आजकल राष्ट्रीय स्तर पर बात को तोड़मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाने का चलन कुछ ज्यादा ही हो गया है. जिसे देखो वही कहने के बाद कहता फिरता है कि उस की बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. उस के कहने का मतलब वह नहीं था जिसे जानबूझ कर पेश किया जा रहा है, उस की छवि खराब करने को. अब ऐसों से कौन पूछे कि जिस की छवि ही न हो, वह खराब कैसे होगी?

एक समय था जब घरघर में बात तोड़मरोड़ कर पेश की जाती थी, एकदूसरे के सामने एकदूसरे की छवि खराब करने को, एकदूसरे पर अपनी भड़ास निकालने को. और फिर घर में शुरू हो जाता था पारिवारिक वार. और अंत में तब न चाहते हुए भी बहू को सास के सामने थकहार कर माफी मांगते कहना पड़ता था कि हे सासुमां, मेरे कहने का मतलब वह नहीं था जो मैं ने कहा था. देवरानी ने मेरे कहे को जानबूझ कर तोड़मरोड़ कर आप के सामने पेश किया है. इसलिए देवरानी की ओर से मैं माफी मांगती हूं.

अब ज्योंज्यों घर के हर सदस्य के हाथ को इंटरनैट से सुसज्जित नयापुराना मोबाइल इजीली अवेलेबल हो रहा है, त्योंत्यों घर का हर बालिगनाबालिग मैंबर अपनेअपने फोन पर व्यस्त रहने लगा है. कोई अपने पूरे होशोहवास खो इस कमरे में ट्विटरिया रहा है तो कोई उस कमरे में यूट्यूब पर यूट्यूबिया रहा है. कोई फेसबुक पर टकाटक फेसबुकिया रहा है तो कोई मैसेंजर पर मैसेंजरिया रहा है. बिन काम के व्यस्त रहना आज फैशन हो गया है. बिन काम के भी व्यस्त रहना आज की कला है. जिधर देखो, जिस की भी बात करो, किसी के पास सिर खुरचने तक का वक्त नहीं.

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