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कायनात मुस्कुरा उठी- भाग 1: पराग की मनोदशा आखिर क्यों बिगड़ी?

“दादाजी, दादाजी, आप भी चलिए न हमारे साथ. हम दोनों के साथ डांस करिए न, प्लीज दादाजी,” नलिनजी के पोते की मंगेतर तानी ने अपनी शादी के उपलक्ष्य में आयोजित संगीत संध्या के प्रोग्राम में अपना डांस बीच में छोड़ कर स्टेज से नीचे आ कर अपने होने वाले दादा ससुर को अपने और अपने मंगेतर पराग के साथ नाचने के लिए कहा.

“अरे बेटा तुम लोग नाचो.  मैं तुम लोगों को देख कर ही खुश हो रहा हूं यहां बैठेबैठे. जाओ बेटा स्टेज पर जाओ,” दादाजी ने तानी को बेहद लाड़ से पुचकारते  हुए कहा.

तभी उन का पोता पराग  स्टेज के नीचे दादाजी के पास आया और  डांस करने के लिए उन से इसरार करने लगा, “दादाजी, आप स्टेज पर नहीं आएंगे तो मैं भी डांस नहीं करूंगा, हां… ”

“अरे बेटा, तुम दोनों को साथसाथ नाचते देख मेरी आत्मा तृप्त हो गई. अब इन बूढ़ी हड्डियों में दम नहीं रहा बेटा. तुम दोनों डांस करो.  मुझे तुम दोनों को एकसाथ डांस करते देख कर बेहद  खुशी मिल रही है.”

“नहीं, आज आप भी हम दोनों के साथ डांस करेंगे,” कहते हुए पराग ने दादाजी का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती उन्हें उठा दिया और उन्हें सहारा देते हुए स्टेज पर ले गया.

पराग और तानी दोनों दादाजी का एकएक हाथ पकड़ गोला बना कर एक मधुर गाने की धुन पर डांस करने लगे.

आज उन की खुशी की इंतिहा नहीं थी. आज उन के एकमात्र पोते पराग की सगाई और संगीत संध्या का प्रोग्राम था. कल उस की शादी होने वाली थी.

इतनी आपदाओंविपदाओं के बाद आज यह दिन आया था, यही सब सोचतेसोचते उन की आंखों की कोरें भीग  आईं, और दस मिनट पराग और तानी के साथ उलटेसीधे हाथपैर चला कर वह स्टेज से नीचे आ गए.

आज के खुशनुमा मौके पर उन्हें पराग के मृत पिता नमन, मां संजना और बड़े भाई संकल्प की याद शिद्दत से आ रही थी. कलेजे में तीखी हूक उठी, “काश, आज वे तीनों जिंदा होते तो समां ही कुछ और होता,” यह सोचतेसोचते उन के गले में रुलाई उमड़ी और वह सुबकने से खुद को नहीं रोक पाए.

उन्हें यों आंसू बहाते देख तानी और पराग उन के पास आए और उन्हें चुप करा कर वह उन के साथ ही बैठ गए और प्रोग्राम खत्म होने तक बैठे रहे. उन दोनों ने उन के साथ ही खाना खाया.

रात के बारह बजने आए. प्रोग्राम और खानापीना खत्म होने के बाद सब लोग घर वापस आ गए. तानी  और पराग उन्हें उन के पलंग पर सुलाने आए, ‘दादाजी, आप थक गए होंगे. अब आप सो जाइए, सुबह मिलते हैं,” कहते हुए उन दोनों ने उन्हें चादर ओढ़ाई और कहा, “लव यू दादाजी, गुड नाइट,” और दोनों कमरे के बाहर आ गए.

आज उन्हें पराग के पिता यानी अपने मृत बेटे नमन की याद बुरी तरह सता रही थी. न जाने कब अनायास ही उन का मन पुरानी स्मृतियों के बीहड़ में भटकने लगा, उन्हें भान न हुआ.

नमन उन का लाड़ला एकलौता बेटा था. न जाने कितने मंदिरोंमजारों की चौखट पर मनौतियों के बाद शादी के पांच वर्षों बाद उन की गोद में आया था.

उसे दिनोंदिन बढ़ता देख वे दोनों पतिपत्नी ह्रदय की भीतरी तह तक तृप्त हो जाते. वह था भी इतना अच्छा कि वे दोनों उस की बड़ाई करते नहीं थकते. कुशाग्र बुद्धि का था, तो पहली बार में सीए की सभी परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली, और सीए बन कर एक बड़ी एमएनसी में लग गया.

पतिपत्नी जबजब बेटे का मुंह देखते, उन्हें लगता कि उन के किसी जन्म के पुण्य प्रताप से उन्हें उस जैसी संतान मिली.

उस की नौकरी लगने के 2 वर्षों बाद उन्होंने बड़े ही लाड़चाव से बेटे की पसंद की शादी की. उन की बहू संजना भी सीए थी, और  नमन के साथ ही नौकरी करती थी. बेटेबहू की साक्षात रामसीता की जोड़ी देख दोनों पतिपत्नी फूले न समाते.

उन की आशा के अनुरूप बहू भी बेहद संस्कारी, गुणी  और समझदार निकली.  घर जोड़ कर चलने वाली थी. उस के दो बेटे हुए. 2-2 पोतों को अपने आंगन में खेलते देख नलिनजी और उन की पत्नी ईश्वर का लाखलाख शुक्रिया अदा करते.

वक्त के साथ पोते बड़े  हुए. दोनों ही मातापिता के नक्शेकदम पर चलते सीए बनने की पढ़ाई कर रहे थे.

वह दिन उन की जिंदगी का एक यादगार दिन था, जिस दिन बड़े पोते संकल्प के सीए की फाइनल परीक्षा का परिणाम आया. उस ने पहली ही बार में सीए क्लीयर कर लिया था.

वह अपने हर परिचित, जानने वाले के सामने पोते की इस सफलता का बखान करते नहीं अघाते. लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन के सुख पर उन की अपनी नजर ही डाका डालेगी.

उन्हें लेशमात्र भी संदेह नहीं था कि पिछले जन्मों के कुछ बुरे कर्म भी उन के खाते में दर्ज थे, जिन का हिसाब उन्हें इस जन्म में चुकाना था.

उन की जिंदगी का वह मनहूस दिन उन के जेहन में आज भी यों ताजा था, जैसे कल की ही बात हो.

वह पत्नी के साथ अपने रिटायरमेंट तक सप्तपुरी यानी सात पवित्र शहरों की यात्रा कर चुके थे. अब उन की चार धामों की यात्रा की प्रबल इच्छा थी. उन्होंने बड़े पोते संकल्प से कह रखा था कि वे दोनों उस की नौकरी लगने पर पहली तनख्वाह से चार धामों की यात्रा करना चाहेंगे.

उन दिनों चारों धामों की 16 दिनों की यात्रा के लिए एक विशेष ट्रेन चलती थी. दादादादी की इच्छा का मान रखते हुए संकल्प ने अपनी पहली तनख्वाह से उन दोनों  के लिए इस ट्रेन यात्रा की टिकट खरीद कर दी. वे दोनों अपने एक भतीजे के साथ हंसीखुशी यात्रा कर आए.

राजस्थान में प्रचलित जनआस्था के अनुरूप सप्तपुरी और चार धामों की यात्रा के बाद जयपुर के पवित्र गलता कुंड में बिना स्नान किए तीर्थयात्रियों की तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती थी.

तो एक छुट्टी के दिन वे दोनों पतिपत्नी पूरे परिवार के साथ गलता कुंड में स्नान के लिए तड़के सुबह गलताजी पहुंचे. पहले उन्होंने वहां के सभी मंदिरों के दर्शन किए.

“संकल्प भैया, नैचुरल ब्यूटी  में तो यह जगह बेजोड़ है, लेकिन ये जगहजगह मंदिरों की दीवारों का उखड़ता पलस्तर और यहांवहां फैली गंदगी ने यहां घूमने का सारा मजा किरकिरा कर दिया.”

“यह तो है, यह जगह इतनी सुंदर है पराग कि अगर इस की ढंग से मेंटीनेंस की जाए, तो यह जयपुर के एक बेहतरीन टूरिस्ट स्पौट में बदल सकता है.”

“देखो भैया, वो फौरेनर कैसे उस बंदर को अपने कंधों पर बैठा कर फोटो खिंचवा रही है. ओह, यहां के बंदर बहुत दोस्ताना हैं.”

“हां, देखो वह बंदर तो उस लड़की से हैंड शेक कर रहा है,” तभी संकल्प ने तनिक मुसकराते हुए कहा.

तभी दादाजी बोले, “चलो, अब मंदिरों के दर्शन तो कर लिए, अब गलता कुंड में नहा लें. चलो बच्चो.”

लेकिन किसी को क्या खबर थी कि गलता कुंड में साक्षात महाकाल उन्हें अपने शिकंजे में कसने के लिए घात लगाए बैठा था.

उन्हें यदि लेशमात्र भी संदेह होता कि जीवनमृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्ति पाने के लिए गलता कुंड में लगाई गई डुबकी उन के अशेष दुखों का निमित्त बनेगी तो वह सपने में भी वहां जाने का खयाल तक न करते, लेकिन यमराज तो शायद उन के घर पर अपनी काली छाया का ग्रहण लगा चुके थे.

वह पत्नी सहित अपने बेटे, बहू और पोतों के साथ राम नाम जपते हुए गलता कुंड में उतरे.

गलता कुंड में नहाने उतरी उन के बेटे नमन की पत्नी, उन की इकलौती बहू का पांव देखते ही देखते फिसल गया और वह न जाने कैसे कुंड के गहरे पानी में चली गई, और पानी में डूबने लगी.

पत्नी को असहाय पानी में हाथपैर मारते देख पहले उन का बेटा नमन गहरे पानी की ओर बढ़ा, लेकिन  वह भी अपना संतुलन खो बैठा और गहरे पानी में डूबने लगा.

मां और पापा दोनों को डूबता देख उन का बड़ा बेटा संकल्प हिम्मत कर उन्हें बचाने गहरे पानी में उतरा, लेकिन कुंड की गहराई उसे भी देखतेदेखते लील गई.

यह सब देख वे दोनों पतिपत्नी घबराहट और दहशत से चीखपुकार मचाने लगे.

पराग, उन का छोटा पोता उन दोनों को चीखतेचिल्लाते देख उन्हें समझातेबुझाते किनारे पर ले गया, और उन्हें तसल्ली देने  लगा कि “संकल्प भैया को तैरना आता है, इसलिए वह मम्मापापा को बचा कर ले आएगा”, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.

मोक्ष पाने की कामना से किए गए इस स्नान ने उन्हें और उन की पत्नी के लिए इसी धरती पर साक्षात नर्क के द्वार खोल दिए.

पलभर पहले हंसतेचहकते तीन प्राणी लाश बन कर लौटे.

अपनी आंखों के सामने एकलौते बेटे, बहू और जवान पोते की मृत्यु देखने के संताप से बढ़ कर शायद कोई दुख नहीं.

तीनतीन संतानों को खो कर वह और पत्नी पत्थर के बन कर रह गए. इस गम से पत्नी ने खाट पकड़ ली और इस सदमे से वह साल के भीतर ही भगवान को प्यारी हो गई.

दादाजी ने एकमात्र बचे  छोटे पोते को अपने सीने से लगा लिया. बेटा, बहू और एक पोते को खोने के बाद अब पराग ही उन के जीने का एकमात्र सहारा था.

इधर पलक झपकते ही मां, पापा और बड़े भाई को खो कर पराग अर्धविक्षिप्त सा हो गया. वह दिनदिन भर अपने कमरे में बैठा शून्य में ताकता. न उसे खानेपीने की सुध रहती, न नहानेधोने या पढ़ाई करने की. रातों को नींद न आती. दादाजी उसे अपने कलेजे से लगा कर थपकियां देते हुए सुलाने की लाख कोशिश करते, लेकिन वह एक घड़ी भी सो न पाता.

उसे सुकून मिलता तो महज अपनी गर्लफ्रैंड तानी के साथ. वह उस के घर के सामने रहने वाले एक परिवार की बेटी थी.

वे दोनों बचपन से एकसाथ पलेबढ़े थे. इस दुर्घटना के महज एक सप्ताह बाद ही उन दोनों को सीए फाइनल का एग्जाम देना था.

तानी ने तो सीए का फाइनल एग्जाम दिया और उस ने पहली ही बार में उत्तीर्ण कर लिया, लेकिन घर में तीनतीन मौतों के बाद पराग की मानसिक हालत ऐसी न थी कि वह परीक्षा दे पाता. तो उस ने उस बार सीए फाइनल एग्जाम नहीं दिया.

हेल्थ के लिए ठीक नहीं टाइट जींस, हो सकते हैं ये 9 नुकसान

आजकल लड़कियों को टाइट व स्किनी जींस पहनना पसंद है, भले ही वे इस में कंफर्टेबल हों या ना हों, लेकिन कैरी करती हैं. दरअसल उन्हें लगता है कि इस से उन का फिगर सैक्सी लगेगा और सब का ध्यान उन की तरफ अट्रैक्ट होगा. पर क्या आप जानती हैं टाइट जींस आप को बीमार कर रही है और इस की वजह से आप अस्पताल तक पहुंच सकती हैं?

जी हां, औस्ट्रेलिया के एडिलेड शहर में एक लड़की के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है. स्टाइलिश व सैक्सी दिखने के लिए लड़की ने टाइट जींस पहन तो ली थी, लेकिन यही टाइट जींस ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया, जहां पता चला कि उस की पैरों की मांसपेशियों में खून की सप्लाई रुक जाने से यह हादसा हुआ है. लड़की की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि वह अपने पैरों पर खड़ी भी नहीं हो पा रही थी, उसे रैंग कर लोगों की मदद लेनी पड़ी.

लड़कियां टाइट जींस पहनना क्यों करती हैं पसंदः

– लड़कियों को लगता है टाइट व फिटिंग के कपड़ों में ही सैक्सी दिख सकती हैं.

– लड़कों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए.

– बोल्ड व कौंफिडैंट नजर आने के लिए.

– अपडेट व स्टाइलिश दिखने के लिए.

– आप मानें चाहे ना मानें लेकिन लड़कियां अपनी फ्रैंड्स को जलाने के लिए भी टाइट जींस पहनना पसंद करती हैं.

– कुछ लड़कियां केवल दूसरों को देख कर पहनती हैं.

फैशन के साथ खुद को अपडेट रखना अच्छी बात है लेकिन इस की वजह से हैल्थ को अनदेखा करना सही नहीं है. टाइट जींस भले ही फिगर को सैक्सी लुक देती हो, पर ये नुकसानदायक होते हैं. लेकिन इस की वजह से कई तरह के हैल्थ प्रौब्लम होते हैं जिन पर शायद ही आप ध्यान देती हों.

पीठ दर्द की समस्याः

आज के समय में हम में से अधिकांश लड़कियां लो वैस्ट जींस पहनना पसंद करती हैं. टाइट व लो वैस्ट जींस हमारे पीठ की मसल्स को कौंप्रैस और हिप बोन के मूवमैंट को रोकती हैं, जिस का हमारे स्पाइन और पीठ पर दबाव पड़ता है और दर्द की समस्या उत्पन्न होती है.

बेहोश होनाः

हमेशा टाइट व फिटिंग के कपड़े पहनने से घुटन होने लगती है, जिस की वजह से सांस लेने में दिक्कत होती है, हमें चक्कर आने लगता है और हम बेहोश हो जाते हैं.

पेट दर्दः

जब हम टाइट कपड़े पहनते हैं तो कपड़ा हमारे पेट पर चिपक जाता है, जिस की वजह से पेट पर प्रैशर पड़ता है और पेट दर्द होता है. यही नहीं टाइट जींस पाचन क्रिया को भी असंतुलित करती है, जिस से एसिडिटी व जलन होती है.

यीस्ट इंफैक्शन:

यह मुख्य रूप से उन स्थानों पर ज्यादा होता है जहां पसीना ज्यादा निकलता है और जो स्थान गरम होते हैं. टाइट जींस पहनने से शरीर को हवा नहीं लग पाती, जिस के कारण शरीर में यीस्ट का प्रोडक्शन बढ़ जाता है. इस में खुजली, जलन व दर्द होती है. अगर इसे अनदेखा किया जाए तो खतरनाक हो सकता है.

शरीर में दर्द:

टाइट जींस थाई की नर्व्स को कौंप्रैस करती है, जिस से झनझनाहट, सुन्न व जलन महसूस होता है. इस से सिरदर्द, शरीर दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं टाइट जींस पहनने से उठनेबैठने की समस्या भी होती है और बौडी का पौयश्चर बिगड़ने लगता है.

थकान महसूस होनाः

जब हम टाइट जींस पहनते हैं तो बहुत जल्दी थक जाते हैं, जिस का असर हमारे काम पर पड़ता है. तब सोचते हैं कि काश औफिस में नाइट ड्रैस पहनने की आजादी होती इसलिए अगर आप को भी ऐसा लगता है तो कुछ दिन ढीले कपड़े पहन कर देखिए, आप को फर्क खुद पता चल जाएगा.

फंगनल व बैक्टीरियल इंफैक्शन का खतराः

टाइट जींस की वजह से फंगनल और बैक्टीरियल इंफैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इस से त्वचा पर लाल दाने निकल जाते हैं, रेशैज आ जाते हैं.

जींस के अलावा भी हैं कई आउटफिट:

केवल टाइट व स्किनी जींस ही हमें बीमार नहीं करती बल्कि ऐसे और भी कई कपड़े हैं जिन का हैल्थ पर इफैक्ट पड़ता है, उन में से एक है शेपवियर. शेपवियर भले ही शरीर के एक्स्ट्रा फैट को छुपा कर स्लिम दिखाते हैं लेकिन इस से और्गन पर प्रभाव पड़ता है. शेपवियर के अलावा टाइट ब्रा, पैंटी, फिटिंग की टीशर्ट, टाइट बैल्ट, हाई हील का भी असर पड़ता है.

लड़कों पर भी पड़ता है इफैक्टः

टाइट जींस का असर केवल लड़कियों पर ही नहीं पड़ता बल्कि लड़कों पर भी पड़ता है. टाइट जींस से उन की प्रजनन क्षमता कम होने लगती है. जांघ के आसपास ज्यादा दबाव व ताप बढ़ता है जिस से खून के संचार में रुकावट आती है. इतना ही नहीं टाइट टाई और छोटी कौलर के शर्ट व टीशर्ट से मस्तिष्क तक खून का प्रभाव रुक सकता है, जिस से नजर का धुंधलापन कानों में झनझनाहट और माइगे्रेन की शिकायत होती है.

किन बातों का ध्यान रखें

– जींस का चुनाव करते समय फैब्रिक का ध्यान रखें. यह जरूर देख लें कि फैब्रिक बहुत ज्यादा मोटा ना हो, क्योंकि फैब्रिक का त्वचा पर प्रभाव पड़ता है.

– कपड़े अच्छी तरह से धूप में सुखाएं, क्योंकि कई बार नमी की वजह से बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं.

– अगर आप को बहुत ज्यादा भागदौड़ करना है, घूमना है तो गरमी में टाइट जींस का प्रयोग कम करें.

– धोते समय साबुन व सिर्फ अच्छी तरह से निकालें ताकि त्वचा को संक्रमण से बचाया जा सकें.

– हम जींस को कई बार पहनने के बाद धोते हैं. ऐसा ना करें बल्कि 3-4 बार पहनने के बाद ही धो दें.

क्या शादी के बाद प्यार कम हो जाता है?

सवाल

मेरा प्रेम विवाह हुआ है. शादी से पहले हम दोनों एकदूसरे पर जान छिड़कते थे. रोज फोन पर बातें करना, आएदिन डेट पर जाना, उस का मेरी हर बात को सिरआंखों पर लेना, मेरी हर चीज का ध्यान रखना, मेरी खूबसूरती की तारीफ करना, यह सब था हमारी लाइफ में. लेकिन शादी के बाद ऐसा कुछ भी न रहा. अब किसी चीज की कमी नहीं, कमी है तो सिर्फ प्यार की. न जाने वह पहला वाला प्यार कहां खो गया है. क्या शादी के बाद सब के साथ ऐसा होता है?

जवाब

आप भी वही हैं और आप का बौयफ्रैंड (अब पति) भी वही है लेकिन परिस्थितियां बदल गई हैं. इतनी सम?ादार तो आप हैं ही कि यह सम?ाती हैं कि शादी के बाद वह बात नहीं रहती जो शादी से पहले होती है. माहौल बदल जाता है. जिंदगी में दूसरे लोग भी आ जाते हैं. हम कहते तो हैं कि शादी के बाद लड़की को ससुराल में बहुत एडजस्ट करना पड़ता है लेकिन लड़कों को भी काफी कुछ एडजस्टमैंट करना पड़ता है.

अपने घरवालों और पत्नी के बीच उसे भी तालमेल बना कर चलना पड़ता है. लड़की के लिए तो ससुरालवाले सारे नए होते हैं लेकिन लड़के के लिए तो उस के सारे अपने हैं और पत्नी को वह अपनी खुशी से विवाह कर लाया होता है. घरवालों और पत्नी दोनों को साथ ले कर उसे चलना होता है.

कई बार लड़का अपने घर की प्रथाओं को मानने पर जोर देता है और लड़की अपनेआप को बदलने के बजाय परिवार को अपने तरीके से चलाना चाहती है. यही वजह होती है कि दोनों के बीच नोक?ांक शुरू हो जाती है और प्यार कम होता नजर आने लगता है.

शादी से पहले लड़केलड़कियों की कोई जिम्मेदारी नहीं होती और वे अपनी दुनिया में खोए रहते हैं. लेकिन शादी के बाद परिवार के लोगों की ओर भी ध्यान केंद्रित करना पड़ता है. इस के अलावा रोजमर्रा की जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगती हैं. जिम्मेदारियों का बो?ा पतिपत्नी से प्यार को पीछे धकेल देता है.

शादी के बाद जब लड़कालड़की जौइंट फैमिली में रहते हैं तब किसी भी निर्णय में घर के बड़ों की सलाह लेते हैं. ऐसे में कई बार दोनों को ऐसा करना ठीक लगता है क्योंकि बड़ों का निर्णय ठीक होता है, लेकिन बहुत बार दोनों में से किसी एक को यह निर्णय बंधन लगने लगता है जिस की वजह से आपसी प्यार कम होता नजर आने लगता है. इस के अलावा भी परिवार का ज्यादा इंटरफेयर पतिपत्नी के बीच दरार डाल देता है.

कई बार शादी के बाद पतिपत्नी दोनों अपनी दिनचर्या में इतने उल?ा जाते हैं कि उन के पास एकदूसरे के लिए समय ही नहीं होता. समय की कमी भी एकदूसरे के बीच कम होते प्यार की वजह हो सकती है.

इन सब वजहों से दिक्कतें आती हैं. आप दोनों के बीच में कौन सी वजहें हैं, ये आप बेहतर जानती होंगी. हम तो यही कहेंगे कि ऐसी वजहें शादीशुदा जिंदगी में तो आएंगी ही. फिर आप ऐसा क्यों नहीं सोचतीं कि आप उन खुशनसीब लोगों में से एक हैं जिन के प्यार को सफलता मिली. घरवालों की रजामंदी मिली और आप दोनों पतिपत्नी बने. पतिपत्नी के रिश्ते की खूबसूरत डोर आप के ही हाथ में है. नईनई शादी हुई है. प्यार के अनमोल पलों को यों ही न गंवाएं.

अपनी शादीशुदा जिंदगी के मजे लें. प्यार को कुछ स्पाइसी, कुछ एक्साइटिंग बनाइए. फिर देखिए, पति महाशय पहले वाले बौयफ्रैंड नजर आएंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मुंह की साफसफाई के प्रति लापरवाही क्यों?

खूबसूरत मुसकान के लिए ओरल हाइजीन यानी मुंह की साफसफाई बहुत जरूरी है. ओरल हाइजीन का ध्यान न रखने से दांतों सहित और कई बीमारियां हो सकती हैं. कुछ बीमारियां निम्न हैं:

सांस की बीमारी:

अगर आप को मसूड़ों की बीमारी है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि बैक्टीरिया आप के खून से होते हुए फेफड़ों में पहुंच जाएं, जिस का सीधा असर श्वसनतंत्र पर पड़ता है. ऐसे में ऐक्यूट ब्रोंकाइटिस और क्रोनिक निमोनिया की संभावना बढ़ जाती है.

दिल की बीमारी और स्ट्रोक:

दांतों की बीमारियों से पीडि़त लोगों में दिल की बीमारियों की संभावना अधिक होती है. प्लौक और बैक्टीरिया मसूड़ों से होते हुए शरीर में चले जाते हैं. बैक्टीरिया से धमनियां ब्लौक हो जाती हैं, जिस से गंभीर हार्ट अटैक हो सकता है. अगर दिमाग को खून पहुंचाने वाली धमनियां ब्लौक हो जाएं तो स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है.

डिमेंशिया:

अगर मुंह की साफसफाई का ध्यान न रखा जाए तो आप दांत खो भी सकते हैं. इस का असर आप की याददाश्त के अलावा दिमाग के कई हिस्सों पर भी पड़ता है.

अन्य गंभीर समस्याएं:

मुंह की साफसफाई रखने से कई अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं जैसे बांझपन की समस्या, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, समयपूर्व प्रसव आदि.

कैसे रखें मुंह को साफ

मुंह को साफ रखने के लिए सिर्फ सुबहशाम दांतों में ब्रश करना ही काफी नहीं होता. आइए, जानते हैं कुछ आसान व जरूरी तरीके:

ठीक से ब्रश करें:

ब्रश करते समय ध्यान रखें कि ब्रश के दांते मसूड़ों से 45 डिग्री पर हों. मसूड़ों और दांतों की सतह ब्रश के संपर्क में रहे. दांतों की बाहरी सतह पर आगेपीछे, ऊपरनीचे रगड़ें. ब्रश को हलके से रगड़ें ताकि मसूड़ों से खून न आने लगे. दांतों और मसूड़ों की भीतरी सतह पर भी 45 डिग्री का कोण बनाते हुए आगेपीछे, ऊपरनीचे रगड़ें. अंत में जीभ और मुंह की छत को साफ करें ताकि मुंह से बैक्टीरिया साफ हो जाएं और दुर्गंध न आए. दिन में कम से कम 2 बार ब्रश जरूर करें. अगर आप 2 बार ब्रश न कर सकते हों तो कुल्ला कर के अच्छी तरह मुंह साफ करें ताकि भोजन के कण मुंह में न रहें, क्योंकि इन से मुंह में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं.

जीभ अच्छी तरह साफ करें:

जीभ को रोजाना अच्छी तरह साफ करें. इस के लिए टंग क्लीनर का इस्तेमाल करें. मुंह को अच्छी तरह साफ न करने से हजारों बैक्टीरिया मुंह में पनपने लगते हैं, इन दांतों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और मुंह से बदबू भी आने लगती है.

फ्लास:

फ्लास का इस्तेमाल करने से मुंह से भोजन के कण अच्छी तरह निकल जाते हैं. ये सिर्फ ब्रश से नहीं निकल पाते. फ्लास दांतों के बीच पहुंचता है जबकि ब्रश या माउथवाश नहीं पहुंच पाता. इसलिए दिन में कम से कम 1 बार फ्लास का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.

माउथवाश:

कुनकुने सेलाइन वाटर से कुल्ला करें. इस से मुंह में मौजूद बैक्टीरिया मर जाते हैं. सांस की बदबू भी खत्म होती है और दांत मजबूत बने रहते हैं.

कैल्सियम और अन्य विटामिनों का सेवन करें:

कैल्सियम दांतों और हड्डियों की सेहत के लिए बहुत जरूरी है. इस के लिए दूध, फोर्टीफाइड औरेंज जूस, योगहर्ट, ब्रोकली, चीज एवं अन्य डेयरी उत्पादों का सेवन करें.

कैल्सियम और विटामिन डी मसूड़ों और दांतों को स्वस्थ बनाए रखते हैं. विटामिन बी कौंप्लैक्स भी दांतों और मसूड़ों को खून रिसने से सुरक्षित रखता है. कौपर, जिंक, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम दांतों के स्वास्थ्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

कौफी का सेवन सीमित मात्रा में करें:

हालांकि इन पेयपदार्थों में फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है, जो मुंह के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, लेकिन बहुत ज्यादा फास्फोरस से भी शरीर में कैल्सियम के स्तर पर बुरा असर पड़ता है. इस से दांतों की समस्याएं हो सकती हैं जैसे दांत सड़ना और मसूड़ों की बीमारियां. इसलिए दूध जैसे पेयपदार्थों का सेवन करें. चीनी युक्त पेयपदार्थों के बजाय पानी का सेवन बेहतर है.

तंबाकू का सेवन न करें:

तंबाकू न केवल मुंह में बदबू पैदा करता है, बल्कि कई अन्य बीमारियों का कारण भी बनता है.

उदाहरण के लिए अगर आप सिगरेट पीते हैं, तो हो सकता है कि आप इस की बदबू छिपाने के लिए कैंडी, चाय या कौफी का इस्तेमाल करते हों, पर इस से खतरा दोगुना हो जाता है.

अगर आप के मसूड़ों में दर्द होता है या ब्रश करते समय खून आता है अथवा मुंह से बदबू आती है, तो तुरंत डैंटिस्ट से मिलें. साल में 2 बार नियमित दांतों की जांच करवानी चाहिए ताकि अगर कोई समस्या हो तो तुरंत पकड़ में आ जाए और समय पर उस का इलाज हो सके.

– डा. प्रवीण कुमार, डाइरैक्टर, डिपार्टमैंट औफ डैंटल, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

गृह बाधाओं को दूर करने के लिए हुई 10 लाख रुपए की ठगी

ऐसा प्रतीत होता है मानो हम ठगों के एक ऐसे गिरोह के आसपास सांसे ले रहे हैं जो हमें कभी भी किसी भी तरह ठगने के लिए तैयार बैठा है. अब यह तो हमारा समय है या फिर हमारी समझदारी जो हम ठगी से अभी तक बचे हुए हैं.

यह कि अगर हम ठगी से बचना चाहते हैं तो हमें सतत अपनी आंख, कान‌ को खुला रखना होगा, थोड़ा सा भी लालच और लापरवाही हमें इन ठगों का शिकार बना सकती है. दरअसल, सोशल मीडिया आ जाने के बाद ऐसा प्रतीत होता था कि आम लोगों में जागरूकता पैदा होगी और ठगों की शामत आ जाएगी. मगर ऐसा नहीं हुआ है बल्कि ठगी की घटनाएं और भी ज्यादा होने लगी हैं.

अंधविश्वास की चपेट में

हाल ही में छत्तीसगढ़ में एक शख्स को बड़े ही अनोखे अंदाज में ठगा गया, जिस पर कोई प्रयोगधर्मी निर्माता फिल्म भी बना सकता है. हुआ यह कि, ‘घर में भूतप्रेत बाधा है’ कह कर एकदो नहीं, पूरे 10 लाख रुपए का चूना लगा दिया गया.

झूठी घटनाएं नीचे प्रस्तुत हैं –

प्रथम घटना- नोटों को दोगुना करने का लालच दे कर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक महिला को ठगी का शिकार बनाया गया. आखिरकार ठगी करने वाले को पुलिस ने जेल भेज दिया.
दूसरी घटना- राजस्थान के जयपुर में सोना दोगुना करने का झांसा दे कर युवती को ठगी का शिकार बनाया गया.
तीसरी घटना- झारखंड के रांची में, ‘तुम्हारे घर के नीचे सोना, चांदी, हीरे मोती हैं’ कह कर ठगी का शिकार बनाया गया.
ऐसी ही हमारे आसपास चेहरे और नाम बदलकर ठगी की घटनाएं घटित हो रही हैं. इन्हें अगर हम ध्यान से देखें तो स्वयं बच सकते हैं और दूसरों को भी अगाह कर सकते हैं.

10 लाख रुपए की ठगी

छत्तीसगढ़ के अकलतरा में पुलिस द्वारा कथित तौर पर ‘गृहबाधा’ दूर करने के नाम से 10 लाख रुपए की ठगी करने वाले आरोपी की गिरफ्तारी की गई है. आरोपी ने अपने साथियों के साथ मिल कर ग्रहदशा दूर करने का झांसा दे 10 लाख रुपए और मोबाइल की ठगी कर ली.

मामला छत्तीसगढ़ के जिला चांपा जांजगीर के विकासखंड अकलतरा थाना क्षेत्र का है. अकलतरा थाना क्षेत्र के एक गांव कोटमीसोनार निवासी आनंद प्रकाश मिरी से 10 लाख रुपए मोबाइल की ठगी की गई थी. कुछ घरेलू समस्याओं के चलते आनंद प्रसाद मिरी परेशान थे. उन्हें कुरमा निवासी कुमार पाटले ने तंत्रमंत्र से समस्या का समाधान होने का झांसा दिया. उस ने कहा, ‘बाहर से पंहुचे हुए पंडित बुला कर ग्रहों को शांत करवाना होगा जिस से विघ्नबाधा दूर होगी.’

और आखिर कुमार पाटले ने विनोद कुमार सूर्यवंशी और जगदीश प्रसाद लहरे ऊर्फ कल्लू को तांत्रिक बना कर आनंद मिरी से मिलवाया.

आनंद मिरी से फर्जी तांत्रिकों ने 10 लाख रुपए अनुष्ठान में लगने की बात कही और अनुष्ठान के दिन 10 लाख रुपए लाने का झांसा दिया. जब आनंद मिरी किसी तरह 10 लाख रुपए ले कर पहुंचे तो फर्जी बाबाओं व कुमार पाटले ने उन्हें अनुष्ठान से पहले गंगाजल पीने को दिया, जिस को पीने से आनंद मिरी बेहोश हो गए. बाद में ठग गैंग 10 लाख रुपए और मोबाइल ले कर फरार हो गया.
प्रकरण में अकलतरा थाने में धोखाधड़ी व आपराधिक षड्यंत्र का अपराध दर्ज कर विनोद कुमार सूर्यवंशी उर्फ विक्रम और जगदीश लहरे ऊर्फ कल्लू को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, जबकि आरोपी अमित कुमार पाटले साकिन कुरमा फरार हो गया था.

पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला के निर्देश पर अकलतरा थाना प्रभारी दिनेश कुमार यादव ने आरोपी की पतासाजी कर उसे गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने बताया, ‘अब छत्तीसगढ़ शिक्षा से पिछड़ा हुआ अंचल‌ नहीं है मगर इस सब के बावजूद यहां ठगी की घटनाएं भूतप्रेत और बलि के घटनाक्रम प्रकाश में आते रहती हैं.’ दरअसल, छत्तीसगढ़ में वर्तमान में भी शिक्षा और जागरूकता के प्रचारप्रसार की महती आवश्यकता है.

गर्भ रखने या गिराने का फैसला औरत का होना चाहिए

देश में कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब अखबार के किसी पन्ने पर औरतों या मासूम बच्चियों से बलात्कार की कोई खबर न छपी हो. दुधमुंही बच्ची से ले कर नाबालिग लड़की या औरत को अकेला पाते ही मर्द की कामपिपासा जाग उठती है और वह वहशी दरिंदे का रूप धर कर उस पर टूट पड़ता है.

अकेली और असहाय स्त्री यदि पुरुष के सामने हो तो फिर धर्म, जाति, संप्रदाय, ऊंचनीच, छुआछूत यानी मनुवाद के सारे नियम गौण हो जाते हैं, दिखाई देता है तो बस स्त्री का जिस्म. फिर चाहे वह 3 साल की अबोध बच्ची हो, 30 साल की जवान औरत या 70 साल की बुजुर्ग महिला. हवस के अंधे पुरुष को उस की उम्र, उस की जात या चमड़ी के रंग से कोई मतलब नहीं होता. उस वक्त उस का सारा ज्ञान, सारा धर्म और सारे संस्कार एक छिद्र पर केंद्रित हो जाते हैं.

भारत में प्रतिदिन औसतन 86 बलात्कार के मामले और प्रति घंटे महिलाओं के खिलाफ 49 अपराध के मामले दर्ज किए जाते हैं. स्त्री के प्रति यह अपराध उन के घरों में, महल्लों में, स्कूलों में, कालेजों में, खेतों में, खलिहानों में, सड़कों पर, ट्रेनों में, होटलों में, रिसोर्ट में, औफिसों में कहीं भी हो रहे हैं. बलात्कार करने वाले उस के घर के पुरुष हैं, महल्ले के दबंग हैं, रिश्तेदार हैं, दोस्त हैं, टीचर हैं, साथ काम करने वाले हैं, बौस हैं, चपरासी हैं, पुलिसकर्मी हैं और अनेक अनजान लोग हैं.

बलात्कार की घटनाओं के बाद अनेक स्त्रियां गर्भवती हो जाती हैं. नाबालिग लड़कियों को तो कई बार मालूम ही नहीं पड़ता कि वे गर्भवती हो गई हैं. कई बच्चियां डर के मारे या धमकाए जाने के कारण किसी को बताती ही नहीं हैं कि उन का रेप हुआ या हो रहा है. उन के मांबाप को इस का पता तब चलता है जब गर्भ के कारण उन का पेट निकलने लगता है.

स्कूलकालेज जाने वाली अनेक लड़कियां जो बलात्कार के बाद गर्भवती हो जाती हैं, अकसर अपनी माओं या सहेली के साथ प्राइवेट क्लिनिक्स में लेडी डाक्टर के चक्कर लगाती दिखती हैं कि किसी तरह इस अनचाहे गर्भ से लड़की को छुटकारा मिल जाए और समाज में परिवार की इज्जत बची रहे. भारत के अनाथाश्रमों में लाखों की संख्या में ऐसे नवजात शिशु पल रहे हैं जिन को पैदा कर के मरने के लिए सड़कों पर, कूड़े के ढेर पर, नालियों में, या गटर में फेंक दिया गया. क्यों? क्योंकि समय पर गर्भवती अपना गर्भ गिराने में नाकाम रही और मजबूरन उसे अनचाहे बच्चे को जन्म देना पड़ा.

कानूनी जटिलता बड़ा कारण

गौरतलब है कि भारत में अबौर्शन यानी गर्भपात कराने को ले कर कानून काफी सख्त है. यहां 6 माह यानी 24 सप्ताह से ज्यादा के गर्भ को गिराने पर रोक है. मैडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैगनैंसी एक्ट के मौजूदा प्रावधान के अनुसार, 24 सप्ताह तक के गर्भ को ही निष्क्रिय करने का प्रावधान है.

विवाहित महिलाओं के साथ रेप सर्वाइवर, दिव्यांग महिलाएं और नाबालिग किशोरियों पर यह प्रावधान लागू होता है. लेकिन हाल ही में देश के सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा मामला आया जिस में 30 सप्ताह का गर्भ गिराने की मंजूरी कोर्ट ने दी है.

22 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने 30 सप्ताह के गर्भ का अबौर्शन कराने का आदेश संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दी गई शक्तियों के आधार पर दिया है. अनुच्छेद 142(1) के तहत कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उस के समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उस के अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा.

आखिर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल क्यों किया? और क्या अब इस फैसले को कानून नहीं मान लेना चाहिए? जबकि देश में ऐसी अनेक महिलाएं और कम उम्र की लड़कियां हैं जो बच्चा नहीं चाहती हैं मगर मजबूरन या अनचाहे ही उन्हें बच्चे को जन्म देना पड़ता है.

गर्भ पर किस का हक

बलात्कार पीड़िता कभी भी अनचाहे बच्चे को पैदा नहीं करना चाहती क्योंकि एक तरफ समाज में जहां उस की और उस के परिवार की इज्जत खत्म हो जाती है, लोग तरहतरह के ताने दे कर उस का जीवन मुश्किल कर देते हैं, वहीं ऐसी लड़की की शादी भी नहीं होती है. एक अनचाहे बच्चे की जिम्मेदारी उस को ताउम्र उठाने के लिए बाध्य होना पड़ता है और इस में उस की मदद कोई नहीं करता. इन तमाम वजहों से कोई लड़की ऐसा बच्चा पैदा नहीं करना चाहती है. लेकिन कई बार फैसला लेने में काफी वक़्त निकल जाता है. कई बार ऐसा डाक्टर नहीं मिलता जो उस को इस अनचाहे गर्भ से मुक्ति दे दे और समयसीमा गुजर जाने के बाद वे गर्भावस्था कानून का हवाला दे कर ऐसा केस लेते ही नहीं हैं.

अगर कोई लड़की या महिला अनचाहा गर्भ गिराना चाहती है तो इस का फैसला लेने का हक उसे होना चाहिए. शरीर उस का है, भावनाएं उस की हैं, इच्छाअनिच्छा उस की है तो फैसला भी उस का होना चाहिए. डाक्टर को सिर्फ इतना देखने की जरूरत है कि गर्भपात के वक्त स्त्री की सेहत को कोई नुकसान न पहुंचे.

आखिर सुप्रीम कोर्ट ने भी गर्भावस्था कानूनों को दरकिनार कर लड़की की पारिवारिक और सामाजिक स्थिति को समझते हुए गर्भपात का आदेश दिया ही. आइए पहले जानें कि 30 सप्ताह के भ्रूण को गिराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने किन परिस्थितियों में दिया.

सुप्रीम कोर्ट के सामने एक 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता का मामला आया जिस में उस ने अपने 30 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत मांगी. इस से पहले यह बच्ची अपनी मांग ले कर बौम्बे हाईकोर्ट गई थी मगर हाईकोर्ट ने गर्भ गिराने की मंजूरी नहीं दी.

उम्मीद जगाते फैसले

गौरतलब है कि इस मामले में पीड़िता की ओर से 20 मार्च, 2024 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी. चौंकाने वाली बात यह है कि तब तक पीड़िता को गर्भ धारण किए हुए 24 सप्ताह से ज्यादा का वक्त हो चुका था. पुलिस ने धारा 376 के साथ ही पोक्‍सो एक्‍ट के तहत मामला दर्ज किया था. उस के बाद हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो उस ने गर्भ गिराने की मंजूरी नहीं दी. मगर सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत ऐक्शन लिया और मैडिकल बोर्ड का गठन कर बच्ची को उस की पीड़ा से मुक्ति का रास्ता साफ किया.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर लड़की को गर्भ गिराने की मंजूरी दे दी. यही नहीं, कोर्ट ने डाक्टरों के एक्सपर्ट पैनल के नेतृत्व में पीड़िता की प्रैगनैंसी को खत्म करने का निर्देश दिया.

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने पीड़िता की ओर से तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग को ले कर भेजे गए एक ईमेल पर गौर किया. यह ईमेल जस्टिस चंद्रचूड़ को रात में मिला था और उन्होंने तत्काल सुनवाई के लिए अगले ही दिन शाम करीब साढ़े 4 बजे कार्यवाही शुरू की. अतिरिक्त सौलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुईं.

पीठ ने मुंबई के सायन अस्पताल से पीड़िता की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति के बारे में रिपोर्ट मांगी. पीठ ने कहा कि अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक एक मैडिकल बोर्ड का गठन करेंगे और इस की रिपोर्ट सुनवाई की अगली तारीख 22 अप्रैल को अदालत के समक्ष रखी जाएगी. 22 अप्रैल को जब रिपोर्ट कोर्ट के पटल पर आई, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मैडिकल बोर्ड की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए नाबालिग रेप पीड़िता को 30 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दे दी.

इस पूरी प्रक्रिया में आने वाला खर्च सरकार को वहन करना होगा. मैडिकल बोर्ड ने अपनी सिफारिश में कहा था कि नाबालिग की मरजी के विपरीत जा कर प्रैगनैंसी को बरकरार रखा जाता है तो मानसिक के साथ शारीरिक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ सकता है.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया. सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के सायन स्थित लोकमान्य तिलक महानगरपालिका सर्वसाधारण रुग्णालय एवं वैद्यकीय महाविद्यालय (एलटीएमजीएच) के डीन को निर्देश दिया कि वे नाबालिग बच्ची के गर्भपात के लिए चिकित्सकों के दल का तत्काल गठन करें.

यदि सुप्रीम कोर्ट यह कदम न उठाती तो हो सकता था कि 3 महीने बाद फिर एक अनचाहा बच्चा शायद किसी नाली या कूड़ेघर से उठा कर किसी अनाथाश्रम में पहुंचाया जाता. हो सकता था कि 14 साल की वह नाबालिग बच्ची न चाहते हुए भी उस बच्चे को जन्म देती और परिवार व समाज के तानों और नफरतों को झेलते हुए उस बच्चे को पालने के लिए अपना पूरा जीवन नष्ट करती. मगर कोर्ट के फैसले ने उस का जीवन बरबाद होने से बचा लिया. मगर सोचना चाहिए कि ऐसे कितने केस कोर्ट के सामने आते हैं?

अधिकांश मामलों में ऐसे अनचाहे बच्चे पैदा होते हैं और फिर मरने के लिए फेंक दिए जाते हैं. यदि गर्भ गिराने का फैसला सिर्फ उसे धारण करने वाली की इच्छा पर निहित हो तो डाक्टर भी गर्भपात से हिचकिचाएंगे नहीं. अभी तो हाल यह है कि जैसे ही डाक्टर को पता चलता है कि लड़की शादीशुदा नहीं है बल्कि बलात्कार का शिकार होने पर गर्भवती हुई है वैसे ही पुलिस केस की बात कह गर्भपात से इनकार कर देते हैं. इस के बाद अनचाहे गर्भ को ढोने और पैदा करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है.

Mother’s Day 2024 – बेटी : मां अपनी पोती के साथ कैसा व्यवहार कर रही थी?

सीमा को चुभने लगा था मां का बातबात पर उस की तारीफ करना और टिन्नी को उस का उदाहरण देदे कर घुङकना. लेकिन अभी भी बीते वक्त से चिपकी मां आज और कल में फर्क नहीं करना चाहती थीं. जब यही अंतर सीमा ने मां को समझाय तो वह हतप्रभ रह गईं.

तेज कदमों से अपूर्व को घर में दाखिल होते देख सीमा सोचने लगी कि आज जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि जब भी कोई नई सूचना अपूर्व को मिलती, अपनेआप ही उन की साधारण चाल में तेजी आ जाती.
सीमा को अपूर्व की यह सरलता बहुत भाती. अपूर्व के घर में दाखिल होने से पहले ही सीमा ने दरवाजा खोल दिया. अपूर्व ने आश्चर्य से सीमा को देखा और पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं आ गया हूं?’’

‘‘यह कहिए कि आया ही नहीं हूं, एक अच्छी खबर भी साथ में लाया हूं, अपूर्व के चेहरे को देख कर सीमा बोली.’’

‘‘तुम्हें तो जासूसी विभाग में होना चाहिए था,’’ अपूर्व हंस कर बोले.

‘‘जल्दी से बताइए, क्या खुशखबरी लाए हैं,’’ सीमा चहकी.

‘‘चाय की चुसकी के साथ बताऊंगा,’’ अपूर्व सीमा के धैर्य की परीक्षा लेते हुए बोले.

‘‘अभी हाजिर है,’’ कह कर सीमा रसोई में गई और 2 प्याले चाय बना कर ले आई. बोली, ‘‘अब बताओ.’’

‘‘मैडम, अपना बिस्तर बांधने की तैयारी कर लो. तुम्हारा बहुत अच्छे शहर में तबादला हुआ है, वह भी प्रोमोशन के साथ,’’ अपूर्व खुश हो कर बोले.

‘‘सच, कब आया और्डर? मुझे तो कोई सूचना नहीं मिली.’’

‘‘हेड औफिस में पता लगाया है, मैडम. अब तुम अधिकारी बन गई हो.’’

‘‘जगह का नाम तो बताओ, तभी तो सोचूंगी कि प्रोमोशन लूं या नहीं,’’ सीमा उत्सुक हो कर बोली.

‘‘जगह का नाम सुनते ही खुशी से उछल पड़ोगी,’’ अपूर्व सीमा को छेड़ते हुए बोले, ‘‘इस छोटे से कसबे को छोड़ कर आप मायके जा रही हैं.’’

शहर का नाम सुनते ही सीमा एमदम से खामोश हो गई. सीमा को चुप देख कर अपूर्व बोले, ‘‘क्या बात है, सीमा. कानपुर का नाम सुनते ही तुम गंभीर हो गईं. औरतें तो मायके का नाम सुनते ही सातसमंदर पार जाने के लिए तैयार हो जाती हैं. एक तुम हो.’’
अपूर्व की बात बीच में ही काटते हुए सीमा बोली, ‘‘ऐसी बात नहीं है. मां का ध्यान आने पर मैं उन्हीं के बारे में सोचने लगी थी.’’

सीमा आश्वस्त थी कि अपूर्व की सरलता उस के झूठ को नहीं पकड़ सकेगी. बातों का रुख मोड़ते हुए सीमा बोली, ‘‘पहले लैटर तो आने दीजिए. इस बारे में तभी सोचेंगे. चलो, अभी कहीं घूम आएं.’’

बिस्तर पर लेटते ही सीमा के विचार मायके के इर्दगिर्द घूमने लगे. हर तरह से संपन्न थे मायके वाले. मांबाप, भैयाभाभी और उन के बच्चे, सभी तो थे वहां. जब कभी सीमा मायके जाती, सभी बड़ी गरमजोशी से उस का स्वागत करते. खासकर मां का चेहरा तो खुशी और उत्साह से चमकने लगता. मां की गरदन गर्व से तन जाती. इसे केवल सीमा ही नहीं घर के सभी सदस्य महसूस करते. नन्हा बिट्टू तो कह भी देता, “बूआ, आप के आने से दादी का खून बढ़ जाता है. अब तो हर बात में आप की ही तारीफ होगी, कितने मजे हैं आप के.”

टिन्नी तो बूआ के आने पर अम्मां के कमरे में जाना ही छोड़ देती. अम्मां की झिड़कियों से परेशान हो कर बड़ी कातर नजर से बूआ को देखती. 10 वर्ष की टिन्नी को अम्मां दुनियादारी के बड़ेबड़े पाठ समझाने की कोशिश करतीं. चंचल और मासूम टिन्नी दुनियादारी से बेखबर अपने में ही मस्त रहती.

टिन्नी का पढ़ने में ध्यान न देख कर अम्मां उसे डांटती,”देख लेना, बड़े हो कर नाक कटाएगी. इस के लक्षण मुझे अभी से ठीक नहीं लगते. अरे, मेरी बेटी थी, मजाल है कभी पढ़ने से भी जी चुरा ले. जब देखो पढ़ती रहती थी. तभी तो आज ऊंचे ओहदे पर नौकरी कर रही है.”

टिन्नी चुपचाप किताब ले कर पढ़ने का बहाना करने लगती पर उस का मन तो कहीं दूर अपने साथियों के साथ कल्पना की ऊंची उड़ानें भर रहा होता.

मां की यह बात सच ही थी. सीमा बचपन से ही पढ़नेलिखने, सिलाईबुनाई और घर के कामों में रूचि लेती थी. जो भी उस से एक बार मिलता उस के गुणों से अवश्य प्रभावित होता. सीमा को इस का श्रेय देने के बजाय मां इसे अपनी नसीहत का परिणाम समझतीं.

पोतेपोतियों को उछलतेकूदते, हंसतेखेलते देख कर मां के तनमन में आग लग जाती और वह उन के आगे ‘बेटीपुराण’ खोल कर बैठ जातीं. परिवार के सभी लोग मां के व्यवहार के अभ्यस्त हो गए थे. सीमा का बातबात में अपनी तारीफ सुन कर अटपटा लगता. वह दबी जबान में मां को कभीकभार समझाने का प्रयत्न भी करती, “मां, तुम क्यों बेवजह टिन्नी को डांटती हो. अभी वह छोटी है. जमाना बदल रहा है. धीरेधीरे समझ जाएगी.”

सीमा की बात अनसुनी कर मां बोलीं, “आग लगे ऐसे जमाने को जिस में लड़कियां ढंग से कपड़े भी नहीं पहनतीं. तू जब छोटी थी मैं तुझे कितने सलीके से रखती थी. एक इस की मां है, उस की बला से, लङकी कैसे भी घूमे.”

सीमा के मन में आया कि वह मां से कह दे कि सीधेसादे पिताजी को दिनरात मेहनत करते हुए देख कर और उन की सादगी से प्रभावित हो कर ही उसे सादा जीवन अच्छा लगता था.

पिछले साल गरमियों की छुट्टियों में सीमा मां से मिलने कानपुर आई थी. उन्हीं दिनों बड़े भाईसाहब भी सपरिवार वहां पहले से आए हुए थे. बच्चों के शोरगुल और शरारत से अकसर मां ऊब जातीं. तब वह अपनी सारी खीज टिन्नी पर उतारतीं,”टिन्नी, इधर आ. तुझे कितनी बार समझाया कि फालतू बातों में समय बरबाद मत कर. जब देखो, भाइयों के बीच घुसी रहती है. तू तो लङकी है, कुछ सिलाईकढ़ाई सीख ले. सामने टीवी वाली मेज पर मेजपोश देख रही है, मेरी बेटी ने उसे तब बनाया था जब वह चौथी कक्षा में थी. कितनी तारीफ की थी सब ने उस की और मेरी.”

टिन्नी ने एक उचटती नजर टीवी की मेज पर डाली और बात का उत्तर दिए बिना वहां से चली गई. फिर कई दिन तक उस ने अम्मां के कमरे में झांका भी नहीं.

सामने मेजपोश को देख कर सीमा की आंखों में अपना बचपन साकार हो उठा. कितनी जतन कर के उस ने मां से कपड़ा मंगवाया था. पड़ोस की राधा मौसी के घर मुंबई से रमा दीदी आई हुई थीं, उन्हें कढ़ाई करते देख कर सीमा को भी मेजपोश बनाने का शौक चढ़ा था. 1 हफ्ते बाद कपड़ा मिलने पर कितना खुश हुई थी वह. यह तो दीदी की मेहरबानी थी जिस ने कढ़ाई के धागे उसे दे दिए थे. दीदी का निर्देशन तथा उस की मेहनत व लगन से वाकई मेजपोश खूबसूरत बना था.

सीमा महसूस करती कि मां उसे ले कर हर समय उत्साहित रहती थीं. भाइयों का जिक्र आने पर उन का उत्साह कुछ धीमा पड़ जाता था. ऐसा नहीं था कि भाई योग्य न थे. हां, बेटी की योग्यता के सामने उन का पलड़ा कुछ हलका पड़ जाता, जिस का दोष मां पिताजी के मत्थे देतीं,”बेटों को सही रास्ता पिता ही दिखाते हैं, उन्हें तो कभी बच्चों पर ध्यान देने की फुरसत ही नहीं थी. मुझे देखो, बेटी की जिम्मेदारी कितने अच्छे ढंग से निभाई, तभी तो वह इतनी लायक बनी है.”

मां ने जीवन में बहुत अभाव देते थे. पिताजी की लिपिक की छोटी सी नौकरी से घर का खर्च चलता था. मां पढ़ीलिखी नहीं थीं फिर भी वह पिताजी के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने की हमेशा कोशिश करतीं. पिताजी देर रात तक ओवरटाइम करते और मां उन के इंतजार में बैठी बुनाई करतीं. बुनाई के रुपए से पिताजी की आय में कुछ रुपए और जुड़ जाते जिसे मां बहुत जतन से खर्च करती थीं.

पिताजी की सादगी, सज्जनता और कार्य के प्रति लगन सीमा को हमेशा प्रभावित करते. उन्हीं से प्रेरित हो कर सीमा ने बचपन में ही कुछ बनने की ठान ली थी. उस की मेहनत रंग लाई. एक चयनित प्रवक्ता से अपना कैरियर शुरू कर कम उम्र में ही वह बेसिक शिक्षा अधिकारी बन गई थी.

पिताजी का अतीत से विशेष लगाव न था, जबकि मां अपने गुणों को उजागर करने के लिए अतीत की उन सीढ़ियो पर बारबार खड़ी हो जातीं जिन से गुजर कर उन की बेटी को सफलता मिली थी.

आधी रात तक मायके के विचारों में डूबतेउतराते सीमा वापस वर्तमान में लौट आई. उस ने एक नजर अपूर्व पर डाली. वे निश्चिंत हो कर सो रहे थे. अपूर्व के चेहरे पर झलकते भोलेपन को देख कर सीमा का मन भीतर तक भीग गया, ‘मेरे मायके जाने पर कितना खुश है अपूर्व, एक पल को भी उन्होंने यह नहीं सोचा कि वह अकेले कैसे रहेंगे.’ भावनाओं को नियंत्रित कर वह अपूर्व से सट कर सोने का प्रयास करने लगी.

1 हफ्ते के अंदर ही सीमा को प्रोमोशन (पदोन्नति पत्र) मिल गया. पदोन्नति की खुशी के साथ उसे अपूर्व से दूर जाने का दुख भी था. पिता के आदर्शों से प्रभावित सीमा मायके में स्थायी रूप से रहने के लिए राजी नहीं थी.

‘नए शहर में घर का प्रबंध होने में समय लगता ही है,’ यह सोच कर सीमा सरकारी आवास मिलने तक मायके में रहने के लिए राजी हो गई.
सीमा की पदोन्नति और तबादले की खबर अपूर्व ने पहले ही मां और भाई को दे दी. सभी यह जान कर खुश थे. मां की खुशी का तो ठिकाना न था. बेटी की हर सफलता को मां अपनी सफलता जो मानती थीं.

सीमा ने शीघ्र ही कानपुर आ कर अपना कार्यभार संभाल लिया. शाम को घर लौटने पर मां सीमा से बड़ी उत्सुकता से उस के काम के बारे में पूछतीं और दूसरे दिन अपनी चटपटी भाषा में सभी परिजनों को सुनातीं.
मां की इस आदत से सीमा कभी परेशान हो जाती तो कभी उन के झुर्रीदार चेहरे पर अपने अस्तित्व को आज भी बनाए रखने के अथक प्रयास पर सीमा को दया भी आती.
सीमा अकसर मां को समझाने का प्रयास करती कि अब समय बदल गया है और समझदारी इसी में है कि हमें भी समय के हिसाब से अपनेआप को बदल लेना चाहिए.

सीमा को कानपुर आए 2 हफ्ते हो गए थे. इतने ही समय में उस ने महसूस किया कि टिन्नी व बिट्टू उस से दूरी बनाने लगे थे. अम्मां के साथ बूआ को देख कर वे कन्नी काट लेते.

टिन्नी ने घर से बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला. ‘टन्न’ की आवाज सुन कर अम्मां के कान खड़े हो गए. कमरे के अंदर से ही उन्होंने जोर से पुकारा, ‘‘टिन्नी, ओ टिन्नी…’’

‘‘आई अम्मां,’’ बाहर का दरवाजा बंद करते हुए टिन्नी बोली.

‘‘कहां जा रही थी इस समय? जब देखो, इधरउधर बेवजह डोलती फिरती है. हजार बार कहा है कि जब बूआ घर पर रहती हैं तो उन से कुछ सीख लिया कर लेकिन इस की समझ में कोई बात आए तब न.’’

‘‘अभी तो स्कूल से आई हूं. थोड़ी देर खेलने भी नहीं देती हो. जब देखो, पढ़ने के लिए कहती रहती हो,’’ टिन्नी ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘खेल ने ही तो तुझे बरबाद कर रखा है. मेरी बेटी तो स्कूल से आ कर सब से पहले होमवर्क पूरा करती थी. तभी तो…’’

अपना जिक्र रोकने के लिए अम्मां की बात काटते हुए सीमा बोली, ‘‘रहने दो मां, खेल भी तो जरूरी है बच्चों के लिए.’’

‘‘क्या खाक जरूरी है. तू इस की तरह कभी खेलने गई थी, मैं ने तो तुझे खेल में कभी समय बरबाद नहीं करने दिया और हुनर सिखाए तुझे, एक इस की मां है.’’

‘‘बस भी करो मां. अब क्यों बच्चों का मन छोटा करती हो. यही तो उम्र है इन के हंसनेखेलने की,’’ कह कर बहस को वहीं खत्म करते हुए टिन्नी को साथ ले कर मैं दरवाजे के बाद चली गई. अम्मां की हार और अपनी जीत पर टिन्नी की आंखों में चमक उभर आई. बूआ का हाथ पकड़ कर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘बूआ, आप बचपन में कोई गलत काम नहीं करती थीं?’’

टिन्नी की बात सुन कर सीमा को हंसी आ गई. वह बालमन को शांत करते हुए बोली, ‘‘बहुत सारी शैतानियां करती थी. अपने पापा से पूछना, वे छुटपन में मुझे कितना मारते और डांटते थे.’’

कुछ दिन बाद ही टिन्नी की छमाही परीक्षा आरंभ होने वाली थी. अम्मां की सख्त हिदायत और निगरानी के बाद भी टिन्नी नजर बचा कर खेलने भाग जाती. समय मिलने पर सीमा भी टिन्नी को पढ़ने के लिए बैठा लेती. बेटी और पोती को पढ़तेपढ़ाते देख अम्मां को असीम सुख मिलता. वह घंटों इसी सुख में डूबी रहना चाहतीं पर टिन्नी की चंचलता अम्मां को इस सुख से महरूम कर देती.

छुट्टी का दिन था. सीमा ने धूप में टिन्नी को पढ़ने के लिए बैठा रखा था. टिन्नी का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था. दूर बैठी अम्मां बड़े ध्यान से टिन्नी की हरकतों को देख रही थीं. किताब बंद कर के टिन्नी बूआ से खेलने की इजाजत ले कर उठ गई.

अम्मां चारपाई से उठ कर सीमा के पास आईं और टिन्नी के कान उमेठते हुए बोलीं, ‘‘तू ने इसे इतनी जल्दी खेलने की इजाजत क्यों दी? थोड़ी देर और इसे बैठा कर पढ़ाती. मेरी बेटी तो देर तक बैठ कर पढ़ती रहती थी. उसे तो किताब बंद कर के लिए कहना पड़ता था. एक यह है.’’

टिन्नी की आंखों में आंसू टपकने लगे. उस ने बड़ी कातरता से बूआ को देखा. टिन्नी के गोरे गालों पर फिसलते आंसू और सिसकियों को देख कर सीमा से न रहा गया. मां की बात बीच में ही काट कर बोली, ‘‘मां, तुम बातबात में मेरा उदाहरण देना छोड़ दो. आज के और 30 साल पहले के जमाने में जमीनआसमान का अंतर है.’’

‘‘मुझे तो कोई अंतर नजर नहीं आता. बच्चे तब भी होते थे, आज भी होते हैं,’’ अम्मां चट से बोलीं.

‘‘बच्चों में तो अंतर नहीं आया, उन की भावनाओं और समझ में अंतर आया है. हम में विरोध करने का साहस नहीं था तभी सबकुछ सह लेते थे,’’ सीमा बोली.

‘‘विरोध कहां से करते. मैं ने तो विरोध करने का कभी मौका ही नहीं दिया तुम्हें,’’ मां सफाई देते हुए बोलीं.

‘‘विरोध मौके का मोहताज नहीं होता, मां. साहस की कमी ऐसे अवसर पैदा कर देती है.’’

‘‘तुझे तो मैं ने बहुत साहसी बनाया. तभी तो तू आज इस मुकाम तक पहुंची है,’’ अम्मां अपनी बात ऊपर रखने के लिए बोलीं.

सीमा चेहरे पर फीकी सी हंसी ला कर बोली, ‘‘बचपन की कई यादें आज भी जेहन में चुभती हैं, मां. बड़े भाइयों को भी तो आप ने ही पालापोसा है. कौन सी सुविधा उन्हें नहीं दी गई थी. मुझ से ज्यादा ध्यान तुम्हारा उन पर था. फिर वे तुम्हारे अनुरूप सही मुकाम तक क्यों नहीं पहुंच सके? उन में लगन की कमी थी तभी वे पिछड़ गए. मैं ने विरोध के बजाय लगन को अपना आदर्श बनाया, जिस का फल आज सामने है.’’

मां को चुप देख कर एक पल को सीमा रूकी फिर बोली, ‘‘दरअसल, मां, जो कुछ तुम मेरे लिए न कर सकीं वह सब कुछ अब टिन्नी के माध्यम से पूरा करने की कोशिश करती हो. अपनी दबी भावनाओं को भूल जाओ मां और आज के साथ टिन्नी को स्वीकार कर लो. बारबार उस में मेरा बचनन क्यों ढूंढ़ती हो? इतना ही क्या कम है कि मुझे तुम ने उस जमाने में पढ़ने का अवसर दिया.’’

मां का मुंह खुला का खुला रह गया. उन की बूढ़ी आंखें चेतनाशून्य सी हो गईं. मां का पूरा व्यक्तित्व इस वक्त सीमा को बड़ा निरीह सा लगा. वर्षों से दिल में दबे अरमान इस तरीके से जबान पर आ जाएंगे यह तो सीमा ने कभी सोचा भी न था.

सामने बैठी टिन्नी आंसू पोंछ कर मुसकराने लगी थी. उस की आंखों की चमक देख कर सीमा की ग्लानि कम होने लगी. मां को मनाने के लिए मां का हाथ अपने हाथों में ले कर उसे सहलाते हुए बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारी ही बेटी हूं. टिन्नी को भी अपनी मां की बेटी बनने का मौका दे दो, मां.’’

लेखिका-डा के रानी

सिंदूर विच्छेद: अधीरा पर शक करना कितना भारी पड़ा

लेखिका- यामिनी नयन गुप्ता

मैं अपनी मैरिड लाइफ से परेशान हूं ,मेरी पत्नी चली गई है, मैं उसे वापस लाना चाहता हूं?

सवाल 

मेरी उम्र 33 साल है, शादीशुदा हूं. मेरी मैरिड लाइफ अच्छीखासी चल रही थी लेकिन अचानक सब खराब हो गया. मेरी पत्नी को लगने लगा कि मेरा औफिस में अफेयर चल रहा है जबकि ऐसा कुछ नहीं था. मैं ने उस की गलतफहमी दूर करने की बहुत कोशिश की. वह नहीं मानी और मायके चली गई. मैं बहुत दुखी हूं. फोन करता हूं तो वह फोन नहीं उठाती. उस का शक दूर करने के लिए मैं ने जौब भी चेंज कर ली है. मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूं. क्या करूं कि वह वापस आ जाए?

जवाब

आमतौर पर जब रिश्ते टूटते हैं तो संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है. आप अपने रिश्ते को बनाना चाहते हैं, यह अच्छी बात है.

आप की पत्नी मायके चली गई क्योंकि उन्हें आप पर शक था पर अब आप ने उन का शक दूर करने के लिए जौब भी चेंज कर ली है, यह अच्छा किया. अब आप उन्हें पूरी तरह से यकीन दिलाएं कि आप का किसी के साथ कोई अफेयर नहीं था. आप की जिंदगी में सिर्फ वह थी और वही रहेगी.

उसे पूरी तरह से विश्वास में लें और वादा करें कि उन्हें आप की जो भी बात बुरी लगी है, वैसा दोबारा कभी नहीं होगा. आप उस के बिना नहीं रह सकते, इत्यादि बातों से अपने वादे पर खरे उतरने का भरोसा दिलाएं.

यदि आप की पार्टनर आप को माफ कर देती है तो आप को चाहिए कि आप अपने पूर्वाग्रह से बाहर आएं और अपने संबंध को जीवंत बनाने के लिए हर संभव प्रयास करें. रिश्ते को जोड़ने के लिए जरूरी है कि आप अपने साथी के साथ कहीं अकेले में समय बिताएं, जहां आप दोनों गलतफहमियों व गलतियों को भुला कर सिरे से रिश्ते की शुरुआत कर सकें.

प्राइमरी लैवल पर ट्यूशन सही या गलत

दो दशक पहले तक भारत में स्कूल की पढ़ाई के साथ अतिरिक्त ट्यूशन की आवश्यकता बच्चों को नहीं होती थी लेकिन आज बच्चा स्कूल में दाखिले के साथ ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगता है. शिक्षण संस्थानों की नाकामयाबी और निकम्मापन न सिर्फ पेरैंट्स की जेब पर भारी पड़ रहा है बल्कि बच्चों की सेहत व मानसिक दशा को बिगाड़ भी रहा है. भारत में छोटेबड़े सभी शहरों और अब तो गांवोंकसबों में भी स्कूल की पढ़ाई के बाद बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास दोतीन घंटे बिताना आम है.

हर मातापिता अपने बच्चे को क्लास में अव्वल देखना चाहते हैं. उन की महत्त्वाकांक्षाओं और इच्छाओं का नाजायज दबाव बच्चों के ऊपर बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ टीचर्स, चाहे सरकारी स्कूल के हों या प्राइवेट स्कूल के, को अतिरिक्त पैसे की हवस ने इतना लालची बना दिया है कि वे स्वयं बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने का दबाव बनाते हैं, वरना क्लास में फेल कर देने की धमकी देते हैं. इस तरह वे बच्चों को मानसिक रूप से प्रताडि़त करते रहते हैं. प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने में पैसा खूब है. जितनी एक बच्चे की महीने की स्कूल फीस होती है, लगभग उतना ही पैसा ट्यूशन पढ़ाने वाला टीचर ले लेता है. विषय भी सारे नहीं पढ़ाता. अधिकतर साइंस, गणित और इंग्लिश के ट्यूशन के लिए ही इन के पास बच्चे जाते हैं.

एक पीढ़ी पहले वाली जमात की बात करें तो उस वक्त भी 8वीं या 9वीं कक्षा के बाद ही ट्यूशन की जरूरत पड़ती थी, वह भी उन विषयों में जिन में बच्चा कुछ कमजोर होता था ताकि 10वीं बोर्ड की परीक्षा में पास हो जाए. मगर वर्तमान पीढ़ी तो पहली और दूसरी कक्षा से ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगी है. नन्हेनन्हे बच्चे स्कूल में लंबा समय गुजारने के बाद दोतीन घंटे ट्यूटर के पास भी बिताते हैं. नतीजा, बच्चों के पास खेलनेकूदने का समय ही नहीं बचा है. पूरे वक्त पढ़ाई का बो झ उन पर हावी रहता है. रोहिणी दिल्ली के युवाशक्ति मौडल स्कूल की वाइस प्रिंसिपल दिव्या वत्स इस मामले में कहती हैं,

‘‘जहां तक प्राइमरी लैवल की बात है तो आजकल स्कूलों में बच्चों के लिए पढ़ाई के अलावा भी ढेर सारी ऐसी गतिविधियां कराई जाती हैं, जिस से उन का समग्र विकास हो सके. ऐसी गतिविधियों से उन्हें खेलखेल में सीखने का मौका मिलता है और स्कूल में ही पारिवारिक माहौल का भी एहसास होता है. ‘‘मेरा यह मानना है कि यदि कोई बच्चा क्लास में अपने टीचर को ध्यान से सुनता है और घर पर पढ़ाई की अच्छे से रिविजन करता है तो उसे स्कूल के बाद निजी ट्यूशन क्लास में भेजने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.

‘‘स्कूली टीचर के साथ मातापिता को भी अपने बच्चे में पढ़ने की आदत डालनी चाहिए. इस के अलावा उस में रचनात्मक शौक विकसित करने के साथसाथ परिवार के साथ अच्छा समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.’’ मदर्स प्राइड स्कूल का 6 साल का अंकुर 2 बजे स्कूल से लौटता है. उस की मम्मी स्कूल यूनिफौर्म बदले बिना उस को झटपट खाना खिला कर स्कूल यूनिफौर्म में ही ट्यूशन टीचर के घर भेज देती हैं. दो घंटे वहां पढ़ने व होमवर्क करने के बाद जब अंकुर साढ़े 6 बजे थकामांदा लौटता है तो फिर पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने का न तो टाइम बचता है और न ही ताकत.

आते ही सो जाता है. 10 बजे उस के पापा रात के खाने के लिए उस को जबरदस्ती उठाते हैं. अकसर अंकुर ट्यूशन पढ़ने नहीं जाना चाहता. स्कूल से लौट कर वह अपने हमउम्र बच्चों के साथ घर के सामने वाले पार्क में खेलना चाहता है. कभी टीवी पर अपना मनपसंद कार्टून शो देखना चाहता है, कभी वीडियो गेम खेलना चाहता है, लेकिन मम्मी के आगे उस की एक नहीं चलती है. ट्यूशन क्लास न जाने के लिए अंकुर कभीकभी पेटदर्द का भी बहाना करता है, लेकिन उस की मम्मी गरम पानी से चूरन की गोली खिला कर उसे ट्यूशन के लिए रवाना कर देती है. अंकुर अभी कक्षा 2 में है.

शहर के अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है. उस की स्कूल की फीस 3,000 रुपए महीना है और उस की मां 4,000 रुपए हर महीने ट्यूशन टीचर को देती है, जो उस का सारा होमवर्क और रिवीजन वर्क करवाती है. अंकुर की मां हर वक्त उसे सम झाती है कि उसे क्लास में फर्स्ट आना है. इसी क्लास में ही नहीं, बल्कि आगे भी हर क्लास में फर्स्ट आना है और बड़े हो कर पापा की तरह इंजीनियर बनना है. नन्हा सा बच्चा जो अभी इंजीनियर होने का मतलब भी नहीं सम झता, पढ़ाई के नाम पर उस से उस की सारी आजादी और अधिकार छीन लिए गए हैं. बैडमिंटन रैकेट और बैटबौल डब्बे से बाहर नहीं निकलते. खेलने के लिए उस के पास सिर्फ संडे का आधा दिन होता है. बाकी दिन सुबह से शाम तक वह स्कूल यूनिफौर्म में ही रहता है. वह मन लगा कर पढ़े,

इस के लिए उस की मां चौकलेट, चिप्स, मोमोज, पिज्जा आदि जो वह खाने के लिए मांगता है, सब मंगा कर देती है. यही वजह है कि अंकुर थुलथुल होता जा रहा है. आज कुछ पब्लिक स्कूलों को छोड़ दें तो आमतौर पर स्कूलों में शिक्षा देने का काम बड़े ही चलताऊ तरीके से हो रहा है. गलीगली कुकुरमुत्तों की तरह इंग्लिश स्कूल खुले हुए हैं. अधिकतर प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के पास बुनियादी साधन नहीं हैं. स्टूडैंट्स के अनुपात में टीचर बहुत कम हैं. एक शिक्षक पर कई कक्षाओं की जिम्मेदारी होती है. देखा जाता है कि जो टीचर सुबह नर्सरी क्लास लेती है वही हाफटाइम के बाद 9वीं या 10वीं के बच्चों को पढ़ा रही है.

कम सैलरी, साधनों की कमी और व्यवस्थागत कमियों की वजह से ऐसे शिक्षक अपने दायित्व के प्रति उदासीन रहते हैं. ऊपरी कमाई का बड़ा लालच स्कूलों में टीचर्स बच्चों पर दबाव डालते हैं कि वे उन के घर आ कर उन से ट्यूशन लें. वही शिक्षक, जो कक्षा में गंभीर नहीं होते, प्राइवेट ट्यूशन में बच्चे पर काफी ध्यान देते हैं क्योंकि यहां ऊपरी कमाई का लालच है. अयान शेख कक्षा 8 का छात्र है. वह स्कूल की छुट्टी के बाद हफ्ते में 3 दिन दो घंटे गणित और विज्ञान के ट्यूशन के लिए स्कूल के ही टीचर फ्रेडरिक फैंथम के घर जाता है और 3 दिन दो घंटे इंग्लिश और हिस्ट्रीज्योग्राफी के ट्यूशन के लिए मिसेज कामता कौशल के घर जाता है. उस के पिता हर माह 6 हजार रुपए उस के प्राइवेट ट्यूशन पर खर्च करते हैं और साढ़े 3 हजार रुपए स्कूल की फीस देते हैं. अयान कहता है कि स्कूल में तो ये टीचर्स कुछ पढ़ाते नहीं हैं पर घर पर बहुत अच्छी तरह विषय सम झाते हैं.

अगर स्कूल में ही अच्छी तरह पढ़ा दें तो ट्यूशन की जरूरत न पड़े. अयान की क्लास के अनेक बच्चे इन दोनों टीचर्स के घर जा कर ट्यूशन पढ़ते हैं. सम झ सकते हैं कि ऐसे टीचर्स की ऊपरी कमाई कितनी ज्यादा है. संयुक्त परिवार का टूटना आरंभिक स्तर पर बच्चों को स्कूल के अलावा घर में भी थोड़ेबहुत मार्गदर्शन की जरूरत होती है. लेकिन एकल परिवार में यदि मांबाप दोनों नौकरीपेशा हैं तो उन के पास वक्त ही नहीं है कि दोतीन घंटे बैठ कर वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें. अगर पिता नौकरीपेशा है और मां गृहिणी है और उस की शिक्षा इतनी नहीं है कि वह बच्चे को पढ़ा सके तो भी समस्या उत्पन्न होती है. ट्यूशन कराना स्टेटस सिंबल छोटे बच्चों को ट्यूशन कराना आज स्टेटस सिंबल भी बन गया है.

किस का बच्चा कौन से महंगे स्कूल में पढ़ रहा है और किस महंगे ट्यूटर से ट्यूशन ले रहा है, इस को बताने में लोगों को बहुत गर्व महसूस होता है. कभीकभी आवश्यकता न होने पर भी धनाढ्य वर्ग अपने बच्चों की ट्यूशन लगा देता है. ‘मिसेज मेहरा अगर अपने बेटे को मीनाक्षी मैडम के ट्यूशन क्लास में पढ़वा रही हैं तो हमारे पास पैसे की कमी है क्या जो हम अपनी बेटी को उन की ट्यूशन क्लास में नहीं भेज सकते?’ कालोनी और फ्लैट कल्चर में रह रहे लोगों की यह सोच आज नर्सरी के बच्चे को भी ट्यूशन के चक्रव्यूह में फंसा रही है. ट्यूशन लगाना पेरैंट्स के लिए आज एक सामाजिक उपलब्धि लगती है चाहे उन के बच्चे को सब आता हो. काफी बच्चों के मातापिता तो सिर्फ इसलिए ट्यूशन भेजते थे ताकि वे शाम को महल्ले के बच्चों के बीच खेलने न जाएं. अंशिका ने अपनी 7 साल की बेटी की ट्यूशन लगवा दी है,

जबकि वे खुद उस का सारा होमवर्क करवा सकती हैं. अभी तक करवा ही रही थीं. उन से पूछा तो बोलीं, ‘अरे ट्यूशन की जरूरत तो नहीं थी, मैं तो बेटी को खुद पढ़ा लेती हूं, मगर साथ वाली बड़ा टोकती हैं. उन की बेटी भी ट्यूशन जाती है. मैं ने सोचा कि कहीं ताना न देने लगे कि- अरे आप की बेटी ट्यूशन नहीं जाती? उन की बात से ऐसा लगेगा जैसे हम आर्थिक रूप से उन से कमजोर हैं. इसलिए इस की ट्यूशन लगवा दी. कुछ मातापिता की यह हार्दिक इच्छा होती है कि जो वे जीवन में नहीं बन पाए, उन का बच्चा वह अवश्य बने (भले ही उस की उस क्षेत्र में रुचि न हो). ऐसे लोग प्रतिमाह पढ़ने वाले ट्यूशन फीस के अतिरिक्त भार के लिए और अधिक मेहनत कर लेते हैं पर बच्चे को ट्यूशन कराने से पीछे नहीं हटते हैं. द्यमातापिता बच्चों को खुद पढ़ाएं आरिफ एक प्रतिष्ठित स्कूल में बायोलौजी के टीचर हैं.

उन्होंने अपने बेटे के लिए गणित और विज्ञान की ट्यूशन तब लगवाई जब वह 9वीं कक्षा में आया. उस से पहले वे खुद ही उस का होमवर्क करवाते रहे हैं. नर्सरी और केजी के बच्चों को ट्यूशन के लिए भेजे जाने का वे विरोध करते हैं. आरिफ कहते हैं, ‘‘यदि आप स्वयं अपने बच्चों को घर पर पढ़ा सकते हैं तो ट्यूशन टीचर की जरूरत नहीं है और इतने छोटे बच्चों को तो ट्यूशन के लिए भेजना ही नहीं चाहिए. स्कूल में चारपांच घंटे की पढ़ाई उन के लिए पर्याप्त है. बच्चों में आत्मविश्वास जगाने और आत्मनिर्भरता सिखाने की ज्यादा जरूरत होती है. बच्चों का दिमाग इतना सक्रिय होता है कि क्लास में उन्हें जो कुछ भी बताया जाता है उसे शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं. मेरी राय में यदि आप उन्हें घर पर समय दे सकते हैं तो छोटी कक्षा में ट्यूशन के लिए हरगिज न भेजें.’’

आरिफ चूंकि खुद एक टीचर हैं तो वे बच्चों की पढ़ाई के प्रति गंभीरता और लापरवाही को भलीभांति सम झते हैं. वे कहते हैं, ‘‘बच्चे की ग्रहणशक्ति और स्कूल में टीचर्स द्वारा विषय को पढ़ाने के तरीके पर निर्भर करता है कि उस को स्कूल की पढ़ाई के अलावा भी पढ़ाए जाने की आवश्यकता है अथवा नहीं. कुछ बच्चे किसी बात को तेजी से सीख लेते हैं तो कुछ दो या चार बार पढ़ने के बाद ही अध्याय के मूल सिद्धांत को सम झ पाते हैं तो इस का सटीक जवाब है कि यदि बच्चे को हर अध्याय का कौन्सैप्ट सम झ में आ रहा है तो उस को ट्यूशन की कोई आवश्यकता नहीं है.’’

बच्चों को समय दें शेफाली अस्थाना के दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं. शेफाली सरकारी नौकरी में हैं. वे शाम को घर आने के बाद स्वयं दोनों बच्चों को पढ़ाती हैं. छोटे बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास भेजने की बढ़ती रवायत पर उन का कहना है, ‘‘पहले बच्चों की माताएं घर पर रहती थीं, यदि पिता बिजी हुए तो वे बच्चों को पढ़ाती थीं. मैं स्वयं अपने बच्चों को पढ़ाती हूं जबकि मैं नौकरी भी करती हूं. आजकल मातापिता बच्चों को समय नहीं देना चाहते. वे उन के ऊपर पैसा खर्च करने को तैयार हैं पर उन के पास घंटेदोघंटे बैठ कर यह नहीं जानना चाहते कि वे पढ़ाई में कैसे हैं. पहले संयुक्त परिवार होते थे और बच्चे घर के किसी भी सदस्य से पढ़ लिया करते थे. ऐसा अब नहीं है.

‘‘हम भाईबहनों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की मगर कभी किसी से प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ी. हम सब को शाम को पिताजी पढ़ाते थे. अगर वे किसी काम से शहर से बाहर होते थे तो ताऊजी पढ़ाते थे. पहले के पिता अपने बच्चों की तरक्की स्वयं देखते थे क्योंकि उन के पास आज की पीढ़ी की अपेक्षा पैसा कम होता था और वे उसे बरबाद नहीं करना चाहते थे, बल्कि संभाल कर चलते थे. पहले कक्षाओं में शिक्षक भी मन लगा कर पढ़ाते थे और जिन बच्चों को कुछ नहीं सम झ में आता था, वे स्कूल की छुट्टी के बाद उन्हें अतिरिक्त समय दे दिया करते थे. आज के शिक्षकों में यह भावना नहीं है.

वे सीधे ट्यूशन लेने को कहते हैं. मातापिता भी शिक्षक के कोप से बचने के लिए या उस की निगाह में अपने बच्चे का महत्त्व बढ़ाने के लिए उन से ही ट्यूशन लगवा देते हैं. ‘‘आज का समय प्रतिस्पर्धा का है, इसलिए हर मातापिता चाहते हैं कि उन का बच्चा अधिक से अधिक अंक लाए और इसीलिए वे छोटी कक्षा से ही उस को ट्यूशन के लिए भेजना शुरू कर देते हैं. जो लोग संयुक्त परिवार से अलग हो चुके हैं और पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो उन के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं रह गया है. उन का घर और बच्चे सब नौकरों और प्राइवेट ट्यूटर के सहारे रहते हैं.’’

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