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मेरे शरीर के कई हिस्सों पर स्ट्रैच मार्क्स हो गए हैं. इसे दूर करने के उपाय बताएं.

सवाल

18 वर्षीय युवती हूं. मेरे शरीर के कई हिस्सों पर स्ट्रैच मार्क्स हो गए हैं जो न केवल खराब दिखते हैं, बल्कि उन की वजह से मैं शौर्ट ड्रैसेज और स्लीवलैस कपड़े भी नहीं पहन पाती हूं. कृपया स्ट्रैच मार्क्स को दूर करने के उपाय बताएं?

जवाब

स्ट्रेच मार्क्स या शरीर पर दिखने वाली सफेद धारियां तब होती हैं जब अचानक आप का वजन बढ़ता है और फिर आप उसे ऐक्सरसाइज के द्वारा घटाने की कोशिश करती हैं. इस के अलावा डिलिवरी के बाद भी जब बढ़ा वजन घटता है तो पेट के अलावा शरीर के उन हिस्सों पर भी स्ट्रैच मार्क्स दिखाई देते हैं जहां वजन कम होता है.

दरअसल, त्वचा की 2 सतहें होती हैं ऊपरी और भीतरी. जब वजन बढ़ता है तो त्वचा में खिंचाव आता है और त्वचा की ऊपरी सतह स्ट्रैच हो जाती है. लेकिन भीतरी त्वचा इस स्ट्रैच को सह नहीं पाती और त्वचा के भीतरी टिशूज टूट जाते हैं, जिस से स्ट्रैच मार्क्स बनते हैं. वैसे तो स्ट्रैच मार्क्स हटाने के लिए कई तरह की स्ट्रैच मार्क्स रिमूवल क्रीम व लोशन उपलब्ध हैं, लेकिन आप चाहें तो घरेलू उपाय भी अपना सकती हैं.

आप उन स्थानों पर जहां स्ट्रेच मार्क्स हैं ऐलोवेरा जैल लगाएं. ऐलोवेरा जैल त्वचा को टोन करने के साथसाथ उसे हाइड्रेट भी करता है जिस से स्ट्रैच मार्क्स धीरेधीरे हलके होते जाते हैं. इस के अतिरिक्त आप नीबू का रस या आलू का रस भी प्रभावित स्थान पर लगा सकती हैं. इस से भी स्ट्रैच मार्क्स के हलके होने में मदद मिलेगी.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.              

झूठ की नींव पर खड़ा प्रेम का महल

हत्या तो जघन्य अपराध है ही, उस से भी जघन्य और क्रूरता की हदें पार करने वाला अपराध है किसी को आग लगा कर या उस के ऊपर तेजाब डाल कर जिंदा जला देना. इस तरह की घटनाओं में अगर पीड़ित जिंदा बच जाता है तो उसे प्रतिदिन तिलतिल कर मरना होता है. इस तरह के अपराधों में बेरहम अपराधियों को उन के घिनौने अपराध के लिए जितनी भी सजा दी जाए, कम है.

इसी तरह के एक जघन्य अपराध का फैसला 25 अक्तूबर, 2016 को पंजाब के जिला मोंगा की सत्र एवं जिला अतिरिक्त जज लखविंदर कौर दुग्गल की अदालत में सुनाया जाना था. चर्चित मामला होने की वजह से फैसले को सुनने के लिए अदालत में काफी भीड़ लगी थी. भीड़ के बीच चल रही खुसुरफुसुर तब एकदम से सन्नाटे में बदल गई, जब ठीक साढ़े 10 बजे अदालत कक्ष में सत्र एवं जिला अतिरिक्त जज लखविंदर कौर दुग्गल आ कर बैठीं.

उन के सीट पर बैठते ही रीडर ने मनदीप कौर तेजाब कांड की फाइल उन की ओर बढ़ा दी. इस के बाद पुलिस ने 8 लोगों को ला कर कठघरे के पास खड़ा कर दिया, जिस में 2 अधेड़ उम्र की महिलाएं भी थीं. चूंकि इस मामले की बहस वगैरह सब हो चुकी थी, इसलिए सभी उत्सुक थे कि कितनी जल्दी फैसला सुनाया जाए.

इस मामले में जज ने क्या फैसला सुनाया, यह जानने से पहले आइए इस मामले के बारे में जान लें, जिस से पता चले कि जज ने दोषियों को जो सजा दी, वे इसी लायक थे या वे इस से भी अधिक सजा के हकदार थे.

सरदार शमशेर सिंह जाट एक बड़े किसान थे. वह जिला मोंगा के गांव दइया कलां मेहना के रहने वाले थे. वह सुखी और संपन्न तो थे ही, सेवा भाव वाले संस्कारी भी थे. अपनी संतानों को भी उन्होंने अच्छे संस्कार दिए थे. यही वजह थी कि हर तरह से सुखीसंपन्न होने के बावजूद उन की बेटी मनदीप कौर ने बीएससी करने के बाद नर्सिंग का डिप्लोमा किया और अस्पताल में नौकरी कर मरीजों की सेवा करने लगी थी.

बेटी की इस नौकरी से घर का कोई भी सदस्य खुश नहीं था, क्योंकि उन के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी. इसलिए कोई नहीं चाहता था कि कुछ रुपयों के लिए मनदीप रातदिन धक्के खाए. लेकिन जब मनदीप कौर ने पिता को सेवा वाली बात याद दिला कर कहा कि यह सब तो उन्हीं लोगों द्वारा दी गई शिक्षा का नतीजा है, तब पिता ही नहीं, घर के सभी लोग लाजवाब हो गए थे.

अस्पताल में ही नौकरी के दौरान मनदीप कौर की मुलाकात हरिंदर सिंह से हुई थी. वह अपने किसी बीमार रिश्तेदार का हालचाल लेने अस्पताल आया था. वह सुंदर और गबरू जवान था, इसलिए मनदीप कौर उस की ओर आकर्षित हो गई थी. मनदीप कौर भी कम सुंदर नहीं थी, इसलिए हरिंदर सिंह ने भी जब पहली बार उसे देखा था तो उस का भी दिल उस पर आ गया था.

बहरहाल, इसी पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे के दिलों में गहराइयों तक उतर गए थे. जल्दी ही उन का यह प्यार शादी तक पहुंच गया था. दोनों की शादी में किसी को कोई ऐतराज भी नहीं था, क्योंकि कदकाठी, रंगरूप और खूबसूरती में दोनों की जोड़ी लाखों में एक थी. इस के अलावा दोनों की जाति भी एक थी.

हरिंदर सिंह रायकोट के थाना सदर के गांव रसीन के रहने वाले परमजीत सिंह का बेटा था. वह भी जाट था और गांव का सुखीसंपन्न किसान था. उस ने मनदीप कौर को बताया था कि वह पंजाब पुलिस में सबइंसपेक्टर है. इसीलिए जब शादी की बात चली तो एक तो लड़का खूबसूरत था, दूसरे बढि़या सरकारी नौकरी थी, इस के अलावा काफी जमीनजायदाद भी थी, इसलिए मनदीप कौर के घर वालों को इस शादी पर कोई ऐतराज नहीं था.

इन्हीं सब वजहों से जब हरिंदर सिंह के मातापिता और मामामामी मनदीप कौर से रिश्ते के लिए आए तो घर वालों ने खुशीखुशी हामी भर दी थी. इस के बाद 21 मार्च, 2010 को दोनों परिवारों की रजामंदी से मनदीप कौर और हरिंदर सिंह की शादी हो गई थी. इस शादी से दोनों ही बहुत खुश थे.

शादी के 3-4 महीने बाद हरिंदर की खुशी भले ही कायम रही हो, पर मनदीप कौर की खुशी कायम नहीं रह सकी थी. इस की वजह यह थी कि शादी से पहले हरिंदर सिंह ने मनदीप कौर को अपने बारे में जो कुछ बताया था, वह सब झूठ था. उस ने अपने बारे में बताया था कि वह कोई नशा नहीं करता और पंजाब पुलिस में इंसपेक्टर है. जबकि हकीकत यह थी कि हरिंदर सिंह बेकार और आवारा किस्म का युवक था. रही बात नशे की तो वह पक्का शराबी था. वह पंजाब पुलिस में सबइंसपेक्टर की कौन कहे सिपाही भी नहीं था.

शादी के बाद कुछ दिनों तक मनदीप कौर को यही लगता रहा कि शादी की वजह से हरिंदर ने छुट्टियां ले रखी होंगी. लेकिन जब काफी दिन गुजर गए और उस ने ड्यूटी जाने का नाम नहीं लिया तो एक दिन उस ने पूछा, ‘‘थानेदार साहब, कितने दिनों की छुट्टियां ले रखी हैं. कब जाना है ड्यूटी पर?’’

‘‘तुम मेरी छुट्टियों को ले कर  क्यों परेशान हो रही हो? नईनई शादी है, घूमोफिरो और मौज करो. रही बात नौकरी की तो उसे पूरी जिंदगी करनी है.’’ हरिंदर सिंह ने कहा.

मनदीप अपनी ड्यूटी पर जाने लगी थी. 3-4 महीने बीत जाने के बाद भी जब हरिंदर सिंह अपनी ड्यूटी पर नहीं गया तो मनदीप कौर को संदेह हुआ. उसे लगा कि कहीं उस के साथ कोई धोखा तो नहीं हुआ? क्योंकि हरिंदर अब रोज ही शराब के नशे में धुत हो कर घर आने लगा था. शुरूशुरू में उस ने कहा था कि शादी की खुशी में यारदोस्त जबरदस्ती पिला देते हैं.

लेकिन शादी के 6 महीने हो जाने के बाद ऐसे कौन दोस्त थे, जो अभी भी शादी की खुशियां मना रहे थे. लेकिन अहम सवाल यह था कि हरिंदर सिंह अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं जा रहा था? इन्हीं बातों को ले कर अब लगभग रोज ही हरिंदर सिंह और मनदीप कौर में झगड़ा होने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि शराब पीने के लिए हरिंदर मनदीप कौर से पैसे मांगने लगा था.

आखिर एक दिन मनदीप कौर के सामने साफ हो गया कि हरिंदर सिंह पंजाब पुलिस में सबइंसपेक्टर तो क्या, सिपाही भी नहीं है. अब स्पष्ट हो गया कि हरिंदर ने उस से छल किया था. उसी बीच एक दिन जो हुआ, मनदीप कौर ने कभी उस की कल्पना भी नहीं की थी.

शराब के नशे में धुत्त हरिंदर सिंह ने पैसे को ले कर मनदीप कौर की पिटाई करते हुए कहा था, ‘‘सुनो, मैं भले ही पंजाब पुलिस में सबइंसपेक्टर नहीं हूं, लेकिन तुम्हारा पति जरूर हूं, इसलिए मैं जो भी कहूं, उसे तुम चुपचाप मानो. क्योंकि अब तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती. तुम खूबसूरत थी, इसलिए झूठ बोल कर मैं ने तुम से शादी की थी.’’

यह सुन कर मनदीप कौर के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अब उसे अपनी शादी के इस फैसले पर पछतावा हो रहा था. अगली सुबह वह चुपचाप उठी और बिना किसी से कुछ कहे अपना सामान समेटा और मोगा स्थित अपने पिता के घर आ गई. उस रात अच्छी तरह सोचसमझ कर उस ने यह कदम उठाया था.

मनदीप कौर के इस तरह घर छोड़ कर जाने से हरिंदर और उस के घर वाले बौखला उठे. हरिंदर के पिता परमजीत सिंह बिरादरी के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर शमशेर सिंह के घर पहुंचे. इन लोगों ने कहा कि हरिंदर ने झूठ बोला या कुछ भी किया, उस सब को भूल कर मनदीप को हरिंदर के साथ भेजो. गलती उस की है. उस ने एक बहू की मर्यादा को भंग किया है. बिना बताए घर छोड़ कर मायके चली आई है, इसलिए उसे ससुराल वालों के पैर पकड़ कर माफी मांगनी चाहिए.

यह चोरी और सीनाजोरी वाली बात थी. मनदीप कौर की जगह कोई भी होता, यह बात कतई न मानता. जबकि उस के साथ तो जबरदस्त धोखा हुआ था. मनदीप कौर ने ससुराल जाने से साफ मना कर दिया तो हरिंदर सिंह और उस के घर वाले खाली हाथ लौट गए.

यही नहीं, अगले दिन मनदीप कौर ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश कर्मजीत सिंह की अदालत में हरिंदर सिंह और उस के घरवालों के खिलाफ धोखाधड़ी, घरेलू हिंसा, दहेज और खर्चे का मुकदमा दायर कर दिया. यह मुकदमा अभी विचाराधीन है. मुकदमा दायर होते ही हरिंदर सिंह और उस के घर वालों की ओर से मनदीप कौर पर दबाव बनाने के लिए लगातार धमकियां दी जाने लगीं कि वह मुकदमा वापस ले कर समझौता कर ले, वरना ठीक नहीं होगा.

मनदीप कौर ने उन धमकियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी की, पर पुलिस की ओर से कोई कारवाई नहीं की गई. 11 जुलाई, 2013 को सुबह साढ़े 9 बजे मनदीप कौर अपने पिता शमशेर सिंह के साथ स्कूटर से कचहरी जा रही थी, तभी गुरुकुल स्कूल के थोड़ा पीछे कोकरी कलां ड्रेन पुल के पास कोकरी कलां गांव की ओर से आ रहे 2 मोटरसाइकिल सवारों ने उन्हें रोक लिया.

दोनों मोटरसाइकिलों पर 4 लोग सवार थे. उन में एक मनदीप कौर का पति हरिंदर सिंह भी था. मोटरसाइकिल खड़ी कर के चारों उतरे. 2 लोगों के हाथों में जग थे, जिन में तेजाब भरा था. हरिंदर अपने एक दोस्त के साथ शमशेर सिंह के स्कूटर के पास पहुंचा और मनदीप कौर की ओर देख कर उस ने गुस्से से कहा, ‘‘तुझ से कहा था न कि मुकदमा वापस ले कर समझौता कर ले. नहीं मानी न मेरी बात, अब ले भुगत.’’

इतना कह कर उस ने जग में भरा तेजाब मनदीप कौर पर उछाल दिया. इस के बाद साथी के हाथ से जग ले कर उस ने उस में भरा तेजाब शमशेर सिंह के ऊपर उड़ेल दिया. बापबेटी तेजाब की जलन से स्कूटर सहित गिर कर छटपटाने लगे. कुछ लोगों ने बापबेटी को सड़क पर तड़पते देखा तो उन्हें उठा कर नजदीकी सिविल अस्पताल पहुंचाया और इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी.

सिविल अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद बापबेटी की गंभीर हालत को देखते हुए फरीदकोट मैडिकल कालेज रैफर कर दिया गया. मनदीप कौर की बाईं आंख और सीना बुरी तरह से जल गया था. शमशेर सिंह का सीना, पीठ और चेहरा जला था. यह खबर मनदीप कौर के गांव पहुंची तो दोपहर तक घर तथा गांव के तमाम लोग फरीदकोट पहुंच गए.

थानाकोतवाली फरीदकोट से एएसआई गुलजार सिंह और जयपाल सिंह ने आ कर शमशेर सिंह और मनदीप कौर का बयान लिया. चूंकि अपराध दूसरे शहर में हुआ था, इसलिए ताजी स्थिति और बयान की कौपी थानाकोतवाली फरीदकोट पुलिस ने थाना अजीतवाला, जिला मोंगा भेज दी.

शाम 4 बजे थाना अजीतवाला पुलिस एवं डीएसपी जसविंदर सिंह ने फरीदकोट आ कर शमशेर सिंह और मनदीप कौर का एक बार फिर बयान लिया और तत्काल इस मामले को 11 जुलाई, 2013 को अपराध संख्या 49/2013 पर भादंवि की धारा 307, 326ए, 120बी के तहत हरिंदर सिंह व अन्य अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर हरिंदर सिंह की तलाश शुरू कर दी.

अगले दिन पुलिस ने इस तेजाब कांड के 8 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए सभी अभियुक्तों को रिमांड पर सौंप दिया गया.

थाना अजीतवाला पुलिस ने जिन 8 लोगों को गिरफ्तार किया था, उन में मनदीप कौर का पति हरिंदर सिंह, उस के 3 दोस्त परवान सिंह, दपिंदर सिंह, जगजीत सिंह उर्फ जग्गा, हरिंदर के पिता परमजीत सिंह, मां कर्मजीत कौर, मामा सुरजीत सिंह और मामी सुखमिंदर कौर थीं. रिमांड के दौरान पुलिस ने वे जग भी बरामद कर लिए थे, जिन से दोनों पर तेजाब डाला गया था. पुलिस ने दोनों मोटरसाइकिलें भी बरामद कर ली थीं. रिमांड खत्म होने के बाद सभी को जेल भेज दिया गया था.

हरिंदर के मातापिता और मामामामी की जमानतें हो गई थीं, लेकिन हरिंदर और उस के दोस्त जेल में ही रहे. इस केस की पूरे 3 साल तक सुनवाई चली. शमशेर सिंह और मनदीप कौर को इलाज के लिए डेढ़ साल से भी ज्यादा समय तक अस्पताल में रहना पड़ा. मनदीप कौर की एक आंख पूरी तरह से खराब हो गई थी. बापबेटी के इलाज पर डेढ़ साल में करीब 50 लाख रुपए खर्च हुए थे. इस खर्च में सरकार की ओर से एक पैसे की भी मदद नहीं मिली थी.

इस मुकदमे में 29 गवाहों की गवाही हुई. इन में वे 3 लोग भी शामिल थे, जिन्होंने हरिंदर सिंह और उस के साथियों को मनदीप कौर और शमशेर सिंह पर तेजाब डालते देखा था. उन्होंने ही बापबेटी को अस्पताल पहुंचाया था. गवाहों में डाक्टर, फोटोग्राफर, पुलिस वाले एवं डीएसपी जसविंदर सिंह तथा फरीदकोट मैडिकल कालेज के सीएमओ भी  थे.

25 अक्तूबर, 2016 को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश लखविंदर कौर ने इस मुकदमे में अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि पुलिस ने इस मामले में अपनी जांच पूरी तरह से और सही ढंग से की है. वैसे तो यह अपराध इतना जघन्य एवं क्रूरताभरा है कि इस में पीडि़तों की भले ही मौत नहीं हुई, पर हर पल मौत का भयानक साया उन के इर्दगिर्द मंडराता रहा.

भुक्तभोगी इतने भयानक और डरावने हो गए हैं कि अब वह समाज और समाज की धारा से आजीवन जुड़ नहीं सकते. इस के लिए अगर मौत की सजा का भी प्रावधान हो तो भी कम है, फिर भी कानून के मद्देनजर यह अदालत हरिंदर सिंह, परवान सिंह, दपिंदर सिंह और जगजीत सिंह को दोषी करार देते हुए इस अपराध के लिए उम्रकैद की सजा देती है.

इसी के साथ हरिंदर सिंह पर 10 लाख रुपए का आर्थिक दंड लगा कर उसे पीडि़ता मनदीप कौर और शमशेर सिंह को मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया. इसी के साथ 1 लाख रुपए का और जुरमाना लगाया. शेष 3 अभियुक्तों परवान सिंह, दपिंदर सिंह और जगजीत सिंह पर भी 1-1 लाख रुपए का जुरमाना तथा 1-1 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया.

जुरमाना राशि न अदा करने पर हरिंदर को 3 साल अतिरिक्त सजा तथा शेष तीनों अभियुक्तों को 2-2 साल अतिरिक्त सजा भुगतने का आदेश दिया. इसी के साथ पंजाब सरकार को भी पीडि़ता की स्थिति को देखते हुए 15 दिनों के भीतर 5 लाख रुपए नकद राशि मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया.

शेष 4 अभियुक्तों हरिंदर के पिता परमजीत सिंह, मां कर्मजीत कौर, मामा सुरजीत सिंह और मामी सुखमिंदर कौर को सबूतों के अभाव की वजह से बरी कर दिया. झूठ की बुनियाद पर हरिंदर सिंह ने सपनों का जो महल खड़ा किया था और मनदीप कौर ने अपनी जो प्रेमनगरी बसाई थी, उस का ऐसा दुखद दृश्य सामने आएगा, मनदीप कौर ने सोचा भी नहीं था.?

लेखक : हरमिंदर खोजी

अंतोनियो गुतेरेस और भारत

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के रूप में अंतोनियो गुतेरेस को शरणार्थियों की बढ़ती संख्या, आतंक और गृह युद्ध, उभरते संकीर्ण राष्ट्रवाद, आर्थिक संकट और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का सामना करना है. उन्होंने कहा है कि वे शांति और विकास के लिए समर्पित होंगे तथा इस विश्व संस्था में जरूरी सुधारों के लिए प्रयासरत होंगे.

समाजवादी नेता के रूप में पुर्तगाल के प्रधानमंत्री रह चुके गुतेरेस साल 2005 से 2015 तक संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था यूएनएचसीआर के प्रमुख रहे हैं. वे वैश्विक आतंकवाद और चरमपंथ तथा शरणार्थी संकट के अंतर्संबंधों को बेहतर समझते हैं. अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जटिल संजाल ने आतंक पर कठोर रुख अपनाने की उनके पूर्ववर्ती बान की मून की कोशिशों को फलीभूत नहीं होने दिया है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा की चिंताएं सुरक्षा परिषद में विशिष्ट सदस्य के रूप में बैठी महाशक्तियों की आपसी राजनीति में उलझी रह जाती हैं. भारत समेत अनेक देश संयुक्त राष्ट्र को उत्तरोत्तर लोकतांत्रिक बनाने की मांग बरसों से करते रहे हैं, जिनमें सबसे प्रमुख सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाना है.

पाकिस्तान की शह पर भारत-विरोधी गतिविधियों को अंजाम देनेवाले आतंकी सरगना मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने का प्रस्ताव चीन के अड़ियल रवैये के कारण कई महीनों से लंबित है. भारत ने 1996 में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर समेकित सम्मेलन का प्रस्ताव दिया था, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्वीकृत भी कर लिया है, पर अमेरिका, इसलामी देशों के समूह और लैटिन अमेरिकी देशों के अड़ंगे के चलते दो दशकों बाद भी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है, जबकि आपत्ति जतानेवाले देश भी आतंकी गतिविधियों का निशाना बनते रहे हैं.

भारत ने लगातार यह मांग की है कि राज्य-प्रायोजित आतंकवाद पर कठोर रुख अपनाने की जरूरत है तथा संयुक्त राष्ट्र को बिना किसी पक्षपात और पूर्वाग्रह के इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए. अभी चीन ने फिर से यह संकेत दिया है कि वह मसूद अजहर के मसले पर अपनी राय में बदलाव नहीं करेगा.

कुछ दिन पहले सुरक्षा परिषद के आतंक-विरोधी इकाई के प्रमुख ने यह कहते हुए भारत को धैर्य रखने की अजीब सलाह दी थी कि संस्था की कार्यवाही की प्रक्रिया में विलंब होता है. नये महासचिव की इस बात से उम्मीद बंधी है कि वे जरूरी मुद्दों पर ध्यान देंगे और कामकाज में अनावश्यक देरी की मुश्किल हल करेंगे. गुतेरेस सुलझे व्यक्तित्व के धनी हैं. विवादों के समाधान में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेने का उनका वादा भरोसा जगाता है. पर, भारत समेत अन्य देशों को सकारात्मक सहयोग के साथ दबाव बनाये रखना भी जरूरी होगा.

जियो ला रहा है आपके लिए पोकेमॉन गो

​रिलायंस जियो इन्फोकॉम ने जानकारी दी है कि उसने पॉप्युलर गेम 'पोकेमॉन गो' को भारत में लॉन्च करने के लिए द पोकेमॉन कंपनी के साथ मिलकर निऐंटिक के साथ पार्टनरशिप की है. निऐंटिक ने ही पूरी दुनिया में धूम मचाने वाले ऑगमेंटेड रिऐलिटी गेम 'पोकेमॉन गो' को डिवेलप किया है.

जियो ने बताया कि जियो सिम इस्तेमाल करने वाले ग्राहक पोकेमॉन गो गेम को खेल पाएंगे और जियो के हैपी न्यू इयर ऑफर के तहत 31 मार्च, 2017 तक इसके लिए उन्हें कोई डेटा चार्ज भी नहीं देना होगा.

इस असोसिएशन से रिलायंस डिजिटल स्टोर्स, जियो रीटेल लोकेशंस और चार्जिंग स्टेशन इस गेम को खेलने वालों को पोकेस्टॉप्स और जिम्स के रूप में नजर आएंगे. यह गेम बुधवार, 14 दिसंबर से खेला जा सकेगा.

जियो चैट में पोकेमॉन प्लेयेर्स एक्सक्लूसिव पोकेमॉन गो चैनल को भी ऐक्सेस कर सकेंगे. यहां पर उन्हें डेली टिप्स, कॉन्टेंट और क्लू वगैरह मिलेंगे. कंपनी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, 'निऐंटिक के साथ हमारी पार्टनरशिप से हमारे ग्राहक जियो मोबाइल ब्रॉडबैंड नेटवर्क पर कॉन्टेंट को इंजॉय कर सकते हैं.'

फूड प्रोसैसिंग : असीम संभावनाओं का क्षेत्र

फूड प्रोसैसिंग देश का तेजी से बढ़ता उद्योग है. इस उद्योग में रोजगार की व्यापक संभावनाएं वि-मान हैं. फूड प्रोसैसिंग इंडस्ट्री में हर साल 1 लाख से अधिक प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्तियों की जरूरत होती है. चैंबर औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री का अनुमान है कि इस उद्योग में अगले 10 साल के भीतर 90 लाख से भी अधिक नौकरियों के अवसर पैदा होंगे.

कोर्सेज

फूड प्रोसैसिंग इंडस्ट्री में 10+2 परीक्षा उत्तीर्ण व्यक्ति भी ऐंट्री पा सकते हैं. देश भर में ऐसे कई पेशेवर संस्थान हैं जिन के द्वारा फूड प्रोसैसिंग इंडस्ट्री में ग्रैजुएशन व पोस्ट ग्रैजुएशन कोर्स कराए जाते हैं. ग्रैजुएशन में साइंस स्ट्रीम के 10+2 परीक्षा उत्तीर्ण युवा प्रवेश ले सकते हैं. फूड प्रोसैसिंग के क्षेत्र में विभिन्न पाठ्यक्रम कराने वाली प्रमुख संस्था, इंडियन इंस्टिट्यूट औफ क्रौप प्रोसैसिंग टैक्नोलौजी, थंजावुर द्वारा बीटैक कोर्स कराया जाता है, इस में जेईई मेन की रैंकिंग के आधार पर प्रवेश मिलता है. देश के कई अन्य स्थानों में फूड प्रोसैसिंग में बीएससी कोर्स भी कराया जाता है.

फूड प्रोसैसिंग के मास्टर कोर्स भी उपलब्ध हैं. इन में प्रवेश के लिए एग्रीकल्चर फूड टैक्नोलौजी, होम साइंस जैसे विषयों में स्नातक डिग्री का होना जरूरी है. फूड प्रोसैसिंग में मार्केटिंग, मैटीरियल मैनेजमैंट, सप्लाई चेन मैनेजमैंट, औपरेशनल और ह्यूमन रिसोर्स जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता कराने वाले विभिन्न कोर्स उपलब्ध हैं.

रोजगार के अवसर

फूड प्रोसैसिंग में सरकारी तथा निजी छोटे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं. सरकारी क्षेत्र में डिपार्टमैंट औफ फूड ऐंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूटर हर वर्ष बड़ी संख्या में फूड टैक्नोलौजिस्ट की नियुक्ति करता है. इस के अलावा फूड कौरपोरेशन औफ इंडिया, सैंट्रल वेयर हाउसिंग कौरपोरेशन औफ इंडिया, सैंट्रल वेयर हाउसिंग कौरपोरेशन में भी फूड प्रोसैसिंग टैक्नोलौजी के कोर्स किए व्यक्तियों को अच्छे पैकेज व अच्छी सेवा शर्तों के साथ नियुक्ति दी जाती है.

फूड प्रोसैसिंग में सरकारी क्षेत्र की तुलना में निजी क्षेत्र में ज्यादा रोजगार की संभावनाएं हैं. इस क्षेत्र में मिल्क प्रोडक्ट्स, फ्रूट्स ऐंड वैजीटेबल, फिशरीज, प्लांटेशन व हैल्थ फूड जैसे क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की योग्यता व क्षमता वाले व्यक्तियों की जरूरत होती है. इन क्षेत्रों के अलावा रिसर्च लैबोरेट्रीज, सौफ्ट ड्रिंक फैक्ट्री, डिस्टलरीज, पैकेजिंग और मैन्यूफैक्चरिंग आदि में भी उत्पादन, विपणन, शोध आदि से संबंधित कार्यों के लिए फूड टैक्नोलौजी में डिग्री प्राप्त व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर वि-मान हैं. इस क्षेत्र में पीजी किए हुए युवाओं के लिए रिसर्च व टीचिंग का आकर्षक रोजगार क्षेत्र भी खुला है.

फूड टैक्नोलौजी व फूड प्रोसैसिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्तियों की कमी दूर करने के लिए भारत सरकार के फूड प्रोसैसिंग मंत्रालय ने विशेष योजना शुरू की है, जिस के अंतर्गत फूड प्रोसैसिंग के डिग्री व डिप्लोमा कोर्स के माध्यम से समुचित प्रशिक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की गई है.

फूड टैक्नोलौजी व फूड प्रोसैसिंग का कोर्स कर के युवा अपना रोजगार भी शुरू कर सकते हैं, क्योंकि आजकल डब्बा बंद फूड पैकेजिंग का व्यवसाय तेजी से बढ़ रहा है.

यहां दिए संस्थानों के अलावा भी बहुत से राष्ट्रीय व राज्यस्तर के संस्थान और विश्वविद्यालय हैं जो फूड प्रौसैसिंग से संबंधित ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट, डिग्री, डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कोर्स कराते हैं. इन की जानकारी विभिन्न वैबसाइटों से भी प्राप्त की जा सकती है. इस क्षेत्र से जुड़े कोर्स कर के आप देश के सर्वाधिक ग्रोथ पोटैंशियल वाले रोजगार क्षेत्र में अच्छे पैकेज वाला रोजगार प्राप्त कर सकते हैं.                               

मुख्य प्रशिक्षण संस्थान

फूड टैक्नोलौजी तथा फूड प्रोसैसिंग के विभिन्न प्रकार के कोर्स कराने वाले कुछ प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं :

–       एसआरएफ विश्वविद्यालय, फूड प्रोसैसिंग इंजीनियरिंग विभाग, गाजियाबाद.

– गुरु जंबेश्वर यूनिवर्सिटी औफ साइंस ऐंड टैक्नोलौजी डिपार्टमैंट औफ फूड टैक्नोलौजी, हिसार.

– गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, डिपार्टमैंट औफ फूड साइंस ऐंड टैक्नोलौजी, अमृतसर.

– के के वाघ कालेज औफ फूड टैक्नोलौजी, नासिक.

– एमआईटी कालेज औफ फूड टैक्नोलौजी, पुणे.

– महात्मा गांधी मिशंस कालेज औफ फूड टैक्नोलौजी, औरंगाबाद.

– स्कूल औफ कैमिकल, फूड एग्रो बायो टैक्नोलौजी, मिदनापुर.

– केल्पाजी कालेज औफ फूड एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग ऐंड टैक्नोलौजी, मालापुरम, केरल.

– राजस्थान टैक्निकल यूनिवर्सिटी, कोटा.

बस स्वाइप करें और चार्ज करें फोन

जल्द ही स्मार्टफोन्स के निर्माण में एक ऐसी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाने लगेगा, जिससे आपको फोन की बैटरी को चार्ज करने के लिए बिजली की जरूरत ही नहीं रह जाएगी. बस आप अपने फोन की स्क्रीन को उंगली से स्वाइप कीजिए और बैटरी चार्ज हो जाएगी.

नैनोजेनरेटर तकनीक की वजह से ऐसा संभव हो सका है. इससे पहले इसी तकनीक पर आधारित जूते भी बनाए जा चुके हैं, पहनकर चलने से जूतों में इतनी बिजली स्टोर हो जाएगी कि 10 वॉट का एक एलईडी सारा दिन जल सकता है. इससे मोबाइल भी रिचार्ज कर सकते हैं.

फोन की बैटरी चार्ज होने के लिए टच स्क्रीन में सिलिकॉन वैफर की पतली परत लगाई जाएगी, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह नहीं है. स्वाइप से बनने वाली एनर्जी को स्टोर करने के लिए कागज के बराबर पतली शीट्स बनाई जा रही हैं.

बरमूडा ट्राइऐंगल का रहस्य सुलझा

महान नाविक कोलंबस भारत और पूर्वी एशियाई देशों के लिए समुद्री रास्ता खोजते हुए अमेरिका की ओर जा रहा था. अक्तूबर, 1492 का दिन था. अचानक  बीच समुद्र में कंपास ने काम करना बंद कर दिया. तभी उन्होंने आसमान में एक आग का गोला देखा, जो तेजी से आ कर सीधे समुद्र में गिरा. यह क्षेत्र था बरमूडा फ्लोरिडा, बरमूडा और प्योर्टीरिको के बीच का वह त्रिभुजाकार क्षेत्र जो अटलांटिक महासागर में स्थित है. इस प्रकार हुई घटना ने उसे दहला दिया. वह रास्ता बदल स्पेन की ओर मुड़ा और आगे की यात्रा की.

बरमूडा क्षेत्र में आने पर बड़ेबड़े पानी के जहाज व हवाईजहाज गायब हो जाते थे औैर उन का कहीं कोई अतापता नहीं चलता था. सर्वप्रथम कोलंबस का इस समस्या से सामना हुआ. यह क्षेत्र प्योर्टीरिको, दूसरी ओर फ्लोरिडा और तीसरी ओर बरमूडा नामक स्थान पर है. यह क्षेत्र 25 से 40 डिगरी उत्तरी अक्षांश और 55 से 95 डिगरी पश्चिमी देशांतर रेखाओं के बीच फैला एक त्रिकोणीय स्थान है जो लगभग 5 लाख वर्गमील में फैला है.

इस क्षेत्र में जब भी कोई जहाज पहुंचता उसके रेडियो संकेत कट जाते और कंट्रोल रूम से उस का संपर्क समाप्त हो जाता, फिर रहस्यमयी तरीके से जहाज गायब हो जाता. इन का पता लगाना भी असंभव था, जैसेजैसे समय बीतता गया इस का रहस्य गहराता रहा.

बरमूडा के इस ट्राइएंगल क्षेत्र में पिछले 100 साल से लगभग 25 हवाईजहाज व 10 छोटेबड़े समुद्रीजहाज गायब हो चुके हैं. एक आंकड़े के अनुसार औसतन 4 हवाईजहाज और 20 समुद्री जहाज इस इलाके में रहस्यमय तरीके से गायब हो जाते हैं.

दिसंबर, 1945 में अमेरिका के 5 टारपीडो बमवर्षक विमानों ने 14 लोगों के साथ इस क्षेत्र की उड़ान भरी, उड़ान भरने के 90 मिनट बाद ही उन का संपर्क टूट गया, राडार को उन के सिगनल मिलने बंद हो गए, कारण बताया गया कि विमानों के कंपास काम नहीं कर रहे. ऐसी स्थिति में उन के बचाव के लिए 3 विमान भेजे गए. वे भी इस क्षेत्र में आते ही समुद्र में विलीन हो गए. आज तक उन का कोई नामोनिशान नहीं मिला.

शोधकर्ताओं का मानना था कि यहां ऐसा कोई चुंबकीय क्षेत्र है, जिस कारण जहाजों के उपकरण काम करना बंद कर देते हैं और जहाज रास्ता भटक कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं. इस प्रकार अभी तक इस त्रिभुजाकार क्षेत्र ने हजारों लोगों को लील लिया है.

अभी तक इस पर कई शोध किए गए, लेकिन कोईर् संतोषजनक परिणाम नहीं मिला था. कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि इस क्षेत्र में वायु की विशाल तूफानी धाराएं नीचे की ओर बहती हैं, जो किसी भी समुद्री जहाज को उस की विपरीत दिशा में बहा ले जाती हैं और समुद्र में डुबो देती हैं.

नए शोध के अनुसार यहां हवाएं बड़ेबड़े बादलों का निर्माण करती हैं और बादल विस्फोट की तरह समुद्र से टकराते हैं और सुनामी से भी ऊंची लहरें पैदा करते हैं. कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के मैट्रोलौजिकल रैंडी कैरबेनी के अनुसार, ‘‘ये बादल एयरबम बनाते हैं. बरमूडा आईलैंड के दक्षिणी हिस्से में ये 20 से 50 मील तक का सफर तय करते हैं.’’

वैज्ञानिकों ने शोध के बाद माना है कि 5 लाख किलोमीटर वर्ग वाले इस ट्राइऐंगल का रहस्य हैक्सागोनल बादल में है यानी हैक्सागोनल बादल वह आग का गोला था जो कोलंबस को समुद्र में गिरता दिखा था. दरअसल, यह बादलों का खास तरह का नमूना है. ये बादल मधुमक्खियों के छत्ते की तरह दिखते हैं और एयरबम जैसा काम करते हैं. ये जमीन के आसपास गहरे समुद्र में पाए जाते हैं.

वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार ये बादल बरमूडा के दक्षिणी छोर पर पैदा होते हैं और 170 मील की रफ्तार से समुद्रतट पर गिरते हैं. ऐसे में वहां 150 मीटर व 170 किलोमीटर चौड़ा गड्ढा बन जाता है, जो भंवर जैसा दिखाई देता है. इस दौरान आसपास के इलाके में इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि कंपास या अन्य उपकरण वहां कोई काम नहीं करते.

हालांकि पिछले काफी समय से वहां घटनाएं कम घटती हैं, लेकिन खतरा अभी बना हुआ है. बहरहाल, तमाम शोधों के बावजूद यह रहस्य फिर भी नहीं सुलझ पाया कि आखिर इतने समय से घटित घटनाओं में जो जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुए उन का क्या हुआ, वे कहां गए. अगर इसे महज दुर्घटना भी माना जाए तो जहाजों का मलबा भी तो मिलना चाहिए. लेकिन अभी इस सवाल को ले कर रहस्य बना हुआ है         

नोमा नजीर भट्ट के किरदार के साथ सैयामी न्याय कर पाएंगी?

कश्मीरी लड़कियों के रॉक बैंड ‘‘प्रगास’’ पर आधारित फिल्म में जब से फिल्म निर्देशक राजश्री ओझा ने रॉक गायिका नोमा नजीर भट्ट का किरदार निभाने के लिए सैयामी खेर को अनुबंधित किया है, तब से बौलीवुड में चर्चाओं का दौर जारी है. इन चर्चाओं की वजह यह है कि पहले इसी फिल्म  नोयामी नजीर का किरदार आलिया भट्ट निभा रही थी. बौलीवुड का एक तबका सवाल उठा रहा है कि क्या सैयामी खेर, आलिया भट्ट के जूतों पर अपना पैर जमा सकती हैं? मगर जो लोग सैयामी खेर और आलिया भट्ट दोनों को नजदीक से जानते हैं, उनकी माने तो इस किरदार के लिए आलिया भट्ट से कहीं ज्यादा उपयुक्त सैयामी खेर ही हैं.

मगर जब व्यापार की बात हो, तो सैयामी खेर के मुकाबले आलिया भट्ट ज्यादा सशक्त नजर आती हैं. क्योंकि आलिया भट्ट एक सफल अदाकारा हैं. वह कई फिल्में कर चुकी हैं. फिल्म वितरकों से लेकर आम लोगों के बीच भी उनकी अपनी एक पहचान बन चुकी है. जबकि सैयामी खेर के करियर की पहली फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा. इतना ही नही फल्म सर्जक राजश्री ओझा के उपर भी असफल निर्देशक का तमगा लगा हुआ है. इसी के चलते बौलीवुड का एक तबका मनता है कि राजश्री ओझा को अपनी इस फिल्म के साथ सफल कलाकारों को जोड़ना चाहिए. पर राजश्री ओझा ने इस फिल्म के साथ अब राज कुमार राव और शबाना आजमी को भी जोड़ लिया है.

बौलीवुड का एक तबका फिल्म में नजीर के किरदार के लिए सैयामी खेर की वकालत करते हुए अपने तर्क दे रहा है. इनका मानना है कि इस किरदार को सैयामी खेर बेहतर ढंग से निभा सकती हैं. क्योंकि सैयामी खेर स्पोर्ट्स वूमन है. एक बेहतरीन अदाकारा भी हैं. फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ बाक्स आफिस पर भले ही ना चली हो, मगर सभी ने सैयामी खेर के अभिनय की तारीफ की. इसके अलावा बहुत कम लेागों को पता होगा कि सैयामी खेर एक प्रशिक्षित गायिका हैं. वह बहुत अच्छा गाती हैं. फिर स्पोर्ट्स की पृष्ठभूमि के कलाकारों की खूबी होती है कि वह हार नहीं मानते, बल्कि जीत हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं. उनके अंदर ऐसी क्षमता होती है कि अपने आपको किसी भी किरदार के अनुसार मोड़ना आसान होता है. 

सिक्कों से बैकों का सौतेला व्यवहार

बैंकिग व्यवस्था में सिक्कों का वही स्थान है जो नोट का है. बैंक अपनी मेहनत से बचने के लिये खातों में पैसा जमा करने वालों से सिक्के नहीं लेते. सिक्के के अलावा बैक 10 और 20 रुपये के छोटे नोट लेने से भी बचते हैं. बैंको में सिक्के न जमा होने से कारोबारियों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है. लखनऊ के बिजनेस मैन संदीप आहूजा ने बैंकों के इस व्यवहार के खिलाफ रिजर्व बैंक को पत्र लिखा. रिजर्व बैंक ने भी इस बात को संज्ञान में नहीं लिया तो वह बैंक के अन्याय के खिलाफ कोर्ट गये. अब कोर्ट के फैसले के बाद बैंक सिक्के लेने को बाध्य हो रहा है. कोर्ट ने निर्देश दिया है कि बैंक संदीप आहूजा से 5000 रुपये के सिक्के रोज ले. इसके लिये बैक को शाम 3 से 4 बजे तक का समय भी निर्धारित किया गया है.

संदीप आहूजा ब्रेड के कारोबारी हैं. ब्रेड की बिक्री पर बदले में उनको सिक्के ही मिलते हैं. ऐसे में पिछले 6 माह में उनके पास 40 लाख रुपये के सिक्के जमा हो गये. बैंक इन सिक्कों को उनके बैक खाते में जमा नहीं कर रहा. परेशान संदीप आहूजा रिजर्व बैंक से लेकर कोर्ट तक अपनी फरियाद सुना चुके हैं. कोर्ट ने जो रास्ता सुझाया है वह बहुत सरल नहीं है. 40 लाख के सिक्के अगर 5000 रोज भी बैंक लेगा तो 2 साल से अधिक का समय लग जायेगा. इस बीच संदीप के पास ब्रेड की बिक्री से और सिक्के जमा होते रहेंगे. ऐसे में सभी सिक्के बैंक मे जमा नहीं हो पायेंगे. संदीप आहूजा को रोज ब्रेड के बदले डेढ से 2 लाख रुपये के सिक्के मिलते हैं.

वह कहते हैं हम कोर्ट में एक बार फिर अपनी बात लेकर जायेंगे. हम चाहते हैं कि बैंक हमारे सिक्के ज्यादा मात्रा में लेना शुरू करे. जिससे हम अपने सिक्के खाते में जमा कर सकें. हम ग्राहक से सिक्के लेने से मना नहीं कर सकते क्योकि यह सरकारी मुद्रा है. जब सरकारी मुद्रा चलन में है तो बैंक क्यों सिक्के नहीं जमा कर रहा? यह बैंक का गलत व्यवहार है. हमारी लड़ाई 6 माह पुरानी है. अब बैंक को यह बहाना मिल गया है कि नोटबंदी के समय उनके पास दूसरे काम है. बैक नोटबंदी के पहले से सिक्के नहीं जमा कर रहा है. हम बैंक के व्यवहार से परेशान हैं. हमारी परेशानी बैंकों का व्यवहार है. हमें यह समझ नहीं आता कि बैंक सिक्कों को किस अधिकार से बैंक में जमा करने से मना कर रहा है. 

 

सच कहने में राजश्री ओझा को छह वर्ष क्यों लगे

2010 में प्रदर्शित असफल फिल्म ‘‘आएशा’’ की निर्देशक राजश्री ओझा ने इस फिल्म के प्रदर्शन के पूरे छह वर्ष बाद अपना दर्द बयां किया है. जब यह फिल्म बन रही थी तब और फिल्म के प्रदर्शन से पहले फिल्म के प्रमोशन के दौरान भी बौलीवुड में खबरे उड़ी थीं कि निर्देशक राजश्री ओझा और फिल्म के निर्माता के बीच अनबन चल रही है.

ज्ञातब्य है कि फिल्म ‘‘आएशा’’ में सोनम कपूर की मुख्य भूमिका थी. इस फिल्म का निर्माण सोनम कपूर के करियर को संवारने के लिए ही सोनम कपूर के पिता अनिल कपूर और सोनम कपूर की बहन रिया कपूर ने किया था. उस वक्त चर्चाएं गर्म हुई थी कि फिल्म के कई दृश्यों को रिया व सोनम ने अपने हिसाब से पुनः फिल्माने पर निर्देशक को मजबूर किया. एडीटिंग में कई सीन इधर उधर किए गए. वगैरह वगैरह..मगर उस वक्त फिल्म की निर्देशक राजश्री ओझा चुप थी. उन्होंने इन खबरों को सिरे से झुठला दिया था.

पर अब पूरे छह वर्ष बाद फिल्म ‘आएशा’ की निर्देशक राजश्री ओझा ने मुंह खोला है. राजश्री ओझा का दावा है कि जो फिल्म रिलीज हुई थी, उसमें निर्देशक के तौर पर उनका नाम जरूर था, मगर हकीकत में यह वह फिल्म नहीं थी, जिसकी कल्पना उन्होंने की थी. राजश्री ओझा कहती हैं-‘‘यह वह फिल्म नहीं थी, जिसे मैंने विजन किया था. यह वह फिल्म नहीं थी, जिसे वास्तव में मैंने बनाया था. इस फिल्म के साथ  मेरी मर्जी के खिलाफ बहुत से बदलाव किए गए.’’

हो सकता है कि राजश्री ओझा का यह दावा एकदम सही हो. मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्हे इस सच को बयां करने में छह वर्ष का समय क्यों लग गया?

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