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गृह बाधाओं को दूर करने के लिए हुई 10 लाख रुपए की ठगी

ऐसा प्रतीत होता है मानो हम ठगों के एक ऐसे गिरोह के आसपास सांसे ले रहे हैं जो हमें कभी भी किसी भी तरह ठगने के लिए तैयार बैठा है. अब यह तो हमारा समय है या फिर हमारी समझदारी जो हम ठगी से अभी तक बचे हुए हैं.

यह कि अगर हम ठगी से बचना चाहते हैं तो हमें सतत अपनी आंख, कान‌ को खुला रखना होगा, थोड़ा सा भी लालच और लापरवाही हमें इन ठगों का शिकार बना सकती है. दरअसल, सोशल मीडिया आ जाने के बाद ऐसा प्रतीत होता था कि आम लोगों में जागरूकता पैदा होगी और ठगों की शामत आ जाएगी. मगर ऐसा नहीं हुआ है बल्कि ठगी की घटनाएं और भी ज्यादा होने लगी हैं.

अंधविश्वास की चपेट में

हाल ही में छत्तीसगढ़ में एक शख्स को बड़े ही अनोखे अंदाज में ठगा गया, जिस पर कोई प्रयोगधर्मी निर्माता फिल्म भी बना सकता है. हुआ यह कि, ‘घर में भूतप्रेत बाधा है’ कह कर एकदो नहीं, पूरे 10 लाख रुपए का चूना लगा दिया गया.

झूठी घटनाएं नीचे प्रस्तुत हैं –

प्रथम घटना- नोटों को दोगुना करने का लालच दे कर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक महिला को ठगी का शिकार बनाया गया. आखिरकार ठगी करने वाले को पुलिस ने जेल भेज दिया.
दूसरी घटना- राजस्थान के जयपुर में सोना दोगुना करने का झांसा दे कर युवती को ठगी का शिकार बनाया गया.
तीसरी घटना- झारखंड के रांची में, ‘तुम्हारे घर के नीचे सोना, चांदी, हीरे मोती हैं’ कह कर ठगी का शिकार बनाया गया.
ऐसी ही हमारे आसपास चेहरे और नाम बदलकर ठगी की घटनाएं घटित हो रही हैं. इन्हें अगर हम ध्यान से देखें तो स्वयं बच सकते हैं और दूसरों को भी अगाह कर सकते हैं.

10 लाख रुपए की ठगी

छत्तीसगढ़ के अकलतरा में पुलिस द्वारा कथित तौर पर ‘गृहबाधा’ दूर करने के नाम से 10 लाख रुपए की ठगी करने वाले आरोपी की गिरफ्तारी की गई है. आरोपी ने अपने साथियों के साथ मिल कर ग्रहदशा दूर करने का झांसा दे 10 लाख रुपए और मोबाइल की ठगी कर ली.

मामला छत्तीसगढ़ के जिला चांपा जांजगीर के विकासखंड अकलतरा थाना क्षेत्र का है. अकलतरा थाना क्षेत्र के एक गांव कोटमीसोनार निवासी आनंद प्रकाश मिरी से 10 लाख रुपए मोबाइल की ठगी की गई थी. कुछ घरेलू समस्याओं के चलते आनंद प्रसाद मिरी परेशान थे. उन्हें कुरमा निवासी कुमार पाटले ने तंत्रमंत्र से समस्या का समाधान होने का झांसा दिया. उस ने कहा, ‘बाहर से पंहुचे हुए पंडित बुला कर ग्रहों को शांत करवाना होगा जिस से विघ्नबाधा दूर होगी.’

और आखिर कुमार पाटले ने विनोद कुमार सूर्यवंशी और जगदीश प्रसाद लहरे ऊर्फ कल्लू को तांत्रिक बना कर आनंद मिरी से मिलवाया.

आनंद मिरी से फर्जी तांत्रिकों ने 10 लाख रुपए अनुष्ठान में लगने की बात कही और अनुष्ठान के दिन 10 लाख रुपए लाने का झांसा दिया. जब आनंद मिरी किसी तरह 10 लाख रुपए ले कर पहुंचे तो फर्जी बाबाओं व कुमार पाटले ने उन्हें अनुष्ठान से पहले गंगाजल पीने को दिया, जिस को पीने से आनंद मिरी बेहोश हो गए. बाद में ठग गैंग 10 लाख रुपए और मोबाइल ले कर फरार हो गया.
प्रकरण में अकलतरा थाने में धोखाधड़ी व आपराधिक षड्यंत्र का अपराध दर्ज कर विनोद कुमार सूर्यवंशी उर्फ विक्रम और जगदीश लहरे ऊर्फ कल्लू को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, जबकि आरोपी अमित कुमार पाटले साकिन कुरमा फरार हो गया था.

पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला के निर्देश पर अकलतरा थाना प्रभारी दिनेश कुमार यादव ने आरोपी की पतासाजी कर उसे गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने बताया, ‘अब छत्तीसगढ़ शिक्षा से पिछड़ा हुआ अंचल‌ नहीं है मगर इस सब के बावजूद यहां ठगी की घटनाएं भूतप्रेत और बलि के घटनाक्रम प्रकाश में आते रहती हैं.’ दरअसल, छत्तीसगढ़ में वर्तमान में भी शिक्षा और जागरूकता के प्रचारप्रसार की महती आवश्यकता है.

गर्भ रखने या गिराने का फैसला औरत का होना चाहिए

देश में कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब अखबार के किसी पन्ने पर औरतों या मासूम बच्चियों से बलात्कार की कोई खबर न छपी हो. दुधमुंही बच्ची से ले कर नाबालिग लड़की या औरत को अकेला पाते ही मर्द की कामपिपासा जाग उठती है और वह वहशी दरिंदे का रूप धर कर उस पर टूट पड़ता है.

अकेली और असहाय स्त्री यदि पुरुष के सामने हो तो फिर धर्म, जाति, संप्रदाय, ऊंचनीच, छुआछूत यानी मनुवाद के सारे नियम गौण हो जाते हैं, दिखाई देता है तो बस स्त्री का जिस्म. फिर चाहे वह 3 साल की अबोध बच्ची हो, 30 साल की जवान औरत या 70 साल की बुजुर्ग महिला. हवस के अंधे पुरुष को उस की उम्र, उस की जात या चमड़ी के रंग से कोई मतलब नहीं होता. उस वक्त उस का सारा ज्ञान, सारा धर्म और सारे संस्कार एक छिद्र पर केंद्रित हो जाते हैं.

भारत में प्रतिदिन औसतन 86 बलात्कार के मामले और प्रति घंटे महिलाओं के खिलाफ 49 अपराध के मामले दर्ज किए जाते हैं. स्त्री के प्रति यह अपराध उन के घरों में, महल्लों में, स्कूलों में, कालेजों में, खेतों में, खलिहानों में, सड़कों पर, ट्रेनों में, होटलों में, रिसोर्ट में, औफिसों में कहीं भी हो रहे हैं. बलात्कार करने वाले उस के घर के पुरुष हैं, महल्ले के दबंग हैं, रिश्तेदार हैं, दोस्त हैं, टीचर हैं, साथ काम करने वाले हैं, बौस हैं, चपरासी हैं, पुलिसकर्मी हैं और अनेक अनजान लोग हैं.

बलात्कार की घटनाओं के बाद अनेक स्त्रियां गर्भवती हो जाती हैं. नाबालिग लड़कियों को तो कई बार मालूम ही नहीं पड़ता कि वे गर्भवती हो गई हैं. कई बच्चियां डर के मारे या धमकाए जाने के कारण किसी को बताती ही नहीं हैं कि उन का रेप हुआ या हो रहा है. उन के मांबाप को इस का पता तब चलता है जब गर्भ के कारण उन का पेट निकलने लगता है.

स्कूलकालेज जाने वाली अनेक लड़कियां जो बलात्कार के बाद गर्भवती हो जाती हैं, अकसर अपनी माओं या सहेली के साथ प्राइवेट क्लिनिक्स में लेडी डाक्टर के चक्कर लगाती दिखती हैं कि किसी तरह इस अनचाहे गर्भ से लड़की को छुटकारा मिल जाए और समाज में परिवार की इज्जत बची रहे. भारत के अनाथाश्रमों में लाखों की संख्या में ऐसे नवजात शिशु पल रहे हैं जिन को पैदा कर के मरने के लिए सड़कों पर, कूड़े के ढेर पर, नालियों में, या गटर में फेंक दिया गया. क्यों? क्योंकि समय पर गर्भवती अपना गर्भ गिराने में नाकाम रही और मजबूरन उसे अनचाहे बच्चे को जन्म देना पड़ा.

कानूनी जटिलता बड़ा कारण

गौरतलब है कि भारत में अबौर्शन यानी गर्भपात कराने को ले कर कानून काफी सख्त है. यहां 6 माह यानी 24 सप्ताह से ज्यादा के गर्भ को गिराने पर रोक है. मैडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैगनैंसी एक्ट के मौजूदा प्रावधान के अनुसार, 24 सप्ताह तक के गर्भ को ही निष्क्रिय करने का प्रावधान है.

विवाहित महिलाओं के साथ रेप सर्वाइवर, दिव्यांग महिलाएं और नाबालिग किशोरियों पर यह प्रावधान लागू होता है. लेकिन हाल ही में देश के सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा मामला आया जिस में 30 सप्ताह का गर्भ गिराने की मंजूरी कोर्ट ने दी है.

22 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने 30 सप्ताह के गर्भ का अबौर्शन कराने का आदेश संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दी गई शक्तियों के आधार पर दिया है. अनुच्छेद 142(1) के तहत कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उस के समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उस के अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा.

आखिर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल क्यों किया? और क्या अब इस फैसले को कानून नहीं मान लेना चाहिए? जबकि देश में ऐसी अनेक महिलाएं और कम उम्र की लड़कियां हैं जो बच्चा नहीं चाहती हैं मगर मजबूरन या अनचाहे ही उन्हें बच्चे को जन्म देना पड़ता है.

गर्भ पर किस का हक

बलात्कार पीड़िता कभी भी अनचाहे बच्चे को पैदा नहीं करना चाहती क्योंकि एक तरफ समाज में जहां उस की और उस के परिवार की इज्जत खत्म हो जाती है, लोग तरहतरह के ताने दे कर उस का जीवन मुश्किल कर देते हैं, वहीं ऐसी लड़की की शादी भी नहीं होती है. एक अनचाहे बच्चे की जिम्मेदारी उस को ताउम्र उठाने के लिए बाध्य होना पड़ता है और इस में उस की मदद कोई नहीं करता. इन तमाम वजहों से कोई लड़की ऐसा बच्चा पैदा नहीं करना चाहती है. लेकिन कई बार फैसला लेने में काफी वक़्त निकल जाता है. कई बार ऐसा डाक्टर नहीं मिलता जो उस को इस अनचाहे गर्भ से मुक्ति दे दे और समयसीमा गुजर जाने के बाद वे गर्भावस्था कानून का हवाला दे कर ऐसा केस लेते ही नहीं हैं.

अगर कोई लड़की या महिला अनचाहा गर्भ गिराना चाहती है तो इस का फैसला लेने का हक उसे होना चाहिए. शरीर उस का है, भावनाएं उस की हैं, इच्छाअनिच्छा उस की है तो फैसला भी उस का होना चाहिए. डाक्टर को सिर्फ इतना देखने की जरूरत है कि गर्भपात के वक्त स्त्री की सेहत को कोई नुकसान न पहुंचे.

आखिर सुप्रीम कोर्ट ने भी गर्भावस्था कानूनों को दरकिनार कर लड़की की पारिवारिक और सामाजिक स्थिति को समझते हुए गर्भपात का आदेश दिया ही. आइए पहले जानें कि 30 सप्ताह के भ्रूण को गिराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने किन परिस्थितियों में दिया.

सुप्रीम कोर्ट के सामने एक 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता का मामला आया जिस में उस ने अपने 30 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत मांगी. इस से पहले यह बच्ची अपनी मांग ले कर बौम्बे हाईकोर्ट गई थी मगर हाईकोर्ट ने गर्भ गिराने की मंजूरी नहीं दी.

उम्मीद जगाते फैसले

गौरतलब है कि इस मामले में पीड़िता की ओर से 20 मार्च, 2024 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी. चौंकाने वाली बात यह है कि तब तक पीड़िता को गर्भ धारण किए हुए 24 सप्ताह से ज्यादा का वक्त हो चुका था. पुलिस ने धारा 376 के साथ ही पोक्‍सो एक्‍ट के तहत मामला दर्ज किया था. उस के बाद हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो उस ने गर्भ गिराने की मंजूरी नहीं दी. मगर सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत ऐक्शन लिया और मैडिकल बोर्ड का गठन कर बच्ची को उस की पीड़ा से मुक्ति का रास्ता साफ किया.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर लड़की को गर्भ गिराने की मंजूरी दे दी. यही नहीं, कोर्ट ने डाक्टरों के एक्सपर्ट पैनल के नेतृत्व में पीड़िता की प्रैगनैंसी को खत्म करने का निर्देश दिया.

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने पीड़िता की ओर से तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग को ले कर भेजे गए एक ईमेल पर गौर किया. यह ईमेल जस्टिस चंद्रचूड़ को रात में मिला था और उन्होंने तत्काल सुनवाई के लिए अगले ही दिन शाम करीब साढ़े 4 बजे कार्यवाही शुरू की. अतिरिक्त सौलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुईं.

पीठ ने मुंबई के सायन अस्पताल से पीड़िता की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति के बारे में रिपोर्ट मांगी. पीठ ने कहा कि अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक एक मैडिकल बोर्ड का गठन करेंगे और इस की रिपोर्ट सुनवाई की अगली तारीख 22 अप्रैल को अदालत के समक्ष रखी जाएगी. 22 अप्रैल को जब रिपोर्ट कोर्ट के पटल पर आई, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मैडिकल बोर्ड की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए नाबालिग रेप पीड़िता को 30 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दे दी.

इस पूरी प्रक्रिया में आने वाला खर्च सरकार को वहन करना होगा. मैडिकल बोर्ड ने अपनी सिफारिश में कहा था कि नाबालिग की मरजी के विपरीत जा कर प्रैगनैंसी को बरकरार रखा जाता है तो मानसिक के साथ शारीरिक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ सकता है.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया. सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के सायन स्थित लोकमान्य तिलक महानगरपालिका सर्वसाधारण रुग्णालय एवं वैद्यकीय महाविद्यालय (एलटीएमजीएच) के डीन को निर्देश दिया कि वे नाबालिग बच्ची के गर्भपात के लिए चिकित्सकों के दल का तत्काल गठन करें.

यदि सुप्रीम कोर्ट यह कदम न उठाती तो हो सकता था कि 3 महीने बाद फिर एक अनचाहा बच्चा शायद किसी नाली या कूड़ेघर से उठा कर किसी अनाथाश्रम में पहुंचाया जाता. हो सकता था कि 14 साल की वह नाबालिग बच्ची न चाहते हुए भी उस बच्चे को जन्म देती और परिवार व समाज के तानों और नफरतों को झेलते हुए उस बच्चे को पालने के लिए अपना पूरा जीवन नष्ट करती. मगर कोर्ट के फैसले ने उस का जीवन बरबाद होने से बचा लिया. मगर सोचना चाहिए कि ऐसे कितने केस कोर्ट के सामने आते हैं?

अधिकांश मामलों में ऐसे अनचाहे बच्चे पैदा होते हैं और फिर मरने के लिए फेंक दिए जाते हैं. यदि गर्भ गिराने का फैसला सिर्फ उसे धारण करने वाली की इच्छा पर निहित हो तो डाक्टर भी गर्भपात से हिचकिचाएंगे नहीं. अभी तो हाल यह है कि जैसे ही डाक्टर को पता चलता है कि लड़की शादीशुदा नहीं है बल्कि बलात्कार का शिकार होने पर गर्भवती हुई है वैसे ही पुलिस केस की बात कह गर्भपात से इनकार कर देते हैं. इस के बाद अनचाहे गर्भ को ढोने और पैदा करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है.

Mother’s Day 2024 – बेटी : मां अपनी पोती के साथ कैसा व्यवहार कर रही थी?

सीमा को चुभने लगा था मां का बातबात पर उस की तारीफ करना और टिन्नी को उस का उदाहरण देदे कर घुङकना. लेकिन अभी भी बीते वक्त से चिपकी मां आज और कल में फर्क नहीं करना चाहती थीं. जब यही अंतर सीमा ने मां को समझाय तो वह हतप्रभ रह गईं.

तेज कदमों से अपूर्व को घर में दाखिल होते देख सीमा सोचने लगी कि आज जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि जब भी कोई नई सूचना अपूर्व को मिलती, अपनेआप ही उन की साधारण चाल में तेजी आ जाती.
सीमा को अपूर्व की यह सरलता बहुत भाती. अपूर्व के घर में दाखिल होने से पहले ही सीमा ने दरवाजा खोल दिया. अपूर्व ने आश्चर्य से सीमा को देखा और पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं आ गया हूं?’’

‘‘यह कहिए कि आया ही नहीं हूं, एक अच्छी खबर भी साथ में लाया हूं, अपूर्व के चेहरे को देख कर सीमा बोली.’’

‘‘तुम्हें तो जासूसी विभाग में होना चाहिए था,’’ अपूर्व हंस कर बोले.

‘‘जल्दी से बताइए, क्या खुशखबरी लाए हैं,’’ सीमा चहकी.

‘‘चाय की चुसकी के साथ बताऊंगा,’’ अपूर्व सीमा के धैर्य की परीक्षा लेते हुए बोले.

‘‘अभी हाजिर है,’’ कह कर सीमा रसोई में गई और 2 प्याले चाय बना कर ले आई. बोली, ‘‘अब बताओ.’’

‘‘मैडम, अपना बिस्तर बांधने की तैयारी कर लो. तुम्हारा बहुत अच्छे शहर में तबादला हुआ है, वह भी प्रोमोशन के साथ,’’ अपूर्व खुश हो कर बोले.

‘‘सच, कब आया और्डर? मुझे तो कोई सूचना नहीं मिली.’’

‘‘हेड औफिस में पता लगाया है, मैडम. अब तुम अधिकारी बन गई हो.’’

‘‘जगह का नाम तो बताओ, तभी तो सोचूंगी कि प्रोमोशन लूं या नहीं,’’ सीमा उत्सुक हो कर बोली.

‘‘जगह का नाम सुनते ही खुशी से उछल पड़ोगी,’’ अपूर्व सीमा को छेड़ते हुए बोले, ‘‘इस छोटे से कसबे को छोड़ कर आप मायके जा रही हैं.’’

शहर का नाम सुनते ही सीमा एमदम से खामोश हो गई. सीमा को चुप देख कर अपूर्व बोले, ‘‘क्या बात है, सीमा. कानपुर का नाम सुनते ही तुम गंभीर हो गईं. औरतें तो मायके का नाम सुनते ही सातसमंदर पार जाने के लिए तैयार हो जाती हैं. एक तुम हो.’’
अपूर्व की बात बीच में ही काटते हुए सीमा बोली, ‘‘ऐसी बात नहीं है. मां का ध्यान आने पर मैं उन्हीं के बारे में सोचने लगी थी.’’

सीमा आश्वस्त थी कि अपूर्व की सरलता उस के झूठ को नहीं पकड़ सकेगी. बातों का रुख मोड़ते हुए सीमा बोली, ‘‘पहले लैटर तो आने दीजिए. इस बारे में तभी सोचेंगे. चलो, अभी कहीं घूम आएं.’’

बिस्तर पर लेटते ही सीमा के विचार मायके के इर्दगिर्द घूमने लगे. हर तरह से संपन्न थे मायके वाले. मांबाप, भैयाभाभी और उन के बच्चे, सभी तो थे वहां. जब कभी सीमा मायके जाती, सभी बड़ी गरमजोशी से उस का स्वागत करते. खासकर मां का चेहरा तो खुशी और उत्साह से चमकने लगता. मां की गरदन गर्व से तन जाती. इसे केवल सीमा ही नहीं घर के सभी सदस्य महसूस करते. नन्हा बिट्टू तो कह भी देता, “बूआ, आप के आने से दादी का खून बढ़ जाता है. अब तो हर बात में आप की ही तारीफ होगी, कितने मजे हैं आप के.”

टिन्नी तो बूआ के आने पर अम्मां के कमरे में जाना ही छोड़ देती. अम्मां की झिड़कियों से परेशान हो कर बड़ी कातर नजर से बूआ को देखती. 10 वर्ष की टिन्नी को अम्मां दुनियादारी के बड़ेबड़े पाठ समझाने की कोशिश करतीं. चंचल और मासूम टिन्नी दुनियादारी से बेखबर अपने में ही मस्त रहती.

टिन्नी का पढ़ने में ध्यान न देख कर अम्मां उसे डांटती,”देख लेना, बड़े हो कर नाक कटाएगी. इस के लक्षण मुझे अभी से ठीक नहीं लगते. अरे, मेरी बेटी थी, मजाल है कभी पढ़ने से भी जी चुरा ले. जब देखो पढ़ती रहती थी. तभी तो आज ऊंचे ओहदे पर नौकरी कर रही है.”

टिन्नी चुपचाप किताब ले कर पढ़ने का बहाना करने लगती पर उस का मन तो कहीं दूर अपने साथियों के साथ कल्पना की ऊंची उड़ानें भर रहा होता.

मां की यह बात सच ही थी. सीमा बचपन से ही पढ़नेलिखने, सिलाईबुनाई और घर के कामों में रूचि लेती थी. जो भी उस से एक बार मिलता उस के गुणों से अवश्य प्रभावित होता. सीमा को इस का श्रेय देने के बजाय मां इसे अपनी नसीहत का परिणाम समझतीं.

पोतेपोतियों को उछलतेकूदते, हंसतेखेलते देख कर मां के तनमन में आग लग जाती और वह उन के आगे ‘बेटीपुराण’ खोल कर बैठ जातीं. परिवार के सभी लोग मां के व्यवहार के अभ्यस्त हो गए थे. सीमा का बातबात में अपनी तारीफ सुन कर अटपटा लगता. वह दबी जबान में मां को कभीकभार समझाने का प्रयत्न भी करती, “मां, तुम क्यों बेवजह टिन्नी को डांटती हो. अभी वह छोटी है. जमाना बदल रहा है. धीरेधीरे समझ जाएगी.”

सीमा की बात अनसुनी कर मां बोलीं, “आग लगे ऐसे जमाने को जिस में लड़कियां ढंग से कपड़े भी नहीं पहनतीं. तू जब छोटी थी मैं तुझे कितने सलीके से रखती थी. एक इस की मां है, उस की बला से, लङकी कैसे भी घूमे.”

सीमा के मन में आया कि वह मां से कह दे कि सीधेसादे पिताजी को दिनरात मेहनत करते हुए देख कर और उन की सादगी से प्रभावित हो कर ही उसे सादा जीवन अच्छा लगता था.

पिछले साल गरमियों की छुट्टियों में सीमा मां से मिलने कानपुर आई थी. उन्हीं दिनों बड़े भाईसाहब भी सपरिवार वहां पहले से आए हुए थे. बच्चों के शोरगुल और शरारत से अकसर मां ऊब जातीं. तब वह अपनी सारी खीज टिन्नी पर उतारतीं,”टिन्नी, इधर आ. तुझे कितनी बार समझाया कि फालतू बातों में समय बरबाद मत कर. जब देखो, भाइयों के बीच घुसी रहती है. तू तो लङकी है, कुछ सिलाईकढ़ाई सीख ले. सामने टीवी वाली मेज पर मेजपोश देख रही है, मेरी बेटी ने उसे तब बनाया था जब वह चौथी कक्षा में थी. कितनी तारीफ की थी सब ने उस की और मेरी.”

टिन्नी ने एक उचटती नजर टीवी की मेज पर डाली और बात का उत्तर दिए बिना वहां से चली गई. फिर कई दिन तक उस ने अम्मां के कमरे में झांका भी नहीं.

सामने मेजपोश को देख कर सीमा की आंखों में अपना बचपन साकार हो उठा. कितनी जतन कर के उस ने मां से कपड़ा मंगवाया था. पड़ोस की राधा मौसी के घर मुंबई से रमा दीदी आई हुई थीं, उन्हें कढ़ाई करते देख कर सीमा को भी मेजपोश बनाने का शौक चढ़ा था. 1 हफ्ते बाद कपड़ा मिलने पर कितना खुश हुई थी वह. यह तो दीदी की मेहरबानी थी जिस ने कढ़ाई के धागे उसे दे दिए थे. दीदी का निर्देशन तथा उस की मेहनत व लगन से वाकई मेजपोश खूबसूरत बना था.

सीमा महसूस करती कि मां उसे ले कर हर समय उत्साहित रहती थीं. भाइयों का जिक्र आने पर उन का उत्साह कुछ धीमा पड़ जाता था. ऐसा नहीं था कि भाई योग्य न थे. हां, बेटी की योग्यता के सामने उन का पलड़ा कुछ हलका पड़ जाता, जिस का दोष मां पिताजी के मत्थे देतीं,”बेटों को सही रास्ता पिता ही दिखाते हैं, उन्हें तो कभी बच्चों पर ध्यान देने की फुरसत ही नहीं थी. मुझे देखो, बेटी की जिम्मेदारी कितने अच्छे ढंग से निभाई, तभी तो वह इतनी लायक बनी है.”

मां ने जीवन में बहुत अभाव देते थे. पिताजी की लिपिक की छोटी सी नौकरी से घर का खर्च चलता था. मां पढ़ीलिखी नहीं थीं फिर भी वह पिताजी के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने की हमेशा कोशिश करतीं. पिताजी देर रात तक ओवरटाइम करते और मां उन के इंतजार में बैठी बुनाई करतीं. बुनाई के रुपए से पिताजी की आय में कुछ रुपए और जुड़ जाते जिसे मां बहुत जतन से खर्च करती थीं.

पिताजी की सादगी, सज्जनता और कार्य के प्रति लगन सीमा को हमेशा प्रभावित करते. उन्हीं से प्रेरित हो कर सीमा ने बचपन में ही कुछ बनने की ठान ली थी. उस की मेहनत रंग लाई. एक चयनित प्रवक्ता से अपना कैरियर शुरू कर कम उम्र में ही वह बेसिक शिक्षा अधिकारी बन गई थी.

पिताजी का अतीत से विशेष लगाव न था, जबकि मां अपने गुणों को उजागर करने के लिए अतीत की उन सीढ़ियो पर बारबार खड़ी हो जातीं जिन से गुजर कर उन की बेटी को सफलता मिली थी.

आधी रात तक मायके के विचारों में डूबतेउतराते सीमा वापस वर्तमान में लौट आई. उस ने एक नजर अपूर्व पर डाली. वे निश्चिंत हो कर सो रहे थे. अपूर्व के चेहरे पर झलकते भोलेपन को देख कर सीमा का मन भीतर तक भीग गया, ‘मेरे मायके जाने पर कितना खुश है अपूर्व, एक पल को भी उन्होंने यह नहीं सोचा कि वह अकेले कैसे रहेंगे.’ भावनाओं को नियंत्रित कर वह अपूर्व से सट कर सोने का प्रयास करने लगी.

1 हफ्ते के अंदर ही सीमा को प्रोमोशन (पदोन्नति पत्र) मिल गया. पदोन्नति की खुशी के साथ उसे अपूर्व से दूर जाने का दुख भी था. पिता के आदर्शों से प्रभावित सीमा मायके में स्थायी रूप से रहने के लिए राजी नहीं थी.

‘नए शहर में घर का प्रबंध होने में समय लगता ही है,’ यह सोच कर सीमा सरकारी आवास मिलने तक मायके में रहने के लिए राजी हो गई.
सीमा की पदोन्नति और तबादले की खबर अपूर्व ने पहले ही मां और भाई को दे दी. सभी यह जान कर खुश थे. मां की खुशी का तो ठिकाना न था. बेटी की हर सफलता को मां अपनी सफलता जो मानती थीं.

सीमा ने शीघ्र ही कानपुर आ कर अपना कार्यभार संभाल लिया. शाम को घर लौटने पर मां सीमा से बड़ी उत्सुकता से उस के काम के बारे में पूछतीं और दूसरे दिन अपनी चटपटी भाषा में सभी परिजनों को सुनातीं.
मां की इस आदत से सीमा कभी परेशान हो जाती तो कभी उन के झुर्रीदार चेहरे पर अपने अस्तित्व को आज भी बनाए रखने के अथक प्रयास पर सीमा को दया भी आती.
सीमा अकसर मां को समझाने का प्रयास करती कि अब समय बदल गया है और समझदारी इसी में है कि हमें भी समय के हिसाब से अपनेआप को बदल लेना चाहिए.

सीमा को कानपुर आए 2 हफ्ते हो गए थे. इतने ही समय में उस ने महसूस किया कि टिन्नी व बिट्टू उस से दूरी बनाने लगे थे. अम्मां के साथ बूआ को देख कर वे कन्नी काट लेते.

टिन्नी ने घर से बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला. ‘टन्न’ की आवाज सुन कर अम्मां के कान खड़े हो गए. कमरे के अंदर से ही उन्होंने जोर से पुकारा, ‘‘टिन्नी, ओ टिन्नी…’’

‘‘आई अम्मां,’’ बाहर का दरवाजा बंद करते हुए टिन्नी बोली.

‘‘कहां जा रही थी इस समय? जब देखो, इधरउधर बेवजह डोलती फिरती है. हजार बार कहा है कि जब बूआ घर पर रहती हैं तो उन से कुछ सीख लिया कर लेकिन इस की समझ में कोई बात आए तब न.’’

‘‘अभी तो स्कूल से आई हूं. थोड़ी देर खेलने भी नहीं देती हो. जब देखो, पढ़ने के लिए कहती रहती हो,’’ टिन्नी ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘खेल ने ही तो तुझे बरबाद कर रखा है. मेरी बेटी तो स्कूल से आ कर सब से पहले होमवर्क पूरा करती थी. तभी तो…’’

अपना जिक्र रोकने के लिए अम्मां की बात काटते हुए सीमा बोली, ‘‘रहने दो मां, खेल भी तो जरूरी है बच्चों के लिए.’’

‘‘क्या खाक जरूरी है. तू इस की तरह कभी खेलने गई थी, मैं ने तो तुझे खेल में कभी समय बरबाद नहीं करने दिया और हुनर सिखाए तुझे, एक इस की मां है.’’

‘‘बस भी करो मां. अब क्यों बच्चों का मन छोटा करती हो. यही तो उम्र है इन के हंसनेखेलने की,’’ कह कर बहस को वहीं खत्म करते हुए टिन्नी को साथ ले कर मैं दरवाजे के बाद चली गई. अम्मां की हार और अपनी जीत पर टिन्नी की आंखों में चमक उभर आई. बूआ का हाथ पकड़ कर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘बूआ, आप बचपन में कोई गलत काम नहीं करती थीं?’’

टिन्नी की बात सुन कर सीमा को हंसी आ गई. वह बालमन को शांत करते हुए बोली, ‘‘बहुत सारी शैतानियां करती थी. अपने पापा से पूछना, वे छुटपन में मुझे कितना मारते और डांटते थे.’’

कुछ दिन बाद ही टिन्नी की छमाही परीक्षा आरंभ होने वाली थी. अम्मां की सख्त हिदायत और निगरानी के बाद भी टिन्नी नजर बचा कर खेलने भाग जाती. समय मिलने पर सीमा भी टिन्नी को पढ़ने के लिए बैठा लेती. बेटी और पोती को पढ़तेपढ़ाते देख अम्मां को असीम सुख मिलता. वह घंटों इसी सुख में डूबी रहना चाहतीं पर टिन्नी की चंचलता अम्मां को इस सुख से महरूम कर देती.

छुट्टी का दिन था. सीमा ने धूप में टिन्नी को पढ़ने के लिए बैठा रखा था. टिन्नी का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था. दूर बैठी अम्मां बड़े ध्यान से टिन्नी की हरकतों को देख रही थीं. किताब बंद कर के टिन्नी बूआ से खेलने की इजाजत ले कर उठ गई.

अम्मां चारपाई से उठ कर सीमा के पास आईं और टिन्नी के कान उमेठते हुए बोलीं, ‘‘तू ने इसे इतनी जल्दी खेलने की इजाजत क्यों दी? थोड़ी देर और इसे बैठा कर पढ़ाती. मेरी बेटी तो देर तक बैठ कर पढ़ती रहती थी. उसे तो किताब बंद कर के लिए कहना पड़ता था. एक यह है.’’

टिन्नी की आंखों में आंसू टपकने लगे. उस ने बड़ी कातरता से बूआ को देखा. टिन्नी के गोरे गालों पर फिसलते आंसू और सिसकियों को देख कर सीमा से न रहा गया. मां की बात बीच में ही काट कर बोली, ‘‘मां, तुम बातबात में मेरा उदाहरण देना छोड़ दो. आज के और 30 साल पहले के जमाने में जमीनआसमान का अंतर है.’’

‘‘मुझे तो कोई अंतर नजर नहीं आता. बच्चे तब भी होते थे, आज भी होते हैं,’’ अम्मां चट से बोलीं.

‘‘बच्चों में तो अंतर नहीं आया, उन की भावनाओं और समझ में अंतर आया है. हम में विरोध करने का साहस नहीं था तभी सबकुछ सह लेते थे,’’ सीमा बोली.

‘‘विरोध कहां से करते. मैं ने तो विरोध करने का कभी मौका ही नहीं दिया तुम्हें,’’ मां सफाई देते हुए बोलीं.

‘‘विरोध मौके का मोहताज नहीं होता, मां. साहस की कमी ऐसे अवसर पैदा कर देती है.’’

‘‘तुझे तो मैं ने बहुत साहसी बनाया. तभी तो तू आज इस मुकाम तक पहुंची है,’’ अम्मां अपनी बात ऊपर रखने के लिए बोलीं.

सीमा चेहरे पर फीकी सी हंसी ला कर बोली, ‘‘बचपन की कई यादें आज भी जेहन में चुभती हैं, मां. बड़े भाइयों को भी तो आप ने ही पालापोसा है. कौन सी सुविधा उन्हें नहीं दी गई थी. मुझ से ज्यादा ध्यान तुम्हारा उन पर था. फिर वे तुम्हारे अनुरूप सही मुकाम तक क्यों नहीं पहुंच सके? उन में लगन की कमी थी तभी वे पिछड़ गए. मैं ने विरोध के बजाय लगन को अपना आदर्श बनाया, जिस का फल आज सामने है.’’

मां को चुप देख कर एक पल को सीमा रूकी फिर बोली, ‘‘दरअसल, मां, जो कुछ तुम मेरे लिए न कर सकीं वह सब कुछ अब टिन्नी के माध्यम से पूरा करने की कोशिश करती हो. अपनी दबी भावनाओं को भूल जाओ मां और आज के साथ टिन्नी को स्वीकार कर लो. बारबार उस में मेरा बचनन क्यों ढूंढ़ती हो? इतना ही क्या कम है कि मुझे तुम ने उस जमाने में पढ़ने का अवसर दिया.’’

मां का मुंह खुला का खुला रह गया. उन की बूढ़ी आंखें चेतनाशून्य सी हो गईं. मां का पूरा व्यक्तित्व इस वक्त सीमा को बड़ा निरीह सा लगा. वर्षों से दिल में दबे अरमान इस तरीके से जबान पर आ जाएंगे यह तो सीमा ने कभी सोचा भी न था.

सामने बैठी टिन्नी आंसू पोंछ कर मुसकराने लगी थी. उस की आंखों की चमक देख कर सीमा की ग्लानि कम होने लगी. मां को मनाने के लिए मां का हाथ अपने हाथों में ले कर उसे सहलाते हुए बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारी ही बेटी हूं. टिन्नी को भी अपनी मां की बेटी बनने का मौका दे दो, मां.’’

लेखिका-डा के रानी

सिंदूर विच्छेद: अधीरा पर शक करना कितना भारी पड़ा

लेखिका- यामिनी नयन गुप्ता

मैं अपनी मैरिड लाइफ से परेशान हूं ,मेरी पत्नी चली गई है, मैं उसे वापस लाना चाहता हूं?

सवाल 

मेरी उम्र 33 साल है, शादीशुदा हूं. मेरी मैरिड लाइफ अच्छीखासी चल रही थी लेकिन अचानक सब खराब हो गया. मेरी पत्नी को लगने लगा कि मेरा औफिस में अफेयर चल रहा है जबकि ऐसा कुछ नहीं था. मैं ने उस की गलतफहमी दूर करने की बहुत कोशिश की. वह नहीं मानी और मायके चली गई. मैं बहुत दुखी हूं. फोन करता हूं तो वह फोन नहीं उठाती. उस का शक दूर करने के लिए मैं ने जौब भी चेंज कर ली है. मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूं. क्या करूं कि वह वापस आ जाए?

जवाब

आमतौर पर जब रिश्ते टूटते हैं तो संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है. आप अपने रिश्ते को बनाना चाहते हैं, यह अच्छी बात है.

आप की पत्नी मायके चली गई क्योंकि उन्हें आप पर शक था पर अब आप ने उन का शक दूर करने के लिए जौब भी चेंज कर ली है, यह अच्छा किया. अब आप उन्हें पूरी तरह से यकीन दिलाएं कि आप का किसी के साथ कोई अफेयर नहीं था. आप की जिंदगी में सिर्फ वह थी और वही रहेगी.

उसे पूरी तरह से विश्वास में लें और वादा करें कि उन्हें आप की जो भी बात बुरी लगी है, वैसा दोबारा कभी नहीं होगा. आप उस के बिना नहीं रह सकते, इत्यादि बातों से अपने वादे पर खरे उतरने का भरोसा दिलाएं.

यदि आप की पार्टनर आप को माफ कर देती है तो आप को चाहिए कि आप अपने पूर्वाग्रह से बाहर आएं और अपने संबंध को जीवंत बनाने के लिए हर संभव प्रयास करें. रिश्ते को जोड़ने के लिए जरूरी है कि आप अपने साथी के साथ कहीं अकेले में समय बिताएं, जहां आप दोनों गलतफहमियों व गलतियों को भुला कर सिरे से रिश्ते की शुरुआत कर सकें.

प्राइमरी लैवल पर ट्यूशन सही या गलत

दो दशक पहले तक भारत में स्कूल की पढ़ाई के साथ अतिरिक्त ट्यूशन की आवश्यकता बच्चों को नहीं होती थी लेकिन आज बच्चा स्कूल में दाखिले के साथ ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगता है. शिक्षण संस्थानों की नाकामयाबी और निकम्मापन न सिर्फ पेरैंट्स की जेब पर भारी पड़ रहा है बल्कि बच्चों की सेहत व मानसिक दशा को बिगाड़ भी रहा है. भारत में छोटेबड़े सभी शहरों और अब तो गांवोंकसबों में भी स्कूल की पढ़ाई के बाद बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास दोतीन घंटे बिताना आम है.

हर मातापिता अपने बच्चे को क्लास में अव्वल देखना चाहते हैं. उन की महत्त्वाकांक्षाओं और इच्छाओं का नाजायज दबाव बच्चों के ऊपर बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ टीचर्स, चाहे सरकारी स्कूल के हों या प्राइवेट स्कूल के, को अतिरिक्त पैसे की हवस ने इतना लालची बना दिया है कि वे स्वयं बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने का दबाव बनाते हैं, वरना क्लास में फेल कर देने की धमकी देते हैं. इस तरह वे बच्चों को मानसिक रूप से प्रताडि़त करते रहते हैं. प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने में पैसा खूब है. जितनी एक बच्चे की महीने की स्कूल फीस होती है, लगभग उतना ही पैसा ट्यूशन पढ़ाने वाला टीचर ले लेता है. विषय भी सारे नहीं पढ़ाता. अधिकतर साइंस, गणित और इंग्लिश के ट्यूशन के लिए ही इन के पास बच्चे जाते हैं.

एक पीढ़ी पहले वाली जमात की बात करें तो उस वक्त भी 8वीं या 9वीं कक्षा के बाद ही ट्यूशन की जरूरत पड़ती थी, वह भी उन विषयों में जिन में बच्चा कुछ कमजोर होता था ताकि 10वीं बोर्ड की परीक्षा में पास हो जाए. मगर वर्तमान पीढ़ी तो पहली और दूसरी कक्षा से ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगी है. नन्हेनन्हे बच्चे स्कूल में लंबा समय गुजारने के बाद दोतीन घंटे ट्यूटर के पास भी बिताते हैं. नतीजा, बच्चों के पास खेलनेकूदने का समय ही नहीं बचा है. पूरे वक्त पढ़ाई का बो झ उन पर हावी रहता है. रोहिणी दिल्ली के युवाशक्ति मौडल स्कूल की वाइस प्रिंसिपल दिव्या वत्स इस मामले में कहती हैं,

‘‘जहां तक प्राइमरी लैवल की बात है तो आजकल स्कूलों में बच्चों के लिए पढ़ाई के अलावा भी ढेर सारी ऐसी गतिविधियां कराई जाती हैं, जिस से उन का समग्र विकास हो सके. ऐसी गतिविधियों से उन्हें खेलखेल में सीखने का मौका मिलता है और स्कूल में ही पारिवारिक माहौल का भी एहसास होता है. ‘‘मेरा यह मानना है कि यदि कोई बच्चा क्लास में अपने टीचर को ध्यान से सुनता है और घर पर पढ़ाई की अच्छे से रिविजन करता है तो उसे स्कूल के बाद निजी ट्यूशन क्लास में भेजने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.

‘‘स्कूली टीचर के साथ मातापिता को भी अपने बच्चे में पढ़ने की आदत डालनी चाहिए. इस के अलावा उस में रचनात्मक शौक विकसित करने के साथसाथ परिवार के साथ अच्छा समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.’’ मदर्स प्राइड स्कूल का 6 साल का अंकुर 2 बजे स्कूल से लौटता है. उस की मम्मी स्कूल यूनिफौर्म बदले बिना उस को झटपट खाना खिला कर स्कूल यूनिफौर्म में ही ट्यूशन टीचर के घर भेज देती हैं. दो घंटे वहां पढ़ने व होमवर्क करने के बाद जब अंकुर साढ़े 6 बजे थकामांदा लौटता है तो फिर पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने का न तो टाइम बचता है और न ही ताकत.

आते ही सो जाता है. 10 बजे उस के पापा रात के खाने के लिए उस को जबरदस्ती उठाते हैं. अकसर अंकुर ट्यूशन पढ़ने नहीं जाना चाहता. स्कूल से लौट कर वह अपने हमउम्र बच्चों के साथ घर के सामने वाले पार्क में खेलना चाहता है. कभी टीवी पर अपना मनपसंद कार्टून शो देखना चाहता है, कभी वीडियो गेम खेलना चाहता है, लेकिन मम्मी के आगे उस की एक नहीं चलती है. ट्यूशन क्लास न जाने के लिए अंकुर कभीकभी पेटदर्द का भी बहाना करता है, लेकिन उस की मम्मी गरम पानी से चूरन की गोली खिला कर उसे ट्यूशन के लिए रवाना कर देती है. अंकुर अभी कक्षा 2 में है.

शहर के अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है. उस की स्कूल की फीस 3,000 रुपए महीना है और उस की मां 4,000 रुपए हर महीने ट्यूशन टीचर को देती है, जो उस का सारा होमवर्क और रिवीजन वर्क करवाती है. अंकुर की मां हर वक्त उसे सम झाती है कि उसे क्लास में फर्स्ट आना है. इसी क्लास में ही नहीं, बल्कि आगे भी हर क्लास में फर्स्ट आना है और बड़े हो कर पापा की तरह इंजीनियर बनना है. नन्हा सा बच्चा जो अभी इंजीनियर होने का मतलब भी नहीं सम झता, पढ़ाई के नाम पर उस से उस की सारी आजादी और अधिकार छीन लिए गए हैं. बैडमिंटन रैकेट और बैटबौल डब्बे से बाहर नहीं निकलते. खेलने के लिए उस के पास सिर्फ संडे का आधा दिन होता है. बाकी दिन सुबह से शाम तक वह स्कूल यूनिफौर्म में ही रहता है. वह मन लगा कर पढ़े,

इस के लिए उस की मां चौकलेट, चिप्स, मोमोज, पिज्जा आदि जो वह खाने के लिए मांगता है, सब मंगा कर देती है. यही वजह है कि अंकुर थुलथुल होता जा रहा है. आज कुछ पब्लिक स्कूलों को छोड़ दें तो आमतौर पर स्कूलों में शिक्षा देने का काम बड़े ही चलताऊ तरीके से हो रहा है. गलीगली कुकुरमुत्तों की तरह इंग्लिश स्कूल खुले हुए हैं. अधिकतर प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के पास बुनियादी साधन नहीं हैं. स्टूडैंट्स के अनुपात में टीचर बहुत कम हैं. एक शिक्षक पर कई कक्षाओं की जिम्मेदारी होती है. देखा जाता है कि जो टीचर सुबह नर्सरी क्लास लेती है वही हाफटाइम के बाद 9वीं या 10वीं के बच्चों को पढ़ा रही है.

कम सैलरी, साधनों की कमी और व्यवस्थागत कमियों की वजह से ऐसे शिक्षक अपने दायित्व के प्रति उदासीन रहते हैं. ऊपरी कमाई का बड़ा लालच स्कूलों में टीचर्स बच्चों पर दबाव डालते हैं कि वे उन के घर आ कर उन से ट्यूशन लें. वही शिक्षक, जो कक्षा में गंभीर नहीं होते, प्राइवेट ट्यूशन में बच्चे पर काफी ध्यान देते हैं क्योंकि यहां ऊपरी कमाई का लालच है. अयान शेख कक्षा 8 का छात्र है. वह स्कूल की छुट्टी के बाद हफ्ते में 3 दिन दो घंटे गणित और विज्ञान के ट्यूशन के लिए स्कूल के ही टीचर फ्रेडरिक फैंथम के घर जाता है और 3 दिन दो घंटे इंग्लिश और हिस्ट्रीज्योग्राफी के ट्यूशन के लिए मिसेज कामता कौशल के घर जाता है. उस के पिता हर माह 6 हजार रुपए उस के प्राइवेट ट्यूशन पर खर्च करते हैं और साढ़े 3 हजार रुपए स्कूल की फीस देते हैं. अयान कहता है कि स्कूल में तो ये टीचर्स कुछ पढ़ाते नहीं हैं पर घर पर बहुत अच्छी तरह विषय सम झाते हैं.

अगर स्कूल में ही अच्छी तरह पढ़ा दें तो ट्यूशन की जरूरत न पड़े. अयान की क्लास के अनेक बच्चे इन दोनों टीचर्स के घर जा कर ट्यूशन पढ़ते हैं. सम झ सकते हैं कि ऐसे टीचर्स की ऊपरी कमाई कितनी ज्यादा है. संयुक्त परिवार का टूटना आरंभिक स्तर पर बच्चों को स्कूल के अलावा घर में भी थोड़ेबहुत मार्गदर्शन की जरूरत होती है. लेकिन एकल परिवार में यदि मांबाप दोनों नौकरीपेशा हैं तो उन के पास वक्त ही नहीं है कि दोतीन घंटे बैठ कर वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें. अगर पिता नौकरीपेशा है और मां गृहिणी है और उस की शिक्षा इतनी नहीं है कि वह बच्चे को पढ़ा सके तो भी समस्या उत्पन्न होती है. ट्यूशन कराना स्टेटस सिंबल छोटे बच्चों को ट्यूशन कराना आज स्टेटस सिंबल भी बन गया है.

किस का बच्चा कौन से महंगे स्कूल में पढ़ रहा है और किस महंगे ट्यूटर से ट्यूशन ले रहा है, इस को बताने में लोगों को बहुत गर्व महसूस होता है. कभीकभी आवश्यकता न होने पर भी धनाढ्य वर्ग अपने बच्चों की ट्यूशन लगा देता है. ‘मिसेज मेहरा अगर अपने बेटे को मीनाक्षी मैडम के ट्यूशन क्लास में पढ़वा रही हैं तो हमारे पास पैसे की कमी है क्या जो हम अपनी बेटी को उन की ट्यूशन क्लास में नहीं भेज सकते?’ कालोनी और फ्लैट कल्चर में रह रहे लोगों की यह सोच आज नर्सरी के बच्चे को भी ट्यूशन के चक्रव्यूह में फंसा रही है. ट्यूशन लगाना पेरैंट्स के लिए आज एक सामाजिक उपलब्धि लगती है चाहे उन के बच्चे को सब आता हो. काफी बच्चों के मातापिता तो सिर्फ इसलिए ट्यूशन भेजते थे ताकि वे शाम को महल्ले के बच्चों के बीच खेलने न जाएं. अंशिका ने अपनी 7 साल की बेटी की ट्यूशन लगवा दी है,

जबकि वे खुद उस का सारा होमवर्क करवा सकती हैं. अभी तक करवा ही रही थीं. उन से पूछा तो बोलीं, ‘अरे ट्यूशन की जरूरत तो नहीं थी, मैं तो बेटी को खुद पढ़ा लेती हूं, मगर साथ वाली बड़ा टोकती हैं. उन की बेटी भी ट्यूशन जाती है. मैं ने सोचा कि कहीं ताना न देने लगे कि- अरे आप की बेटी ट्यूशन नहीं जाती? उन की बात से ऐसा लगेगा जैसे हम आर्थिक रूप से उन से कमजोर हैं. इसलिए इस की ट्यूशन लगवा दी. कुछ मातापिता की यह हार्दिक इच्छा होती है कि जो वे जीवन में नहीं बन पाए, उन का बच्चा वह अवश्य बने (भले ही उस की उस क्षेत्र में रुचि न हो). ऐसे लोग प्रतिमाह पढ़ने वाले ट्यूशन फीस के अतिरिक्त भार के लिए और अधिक मेहनत कर लेते हैं पर बच्चे को ट्यूशन कराने से पीछे नहीं हटते हैं. द्यमातापिता बच्चों को खुद पढ़ाएं आरिफ एक प्रतिष्ठित स्कूल में बायोलौजी के टीचर हैं.

उन्होंने अपने बेटे के लिए गणित और विज्ञान की ट्यूशन तब लगवाई जब वह 9वीं कक्षा में आया. उस से पहले वे खुद ही उस का होमवर्क करवाते रहे हैं. नर्सरी और केजी के बच्चों को ट्यूशन के लिए भेजे जाने का वे विरोध करते हैं. आरिफ कहते हैं, ‘‘यदि आप स्वयं अपने बच्चों को घर पर पढ़ा सकते हैं तो ट्यूशन टीचर की जरूरत नहीं है और इतने छोटे बच्चों को तो ट्यूशन के लिए भेजना ही नहीं चाहिए. स्कूल में चारपांच घंटे की पढ़ाई उन के लिए पर्याप्त है. बच्चों में आत्मविश्वास जगाने और आत्मनिर्भरता सिखाने की ज्यादा जरूरत होती है. बच्चों का दिमाग इतना सक्रिय होता है कि क्लास में उन्हें जो कुछ भी बताया जाता है उसे शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं. मेरी राय में यदि आप उन्हें घर पर समय दे सकते हैं तो छोटी कक्षा में ट्यूशन के लिए हरगिज न भेजें.’’

आरिफ चूंकि खुद एक टीचर हैं तो वे बच्चों की पढ़ाई के प्रति गंभीरता और लापरवाही को भलीभांति सम झते हैं. वे कहते हैं, ‘‘बच्चे की ग्रहणशक्ति और स्कूल में टीचर्स द्वारा विषय को पढ़ाने के तरीके पर निर्भर करता है कि उस को स्कूल की पढ़ाई के अलावा भी पढ़ाए जाने की आवश्यकता है अथवा नहीं. कुछ बच्चे किसी बात को तेजी से सीख लेते हैं तो कुछ दो या चार बार पढ़ने के बाद ही अध्याय के मूल सिद्धांत को सम झ पाते हैं तो इस का सटीक जवाब है कि यदि बच्चे को हर अध्याय का कौन्सैप्ट सम झ में आ रहा है तो उस को ट्यूशन की कोई आवश्यकता नहीं है.’’

बच्चों को समय दें शेफाली अस्थाना के दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं. शेफाली सरकारी नौकरी में हैं. वे शाम को घर आने के बाद स्वयं दोनों बच्चों को पढ़ाती हैं. छोटे बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास भेजने की बढ़ती रवायत पर उन का कहना है, ‘‘पहले बच्चों की माताएं घर पर रहती थीं, यदि पिता बिजी हुए तो वे बच्चों को पढ़ाती थीं. मैं स्वयं अपने बच्चों को पढ़ाती हूं जबकि मैं नौकरी भी करती हूं. आजकल मातापिता बच्चों को समय नहीं देना चाहते. वे उन के ऊपर पैसा खर्च करने को तैयार हैं पर उन के पास घंटेदोघंटे बैठ कर यह नहीं जानना चाहते कि वे पढ़ाई में कैसे हैं. पहले संयुक्त परिवार होते थे और बच्चे घर के किसी भी सदस्य से पढ़ लिया करते थे. ऐसा अब नहीं है.

‘‘हम भाईबहनों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की मगर कभी किसी से प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ी. हम सब को शाम को पिताजी पढ़ाते थे. अगर वे किसी काम से शहर से बाहर होते थे तो ताऊजी पढ़ाते थे. पहले के पिता अपने बच्चों की तरक्की स्वयं देखते थे क्योंकि उन के पास आज की पीढ़ी की अपेक्षा पैसा कम होता था और वे उसे बरबाद नहीं करना चाहते थे, बल्कि संभाल कर चलते थे. पहले कक्षाओं में शिक्षक भी मन लगा कर पढ़ाते थे और जिन बच्चों को कुछ नहीं सम झ में आता था, वे स्कूल की छुट्टी के बाद उन्हें अतिरिक्त समय दे दिया करते थे. आज के शिक्षकों में यह भावना नहीं है.

वे सीधे ट्यूशन लेने को कहते हैं. मातापिता भी शिक्षक के कोप से बचने के लिए या उस की निगाह में अपने बच्चे का महत्त्व बढ़ाने के लिए उन से ही ट्यूशन लगवा देते हैं. ‘‘आज का समय प्रतिस्पर्धा का है, इसलिए हर मातापिता चाहते हैं कि उन का बच्चा अधिक से अधिक अंक लाए और इसीलिए वे छोटी कक्षा से ही उस को ट्यूशन के लिए भेजना शुरू कर देते हैं. जो लोग संयुक्त परिवार से अलग हो चुके हैं और पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो उन के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं रह गया है. उन का घर और बच्चे सब नौकरों और प्राइवेट ट्यूटर के सहारे रहते हैं.’’

खुशियों की सौगात : सरोज को पलाश के फूल किसने दिए थें?

होली वाले दिन सुबह आंख खुली और बिस्तर से उतरने के लिए सरोज ने पैर नीचे रखे तो हैरान रह गई. पलाश के ढेर सारे फूल जमीन पर बिछे हुए थे. मन को लुभाते रंगीले फूलों ने सारी फिजा को रंगीन बना दिया और यही रंग सुमन के जीवन में बिखेर गया. ट्रेन की खिड़की से बाहर देखतेदेखते मन विभोर सा हो रहा था. पूरा जंगल पलाश के फूलों से लदालदा चंपई रंग में रंगा हुआ लग रहा था. बचपन में जब भी होली नजदीक आती थी तो सब बड़ों को कहते सुनते थे कि जंगल से पलाश के फूल लाएंगे और उन से होली के रंग तैयार करेंगे.

सच में ये रंग हैं ही इतने रंगीले, देख कर मन को खूब लुभाते हैं और सारी फिजा को रंगीन कर देते हैं. मेरे जीवन में भी यही रंग समाया है जब से सुमेर की प्रीत मन में जगी है. मन तो नहीं था उन्हें छोड़ कर आने को और वे भी तो कैसे तड़प कर बोले थे- ‘मत जाओ सरोज, मैं इतने दिन तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा.’ पर पगफेरी के लिए भी न आती तो लोग क्या कहते और मम्मीपापा का भी तो मन करता होगा बिटिया से मिलने का. ये रिश्ते भी कैसे पल में बदल जाते हैं कि जिस से कभी जानपहचान भी न थी, आज वही मन का मीत है, सब से प्यारा है, दिल का सहारा है. मु झे तो पहली ही नजर में सुमेर भा गए थे.

देखने दिखाने की रस्मों के बीच कब दिल मेरे पहलू से निकल कर उन का बन बैठा, पता ही नहीं चला. प्रीत ने अनछुए मन को ऐसा छुआ कि अब कुछ नहीं भाता था. सारे वक्त खोईखाई सी रहने लगी थी. मन उन्हीं की यादों में खोया रहता. पिछले साल यही तो दिन थे जब होली नजदीक आ रही थी. सगाई के बंधन में बंधे हम दोनों पूरी तरह एकदूसरे की प्रीत के रंग से सराबोर थे. सुमेर रोज शाम को औफिस से लौटते ही मु झे फोन करते और लगभग एकडेढ़ घंटे तक हम दोनों एकदूसरे की बातों में खो जाते.

उस रोज शाम होते ही मु झे उन की याद सताने लगी पर उन का फोन नहीं आया और जब मैं ने फोन किया तो कवरेज क्षेत्र से बाहर बता रहा था. मन की बेचैनी और अधीरता बढ़ती जा रही थी और कुछ आशंकाएं भी होने लगीं. जो हमें सब से प्यारा होता है उस के बारे में अकसर हम डरने लगते हैं, अपनी जान से ज्यादा उस की फिक्र करने लगते हैं. मन घबरा कर उलटासीधा सोच रहा था. ‘न जाने क्या हुआ होगा, फोन क्यों नहीं लग रहा, कहीं कुछ… नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने अपने इस विचार को झटक दिया और फिर से कोशिश की पर अब भी उन का फोन नहीं लगा. जब बेचैनी हद से ज्यादा बढ़ गई तो मैं ने उस के परिवार की सब से करीबी दोस्त यानी उस की भाभी और मेरी प्यारी जेठानी को फोन करना उचित समझा क्योंकि वही हमारी हमउम्र और राजदार थीं.

उन के बारे में सुमेर अकसर बताया करता था. सो, मैं ने उन्हें फोन किया. मेरी आवाज सुन कर ही वे मेरी परेशानी भांप गईं और हंसती हुई बोलीं, ‘क्या हुआ देवरानीजी, आज देवरजी से बात नहीं हुई क्या जो इतनी बेचैन हो?’ मैं ने सकपकाते हुए कहा, ‘भाभी, सुमेर का फोन नहीं लग रहा, वे ठीक तो हैं न?’ ‘वह बिलकुल ठीक हैं, सरोज. असल में सुमेर अपने दोस्तों के साथ पार्टी में गया है. उस ने मु झ से कहा था तुम्हें बता दूं पर मैं भूल गई, सौरी.’ इतना सुनते ही मेरी आंखों से गंगाजमुना बहने लगी. बहुत गुस्सा आ रहा था सुमेर पर. मेरी भावनाओं की कोई कद्र ही नहीं उसे. जब अभी यह हाल है, आगे क्या होगा. दिल के भीतर कुछ टूट कर बिखरता सा लगा. उस शाम मैं ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था.

रोरो कर सूजी हुई आंखें ले कर मम्मी के पास गई तो मम्मी हैरान रह गईं. ‘क्या हुआ, तेरी आंखें क्यों सूजी हुई हैं, रोईर् है क्या?’ मम्मी ने बड़े प्यार से मु झे अपने पास बैठाया और सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘क्या बात है, हमेशा खिलखिलाती रहने वाली हमारी गुडि़या रानी आज इतनी उदास कैसे है?’ ‘मम्मी, आप यह सगाई तोड़ दो, मैं सुमेर से शादी नहीं करूंगी,’ मैं ने आंसू पोंछते हुए कहा. ‘सगाई तोड़ दो? क्या कह रही है तू, होश में तो है न?’ ‘हां मां, मैं पूरे होश में हूं. मैं उस से शादी नहीं करूंगी. उसे मेरी भावनाओं की कद्र नहीं. आज संडे था, मैं ने सारे दिन उस के फोन का इंतजार किया और शाम को खुद फोन किया तो पता चला वह अपने दोस्तों के साथ पार्टी में गया है.

यहां मैं इंतजार कर रही हूं और वह है कि उसे अभी से मेरी परवा नहीं तो शादी के बाद क्या होगा, बोलो मम्मी?’ यह कह कर मैं ने अपना सिर मम्मी की गोद में रख दिया. मम्मी मेरे बालों को हौलेहौले सहलाने लगीं, बोलीं, ‘सुन बिटिया, ये रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं, बिलकुल रेशम की डोरी की तरह, जरा से खिंचाव से टूट जाते हैं. हम स्त्रियां धैर्य और सहनशीलता की पर्याय मानी जाती हैं. क्या हुआ अगर आज सुमेर दोस्तों के साथ पार्टी में चला गया, रोज तो वह तु झ से बात करता है न. वह तु झ से प्यार करता है पर उस की भी अपनी जिंदगी है. और फिर, अभी शादी नहीं हुई तो वह आजाद भी है. तू देखना, शादी के बाद वह कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाता है.’ मां ने मु झे बहुत सम झाया पर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही. किसी के सम झाने का मु झ पर असर नहीं हो रहा था.

सुमेर पार्टी से देररात घर आया और आते ही सुमन भाभी ने उन्हें मेरे फोन के बारे में बताया पर उसे मेरी नाराजगी का अंदाजा नहीं था, इसलिए उस ने इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और सो गया. फिर सुबह उठते ही औफिस चला गया. औफिस की व्यस्तता में उसे ध्यान नहीं आया. शाम को औफिस से लौटने के बाद उस ने मु झे फोन लगाया पर मैं ने नहीं उठाया. उधर फोन बज रहा था और इधर मेरी आंखें बरस रही थीं. जब बहुत देर तक फोन बजता रहा तो मैं ने गुस्से में फोन स्विच औफ कर दिया. सुबह देखा तो व्हाट्सऐप पर उस के मैसेज थे. ‘हाय सरोज, कैसी हो? भाभी ने तुम्हारे फोन के बारे में बताया था पर पार्टी से आने में देर हो गई थी, इसलिए सो गया. औफिस में बिजी था, इसलिए शाम को तुम्हें फोन किया पर तुम ने फोन नहीं उठाया.’ ‘क्या हुआ? नाराज हो मु झ से?’ मैं ने मैसेज पढ़ कर फोन पटक दिया. शाम को मम्मी के फोन पर उस का फोन आया तो मम्मी ने अपना फोन मु झे पकड़ा दिया. वह हैलोहैलो कर रहा था पर मैं ने बात नहीं की. वह कह रहा था-

‘सरोज कैसी हो? मैं जानता हूं तुम फोन पर हो. कुछ तो बोलो, तुम्हारी मीठी आवाज सुने हुए पूरे 2 दिन हो गए. इतने से कुसूर की इतनी बड़ी सजा क्यों दे रही हो मु झे? मु झ से बात करो, प्लीज.’ पर मैं ने बिना कुछ बोले ही मम्मी का फोन उन्हें लौटा दिया और अपनी सहेली के घर चली गई. उस के बाद कुछ दिनों तक उस का फोन नहीं आया और मैं ने भी नहीं किया. मां झुं झला कर कहती रहीं, ‘पता नहीं क्या जिद पकड़ी है इस लड़की ने. अरे, इतना अच्छा लड़का है, मना रहा था. लेकिन यह मानी नहीं. बस, अकड़ती जा रही है.’ ‘मम्मी, मैं आप की बेटी हूं और आप हो कि उसी की तरफदारी करती रहती हो?’ मैं ने तुनक कर कहा तो मम्मी डांटने लगीं. ‘जो सही है उसी का पक्ष ले रही हूं मैं.

इतना भी क्या अकड़ ले कर बैठी है. कल तेरी जेठानी का फोन आया था, कह रही थी, सुमेर आजकल बहुत उदास रहने लगा है.’ यह सुन कर अच्छा महसूस हुआ कि मेरी नाराजगी का असर हो रहा है पर फिर भी अकड़ी रही. होली वाले दिन सुबह आंख खुली और बिस्तर से उतरने के लिए पैर नीचे रखे तो हैरान रह गई. पलाश के ढेर सारे फूल जमीन पर बिछे हुए थे. मैं उन पर पैर रख कर चलने लगी तो देखा ये फूलों की बिछावन गार्डन तक जा रही थी और गार्डन में लगे झूले तक थी और झूला भी फूलों से सजा हुआ था.

मैं आश्चर्य से भरी आंखें मलती फूलों पर चलतीचलती झूले पर जा कर बैठी ही थी कि किसी ने पीछे से आ कर मेरे गालों पर गुलाल मल दिया. पीछे मुड़ कर देखा, सुमेर और उस के दोस्त खड़े थे और मु झे देख कर मुसकरा रहे थे. एक दोस्त बोला, ‘भाभीजी, सुना है आप हम से और हमारे दोस्त से बहुत नाराज हैं?’ मैं ने सकपकाते हुए कहा, ‘नहीं तो.’ और मैं मुसकरा दी. ‘अब नानुकुर मत कीजिए, भाभी. आप को पता भी है, हमारे दोस्त की क्या हालत हो गई है? बेचारा देवदास बन कर रह गया है, देखिए,’ दूसरा दोस्त बोला. मैं ने सुमेर की ओर देखा तो वह मुंह लटका कर खड़ा था. यह देख कर मु झे जोर से हंसी आ गई. तीसरा दोस्त बोला, ‘अरे भाभीजी, आप को मनाने के लिए हम सब ने मिल कर कितनी मेहनत की है, पता भी है आप को? कल जंगल जा कर जितने भी पलाश के फूल मिले, तोड़ लाए और आज जल्दी उठ कर आप के लिए फूलों की डगर बनाई. अब तो मान जाइए.’ मैं जरा सी मुसकराई तो जैसे उन सब को ग्रीन सिग्नल मिल गया और सब ने मिल कर मु झे रंग डाला. मैं ने भी अपनी पिचकारी से उन सब को खूब भिगोया. हमारे प्रेम की शुरुआत की होली सच में यादगार बन गई.

ट्रेनिंग घर के कामों से लें, बनें आत्मनिर्भर

मृणाल  अपने भाई की शादी में शामिल होने जब स्वीडन से इंडिया आई तो उसके क्लासफेलो तुषार  ने बताया कि  पापा तुम्हारे  घर, मेरा जरूरी  सामान रख जायेगे, तुम जरुर से ले आना . तुषार के पापा, एक छोटे ट्राली बैग में सामान दे गये और उसे खोल कर दिखाया भी .सामान देखकर सभी का मुहँ खुला रह गया .मास्टर्स करने वाले स्टूडेंट के लिये, मैगी भरा ट्राली बैग लेकर आये थे .तुषार के पिताजी ने बताया कि अचानक ही उसने विदेश से मास्टर्स करने का प्रोग्राम बना लिया .जब वहां पहुँचा तो पता चला भारतीय भोजनालय बहुत महँगे हैं .उसे ब्रेड और अंडे उबाल कर खाने पड़े .अपना स्वाद बदलने को मैगी बनाकर खा  लेता हैं.

तुषार के पापा के जाते ही ,मृणाल ने बताया कि “तुषार को यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि मैं रोज दाल , चावल, सब्जी ,रोटी बनाती हूँ . मुझसे बार बार यही पूछ रहा था क्या तुम रोज खाना बना कर कॉलेज आती हो .?बेचारा माँ का लाडला .अब मैं भी वहां पढ़ाई करने गयी हूँ ,कोई रेस्ट्रा खोलने तो गयी नहीं हूँ कि रोज उसे दावत दूँगी .कभी आलू का पराठा बनाती हूँ तो उसके लिए भी ले जाती हूँ ” .

मृणाल की बात से सभी सहमत थे कि पढ़ाई के अतिरिक्त घरेलू कार्यो की ट्रेनिग भी बहुत जरूरी हैं .आजकल सभी बच्चे दसवीं ,बारहवी के बाद दूसरे शहरों या फिर विदेशों का रुख करने लगे हैं .ऐसे में उन्हें घर की साफ़ सफाई ,खाना बनाना ,राशन व् सब्जी की खरीददारी ,बेंकिंग इसके अतिरिक्त स्कूटी ,मोटर सायकिल ,कार आदि चलाने की ट्रेनिग नहीं मिली होती हैं तो उन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता हैं .

ऋषभ रोज मोहित के घर,  स्कूटी से आता और उसे लेकर, साथ ही  कॉलेज को निकल जाता .एक दिन वापसी के समय स्कूटी , सड़क किनारे  बजरी के ढेर  से, फिसल कर गिर गयी .ऋषभ की कोहनी छिल गयी. उसने मोहित से कहा   ” चल आज तू मुझे घर छोड़ देना “

.मोहित ने ऋषभ को उसके  घर छोड़ दिया और खुद स्कूटी लेकर, अपने  घर आ गया .जब यह घटना मोहित के पापा को पता चली जो जिला अस्पताल में डॉक्टर हैं ,उन्होंने मोहित को रोड एक्सीडेंट के ऊपर एक घंटे का लेक्चर दिया. सड़क दुर्घटना के सैकड़ो उदाहरण देकर, उसका ऋषभ के साथ कॉलेज जाना बंद करा दिया .उसे खुद कार से  छोड़कर आते या फिर ऑटो से जाने को कहते .जब   मोहित ने कार चलाने की जिद करी तो उसे कार का मैन्युअल पकड़ा दिया कि पहले इसे समझों फिर कार की स्टीयरिंग को हाथ लगाना .आज इस बात को चार साल बीत गए हैं मोहित न तो स्कूटी ही चलाना शुरू कर पाया न ही कार .ऐसी “एक्स्ट्रा केयर पेरेंटिंग” भी किस काम की जो बच्चों को पंगु बना दे .

ऋद्धि , मीनल ,संयुक्ता और धारावी अलग अलग स्टेट से ,ऍम एल सी को ज्वाइन करने चेन्नई पहुँची .उनका पी .जी कॉमन  था .मीनल और संयुक्ता ने पन्द्रह दिन बाद ही, टिफिन सेवा बंदकर ,खुद से खाना बनाना शुरू कर दिया. उन्हें टिफिन की  सब्जी में करी पत्ता ,सरसों का तड़का और नारियल का तेल का प्रयोग पसंद नहीं आया. जबकि ऋद्धि और धारावी  मन मारकर वही  खाना खाने को मजबूर थी. किचन में गैस चूल्हा और बर्तनों की सुविधा होते हुए भी ,वे खुद खाना बनाकर नहीं खा  सकती थी. उन्हें तो दालों और हरी सब्जियों में अंतर करना भी नहीं आता था  .

एक दिन मीनल को मटर पनीर बनाते देखकर उनसे रहा न गया. ऋद्धि  पूछ बैठी

“यार हमारे घर में तो कहते थे पढ़ाई करो पढ़ाई करो ,यहाँ किचन में तुम्हारा क्या काम ? तूने ये सब कब सीख लिया ?”

“ मेरी मम्मी के पास ,तुम किचन में खड़ी होकर देखना जरा ,कुछ न  कुछ काम तुम्हें भी बता देंगी .मैं तो जब भी पढ़ाई से ब्रेक लेकर ,मम्मी के पास बैठती या टी .वी देखती तो वो तुरंत मटर छीलना ,आटा गूंथना  या फल ,सलाद काटने का काम दे जाती .बातों बातों में, ये सब कब सीख लिया, पता ही नहीं चला .बी टेक में तो समर वेकेशन ,विंटर ब्रेक भी लम्बे होते थे ,ऐसे में हॉस्टल से, जब भी घर जाती ,मम्मी नई नई डिश सिखाती .डिश खऱाब बनाने पर भी ,ऐप्रिश्येत ही करती . फिर तो खाना बनाने का ऐसा चस्का लगा कि  खुद के लिए पकाना मुझे कभी काम लगता ही नहीं, बल्कि अपने हाथ का पका ,खाकर ही संतुष्टि मिलती हैं ”

धारावी भी बोल पड़ी “मेरी मम्मी तो हमेशा मुझे डरा कर रखती ,चाक़ू ठीक से पकड़ो ,गैस से दूर रहो ,इतना तेल क्यों डाला ,आटा गीला कर दिया ,यही सब सुन सुनकर मैं तो रसोई से दूर भागने लगी .अब तो मुझे खाना बनाना पहाड़ तोड़ने के बराबर लगता हैं ”

उसकी बातें सुनकर चारों खिलखिला उठी .तभी मीनल ने कहा

“यार शादी के बाद या जब भी पी जी से अलग, अपना फ्लेट लोगी तो फिर बाई रख लेना ”

“वो तो ठीक हैं मगर बाई को बतायेगी क्या कि कैसे पकाना हैं? फिर तो उसी के हिसाब से खाना पड़ेगा ” संयुक्ता धारावी का मजाक बनाते हुए बोल पड़ी .

अक्षरा की रुममेट उससे बहुत परेशान रहती हैं हर दिन उसका कोई न कोई सामान खोया रहता जिसे ढूंढने के लिए वो पूरा कमरा अस्त व्यस्त, कर देती .एक दिन उसका सब्र खत्म हो ही गया .वो अक्षरा पे बरस पड़ी .

“ क्या यार तू अपने घर में भी ऐसे ही सामान फैलाती थी  या यही फैलाती हो   ”

“वहां तो मेरी मम्मी ही मेरा कमरा सजा कर रखती थी .मैं सुबह स्कूल जाते समय कितना भी सामान बिखेर दूँ घर वापस आने पर मुझे फिर सब सेट  मिलता था  ” अक्षरा मासूमियत से बोली

“ तभी तो तुम्हारी आदते इतनी खराब हो गयी हैं .अपना समय तो बर्बाद करती ही  हो ,कमरे की सूरत भी बिगाड़ कर रख देती हो, हमें तो अपनी अल्मिरा और रूम साफ रखने पर मम्मी से स्पेशल गिफ्ट मिलता था इसी से हम दोनों भाई बहिन को अपनी चीज़े सम्भाल कर व्यवस्थित ढंग से रखना सीख लिया   ”

आत्मनिर्भर बनने के लिए  ,अलग से कोई कोचिंग लेनी नहीं पड़ती बल्कि घर के कामों से  ही ट्रेनिग ली जा सकती हैं .

अपने कमरे के सामानों को व्यवस्थित कर रखे . वस्त्रों मे डेली वियर ,इनर वियर व् पार्टी वियर की जगह निर्धारित करें . कमरों के साथ वाशरूम की भी सफाई करना सीखे .

बाजार से राशन ,सब्जी की खरीददारी में ताजे बासी में अंतर ,दालों की पहचान ,पालक ,मेथी ,सरसों जैसे हरे शाक की पहचान करना सीख ले  .

बेंकिंग के कार्य ऑनलाइन  हो या ऑफलाइन, उन्हें संचालित करने में अपने अभिभावकों की मदद करें और निपुण बने ..

दो पहिया और चार पहिया वाहन  यदि घर में उपलब्ध हो तो अपने अभिभावकों की मदद से सीखे नहीं तो ट्रेनर की मदद भी ली जा सकती हैं  .

अपने लिए चाय काफ़ी ,खिचड़ी ,दाल चावल ,सब्जी, रोटी आदि बनाना घर से ही सीखें और नई डिश बना कर सबको चौका दें .

मिक्सी ,वाशिंग मशीन ,माइक्रोवेव आदि उपकरणों का प्रयोग करना सीख कर समय का सदुपयोग करें व् आधुनिक समय के साथ चलें .

रिश्तों में अच्छी बॉन्डिंग के लिए नई दुल्हन अपनाएं ये टिप्स

एक लड़की जब शादी के जोड़े में सजती है तो दुल्हन बनने के साथ सजते हैं बचपन से उसकी आँखों में सजे सपने, उसके माता पिता की उम्मीदें और ससुराल वालो के लिए दुल्हन के रूप में होता है लक्ष्मी का आगमन.

जिसके आने से उनके परिवार की ,मान सम्मान की वृद्धि होती है।क्योंकि शादी सिर्फ पति पत्नी के बीच का रिश्ता नहीं होता बल्कि दो परिवारों का मेल होता है. शादी के बाद लड़की के दो घर हो जाते हैं एक मायका और एक ससुराल, ससुराल जहाँ उसे यह अहसास होता है कि अब उसे इस रिश्ते को बड़ी ही खूबसूरती से सहेजना है और अपनी इच्छाओं के साथ अपने परिवार की इच्छाओं का भी ख्याल रखना होगा।ससुराल में आपका पहला इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए जिससे की रिश्तों में अच्छी बॉन्डिंग
बन सकें.

ऐसे में उनका प्यार पाने के लिए दुल्हन को कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है .मान सम्मान दें -एक लड़के की यही प्राथमिकता होती है की उसकी पत्नी उसके माता पिता को अपने माता पिता समझे
इसलिए जरूरी है कि ससुराल पक्ष में अपने बड़ो का आदर सम्मान करें। एक अच्छी बहू बनने के लिए अपनी सास के साथ ज्यादा और अच्छा समय बिताएं।यदि घर में बच्चे हैं तो उन पर गुस्सा न करें बल्कि प्यार से पेश आएं.

ससुराल की महिलाओं से अच्छी बॉन्डिंग होने पर परिवार के बाकी लोग भी आपसे संतुष्ट हो जाते हैं।
कुशल गृहणी कहते हैं घर वालों या पति के दिल में जगह बनानी है तो अच्छा खाना बना कर खिलाओ तो आप उनका प्यार पा सकती हैं चाहे आप नौकरी पेशा हो या नहीं, लेकिन हर कोई आप में एक कुशल गृहणी का गुण देखना चाहता है. अगर आप रसोई के कामकाज में निपुण हैं तो आपसे निश्चित ही सभी खुश हो सकते हैं.
अच्छा लुक है जरूरी
हल्का मेकअप और सुंदर कपड़े पहने क्योकि शादी के बाद नई नवली दुल्हन को देखने महमान आते है तो आपका फर्स्ट इम्प्रैशन आपको सभी की प्रसंशा का पात्र बना सकता है जिससे आपके ससुराल वालो का भी सम्मान बढ़ता है.
नकरात्मक बातों से करें परहेज
यदि आप से आपकी सास कुछ कहती हैं तो उसे दिल पर न ले क्योंकि हो सकता है वो उनका समझाने का तरीका हो ,क्योंकि आपकी खुद की माँ भी कभी कभी समझाते समय आपसे थोडे सख्त रवैये से बोली होंगी इसलिए कभी भी अपने पति से घर वालो की चुगली न करें और न ही अपने पति की कोई बात किसी से कहे क्योंकि ऐसा करने से आपका रिश्ता कमज़ोर पड़ सकता हैं.

पर्यटन: होम स्टे घर जैसा आनंद

छुट्टियों में जब हम घूमने के इरादे से निकलते हैं तो सब से पहला खयाल दिल में आता है कि हम रहेंगे कहां. होटल और रिसोर्ट में ठहरना जहां बड़ा खर्च कराता है वहीं पर अपने मनमुताबिक खाना भी नहीं मिलता. मगर होम स्टे सुविधा ने पर्यटकों की ये दिक्कतें खत्म कर दी हैं. पर्यटकों के लिए होम स्टे कई मानो में खास और बेहतर चुनाव है. आइए जानते हैं कैसे. काम से 4 दिनों की भी छुट्टी मिले तो मोहित का दिल चाहता है वह घर में मम्मी की खिचखिच, औफिस में सहयोगियों से कंपीटिशन व शहर की गरम सड़कों पर सुबहशाम बाइक दौड़ाने के रूटीन से निकल कर अपनी गर्लफैंड सोफिया के साथ दूर किसी मनोरम जगह पर प्रकृति के करीब कुछ रोमांटिक पल बिता कर आए.

घूमनाफिरना मोहित का शौक भी है. पहले छुट्टियों में उस के मम्मीपापा सभी बच्चों को ले कर रिश्तेदारी में चले जाते थे. समय बदला, परिवार छोटे हुए तो छुट्टियों में हिल स्टेशन जाने लगे. जहां वे होटल में कमरे बुक करवा कर रहते थे. फिर रिसोर्ट और फार्महाउस का जमाना आ गया. जो काफी महंगे होते हैं परंतु अंदर ही सारी सुविधाएं जैसे स्विमिंग पूल, झूले, रैस्तरां, बार, शोरूम आदि मिलते हैं. लेकिन ये तमाम जगहें महंगी होने के साथ वह खुशी नहीं देतीं जो किसी मनोरम स्थल पर वहां के स्थानीय लोगों के बीच उन के साथ रहने में और उन्हें जानने में मिलती है.

मोहित 26 साल का जवान लड़का है. वह और उस की गर्लफ्रैंड सोफिया दोनों गुरुग्राम के एक औफिस में कार्यरत हैं. मोहित को नएनए लोगों से मिलने और उन से बातें करने का शौक है. उस की गर्लफ्रैंड सोफिया को भी लोगों से मिलने का शौक है. उसे होटल के कड़ाही चिकन से ज्यादा स्वादिष्ठ गांव का लिट्टीचोखा लगता है, जो लकड़ी के चूल्हे पर बनता है. इसलिए वीकैंड पर मोहित और सोफिया बाइक पर उत्तराखंड या हिमाचल के किसी गांव की सैर पर निकल पड़ते हैं और वहां होम स्टे में रह कर ग्रामीण पर्यटन का खूब लुत्फ उठाते हैं. सोफिया बहुत चुलबुली है.

हंसतीहंसाती रहती है. जिन लोगों से मिलती है उन में ऐसे घुलमिल जाती है जैसे पानी में शक्कर. गांव पहुंचते ही वह जींसटौप त्याग कर स्थानीय लोगों के जैसे कपड़े पहन लेती है और उन्हीं में से एक नजर आती है. ग्रामीण औरतों के साथ नाचनेगाने के अलावा उन की रसोई में लकड़ी के चूल्हे पर बनाए पकवानों को भी सीखने की कोशिश करती है. ग्रामीण क्षेत्र के लोकगीत और लोकनृत्य उसे खूब भाते हैं. रात के खाने के बाद अलाव के चारों ओर बैठ कर गीत गाते ग्रामीणों के साथ सोफिया और मोहित खूब सुर में सुर मिलाते हैं.

पर्यटन का असली आनंद उन्हें होम स्टे में ही मिलता है. सनी देओल और साक्षी तंवर अभिनीत एक फिल्म थी, ‘मोहल्ला अस्सी’. बनारस की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में दिखाया गया था कि विदेशी पर्यटक, काशी को करीब से देखनेजानने और वहां के कल्चर को सम झने के लिए आते हैं, स्थानीय लोगों के घर पर बिलकुल फैमिली मैंबर की तरह रहना पसंद करते हैं. वहां अनेक घरों में होम स्टे बने हुए हैं. जिस के घर पर पर्यटक ठहरते हैं उस घर की गृहिणी द्वारा बनाया गया भोजन ही वे खाते हैं.

इस से स्थानीय लोगों की अच्छी कमाई हो जाती है तो उन के साथ रह कर विदेशी पर्यटक भारत को अच्छी तरह सम झ भी पाते हैं. वे अपना शोधकार्य पूरा करते हैं या घाटों पर फिल्में बनाते हैं. बनारस में ज्यादातर पर्यटक होटल के बजाय होम स्टे में रहना पसंद करते हैं. इस में उन के पैसे भी कम खर्च होते हैं. नदी, समुद्र, पहाड़, झरने, जंगल या रेगिस्तान के नजदीक कोई ऐसा स्थान जहां रह कर प्रकृति के सुंदर दृश्यों का आनंद लिया जा सके और साथ ही वहां के बाजार का, ऐतिहासिक स्थलों का, लोगों की वेशभूषा-खानपान और रीतिरिवाजों का भी अनुभव मिल सके, इस के लिए पर्यटन के शौकीन लोग होटल या रिसोर्ट की जगह होम स्टे ढूंढ़ते हैं. पर्यटकों की इस इच्छा को देखते हुए ही आजकल होम स्टे टूरिज्म का बिजनैस खूब फलफूल रहा है.

पौढ़ी के निकट लैंसडाउन में आर्मी के रिटायर कर्नल बिक्रम रावत के पास एक बड़ा घर और उस से लगी काफी बड़ी गौशाला थी. उन्होंने उस गौशाला में पर्यटकों के रहनेठहरने लायक खूबसूरत ‘वन बैड’ और ‘टू बैड’ रूम बनवा लिए हैं. सीजन पर उन का पूरा घर पर्यटकों से भरा रहता है. घर के बाहर पहाडि़यों पर जगहजगह उन्होंने लोगों के बैठने और गपशप करने के स्पौट बना रखे हैं. एक कोने में बार तो एक कोने में ग्रिल चिकन बनाने के लिए चूल्हा लगा है,

चाय का मजा लेने के लिए मोड़े और छोटीछोटी रंगबिरंगी कुरसियां रखी हैं और पूरा क्षेत्र मनमोहक पहाड़ी फूलों और बेलों से आच्छादित है. घर को होम स्टे का लुक दे कर कर्नल रावत और उन की पत्नी खासी कमाई कर रहे हैं. अपने होम स्टे को उन्होंने नाम दिया है- ‘ओक ग्रोव इन’. ऐतिहासिक, धार्मिक, आधुनिक रूप से संपन्न भारत के पास अपने पर्यटकों को देने के लिए काफीकुछ है. जब भी हम घूमने के इरादे से निकलते हैं तो हमारे मन में सब से पहला खयाल यही आता है कि हम रहेंगे कहां? वैसे तो भारत में होटल, रिसोर्ट्स की कमी नहीं है लेकिन ये बहुत महंगे होते हैं और हमें एक सीमा में बांध देते हैं. लगभग एक दशक पहले केरल ने भारत में ‘होम स्टे’ के विचार को साकार किया था. केरल के इस विचार ने भारत में खासी लोकप्रियता हासिल की और देखते ही देखते देशभर में मेहमान-नियोजित घरों की बाढ़ आ गई.

भारत में अमीरों और नवाबों-जमींदारों की कई ऐसी शानदार हवेलियां हैं जिन को अब होम स्टे में बदला जा चुका है. होम स्टे में आप को जो अनुभव मिलेगा वह बड़े से बड़े होटल में नहीं मिल सकता. होम स्टे में शहर को बेहतर ढंग से देखनेजानने का मौका मिलता है. यदि आप किसी गाइड के साथ जाते हैं तो वह आप को उतनी ही जगह दिखाता है जितने के लिए होटल से उस का अनुबंध हुआ है. मगर होम स्टे में लोकल लोगों के साथ घूमने जा सकते हैं. अकसर होम स्टे के मालिक ही अपने मेहमानों के लिए गाइड बन जाते हैं और पूरा शहर इतनी अच्छी तरह घुमाते हैं कि कोई गाइड भी न घुमा पाए. ऐतिहासिक जगहों की जो जानकारी मकान मालिक को होगी उतनी गाइड को नहीं हो सकती.

होम स्टे में पैसे भी कम खर्च होते हैं. होटल की तरफ से दिए गए पैकेज में चीजें लगभग तय होती हैं. जहां सीमित मात्रा में ही आप को शहर की जानकारी दी जाती है. जबकि होम स्टे में शहर को जानने के साथ वहां की संस्कृति-सभ्यता एवं खास पकवानों की जानकारी भी मिल जाती है. होटल के विपरीत होम स्टे में रहते हुए प्रकृति को करीब से जान सकते हैं. परिवार के साथ रहने से आप को साफ बिस्तर, हैल्दी नाश्ता, घर के बने पेय पदार्थ मिलते हैं. कई लोग तो अतिथि सत्कार इतने अच्छे ढंग से करते हैं कि आप को बिलकुल अपने घर जैसा लगता है तो अब की बार यदि आप कहीं जाएं तो होटल या रिसोर्ट में ठहरने के बजाय किसी होम स्टे में रुकें.

सिरोही हाउस – पुरानी दिल्ली ऐतिहासिक शहर दिल्ली के सिविल लाइंस के पास सिरोही हाउस नाम से विशाल हवेली है, जो सिरोही के महाराजा का निवास स्थान होता था. यहां पहुंचते ही गेट के बाहर से एक निजी ड्राइवर आप को शाही प्रवेशद्वार पर ले जाएगा. जहां आप झूमर, अलंकृत फायरप्लेस, नक्काशीदार फर्नीचर आदि देख कर मंत्रमुग्ध हो जाएंगे. आप इस तरह की अनोखी प्राचीन वस्तुओं को इकट्ठा करने के लिए घर के मालिक अशोक सहदेव का शुक्रिया अदा करना चाहेंगे. यहां एक से बढ़ कर एक प्राचीन कलाकृतियों को सहेजा गया है.

यहां सभी कमरों में संलग्न बाथरूम और केबल टीवी कनैक्शन के साथ एयर कंडीशनर लगे हैं. यहां पर आप सब के साथ बैठ कर पिकनिक की तरह खाना खाने का आनंद ले सकते हैं. इस होम स्टे की विशेषताओं में से एक इस का उद्यान है जो दिल को खुश कर देता है. हरियाली और शांति से भरपूर यह होम स्टे आप की यात्रा को यादगार बना देगा.

श्रीमान और श्रीमती मेहरा का घर – देहरादून शहरी जीवन की हलचल से दूर, शांतिपूर्ण आवासीय क्षेत्र में स्थित श्रीमान और श्रीमती मेहरा का घर, देहरादून का एक प्रसिद्ध होम स्टे है. एक विशाल हरा लौन और शिवालिक हिल्स का शानदार दृश्य यहां अद्भुत शांति का एहसास कराता है. इस होम स्टे में एक भी खिड़की सुंदर दृश्यों से वंचित नहीं है. जब आप दिल्ली से हिमालय की यात्रा कर रहे हों तो दून घाटी में स्थित यह सब से अच्छा होम स्टे है.

आप मिस्टर मेहरा के साथ पेयजल का आनंद ले सकते हैं, वहीं श्रीमती मेहरा द्वारा बनाए गए लजीज पकवान, जिन में कबाब और लैंब प्रसिद्ध हैं, का लुत्फ उठा सकते हैं. यहां से मसूरी और रहस्यमयी जंगल की सैर करने के लिए कार और अन्य वाहन किराए पर आसानी से मिल जाते हैं. कैपेला – उत्तरी गोवा गोवा पर्यटकों की पसंदीदा जगह है. गोवा के घरों में रहने का उत्साह पर्यटकों को कैपेला होम स्टे ले जाता है. यह पारंपरिक रूप से डिजाइन किया गया घर है, जिस की देखभाल आयशा करती हैं. यहां घर के अंदर विशाल अतिथि कमरे और बगीचे में एक कुटीर की व्यवस्था है.

आधुनिक सुविधाओं के साथ साफसुथरे बिस्तर और चमकदार बाथरूम के साथ सुसज्जित कमरे बड़े ही आकर्षक लगते हैं. यहां चावल, करी और सलाद का आनंद ले सकते हैं. चावल के साथ गरमागरम फिश करी आप को उंगलियां चाटने पर मजबूर कर देगी. इस होम स्टे से समुद्रतट केवल 15 मिनट की ड्राइव पर है जो किसी बोनस से कम नहीं. इस होम स्टे में रह कर गोवा की संस्कृति से भी परिचित हो सकते हैं.

विक्रम और पारो रानावत का घर – जयपुर राजपूती घरानों और राजशाही सेवाओं का आनंद लेना हो तो जयपुर में विक्रम और पारो रानावत का होम स्टे बहुत अच्छा है. विक्रम एक सेवानिवृत्त वायुसेना अधिकारी हैं जो पश्चिमी जयपुर में एक उपनगरीय विला के मालिक हैं. उन का घर खुली जगहों की एक शृंखला है जो हवादार तो है ही, फूलों की खुशबू से महकता भी रहता है.

प्राचीन और आधुनिक सजावट का संगम, संगमरमर का फर्श, छत, निजी और दो अतिथि कमरों के साथ यह होम स्टे पर्यटकों की खास पसंद है. बगीचे में बना आकर्षक कुटीर लंबे समय तक यहां रहने को मजबूर करता है. यहां पारो के स्वामित्व वाले कपड़ों के कारखाने हैं. घर के अंदर कसरत की कक्षाएं लगती हैं. खाना बनाना सिखाया जाता है तो हिंदी की कक्षाएं भी लगती हैं. यहां चारों तरफ अनार, पपीता और सेब के बगीचे हैं, जहां की सैर बहुत आनंद देती है.

स्पीति होम स्टे – हिमाचल प्रदेश हिमाचल में जलीय पिन घाटी में उच्च ऊंचाई के 6 गांवों में फैला यह होम स्टे अद्भुत नजारे दिखाता है. आप यहां सफेद बर्फ से जमी चोटियों को देख सकते हैं. पर्यटक 14 घरों की शृंखला में से अपनी पसंद का होम स्टे चुन सकते हैं. मिट्टी और ईंट संरचनाओं से बना घर सामान्य आवासों से निश्चित रूप से अलग है. यहां सुबह नहाने के लिए गरम पानी की बाल्टी मिल जाएगी और शौचालयों के स्थल मिल जाएंगे, जो आप को पूरा ग्रामीण एहसास कराएगा. सुंदर रंगों से सजे अतिथि कमरे, बढि़या आसन, कपड़े रखने का स्थल आप का दिल जीत लेगा. लोगों के मुसकराते चेहरे, याक सफारी, मोमोज और नूडल सूप का असली स्वाद यहीं मिलता है.

पहाड़ी हवा के साथ मनमोहक प्राकृतिक दृश्य आप का रोमरोम खुश कर देंगे. ऐसा सुंदर नजारा आप को और कहीं देखने को नहीं मिलेगा. ला विला बेथानी- मसूरी माल रोड से 15 मिनट दूर उत्तराखंड के गढ़वाल में स्थित मसूरी में ला विला बेथानी एक समय पर मिशनरियों का घर था. सुनीता और अमरजीत ने औपनिवेशिक काल की इस हवेली को होमस्टे के रूप में बदल दिया. मसूरी घूमने आने वाले पर्यटकों को इस होम स्टे में आना बहुत भाता है. विला की ओर जाने वाले मार्ग से दून घाटी का अद्भुत नजारा दिखाई पड़ता है. यह विला इस क्षेत्र का एकमात्र आत्मनिर्भर घर है जो सौर ऊर्जा, जैविक खेती और वर्षा जल संचयन स्वयं करता है.

कन्नूर बीच हाउस, केरल उत्तरी केरल के दूरस्थ भाग में स्थित कन्नूर बीच हाउस एक परंपरागत केरल शैली का घर है जो एक शताब्दी पुराना है. यह एक ताजे पानी के लैगून के बगल में नारियल के बागानों के बीच बना होम स्टे है जो समुद्रतट से कुछ ही मिनट दूर है. यदि आप समुद्र किनारे कोई आरामदेय स्थान चाहते हैं तो इस से बेहतर जगह नहीं मिलेगी. यह आप को पुरानी कहानियों का अनुभव प्रदान करता है. यहां आप नौकायन, पक्षियों को देखने और तैराकी जैसे शौक पूरे कर सकते हैं. द होमस्टेड, कौर्बेट नैनीताल के निकट कौर्बेट औफ होमस्टेड का शानदार आवास एक आकर्षक और अंतरंग रिसोर्ट जैसा महसूस कराता है.

इस करिश्माई होम स्टे की मजेदार और रोमांचक गतिविधियां पर्यटकों को खूब लुभाती हैं. यहां खेती का आनंद लिया जा सकता है. बड़ेबड़े घास के मैदानों की सैर, बैलगाड़ी की सवारी, कौर्बेट नैशनल पार्क की यात्रा, गायों से दूध निकालने जैसे कार्यों को यहां देख भी सकते हैं और खुद कर भी सकते हैं. चारों ओर प्रकृति के सुंदर नजारों के साथ हाथी की सवारी आप की यात्रा को यादगार बना देगी. इस जगह का विशेष आकर्षण तुर्की भाप स्नान और जिम के साथ स्पा मंडप है.

रेड हिल नेचर – तमिलनाडु समुद्रतल से 7,000 फुट से अधिक ऊंचाई और ऊटी से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित रेड हिल नेचर एक सुंदर होम स्टे है. नीलगिरी पहाड़ों के सुंदर नजारों से रूबरू कराते इस होम स्टे के आसपास चाय बागान, सुरम्य ग्रामीण इलाके और आकर्षक ग्रामीण सैटअप के साथ गोभी और गाजर के खेतों में घूमते हुए बहुत मजा आता है. 250 एकड़ में फैले चाय बाग इस बंगले की शोभा को और बढ़ा रहे हैं. बंगले के अंदर औपनिवेशिक शैली से बने 8 अतिथि कमरे हैं और बाहर एक स्टैंडअलोन कौटेज भी बना है. सभी कमरों में आधुनिक सुविधाओं से युक्त बाथरूम हैं जिन में बाथटब है.

ओलाउलीम बैकयार्ड्स – गोवा यदि आप किसी प्राकृतिक स्थल पर छुट्टियां मनाना चाहते हैं तो ओलाउलीम बैकयार्ड एक आदर्श गंतव्य है. गोवा बैकवाटर में स्थित ओलाउलीम गांव का यह होम स्टे एक फिनिश-भारतीय जोड़े द्वारा चलाया चलाया जा रहा है. ये युगल अपने 2 बच्चों और पालतू जानवरों के साथ इस घर में रहते हैं. जब इस घर को होम स्टे बनाया गया तब मुख्य घर के साथ 3 आकर्षक कौटेज भी जोड़े गए. कौटेज के पिछवाड़े धान के खेतों, नारियल के बागानों और स्विमिंग पूल के नजारे देखने को मिलते हैं. आप खुले आकाश के नीचे पेड़ों की छाया में बने बाथरूम में स्नान का मजा ले सकते हैं.

आप एक रोमांचक छुट्टी बिताते हुए यहां कैनोइंग, मछली पकड़ने, साइकिल चलाने, पतंग उड़ाने, तैराकी, पक्षी देखने और स्थानीय शराब चखने का आनंद उठा सकते हैं. देवरा होमस्टे, राजस्थान देवरा होमस्टे औपनिवेशिक शैली में बना राजस्थान का एक फार्महाउस है जो और्गेनिक स्वाद के साथ प्राकृतिक जीवनशैली पर जोर देता है. इस होम स्टे में अतिथि कमरे की खिड़कियों से पर्वत के दृश्य नजर आते हैं. बैठने के लिए यहां बहुत स्पेस है. छत और बालकनी से भी बहुत सुंदर दृश्य दिखते हैं. इस होम स्टे में रहते हुए आप यहां से अरावली पर्वत घूमने जा सकते हैं, आसपास के गांव देख सकते हैं, प्राचीन मंदिरों में जा सकते हैं. इस के अलावा चित्रकला, बागबानी, दर्शनीय स्थलों की यात्रा और खेती करने का आनंद उठाने के साथ अनेक जानवरों और पक्षियों को देख सकते हैं.

हिडन फौरेस्ट रिट्रीट – गंगटोक गंगटोक से केवल कुछ किलोमीटर दूर एक छोटा स्वर्ग के टुकड़े के समान हिडन फौरेस्ट रिट्रीट है. यह उन लोगों के लिए एक आदर्श होम स्टे है जो गोपनीयता और शांति चाहते हैं. यह होम स्टे फलफूल और जंगल से भरे 3 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है. इस में मुख्य रूप से 12 बड़े अतिथि कमरे हैं जो बालकनी से जुड़े हुए हैं. यहां से पहाड़ों और धान के खेतों का नजारा देखा जा सकता है. यहां स्थानीय व्यंजनों को आप की वरीयताओं के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है.

यहां कोई निश्चित मेनू नहीं है. आप अपनी इच्छानुसार व्यंजन बनवा सकते हैं. यहां से गंगटोक शहर, रुमटेक मठ और नदी रौला खोला दिखाई पड़ती है. इस के अलावा यहां आप ट्रैकिंग, नर्सरी का दौरा, स्थानीय दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं. यहां आने का आदर्श समय मार्च और अप्रैल है क्योंकि वसंत के मौसम में चारों ओर फूल ही फूल दिखाई पड़ते हैं.

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