नंदिनी रसोई में बरतनों को बेवजह पटक रही थी. शिवा के लिए नंदिनी का यह व्यवहार नया नहीं था. जब भी जिंदगी में कोई मुश्किल आती थी, नंदिनी अपना गुस्सा ऐसे ही रसोई में निकालती थी.

दोनों बच्चे कर्ण और सिया अभी स्कूल से नहीं लौटे थे. शिवा बहुत देर तक बाहर ड्राइंगरूम में बैठ कर सिगरेट सुलगाता रहा था. उसे लग रहा था कि नंदिनी शायद बाहर आ कर एक बार तो उस से बात करेगी. मगर जब नंदिनी बाहर नहीं आई तो शिवा अपनी कार उठा कर बेवजह सड़कों पर घूमने लगा था.

शिवा को नंदिनी का व्यवहार समझ नहीं आ रहा था. शिवा की जितनी भी ऊपर की कमाई थी, सब का नंदिनी को पता था. तब तो नंदिनी शिवा से कभी कुछ नहीं कहती थी.

हर करवाचौथ पर नंदिनी को शिवा कोई न कोई गहना गढ़वा कर देता था. हर साल गरमी की छुट्टियों में शिवा और उस का परिवार घूमने जाता था. दोनों बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते थे. नंदिनी कोई अनपढ़, गंवार महिला नहीं थी. उसे अच्छे से पता था कि ये गहने और महंगे शौक़ शिवा के वेतन में पूरे नहीं हो सकते हैं.

मगर नंदिनी तब यह ही बोलती ‘अरे शिवा, तुम क्या कोई अनोखा काम कर रहे हो? सब करते हैं और यह तो सरकारी नौकरी के साथ मिलने वाला एक इंसैंटिव हैं.’

मगर आज जब शिवा औफिस पहुंचा तो पता चला कि उस के ऊपर इन्क्वायरी बैठ गई है. शिवा जब अपने बौस विनोद कपूर के पास गया तो वे बोले, "तुम्हें देखसमझ कर रिश्वत लेनी चाहिए थी. इस में मैं कुछ नहीं कर सकता हूं क्योंकि मेरे साइन तो तुम्हारे अप्रूवल के बाद ही होते हैं."

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