी तक पकड़े नहीं गए थे. यह बात न केवल चिंता की थी, बल्कि दहशत फैलाने वाली भी थी. क्योंकि ये सिमी के खूंखार कार्यकर्ता थे.

बहरहाल, दोपहर होते होते घटना से पूरा देश परिचित हो चुका था और हर कोई जेल प्रबंधन की लापरवाहियों पर सवाल उठा रहा था. हर किसी ने एक बात तमाम विरोधाभासी बातों के बीच भी मानी कि बगैर किसी मिलीभगत के कैदी इस तरह जेल से नहीं भाग सकते, जिस तरह से भागे. इसी दौरान सोशल मीडिया पर सिमी के कैदियों की फोटो सहित क्राइम कुंडली भी वायरल हुई, जिस से लोगों ने जाना कि भागे हुए कैदियों पर लगे आरोप कितने गंभीर थे.

पुलिस मुख्यालय में हुई एक अहम मीटिंग के बाद पुलिस ने सर्चिंग शुरू की और आसपास के गांवों में अलर्ट जारी कर दिया. कैदियों को पकड़ने के लिए खोजी कुत्तों की मदद ली गई, पर वे कुछ खास नहीं कर पाए. कैदियों को जमीन निगल गई या आसमान खा गया, यह पुलिस के लिए तय कर पाना मुश्किल था.

इधर बवाल बढ़ता देख मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुबह साढ़े 10 बजे एक आपात बैठक बुलाई और आला अफसरों को कुछ आवश्यक निर्देश दिए. मुख्यमंत्री की चिंता जायज थी, क्योंकि इस से प्रदेश सरकार की साख पर बट्टा लग रहा था. तब तक विपक्षियों ने भी सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया था.

सोशल मीडिया खासतौर से वाट्सऐप पर सक्रिय लोग हताश हो कर मान चुके थे कि अब ये आतंकी पकड़ में आने वाले नहीं हैं. एक हद तक यह अंदाजा स्वाभाविक ही था, क्योंकि जिस योजनाबद्ध तरीके से ये कैदी भागे थे, उस से लग रहा था कि इन लोगों को भीतरी ही नहीं, बाहरी मदद भी मिली थी. आमतौर पर होता भी यही है कि जेल से भागने वाले कैदी या उन के साथी पहले ही छिपने का इंतजाम कर चुके होते हैं.

लेकिन इन कैदियों ने ऐसा कुछ नहीं किया था. सुबह हो जाने के बाद भी अंधेरे में हाथपैर मार रही पुलिस को उम्मीद की एक किरण तब दिखाई दी, जब खबर मिली कि भागे हुए कैदी अचारपुरा की तरफ जाते देखे गए हैं.

दरअसल, ये कैदी जेल से बाहर निकल कर कच्चे रास्ते से डोबरा गांव होते हुए दूसरे गांव मनीखेड़ी की पहाड़ी पर पहुंच गए थे, जो एक तरह से पठार है. उन्हें नजदीक के गांव खेजड़ा देव के सरपंच मोहन सिंह मीणा ने देखा था. इस से पहले पुलिस इलाके के सरपंचों को आगाह कर चुकी थी कि 8 आतंकी भागे हैं, अगर दिखें तो तुरंत खबर दी जाए.

संदिग्ध लोगों को देख कर मोहन सिंह मीणा ने नजदीक के गांव चांदपुर निवासी अपने परिचित जीतमल और दीपक से बात की तो उन्होंने भी बताया कि 8 सदिंग्ध लोग देखे गए हैं, जो खेजड़ा के नाले से लगे कच्चे रास्ते पर गए हैं. इस पर मोहन सिंह ने अपने दोस्त सूरज सिंह मीणा को बुला लिया और टोह लेने लगे. कुछ ही देर में उन्हें हाथ में डंडा लिए एक व्यक्ति दिखा. इस के बाद एकएक कर 7 और लोग भी दिखे तो उन्हें यकीन हो गया कि ये वही खूंखार आतंकवादी हैं, जो जेल से भागे हैं. तब तक वाट्सऐप पर भी इन आतंकियों के फोटो वायरल हो चुके थे.

चलते हुए ये आतंकी मनीखेड़ी की पहाड़ी पर जा पहुंचे तो सूरज सिंह ने फोन पर इस की सूचना टीआई जितेंद्र पटेल को दे दी. मोहन सिंह ने खेत में पानी दे रहे एक किसान को बुला कर गांव से सौ, सवा सौ लोगों को ले कर आने को कहा. कुछ ही देर में गांव वालों ने मनीखेड़ी पहाड़ी को घेर लिया तो आतंकी उन्हें धमकाते हुए पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने लगे. गांव वालों पर उन्होंने पत्थर भी बरसाए.

एक और प्रत्यक्षदर्शी मुकेश सिंह मीणा ने तो इन आतंकियों से निपटने के लिए अपने बेटे से बंदूक तक मंगा ली थी. लेकिन मुकेश गोली चला पाते, इस के पहले ही दनदनाती पुलिस की गाडि़यां आ गईं और उन्हें गोली चलाने से रोक दिया. भोपाल पुलिस मायूसी के बाद भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी थी. इन आतंकियों की खोज के लिए 3 टीमें गठित कर दी गई थीं. पहली टीम में डीएसपी क्राइम डी.एस. चौहान और शाहजहांनाबाद थाने के टीआई वीरेंद्र सिंह चौहान थे, जिन के साथ एसटीएफ के नारायण सिंह सहित क्राइम ब्रांच के 10 सिपाही शामिल थे.

दूसरी टीम में एटीएस के डीएसपी अभिषेक रावत व शाहपुरा थाने के टीआई जितेंद्र पटेल की टीम को पर्याप्त जवान दिए गए थे. तीसरी टीम में बैरागढ़ के एसडीओपी नागेंद्र सिंह बैस, बैरसिया की एसडीओपी वीना सिंह और गुनगा थाने के टीआई चैन सिंह रघुवंशी को रखा गया था. इस टीम को भी भारी पुलिस दल दिया गया था. इन तीनों टीमों को सीटीजी का बल भी दिया गया था. तीनों टीमों की अगुवाई संयुक्त रूप से भोपाल नार्थ के एसपी अरविंद सक्सेना, एसपी (साउथ भोपाल) अंशुमान सिंह, एटीएस के एसपी प्रणय नागवंशी, एएसपी धर्मवीर यादव और क्राइम ब्रांच के एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान कर रहे थे.

जैसे ही आतंकियों के मनीखेड़ी पहाड़ी पर होने की सूचना की पुष्टि हुई, इन तीनों टीमों ने पूरी पहाड़ी को तीन तरफ से घेर लिया. गांव वालों के साथ भारीभरकम पुलिस बल को देख कर आतंकियों ने जम कर पथराव करना शुरू कर दिया, जिस से कुछ जवानों को भी चोटें आईं. अब तक पुलिस वाले ग्रामीणों को पीछे कर चुके थे, जो एक ऐसे एनकाउंटर के प्रत्यक्षदर्शी बनने जा रहे थे, जिसे पहली बार पुलिस ने महज 8 घंटों में अंजाम तक पहुंचा दिया था. ये गांव वाले अपने अपने मोबाइलों से कारवाई की वीडियो रिकौर्डिंग भी कर रहे थे, जो बाद में चल कर पुलिस के लिए बहुत सिरदर्द साबित हुईं.

इस से पहले पुलिस औपचारिक कागजी काररवाई पूरी कर के इन आतंकियों के खिलाफ चंदन सिंह की तरफ से हत्या, हत्या की कोशिश, शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने और जेल से फरार होने की रिपोर्ट दर्ज कर चुकी थी. अब कोशिश इस बात की थी कि इन आतंकियों को कैसे काबू किया जाए. जब आत्मसमर्पण की बात करने पर आतंकी नहीं माने और लगातार पत्थर फेंकते रहे तो अरविंद सक्सेना के आदेश पर पुलिस वालों ने अपने बचाव में गोलियां चलाईं. बचाव में गोलियों का सीधा सा मतलब था एनकाउंटर, जिस के तहत पुलिस वालों ने सुबह लगभग 11 बजे अपने हथियारों से पिछली रात से भी ज्यादा आतिशबाजी की और करीब आधे घंटे में आठों आतंकियों को मार गिराया.

पुलिस वालों की मंशा साफ साफ इन आतंकियों को मार गिरा देने की ही थी. जिस पर बाद में बवाल भी मचा. अधिकांश गोलियां आतंकियों के सीने, पीठ और कमर के ऊपर लगी थीं, क्योंकि पुलिस वालों ने 3 तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग की थी. जब उन लोगों के मर जाने की तसल्ली हो गई तो लाशों को उठा कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. इस तरह एक अद्भुत एनकाउंटर बड़ी आसानी से संपन्न हो गया. मगर इस में सब कुछ ठीकठाक नहीं था, इस बात को सब से पहले कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने यह कहते हुए उठाया कि पहले खंडवा से आतंकी भागे, अब भोपाल सैंट्रल जेल से, जांच होनी चाहिए कि ये किस की मिलीभगत है, क्या वे किसी योजना के तहत भगाए गए थे. यह सरकार पर एक गंभीर आरोप था, पर जाने क्यों संभवत: जानबूझ कर दिग्विजय सिंह ने साजिश के बजाय योजना शब्द इस्तेमाल किया, जबकि उन की मंशा उन के शब्दों से साफ झलक रही थी.

इस बयान से विवादों की आग भड़की तो उस में घी डालने का काम असदुद्दीन ओवैसी ने यह कह कर किया कि आतंकियों ने जूते और बेल्ट कैसे पहन रखे थे, वे नई जींस पहने थे. किस ने पहनाए उन्हें ये सब? वे सब जुडीशियल कस्टडी में थे यानी अंडर ट्रायल. अगर उन्हें मारा गया तो इस का आधार क्या है? एसटीएफ उन्हें गिरफ्तार कर सकती थी. ये तो सीधेसीधे सबूत नष्ट करना है. कसाब को भी हथियार होने के बावजूद पकड़ा गया था, जबकि पुलिस कह रही है कि आतंकियों ने पत्थर बरसाए. दिग्विजय सिंह का बयान अंदाजों पर आधारित था तो ओवैसी की बात में दम था. यह सोचने वाली बात थी कि आतंकियों के पास नए कपड़े, जूते, टीशर्ट कहां से आए? उन की दाढ़ी कैसे बनी वगैरहवगैरह.

ये बातें एकदम खारिज कर देने वाली नहीं थीं, क्योंकि एनकाउंटर के बाद मृत आतंकियों के पास हथियार होने न होने को ले कर 2 जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों के बयानों में वाकई विरोधाभास था. आईजी योगेश चौधरी ने कहा था कि आतंकियों ने पुलिस पर फायरिंग की थी. जवाबी काररवाई में उन का एनकाउंटर हो गया. 2 आतंकियों के पास से 12 बोर के 2 कट्टे, 2 के पास से 315 बोर के 2 कट्टे मिले. जबकि 3 के पास से धारदार हथियार मिले. इधर घटनास्थल पर गए आईजी एटीएस संजीव शर्मा ने कहा था कि आतंकियों के पास कोई हथियार नहीं था, न ही उन्होंने कोई फायर किया था.

सच क्या है, यह शायद जांच के बाद सामने आ पाए. लेकिन सोशल मीडिया पर काफी आक्रामक और दिलचस्प बहस हुई, जिस में लोग सीधे तौर पर 2 गुटों में बंटे नजर आए. इन में से वह गुट भारी पड़ा, जो यह कह रहा था कि एनकाउंटर भले ही फरजी हो, पर आतंकी तो असली थे. उन्हें इस तरह मारने में हर्ज क्या है. एक वायरल हुए वीडियो में साफतौर पर यह दिख रहा था कि पुलिस वाले बेहद नजदीक से एक आतंकी को गोली मार रहे थे. एक आवाज भी आ रही थी कि जल्दी करो, एसपी साहब आने वाले हैं.

मीडिया ने भी जम कर दलीलें दीं, पर वे जेल की हिफाजत और जेल विभाग में पसरे भ्रष्टाचार और लापरवाही के इर्दगिर्द सिमटी रहीं. इन में से अधिकांश बातों को लोग पहले से ही जानते थे. मसलन जेल में पैसे दे कर तमाम तरह की सुखसुविधाएं हासिल की जा सकती हैं. बाद में धीरेधीरे पता चला कि पैसों के दम पर कैदियों को वाकई काजू, किशमिश, चिकन वगैरह सब कुछ मिलता है. वे महंगे कौस्मेटिक आइटम भी इस्तेमाल करते हैं और पैसे दे कर मनचाही जगह फोन पर बात भी कर सकते हैं. और तो और, जेल में कंप्यूटर भी कैदी ही चलाते हैं और सीसीटीवी कैमरे भी वही ठीक करते हैं. यानी खेतों की हिफाजत बागड़ के हाथों में सौंप दी जाती है.

भ्रष्टाचार तो सिद्ध हो गया, पर यह सोचने की जरूरत कोई नहीं समझ रहा कि अगर इन आतंकियों की भागने की हिम्मत हुई तो उस की वजह भी पैसा ही था. भ्रष्ट और घूसखोर जेल विभाग के अधिकारी इन आतंकियों से दहशत तो खाते ही थे, पैसे भी लेते थे. ये भ्रष्ट लोग कौन हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच में उन के नाम उजागर होंगे. कैदियों के भागने के बाद सरकार ने जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर, जेलर अशोक वाजपेयी, मुख्यप्रहरी आनंदीलाल और सहायक जेल अधीक्षक विवेक परस्ते को निलंबित कर दिया था. डीआईजी जेल मंशाराम पटेल को मुख्यालय अटैच किया गया.

इस के बाद का घटनाक्रम नाटकीय और राजनैतिक रहा, हालांकि अधिकांश बातें एनकाउंटर और भाजपा सरकार के पक्ष में थीं. इस के बाद भी लोगों के मन में संदेह तो था ही. दिग्विजय सिंह के बयान पर जवाबी हमला करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि शहादत पर राजनीति करने वालों पर लानत है. अपनी बात में दम लाने के लिए उन्होंने सारा बवाल आतंकियों के हाथों मारे गए रमाशंकर यादव के आसपास लाने में कामयाबी भी हासिल कर ली. वे ढांढस बंधाने यादव के घर गए और उन के घर वालों से मिले. उन्होंने उन की बेटी सोनिया के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि पापा नहीं तो क्या हुआ, मामा तो हैं. मामा यानी खुद शिवराज सिंह, जो आम लोगों और खासतौर से बच्चों में मामा के नाम से लोकप्रिय हैं. रमाशंकर की अर्थी को उन्होंने कंधा दिया और उन के नाम पर चौराहा बनाने की भी घोषणा कर दी. सहायता राशि भी बढ़ा कर 25 लाख कर दी गई.

यह एक मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व और स्वभाव का मानवीय पहलू था, जिस का एक वाजिब असर यह हुआ कि जिस रमाशंकर के बेटे अपने जांबाज पिता की हत्या के बाद उस का जिम्मेदार जेल प्रशासन की लापरवाही और भ्रष्टाचार को ठहरा रहे थे, उन की नजर और नजरिया अचानक बदला और उन्होंने भी कहा कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता. इस तरह उन का एनकाउंटर किया जाना कोई हर्ज की बात नहीं है.

चूंकि दाल में काफी कुछ काला था, इसलिए सरकार ने पहले ही दिन घोषणा कर दी कि इस घटना की जांच एनआईए द्वारा कराई जाएगी. 1 नवंबर को एनआईए की टीम ने जेल की बारीकी से जांच भी की, इस बाबत फोन पर मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से आग्रह भी किया था. लेकिन दूसरे ही दिन कहा गया कि एनआईए से जांच कराए जाने की कोई जरूरत और वजह नहीं है. अब जांच रिटायर्ड डीएसपी नंदन दुबे करेंगे. आखिर में जांच के लिए रिटायर्ड जज एस.के. पांडे की अगुवाई में एक न्यायिक आयोग का गठन कर दिया गया. जिन कैदियों को बारबार आतंकी कह कर हल्ला मचाया जा रहा था, उन की मौत की सूचना अदालत को देते वक्त पुलिस ने उन्हें विचाराधीन कैदी कहा.

जांच की शुरुआत में ही स्पष्ट हो गया कि जेल प्रशासन ने वाकई लापरवाही बरती है. जांच के बिंदु भी तय हो गए, जिन में रमाशंकर यादव की हत्या शामिल नहीं थी, जोकि होनी चाहिए थी. क्योंकि तमाम हालात के मद्देनजर यह कोई भी दावे या गारंटी से नहीं कह सकता कि उन की हत्या भगोड़े कैदियों ने ही की थी, जो अब सच बताने के लिए दुनिया में नहीं हैं. आयोग जिन बिंदुओं पर जांच कर रहा है, दरअसल वे इस मामले में क्लीन चिट देने वाले हैं. जांच में जाने क्यों ये बिंदु शामिल नहीं हैं कि क्या चंदन सिंह ने कैदियों को रमाशंकर की हत्या करते देखा था? साथ ही यह भी कि जेल की दीवार के पास बांस क्यों रखे गए थे?

क्या 8 कैदियों का वजन चादर में फंसाई बांस की खपच्चियां उठा सकती हैं, वह भी महज 15 मिनट में, ये बातें भी अपने आप में एनकाउंटर को साजिश करार देने के लिए काफी हैं. टूथब्रश से चाबी बनाने की बात तो यकीन से परे है. जांच इस बात की होनी चाहिए कि कहीं ताले असली चाबियों से तो नहीं खोले गए थे. लाख टके की बात यह है कि टूथब्रश से बनी चाबियां और कैदियों के पुराने कपड़े कहां हैं?

ऐसा भी नहीं कि सब कुछ खत्म हो गया हो, जेल सूत्रों की मानें तो दरअसल भागने की तैयारी बी ब्लौक की सेल में बंद 8 नहीं, बल्कि 9 आतंकियों ने की थी. नौवां आतंकी इरफान है जो अपनी बैरक की चाबी टूट जाने की वजह से नहीं भाग नहीं पाया. लेकिन यह लेख लिखे जाने तक इरफान ने अपना मुंह नहीं खोला था, पर इतना तय है कि अगर उस ने ईमानदारी से अपना मुंह खोला तो कइयों के मुंह बंद हो जाएंगे.?

भारत-इंग्लैंड टेस्ट: बीसीसीआई फिर पहुंचा कोर्ट

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने भारत और इंग्लैंड के बीच जारी टेस्ट सीरीज में बाकी बचे दो टेस्ट मैच के आयोजन के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. बोर्ड सुप्रीम कोर्ट से इन दो मैचों के लिए 1 करोड़ 33 लाख रुपये के आवंटन की मंजूरी चाहता है. न्यायालय ने बोर्ड की इस याचिका पर सुनवाई के लिए मंजूरी दे दी है और अदालत इस पर सुनवाई करेगी.

उल्लेखनीय है कि बीसीसीआई द्वारा लोढ़ा कमिटी की सिफारिशें न मानने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के खातों को सीज कर दिया है. बोर्ड बिना कोर्ट की मंजूरी के इन खातों से पैसों का लेन-देन नहीं कर सकता है. लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को न मानने को लेकर कोर्ट में पहले से ही सुनवाई चल रही है. इस मामले में 5 दिसंबर को सुनवाई होनी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर तक के लिए टाल दिया था.

मोटो जी5 और मोटो जी5 प्लस की तस्वीरें हुईं लीक

अभी तक मोटोरोला के मोटो जी4 और मोटो जी4 प्लस स्मार्टफोन के अपग्रेडेड वेरिएंट के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि, मोटो जी5 और मोटो जी5 प्लस की कथित तस्वीरें अब इंटरनेट पर लीक हो गईं हैं.

मोटो जी के पांचवी पीढ़ी के मोटो जी डिवाइस के तस्वीरें व स्पेसिफिकेशन ऑनलाइन लीक हो गए हैं. इनका स्क्रीनशॉट द एंड्रॉयड सोल ने पोस्ट कीं. इन तस्वीरों में डिवाइस का फ्रंट देखा जा सकता है. ऐसा लगता है कि मोटो जी5 प्लस में फ्रंट पर एक फिंगरप्रिंट सेंसर होगा जबकि मोटो जी5 में सेंसर नहीं होगा. उम्मीद की जा रही है कि ये दोनों डिवाइस टर्बो चार्जिंग फीचर के साथ आएंगे.

लेकिन तस्वीर स्पष्ट नहीं होने के कारण पिछले मोटो जी4 डिवाइस और नए कथित स्मार्टफोन में फर्क का पता नहीं चलता. फिर भी हम आपको यहां लीक हुईं फोटोज के आधार पर उनके स्पेसिफिकेशन्स की जानकारी दे रहे हैं.

कैमरा और डिस्प्ले

स्पेसिफिकेशन की बात करें तो मोटो जी5 और मोटो जी5 प्लस में एक जैसे ही स्पेसिफिकेशन होंगे. लेकिन मोटो जी5 में 13 मेगापिक्सल जबकि मोटो जी5 प्लस में 16 मेगापिक्सल कैमरा होगा. इन फोन में 5.5 इंच फुल एचडी डिस्प्ले, 5 मेगापिक्सल फ्रंट कैमरा और एक ऑक्टा-कोर प्रोसेसर होगा. लेकिन आधिकारिक जानकारी मिलने तक इन खबरों पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता.

ऑपरेटिंग सिस्टम

ऑपरेटिंग सिस्टम की बात करें तो मोटो जी5 और मोटो जी5 प्लस में एंड्रॉयड 7.0 नगेट दिया जा सकता है. मोटो जी4 और मोटो जी4 प्लस में एंड्रॉयड 7.0 नगेट के लिए अक्टूबर से अपडेट जारी किए जा रहे हैं. इस बीच, कुछ एंड्रॉयड वन यूजर के लिए एंड्रॉयड 7.1.1 अपडेट आना शुरू हो गया है. और आने वाले दिनों में नेक्सस और पिक्सल यूजर को ये अपडेट मिल सकते हैं.

स्टोरेज

इसके अलावा, मोटो जी5 और मोटो जी5 प्लस में 16 जीबी स्टोरेज होगी. लेकिन मोटो जी5 प्लस को 32 जीबी वेरिएंट में भी लॉन्च किया जाएगा. इसके साथ ही लीक हुए स्क्रीनशॉट से पता चलता है कि ये दोनों डिवाइस टर्बो चार्जिंग फीचर के साथ आएंगे.

लीक तस्वीरों से मोटो जी 5 और मोटो जी5 प्लस के बारे में अभी सिर्फ इन स्पेसिफिकेशन का ही पता चल सका है. और ज्यादा जानकारी के लिए इंतजार करने की जरूरत है. इसके अलावा, इस लीक से पता चलता है कि 8 मार्च को ये फोन लॉन्च किया जा सकता है. और अभी इस बात की जानकारी भी नहीं मिली है कि सबसे पहले इन डिवाइस को किन बाजारों में लॉन्च किया जाएगा. लेकिन भारत में इन फोन के सबसे पहले लॉन्च होने की उम्मीद है.

आईपीटीएल में नहीं खेलेंगे फेडरर और सेरेना

नोटबंदी का असर सिर्फ भारतीयों पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि विदेशियों पर ही इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है. दरअसल, नोटबंदी के कारण इंडियन प्रीमियर टेनिस लीग (आईपीटीएल) भी प्रभावित हुआ है. नोटबंदी के कारण आईपीटीएल के इस सत्र में स्विस स्टार रोजर फेडरर और अमेरिकी सेरेना विलियम्स हिस्सा नहीं लेंगे.

ये दूसरी लीग है, जिसने नोटबंदी के चलते परेशानियों की बात की है. इससे पहले प्रो रेसलिंग लीग को टालने का फैसला किया गया था. हालांकि दो दिन बाद ही घोषणा की गई कि अब रेसलिंग ली 2 जनवरी से होगी.

फेडरर और सेरेना का न आना आयोजकों और प्रशंसकों के लिए बड़ा झटका साबित होगा. लीग का भारतीय चरण 9 से 11 दिसंबर तक हैदराबाद में होना है. लीग के आयोजक महेश भूपति ने एक बयान के जरिए फेडरर और सेरेना के न खेलने की पुष्टि की है.

उन्होंने कहा है, ‘इस साल हमारे लिए काफी चुनौतियां हैं. हम उम्मीद कर रहे हैं कि उन चुनौतियों को हम पीर कर सकेंगे. भारत में वर्तमान आर्थिक हालात और खर्च करने की क्षमता को लेकर अनिश्चिय के हालात हैं. मैंने रोजर और सेरेना से बात की थी और उन्हें हालात के बारे में बताया था. आईपीटीएल के पहले दो सीजन में उन्होंने बहुत साथ दिया था. वे भविष्य में भी लीग के साथ जुड़ना चाहते हैं.’

फेडरर और सेरेना दोनों ही इस साल चोट से जूझते रहे हैं. उन्हें इसी लीग से वापसी की उम्मीद थी. जुलाई में विंबलडन के बाद फेडरर नहीं खेले हैं. ओलंपिक से पहले उन्होंने बाकी सीजन से हटने का फैसला किया था. सेरेना यूएस ओपन से नहीं खेली हैं. फेडरर इंडियन एसेज और सेरेना सिंगापुर स्लैमर्स टीम का हिस्सा होने वाली थीं.

इन दोनों खिलाड़ियों के हटने के बाद अब लीग में हाई प्रोफाइल खिलाड़ियों में टॉमस बर्डिच और केई निशिकोरी अहम हैं. इवेंट का पहला चरण टोक्यो में हो चुका है. दूसरा चरण सिंगापुर में शुरू हुआ है.

शाहिद कपूर ने पद्मावती के लिए जिम किया शिफ्ट

निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली ​ने हाल ही में अपनी आगामी फिल्म पद्मावती की बड़ी स्टार कास्ट का ऐलान किया, इस फिल्म में रणवीर सिंह, दीपिका पदुकोण और शाहिद कपूर मुख्य किरदार में नजर आएंगे.  शाहिद, दीपिका पादुकोण ​यानी राणी पद्मावती ​के पति, राजा रतन सिंह की भूमिका ​में होंगे रणवीर सिंह विरोधी नायक ​खिलजी की भूमिका में होंगे. फिल्म निर्माता पहले भी रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण के साथ काम कर चुके हैं, वहीं जब शाहिद कपूर को फिल्म में अहम किरदार के लिए साइन किया गया तो यह खबर हर समाचार पत्र की हैडलाइन बनी. शाहिद कपूर पहली बार संजय लीला भंसाली के साथ काम कर रहे हैं. शाहिद इस फिल्म के लिए एक योद्धा के जैसे तैयार हो रहे हैं, जो युद्धभूमि पर युद्ध लड़ने जा रहा है.

इस लार्जर देन लाइफ फिल्म के लिए अभिनेता शाहिद कपूर दिलोजान से  मेहनत कर रहे हैं, शाहिद अपनी जिम को सेट पर ही ले आये हैं, उन्होंने अपने जिम को वैनिटी वेन में शिफ्ट कर दिया है.

सूत्रों का कहना है कि शाहिद कपूर दोपहर के बाद फिल्म पद्मावती के लिए शूटिंग करते हैं और इससे पहले वे अपने दूसरे प्रोफेशनल कमिटमेंट को समय देते हैं. शाहिद ने बुनियादी उपकरणों के साथ उनकी वैनिटी वैन के भीतर ही एक जिम बनाया है​. इस फिल्म के लिए अच्छे शेप में होने की आवश्यकता है और शाहिद अपनी फिटनेस के साथ बेहद अनुशासित हैं. यह कारण है की शाहिद समय बचाने के लिए अपनी जिम को ही सेट पर ले आये है. जब से शाहिद को फिल्म मिली है तभी उन्होंने एक सख्त डाइट शुरू कर दिया है ताकि वे राजा रतन सिंह के किरदार में मजबूत, पुष्ट योद्धा के रूप में दिखें.

रैंप पर एसिड विक्टिम

किसी भी लड़की के चेहरे पर तेजाब डालकर उसको बदसूरत बनाने का अपराध हत्या के अपराध से कम नहीं होता है. लड़की के जीवन पर उसका गहरा असर होता है. वह जीते जी मरने जैसी हो जाती है. कुछ साल पहले तक ऐसी लड़कियां डिप्रेशन का शिकार होकर जीने की ललक ही खो देती थी. अब समाज ने ऐसी लड़कियों के प्रति अपनी सोच का बदलना शुरू किया है. जिससे तेजाब की शिकार लडकियों में आत्मविश्वास बढ रहा है. लखनऊ में शीरोज नाम से एक रेस्त्रां एसिड से पीड़ित लड़कियां चला रही है.

पावर विंग फाउडेशन ने ‘परवाज द राइजिंग होप’ नाम से एक शो का आयोजन तेजाब की शिकार लड़कियों में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिये किया. जिसमें यह लड़कियां रनवे फैशन हाउस की मौडल्स के साथ रैंप पर उतरी. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष जरीना उस्मानी और समाजवादी पार्टी महिला सभा की प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर श्वेता सिंह ने इन सभी का हौसला बढ़ाया. जरीना उस्मानी और डाक्टर श्वेता सिह ने तेजाब की शिकार लड़कियों का हौसला बढाया.

पावर विंग फाउडेशन की प्रेसीडेंट सुमन रावत ने कहा ‘तेजाब डालने से गंभीर अपराध कोई और नहीं हो सकता है. मेरी नजर में अपराधी के साथ समाज भी उसका दोषी है. समाज को अपने स्तर पर ऐसे अपराध करने वालों का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिये और इसकी शिकार लड़कियां अपना जीवन पहले जैसा गुजार सकें, इसमें मदद करनी चाहिये. जो लोग अपराध के खिलाफ लड़ रहे हैं, उनका हौसला भी बढ़ाना चाहिये.’

तेजाब की शिकार लडकियों प्रीति पटेल, गरिमा  अवस्थी, रूपाली विश्वकर्मा, शांतिदेवी, रेश्मा, अस्मा और कविता ने रैंप शो में पूरे हौसले के साथ हिस्सा लिया. रैंप पर उतरने के बाद इनमें अपने जीवन के प्रति आत्मविश्वास बढ गया है. रैंप पर इनका साथ काव्या, सोनाली, दिव्या, महक, नम्रता, रिचा, अपूर्वा, आयूर्षी, शुभद्रा, जमील, अंकित, जैदी और आकाश ने दिया. फैशन डिजाइनर ओमदीप और प्रतिभा अहिरवार ने ब्राइडेल कलेक्शन के लिये खूबसूरत पोशाके तैयार की थी तो आसिफ और प्रतिभा सिंह ने मेकअप किया. दीपिका ने अपनी पेपर ज्वेलरी से सभी का दिल खुश कर दिया.

पावर विंग ने उन सामाजिक संगठनों का सम्मान किया जो अपराध के खिलाफ लड़ रहे हैं. तेजाब की शिकार लडकियों प्रीति पटेल, गरिमा  अवस्थी, रूपाली विश्वकर्मा, शांतिदेवी, रेश्मा, अस्मा और कविता ने बताया कि यह उनके जीवन का एक अलग मुकाम है. इससे हम सब का हौसला और सोच बदली है. कार्यक्रम में गायिका शालिनी और हयात हुसैन खान ठुमरी और सूफी सूरों से शाम को सजाया, तो रूबल जैन और अदिति ने महिला सशक्तिकरण पर अनोखा प्रदर्शन किया.

तेजाब की शिकार गाजीपुर की रहने वाली रूपाली ने बताया कि गुस्से में आकर मेरे उपर तेजाब फेंका गया था. जिससे मेरी आंखे, चेहरा और गरदन झुलस गई थी. अपना चेहरा देखकर मै खुद डर गई. एक पल को लगा कि आत्महत्या कर जीवन को खत्म कर ले. फिर घर परिवार और समाज के लोगों ने हौसला बढ़ाया और खुद के पैरों पर खडी हो गई.

मैं एक युवक से प्यार करती हूं. वह शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है. मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं और 3 साल से एक युवक से प्यार करती हूं. इस  दौरान हमारे बीच शारीरिक संबंध नहीं बने लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह युवक शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है लेकिन मैं विवाह से पूर्व शारीरिक संबंध बनाने से डरती हूं. आप सलाह दें कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

विवाह से पूर्व शारीरिक संबंध बनाने को ले कर आप का डर पूरी तरह से वाजिब है क्योंकि इस बात की गारंटी नहीं कि शारीरिक संबंध बनाने के बाद वह युवक आप से ही विवाह करे. और दूसरी बात, अपने प्रेमी के कहने पर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर अगर कोई ऊंचनीच हो गई जैसे कि गर्भधारण हो गया या अन्य कोई शारीरिक समस्या हो गई तो आप बेवजह मुसीबत में पड़ सकती हैं.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

फीमेल बॉडी बिल्डर : खूबसूरत और सेक्सी भी

लड़की यानी 36-24-36 का कर्वी फिगर…जिसे देख कर लड़के कहते हैं ..तौबा ये मतवाली चाल…झुक जाये फूलों की डाल… वाह क्या फिगर है…

कुल मिलाकर लड़कियों को उनकी फिगर और बॉडी से ही आंका जाता है और अगर लड़की की फिगर में कोई उन्नीस इक्कीस हुआ, तो उन्हें मर्दमार औरतों का तमगा दे दिया जाता है, कहा जाता है उन में औरतों वाली बात नहीं है, यही कारण है कि भारतीय समाज में अधिकांश महिलाओं को बॉडी बिल्डिंग और कसरत से दूर रखा जाता है और उन को इस क्षेत्र के नाकाबिल समझते हुए कहा जाता है  ‘ये तुम्हारे बस की बात नहीं’ और साथ ही यह भी माना जाता है कि अगर महिलाएं पुरुषों जैसी कसरत करेंगी तो उनके डोले शोले बन जाएंगे, उनके मसल्स दिखने लगेंगे और उन का लड़कियों वाला लुक खत्म हो जाएगा.

बॉडी बिल्डिंग और मातृत्व से जुड़े मिथक

महिलाएं बौडी बिल्डिंग करती हैं तो उस से उन के मां बनने के प्राकृतिक गुण पर प्रभाव पड़ता है? इस सवाल पर पुणे की फिगर ऐथलीट दीपिका चौधरी जिन्होंने अप्रैल, 2015 में अमेरिका में आयोजित इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट प्रतियोगिता में न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया था, बल्कि उस प्रतियोगिता में जीत भी हासिल की थी, का कहना है, ‘‘यह बिलकुल गलत है. इस का ताजा उदाहरण हैं बैंगलुरु की बौडी बिल्डर सोनाली स्वामी जो 2 बच्चों की मां हैं और प्रसिद्ध बौडी बिल्डर भी. फिटनैस या बौडी बिल्डिंग का मातृत्व से कोई लेनादेना नहीं है.’’ अपनी सुंदरता और सिक्स पैक को मैंटेन रखते हुए दीपिका अपने परिवार की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही हैं. वे कहती हैं कि उन्हें अपने फिगर ऐथलीट बनने के निर्णय पर गर्व होता है.

फिगर एथलीट दीपिका चौधरी का मानना है कि जैसे प्रकृति के अनेक रंग हैं वैसे ही हर पुरुष में भी कुछ फैमिनिटी व हर महिला में कुछ मस्क्यूलैरिटी होती है. जो पुरुष फैशन व ब्यूटी इंडस्ट्री से जुड़े होते हैं उन में फैमिनिटी दिखाई देती है. मुझे समझ नहीं आता अगर कोई उस खास स्टाइल, उस बौडी टाइप में कंफर्टेबल है तो समाज को क्यों आपत्ति होती है? हमारे आसपास के लोगों में कोई गोरा, कोई सांवला,कोई लंबा, कोई छोटा, कोई मोटा तो कोई पतला होता है और लोग उन्हें उसी रूप में स्वीकारते हैं. वैसे भी हरेक की अपनी पसंद होती है. हरेक को अपनी पसंद के अनुसार जीने का अधिकार होना चाहिए.

साजिश धर्म व समाज की

भारतीय समाज की सोच है कि जो लड़कियां अथवा महिलाएं गेम्स खेलती हैं या फिर बौडी बिल्डिंग करती हैं उन की फिगर खराब हो जाती है, उन की खूबसूरती में कमी आ जाती है और उन की फैमिनिटी पर नकारात्मक असर पड़ता है, उनका नारीत्व, उनकी नाजुकता ख़त्म हो जाती है. दरअसल, यह समाज और धर्म की साजिश है कि उसने नारी को कमज़ोर और छुईमुई बनाए रखने के लिए यह साजिश रची है. धर्म ने नारी को हमेशा अपने सतीत्व को बचा कर रखने की ताकीद की है, उसे अपनी वर्जिनिटी संभाल कर रखने की हिदायत दी है और नारी इन्हीं हिदायतों और दिशा निर्देशों में फंसकर अपने सतीत्व को बचाने के चक्कर में वह बहुत सारे वे काम नहीं कर पाती जिन को करने की उसमें  क्षमता है. जब नारी समाज के इन बंधनों से मुक्त होकर अपने शरीर को भूल जायेगी तो वह उससे जुड़े डरों  से भी आज़ाद हो जायेगी.

कमजोर नहीं स्त्री

आज की महिलाओं पर अलग तरह की जिम्मेदारियां हैं. वे पुरुषों की तरह हर काम कर रही हैं, बस, मेट्रो की धक्कामुक्की का हिस्सा बन रही हैं, भागती दौड़ती घरबाहर की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं. यह एक महिला ही है जो बच्चे को 9 महीने तक पेट में रखती है, प्रसव पीड़ा के दौरान 20 हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द सहती है. दुनिया रचने की ताकत सिर्फ एक महिला में ही होती है तो फिर वह कमजोर कैसे है? अगर बचपन से उन्हें खेल कूद और व्यायाम करने की आज़ादी दी जाए तो वह शारीरिक रूप से भी  पुरुषों को पछाड़ सकती हैं. 

खूबसूरत सेक्सी फीमेल बॉडी बिल्डर

लेकिन कुछ महिलाएं समाज की इस परंपरागत सोच को  गलत साबित कर रही हैं और बॉडी बिल्डिंग में पुरुषों के आधिपत्य वाले क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं और महिलाओं और बॉडी बिल्डिंग को लेकर स्टीरियोटाइप इमेज को तोड़ रही हैं. रूस की जूलिया विंस उन हौट और सेक्सी बॉडी बिल्डरों  में से हैं जिनके आगे दुनिया झुकने को तैयार रहती है. जहां ताकत में ये किसी भी दूसरे बॉडीबिल्डर को मात दे सकती हैं, वहीं खूबसूरती में भी इनके जैसा कोई दूसरा शायद ही हो. जूलिया की तुलना हॉलीवुड मूवी के कैरेक्टर हल्क से की जाती है. जूलिया को लोग मसल्स वाली बॉर्बी डॉल कहते हैं.15 साल की उम्र से जिम जाने वाली मासूम सी दिखने वाली जूलिया लड़की कोई आम लड़की नहीं बल्कि एक पॉवरलिफ्टर है और अच्छे-खासे पहलवान को भी चित कर सकती है.

आयरन वूमेन’ यासमीन मनक

खुद को हमेशा फिट रखने वाली यासमीन मनक पिछले 17 सालों से वेटलिफ्टिंग कर रही हैं साथ ही वे  भारत की  एक खूबसूरत महिला  होने के साथ-साथ एक बॉडी बिल्डर भी हैं. मनक ने हाल ही में बॉडी बिल्डिंग एंड फिटनेस फेडरशन (IBBFF) द्वारा आयोजित मिस इंडिया 2016 का खिताब अपने नाम किया है. अपनी  मेहनत की बदौलत वे  दो गोल्ड मेडल भी जीत चुकी हैं. मनक का गुडगांव में अपना एक जिम है, जहां वे वो हर महीने करीब 300 लड़के-लड़कियों को ट्रेन करती हैं.

वीजे बानी जे

'बिग बॉस 10' की सेलेब्रिटी कंटेस्टेंरट वीजे बानी जे को तो आप जानते ही होंगे. बानी जे का असली नाम गुरबानी जज है. वह रियलिटी शो 'रोडीज' का हिस्सा रह चुकी है, उनके शरीर पर बहुत सारे टैटू हैं. साथ ही वर्कआउट के प्रति दीवानी बानी के सिक्स पैक ऐब्स भी हैं. बानी मॉडल, एंकर और एमटीवी की जानी-मानी वीजे हैं. बानी अपने सिक्स पैक ऐब्स से महिलाओं की मस्कुलर बॉडी की आलोचना करने वालों  को  करारा जवाब दे रही हैं .भारत में महिलाओं के लिए स्लिम ट्रिम होना अच्छा माना जाता है लेकिन अगर वह ज्यादा पतला, ज्यादा मोटा या फिर मस्कुलर हो तो लोग ताने मारने लगते हैं. उन्हें मोटा, फैटी ,एक्स्ट्रा लार्ज जैसे नामों से बुलाते हैं. फिटनेस  बानी का जुनून है और उनका ये जुनून उनकी पर्सनैलिटी में झलकता है. इंडस्ट्री में ऐसी मॉडल और एक्ट्रेस कम ही देखने को मिलती हैं जो बानी के फिटनेस लेवल को छूती हैं.

जवां दिखने का कारगर तरीका स्ट्रेंथ ट्रेनिंग

स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से शरीर और मन मजबूत बनता है. बॉडी का पोश्चर ठीक होता है, ब्लड फ्लो सही रहता है और साथ भावनात्मक स्थितियों का सामना करने की क्षमता भी बढ़ती है. वेट ट्रेनिंग के जरिए आप ना सिर्फ अपने वजन को कंट्रोल कर सकते हैं, बल्कि आपके मसल्स भी बढ़ती उम्र के बावजूद टोन्ड रहेंगे. अच्छी फिगर पाने के लिए महिलाओं के लिए सही वेट ट्रेनिंग बेहद जरूरी है. वे लोग जो यह मानते हैं कि महिलाओं को पुरुषों से अलग तरीके से वेट ट्रेनिंग करनी चाहिए क्योंकि पुरुषों की तरह  वेट ट्रेनिंग करने से उन के महिला होने के गुण कम हो जाएंगे. यह सोच बिलकुल गलत है  क्योंकि अगर कोई महिला ठीक वैसी ही कसरत या वेट ट्रेनिंग करे जैसे कोई पुरुष कर रहा है तो भी उसके मसल्स या शरीर  पुरुष जैसा  नहीं बनेगा क्योंकि इतनी एक्सरसाइज के बाद भी महिलाओं में टेस्टोसटेरोन का लेवल बहुत नहीं बढ़ पाता जबकि पुरुषों का बढ़ जाता है.

‘ट्रस्टेड कॉन्टैक्ट्स’ रखेगा आपको हर मुश्किल से दूर

गूगल ने ऐंड्रॉयड यूजर्स के लिए नया ऐप लॉन्च किया है. ‘ट्रस्टेड कॉन्टैक्ट्स’ नाम के इस ऐप को इसलिए पेश किया गया है ताकि यूजर्स अपने करीबियों को किसी मुसीबत के समय यह बता सकें कि वे सुरक्षित हैं या नहीं. यह ऐप यूजर की लोकेशन को पहले से ऐड किए ट्रस्टेड यूजर्स को भेज देता है.

ट्रस्टेड कॉन्टैक्ट्स ऐप का इंटरफेस बहुत सरल है. गूगल प्ले स्टोर पर इस ऐप के बारे में लिखा गया है, 'ट्रस्टेड कॉन्टैक्ट्स’ एक पर्सनल सेफ्टी ऐप है, जो आपके और आपके प्रिजयनों के बीच सीधा संपर्क बनाता है. 'इस सेफ्टी ऐप में आप अपने करीबी परिजनों या दोस्तों को ट्रस्टेड कॉन्टैक्ट में ऐड कर सकते हैं. फिर वे लोग इमर्जेंसी के वक्त आपकी लोकेशन का पता लगाने की रिक्वेस्ट भेज सकते हैं.

जब कोई कॉन्टैक्ट आपको लोकेशन रिक्वेस्ट भेजेगा, आपको फोन कॉल के रूप में यह मिलेगी. अगर आपको कोई हेल्प नहीं चाहिए तो इसे न ऐक्सेप्ट न करें. अगर आप किसी मुसीबत में हैं और मदद चाहते हैं तो ऐक्सेप्ट करके अपनी लोकेशन शेयर कर दें. अगर आप 5 मिनट तक कोई जवाब नहीं देते हैं तो लोकेशन अपने आप ट्रस्टेड कॉन्टैक्स्ट को चली जाएगी. गूगल का कहना है कि यह फीचर तब भी काम करता है, जब आप ऑफलाइन हों या फोन की बैटरी खत्म हो.

इसके अलावा किसी मुसीबत में फंसने पर आप खुद भी कॉन्टैक्ट्स के साथ अपनी लोकेशन शेयर कर सकते हैं. इन्फर्मेशन रिसीव करने के बाद वे लोग आपके स्मार्टफोन को ट्रैक करके वहां पहुंच सकते हैं, जहां पर वह है. गूगल का कहना है कि वे फोन का ऐक्टिविटी स्टेटस भी देख सकते हैं ताकि यह पता चल सके कि आप सुरक्षित हैं या नहीं.

यह ऐप अन्य सेफ्टी ऐप्स जैसा ही है, मगर गूगल ने इसे और बेहतर बनाया है. जैसे कि फेसबुक पर आने वाला सेफ्टी चेक फीचर तो सिर्फ दोस्तों को यही बताता है कि आप सेफ हैं, मगर यह ऐप मदद के लिए बुला भी सकता है.

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