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शिखर धवन ने इस खिलाड़ी को बताया डेथ ओवर का बादशाह

सलामी बल्लेबाज शिखर धवन ने भारत की छह विकेट की जीत के लिए गेंदबाजों को श्रेय देते हए कहा कि उन्होंने दूसरे एकदिवसीय अंतरराष्टीय मैच में न्यूजीलैंड को कम स्कोर पर रोककर आधा काम कर दिया था. भारत ने पुणे में खेले गए दूसरे वनडे मैच में न्यूजीलैंड को हराकर तीन मैचों की सीरीज 1-1 से बराबर कर ली.

अब निर्णायक मुकाबला 29 अक्टूबर को कानपुर में खेला जाएगा. धवन ने 68 और दिनेश कार्तिक ने 64 रन की नाबाद पारी खेली, जिससे भारत ने महाराष्ट्र क्रिकेट संघ के स्टेडियम में चार ओवर रहते 230 रन का लक्ष्य हासिल कर लिया था.

धवन ने मैच के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘‘निश्चित रूप से, इन दिनों 230 रन का स्कोर ज्यादा नहीं है. गेंदबाजों ने सचमुच काफी अच्छा काम किया और फील्डरों ने भी उनका पूरा साथ दिया. गेंदबाजों ने हमारे लिए आधा काम कर दिया था. 230 रन के लक्ष्य का पीछा करने का दबाव निश्चित रूप से 300 रन के लक्ष्य का पीछा करने की तुलना में कम ही होगा.”

31 वर्षीय बल्लेबाज ने कहा, ‘‘भारत ने जब गेंदबाजी की तो कोई सीम मूवमेंट नहीं था और भारतीय गेंदबाजों ने बहुत ही कसी गेंदबाजी की और हमारे लिए अच्छा काम किया. हमने भी उनके तेज गेंदबाजों का अच्छी तरह सामना किया और उनके बल्लेबाजों की तुलना में अच्छा खेले.’’ धवन ने तेज गेंदबाज भुवनेश्वर कमार की भी प्रशंसा की जिन्होंने 45 रन देकर तीन विकेट हासिल किए.

इस बल्लेबाज ने कहा, ‘‘उसने (भुवनेश्वर) ने अपना स्तर बढ़ा दिया है और मुझे लगता है कि वह काफी उच्च स्तर पर पहुंच गया है. उसका गेंदबाजी में नियंत्रण भी बहुत अच्छा है. यहां तक कि जब वह धीमी गेंद फेंकता है तो वह सुनिश्चित करता है कि यह सही लाइन एवं लेंथ में जाए.’’

उन्होंने आगे कहा कि, ”अगर डेथ ओवरों में गेंदबाजी की बात की जाए तो वो दुनिया के सबसे बेहतरीन डेथ ओवर गेंदबाज हैं. धवन ने कहा कि उन्होंने भुवनेश्वर कुमार को आईपीएल में लगातार डेथ ओवरों में यॉर्कर डालते देखा है और भारत के लिए खेलते हुए भी उन्होंने ऐसा किया है. वो लगातार काफी बेहतरीन तरीके से ऐसा कर रहे हैं.”

हिंदू धर्म के अंधविश्वास का शिकार किन्नर समाज रूढ़िवाद से निकले बाहर

किन्नर समाज हिंदू धर्म के अंधविश्वास का शिकार है. इसी के चलते यह समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाता है. सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि खुद किन्नर अंधविश्वास को अपनी कमाई का जरीया बनाते हैं. रूढि़वादी रीतिरिवाजों जैसे शादी, बेटा या बेटी का जन्म, गृह प्रवेश जैसे आयोजनों की आड़ में वे मोटा दान लेते हैं. दान को अपना हक समझते हुए वे कई बार जोरजबरदस्ती करने लगते हैं, जिस की वजह से आपराधिक वारदातें भी घट जाती हैं.

किन्नर समाज कबीलाई संस्कृति का भी शिकार होता रहा है. गुरु की गद्दी पर कब्जा करने के लिए कई तरह के दांवपेंच भी आजमाए जाते हैं.

लेकिन अब किन्नर समाज बदल रहा है. पहले जहां देश के अलगअलग हिस्सों में केवल किन्नर सम्मेलन या मेले लगते थे, पर अब किन्नर फैशन शो भी करने लगे हैं.

लखनऊ में किन्नर समाज की पायल सिंह ने ‘पायल फाउंडेशन’ बना कर किन्नरों को नई राह दिखाने का काम शुरू किया है. इस वजह से पूरे देश में किन्नर समाज का हुनर सामने आ रहा है.

आमतौर पर ढोलक की थाप पर शगुन मांगने और उम्मीद से कम मिलने पर जोरजोर से ताली बजाने की पहचान वाले किन्नर लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में एक के बाद एक रैंप पर उतरे, तो देखने वाले देखते ही रह गए.

पायल सिंह कहती हैं, ‘‘मैं ने यह महसूस किया है कि जब तक मुख्य समाज में हम अपने अच्छे बरताव से संबंध नहीं सुधारेंगे, तब तक हमें कोई स्वीकार नहीं करेगा.

‘‘जब मैं ने अपने समाज में सुधार की बात कही, तो मेरा विरोध हुआ. इस के बाद भी मैं ने कभी हार नहीं मानी और अपना काम जारी रखा.

‘‘किन्नरों पर जबरन वसूली का आरोप लगता रहा है. उन की आड़ में गैरकिन्नर व आपराधिक सोच के लोग वसूली करते हैं.

‘‘हमारी यही कोशिश है कि किन्नर समाज को हिकारत से न देखा जाए. वे भी किसी मां की कोख से पैदा हुए हैं. हमारी कोशिश है कि हम रीतिरिवाजों में नेग मांगने के बजाय रोजीरोटी के दूसरे तरीके अपनाएं. हमारे बीच के जो लोग आगे बढ़ रहे हैं, उन को समाज का साथ मिल रहा है. ऐसे शो देख कर लोगों को लगता है कि हम भी समाज का हिस्सा हो सकते हैं.’’

किन्नर समाज से जुबैदा, शनाया, शबा, मोहिता, सुमन, खुशी, मोहिनी, कजरी, डिंपी और चमन रैंप पर उतरीं, तो पायल सिंह ने उन का साथ दिया.

इस कार्यक्रम में किन्नरों की जिंदगी पर बनी शौर्ट फिल्म और नाटक पेश किए गए, जिस से लोगों को इन के बारे में पता चल सका.

किन्नरों को मौडल की तरह से रैंपवाक के लिए तैयार करने जैसा मुश्किल काम कोरियोग्राफर अमृत शर्मा ने आसान बनाया. नतीजतन, किन्नर कुछ इस तरह रैंप पर उतरे कि लोगों को पता ही नहीं चला कि वे पेशेवर मौडल नहीं हैं.

यह है चाहत

किन्नर न केवल खुद को बदलने के लिए मेहनत कर रहे हैं, बल्कि उन की कोशिश होती है कि वे आम लोगों की तरह से दिख सकें. ऐसे में वे अपनी बोलचाल और पहनावे में बदलाव कर रहे हैं.

शबा ने बताया कि वह 12वीं जमात पास कर चुकी है. उस ने प्राइवेट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए फार्म भर दिया है. पढ़ाई करने के बाद वह नौकरी करना चाहती है.

शबा कहती है, ‘‘मुझे फैशन का शौक है. मैं आगे चल कर फैशन सिखाने का काम करना चाहती हूं, जिस से हमारे समाज के लोग अपने पैरों पर खड़े हो सकें.’’

शनाया को भी फैशन का शौक है.  वह लोगों को फैशन के टिप्स भी देती है, जिस से लोग फैशन में किसी से कम न दिख सकें. वह फिल्मों में ऐक्टिंग क रना चाहती है.

शनाया कहती है, ‘‘जिस तरह से पिछले कुछ सालों से किन्नर समाज में बदलाव आया है, उस से हमारा हौसला बढ़ा है. अब हम रोजीरोटी कमाने के लिए दूसरे काम कर रहे हैं.’’

खुशी का कहना है, ‘‘मुझे कपड़े कैसे भी पहनने को मिलें, पर गहने हैवी होने चाहिए. मैं हीरे के गहने पहनना पसंद करती हूं. लेकिन अभी मेरे पास हैं नहीं. ऐसे में मैं सोने के गहनों से ही काम चलाती हूं. गले में चेन और कानों में झाले पहनती हूं. मेरे गहने ड्रैस की मैचिंग वाले होते हैं.’’

डिंपी को भारतीय कपड़ों के बजाय वैस्टर्न डै्रस पसंद है. उस का फिगर ऐसा है कि वैस्टर्न ड्रैस उस पर फबती है. उस के पास गाउन, मिडी, शार्ट्स के तमाम डिजाइन हैं.

मोहिनी को सलवारसूट पहनना पसंद है. उसे प्लेन पटियाला, सितारे लगा सूट, सैमी पटियाला और नौर्मल सलवारसूट पहनना पसंद है.

बदल रही है सोच

किन्नर समाज के इस शो को देखने के लिए पूरा हाल खचाखच भरा हुआ था. टैलीविजन सीरियल ‘शक्ति: अस्तित्व के एहसास की’ में सौम्या नामक किरदार किन्नर है. वह अपने पति और परिवार को कैसे संभालती है, यह बताया गया है. इस से पता चलता है कि अगर किन्नर खुद में बदलाव करे, तो समाज उस को स्वीकार करने को तैयार है.

किन्नर समाज के लोगों से जो डर होता है, वह नेग की वसूली से होता है. हिंदू रीतिरिवाजों में यह कहा गया है कि किन्नर को नेग देने से खुद का भला होता है. ऐसे में समाज किन्नरों को नेग दे कर खुश रहना चाहता है. समाज के जो लोग नेग की रकम किन्नर के मुताबिक नहीं देते, तो दोनों के बीच मतभेद हो जाते हैं.

मनचाहा नेग पाने के लिए बहुत से किन्नर लोगों को डरातेधमकाते हैं, तोड़फोड़, लड़ाईझगड़ा करते हैं. कई बार मानसिक दबाव बनाने के लिए वे कपड़े उठा कर अपने अंगों को दिखाने की कोशिश करते हैं, जिस से लोगों को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है.

कई बार यह भी देखा गया है कि किन्नरों की आड़ में दूसरे दबंग किस्म के लोग वसूली करते हैं. कई बार किन्नरों और गैरकिन्नरों के बीच ऐसे टकराव

की वारदातें भी होती रहती हैं. रेलगाड़ी, बाजारों और सड़क के किनारे वसूली करने वालों में किन्नर और गैरकिन्नर दोनों ही शामिल होने लगे हैं.

गरीब हैं परेशान

किन्नर, जिस को ट्रासजैंडर और शीमेल भी कहा जाता है, यह एक मैडिकल कमजोरी होती है. ऐसे हालात किसी भी परिवार में जनमे बच्चे

के साथ हो सकते हैं. जिन परिवारों के पास पैसा है, वे अपने बच्चे को पढ़ालिखा कर उस के बरताव में बदलाव ला कर उसे किन्नर समाज से दूर रखने में कामयाब हो जाते हैं.

किन्नरों द्वारा बच्चे को उठाने की वारदातें अब केवल गरीब, दलित और कम पढे़लिखे लोगों के यहां ज्यादा होती हैं. बड़े घरों में जनमे ऐसे बच्चे अपनी रुचि के हिसाब से कैरियर अपना लेते हैं. कई घरों के ऐसे बच्चे डांस करने लगते हैं. वे डांस को ही अपना कैरियर भी बना लेते हैं.

कुछ ऐसे बच्चे कोरियोग्राफी, फैशन और ऐक्टिंग में अपनी राह तलाश लेते हैं. ऐसे में इन की परेशानियां काफी हद तक कम हो जाती हैं.

निदा नामक एक कलाकार का कहना है, ‘‘पहले के मुकाबले आज हमारे प्रति लोगों का रवैया का बदल रहा है. हां, जो लोग हमें नहीं जानते, वे जरूर छींटाकशी करने से बाज नहीं आते हैं.’’

निदा खुद को किन्नर कहलाया जाना पसंद नहीं करती. वह खुद को शीमेल कहती है.

निदा का कहना है, ‘‘किन्नर शब्द सुनने में थोडा अजीब लगता है. यही वजह है कि ‘हिजड़ा’ शब्द का प्रयोग बंद किया गया था.’’

अंधविश्वास पड़ रहा भारी

जिस तरह से अगवा कर किन्नर बनाने की वारदातें पहले खूब होती थीं, पर अब वे काफी कम हो गई हैं. ऐसे में केवल गरीब और दलित, पिछड़ी जाति के किन्नर ही समाज में सब से ज्यादा बचे हैं. गरीबी है, साधन नहीं हैं, ऐसे में वे अपनी शारीरिक कमजोरी को छिपा नहीं पाते हैं. बाद में वे इस को ही कमाई का जरीया बना लेते हैं.

किन्नर समाज से जुड़े कुछ लोग कहते हैं कि वे जातिधर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करते. वे इस बात को स्वीकार जरूर करते हैं कि आज के दौर में बड़े परिवारों के किन्नर बच्चे किन्नर समाज का हिस्सा नहीं बनते. वे अपनी अलग दुनिया में चले जाते हैं.

किन्नरों में फैले अंधविश्वास को ले कर भी कई तरह की सोच फैली है.  उन के अंतिम संस्कार और रीतिरिवाजों को ले कर तमाम तरह के भरम फैले हुए हैं.

किन्नर खुद का इस तरह पैदा होना पिछले जन्म का संस्कार मानते हैं. ऐसे में वे अंतिम क्रिया ऐसे करते हैं, जिस से अगले जन्म में किन्नर पैदा न हों.

आज बहुत से लोग इस बात को समझने लगे हैं कि किन्नर पैदा होना मैडिकल परेशानी की वजह से है. ऐसे में वे पुराने रीतिरिवाजों से बाहर निकल रहे हैं. जो कम पढ़ेलिखे लोग हैं, वे ही ऐसी दकियानूसी सोच में फंसते हैं.

किन्नर समुदाय के कुछ लोग जिस्म बेचने के कारोबार में जुड़े हैं. ऐसे लोग बाकी समाज को भी बदनाम करते हैं. जरूरत इस बात की है कि किन्नर समाज रोजीरोटी के लिए बेहतर रास्ते तलाश करे, जिस के बाद ही वे समाज का हिस्सा बन सकेंगे.

श्रीश्री 108 चाटुकाराय नम: – चाटुकारिता के ये तरीके बड़े काम के हैं

श्री चाटुकार चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि. बरनउं चाटुकार बिमल जसु जो दायक फल चारि. बुद्धिहीन खुद को जानिके सुमिरौं चाटुकार कुमार. संबल, साहब का प्यार देहु मोहिं, मैं हूं निपट गंवार.

मतलब, इस जगत के सभी क्लास के चाटुकारो, आप पर कुछ लिखने से पहले आप को मेरा कोटिकोटि प्रणाम. उम्मीद है कि आप मुझे इस गुस्ताखी के लिए माफ करेंगे.

आप पर मैं तो क्या, व्यासजी होते तो भी लिखने से पहले सौ बार दंडबैठक निकाल लेते. उस के बाद भी आप पर लिखने की शायद ही हिम्मत कर पाते.

यह तो मेरा गुरूर है कि हजार शब्दों का मजाक लिखने वाला टुच्चा सा दिशाहीन, दशाहीन आप पर लिखने की हिमाकत कर रहा है.

आप मेरी इस गुस्ताखी को माफ करेंगे, क्योंकि आप पर लिखना तो जैसे केतु पर थूकना है.

पर क्या करूं, अगर चार दिन न लिखूं, तो उपवास रखने के बाद भी 5वें दिन लिखे बिना मुझे कब्ज हो जाती है. और आप तो जानते ही हो कि कब्ज हर बीमारी की जड़ है.

हे कणकण में समाए चाटुकारो, मेरी आप से कोई दुश्मनी नहीं है. आदमी में जरा भी अक्ल हो, तो वह सब से सीना तान कर दुश्मनी ले सकता है, पर आप से सपने में भी दुश्मनी ले तो जब तक इस धरती पर जन्ममरण का चक्कर चलता रहे, तब तक वह नरक में ही रहे, चाहे कितने ही व्रत या तीर्थ क्यों न कर ले.

मेरे प्रिय चाटुकारो, साहब जितना आप से प्यार करते हैं, उतना तो अपनी बीवी से भी नहीं करते होंगे. मैं तो बस अपनी कब्ज को दूर रखने के लिए आप पर लिख रहा हूं.

आप काम न करने वाले को साहब की नजरों में चढ़ा सकते हो, तो दिनरात जिंदगीभर दफ्तर में काम करने वाले किसी शख्स को आप एक ही धक्के में नजर से गिरवा सकते हो. हे वंदनीय चाटुकारो, इस संसार में 2 तरह के जीव हैं. एक तो वे, जो अपना काम करने के बाद भी दफ्तर में साहब से जूते खाते हैं, तो दूसरे वे, जो आठों पहर चौबीसों घंटे साहब की चाटुकारी करते हुए हाथ पर हाथ धरे बड़े मजे के साथ छप्पन भोगों का लुत्फ उठाते हैं.

आप के पास चाटुकारी के ऐसेऐसे हथियार हैं कि आप के सामने इंद्र भी लड़ने आ जाएं, तो भी आप का बाल न बांका कर सकें.

आप की जबान में इतनी मिठास होती है, जितनी दिनरात फूल पर मंडराने के बाद शहद इकट्ठा करने वाली मधुमक्खी के शहद में भी नहीं होती.

साहब के पैरों में आप अपने अंगअंग को इस तरह तोड़मरोड़ कर रख देते हो कि बड़े से बड़ा नट भी आप के इस हुनर को देख कर आप के आगे सिर झुकाने को मजबूर हो उठे.

हे साहबों के प्रिय चाटुकारो, आप की हर युग में चांदी रही है. दस भुवनों में कोई खुश हो या न हो, पर आप हर भुवन में औरों को धुआं देने, दिलवाने के बाद हमेशा खुश रहे हो.

इस धरती पर हर युग बदला. सतयुग गया, तो त्रेता आया. त्रेता गया, तो द्वापर आया. द्वापर गया, तो कलियुग आया. पर हे चाटुकारो, आप हर युग में रहे.

अब मेरे युग को ही देखिए. मेरे दफ्तर में चपरासी हथेली पर तंबाकू रगड़ता छोटे क्लर्क की चाटुकारी में मस्त है, तो छोटे बाबू बड़े बाबू की चाटुकारी में उन के आसपास सारी फाइलें बंद किए जुटे हैं. फाइलें तो बाद में भी होती रहेंगी, पर अगर चाटुकारी का यह मौका हाथ से छूट गया, तो पता नहीं फिर कब मिले?

असल में भूखे को बिना रोटी खाए नींद आ सकती है, पर चाटुकार जिस दिन साहब की चाटुकारी न करे, वह रातभर करवटें ही बदलता रहता है.

साहब की चाटुकारी करने में बड़े बाबू घर के सारे काम छोड़ कर जुटे हैं, तो साहब मंत्रीजी की चाटुकारी में. वे उन की चाटुकारी से खुश हो जाएं, तो स्वर्ग सा सुख भोगते रहें.

मंत्रीजी दिनरात मुख्यमंत्री की चाटुकारी में लगे हैं. मुख्यमंत्री खुश रहें, तो क्या मजाल कि कोई उन को कुछ भी करने से रोक सके.

मुख्यमंत्री राजधानी के चक्कर लगा रहे हैं. हाईकमान की चाटुकारी करतेकरते जीभ का थूक है कि औरों से उधार पर ला रहे हैं. हाईकमान खुश, तो बाकी सब जाएं भाड़ में.

हे मेरे परम पूजनीय चाटुकारो, आप हर लोक का सच हैं, बाकी सब झूठ है. आप ने अपनी चाटुकारी हरकतों से हर दफ्तर में अपने से ऊपर के हर बौस को हराभरा रखा है. अब आप की तारीफ

में और क्या लिखूं–चाटुकार अनंत, चाटुकारी अनंता… साहब चरन, साहब खुश करन, चाटुकारी मूरति रूप. चाटुकारी का भंडार लिए हर मन बसो, हे साहब के धूप.

बिना सिम और बिना किसी टैरिफ प्लान, इस तरह करें फ्री कौल

आज हर कोई स्मार्टफोन का प्रयोग करता है. जब भी किसी से बात करनी होती है तो आपको उसकी किमत चुकानी पड़ती है और तो और आपको फोन में सिम होना भी जरूरी होता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कोई ऐसा भी तरीका हो सकता है, जिससे आप बिना सिम और बिना किसी टैरिफ प्लान का इस्तेमाल किये बिना फ्री कालिंग कर सकते हैं? जी हां ऐसा होना अब सम्भव है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि फ्री एंड्रायड एप्स के जरिए यह संभव हो सकता है. इन एप्स की मदद से यूजर दो स्मार्टफोन को वौकी-टौकी में बदल सकते हैं. इसके जरिए बात करने पर आपको कोई शुल्क नहीं देना पड़ेगा. पर इससे फ्री कालिंग करने के लिए जरूरी है कि यह एप्स दोनों स्मार्टफोन में हो. लेकिन बता दें कि इसका इस्तेमाल सीमित तौर पर ही किया जा सकता है. क्योंकि ये एप्स उसी रेंज तक काम करेंगे, जितने में ब्लूटूथ की पकड़ होगी.

कितनी होती है ब्लूटूथ की रेंज

ब्लूटूथ की रेंज फिक्स होती है. इसका दायरा तकरीबन 100 मीटर तक होता है. इसलिए जब आप ब्लूटूथ से कालिंग करेंगे तो दूसरे स्मार्टफोन का रेंज में होना जरुरी है. फिर तो जाहिर सी बात है कि आप दूर बैठे लोगों से तो इसके जरिए बात नहीं कर पाएंगे. लेकिन आस-पास रहने वाले अपने दोस्तों से बात करना और किसी खेल में इसका उपयोग करना जरूर मजेदार होगा. कुल-मिलाकर इन एप्स से आप दो स्मार्टफोन को वौकी-टौकी में बदल पाएंगे.

क्या करना होगा?

सबसे पहले ब्लूटूथ टौकी या ब्लूटूथ वौकी-टौकी एप को अपने फोन में डाउनलोड कर लें. इसके बाद आपको जिस दूसरे फोन पर काल करना है, उसको भी यह एप डाउनलोड करने को कहे.

एप को खोलने के बाद आपको वाई-फाई या सर्च करने का विकल्प दिखाई देगा.

दोनों स्मार्टफोन के ब्लूटूथ को आन करके उन्हें आपस में कनेक्ट कर लें.

अब एप में सर्च या वाई-फाई के विकल्प को इस्तेमाल करें.

इससे फोन में सेव ब्लूटूथ की लिस्ट ओपन हो जाएगी.

जिस दूसरे स्मार्टफोन पर आपने एप इन्स्टाल किया है, उसके ब्लूटूथ का चयन कर लें.

इससे दूसरे फोन पर घंटी जाने लगेगी.

अब सामने वाला यूजर आपका फोन उठाकर आपसे फ्रि में बात कर सकता है.

इसमें यूजर की सुविधा के लिए स्पीकर और म्यूट के बटन भी उपलब्ध हैं.

बस इन आसान से तरिके को अपनाकर आपको स्मार्टफोन वौकी-टौकी में तब्दील हो जाएगा. फिर क्या आप इससे घण्टो बिना किसी शुल्क के बात कर सकेंगे. तो फिर देर किस बात की अभी अपनाएं ये तरिका और बनायें अपने फोन को वौकी-टौकी.

ताज विवाद के बाद ‘बैकफुट’ पर योगी सरकार

उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग की बुकलेट में जब आगरा के ताज महल को पर्यटक स्थलों की सूची से हटाकर हाशिये पर रखा गया, तो भाजपा कार्यकर्ताओं ने ताज के खिलाफ एक माहौल बनाना शुरू कर दिया. ताज महल बनाने वाले मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी पत्नी मुमताज महल को लेकर सोशल मीडिया पर एक मुहिम चला दी गई. इस मुहिम के कुछ ही दिनों में ताज महल की ख्याति पर सवालिया निशान लगाने शुरू कर दिये.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा नेता अखिलेश यादव ने कहा कि ‘जो लोग ताज महल को संस्कृति का हिस्सा और धरोहर नहीं मानते, वही लोग ताज महल पहुंच गये. वह लोग अगर ताज महल गये तो कोई न कोई दवाब रहा होगा.’ अखिलेश यादव ने कहा कि केन्द्र सरकार के दबाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ताज महल जाकर वहां झाडू लगानी पड़ी.

असल में पूरा ताज महल विवाद नौकरशाही और नेताओं की अदूरदर्शिता का परिणाम है. आगरा का ताज महल विश्व स्तर पर एक धरोहर के रूप में मौजूद है. उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक विदेशी पर्यटक ताज महल ही देखने आते हैं. पर्यटन विभाग के अधिकारी और पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने ताज विरोधी विचारधारा का समर्थन करने के लिये पर्यटन विभाग की बुकलेट में ताज को नजरअंदाज किया. इसके बाद से ताज विरोधी विचारधारा का समर्थन करने वालों को पूरा मौका मिल गया. ताज महल को शंकर का मंदिर बताया गया.

उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और सरकार ने समय रहते इस बात का संज्ञान नहीं लिया. जिससे ताज विरोधी विचारधारा बढ़ती गई. ताज की निगरानी और सुरक्षा पर कोर्ट की भी नजर रहती है. केन्द्र सरकार को लगा कि यह विवाद कहीं उसके गले की फांस न बन जाये, क्योंकि ताज केन्द्र सरकार के आधीन है. ऐसे में मुख्यमंत्री योगी को आगरा के ताज महल जा कर विवाद खत्म करने की अपील करनी पड़ी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ डिप्टी सीएम डाक्टर दिनेश शर्मा और पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने ताज महल जाकर वहां के वेस्ट गेट पर झाडू भी लगाई. मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि ताज के निर्माण के विवाद में न फंसे. इसके संरक्षण और संर्वधन के लिये सबको आगे आना चाहिये. असल में नौकरशाही के कुछ अफसर कुर्सी पर बैठे लोगों को किसी भी तरह से खुश करना चाहते हैं. कार्यकर्ता भी बड़े पैमाने पर इस काम में लग जाते हैं. भेडचाल में उलझे यह लोग यह नहीं समझते कि यह अपने नेता के गले में ही फंदा डालते हैं. उत्तर प्रदेश में पर्यटन को बढ़ाने के लिये पर्यटकों सुरक्षा देनी पड़ेगी. खासकर विदेशी पर्यटकों के साथ बदसलूकी की घटनाये बहुत होती हैं.

ताज विवाद के इसी दौर में 22 अक्टूबर को आगरा के ही पास फतेहपुरी सीकरी में स्विटजरलैंड के रहने वाली युगल पर पथराव और पिटाई की घटना हुई. मारपीट की घटना में स्विस लड़की के हाथ में फैक्चर हो गया. बुलंद दरवाजा के पास घटी घटना से विदेशी पर्यटक सदमें में आ गये, वह पुलिस के पास गये पर वहां पुलिस का रवैया देखकर केस लिखाने से इंकार कर दिया. दिल्ली जाकर अपोलो अस्पताल में अपना इलाज कराया. इस दौरान विदेश मंत्रालय के संज्ञान में मामला आया. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जब इस पर ट्वीट किया तो उत्तर प्रदेश की पुलिस के प्रमुख डीजीपी सुलखान सिंह भी सक्रिय हुये. इसके बाद आगरा पुलिस ने अपनी तरफ से मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को पकड़ने का दावा किया.

स्विटजरलैंड के रहने वाले कंटम क्लार्क और उनकी महिला मित्र मैरी डेग के साथ घटी घटना से पता चल गया कि उत्तर प्रदेश की पुलिस किस तरह से काम करती है. अगर पुलिस घटना के समय ही कड़े कदम उठाती तो पर्यटकों को साहस मिलता और उनका पर्यटन से मोहभंग नहीं होता. असल में हम केवल भारतीय संस्कृति में मेहमान को भगवान मनाने की बात तो करते हैं पर हमारे यहां के लोग विदेशी मेहमानों से सहयोग के बजाय उनके शोषण की ही बात सोचते हैं.

सबसे खराब बात यह है कि हमारे यहां के लोगों को लगता है कि यह सेक्स में खुलेपन का व्यवहार करते हैं, ऐसे में सहज सुलभ होते हैं. इस वजह से विदेशी पर्यटकों के साथ ऐसा व्यवहार होता है. पहले भी इस तरह की घटनायें होती रही हैं. इस वजह से ही पर्यटन पुलिस तक बनाई गई, पर वह भी कागजी होकर रह गई है.

विदेशी पर्यटकों के खिलाफ अपराध करने वालों का हौंसला इसलिये भी बढ़ जाता है, क्योंकि यहां कि पुलिस उनका सहयोग नहीं करती. अपराध करने वालों को लगता है कि विदेशी शिकायत करने के बजाय डर कर भाग जायेगा. ऐसे में उसका हौसला बढ़ जाता है. स्विस युगल के साथ फतेहपुरी सीकरी में हुई घटना में यही हुआ. पूरा मामला तेजी पर तब आया जब दोनों ही देशों का विदेश मंत्रालय हरकत में आया.

ऐसे अपराधों को रोकने के लिये स्थानीय पुलिस, नागरिकों और प्रशासन को हरकत में आना पड़ेगा. भारतीय संस्कृति की रक्षा के नाम पर कुछ लोग विदेशी पर्यटकों को खराब मानते हैं. ऐसे में जब ताज महल विवाद भी शुरू हुआ, तो प्रदेश सरकार की छवि को धक्का लगा.

उत्तर प्रदेश में विरोधी दलों कांग्रेस और सपा ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस के प्रवक्ता अमरनाथ अग्रवाल ने कहा कि फतेहपुर की घटना से पर्यटन उद्योग को नुकसान हुआ. अमरनाथ अग्रवाल ने कहा कि भाजपा के राज में जिस तरह से लव जेहाद, बीफ, गौरक्षा के नाम पर लोग हावी होकर धमकाने का काम करने लगते हैं. इससे ऐसे अपराधों का मनोबल बढ़ता है. इस तरह की घटनायें लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरा बन जाती हैं.

देश के अंदर ही नहीं देश के बाहर भी उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियों की आलोचना होने लगी. चौतरफा हमले से घिरी सरकार बचाव में उतर आई. तब मुख्यमंत्री, पर्यटन मंत्री और यहां की नौकरशाही को बैकफुट पर आना पड़ा. डैमेज कंट्रोल के लिये मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और पर्यटन मंत्री को सरकारी अफसरों सहित ताज महल पहुंच कर झाडू थामनी पड़ी. इस तरह की घटनाओं से सरकार की प्रशासनिक क्षमता का पता चलता है. सरकार को चाहिये कि ऐसे विवादों से खुद को दूर रखे जिससे उसकी बेहतर छवि बन सके.

देश के लिए चिंता का सबब है लड़कियों का यौन शोषण

यौन हिंसा की घटनाएं आजकल कुछ ज्यादा ही घट रही हैं. दुराचार, शायद अनियंत्रित कामवासना को संतुष्ट करने का एक जुगाड़ है. असल में बलात्कार या डेटरेप से पहले बलात्कारी के दिमाग में नशे की तरह से फैला हुआ संक्रमण होता है. लेकिन उस संक्रमण का शिकार बलात्कारी नहीं, पीडि़ता होती है. सहना पीडि़ता को ही पड़ता है. पीडि़ता को ही दोषी माना जाता है. समाज व खानदान के नाम पर उसे धब्बा भी कहा जाता है. इतना ही नहीं, उसे खानदान के नाम पर प्रताडि़त भी किया जाता है.

शादी का झांसा दे कर किसी लड़की के साथ शारीरिक रिश्ते बनाना और बाद में शादी से मना करना, आजकल आम बात है.  क्या यह बलात्कार के दायरे में आता है, वह भी तब, जब लड़के का लड़की से शुरू से ही शादी करने का कोई इरादा न हो? हम इसे शादी की आड़ में यौन शोषण कह सक सकते हैं.

अधिकतर लड़के शादी का झांसा दे कर लड़कियों से शारीरिक रिश्ते बनाते हैं और तब तक कार्यक्रम चलता रहता है जब तक लड़की गर्भवती नहीं हो जाती. फिर आसान सा रास्ता सुझाया जाता है गर्भपात का. कुछ मामलों में गर्भपात कराना मुश्किल हो जाता है और आखिरकार  मामला परिवार व पड़ोसियों की नजर में आ ही आता है.

सहमति का संशय

अधिकतर मामलों में ऐसे दोषियों के खिलाफ मामले बहुत कम दर्ज होते हैं. कारण, समाज का डर होता है. अगर मामला दर्ज हो भी, तो होता कुछ नहीं. लगभग रोज ही ऐसी कई घटनाएं घट रही हैं. कई बार सवाल उठाए गए हैं कि किसी लड़की से शादी का झूठा वादा कर के शारीरिक रिश्ते बनाना सहमति है या नहीं? यदि वह बलात्कार नहीं है तो धोखेबाजी है या नहीं?

ऐसे ही एक केस में कलकत्ता उच्च न्यायालय का मानना था, ’’अगर कोई बालिग लड़की शादी के वादे के आधार पर शारीरिक रिश्ते बनाने को राजी होती है और तब तक इस गतिविधि में लिप्त रहती है जब तक कि वह गर्भवती नहीं हो जाती, तो यह उस की ओर से स्वच्छंद संभोग के दायरे में आएगा. ऐसे में, तथ्यों को गलत इरादे से प्रेक्षित नहीं किया जा सकता. इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा-90 के तहत अदालत द्वारा कुछ नहीं किया जा सकता. जब तक यह आश्वासन न मिले कि रिश्ते बनाने के दौरान आरोपी का इरादा आरंभ से ही शादी करने का नहीं था.‘‘

वहीं दूसरी ओर, बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी बी वग्यानी ने एक सुनवाई के दौरान कहा, ’’शादी करने का झूठा वादा महज धोखाधड़ी है. भारतीय दंड संहिता की धारा-415 में धोखाधड़ी के अपराध को परिभाषित किया गया है. बिना किसी संदेह के अपराधी का अपराध दंडनीय है, क्योंकि पीडि़ता को जानबूझ कर शादी करने के वादे के झांसे में रख कर, शारीरिक रिश्ते बनाने के लिए उकसाया गया था. आरोपी ने लड़की से शादी करने का वादा किया और इसी प्रभाव में लड़की ने उस के साथ शारीरिक रिश्ते भी बना लिए. लड़की भी उस से शादी करने को उत्सुक थी, लेकिन लड़के ने जो वादा किया, वह झूठा था. यह विवाह करने के वादे को ले कर वादाखिलाफी का मामला प्रतीत होता है, न कि विवाह के झूठे वादे का मामला.‘‘

असल में यह भावनाओं और नाजुक पलों में जनून से जुडे़ मामले होते हैं. जब भी लड़कालड़की मिलते हैं, एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. लड़की भी उस लड़के को काफी छूट देती है, जिस से वह बेहद प्यार करती है. लड़के के बुलाने पर चोरीछिपे लड़की सुनसान जगह पर चुपचाप मिलती भी है और संबंध भी बनाती है.

जब दो जवान लोग हों, तो आमतौर पर यह होता ही है कि वे सभी अहम बातें भुला कर जनून में आ कर प्यार कर बैठें, खास कर तब जब वे कमजोर क्षणों में अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाते. ऐसे में, दोनों के बीच शारीरिक रिश्ते कायम हो ही जाते हैं. लड़की स्वेच्छा से लड़के के साथ रिश्ते कायम करती है, वह उस से बेहद प्यार करती, इसलिए नहीं कि उस लड़के ने उस से शादी करने का वादा किया था, बल्कि इसलिए कि लड़की ऐसा चाहती भी थी.

गलतफहमी या धोखा

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में लड़की की उम्र, उस की शिक्षा और उस के सामाजिक स्तर व लड़के के मामले में भी इन्हीं सब पर गौर किया जाना जरूरी है. वैसे तो लड़की स्वयं इस कृत्य में बराबर की भागीदार है पर वह समझ नहीं पा रही हो कि किन हालात के चलते वह ऐसे कृत्य में फंस गई और ऐसे में, लड़की के हामी भरने की कोई अहमियत नहीं है. उस से गलतफहमी में हामी भरवाना धोखा है. इसे लड़की की मंजूरी नहीं माना जा सकता.

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वी के जैन ने 1 फरवरी, 2010 को आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए और ऐसे आपराधिक कृत्य की निंदा करते हुए कहा, ’’अदालत ऐसे मौकापरस्त लोगों को लड़की की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का लाइसैंस नहीं दे सकती. लड़कियों का शोषण करने वाले ऐसे लोगों को बेखौफ बच निकलना कानून का मकसद कभी नहीं हो सकता, जो इस घिनौने कृत्य के बाद ताउम्र जेल की सजा का हकदार है.‘‘

बंबई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बी यू वाहाने ने (1991) के एक मामले में सामाजिक अनुभव के आधार पर स्पष्ट किया कि वयस्क लड़की से चालबाजी से उस की सहमति ले ली जाए वह भी तब जब वह बेसहारा और सैक्स को ले कर असंतुष्ट हो, उसे पैसे की जरूरत हो, बहानों से उसे प्रभावित किया जाए या हामी भरने के हालात बनाए जाएं आदि में कानूनी राय और फैसले सीधेसीधे बंटे हुए हैं, सहमति और तथ्यों के उलझाव में उलझे हुए हैं, क्योंकि कानून पूरी तरह पारदर्शी नहीं है और फैसले हर मामले के तथ्यों व हालात के आधार पर होते हैं.

हालांकि न्यायिक राय को ले कर आमराय यही है कि ऐसे मामलों में सब से कठिन काम यह साबित करना होता है कि लड़की का शारीरिक शोषण हुआ है. औरत के खिलाफ अपराध संबंधी किंतुपरंतु को ले कर जब तक कानून में संशोधन नहीं होता, न्याय से जुड़े ऐसे कानूनी पेंच यों ही कायम रहेंगे.

उदाहरण के लिए बाराबंकी में 9वीं क्लास की नाबालिक लड़की से उस के ही सहपाठी द्वारा एकांत पा कर बलात्कार किया गया. लेकिन पुलिस ने सिर्फ छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया. मुरादाबाद और झांसी में भी कुछ ऐसा ही हुआ. सिर्फ फर्क इतना है कि संबंध सहमति से बने थे पर बाद में एक लड़की एमएमएस का शिकार हुई तो दूसरी गैंगरेप का और उस ने खुद को आग लगा ली. कानपुर और लखनऊ में भी बलात्कार की शिकार 2 नाबालिक लड़कियां मौत की नींद सो गईं.

सिर्फ सवाल जवाब नहीं

एक शोध के अनुसार दुनियाभर में हर 3 में से 1 महिला को शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ता है. यही नहीं, दुनियाभर में 30 प्रतिशत महिलाएं नजदीकी साथी द्वारा हिंसा या दुर्व्यवहार की शिकार होती हैं. एक और रिपोर्ट के मुताबिक, अपने साथी द्वारा शारीरिक या यौन दुर्व्यवहार की शिकार होने वाली 42 प्रतिशत महिलाएं इस से चोटिल होती हैं. हजारों ऐसे मुकदमे, आंकड़े, तर्ककुतर्क, जालजंजाल और सुलगते सवाल समाज के सामने आज भी मुंह बाए खड़े हैं.

अन्याय, शोषण और हिंसा की शिकार स्त्रियों के लिए घरपरिवार की दहलीज से अदालत के दरवाजे तक बहुत लंबीचौड़ी खाई है, जिसे पार कर पाना दुसाध्य काम है. अदालत के बाहर अंधेरे में खड़ी आधी दुनिया के साथ न्याय का फैसला कब तक सुरक्षित रहेगा या रखा जाएगा? कब, कौन, कहां, कैसे सुनेगा इन के दर्द की दलील और न्याय की अपील, ये सवाल समाज से जवाब मांग रहे हैं.

युवा तोड़ें धार्मिक जकड़न : त्योहारों का संबंध समाज से हो, धर्म से नहीं

किशोरावस्था तक जो त्योहार मन को खूब भाते हैं वे युवावस्था आतेआते क्यों मन को कचोटने लगते हैं, इस बात का हमारे तीजत्योहार प्रधान देश में इस सवाल से गहरा संबंध है कि त्योहार कैसे मनाएं. 15-16 वर्ष की उम्र तक के किशोरों के तर्कों को हवा में उड़ा दिया जाता है लेकिन युवाओं के तर्कों का सहज जवाब आज तक कोई धर्म या उस का जानकार नहीं दे पाया.

यह दीगर बात है कि उन्हें गोलमोल वैज्ञानिक किस्म के जवाब दे कर संतुष्ट करने और धर्म से सहमत करने की कोशिशें की जाती हैं जिन के अपनेअलग माने होते हैं.

त्योहारों का संबंध समाज से ज्यादा है या धर्म से, इस सवाल के जवाब में भोपाल के एक प्राईवेट इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे द्वितीय वर्ष के छात्र शाश्वत मिश्रा कहते हैं कि सिखाया तो यही गया है कि त्योहार किसी न किसी धार्मिक कारण के चलते मनाए जाते हैं जिन में आजादी कम बंदिशें ज्यादा होती हैं. बकौल शाश्वत, ‘‘भोपाल में पढ़ने आने के पहले तक घर में उसे नवरात्रि के दिनों में व्रत रखने को बाध्य किया जाता था लेकिन होस्टल में आ कर यह नियम टूट गया. इस से कोई खास फर्क नहीं पड़ा. उलटे, एक दबाव से मुक्ति मिली.’’

साफ यह हुआ कि भारतीय समाज बहुत ही वर्जनाओं में जीता है. त्योहारों के दिनों में तो खासतौर से व्यक्तिगत स्वतंत्रता के कोई माने नहीं रह जाते.

शाश्वत के ही एक सहपाठी अनिमेष की राय उस से उलट है कि धर्म के दिशानिर्देशों को मानने में हर्ज क्या है. अनिमेष की नजर में इस बात को मुद्दा बनाया ही नहीं जाना चाहिए कि धर्म क्या कहता है. हमें त्योहारों के दूसरे पहलुओं को देखना चाहिए, मसलन सब से बड़ा त्योहार दीवाली एक सामाजिक उल्लास का प्रतीक है. इस दिन और रात हम एक विशिष्ट मानसिकता में रहते हैं. साफसफाई पर जोर दिया जाता है. घरों में नएनए सामान खरीदे जाते हैं. नए कपड़े पहने जाते हैं. पकवान बनते हैं. आतिशबाजी चलाई जाती है. ऐसे में धर्म का रोना ले कर बैठ जाना फुजूल का पूर्वाग्रह नहीं, तो क्या है.

विरोधाभासी जकड़न

5वीं क्लास में रटाया जाने वाला दीवाली का निबंध बांच रहा अनिमेष और उस निबंध को धार्मिक जकड़न बता रहा शाश्वत दरअसल 2 अलगअलग विचारधाराओं का प्रतिनिधत्व करते नजर आते हैं. पहली समझौतावादी है जबकि दूसरी तर्क आधारित है.

हैरत की बात यह है कि इन दोनों ने ही बीती 5 सितंबर को गणेश विसर्जन के दौरान होस्टल में साथ बैठ कर शराब पी थी और दोनों को ही इस में किसी गणेश या धर्म का खौफ नहीं लगा था. इन की नजर में यह झूमनेनाचने गाने का इवैंट था ठीक वैसे ही जैसा हर साल एक जनवरी को होता है.

फिर एक वर्ग क्यों तर्क को पूर्वाग्रह करार देते धर्म और उस की बंदिशों पर बहस या चर्चा करने से बचना चाहता है. इस सवाल का मनोवैज्ञानिक जवाब तो यही नजर और समझ आता है कि धार्मिक सिद्धांतों और निर्देशों का पालन करना बचपन से ही थोप दिया जाता है.

ऐसे में इन की सफाई समझने के बाद भी अधिकांश युवा धर्म के खोखलेपन को इसलिए स्वीकार लेते हैं और जिंदगीभर ढोते भी रहते हैं कि कौन फालतू के विवादों में फंसे, सदियों और पीढि़यों से जो होता आ रहा है उसे करते रहने में हमारा क्या बिगड़ता है.

बिगड़ता यह है

हर युवा का अपना एक दार्शनिक दृष्टिकोण भी होता है जो अपनी जिज्ञासाओं का समाधान चाहता है, लेकिन वह खोखली बातों से बहलने को तैयार नहीं होता, मसलन बहुत साधारण और प्रचलित यह धारणा कि दीवाली पर विधिविधान से पूजापाठ करने से लक्ष्मी आती है.

लक्ष्मी यानी पैसा अगर एक खास दिन पूजापाठ करने से आता होता तो मेहनत की जरूरत क्या, इस बात को अब अधिकांश युवा सोचने लगे हैं.

बीकौम की छात्रा अदिति की मानें तो अगर ऐसा है तो मैं रोज लक्ष्मीपूजा करने को तैयार हूं, लेकिन लक्ष्मी या कोई दूसरा देवीदेवता इस बात की गारंटी तो ले.

बीकौम करने के साथसाथ बैंक की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही अदिति का मानना है कि जो हासिल होगा वह लगन और मेहनत से होगा. मेहनत तो हम खूब करते हैं और उस से ही कैरियर बनता है पर हमारी लगन को धर्म का नाम प्रेरणा या उपलब्धि करार दे दिया जाता है.

यानी कुछ अच्छा हुआ तो व्रत, उपवास और पूजापाठ की वजह से हुआ और मनमाफिक नहीं हुआ तो किस्मत खराब थी या मेहनत में कोई कमी थी. जिस की जिम्मेदारी लेने से कोई तैयार नहीं. युवा पीढ़ी कभी भाग्यवादी नहीं रही, इसलिए वह त्योहारों की धार्मिक जकड़न से मुक्ति चाहती है जो उसे आसानी से नहीं मिल रही. ऐसे में वह या तो अनिमेष की तरह समझौता कर लेती है यानी धार्मिक जकड़न के आगे हथियार डालती है या फिर शाश्वत की तरह अपने सवाल व तेवर कायम रखती है.

मिलता यह है

सवालों और तर्कों का गहरा संबंध युवाओं के आत्मविश्वास से है. जो युवा जवाब न मिलने पर धार्मिक जकड़नों को नकारने लगे हैं उन में एक अलग तरह का आत्मविश्वास होता है क्योंकि वे दिमागीतौर पर किसी रूढि़ या चमत्कार के गुलाम नहीं रहते.

कम मात्रा में ही सही ये वे युवा हैं तो संतुष्ट रहते हैं, किसी संदेह में नहीं जीते. लेकिन जिन युवाओं ने असमंजस पाल रखा है वे कैरियर में सफल भले ही हो जाएं पर संतुष्ट नहीं रह पाते. इसलिए उन में आत्मविश्वास बेहद कम होता है.

हर दौर में युवा यह सवाल पितृपक्ष के दिनों में जरूर करते हैं कि जब ब्राह्मण के जरिए खायापिया पूर्वजों तक पहुंच जाता है तो वे मोबाइल फोन क्यों नहीं ले लेते जिस से पूर्वजों से बातचीत ही हो जाए. सोशल मीडिया पर यह सवाल या दलील इस साल भी खूब वायरल हुई थी. लेकिन इस पर बहस नहीं हुई. यह बेहद निराशाजनक बात है. वजह, युवा फेसबुक और व्हाट्सऐप पर धर्म व जाति के आधार पर तो खूब एकदूसरे पर कीचड़ उछालते हैं लेकिन एक मामूली सवाल का जवाब नहीं दे पाते.

यह युवावर्ग कहीं जवाब मांगने की जिद पर अड़ न जाए, इसलिए हर साल धार्मिक जकड़न शिथिल कर दी जाती है, जिस का मकसद या साजिश युवाओं को धर्म के मकड़जाल में उलझाए रखना होता है.

एक नई जकड़न

मिसाल झांकियों की लें तो अब युवा शराब पी कर विसर्जन समारोह में नाचगा सकते हैं. इस से अब धर्म भ्रष्ट नहीं होता. जींसटौप पहने युवतियों को भी नाचनेगाने की छूट मिल गई है और अब वे धार्मिकतौर पर अछूत नहीं रही हैं. गणेश और दुर्गा के साथ सैल्फी खींचते युवा अगर यह समझते हैं कि वे धार्मिक जकड़न से अपनी कोशिशों के चलते इस तरह मुक्त हो रहे हैं तो यह उन की गलतफहमी ही है.

दरअसल, उन्हें एक नई जकड़न में कसा जारहा है जिस में धर्म की रस्सी थोड़ी मुलायम है. बंद कोठरी से निकाल कर किसी कैदी को हवा और रोशनी देने वाली खिड़की वाली कोठी में रख दिया जाए तो उसे थोड़ी राहत तो मिलेगी पर रिहाई नहीं. कुंडी ज्यों की त्यों ही बंद रहती है.

युवाओं को इस जकड़न को त्योहारों के मद्देनजर समझना होगा कि मिल रही रियायतें रिहाई नहीं हैं, एक नए किस्म की जकड़न हैं. जिन की तुलना उस आलीशान मौल से की जा सकती है जिस में चमकदमक है और डिस्काउंट भी लेकिन घाटा उठाने को दुकानदार तैयार नहीं. यह लुभाने का नया तरीका है जिस से प्रोडक्ट इस तरह बेचा जाए कि खरीदार को लगे कि उस का फायदा हुआ है.

त्योहार अगर सामाजिक भाईचारे व उल्लास के प्रतीक होते तो उन में पूजापाठ व्रत, उपवास और दर्जनों बंदिशों की जरूरत नहीं पड़ती. अगर त्योहार आज भी कुछ छूट के साथ ही सही, धर्म के मुताबिक मनाया जा रहा है तो यह एक साजिश है जिस में युवाओं की मरजी की कोई अहमियत नहीं रह जाती.

युवा कब तक इस धार्मिक जकड़न से नजात पाएंगे इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिला. हां, व्यक्तिगत स्तर पर हिम्मत करते वे खुद को मुक्त कर पाए तो जरूर दूसरे भी उन के पीछे चलेंगे और त्योहारों का सही लुत्फ उठा पाएंगे. किसी शाश्वत और अनिमेष का गणेश विसर्जन पर शराब पीना कोई चुनौती, बुद्धिमानी या बगावत की बात नहीं थी क्योंकि वे दूसरे तरह से अपनी सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं और इस से धर्म को एतराज नहीं, तो यह जकड़न का नया संस्करण नहीं तो और क्या है?

सही मेकअप बढ़ाए खूबसूरती, इसलिए हमेशा ध्यान में रखें ये बातें

युवावस्था ऐसा समय है जब हर युवती खुद पर इतरानाइठलाना चाहती है. कुछ उम्र का असर, कुछ बदलती भावनाओं का, युवतियों पर अनूठी छटा खुद ही आ जाती है. लेकिन इसी उम्र में पिंपल भी अपना रंग दिखा रहे होते हैं. आप को अपनी सहेलियों के संग मूवी देखने जाना हो या फिर किसी मौल में घूमना हो, तब आप का रूप निखारता है मेकअप.

मेकअप करते समय युवतियों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उन का मेकअप उन की उम्र के अनुसार हो यानी न अधिक भड़कीला और न अधिक उत्तेजक. अच्छा मेकअप करने के लिए कुछ टिप्स का ध्यान रखें :

पिंपल्स की समस्या

युवतियों के सब से बड़े दुश्मन होते हैं पिंपल्स. इन के इलाज हेतु घरेलू उपचार करें और यदि घरेलू उपचार से आप को फायदा न हो तो किसी त्वचा विशेषज्ञ की राय लें. अपनी ड्रैस पर हजार रुपए खर्च करने की जगह अपने चेहरे को पिंपल्स से छुटकारा दिलाने में समझदारी है.

घरेलू उपाय

मुलतानी मिट्टी का फेसपैक चेहरे की तैलीय त्वचा को ठीक करता है.

बेसन से मुंह धोने से भी तैलीय त्वचा बेहतर होती है.

एक चम्मच दालचीनी और 2 चम्मच शहद को अच्छी तरह मिला कर 10-15 मिनट के लिए चेहरे पर लगाएं और फिर धो डालें. दालचीनी का रोगाणुरोधी गुण और शहद के ऐंटीबायोटिक होने से पिंपल में आराम मिलता है.

ऐसे ही आप एलोवेरा जैल, पके  हुए पपीते के गूदे या संतरे के छिलके का पेस्ट भी चेहरे पर लगा कर फायदा उठा सकती हैं.

युवतियों का मेकअप कैसा हो

युवावस्था में अत्यधिक मेकअप अच्छा नहीं लगता. हलका मेकअप मासूमियत बनाए रखता है.

आंखों पर रंगबिरंगे आईशैड लगाने के बजाय सुनहरे रंग का इस्तेमाल करें. इस से आप की आंखें चमक उठेंगी और साथ ही मेकअप ओवरडू नहीं लगेगा.

गालों को उभारते हुए चेहरे पर गुलाबी ब्लश लगाएं. इस से आप का लड़कपन छलकेगा और साथ ही, युवावस्था का ब्लश भी.

पलकों पर काला मसकारा लगाएं.

भड़कीली गहरे रंग की लिपस्टिक न लगाएं. युवावस्था में होंठों पर हलकी गुलाबी या न्यूड रंग की लिपस्टिक अच्छी लगती है.

फाउंडेशन न लगाएं

अकसर युवतियां अपने पिंपल्स छिपाने के लिए फाउंडेशन लगा लेती हैं. किंतु युवावस्था में फाउंडेशन लगाने से बचना चाहिए. फाउंडेशन 30 साल के आसपास की महिलाओं पर जंचता है. युवतियों को अपने पिंपल छिपाने के लिए कंसीलर और उस के ऊपर टिंटेड मोइश्चराइजर का प्रयोग करना चाहिए.

टिप : कंसीलर लगाने का सही तरीका है कि उसे पिंपल के ऊपर रगड़ा न जाए बल्कि हलके हाथ से हर पिंपल के ऊपर उंगली से लगाया जाए.

हलकेफुलके टिप्स

बालों को सुंदर और रेशमी बनाए रखने के लिए हफ्ते में एक दिन जैतून के तेल से मालिश करें.

होंठों को मुलायम रखने के लिए वैसलीन का इस्तेमाल करना सर्वोत्तम है.

त्वचा को टैन होने से बचाने के लिए सनस्क्रीन लगाना न भूलें. इस से त्वचा टैन होने से बचने के साथसाथ झाइयों व झुर्रियों से भी बचती है.

नाखूनों को कभी दांतों से न काटें. यह आदत न केवल नाखूनों को खराब करती है बल्कि सेहत के लिए भी हानिकारक है. ढंग से नेल फाइलर से फाइल करें.

स्वस्थ त्वचा यानी सुंदर आप चाहे आप कितना भी सजसंवर लें, यदि आप की त्वचा स्वस्थ नहीं है तो सुंदर लगना मुश्किल है. अपनी त्वचा का ध्यान रखें. हर रात सोने से पहले चेहरा किसी अच्छे क्लींजर से धोएं ताकि चेहरे का अतिरिक्त तेल निकल जाए. उस के बाद अच्छी गुणवत्ता का मोइश्चराइजर लगाएं ताकि आप की त्वचा मुलायम और लचीली रहे.

टिप : त्वचा को स्वस्थ रखने हेतु जंकफूड के सेवन से बचें. खाने में हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडा, मछली, दूध से निर्मित खाद्य, फल आदि खाने चाहिए. पानी खूब पीना चाहिए ताकि शरीर से टौक्सिन निकल जाएं.

हफ्ते में एक दिन हलके हाथों से स्क्रब कर डैड स्किन हटा दें. घरेलू स्क्रब बनाने के लिए आप ओटमील या फिर संतरे के छिलकों का प्रयोग कर सकती हैं.

जीप लौंच करने वाली है सबसे सस्ती एसयूवी, ये है खासियत

दुनिया की मशूहर 4 व्हीलर निर्माता कंपनी जीप (Jeep) भारतीय बाजार में अपना बिजनेस बढ़ाने की तैयारी कर रही है. जीप के वाहनों को पहले से ही भारतीयों के बीच काफी पसंद किया जाता है, ऐसे में उम्मीद है कि उसके आने वाले नए मौडल्स को भी लोग खूब पसंद करेंगे. कंपनी का कहना है कि 2020 तक इंडियन औटो मार्केट में 5 नई SUV पेश की जाएंगी. इसमें सबसे पहली लौन्चिंग कौम्पैक्ट एसयूवी रेनिगेड (Renegade) की होगी.

पढ़िए SUV रेनिगेड की खूबियां

माना जा रहा है कि रेनिगेड जीप की इंडियन औटो मार्केट में सबसे सस्ती SUV होगी. जीप की एक और एसयूवी कम्पास से भी कम रखे जाने की उम्मीद है. कंपनी यहां पर अन्य कौम्पेक्ट सेडान क्रेटा और डस्टर के आधार पर रेनिगेड की कीमतों को तय करेगी. यह भी उम्मीद है कि क्रेटा के मुकाबले रेनिगेड (Renegade) का मूल्य एक लाख रुपए ज्यादा होगा.

कौम्पैक्ट साइज

अभी दुनिया के अन्य देशों में रेनिगेड का जो साइज मौजूद है उसकी लंबाई 4.2 मीटर, ऊंचाई 1.7 मीटर और चौड़ाई 1.9 मीटर है. वहीं इसी सेगमेंट की क्रेटा की लंबाई 4.2 मीटर, ऊंचाई 1.6 मीटर और चौड़ाई 1.8 मीटर है. वहीं रेनौल्ट की डस्टर की बात करें तो इसकी लंबाई 4.3 मीटर, ऊंचाई 1.69 मीटर और चौड़ाई 1.8 मीटर है. इस तरह यह इस रेंज की कौम्पैक्ट सेगमेंट कारों में सबसे ऊंची और चौड़ी कार होगी.

इंजन क्वालिटी

यह भी उम्मीद है कि भारतीय बाजार के लिए जीप रेनिगेड में कम्पास का लोअर पावर आउटपुट वाला इंजन लगाया जाएगा. इस आधार पर रेनिगेड में 2.0 लीटर का डीजल इंजन होने की संभावना है. यह इंजन 140 HP की पावर देता है. जीप इसमें 1.6 लीटर का मल्टीजेट इंजन का भी इस्तेमाल कर सकती है.

4 व्हील ड्राइव औप्शनल

कम्पास के आधार पर ही जीप रेनिगेड में 4 व्हील ड्राइव को औप्शनल दिए जाने की उम्मीद की जा रही है. उम्मीद की जा रही है कि जीप की नई एसयूवी भारतीय बाजार में 2018 के अंत तक लौन्च हो सकती है. इसे कम्पास के साथ ही कंपनी के राजनगांव प्लांट में असेंबल किया जाएगा.

आप के खास लुक के लिए कैसा हो हेयरस्टाइल, आइए जानते हैं

उत्सव का माहौल हो और लुक्स की बात न हो, ऐसा तो मुमकिन ही नहीं. लुक्स खास हो तो त्योहार भी अपनेआप खास हो जाता है. जहां महिलाएं अपने कपड़ों और गहनों को ले कर सजग होती हैं, वहीं मेकअप और हेयरस्टाइल को ले कर भी खास प्लान बनाती हैं, क्योंकि त्योहार को खास बनाने में ड्रैसिंग सैंस और मेकअप के अलावा हेयरस्टाइल का भी अहम रोल होता है.

तो इस त्योहार आप के खास लुक के लिए कैसा हो हेयरस्टाइल, आइए जानते हैं:

सैंटर पफ विद स्ट्रीकिंग

सब से पहले प्रैसिंग कर के बालों को स्ट्रेट लुक दें और फिर फ्रंट के बीच के बालों को ले कर पफ बनाएं. पफ के चारों तरफ दूसरे कलर की हेयर ऐक्सटैंशन लगा लें. हेयर ऐक्सटैंशन को बालों के बीच मर्ज करते हुए एक साइड पर ट्विस्टिंग रोल चोटी बना लें.

सैंटर वियर फाल

सब से पहले बालों को प्रैसिंग मशीन की मदद से स्ट्रेट कर लें. फिर साइड पार्टीशन कर के फ्रंट से एक साइड की फ्रैंच बना लें और चोटी को खुले बालों की ओर कर दें. ड्रैस के अनुसार चोटी में बीड्स या ऐक्सैसरी लगाएं. यह आप को बेहद ऐलिगैंट लुक देगा.

सौफ्ट कर्ल

बालों को साइड पार्टिंग दें. फिर फ्रंट के कुछ बालों को छोड़ कर गरदन से ऊंची पोनी बना लें. सारे बालों को कर्लिंग रौड से कर्ल कर लें. फं्रट के छोड़े हुए बालों को ट्विस्ट करते हुए बैक पर ले जा कर पिनअप कर दें. पोनी के ऊपर फैदर या फिर अपनी मनपसंद हेयर ऐक्सैसरीज लगा लें. ये बाल चेहरे पर न आएं, इस के लिए साइड पार्टीशन कर के कोई भी सुंदर सा क्लिप लगा सकती हैं.

ये सभी हेयरस्टाइल आप के लुक में बदलाव लाने के साथसाथ आप के व्यक्तित्व को भी आकर्षक बना देंगे.

– भारती तनेजा, डाइरैक्टर, एल्प्स क्लीनिक  

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