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लगातार होती आतंकवादी घटनाएं चिंताजनक, क्या सरकारी प्रयास काफी हैं?

आगामी सितंबर में कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं. दूसरी तरफ वहां आतंकवादी घटनाएं बढ़ती चली जा रही हैं. ऐसे में आज देश और दुनिया में स्वर उठ रहा है कि तीसरे डब्बे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर की ओर पीठ कर के क्यों खड़े हो गए हैं.

मौजूदा भारत सरकार के प्रयास करने के बाद भी एक बार फिर ऐसा लग रहा है मानो कश्मीर आतंकवाद की राह पर आगे बढ़ता जा रहा है जिसे रोकना अपरिहार्य है. एक ओर जहां आतंकवादी अपनी गतिविधियों से बाज नहीं आ रहे हैं वहीं सरकार शिकंजा कसती चली जा रही है. शायद यही कारण है कि नैशनल कौन्फ्रैंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी हमलों के बाद लोगों की कथित गिरफ्तारी और परेशान करने को ले कर जम्मूकश्मीर प्रशासन पर निशाना साधते हुए कहा, “अगर सरकार आतंकवाद को खत्म करना चाहती है तो उसे स्थानीय लोगों को अपने साथ लेना होगा.”

अब्दुल्ला ने आगे कहा, “अक्षम जम्मूकश्मीर प्रशासन सिर्फ आम लोगों को गिरफ्तार करना, हिरासत में लेना और परेशान करना जानता है. वह बारबार एक ही गलती करता है और फिर भी अलग नतीजे की उम्मीद करता है. आतंकवाद को खत्म करने के लिए आप को स्थानीय लोगों को अपने साथ मिलाने की जरूरत है, न कि अलगथलग और नाराज करने की. वे अपनी पार्टी नैशनल कौन्फ्रैंस की एक पोस्ट पर टिप्पणी कर रहे थे, जिस में दावा किया गया था कि पिछले कुछ दिनों में हुए आतंकवादी हमलों के मद्देनजर चिनाब घाटी और पीर पंजाल क्षेत्र में आम लोगों को परेशान किया जा रहा है, हिरासत में लिया जा रहा है और गिरफ्तार किया जा रहा है.
“जम्मूकश्मीर नैशनल कौन्फ्रैंस हमेशा शांति के लिए और चरमपंथी ताकतों के खिलाफ खड़ी रही है. इस ने आतंकवाद के कारण अपने हजारों कार्यकर्ताओं को खोया है और उन के दर्द को गहराई से समझती है. मगर चिनाब और पीर पंजाल से आम लोगों को परेशान करने के लिए हिरासत में लेने और गिरफ्तार किए जाने की खबरें आ रही हैं जो बेहद दुखद हैं. इन घटनाओं के बीच देखना होगा कि लंबे समय से कश्मीर में जो प्रतिरोध बना हुआ है, लोकतंत्र बहाली की तरफ लोगों की निगाह है, वह कब पूरी होगी.”

हमला दर हमला

जम्मूकश्मीर में आतंकवाद बढ़ता जा रहा है. इस का एक उदाहरण है रियासी जिले में हाल में तीर्थयात्रियों से भरी एक बस पर हुए आतंकवादी हमले की जांच के सिलसिले में 50 लोगों को हिरासत में लिया गया है. पुलिस ने कहा, “समग्र जांच सुनिश्चित करने के वास्ते आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए तलाशी अभियान का दायरा रियासी जिले के अरनास और माहौर जैसे दूरदराज के क्षेत्रों तक बढ़ाया गया है जो 1995 और 2005 के बीच आतंकवादियों के गढ़ हुआ करते थे.”

तीर्थयात्रियों को ले कर शिवखोड़ी मंदिर से ले कर माता वैष्णोदेवी जा रही एक बस पर 9 जून, 2024 को आतंकवादियों ने हमला कर दिया था. इस गोलीबारी के बाद बस खाई में गिर गई, जिस से 9 लोगों की मौत हो गई थी तथा 49 अन्य घायल हो गए. बस में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के तीर्थयात्री सवार थे. पुलिस प्रवक्ता ने 50 संदिग्धों को हिरासत में लिए जाने की पुष्टि करते हुए कहा, “पुलिस समग्र जांच कर रही है. अहम सुराग सामने आए हैं जिन से उन लोगों की पहचान एवं गिरफ्तारी में मदद मिल रही है जिन का इस हमले की साजिश में हाथ हो सकता है. उन्होंने कहा, “इन अभियानों का लक्ष्य अधिक से अधिक सबूतों को जुटाना तथा उन आतंकवादियों को पकड़ना है जो इन सुदूर इलाकों में छिपे हो सकते हैं.”

जम्मूकश्मीर के पुलिस महानिदेशक आर आर स्वैन ने पाकिस्तान पर अपने भाड़े के सैनिकों के जरिए यहां का शांतिपूर्ण माहौल बिगाड़ने की कोशिश करने का आरोप लगाया और कहा, “भारतीय सेना दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए दृढ़ संकल्पित है और ‘दुश्मन एजंटों’ को चेतावनी दी कि वे आतंकवाद का समर्थन करने के अपने फैसले पर पछताएंगे.” उन्होंने यह भी कहा कि उन के पास परिवार, जमीन और नौकरियां हैं, जबकि पाकिस्तानी आतंकवादियों के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. डीजीपी ने रियासी जिले में कहा कि जम्मूकश्मीर में आतंकवाद का प्रारंभिक बिंदु सीमापार है.

विरोधी पक्ष का स्पष्ट इरादा यह है कि यदि वे कश्मीर में शांतिपूर्ण माहौल बिगाड़ने के लिए स्थानीय लोगों को विध्वंसक गतिविधियों के लिए प्रेरित नहीं कर सकते तो पाकिस्तानियों को वहां भेज कर उन की भरती करें और उन्हें जबरन इस दिशा में धकेलें. पुलिस प्रमुख मां वैष्णो देवी मंदिर आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए आधार शिविर कटरा में थे. उन्होंने जिले में सुरक्षा की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की. इसी जिले के शिवखोड़ी में आतंकियों ने 9 जून को शाम को एक बस पर हमला किया था, जिस में 9 लोग मारे गए और 41 घायल हो गए.

इस बैठक में अन्य लोगों के अलावा रियासी के पुलिस उपायुक्त विशेष पाल महाजन, उधमपुर-रियासी रेंज के पुलिस उपमहानिरीक्षक रईस मोहम्मद भट और रियासी की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मोहिता शर्मा शामिल हुए. पुलिस प्रमुख ने कहा कि, “दुश्मनों के एजेंट पैसे और नशीले पदार्थों के लिए विदेशी आतंकियों की मदद कर रहे हैं. उन की पहचान की जाएगी और उन से सख्ती से निबटा जाएगा.

“हम उन्हें चेतावनी देना चाहते हैं कि आतंकवादी मारे जाएंगे. लेकिन जो लोग उन का समर्थन कर रहे हैं, उन्हें पछताना पड़ेगा. विदेशी आतंकियों के पास कोई नहीं है, चाहे उन के बच्चे हों या नहीं. हमें नहीं पता कि वे जेलों से उठा कर किसे यहां भेज रहे हैं, लेकिन जो लोग आतंकियों का यहां समर्थन कर रहे हैं, उन के पास यहां जमीन, बच्चे और नौकरियां हैं और उन्हें नुकसान उठाना होगा.”

मोदी 3.0 की 7 महिला सांसदों की दी गई ये जिम्मेदारी

कोई सरपंच थीं, तो कोई पति की मृत्यु के बाद राजनीति में आईं, कोई साधारण परिवार से थीं, तो कोई राजनीतिक घराने से, मंत्रिमंडल में शामिल 7 महिला मंत्री कौन हैं, उन्हें कौन सा पदभार मिला है जानें

मोदी मंत्रिपरिषद के इन महिला चेहरों में कुछ से लोग बहुत वाकिफ नहीं हैं। 16वीं लोकसभा मोदी 1.0 में महिला मंत्रियों की संख्या 8 थी. 17 वीं लोकसभा मोदी 2.0 में यह संख्या 6 हो गई और इस बार पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार में सात महिला मंत्री हैं। आइए एक-एक कर इनसे परिचय करें और जानें कि जनसेवा के लिए इन्हें कौन सा पद सौंपा गया है.

1 निर्मला सीतारमण: मोदी सरकार में निर्मला सीतारमण जैसा किस्मत का धनी शायद ही कोई हो. 2014 में पहली बार मोदी मंत्रिमंडल में उन्होंने रक्षा मंत्री का पदभार संभाला, वहीं दूसरी बार वित्त मंत्री का कार्यभार सौंपा गया. इस बार फिर वित्त मंत्रालय संभाल रही हैं. संसद का मानसून सेशन 22 जुलाई को शुरू होगा और तब फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण 2024-25 फाइनेंशिअल ईयर के लिए पूर्ण बजट पेश करेंगी. इस यूनियन बजट को पेश करने के साथ ही वह लगातार 7 बजट पेश करने वाली वित्त मंत्री बन जाएगीं. इनके पहले मोरारजी देसाई ने 5 पूर्णकालिक और एक अंतरिम बजट पेश किया था.
ये भी जानें – 2019 में जब मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई, तो निर्मला सीतारमण ने ट्रेडिशनल ब्रीफकेस को बही खाते से रिप्लेस किया.

 

2 अनुप्रिया पटेल  –
अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में पहले भी केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप जिम्मेदारी संभाल चुकी हैं। इस बार उनको दो मंत्रालयों में केंद्रीय राज्यमंत्री का दायित्व दिया गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री के साथ अनुप्रिया को रसायन और उर्वरक मंत्रालय में भी राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है। अनुप्रिया पटेल, अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की बेटी हैं. साइकोलौजी में मास्टर्स की डिग्री के साथ अनुप्रिया ने एमबीए भी किया है. यूपी के मिर्जापुर से सांसद अनुप्रिया को तीसरी बार राज्यमंत्री का पदभार मिला है. वर्तमान सरकार में उनको पहली बार दो मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है।
ये भी जानें  –अपना दल प्रमुख अनुप्रिया पटेल ज्यादा चर्चा में रहने से बचती हैं. लेकिन फिर भी कुछ विवाद उनका पीछा नहीं छोड़ते, जैसे 2014 में विधानसभा उपचुनाव को लेकर उनका मां कृष्णा पटेल से विवाद हो गया था. इसके बाद मां ने बेटी और उसके समर्थकों को पार्टी से निकाल बाहर किया. उसके बाद अपना दल पार्टी दो धड़ों में बंट गई. अपना दल (एस) अनुप्रिया पटेल की पार्टी है.  2014 में बीजेपी के साथ गठबंधन करने के बाद वह यूपी के मिर्जापुर से पहली बार सांसद बनी थी. 

3 अन्नपूर्णा देवी  –
मोदी 3.0 की महिला मंंत्रियों में से एक अन्नपूर्णा देवी का नाम कुछ लोगों के लिए नया हो सकता है. झारखंड के कोडरमा से सांसद अन्नपूर्णा देवी को नई सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है . पिछली सरकार में वे केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री थी.
ये भी जानें – अन्नपूर्णा देवी ने पति विजय यादव की मृत्यु के बाद राजनीति का रुख किया.  राजनीतिक कैरिअर की शुरुआत इन्होंने राष्ट्रीय जनता दल से की थी. आरजेडी में रहते हुए वे 5 बार विधायक बनी. साल 2019 में बीजेपी में शामिल हुई. 

4 रक्षा खड़से – 9 जून 2024 को आयोजित मोदी 3.0 शपथ ग्रहण समारोह में शपथ लेने वाली महिला मंत्रियों में रक्षा खड़से सबसे युवा महिला मंत्री हैं, इन्हें युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है. रक्षा खडसे 23 साल की थीं, तभी सरपंच बन गई थीं. महाराष्ट्र के रावेर से सांसद रक्षा मजबूत पर्सनालिटी की महिला मानी जाती हैं. इनकी एक फोटो काफी वायरल हुई थी, जिसमें वे अपने दो बच्चों को गोद में लिए हुए थीं.
ये भी जानें –  शरद पवार गुट के एनसीपी नेता एकनाथ खड़से की बहू हैं रक्षा खड़से. एकनाथ खड़से भाजपा में शामिल हो गए थे. रक्षा के पति का नाम निखिल खड़से था. निखिल खड़से ने खुद को गोली मार ली थी।

5 सावित्री ठाकुर – वर्तमान मोदी मंत्रिपरिषद में सबसे चौंकानेवाला नाम सावित्री ठाकुर का रहा. आदिवासी समाज से आनेवाली सावित्री ठाकुर को राज्यमंत्री बनाया गया है. मप्र के धार से चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्रालय तक पहुंचीं सावित्री ठाकुर को महिला और बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है.
ये भी जानें – सावित्री देवी को मप्र में भाजपा का आदिवासी चेहरा माना जाता है.

6 निमूबेन बंभाणिया
कोली समाज से संबंध रखनेवाली निमूबेन बंभाणिया ने गुजरात के भावनगर से चुनाव जीता है. मोदी सरकार में उनको उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है.निमूबेन तीन बार पार्षद रहीं, दो बार मेयर रही हैं. भावनगर सीट से जब आम आदमी पार्टी ने कोली कार्ड खेलकर अपने प्रत्याशी को उतारा तो बीजेपी ने इसके जबाव में निमूबेन को वहां से टिकट दिया.
ये भी जानें – निमूबेन टीचर रह चुकी हैं. उनके पति भी शिक्षक हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि वह आदर्शवादी हैं. जब वह मेयर थीं तो उनके फैमिली मेंबर सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करते थे.

7 शोभा करंदलाजे
शोभा करंदलाजे के पास समाजशास्त्र में एम और मास्टर ऑफ सोशलवर्क की डिग्री है. बीजेपी की ओर से शाेभा करंदलाजे को बेंगलुरू की उत्तरी लोकसभा सीट से उतारा गया था. शोभा को कांग्रेस प्रत्याशी के विरुद्ध जीत हासिल हुई. उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय में राज्य मंत्री और श्रम और रोजगार मंत्रालय में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. पिछली लोकसभा में उन्हें कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया था.
ये भी जानेंमोदी मंत्रिपरिषद में शामिल शोभा साल 2012 में बीजेपी को छोड़कर कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा की पार्टी केजीपी में शामिल हो गई थी. 2014 में केजीपी का बीजेपी में विलय होने से वह फिर भाजपा में आ गईं

नीट एग्जाम में गड़बड़ी और उठते सवालों के बीच अधर में लाखों छात्रों के सपने

‘एक देश एक परीक्षा’ भी ‘एक देश एक चुनाव’, ‘एक देश एक टैक्स’ जैसा ही है. जिस तरह ईवीएम पर सवाल उठे, उसी तरह से नीट की ओएमआर शीट भी सवालों के घेरे में है. ईवीएम को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद भी शंका बरकरार है. नीट आयोजित कराने वाली नैशनल टैस्टिग एजेंसी (एनटीए) कहती है, ‘परीक्षा की ओएमआर शीट में छेड़छाड़ संभव नहीं है.’ नीट में गड़बड़ी की दूसरी राहें भी हैं. ग्रेस मार्क्स और पेपर लीक सवालों के घेरे में हैं. नीट की तरह ही इंजीनियरिंग में ‘जेईई’ और विश्वविद्यालय परीक्षाओं के लिए ‘क्यूट’ भी आयोजित की जाती हैं. ये भी ‘एक देश एक परीक्षा’ जैसी हैं.

नीट में एक लाख 50 हजार सीटों के लिए 24 लाख छात्र परीक्षा देते हैं. नैशनल लैवल की जगह स्टेट लैवल पर यह परीक्षा क्यों नहीं आयोजित की जाती? क्या सरकार सभी छात्रों के लिए सरकारी मैडिकल कालेज नहीं खोल सकती? छात्र प्राइवेट कालेज में पढ़ने क्यो जाएं? समय से 10 दिनों पहले परीक्षा परिणाम क्यों आया? जबकि 4 जून को लोकसभा का चुनाव परिणाम भी आना था? ग्रेस मार्क्स देने का फार्मूला क्या था? क्या केवल 1,563 छात्रों को ही ग्रेस मार्क्स दिए गए?

ग्रेस मार्क्स वाले छात्रों की दोबारा परीक्षा लेने से मैरिट पर क्या असर पड़ेगा? एनटीए की गलती पकड़ी जा चुकी है. ऐसे में उस के द्वारा आयोजित परीक्षा पर भरोसा कैसे हो? क्या इस परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों का खर्च सरकार उठाएगी? बहुतेरे ऐसे सवाल हैं जिन के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं. सरकार ‘एक देश एक परीक्षा’ कराने को आतुर है. नीट में दिखने वाली गड़बड़ियों के बाद अब इस तरह की व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं. ऐसे में जरूरी है कि स्टेट लैवल पर परीक्षा हो. अगर ऐसा होगा तो गड़बड़ी के मौके कम होंगे.

सरकार को एक देश एक परीक्षा की जिद छोड़नी होगी. जितनी बड़ी परीक्षा होगी, उस में गड़बड़ी की संभावना उतनी ही अधिक होगी. ऐसे में पहले की ही तरह से जिले और राज्य स्तर पर पीएमटी और सीपीएमटी परीक्षा आयोजित हों. सब की अलग योग्यता हो. योग्यता से अधिक वालों को परीक्षा से अयोग्य ठहराया जाए. तभी सही आकलन हो सकेगा व योग्य अभ्यर्थी का ही चुनाव हो सकेगा.

छात्र चाहे स्नातक की पढ़ाई करना चाहें या इंजीनियरिंग की, सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पढ़ाई की व्यवस्था करे. शिक्षा का बाजारीकरण रुकना चाहिए. इसी वजह से गड़बड़ी होती है. सरकारी कालेज एलौट होने की चाह में छात्र कोचिंग संस्थानों के मोहपाश में पड़ते हैं. कोचिंग संस्थानों में छात्रों पर मानसिक दबाव डाला जाता है. जिस वजह से छात्र आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर होते हैं.

सवालों से घिरी नीट

नीट यूजीसी का आयोजन 5 मई, 2024 को देशभर में 4,750 केंद्रों पर किया गया. जिस में 24 लाख से अधिक बच्चे शामिल हुए थे. इस के बाद रिजल्ट 14 जून को आना था. लेकिन यह 4 जून को ही जारी कर दिया गया. इस में 67 स्टूडैंट्स को 720 में से 720 अंक मिले. 2 स्टूडैंट्स को 717 और 719 अंक मिले. सारा विवाद यहां से शुरू हुआ. विवाद के 3 प्रमुख कारण थे. एक तो लोगों को यह समझ नहीं आया कि 67 छात्रों को 720 में से 720 नंबर कैसे मिले?
दूसरा सवाल यह उठ रहा है कि जब परीक्षा का परिणाम 14 जून को आना था तो उसे अचानक 10 दिनों पहले 4 जून को ही क्यों घोषित कर दिया गया. 4 जून को देश के लोकसभा चुनाव का परिणाम आना था. विरोधियों का तर्क है कि एनटीए को यह लग रहा था कि चुनावी शोर में यह विवाद छिप जाएगा. लेकिन लोकसभा चुनावों में भाजपा को हार मिलने के बाद विरोध के स्वर मुखर हो गए और नीट परीक्षा में गड़बड़ी मुद्दा बन गया. दूसरा सवाल यह उठ रहा है कि किसी छात्र के 717, 718 और 719 अंक कैसे आ सकते हैं?

3 नंबरों ने खोला राज

नीट परीक्षा में 720 नंबर का पूरा पेपर होता है. अगर छात्र एक सवाल छोड़ता है तो उस के 4 नंबर कट जाएंगे, जिस के बाद छात्र को 716 नंबर मिल सकते है. अगर एक सवाल गलत करता है तो उस के 4 नंबर गलत जवाब देने के काटेंगे और 1 नंबर माइनस मार्किग का कटेगा यानी उस के कुल 5 नंबर काटेंगे तो उस को 715 नंबर मिलेंगे. ऐसे में यह समझ नहीं आ रहा कि 717, 718 और 719 किस तरह से नंबर मिले हैं. यही वह सूत्र था जिस से नीट में गड़बड़ी का राज खुला. नीट ने अपनी सफाई में तर्क दिया कि ग्रेस मार्क्स के कारण ये नंबर आए. तब सवाल उठा कि ग्रेस मार्क्स क्या है? ये क्यों दिए गए? किस को दिए गए? ग्रेस मार्क्स देने का फामूर्ला क्या था? ये सभी सवाल एनटीए के गले की हड्डी बन गए हैं.

छात्रों पर रहता है परीक्षा का दबाव

हमारे समाज में आईएएस के बाद सब से अधिक सम्मान वाला पेशा डाक्टरी को माना जाता है. ऐसे में आईएएस के बाद सब से अधिक छात्र मैडिकल में कैरियर बनाना चाहते हैं. 2023-24 के लिए आईएएस परीक्षा में 13 लाख छात्रों ने प्रवेशपरीक्षा दी थी. इन में से केवल 14 हजार ही मेंस के लिए परीक्षा में आगे बढ़ पाए. मैडिकल के लिए 24 लाख छात्रों ने इस साल नीट की परीक्षा दी थी.

मैडिकल की पढ़ाई के लिए नीट में अच्छा स्कोर लाए बिना अच्छे संस्थान में प्रवेश नहीं मिल सकता. नीट क्वालीफाई उम्मीदवार ही विदेश से कोर्स करने के बाद भारत में प्रैक्टिस के लिए पात्र होंगे. इस के लिए उन को भी एफएमजीई परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी. बिना नीट क्वालीफाई किए उम्मीदवार पहले की तरह अब विदेश से एमबीबीएस की पढ़ाई कर भारत में प्रैक्टिस नहीं कर पाएंगे.

नीट का कटऔफ स्कोर परीक्षा के बाद बनता है, उस आधार पर ही सरकारी कालेज और प्राइवेट कालेज एलौट किए जाते हैं. सरकारी कालेज की मांग 2 वजहों से होती है. इन की रैंक पढ़ाई के हिसाब से बेहतर होती है. दूसरे सरकारी कालेज मे फीस कम होती है. ऐसे में नीट देने वाले हर छात्र का सपना होता है कि उसे सरकारी कालेज मिल जाए.

मेरिट में आने के लिए ही छात्र कोचिंग की मदद लेता है. औनलाइन क्लास लेता है और सैल्फ स्टडी करने के लिए बाजार से किताबें व गाइड भी खरीदता है. किताबों, कोर्स और कोचिंग की फीस हर साल बढ़ती जाती है. कोचिंग की सालाना फीस 2 लाख रुपए होती है. इस के कोचिंग वाले हर माह मौक टैस्ट के नाम पर परीक्षा कराते हैं.
इस में छात्रों को सिखाया जाता है कि परीक्षा के निर्धारित समय में कैसे अधिक से अधिक सवालों के जवाब दें. सही सवालों के जवाब दें. गलत जवाब देने में नंबर कटने का खतरा रहता है. ऐसे में अधिक से अधिक नंबर पाने के लिए छात्र कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. पेपर लीक भी होता है. ऐसे मे नीट आयोजित करने वाली एनटीए सवालों के घेरे में है.

पटना से गोधरा तक पेपर लीक

केंद्र सरकार भले ही दावा करे कि नीट में पेपर लीक नहीं हुआ लेकिन सवाल उठता है कि पटना से ले कर गोधरा तक पेपर लीक पर बवाल क्यों मचा है. परीक्षा से एक रात पहले कई छात्रों को एक ही कमरे में पेपर सौल्व कराए गए. कई हजार किलोमीटर दूर से छात्र गोधरा के सैंटर में परीक्षा देने क्यों और कैसे आए? नीट परीक्षा द्वारा 40 हजार सीटें सरकारी कालेज में होती हैं. सारा झगड़ा इन 40 हजार सीटों में जगह बनाने की होती है. प्राइवेट कालेज में 5 साल के एमबीबीएस कोर्स की फीस 1 करोड़ 25 लाख से 2 करोड़ के बीच होती है. सरकारी कालेज में एक साल में 2 लाख का खर्च आता है. ऐसे में 10 लाख में डाक्टरी की पढ़ाई हो जाती है. गोधरा के अलावा पटना के शास्त्रीनगर सैंटर पर भी 13 छात्रों को हिरासत में ले कर पेपर लीक की जांच की जा रही है. अगर पेपर लीक का मसला नहीं है तो इन को गिरफ्तार क्यों किया गया?

छात्रों ने उठाए एनटीए पर सवाल

जब नीट आयोजित कराने वाली संस्था एनटीए ने टौपर्स के नाम अपनी वैबसाइट पर अपलोड किए तो छात्रों ने सवाल करने शुरू कर दिए. छात्रों ने एजेंसी से पूछा कि जहां हर साल एक या अधिकतम 2 टौपर निकलते हैं, वहीं इस साल कुल 67 टौपर हैं और इन सभी को परफैक्ट 720 अंक मिले हैं,ये कैसे हुआ ? इन में एक ही एग्जाम सैंटर से 6 टौपर्स होने की बात भी सामने आई. इस बार के बहुत से नीट टौपर्स एक ही सैंटर से हैं और परीक्षा से पहले कई सैंटरों पर पर्चा लीक होने की खबर भी आई. सरकार ने बिना किसी जांच के ही पेपर लीक के आरोप को नहीं माना है.

छात्रों ने एनटीए पर दूसरा आरोप लगाते हुए कहा कि खास सैंटर्स के स्टूडैंट्स को ही ग्रेस मार्क्स दिए गए हैं जबकि पेपर लेट कई सैंटर्स पर हुए थे. छात्रों ने आरोप लगाते हुए कहा कि इस रिजल्ट में 2 छात्रों, जिन की रैंक भी 68 और 69 आई है, को 718 और 719 नंबर दिए गए जोकि नीट की मार्किंग स्कीम के हिसाब से संभव नहीं है. इस के बाद नीट के छात्रों ने देशभर में प्रदर्शन करने शुरू कर दिए.

परीक्षा सैंटर पर भी तमाम तरह की धांधलियों की शिकायत मिलती है. एक बड़ी शिकायत यह मिली कि परीक्षा निरीक्षक को एनटीए की तरफ से 1,800 रुपए दिए जाते हैं. कालेज वाले इस में से 800 रुपए वापस ले लेते हैं. परीक्षा सैंटर काफी दूरदूर होने के कारण छात्रों को रात खुले में गुजारनी पड़ती है. इन के रहने खाने की व्यवस्था नहीं होती है. इस से इन को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

जिन कालेजों में परीक्षा केंद्र बनाए जाते हैं उन की अलग सांठगांठ होती है. इसी तरह से कोचिंग संस्थाओं की भी सांठगांठ होती है. पेपर आउट से ले कर परीक्षा में गड़बड़ी तक बहुत ऐसे मसले हैं जिन की वजह से परीक्षाओं पर से भरोसा घटा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नीट में गड़बड़ी से परीक्षा की पवित्रता प्रभावित हुई है. अब यह सवाल सड़क से ले कर संसद तक उठना तय है.

छात्रों के सपने चूरचूर

लखनऊ की रहने वाली आयुषी का नीट रिजल्ट गलत एप्लीकेशन नंबर के साथ जारी कर दिया गया जिस में उस के अंक सिर्फ 355 दिखाए जा रहे हैं. नीट परीक्षा में 715 अंक लाने का दावा करने वाली आयुषी पटेल लगातार सुर्खियों में हैं. अब एक नए विवाद के अनुसार एनटीए ने आयुषी का रिजल्ट गलत एप्लीकेशन नंबर के साथ जारी कर दिया है जिस में उस के अंक सिर्फ 355 दिखाए जा रहे हैं. सवाल यह उठता है कि अगर आयुषी को उस के सही एप्लीकेशन नंबर और आंसर की के मुताबिक 715 अंक मिले हैं तो उस का रिजल्ट गलत रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ कैसे जारी कर दिया गया.

आयुषी पटेल का कहना है कि पहले एनटीए ने उस का रिजल्ट रोक दिया. फिर जब उस ने ईमेल किया तो एनटीए ने उसे फटी हुई ओएमआर शीट भेज कर कारण बता दिया. जब यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर उठा तो कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने इस पर ट्वीट किया. इसी बीच, एक यूजर ने दावा किया कि आयुषी पटेल का रिजल्ट जारी कर दिया गया है. जांच में पता चला कि नैशनल टैस्टिंग एजेंसी ने लखनऊ की नीट छात्रा आयुषी पटेल का रिजल्ट गलत एप्लीकेशन नंबर के साथ अपलोड कर दिया है.
आयुषी के अनुसार, एडमिट कार्ड पर उस का आवेदन क्रमांक 240411840741 था और एनटीए ने फटी हुई ओएमआर शीट के कारण रिजल्ट जारी करने से मना कर दिया था. लेकिन जब आयुषी का आवेदन क्रमांक 240411340741 डाला गया तो उस का रिजल्ट सामने आया, जिस में उस के 355 अंक थे.

आयुषी ने दावा किया कि उस की आंसर-की में 715 अंक थे. एनटीए ने इस त्रुटि पर कोई जवाब नहीं दिया है. आयुषी ने 4 जून को देर शाम जब रिजल्ट औनलाइन देखा तो उस में रिजल्ट जारी नहीं किया गया था. आंसर-की के अनुसार उस का केवल एक प्रश्न गलत था, इसलिए उसे 720 में से 715 अंक मिल रहे थे.

एनटीए से मेल पर संपर्क करने पर उसे फटी हुई ओएमआर शीट के बारे में बताया गया. आयुषी को समझ में नहीं आया कि उस की ओएमआर शीट कैसे फट गई, जबकि उस ने परीक्षा में बहुत सावधानी से ओएमआर शीट भरी थी. परीक्षा केंद्र पर तैनात लोगों ने भी सावधानी बरतते हुए उस की ओएमआर शीट जमा कर दी. आयुषी के मामा, जो पेशे से हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में अधिवक्ता हैं, ने 4 जून को ही एनटीए को 3 लीगल नोटिस और 7 ई-मेल भेज कर आयुषी की ओएमआर शीट मेल पर मांगी थी. 24 घंटे बाद जब एनटीए का मेल नहीं आया तो आयुषी और उस के परिजन हैरान रह गए.

मेल पर भेजी गई ओएमआर शीट वाकई फटी हुई थी. आयुषी द्वारा भरी गई ओएमआर शीट के गोले भी साफ दिखाई दे रहे थे. आयुषी ने मांग की कि ओएमआर शीट फटी होने के लिए वह जिम्मेदार नहीं है और अगर ओएमआर शीट फटी भी है तो उस का रिजल्ट न रोका जाए. आयुषी ने इस मांग को ले कर हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में याचिका दायर की है. जब तक हाईकोर्ट उस की ओएमआर शीट को ले कर कोई फैसला नहीं देता, तब तक नीट के जारी रिजल्ट पर आगे की प्रक्रिया रोकी जाए.

नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऔर्डर , समय पर इलाज नहीं तो खतरनाक

प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में नार्सिसस की कहानी बताई गई है. नार्सिसस एक शिकारी था. वह बहुत ही अहंकारी व्यक्ति था. उस ने जंगल की अप्सरा इको के प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.

एक दिन जब वह जंगल में शिकार कर रहा था तो उसे एक तालाब मिला. उस ने अपनी प्यास बुझाने का फैसला किया. जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुका, पानी में पहली बार खुद को देखा और अपनी सुंदरता से अभिभूत हो गया. समय बीतता गया और उस की प्यास बढ़ती गई लेकिन वह वहीं बैठा रहा और धीरेधीरे खुद को देखता रहा व अपने ही प्रतिबिंब से प्यार करने लगा. नार्सिसस वहीं बैठा रहा जब तक कि उस की मृत्यु नहीं हो गई और वह तालाब के किनारे एक सुनहरे फूल में बदल गया.

कहीं आप भी तो खुद को सब से बेहतर नहीं समझते और अपने को नार्सिसस की तरह सब से ज्यादा प्यार तो नहीं करते. अगर ऐसा है तो यह एक बड़ी समस्या का कारण बन सकता है. हमारे आसपास ही बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते. ये लोग हमारे फैमिली मैंबर्स, हमारे दोस्त भी हो सकते हैं. जैसे कि आभा का कहना है की मेरी सासुमां को लगता है, वह द बेस्ट है, हर काम उस से अच्छा कोई कर ही नहीं सकता. अपनी इसी सोच के चलते वह हर बात में मुझे नीचे दिखाती है. पहले मुझे बहुत बुरा लगता था पर अब मैं समझ गई हूं कि वह बीमार है. लेकिन लाख कोशिश करने के बाद भी मैं उसे यह बात नहीं समझा पाई की वह बीमार है. इस समस्या के शिकार आप भी हो सकते हैं. इसलिए आइए जानें कि यह समस्या क्या है.

यह एक मैंटल प्रौब्लम है

खुद की तारीफ सुनना भला किसे पसंद नहीं होता. हम सभी यही चाहते हैं कि हमारे अपने हमारी तारीफ करें. लेकिन दूसरी तरफ इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि तारीफ उसी की होती है जो तारीफ के काबिल हो और उस ने कुछ ऐसे काम किए हों जो लोगों द्वारा पसंद किए गए हों. जबकि इस के उलट, जिस के काम अच्छे न हों, तो लोग उस की बुराई करने से भी पीछे नहीं हटते. यह सामाजिक नियम है और बस, समस्या की शुरुआत भी यहीं से होती है.

क्या है नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऔर्डर

‘नार्सिसिस्ट’ वह मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसे नार्सिसिस्ट पर्सनैलिटी डिसऔर्डर (एनपीडी) कहा जाता है. यह डिसऔर्डर कई तरह के पर्सनैलिटी डिसऔर्डरों में से एक है. इस में व्यक्ति खुद को इतनी अधिक अहमियत देते हैं कि उन्हें अपने आगे कोई और नज़र ही नहीं आता. वे खुद को ही सर्वोत्तम मानते हैं. बस, खुद में आत्ममुग्ध रहना उन की प्राथमिकता होती है.

ऐसे लोग जो भी बोलते हैं और करते हैं उस में उन की मंशा होती है कि सामने वाला उन से पूरी तरह प्रभावित हो कर आकर्षित हो जाए. खुद को सर्वश्रेष्ठ मानना और बुराई सुनने पर झगड़ पड़ना, यह मैंटल डिसऔर्डर की निशानी है. इसे मैडिकल भाषा में पर्सनैलिटी डिसऔर्डर कहा जाता है. इस का समय पर इलाज न किया जाए तो नतीजे घातक हो सकते हैं.

कब होती है समस्या

ऐसे व्यक्ति चाहतें है कि लोग हर वक्त उन की तारीफ करें, उन के कहे अनुसार चलें. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो ये लोग नाराज हो जाते हैं, बुरा मान जाते हैं, अपने ईगो पर ले लेते हैं. सामने वाले से झगड़ा करने में भी पीछे नहीं रहते. सामान्य रिश्ते निभाने में भी उन्हें तकलीफ होती है और दूसरों के लिए उन के मन में सहानुभूति की कमी होती है.

बीमारी घेर लेती है कुछ इस तरह

अपने व्यवहार की वजह से जब इन लोगों को समाज की उपेक्षा मिलती है, तो ये लोग बिखर जाते है. इन का कौन्फिडेंस लैवल जीरो हो जाता है. ऐसे लोग जीवन में दुखी और अधूरे रहते हैं. निराशा होने पर शर्म, अपमान और खालीपन की भावना इन में घर कर जाती है. हार के डर से कुछ भी करने की अनिच्छा भी इं में पैदा हो जाती है और इसी वजह से इन में डिप्रैशन और एंग्जायटी के लक्षण भी साथ में आ जाते हैं.

लक्षण क्या है

-इन लोगों को खुद की बुराई बरदाश्त नहीं होती.
-ये लोग उम्मीद करते है कि इन्हें हर जगह स्पैशल ट्रीटमैंट मिले और जब ऐसा नहीं हो पाता, तो ये लोग बहुत जल्दी चिढ़ जाते हैं.
-ये लोग बहुत मूडी होते हैं. अपना मन होता है तो ठीक से बात करतें हैं, मूड नहीं है तो बात नहीं करते.
-ये जिद्दी और घमंडी भी होते हैं.
-सैल्फसैंटर्ड होते हैं.
-ऐसे लोगों को लगता है कि जीवन में इन्होंने बहुतकुछ पा लिया है. जबकि, जितना वे शोऔफ करते हैं उतना उन्होंने अपनी लाइफ में कुछ खास हासिल नहीं किया होता.
-ये लोग दूसरों को बातबात में नीचा दिखाते हैं.

इस का इलाज कैसे करें

* मैडिटेशन करने से मन शांत होता है और बेकार की बातें मन में कम आती हैं.
* खुद अपने को परखें, अपने पौजिटिव और नैगेटिव का आकलन खुद करें.
* सिर्फ अपनी अपनी न कहें बल्कि दूसरे लोग जो कह रहे हैं उस को ध्यान से सुनें भी.
* दूसरों से अपनी तुलना न करें.
* खुद की प्रशंसा सुनने की सनक से बचें.
* अगर आप में कुछ गलत है तो उसे स्वीकार करें.
* अगर आप के रिश्तेदार लोग डाक्टर के पास जाने की सलाह दे रहे हैं, तो इसे अना का मसला न बनाएं बल्कि उन की बातों को समझें और उन का सहयोग करें.

आईना : अपना अक्स देखने से पिता ने क्यों किया मना?

आईने के सामने खड़े हो कर गाना गुनगुनाते हुए डा. रत्नाकर ने अपने बालों को संवारा, फिर अपनेआप को पूर्ण संतुष्टि के साथ निहारते हुए बड़े मोहक अंदाज में अपनी पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘सोनू, अरे सोना, मैं तो रेडी हो गया, अब तुम जरा गाड़ी में दोनों पैकेट रखवा दो…पिं्रसिपल साहब का स्पैशल वाला और स्टाफरूम के लिए बड़ा वाला मिठाई का डब्बा. मेरे सारे दोस्त मिठाई के इंतजार में होंगे, सभी के बधाई के फोन आ रहे हैं. आखिर मेरी ड्रीम कार आ ही गई.’’

‘‘पैकेट कार में पहले ही रखवा दिए, प्रिंसिपल साहब की मैडम के लिए कांजीवरम सिल्क की साड़ी भी रख दी है. चाहे कुछ कहो, प्रिंसिपल साहब साथ न दें तो हमारे सपने कैसे पूरे हों. अगर मैडम को भी खुश कर दो तो सबकुछ आसान हो जाता है. ठीक है न,’’ सोनू ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘यू आर ग्रेट,’’ परफ्यूम स्प्रे करतेकरते डा. रत्नाकर ने अपनी पत्नी की दूरदर्शिता की दाद देते हुए कहा, ‘‘जानती हो, स्टाफ में एक शख्स ऐसा भी है जिस ने न तो अभी तक मु?ो बधाई नहीं दी. उस का नाम शैलेंद्र है. जलता है वह मेरी तरक्की से और कुछ कहो तो आदर्श शिक्षक की विशेषताएं बता कर सारा मजा किरकिरा कर देता है…सोच रहा हूं, आज उसे इग्नोर ही कर दूं वरना मूड खराब हो जाएगा.

’’सोनू ने भी इस बात पर पूर्ण सहमति जताते हुए सिर हिलाया. डा. रत्नाकर और सोनू गेट की ओर बढ़े. ड्राइवर ने दौड़ कर गाड़ी का दरवाजा खोला.‘‘बाय,’’ हाथ हिलाते हुए डा. रत्नाकर ने सोनू से विदा ली और कार कालेज की ओर चली. आज उन्हें अपनेआप पर बहुत गर्व हो रहा था. हो भी क्यों न? मात्र 3-4 साल में पहले निजी फ्लैट और अब गाड़ी खरीद ली थी. कहां खटारा स्कूटर…किराए का मकान…मकानमालिक की किचकिच… सब से मुक्ति. जब से अपना कोचिंग सैंटर खोला है तब से रुपयों की बरसात ही तो हो रही है. सोनू भी पढ़ीलिखी है. वह कोचिंग का पूरा मैनेजमैंट देख लेती है और डा. रत्नाकर शिफ्ट में व्यावसायिक कोर्स की कोचिंग करते हैं. पिं्रसिपल साहब को भी किसी न किसी बहाने कीमती गिफ्ट पहुंच जाते हैं तो कालेज का समय भी कोचिंग में लगाने की सुविधा हो जाती है. एक बेटा है जो दिल्ली के एक महंगे स्कूल से 12वीं कर रहा है.

‘ट्रिन…ट्रिन,’ मोबाइल की घंटी से डा. रत्नाकर अपने सुखद विचारों से बाहर निकले. शौर्य का फोन था.‘‘क्या बात है?’’ रत्नाकर ने पूछा.‘‘पापा, आप अपनी किताबें व रजिस्टर घर पर ही भूल गए,’’ शौर्य ने कहा, ‘‘सोचा, आप को बता दूं. आप परेशान हो रहे होंगे.’’

‘‘अरे,’’ रत्नाकर सोच ही नहीं पाए कि क्या जवाब दें. फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘बेटा, असल में आज एक मीटिंग है, इसलिए कालेज में पढ़ाई नहीं होगी,’’ इतना कहते ही उन्होंने फोन रख दिया.गाड़ी से उतर कर रत्नाकर तेज चाल से सीधे प्रिंसिपल के कमरे की ओर बढ़े. प्रिंसिपल साहब गाड़ी की आवाज सुन कर पहले ही खिड़की से डा. रत्नाकर की ड्रीम कार की ?

बालक देख चुके थे, जिसे देख कर उन का मूड औफ हो गया था. अत: डा. रत्नाकर के कमरे में घुसने पर वे चाह कर भी मुसकरा न सके.‘‘सर, आप के आशीर्वाद से नई गाड़ी ले ली है…और इस खुशी में यह छोटी सी भेंट आप के लिए लाया था. सोनू ने भाभीजी के लिए कांजीवरम की साड़ी भी भेजी है,’’ कह कर डा. रत्नाकर ने बो?िल वातावरण को महसूस करते हुए उसे हलका करने के उद्देश्य से पिं्रसिपल साहब के पैर छूने का उपक्रम किया.

‘‘रहने दो. इस सब की जरूरत नहीं. वैसे भी मैं तुम को फोन करने वाला था क्योंकि आजकल कई अभिभावक तुम्हारे विरुद्ध शिकायतें ले कर आ रहे हैं कि लंबे समय से क्लास नहीं हुई. मेरे लिए भी संभालना मुश्किल हो रहा है,’’ प्रिंसिपल साहब ने थोड़ी बेरुखी दिखाते हुए कहा.‘‘सर, मु?ो पूरा विश्वास है कि आप तो संभाल ही लेंगे. वैसे भी भाभीजी की कुछ और खास पसंद हो तो बताइएगा,’’ डा. रत्नाकर ने ढिठाई से मुसकराते हुए कहा. पिं्रसिपल साहब भी मुसकरा दिए.अब दोनों खुश थे क्योंकि दोनों का दांव सही जगह लगा था.

पिं्रसिपल साहब से आज्ञा ले कर रत्नाकर खुशी से उतावले हो कर स्टाफरूम की ओर बढ़े. ‘अब असली मजा आएगा…गाड़ी खरीदने का. सब के चेहरे देखने में एक अजब ही सुख मिलेगा, जिस की प्रतीक्षा मु?ो न जाने कब से थी,’ रत्नाकर मन में सोच कर प्रसन्न हो रहे थे.

‘‘बधाई हो,’’ कई स्वर एकसाथ उभरे. रत्नाकर भी खुशी से फूल गए. चारों ओर दृष्टि दौड़ा कर देखा तो कोने की टेबल पर डा. शैलेंद्र एक किताब पढ़ने में लीन थे. चाह कर भी रत्नाकर अपनेआप को रोक न सके. अत: शैलेंद्र की प्रतिक्रिया जानने के लिए मिठाई खिलाने के बहाने उन के पास पहुंचे.‘‘शैलेंद्र, लो, मिठाई खाओ भई. कभीकभी दूसरों की खुशी में भी अपनी खुशी महसूस कर के देखो, अच्छा लगेगा,’’

थोड़े तीखे व ऊंचे स्वर में रत्नाकर ने कहा.‘‘जरूरी नहीं कि मिठाई बांट कर या शोर मचा कर ही खुशी प्रकट की जाए. मु?ो किताब पढ़ने में खुशी मिलती है तो मैं वही कर रहा हूं और खुश हो रहा हूं,’’ शांत भाव से शैलेंद्र ने जवाब दिया.‘‘वही तो, कई लोगों को हमेशा पुराने ढोल की आवाज ही अच्छी लगती है तो वे बेचारे क्या तरक्की करेंगे. मैं ने अपनी सोच बदली, नए जमाने की दौड़ के साथ दौड़ा तो आज तुम जैसे लोगों को पीछे छोड़ दिया. असल में मु?ो बहुत जल्दी ही इस सच का एहसास हो गया कि पहले जैसे विद्यार्थी रहे ही नहीं तो उन के साथ माथापच्ची क्यों करूं?

इसलिए जो वास्तव में पढ़ना चाहते हैं उन्हें अलग से पढ़ाऊं…अलग पढ़ाने की फीस लूं…वे भी खुश हम भी खुश,’’ रत्नाकर ने तीखे स्वर में तर्क देते हुए कहा. क्योंकि वे अपनी उपलब्धि सभी पर प्रकट कर अपनेआप को सब से ऊंचा साबित करना चाह रहे थे.‘‘गलत, एकदम गलत. अगर इसी बात को सही शब्दों में कहें तो हम शिक्षक अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शिक्षा को व्यवसाय बना रहे हैं तथा ऐसा करने में जो अपराधबोध है उसे विद्यार्थियों के सिर मढ़ रहे हैं,’’ दोटूक उत्तर दे कर शैलेंद्र खड़े हुए और बिना मिठाई खाए स्टाफरूम से बाहर जाते हुए बोले, ‘‘आज भी अच्छे अध्यापक के सभी विद्यार्थी बहुत अच्छे होते हैं और वे ऐसे अध्यापक को वैसे ही सम्मान देते हैं जैसे अपने मातापिता को.’’स्टाफरूम में सन्नाटा छा गया.

डा. रत्नाकर भी निरुत्तर हो कर बैठ गए. ‘‘दिन कैसा रहा?’’ दरवाजा खोलते हुए खुश हो कर सोनू ने उत्सुकता प्रकट करते हुए रत्नाकर से पूछा.‘‘बहुत अच्छा, बस शैलेंद्र ने ही थोड़ा बोर कर दिया पर सोनू, सच कहूं तो उस की बात का बिलकुल बुरा नहीं लगा क्योंकि मुझे अपनी उपलब्धि पर भरपूर सुख का एहसास हो रहा था,’’ डा. रत्नाकर बोले.‘‘अरे पापा, आप कब आए?’’ कहते हुए शौर्य उन के पास आ कर बैठ गया.‘‘अभीअभी, बड़ी जरूरी मीटिंग थी, इसीलिए थोड़ा थक गया पर कल तुम को वापस जाना है इसलिए आज हम सब लोग डिनर करने बाहर चलेंगे. शौर्य, तुम अपने टीचर्स के लिए मिठाई और गिफ्ट्स ले जाना, वे खुश हो जाएंगे,’’ रत्नाकर ने शौर्य से कहा.‘‘पापा, कोई टीचर इस लायक है ही नहीं कि उन को कुछ देने का मन करे, सब पैसे के पीछे भागते हैं,

‘डाउट्स क्लीयर’ करने के बहाने घर बुला कर अच्छीखासी फीस लेते हैं…कुछ तो न जाने कब से कालेज ही नहीं आए… केवल एक राजन सर ऐसे हैं जिन के मैं हमेशा पैर छूता हूं और उन के लिए सच्चे मन से कुछ ले जाना चाहता हूं पर वे लेंगे ही नहीं. उन का कहना है कि हमारा अच्छा रिजल्ट ही उन की उपलब्धि है,’’ कहतेकहते शौर्य भावुक हो उठा.डा. रत्नाकर की निगाहें ?ाक गईं. उन का बेटा उन्हीं को ऐसा आईना दिखा रहा था जिस में वे अपना अक्स देखने की स्थिति में ही नहीं थे.

पंछी एक डाल के

‘‘औफिस के लिए तैयार हो गईं?’’ इतनी सुबह रजत का फोन देख कर सीमा चौंक पड़ी.

‘‘नहीं, नहाने जा रही हूं. इतनी जल्दी फोन? सब ठीक है न?’’

‘‘हां, गुडफ्राईडे की छुट्टी का फायदा उठा कर घर चलते हैं. बृहस्पतिवार की शाम को 6 बजे के बाद की किसी ट्रेन में आरक्षण करवा लूं?’’

‘‘लेकिन 6 बजे निकलने पर रात को फिरोजाबाद कैसे जाएंगे?’’

‘‘रात आगरा के बढि़या होटल में गुजार कर अगली सुबह घर चलेंगे.’’

‘‘घर पर क्या बताएंगे कि इतनी सुबह किस गाड़ी से पहुंचे?’’ सीमा हंसी.

‘‘मौजमस्ती की रात के बाद सुबह जल्दी कौन उठेगा सीमा, फिर बढि़या होटल के बाथरूम में टब भी तो होगा. जी भर कर नहाने का मजा लेंगे और फिर नाश्ता कर के फिरोजाबाद चल देंगे. तो आरक्षण करवा लूं?’’

‘‘हां,’’ सीमा ने पुलक कर कहा.

होटल के बाथरूम के टब में नहाने के बारे में सोचसोच कर सीमा अजीब सी सिहरन से रोमांचित होती रही. औफिस के लिए सीढि़यां उतरते ही मकानमालिक हरदीप सिंह की आवाज सुनाई पड़ी. वे कुछ लोगों को हिदायतें दे रहे थे. वह भूल ही गई थी कि हरदीप सिंह कोठी में रंगरोगन करवा रहे हैं और उन्होंने उस से पूछ कर ही गुडफ्राईडे को उस के कमरे में सफेदी करवाने की व्यवस्था करवाई हुई थी. हरदीप सिंह सेवानिवृत्त फौजी अफसर थे. कायदेकानून और अनुशासन का पालन करने वाले. उन का बनाया कार्यक्रम बदलने को कह कर सीमा उन्हें नाराज नहीं कर सकती थी.

सीमा ने सिंह दंपती से कार्यक्रम बदलने को कहने के बजाय रजत को मना करना बेहतर समझा. बाथरूम के टब की प्रस्तावना थी तो बहुत लुभावनी, अब तक साथ लेट कर चंद्र स्नान और सूर्य स्नान ही किया था. अब जल स्नान भी हो जाता, लेकिन वह मजा फिलहाल टालना जरूरी था.

सीमा और रजत फिरोजाबाद के रहने वाले थे. रजत उस की भाभी का चचेरा भाई था और दिल्ली में नौकरी करता था. सीमा को दिल्ली में नौकरी मिलने पर मम्मीपापा की सहमति से भैयाभाभी ने उसे सीमा का अभिभावक बना दिया था. रजत ने उन से तो कहा था कि वह शाम को अपने बैंक की विभागीय परीक्षा की तैयारी करता है. अत: सीमा को अधिक समय नहीं दे पाएगा, लेकिन असल में फुरसत का अधिकांश समय वह उसी के साथ गुजारता था. छुट्टियों में सीमा को घर ले कर आना तो खैर उसी की जिम्मेदारी थी. दोनों कब एकदूसरे के इतने नजदीक आ गए कि कोई दूरी नहीं रही, दोनों को ही पता नहीं चला. न कोई रोकटोक थी और न ही अभी घर वालों की ओर से शादी का दबाव. अत: दोनों आजादी का भरपूर मजा उठा रहे थे.

सीमा के सुझाव पर रजत ने शाम को एमबीए का कोर्स जौइन कर लिया था. कुछ रोज पहले एक स्टोर में एक युवकयुवती को ढेर सारा सामान खरीदते देख कर सीमा ने कहा था, ‘‘लगता है नई गृहस्थी जमा रहे हैं.’’ ‘‘लग तो यही रहा है. न जाने अपनी गृहस्थी कब बसेगी?’’ रजत ने आह भर कर कहा.

‘‘एमबीए कर लो, फिर बसा लेना.’’

‘‘यही ठीक रहेगा. कुछ ही महीने तो और हैं.’’

सीमा ने चिंहुक कर उस की ओर देखा. रजत गंभीर लग रहा था. सीमा ने सोचा कि इस बार घर जाने पर जब मां उस की शादी का विषय छेड़ेंगी तो वह बता देगी कि उसे रजत पसंद है. औफिस पहुंचते ही उस ने रजत को फोन कर के अपनी परेशानी बताई.

‘‘ठीक है, मैं अकेला ही चला जाता हूं.’’

‘‘तुम्हारा जाना जरूरी है क्या?’’

‘‘यहां रह कर भी क्या करूंगा? तुम तो घर की साफसफाई करवाने में व्यस्त हो जाओगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह सीमा ने मम्मी को फोन कर बता दिया कि रंगरोगन करवाने की वजह से वह रजत के साथ नहीं आ रही. रविवार की शाम को कमरा सजा कर सीमा रजत का इंतजार करने लगी. लेकिन यह सब करने में इतनी थक गई थी कि कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. रजत सोमवार की शाम तक भी नहीं आया और न ही उस ने फोन किया. रात को मम्मी का फोन आया. उन्होंने बताया, ‘‘रजत यहां आया ही नहीं, मथुरा में सुमन के घर है. उस के घर वाले भी वहीं चले गए हैं.’’

सुमन रजत की बड़ी बहन थी. सीमा से भी मथुरा आने को कहती रहती थी. ‘अब इस बार रजत घर नहीं गया है. अत: कुछ दिन बाद महावीर जयंती पर जरूर घर चलना मान जाएगा,’ सोच सीमा ने कलैंडर देखा, तो पाया कि महावीर जयंती भी शुक्रवार को ही पड़ रही है.

लेकिन कुछ देर के बाद ही पापा का फोन आ गया. बोले, ‘‘तेरी मम्मी कह रही है कि तू ने कमरा बड़ा अच्छा सजाया है. अत: महावीर जयंती की छुट्टी पर तू यहां मत आ, हम तेरा कमरा देखने आ जाते हैं.’’

‘‘अरे वाह, जरूर आइए पापा,’’ उस ने चिंहुक कर कह तो दिया पर फिर जब दोबारा कलैंडर देखा तो कोई और लंबा सप्ताहांत न पा कर उदास हो गई.

अगले दिन सीमा के औफिस से लौटने के कुछ देर बाद ही रजत आ गया. बहुत खुश लग रहा था, बोला, ‘‘पहले मिठाई खाओ, फिर चाय बनाना.’’

‘‘किस खुशी में?’’ सीमा ने मिठाई का डब्बा खोलते हुए पूछा.

‘‘मेरी शादी तय होने की खुशी में,’’ रजत ने पलंग पर पसरते हुए कहा, ‘‘जब मैं ने मम्मी को बताया कि मैं बस से आ रहा हूं, तो उन्होंने कहा कि फिर मथुरा में ही रुक जा, हम लोग भी वहीं आ जाते हैं. बात तो जीजाजी ने अपने दोस्त की बहन से पहले ही चला रखी थी, मुलाकात करवानी थी. वह करवा कर रोका भी करवा दिया. मंजरी भी जीजाजी और अपने भाई के विभाग में ही मथुरा रिफायनरी में जूनियर इंजीनियर है. शादी के बाद उसे रिफायनरी के टाउनशिप में मकान भी मिल जाएगा और टाउनशिप में अपने बैंक की जो शाखा है उस में मेरी भी बड़ी आसानी से बदली हो जाएगी. आज सुबह यही पता करने…’’

‘‘बड़े खुश लग रहे हो,’’ किसी तरह स्वर को संयत करते हुए सीमा ने बात काटी.

‘‘खुश होने वाली बात तो है ही सीमा, एक तो सुंदरसुशील, पढ़ीलिखी लड़की, दूसरे मथुरा में घर के नजदीक रहने का संयोग. कुछ साल छोटे शहर में रह कर पैसा जोड़ कर फिर महानगर में आने की सोचेंगे. ठीक है न?’’

‘‘यह सब सोचते हुए तुम ने मेरे बारे में भी सोचा कि जो तुम मेरे साथ करोगे या अब तक करते रहे हो वह ठीक है या नहीं?’’ सीमा ने उत्तेजित स्वर में पूछा.

‘‘तुम्हारे साथ जो भी करता रहा हूं तुम्हारी सहमति से…’’

‘‘और शादी किस की सहमति से कर रहे हो?’’ सीमा ने फिर बात काटी.

‘‘जिस से शादी कर रहा हूं उस की सहमति से,’’ रजत ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘तुम्हारे और मेरे बीच में शादी को ले कर कोई वादा या बात कभी नहीं हुई सीमा. न हम ने कभी भविष्य के सपने देखे. देख भी नहीं सकते थे, क्योंकि हम सिर्फ अच्छे पार्टनर हैं, प्रेमीप्रेमिका नहीं.’’

‘‘यह तुम अब कह रहे हो. इतने उन्मुक्त दिन और रातें मेरे साथ बिताने के बाद?’’

‘‘बगैर साथ जीनेमरने के वादों के… असल में यह सब उन में होता है सीमा, जिन में प्यार होता है और वह तो हम दोनों में है ही नहीं?’’ रजत ने उस की आंखों में देखा.

सीमा उन नजरों की ताब न सह सकी. बोली, ‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो, खासकर मेरे लिए?’’

रजत ठहाका लगा कर हंसा. फिर बोला, ‘‘इसलिए कह सकता हूं सीमा कि अगर तुम्हें मुझ से प्यार होता न तो तुम पिछले 4 दिनों में न जाने कितनी बार मुझे फोन कर चुकी होतीं और मेरे रविवार को न आने के बाद से तो मारे फिक्र के बेहाल हो गई होतीं… मैं भी तुम्हें रंगरोगन वाले मजदूरों से अकेले निबटने को छोड़ कर नहीं जाता.’’

रजत जो कह रहा था उसे झुठलाया नहीं जा सकता था. फिर भी वह बोली, ‘‘मेरे बारे में सोचा कि मेरा क्या होगा?’’

‘‘तुम्हारे घर वालों ने बुलाया तो है महावीर जयंती पर गुड़गांव के सौफ्टवेयर इंजीनियर को तुम से मिलने को… तुम्हारी भाभी ने फोन पर बताया कि लड़के वालों को जल्दी है… तुम्हारी शादी मेरी शादी से पहले ही हो जाएगी.’’

‘‘शादी वह भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़की के साथ? मैं लड़की हूं रजत… कौन करेगा मुझ से शादी?’’

‘‘यह 50-60 के दशक की फिल्मों के डायलौग बोलने की जरूरत नहीं है सीमा,’’ रजत उठ खड़ा हुआ, ‘‘आजकल प्राय: सभी का ऐसा अतीत होता है… कोई किसी से कुछ नहीं पूछता. फिर भी अपना कौमार्य सिद्ध करने के लिए उस समय अपने बढ़े हुए नाखूनों से खरोंच कर थोड़ा सा खून निकाल लेना, सब ठीक हो जाएगा,’’ और बगैर मुड़ कर देखे रजत चला गया. रजत का यह कहना तो ठीक था कि उन में प्रेमीप्रेमिका जैसा लगाव नहीं था, लेकिन उस ने तो मन ही मन रजत को पति मान लिया था. उस के साथ स्वच्छंदता से जीना उस की समझ में अनैतिकता नहीं थी. लेकिन किसी और से शादी करना तो उस व्यक्ति के साथ धोखा होगा और फिर सचाई बताने की हिम्मत भी उस में नहीं थी, क्योंकि नकारे जाने पर जलालत झेलनी पड़ेगी और स्वीकृत होने पर जीवन भर उस व्यक्ति की सहृदयता के भार तले दबे रहना पड़ेगा.

अच्छा कमा रही थी, इसलिए शादी के लिए मना कर सकती थी, लेकिन रजत के सहचर्य के बाद नितांत अकेले रहने की कल्पना भी असहनीय थी तो फिर क्या करे? वैसे तो सब सांसारिक सुख भोग लिए हैं तो क्यों न आत्महत्या कर ले या किसी आश्रमवाश्रम में रहने चली जाए? लेकिन जो भी करना होगा शांति से सोचसमझ कर. उस की चार्टर्ड बस एक मनन आश्रम के पास से गुजरा करती थी. एक दिन उस ने अपने से अगली सीट पर बैठी महिला को कहते सुना था कि वह जब भी परेशान होती है मैडिटेशन के लिए इस आश्रम में चली जाती है. वहां शांति से मनन करने के बाद समस्या का हल मिल जाता है. अत: सीमा ने सोचा कि आज वैसे भी काम में मन नहीं लगेगा तो क्यों न वह भी उस आश्रम चली जाए. आश्रम के मनोरम उद्यान में बहुत भीड़ थी. युवा, अधेड़ और वृद्ध सभी लोग मुख्यद्वार खुलने का इंतजार कर रहे थे. सीमा के आगे एक प्रौढ दंपती बैठे थे.

‘‘हमारे जैसे लोगों के लिए तो ठीक है, लेकिन यह युवा पीढ़ी यहां कैसे आने लगी है?’’ महिला ने टिप्पणी की.

‘‘युवा पीढ़ी को हमारे से ज्यादा समस्याएं हैं, पढ़ाई की, नौकरी की, रहनेखाने की. फिर शादी के बाद तलाक की,’’ पुरुष ने उत्तर दिया.

‘‘लिव इन रिलेशनशिप क्यों भूल रहे हो?’’

‘‘लिव इन रिलेशनशिप जल्दबाजी में की गई शादी, उस से भी ज्यादा जल्दबाजी में पैदा किया गया बच्चा और फिर तलाक से कहीं बेहतर है. कम से कम एक नन्ही जान की जिंदगी तो खराब नहीं होती? शायद इसीलिए इसे कानूनन मान्यता भी मिल गई है,’’ पुरुष ने जिरह की, ‘‘तुम्हारी नजरों में तो लिव इन रिलेशनशिप में यही बुराई है न कि यह 2 लोगों का निजी समझौता है, जिस का ऐलान किसी समारोह में नहीं किया जाता.’’

जब लोगों को विधवा, विधुर या परित्यक्तों से विवाह करने में ऐतराज नहीं होता तो फिर लिव इन रिलेशनशिप वालों से क्यों होता है?

तभी मुख्यद्वार खुल गया और सभी उठ कर अंदर जाने लगे. सीमा लाइन में लगने के बजाय बाहर आ गई. उसे अपनी समस्या का हल मिल गया था कि वह उस गुड़गांव वाले को अपना अतीत बता देगी. फिर क्या करना है, उस के जवाब के बाद सोचेगी. कार्यक्रम के अनुसार मम्मीपापा आ गए. उसी शाम को उन्होंने सौफ्टवेयर इंजीनियर सौरभ और उस के मातापिता को बुला लिया.

‘‘आप से फोन पर तो कई महीनों से बात हो रही थी, लेकिन मुलाकात का संयोग आज बना है,’’ सौरभ के पिता ने कहा.

‘‘आप को चंडीगढ़ से बुलाना और खुद फिरोजाबाद से आना आलस के मारे टल रहा था लेकिन अब मेरे बेटे का साला रजत जो दिल्ली में सीमा का अभिभावक है, यहां से जा रहा है, तो हम ने सोचा कि जल्दी से सीमा की शादी कर दें. लड़की को बगैर किसी के भरोसे तो नहीं छोड़ सकते,’’ सीमा के पापा ने कहा. सौरभ के मातापिता एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराए फिर सौरभ की मम्मी हंसते हुए बोलीं, ‘‘यह तो हमारी कहानी आप की जबानी हो गई. सौरभ भी दूर के रिश्ते की कजिन वंदना के साथ अपार्टमैंट शेयर करता था, इसलिए हमें भी इस के खानेपीने की चिंता नहीं थी. मगर अब वंदना अमेरिका जा रही है. इसे अकेले रहना होगा तो इस की दालरोटी का जुगाड़ करने हम भी दौड़ पड़े.’’

कुछ देर के बाद बड़ों के कहने पर दोनों बाहर छत पर आ गए.

‘‘बड़ों को तो खैर कोई शक नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि हम दोनों एक ही मृगमरीचिका में भटक रहे थे…’’

‘‘इसीलिए हमें चाहिए कि बगैर एकदूसरे के अतीत को कुरेदे हम इस बात को यहीं खत्म कर दें,’’ सीमा ने सौरभ की बात काटी.

‘‘अतीत के बारे में तो बात यहीं खत्म कर देते हैं, लेकिन स्थायी नीड़ का निर्माण मिल कर करेंगे,’’ सौरभ मुसकराया.

‘‘भटके हुए ही सही, लेकिन हैं तो हम पंछी एक ही डाल के,’’ सीमा भी प्रस्ताव के इस अनूठे ढंग पर मुसकरा दी.

बबूल का पेड़ : बड़ा भाई अपने छोटे भाई से जब हुआ पराया

कमरे में प्रवेश करते ही नीलम को अपने जेठजी, जिन्हें वह बड़े भैया कहती थी, पलंग पर लेटे हुए दिखाई दिए. नीलम ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, कैसे हैं आप?’’

‘‘कौन है?’’ एक धीमी सी आवाज कमरे में गूंजी.

‘‘मैं, नीलम,’’ नीलम ने कहा.

बड़े भैया ने करवट बदली. नीलम उन को देख कर हैरान रह गई. क्या यही हैं वे बड़े भैया, जिन की एक आवाज से सारा घर कांपता था, कपड़े इतने गंदे जैसे महीनों से बदले नहीं गए हों, दाढ़ी बढ़ी हुई, जैसे बरसों से शेव नहीं की हो, शायद कुछ देर पहले कुछ खाया था जो मुंह के पास लगा था और साफ नहीं किया गया था. हाथपैर भी मैलेमैले से लग रहे थे, नाखून बढ़े हुए. उन को देख कर नीलम को उन पर बड़ा तरस आया. तभी नीलम का पति रमन भी कमरे में आ गया. बड़े भाई को इस दशा में देख कर रमन रोने लगा, ‘‘भैया, क्या मैं इतना पराया हो गया कि आप इस हालत में पहुंच गए और मुझे खबर भी नहीं की.’’

भैया से बोला नहीं जा रहा था. उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और कहने लगे, ‘‘किस मुंह से खबर करता छोटे, क्या नहीं किया मैं ने तेरे साथ. फिर भी तू देखने आ गया, क्या यह कम है.’’

‘‘नहीं भैया, अब मैं आप को यहां नहीं रहने दूंगा. अपने साथ ले जाऊंगा और अच्छी तरह से इलाज करवाऊंगा,’’ रमन सिसकते हुए कह रहा था.

नीलम को याद आ रहे थे वे दिन जब वह दुलहन बन कर इस घर में आई थी. उस के मातापिता ने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा दहेज दिया था लेकिन मनोहर भैया हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. उस के दहेज के सामान को देख कर रमन से कहते, ‘क्या सामान दिया है, इस से अच्छा तो हम लड़की को सिर्फ फूलमाला पहना कर ही ले आते.’

उन की शादी अमीर घर में हुई थी, लेकिन रमन की ससुराल उतनी अमीर नहीं थी. इसलिए वे हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. रोजरोज के तानों से नीलम को बहुत गुस्सा आता, पर रमन के समझाने पर वह चुप रह जाती. फिर भी बड़े भैया के लिए उस के दिल में गांठ पड़ ही गई थी. उन से भी ज्यादा तेज उन की पत्नी शालू थी जो बोलती कम थी पर अंदर ही अंदर छुरियां चलाने से बाज नहीं आती थी.

मातापिता की मृत्यु के बाद घर में मनोहर भैया की ही चलती थी. सब कुछ उन से पूछ कर होता था. एक तो मनोहर बड़े थे, दूसरे, वे एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर थे. उन की शादी भी पैसे वाले घर में हुई थी जबकि रमन न सिर्फ छोटा था बल्कि एक छोटी सी दुकान चलाता था. उस की शादी एक साधारण घर में हुई थी. उस की घरेलू स्थिति ठीक नहीं थी. रमन को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वह न सिर्फ अपने बड़े भाई को बहुत प्यार करता था बल्कि उन की हर बात को मानना अपना कर्तव्य भी समझता था. मनोहर अपने छोटे भाई को वह प्यार नहीं देते थे जिस का वह हकदार था, बल्कि हमेशा उस की बेइज्जती करने के बहाने ढूंढ़ते रहते. वे हमेशा यह जतलाना चाहते थे कि घर में सिर्फ वे ही श्रेष्ठ हैं और बाकी सब बेवकूफ हैं.

‘‘नीलम, कहां खो गईं. चलो, भैया का सामान पैक करो, इन को हम अपने साथ ले जाएंगे,’’ रमन की आवाज सुन कर नीलम वापस वर्तमान में आ गई.

‘‘भैया, प्रिया नहीं आती क्या आप से मिलने?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘आती है कभीकभी, लेकिन वह भी क्या करे. उस की अपनी गृहस्थी है. हमेशा तो मेरे पास नहीं रह सकती न,’’ भैया रुकरुक कर बोल रहे थे.

‘‘और राजू और पल्लवी कहां हैं?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘राजू तो औफिस गया होगा और पल्लवी शायद किसी ‘किटी पार्टी’ में गई होगी,’’ भैया शर्मिंदा से लग रहे थे.

नीलम को इसी तरह के किसी जवाब की उम्मीद थी. उसे अच्छी तरह याद है वह दिन जब उस की छोटी बहन सीढि़यों से गिर गई थी तो वह हड़बड़ाहट में बिना किसी को बताए अपनी मां के घर चली गई थी. बस, इतनी सी बात पर मनोहर भैया ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था कि ऐसा भी किसी भले घर की बहू करती है क्या कि किसी को बगैर बताए मायके चली जाए.

उन दिनों भैया ही सारा घर संभालते थे. रमन भी अपनी सारी कमाई भैया के हाथ में दे देता था और कभी भी नहीं पूछता था कि भैया उन पैसों का क्या करते हैं जबकि भैया सब से यही कहते फिरते थे कि छोटे का खर्च तो वही चलाते हैं. छोटे की तो बिलकुल भी कमाई नहीं है.

नीलम की सारी अच्छाइयां, सारी पढ़ाईलिखाई, सारे गुण सिर्फ एक कमी के नीचे दब कर रह गए कि एक तो उस का मायका गरीब था, दूसरे, पति की कमाई भी साधारण थी. सारे रिश्तेदारों, दोस्तों में शालू और मनोहर नीलम और रमन को नीचा दिखाने का प्रयास करते. नीलम को अपनी इस स्थिति से बहुत कोफ्त होती पर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि रमन उसे कुछ भी बोलने नहीं देता था.

एक बड़े पेड़ के नीचे जिस तरह एक छोटा पौधा पनप नहीं सकता वैसी ही कुछ स्थिति रमन की थी. पिता की मृत्यु के बाद मनोहर घर के मुखिया तो बन गए लेकिन उन्होंने रमन को सिर्फ छोटा भाई समझा, बेटा नहीं. बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति जो फर्ज होता है वह उन्होंने कभी नहीं निभाया.

नीलम समझ नहीं पाती थी कि क्या करे? वैसे वह बहुत समझदार और शांत स्वभाव की थी, लेकिन कभीकभी शालू और मनोहर के तानों से इतनी दुखी हो जाती कि उसे लगता कि वह रमन को ही छोड़ दे. रमन का चुप रहना उसे और परेशान कर जाता, लेकिन रमन को छोड़ना तो इस समस्या का हल नहीं था. रमन तो बहुत अच्छा था. बस, उस की एक ही कमजोरी थी कि वह बड़े भाई की हर अच्छी या बुरी बात मानता था और आंख बंद कर उन पर विश्वास भी करता था.

रमन के इसी विश्वास का मनोहर ने हमेशा फायदा उठाया. उस ने पुश्तैनी मकान भी अपने नाम करवा लिया और एक दिन नीलम और रमन को अपने ही घर से जाने को कह दिया.

इतना कुछ होने पर भी रमन कुछ नहीं बोला और अपनी 4 साल की बेटी और पत्नी को ले कर चुपचाप घर से निकल पड़ा. उस दिन नीलम को अपने पति की कायरता पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन जब रमन ही कुछ करने को तैयार नहीं था तो वह क्या कर सकती थी, पर मन ही मन उस ने सोच लिया था कि वह इस घर में अब कभी वापस नहीं आएगी और इस घर से बाहर रह कर ही अपनी और अपने परिवार की एक पहचान बनाएगी.

अब नीलम की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई थी. घर में पैसों की तंगी बनी रहेगी, यह तो नीलम को मालूम था क्योंकि संयुक्त परिवार में बहुत से ऐसे खर्चे होते हैं जिन का पता नहीं चलता, लेकिन एकल परिवार में उन खर्चों को निकालना मुश्किल हो जाता है. फिर भी नीलम ने हार नहीं मानी और जुट गई अपना एक समर्थ संसार बनाने में. सुबह मुंहअंधेरे उठ कर घर का कामकाज करती, उस के बाद कई बच्चों को घर पर बुला कर ‘ट्यूशन’ पढ़ाती और फिर रमन के साथ दुकान पर चली जाती.

नीलम के अंदर दुकान चलाने की गजब की क्षमता थी जो शायद अभी तक उस के अंदर सुप्त पड़ी थी. उस ने अपने मीठे व्यवहार, ईमानदारी और मेहनत से न सिर्फ अपनी दुकान को बढ़ाया बल्कि रमन का आत्मविश्वास बढ़ाने में भी उस का साथ दिया.

बड़े भाई से अलग रह कर रमन को भी एहसास हो गया था कि वह कितना बुद्धू था और बड़े भाई ने उस का कितना फायदा उठाया.

मनोहर ने सोचा था कि रमन कभी भी घर से नहीं जाएगा और अगर जाता है तो जाते वक्त उस के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाएगा या फिर नीलम ही कुछ भलाबुरा कहेगी पर वह हैरान था कि दोनों ने कुछ भी नहीं कहा बल्कि चुपचाप एकदूसरे का हाथ पकड़ कर घर से चले गए. वैसे भी वे रमन से चिढ़ते थे कि उस की पत्नी हमेशा उस का कहना मानती थी जबकि वह इतना समर्थ भी नहीं था और एक उन की पत्नी शालू है, जिस ने उन का जीना मुश्किल किया हुआ था. हर वक्त उसे कुछ न कुछ चाहिए. उस की फरमाइशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं.

मनोहर ने रमन को घर से तो निकाल दिया पर उन के अंदर आत्मग्लानि का भाव पैदा हो गया था. एक दिन रात को शराब के नशे में धुत्त हो कर मनोहर ने रमन को फोन किया, ‘चल छोटे, घर आजा, भूल जा सब कुछ.’ लेकिन नीलम और रमन ने सोच लिया था कि अब उस घर में वापस नहीं जाना है. अब मनोहर को एक नया बहाना मिल गया था अपनेआप को बहलाने का कि उस ने तो उन दोनों को वापस बुलाया था पर वे ही वापस नहीं आए और गाहेबगाहे वे अपने रिश्तेदारों को कहने लगे कि वे दोनों अपनी मरजी से घर छोड़ कर गए हैं. नीलम तो हमेशा से ही रमन को उन से दूर करना चाहती थी, पर अंदर की बात तो कोई भी नहीं जानता था कि यह सब कियाधरा मनोहर का ही है.

रमन और नीलम ने दिनरात मेहनत की. धीरेधीरे उन की दुकान एक अच्छे ‘स्टोर’ में बदल गई थी. अब उस ‘स्टोर’ की शहर में एक पहचान बन गई थी. रमन और नीलम का जीवनस्तर भी ऊंचा हो गया था. उन के बच्चे शहर के अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे थे. अब मनोहर उन से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करते पर वे दोनों तटस्थ रहते.

रमन के घर छोड़ने के बाद दोनों भाइयों का आमनासामना बहुत ही कम हुआ था. एक बार मनोहर के बेटे राजू की शादी में वे मिले थे, तब रमन ने महसूस किया था कि बड़े भाई की अब घर में बिलकुल भी नहीं चलती है. जो कुछ भी हो रहा था, वह बच्चों की मरजी से ही हो रहा था. बड़े भाई के बच्चे भी उन पर ही गए थे. वे बिलकुल ही स्वार्थी निकले थे. दूसरी मुलाकात मनोहर की बेटी प्रिया की शादी में हुई थी. बड़े भैया को अनेक रोगों ने घेर लिया था. वे बहुत ही कमजोर हो गए थे. तब भी उन को देख कर रमन को बहुत दुख हुआ था पर उस वक्त वह कुछ नहीं बोला था, लेकिन शालू भाभी के जाने के बाद तो जैसे भैया बिलकुल ही अकेले पड़ गए थे. उन का खयाल रखने वाला कोई भी नहीं था. शालू जैसी भी थी, पर अपने पति का तो खयाल रखती ही थी. राजू को अपने काम और क्लबों से ही फुरसत नहीं थी. वैसे भी उसे पिता के पास बैठ कर उन का हाल जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर वह अपने पिता का ध्यान नहीं रख सकता था तो पल्लवी को क्या पड़ी थी इन सब बातों में पड़ने की? वह भी ससुर का बिलकुल ध्यान नहीं रखती थी.

एकएक बात रमन के दिमाग में चलचित्र की तरह घूम रही थी. पुरानी घटनाओं का क्रम जैसे ही खत्म हुआ तो रमन बोला, ‘‘बड़े भैया, कल ही किसी से पता चला था कि आप गुसलखाने में गिर गए हैं. मुझ से रहा नहीं गया और आप का हाल पूछने चला आया.’’

रमन का दिल रोने लगा कि खामखां ही वह इतने दिनों तक भैया से नाराज रहा और उन की खबर नहीं ली, लेकिन अब वह उन को अपने साथ जरूर ले जाएगा, लेकिन बड़े भैया ने जाने से इनकार कर दिया, ‘‘मुझे माफ कर दे छोटे, सारी जिंदगी मैं ने सिर्फ तेरा मजाक उड़ाया है और अब जब मैं बिलकुल ही मुहताज हो चुका हूं और मेरे अपने मुझे बोझ समझने लगे हैं, इस वक्त मैं तेरे ऊपर बोझ नहीं बनना चाहता.’’

‘‘नहीं भैया, ऐसा मत कहो. क्या मैं आप का अपना नहीं, मैं ने आप को अपना भाई नहीं बल्कि पिता माना है और एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सेवा करे, इसलिए आप को मेरे साथ चलना ही पड़ेगा,’’ रमन ने विनती की.

तभी नीलम भी बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप को हमारे साथ चलना ही पड़ेगा, हम आप को इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते.’’

अब तक पल्लवी भी घर पहुंच चुकी थी. उस ने चाचा और चाची को देख कर इस तरह व्यवहार किया जैसे वह उन दोनों को जानती ही नहीं. उस को इस बात की भी चिंता नहीं थी कि दुनियादारी के लिए ही कुछ दिखावा कर दे. उस का व्यवहार इस बात की गवाही दे रहा था कि अगर मनोहर को कोई अपने साथ ले जाता है तो उसे कोई परवा नहीं है. अभी तक मनोहर को आशा थी कि शायद पल्लवी उसे कहीं भी जाने नहीं देगी और उसे रोक लेगी, पर उस की बेरुखी देख कर मनोहर भैया उठ खड़े हुए, ‘‘चल छोटे, मैं तेरे साथ ही चलता हूं, लेकिन उस से पहले तुझे मेरा एक काम करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्या, भैया?’’ रमन ने पूछा.

‘‘तुझे एक वकील लाना पड़ेगा क्योंकि मैं यह बंगला तेरे नाम करना चाहता हूं जो धोखे से मैं ने अपने नाम करवा लिया था,’’ मनोहर ने कहा.

‘‘लेकिन मुझे यह घर नहीं चाहिए भैया, मेरे पास सब कुछ है,’’ रमन ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं छोटे, तेरे पास सब कुछ है लेकिन जिंदगी ने मुझे यह सबक सिखाया है कि किसी से भी धोखे से ली हुई कोई भी वस्तु सदैव दुख ही देती है. मैं इतने सालों तक चैन से नहीं सो पाया और अब चैन से सोना चाहता हूं इसलिए मुझे मना मत कर और अपना हक वापस ले ले.’’

यह सब सुन कर पल्लवी के तो होश उड़ गए. उसे लगता था कि उस के ससुर का तो कोई अपना है ही नहीं, जो उन्हें अपने साथ ले जाएगा, और इतना बड़ा बंगला सिर्फ उस के हिस्से ही आएगा. लेकिन ससुर की बात सुन कर उसे लगा कि इतना बड़ा घर उस के हाथ से निकल गया है. उस ने फटाफट बहू होने का फर्ज निभाया. उस ने मनोहर को रोकने की कोशिश की, पर मनोहर ने कहा, ‘‘नहीं बहू, अब नहीं, अब मैं नहीं रुक सकता. तुम ने और मेरे बेटे ने मुझे बिलकुल ही पराया कर दिया है. इस बूढ़े और लाचार इंसान को अब अपने मतलब के लिए इस घर में रखना चाहते हो. नहीं, इस घर में तड़पतड़प कर मरने से अच्छा है मैं अपने भाई के साथ कुछ दिन जी लूं, लेकिन फिर भी मैं कहता हूं कि इस में तुम्हारी गलती कम है क्योंकि मैं ने ही बबूल का पेड़ बोया है तो आम की उम्मीद कहां से करूं.’’

कुछ देर बाद नीलम और रमन मनोहर को ले कर अपने घर जा रहे थे और पल्लवी पछता रही थी कि उस ने अपने ससुर को नहीं रोका जिन के जाने से इतना बड़ा घर हाथ से निकल गया.

बुढ़ापे में शादी: माता पिता का घर संसार बसाते बच्चे

अपनी ही शादी में बच्चों की उपस्थिति यानी मातापिता की शादी में बच्चों का शामिल होना कभी समाज के लिए एक मजाक या फिर उलाहने के रूप में देखा जाता था. किसी समय में एक हद तक यह अपमानजनक बात भी हुआ करती थी पर आज के समाज की यह वास्तविकता बन गई है. समाज आज बहुत बदल चुका है. सैलिब्रिटी से ले कर आम कमानेखाने वाले परिवार में भी यह चलन आम होता जा रहा है. दरअसल, रूढि़वादी और दकियानूसी समाज के ढांचे अब टूट रहे हैं. समाज अपने बंधेबंधाए दायरे से बाहर निकल रहा है. जाहिर है, यह समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन है.

बदलते समाज में बच्चे अपनी पढ़ाई या फिर नौकरी के सिलसिले में अकसर मातापिता से दूर होते जा रहे हैं. बुढ़ापे में वक्तजरूरत लंबी दूरी को तय कर के समय पर पहुंचना मुमकिन नहीं होता है. किसी इमरजैंसी के समय दूसरे सदस्यों का भी समय पर पहुंचना मुमकिन नहीं होता. इन तमाम व्यावहारिक दिक्कतों के चलते बच्चे अपने मातापिता की शादी करवाने के पक्ष में हैं. हालांकि यह बदलते समाज की कड़वी सचाई है लेकिन यह भी सच है कि कुछ मामलों में बच्चे अपने मातापिता के अकेलेपन को दूर करने की भी चाह रखते हैं.

इस थीम पर कई फिल्में भी हैं

वैसे मातापिता की शादी करवाने की थीम को ले कर कई फिल्में बौलीवुड में बनी हैं. मसलन, ‘कुछकुछ होता है’, ‘गोलमाल 3’, ‘प्यार में ट्वीस्ट’ और ‘मेरे बाप पहले आप’ जैसी फिल्मों की थीम का केंद्रबिंदु बच्चों द्वारा माता या पिता की शादी करवाना ही था. इस विषय पर सब से नायाब फिल्म 1978 में निर्देशक बासु चटर्जी ने बनाई थी. फिल्म का नाम था ‘खट्टामीठा’. 2 परिवारों के एक होने को आधार बना कर यह पारिवारिक कौमेडी दूसरी शादी करने वाले बुजुर्ग दंपती को केंद्र में रख कर बनाई गई. हास्य की चाशनी में लपेट कर बच्चे किस तरह अपने अकेले मातापिता का घर बसाते हैं, फिल्म में बेहद दिलचस्प तरीके से दिखाया गया था.

‘सैकंड मैरिज डौट कौम’ नामक फिल्म बुढ़ापे में शादी के संवेदनशील मुद्दे पर आधारित है. गौरव पंजवानी निर्देशित इस फिल्म में बुजुर्गों की भावनात्मक जरूरतों पर प्रकाश डाला गया है. गौरव पंजवानी ने अपने एक बयान में कहा, ‘‘समाज में पुनर्विवाह एक सामाजिक कलंक माना जाता है, लेकिन अब युवा पीढ़ी की मानसिकता बदल रही है और वे अपने मातापिता की भावनात्मक जरूरतों को समझने लगे हैं.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘अगर उन के मातापिता स्वयं को प्यार व शादी का दूसरा मौका देना चाहते हैं तो वे इस बात से हिचकिचाते नहीं हैं.’’

हालांकि जहां तक दूसरी शादी का सवाल है तो यह पहले भी समाज में होता था. लेकिन ऐसा जोर परिजन ही डाला करते थे. और पत्नी की मृत्यु के बाद साली से जीजा की शादी करवा दी जाती थी ताकि बच्चों को मां की कमी न खले. लेकिन बच्चों द्वारा मातापिता की शादी करवाने की घटना कम ही देखीसुनी जाती थी.

मैरिज ब्यूरो : एक मदद

मैरिज ब्यूरो ने नया रास्ता खोल दिया है. उत्तर व दक्षिण कोलकाता के विभिन्न मैरिज ब्यूरो में आर्थिक रूप से सक्षम 250-300 बुजुर्गों ने दोबारा शादी करने के लिए रजिस्टे्रशन करवाया है. इन में से ज्यादातर के बच्चे विदेशों में नौकरी करते हैं और वे नहीं चाहते हैं कि उन के मातापिता उम्र के इस पड़ाव में अकेलेपन का दुख सहें.

यह भी सच है कि जब पत्नी की मृत्यु के बाद पिता दूसरी शादी करे या पति की मृत्यु के बाद मां की शादी में बच्चे शामिल हों तो भले ही समाज में कानाफूसी शुरू हो जाए लेकिन जब खास लोगों की बात आती है तो यही समाज कुछ नहीं कहता. कुछ साल पहले सैफ अली खान और करीना के ब्याह में सैफ और अमृता के बच्चे सारा और इब्राहिम शामिल हुए. यहां तक कि केवल शादी में नहीं, बल्कि संगीत और मेहंदी में भी सैफ के दोनों बच्चे बड़े उत्साह के साथ शामिल हुए थे. कुछ ऐसा ही मामला शशि थरूर और सुनंदा का भी रहा है.

इस के पीछे क्या है मनोविज्ञान

कोलकाता के जानेमाने मनोविज्ञानी जयरंजन राम का कहना है कि किसी एक इंसान या समाज में जो कुछ बदलाव आता है, उस के पीछे एक मनोविज्ञान काम करता है. इंसानी फितरत है कि वह अपने जीवन में हमेशा खुशी चाहता है. इस की तलाश में वह बहुतकुछ करता है. वहीं, समाज में बदलाव भी एक हकीकत है और इस के तहत बहुत सारी पुरानी मान्यताएं टूटती हैं और दकियानूसी सोच पर आघात भी लगता है.

बच्चों से दूरी व अकेलापन

शिक्षा व नौकरी के चलते दूसरे शहर व विदेशों में बसे बच्चों को अब अपने अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्ग माता या पिता की दूसरी शादी करने से कोई परहेज नहीं है बल्कि वे खुद चाहते हैं कि उन का घर दोबारा बस जाए. समाजशास्त्री भी मानते हैं कि बड़ी उम्र में अकेलापन डिप्रैशन व कई बीमारियों का कारण बन जाता है. ऐसे में अगर उन्हें किसी का सहारा मिलता है तो उस की जिंदगी खुशहाल बन जाती है. यही वजह है कि बदलते समय के साथ रूढि़वादी समाज के दकियानूसी ढांचे ढह रहे हैं और बच्चे खुद आगे बढ़ कर अपने मातापिता की शादी की पहल कर रहे हैं.

आज बच्चे 60-70 वर्ष की उम्र में भी अपने माता या पिता के सूने जीवन में खुशियां भर रहे हैं और हैरानी की बात यह है कि उन्हें इस राह में अब सौतेले मातापिता का भी एहसास नहीं होता. उन के साथ बच्चों का व्यवहार दोस्ताना रहता है. बच्चों के मातापिता ही नहीं बल्कि बच्चों के जीवन में भी अपने मां या पिता के न रहने से जो खालीपन आ गया था वह भी भर जाता है.

बेटे ने बढ़ाया हौसला

अपनों के बीच नारायण मजूमदार.

कोलकाता के एक राष्ट्रीयकृत बैंक के सीनियर स्टाफ नारायण मजूमदार अपने एक बेटे और पत्नी के साथ सुखी गृहस्थी चला रहे थे. लेकिन वर्ष 2005 में मैलिगनैंट मलेरिया ने उन की गृहस्थी उजाड़ दी. इस बीमारी से पत्नी की मृत्यु हो गई. पत्नी के इस तरह अचानक चले जाने की घटना ने उन्हें भीतर से तोड़ कर रख दिया. पत्नी के बगैर वे अपनी गृहस्थी की कल्पना भी नहीं कर सकते थे. लेकिन उस समय उन के 16 वर्ष के बेटे अर्नव ने पिता को संभाला. कुछ समय पश्चात पिता के अकेलेपन को देख कर कभीकभी अर्नव भी विचलित हो उठता. इस बीच उस की बूआ शिकागो से कोलकाता आईं. उन्होंने अपने भाई नारायण को फिर से शादी करने की सलाह दी. पर वे नहीं माने. बूआ के चले जाने के बाद नारायण के बेटे अर्नव ने भी पिता को शादी के लिए जोर देना शुरू किया. आखिरकार पत्नी की मृत्यु के 3 वर्ष के बाद वे दूसरी शादी के लिए मान ही गए.

नारायण मजूमदार बताते हैं, ‘‘अर्नव बहुत ही सुलझा हुआ लड़का है. मेरे हामी भरते ही उस ने अखबार के मैट्रिमोनियल कौलम में लड़की देखनी शुरू की. जहां कहीं भी लड़की देखने मैं गया, बेटा भी साथ गया. 2-3 जगह लड़की देखने के बाद एक को पसंद कर लिया गया. शादी के दिन बेटा खुद गाड़ी चला कर पिता को यानी मुझे मैरिज रजिस्ट्रेशन औफिस ले कर गया.’’

नारायण आगे बताते हैं, ‘‘मैरिज रजिस्ट्रेशन औफिस से बाहर निकल मैं ने बेटे के सामने निष्कपट मन से स्वीकार किया कि उस की जगह पर अगर मैं होता तो शायद अपने पिता को शादी के लिए नहीं मनाता. शादी के बाद अर्नव घर गया और मेरी व पत्नी के स्वागत की तैयारी भी की.’’

नारायण अपनी पत्नी सुचरिता के साथ सुखी दांपत्य जीवन जी रहे हैं. अर्नव सुचरिता को मामोन कह कर बुलाता है. यादवपुर यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग और फिर आईआईएम से एमबीए कर के आज अर्नव कुवैत में एक मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर है. वह अपने पिता और मामोन से बराबर संपर्क में रहता है.

मेरे मम्मी पापा हर वक्त मुझ पर शक करते हैं, क्या करूं कि वे मुझ पर शक न करें?

सवाल

मैं 18 वर्षीय कालेज में पढ़ने वाली छात्रा हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरे मम्मी पापा हर वक्त मुझ पर शक करते हैं. हर समय मुझ पर निगरानी रखते हैं कि मैं फोन पर किस से बात कर रही हूं. बात बात में जानने की कोशिश करती हैं कि कालेज में मैं किन दोस्तों के साथ रहती हूं. मेरे कितने दोस्त लड़के हैं और वे कौन हैं? मुझे उन का यह व्यवहार परेशान करता है. मैं क्या करूं कि वे मुझ पर शक न करें?

जवाब

देखिए, एक माता पिता होने के नाते आप के बारे में जानना आप के माता पिता का हक व जिम्मेदारी भी है. आप अपनी समस्या के समाधान के लिए उन से अपनी हर बात शेयर करें, अपने दोस्तों को उन से मिलवाएं, उन से कुछ भी छिपाएं नहीं. जब ऐसा होगा तो वे आप पर विश्वास करने लगेंगे और बात बात पर आप पर निगरानी नहीं रखेंगे. दरअसल वे आप की परवाह करते हैं इसलिए आप पर निगरानी रखते हैं.

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बेवजह शक के ये हैं 5 साइड इफैक्ट्स

पार्टी खत्म होते ही कावेरी हमेशा की तरह मुंह फुलाए पति संदीप के आगेआगे चलने लगी. कार में बैठते ही उस ने संदीप के सामने सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘मिसेज टंडन जब भी मिलती हैं, तब आप को देख कर इतना क्यों मुसकराती हैं? टंडन साहब के सामने तो वे मुंह बनाए रखती हैं… नेहा ने आप को मिस्टर हैंडसम क्यों कहा और अगर कह भी दिया था तो आप को क्या जरूरत थी सीने पर हाथ रख मुसकराते हुए सिर झुकाने की? और ये जो आप की असिस्टैंट सोनाली है न उस की तो किसी दिन उस के ही घर जा कर अच्छी तरह खबर लूंगी. अपने हसबैंड को घर छोड़ कर पार्टी में आ जाती है और बहाना यह कि उन की तबीयत ठीक नहीं रहती. दूसरों के पति ही मिलते हैं इसे चुहलबाजी करने के लिए?’’ कावेरी का बड़बड़ाना लगातार जारी था.

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कोई गारंटी नहीं, चाइनीज आइटम जैसी है यह गठबंधन सरकार भी

नतीजे आए 14 दिन से भी ज्यादा और सरकार बने सप्ताहभर हो चुका है लेकिन सबकुछ पहले जैसा नहीं है. ईडी, सीबीआई, आईटी वगैरह के कहीं अतेपते नहीं है कि ये विभाग चल भी रहे हैं या बंद हो गए हैं जिन से न्यूज चैनल गुलजार रहते थे. हर कभी सनसनाती ब्रेकिंग न्यूज़ आती थी कि फलां मुख्यमंत्री या बड़ा नेता गिरफ्तार, फलां को रिमांड पर लिया और अमुक के घर छापेमारी की तैयारी चल रही है, बहुत जल्द बड़ा धमाका होने को है. बने रहिए हमारे साथ…

देश ‘अब कुछकुछ सन्नाटा क्यों है भाई’ की तर्ज पर चल रहा है. कोई नेता दलबदल नहीं कर रहा. शपथ के बाद कोई मंत्री ढोल धमाके के साथ मंदिर नहीं गया. नही तो अंदरूनी तौर पर चर्चा यह थी कि 370 न सही, अगर 300 भी पार कर गए तो मोदी जी तमाम भाजपा सांसदों और कैबिनेट सहित अयोध्या, प्रभु श्रीराम की नगरी, जा कर उन का आभार व्यक्त करेंगे ठीक वैसे ही जैसे मध्यप्रदेश जीतने के बाद गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के निर्देशों पर मुख्यमंत्री मोहन यादव अपने कैबिनेट सहित अयोध्या गए थे. लेकिन अब अयोध्या वाली फ़ैजाबाद लोकसभा सीट पर ही मुंह की खानी पड़ी और उस से भी ज्यादा हिकारत की बात, सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे सैक्युलरों का सहारा लेना पड़ा जिन के दीन, ईमान और धर्म का कोई ठौरठिकाना नहीं.

नीतीश कुमार तो घोषिततौर पर पलटूराम हैं . करवाचौथ का व्रत पूरे विधिविधान से रखते हैं लेकिन जिस के नाम पर दिनभर निर्जला रहते हैं, रात को उस की जगह छलनी में चेहरा किसी और का दिखता है और सुबह उठते हैं तो पहलू में कोई और होता है. इसलिए उन का कोई भरोसा नहीं, बकौल लालू यादव, नीतीश दोमुंहा सांप है. अब सरकार बनाने के लिए इसे गले में लटकाना मजबूरी हो गई थी, सो, भाजपा ने नीलकंठ को याद करते लटका लिया. आगे जो होगा, सो देखा जाएगा.

देश में हर किसी की जबां पर इन दिनों एक ही सवाल है कि सरकार कितने दिन चलेगी. जितने मुंह उतने जवाब हैं लेकिन इस बेमेल गठबंधन को ले कर आश्वस्त कोई नहीं है. इन जवाबों का निचोड़ यही है कि यह गठबंधन भी चाइनीज सामान जैसा है जो मुमकिन है 5 दिन भी न चले और मुमकिन है 5 साल ही चल जाए. औसत निचोड़ यह है कि सालदोसाल साथ चलना तो सभी की मजबूरी है.

बाद वाला जबाब हकीकत के ज्यादा नजदीक है जिस का 13 दिन और 13 महीने वाली सरकारों से ताल्लुक कम है, एनडीए के घटक दलों की विचारधाराओं को ले कर ज्यादा है जो बिलकुल उत्तरदक्षिण सरीखी हैं. मतभेद नए तो पैदा होने शुरू हो ही गए हैं लेकिन पुराने भी कम नहीं हैं. यह ठीक है कि राजनीति में कोई परमानैंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता लेकिन दोस्ती और दुश्मनी का रंग कितना गाढ़ा और कितना हलका था, यह बहुत माने रखता है.

एक वक्त में चंद्रबाबू नायडू और नरेंद्र मोदी की दुश्मनी का हाल यह था कि इन दोनों ने ही एकदूसरे की बीवीबच्चों को भी नहीं बख्शा था. पेश हैं इस गाढ़ी दुश्मनी के कुछ प्रमुख अंश-

तारीख 10 फरवरी, 2019. स्थान विजयवाड़ा. एक रैली को संवोधित करते हुए आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू गुस्से से लालपीले हुए कह रहे थे कि चूंकि आप (नरेंद्र मोदी) ने मेरे बेटे का जिक्र किया है इसलिए मैं आप की पत्नी का जिक्र कर रहा हूं. लोगो, क्या आप को मालूम है कि नरेंद्र मोदी की एक पत्नी है. उन का नाम जशोदा बेन है. आप ने अपनी पत्नी को अलग कर दिया, क्या पारिवारिक व्यवस्था में आप का कोई सम्मान है. कहा तो चंद्रबाबू नायडू ने और भी बहुतकुछ था लेकिन उन की भड़ास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे बिना किसी लिहाज के मोदी की परित्यक्ता तक को सार्वजनिक तौर पर घसीट लाए थे.

दरअसल निचले लैवल पर आने के इस घटियापन की शुरुआत मोदी ने ही इस के एक दिन पहले गुंटूर से की थी. वहां की एक पब्लिक मीटिंग में नायडू के बेटे लोकेश को ले कर उन्होंने तंज कस दिया था जिस से नायडू की यह प्रतिक्रिया अस्वाभाविक नहीं लगी थी. नरेंद्र मोदी भूल गए थे कि हर कोई राहुल गांधी नहीं होता जो व्यक्तिगत स्तर पर छिछोरेपन को नजरंदाज कर पाने का बड़प्पन दिखा पाए.

गुंटूर की रैली में ही मोदी ने चंद्रबाबू नायडू पर हमलावर होते यह भी कहा था कि वे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने श्वसुर (एनटीआर) तक को धोखा दिया है. इस के बाद चुनाव तक यह छिछोरापन चलता रहा था. नरेंद्र मोदी तब चंद्रबाबू नायडू पर खार खाए बैठे थे क्योंकि उन्होंने भाजपा और एनडीए से नाता तोड़ लिया था. तब भाजपा के पास खुद के पर्याप्त सांसद थे, इसलिए टीडीपी के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन अब अगर फिर से बात ससुर, बेटे और बीवी तक पहुंची तो सरकार का धडाम होना तय है.

मतभेदों के रुझान आना शुरू हो भी गए हैं. लोकसभा स्पीकर के पद को ले कर नायडू अड़ते दिखाई दे रहे हैं. यह चुनाव 26 जून को होना है. जद यू के प्रवक्ता के सी त्यागी ने तो भाजपा को क्लीन चिट इस मसले पर दे दी है पर टीडीपी कार्ड नहीं खोल रही है. इस से उत्साहित इंडिया गठबंधन ने इशारा कर दिया है कि अगर टीडीपी अपना उम्मीदवार उतारती है तो उसे समर्थन दिया जाएगा. एनडीए के चिल्लर दलों का भी कोई भरोसा नहीं है. खासतौर से एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना का जिस के 7 लोकसभा सदस्य हैं और जिस की भाजपा से ट्यूनिंग में खरखराहट की बेसुरी आवाज 4 जून से आने लगी है.

मोदी कैबिनेट के गठन के तुरंत बाद शिवसेना शिंदे के सांसद श्रीर्रंग बारने ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि 7 सांसद होने के बावजूद हमें एक भी कैबिनेट पद नहीं दिया गया. जेडी एस के 2 सांसद हैं, जीतनराम मांझी का एक सांसद है, चिराग पासवान के 5 सांसद हैं. हमारे 7 होने के बाद भी एक ही राज्यमंत्री पद दिया गया. भाजपा के बाद हम एनडीए की तीसरी बड़ी पार्टी हैं. हमारी अभी भी भाजपा से उम्मीद है. गौरतलब यह भी है कि एनसीपी अजित गुट से भी किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है.
ऐसे में अगर स्पीकर पद को ले कर टीडीपी अड़ी, जिस की कि संभावनाएं ज्यादा हैं, तो खार खाए बैठे शिंदे और अजित पवार भाजपा की हां में हां मिला देंगे, इस में शक है. इस पद को ले कर दिल्ली में तरहतरह के फार्मूलों को ले कर मीटिंगों का दौर जारी है और सभी की निगाहें 26 जून पर लग गई हैं कि इस दिन चंद्रबाबू नायडू क्या करेंगे. और अगर वे न माने तो भाजपा क्या करेगी. हालफ़िलहाल तो वह चिराग पासवान के अलावा किसी का भरोसा नहीं कर सकती. और चिराग पासवान के भी चारों सांसद भाजपा के किसी भी नाम पर राजी हो जाएंगे, ऐसा कहने और सोचने की भी कोई वजह नहीं.

इंडिया गठबंधन इस अहम मसले पर आग लगाने का काम कर रहा है कि यह पद भाजपा के नहीं बल्कि एनडीए के किसी घटक दल के पास होना चाहिए. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत याद दिलाते हुए उकसा रहे हैं कि टीडीपी और जेडीयू को महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में भाजपा की साजिश को भूलना नहीं चाहिए. इन में से कई सरकारें तो स्पीकर की भूमिका के चलते ही गिरी थीं. टीडीपी को तो यह भी याद रखना चाहिए कि 2019 में उस के 4 राज्यसभा सांसद भाजपा में शामिल हो गए थे और वह कुछ नहीं कर पाई थी. इन दोनों पार्टियों को डराते हुए वे आगे कहते हैं कि ऐसे में अगर स्पीकर पद भाजपा अपने पास रखती है तो इन दोनों को अपने सांसदों की हार्स ट्रेडिंग होते देखने तैयार रहना चाहिए, हालांकि इस डर से इंडिया ब्लौक और कांग्रेस भी अछूते नहीं हैं.
विपक्ष बारबार यह भी याद दिला रहा है कि 1999 में वाजपेयी सरकार महज एक वोट से गिरी थी और उस में भी स्पीकर का रोल अहम था. तब स्पीकर टीडीपी के जीएमसी बालयोगी को यह पद तब टीडीपी की जिद से ही हासिल हुआ था. गौरतलब है कि तब अटल सरकार को टीडीपी के साथसाथ एआईएडीएमके का भी समर्थन हासिल था, जिस की मुखिया जयललिता ने बिना किसी समन, नोटिस या वारंट जैसी औपचारिकता के वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई थी तो 13 महीने चल चुकी सरकार 13 अप्रैल, 1999 को केवल एक वोट से गिरी थी. यह वोट कांग्रेसी सांसद गिरधर गोमांग का था जो 3 महीने पहले ही सांसद बने थे. लेकिन तब उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा नहीं दिया था. अब यह बालयोगी को तय करना था कि वे वोट दे सकते हैं या नहीं. वोट देने दिया गया तो वाजपेयी सरकार धड़ाम से गिर गई थी.

क्या इतिहास अपनेआप को दोहराएगा, यह कह पाना मुश्किल है लेकिन यह कह पाना मुश्किल नहीं कि यह राजनीति है और इस में कुछ कह पाना उतना ही मुश्किल है जितना कि न कह पाना. गेंद अब चंद्रबाबू नायडू के पाले में है.

भाजपा और मोदी उन के मुहताज हैं जिन्हें अगर गुंटूर की बेटे वाला मोदी का तंज, ससुर एनटीआर की पीठ में छुरा भोंकने वाला मोदी का आरोप और भाजपा में गए 4 राज्यसभा सदस्य याद आ गए तो यह चाइनीज आइटम टूट भी सकता है. जिस मे शिंदे गुट और चिल्लर सांसदों का रोल कम अहम नहीं रहेगा. अपने भरोसेमंद चहेते ओम बिरला को ही लोकसभा अध्यक्ष बनाने की मंशा पाले बैठे मोदी-शाह इस समीकरण से बेहतर वाकिफ हैं जिन की तोड़फोड़ और खरीदफरोख्त के हुनर का असल इम्तिहान 26 जून को होगा.

लेकिन बात अकेले स्पीकर पद की नहीं है. अगर यह मसला जैसेतैसे सुलझ भी गया तो आगे भी टकराव होते रहेंगे और अपनी शर्तों पर सरकार चलाने के आदी हो गए नरेंद्र मोदी को कदमकदम पर झुकना पड़ेगा. अग्निवीर मुद्दे पर सरकार झुक ही चुकी है और मजबूरी में हिंदुत्व और धरमकरम के कामों से किनारा कर रही है तो इस की वजह वैचारिक मतभेद और असहमति ही हैं. और यही मतदाता चाहता था कि भाजपा को इतना बेबस कर दिया जाए कि वह असहाय भाव से सैक्युलर दलों की तरह काम करे.

टीडीपी साफ़ कर चुकी है कि आंध्रप्रदेश में 4 फीसदी मुसलिम आरक्षण जारी रहेगा. यह मोदीभक्तों और उत्तरभारत के कट्टर हिंदूवादियों के लिए झटका ही है जो बेचारे चंद्रबाबू नायडू को इस बाबत कोस भी नहीं सकते. एनआरसी, सीएए, जनसंख्या नियंत्रण जैसे भगवा मसलों पर भी सन्नाटा है. हालफ़िलहाल तो भगवा गैंग 26 तारीख को सब ठीकठाक रहे, इस की प्रार्थनाएं कर रहा है.

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