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सस्ता होम लोन चाहिए तो अपनाएं ये उपाय

देश के ज्यादातर शहरों में प्रौपर्टी की ऊंची कीमतों को देखते हुए घर खरीदना बेहद मुश्किल है. आप में से कई लोगों ने ऐसी स्थिति का सामना किया होगा जब किसी बैंक से पास हुआ होम लोन कम पड़ गई हो. ऐसे में एक सह आवेदक के साथ संयुक्त रूप से लोन के लिए आवेदन करें.

बैंक एक ही घर को खरीदने, कंस्‍ट्रक्‍शन और री-कंस्‍ट्रक्‍शन के लिए परिवार में कमाने वाले दो इंडिविजुअल को एक साथ ज्वाइंट होम लोन देते हैं. ज्वाइंट होम लोन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि लोन देते वक्‍त बैंक दोनों की इनकम को ध्‍यान मे रखकर लोन अमाउंट तय करते हैं. इससे आपको इंडिविजुअल के मुकाबले अधिक लोन मिल सकता है. वहीं आपका ईएमआई बोझ दोनों के बीच बंट जाता है. इसके अलावा यह टैक्‍स सेविंग के लिए भी आपके लिए काफी मददगार साबित होता है.

किन रिश्तों में मिलता है ज्वाइंट होमलोन

अगर एक परिवार में दो लोग कमाने वाले हैं तो बैंक दोनों के दस्तावेजों के आधार पर ज्वाइंट होम लोन देता है. इसके तहत पति-पत्नी, पिता पुत्र, पिता-पुत्री, मां-बेटा और मां-बेटी जैसे रिश्तों को ज्वाइंट होमलोन दिया जाता है. लेकिन अधिकांश मामलों में सामाजिक संरचना के मद्देनजर बैंक भाई-बहन को एक साथ लोन नहीं देता.

ज्वाइंट होम लोन के जरिए बचाएं टैक्स

शहर में अधिकतर परिवारों में पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा होते हें. ऐसे में टैक्स सेविंग भी दोनों अलग अलग करते हैं. लेकिन अगर दोनों ज्वाइंट होम लोन के लिए एप्लाई करें तो टैक्स सेविंग का फायदा मिल सकता है. इनकम टैक्स एक्ट 24(बी) के तहत होम लोन के ब्याज पर दो लाख तक छूट क्लेम किया जा सकता है, जबकि इनकम टैक्स एक्ट 80सी के तहत प्रिंसिपल अमाउंट पर 1.5 लाख तक का क्लेम किया जा सकता है.

किन बातों का रखें ख्याल

बैंक लोन देने से पहले आवेदक का सिबिल स्कोर जांचता है. ज्वाइंट होम लोन के लिए आवेदन करने से पहले बैंक दोनों आवेदकों का सिबिल स्कोर देखता है. सिबिल स्कोर अच्छा न होने की स्थिति में लोन मिलने में परेशानी हो सकती है. साथ ही टैक्स छूट पाने के लिए जरूरी है कि दोनों आवेदक ईएमआई का एक साथ भुगतान करें. आपको बता दें कि यदि एक व्यक्ति ईएमआई का भुगतान करता है तो दूसरा आयकर में छूट का दावा नहीं कर सकता है.

ज्वाइंट होम लोन के नुकसान

हर बात की तरह ही ज्वाइंट होम लोन के भी अच्‍छे और बुरे पहलू हैं. अगर आपने किसी के साथ मिलकर होम लोन लिया है और आपका पार्टनर होम लोन का भुगतान नहीं करता या किस्त डिफौल्ट कर देता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी आप पर होगी और आपको आगे होम लोन लेने में परेशानी आ सकती है. इस केस में आप ज्वाइंट होम लोन को सिंगल होम लोन में तब्दील करवा सकते हैं, लेकिन यह करना पूरी तरह से बैंक पर निर्भर करेगा.

जिंदगी पूजापाठ से नहीं चलती, इसलिए समस्याओं के समाधान हवन और पूजा में न ढूंढें

नवरात्रों के अवसर पर निधि के घर में बड़ा धार्मिक माहौल रहता है. वह 9 दिनों तक व्रत रखती है. रोज मंदिर जाती है और नवमी के दिन महाकन्या भोज कराती है. जब मैं ने उस से पूछा कि इतना सब कैसे कर लेती है, तो वह बड़े विश्वास से मुसकराते हुए बोली, ‘‘सब देवीजी की शक्ति से मुमकिन हो पाता है और ये सब मैं अपने घर की सुखशांति के लिए करती हूं.’’

जबकि सच यह है कि उस के घर में हर समय पतिपत्नी में झगड़ा होता रहता है. कई बार झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि पड़ोसियों या फिर परिचितों को हस्तक्षेप करना पड़ता है.

पेशे से शिक्षिका निधि के दोनों बेटे अपने घर आने से कतराते हैं. वे कहते हैं कि जब भी घर आओ मम्मीपापा दोनों हर छोटीछोटी बात को भी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना कर लड़ते रहते हैं. इन का झगड़ा देखने से तो अच्छा है घर में कम से कम रहा जाए.

नीता के पति की जब मृत्यु हुई, तो बेटा विशाल 8वीं कक्षा का छात्र था. पापा से बहुत घुलामिला होने के कारण उन की मृत्यु के बाद वह एकदम अकेला पड़ा गया. नीता बैंक में सर्विस करती थी. वह सुबह बैंक जाने से पहले

2 घंटे पूजा करती और फिर औफिस से आ कर शाम को भी 1 घंटा. जब तक उसे फुरसत मिलती बेटा सो चुका होता. अत: बच्चे से उस की सिर्फ औपचारिक बातचीत ही हो पाती थी. अपने मन की बात किसी से शेयर न कर पाने के अभाव में बेटा धीरेधीरे अकेलेपन का शिकार हो कर अवसाद में चला गया. अब परेशान हो कर नीता उसे डाक्टरों के पास ले कर घूम रही है.

अंधविश्वास की पराकाष्ठा

गरिमा की आदत है कि नहा कर जब तक पूजा नहीं कर लेती तब तक पानी भी नहीं पीती. फिर चाहे घर का काम समाप्त करतेकरते उसे दोपहर ही क्यों न हो जाए. पति विनय ने उसे कईर् बार समझाया, ‘‘गरिमा, बिना नाश्ता किए यो दोपहर तक भूखे रहना ठीक नहीं. किसी दिन मुसीबत में आ जाओगी.’’

पर गरिमा ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. एक दिन अचानक चक्कर खा कर बेहोश हो गई. डाक्टर ने कहा लंबे समय तक भूखे रहने की वजह से इन का बीपी लो हो गया है. इतना सब कुछ होने के बाद भी गरिमा अपनी इस आदत को छोड़ नहीं पाई, जिस से रोज उस के घर में कलह होती.

पूजा के पति को लिवर सिरोसिस हुआ था. 1 माह तक हौस्पिटल में रहने के बाद एक दिन डाक्टरों ने उन्हें जवाब दे दिया. उसी दौरान पूजा के कथित गुरुजी आ गए. जब पूजा ने उन्हें अपने पति की हालत के बारे में बताया तो वे बोले, ‘‘यदि महामृत्युंजय का जाप करवाया जाए तो इन की जान बच सकती है.’’

उम्मीद की किरण देख कर बिना अपने विवेक का प्रयोग किए पूजा ने आननफानन में पंडितजी को जाप के लिए क्व25 हजार दे दिए. अगले ही दिन उस के पति की मृत्यु हो गई.

रीता की सौफ्टवेयर इंजीनियर बेटी को अपने ही सहकर्मी से प्यार हो गया. उस ने सर्वप्रथम यह बात अपनी मां को बताई. मातापिता को भी कोई ऐतराज नहीं था. एक ही जाति का होने के कारण दोनों ही पक्ष राजी थे, परंतु जब दोनों पक्षों ने अपनेअपने पंडितजी को कुंडली दिखाईर् तो बोले, ‘‘लड़की घोर मंगली है. यह विवाह तो हो ही नहीं सकता. यदि होगा तो लड़का या लड़की में से एक अपनी जान से हाथ धो बैठेगा.’’

फिर क्या था दोनों परिवारों ने इस शादी के लिए मना कर दिया. लड़कालड़की दोनों ने ही अपनेअपने मातापिता को समझाने की बहुत कोशिश की, पर उन के न पिघलने पर उन्होंने कोर्ट में शादी कर ली. दोनों के ही मातापिता शादी में शामिल नहीं हुए और अपने बच्चों से हाथ धो बैठे. जबकि लड़कालड़की आज 15 साल बाद भी खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

आत्मघाती कदम

अस्मिता एक भजन मंडली की सदस्या है. हर दूसरेतीसरे दिन वह अपनी मंडली के सदस्यों के साथ भजन करने चली जाती है. हाल ही में उस के 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले बेटे ने गणित का पेपर खराब हो जाने पर आत्महत्या कर ली. यदि अस्मिता अपना कुछ समय दे कर बेटे की भावना या उस के मन की उथलपुथल को भांपती तो बेटे को इस आत्मघाती कदम उठाने से रोक सकती थी.

इस प्रकार की कई घटनाएं रोज सब को अपने आसपास देखने को मिल जाती हैं. पूजापाठ, धार्मिक कर्मकांड कई घरों में इस कदर अपने पैर पसार लेते हैं कि वे आंतरिक कलह और बरबादी का कारण बन जाते हैं. भारतीय जनमानस में प्रत्येक समस्या का समाधान ईश्वर से मांगा जाता है जबकि उस का समाधान उन की स्वयं की समझदारी, विवेक और बुद्घि में छिपा होता है.

किसी कीमती वस्तु के गुम हो जाने पर, किसी सदस्य के बीमार हो जाने पर, घर में कलह और क्लेश होने पर, बच्चे के बेरोजगार होने पर तुरंत ईश्वर को इस प्रकार याद किया जाता है कि प्रभु, अमुक समस्या को हल कर दो, क्व1100 चढ़ाऊंगा या चढ़ाऊंगी.

जबकि वास्तव में जीवन एक ऐसी नाव है, जिस में बैठ कर आप को हर पल, हर क्षण अपनी बुद्घि और विवेकरूपी पतवार से दुनियादारी के समुद्र में अपनी नाव को बढ़ाना है. जहां आप ने अपनी अज्ञानता या नासमझी दिखाई वहीं आप की नाव गोते खाने लगेगी.

ऐसे में आप भी चाहते हैं कि आप के समक्ष भी ऐसी स्थिति न आए तो इन सुझावों पर गौर फरमाएं:

परिवार को दें प्राथमिकता: पतिपत्नी के आपसी झगड़ों को सुलझाने के लिए आपसी समझ और धैर्य की जरूरत होती है. देवीजी के व्रत, उपासना, उपवास, कन्याभोज, घंटों पूजापाठ या और कोई कर्मकांड करने के बजाय एकदूसरे को समझा जाए, कुछ उन के अनुसार ढला जाए और कुछ उन्हें अपने अनुसार ढाला जाए तब बड़ी से बड़ी समस्या को भी सुलझाया जा सकता है.

गृहस्थ जीवन का तो आधारस्तंभ ही प्यार, विनम्रता, सहनशीलता, त्याग, सहयोग और समर्पण की भावना है. पतिपत्नी के रिश्ते को खूबसूरती से निभाने के लिए सब से जरूरी है अहंकार का त्याग. घरपरिवार की छोटीमोटी समस्याओं को कभी मुद्दा न बनाएं. किसी भी प्रकार के मतभेद या नाराजगी को अहं के कारण लंबा न खींच कर उसी समय हल करें. यदि आप की पूजा घर में कलह का कारण है, तो तार्किक बुद्धि से सोचें कि ऐसे पूजापाठ से क्या लाभ, जिस से आप के घर की ही शांति भंग हो. घरपरिवार की शांति की कीमत पर कुछ भी न करें.

बच्चों को दें भरपूर समय: आजकल के खुलेपन के माहौल में किशोर होते बच्चों को अधिकाधिक समय देने की जरूरत होती है. अत: उन्हें भरपूर समय दें, उन के साथ मित्रवत व्यवहार करें, उन से जीवन के प्रत्येक विषय पर बातचीत करें ताकि वे अपने मन की हर बात को आप के साथ साझा कर सकें. यदि वे कभी परेशानी में हैं, तो उन के मन को भांप कर उन्हें सही दिशा दिखाएं. जब बच्चों को घर में समुचित प्यार और माहौल नहीं मिलता है तो वे अपने दोस्तों की ओर रुख करते हैं, जिस से कई बार वे भटक भी जाते हैं.

ध्यान रखें आप के पूजापाठ के कारण आप के बच्चे उपेक्षित न हों, साथ ही बच्चों को भी गैरजरूरी पूजापाठ, व्रतउपवास के फेर में न उलझाएं. ‘उन की पढ़ाई ही उन की पूजा है’ यह सीख दें ताकि वे मन लगा कर पढ़ाई कर सकें.

स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न करें: कुछ लोगों का नियम होता है कि वे पूजापाठ किए बिना अन्न ग्रहण नहीं करते. पुरुष और कामकाजी महिलाएं चूंकि औफिस जाते हैं, इसलिए वे तो समय पर खा लेते हैं, परंतु जो महिलाएं घर में रहती हैं वे काम समाप्त करने के चक्कर में नाश्ता न कर के सीधे भोजन ही ग्रहण करती हैं और ऐसा कर के कई बीमारियों को न्योता देती हैं.

डाक्टरों के अनुसार, रात और दोपहर के भोजन में अधिक अंतराल हो जाने के कारण शरीर के लिए नाश्ता करना बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि अधिक अंतराल हो जाने पर शरीर से कई विषैले हारमोन निकलने लगते हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से तो बेहद हानिकारक होते ही हैं, साथ ही मोटापा भी बढ़ाते हैं.

न बनें अंधविश्वासी: कई घरों में किसी बीमार के होने पर या किसी समस्या के समाधान हेतु तंत्रमंत्र, झाड़फूंक, जादूटोने का सहारा लिया जाता है, जो गलत है. इस की अपेक्षा डाक्टर के पास जाएं ताकि उस बीमारी की दवा ली जा सके और बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सके.

रीमा की 3 वर्षीय बेटी बेहद नटखट और शरारती है. एक दिन उसे अचानक बुखार आ गया. रीमा 1 सप्ताह तक उसे यहांवहां ले जा कर नजर झड़वाती रही, जबकि उसे टायफाइड हुआ था. बाद में डाक्टर के लंबे इलाज के बाद वह ठीक हो सकी.

अत: आडंबर, अंधविश्वास और कर्मकांड के चक्कर में न पड़ें. धर्म के नाम पर पैसा कमाने वालों से बचें. अपने पैसे का सदुपयोग करें न कि दुरुपयोग.

बच्चों की खुशी को दें प्राथमिकता: शादीब्याह समझदारी, त्याग, सहयोग से निभाए जाते हैं न कि जन्मपत्री में निहित गुणों के मिलान से. यदि ऐसा होता तो सभी जन्मपत्री मिलाए गए जोड़े सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे होते. बच्चे की पसंद में जाति, जन्मपत्री जैसी अंधविश्वासी बातों की जगह योग्यता और अच्छे घरपरिवार को मानदंड बनाएं और बच्चे की खुशी में शामिल हों. उस की खुशी में ही अपनी खुशी देखें.

व्यर्थ के कर्मकांडों के चक्कर में पड़ कर अपने बच्चे की खुशी का त्याग न करें, क्योंकि हर बच्चा मातापिता की छत्रछाया में ही अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करना चाहता है. जब मातापिता अपनी जिद पर अड़ जाते हैं, तो उन की गैरमौजूदगी में विवाह करना उन की मजबूरी होती है खुशी नहीं.

तार्किक बनें

जीवन एक संघर्ष है. इस में समयसमय पर सुख और दुख तो आतेजाते रहते हैं. यहां आने वाली अनगिनत समस्याओं का समाधान विवेक और बुद्घि का प्रयोग कर के निकाला जा सकता है, पूजापाठ से नहीं. वर्तमान समय में धर्म की आड़ में भगवान के दूत बन कर पूजापाठ करवाने वालों की भरमार है, जो स्वयं तो पूजा करवाते ही हैं, आप को भी पूजा के विभिन्न उपाय बताते हैं. न केवल महिलाएं, बल्कि पुरुष भी जीवन की विभिन्न समस्याओं के हल के लिए पूजापाठ, धार्मिक अनुष्ठान का सहारा लेते हैं, जबकि उन्हें जरूरत होती है अपनी तार्किक बुद्घि का प्रयोग करने की कि जिन समस्याओं का संबंध आप के जीवन और आप के अपने लोगों से है उन का समाधान भी आप के हाथ में ही है. कोई अन्य उन्हें कैसे सुलझा सकता है?

समझना यह चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत? क्या लाभकारी है और क्या हानिकारक? पूर्वाग्रहों, अंधविश्वासों और वहम जैसी भावनाओं से परे हट कर जब तक समझ और तार्किक बुद्घि का प्रयोग कर के जीवन नहीं चलाया जाएगा, जीवन अकसर दुरूह होता जाएगा. अत: पूजापाठ के स्थान पर जीवन में अपनी प्राथमिकताएं तय कर के समझदारी से काम लिया जाए.

जब लेना ही पड़े तलाक तो जिंदगी में कुछ इस तरह आगे बढ़ें

गणेशस्पीक्स डौटकौम नाम के वैब पोर्टल द्वारा किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि  65% महिलाएं तलाक या जीवनसाथी द्वारा धोखा दिए जाने के मसलों को ले कर काफी परेशान रहती हैं जबकि 35% पुरुषों में ही यह तनाव पाया गया.

यह आकलन पोर्टल द्वारा फोन पर उपलब्ध कराई जाने वाली परामर्श काल सेवा से मिले डाटा के आधार पर तैयार किया गया है. 2016 में महिलाओं द्वारा रिलेशनशिप से संबंधित मुद्दों के लिए की गईं काल्स में पिछले वर्ष की तुलना में 45% का इजाफा हुआ. जाहिर है आज की महिलाएं अपने विवाह को जन्मजन्मांतर का बंधन मान कर हर ज्यादती चुपचाप सहने को तैयार नहीं हैं. उन्हें अपने जीवनसाथी का पूरा भरोसा एवं बीवी होने का पूरा हक चाहिए. पति या ससुराल वालों के अत्याचार सहने के बजाय वे तलाक ले कर अलग हो जाने को बेहतर मानती हैं.

दरअसल, अब लड़कियां पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. शादी के बाद वे अपने कैरियर को पूरा महत्त्व देती हैं और पति से भी बराबरी का हक चाहती हैं. ऐसे में जब दोनों के अहं टकराते हैं, तो आत्मसम्मान खोने के बजाय वे अलग दुनिया बसाना पसंद करती हैं. यही नहीं आज लोगों के मन में कम समय में अधिक से अधिक हासिल करने की प्रवृत्ति भी जोर पकड़ती जा रही है. पतिपत्नी

दोनों ही परिवार को कम वक्त दे पाते हैं, जिस से घर में तनाव रहता है. पतिपत्नी के बीच तालमेल का अभाव और शक की दीवारें भी दूरियां बढ़ाती हैं.

तलाक का फैसला लेना आसान है पर आज भी तलाक के बाद जिंदगी खासतौर पर एक महिला की उतनी आसान नहीं रह जाती. इस संदर्भ में अपनी किताब ‘द गुड इनफ’ में डाक्टर ब्रैड साक्स का कथन सही है कि पतिपत्नी सोचते हैं तलाक के बाद उन की जिंदगी में सुकून आ जाएगा. रोजरोज के झगड़ों का अंत हो जाएगा. पर यह उसी तरह संभव नहीं जैसे एक ऐसी शादीशुदा जिंदगी की कल्पना जिस में केवल खुशियां ही खुशियां हों. इसलिए प्रयास यही होना चाहिए कि जितना हो सके तलाक को टाला जाए.

कब जरूरी है तलाक

जब पतिपत्नी के बीच ‘तीसरा’ मौजूद हो: पति हो या पत्नी, किसी के लिए भी बेवफाई का गम सहना आसान नहीं होता. पतिपत्नी के बीच इस मसले पर झगड़े बढ़ते हैं और बात मरनेमारने तक पहुंच जाती है. समझदारी इसी में है कि ऐसे हालात में दोनों आपसी सहमति से अलग हो जाएं.

बेमेल जोड़े: कई दफा परिस्थितिवश बेमेल जोड़े बन जाते हैं. पतिपत्नी की आदतें, विचार, जीवन के प्रति नजरिया, स्टेटस, शिक्षा वगैरह सब अलगअलग होते हैं. उन के मन भी नहीं मिलते. ऐसे में उम्र भर खुद को या परिस्थितियों को कोसते रहने से बेहतर है तलाक ले कर मनपसंद साथी के साथ नया जीवन शुरू करना.

तनाव और घुटन: कभीकभी रिश्तों में इतनी कड़वाहट भर जाती है कि पतिपत्नी के लिए एक ही छत के नीचे रहना कठिन हो जाता है. रोजरोज के लड़ाईझगड़ों से उन का दम घुटने लगता है. इस का बुरा असर काम और बच्चों पर भी पड़ता है. ऐसे में जीवन को बिखरने से बचाने के लिए बुरी यादों को अलविदा कहना जरूरी है.

जाहिर है कि जब वैवाहिक जिंदगी बोझ बन जाए तो उस बोझ को उतार देना ही बेहतर है. तलाक के बाद परेशानियां आएंगी पर मन में विश्वास रखिए कि लंबी काली सुरंग का दूसरा सिरा रोशनी में खुलता है. यदि आप धैर्य और समझदारी से काम लेंगे तो कोई वजह नहीं कि परेशानियां खुद हार मान लें. तलाक यदि दलदल है तो गंद तो लगेगा ही पर प्रयास किया जाए तो इस दलदल से उबरना नामुमकिन नहीं.

लंदन की किंग्सटन यूनिवर्सिटी द्वारा 16 से 60 साल की उम्र के 10 हजार लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि तलाक के करीब5 साल बाद नकारात्मक वित्तीय अवस्था के बावजूद महिलाएं ज्यादा खुश और संतुष्ट पाई गईं और इस की वजह काफी हद तक उन की आजादी थी.

तलाक के बाद आने वाली परेशानियों को समझदारी से दूर किया जा सकता है. आइए, जानते हैं कि कैसे:

आर्थिक परेशानियां

तलाक के बाद रहनसहन का स्तर प्रभावित होता है. आमदनी के स्रोत तो घट जाते हैं पर जिम्मेदारियां और खर्च दोगुने हो जाते हैं. घर अलग होता है, तो स्वाभाविक है कि उसे चलाने का खर्च भी बढ़ेगा.

सामान्य कंफर्ट की चीजों के अलावा खानेपीने, घूमनेफिरने, रहने का सारा खर्च

अकेले वहन करना पड़ता है. मनोरंजन हो या नई ड्रैसेज पर किया जाने वाला खर्च, आप को कम से कम रुपयों में बेहतर पाने का प्रयास करना सीखना पड़ेगा.

भविष्य में संभावित आर्थिक परेशानियों से बचने के लिए तलाक की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही फाइनैंशियल मसलों पर सतर्क रहना बहुत जरूरी है. तलाक के बाद संपत्ति में से मिलने वाला हिस्सा और ऐलीमनी आप के भविष्य को आसान या कठिन बना सकती है.

यदि आप जौब नहीं कर रहीं तब तो फाइनैंशियल सिक्योरिटी और भी अहम हो जाती है. अकसर शादी के दौरान महिलाएं फाइनैंशियल मामलों को पूरी तरह पति पर छोड़ देती हैं. यह उचित नहीं. अपने पति की इनकम, टैक्स पेमैंट्स, लोन इंस्टालमैंट्स, एफडीज, क्रैडिट बैलेंस और डिसपोजिशन, बैंक अकाउंट्स, मंथली बिल्स आदि के बारे में पूरी जानकारी रखें. इस के अलावा मैरिटल प्रौपर्टीज, ज्वैलरीज, व्हीकल्स और इंश्योरैंस पौलिसीज

जैसी चीजों को नजरअंदाज करने की गंभीर गलती न करें.

ये सब ऐलीमनी तय करने के काम आते हैं. यही नहीं, शेयर्स और म्यूचुअल फंड्स में भी अपने पति के निवेश का ट्रैक रखें. तलाक से पहले ये फाइनैंशियल डिसीजन लेने में देर न करें:

  • क्रैडिट कार्ड्स ब्लौक कर दें.
  • जौइंट अकाउंट्स क्लोज करें.
  • अपने पीएफ अकाउंट, डिमैट अकाउंट, सेविंग अकाउंट्स वगैरह में नौमिनी बदल दें.
  • इंश्योरैंस नौमिनी भी बदल दें.
  • वसीयत में बदलाव लाएं.
  • ईसीएस टर्मिनेट करें. किसी भी जौइंट लोन के लिए अपने बैंक को सूचित कर दें.

यह भी ध्यान रखें कि स्त्रीधन आप का अपना है, उसे पति के साथ तलाक के समय बांटने की जरूरत नहीं है. कोई भी फैसला लेते समय अपने बच्चों के भविष्य को फाइनैंशियल रूप से मजबूत करने के बारे में जरूर सोचें.

बच्चों पर असर

कहीं न कहीं तलाक का गहरा असर बच्चों के मन पर पड़ता है. तलाक यानी बच्चों की दुनिया का बंट जाना. 2 शख्स जिन्हें वह दुनिया में सब से ज्यादा प्यार करता था, उन का आपस में एकदूसरे से प्यार नहीं करने का एहसास बच्चों को भयभीत, चिड़चिड़ा और विद्रोही बना देता है. स्कूलकालेज में उन की परफौर्मैंस खराब रहने लगती है. कई दफा वे खुद को तलाक का दोषी मानने लगते हैं.

इन बातों का मतलब यह नहीं कि बच्चों की खातिर आप टूटे हुए रिश्ते को ढोने का प्रयास करती रहें, क्योंकि घर के तनाव एवं लड़ाईझगड़ों का असर वैसे भी बच्चों के दिमाग को कुंद कर देता है.

बेहतर होगा कि आप प्यार से बच्चों को समझाएं कि इस सब के पीछे उन का कोई दोष नहीं. ईमानदारी के साथ उन के हर सवाल का जवाब दें. अपने जीवन की हकीकत बताएं और हौसला बढ़ाएं कि सब ठीक हो जाएगा. अलग होने के बावजूद मांबाप दोनों बच्चों को क्वालिटी टाइम दें, तो धीरेधीरे वे सामान्य जीवन जीने लगेंगे.

सामाजिक बहिष्कार

तलाक के बाद अकसर महिलाएं सामाजिक रूप से अलगथलग पड़ जाती हैं. कई दफा वे लोग भी उन्हें नजरअंदाज करने लगते हैं जिन्हें वे खुद के करीब मानती थीं.

संभव है कि तलाक के बाद कौमन फ्रैंड्स आप के ऐक्स को तो इनवाइट करें पर आप की काल्स को भी नजरअंदाज कर दें. आप की मां आप के ऐक्स की साइड ले कर बात कर आप के दोष गिनाएं.

इन बुरे दिनों में आप को हर जगह कपल्स नजर आएंगे. आप वीकैंड भी ऐंजौय नहीं कर सकेंगी, क्योंकि यह फैमिली टाइम होता है, जबकि फैमिली आप के पास है ही नहीं. बच्चों से मिलने के लिए भी अपनी बारी का इंतजार करना बहुत कष्टकारी होगा.

सिनेमा हाल, मौल, मार्केट, रैस्टोरैंट वगैरह कहीं भी जाने से आप बचना चाहेंगी. आप को महसूस होगा जैसे लोग आप को ही घूर रहे हैं या दया की नजरों से देख रहे हैं. आप के दोस्त/रिश्तेदार अपने पति, बच्चों या दोस्तों के साथ व्यस्त मिलेंगे.

ऐसे हालात में टूटने या सिमट जाने से बेहतर है कि रिश्तों की असलियत स्वीकारते हुए नए दोस्त बनाएं, अपने जैसी स्थिति वालों से मिलें. आप को जीने का नया नजरिया, नया अंदाज मिलेगा. मुमकिन है कि आप को नया जीवनसाथी भी मिल जाए, जो आप की कद्र करे, आप को समझे.

लोलुप नजरों का सामना

प्राय: तलाक के बाद औफिस और आसपास के कुछ पुरुष स्त्रियों को लोलुप नजरों से देखने लगते हैं. यदि आप सिंगल हैं और सिंगल होने को तैयार नहीं तो भी पुरुष आप के आगेपीछे घूमने से बाज नहीं आते. ऐसे लोग चांस मारने का कोई मौका नहीं छोड़ते. जाहिर है, आप बहुत असहज महसूस करेंगी.

ध्यान रखें, आप नहीं वरन आप की स्थितियों की वजह से लोग इस नजर से देख रहे हैं. परेशान होने के बजाय इन बातों को हैंडल करना सीखें. बिंदास बनें. जमाने की परवाह करने से जमाना और भी पीछे पड़ जाता है. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीएं.

असर आप पर

तलाक के दौरान आप के आत्मविश्वास की धज्जियां उड़ती हैं. लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं कि आप अपने रिश्ते को बना कर नहीं रख पाईं. आपसी सहमति से तलाक नहीं मिला तो कोर्ट में लंबे समय तक मामला खिंचता है. इस दौरान आप के चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाने और कीचड़ उछालने वालों की कमी नहीं रहती.

तलाक के बाद प्राय: आप का खुद से और रिश्तों से भी विश्वास उठ जाता है. आप यह बात फिर स्वीकार नहीं कर पातीं कि कोई आप से सच्चा प्यार भी कर सकता है. कहीं दोबारा शादी करने पर फिर ऐसा ही हुआ तो? यह सवाल आप के जेहन में उठता रहता है.

यही नहीं, एक तरफ आप अपने पूर्व साथी से अभी भी प्यार करती होंगी, क्योंकि बीते वक्त में आप एक मन और 2 शरीर थे. वहीं दूसरी तरफ आप को उस पर गुस्सा भी आता होगा. आप खुद को उलझन में, अपमानित और बेसहारा महसूस करती होंगी. साथ बिताए हसीन पल आप को रहरह कर याद आएंगे.

इन सब से आप को खुद उबरना होगा. सामाजिक बनें, नई नौकरी जौइन करें, साथ ही पुरानी बातें भूल कर जिंदगी को नए सिरे से देखें, नया कल आप को बांहों में थाम लेगा.

क्या है असुरक्षित गर्भपात, जानने के लिए ये खबर जरूर पढ़ें

किसी भी महिला के जीवन में गर्भपात भावनात्मक रूप से बहुत व्यथित करने वाली घड़ी होती है. इस से जहां एक तरफ वह गर्भपात के कारण मानसिक तौर पर दुखी होती है, वहीं दूसरी तरफ शारीरिक स्तर पर भी उसे पीड़ा झेलनी पड़ती है. दोनों ही हालात में स्थिति चिंताजनक होती है. हालात तब और संजीदा हो जाते हैं जब गर्भपात असुरक्षित तौर पर करवाया गया हो.

ज्यादातर महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात के बारे में कोई जानकारी नहीं होती. यहां तक कि उन्हें गर्भपात के बाद होने वाली दिक्कतों का भी पता नहीं होता. गर्भपात प्रसव के समय होने वाले दर्द से कम पीड़ादायक नहीं होता और अगर यह असुरक्षित स्तर पर और किसी नौसिखिए से करवाया गया है तब तो चिंता और बढ़ जाती है.

असुरक्षित गर्भपात वह है, जो किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति से करवाया जाता है. उस के पास न तो कोई डिगरी होती है और न ही अनुभव. कानूनी तौर पर भी ऐसा व्यक्ति गर्भपात करने का अधिकार नहीं रखता है. असुरक्षित गर्भपात से दर्द, संक्रमण, संतानहीनता जैसी जटिलताएं पनप सकती हैं. यहां तक कि मौत भी हो सकती है.

1971 में एनटीपी ऐक्ट (गर्भ समाप्ति कानून 1971) को कुछ खास मामलों में मान्यता दी गई. वह भी तब जब महिला या बच्चे के स्वास्थ्य अथवा जान को खतरा हो. परिवार नियोजन की विफलता और बलात्कार के कारण गर्भ होने की स्थिति में भी गर्भपात की इजाजत है. इन निर्धारित सीमाओं के बाहर गर्भपात करवाना अवैध माना जाता है. असुरक्षित गर्भपात का असर महिला के स्वास्थ्य पर पड़ता है और 2 सप्ताह के बाद भी उस के पेट में असहनीय दर्द, बुखार, योनि से रक्त या दुर्गंधयुक्त स्राव जारी रह सकता है.

गर्भपात के कुछ कारण

अकसर कुछ कारणों से गर्भपात की नौबत आती है. फिर चाहे महिला का जीवन बचाने के लिए गर्भपात करवाना जरूरी हो गया हो या गर्भ में पल रहा बच्चा किसी विकार से पीडि़त हो. ऐसे हालात में गर्भपात ही अंतिम उपाय रह जाता है. अकसर बेटे की चाह भी गर्भपात का कारण बनती है. ग्रामीण इलाकों और कुछ अशिक्षित लोगों द्वारा संकोचवश या सस्ते में छूटने की वजह से भी असुरक्षित गर्भपात का सहारा लिया जाता है और इसे आसपास की कोई अप्रशिक्षित महिला या झोलाछाप डाक्टर कम रुपयों में और अकसर घर पर ही कर देता है.

पिछड़े क्षेत्रों में आज भी ज्यादातर गर्भपात इसी तरह के लोग कर रहे हैं, जो किसी अस्पताल या नर्सिंगहोम में कंपाउंडर होते हैं या मरीज की देखरेख आदि का काम करते हैं. यही वजह है कि असुरक्षित गर्भपात के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

गर्भवती महिलाओं में से 15% के मामले में कोई न कोई जटिलता उभरने की आशंका रहती है. भारत में दोतिहाई मातृ मृत्यु दर यानी गर्भपात या प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में होती है. यह तथ्य भी चौंकाने वाला है कि

देश में ऐनीमिया और कुपोषण के बाद महिलाओं की मौत का सब से बड़ा कारण असुरक्षित गर्भपात बन रहा है.

गंभीर स्थिति

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में 60 फीसदी महिलाएं दाइयों पर निर्भर हैं. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण हर साल देश में प्रसव के दौरान 78 हजार महिलाओं की मृत्यु हो जाती है.

गर्भपात करवाना जानलेवा हो सकता है यदि:

अप्रशिक्षित व अनुभवहीन डाक्टर के द्वारा और मान्यताप्राप्त, लाइसैंसशुदा मैटरनिटी होम में न करवाया गया हो.

गंदे या रोशनी व हवा रहित कमरे में और कीटाणुयुक्त उपकरणों के जरीए करवाय गया हो.

12 सप्ताह के भीतर न किया गया हो.

इस के अलावा भी कुछ घरेलू तरीके भ्रूण को समाप्त करने के लिए अपनाए जाते हैं. जैसे दादीमांओं के नुसखों या सुनीसुनाई बातों के आधार पर कुछ विशेष पेड़पौधों का रस योनि में डालना, कोई तार या ठोस वस्तु योनि में डाल कर भ्रूण को समाप्त करने की चेष्टा करना आदि.

असुरक्षित गर्भपात में गर्भपात के

2 सप्ताह बाद भी पेट में असहनीय दर्द, बुखार, योनि से रक्त या दुर्गंधयुक्त स्राव जारी रह सकता है. यह खतरनाक स्थिति है. हो सकता है कि गर्भपात अपूर्ण हुआ हो और गर्भाशय के भीतर भ्रूण का कोई अंश रह गया हो. इन हालात में जान जाने का खतरा भी बढ़ जाता है.

सुरक्षित गर्भपात

1 माह तक के गर्भ को दवा दे कर समाप्त किया जाता है, क्योंकि यह भ्रूण की शुरुआत होती है, इसलिए यह दवा से भी खत्म हो जाता है, लेकिन इस से अधिक समय के गर्भ की समाप्ति अबौर्शन से ही की जाती है जो कि उपकरणों के माध्यम से होता है.

सुरक्षित गर्भपात वैक्यूम ऐस्पिरेशन विधि से होता है. इस में योग्य डाक्टर द्वारा विशेष प्रकार की ट्यूब योनि के रास्ते गर्भाशय में डाल कर भ्रूण को बाहर खींच लिया जाता है. यह एक सरल और सुरक्षित तरीका है. डाइलेशन और क्यूरेटाज यह खुरच कर गर्भपात का तरीका है. गर्भ के बचेखुचे हिस्से को क्यूरेटर के जरीए निकाल दिया जाता है. क्यूरेटर चम्मच के आकार का एक उपकरण होता है.

दिल्ली की एक घनी बस्ती की 35 वर्षीय आसमां 5वीं पास है. 10 वर्षों से अपने क्षेत्र की महिलाओं का गर्भपात कर रही है. पहले वह किसी मैटरनिटी होम में मरीजों की देखरेख और इंजैक्शन लगाने का काम करती थी. जब काम छोड़ा तो घर पर ही गर्भपात करने को आमदनी का रास्ता बना लिया. वह कहती है, ‘‘अब तक बहुत गर्भपात किए हैं और कोई भी गलत नहीं हुआ. हालांकि कई दिनों तक हलकीहलकी ब्लीडिंग या दर्द की शिकायत कुछ महिलाओं को हुई, लेकिन सब कुछ ठीक रहा.’’

आसमां क्यूरेटर के जरीए गर्भपात करती है. वह दर्द का इंजैक्शन व दवा भी देती है.

असुरक्षित गर्भपात करवा चुकी नौरीन का कहना है, ‘‘मैं ने एक दाई से गर्भपात के लिए एक दवा ली थी. दवा खाने के बाद कई दिनों तक हलकी ब्लीडिंग और पेट में दर्द हुआ. उस के बाद करीब 1 साल तक कभीकभार दर्द की समस्या रही, लेकिन अब वह ठीक है.’’

वहीं अनीता बताती हैं, ‘‘मैं कई बार दाई से गर्भपात करवा चुकी हूं, लेकिन ठीक हूं.’’

डा. अनुराधा खुराना, लाजपत नगर, दिल्ली, कहती हैं, ‘‘एक अनुभवी डाक्टर कई वर्ष पढ़ाई करने के बाद गर्भपात करता है, जबकि अप्रशिक्षित महिलाएं महज दवाओं, इंजैक्शनों के नामों को जानती हैं. उन के पास अनुभव भी हो सकता है, लेकिन गर्भपात के दौरान जो जटिलताएं आती हैं उन्हें एक विशेषज्ञ ही संभाल सकता है. क्यूरेटर आदि उपकरणों का इस्तेमाल अगर अप्रशिक्षित दाई कर रही है, तो उस के हाथ से गर्भाशय को हानि पहुंचने और उस के फटने की आशंका बढ़ जाती है.

जब यही हानि किसी विशेषज्ञ से हो जाती है, तो वह उस स्थिति को काबू करने में प्रशिक्षित होता है और मरीज की जान को खतरा नहीं रहता.’’

इस भारतीय खिलाड़ी की असल कहानी क्या आपको मालूम है

ऋषभ पंत भले आज तक दो ही अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले हों मगर आईपीएल के जरिए क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने वाले इस खिलाड़ी की तुलना आज महेंद्र सिंह धोनी से होती है. दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से खेलने वाले पंत ने 24 आईपीएल मैचों में 2 बार नाबाद रहते हुए 151.21 की स्ट्राइक के साथ 564 रन बनाए हैं. इस दौरान उन्होंने सर्वश्रेष्ठ 97 रन समेत 3 अर्धशतक भी जड़े हैं. मगर क्या आप जानते हैं कि इस खिलाड़ी ने अपने शुरुआती दिनों में बेहद स्ट्रगल किया है. आलम ये था कि कभी इस क्रिकेटर के पास खाने तक को पैसे नहीं हुआ करते थे.

रुड़की में रहने वाला पंत का परिवार उन्‍हें दिल्‍ली क्रिकेट की टौप एकेडमी में भर्ती कराना चाहता था. ऋषभ के कोच देवेंद्र शर्मा के मुताबिक, 6-7 साल पहले एक कैंप में पंत के पिता ने दोनों को मिलाया था. पंत को दिल्‍ली में कोचिंग लेनी थी, इसलिए वह अपनी मां के साथ राजधानी आ गए. मगर उनके पास रहने की कोई जगह नहीं थी और ना ही खर्च करने को ज्यादा पैसे. इसलिए मोती बाग गुरुद्वारा में मां-बेटे रहते थे.

बेटा जहां पिता के सपनों को पूरा करने में जी-जान से जुटा था, वहीं मां गुरुद्वारे में सेवा किया करती थी. उसी दौर में पंत ने एक अंडर-12 टूर्नामेंट में तीन शानदार शतक जड़े और प्‍लेयर औफ द टूर्नामेंट का खिताब हासिल किया. इसके बाद जल्‍द ही उन्‍हें दिल्‍ली कैंट के एयरफोर्स स्‍कूल में दाखिला मिल गया. फिर ऋ‍षभ ने पीछे मुछ़कर नहीं देखा. अंडर-19 वर्ल्‍ड कप 2016 में नेपाल के खिलाफ 18 गेंदों में हाफ सेंचुरी जड़कर नया रिकौर्ड बना दिया था.

इसी टूर्नामेंट में पंत ने नामीबिया के खिलाफ शतक जड़कर टीम इंडिया को सेमीफाइनल में पहुंचने में मदद की. उसी दिन इंडियन प्रीमियर लीग में पंत को दिल्‍ली डेयरडेविल्‍स ने 1.9 करोड़ रुपए में खरीदा. बेहद आक्रामक अंदाज में बल्‍लेबाजी करने वाले ऋषभ 2016-17 क्रिकेट सत्र में झारखंड के खिलाफ 48 गेंदों में शतक जड़कर तहलका मचा दिया था. उन्‍होंने रणजी ट्रौफी में महाराष्‍ट्र के खिलाफ तिहरा शतक भी जड़ा था. पंत ने 10 प्रथम श्रेणी मैचों की 16 पारियों में 1080 रन बनाए, इसमें 4 शतक और 3 अर्द्धशतक शामिल हैं.

जानिए किस स्किनटोन पर जंचता है कौन से शेड का नेल पेंट

अकसर महिलाएं नेल पेंट का चुनाव आउटफिट के अनुसार करती हैं. नतीजतन उस आउटफिट पर तो नेल पेंट खूबसूरत नजर आता है, लेकिन दूसरे आउटफिट के साथ उस की सारी खूबसूरती गुम हो जाती है. ऐसे में नेल पेंट का चुनाव आउटफिट के अनुसार न कर स्किनटोन को ध्यान में रख कर करें. इस से हाथों की खूबसूरती बरकरार रहती है. किस स्किनटोन पर कौन से शेड का नेल पेंट जंचता है, जानते हैं मेकअप आर्टिस्ट क्रिस्टल फर्नांडिस से:

वैरी फेयर स्किनटोन

बहुत ज्यादा गोरी महिलाओं के लिए पिंक और पिंक शेड से मिलतेजुलते शेड के नेल पेंट्स परफैक्ट चौइस हो सकते हैं.

ऐसी महिलाएं पेस्टल शेड के नेल पेंट्स को भी अपने वैनिटी बौक्स में जगह दे सकती हैं. ये इन की स्किनटोन पर खूब जंचते हैं.

बोल्ड लुक के लिए ऐसी महिलाएं डार्क रैड शेड के नेल पेंट्स को अपनी पहली पसंद बना सकती हैं.

अगर डार्क शेड नेल पेंट्स लगाना चाहती हैं, तो डार्क ब्लू, नेवी ब्लू, मिडनाइट ब्लू जैसे शेड्स ट्राई कर सकती हैं.

सुझाव: शीयर शेड्स के नेल पेंट्स लगाने से बचें. ये आप पर सूट नहीं करेंगे.

फेयर स्किनटोन

गोरी महिलाओं के लिए डार्क रैड और रूबी आइडियल नेल पेंट शेड्स हैं. इन से हाथों की खूबसूरती दोगुनी हो जाती है.

बहुत अधिक गोरी महिलाओं की तरह पेस्टल शेड्स गोरी महिलाओं पर भी सूट करते हैं यानी इन्हें भी अपने वैनिटी बौक्स में रख सकती हैं.

प्लम्स, बरगंडी, पर्पल जैसे डार्क शेड के नेल पेंट्स गोरी महिलाओं को बोल्ड लुक देते हैं.

अगर लाइट शेड के नेल पेंट्स लगाने तो सिल्वर, व्हाइट, पेल जैसे शेड्स चुनें. ये स्किनटोन पर सूट करते हैं.

फ्रैश लुक के लिए ब्लू, औरेंज, पीच शेड के नेल पेंट्स चुन सकती हैं.

सुझाव: ट्रांसपैरेंट या इनविजिबल शेड के नेल पेंट्स लगाने से परहेज करें. ये आप की स्किनटोन के लिए नहीं हैं.

मीडियम स्किनटोन

पीच और पेल शेड के नेल पेंट्स को मीडियम स्किनटोन वाली महिलाएं अपनी पहली पसंद बना सकती हैं.

डार्क के बजाय पिंक, पर्पल, ब्लू और रैड के लाइट शेड्स भी मीडियम स्किनटोन वाली महिलाओं पर सूट करते हैं.

अगर मीडियम स्किनटोन वाली महिलाएं डार्क शेड लगाना चाहती हैं, तो कोरल औरेंज नेल पेंट्स का चुनाव कर सकती हैं.

पार्टी जैसे मौके के लिए सिल्वर शेड के नेल पेंट्स इन के हाथों की खूबसूरती में चार चांद लगा सकते हैं.

सुझाव: मीडियम स्किनटोन की महिलाओं पर गोल्ड और रस्ट शेड के नेल पेंट्स अच्छे नहीं लगते, इसलिए इन्हें लगाने से बचें.

डार्क स्किनटोन

सांवली रंगत की महिलाएं डार्क के बजाय ब्राइट शेड्स को तवज्जो दें. ये आप की स्किनटोन पर ज्यादा खूबसूरत नजर आएंगे.

ब्राइट औरेंज और ब्राइट मिंट शेड के नेल पेंट्स आप को फ्रैश लुक दे सकते हैं.

अगर ब्लू शेड ट्राई करना चाहती हैं, तो ब्लू के डार्क शेड के चयन के बजाय बेबी ब्लू नेल पेंट चुनें.

अगर पिंक शेड लगाना हो तो पिंक के न्यूड शेड का चुनाव करें. यह डार्क स्किन पर सूट करता है.

सुझाव: पेस्टल शेड के नेल पेंट्स से परहेज करें. ये आप के नाखूनों पर उभर कर दिखाई देंगे.

जानते हैं जावेद अख्तर और शबाना आजमी की शादी किसने करवाई..!

अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक शबाना आजमी की शादी पहले से शादीशुदा जावेद अख्तर से हुई है. इन दोनों की लव स्टोरी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है. पहले से शादीशुदा जावेद अख्तर को शबाना आजमी को अपनाना इतना आसान नहीं था.

लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इन दिनों को मिलाने वाला वही इंसान है जिसकी वजह से ये दोनों एक नहीं हो पा रहे थे. जी हां, वह और कोई नहीं बल्कि जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ही हैं. आइए बताते हैं आखिर क्या था पूरा मामला.

दरअसल जावेद अख्तर शबाना आजमी को दिल दे बैठे थे और शबाना भी उन्हें चाहने लगी थी. यह उस वक्त की बात है जब 1970 में जावेद अख्तर कैफी आजमी से लिखने की कला सीखते थे. उसी दौरान उनका दिल कैफी आजमी की बेटी शबाना पर दिल आ गया. दोनों के अफेयर की खबरें मीडिया तक पहुंचने में देर नहीं लगी.

जब ये बात हनी को पता चली तो रोज घर में झगड़े होने लगे. लेकिन बच्चों के कारण जावेद, हनी को छोड़ना नहीं चाहते थे. रोज-रोज घर में झगड़े होते देख हनी ने जावेद को शबाना के पास जाने की इजाजत दे दी. उन्होंने जावेद से कहा कि वो शबाना के पास जाएं और बच्चों की चिंता ना करें.

तब जावेद ने हनी को तलाक देकर शबाना से शादी करने का फैसला लिया. दोनों की शादी में मुश्किलें भी आईं क्योंकि कैफी आजमी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी की शादी किसी शादीशुदा आदमी से हो. प्यार के आगे किसी का जोर नहीं चलता, कैफी आजमी का भी नहीं चला और शबाना ने 1984 में जावेद से शादी कर ली.

आईफोन खरीदने के बाद जरूर करें ये काम

वैसे तो कई लोगों ने आईफोन का इस्तेमाल किया है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पहली बार आईफोन यूजर बनने जा रहे हैं. अगर आप भी उन यूजर्स में से एक हैं जो पहली बार आईफोन का इस्तेमाल करने जा रहे हैं तो आप इस खबर को जरूर पढ़े.

ऐपल आईडी बनाएं

आईफोन खरीदने के बाद सबसे पहला और जरूरी काम होता है ऐपल आईडी बनाना. यह ऐपल के इकोसिस्टम में आने के लिए और ऐपल का इस्तेमाल करने वाले लोगों में शामिल होने की अनिवार्य शर्त है. ऐपल आईडी के साथ आप ऐपल स्टोर से एप डाउनलोड और खरीद सकते हैं. आप इसकी मदद से म्यूजिक खरीद सकते हैं और iTunes से मूवी खरीद सकते हैं, ऐपल म्यूजिक को सब्सक्राइब कर सकते हैं और अन्य कामों को भी अंजाम दे सकते हैं.

iTunes को इन्स्टाल करें

अगर आपने ऐपल डिवाइस खरीदा है तो आपके लिए अपने कंप्यूटर पर iTunes इन्स्टाल करना जरूरी है. यह आपके कंप्यूटर से आपके फोन को जोड़ने के लिए जरूरी है. ये आपके म्यूजिक औरवीडियो के डेटा को सेव करके रखता है, साथ ही आपको विकल्प देता है कि आप उन म्यूजिक, वीडियो या फिर एप्स को डिलीट कर दें और अपने फोन की मैमोरी को मैनेज कर पाएं.

फोन को एक्टिवेट करें

ये शुरुआती दो स्टेप फौलो करने के बाद आपको अपने फोन को एक्टिवेट करने की जरुरत होती है. इसलिए आपको फंडामेंटल सेटिंग विकल्प की मदद से बेसिक सेटअप प्रोसेस को एक्टिवेट करना होगा, ताकि आप फेसटाइम, फाइंड माई आईफोन, आईमैसेज और अन्य फीचर्स का आसानी से इस्तेमाल कर पाएं.

अपने डिवाइस को सिंक्रोनाइज करें

ऐपल आईडी और आईट्यून इन्स्टाल करने के बाद आप इसमें कंटेट लोडिंग शुरू करें. इसके लिए आपको अपने फोन को अपने कंप्यूटर के साथ जोड़ना होगा. जैसे ही आप केबिल को प्लग करेंगे आपका फोन सिंक होना शुरू हो जाएगा.

आईक्लाउड को कन्फीगर करें

यह आपके ऐपल डिवाइस में डाटा सेव करने, सिंक करने और अपडेट करने के कई तरीकों में से एक है. यह फीचर ऐपल सर्वर पर आपके डेटा को सेव करने में मददगार होता है.

फाइंड माई आईफोन औप्शन को सेटअप करें

अगर किसी सूरत में आप अगर अपना फोन खो देते हैं तो आप इस फीचर के जरिए अपने फोन की लोकेशन को ट्रैक कर सकते हैं. आप आईक्लाउड से फाइंड माई आईफोन फीचर को ढूंढ सकते हैं. यह आपके आईफोन में जीपीएस नेटवर्क बनाने में मदद करता है ताकि खोने की सूरत में आप मैप के जरिए इसे ट्रैक कर पाएं.

बैकअप को रिस्टोर करें

अपने नए आईफोन में एक बार सभी बेसिक प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद अपने पुराने आईफोन से नए आईफोन में बैकअप लेना अहम होता है. आप इसे Settings > iCloud > Backup के जरिए कर सकते हैं.

टच आईडी

टच आईडी (फिंगरप्रिंट स्कैनर) को होम बटन में इंटीग्रेट किया गया है, जिसकी मदद से आप मात्र अपनी फिंगर को टच कराकर अपने डिवाइस जो लौक और अनलौक कर सकते हैं. अगर आप टच आईडी बनाना चाहते हैं तो आप इसे Settings > General > Touch ID & Passcode > Touch ID के जरिए कर सकते हैं. अब आप अपना फिंगरप्रिंट जोड़ सकते हैं.

मेरे व मेरी बीवी के गुप्तांगों पर अनचाहे बाल हैं और वहां हमेशा पसीना आता है. हमें क्या करना चाहिए.

सवाल
मेरे व मेरी बीवी के गुप्तांगों पर अनचाहे बाल हैं और वहां हमेशा पसीना आता है. हमें क्या करना चाहिए?

जवाब
आप लोगों के साथ कुछ अनोखा नहीं हुआ है. सभी के गुप्तांगों पर बाल होते हैं. इन बालों को अच्छी कंपनी का हेयर रिमूवर इस्तेमाल कर के हटाया जा सकता है या कैंची से सावधानी से काटा जा सकता है. अंगों की ढंग से सफाई करें, तब पसीना नहीं आएगा.

अपने डेब्यू मैच में ही इस भारतीय खिलाड़ी ने ले लिया था रिटायरमेंट

राहुल द्रविड़ की पहचान एक कलात्मक बल्लेबाज के तौर पर रही है. टेस्ट में बेस्ट और वनडे में भरोसेमंद रहे राहुल ने आक्रामक क्रिकेट कम ही खेली, पर कुछ मौके ऐसे भी रहे जब राहुल के काउंटर अटैक ने सबको चौंका दिया. ऐसा ही एक मौका था द वाल के एकलौते टी-20 इंटरनेशनल का. राहुल ने भारत के लिए एकलौता टी-20 इंग्लैंड के खिलाफ 2011 में मैनचेस्टर पर खेला था.

हालांकि द्रविड़ ने कोई बहुत बड़ी पारी नहीं खेली और न ही भारत वो मैच जीत पाया लेकिन भारतीय पारी के 11वें ओवर में द्रविड़ ने कुछ ऐसा कारनामा कर दिखाया जो किसी ने सोचा भी नहीं था.

इंग्लैंड के खिलाफ टैस्ट सीरीज में शानदार प्रदर्शन करने वाले द्रविड़ को एकदिवसीय क्रिकेट से यादगार विदाई देने के लिए टीम में चुना गया. इस टी20 के बाद उन्होंने अपने आखिरी 5 एकदिवसीय मैच भी इंग्लैंड के खिलाफ खेले.

अपने इस एकमात्र टी20 में पार्थिव पटेल के आउट होने के बाद द्रविड़ बल्लेबाजी करने आये और तब भारत का स्कोर 39/1 था. 11वें ओवर तक द्रविड़ संभल कर खेल रहे थे क्योंकि आखिर पहला मैच तो पहला ही होता है. लेकिन 11वें ओवर में जब समित पटेल गेंदबाजी करने आये तो नजारा ही बदल गया.

अगले 6 गेंदों में जो हुआ वो किसी भी द्रविड़ प्रशंसक के लिए किसी तोहफे से कम नही था. उन्होंने दिखाया कि टी20 में भी वो क्या कर सकते हैं. ओवर की आखिरी तीन गेंदों पर उन्होंने लगातार तीन छक्के लगाये.

लेकिन इसके बाद वो अगले ही ओवर में आउट हो गए. फिर भी उनके द्वारा लगाये गये वो 3 छक्के उन्हें सीमित ओवरों में कम आंकने वालों के लिए एक करारा जवाब था.

आपको बता दें द्रविड़ ने अपने करियर में कुल 164 टेस्ट मैच, 344 वनडे मैच खेले हैं. टेस्ट मैच में उन्होंने 52.31 के औसत से 13288 रन बनाये जिसमें उन्होंने 36 शतक और 63 अर्धशतक लगाये. टेस्ट मैच में उनका सर्वाधिक स्कोर 270 रन है. वहीं 344 वनडे मैच में उन्होंने 39.16 के औसत से 10889 रन बनाये जिसमें उन्होंने 12 शतक और 83 अर्ध शतक लगाये. यही नहीं उन्होंने विकेट कीपर की भी भूमिका बखूबी निभाई. उन्होंने टेस्ट और वनडे दोनों मे मिलाकर 406 कैच और 14 स्टंपिंग की है.

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