अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन के चुनाव मैदान से हटने की घोषणा के बाद कई डैमोक्रेटिक नेताओं के लिए राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने का दरवाजा खुल गया है, लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडन ने पार्टी उम्मीदवार के तौर पर देश की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को अपना समर्थन दिया है तथा कई अन्य प्रमुख डैमोक्रेटिक नेता भी उन की उम्मीदवारी के पक्ष में आगे आए हैं. बाइडन ने 2020 में हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनते हुए उन्हें निडर योद्धा कहा था.
कमला हैरिस जनवरी 2021 से अमेरिका में उपराष्ट्रपति के पद पर विराजमान हैं. वे अमेरिका की पहली महिला, पहली अश्वेत और दक्षिण एशियाई मूल की पहली ऐसी नागरिक हैं जो इस पद पर आसीन हैं. 59 वर्षीया हैरिस ने 2 बार कैलिफोर्निया की अटौर्नी जनरल चुने जाने के बाद 2016 में अमेरिकी सीनेट में अपनी सीट जीती थी.
भारत और जमैका से आए अप्रवासियों की बेटी कमला हैरिस ने अपना कैरियर एक अभियोक्ता के रूप में शुरू किया था और लगभग 3 दशक कानून प्रवर्तन में बिताए. उन्होंने स्थानीय अभियोक्ता के रूप में कैरियर की शुरुआत की, फिर 2011 में कैलिफोर्निया अटौर्नी जनरल चुने जाने से पहले सैन फ्रांसिस्को की जिला अटौर्नी बनीं. वर्ष 2003 में उन की जिला अटौर्नी की दौड़ में उन्हें उस वर्ष शहर-व्यापी कार्यालय के लिए दौड़ने वाले किसी भी अन्य उम्मीदवार की तुलना में अधिक वोट मिले थे, जिस में उन्होंने 2 बार के मौजूदा उम्मीदवार को हराया था. हैरिस ने आज तक कभी भी आम चुनाव नहीं हारा है, जिस में 2017 में सीनेट का चुनाव भी शामिल है.
कैलिफोर्निया के औकलैंड में जन्मी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस नागरिक अधिकार वकील एवं न्यायविद दिवंगत थरगुड मार्शल को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं और अपने जीवन पर नागरिक अधिकार आंदोलन से जुड़े रहे अपने मातापिता के प्रभाव का अकसर जिक्र करती हैं. लौसएंजिलिस के वकील डगलस एमहौफ कमला हैरिस के पति हैं.
उम्मीद जाहिर की जा रही है कि डैमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से कमला हैरिस ही राष्ट्रपति पद की सब से प्रबल उम्मीदवार होंगी. हालांकि डैमोक्रेटिक उम्मीदवार बनने के प्रमुख दावेदारों में कमला हैरिस के अलावा जे बी प्रिट्जकर, ग्रेचेन व्हिटमोर, गेविल न्यूजौम और जोश शापिरो भी शामिल हैं.
इलिनोइस के गवर्नर जे बी प्रिट्जकर अमेरिका में पद पर आसीन सब से अमीर नेता हैं. वे ‘हयात होटल’ के उत्तराधिकारी, पूर्व निजी इक्विटी निवेशक और परोपकारी नेता के तौर पर जाने जाते हैं. उन की कुल संपत्ति 3.4 अरब अमेरिकी डौलर है. उन्हें ‘फ़ोर्ब्स 400’ की सब से अमीर अमेरिकियों की सूची में 250वें स्थान पर रखा गया. इस सूची में मिशिगन की गवर्नर ग्रेचेन व्हिटमोर भी शामिल हैं. वे राज्य विधायिका में डेढ़ दशक तक सेवाएं देने के बाद 2018 में गवर्नर पद के चुनाव में पहली बार जीत हासिल कर डैमोक्रेटिक पार्टी में तेजी से उभरीं. कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूजौम सैन फ्रांसिस्को के मूल निवासी हैं, जो 1995 में मेयर पद के लिए विली ब्राउन के प्रचार अभियान में स्वयंसेवक के तौर पर राजनीति में शामिल हुए थे.
मेयर ब्राउन ने 2 साल बाद न्यूजौम को सैन फ्रांसिस्को बोर्ड औफ़ सुपरवाइजर्स की एक खाली सीट पर नियुक्त किया और बाद में उन्हें इस सीट पर फिर किया गया. न्यूजौम ने बाद में मेयर पद का चुनाव जीता और 2004 में सैन फ्रांसिस्को क्लर्क को समलैंगिक जोड़ों को विवाह लाइसैंस जारी करने का निर्देश दे कर वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए. पेंसिल्वेनिया के गवर्नर जोश शापिरो को पार्टी का एक उभरता नेता माना जाता है. उन्होंने गवर्नर पद के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा समर्थित उम्मीदवार को करारी शिकस्त दी थी. वे अटौर्नी जनरल के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं.
लेकिन इन सभी में कमला हैरिस दौड़ में सब से आगे नजर आ रही हैं. जो बाइडन के बाद रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप को मात देने का माद्दा सब से ज्यादा कमला हैरिस में ही है. राष्ट्रपति जो बाइडन को बारबार अनेक मंचों से बूढ़ाबूढ़ा कह कर उन को अपमानित करने और उन का हौसला डिगाने की कोशिश करने वाले डोनाल्ड ट्रंप कमला हैरिस के संबंध में ऐसी बातें नहीं कर पाएंगे क्योंकि वे खुद 78 वर्ष के हैं और कमला की उम्र 59 वर्ष ही है. कहीं ऐसा न हो कि अब उन का दांव उन पर ही उलटा पड़ जाए.
गौरतलब है कि 20 जनवरी, 2021 को अमेरिका में डैमोक्रेट जो बाइडन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पूरे सिस्टम को दक्षिणपंथी उग्र विचारधारा का गुलाम होने से बचा लिया था. एक बददिमाग, बड़बोले, दंभी और खुद को श्रेष्ठ समझने की खुशफहमी पालने वाले गोरे के हाथों बरबाद होने के बजाय देश की कमान जो बाइडेन के हाथों में सौंप कर अमेरिकी जनता ने बता दिया कि उस को शांति, प्रेम, सद्भावना और भाईचारे की ज्यादा जरूरत है. जो बाइडन ने अमेरिका की बागडोर बखूबी संभाली और उन के हर फैसले को उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का समर्थन रहा.
बता दें कि जो बाइडन से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते हुए अपने 4 साल के कार्यकाल में पूरे सिस्टम पर हावी होने और उस को अपने इशारे पर चलाने की भरसक कोशिश की. दुनिया के ताकतवर लोकतंत्र पर अपनी तानाशाही दिखाने का जनून इस कदर सिर चढ़ा कि जब 2021 के चुनाव हुए तो चुनाव हार जाने के बावजूद ट्रंप अपनी हार स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए और लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हुए चुनाव पर धांधली के आरोप लगाते रहे. अपनी जीत मनवाने के लिए उन्होंने अदालतों पर हावी होने और उन को अपने पक्ष में करने की भी कोशिश की. ट्रंप ने जोरजबरदस्ती की. हठ दिखाया. यहां तक कि लोकतंत्रविरोधी तरीके से सत्ता हथियाने का नंगा नाच भी किया.
डोनाल्ड ट्रंप के चुनावप्रचार के घटियापन का आलम यह था कि वे लगातार अमानवीय, अलोकतांत्रिक तरीके से चुनावप्रचार करते हुए हर इलाके के श्वेत गुंडों को बढ़ावा देते रहे. इन्हीं श्वेत गुंडों की फ़ौज ने 6 जनवरी, 2021 को अमेरिकी संसद पर उस वक़्त हमला किया जब वहां इलैक्टोरल कालेज के वोटों की गिनती चल रही थी. डोनाल्ड ट्रंप के लिए शर्म की बात यह है कि जो बदमाश आए थे, वे वहीं व्हाइट हाउस के पास बने हुए डोनाल्ड ट्रंप के होटल में ही ठिकाना बनाए हुए थे. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया की नज़र में ही नहीं, बल्कि अमेरिका की बहुत बड़ी आबादी की नजर में भी अपनेआप को बहुत घटिया इंसान साबित कर लिया था. उन की इस करतूत से लोकतंत्र को गहरा झटका लगा था और उस का असर अब भी कायम है. डोनाल्ड ट्रंप के आह्वान पर हुए इस हमले ने अमेरिकी लोकतंत्र के इतिहास में हमेशा के लिए एक काला पन्ना जोड़ दिया.
जो बाइडन के सत्ता में आने से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते अपने 4 साल के कार्यकाल में अमेरिकी समाज को श्वेतअश्वेत में बांटने का ही काम किया. हिंसा, उद्दंडता और सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया. उन के समर्थकों में ऐसे बहुत लोग हैं जो अमेरिका में श्वेत लोगों के आधिपत्य के समर्थक हैं. उल्लेखनीय है कि जब अमेरिका में मानवाधिकारों के आंदोलन ने जोर पकड़ा और ब्राउन बोर्ड औफ एजुकेशन द्वारा कानूनी लड़ाइयां लड़ने व ब्राउन के पक्ष में फैसला आने के बाद काले बच्चों को भी स्कूलों में दाखिला देना अनिवार्य कर दिया गया तो संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण के राज्यों में श्वेत अधिनायकवादियों के कई गिरोह बन गए थे. उन हथियारबंद बदमाशों के गिरोह को ‘क्लू क्लैक्स क्लान’ के नाम से जाना जाता है.
साठ के दशक में राष्ट्रपति केनेडी और उन के भाई बौब केनेडी ने मानवाधिकारों के लिए बहुत काम किया. तब अमेरिका में महिलाओं और काले लोगों के मताधिकार के कानून बने. उस के बाद क्लू क्लैक्स क्लैन वाले धीरेधीरे तिरोहित हो रहे थे, उन का जोर कम हो रहा था, लेकिन जब रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उम्मीदवार बने तो उन्होंने फिर इन क्लू क्लैक्स क्लैन के दबंगों को आगे किया और काले लोगों को औकात दिखाने के नाम पर चुनाव जीत लिया. रिचर्ड निक्सन का जो हश्र हुआ वह दुनिया को मालूम है. वे महाभियोग की चपेट में आए और अपमानित हो कर उन को गद्दी छोड़नी पड़ी. रिचर्ड निक्सन की तरह अमेरिका में एक बार फिर श्वेत अधिनायकवाद का सहारा ले कर डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीतना चाहते थे. उन्होंने अपने पूरे चुनावप्रचार के दौरान काले लोगों पर निशाना साधा और गोरों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में किया. चुनाव के दौरान वो पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल की निंदा को अपना प्रमुख एजेंडा बनाए रहे और अश्वेत, अफ्रीकी-भारतीय-अमेरिकी कमला हैरिस के खिलाफ भी जहर उगलते रहे.
इस तरह की हिंसक गतिविधियों के जरिए सत्ता पर काबिज होने की चाहत बिलकुल वैसी है जैसी भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा की भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं की मनोवृत्ति है. लेकिन देश कोई भी हो, इस तरह की मनोवृत्ति को जनता आखिरकार नकार ही देती है. जनता अमूमन शांति और भाईचारे की समर्थक होती है, चाहे वह किसी भी देश की हो.
अयोध्या में राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा के भव्य समारोह के बाद भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा दिया था. उस वक़्त पूरा देश ही नहीं, दुनिया भी यह मान रही थी कि मोदी हैं तो मुमकिन है और लोकसभा चुनाव में भाजपा 400 से ऊपर सीटें ला कर देश को न सिर्फ कांग्रेस मुक्त कर देगी बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियों का भी कोई अस्तित्व नहीं बचेगा. पर 3 महीने भी पूरे नहीं हुए कि जनता ने भाजपा को आसमान से जमीन पर ला दिया. लोकसभा चुनाव का जब रिजल्ट आया तो जनता ने दक्षिणपंथी विचारधारा की भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदों पर मनों घड़े पानी उंड़ेल दिया और उस की उछाल मारती आकांक्षाओं को इतने सीमित दायरे में बांध दिया कि उस की अपने बूते सरकार बनाने की कूवत भी नहीं बची.
फ्रांस के आम चुनाव में भी वामपंथी दलों के एलायंस को सब से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल हुई है. फ्रांस के चुनाव से एक महीने पहले तक न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) नामक इस गठबंधन का कोई अस्तित्व नहीं था. चुनाव के ऐलान के बाद सब को चौंकाते हुए कई दलों ने साथ आ कर न्यू पौपुलर फ्रंट (एनएफपी) बनाया और इस एलायंस ने फ्रांस की संसद में सब से ज्यादा सीटें जीतीं. इस चुनाव में एनएफपी ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के मध्यमार्गी गठबंधन को दूसरे और धुर दक्षिणपंथी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया. फ़्रांस में एक हफ्ते में वामपंथ ने लोगों का दिल जीत लिया और सत्ता में आ गया. जाहिर है, दुनियाभर के लोग दक्षिणपंथी उग्र, आक्रामकता पूर्ण विचारों से दूर एक सभ्य और शांत वातावरण चाहते हैं.