4 जून, 2024 के बाद देश के राजनीतिक हालात बदलेबदले नजर आ रहे हैं. तीसरी बार सरकार बनाने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में पहले जैसा आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा. जून माह में संसद के संक्षिप्त सत्र में जिस तरह से प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान लगातार विरोध हुआ, वह विपक्ष की एकजुटता को दिखाता है. ढाई घंटे के भाषण में एक मिनट भी बिना विरोध के नरेंद्र मोदी बोल नहीं पाए. लोकसभा चुनाव में जनमत भाजपा के खिलाफ था. इस के बाद देश के 7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में भी परिणाम भाजपा के खिलाफ आए. इंडिया ब्लौक जहां 10 सीटें जीतने में सफल रहा, वहीं भाजपा को केवल 2 सीटें ही मिलीं.
लोकसभा चुनाव में अयोध्या की हार कसक बन कर दिल में अब तक चुभ ही रही थी, कि उपचुनाव में सोने पे सुहागा यह हो गया कि बद्रीनाथ धाम सीट भी भाजपा हार गई. अयोध्या और बद्रीनाथ की हार ने भाजपा के पूरे धार्मिक एजेंडे को कुंद कर दिया. लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनाव की हार ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया है. 22 जुलाई से संसद के मानसून सत्र के पहले दिन जिस तरह से विपक्ष ने नीट, रेल दुर्घटना और कांवड़ यात्रा में दुकानों पर नाम लिखने के मुद्दे पर सत्ता पक्ष को घेरा, उस से साफ हो गया कि विपक्ष अब सत्तापक्ष को मनमानी नहीं करने देगा.
सरकार पर रहेगा विपक्ष का दबाव
विपक्ष ने जिस तरह से सत्ता पक्ष को दबोच लिया है, उस से नरेंद्र मोदी बौखला गए हैं. उन का आरोप है कि विपक्ष ने चुने गए प्रधानमंत्री को ढाई घंटे तक बोलने नहीं दिया. उन का गला घोंटा. 2014 से ले कर 2019 की पिछली 2 सरकारों में केंद्र ने विपक्ष को बोलने नहीं दिया. 145 से अधिक सांसदों का एक बार में निलंबन कर दिया गया था. 2024 की तीसरी सरकार के बाद सत्तापक्ष का ऊंट पहाड़ के नीचे आया है. अब सत्तापक्ष विपक्षी दलों पर आरोप लगा रहा है कि वे हमें बोलने नहीं दे रहे हैं. इस से साफ हो गया है कि विपक्ष सरकार को रचनात्मक कार्य करने के लिए विवश करेगा. उसे धर्म पर खर्चों के जरिए जनता के टैक्स के पैसों को बरबाद नहीं करने देगा.
2014 और 2019 की दोनों सरकारों में नेता विपक्षी दल नहीं था. उस दौर में बड़े से बड़े फैसले में सत्ता पक्ष ने विपक्षी दलों की किसी मसले पर सहमति नहीं ली. विपक्ष तो छोड़िए, एनडीए के सहयोगी दलों को भी नहीं पूछा. 2024 में नरेंद्र मोदी अपने भाषण में विपक्षी दलों से अपील कर रहे हैं कि वे चुनावी मोड से बाहर आएं और मिलजुल कर काम करें. 2029 के चुनाव से पहले चुनावी मोड में आएं और एकदूसरे का विरोध करें. एक तरह से नरेंद्र मोदी की शांति अपील है, जैसे युद्ध में हारा हुआ योद्धा शांति की अपील करता है.
पिछली 2 सरकारों में नरेंद्र मोदी ने पूरी चमक और धमक से अपनी सरकार चलाई. विपक्ष की परवा नहीं की. किसी भी बजट या बिल पर बहस नहीं होने दी. दो सरकारों के कार्यकाल में कोई ऐसा काम नहीं हुआ जिस में सत्ता पक्ष और विपक्ष एकमत रहा हो. विपक्ष के विरोध और सुझाव दोनों को कभी तवज्जुह नहीं दी.
दो कार्यकालों से अलग है तीसरा कार्यकाल
मोदी की 2 सरकारों में कोई ऐसा निर्माण कार्य नहीं हुआ जिस में विपक्ष से राय ली गई हो और वह जनता के हित का हो. चाहे सरदार पटेल की मूर्ति हो, नया संसद भवन हो, राम मंदिर हो या चारधाम यात्रा मार्ग, सभी में विपक्ष को अपमानित करने वाला काम हुआ. संसद में जो काम हुए वे भी ऐसे ही रहे. जीएसटी में सुधार की बात हो या नोटबंदी, विपक्ष तो विपक्ष, कभी विभाग के मंत्री से भी नरेंद्र मोदी ने सलाह नहीं ली. मोदी और उन के मंत्री इस तरह की बात करते रहे कि विपक्ष वौकआउट ही कर जाए. इसी तरह से कश्मीर में अनुच्छेद 370 और राम मंदिर निर्माण का हाल रहा. किसानों के आंदोलन को ले कर पूरे एक साल मसला चलता रहा, प्रधानमंत्री ने कोई सुझाव नहीं माना. चुनाव के समय कृषि कानून वापस लिए.
4 जून से पहले नरेंद्र मोदी को लगता था कि विपक्ष अब रह ही नहीं जाएगा. भाजपा कांग्रेसमुक्त भारत का सपना देख रही थी. उसे लग रहा था कि अब लोकसभा चुनाव के बाद यह पूरा हो जाएगा. लोकसभा चुनाव के समय जब मीडिया राहुल गांधी का नाम ले कर कोई सवाल करती थी तो नरेंद्र मोदी कहते थे, ‘कौन राहुल?’ अपने चुनावी भाषणों में नरेंद्र मोदी कहते थे, ‘कांग्रेस राहुल गांधी की उम्र से भी कम सीटों पर सिमट जाएगी.’ अपनी पार्टी के लिए 400 प्लस की बात करते थे. 4 जून को सारे परिणाम बदल दिए.
लोकसभा के पहले सत्र और मानसून सत्र में विपक्ष ने दिखा दिया कि वह चुनाव जीता है. अब पहले जैसा मनमाना काम मोदी सरकार नहीं कर पाएगी. विपक्ष की धमक का असर यह हुआ कि हमेशा दहाड़ने वाले नरेंद्र मोदी का 56 इंच वाला सीना कमतर दिखने लगा है. उन की तरफ से लोकतंत्र की हत्या और गला दबाने जैसी बातें आने लगी हैं. प्रधानमंत्री की कुरसी पर भले ही नरेंद्र मोदी बैठे हों पर विपक्ष अपनी तरह से सरकार चला रहा है. अब सरकार का ध्यान इंडिया ब्लौक गर्वनेंस की तरफ जा रहा है.
मोदी सरकार को अपनी योजनाओं में फेरबदल करना होगा. अग्निवीर, रेल दुर्घटना, नीट एग्जाम और दुकानों पर नाम लिखने जैसे विवादित फैसले अब नहीं चलने वाले. विपक्ष का रूल चलने वाला है. अब विपक्ष का रूल चालू हो गया है. वह मोदी सरकार को काम नहीं करने देगा. लोकसभा के दोनों सत्रों को देख कर साफ अंदाजा लग रहा है कि सरकार अब घुटनों के बल आ गई है. मोदी सरकार के नए बजट को देख कर यह साफ हो गया है कि सरकार विपक्ष से डरी हुई है. विपक्ष लगातार कह रहा है कि मोदी सरकार में सहयोग कर रही दोनों पार्टियां जदयू और टीडीपी कभी भी अपनी बैसाखी खींच सकती हैं.
बजट के जरिए बैसाखी मजबूत की
इस डर का असर बजट पर देखने को मिल रहा है. पहले 2 कार्यकालों के 10 बजट में कभी बिहार और आंध्र प्रदेश को इतना महत्त्व नहीं दिया गया, जितना इस बार दिया गया है. बजट में सब से अधिक मलाई आंध्र प्रदेश और बिहार को मिली है. सब से अलग बात इस बजट में देखने को मिली है कि धर्म पर खर्च नहीं किया गया है. मोदी सरकार ने तीसरे कार्यकाल का अपना पहला आम बजट पेश किया. इस बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश की बहार दिखी. 48 लाख 21 हजार करोड़ रुपए के मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले कुल बजट में अकेले बिहार और आंध्र प्रदेश को ही 1 लाख करोड़ से ज्यादा की सौगात मिली है.
बिहार को 58,500 करोड़ रुपए और आंध्र प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपए विकास परियोजनाओं के लिए देने का ऐलान हुआ है. इस की झलक तो पहले ही मिल चुकी थी. 4 जून को नतीजों के बाद एनडीए की पहली बैठक में ही नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि ‘आप ने इतनी सेवा की है, जो मौका मिला है, आगे बिहार और देश आगे बढ़ेगा. बिहार के सब काम हो ही जाएंगे, जो काम बचा है, हो जाएगा. हम लोग पूरे तौर पर जो चाहेंगे, उस काम के लिए लगे रहेंगे.’
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आम बजट को ‘कुरसी बचाओ’ बजट कहा है. राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि यह बजट सहयोगी दलों के तुष्टिकरण का बजट है. बजट में दूसरे राज्यों की शर्त पर सहयोगी दलों से खोखले वादे किए गए हैं. यह पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाला बजट है. इस से ‘ए-ए’ को फायदा होगा जबकि आम लोगों के लिए बजट में कोई राहत नहीं है. बजट के कई प्रावधानों में कांग्रेस के घोषणापत्र और पुराने बजट की नकल की गई है.
बिहार में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि आम बजट ने बिहार के लोगों को फिर निराश किया है. बिहार को प्रगति पथ पर ले जाने के लिए एक रिवाइवल प्लान की जरूरत थी जिस के लिए विशेष राज्य के दर्जे के साथ विशेष पैकेज की सख्त जरूरत है. उन्होंने बजट में बिहार के लिए हुए ऐलान को रूटीन आवंटन और पहले से स्वीकृत, निर्धारित व आवंटित बताया है. पुराने आवंटन को नई सौगात बता कर बिहार का अपमान किया जा रहा है. पलायन रोकने, प्रदेश का पिछड़ापन हटाने और उद्योग धंधों के साथ युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए हम विशेष राज्य के दर्जे की मांग से इंच भर भी पीछे नहीं हटेंगे.
बिहार और आंध्र प्रदेश के बाद देखें कि आम लोगों को इस बजट में क्या मिला है? आम आदमी को बजट में मामूली राहत मिली है जिस से विपक्ष की बात का जवाब दिया जा सके. इस बार के बजट में इनकम टैक्स को ले कर आम आदमी को राहत दी गई है. न्यू टैक्स रिजीम चुनने वालों के तहत अब 3 से 7 लाख रुपए तक की आय पर 5 फीसदी के हिसाब से टैक्स देना होगा. पहले यह 6 लाख रुपए तक था. इसी तरह 6-9 लाख रुपए तक पहले 10 फीसदी टैक्स लगता था जो अब 7 से 10 लाख रुपए तक के स्लैब के लिए हो गया है. पहले 9-12 लाख रुपए पर 15 फीसदी टैक्स देना होता था जो अब 10 से 12 लाख रुपए के लिए होगी. 12 से 15 और 15 लाख रुपए से ज्यादा कमाई पर टैक्स में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
विपक्ष जिस तरह से युवाओं पर फोकस कर रहा है, बेरोजगारी की बात कर रहा है, उस के दबाव में उन के लिए इंटरनल स्कीम दी गई है. इस से कोई लाभ तो नहीं दिखता लेकिन युवाओं की परेशानियों की तरफ सरकार का ध्यान गया है. कुल मिला कर मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का यह बजट पहले दोनों कार्यकालों जैसा तानाशाही वाला नहीं है. बजट से ही लग रहा है कि यह मोदी सरकार का नहीं, एनडीए सरकार का बजट है. सरकार विपक्ष और सहयोगी दलों के दबाव में काम करेगी. सरकार गिरने का डर बजट पर दिख रहा है. कुल मिला कर तीसरे कार्यकाल की सरकार दबाव में ही काम करेगी. इस के एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई.