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गतिअवरोधक : सूफी ने अपने भविष्य का क्या फैसला किया

Family story in hindi

रिटायर आदमी हूं, मन हर समय बेचैन रहता है, क्या करूं?

सवाल

रिटायर आदमी हूं, अकेले मेरा वक्त नहीं कटता है.मैं अपने 2 बेटों, बहुओं और उन के बच्चों के साथ रहता हूं. पत्नी की मृत्यु 2 साल पहले हो गई थी. दोनों बेटे सुबह औफिस जाते हैं, शाम 7.30 तक आते हैं. बहुएं घरबाहर के काम में बिजी रहती हैं. मैं 6 महीने पहले रिटायर हुआ हूं. पहले वक्त औफिस में कट जाता था पर अब वक्त जैसे कटता ही नहीं है. कुछ पढ़ते हुए समय गुजारने की कोशिश करूं तो आंखों पर जोर पड़ने लगता है. पोतेपोती अपनी पढ़ाई और कोचिंग में तो कभी मोबाइल के साथ लगे रहते हैं. मन हर समय बेचैन रहता है. क्या करूं, समझ नहीं आता?

जवाब

अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए आप का अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना बेहद जरूरी है. आप घर में दिनभर बोर होते रहते हैं और ऐसा कोई काम नहीं करते जिस से आप में ऊर्जा का प्रवाह हो, मनोरंजन हो या अच्छा महसूस हो. इस व्यस्त जीवन में यदि आप अपने परिवार से उम्मीद लगाएंगे कि वे आप को समय दें तो यह आप का उन से अत्यधिक अपेक्षा रखना होगा.आप किसी वृद्ध ग्रुप को जौइन करने के बारे में क्यों नहीं सोचते. आजकल सीनियर सिटीजन के ऐसे कई ग्रुप्स हैं जो विभिन्न ऐक्टिविटीज द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं और सेहत का ध्यान भी रखते हैं. आप वहां अपने हमउम्र लोगों से मिलेंगे तो आप को अच्छा लगेगा.आप को यदि अपनी मनपसंद किताबें या पत्रिकाएं पढ़ने में तकलीफ होती है तो आप उन की औडियो क्लिप्स सुन लिया कीजिए. हर समय तटस्थ होने के बजाय आप स्मार्टफोन का थोड़ाबहुत उपयोग करना शुरू कर दीजिए.सोशल मीडिया से न केवल आप का थोड़ाबहुत मन लग जाएगा बल्कि आप के पास अपने पोतेपोतियों से बात करने के लिए कुछ नया भी होगा.आप के अकेलेपन का उपाय आप का अपटूडेट न होना ही है. दुख और चिंता में डूबे रहने से आप खुश कैसे रहेंगे. अब तो औफिस भी नहीं है तो इस खाली समय का भरपूर आनंद लीजिए.

राजनीति में पौराणिकता

राजनीति में पिछले 2 चुनावों में जम कर दलबदल हुआ और हो रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने कमेटियां बना रखी हैं जो लगातार कांग्रेसी व दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेताओं को बहलाफुसला कर या डरा कर तंग कर रही हैं. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन सहित कितने ही विपक्षी नेताओं पर मुकदमे चलाए जा रहे हैं. विपक्षियों के खिलाफ इस तरह के पैतरों की शिक्षा आखिर भाजपा के नेताओं को मिलती कहां से है.

ये तरीके हमारे पौराणिक ग्रंथों में भरे पड़े हैं. इन्हीं ग्रंथों में सनातन धर्म का खूब प्रचार किया जाता है और इन में सद्भाव, सत्य व सपरिश्रम से कुछ पाने की बातें हैं तो ज्यादातर कथाएं छद्म व्यवहार की हैं. एक उदाहरण देखिए. जब पांडव जुए में राजपाट हार कर जंगलों में भटक रहे थे तो कौरवों के राजा दुर्योधन जिस के पास कौरवों और पांडवों दोनों का राज्य था वह युधिष्ठिर व अन्य पांडव कैसे जंगल में रह पा रहे हैं, इस बात पर चिंतित था, जैसे आज भाजपा नेता चिंतित हैं.

महाभारत में लिखा है, ‘छलकपट में निपुण कर्ण और दुशासन आदि के साथ दुर्योधन भांतिभांति के उपायों से पांडवों के संकट डालने की युक्ति पर विचार कर रहे थे,’ जिस तरह आज इलैक्टोरल बौंड्स, एन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट, सैंट्रल ब्यूरो औफ इन्वैस्टिगेशन अवतरित हुए उसी तरह ‘महायशस्वी, तपस्वी, महर्षि दुर्वासा अपने 10 हजार शिष्यों को साथ लिए हुए स्वेच्छा से आ पहुंचे. परम क्रोधी दुर्वासा को आया देख दुर्योधन ने अपनी इंद्रियों को काबू में रख कर नम्रतापूर्वक उन्हें अतिथि सत्कार के लिए निमंत्रित किया.’

महाभारत काव्य कहता है कि उन दिनों दुर्वासा ने तरहतरह के नखरों से दुर्योधन से सेवा कराई और ब्राह्मण कृत्य से डरे हुए दुर्योधन ने रातदिन उन की सेवा की. कभी वे खाना मंगाते, फिर खाने को मना कर देते या कभी देररात खाने की मांग कर बैठते. अंत में दुर्वासा ने दुर्योधन से संतुष्ट हो कर कुछ मांगने को कहा तो दुर्योधन ने निर्बाध ईडी, सीबीआई, पीएमएलए वाला काम करने को कहा.

दुर्योधन ने कहा, ‘ब्राह्मण धर्मात्मा युधिष्ठिर भाइयों के साथ वन में रह रहे हैं और जैसे आप मेरे अतिथि रहे हैं, वैसे ही उन के भी हो जाएं. और ऐसे समय जाएं जब परम सुंदरी यशस्विनी सुकुमारी द्रौपदी भोजन कराने के बाद खुद भोजन कर विश्राम कर रही हों.’ जैसा ईडी, पुलिस, सीबीआई करती है, वैसा ही दुर्वासा ने आश्वासन दिया. कर्ण ने बाद में दुर्योधन से कहा भी, ‘कुरुनंदन, सौभाग्य से हमारा काम बन गया. तुम्हारा अभ्युदय हो रहा है. तुम्हारे शत्रु विपत्ति के अपार महासागर में डूब गए.’ ब्राह्मणों का कथन उस जमाने में आज की कोर्टों की तरह था और दुर्वासा तो सुप्रीम कोर्ट की तरह थे.

दुर्वासा ने वही किया जो आज टैक्स विभाग 20 साल पुराना हिसाब मांगता है, अभी, इसी वक्त. उन्होंने रात को द्रौपदी से पूरे 10 हजार शिष्यों को खाना खिलाने की मांग की. अब द्रौपदी ने संकटमोचक कृष्ण को वैसे ही याद किया जैसे विपक्षी नेता रात को जगा कर अपनी सीनियर एडवोकेट से कुछ करने को कहते हैं.

तात्पर्य यह है कि आखिर क्यों सनातन काल में ज्ञानीध्यानी ऋषिमुनि इस तरह की मांगें करते थे? क्यों उस युग में चचेरे भाई एकदूसरे के खिलाफ मंत्रणा करते और षड्यंत्र रचते थे? यह परंपरा आज भी दोहराई जा रही है क्योंकि पिछले सालों में पौराणिक ग्रंथों को पढ़ कर आए लोग सत्ता में आ गए हैं और चेतन या अवचेतन मन से वे पौराणिक ग्रंथों के इन हिस्सों को इस्तेमाल करते रहते हैं जो उन के खिलाफ इस्तेमाल किए जाते हैं जिन के साथ वे हंसे, बोले, बड़े हुए, साथ ही राजनीति की. हमारे यहां जो जितना बड़ा भक्त है, वह उतना ज्यादा इस तरह के पौराणिक दांवपेंच खेल रहा है.

 

बौलीवुड की 50 प्लस यंग एंड हौट ब्यूटीज

बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस खूबसूरती की मिसाल मानी जाती हैं. इन में से बहुत सी ऐक्ट्रैसेस के लिए उम्र तो, बस, एक संख्या सी है. इन ऐक्ट्रैसेस को ‘एजलेस ब्यूटी’ कहना परफैक्ट होगा. साल दर साल वे जैसे यंग होती जा रही हैं. खुद को जवां रखने के लिए ये ऐक्ट्रैसेस योगा से ले कर खानपान और लाइफस्टाइल पर पूरा फोकस करती हैं. नतीजा यह है कि 50-60 साल पार करने के बाद भी उन के चेहरे पर अलग ही ग्लो दिखता है. अपनी दिलकश अदाओं और पर्सनैलिटी के दम पर वे सालों से बौलीवुड पर राज करती आ रही हैं और आगे भी करती रहेंगी.

शोख और हसीन भाग्यश्री

भाग्यश्री उन ऐक्ट्रैसेस में से एक हैं जिन पर उम्र का असर होता दिखाई ही नहीं देता. सलमान खान के साथ ‘मैंने प्यार किया’ से डैब्यू कर एक झटके में दिल चुरा लेने वाली इस अदाकारा ने बहुत जल्दी इंडस्ट्री को बायबाय कह दिया था लेकिन इस के बावजूद उन्हें चाहने वालों में कमी नहीं हुई. आज भी उन की खूबसूरती देख लोग फिदा हैं. 55 साल की हो कर भी जिस तरह से ये अदाकारा 30 साल की हसीना की तरह शोख, जवां और खिलीखिली नजर आती हैं, उन्हें देख तो यंग लड़कियों को भी रश्क हो जाए.

भाग्यश्री का जन्म महाराष्ट्र के सांगली के शाही परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत अमोल पालेकर के सीरियल ‘कच्ची धूप’ से की थी. 1989 में ‘मैंने प्यार किया’ से जब भाग्यश्री ने फिल्मों में कदम रखा तो उन की सादगी पर हर कोई फिदा हो गया था. आज भी अभिनेत्री की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई है. वे सोशल मीडिया पर अपनी प्यारीप्यारी तसवीरें डालती रहती हैं.

अपनी इस एवरग्रीन ब्यूटी को बरकरार रखने के लिए ये अदाकारा महंगे ब्यूटी ट्रीटमैंट्स और प्रोडक्ट्स पर हजारों रुपए खर्च करने से ज्यादा घरेलू नुस्खों और हैल्दी डाइट को अपनाना ज्यादा पसंद करती हैं. अपने ब्यूटी टिप्स को वे सोशल मीडिया पर भी फैन्स के साथ साझा करती रहती हैं. ये तरीके इतने आसान और पौकेटफ्रैंडली होते हैं कि इन्हें लोग काफी पसंद करते हैं.

अपनी स्किन को यूथफुल रखने के लिए भाग्यश्री डाइट का खास खयाल रखती हैं जो कोलेजन को बूस्ट करता है और स्किन इलास्टिसिटी मेनटेन रखता है. उन्होंने शेयर किया था कि साइट्रस फ्रूट्स, बेरीज, काजू, टमाटर, पत्तेदार सब्जियां, सी-फूड और बोन ब्रोथ कोलेजन को बढ़ाते हैं. ये फाइन लाइन्स और झुर्रियों को दूर रखते हैं और त्वचा को जवां बनाए रखने में मदद करते हैं.

हौट और फिट संगीता बिजलानी

9 जुलाई, 1960 में मुंबई में जन्मी संगीता बिजलानी 63 साल से ऊपर की हैं. इतनी उम्र होने के बाद भी संगीता ने खुद को एकदम फिट रखा है. 90 के दशक में अपनी खूबसूरती और अभिनय से संगीता बिजलानी ने एक खास पहचान बनाई थी. संगीता ने महज 20 साल की उम्र में मिस इंडिया का खिताब पा लिया था. हाल ही में व्हाइट टौप और जींस में उन का वीडियो वायरल हुआ जिस में वे 20-5 साल से अधिक की नहीं लग रही थीं. उन की शोखी और खूबसूरती देखने लायक है.

संगीता ने अपने मौडलिंग कैरियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में की थी. उन्होंने निरमा और पौंड्स सोप सहित कई विज्ञापनों में काम किया. साल 1980 में संगीता ‘मिस इंडिया’ चुनी गई थीं. संगीता ने बौलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1988 में प्रदर्शित फिल्म ‘कातिल’ से की थी. आज भी वे सोशल मीडिया पर अपनी खूबसूरत तसवीरें शेयर कर लोगों को दीवाना बना देती हैं. संगीता हाल ही में एक इवैंट में पहुंचीं जहां उन की ब्यूटी देख कर हरकोई दंग रह गया. वे भले ही ऐक्टिंग से दूर हैं लेकिन इवैंट में अकसर उन को देखा जाता है.

ग्रेसफुल ऐक्ट्रैस तब्बू

80 के दशक से बौलीवुड पर राज करने वाली अभिनेत्री तब्बू आज भी अपनी खूबसूरती और अदाकारी से लोगों का दिल जीत लेती हैं. 53 बरस की अभिनेत्री ने छोटी उम्र से ही अपने फिल्मी सफर की शुरुआत कर ली थी. तब्बू ने हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगू फिल्मों में भी काम किया है. तब्बू ने शुरुआत से ही अपने हरेक किरदार में जान फूंकी है. तब्बू उम्र की हाफ सैंचुरी पार कर चुकी हैं लेकिन इस के बावजूद उन के चेहरे पर ऐज के साइन्स का अतापता भी नजर नहीं आता है. बौलीवुड की मोस्ट ग्रेसफुल ऐक्ट्रैस तब्बू अब तक कुंआरी हैं. पिछले साल तब्बू ने ‘भूल भुलैया 2’ में अपनी ऐक्टिंग से दिल जीता. उन के खाते में इस वक्त कई बड़े प्रोजैक्ट हैं. बढ़ती उम्र और हार्मोनल चेंज के बावजूद तब्बू काफी जवां दिखती हैं.

अपनी फिटनैस सीक्रेट्स शेयर करते हुए तब्बू ने कहा था कि हर किसी को सुंदर दिखने के लिए दिनभर में 8-10 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए. पानी पीने से बौडी के टौक्सिन्स फ्लशआउट हो जाते हैं और त्वचा पर निखार आता है. तब्बू अपने दिन की शुरुआत नीबूपानी से करती हैं. वे गरम पानी में नीबू का रस या फिर शहद मिला कर पानी पीती हैं. इस से स्किन ग्लो करती है और बौडी फिट रहती है. तब्बू को फेशियल या कैमिकल बौडी स्क्रब पसंद नहीं है. वे नहाने से पहले एक्सफोलिएटर के तौर पर समुद्री नमक और वैसलीन का इस्तेमाल करती हैं. ये टैन्ड त्वचा और काले धब्बों से छुटकारा दिलाते हैं.

दिलकश अदाओं वाली माधुरी दीक्षित

बौलीवुड की धकधक गर्ल माधुरी दीक्षित भी 55 साल से ऊपर की हैं. लेकिन आज भी उन की तसवीरों को देख कर अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उन की उम्र क्या है. उन के चेहरे की ताजगी और शोखी देखने लायक होती है. अपनी ग्लोइंग स्किन और दिलकश अदाओं से वे आज भी लोगों के दिलों पर राज करती हैं.

इस उम्र में भी माधुरी न सिर्फ खूबसूरत लगती हैं बल्कि वे पूरी तरह फिट और शेप में भी हैं. उन्होंने अपने फिगर को काफी मेंटेन कर रखा है. माधुरी ने 1984 में आई फिल्म ‘अबोध’ से अपना बौलीवुड डैब्यू किया. लेकिन इस के 4 साल बाद आई फिल्म ‘तेजाब’ से उन्हें पहचान मिली. 90 के दशक में माधुरी की गिनती बौलीवुड की टौप अभिनेत्रियों में होती थी. आज भी वे इंडस्ट्री में सक्रिय हैं. इन दिनों वे टीवी में प्रसारित होने वाले बहुत से रिऐलिटी शोज में बतौर गेस्ट और जज नजर आ रही हैं.

माधुरी दीक्षित को फिटनैस से बहुत प्यार है. लौकडाउन के वक्त में भी घर पर रह कर कैसे वर्कआउट रूटीन को फौलो किया जा सकता है, माधुरी इस से जुड़े वीडियोज शेयर किया करती थीं. माधुरी दीक्षित की फिटनैस का एक प्रमुख सीक्रेट उन का डांस भी है. वे कई सालों से कथक डांस कर रही हैं और डांस अभ्यास कभी भी नहीं छोड़ती हैं. माधुरी की परफैक्ट फिगर का सीक्रेट ऐक्सरसाइज और डांस है.

माधुरी ने कई इंटरव्यूज में इस बात का जिक्र किया है कि वे फिट रहने के लिए बैलेंस डाइट लेती हैं. माधुरी हैवी मील्स खाने की जगह छोटेछोटे मील्स खाती हैं. माधुरी अपनी डाइट में नारियल पानी जरूर शामिल करती हैं. इस के अलावा भी वे अपने लिक्विड इनटेक का पूरा ध्यान रखती हैं. जंक फूड, ज्यादा तलीभुनी चीजों से वे दूर रहने की कोशिश करती हैं. बौडी को डिटौक्स करने के लिए माधुरी हर्बल टी पीती हैं. स्किन को ग्लोइंग बनाए रखने के लिए माधुरी अपनी डाइट पर भी ध्यान देती हैं और स्किन केयर रूटीन को भी फौलो करती हैं.

दुनिया की सब से खूबसूरत महिला ऐश्वर्या

ऐश्वर्या राय बच्चन दशकों से अपनी खूबसूरती से दुनिया को दीवाना बना रही हैं. वे दुनियाभर की युवा महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं. ऐश्वर्या राय की त्वचा 50 की उम्र में भी 25 जैसी दिखती है. उन्होंने अपने कई इंटरव्यूज में इन बातों को ले कर चीजें शेयर की हैं कि आखिर उन की ऐसी स्किन के पीछे क्या राज है.

एक इंटरव्यू के दौरान ऐश्वर्या ने बताया था कि वे हेल्दी स्किन के लिए रोजाना 8 गिलास पानी पीती हैं. इस से स्किन में ग्लो भी आता है. ऐश्वर्या राय ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे घर का खाना पसंद करती हैं और साथ ही, अपनी कैलोरी को भी मौनीटर करते रहती हैं. उन्होंने बताया कि वे अधिक जंक फूड्स का सेवन नहीं करती हैं. साथ ही, ऐश्वर्या को अरोमाथेरैपी बेहद पसंद है, खासतौर पर हैल्दी और ग्लोइंग स्किन के लिए.

ओल्ड इस गोल्ड रेखा

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जब भी ‘ओल्ड इज गोल्ड’ की बात होती है तो साउथ की सुंदरी भानुरेखा गणेशन यानी कि रेखा का जरूर जिक्र होता है. इंडस्ट्री की दिग्गज अभिनेत्री रेखा 69 की हैं. उन की पहली फिल्म ‘अंजाना सफर’ थी जिस की शूटिंग 1969 में हुई थी. लेकिन किसी वजह से वह फिल्म 10 साल बाद ‘दो शिकारी’ के नाम से रिलीज हुई थी. उस फिल्म में उम्र में 25 साल बड़े ऐक्टर विश्वजीत के साथ 15 साल की रेखा के एक किसिंग सीन ने रेखा को रातोंरात चर्चित कर दिया था, जिस का जिक्र रेखा के जीवन पर लिखी गई किताब ‘रेखा द अनटोल्ड स्टोरी’ में भी किया गया है. छोटी सी उम्र में अपने से 25 साल बड़े हीरो को किस कर उन्होंने तहलका मचा दिया था. तब से ले कर आज तक रेखा के दीवाने लाखों लोग हैं. ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं…’ जैसे गाने आज भी लोगों की जबान पर हैं.

चुलबुली जूही चावला

जूही चावला बौलीवुड की उन खूबसूरत अभिनेत्रियों में से एक है जिन पर उम्र का प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा. 30 साल पहले मिस इंडिया का खिताब जीतने वाली जूही चावला की खूबसूरती में अब भी कोई कमी नहीं आई है. अपनी स्किन और हैल्थ को ले कर जूही बहुत ज्यादा केयरिंग हैं. आप को शायद जान कर यकीन न आए कि जूही की उम्र 55 साल से ऊपर है.

हौट एंड सैक्सी मलाइका अरोड़ा

मलाइका अरोरा 50 साल की उम्र में बिलकुल यंग लगती हैं. वे हर तरह की स्टाइलिश व बोल्ड ड्रैस पूरे कौन्फिडेंस के साथ कैरी करती हैं. वे इतनी यंग और फिट रहने के लिए अपनी डाइट और लाइफस्टाइल का बहुत ध्यान रखती हैं और जिम में खूब वर्कआउट करती नजर आती हैं. उन के वर्कआउट के वीडियो अकसर सोशल मीडिया पर नजर आते हैं.

 

फलताफूलता धार्मिक यात्राओं का धंधा

लोगों की धर्मांधता भी कई तरह की मुश्किलों की जड़ है. धर्म के धंधेबाज जनता को बेवकूफ बनाते हैं. कमाई करते हैं. ऐसे धंधेबाजों की हमारे देश में कमी नहीं है. धार्मिक भावनाओं को भुनाने वाले ये लोग तरहतरह के ललचाऊ जाल बिछाते हैं. लोगों को चूना लगाते हैं और मौज उड़ाते हैं. सितंबर 2023 में मदुरै में एक बोगी में आग लगने से 10 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए. चूंकि यह मामला मदुरै में हुआ, इस को 2002 में गुजरात के गोधरा की ट्रेन की आग की तरह वोटों के लिए भुनाया नहीं जा सकता. बहरहाल, इस घटना में टूर औपरेटर के खिलाफ मुकदमा हुआ पर उन के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा जा रहा जो धंधे को चमकाने के लिए भाषण देते हैं, धर्मों का उद्घाटन करते फिरते हैं.

शायद जैसे गोधरा की बोगी में स्टोव से आग लगी थी, वैसे ही यहां गैस के चूल्हे से आग लगी क्योंकि ये लोग अपना खाना खुद पकाते हैं. दक्षिण भारत में स्वामी दर्शन के लिए ये यात्री लखनऊ से चले थे. धर्म से जुड़ा एक बहुत बड़ा कारोबार धार्मिक यात्राएं कराने का भी बहुत तेजी से फलफूल रहा है. रेल, बस, टैक्सी, हवाई जहाज आदि से तीर्थों की धार्मिक यात्राएं कराने वाले भक्तों की जेब हलकी करने में लगे रहते हैं. अपने धंधे व फायदे के लिए लोगों को जहांतहां ले जाना ही उन का पहला मकसद होता है, जिसे भक्त नहीं सम झते. कंप्यूटर पर तरहतरह की वैबसाइटें बनी हैं जिन में पहले पैसे ले कर तरहतरह की सुविधाएं देने का वादा कर अंधभक्तों को बेवकूफ बनाया जा रहा है.

सैरसपाटे की तर्ज पर धार्मिक यात्राएं करने वाले  झट तैयार हो जाते हैं और ‘पुण्य’ भी मिल जाता है, वही पुण्य जिसे किसी ने नहीं देखा. जब से भगवा बाजार नरेंद्र मोदी की सरकार आने से चमका है, तीर्थयात्राओं का धंधा भी चौतरफा हो गया है. देश के हर इलाके में टूरिस्ट बसों व टैक्सीकार वालों ने अपना धंधा चलाने के लिए तिरुपति बालाजी (राजस्थान), नैमीशारण्य, हरिद्वार, मथुरा वृदावंन, अयोध्या, वाराणसी, अजमेर आदि अनेक धार्मिक शहरों के लिए यात्रियों के टूर ले जाने का पूरा व पक्का इंतजाम कर रखा है. अब आयोध्या की तैयारी हो रही है. उन के एजेंट तयशुदा कमीशन पर भक्तों को ढूंढ़ कर लाते हैं और इस तरह सौदा पटवाते हैं कि धार्मिक लोग  झट सीट बुक कराने को तैयार हो जाते हैं.

हमारे देश में धार्मिक यात्राएं करने के लिए इतनी ज्यादा गुंजाइश है कि सफर में कईकई महीने लग जाते हैं. इसलिए अब सिर्फ बसों से ही नहीं, रेल और हवाई जहाज से भी यात्राएं कराई जाती हैं. इस के लिए देशभर के अखबारों में अकसर इश्तिहार छपते रते हैं. स्पैशल तीर्थयात्रा के नाम पर दर्शन कराने, शुद्ध घी से तैयार खाने लाने ले जाने, ठहराने, घुमानेफिराने का वादा किया जाता है. वैसे भी, नए हाईवे बन गए हैं, इसलिए सफर करना आसान हो गया है. फिर भी घर से बाहर निकलते ही मुश्किलें शुरू हो जाती हैं. इसलिए बेवजह सफर करना अब बुद्धिमानी नहीं है. फिर भी धर्मांध लोग जानबू झ कर यात्राओं की ओखली में अपना सिर देने को तैयार रहते हैं. वे प्रचार के शिकार हो जाते हैं. धार्मिक यात्राएं कराने वाले जोरदार प्रचार के हथकंडे खूब अपनाते हैं.

औनलाइन बुकिंग का सच

एक ऐसा ही विज्ञापन औनलाइन देख कर बरेली की श्रीमती नयना देवी ने भी अपनी सीट बुक कराई थी. रेल से 26 दिनों की तीर्थयात्रा के लिए उन्होंने मुंहमांगे रुपए दिए थे क्योंकि औनलाइन पर बहस या बारगेन की सुविधा नहीं है. उन्होंने बताया कि, ‘‘सफर के दौरान पता लगा कि दिक्कतें क्या होती हैं? रोज सवेरे शौच के लिए लाइन लग जाती थी. यों तो रेल के हर डब्बे में 2 टौयलेट होते हैं लेकिन उन में से एक पर यात्रा कराने वाली कंपनी का कब्जा रहता था. वे उस में खाना पकाने का समान भरे रहते थे. इस के अलावा रास्तेभर नहाने की बड़ी दिक्कत हुई. औरतों को भी रेल की बोगियों पर खुले में ही नहाना पड़ता था. बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी.’’ यह बोगी स्पैशल बुक कराई गई थी जो दूसरी ट्रेनों के साथ जुड़ जाती थी.

मिलतेजुलते नामों वाली कई कंपनियां बरसों से रेल के जरिए तीर्थयात्रा कराने का काम कर रही हैं. सभी खुद के असली होने का दावा करती हैं. जगहजगह इन कंपनियों के अपने बुकिंग दफ्तर व एजेंट होते हैं. वे कथा, कीर्तन, सत्संग और मंदिरों में जाजा कर अपने ग्राहक पटाते व ढूंढ़ते हैं और कंपनियों से कमीशन खाते हैं. मौजूदा भगवा सरकार के जमाने में प्रवचनों का भी दौर खूब बढ़ा है. इन से ग्राहक आसानी से मिल जाते हैं.

धार्मिक यात्रा का धंधा

भक्तगण अकसर मंदिरों के दर्शन करने या तीर्थों में पुण्य कमाने के मकसद से धार्मिक यात्राओं पर जाते हैं लेकिन उन की इन यात्राओं से फायदा उन्हीं का होता है जो यात्रा कराने का धंधा करते हैं और इसी की कमाई खाते हैं. भक्त सोचते हैं कि तीर्थयात्रा से उन के दुख दूर होंगे व सुखशांति मिलेगी. ऐसा नहीं है. सारे तीर्थों की यात्रा करने वाले भी कष्टों से घिरे रहते हैं. फिर भी लोग नहीं मानते.

2015 में पाकिस्तान गए यात्रियों की ट्रेन भी लरकाना शहर के बाहर जल गई. इस ट्रेन से हिंदू सिख और बागड़ी ननकाना साहब से लौट रहे थे. अपवादों को छोड़ कर अकसर हर अमीरगरीब अपनी जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा धार्मिक यात्राएं करना चाहता है. हमारे धर्मग्रंथों में लिखा है कि- ‘‘जो बारबार तीर्थों में स्नान करने जाता है वह सब से अच्छा माना जाता है.’’ (श्रीमद्भागवत 3-33-7).

इसीलिए, लोगों के मन में यह बात दबी रहती है कि हर हाल में उन्हें तीर्थयात्रा जरूर करनी चाहिए,वरना उन्हें मोक्ष नहीं मिलेगा. बहुत से बूढ़े लोग इसी चक्कर में चारों धाम की यात्रा पर निकल जाते हैं. हर तीर्थयात्रा में धन देने की तो जरूरत होती ही है और इसीलिए यह धंधा फलफूल रहा है. धर्मग्रंथों में दान देने और तीर्थों में जाने की बातें एक ही सांस में कही जाती हैं न. देश में धार्मिक आस्था रखने वाले बहुत ज्यादा हैं. उसी के नाम पर भक्तों को धार्मिक यात्राएं कराई जाती हैं. तीर्थों व मंदिरों की महिमा गागा कर उन का गुणगान किया जाता है. अंधविश्वास को जगाया जाता है. धार्मिक यात्राएं करा के मुनाफा कमाने वालों को सफर की दिक्कतों से कुछ लेनादेना नहीं होता. वे तो बस अपने ग्राहकों को पटाते हैं.

उत्तराखंड के स्पैशल टास्क फोर्स ने एक ऐसे गैंग को पकड़ा है जो चारधाम यात्रा के लिए औनलाइन हैलिकौप्टर बुकिंग एक फेक यानी नकली बैवसाइट पर करता था. इस ने कम से कम 6,100 यात्रियों को ठगा है. इस पर कोई हल्ला नहीं कर सका क्योंकि हल्ले से पर्यटक भाग सकते हैं. धार्मिक यात्राओं में औरतें तो मर्दों से भी आगे रहती हैं. वे  झट तैयार हो जाती हैं. उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में सहसवान के पास 4 भक्त अपने बीवीबच्चों के साथ देवी की जात के लिए कादराबाद जा रहे थे. रास्ते में बदमाशों ने सरेआम उन्हें लूट लिया. पतियों के हाथपांव बांध कर उन्हीं के सामने चारों औरतों के साथ गैंगरेप भी किया.

लुटेपिटे भक्तों में से एक रामकिशोर ने कहा, ‘‘हादसे के बाद उन की फरियाद न तो पुलिस ने सुनी और न उस देवी मां ने जिस के मंदिर में वे मनौती मांगने जा रहे थे.’’ जरा सी चोट खाते ही भरम टूट कर सच सामने आ गया. इस हादसे के शिकार अनपढ़ रामाकृष्णन ने अस्पताल में बताया कि उन के गांव के मंदिर का पुजारी 40 भक्तों को तीर्थयात्रा पर ले कर निकला था. इस के बदले में उस ने सभी से 30-30 हजार रुपए इकट्ठे किए थे. रेल में रिजर्वेशन न होने के कारण वे अपना सफर बसों और ट्रक वगैरह से ही पूरा कर रहे थे कि बीच में ही यह हादसा हो गया. इस हालत में इतनी दूर से घर कैसे वापस जाएंगे? हड्डीपसली टूटने के बाद भक्तों को यात्रा बेकार लगने लगी थी.

देश के इस कोने से उस कोने तक यात्राएं कराने वाले वाहनों की टक्कर तो होती ही रहती है. लगातार कईकई रात जाग कर चलने वाले ड्राइवर ऊंघने लगते हैं. रास्तों की सही जानकारी नहीं होती. ऊपर से बस या ट्रक में सवार भक्तगण लगातार भजनकीर्तन करते हुए चलते हैं. इस से ड्राइवर का ध्यान बंटता है और वाहन टकरा कर पलट जाते हैं.

पछतावे के सिवा कुछ नहीं

भगवान के नाम पर अपना तनमनधन और जान तक सब न्योछावर करने वाले भक्त बेहद लंबीलंबी दूर की यात्राएं भी माल ढोने वाले ट्रक जैसे तकलीफदेह वाहनों से भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. धार्मिक यात्रा पूरी करने के जोश में उन्हें यह भी नहीं सू झता कि सफर के दौरान व बाद में उन की क्या हालत होगी? इसीलिए उन के घायल या बीमार होने का खतरा बना रहता है. यात्रा कराने वाले ट्रैवल एजेंट भक्तों को भरोसा दिलाते रहते हैं कि भगवान सब भला करेगा. वही है जो सब की सुनता है और रक्षा करता है. यह बात अलग है कि वक्त पड़ने पर रोना व पछताना पड़ता है. इसलिए बाद के रोनेगाने से तो पहले ही सावधानी भली.

धर्म के नाम पर अंधेरगर्दी

अमरनाथ की यात्रा करने वाले मुसाफिरों के सिर पर हर साल आंतकवादियों का खतरा बना रहता है. उन की हिफाजत के लिए भारी तादाद में पुसिस बल लगाया जाता है. एक ओर धार्मिक यात्रियों की जानमाल को बचाना एक चुनौती हो जाता है, वहीं दूसरी ओर कहींकहीं धार्मिक यात्राएं करने वाले दूसरों के लिए खासी मुसीबत खड़ी कर देते हैं. दिल्ली- देहरादून रोड पर हर साल सावन में और शिवरात्रि पर यही होता है. मेन रोड बंद कर के वाहनों को इधरउधर से निकाला जाता है.

शास्त्रीनगर, मेरठ के एस एन सिंह अपने परिवार के साथ हरिद्वार जा रहे थे. तभी बीच में अचानक उन्हें कांवड़ लाने वालों ने घेर लिया. इन्होंने बताया कि बोल बम बोल बम करते हुए अनगिनत कांवाडि़ए पूरी सड़क घेर कर चल रहे थे. वे आतेजाते वाहनों से खुद ही पंगा ले रहे थे. लेकिन हमारे देश में सब से ज्यादा अराजकता और अंधेरगर्दी तो धर्म के नाम पर फैली हुई है. भक्तों की बेकाबू भीड़ के आगे पुलिस प्रशासन गूंगा, बहरा व बौना हो जाता है. इसी का नतीजा मु झे भुगतना पड़ा. जरा सी टक्कर होने पर दंगे हो जाते हैं. नशे में डूबे हुए कांवड़ यात्री गाडि़यों को तोड़ देते हैं.

धार्मिक यात्राएं करने वालों की भीड़ किसी से भी भिड़ जाती है. वह जम कर उत्पात मचाती है. पैदल कांवड़ लाने वाले बहुत से शिवभक्त भांग, सुलफा, गांजा पीते हैं. क्या नशा, हुल्लड़बाजी और गुंडागर्दी करना ही धर्म रह गया है? ऐसे लोग तो धर्म का हिस्सा हैं क्योंकि ये ही धर्म के प्रति डर पैदा करते हैं. ये गैंग अपनी बेजा हरकतों से धार्मिक यात्राओं में रह कर भी दूसरों को परेशान करते हैं.

 

 

Mother’s Day 2024: मां का बटुआ- बेटी को समझ आती है मां की अहमियत

मैं अकेली बैठी धूप सेंक रही हूं. मां की कही बातें याद आ रही हैं. मां को अपने पास रहने के लिए ले कर आई थी. मां अकेली घर में रहती थीं. हमें उन की चिंता लगी रहती थी. पर मां अपना घर छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं चाहती थीं. एक बार जब वे ज्यादा बीमार पड़ीं तो मैं इलाज का बहाना बना कर उन्हें अपने घर ले आई. पर पूरे रास्ते मां हम से बोलती आईं, ‘हमें क्यों ले जा रही हो? क्या मैं अपनी जड़ से अलग हो कर तुम्हारे यहां चैन व सुकून से रह पाऊंगी? किसी पेड़ को अपनी जड़ से अलग होने पर पनपते देखा है. मैं अपने घर से अलग हो कर चैन से मर भी नहीं पाऊंगी.’ मैं उन्हें समझाती, ‘मां, तुम किस जमाने की बात कर रही हो. अब वो जमाना नहीं रहा. अब लड़की की शादी कहां से होती है, और वह अपने हसबैंड के साथ रहती कहां है. देश की तो बात ही छोड़ो, लोग अपनी जीविका के लिए विदेश जा कर रह रहे हैं. मां, कोई नहीं जानता कि कब, कहां, किस की मौत होगी. ‘घर में कोई नहीं है. तुम अकेले वहां रहती हो. हम लोग तुम्हारे लिए परेशान रहते हैं. यहां मेरे बच्चों के साथ आराम से रहोगी. बच्चों के साथ तुम्हारा मन लगेगा.’

कुछ दिनों तक तो मां ठीक से रहीं पर जैसे ही तबीयत ठीक हुई, घर जाने के लिए परेशान हो गईं. जब भी मैं उन के पास बैठती तो वे अपनी पुरानी सोच की बातें ले कर शुरू हो जातीं. हालांकि मैं अपनी तरफ से वे सारी सुखसुविधाएं देने की कोशिश करती जो मैं दे सकती थी पर उन का मन अपने घर में ही अटका रहता. आज फिर जैसे ही मैं उन के पास गई तो कहने लगीं, ‘सुनो सुनयना, मुझे घर ले चलो. मेरा मन यहां नहीं लगता. मेरा मन वहीं के लिए बेचैन रहता है. मेरी सारी यादें उसी घर से जुड़ी हैं. और देखो, मेरा संदूक भी वहीं है, जिस में मेरी काफी सारी चीजें रखी हैं. उन सब से मेरी यादें जुड़ी हैं. मेरी मां का (मेरी नानी के बारे में) मोतियों वाला बटुआ उसी में है. उस में तुम लोगों की छोटीछोटी बालियां और पायल, जो तुम्हारी नानी ने दी थीं, रखी हैं. तुम्हारे बाबूजी की दी हुई साड़ी, जो उन्होंने पहली तनख्वाह मिलने पर सब से छिपा कर दी थी, उसी संदूक में रखी है. उसे कभीकभी ही पहनती हूं. सोचा था कि मरने के पहले तुझे दूंगी.’

मैं थोड़ा झल्लाती हुई कहती, ‘मां, अब उन चीजों को रख कर क्या करना.’ आज जब उन्हीं की उम्र के करीब पहुंची हूं तो मां की कही वे सारी बातें सार्थक लग रही हैं. आज जब मायके से मिला पलंग किसी को देने या हटाने की बात होती है तो मैं अंदर से दुखी हो जाती हूं क्योंकि वास्तव में मैं उन चीजों से अलग नहीं होना चाहती. उस पलंग के साथ मेरी कितनी सुखद स्मृतियां जुड़ी हुई हैं.

मैं शादी कर के जब ससुराल आई तो कमरे का फर्श हाल में ही बना था, इसलिए फर्श गीला था. जल्दीजल्दी पलंग बिछा कर उस पर गद्दा डाल कर उसी पर सोई थी. आज भी जब उस पलंग को देखती हूं या छूती हूं तो वे सारी पुरानी बातें याद आने लगती हैं. मैं फिर से वही 17-18 साल की लड़की बन जाती हूं. लगता है, अभीअभी डोली से उतरी हूं व लाल साड़ी में लिपटी, सिकुड़ी, सकुचाई हुई पलंग पर बैठी हूं. खिड़की में परदा भी नहीं लग पाया था. चांदनी रात थी. चांद पूरे शबाब पर था और मैं कमरे में पलंग पर बैठी चांदनी रात का मजा ले रही हूं. कहा जाता है कि कभीकभी अतीत में खो जाना भी अच्छा लगता है. सुखद स्मृतियां जोश से भर देती हैं, उम्र के तीसरे पड़ाव में भी युवा होने का एहसास करा जाती हैं. पुरानी यादें हमें नए जोश, उमंग से भर देती हैं, नब्ज तेज चलने लगती है और हम उस में इतना खो जाते हैं कि हमें पता ही नहीं चलता कि इस बीच का समय कब गुजर गया. मैं बीचबीच में गांव जाती रहती हूं. अब तो वह घर बंटवारे में देवरजी को मिल गया है पर मैं जाती हूं तो उसी घर में रहती हूं. सोने के लिए वह कमरा नहीं मिलता क्योंकि उस में बहूबेटियां सोती हैं.

मैं बरामदे में सोती हुई यही सोचती रहती हूं कि काश, उसी कमरे में सोने को मिलता जहां मैं पहले सोती थी. कितनी सुखद स्मृतियां जुड़ी हैं उस कमरे से, मैं बयान नहीं कर सकती. ससुराल की पहली रात, देवरों के साथ खेल खेलने, ननदों के साथ मस्ती करने तक सारी यादें ताजा हो जाती हैं. अब हमें भी एहसास हो रहा है कि एक उम्र होने पर पुरानी चीजों से मोह हो जाता है. जब मैं घर से पटना रहने आई तो मायके से मिला पलंग भी साथ ले कर आई थी. बाद में नएनए डिजाइन के फर्नीचर बनवाए पर उन्हें हटा नहीं सकी. और इस तरह सामान बढ़ता चला गया. पुरानी चीजों से स्टोररूम भरता गया. बच्चे बड़े हो गए और पढ़लिख कर सब ने अपनेअपने घर बसा लिए. पर मैं ने उन के खिलौने, छोटेछोटे कपड़े, अपने हाथों से बुने हुए स्वेटर, मोजे और टोपियां सहेज कर रखे हुए हैं. जब भी अलमारी खोलती हूं और उन चीजों को छूती हूं तो पुराने खयालों में डूब जाती हूं. लगता है कि कल ही की तो बातें हैं. आज भी राम, श्याम और राधा उतनी ही छोटी हैं और उन्हें सीने से लगा लेती हूं. वो पुरानी चीजें दोस्तों की तरह, बच्चों की तरह बातें करने लगती हैं और मैं उन में खो जाती हूं.

वो सारी चीजें जो मुझे बेहद पसंद हैं, जैसे मांबाबूजी, सासूमांससुरजी व दोस्तों द्वारा मिले तोहफे भी. सोनेचांदी और आभूषणों की तो बात ही छोडि़ए, मां की दी हुई कांच की प्लेट भी मैं ने ड्राइंगरूम में सजा कर रखी हुई है. मां का मोती वाला कान का फूल और माला भी हालांकि वह असली मोती नहीं है शीशे वाला मोती है पर उस की चमक अभी तक बरकरार है. मां बताती थीं कि उन को मेरी नानी ने दी थी. मैं ने उन्हें भी संभाल कर रखा हुआ है कि नानी की एकमात्र निशानी है. और इसलिए भी कि पुरानी चीजों की क्वालिटी कितनी बढि़या होती थी. आज भी माला पहनती हूं तो किसी को पता नहीं चलता कि इतनी पुरानी है. वो सारी स्मृतियां एक अलमारी में संगृहीत हैं, जिन्हें मैं हर दीवाली में झाड़पोंछ कर फिर से रख देती हूं. राधा के पापा कहते हैं, ‘अब तो इन चीजों को बांट दो.’ पर मुझ से नहीं हो पाता. मैं भी मां जैसे ही सबकुछ सहेज कर रखती हूं. उस समय मैं मां की कही बातें व उन की भावनाएं नहीं समझ पाती थी. अब मेरे बच्चे जब अपने साथ रहने को बुलाते हैं तो हमें अपना घर, जिसे मैं ने अपनी आंखों के सामने एकएक ईंट जोड़ कर बनवाया है, को छोड़ कर जाने का मन नहीं करता. अगर जाती भी हूं तो मन घर से ही जुड़ा रहता है. पौधे, जिन्हें मैं ने वर्षों से लगा रखा है, उन में बच्चों जैसा ध्यान लगा रहता है. इसी तरह और भी कितनी ही बेहतरीन यादें सुखदुख के क्षणों की साक्षी हैं जिन्हें अपने से अलग करना बहुत कठिन है.

अब समझ में आता है कि कितनी गलत थी मैं. मेरी शादी गांव में हुई. पति के ट्रांसफरेबुल जौब के चलते इधरउधर बहुत जगह इन के साथ रही. सो, अब जब से पटना में घर बनाया और रहने लगी तो अब कहीं रहने का मन नहीं होता. जब मुझे इतना मोह व लगाव है तो मां बेचारी तो शादी कर जिस घर में आईं उस घर के एक कमरे की हो कर रह गईं. वे तो कभी बाबूजी के साथ भी रहने नहीं गई थीं. इधर आ कर सिर्फ घूमने के लिए ही घर से बाहर गई थीं. पहले लोग बेटी के यहां भी नहीं जाते थे. सो, वे कभी मेरे यहां भी नहीं आई थीं. घर से बाहर पहली बार रह रही थीं. ऐसे में उन का मन कैसे लगता. आज उन सारी बातों को सोच कर दुख हो रहा है कि मैं मां की भावनाओं की कद्र नहीं कर पाई. क्षमा करना मां, कुछ बातें एक उम्र के बाद ही समझ में आती हैं.

Mother’s Day 2024- हमें तुम से प्यार कितना : अंशू से कितना प्यार करती थी मधु

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

मां ने मधु को गले लगा लिया. मधु की खुशी की कोई सीमा नहीं थी. उस ने कहा, ‘‘अब आप दोनों इस रिश्ते के लिए राजी हैं तो मैं आलोक को मोबाइल पर यह खबर दे ही देती हूं खुशी की.’’

मधु आलोक के दिल्ली के रोहिणी इलाके के शेयर मार्केटिंग औफिस में उस से मिलने जाया करती थी. इस का उस से पहला परिचय तब हुआ था जब उस ने कनाट प्लेस से पश्चिम विहार के लिए लिफ्ट मांगी थी. उस ने आलोक को बताया था वह एक पब्लिशिंग हाउस में एडिटर के पद पर कार्यरत थी. लिफ्ट के समय कार में ही दोनों ने एकदूसरे को अपने विजिटिंग कार्ड दे दिए थे. मधु की खूबसूरत छवि आलोक के दिमाग पर अंकित हो गई.

जब आलोक ने अपने बारे में पूरी तरह से बताया तो उस की बातचीत में उस के शादीशुदा और पत्नी सुहानी के निधन की बात शामिल थी.

बड़े ही अच्छे लहजे में मधु ने कहा था ‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम शादीशुदा हो. मेरे मातापिता मेरे लिए वर की तलाश कर रहे हैं. मैं ने तुम्हें अपने वर के रूप में पसंद कर लिया है जो भी थोड़ीबहुत मुलाकातें हुई हैं, उन में मैं जीवन के प्रति तुम्हारी सोच से प्रभावित हूं. तुम ने मुझे यह बताया है कि तुम्हारा एकमात्र मिशन है अपने लड़के अंशू को अच्छी परवरिश देना. दादादादी द्वारा उस का लालनपालन अपनेआप में काफी नहीं जान पड़ता है. यदि हमारा विवाह हो जाता है तो यह मेरे लिए बड़ी चुनौती का काम होगा कि मैं तुम्हारी मदद उस की परवरिश में करूं. मुझे काम करने का शौक है, मैं चाहूंगी कि अपना पब्लिशिंग हाउस का काम जारी रखते हुए घर के कामकाज को सुचारु रूप से चलाऊं.

आलोक ये सब बातें ध्यान से सुन रहा था, बोला, ‘सुहानी की मृत्यु के बाद मुझे ऐसा लगा कि मेरी दुनिया अंशू के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई है. मेरा पूरा ध्यान अंशू को पालने में केंद्रित हो गया. जिंदगी के इस पड़ाव पर जब मेरी तुम से मुलाकात हुई तो मुझे एक उम्मीद दिखी कि चाहे तुम्हारा साथ विवाह के बाद एक मित्र की तरह हो या पत्नी की हैसियत से, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. अगर तुम्हारे जैसी खूबसूरत और समझदार लड़की सारे पहलुओं का जायजा ले कर मेरे घर आती है तो अंशू को मां और परिवार को एक अच्छी बहू मिल जाएगी.’

मधु ने आलोक को यकीन दिलाते हुए कहा था, ‘इस में कोई शक नहीं है कि मुझे कुंआरे लड़के भी विवाह के लिए मिल सकते हैं, लेकिन मुझे विवाह के बाद की समस्याओं से डर लगता है. इसी समाज में लड़कियां शादी के बाद जला दी जाती हैं, दहेज की बलि चढ़ा कर उन्हें तलाक दे दिया जाता है या ससुराल पसंद न आने पर लड़कियों को वापस मायके आ कर रहना पड़ जाता है. तुम से मुलाकात के बाद मुझे लगता है ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला. तुम्हारी तरह अंशू को पालने का चैलेंज मैं स्वीकार करती हूं. तुम्हारे घर आ कर अंशू से मेलजोल बढ़ाने का काम मैं बहुत जल्द शुरू करूंगी. अपनी मम्मी को यकीन में ले कर मेरे बारे में बात कर लो. एक बात और मैं बताना चाहूंगी, मैं ने एमए साइकोलौजी से कर रखा है. उस में चाइल्ड साइकोलौजी का विषय भी था.’

दूसरे दिन शाम को मधु आलोक के घर पहुंची. आलोक की मां ने उस का स्वागत मुसकराते हुए किया और कहा, ‘आओ मधु, तुम्हारे बारे में मुझे आलोक बता चुका है.’ मधु ड्राइंगरूम में सोफे पर आलोक की मां के साथ बैठ गई.

अंशु भी आवाज सुन कर वहां आ गया.

‘आंटी को पहली बार देखा है. कौन हैं, क्या आप दिल्ली में ही रहती हैं?’ अंशू ने पूछा.

‘हां, मैं दिल्ली में ही रहती हूं, मेरा नाम मधु है. अगर तुम्हें अच्छा लगेगा तो मैं तुम से मिलने आया करूंगी,’ अंशू की ओर निहारते हुए बड़े प्यार से मधु ने उस से कहा, ‘तुम अपने बारे में बताओ, कौन से गेम खेलते हो, किस क्लास में पढ़ते हो?’

शरमाते हुए अंशू ने कहा, ‘मैं क्लास थर्ड में पढ़ता हूं. नाम तो आप जानते ही हो. घर में दादादादी हैं, पापा हैं.’ उस की आंखें आंसुओं से भर आई थीं. उस ने आगे कहा, ‘आंटी, मैं मम्मी की फोटो आप को दिखाऊंगा. मेरी मां का नाम सुहानी था जो….’ आगे वह नहीं बोल पाया.

अंशू को मधु ने गले लगा लिया, ‘बेटा, ऐसा मत कहो, मां जहां भी हैं वे तुम्हारे हर काम को ऊपर से देखती हैं. वे हमेशा तुम्हारे आसपास ही कहीं होती हैं. मैं तुम्हें बहुत प्यार करूंगी. तुम्हारी अच्छी दोस्त बन कर रोज तुम्हारे पास आया करूंगी, ढेर सारी चौकलेट, गिफ्ट और गेम्स ला कर तुम्हें दूंगी. बस, तुम रोना नहीं. मुझे तुम्हारी स्वीट स्माइल चाहिए. बोलो, दोगे न?’ एक बार फिर मधु ने अंशू को गले से लगा लिया. आलोक की मम्मी ने चाय बना ली थी. चाय पीने के बाद मधु वापस अपने घर चली गई.

आलोक की मां ने उसे मधु के बारे में बताते हुए कहा, ‘मुझे मधु बहुत अच्छी लगी. अंशू से बातचीत करते समय मुझे उस की आंखों में मां की ममता साफ दिखाई दी.’ इस के जवाब में आलोक ने मां को सुझाव दिया, ‘अभी कुछ दिन हमें इंतजार करना चाहिए. मधु को अंशू से मेलजोल बढ़ाने का मौका देना चाहिए ताकि यह पता चले कि वह मधु को स्वीकार कर लेगा.’

इस के बाद मधु ने स्कूटी पर अंशू के पास जानाआना शुरू कर दिया. वह अच्छाखासा समय उस के साथ बिताती थी. कभी कैरम खेलती थी तो कभी उस के साथ अंत्याक्षरी खेलती थी. उस की पसंद की खाने की चीजें पैक करवा कर उस के लिए ले जाती तो कभी उसे मूवी दिखाने ले जाती थी. एक महीने में अंशू मधु के साथ इतना घुलमिल गया कि उस ने आलोक से कहा, ‘पापा, आप आंटी को घर ले आओ, वे हमारे घर में रहेंगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

मधु और आलोक का विवाह हो गया. विवाह की धूमधाम में अंशू ने हर लमहे को एंजौय किया, जो निराशा और मायूसी पहले उस के चेहरे पर दिखती थी, वह अब मधुर मुसकान में बदल गई थी. वह इतना खुश था कि उस ने सुहानी की तुलना मधु से करनी बंद कर दी. सुहानी की फोटो भी शैल्फ से हटा कर अपनी किताबों वाली अलमारी में कहीं छिपा कर रख दी. आलोक ने महसूस किया जिद्दी अंशू अब खुद को नए माहौल में ढाल रहा था.

मधु ने आलोक का संबोधन तुम से आप में बदल दिया. उस ने आलोक से कहा, ‘‘तुम्हें अंशू के सामने तुम कह कर बुलाना ठीक नहीं लगेगा, इसलिए मैं आज से तुम्हें आप के संबोधन से बुलाऊंगी.’’ अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘हम अपने प्यार और रोमांस की बातें फिलहाल भविष्य के लिए टाल देंगे. पहले अंशू के बचपन को संवारने में जीजान से लग जाएंगे. वह अपनी क्लास में फर्स्ट पोजिशन में आता है, इंटैलीजैंट है. जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि अब वह मानसिक तौर पर मुझे मां के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर चुका है, तब हम हनीमून के लिए किसी अच्छे स्थान पर जाएंगे.’’

यह सुन कर आलोक को अपनी हमसफर मधु पर गर्व महसूस हो रहा था. खुश हो कर उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. वे दोनों शादी के बाद दिल्ली के एक रैस्तरां में कैंडिललाइट में डिनर ले रहे थे. घर लौटते समय उन्होंने कनाट प्लेस से अंशू की पसंद की पेस्ट्री पैक करवा ली थी.

वे दोनों आश्चर्यचकित थे जब वापसी पर अंशू ने मधु से कहा, ‘‘मम्मा, आप ने देर कर दी, मैं कब से आप का इंतजार कर रहा था.’’

मधु ने पेस्ट्री का पैकेट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अंशु, यह लो तुम्हारी पसंद की पेस्ट्री. तुम्हें यह बहुत अच्छी लगेगी.’’ अंशू की खुशी उस के चेहरे पर फैल गई.

अंशू चौथी कक्षा बहुत अच्छे अंकों के साथ पास कर चुका था. मधु की मां की ममता अपने शिखर पर थी. उस ने अपने बगीचे में अंशू की पसंद के फूलों के पौधे माली से कह कर लगवा दिए थे. जैसेजैसे ये पौधे फलफूल रहे थे, मधु को लगता था वह भी माली की तरह अपने क्यूट से बेटे की देखरेख कर रही है. आत्मसंतुष्टि क्या होती है, उस ने पहली बार महसूस किया.

शाम के समय जब आलोक घर आता था तो अंशू उस का फूलों के गुलदस्ते से स्वागत करता था. मधु का ध्यान अंशू की पढ़ाई के साथ उस की हर गतिविधि पर था. उस ने उसे तैयार किया कि वह स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले. अंशू के स्टडीरूम में शैल्फ पर कई ट्रौफियां उस ने सजा कर रख ली थीं. सब खुशियों के होते हुए पिछले 2-3 साल अंशू ने अपना बर्थडे यह कह कर मनाने नहीं दिया कि ऐसे मौके पर उसे सुहानी मां की याद आ जाती है.

दूसरे के बच्चे को पालना कितना मुश्किल होता है, यह महसूस करते हुए उस ने तय किया कि कभी वह अंशू को सुहानी मां के साथ बिताए लमहों के बारे में हतोत्साहित नहीं करेगी. अंशू का विकास वह सामान्य परिस्थिति में करना चाहती थी. जैसेजैसे उस का शोध कार्य प्रगति पर था उसे अभिप्रेरणा मिलती रही कि सब्र के साथ हर बाधा को पार कर वह अंशू के समुचित विकास के काम में विजेता के रूप में उभरे. उसे उम्मीद थी कि जितना वह इस मिशन में कामयाब होगी, उतना ही उसे आलोक और सासससुर का प्यार मिलेगा. दोनों के रिश्ते की बुनियाद दोस्ती थी. प्यार और रोमांस के लिए भविष्य में समय उपलब्ध था.

आलोक मधु की अब तक भूमिका से इतना खुश था कि उस की इच्छा हुई किसी रैस्तरां में शाम को कुछ समय उस के साथ बिताए. कनाट प्लेस की एक ज्वैलरी शौप से उस की पसंद के कुछ जेवर खरीद कर उसे गिफ्ट करते हुए उस ने कहा, ‘‘मधु, वैसे तो तुम्हारे पास काफी गहने हैं लेकिन मैरिज एनिवर्सरी न मना पाने के कारण हम कोई खास खुशी तो मना नहीं पाते हैं, यह गिफ्ट तुम यही समझ कर रख लो कि आज हम ने अपने विवाह की वर्षगांठ मना ली है. मम्मीपापा को इस के विषय में बता सकती हो. हम धूमधाम से तभी एनिवर्सरी मनाएंगे जब अंशू अपना जन्मदिन खुशी के साथ दोस्तों को बुला कर मनाना शुरू कर देगा.’’

रैस्तरां में उन दोनों की बातचीत बड़ी प्यारभरी हुई. डिनर के बाद जब वे रैस्तरां से बाहर निकले तो आलोक ने मधु का हाथ अपने हाथ में ले कर उस का स्पर्श महसूस करते हुए कहा, ‘‘मधु, मैं इंतजार में हूं कि कब हम लोग हनीमून के लिए किसी हिलस्टेशन पर जाएंगे. जब ऐसा तुम भी महसूस करो, मुझे बता देना. हम लोग इसी बहाने अंशू को भी साथ ले चल कर घुमा लाएंगे.’’

मधु को यह बात कभीकभी परेशान करती थी कि अंशू कभी नहीं चाहेगा कि वह एक बच्चे को जन्म दे और वह बच्चा अंशू की ईर्ष्या का पात्र बन जाए. उस ने सोच रखा था कि वह उचित समय पर आलोक से इस विषय पर बात करेगी. वैसे, अंशू ने उसे इतना आदर और प्यार दिया जिस ने उसे भरपूर मां की ममता और सुख का एहसास करा दिया.

दोनों के बीच जो स्नेह और ममता का रिश्ता बन गया था वह बहुत मजबूत था. मधु को लगा, अंशू उसे पूरी तरह मां के रूप में मान चुका है और अगले वर्ष अपना बर्थडे बहुत धूमधाम से मनाना चाहेगा. वह बहुत खुश हुई जब अंशू ने उस से कहा, ‘‘मम्मा, सब बच्चे अपना बर्थडे दोस्तों के साथ हर साल मनाते हैं. मैं भी अपने क्लासमेट के साथ इस साल बर्थडे मनाना चाहता हूं.’’

फिर क्या था, आलोक और मधु ने घर पर ही उस का बर्थडे मनाने का इंतजाम कर दिया. ढेर सारे व्यंजन, डांस के फोटोशूट और केक के साथ बड़ी धूमधाम से उस का बर्थडे मनाया गया.

अंशू का लालनपालन मधु ने उस की हर भावना के क्षणों में अपने को मनोचिकित्सक मान कर किया जिस के सकारात्मक परिणाम ने हमेशा उसे हौसला दिया.

शादी के 6-7 साल पलक झपकते ही मधु के अंशू के साथ इस तरह गुजरे कि वह वैवाहिक जीवन के हर सुख की हकदार बन गई. मां बनने का हर सुख उसे महसूस हो चुका था.  अंशू के नैराश्य और मां की कमी की स्थिति से बाहर आने का श्रेय घर के हर सदस्य को था.

मधु ने आलोक को पति के रूप में स्वीकार करते समय यह सोचा था, आलोक अपनी पत्नी सुहानी को खोने के बाद उसे अपने घर में सम्मान और प्यारभरी जिंदगी जरूर दे सकेगा. उसे अंशू की मां के रूप में उस की सख्त जरूरत है. पहली नजर में, उस से मिलने पर उसे अपने सारे सपने साकार होते हुए जान पड़े. तभी तो उस ने ‘आई लव यू’ कहने के स्थान पर खुश हो कर उस से कहा था, ‘आलोक, तुम हर तरह से मेरे जीवनसाथी बनने के काबिल हो.’ तब वह उस के शादीशुदा होने के बैकग्राउंड से बिलकुल अनभिज्ञ थी.

7 वर्षों बाद, एक दिन जब अंशू स्कूल से घर लौटा तो उस के हाथ में एक बैग था. वह बहुत खुश दिखाई दे रहा था. मधु मां को उस ने गले लगा लिया और बताया, ‘‘मम्मा, मैं क्लास में फर्स्ट आया हूं. कई ऐक्टिविटीज में मुझे ट्रौफियां मिली हैं. पिं्रसिपल सर कह रहे थे यह सब मुझे अच्छी मां के कारण ही मिला है.’’ थोड़ी देर चुप रहने के पश्चात वह भावुक हो गया, बोला, ‘‘मम्मा, मैं एक बार सुहानी मां की फोटो, जो मैं ने छिपा कर रख ली थी, उसे देख लूं.’’

मधु ने कहा, ‘‘हां, क्यों नहीं, ले आओ. हम सब उस फोटो को देखेंगे.’’ मधु की आंखों से आंसू छलक पड़े थे. भावुक हो कर उस ने कहा, ‘‘अंशू, मैं ने कहा था न, तुम्हारी मां सुहानी हर समय तुम्हारे आसपास होती हैं.  अब तुम कभी उदास मत होना. सुहानी मां भी यही चाहती हैं तुम हमेशा खुश रहो.’’

उस रात आलोक ने मधु को अपनी बांहों में ले कर जीभर प्यार किया. इन भावुकताभरे लमहों में मधु ने आलोक को अपना फैसला सुनाते हुए अपील की, ‘‘आलोक, इतना आसान नहीं था मेरे लिए अब तक का सफर तय करना. तुम्हारा साथ मिला तो यह सफर आसान हो गया. मुझ से वादा करोगे कि कमजोर से कमजोर क्षणों में तुम मुझे मां बनाने की कोशिश नहीं करोगे. अंशू से मुझे पूरा मातृत्व सुख हासिल हो चुका है. मैं उस के प्रतिद्वंद्वी के रूप में कोई और संतान पैदा नहीं करना चाहती.’’

क्या आप ने भी रखा है बैकअप पार्टनर

अपनी लाइफ में बैकअप प्लान ले कर चलना अच्छा है. लेकिन रिलेशनशिप में अगर कोई बैकअप प्लान लेकर चले तो आप क्या कहेंगे? सुनने में अजीब लग सकता है. रिश्तों की दुनिया में यह शब्द नया है मगर सच है. एक अध्ययन के अनुसार लगभग आधी महिलाओं के पास अपने वर्तमान साथी से अलग होने की स्थिति में एक बैकअप योजना होती है. जब उन का वर्तमान रिश्ता खराब स्थिति में आ जाता है या समाप्त हो जाता है तब यह रिश्ता एक रोमांटिक विकल्प के रूप में खड़ा होता है.

यूके में हुए एक सर्वे के अनुसार करीब 50 प्रतिशत महिलाएं शादीशुदा होने या किसी सीरियस रिलेशन में रहने के बाद भी बैकअप पार्टनर रखती हैं. ऑनलाइन और मोबाइल पोलिंग में स्पेशलाइज्ड मार्केटिंग रिसर्च कंपनी वनपोल ने यूके की 1 हजार महिलाओं को इस सर्वे में शामिल किया जिस में से 50% महिलाओं ने माना कि वह बैकअप प्लान या पार्टनर रेडी रखती हैं. इस की वजह यह है कि अगर उनका मौजूदा रिश्ता नहीं चला तो उस से ब्रेकअप कर वह दूसरे पार्टनर के पास जा सकें और उन्हें अकेलेपन या डिप्रेशन के दौर से न गुजरना पड़े.

बैकअप पार्टनर रखने की बात स्वीकार करने वाली ज्यादातर महिलाओं ने माना कि बैकअप पार्टनर उन का पुराना दोस्त है. स्टडी से यह भी सामने आया कि ऐसे केस में कोई पुराना भरोसेमंद दोस्त ‘बैकअप पार्टनर’ बनता है जो कि उनकी भावनाओं को समझता है और लड़की के जज्बातों की इज्जत करता है. महिलाओं ने बताया कि उनका बैकअप पार्टनर दोस्त के अलावा कोई और भी हो सकता है जैसे उन का ऑफिस कॉलीग, एक्स हसबैंड, स्कूल फ्रेंड या फिर जिम पार्टनर.

बैकअप पार्टनर चुनने की वजह

महिलाएं उस स्थिति में बैकअप पार्टनर चुनती हैं जब उन्हें लगता है कि उनके वर्तमान रिश्ते में चीजें खराब हो रही हैं. इस दौरान वह किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाना पसंद करती हैं जहां उन्हें भावनात्मक सुरक्षा मिल सके. ऐसे समय में बैकअप पार्टनर उन महिलाओं के दिल का दर्द कम करता है. जिंदगी में कुछ बातें और तकलीफें ऐसी होती हैं जिन्हें आप दूसरों से बांटना चाहते हैं. दूसरों से जुड़ी बातें तो आप अपने पति से शेयर कर के मन हल्का कर सकते हैं मगर जब बात पति से जुड़ी हो और इन बातों को बताने के लिए कोई राजदार चाहिए तो वह बैकअप पार्टनर ही होता है.

इस मामले में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि बैकअप पार्टनर सिर्फ महिलाओं के नहीं होते. महिलाओं से कहीं ज्यादा पुरुष ऐसा करते हैं. एक पत्नी या गर्लफ्रेंड के अलावा वह अक्सर एक और लड़की / महिला के साथ इमोशनली इंवोल्वड रहते हैं. यह लड़की ऑफिस की साथी हो सकती है, कॉलेज की बैचमेट या फिर कोई पुरानी दोस्त भी हो सकती है. यानि कहीं न कहीं पुरुष और स्त्री दोनों ही अपने पार्टनर के होते हुए किसी और को भी दिल में जगह देते हैं. इसे आप पूरी तरह धोखा देना भी नहीं कह सकते मगर चुपके चुपके इस रिश्ते को जीते जरूर हैं.

आज कल वैसे भी बैकअप पार्टनर बनाना और उनसे संपर्क साधना बहुत आसान हो गया है. इस की सबसे बड़ी वजह है फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग एप्स. ऐसे में आप को सावधान रहने की काफी जरूरत है. इस रिसर्च से यह साफ है कि हेल्दी रिलेशनशिप न होने की वजह से ऐसी नौबत आती है. ऐसे में लड़कों या लड़कियों को अपने रिश्ते को संभालना आना चाहिए. अगर आपकी पत्नी या पति का कोई पुराना दोस्त अचानक से आप की जिंदगी में शिरकत करने लगे तो सतर्क हो जाइए.

क्या बैकअप पार्टनर का होना सही है

सवाल यह भी उठता है कि क्या किसी रिश्ते में रहते हुए बैकअप पार्टनर रखना सही है? क्या इस का अर्थ अपने साथी के साथ बेवफाई करने जैसा है? दरअसल बैकअप पार्टनर होना सही तो नहीं ही माना जा सकता क्योंकि आप के पास ऐसा कोई साथी है तो आप अपने वर्तमान रिश्ते को बचाने की कोशिश में कमी करने लगते हैं. कहने का मतलब यह है कि अगर बैकअप पार्टनर होगा तो आप को अपने साथी को खोने का डर नहीं रहेगा.

इस के अलावा यह भी संभव है कि मौका देख कर आप का बैकअप पार्टनर आप से इस साथ की कीमत मांगने लगे. ऐसे में आप खुद के रिश्तों में ही उलझ जाएंगी. उस कीमत के लिए हामी भरेंगी तो उसे चस्का लग जाएगा और आप सौदेबाजी के दलदल में फंसती जाएंगी. अगर आप ‘ना’ कहती हैं तो बहुत खटास के साथ वह रिश्ता आप से दूर हो जाएगा और आप अंदर से भी कुछ और टूट जाएंगी.

तला हुआ खाना खाने से बढ़ सकता है डिप्रेशन

हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार जो लोग अक्सर तला हुआ भोजन विशेष रूप से फ्रेंच फ्राइज़ जैसे आलू खाते हैं उन में डिप्रेशन या एंजाइटी का खतरा अधिक होता है. परिणामों से पता चला कि बार बार तले हुए भोजन का सेवन एंग्जाइटी के 12% अधिक जोखिम और डिप्रेशन के 7% अधिक जोखिम से जुड़ा था. सब से अधिक प्रभाव पुरुषों और युवाओं पर पड़ा. पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन चीन के झेजियांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था. उन्होंने 11 साल की अवधि के दौरान 140,000 से अधिक लोगों के डेटा का मूल्यांकन किया.

अध्ययनकर्ताओं के हिसाब से इस का एक कारण यह हो सकता है कि तले हुए खाद्य पदार्थों में एक्रिलामाइड नामक रसायन होता है जो तब उत्पन्न होता है जब कुछ खाद्य पदार्थों को बहुत अधिक तापमान पर पकाया जाता है. एक्रिलामाइड ब्रेन इन्फ्लेमेशन से संबंधित एंजाइटी- और डिप्रेशन जैसे व्यवहार से जुड़ा हुआ है.

अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार एंजाइटी डिसऑर्डर सभी डिसऑर्डर में सबसे आम हैं जो इंसान के जीवन में कभी न कभी 30% एडल्ट्स को प्रभावित करते हैं. ये समस्याएं घबराहट या बेचैनी की नॉर्मल फीलिंग्स से भिन्न और तीव्र होती हैं जो सामान्य प्रोडक्टिव जीवन जीने में बाधा डालती हैं.

डिप्रेशन किसी व्यक्ति के सोचने और कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है जिस से उदासी की भावना पैदा होती है या उन गतिविधियों में रुचि कम हो जाती है जिन का पहले आनंद लिया जाता था. डिप्रेशन भावनात्मक और शारीरिक समस्याओं का कारण बन सकता है.

एंग्जाइटी और तनाव से बचना है तो इन चीजों को करें डाइट से बाहर

चीनी

फिजिकल हेल्थ के साथ साथ मेंटल हेल्थ के लिए भी शुगर और डेजर्ट में प्रयोग किये गये एडेड शुगर बहुत अधिक नुकसानदेह है. यह ओबेसिटी, उच्च रक्तचाप के साथ ही यह डिप्रेशन एंजाइटी और मूड स्विंग के लक्षणों को भी बढ़ाता है. चीनी खाने से सुस्ती, लो मूड और अधिक खाने की लालसा बढ़ा देता है. ब्लड शुगर लेवल में लगातार वृद्धि और गिरावट ब्लड फ्लो में एड्रेनालाईन और कोर्टिसोल सीक्रेशन को ट्रिगर कर सकती है. इस से एंग्जायटी और घबराहट के दौरे भी पड़ सकते हैं.

तले हुए खाद्य पदार्थ

जंक फूड और तले हुए खाद्य पदार्थ जैसे पिज्जा, फ्राइड चिकन, हैम्बर्गर और फ्रेंच फ्राइज़ जैसे फ़ूड में बहुत कम पोषक तत्व होते हैं. शरीर के लिए इन्हें पचाना बेहद मुश्किल होता है. जब शरीर भोजन को पचाने में असमर्थ होता है तो गैस, एसिडिटी और अन्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रॉब्लम उत्पन्न हो सकते हैं. यह एंग्जाइटी को ट्रिगर कर देता है.

कैफीन और निकोटीन

कॉफी, चाय, एनर्जी ड्रिंक, चॉकलेट और कुछ दर्द निवारक उत्पादों में कैफीन और निकोटीन पाया जा सकता है. कैफीन और निकोटीन सेंट्रल नर्वस सिस्टम को उत्तेजित कर देते हैं. इसके अत्यधिक सेवन से दिल की धड़कन, कंपकंपी, चिड़चिड़ापन, एंजाइटी और अनिद्रा भी हो सकती है.

फ़ूड एडिटिव

एस्पार्टेम , मोनोसोडियम ग्लूटामेट और कुछ फ़ूड कलर एंग्जायटी, डिप्रेशन और मूड स्विंग की एक वजह बन सकते है. एस्पार्टेम एक कृत्रिम स्वीटनर है. इसका उपयोग कई अलग-अलग खाद्य पदार्थों में किया जाता है. इसमें शुगर फ्री कैंडीज, च्युइंग गम और कोल्ड ड्रिंक शामिल हैं.
ये चिंता और अवसाद सहित कई अन्य मेंटल हेल्थ की स्थितियों को बढ़ा सकते हैं.

स्नैक्स, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ और पहले से पके हुए तैयार भोजन के स्वाद को बढ़ाने के लिए मोनोसोडियम ग्लूटामेट का प्रयोग किया जाता है. यह थकान, सिरदर्द, अवसाद और एंग्जायटी से जुड़ा हुआ है. सॉफ्ट ड्रिंक, कैंडी, पनीर और अन्य प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले फ़ूड कलर भी एंग्जायटी के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं.

डिप्रेशन से छुटकारा पाने में आप की मदद करेंगी ये चीजें

डाइट में कुछ खास चीजों को शामिल कर के भी डिप्रेशन से छुटकारा पाया जा सकता है. अगर आप को डिप्रेशन हो गया है तो अपने आहार में कुछ चीजों को शामिल कर आप इस समस्या को कम कर पाएंगे;

दही

दही में लैक्टोबेसिलस और बिफिडोबैक्टीरिया नामक स्वस्थ बैक्टीरिया होते हैं. कई अध्ययनों में सामने आया है कि ये दोनों बैक्टीरिया मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं. रोजाना दही का सेवन कर चिंता, अवसाद और स्ट्रेस को कम किया जा सकता है.

ग्रीन टी

ग्रीन टी में थायमिन नामक अमीनो एसिड होता है जो कि मूड से जुड़े डिसऑर्डर को ठीक करने की शक्ति रखता है. थायमिन में अवसाद-रोधी और दिमाग को कम्फर्ट देने वाले गुण होते हैं और यह फील गुड हार्मोन सेरोटोनिन और डोपामाइन के उत्पादन में भी वृद्धि करता है.

एवोकैडो

मूड को बेहतर करने वाले सेरोटोनिन को एवोकाडो से भी बढ़ाया जा सकता है. इसमें विटामिन-बी के अलावा थायमिन, राइबोफ्लेविन और नियासिन होता है जो कि तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक असर डालता है. इन विटामिनों की कमी की वजह से कुछ लोगों में चिंता यानी एंग्जाइटी के मामले सामने आते हैं.

कद्दू के बीज

कद्दू के बीज पोटेशियम का उत्तम स्रोत होते हैं जो कि शरीर में इलेक्ट्रोलाइट को संतुलित रखने और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने के साथ स्ट्रेस और चिंता के लक्षणों को कम करने की शक्ति रखते हैं. इनमें मिनरल जिंक भी होता है जो कि मूड को अच्छा रखता है.

मछली

अगर आप मांसाहारी हैं तो डिप्रेशन से बचने के उपाय के तौर पर मछली का सेवन कर सकते हैं. डिप्रेशन से छुटकारा पाने के लिए साल्मन, मैकरेल और ट्यूना मछली खानी चाहिए. ये डिप्रेशन से लड़ने में मदद करती हैं. इनमें प्रचुर मात्रा में ओमेगा-3 फैट होता है जो कि मस्तिष्क की कोशिकाओं के बीच संबंध बनाने में मदद करता है और न्यूरोट्रांसमीटर के लिए रिसेप्टर नाडियों को मजबूती देता है. आहार में ओमेगा-3 फैटी एसिड लेने से सेरोटोनिन के उत्पादन में वृद्धि होती है और मूड भी अच्छा रहता है.

अंडे

अंडे की जर्दी विटामिन-डी का बेहतरीन स्रोत होती है. इसमें प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिससे शरीर को सभी प्रकार के जरूरी अमीनो एसिड मिलते हैं. ये शरीर के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं. अंडे में ट्रिप्टोफेन नामक अमीनो एसिड होता है जो कि फील गुड हार्मोन सेरोटोनिन बनाने में मदद करता है.

ओमेगा-3 फैटी एसिड

एक शोध के मुताबिक जो व्यक्ति अपनी डाइट में ओमेगा-3 फैटी एसिड नहीं लेता है उसे डिप्रेशन का खतरा अधिक रहता है. इसके सेवन से दिमाग सही से काम करता है. इसके लिए डाइट में अलसी के बीज, सोयाबीन तेल, नट्स, फैटी फिश, पत्तेदार हरी सब्जियां जरूर शामिल करें.

सेलेनियम

कई शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि सेलेनियम के सेवन से व्यक्ति की मनोदशा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे तनाव के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है. रोजाना करीब 55 माइक्रोग्राम सेलेनियम जरूर सेवन करना चाहिए. इसके लिए डाइट में ब्राज़ील नट्स, समुद्री भोजन और मांस का सेवन कर सकते हैं.

विटामिन-डी

सूर्य की रोशनी यानी धूप भी डिप्रेशन में दवा समान है. सूर्य की रोशनी विटामिन-डी का मुख्य स्त्रोत है. विटामिन-डी के सेवन से भी व्यक्ति की एंजाइटी और अवसाद के भाव घटते हैं. डाइट में ऑयली फिश, ओकरा और डेयरी उत्पादों को जोड़ने से भी विटामिन डी मिलता है.

एंटीऑक्सीडेंट्स और गुड कार्ब्स

अपनी डाइट में एंटीऑक्सिडेंट्स और गुड कार्ब्स युक्त चीज़ों को जरूर जोड़ें. विटामिन-ए, सी और इ में एंटीऑक्सिडेंट्स पाए जाते हैं. जबकि साबुत अनाज, फल और सब्जियों में कार्ब्स पाए जाते हैं. इसके लिए आप फल और सब्जियों का अधिक से अधिक सेवन करें.

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