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बेटी के गुनाहगार बन गए मां बाप, कर दी अपने दामाद की हत्या

इसी साल 17 मई की सुबह के करीब साढ़े 7, पौने 8 बजे का समय रहा होगा, जब जयपुर की जगदंबा विहार कालोनी में सिविल इंजीनियर अमित नायर के घर के बाहर एक होंडा अमेज कार आ कर रुकी. कार से 4 लोग उतरे, जिन में एक महिला भी थी. उन में से एक आदमी कार के पास खड़ा हो गया तो बाकी महिला समेत 3 लोग घर के सामने जा कर खड़े हो गए.

उन में से अधेड़ उम्र के एक आदमी ने आगे बढ़ कर घर की डोरबेल बजाई. डोरबेल की आवाज सुन कर अमित नायर की पत्नी ममता ने गेट खोला. गेट के बाहर पापामम्मी को देख कर वह खुशी से फूली नहीं समाई. वह शिकायत भरे लहजे में पापा से लिपट कर बोली, ‘‘पापा, बेटीदामाद की याद नहीं आई क्या, जो इतने दिनों बाद आज आए हो?’’

ममता जिस आदमी से लिपटी थी, वह उस के पिता थे. उन का नाम जीवनराम था. उन्होंने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है बेटी. आखिर हम तेरे मांबाप हैं. तूने भले ही अपनी मनमरजी कर ली है, लेकिन हम तुझे कैसे भूल सकते हैं.’’

‘‘पापा, आप लोग बाहर ही खड़े रहेंगे या घर के अंदर भी आएंगे?’’ ममता ने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘‘मम्मी, आप क्यों चुपचाप खड़ी हैं?’’

‘‘बेटी, आज हम सब तुम से ही मिलने आए हैं.’’ मां भगवानी देवी ने कहा.

‘‘पापा, ये आप के साथ कौन लोग हैं, मैं इन्हें नहीं जानती?’’ ममता ने शंका भरे लहजे में पूछा.

जीवनराम ने ममता को भरोसा दिलाया, ‘‘बेटी, ये हमारे जानकार हैं. हम साथसाथ कहीं जा रहे थे. सोचा, बेटी का घर रास्ते में है तो उस से मिलते चलें. इसी बहाने आपसी गिलेशिकवे भी दूर हो जाएंगे.’’

‘‘आओ, अंदर आ जाओ.’’ ममता ने मम्मीपापा व उन के साथ आए लोगों से कहा, ‘‘आप सब चायनाश्ता कर के जाना.’’

ममता के कहने पर जीवनराम, उन की पत्नी भगवानी देवी और उन के साथ आया वह आदमी ममता के साथ घर के अंदर जा कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठ गए.

हालांकि सुबह का समय था, लेकिन सूरज की तपन से गरमी बढ़ने लगी थी. इसलिए ममता ने ड्राइंगरूम का एसी औन कर दिया. इस के बाद फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और 3 गिलासों में पानी डाला. तीनों गिलास एक ट्रे में रख कर वह ड्राइंगरूम में पहुंची और मम्मीपापा व उन के साथ आए व्यक्ति को एकएक गिलास दे दिया. तीनों ने पानी पिया.crime story

पानी पीने के बाद जीवनराम ने पूछा, ‘‘बेटी, दामादजी नजर नहीं आ रहे, वह कहां हैं?’’

‘‘पापा, वह अभी सो रहे हैं. वह थोड़ा देर से उठते हैं, लेकिन आप आए हैं तो मैं उन्हें उठाए देती हूं.’’ ममता ने हंसते हुए कहा.

‘‘ठीक है बेटी, दामादजी को जगा दो, उन से भी गिलेशिकवे दूर कर लें.’’ जीवनराम ने लंबी सांस ले कर कहा.

पापा के कहने पर ममता बैडरूम में गई और पति अमित को जगा कर बोली, ‘‘मम्मीपापा आए हैं, आपसी गिलेशिकवे दूर करना चाहते हैं.’’

ममता के पापामम्मी के आने की बात सुन कर अमित हैरान रह गया. वह जल्दी से उठा और वाशबेसिन पर जा कर मुंह धोया. तौलिए से मुंह पोंछते हुए वह ड्राइंगरूम में पहुंचा और ममता के मम्मीपापा को हाथ जोड़ कर नमस्कार कर के बोला, ‘‘पापाजी, आज आप को हमारी याद कैसे आ गई?’’

‘‘बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ जीवनराम ने कहा, ‘‘तुम से शादी करने के बाद ममता तो हमें भूल ही गई. उसे हमारे साथ भेज दो तो कुछ दिन हमारे साथ रह लेगी. वैसे भी वह प्रैग्नेंट है, इसलिए उसे आराम की जरूरत है.’’

अमित के जवाब देने से पहले ही ममता ने पिता की बात काट कर कहा, ‘‘पापा, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मुझे यहां किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है.’’

अमित ने ममता की बात का समर्थन किया, ‘‘पापाजी, ममता आप के साथ नहीं जाना चाहती, इस का कहीं जाने का मन नहीं है.’’

ममता और अमित की बातें सुन कर जीवनराम गुस्से से उबल पड़े, लेकिन उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने दिया. उन्होंने अपने साथ आए युवक को इशारा किया. इशारा मिलते ही उस ने पिस्तौल निकाली और अमित पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगा. कई गोलियां लगने से अमित ड्राइंगरूम में ही फर्श पर गिर पड़ा. उस के सीने, गरदन और पैर में 4 गोलियां लगीं.

अमित के गिरते ही ममता चीखने लगी. जीवनराम और उस की पत्नी ममता के बाल पकड़ कर घसीटते हुए जबरन अपने साथ ले जाने लगे, लेकिन तब तक गोलियों की आवाज और ममता की चीखें सुन कर अंदर से अमित की मां रमा देवी आ गई थीं. कुछ पड़ोसी भी आ गए थे. कार के पास खड़े व्यक्ति ने गोलियों की आवाज सुन कर कार स्टार्ट कर दी थी. जीवनराम, भगवानी देवी और उन के साथ आया युवक बाहर खड़ी कार में बैठ कर फरार हो गए.

दिनदहाड़े घर में घुस कर अमित नायर की हत्या किए जाने से कालोनी में हड़कंप मच गया. आसपास के लोग अमित के मकान पर एकत्र हो गए. पुलिस को सूचना दी गई तो पुलिस ने वायरलैस पर सूचना दे कर नाकेबंदी करा दी. पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पूछताछ में जो बातें सामने आईं, उस से साफ हो गया कि यह औनर किलिंग का मामला था.

अमित की हत्या उस के सासससुर ने अपने साथ लाए भाड़े के शूटर से कराई थी. मातापिता ने ही अपनी बेटी की मांग उजाड़ दी थी.crime story

आमतौर पर औनर किलिंग के ज्यादातर मामले हरियाणा के जाट समुदाय में सामने आए हैं. राजस्थान में हरियाणा से सटे इलाकों में ऐसी कुछ घटनाएं हुई हैं, लेकिन राजधानी जयपुर में औनर किलिंग की संभवत: इस पहली घटना ने पुलिस अधिकारियों को झकझोर दिया था.

रमा देवी ने उसी दिन थाना करणी विहार में अपने बेटे अमित के सासससुर व 2 अन्य लोगों के खिलाफ घर पर आ कर अमित की गोली मार कर हत्या करने व बहू ममता को जबरन ले जाने का प्रयास करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला भारतीय दंड विधान की धारा 453, 302 व 120बी के अंतर्गत दर्ज किया.

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार, पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता, पुलिस उपायुक्त (अपराध) विकास पाठक के निर्देशन में कई पुलिस टीमों का गठन किया. इन टीमों में अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) रतन सिंह, सहायक पुलिस आयुक्त वैशालीनगर रामअवतार सोनी, करणी विहार थानाप्रभारी महावीर सिंह, चौमूं थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, हरमाड़ा थानाप्रभारी लखन सिंह खटाना, भांकरोटा थानाप्रभारी हेमेंद्र कुमार शर्मा, सेज थानाप्रभारी गयासुद्दीन, झोटवाड़ा थानाप्रभारी गुर भूपेंद्र सिंह, वैशालीनगर थानाप्रभारी भोपाल सिंह भाटी और यातायात पुलिस इंसपेक्टर निहाल सिंह को शामिल किया गया.

इन के अलावा एफएसएल, एमओबी शाखा व साइबर सेल की सहायता से अमित नायर हत्याकांड की जांच शुरू कर के अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी गई. दूसरे दिन पुलिस ने शूटर का स्कैच बनवा कर जारी कर दिया.

पुलिस को अमित के सासससुर और रिश्तेदारों के नामपते पता चल गए थे. अमित के ससुर जीवनराम जाट मूलरूप से सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा के रहने वाले थे. फिलहाल वह जयपुर के वैशालीनगर में झारखंड मोड़ स्थित गणेश कालोनी में रह रहे थे.

पुलिस को शूटरों का पता जीवनराम से ही मिल सकता था, साथ ही अमित की हत्या का कारण भी उन के पकड़ में आने के बाद ही पता चल सकता था. इसलिए पुलिस ने जीवनराम को गिरफ्तार करने के लिए जयपुर, सीकर, लोसल, नागौर जिले में डीडवाना, कुचामन, लाडनूं, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, दिल्ली व हरियाणा में स्थित उस के घर वालों तथा रिश्तेदारों के यहां कई जगहों पर दबिश दी.

 

जांच के दौरान पुलिस को नागौर जिले के डीडवाना कस्बे में वह कार मिल गई, जिस में अमित की हत्या के आरोपी उस के घर आए थे. पुलिस को पता चला कि जीवनराम का बेटा मुकेश डीडवाना में ही रहता है. वह रेलवे में जेईएन है. जांच में पता चला कि अमित की हत्या से पहले और बाद में मुकेश लगातार मातापिता के संपर्क में था.

पुलिस ने अमित की हत्या की साजिश के आरोप में 19 मई को मुकेश को गिरफ्तार कर लिया. मुकेश ने पूछताछ में बताया कि अमित की हत्या के बाद मां भगवानी देवी व पिता जीवनराम जयपुर से सीधे डीडवाना आए थे. वे दोनों करीब 10 मिनट उस के पास रुके थे. इस दौरान जीवनराम ने मुकेश को बताया था कि अमित का काम तमाम कर दिया गया है. इस के बाद वे चले गए थे. पुलिस को मुकेश से पूछताछ में इस मामले में कुछ अहम जानकारियां मिलीं. इन जानकारियों के आधार पर पुलिस लगातार अभियुक्तों की तलाश में जुटी रही.

लगातार प्रयास के बाद पुलिस ने आखिर 24 मई को 4 आरोपियों जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी के अलावा उन के ही गांव मोरडूंगा के रहने वाले भगवानाराम जाट तथा नागौर जिले के मौलासर थाना के गांव कीचक निवासी रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को गिरफ्तार कर लिया.

इन में मोरडूंगा निवासी भगवानाराम जाट पंचायत समिति का पूर्व सदस्य था. रवि उर्फ रविंद्र शेखावत शूटर था. उस ने इस घटना से करीब 6 महीने पहले 3 लाख रुपए में अमित की हत्या की सुपारी ली थी. पुलिस ने जीवनराम को हरियाणा के कैथल, भगवानी देवी और पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को सीकर तथा रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को जयपुर से पकड़ा था.

crime storyआरोपियों से पूछताछ में पुलिस को अमित की हत्या करने वाले शूटरों का पता चल गया था. पूछताछ में जीवनराम ने पुलिस को बताया था कि भाड़े के 2 शूटरों विनोद गोरा तथा रामदेवलाल ने गोलियां चला कर अमित को मौत की नींद सुलाया था. ये दोनों शूटर भी जीवनराम के साथ ही कार से फरार हो गए थे.

बाद में दोनों शूटर जीवनराम से अलग हो कर गुजरात के शहर सूरत चले गए थे. यह सूचना मिलने पर जयपुर पुलिस की 2 टीमें शूटरों की तलाश में सूरत गईं, लेकिन तब तक वे दोनों सूरत से मुंबई चले गए थे. जयपुर पुलिस मुंबई पहुंची तो पता चला कि दोनों शूटर गोवा चले गए हैं.

जयपुर पुलिस की टीमें शूटरों का लगातार पीछा कर रही थीं. जयपुर पुलिस के गोवा पहुंचने से पहले ही वे वहां से भी चले गए थे. दोनों शूटरों का पीछा करते हुए जयपुर पुलिस राजस्थान के नागौर आ गई. नागौर जिले के कुचामन सिटी की कृष्णा कालोनी के एक मकान में दोनों शूटरों के होने की सूचना पर पुलिस ने 5 जून को देर रात दबिश दी.

दबिश में विनोद गोरा पकड़ा गया, जबकि रामदेवलाल नहीं मिला. पता चला कि वह कुचामन से उसी दिन विनोद गोरा से अलग हो गया था. लाडनूं निवासी गिरफ्तार शूटर विनोद गोरा ने पुलिस को बताया कि जीवनराम ने अमित को मारने के लिए उसे व रामदेवलाल को 2 लाख रुपए की सुपारी दी थी. वारदात के दौरान विनोद गोरा अमित के घर के बाहर हथियार ले कर खड़ा था, जबकि रामदेवलाल घर के अंदर गया था.

दोनों शूटरों ने तय किया था कि घर के अंदर अगर रामदेवलाल किसी कारण से अमित की हत्या में सफल नहीं हो पाता तो विनोद उस की मदद करेगा. अमित की हत्या के बाद जीवनराम ने दोनों शूटरों को 50 हजार रुपए दिए थे.

गिरफ्तार आरोपियों व अमित की पत्नी ममता से पूछताछ के बाद औनर किलिंग के नाम पर अमित की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह जीवनराम जाट और उस के परिवार की झूठी आनबानशान और इज्जत का दिखावा मात्र थी.

सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा का रहने वाला जीवनराम जाट सेना में नौकरी करता था. वह सेना की 221 मीडियम आर्टिलरी से सन 2000 में रिटायर हुआ था. इस के बाद वह परिवार के साथ जयपुर में रहने लगा था. उस के परिवार में पत्नी भगवानी देवी के अलावा बेटा मुकेश और बेटी ममता थी. सेना से रिटायर होने के बाद वह नेशनल इंश्योरेंस कंपनी में ड्राइवर हो गया था.

दूसरी ओर अमित नायर के पिता राघवन सोमन मूलरूप से केरल के रहने वाले थे. वह जयपुर में ए श्रेणी के ठेकेदार थे. अमित की मां रमादेवी जयपुर से नर्स के पद से रिटायर हुई थीं. राघवन का करीब ढाई-3 साल पहले निधन हो गया था.

उस समय ममता और अमित के परिवार जयपुर के वैशालीनगर में आसपास रहते थे. दोनों परिवारों में अच्छा परिचय था. जीवनराम का बेटा मुकेश और अमित नायर जयपुर के केंद्रीय विद्यालय संख्या-4 में साथसाथ पढ़ते थे. वहीं दोनों की आपस में दोस्ती हो गई थी. जीवनराम की बेटी ममता जयपुर के ही केंद्रीय विद्यालय संख्या-2 में पढ़ती थी.

बाद में अमित ने जयपुर के ज्योतिराव फुले कालेज से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. ममता ने मोदी इंस्टीट्यूट लक्ष्मणगढ़ से एलएलबी की पढ़ाई की और मुकेश ने पूर्णिमा कालेज से बीटेक किया.

आसपास रहने और केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई करने के दौरान ही अमित का अपने सहपाठी मुकेश की बहन ममता से परिचय हुआ. कालेज स्तर की पढ़ाई के दौरान उन का यह परिचय प्यार में बदल गया. हालांकि दोनों अलगअलग कालेजों में पढ़ते थे, लेकिन प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए वे समय निकाल ही लेते थे.crime story

ममता ने अपने प्यार की भनक घर वालों को नहीं लगने दी. जब ममता और अमित का प्यार परवान चढ़ने लगा तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों अलगअलग जाति से थे. ममता जहां जाट परिवार की बेटी थी, वहीं अमित दक्षिण भारतीय था.

ममता को अच्छी तरह पता था कि उस के घर वाले अमित और उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. जातिसमाज के बंधनों को देखते हुए अमित और ममता ने सन 2011 में आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, लेकिन इस शादी का अपने परिवार वालों को पता नहीं लगने दिया. भले ही उन दोनों ने शादी कर ली थी, लेकिन वे अपनेअपने घरों पर अलगअलग ही रहते थे.

सन 2015 में जब ममता की एलएलबी की पढ़ाई पूरी हो गई तो अमित व ममता ने अपनी शादी परिवार और समाज में जाहिर करने का फैसला कर लिया. एक दिन ममता ने अमित से अपनी शादी की बात अपने मातापिता को बता दी और उन की इच्छा के खिलाफ उसी दिन घर छोड़ कर अमित के साथ रहने चली गई. तब तक अमित का परिवार करणी विहार में जा कर रहने लगा था.

बेटी का इस तरह दूसरी जाति के युवक से शादी करना जीवनराम, उस की पत्नी और बेटे मुकेश को अच्छा नहीं लगा. उन्हें इस बात पर ज्यादा गुस्सा था कि ममता ने बिना बताए शादी कर ली थी. मुकेश इस बात से ज्यादा खफा था कि उस के साथ पढ़ने और पड़ोस में रहने वाले दोस्त अमित ने उस की बहन से ही शादी कर के दोस्ती में दगा किया था.

ममता अपने पति अमित के साथ हंसीखुशी वैवाहिक जीवन गुजारने लगी. अमित प्रौपर्टी व कंस्ट्रक्शन का काम करता था. इस बीच ममता के मातापिता व भाई लगातार उस पर दबाव डालते रहे कि वह अमित से संबंध तोड़ ले. उन्होंने कई बार ममता को अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन वे इस में सफल नहीं हुए. अमित की शिकायत पर पुलिस ने वारदात से करीब 8 महीने पहले ममता के मातापिता व भाई पर पाबंदी भी लगा दी थी कि वे अमित के घर न जाएं.

ममता इसी साल जनवरी में गर्भवती हो गई थी. इसी वजह से कुछ महीनों से उस की अपनी मां से बातचीत होती रहती थी. करीब 3 महीने से बीचबीच में ममता के मातापिता उस से मिलने आते रहते थे. इस से अमित व ममता को लगने लगा था कि अब सब ठीक हो गया है. ममता अपने मांबाप के मंसूबों का अंदाजा नहीं लगा पाई थी.

दूसरी तरफ जीवनराम और उस का परिवार अमित नायर को अपना सब से बड़ा दुश्मन मान रहा था. वे उसे रास्ते से हटाने की योजना में लगे हुए थे. जीवनराम ने अपने गांव मोरडूंगा के रहने वाले पुराने दोस्त पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को अपनी परेशानी बताई. भगवानाराम ने अमित को ममता के रास्ते से हटाने के लिए जीवनराम को रवि उर्फ रविंद्र शेखावत से मिलवाया.

रवि ने 3 लाख रुपए में अमित की हत्या करने की सुपारी ले ली. योजना के तहत जीवनराम और भगवानाराम ने रवि के साथ मिल अमित की रेकी कर उस की हत्या का मौका तलाशने लगे. इसी बीच जीवनराम और उस के घर वालों ने भगवानाराम के साथ मिल कर भाड़े के 2 अन्य शूटरों रामदेवलाल और विनोद गोरा को 2 लाख रुपए में अमित की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया.

योजनाबद्ध तरीके से जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और किराए के दोनों शूटर रामदेवलाल व विनोद गोरा होंडा अमेज कार आरजे14सीएक्स 0313 से 17 मई की सुबह साढ़े 7 से पौने 8 बजे के बीच जगदंबा विहार में मकान नंबर सी-493 पर बेटीदामाद के घर पहुंचे. वहां एक शूटर विनोद गोरा कार के पास बाहर खड़ा रहा, जबकि जीवनराम, भगवानी देवी और रामदेवलाल घर के अंदर चले गए.

घर के अंदर जीवनराम ने अमित को बुलवाया और ममता को साथ ले जाने की बात कही. लेकिन ममता के इनकार कर देने पर जीवनराम को गुस्सा आ गया. उन्होंने शूटर से अमित पर गोलियां चलवा कर उस की हत्या करा दी. इस के बाद उन्होंने ममता को जबरन ले जाने का प्रयास किया, लेकिन अमित की मां व पड़ोसियों के आ जाने से वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके और कार में बैठ कर भाग गए.

पूछताछ में पता चला कि जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और दोनों शूटर वारदात के बाद जयपुर से निकले तो बगरू के पास दोनों शूटरों को उतार दिया. इस के बाद जीवनराम व उस की पत्नी भगवानी देवी सीधे डीडवाना पहुंचे, जहां वे रेलवे में नौकरी करने वाले अपने बेटे मुकेश से मिले. उन्होंने उसे अमित का काम तमाम करने के बारे में बताया और अपनी कार वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गए.

दोनों डीडवाना से नागौर, फलौदी, रामदेवरा हो कर सूरतगढ़ पहुंचे. सूरतगढ़ से जीवनराम ने पत्नी भगवानी देवी को बस में बैठा कर सीकर भेज दिया. इस के बाद जीवनराम बीकानेर, हिसार हो कर कैथल पहुंच गया.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि व्यापक जांच के बाद अमित हत्याकांड में 7 लोगों की संलिप्तता सामने आई है. इन में से 6 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वारदात में इस्तेमाल कार भी बरामद कर ली गई है. कथा लिखे जाने तक पुलिस शूटर रामदेवलाल की तलाश कर रही थी.

इस मामले में गिरफ्तार जीवनराम ने पुलिस को बताया कि अमित ने ममता को पहले धर्मबहन बनाया. वह रक्षाबंधन पर उस से राखी भी बंधवाता रहा. इस के बाद अपने प्यार में फांस कर उस से शादी कर ली. उस की शादी का पता चलते ही हम ने अमित को ठिकाने लगाने की ठान ली थी.

वारदात के कुछ दिनों बाद तक ममता के परिवार की सुरक्षा के लिए उस के घर के बाहर पुलिस तैनात रही. ममता की याचिका पर हाईकोर्ट ने भी पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया है कि ममता और उस के घर वालों के अलावा गवाह पड़ोसियों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

बहरहाल, अमित की हत्या करवा कर जीवनराम और परिवार ने सीने में सुलग रही आग भले ही ठंडी कर ली हो, लेकिन जातिबिरादरी में शर्मिंदगी की आड़ ले कर ऐसा कृत्य करने वालों को कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं करता. जीवनराम ने बेटी का सुहाग उजाड़ कर भगवानी देवी की ममता का भी गला घोंट दिया. ममता का गर्भस्थ शिशु संभवत: सितंबर में जन्म लेगा तो उस मासूम को पिता का प्यार नहीं मिल पाएगा.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कर्नल के शिकारी बेटे के घर से जो मिला उसने सबके होश उड़ा दिए

उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ के वीआईपी व पौश एरिया सिविललाइंस में पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों के औफिस, आवास, सर्किट हाउस, पुलिस मुख्यालय, कलेक्ट्रेट, कचहरी और पुलिस लाइन हैं. इसी इलाके में कई समृद्ध लोगों के अपने आवास भी हैं. उन्हीं में से एक आलीशान कोठी नंबर 36/4 थी, जो रिटायर्ड कर्नल देवेंद्र विश्नोई की थी. वह कोई मामूली आदमी नहीं थे. कई साल सेना में नौकरी कर के उन्होंने देश की सेवा की थी.

सन 1971 में हुई भारतपाकिस्तान की जंग में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. बाद में वह पंजाब में हुए औपरेशन ब्लूस्टार का भी हिस्सा रहे. उन के साहस की निशानियां फोटो और मैडल के रूप में उन के ड्राइंगरूम की दीवारों पर सजे थे. कई सम्मान भी उन्हें मिले थे. कुल मिलाकर उन की पृष्ठभूमि शौर्य, साहस और सम्मान की अनोखी मिसाल थी, उन्हें जानने वाले इन बातों को बखूबी जानते थे.

बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी, कर्नल साहब का एकलौता बेटा प्रशांत विश्नोई भी देश का जानामाना शूटर था. मजबूत कदकाठी और रौबदार चेहरे वाले प्रशांत की पत्नी और 2 बेटियां थीं. सभी एक साथ इसी कोठी में रहते थे. कर्नल परिवार के ईंट के भट्ठे और जमीनों के अलावा सिक्योरिटी एजेंसी का बड़ा काम था. विश्नोई परिवार करोड़ों की दौलत का मालिक तो था ही, आसपास उस की शोहरत भी थी.

कर्नल परिवार की लाइफस्टाइल हाईप्रोफाइल थी. आसपास की कोठियों में और भी लोग रहते थे, लेकिन कर्नल परिवार किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. वैसे भी शहरों में लोग इस तरह की जिंदगी जीने के आदी हो गए हैं. पड़ोसी को पड़ोसी की खबर नहीं होती.

हर कोई अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीना चाहता है. किस के यहां क्या हो रहा है, कोई दूसरा नहीं जानता. कर्नल की कोठी की पहचान का एक हिस्सा उन की आधा दरजन से ज्यादा महंगी कारें भी थीं. प्रशांत को कारों का शौक था. इन में लग्जरी कारों के अलावा घने जंगलों व रेगिस्तान में चलने वाली थार नामक जीप भी थी. गाडि़यां बदलती रहती थीं. खास बात यह थी कि इन सभी गाडि़यों के वीआईपी नंबर 0044 ही होते थे.

वक्त कब किस की पहचान किस रूप में सामने ला दे, इस बात को कोई नहीं जानता. 30 अप्रैल, 2017 का सवेरा हुआ तो न सिर्फ तारीख बदली थी, बल्कि कर्नल की कोठी की पहचान भी सनसनीखेज तरीके से बदल गई थी. लोग न केवल हैरान नजरों से कोठी को देख रहे थे बल्कि तरहतरह की बातें भी कर रहे थे. कर्नल साहब की कोठी अचानक ही चर्चाओं का हिस्सा बन गई थी.

दरअसल, 29 अप्रैल की दोपहर देश के गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली डायरेक्टोरेट औफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की दिल्ली से आई कई टीमें छापा मारने के लिए कर्नल साहब की कोठी पर पहुंच गई थीं. बाकी लोग गाडि़यों में ही बैठे रहे, सिर्फ 4 लोग कोठी के दरवाजे पर गए, डोरबैल बजाई तो नौकर बाहर आया. उस ने पूछा, ‘‘कहिए?’’

चारों में से एक अफसर ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘हमें कर्नल साहब या प्रशांतजी से मिलना है.’’

‘‘आप लोग कहां से आए हैं?’’ नौकर ने अगला सवाल किया.

‘‘दिल्ली से. उन से कहिएगा कि हमारा मिलना जरूरी है.’’

‘‘आप ठहरिए, मैं पूछ कर आता हूं.’’ नौकर ने कहा.

टीम ने नजरें दौड़ाईं, दरवाजों पर हाई क्वालिटी वाले कैमरे लगे थे, जिन का फोकस दोनों रास्तों की ओर था. कुछ ही देर में नौकर ने आ कर उन के लिए दरवाजा खोल दिया. इशारा पा कर टीम के अन्य सदस्य भी दनदनाते हुए अंदर दाखिल हो गए. इतने सारे लोगों को एक साथ देख कर ड्राइंगरूम में बैठे कर्नल देवेंद्र भड़क उठे, ‘‘यह क्या बदतमीजी है, कौन हैं आप लोग?’’

अधिकारियों ने अपना परिचय देने के साथ ही पूछा, ‘‘पहले आप यह बताइए कि प्रशांत कहां हैं?’’

‘‘वह तो घर पर नहीं है.’’

‘‘ठीक है, हमें घर की तलाशी लेनी है.’’ अफसरों ने कहा.

उन लोगों का इतना कहना था कि देवेंद्र गुस्से में आ गए. उन की उम्र काफी हो चुकी थी और आंख का औपरेशन हुआ था. लेकिन आवाज युवाओं जैसी कड़कदार थी. उन्होंने धमकाते हुए कहा, ‘‘खबरदार, अगर ऐसा किया तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘माफ करें, हमें इस बात का पूरा अधिकार है. बेहतर होगा कि आप शांत रहें.’’ अफसरों ने कहा.

टीम को विरोध का सामना करना पड़ सकता था, इसलिए उन्होंने पुलिस अधिकारियों को फोन कर के सूचना दी तो तुरंत पुलिस बल आ गया. देवेंद्र ने पुलिस को भी आड़े हाथों लिया और इधरउधर फोन करने लगे. पुलिस ने उन का मोबाइल और फोन अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस और टीम का सख्त रुख देख कर उन्हें शांत हो जाना पड़ा. वैसे भी उन की तबीयत ठीक नहीं थी.crime story

डीआरआई और पुलिस की टीम ने 3 मंजिला कोठी की तलाशी लेनी शुरू की तो वहां जो कुछ मिलना शुरू हुआ, उसे देख उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पहली मंजिल पर बने प्रशांत के कमरों से देशीविदेशी हथियारों और कारतूसों का जखीरा मिलता चला गया. हालांकि प्रशांत शूटर थे, लेकिन किसी को भी इतने हथियार रखने की इजाजत नहीं हो सकती. जांच टीम के होश उड़ गए, क्योंकि यह जखीरा इतना ज्यादा था कि पूरे जिले की पुलिस के पास भी शायद इतनी गोलियां नहीं हो सकती थीं.

इतना ही नहीं, कोठी के एक विशेष कमरे में वन्यजीवों के सिर, हड्डियां, खालें व अन्य वस्तुएं मिलीं. खुद टीम को भी उम्मीद नहीं थी कि छापे में इतना कुछ निकलेगा. मामला हथियारों की तस्करी से होता हुआ वन्यजीवों की तस्करी तक पहुंच गया था.

इस के बाद सूचना पा कर पश्चिम क्षेत्र के वन संरक्षक मुकेश कुमार भी अपनी टीम के साथ कर्नल की कोठी पर पहुंच गए. उन के साथ टीम में वन अधिकारी संजीव कुमार, वन्यजीव प्रतिपालक राज सिंह, क्षेत्रीय वन अधिकारी हरीश मोहन, वन दरोगा रामगोपाल व वनरक्षक  मोहन सिंह भी थे.

प्रशांत कहां था, इस की किसी को खबर नहीं थी. उस का मोबाइल भी स्विच औफ आने लगा था. संभवत: उसे छापेमारी की खबर लग गई थी. जांच काफी बारीकी से चल रही थी. कोठी के बाहर पुलिस बल तैनात कर दिया गया था. खबर पा कर मीडिया वाले भी आ गए थे. कोठी के अंदर प्रतिबंधित सामानों का जखीरा मिलता जा रहा था. टीम सब चीजों को सील करती जा रही थी.

टीम ने जो कुछ भी बरामद किया था, उस की किसी को उम्मीद नहीं थी. कोठी से सौ से भी ज्यादा हथियार, जिन में पिस्टल, रिवौल्वर और बड़े हथियार मिले. 2 लाख कारतूस, करीब एक करोड़ रुपए नकद, कैमरे, दूरबीन के अलावा तेंदुए, काले हिरन की खालें, सांभर और काले हिरन के सींग सहित एकएक खोपड़ी, एक हिरन की खोपड़ी, गरदन सींग सहित, सांभर, हिरन के बच्चों की सींगें, चिंकारा हिरन की सींग सहित 4 खोपडि़यां, कुछ बिना सींग वाली हिरन की खोपडि़यां, अन्य कई प्रजातियों के हिरन की खोपडि़यां, वन्य जीवों के 7 दांत, हाथी दांत की मूठ वाला एक चाकू तथा 47 पैकेटों में रखा गया एक क्विंटल से अधिक 117.50 किलोग्राम वन्य जीवों का मांस बरामद किया गया. मांस के ये पैकेट बाकायदा बड़े फ्रीजर में रखे थे.

खास बात यह थी कि बरामद हथियार विदेशों के नामचीन ब्रांड बेरेटा (इटली), बेनेली (इटली), आर्सेनल (इटली), ग्लौक (आस्ट्रिया) और ब्लेजर (जर्मनी) के थे. इंटरनेशनल ब्रांड के बरामद हथियारों की कीमत 25 करोड़ रुपए के आसपास आंकी गई. कर्नल देवेंद्र और उन की पत्नी प्रशांत की करतूतों का हिस्सा थे या नहीं, यह जांच का विषय था. लेकिन वे दोनों बुजुर्ग और बीमार थे, इसलिए उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया.

छापे की यह काररवाई सुबह करीब 5 बजे तक चली. इस के बाद दिन निकलते ही कर्नल साहब की कोठी सुर्खियों में आ गई. कोठी के राज को जान कर पूरा शहर दंग रह गया. डीआरआई के अलावा वन विभाग ने भी मेरठ के थाना सिविल लाइन में प्रशांत के खिलाफ धारा 9, 50, 51, 44, 49(ए), व 49(बी)  वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मामले की जांच के साथ प्रशांत की तलाश तेज कर दी.

वह विदेश भाग सकता था, इसलिए कोठी से उस का पासपोर्ट पहले ही कब्जे में ले लिया गया था. उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर के देश के हवाईअड्डों को सतर्क कर दिया गया था. डीआरआई के अलावा क्राइम ब्रांच, एसटीएफ, वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो और दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल को भी प्रशांत की तलाश में लगा दिया गया था. इस बीच डीआरआई के एडीशनल डायरेक्टर राजकुमार दिग्विजय ने बरामदगी के बारे में विधिवत प्रैस को जानकारी दी. डीएफओ अदिति शर्मा के निर्देशन में कोठी से बरामद मांस के सैंपल जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिए गए.crime story

प्रशांत की पोल शायद कभी खुल न पाती, अगर दिल्ली में हथियारों के साथ कुछ लोग न पकडे़ गए होते. दरअसल, अप्रैल के अंतिम सप्ताह में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से शूटर अमित गोयल और अनिल के साथ 2 विदेशी नागरिकों को 25 विदेशी हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया था.

ये लोग टर्किश एयरलाइंस से स्लोवेनिया की राजधानी लिजबुलजना से इस्तांबुल होते हुए दिल्ली पहुंचे थे. इन में एक बोरिस सोबोटिक मिकोलिक मध्य यूरोप के स्लोवेनिया का रहने वाला था और हथियारों का बड़ा तस्कर था.

हालांकि इन लोगों ने खुद को इंटरनेशनल शूटर बताया था. पता चला ये शूटरों को दी जाने वाली आयात पौलिसी का लाभ उठा रहे थे, लेकिन इस बार ये हवाईअड्डे की सुरक्षा जांच एजेंसियों को झांसा देने में नाकाम रहे. बरामद हथियारों की कीमत साढ़े 4 करोड़ रुपए थी. इन से पूछताछ हुई तो शूटर प्रशांत के तार इन से जुड़े मिले. मामला गंभीर था, लिहाजा शिकंजा कसने की तैयारी कर ली गई. कई दिनों की रेकी के बाद डीआरआई टीम छापा मारने प्रशांत के घर पहुंच गई.

जांच करने वालों ने कर्नल देवेंद्र से पूछताछ की लेकिन उन्होंने बरामद सामान के बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार कर दिया. हालांकि उन की साफगोई किसी के गले नहीं उतर रही थी. सब से बड़ा सवाल यह था कि एक सैन्य अधिकारी का बेटा इतने बड़े पैमाने पर तस्करी में कैसे लिप्त हो गया था? इस की गहराई से जांच और प्रशांत की गिरफ्तारी जरूरी थी. जबकि प्रशांत अपने मोबाइल फोन का स्विच औफ कर चुका था.

प्रशांत के नंबर की काल डिटेल्स के आधार पर उस के नेटवर्क की तह में जाने की कोशिश की गई. उस की गिरफ्तारी के लिए डीआरआई टीम के अलावा यूपी एसटीएफ, वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो और दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीमें लगी थीं. सभी को उस की सरगर्मी से तलाश थी. लेकिन वह सभी को गच्चा देने में कामयाब रहा.

पुलिस सूचनाओं के आधार पर छापे मारती रही और वह चकमा देने में कामयाब होता रहा. देखतेदेखते एक महीना बीत गया. जांच एजेंसियों के लिए वह चुनौती बना हुआ था. आखिर 1 जून को डीआरआई टीम ने उसे दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जो कुछ प्रकाश में आया, वह बेहद चौंकाने वाला था. दरअसल, कर्नल देवेंद्र ग्रामीण पृष्ठभूमि से थे. वह मेरठ जिले के ही कस्बा फलावदा के रहने वाले थे. वहां उन की जमीनें थीं. रिटायरमेंट के बाद वह कुछ साल बरेली के समाज कल्याण विभाग में तैनात रहे. इस के बाद करीब 16 साल पहले उन्होंने फलावदा और परीक्षितगढ़ में ब्रिक फील्ड नाम से ईंट के भट्ठे लगाए.crime story

इन भट्ठों में उन्हें घाटा हो गया था, जिस से आर्थिक हालात बिगड़ गए. बाद में पितापुत्र ने बरेली में एक सिक्योरिटी एजेंसी खोली. इस एजेंसी का काम सरकारी टेंडरों के जरिए गार्ड मुहैया कराना था. धीरेधीरे कंपनी का नेटवर्क कई राज्यों में फैल गया. यह काम चल निकला और देखतेदेखते कर्नल के न सिर्फ आर्थिक हालात बदल गए, बल्कि प्रशांत का लाइफस्टाइल भी बदल गया. महंगी कारें उस का शौक बन गईं. प्रशांत शूटिंग के क्षेत्र में भी काफी नाम कमा चुका था.

प्रशांत ने बचपन से ही ऊंचे ख्वाब देखे थे. पिता कर्नल थे, लिहाजा जिंदगी ऐशोआराम में बीती. स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही वह शूटिंग प्रतियोगिताओं में हाथ आजमाने लगा था. सन 2002 में उस का विवाह निधि के साथ हुआ. समय के साथ वह 2 बेटियों का पिता बना. वह बिलियर्ड्स प्लेयर तो था ही, साथ ही राष्ट्रीय स्तर का स्कीट शूटर भी था. इस के तहत 12 बोर से शूटिंग की जाती है.

बिग बोर व .22 कैटेगरी में वह देश के लिए खेल चुका है. पहले वह दिल्ली में रह कर शूटिंग करता था. तब उस ने कई मैडल जीते थे. एक साल पहले उस ने जयपुर में 60वीं नेशनल चैंपियनशिप खेली थी, जिस में उस की 65वीं रैंक आई थी. नेशनल रायफल एसोसिएशन औफ इंडिया ने उसे रिनाउंड शूटर की मान्यता दी हुई थी.

रिनाउंड शूटर को 2 वेपन का लाइसैंस मिल सकता था. अंतरराष्ट्रीय शूटर होने के नाते प्रशांत के नामचीन लोगों से ताल्लुक थे. कई राजनेताओं से भी उस के सीधे रिश्ते थे. इन में स्थानीय नेताओं से ले कर मुख्यमंत्री तक थे. कई बड़े कारोबारी भी उस के संपर्क में रहते थे.

समय के साथ प्रशांत हथियारों और वन्यजीवों की तस्करी करने लगा. यह तस्करी देश से होते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई. शूटिंग की आड़ में वन्यजीवों का शिकार और तस्करी का धंधा प्रशांत और उस की टीम ने पूरे देश में फैला दिया. वह कितना बड़ा शिकारी और तस्कर बन गया है, इस की खबर आसपास के लोगों को नहीं थी.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के जंगलों के अलावा बिहार के जंगल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड के जिम कार्बेट पार्क समेत कई जगहों पर भी प्रशांत व उस के साथियों ने वन्यजीवों का शिकार किया. उस की कोठी तस्करी का अड्डा बन गई.

हथियारों के आयात पर रोक के बावजूद देश में बड़ी आसानी से हथियार आते रहे. इन हथियारों को प्रशांत एजेंटों के माध्यम से मुंहमांगी कीमतों पर बेचता था. जिस हथियार की कीमत विदेश में एक लाख रुपए होती थी, उसे वह 15 से 20 लाख रुपए में बेचता था.

हथियार चूंकि विख्यात कंपनियों के होते थे, इसलिए उन की बड़ी कीमत मिल जाती थी. कई बार हथियारों के पार्ट्स ला कर भी उन्हें जोड़ लिया जाता था.

दरअसल, इस खेल को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शूटरों को सीमित मात्रा में विदेशी हथियार लाने की सरकारी छूट का प्रशांत और उस के साथी लाभ उठा रहे थे. कस्टम अधिकारियों को गुमराह कर के ये कम हथियारों की जानकारी दे कर अधिक हथियार भारत लाते थे.

वन्यजीवों का शिकार प्रशांत सिर्फ अपने शौक के लिए ही नहीं करता था, बल्कि उन के मांस की सप्लाई कई नामी होटलों में की जाती थी. हिरनों की लुप्त हो रही प्रजातियों को सहज निशाना बनाया जाता था. वन्यजीवों के मांस और उन के अंगों को कारों के जरिए ही लाया जाता था. प्रशांत ने एक कार में फ्रिजर रखने की व्यवस्था करा रखी थी. कार पर चूंकि आर्मी लिखा होता था, इसलिए चैकिंग में वह कभी नहीं पकड़ा गया.

प्रशांत कई राज्यों में नीलगायों का शिकार करने जा चुका था. उत्तर प्रदेश सहित आसपास के राज्यों में वह किसानों के आमंत्रण पर जाता रहता था. सन 2016 में बिहार सरकार ने भी 5 सौ नीलगायों को मारने के लिए शूटरों की टीम को बुलाया था. उस में प्रशांत भी शामिल था. आरोप है कि इस की आड़ में वह वन्यजीवों का शिकार और उन के अंगों एवं मांस की तस्करी करता था.crime story

सुरक्षा एजेंसियों या स्थानीय पुलिस को कभी उस के गोरखधंधे का पता नहीं चला. लेकिन जब दिल्ली के एयरपोर्ट पर तस्करों की गिरफ्तारी हुई तो उन्होंने प्रशांत का नाम उगल दिया.

पूछताछ के बाद प्रशांत को अगले दिन पटियाला हाउस कोर्ट में मुख्य महानगर न्यायाधीश सुमित दास की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

7 जून को उसे मेरठ की अदालत में पेश किया गया. वन विभाग ने उस के रिमांड की अर्जी लगाई, लेकिन रिमांड नहीं मिल सका. उसे पुन: तिहाड़ जेल भेज दिया गया. प्रशांत ने किनकिन लोगों को हथियार बेचे, मांस की तस्करी कहांकहां की और किन लोगों से उस के तार जुड़े थे, इस सब की गहराई से जांच के लिए उसे रिमांड पर लेने की कोशिश की जा रही थी.

प्रशांत का जो चेहरा समाज के सामने आया है, वह लोगों को सोचने पर मजबूर जरूर कर रहा है कि किस तरह संभ्रांत लोग चौंकाने वाले धंधों में लिप्त होते हैं. वह जो कुछ भी कर रहा था, उस की खबर पड़ोसियों को भी नहीं थी. स्थानीय पुलिस और खुफिया एजेंसी भी जिस तरह से उस के धंधे से अनजान थीं, उस से पता चलता है कि वह कितने शातिराना अंदाज में अपने कारनामों को अंजाम दे रहा था.

दूसरी ओर कर्नल देवेंद्र ने बेटे के गोरखधंधे से खुद को अलग बता कर पल्ला झाड़ लिया है. उन का कहना था कि उन्हें पता नहीं था कि उन का बेटा यह सब कर रहा था. वह शर्मिंदा हैं. मेरठ कचहरी में पेशी के दौरान प्रशांत ने खुद को फंसाए जाने का आरोप लगाया. कथा लिखे जाने तक प्रशांत की जमानत नहीं हो सकी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिगरी दोस्त ने कुछ इस तरह से रची ‘दृश्यम’ की कहानी

उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी का रहने वाला मुनव्वर हसन काफी दबंग आदमी था. वह अपने दोस्त शाहिद उर्फ बंटी के साथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. इसी धंधे से उस ने करोड़ों की संपत्ति जुटा रखी थी. चूंकि उस के पास अच्छाखासा पैसा था और इलाके में अच्छी जानपहचान थी, इसलिए वह राजनीति में कूद गया.

देखा जाए तो राजनीति में दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग सफल हैं. यही सोच कर मुनव्वर हसन ने सन 2014 में दिल्ली के बादली विधानसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. चुनाव तो वह नहीं जीत सका, पर उस की तमाम नेताओं से अच्छी जानपहचान हो गई, जिस का फायदा वह अपने कारोबार में उठाने लगा.

मुनव्वर का कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था, पर सन 2017 उस के और उस के परिवार के लिए परेशानी ही परेशानी ले कर आया. 19 जनवरी, 2017 को रेप के आरोप में उसे जेल जाना पड़ा. उस की पत्नी सोनिया उर्फ इशरत ने सोचा भी नहीं था कि उसे यह दिन भी देखना पड़ेगा. वैसे मुनव्वर हसन ने हिंदू लड़की से लवमैरिज की थी. सोनिया उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर की रहने वाली थी. शादी के बाद सोनिया ने अपना नाम इशरत रख लिया.

सोनिया उर्फ इशरत की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. सोनिया मुनव्वर की 2 बेटियों आरजू और अर्शिता उर्फ अर्शी तथा 2 बेटों आकिब व शाकिब की मां थी. चूंकि मुनव्वर के पास पैसों की कमी नहीं थी, इसलिए सभी बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे थे.

मुनव्वर हसन के जेल जाने के बाद सोनिया उर्फ इशरत और उस के बच्चे परेशान हो गए. लेकिन उन की परेशानी की इस घड़ी में मुनव्वर के दोस्त साहिब खान उर्फ बंटी ने भरपूर साथ दिया. वह हर तरह से उन के परिवार की देखरेख कर रहा था. इतना ही नहीं, वह मुनव्वर के केस की पैरवी भी कर रहा था. वह उस से जेल में मिलने खुद तो जाता ही था, साथ ही उस की बीवीबच्चों को भी मिलवाने के लिए ले जाता था.

बंटी का संतनगर के कमल विहार में प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस था. वह अपने औफिस पर रोजाना बैठता था. 24 अप्रैल को बंटी मुनव्वर के घर पहुंचा तो उस की बीवी और बच्चे गायब मिले. उस ने उस की बीवी इशरत को फोन किया तो वह भी बंद मिला. उस ने पड़ोसियों से पूछा कि दीदी दरवाजा खोल कर कहां चली गई. वह इशरत को दीदी कहता था. पड़ोसियों ने भी अनभिज्ञता जताई तो बंटी ने उस के दरवाजे पर ताला लगाया और अपने औफिस आ गया.crime story in hindi

बंटी शाम को फिर इशरत के घर पहुंचा तो दरवाजे पर उसे वही ताला लटका मिला, जो वह लगा गया था. वह 3-4 दिनों तक लगातार मुनव्वर के घर गया, हर रोज उसे वही ताला लगा मिला. बंटी ने इशरत और उस के बच्चों के रहस्यमय ढंग से गायब होने की जानकारी जेल में बंद मुनव्वर हसन को दी. मुनव्वर ने शंका व्यक्त की कि इशरत बच्चों को ले कर कहीं अपने मायके तो नहीं चली गई?

उस का मायका सहारनपुर में था. लेकिन यहां यह सवाल भी था कि यदि वह मायके जाती, घर को इस तरह खुला छोड़ कर क्यों जाती? बीवी और चारों बच्चों के गायब होने की बात सुन कर मुनव्वर परेशान हो उठा. पर उस समय वह जेल में था. बाहर होता तो अपने स्तर से उन की तलाश भी करता.

मुनव्वर का मन कर रहा था कि वह उसी समय जेल की चारदीवारी फांद कर बाहर निकल जाए और बीवीबच्चों को तलाशे. उस ने अपने दोस्त बंटी से कह दिया कि वह किसी भी तरह उसे अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर निकलवाने की कोशिश करे. बंटी उस का जिगरी दोस्त था. वह वकील से मिल कर मुनव्वर को अंतरिम जमानत पर जेल से निकलवाने की कोशिश में लग गया.

बंटी की मेहनत रंग लाई और पत्नी तथा बच्चों को ढूंढने के लिए माननीय न्यायालय ने मुनव्वर को अंतरिम जमानत दे दी.

17 मई को मुनव्वर अपने दोस्त बंटी और दीपक के साथ घर पहुंचा तो उस समय रात के 11 बज रहे थे. अपना सूना घर देख कर उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. बंटी और दीपक ने समझा कर भरोसा दिलाया कि वह दीदी और बच्चों को हर जगह ढूंढने की कोशिश करेंगे.

उस रात मुनव्वर को अपने ही घर में नींद नहीं आई. बीवीबच्चों को ले कर तरहतरह के खयाल उस के दिमाग में रात भर आते रहे. सुबह होने पर उस ने उस इलाके में रहने वाले अपने सभी जानने वालों से बीवीबच्चों के बारे में पूछा, पर कोई कुछ नहीं बता सका.

अचानक सभी के एक साथ गायब होने से मोहल्ले वाले भी हैरान थे. जब बीवीबच्चों की कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो मुनव्वर हसन अपने दोस्त बंटी को ले कर 18 मई को थाना बुराड़ी पहुंचा और थानाप्रभारी को अपने पूरे परिवार के अचानक गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा कर उन की तलाश कराने का भरोसा दिया.crime story in hindi

थाने से लौट कर मुनव्वर अपने औफिस गया. वह अपने खास जानपहचान वालों से भी मिला. उस की पत्नी हिंदू थी. पत्नी के घर वाले उस से शादी करने को तैयार नहीं थे. मुनव्वर को इस बात की भी आशंका हो रही थी कि कहीं पत्नी के मायके वालों ने ही तो नहीं सब को गायब करा दिया?

उस की पत्नी सोनिया उर्फ इशरत का मायका सहारनपुर में था. मुनव्वर ने अपने विश्वासपात्र लोगों से इस बात का पता कराया तो जानकारी मिली कि मायके वालों को तो इशरत और बच्चों के गायब होने की जानकारी ही नहीं है.19 मई को पूरे दिन बंटी के साथ रह कर वह बीवीबच्चों की खोजता रहा.

अगले दिन यानी 21 मई की शाम को बंटी अपने औफिस में बैठा था. उस समय मुनव्वर उस के साथ नहीं था. उस ने मुनव्वर को फोन किया. फोन पर घंटी तो बज रही थी, पर मुनव्वर फोन उठा नहीं रहा था. बंटी ने थोड़ी देर बाद फिर उसे फोन किया. इस बार भी घंटी तो बजी, पर उस ने फोन नहीं उठाया. कई बार फोन करने के बाद भी जब उस ने फोन रिसीव नहीं किया तो वह उस के घर पहुंच गया. वह उस के कमरे में पहुंचा तो चीखता हुआ तुरंत बाहर आ गया.

मुनव्वर की किसी ने हत्या कर दी थी. वह लहूलुहान कमरे में पड़ा था. बंटी के चीखने की आवाज सुन कर पड़ोस के लोग आ गए. मुनव्वर की हत्या पर सभी हैरान थे कि इतने दबंग आदमी की हत्या किस ने कर दी? बंटी ने इस की खबर पुलिस कंट्रोल रूम को दी. कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोल रूम की वैन आ पहुंची. सूचना पा कर थाना बुराड़ी के अतिरिक्त थानाप्रभारी नरेश कुमार भी पुलिस बल के साथ आ पहुंचे.

पुलिस ने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया था. टीम ने मौके से सबूत जुटा लिए. पुलिस ने काररवाई शुरू की. मुनव्वर को 3 गोलियां मारी गई थीं. उस के घर का सारा सामान यथावत था, इसलिए लूट की आशंका का कोई सवाल ही नहीं था. जिस तरह से उस पर गोलियां चलाई गई थीं, उस से यही लग रहा था कि हत्यारों का मकसद सिर्फ उस की हत्या करना था. उस की हत्या कर के वे वहां से चले गए थे.

उस बिल्डिंग में रहने वाले अन्य लोगों से बात की गई तो किसी ने भी गोली चलने की आवाज सुनने से इनकार कर दिया था. सूचना पा कर उत्तरी जिले के डीसीपी जतिन नरवाल भी आ गए थे. मौकामुआयना करने के बाद उन्होंने भी लोगों से मुनव्वर के बारे में जानकारी हासिल की.crime story in hindi

मुनव्वर के बीवीबच्चे पहले से ही गायब थे. अब उसे भी ठिकाने लगा दिया गया था. कहीं यह परिवार किसी की साजिश का शिकार तो नहीं हो गया, पुलिस अधिकारी आपस में इस बात पर चर्चा करने लगे. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. डीसीपी जतिन नरवाल ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी सिविल लाइंस इंद्रावती के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. यह टीम अलगअलग दृष्टिकोण से केस की जांच करने में जुट गई.

चूंकि मुनव्वर दबंग प्रवृत्ति का आदमी था और ज्यादातर वह विवादित संपत्ति का सौदा करता था. इतना ही नहीं, वह अपनी दबंगई के बूते विवादित संपत्ति पर कब्जा भी कर लेता था.

उस पर जमीन पर कब्जा करने, अपहरण, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, आर्म्स एक्ट आदि के दरजन भर से ज्यादा मुकदमे चल रहे थे. अपनी दबंगई के बूते उस ने बुराड़ी, करावल नगर, स्वरूपनगर आदि में करीब 2 करोड़ की संपत्ति अर्जित कर रखी थी. पुलिस इस बात को ले कर भी चल रही थी कि कहीं दूसरे धर्म की लड़की से शादी करना तो उसे नहीं ले डूबा. इन के अलावा पुलिस पैसे के लेनदेन के ऐंगल को भी ध्यान में रख कर जांच कर रही थी.

हत्यारे ने मुनव्वर को उस के घर में ही मार दिया. उस की पत्नी और बच्चे महीने भर से गायब थे. यह दिमाग में आने लगा था कि कहीं उन्हें भी तो ठिकाने नहीं लगा दिया गया? मुनव्वर का सब से ज्यादा विश्वसनीय और करीबी दोस्त बंटी उर्फ साहिब खान ही था. वह उस का कारोबारी पार्टनर ही नहीं था, बल्कि उस के सुखदुख का साथी भी था. इस के अलावा उस का एक और दोस्त था दीपक.

पुलिस ने इन दोनों से यह जानने की कोशिश की कि मुनव्वर का किसी से कोई झगड़ा या रंजिश तो नहीं थी. बंटी ने बताया कि कई प्रौपर्टियों को ले कर झगड़े तो हुए, लेकिन उन में से किसी की इतनी हिम्मत नहीं कि वे मुनव्वर से ऊंची आवाज में भी बात कर सकें. उस ने बताया कि फूल सिंह के जिस मकान में वह रह रहा था, वह हिस्सा भी कब्जाया हुआ था.

पुलिस ने संतनगर की भगत सिंह कालोनी की गली नंबर-4 में रहने वाले मकान मालिक फूल सिंह से पूछताछ की. फूल सिंह ने बताया कि उस ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर यह मकान बनाया था. मकान के फ्लोर उस ने अलगअलग बेच दिए थे. 5 लाख रुपए न देने पर जगदीश ने सैकेंड फ्लोर पर कब्जा कर लिया था. छत को ले कर दोनों के बीच विवाद चल रहा था.

बाद में जगदीश ने अपना हिस्सा एक वकील को बेच दिया था. वह वकील मुनव्वर का मामा था. मुनव्वर झगड़ालू और दबंग था. वकील मुनव्वर और बंटी से उसे धमकी दिलवा कर पूरे मकान पर कब्जा करने की कोशिश करने लगा. बाद में मुनव्वर ने ही अपने मामा के खरीदे मकान पर कब्जा कर लिया था.

फूल सिंह ने पुलिस को यह भी बताया कि मुनव्वर के पैरोल पर आने के बाद बंटी का उस के यहां बारबार आनाजाना लगा रहा. गेट खोलने को ले कर उस का बंटी से विवाद भी हुआ था. तब बंटी ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी. उस ने बताया कि 20 मई, 2017 की सुबह करीब पौने 7 बजे 3 लोग आए. उन्होंने दरवाजा खटखटाया.

तब मुनव्वर ने आ कर गेट खोला. वे तीनों मुनव्वर के साथ ही ऊपर चले गए थे. बंटी उन तीनों से पहले मुनव्वर के पास आ चुका था. उसी समय वह तैयार हो कर तीसहजारी कोर्ट के लिए निकल गया था. शाम को जब वह घर लौटा तो घर के सामने पुलिस की गाडि़यां देख कर हैरान रह गया.

पुलिस को फूल सिंह निर्दोष लगा तो उसे घर भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने बंटी और दीपक से अलगअलग पूछताछ की. बंटी ने इस बात से मना कर दिया कि वह 20 मई को सुबह मुनव्वर से मिलने उस के घर गया था. बंटी और दीपक के बयानों में काफी विरोधाभास था.

चूंकि बंटी ही मुनव्वर के बीवीबच्चों को ढूंढने की ज्यादा पैरवी कर रहा था और उस के बयान भी विरोधाभासी थे, इसलिए पुलिस को उसी पर शक होने लगा. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो पता चला कि अप्रैल, 2017 में बंटी का सहारनपुर और मेरठ जाना हुआ था. इस के अलावा उस की मेरठ के कुछ नंबरों पर खूब बातें हुई थीं.

जिन नंबरों पर उस की बातें हुई थीं, पुलिस ने उन नंबरों की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो वे फोन नंबर आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के पाए गए. इस के बाद पुलिस को बंटी पर ही संदेह हुआ. काल डिटेल्स के आधार पर बंटी से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने ऐसा राज उगला, जिस के लिए पुलिस परेशान हो रही थी.crime story in hindi

बंटी ने स्वीकार कर लिया कि उस ने न केवल मुनव्वर की हत्या कराई है, बल्कि उस की पत्नी और बच्चों को भी जमींदोज कर दिया है. यानी मुनव्वर और उस के पूरे परिवार की हत्या कराने वाला कोई और नहीं, साहिब खान उर्फ बंटी ही निकला.

सच्चाई जान कर पुलिस अधिकारी भी हैरान रह गए. क्योंकि बंटी मुनव्वर का दोस्त ही नहीं, बल्कि बिजनैस पार्टनर भी था. डीसीपी जतिन नरवाल को जब पता चला कि बुराड़ी का मुनव्वर वाला मामला खुल गया है तो वह थाने आ पहुंचे. एसीपी इंद्रावती उन से पहले ही वहां पहुंच चुकी थीं.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में साहिब खान उर्फ बंटी से पूछताछ की गई तो मुनव्वर के परिवार के 6 लोगों की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

मुनव्वर हसन मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का रहने वाला था. वह पिछले 15 सालों से उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रह रहा था. उस का प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा अच्छाखासा चल रहा था. अकसर वह विवादित और झगड़े वाली प्रौपर्टी ही खरीदता था. इस तरह की प्रौपर्टी में उसे अच्छा मुनाफा होता था. साहिब खान उर्फ बंटी से उस की लगभग 8 साल पहले मुलाकात हुई थी. उस ने 8 साल पहले मुनव्वर की मार्फत बुराड़ी में एक प्लौट खरीदा था. इस के बाद बंटी का मुनव्वर के साथ उठनाबैठना हो गया था.

बंटी मूलरूप से मेरठ का रहने वाला था और वह थोड़ा धाकड़ किस्म का आदमी था. चूंकि दोनों एक ही इलाके के रहने वाले थे, इसलिए जल्द ही दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई. मुनव्वर को लगा कि अगर बंटी को अपना पार्टनर बना ले तो धंधा अच्छा चल सकता है. इस संबंध में मुनव्वर ने बंटी के पिता से बात की तो उन्होंने बंटी को उस के साथ पार्टनरशिप में प्रौपर्टी का काम करने की इजाजत दे दी. इस के बाद मुनव्वर और बंटी पार्टनरशिप में धंधा करने लगे. कुछ ही दिनों में बंटी मुनव्वर का विश्वासपात्र बन गया.

बुराड़ी के कई प्लौटों, अपार्टमेंट और मकानों पर अवैध कब्जा करने में बंटी ने मुनव्वर का साथ दिया. इस काम के लिए वह कई बार अपने इलाके के बदमाशों को भी लाया. दबंग भूमाफिया छवि के कारण मुनव्वर का पूरे इलाके में खौफ था. लोग उस से डरते थे. कोई भी भला आदमी उस से पंगा नहीं लेना चाहता था. मुनव्वर ने अपनी इसी दबंगई के चलते करोड़ों रुपए की संपत्ति अर्जित कर ली थी.

अपनी दबंगई को भुनाने के लिए उस ने सन 2009 में दिल्ली के बादली विधानसभा क्षेत्र से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह चुनाव तो नहीं जीत सका, पर उस की राजनैतिक गलियारे में पैठ बन गई.  अब उस का रुतबा और ज्यादा बढ़ गया. बंटी उस का ऐसा दोस्त था, जो साए की तरह उस के साथ रहता था. इलाके में दोनों की जोड़ी मशहूर थी.

कभीकभी आदमी को उन्हीं लोगों से मात मिल जाती है, जिन पर वे आंख मूंद कर विश्वास करते हैं. उसी तरह बंटी भी आस्तीन का सांप निकला. लेकिन इस की शुरुआत मुनव्वर ने ही की थी. दरअसल एक बार मुनव्वर ने बंटी से 20 लाख रुपए लिए. बारबार मांगने के बावजूद मुनव्वर उस के पैसे नहीं लौटा रहा था. इस के अलावा मुनव्वर ने बंटी के एक प्लौट पर भी कब्जा कर लिया था.

बंटी जब भी उस से अपने पैसे मांगता, वह उसे अंजाम भुगतने की धमकी दे कर चुप करा देता था. मुनव्वर के इस व्यवहार से बंटी परेशान हो चुका था. 20 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं होती, जो वह छोड़ देता. वह अकसर यही सोचता कि मुनव्वर से अपने पैसे कैसे वसूल करे? मुनव्वर की इन्हीं हरकतों से बंटी के मन में उस के लिए नफरत पैदा हो गई, पर वह दिखावे के तौर पर उस का और उस के परिवार का वफादार बना रहा.

उसी बीच 19 जनवरी, 2017 को मुनव्वर दुष्कर्म के आरोप में जेल चला गया. इस के बाद बंटी ही उस के परिवार की देखरेख करता रहा. वह भी पत्नी और एक बच्चे के साथ बुराड़ी में ही रहता था. वह अपने परिवार के साथसाथ मुनव्वर की बीवी और 4 बच्चों का हर तरह से खयाल रख रहा था. यही नहीं, वह मुनव्वर के केस की पैरवी भी कर रहा था.

एक दिन बंटी अपने औफिस में अकेला बैठा था, तभी उस के दिमाग में आया कि उस ने तो मुनव्वर को बड़ा भाई मानते हुए पूरी ईमानदारी से उस का साथ दिया, पर मुनव्वर ने उस की वफा का ऐसा सिला दिया, जिसे वह भुला नहीं पा रहा है.

उसे पता ही था कि मुनव्वर के पास दो, ढाई करोड़ रुपए की संपत्ति है. उसी समय उस के मन में लालच आ गया कि अगर मुनव्वर और उस के बीवीबच्चों को ठिकाने लगा दिया जाए तो उस की सारी संपत्ति पर उस का कब्जा हो सकता है. उस ने तय कर लिया कि वह उस धोखेबाज के साथ ऐसा ही करेगा.

मुनव्वर जेल में था. उस के बाहर आने से पहले ही वह उस की पत्नी और बच्चों को इस तरह ठिकाने लगाना चाहता था कि किसी को भी उस पर शक न हो. बंटी ने मल्टीप्लेक्स में फिल्म ‘दृश्यम’ देखी थी. अचानक उस फिल्म की कहानी याद आ गई. इसी फिल्म की कहानी के आधार पर उस ने मुनव्वर के परिवार की हत्या कर शवों को ठिकाने लगाने का विचार किया.

इस के बाद बंटी ने यह फिल्म कई बार देखी. औफिस में जब भी वह अकेला होता, यही फिल्म देखता. वह एक खौफनाक साजिश रचने लगा. आखिर उस ने एक फूलप्रूफ योजना बना डाली. योजना में उस ने अपने दोस्त दीपक और 5 पेशेवर हत्यारों फिरोज, जुल्फिकार, जावेद, उस के भाई वाहिद और जसवंत को शामिल किया. ये सारे बदमाश मेरठ के रहने वाले थे.

बंटी के पिता की मेरठ में लोहा और स्टील के गेट वगैरह बनाने का कारखाना है. मेरठ के समोली गांव का जुल्फिकार उस के पिता के यहां वेल्डिंग का काम करता था. वह पेशेवर शूटर था. उस के काम छोड़ने पर उसी के गांव का रहने वाला फिरोज वहां वेल्डिंग का काम करने लगा था. वह भी बदमाश था. इन्हीं दोनों के जरिए बंटी की अन्य बदमाशों से जानपहचान हुई थी. बंटी कई बार इन्हें प्रौपर्टी पर कब्जा करने के लिए दिल्ली भी लाया था. 3 लाख रुपए में बंटी ने उन से डील फाइनल कर दी.

योजना को कैसे अंजाम देना है, यह बात बंटी ने पहले ही उन्हें बता दी थी. 20 अप्रैल, 2017 को मुनव्वर के बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हुईं. सोनिया ने जब से मुनव्वर से लवमैरिज की थी, तब से उस के घर वाले उस से खफा थे. कभीकभार वह अपनी बहन और मां से फोन पर बातें कर लेती थी.

21 अप्रैल को बंटी अपनी एसएक्स-4 कार से सोनिया उर्फ इशरत को उस की बहन से मिलाने सहारनपुर ले गया. इशरत अपनी जवान बेटियों अर्शिता उर्फ अर्शी और आरजू को घर पर नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए दोनों बेटियों को भी साथ ले गई थी.

बहन से मिलने के बाद इशरत 22 अप्रैल को दिल्ली लौट रही थी, तभी रास्ते में बंटी को दीपक मिला. बंटी ने उसे भी कार में बैठा लिया. रात साढ़े 11 बजे के करीब सभी दौराला के समोली गांव पहुंचे. वहीं से वह कार को अख्तियारपुर के जंगल में 3 किलोमीटर अंदर ले गया.

वैसे तो इशरत और उस के बच्चे बंटी पर विश्वास करते थे. इस के बावजूद इशरत ने जब कार को जंगल में ले जाने की वजह पूछी तो बंटी ने कहा कि इस समय हाईवे पर बहुत जाम मिलता है, इसलिए शौर्टकट से चल रहा है. इस पर इशरत चुप हो गई.

काली नदी के किनारे बंटी ने कार रोक दी. कार के रुकते ही जुल्फिकार, फिरोज, जावेद और वाहिद वहां आ गए. फिरोज ने कार का दरवाजा खोल कर इशरत की बेटी अर्शी को बाहर निकाला. अर्शी अपनी मां और बहन के साथ पिछली सीट पर बैठी थी. इशरत ने पूछा कि वे बेटी को कहां ले जा रहे हैं तो बदमाशों ने हथियार दिखा कर उसे चुप करा दिया.

इशरत बंटी के आगे गिड़गिड़ाने लगी कि बेटी को छुड़वा दे, लेकिन बंटी चुपचाप खड़ा रहा. कुछ दूर ले जा कर फिरोज ने अर्शी के सिर में गोली मार दी. गोली की आवाज सुन कर इशरत ने भागने की कोशिश की तो जुल्फिकार ने उस के सिर में गोली मार दी. इस के बाद उन्होंने आरजू की भी गोली मार कर हत्या कर दी.

नदी के किनारे बदमाशों ने 10 फुट गहरा गड्ढा पहले से ही खोद रखा था. तीनों के गहने उतार कर उन्हें उसी गड्ढे में दफना दिया गया. जहां पर तीनों लाशें दफनाई गई थीं, उस के ऊपर उन्होंने घास डाल दी थी. मांबेटियों को ठिकाने लगा कर सभी दिल्ली आ गए.

घर पर मौजूद मुनव्वर के दोनों बेटे आकिब और शाकिब अपनी अम्मी और बहनों के लौटने का इंतजार कर रहे थे. वह मां को बारबार फोन कर रहे थे, पर फोन नहीं लग रहा था. 23 अप्रैल को छोटा बेटा शाकिब मां के बारे में पता करने कमल विहार स्थित बंटी के औफिस पहुंचा.

वहां पर दीपक, फिरोज, जुल्फिकार आदि बैठे थे. उन्होंने शाकिब के मुंह में कपड़ा ठूंस कर उस के हाथपैर बांध कर औफिस में ही डाल दिया.

इस के बाद बंटी ने मुनव्वर के दूसरे बेटे आकिब को फोन कर के अपने औफिस बुला लिया. वह पहुंचा तो उस के भी मुंह में कपड़ा ठूंस कर उस के हाथपैर बांध कर शाकिब के पास डाल दिया. कई घंटे बंधे रहने के कारण दम घुटने से दोनों भाइयों की मौत हो गई. दोनों लाशों को ठिकाने लगाने के लिए बंटी ने अपने औफिस का फर्श खुदवा कर 3-4 फुट गहरा गड्ढा खोद कर दोनों भाइयों को भी दफना दिया.

लाशें जल्द गल जाएं, इस के लिए दोनों लाशों के ऊपर काफी मात्रा में नमक डाल दिया. बदबू न आए इस के लिए परफ्यूम भी डाला गया. इस के बाद दोनों लाशों के ऊपर आरसीसी लिंटर डलवा दिया.

चूंकि बंटी ही मुनव्वर के परिवार का नजदीकी और वफादार था, इसलिए वह इशरत और उस के बच्चों को खोजने का नाटक करता रहा. उन के रहस्यमय ढंग से गायब होने की खबर उस ने तिहाड़ जेल में बंद मुनव्वर को भी दे दी थी. बीवीबच्चों के गायब होने की खबर सुन कर मुनव्वर परेशान हो उठा. बंटी ही मुनव्वर को जेल से पैरोल पर बाहर निकलवाने की कोशिश में लग गया. पत्नी और बच्चों को ढूंढने के लिए कोर्ट ने 17 मई, 2017 को मुनव्वर की अंतरिम जमानत स्वीकार कर ली.

तिहाड़ जेल से पैरोल पर रिहा होने के बाद मुनव्वर अपने खासमखास दोस्त बंटी और दीपक के साथ घर पहुंचा. अगले दिन वह बंटी के साथ उसी औफिस में बैठ कर पत्नी और बच्चों को ढूंढने की योजना बनाता रहा, जहां उस के दोनों बेटे दफन थे. 18 मई को वह बंटी को ले कर बुराड़ी थाने पहुंचा. बंटी उस के साथ इस तरह से लगा था कि जैसे उस से ज्यादा उस का हमदर्द कोई और नहीं है.

19 मई को भी वह मुनव्वर के साथ इधरउधर घूमता रहा. पेशेवर बदमाश बुराड़ी में ही ठहरे थे. बंटी ने उन्हें पहले ही बता दिया था कि काम को कब अंजाम देना है. योजना के अनुसार, 20 मई, 2017 को बंटी मुनव्वर के घर सुबह ही पहुंच गया. थोड़ी देर बाद फिरोज, जुल्फिकार और जावेद भी पहुंच गए.

इन के लिए गेट मुनव्वर ने ही खोला था, क्योंकि वह पहले से इन सब को जानता था. मौका मिलते ही उन्होंने उस की गोली मार कर हत्या कर दी. वह जीवित न बच जाए, इस के लिए उसे 3 गोलियां मारी गई थीं. अपना काम कर के सभी चले गए. मुनव्वर और उस के बीवीबच्चों का नामोनिशान मिटा कर बंटी उस की प्रौपर्टी के कागजात अपने नाम कराने की कोशिश में जुट गया.

बंटी ने जानबूझ कर शाम के समय मुनव्वर के मोबाइल पर कई बार काल की थीं. शाम को वह उस के घर पहुंचा और उस की हत्या का शोर मचा दिया. बंटी ने योजना तो ऐसी फूलप्रूफ बनाई थी कि किसी को भी उस पर शक न हो, पर अपराध कभी किसी का छिपा है जो उस का छिपता. आखिर वह पुलिस की गिरफ्त में आ ही गया.

बंटी और दीपक से पूछताछ के बाद पुलिस ने 22 मई को ही कमल विहार स्थित बंटी के औफिस के फर्श की खुदाई शुरू करा दी. चूंकि उस ने फर्श पर लिंटर डलवा दिया था, इसलिए उस लिंटर को तोड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. करीब 4 घंटे की खुदाई के बाद पुलिस ने आकिब और शाकिब की गली हुई लाशें गड्ढे से निकालीं.

मोहल्ले वालों को पता चला कि मुनव्वर के जिगरी दोस्त बंटी ने ही उस के पूरे परिवार को मार दिया है तो लोगों में आक्रोश भर गया. सैकड़ों की संख्या में लोग वहां जमा हो गए. इस से पहले कि लोग गुस्से में कोई कदम उठाते, डीसीपी ने जिले के अन्य थानों की पुलिस बुला ली. जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों भाइयों की लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

अब पुलिस को इशरत और उस की दोनों बेटियों की लाशें बरामद करनी थीं, जो अख्तियारपुर में काली नदी के किनारे दफन थीं. थाना दौराला पुलिस को सूचित करने के बाद दिल्ली पुलिस 23 मई, 2017 को सुबह 10 बजे काली नदी के किनारे पहुंची. उस समय फोरैंसिक टीम और सरधना तहसील के नायब तहसीलदार, दौराला के सीओ भी वहां मौजूद थे.

करीब 3 घंटे की खुदाई के बाद पुलिस ने 10 फुट गहरे गड्ढे से इशरत और उस की दोनों बेटियों आरजू एवं अर्शिता उर्फ अर्शी की लाशें बरामद कीं. खुदाई के दौरान आसपास के गांवों के सैकड़ों लोग वहां जमा हो गए थे. तीनों लाशें देख कर वे आक्रोशित हो गए. बंटी और दीपक पुलिस कस्टडी में थे. गांव वाले नारेबाजी करते हुए मांग करने लगे कि क्रूर हत्यारों को पब्लिक के हवाले किया जाए. पब्लिक उन्हें खुद सजा देगी.

पुलिस अधिकारियों ने बड़ी मुश्किल से गांव वालों को समझाबुझा कर शांत किया. पुलिस ने इन तीनों लाशों को भी पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया तो आरजू की खोपड़ी में गोली फंसी हुई मिली. जबकि अर्शिता के सीने पर गोली चलाई गई थी, जो आरपार निकल गई थी. इशरत के सिर में गोली मारी गई थी.

सभी लाशें बरामद होने के बाद पुलिस ने हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दौराला थाने के समौली गांव में छापा मार कर फिरोज और जुल्फिकार को हिरासत में ले लिया. इस के बाद जावेद भी गिरफ्तार हो गया पर उस का भाई वाहिद दीवार फांद कर भाग गया. लेकिन 28 मई को उस ने थाना बुराड़ी में आत्मसमर्पण कर दिया. कथा लिखे जाने तक एक अभियुक्त जसवंत गिरफ्तार नहीं हो सका था. पूछताछ के बाद सभी अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

बंटी ने अपने खास दोस्त मुनव्वर की करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा करने के लिए उस के पूरे परिवार को दफन कर दिया. ऐसा कर के उस ने ‘दोस्ती’ नाम के शब्द को कलंकित किया है. अब उसे वह प्रौपर्टी मिलेगी या नहीं, यह तो समय बताएगा. पर उसे अपने अपराध की सजा जरूर मिलेगी.

एक ही परिवार के 6 लोगों की हत्या के इस केस की जांच के लिए डीसीपी जतिन नरवाल ने एक विशेष जांच टीम गठित कर दी है, जिस में एसीपी सिविल लाइंस इंद्रावती, प्रशिक्षु आईपीएस विक्रम सिंह, थाना बाड़ा हिंदूराव के इंसपेक्टर रविकांत, थाना बुराड़ी के अतिरिक्त थानाप्रभारी नरेश कुमार, इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) नरेंद्र कुमार, स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर वी.एन. झा, थाना मौरिस नगर के अतिरिक्त थानाप्रभारी वेदप्रकाश, थाना रूपनगर के अतिरिक्त थानाप्रभारी पी.सी. यादव, चौकीइंचार्ज अमित कुमार, मजनूं का टीला के चौकीप्रभारी भारत, चर्च मिशन के चौकीप्रभारी पंकज तोमर को शामिल किया गया था. यह संयुक्त टीम गंभीरता से पूरे केस की जांच में जुट चुकी है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भारत-आस्ट्रेलिया टी-20 : आस्ट्रेलिया की हो सकती है लगातार सातवीं हार

आस्ट्रेलिया को एक दिवसीय क्रिकेट श्रृंखला में 4-1 से धूल चटाने के बाद भारतीय टीम तीन मैचों की टी-20 श्रृंखला का आगाज रांची के जेएससीए स्टेडियम में करेगी. एक दिवसीय श्रृंखला के बाद विराट सेना की नजरें टी-20 सीरीज जीतने पर भी होगी.

टी-20 फार्मेट में आस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम इंडिया का रिकार्ड बहुत शानदार है. आस्ट्रेलिया और भारत के बीच अब तक कुल 13 टी-20 मैच खेले गए हैं, जिनमें से 9 मैचों में भारतीय टीम ने बाजी मारी है, वहीं आस्ट्रेलिया ने सिर्फ 4 मैच ही जीते हैं. आखिरी बार दोनों टीमें वर्ल्ड टी-20 2016 में आमने-सामने हुई थी.

टी-20 श्रृंखला में आस्ट्रेलियाई टीम वनडे में खोयी हुई प्रतिष्ठा हासिल करने की पूरी कोशिश करेगी. वहीं भारतीय टीम ये साबित करना चाहेगी कि वो खेल के हर प्रारूप में मेहमानों पर भारी है. दोनों देशों के बीच टी-20 की भिड़ंत शुरू हो इससे पहले देखते हैं कि अब तक दोनों टीमों का आपसी रिकार्ड क्या रहा है.

भारत और आस्ट्रेलिया अब तक 13 अंतरराष्ट्रीय टी-20 मैच खेल चुके हैं. इनमें से नौ मैच भारत ने जीते और चार आस्ट्रेलिया ने. अगर बात दोनों देशों के बीच भारत में हुए टी-20 मैचों की बात करें तो रिकार्ड पूरी तरह भारत के पक्ष में है. भारत ने अपने घरेलू मैदान पर आस्ट्रेलिया से तीन टी-20 खेले हैं और तीनों ही जीते हैं.

वहीं दोनों देशों के बीच आस्ट्रेलिया में हुए टी-20 की बात करें तो भी पलड़ा भारत का ही भारी है. आस्ट्रेलिया में दोनों देशों के बीच कुल छह टी-20 मैच हुए हैं जिनमें से चार मैच भारत जीता और दो मैच आस्ट्रेलिया ने. अगर बात दोनों देशों के बीच न भारत, न ही आस्ट्रेलिया में हुए टी-20 मैचों की करें तो दोनों टीमों का पलड़ा बराबर है. दोनों देशों के बीच तटस्थ मैदानों पर (यानी भारत या आस्ट्रेलिया को छोड़कर किसी और देश में) हुए चार टी-20 मैचों में दोनों देशों को दो-दो मैचों में जीत मिली है.

टी-20 विश्व कप में दोनों देश अब तक पांच बार आमने सामने हुए हैं. टी-20 विश्व कप में भारत ने आस्ट्रेलिया को तीन बार हराया है. वहीं दो बार उसे आस्ट्रेलिया से मात खानी पड़ी है. दोनों देशों के बीच आखिरी टी-20 मार्च 2016 में हुआ था जिसमें भारत को जीत मिली थी.

आपको बता दें कि भारत ने दोनों देशों के बीच हुए पिछले छह टी-20 मैचों में आस्ट्रेलिया को हराया है. यानी रांची में जब आस्ट्रेलियाई टीम मौजूदा सीरीज का पहला टी-20 खेलने उतरेगी तो उस पर हार का ये सिलसिला तोड़ने का अतिरिक्त दबाव होगा.

आस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की लगातार जीत का सिलसिला

  1. 10 अक्टूबर 2013, राजकोट, बनाम आस्ट्रेलिया, भारत 6 विकेट से जीता
  2. 30 मार्च 2014, ढाका, बनाम आस्ट्रेलिया, भारत 73 रनों से जीता
  3. 26 जनवरी 2016, एडिलेड, बनाम आस्ट्रेलिया, भारत 37 रनों से जीता
  4. 29 जनवरी 2016, मेलबर्न, बनाम आस्ट्रेलिया, भारत 27 रनों से जीता
  5. 31 जनवरी 2016, सिडनी, बनाम आस्ट्रेलिया, भारत 7 विकेट से जीता
  6. 27 मार्च 2016, मोहाली, बनाम आस्ट्रेलिया, भारत 6 विकेट से जीता

शेफ : पिता पुत्र के रिश्ते को रेखांकित करती बेहतरीन फिल्म

काम, प्यार और रिश्तों को रेखांकित करने वाली फिल्म ‘‘शेफ’’ मूलतः 2014 की सफलतम अमरीकन फिल्म ‘‘शेफ’’ का भारतीयकरण है. फिल्मकार ने इस फिल्म में पिता व पुत्र के रिश्ते को बेहतर तरीके से उकेरा है. इसी के साथ यह फिल्म इंसान के अंदरुनी अंतद्वंद का बेहतर चित्रण करती है.

फिल्म की कहानी दिल्ली के चांदनी चौक में रहने वाले युवक रोशन कालरा (सैफ अली) की है, जिसे बचपन से ही खाना बनाने का शौक रहा है. उसके अपने कुछ सपने हैं. वह मषहूर शेफ बनना चाहता है, पर यह बात रोशन कालरा के पिता (रामगोपाल बजाज) को पसंद नहीं है. इसी के चलते एक दिन वह घर से भागकर चांदनी चौक में छोले भठूरे बनाने वाले राम लाल के पास जाता है, पर वह उसे समझकर घर जाने के लिए कहते हैं.

वह रामलाल चाचा को मना नहीं कर पाता, पर भागकर अमृतसर चला जाता है. वहां एक ढाबे में रहकर खाना बनाना सीखता है और फिर एक दिन वह अमरीका के गली किचन का मशहूर शेफ बन जाता हैं. इस बीच उसने एक मशहूर नृत्यांगना राधा मेनन (पद्मप्रिया जानकी रमन) से पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की. जिससे उसका एक बेटा अरमान (मास्टर स्वर कांबले) है. पर बहुत जल्द तलाक हो जाता है. अब राधा कोचीन में रहती है.

फिल्म शुरू होती है अमरीका के न्यूयार्क शहर के गली किचन से. जहां एक ग्राहक रोशन कालरा को बुलाकर कहता है कि वह कैसा शेफ है, उसे उनका खाना पसंद नहीं आया. इसी बात पर बहस हो जाती है. गुस्से में रोशन कालरा उस ग्राहक की नाक तोड़ देते हैं. रोशन को पुलिस पकड़कर ले जाती है. गली किचन के मालिक उसे छुड़ाकर लाते हैं. पर उसे नौकरी से निकाल देते हैं.

उसी वक्त राधा, रोशन को फोन करके कहती है कि वह बेटे अरमान से बात कर ले. अरमान अपने पिता से अपने स्कूल में अपने पहले नृत्य के कार्यक्रम को देखने के लिए बुलाता है, पर व्यस्तता का बहाना कर रोशन उसे मना कर देता है. मगर गली किचन में उसकी सहायक रही विन्नी (शोभिता धुलीपाला) के समझाने पर वह प्लेन पकड़कर न्यूयार्क से कोचीन पहुंचता है. बेटा अरमान खुश हो जाता है. एक दिन अरमान के साथ वह बीजू (मिलिंद सोमण) की बोट पर पूरे दिन का आनंद लेता है और उसे अहसास होता है कि उसकी पूर्व पत्नी राधा अब बीजू से शादी करने वाली है.

उधर कुछ दिन के लिए राधा को नृत्य के शो के लिए यूरोप जाना है, तो वह चाहती है कि अरमान के साथ रोशन रहे. उस वक्त रोषन, अरमान के साथ दिल्ली और अमृतसर जाता है तथा उसे अपने बचपन की कहानी सुनाता है. यूरोप से वापस आने के बाद एक दिन बीजू, रोशन को अपने घर बुलाकर उसके सामने अपनी दो मंजिला बस में चलता फिरता होटल खोलने का प्रस्ताव रखता है, जिसे रोशन ठुकरा देता है. इस बात पर राधा से उसकी कहा सुनी होती है.

अंत में रोशन, बीजू के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है. रोशन उस बस को रंग कर होटल के अनुरूप ढालता है. इसी बीच गली किचन में उसे गुरू मानने वाला उसका दोस्त भी वापस आ जाता है. रोशन इस बस को लेकर कोचीन से गोवा होते हुए दिल्ली पहुंचते है. रोशन के साथ उनका दोस्त व बेटा अरमान भी है. दिल्ली में रामलाल चाचा के साथ रोशन के पिता भी आते हैं और रोशन को माफ कर देते हैं. दिल्ली पहुंचते ही एक तरफ अरमान को वापस कोचीन जाना है, क्योंकि उसका स्कूल खुलने वाला है, इसलिए उसे लेने राधा आती है, तो वहीं रोशन को एक अमरीकन होटल में शेफ की नौकरी का आफर आता है. पर बेटे अरमान के प्यार और अरमान के साथ सदैव रहने के लिए रोशन अमरीका की नौकरी का आफर ठुकरा देता है. फिर रोशन बेटे अरमान व पूर्व पत्नी राधा के साथ रहते हुए अपने रास्ता होटल को जारी रखते हैं.

साधारण कहानी में पिता पुत्र के रिश्ते व वैवाहिक संबंधों के बिखरने पर अच्छा संदेश भी है. रोजमर्रा की जिंदगी में काम और निजी जिंदगी को लेकर यह फिल्म सोचने पर मजबूर करती है. मगर पटकथा के स्तर पर काफी गड़बड़ियां है. फिल्म का क्लायमेक्स भी अच्छे ढंग से नहीं लिखा गया. फिल्म में आम मसाला प्रेम कहानी नहीं है. कोचीन में राधा के घर पर मजदूर यूनियन का पूरा सीन जबरन ठूंसा हुआ और बेमानी है. एडीटिंग टेबल पर फिल्म को कसने की काफी जरुरत थी.

राधा मलयाली है, इसलिए फिल्म में मलयाली संवाद भी रखे गए हैं. यदि ऐसा न होता, तो भी फिल्म की गुणवत्ता पर फर्क नहीं पड़ता. फिल्म में रोशन कालरा को महान शेफ बताया गया है, मगर इस तरह के सीन चित्रित नही हो पाए. रोशन कालरा को बार बार पास्ता या पिजा बनाते हुए ही दिखाया गया है. वैसे फिल्म में रंग, स्वाद, खाना पकाने के आनंद की संवेदनशीलता का चित्रण है. कुछ कमियों के बावजूद यह दिल को छू लेने वाली और देखने लायक फिल्म है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो एक 40 साल के तलाकशुदा शेफ, जो अहसास करता है कि वह अच्छा पिता नहीं बन पाया और फिर एक अच्छा पिता बनने के प्रयास वाले रोशन कालरा के किरदार में सैफ अली खान ने काफी अच्छी परफार्मेंस दी है. रोशन कालरा के बेटे के किरदार में स्वर कांबले ने भी जबरदस्त अभिनय प्रतिभा का परिचय दिया है. पद्मप्रिया जानकी रमण की मुस्कान तो दर्शकों को अपना बना लेती है. वह फिल्म में काफी सुंदर और आर्गेनिक लगी हैं. छोटे से किरदार में मिलिंद सोमण और चंदन राय सान्याल भी जमे हैं.

फिल्म में केरल की खूबसूरती को भी बहुत अच्छे ढंग से चित्रित किया गया है. तो वहीं अमृतसर व दिल्ली की लोकेशन भी अच्छी है.

दो घंटे 12 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘शेफ’’ का निर्माण भूषण कुमार, किशन कुमार, राजा कृष्ण मेनन, विक्रम मल्होत्रा व जननी रवि चंद्रन ने किया है. फिल्म के निर्देशक राजा कृष्ण मेनन, लेखक रितेश शाह, सुरेश नायर व राजा कृष्ण मेनन, संगीतकार रघु दीक्षित व अमाल मलिक, कैमरामैन प्रिया सेठ व कलाकार हैं-सैफ अली, राम गोपाल बजाज, शोभिता धुली पाला, मास्टर स्वर कांबले, पद्मप्रिया जानकी रमन, चंदन राय सान्याल, दिनेश प्रभाकर, नेहा सक्सेना, पवन चोपड़ा व अन्य.

विक्टोरिया एंड अब्दुल : सत्य घटनाक्रमों का बेहतरीन सिनेमायीकरण

इतिहास के पन्नों को सिनेमा के परदे पर उतारना आसान नहीं होता है. मगर ब्रिटिश फिल्मकार स्टीफन फ्रेअर्स की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने इतिहास के एक अध्याय को बहुत बेहतर तरीके से सिनेमा के परदे पर उतारा है. कहानी 1887 से 1909 के बीच की है, जब ब्रिटिशों का भारत में शासन था.

फिल्म की कहानी भारत में आगरा से शुरू होती है. आगरा में रहने वाला एक मुस्लिम युवक अब्दुल करीम (अली फजल) ब्रिटिश शासन में आगरा की जेल में कैदियों का रजिस्टर में नाम लिखने का काम करता है. उसके काम से प्रभावित होकर लंदन में ब्रिटिश रानी विक्टोरिया (जूडी डेंच) को मोहर देने के काम के लिए भेजा जाता है. वहां अब्दुल मोहर देने के बाद रानी से कहता है, ‘‘जिंदगी कारपेट की तरह है. हम भारत में इसे बुनकर एक नया पैटर्न देते हैं.’’ इससे रानी, अब्दुल से प्रभावित होकर अपना निजी सहायक बना लेती है, फिर उसे अपना मुंशी बनाकर उससे उर्दू सीखने लगती है. इससे पूरा बैकिंघम पैलेस नाराज हो जाता है. सभी लोग अब्दुल के खिलाफ साजिश रचना शुरू करते हैं. जबकि रानी, अब्दुल की बात से प्रभावित होकर बैकिंघम पैलेस के ही अंदर एक भारतीय दरबार हाल बनवाती है. अब्दुल करीम को भारत भेजकर उसके परिवार को वहां रहने के लिए बुलाती है.

कहानी में कुछ उतार चढ़ाव भी आते हैं. एक बार रानी, अब्दुल से लंदन छोड़ने के लिए कह देती है, पैलेस के लोग खुश होते हैं, पर फिर रानी, अब्दुल को रोक लेती है. अपने बीमार होने और जीवन के अंतिम पलों में यहां तक की अब्दुल को बगल में खड़ा कर ही विक्टोरिया इस संसार से विदा लेती है. 1904 मे विक्टोरिया की मौत के साथ ही अब्दुल को लंदन से आगरा, भारत वापस आना पड़ता है ओर 1909 में अब्दुल की आगरा में मौत होती है.

फिल्म में इस बात का बेहतर तरीके से रेखांकन किया गया है कि उस वक्त विक्टोरिया रंगभेद से दूर थी. पटकथा लेखक ली हाल्स ने सत्य कथा को अच्छे ढंग से ड्रामा के रूप में पेश किया है. फिल्म में नाटकीय घटनाक्रमों के बीच कुछ हास्य के दृष्य भी पिरोए गए हैं. पर सत्य घटनाक्रमों को कहानी में ज्यादा महत्व दिया गया है, जो कि दर्शक को काफी कुछ सोचने पर मजबूर करता है. 1887 से 1904 के माहौल का फिल्म में सही ढंग से चित्रण है पर निर्देशक के तौर पर कुछ जगह स्टीफन फ्रेअर्स मात खा गए हैं. जहां तक गीत संगीत का मसला है, तो कुछ भी नया नहीं है.

अभिनेत्री जुडी डेंच महान अदाकारा हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है. इस फिल्म में विक्टोरिया के किरदार को निभाते हुए उन्होंने जबरदस्त परफार्मेंस दी है. जिस तरह से भावनात्मक अभिनय किया है, उसे देखकर दर्शक बार बार उन्हें देखने की प्यास लिए ही सिनेमा घर से बाहर निकलते हैं. अब्दुल के किरदार में बड़ा भावुक अभिनय अली फजल ने किया है. फिल्म के कई दृश्यों में सिर्फ जूडी डेंच और अली फजल होते हैं और हर दृश्य में कमाल का अभिनय अली फजल ने किया है. वह एक भी दृश्य में जूडी डेंच के सामने कमजोर नहीं पड़ते हैं. अदील अख्तर ने भी अपनी उपस्थिति अच्छे ढंग से दर्ज करायी है.

एक घंटे 52 मिनट की फिल्म ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ का निर्माण बीबीसी, ‘वर्किंग टाइटल फिल्मस’ और युनिवर्सल कंपनी ने किया है. फिल्म के निर्माता हैं बीबन क्रिडन, एरिक फेलनर, टिम बिवान और टै्सी सीर्वाड. फिल्म की कहानी श्राबनी बसु के उपन्यास ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ पर आधारित है. पटकथा लेखक ली हाल, संगीतकार थौमस न्यूमन, कैमरामैन डैनी कोहेन हैं तथा कलाकार हैं- जूडी डेंच, अली फजल, अदील अख्तर, एड्डी इजार्ड, टिम पिगौट स्मिथ, सिमौन कौलौ, मिचैल गैम्बोन, जुलियन वधम, जोनाथन हार्डेन और अन्य.

यौन संबंध पर लड़कियों को है बोल्डनैस की जरूरत

गुरमीतराम रहीम सिंह को एक लड़की से लगातार बलात्कार करने पर 20 साल की सजा सुनाई गई है. इस लड़की ने 2002 में एक पत्र लिख कर अधिकारियों, प्रधानमंत्री आदि से गुमनाम शिकायत की थी. उच्च न्यायालय के आदेश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो ने उस लड़की को भी खोज लिया और दूसरी अन्य लड़कियों को भी खोज लिया जिन्हें राम रहीम ने बलात्कार का शिकार बनाया था.

लड़कियों का बलात्कार जबरन रात को उठा ले जा कर नहीं किया गया था बल्कि बाबा से माफी मांगने के लिए इन के मातापिता खुद रातरात भर के लिए उन्हें यहां छोड़ जाते थे. ये लड़कियां यौन संबंधों से उस समय खुश होती थीं या नहीं, यह नहीं कह सकते पर बलपूर्वक संबंध बनाए गए, इस के सुबूत नहीं हैं. बहलाफुसला कर, धोखा दे कर, गलत बात कह कर भी यौन संबंध बनाना बलात्कार ही है. हां, जब ऐसा व्यक्ति बलात्कार करने लगे जो लड़की की निगाह में आदर्श है, तो मामला गंभीर हो जाता है.

लड़कियां इतनी आसानी से यौन संबंध बनाने को तैयार क्यों हो जाती हैं, यह एक पहेली ही रहेगी. गुरमीत सिंह ही नहीं, सभी धर्मों के स्वामियों के इर्दगिर्द लड़कियां मंडराती रहती हैं. वे क्या सुख चाहती हैं और कौन सी तुष्टि उन्हें मिलती है?

यौन संबंध बनाना कोई सीखता नहीं है. यह तो प्रकृति की देन है. इस से बच तो कोई नहीं सकता. अफसोस यह है कि सभ्यता के आने के बाद अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी समाज ने लड़कियों पर डाल दी है. अगर वे एक पुरुष का संरक्षण चाहती हैं तो वे खुद एक पुरुष के खूंटे में बंध कर रहें और वह पुरुष, चाहे जितनी कुंआरियों या विवाहिताओं, विधवाओं के साथ संबंध बनाता रहे.

बलात्कार के बारे में लड़कियों को यही शिक्षा दी जाती है कि एक बार कुछ हो गया तो मुंह दिखाने मत आना. इसीलिए यौन संबंध चाहे प्रेम, भक्ति, आत्मसमर्पण, यौनसुख के लिए स्थापित हुए हों या जबरन, लड़कियां इस बारे में घर में चर्चा नहीं करतीं. वे इस बात को छिपाती हैं, क्योंकि समाज के नियमों से बंधे मातापिता सह नहीं पाएंगे.

यह सीख बलात्कार या विवाहपूर्व यौन संबंध को बढ़ावा ही देती है जिस में नुकसान लड़कियों का ही होता है. 21वीं सदी में औरतें आज उसी तरह वर्जिनिटी से सच्चरित्र मानी जाती हैं जैसी 2,500 वर्ष पूर्व. बलात्कार हुआ, इस बात को लड़की अगर अगली सुबह या जब मरजी चाहे खुल कर कह सके तो पुरुषों में इतना बल नहीं रहेगा कि वे लड़कियों को जबरन या फुसला कर बिस्तर तक ले जाएं.

राम रहीम नाम रख कर कोई दूध का धुला नहीं हो जाता, इस बलात्कार के मामले ने यह एक बार और साबित कर दिया है. यह लड़कियों पर है कि वे हिम्मत रखें और यौन संबंध सहर्ष स्वीकारें चाहे वह इच्छा से स्थापित हुए हों या अनिच्छा से.

पाकिस्तानी ने भारतीय युवती से किया जबरन निकाह

दिल्ली की रहने वाली 20 वर्षीया उजमा घूमने के लिए मलेशिया गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात ताहिर से हुई. ताहिर मूलरूप से पाकिस्तान का रहने वाला था और वह भी टूरिस्ट वीजा पर वहां घूमने गया था. दोनों एक ही मजहब के थे. साथसाथ घूमने से दोनों के बीच दोस्ती हो गई. इसी दौरान दोनों ने एकदूसरे को जाना, समझा. बाद में दोनों अपनेअपने वतन लौट गए. उजमा और ताहिर अपनेअपने घर लौट जरूर गए थे लेकिन उन के दिल एकदूसरे के लिए धड़कने लगे थे. लिहाजा दोनों फोन पर एकदूसरे से अपने दिल की बातें करने लगे.

शारीरिक रूप से दोनों भले ही दूरदूर रह रहे थे, लेकिन उन के बीच होने वाली बातें उन्हें मानसिक रूप से नजदीक ला रही थीं. उन के बीच का आकर्षण उन्हें साथसाथ रहने के लिए उकसा रहा था. उन का मन चाहता था कि वे सरहद को लांघ कर जिस्मानी रूप से भी नजदीक पहुंच जाएं. दोनों जवां दिलों के अंदर आत्मीयता के बीज से जो पौधा उपजा, वह प्यार के रूप में सामने आया.

उजमा और ताहिर के प्यार का पौधा दिनोंदिन बढ़ कर और मजबूत हो रहा था. दूरी नाकाबिलेबरदाश्त लगने लगी थी. फलस्वरूप दोनों ने निकाह करने का फैसला ले लिया. ताहिर ने उजमा को भरोसा दिया कि वह हिंदुस्तान से किसी बहाने पाकिस्तान आ जाए तो वह उस से निकाह कर लेगा और हमेशा अपने साथ रखेगा. उजमा हर हालत में ताहिर के नजदीक पहुंचना चाहती थी, इसलिए वह उस की बात पर राजी हो गई.

इस के बाद उजमा पाकिस्तान जाने की योजना बनाने लगी. चूंकि उसे वहां जाने के लिए वीजा की जरूरत थी, इसलिए उस ने पाकिस्तान में रह रहे अपने रिश्तेदारों से मिलने की बात कह कर वीजा ले लिया. जब वह वाघा बौर्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंची तो ताहिर उसे लेने पहुंच गया. ताहिर ने उस का बड़ी ही गर्मजोशी से स्वागत किया. कुछ देर के लिए दोनों इस तरह से गले मिल कर चिपके रहे जैसे बरसों से बिछुड़े हुए हों. मिल कर दोनों के दिलों को बड़ी तसल्ली मिली. इस के बाद 3 मई को उन्होंने निकाह कर लिया.

निकाह के बाद ताहिर जब उजमा को साथ ले कर अपने घर पहुंचा तो वहां का नजारा देख कर उजमा के होश उड़ गए क्योंकि जिस ताहिर से उस ने शादी की थी, घर पर उस की पत्नी और बच्चे मौजूद थे. यानी ताहिर शादीशुदा ही नहीं बल्कि 4 बच्चों का पिता निकला. जबकि उस ने खुद को अविवाहित बताया था.

उजमा को लगा कि उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है. उस ने ताहिर से शिकायत की तो वह उस से झगड़ने लगा. उजमा का कहना है कि ताहिर ने ही नहीं बल्कि उस के घर वालों ने भी उस के साथ गालीगलौज और मारपीट की. इतना ही नहीं, उन लोगों ने उस का पासपोर्ट व अन्य दस्तावेज भी अपने पास रख लिए.

उजमा किसी तरह पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग पहुंची और अपनी आपबीती बताई. उजमा जब ताहिर के घर से चली गई तो ताहिर ने कोर्ट की शरण ली. कोर्ट ने भारतीय राजनयिक को कोर्ट में बुलाया. उजमा भी कोर्ट में पहुंची.

कोर्ट के सामने उस ने कहा कि ताहिर ने बंदूक की नोक पर उस से जबरन निकाह किया. उस ने खुद को कोर्ट की पेशी से छूट और यात्रा दस्तावेजों की प्रति मुहैया कराने की भी मांग की. जबकि ताहिर ने कोर्ट में अर्जी लगा कर बतौर पत्नी उजमा को भारत जाने से रोकने की मांग की थी. सुनवाई के दौरान कोर्ट में भारतीय राजनयिक पीयूष सिंह ने वकील के माध्यम से उजमा का पक्ष रखा. इस के बाद जब 24 मई को इस मामले की सुनवाई हुई तो पाकिस्तानी अदालत ने उजमा को भारत भेजने का आदेश दिया.

कोर्ट के आदेश के बाद पाकिस्तान के अधिकारियों ने उजमा को वाघा बौर्डर पर भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया. उजमा अपने घर तो आ गई, लेकिन अपने इस अनुभव को शायद ही कभी भूल पाए.

इस लड़की के एक आइडिया ने बदल दी तस्वीर

अब कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं की भागीदारी न हो. अनेक महिलाओं ने तो कई क्षेत्रों में अपनी मेहनत के बूते पर इतनी बड़ी सफलता पा ली है कि वह औरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं. उन्हीं में से एक हैं सुचि मुखर्जी. मुखर्जी एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने खुद की काबिलियत के दम पर एक ऐसी कंपनी खड़ी कर दी, जिस का सालाना टर्नओवर अरबों रुपए है.

लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से मैथ्स और इकोनोमिक्स में बीए करने के बाद सुचि ने लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स से फाइनैंस में मास्टर डिग्री ली. पढ़ाई पूरी करने के बाद सुचि ने लेहमन ब्रदर्स कंपनी से अपने कैरियर की शुरुआत की. सीनियर एसोसिएट के पद पर उन की पहली नौकरी लगी. यहां इन्होंने टेलीकाम मीडिया टैक्नोलौजी और फाइनेंस इंस्टीट्यूशन पर अपना फोकस किया.

लेहमन ब्रदर्स कंपनी में 5 साल से अधिक नौकरी करने के बाद उन्होंने बर्जिन मीडिया कंपनी जौइन की. सुचि नौकरी कर जरूर रही थीं, लेकिन उन की उड़ान का क्षेत्र कोई दूसरा ही था. वह नौकरी के बजाए अपना ही कोई बिजनैस करना चाहती थीं.

जब वह फुरसत में होती थीं तो यही सोचती थीं कि कौन सा बिजनैस शुरू किया जाए. बहरहल इस कंपनी में 2 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने औनलाइन वीडियो काल्स एप्लीकेशन स्काइप और ई-कौमर्स कंपनी ईबे में भी अपनी सेवाएं दीं.

सुचि के अंदर बेहतरीन कार्यक्षमता थी. अपनी लीडरशिप स्किल के बलबूते ही उन्होंने विज्ञापन पोर्टल गुमटूर को सूबे का सब से सफल पोर्टल बना दिया था.

एक दिन सुचि लंदन में एक मैगजीन पढ़ रही थीं. उस मैगजीन में उन्होंने एक ज्वैलरी की फोटो देखी. वह ज्वैलरी उन्हें पसंद आ गई. वह उसे खरीदना चाहती थीं. लेकिन इस में समस्या यह थी कि वह ज्वैलरी मुंबई (भारत) की छोटी दुकानों पर उपलब्ध थी. वह उस समय मुंबई से काफी दूर थीं, वहां से उस ज्वैलरी को खरीदना उन के लिए असंभव था. इस वाकए ने सुचि के अंदर एक विचार पैदा किया.

उन्होंने सोचा कि क्यों न एक ऐसा प्लेटफार्म बनाया जाए, जहां पर महिलाओं की लाइफस्टाइल से संबंधित सभी प्रोडक्ट्स हों और वह प्रोडक्ट किसी महिला की डिमांड पर उस के घर पहुंचाए जा सकें. उन की योजना भारत के मंझले और छोटे कारोबारियों को एक डिजिटल मंच पर लाने की थी. इसी विचार के लिए वह भारत लौट आईं.

भारत आते ही उन्होंने सब से पहले रिलाइंस हाइपरलिंक में सप्लाई चेन के हैड अंकुर मेहरा से मुलाकात की. उन से उन्होंने बिजनैस में आने वाली संभावित प्रौब्लम्स के बारे में समझा. स्टार्टअप के संबंध में फेसबुक और माइक्रोसौफ्ट में काम कर चुके प्रशांत मलिक से बात की. इस के बाद पूरी प्लानिंग के साथ उन्होंने ‘लाइमरोड डौट काम शौपिंग पोर्टल’ की शुरुआत कर दी.

2 बच्चों की मां सुचि मुखर्जी इस बात को अच्छी तरह जानती थीं कि देश दुनिया में महिलाओं को किस तरह के प्रोडक्ट पसंद हैं. इस तरह उन्होंने अपने पोर्टल पर महिलाओं की लाइफस्टाइल से जुड़े तमाम प्रोडक्ट डाल दिए. कुछ ही दिनों में यह पोर्टल महिलाओं द्वारा बहुत ज्यादा पसंद किया जाने लगा. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब लाइमरोड एप की पहुंच 400 मिलियन से अधिक स्मार्टफोनों तक हो चुकी है, जिस में 30-35 प्रतिशत तक महिलाएं हैं.

अंकुर मेहरा और प्रशांत मलिक इन दिनों लाइमरोड डौट काम के सहसंचालक हैं. इन की कंपनी की प्रसिद्धि इतनी तेजी से बढ़ी है कि कंपनी का सालाना का टर्नओवर अरबों रुपए हो गया है. लाइमरोड डौट काम की सफलता को देखते हुए टाइगर ग्लोबल, लाइटस्पीड वेंचर पार्टनर, मैट्रिक्स पार्टनर इंडिया आदि कंपनियां उसे 50 मिलियन डौलर (330 करोड़ रुपए से अधिक) की फंडिंग कर चुकी हैं.

वास्तव में सुचि मुखर्जी ने अपने हौसले के जरिए इतना बड़ा जो कारोबार स्थापित किया है, वह सराहनीय है. सुचि मुखर्जी आज अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.

नशे की खातिर बेटे ने कर दी बाप की हत्या

केवल सिंह खेत की मेड़ पर बैठे सुस्ता रहे थे, तभी उन के नजदीक आ कर एक लंबी सी कार रुकी. कार से 3 लोग उतरे. उन में एक उन का बेटा जगदीप भी था. उस के साथ आए लोगों ने केवल सिंह के नजदीक आ कर नमस्कार किया तो नमस्कार कर के केवल सिंह ने उन लोगों को सवालिया नजरों से देखा.

दोनों कुछ कहते, उस के पहले ही उन दोनों का परिचय कराते हुए जगदीप सिंह ने कहा, ‘‘बापूजी, यह सिद्धू साहब हैं. इन्हें हमारी जमीन बहुत पसंद है. यह हमें बाजार भाव से कई गुना ज्यादा दाम दे कर हमारी जमीन खरीदना चाहते हैं.’’

जगदीप सिंह की बातें सुन कर केवल सिंह की त्यौरियां चढ़ गईं. उन्होंने बेटे को एक भद्दी सी गाली देते हुए कहा, ‘‘तुझ से किस ने कहा कि मेरी यह जमीन बिक रही है. जब देखो तब तू किसी न किसी को परेशान करने के लिए पकड़ लाता है. जब एक बार कह दिया कि यह हमारे पुरखों की जमीन है, मैं इसे जीतेजी नहीं बेच सकता तो तू क्यों लोगों को परेशान करने के लिए लाता है. अगर आज के बाद फिर कभी किसी को ले कर आया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस के बाद बापबेटे में बहस होने लगी. बापबेटे को झगड़ा करते देख जमीन का सौदा करने आए लोग चुपचाप वहां से खिसक गए. बापबेटे में जमीन को ले कर हुआ यह झगड़ा कोई नया नहीं था.

पंजाब के जिला बरनाला के थाना भदौड़ के गांव मुजूक के रहने वाले पाल सिंह के 3 बेटे थे, केवल सिंह, सुखमिंदर सिंह और मंजीत सिंह. पाल सिंह ने तीनों बेटों की शादियां कर के जीतेजी जमीन को उन में बांट दिया था. तीनों भाई गांव में अलगअलग मकान बना कर अपनेअपने परिवारों के साथ रह रहे थे. तीनों भाई रहते भले अलग थे, लेकिन उन में और उन के परिवारों में काफी मेलजोल था.crime story in hindi

केवल सिंह का एक ही बेटा था जगदीप सिंह. उसे बचपन से ही पहलवानी का शौक था. उन्होंने भी उसे कभी मना नहीं किया. जगदीप के 2 ही काम थे, पढ़ना और पहलवानी करना. युवा होतेहोते वह अच्छाखासा पहलवान बन गया. जिला स्तर पर कुश्तियां जीतने के बाद उस ने राज्य स्तर के पहलवानों को पछाड़ कर अपने नाम का डंका बजाया.

जगदीप शादी लायक हुआ तो केवल सिंह ने अपने एक दोस्त की सुंदर बेटी परमजीत कौर से उस की शादी कर दी. उसी बीच पंजाब में नशे की ऐसी लहर चली कि घरघर नशीली चीजों का उपयोग होने लगा. जगदीप भी इस का शिकार हो गया. फिर तो वह पहलवानी ही नहीं, घरपरिवार को भी भूल कर नशे का गुलाम बन गया.

जगदीप ऐसा नशा करता था, जिस में एक ही बार में 4-5 हजार रुपए खर्च हो जाते थे. जबकि उस के पास इतने रुपए नहीं होते थे. लेकिन नशा तो नशा है, उसे कैसे भी करना था. कुछ दिनों तक तो वह यारदोस्तों और रिश्तेदारों से झूठ बोल कर रुपए उधार ले कर अपना काम चलाता रहा. लेकिन इस तरह कब तक चलता. लोग अपनेअपने पैसे मांगने लगे तो वह मुसीबत में फंस गया.

केवल सिंह ने जब अपने बेटे में बदलाव देखा तो उन्हें चिंता हुई. हर समय खुश रह कर हंसनेहंसाने वाला जगदीप उदास मुंह लटकाए बैठा रहता था. उन्होंने उस की उदासी का कारण पूछते हुए कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, आजकल पहलवानी भी बंद है और हर समय चेहरे पर मुर्दानगी छाई रहती है?’’

पिता के इस सवाल पर नशे को ले कर परेशान जगदीप के दिमाग में तुरंत उपाय आ गया. पिता को बेवकूफ बनाते हुए उस ने रोआंसा हो कर कहा, ‘‘बापूजी, बात ही ऐसी है. उदास न होऊं तो क्या खुशियां मनाऊं.’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’

‘‘बापूजी, नैशनल लेवल पर कुश्ती लड़ने के लिए मैट चाहिए, वह मेरे पास नहीं है.’’

‘‘तो उस के लिए क्या करना होगा?’’

‘‘करना क्या होगा, खरीदना पड़ेगा, जिस के लिए 8-10 लाख रुपए की जरूरत पड़ेगी.’’

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ केवल सिंह ने बेटे की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘तू तैयारी शुरू कर, पैसे की व्यवस्था मैं करता हूं.’’

जगदीप का तीर सही निशाने पर लगा. भावुकता में केवल सिंह ने वादा तो कर लिया, पर इतने रुपयों की व्यवस्था करना उन के लिए आसान नहीं था. फिर भी उन्होंने कुछ घर से, कुछ रिश्तेदारों से तो कुछ जमीन गिरवी रख कर रुपयों का इंतजाम कर दिया.

10 लाख रुपए हाथ में आते ही जगदीप की तो मानो लौटरी लग गई. उस ने पिता से मिले रुपए नशे पर उड़ाने शुरू कर दिए. कुछ ही दिनों में सारे रुपए नशे पर फूंक कर उस ने तमाशा देख लिया. केवल सिंह जब भी मैट के लिए पूछते, वह कहता कि और्डर दे दिया है, जल्दी ही आ जाएगा.crime story in hindi

यह बहाना कब तक चलता. केवल सिंह अनपढ़ जरूर थे, लेकिन नासमझ नहीं थे. जल्दी ही उन्हें असलियत का पता चल गया. बेटे को नशे में डूबा देख कर वह समझ गए कि जगदीप झूठ बोल रहा है. मैट के बहाने उस ने जो रुपए लिए हैं, नशे में उड़ा दिए हैं. फिर तो घर वालों को ही नहीं, लगभग सभी को पता चल गया कि जगदीप पहलवान नशे का आदी हो गया है. अब लोग उस से दूरियां बनाने लगे.

जगदीप के लिए अब रुपए का इंतजाम करना मुश्किल हो गया था. फिर तो नशा न मिलने की वजह से वह गंभीर रूप से बीमार हो गया. केवल सिंह ने लगभग 2 लाख रुपए खर्च कर के उस का इलाज कराया. ठीक होने के बाद एक बार फिर उस ने कारोबार के नाम पर पिता से 8-10 लाख रुपए झटक लिए. इन रुपयों को भी उस ने नशे पर उड़ा दिए.

इस के बाद वह पिता की जमीन बिकवाने के चक्कर में पड़ गया कि वह यहां रह कर नशा नहीं छोड़ सकता, इसलिए उसे विदेश भेजा जाए, ताकि वहां जा कर वह नशा छोड़ कर कोई कामधंधा कर सके. लेकिन 2 बार धोखा खा चुके केवल सिंह को अब जगदीप की बातों पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं रह गया था.

जगदीप ही नहीं, उस की पत्नी परमजीत कौर भी केवल सिंह पर दबाव डाल रही थी कि कुछ जमीन बेच कर उसे विदेश भिजवा दें. जबकि केवल सिंह अब उस की कोई भी बात मानने को बिलकुल तैयार नहीं थे. इसी बात को ले कर बापबेटे में आए दिन झगड़ा होता रहता था. इसी रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर केवल सिंह की पत्नी कुलवंत कौर शांति से रहने के लिए गांव में रह रहे अपने देवर सुखमिंदर सिंह के घर चली गई थीं.

3 फरवरी, 2017 को इसी बात को ले कर केवल सिंह और जगदीप के बीच जम कर झगड़ा हुआ. परमजीत कौर ने भी ससुर पर दबाव डालते हुए कहा, ‘‘बापूजी, यह जमीन क्या अपनी छाती पर रख कर ले जाओगे? बेटे की जिंदगी का सवाल है, बेच क्यों नहीं देते थोड़ी जमीन?’’

‘‘तू जमीन की बात कर रही है. मैं मर जाऊंगा, लेकिन इस झूठे धोखेबाज नशेड़ी को एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा.’’ केवल सिंह ने गुस्से में कहा और घर से निकल गए.

उस समय केवल सिंह घर से गए तो फिर लौट कर नहीं आए. इस ओर न जगदीप ने ध्यान दिया, न उस की पत्नी परमजीत कौर ने. क्योंकि ऐसा अकसर होता था. केवल सिंह जब भी नाराज होते थे, घर छोड़ कर अपने दोनों भाइयों में से किसी एक के यहां चले जाते थे. लेकिन इस बार वह न भाइयों के घर गए थे, न खेतों पर.

जब अगले दिन भी केवल सिंह का कुछ पता नहीं चला तो जगदीप उन की तलाश में निकला. इधरउधर तलाश करता हुआ वह शाम को चाचा सुखमिंदर सिंह के घर पहुंचा. उस ने उन से पिता के लापता होने की बात बता कर मां को घर भेजने को कहा. क्योंकि बापबेटों के झगड़ों से तंग आ कर उन दिनों कुलवंत कौर सुखमिंदर सिंह के घर पर ही थीं.

जगदीप की बात सुन कर सुखमिंदर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तू चिंता मत कर पुत्तर, सब ठीक हो जाएगा. तू घर चल, मैं तेरी मां को ले कर आता हूं.’’

सुखमिंदर सिंह उसी समय कुलवंत कौर को उन के घर छोड़ गए. इस के बाद वह जगदीप को साथ ले कर केवल सिंह की तलाश में निकल पड़े. काफी भागदौड़ के बाद भी जब केवल सिंह का कुछ पता नहीं चला तो सुखमिंदर सिंह ने 5 फरवरी को उन की गुमशुदगी थाना भदौड़ में दर्ज करा दी.

केवल सिंह की गिनती गांव के संपन्न किसानों में होती थी. वह सज्जन व्यक्ति थे, इसलिए गांव के सरपंच गोरा सिंह ने गांव वालों के साथ मिल कर केवल सिंह को जल्द से जल्द ढूंढने का पुलिस पर दबाव बनाया.

इस के बाद अधिकारियों के आदेश पर थाना भदौड़ के थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह ने सबइंसपेक्टर बलविंदर सिंह, एएसआई परमजीत सिंह की निगरानी में हैडकांस्टेबल सरबजीत सिंह, पवन कुमार, कांस्टेबल सुखराज सिंह आदि की एक टीम बना कर केवल सिंह की तलाश में लगा दी. पुलिस ने उन की तलाश तेजी से शुरू कर दी.

6 फरवरी, 2017 की सुबह सुखमिंदर सिंह को गांव वालों से पता चला कि जगदीप भूसा ले जाने के लिए ट्रौली खोज रहा है, क्योंकि उस की ट्रौली खराब है. तीनों भाइयों के मकान भले ही अलग थे, पर सभी की जमीन की फसलों का भूसा केवल सिंह के घर से लगे एक बड़े कमरे में रखा जाता था. गांव वालों की बात सुन कर सुखमिंदर को लगा कि जगदीप नशे के जुगाड़ में भूसा बेच रहा होगा. उन्होंने सोचा कि भूसा नहीं रहेगा तो जानवरों को क्या खिलाया जाएगा.

जगदीप भूसा बेचे, उस के पहले ही वह जानवरों के लिए कुछ दिनों का भूसा लेने के लिए जगदीप के घर जा पहुंचे. वह भूसा वाले हालनुमा कमरे से भूसा भरने लगे. अभी वह 3-4 गट्ठर भूसा ही निकाल पाए थे कि अचानक भूसे के ढेर से हाथ में एक इंसानी पैर आ गया.

उन्होंने बेटे और नौकर की मदद से वहां का भूसा हटा कर देखा तो उन्हें वहां एक लाश दबी नजर आई, जिस का एक पैर बाहर निकला था. लाश देख कर उन की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने तुरंत ऊंची आवाज में अपने भतीजे जगदीप को बुलाया. जगदीप आया तो उन्होंने पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

जगदीप भी वहां का दृश्य देख कर हैरान था. उस ने असमंजस की स्थिति में कहा, ‘‘चाचाजी, यह तो किसी की लाश है. आप रुकें, मैं फावड़ा ले कर आता हूं.’’crime story in hindi

यह कह कर जगदीप भूसे वाले कमरे से बाहर चला गया. सुखमिंदर उस लाश को देख कर बारबार यही सोच रहे थे कि पता नहीं यह किस की लाश है, किस ने इसे यहां दबाया है? किसी अनहोनी की आशंका से उन का दिल घबरा रहा था. काफी देर हो गई, जगदीप फावड़ा ले कर नहीं लौटा तो वह बाहर आए. घर के दरवाजे खुले थे. न वहां पर जगदीप था न उस की पत्नी परमजीत कौर.

भाभी कुलवंत कौर एक कमरे में बैठी पाठ कर रही थीं. पलभर में ही सुखमिंदर सिंह को अपने भाई केवल सिंह की गुमशुदगी का रहस्य समझ में आ गया. समझदारी दिखाते हुए उन्होंने बिना एक पल गंवाए अपनी मोटरसाइकिल उठाई और सीधे थाना भदौड़ के थानाप्रभारी के पास पहुंचे. उन्हें पूरी बात बताई तो मामले को गंभीरता से लेते हुए उन्होंने केवल इतना पूछा, ‘‘जगदीप को गए कितना समय हुआ होगा?’’

‘‘लगभग आधा घंटा.’’

सुरेंद्र सिंह ने एएसआई परमजीत सिंह और 2 हवलदारों को लाश की हिफाजत के लिए सुखमिंदर सिंह के साथ भेज कर खुद एक टीम ले कर भदौड़ बसअड्डे की ओर निकल गए.

उन का अनुमान ठीक निकला. जगदीप और परमजीत कौर भागने के लिए एक बस में सवार हो चुके थे. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बस से उतारा और थाने ले आए. इस के बाद वह गांव मुजूक केवल सिंह के घर पहुंचे और अपने सामने उस जगह की खुदाई करवाई.

बरामद लाश देख कर सभी हैरान थे. लाश केवल सिंह की थी, जिसे बड़ी बेरहमी से मार कर भूसे वाले कमरे में दफना दिया गया था. सुरेंद्र सिंह ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया और थाने लौट कर दर्ज गुमशुदगी के स्थान पर हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इसी के साथ ही जगदीप और परमजीत से पूछताछ शुरू कर दी.

जगदीप और परमजीत कौर ने केवल सिंह की हत्या का अपराध तो स्वीकार कर लिया, पर उन्होंने हत्या क्यों की, इस के पीछे बड़ी विचित्र कहानी बताई.

दरअसल, नशा एक ऐसी घातक बीमारी और कलंक है, जिस के सेवन से आदमी की बुद्धि ही नहीं, जमीर भी भ्रष्ट हो जाता है. आदमी इतना खुदगर्ज हो जाता है कि अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए या बचाव के लिए कुछ भी कर सकता है.

जगदीप और परमजीत कौर ने केवल सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने यह हत्या इसलिए की थी, क्योंकि केवल सिंह अपनी बहू परमजीत कौर पर बुरी नजर रखते थे. उस ने अकेले में कई बार परमजीत से छेड़छाड़ की थी.

जगदीप ने आगे बताया कि घटना वाले दिन यानी 3 फरवरी को वह घर पर नहीं था. शाम को जब वह घर आया तो उस ने देखा कि उस के पिता केवल सिंह उस की पत्नी को दबोचे बैड पर लेटे हैं और परमजीत बचाव के लिए चिल्ला रही है.

यह देख कर उसे गुस्सा आ गया और उस ने गंडासे से पिता की हत्या कर दी. लेकिन उस की इस कहानी पर किसी को विश्वास नहीं हुआ.

जब पतिपत्नी पर सख्ती की गई तो उन्होंने सच्चाई उगल दी. जगदीप ने इस बार बताया कि नशे की पूर्ति के लिए वह जमीन बेचना चाहता था. जबकि पिता इस के लिए तैयार नहीं थे. इसीलिए उस ने पिता की हत्या कर दी. हत्या कर लाश उस ने भूसे वाले कमरे में इसलिए दबा दी थी कि मौका मिलने पर वह उसे भूसे के बीच छिपा कर कहीं दूर ले जा कर ठिकाने लगा देगा. लेकिन वह अपने इरादे में कामयाब होता, उस के पहले ही भूसे के चक्कर में उस की पोल खुल गई.

7 फरवरी, 2017 को पुलिस ने पिता के हत्यारे जगदीप सिंह और उस की पत्नी को सक्षम अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में उन की निशानदेही पर हत्या करने वाला हथियार गंडासा व कस्सी बरामद कर ली. रिमांड अवधि समाप्त होने पर दोनों को पुन: अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

– पुलिस सूत्रों पर आधारित

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