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हमसे जानिए कैसे करें टैक्स्चर के अनुरूप बालों की देखभाल

आप के बालों का आकार प्रकार न केवल आप की जीवनशैली को प्रदर्शित करता है, बल्कि आप की मनोस्थिति का भी आभास देता है. बालों का प्राकृतिक सौंदर्य बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उन की बनावट को ध्यान में रख कर उन की देखभाल की जाए.

कैसे करें टैक्स्चर के अनुरूप बालों की केयर जानते हैं इशिका तनेजा से:

सामान्य बाल और उन की देखभाल

अगर आप को गरमी के मौसम में 2 दिन बाद और सर्दी के मौसम में 3 दिन बाद बाल धोने की जरूरत महसूस हो, तो समझें आप के बाल सामान्य हैं. जरूरत और समय के अनुसार बालों को वाश करती रहें.

हफ्ते में 1 बार रात को तिल और बादाम के तेल को मिक्स कर के बालों की मसाज कर सुबह शैंपू से धो लें.

बालों को ज्यादा टाइट बांध कर न सोएं और धोने के लिए कुनकुने पानी का प्रयोग करें.

सामान्य बालों को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. इन में बादाम, नारियल या आंवले का कोई भी तेल लगा सकती हैं.

औयली बाल और उन की देखभाल: अगर बाल धोने के बाद गरमी के मौसम में अगले दिन और सर्दियों के 2 दिन में ही चिपचिपे लगें और उन्हें दोबारा धोने की जरूरत महसूस हो, तो समझ जाएं कि बाल तैलीय हैं.

शैंपू करने से सिर की त्वचा एवं बालों से तेल की सफाई हो जाती है, रूसी, धूल इत्यादि दूर हो जाती है. इसलिए बालों को सप्ताह में कम से कम 1 बार शैंपू से धो लेना चाहिए. शैंपू से बालों का पीएच लैवल बना रहता है.

बाल फूलेफूले व खिले हुए रहें इस के लिए नीबू का प्रयोग कंडीशनर की तरह करें. 1 मग पानी में 1/2 नीबू डालें. बालों को वाश करने के बाद इस पानी से लास्ट रिंस करें.

औयली बाल बिना तेल लगाए ही तेल लगे बालों जैसे दिखते हैं, क्योंकि इस तरह के बाल पहले से ही नमीयुक्त होते हैं. इन बालों को अच्छी तरह साफ करने की जरूरत होती है, क्योंकि ये जल्दी गंदे हो जाते हैं. इन में जैतून या तिल के तेल का प्रयोग कर सकती हैं.

यदि बाल अत्यधिक तैलीय होने के कारण सिर में रूसी हो गई है, तो 1/2 कप पानी में 1 चम्मच त्रिफला डाल कर कुछ देर उबाल कर ठंडा होने दें. फिर छान लें. अब इस में 1 चम्मच सिरका मिला कर रात में बालों में लगाएं और फिर मसाज करें. सुबह बालों को शैंपू से धो लें.

ठंड में बालों में रूसी होने लगती है,

इसलिए मौइश्चराइजिंग यानी जिस में बादाम, औलिव औयल और शहद जैसी चीजें हों का इस्तेमाल करें.

डैंड्रफ  को हलके में न लें. वरना यह बालों तक न्यूट्रिशन नहीं पहुंचने देगा. इस के लिए नीम के कैप्सूल खा सकती हैं या उन्हीं कैप्सूलों को काट कर बालों में लगा सकती हैं. ऐक्सपर्ट की सलाह लेना बेहतर होगा.

ड्राई बाल और उन की देखभाल

शैंपू और कंडीशनर करने के बावजूद यदि बाल रूखेसूखे और सख्त दिखाई दें, तो समझ जाएं कि बालों का टैक्स्चर शुष्क है.

बाल धोने से पहले औलिव और कैस्टर औयल को मिक्स कर के सिर की मालिश करें.

घरेलू कंडीशनर के तौर पर अंडे में नीबू और औलिव औयल की कुछ बूंदें मिला कर बालों में लेप की तरह 1/2 घंटा लगाए रखें. फिर किसी कंडीशनरयुक्त शैंपू से सिर धो लें ताकि अंडे की गंध चली जाए.

रूखे बालों के लिए ऐसे तेल का चुनाव करें, जो उन्हें अंदरूनी तौर पर नमी प्रदान करे. इस के लिए नारियल, जैतून या सरसों का तेल बालों में लगा सकती हैं. बालों के अंदर तक तेल पहुंचाने के लिए बालों की तेल से मालिश करने के बाद गरम तौलिए की भाप लें. इस से तेल बालों की जड़ों तक आसानी से पहुंच जाएगा. यह बालों को अंदरूनी पोषण देने का काम करता है.

ठंड के दिनों में अर्निका ट्री औयल इस्तेमाल करें. यह वाटर बेस्ड होता है. पानी जैसा पतला होने के कारण स्कैल्प इसे तुरंत अजौर्ब कर लेती है. इस से हेयरफाल नहीं होगा और न ही स्कैल्प ड्राई होगी.

– इशिका तनेजा, ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर, एल्प्स कौस्मैटिक क्लीनिक

कैसे पड़ोसी हैं आप, आइए आप को इस के फायदे नुकसान बता दें

एक घटना ने शर्मसार कर दिया. पिछले दिनों मुंबई के एक घर में मिली एक वृद्ध महिला का कंकाल सभ्य समाज के गाल पर एक तमाचा है. दरअसल, जिस वृद्घ महिला की लाश मिली वह विधवा थी और अकेली ही रहती थी. बच्चे विदेश में रहते हैं और कभीकभार ही मुंबई अपनी मां से मिलने आते थे.

इस घटना ने हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम कितने सजग और संवेदनशील हैं. साथ ही यह भी संदेश दे गया कि भारत के शहरों में सामाजिक तानाबाना किस कदर बिखर गया है. यह वृद्घ महिला मर गई पर पड़ोसी तक को भनक नहीं मिली. अब सब चिल्लाचिल्ला कर इस बात की तसदीक करने में जुटे हैं कि लड़के को अपनी मां का ध्यान रखना चाहिए था. पर हजारों मील दूर रहने वाले बेटे से ज्यादा एक पड़ोसी की क्या कुछ जिम्मेवारी नहीं बनती थी? माना कि 2 मकानों के बीच उठी दीवारें हवा, पानी और आवाजें रोक सकती हैं पर रिश्ते से भीगे हृदय के स्पंदन को नहीं, जिसे एक पड़ोसी को समझना चाहिए था.

पड़ोसी के नजरिए से

मन को हताहत कर देने वाली इस घटना के बाद आज अनायास याद आ गए हमारे पड़ोसी गट्टू काका, जिन्होंने पूरी उम्र एक अच्छे पड़ोसी का आदर्श प्रस्तुत किया. मैं दीवाली के समय सपरिवार अपने घर गई थी और जब लौट कर आई तो देखा कि दरवाजे पर दीए रखे थे. मैं ने पूछा कि ये किस ने रखे हैं? पता चला कि मेरे 2 मकान के आगे एक बुजुर्ग दंपती जोकि कुछ महीने पहले ही आए थे उन्होंने रखे हैं. मेरा मन ये सब देख कर भर आया. मैं ने जा कर उन को धन्यवाद दिया.

वे बोले, ‘‘इस में धन्यवाद की क्या बात है, मैं ने सोचा कि इस खाली मकान के घोर अंधकार को भगाऊं तो मैं ने दीप जला दिए. दीवाली में तो केवल हमारे घर ही प्रकाश न हो, बल्कि इस प्रकाश में हमारे पड़ोसी की भी हिस्सेदारी हो.’’

हम आज के बदलते युग में पड़ोसी को सहयोगी नहीं, समस्या मान कर बुरा बरताव करने पर उतारू हैं. क्या हम आज मानते हैं कि पड़ोसी के सुखदुख हमारे सुखदुख हैं? सच तो यह है कि आज के युग में पड़ोसी का महत्त्व सगे भाईबहनों व रिश्तेदारों से ज्यादा है. ज्यादातर लोग नौकरीपेशा हैं और अपने मूल घरों या जन्म स्थान से अलग हैं. इस कारण भाईबांधवों और रिश्तेदारों से बहुत दूर रहना पड़ता है. ऐसे में अगर कोई संकट उत्पन्न हो, तो उस वक्त पड़ोसी ही हमारे काम आते हैं. आज गट्टू काका के दीए की रोशनी को विस्तार देने की जरूरत है, वे तो संकेत दे कर आज इस दुनिया से चले गए लेकिन पड़ोसी के दिल में दीए को रोशन कर गए.

सर्वप्रथम हरेक को ही यह सोचना होगा कि मैं कैसा पड़ोसी अथवा पड़ोसिन हूं? क्या मैं सिर्फ उन लोगों को ही अपना पड़ोसिन मानती हूं, जो मेरी जाति या देश के हैं? क्या मैं दूसरों की मदद करने से इसलिए पीछे हट जाती हूं, क्योंकि वे अलग जाति के हैं या दूसरी भाषा बोलते हैं?

कैसे बनें अच्छे पड़ोसी

अगर हमें लगता है कि हमें एक अच्छा पड़ोसी मिले तो पहले हमें उस को अच्छा पड़ोसी साबित करना होगा और इस की शुरुआत हमें अपने नजरिए से करनी होगी. दूसरों के साथ आदर, गरिमा और प्यार से पेश आने से पड़ोसियों को भी आप के साथ उसी तरह पेश आने का बढ़ावा मिलेगा.

यह सच है कि अधिकतर लोग पड़ोसियों से बात करने से कतराते हैं. उन से बात न करना और दूरी बनाए रखना आसान लग सकता है. कई लोग पड़ोस से मिली मदद और नेक इरादे से दिए गए तोहफों के लिए जरा भी आभार व्यक्त नहीं करते. यह देख कर देने वाला अपने दिल में यह सोच सकता है कि बस, अब ऐसा कभी नहीं करूंगा या करूंगी. हो सकता है कि कभीकभी दोस्ताना अंदाज में हैलोहाय करने या फिर हाथ लहराने पर आप के पड़ोसी ने अनमने भाव से जवाब दिया हो. मगर कई बार पड़ोसी असल में ऐसे भी नहीं होते. वे बस ऐसा नजर आते हैं. शायद वे ऐसी संस्कृति में पलेबढ़े हों जिन की वजह से वे खुल कर बात करने से झिझक या बेचैनी महसूस करते हों. वे शायद परवाह न दिखाएं या बेरुखा लगें. आप को उन का विश्वास जीतने की जरूरत पड़ सकती है, इसलिए दोस्ती कायम करने में वक्त लगता है और धीरज की जरूरत होती है. लेकिन जो पड़ोसी न सिर्फ खुशीखुशी देने की कला सीखते हैं, बल्कि पाने पर एहसानमंद होते हैं, उन के होने से पड़ोस शांति और खुशियों का आशियाना बन जाता है.

दिल में बनाइए जगह

समय के संग सब कुछ बदल रहा है. अगर इस बदलाव के नतीजे को देखें तो आज पड़ोसी अपने पड़ोसी को नहीं पहचानता. आज के समय में समाचारपत्र और टीवी, हर जगह एक ही विषय पर चर्चा होती है कि आज यहां लूटमार, वहां हत्या, आत्महत्या, बलात्कार और अपहरण हुआ. इस तरह की घटनाएं हमारे सामाज में नासूर बन कर रह गई हैं. इस तरह के अपराध तो हर जगह होते हैं पर शहर में कुछ ज्यादा ही. और सब से बड़ी विडंबना यह है कि जो शहर रात भर जागता हो वहां पर तो कुछ ज्यादा ही इस तरह की घटनाएं घटित होती हैं. सब से आश्चर्य की बात तो आज यह है कि पड़ोस में घटित घटना की खबर हमें टीवी या अखबार से मालूम पड़ती है. आज हम अपने पड़ोस के बारे में कोई जानकारी न तो रखना चाहते हैं और न ही उस में दिलचस्पी दिखाते हैं. जिंदगी की इस आपाधापी में हम अपने परिवार तक सीमित हो कर रह गए हैं और पड़ोस खत्म सा हो गया है. आधुनिक तकनीक फोन या नैट द्वारा हम भले ही हजारों मील दूर बैठे अनजान मित्र की खुशी और दुख में शामिल रहते हैं. पर पड़ोस के दर्द और सुख से लाखों मील दूर हैं.

आज भी गांव और छोटे शहरों में पड़ोसियत बाकी है. आज भी वहां पर सब एकदूसरे के सुखदुख में शामिल होते हैं. आज भी किसी के घर जाने के लिए पूछने की जरूरत नहीं पड़ती. इन सब को देख कर लगता है कि बड़ेबड़े शहरों में रह रहे लोग पढ़लिख कर आत्मकेंद्रित हो गए हैं. बिल्ंिडग में रह रहे लोग पड़ोसी सभ्यता को भूल बैठे हैं. इसी कारण आज समाज में ऐसी घटनाएं हो रही हैं और हर पड़ोसी अपनेआप को असहज, असुरक्षित और अकेलेपन की जिंदगी जीने पर बाध्य है.

बन सकते हैं अच्छे पड़ोसी

अपने पड़ोसियों से अनजान बन कर न रहें. उन से बोलचाल रखें. आप के पड़ोसी आप को तभी जानेंगे, जब आप का उन से परिचय, बातचीत होती रहेगी.

अपने पड़ोसियों का यथोचित अभिवादन करें. बड़ों को नमस्कार, हम उम्र को नमस्ते और छोटों को स्नेह करें. यह शिष्टाचार आप को पड़ोसियों के बीच लोकप्रिय बनाएगा.

पड़ोसियों की मदद के लिए खुद आगे आएं. आप उन के काम आएंगे, तो वे भी जरूरत पड़ने पर आप के साथ होंगे.

पड़ोसियों के साथ न तो अकड़ में रहें न ही डींगें हांकें. यदि आप पड़ोसियों को छोटा जताने की कोशिश करेंगे, तो वे आप को कभी पसंद नहीं करेंगे.

पड़ोसियों को अपना कुछ समय दें जैसे हमउम्र लड़केलड़कियों के साथ किसी खेलकूद या ऐक्टिविटी में हिस्सा जरूर लें. यह आप के व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी तो है ही, साथ ही यह टीम भावना भी जगाता है.

घर से बाहर निकलते समय यह जरूर देख लें कि आप ने आधेअधूरे कपड़े तो नहीं पहन रखे हैं. इस से आप के पड़ोसियों को अटपटा लग सकता है. सलीके से कपड़े पहनने पर वे आप की तारीफ करेंगे और इस आदत से आप आगे भी सम्मान पाएंगे.

भूल कर भी पड़ोसियों के बारे में कोई बुरी बात न कहें.

पड़ोसियों के यहां से कोई निमंत्रण आए और आप व्यस्त न हों तो उस में अवश्य जाएं. अगर किसी वजह से न जा पाएं, तो उन से क्षमा मांग लें. आप ऐसा करेंगे, तो वे भी आप के निमंत्रण पर सहर्ष आना पसंद करेंगे.

पड़ोसी के यहां जाने पर बारबार घंटी न बजाएं और न ही जोरजोर से दरवाजा पीटें. ऐसा करने से पड़ोसी की नजर में आप की छवि खराब होगी.

नाग के साथ काम करना खतरनाक था : पूनम दुबे

भोजपुरी फिल्मों और मौडलिंग में एकसाथ अपनी पहचान बनाने वाली पूनम दुबे उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद की रहने वाली हैं. साल 2009 में उन को ‘मिस इलाहाबाद’ चुना गया था. इस के बाद पूनम ने ऐक्टिंग में अपना कैरियर बनाने का मन बना लिया. उन की मां ने पूनम को पूरा सहयोग दिया.

साल 2013 में पूनम दुबे की पहली फिल्म ‘गरदा’ रिलीज हुई. इस के बाद ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’, ‘जो जीता वही सिकंदर’, ‘अदालत’, ‘बलमा बिहार वाला’, ‘कट्टा तनल दुपट्टा’, ‘बहूरानी’, ‘दीवाना-पार्ट 2’, ‘दिल तेरा आशिक’, ‘काट के रख देब’, ‘इंतकाम’, ‘रंगदारी टैक्स’, ‘इच्छाधारी नागिन’, ‘चना जोर गरम’ उन की खास फिल्में रहीं. आने वाली फिल्मों में ‘रंगीला’, ‘लुटेरे’, ‘घात’, ‘सनम’ और ‘सौगात’ रिलीज होने को तैयार हैं.

पूनम दुबे ने फिल्मों में आइटम डांस से ले कर लीड हीरोइन तक हर तरह के रोल किए हैं. भोजपुरी फिल्मों की दुनिया में उन को ‘हौट बेबी’ के नाम से जाना जाता है.

पेश हैं, पूनम दुबे के साथ हुई बातचीत के खास अंश:

आप ने 2 फिल्मों में नागिन का रोल किया है. कैसा अनुभव रहा?

नागिन का किरदार करना चुनौती भरा काम था. इस की वजह यह है कि नागिन का किरदार अलगअलग समय में बहुत बड़ीबड़ी हीरोइनें निभा चुकी हैं. मुझे अपने काम से यह साबित करना था कि नागिन का किरदार मैं भी कर सकती हूं.

फिल्म ‘इच्छाधारी नागिन’ में मेरे किरदार को पसंद किया गया. इस के बाद फिल्म ‘चना जोर गरम’ में भी वही किरदार मुझे करना पड़ा. इस में मुझे नाग के साथ कुछ सीन शूट करने थे. तब मैं ने सोचा कि क्यों न असली नाग लिया जाए. मेरी बात और लोगों की समझ में आई. असली नाग लाया गया. उस के साथ मैं ने बहुत डरतेडरते अपने सीन शूट किए. सीन शूट होने के बाद एक रोमांचक सा अनुभव हुआ.

भोजपुरी फिल्मों की ‘हौट बेबी’ टाइटल सुन कर कैसा लगता है?

यह सुन कर मुझे अच्छा लगता है. इस के लिए मैं अलग से कोशिश नहीं करती. मेरा बदन ही ऐसा है, जिस की वजह से मुझे ‘हौट बेबी’ कहा जाता है. मैं लंबी दिखती हूं, जिस से थोड़ा सा भी ऐक्सपोज करते ही हौट दिखने लगती हूं. कई हीरोइनें तो ऐसी हैं, जो मुझ से कम कपड़े पहनने के बाद भी मासूम दिखती हैं. मैं हर तरह के रोल करती हूं. मेरे आइटम डांस काफी मशहूर रहे हैं. आइटम डांस बेहूदा नहीं, बल्कि चटपटे होते हैं. जिस तरह से चटपटा खाना स्वाद को बढ़ा देता है, वैसे ही आइटम डांस भी दर्शकों को मनोरंजन से भर देते हैं.

क्या भोजपुरी फिल्मों में ज्यादा बदन दिखाना पड़ता है?

अब ऐसी बात नहीं है. भोजपुरी फिल्में भी सुधर रही हैं. अब वे पहले से ज्यादा साफसुथरी बनने लगी हैं, जिस से पूरा परिवार साथ बैठ कर इन फिल्मों को देखने लगा है. केवल बदन दिखा कर न तो कोई फिल्म चल सकती है और न ही हीरोइन.

भोजपुरी फिल्मों पर ही ऐसे आरोप क्यों लगते हैं?

बदन दिखाने से ज्यादा अहम यह होता है कि उस को कैसे दिखाया जाता है. कई फिल्मों में हीरोइन के बदन को बहुत ज्यादा दिखाया जाता है, पर उन के दिखाने का तरीका ऐसा होता है कि वह बुरा नहीं लगता.

अब भोजपुरी फिल्मों के कैमरामैन इतनी अच्छी तरह से फिल्म शूट करने लगे हैं कि बदन दिखाना कहानी का ही हिस्सा लगता है. भोजपुरी फिल्मों का दर्शक केवल मनोरंजन के लिए फिल्में देखता है. उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, मुंबई और पंजाब में ये फिल्में खूब चलती हैं.

क्या आप ने अपने कैरियर में ज्यादा जद्दोजेहद नहीं की है?

ऐसा बिलकुल नहीं है. मुझे भी बहुत जद्दोजेहद करनी पड़ी. फिल्मों के पहले मैं ने विज्ञापन की शूटिंग की, जिस से मैं अपना खर्च चलाती थी. आज भी मैं फिल्मों से ज्यादा मौडलिंग करती हूं.  कुछ समय मैं मुंबई में अकेली रही. इस के बाद मैं ने अपनी मम्मी और भाई को यहां बुला लिया.

शुरुआत मैं ने फिल्मों में आइटम डांस और साइड रोल से की. अब मैं मेन लीड में काम कर रही हूं. मैं साल में 2 से 4 अच्छी फिल्में करना चाहती हूं. रोल पाने के लिए मैं किसी के पीछे नहीं भागती.

अपने फिगर को आप कैसे बनाए रखती हैं?

मैं शाकाहारी हूं और चावल मेरा पसंदीदा खाना है. इसे मैं हर रूप में खाना पसंद करती हूं. इस को खाने के लिए मैं ज्यादा ऐक्सरसाइज करती हूं. चाट, कुलफी और रबड़ी खाना भी मुझे बेहद पसंद है. दहीजलेबी जैसा स्वाद किसी और में नहीं मिलता है.

अपने खाने के शौक को पूरा करने के लिए मुझे ज्यादा से ज्यादा ऐक्सरसाइज करनी होती है, ताकि मेरा वजन न बढ़ जाए.

पट्टेदार ननुआ : पटवारी ने कैसे बदल दी ननुआ और रनिया की जिंदगी

ननुआ और रनिया रामपुरा गांव में भीख मांग कर जिंदगी गुजारते थे. उन की दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त भी नहीं हो पाता था. ननुआ के पास हरिजन बस्ती में एक मड़ैया थी. मड़ैया एक कमरे की थी. उस में ही खाना पकाना और उस में ही सोना.

मड़ैया से लगे बरामदे में पत्तों और टहनियों का एक छप्पर था, जिस में वे उठनाबैठना करते थे. तरक्की ने ननुआ की मड़ैया तक पैर नहीं पसारे थे, पर पास में सरकारी नल से रनिया को पानी भरने की सहूलियत हो गई थी. गांव के कुएं, बावली या तो सूख चुके थे या उन में कूड़ाकचरा जमा हो गया था.

एक समय ननुआ के पिता के पास 2 बीघे का खेत हुआ करता था, पर उस के पिता ने उसे बेच कर ननुआ की जान बचाई थी. तब ननुआ को एक अजीबोगरीब बीमारी ने ऐसा जकड़ा था कि जिला, शहर में निजी अस्पतालों व डाक्टरों ने मिल कर उस के पिता को दिवालिया कर दिया था, पर मरते समय ननुआ के पिता खुश थे कि वे इस दुनिया में अपने वंश का नाम रखने के लिए ननुआ को छोड़ रहे थे, चाहे उसे भिखारी ही बना कर.

ननुआ की पत्नी रनिया उस पर लट्टू रहती थी. वह कहती थी कि ननुआ ने उसे क्याकुछ नहीं दिया? जवानी का मजा, औलाद का सुख और हर समय साथ रहना. जैसेतैसे कलुआ तो पल ही रहा है.

गांव में भीख मांगने का पेशा पूरी तरह भिखारी जैसा नहीं होता है, क्योंकि न तो गांव में अनेक भीख मांगने वाले होते हैं और न ही बहुत लोग भीख देने वाले. गांव में भीख में जो मिलता है, उस से पेटपूजा हो जाती है, यानी  गेहूं, चावल, आटा और खेत से ताजी सब्जियां. कभीकभी बासी खाना भी मिल जाता है.

त्योहारों पर तो मांगने वालों की चांदी हो जाती है, क्योंकि दान देने वाले उन्हें खुद ढूंढ़ने जाते हैं. गांव का भिखारी महीने में कम से कम 10 से 12 दिन तक दूसरों के खेतखलिहानों में काम करता है. गांव के जमींदार की बेगारी भी. कुछ भी नहीं मिला, तो वह पशुओं को चराने के लिए ले जाता है, जबकि उस की बीवी बड़े लोगों के घरों में चौकाबरतन, पशुघर की सफाई या अन्न भंडार की साफसफाई का काम करती है. आजकल घरों के सामने बहती नालियों की सफाई का काम भी कभीकभी मिल जाता है. ननुआ व रनिया का शरीर सुडौल था. उन्हें काम से फुरसत कहां? दिनभर या तो भीख मांगना या काम की तलाश में निकल जाना.

गांव में सभी लोग उन दोनों के साथ अच्छे बरताव के चलते उन से हमदर्दी रखते थे. सब कहते, ‘काश, ननुआ को अपना बेचा हुआ 2 बीघे का खेत वापस मिल जाए, तो उसे भीख मांगने का घटिया काम न करना पड़े.’

गांव में एक चतुर सेठ था, जो गांव वालों को उचित सलाह दे कर उन की समस्या का समाधान करता था. वह गांव वालों के बारबार कहने पर ननुआ की समस्या का समाधान करने की उधेड़बुन में लग गया.

इस बीच रामपुरा आते समय पटवारी मोटरसाइकिल समेत गड्ढे में गिर गया. उसे गंभीर हालत में जिला अस्पताल ले जाया गया. वहां से उसे तुरंत प्रदेश की राजधानी के सब से बड़े सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया. पटवारी की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई थी और डाक्टरों ने उसे 6 महीने तक बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी थी. पटवारी की पत्नी मास्टरनी थी और घर में और कोई नहीं था.

पटवारी की पत्नी के पास घर के काम निबटाने का समय नहीं था और न ही उसे घर के काम में दिलचस्पी थी. फिर क्या था. सेठ को हल मिल गया. उस की सलाह पर गांव की ओर से रनिया को पटवारी के यहां बेगारी के लिए भेज दिया गया. वह चोरीछिपे ननुआ को भी पटवारी के घर से बचाखुचा खाना देती रही. अब तो दोनों के मजे हो रहे थे.

पटवारी रनिया की सेवा से बहुत खुश हुआ. उस ने एक दिन ननुआ को बुला कर पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी औरत की सेवा से खुश हूं. मैं नहीं जानता था कि घर का काम इतनी अच्छी तरह से हो सकता है. मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हूं. कहो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूं?’’

सेठ के सिखाए ननुआ ने जवाब दिया, ‘‘साहब, हम तो भटकभटक कर अपना पेट पालते हैं. आप के यहां आने पर रनिया कम से कम छत के नीचे तो काम कर रही है, वरना हम तो आसमान तले रहते हैं. हम इसी बात से खुश हैं कि आप के यहां रनिया को काम करने का मौका मिला.’’

‘‘फिर भी तुम कुछ तो मांगो?’’

‘‘साहब, आप तो जानते ही हैं कि गांव के लोगों को अपनी जमीन सब से ज्यादा प्यारी होती है. पहले मेरे पिता के पास 2 बीघा जमीन थी, जो मेरी बीमारी में चली गई. अगर मुझे 2 बीघा जमीन मिल जाए, तो मैं आप का जिंदगीभर एहसान नहीं भूलूंगा.’’

‘‘तुम्हें तुम्हारी जमीन जरूर मिलेगी. तुम केवल मेरे ठीक होने का इंतजार करो,’’ पटवारी ने ननुआ को भरोसा दिलाया.

पटवारी ने बिस्तर पर पड़ेपड़े गांव की खतौनी को ध्यान से देखा, तो उस ने पाया कि ननुआ के पिता के नाम पर अभी भी वही 2 बीघा जमीन चढ़ी हुई है, क्योंकि खरीदार ने उसे अभी तक अपने नाम पर नहीं चढ़वाया था. पहले यह जमीन उस खरीदार के नाम पर चढ़ेगी, तभी सरकारी दस्तावेज में ननुआ सरकारी जमीन पाने के काबिल होगा. फिर सरकारी जमीन ननुआ के लिए ठीक करनी पड़ेगी. उस के बाद सरपंच से लिखवाना होगा. फिर ननुआ को नियमानुसार जमीन देनी होगी, जो एक लंबा रास्ता है.

पटवारी जल्दी ठीक हो गया. अपने इलाज में उस ने पानी की तरह पैसा बहाया. वह रनिया की सेवा व मेहनत को न भूल सका.

पूरी तरह ठीक होने के बाद पटवारी ने दफ्तर जाना शुरू किया व ननुआ को जमीन देने की प्रक्रिया शुरू की. बाधा देने वाले बाबुओं, पंच व अफसरों को पटवारी ने चेतावनी दी, ‘‘आप ने अगर यह निजी काम रोका, तो मैं आप के सभी कामों को रोक दूंगा. इन्हीं लोगों ने मेरी जान बचाई है.’’

पटवारी की इस धमकी से सभी चौंक गए. किसी ने भी पटवारी के काम में विरोध नहीं किया. नतीजतन, पटवारी ने ननुआ के लिए जमीन का पट्टा ठीक किया. आखिर में बड़े साहब के दस्तखत के बाद ही राज्यपाल द्वारा ननुआ को 2 बीघा जमीन का पट्टा दे दिया गया. नए सरकारी हुक्म के मुताबिक पट्टे में रनिया का नाम भी लिख दिया गया.

गांव वाले ननुआ को ले कर सेठ के पास गए. ननुआ ने उन के पैर छुए. सेठ ने कहा, ‘‘बेटा, अभी तो तुम्हारा सिर्फ आधा काम हुआ है. ऐसे तो गांव में कई लोगों के पास परती जमीनों के पट्टे हैं, पर उन के पास उन जमीनों के कब्जे नहीं हैं. बिना कब्जे की जमीन वैसी ही है, जैसे बिना गौने की बहू.

‘‘पटवारी सरकार का ऐसा आखिरी पुरजा है, जो सरकारी जमीनों का कब्जा दिला सकता है. वह जमींदारों की जमीनें सरकार में जाने के बाद भी इन सरकारी जमीनों को उन से ही जुतवा कर पैदावार में हर साल अंश लेता है.

‘‘पटवारी के पास सभी जमीन मालिकों व जमींदारों की काली करतूतों का पूरा लेखाजोखा रहता है. ऊपर के अफसर या तो दूसरे सरकारी कामों में लगे रहते हैं या पटवारी सुविधा शुल्क भेज कर उन्हें अपने पक्ष में रखता है.

‘‘पटवारी ही आज गांव का जमींदार है. और वह तुम्हारी मुट्ठी में है. समस्या हो, तो रनिया के साथ उस के पैर पड़ने चले  जाओ.’’ ननुआ को गांव वालों के सामने जमीन का कब्जा मिल गया. गांव में खुशी की लहर दौड़ गई.

पटवारी ने घोषणा की, ‘‘इस जमीन को और नहीं बेचा जा सकता है.’’ अब ननुआ के लिए पटवारी ही सबकुछ था. उस का 2 बीघा जमीन पाने का सपना पूरा हो चुका था.

ननुआ व रनिया ने मिल कर उस बंजर जमीन को अपने खूनपसीने से सींच कर उपजाऊ बना लिया, फिर पटवारी की मदद से उसे उस ऊबड़खाबड़ जमीन को बराबर करने के लिए सरकारी मदद मिल गई.

पटवारी ने स्थानीय पंचायत से मिल कर ननुआ के लिए इंदिरा आवास योजना के तहत घर बनाने के लिए सरकारी मदद भी मुहैया करा दी.

ननुआ व रनिया अपने 2 बीघा खेत में गेहूं, बाजरा, मक्का के साथसाथ दालें, तिलहन और सब्जियां भी उगाने लगे. किनारेकिनारे कुछ फलों के पेड़ भी लगा लिए. मेंड़ पर 10-12 सागौन के पेड़ लगा दिए. उन का बेटा कलुआ भी पढ़लिख गया. उन्होंने अपने घर में पटवारी की तसवीर लगाई और सोचा कि कलुआ भी पढ़लिख कर पटवारी बने.

रावण अब भी जिंदा है : क्या मीना उस रात अपनी इज्जत बचा पाई

मीना सड़क पर आ कर आटोरिकशे का इंतजार करने लगी, मगर आटोरिकशा नहीं आया. वह अकेली ही बूआ के यहां गीतसंगीत के प्रोग्राम में गाने आई थी. तब बूआ ने भी कहा था, ‘अकेली मत जा. किसी को साथ ले जा.’

मीना ने कहा था, ‘क्यों तकलीफ दूं किसी को? मैं खुद ही आटोरिकशे में बैठ कर चली जाऊंगी?’ मीना को तो अकेले सफर करने का जुनून था. यहां आने से पहले उस ने राहुल से भी यही कहा था, ‘मैं बूआ के यहां गीत गाने जा रही हूं.’

‘चलो, मैं छोड़ आता हूं.’

‘नहीं, मैं चली जाऊंगी,’ मीना ने अनमने मन से कह कर टाल दिया था.

तब राहुल बोला था, ‘जमाना बड़ा खराब है. अकेली औरत का बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है.’

‘आप तो बेवजह की चिंता पाल रहे हैं. मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूं, जो कोई रावण मुझे उठा कर ले जाएगा.’

‘यह तुम नहीं तुम्हारा अहम बोल रहा है,’ समझाते हुए एक बार फिर राहुल बोला था, ‘जब से दिल्ली में चलती बस में निर्भया के साथ…’

‘इस दुनिया में कितनी औरतें ऐसी हैं, जो अकेले ही नौकरी कर रही हैं…’ बीच में ही बात काटते हुए मीना बोली थी, ‘मैं तो बस गीत गा कर वापस आ जाऊंगी.’

यहां से उस की बूआ का घर 3 किलोमीटर दूर है. वह आटोरिकशे में बैठ कर बूआ के यहां पहुंच गई थी. वहां जा कर राहुल को फोन कर दिया था कि वह बूआ के यहां पहुंच गई है. फिर वह बूआ के परिवार में ही खो गई. मगर अब रात को सड़क पर आ कर आटोरिकशे का इंतजार करना उसे महंगा पड़ने लगा था.

जैसेजैसे रात गहराती जा रही थी, सन्नाटा पसरता जा रहा था. इक्कादुक्का आदमी उसे अजीब सी निगाह डाल कर गुजर रहे थे. जितने भी आटोरिकशे वाले गुजरे, वे सब भरे हुए थे. जब कोई औरत किसी स्कूटर के पीछे मर्द के सहारे बैठी दिखती थी, तब मीना भी यादों में खो जाती थी. वह इसी तरह राहुल के स्कूटर पर कई बार पीछे बैठ चुकी थी.

आटोरिकशा तो अभी भी नहीं आया था. रात का सन्नाटा उसे डरा रहा था. क्या राहुल को यहां बुला ले? अगर वह बुला लेगी, तब उस की हार होगी. वह साबित करना चाहती थी कि औरत अकेली भी घूम सकती है, इसलिए उस ने राहुल को फोन नहीं किया.

इतने में एक सवारी टैंपो वहां आया. वह खचाखच भरा हुआ था. टैंपो वाला उसे बैठने का इशारा कर रहा था. मीना ने कहा, ‘‘कहां बैठूंगी भैया?’’

वह मुसकराता हुआ चला गया. तब वह दूसरे टैंपों का इंतजार करने लगी, मगर काफी देर तक टैंपो नहीं आया. तभी एक शख्स उस के पास आ कर बोला, ‘‘चलोगी मेरे साथ?’’

‘‘कहां?’’ मीना ने पूछा.

‘‘उस खंडहर के पास. कितने पैसे लोगी?’’ उस आदमी ने जब यह कहा, तब उसे समझते देर न लगी. वह आदमी उसे धंधे वाली समझ रहा था. वह भी एक धंधे वाली औरत बन कर बोली, ‘‘कितना पैसा दोगे?’’ वह आदमी कुछ न बोला. सोचने लगा. तब मीना फिर बोली, ‘‘जेब में कितना माल है?’’

‘‘बस, 50 रुपए.’’

‘‘जेब में पैसा नहीं है और आ गया… सुन, मैं वह औरत नहीं हूं, जो तू समझ रहा है,’’ मीना ने कहा.

‘‘तब यहां क्यों खड़ी है?’’

‘‘भागता है कि नहीं… नहीं तो चप्पल उतार कर सारा नशा उतार दूंगी तेरा,’’ मीना की इस बात को सुन कर वह आदमी चलता बना.

अब मीना ने ठान लिया था कि वह खाली आटोरिकशे में नहीं बैठेगी, क्योंकि उस ड्राइवर में अकेली औरत को देख कर न जाने कब रावण जिंदा हो जाए?

‘‘कहां चलना है मैडम?’’ एक आटोरिकशा वाला उस के पास आ कर बोला. जब मीना ने देखा कि उस की आंखों में वासना है, तब वह समझ गई कि इस की नीयत साफ नहीं है.

वह बोली, ‘‘कहीं नहीं.’’

‘‘मैडम, अब कोई टैंपो मिलने वाला नहीं है…’’ वह लार टपकाते हुए बोला, ‘‘आप को कहां चलना है? मैं छोड़ आता हूं.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना है,’’ वह उसे झिड़कते हुए बोली.

‘‘जैसी आप की मरजी,’’ इतना कह कर वह आगे बढ़ गया.

मीना ने राहत की सांस ली. शायद आटोरिकशे वाला सही कह रहा था कि अब कोई टैंपो नहीं मिलने वाला है. अगर वह मिलेगा, तो भरा हुआ मिलेगा. मगर अब कितना भी भरा हुआ टैंपो आए, वह उस में लद जाएगी. वह लोगों की निगाह में बाजारू औरत नहीं बनना चाहती थी.

मीना को फिल्मों के वे सीन याद आए, जब हीरोइन को अकेले पा कर गुंडे उठा कर ले जाते हैं, मगर न जाने कहां से हीरो आ जाता है और हीरोइन को बचा लेता है. मगर यहां किसी ने उस का अपहरण कर लिया, तब उसे बचाने के लिए कोई हीरो नहीं आएगा.

मीना आएदिन अखबारों में पढ़ती रहती थी कि किसी औरत के साथ यह हुआ, वह हुआ, वह यहां ज्यादा देर खड़ी रहेगी, तब उसे लोग गलत समझेंगे.

तभी मीना ने देखा कि 3-4 नौजवान हंसते हुए उस की ओर आ रहे थे. उन्हें देख वह सिहर गई. अब वह क्या करेगी? खतरा अपने ऊपर मंडराता देख कर वह कांप उठी. वे लोग पास आ कर उस के आसपास खड़े हो गए. उन में से एक बोला, ‘यहां क्यों खड़ी है?’’

दूसरे आदमी ने जवाब दिया, ‘‘उस्ताद, ग्राहक ढूंढ़ रही है.’’

तीसरा शख्स बोला, ‘‘मिला कोई ग्राहक?’’

पहले वाला बोला, ‘‘अरे, कोई ग्राहक नहीं मिला, तो हमारे साथ चल.’’

मीना ने उस अकेले शख्स से तो मजाक कर के भगा दिया था, मगर यहां 3-3 जिंदा रावण उस के सामने खड़े थे. उन्हें कैसे भगाए?

वे तीनों ठहाके लगा कर हंस रहे थे, मगर तभी पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती हुई आती दिखी.

एक बोला, ‘‘चलो उस्ताद, पुलिस आ रही है.’’

वे तीनों वहां से भाग गए. मगर मीना इन पुलिस वालों से कैसे बचेगी? पुलिस की जीप उस के पास आ कर खड़ी हो गई. उन में से एक पुलिस वाला उतरा और कड़क आवाज में बोला, ‘‘इतनी रात को सड़क पर क्यों खड़ी है?’’

‘‘टैंपो का इंतजार कर रही हूं,’’ मीना सहमते हुए बोली.

‘‘अब रात को 11 बजे टैंपो नहीं मिलेगा. कहां जाना है?’’

‘‘सर, सांवरिया कालोनी.’’

‘‘झूठ तो नहीं बोल रही है?’’

‘‘नहीं सर, मैं झूठ नहीं बोलती,’’ मीना ने एक बार फिर सफाई दी.

‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं तुम जैसी धंधा करने वाली औरतों को…’’ पुलिस वाला जरा अकड़ कर बोला, ‘‘अब जब पकड़ी गई हो, तो सती सावित्री बन रही हो. बता, वे तीनों लोग कौन थे?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम सर.’’

‘‘झूठ बोलते शर्म नहीं आती तुझे,’’ पुलिस वाला फिर गरजा.

‘‘मैं सच कह रही हूं सर. वह तीनों कौन थे, मुझे कुछ नहीं मालूम. मुझे अकेली देख कर वे तीनों आए थे. मैं वैसी औरत नहीं हूं, जो आप समझ रहे हैं,’’ मीना ने अपनी सफाई दी.

‘‘चल थाने, वहां सब असलियत का पता चल जाएगा. चल बैठ जीप में… सुना कि नहीं?’’

‘‘सर, मुझे मत ले चलो. मैं घरेलू औरत हूं.’’

‘‘अरे, तू घरगृहस्थी वाली औरत है, तो रात के 11 बजे यहां क्या कर रही है? ठीक है, बता, तेरा पति कहां है?’’

‘‘सर, वे तो घर में हैं.’’

‘‘मतलब, वही हुआ न… तू धंधा करने के लिए रात को अकेली निकली है और अपने पति की आंखों में धूल झोंक रही है. तेरा झूठ यहीं पकड़ा गया…

‘‘अच्छा, अब बता कि तू कहां से आ रही है?’’

‘‘बूआ के यहां गीतसंगीत के प्रोग्राम में आई थी सर. वहीं देर हो गई.’’

‘‘फिर झूठ बोल रही है. बैठ जीप में,’’ पुलिस वाला अब तक उस पर शिकंजा कस चुका था.

‘‘ठीक है सर, अगर आप को यकीन नहीं हो रहा है, तो मैं उन्हें फोन कर के बुलाती हूं, ताकि आप को असलियत का पता चल जाए,’’ कह कर वह पर्स में से मोबाइल फोन निकालने लगी.

तभी पुलिस वाला दहाड़ा, ‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है. मुझे मालूम है कि तू अपने पति को बुला कर उस के सामने अपने को सतीसावित्री साबित करना चाहेगी. सीधेसीधे क्यों नहीं कह देती है कि तू धंधा करती है.’’

मीना की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था कि तभी अचानक राहुल उसे गाड़ी से आता दिखाई दिया. उस ने आवाज लगाई, ‘‘राहुल… राहुल.’’

राहुल पास आ कर बोला, ‘‘अरे मीना, तुम यहां…’’

अचानक उस की नजर जब पुलिस पर पड़ी, तब वह हैरानी से आंखें फाड़ते हुए देखता रहा. पुलिस वाला उसे देख कर गरजा, ‘‘तुम कौन हो?’’

‘‘मैं इस का पति हूं.’’

‘‘तुझे झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती,’’ पुलिस वाला अपनी वरदी का रोब दिखाते हुए बोला, ‘‘तुम दोनों मुझे बेवकूफ बना रहे हो. अपनी पत्नी से धंधा कराते हुए तुझे शर्म नहीं आती. चल थाने में जब डंडे पड़ेंगे, तब भूल जाएगा अपनी पत्नी से धंधा कराना.’’

यह सुन कर राहुल हाथ जोड़ता हुआ बोला, ‘‘आप यकीन रखिए सर, यह मेरी पत्नी है, बूआ के यहां गीत गाने अकेली गई थी. लौटने में जब देर हो गई, तब बूआ ने बताया कि यह तो घंटेभर पहले ही निकल चुकी है.

‘‘जब यह घर न पहुंची, तब मैं इसे ढूंढ़ने के लिए निकला. अगर आप को यकीन न हो, तो मैं बूआ को यहीं बुला लेता हूं.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो,’’ पुलिस वाले ने जरा नरम पड़ते हुए कहा.

‘‘अकेली औरत को देर रात को बाहर नहीं भेजना चाहिए,’’ पुलिस वाले को जैसे अब यकीन हो गया था, इसलिए अपने तेवर ठंडे करते हुए वह बोला, ‘‘यह तो मैं समय पर आ गया, वरना वे तीनों गुंडे आप की पत्नी की न जाने क्या हालत करते. फिर आप लोग पुलिस वालों को बदनाम करते.’’

‘‘गलती हमारी है. आगे से मैं ध्यान रखूंगा,’’ राहुल ने हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए कहा.

पुलिस की गाड़ी वहां से चली गई. मीना नीचे गरदन कर के खड़ी रही. राहुल बोला, ‘‘देख लिया अकेले आने का नतीजा.’’

‘‘राहुल, मुझे शर्मिंदा मत करो. रावण तो एक था, मगर इस 2 घंटे के समय में मुझे लगा कि आज भी कई रावण जिंदा हैं.

‘‘अगर आप नहीं आते, तो वह पुलिस वाला मुझे थाने में बैठा देता,’’ कह कर मीना ने मन को हलका कर लिया.

‘‘तो बैठो गाड़ी में…’’ गुस्से से राहुल ने कहा, ‘‘बड़ी लक्ष्मीबाई बनने चली थी.’’ मीना नजरें झुकाए चुपचाप गाड़ी में जा कर बैठ गई.

औनलाइन बेचे जा रहे हैं 500-1000 के पुराने नोट

पिछले साल 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद 500 और 1000 रुपए के नोट चलन से बाहर हो गए हैं. अब खबर आ रही है कि नोटबंदी के एक साल पूरे होने के बाद ये पुराने नोट आपको आनलाइन मिल सकते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि जब ये पुराने नोट चलन से बाहर हो गये हैं तो कोई इसे क्यों खरीदेगा. तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पुराने नोटों का कलेक्शन रखने वाले शौकीन इन नोटों के खरीदार बनते हैं. बड़े स्तर पर इनकी बोली लगाई जाती है. खास नोटों की वैल्यू भी खास यानी कि बड़ी होती है.

तो अब पुराने नोटों का कलेक्शन रखने वाले शौकीन लोगों के लिए 500 और 1000 रुपए के नोट आनलाइन बिक्री करने वाली वेबसाइट ईबे पर बिक रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि इनकी बोली वास्तविक कीमत से कहीं ज्यादा है.

ई-बे पर लगती है बोली

ई-बे समय-समय पर भारतीय करेंसी के रेयर नोटों की की बोली लगाता है. इस बोली में कोई भी व्यक्ति वेबसाइट के माध्यम से भाग ले सकता है और पुराने नोट खरीद सकता है इतना ही नहीं यदि आपके पास कोई खास सीरीज का नोट है, तो आप भी कमाई कर सकते हैं. खासकर ‘786’ डिजिट वाले नोट की बोली एक से तीन लाख रुपए तक लगती है. ऐसी ही साइटों पर 500 और 1000 के पुराने नोट उपलब्ध हैं. हालांकि, ये कोई नई बात नहीं है ऐसा नोटबंदी से पहले भी होता था.

क्यों लगती है बोली

कुछ लोग पुरानी चीजो को संजोए रखना पसंद करते हैं. यह कुछ लोगों का बहुत पुराना शौक होता है. चलन से बाहर हुए नोटों को लोग अपने शौक के लिए इकट्ठा करते हैं. भारत में ही नहीं, विदेशों में भी ऐसा होता है. नोट जितना पुराना होता जाता है, उसकी कीमत उतनी ही बढ़ती जाती है.

कितनी कीमत पर और कौन कौन से नोट मिल रहे हैं

‘ईबे’ वेबसाइट पर 500 और 1000 के नोट आपको 299 से 10000 रुपए तक की कीमत में मिल जाएंगे. इनके अलावा 200 और 500 के नए नोट भी साइट पर नीलामी के लिए मौजूद हैं. नए 500 के नोट की कीमत 1200 रुपए तक है. वहीं, दांडी मार्च के दौरान वाले 500 के नोट की कीमत 7 लाख रुपए तक है.

इसके अलावा लकी माना जाने वाले नंबर 786 की सीरीज वाले नोटों की कीमत और ज्यादा है. 786 नंबर के 200 के नोट की कीमत 425 रुपए और 500 के नोट की कीमत 900 रुपए है. यहां 10 का पुराना नोट 120 रुपए, 1 रुपए का पुराना नोट 140 रुपए और 100 रुपए का नोट 275 रुपए की कीमत पर बिक रहा है. वहीं, पूर्ण चक्र वाले 20 रुपए के पुराने नोट की कीमत 1699 रुपए है.

यहां पर 2000 रुपए का नोट भी नीलामी के लिए उपलब्ध है. यह नोट 786 सीरियल नंबर सीरीज का है. जिसके एक नोट की किमत 1.50 लाख रुपए है. जिसकी किमत सुनकर लोगों के होश उड़ जा रहे हैं वहीं तमाम लोग ऐसे भी हैं जो इसे खरीदने के लिए इतने रुपए देने को तैयार है और उन लोगों द्वारा लगातार इसकी बोलियां लगाई  जा रही है.

आपको बता दें नोटबंदी के बाद पुराने नोट चलन में नहीं हैं. ऐसे में ज्यादा संख्या में इन्हें रखना दंडनीय अपराध है, लेकिन कलेक्शन के तौर पर कुछ नोट रखे जा सकते हैं. किसी के पास 500 और 1000 के पुराने नोट 10 से अधिक हैं तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है.

ट्रेलर : जबरदस्त एक्शन के साथ वापस आ गया है टाइगर

‘शिकार तो सब करते हैं, लेकिन टाइगर से बेहतर शिकार कोई नहीं करता…’ यह है फिल्‍म ‘टाइगर जिंदा है’ का डायलाग और इसी डायलाग से साफ है कि टाइगर यानी सलमान खान इस फिल्‍म में अपने फैन्‍स के लिए क्‍या ला रहे हैं. सलमान के फैन्‍स लंबे समय से उनकी इस फिल्‍म के ट्रेलर का इंतजार कर रहे थे और आखिरकार यह सामने आ ही गया है.

फिल्म के ट्रेलर में जबरदस्त एक्शन और खूबसूरत लोकेशन्स आपको हैरान कर देंगी. वहीं फिल्म में सलमान का लुक और उनकी एक्टिंग को भी आप काफी पसंद करने वाले हैं.

इस ट्रेलर में सलमान खान धुआंधार एक्‍शन सीन करते नजर आ रहे हैं तो वहीं एक बार फिर पाकिस्‍तानी जासूस के किरदार में नजर आने वाली कटरीना कैफ भी जबरदस्‍त स्‍टंट और एक्‍शन सीन करती दिख रही हैं. ट्रेलर में ही साफ कर दिया है कि यह फिल्‍म सच्‍ची घटनाओं से प्रभावित है.

यहां देखें ट्रेलर.

‘टाइगर जिंदा है’ के ट्रेलर में दिखाया गया है कि इराक में दुनिया का सबसे खतरनाक आंतकवादी संगठन 25 हिंदुस्‍तानी नर्सों को किडनैप कर लेता है और जब इन्‍हें बचाने की बात आती है तो सब को याद आता है टाइगर यानी सलमान खान. इन नर्सों की जिंदगी बचाने के लिए कैंप में घुसने के बाद टाइगर के पास सिर्फ 2 दिन हैं और इन्‍हीं दो दिनों में यह हिंदुस्‍तानी जासूस इस कारनामें को अंजाम देता है. लेकिन इसमें वह अकेले नहीं हैं बल्कि उनका साथ दे रही हैं पाकिस्‍तानी जासूस जोया यानी कटरीना कैफ. एक्‍शन सीन और उड़ती हुई गाड़ियां सलमान के फैन्‍स को खासी पसंद आने वाली हैं.

बता दें, फिल्म की कहानी को देखते हुए इसकी शूटिंग आस्ट्रिया, मोरक्को, ग्रीस और आबु धाबी जैसी जगहों पर की गई है.

फिल्‍म ‘टाइगर जिंदा है’, साल 2012 में आई ‘एक था टाइगर’ की सीक्‍वल है जो सुपरहिट साबित हुई थी. सलमान की कथित एक्‍स गर्लफ्रेंड कटरीना के साथ उनकी जोड़ी को काफी पसंद किया गया था. अब एक बार फिर से उनके फैन्स को टाइगर और जोया की जोड़ी के लौटने का इंतजार कर रहे हैं.

‘एक था टाइगर’ को कबीर खान ने निर्देशित किया था जबकि इस बार कमान ‘सुल्तान’ फेम डायरेक्टर अली अब्बास जफर ने संभाली है. फिल्म 22 दिसंबर, 2017 को रिलीज होगी.

हैप्पी बर्थडे कमल हसन : आखिर क्यों नहीं रखते शादी में विश्वास

अगर बहुमुखी प्रतिभा की बात की जाए तो भारतीय फिल्म संसार में उनके जैसे गिने-चुने ही अभिनेता मिलेंगे. जी हां, हम बात कर रहे हैं कमल हासन की. कमल हासन आज 63 साल के हो गये हैं. सात नवंबर 1954 को चेन्नई (तब मद्रास) में जन्मे कमल हासन ने महज छह साल की उम्र में 1960 में आई फिल्म कलातुर कलम्मा से अपना फिल्मी करियर शुरू किया था. पहली ही फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था.

एक दर्जन से ज्यादा फिल्म फेयर और रिकौर्ड तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके कमल हासन का निजी जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. भारतीय सिने इतिहास के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में शुमार किए जाने वाले कमल हासन ने दो बार शादी की और एक बार वो एक दशक से ज्यादा समय तक लिव-इन में रहे लेकिन आज वो अकेले हैं. एक इंटरव्यू में कमल हासन ने यहां तक कह दिया कि उन्हें शादी में यकीन नहीं है और जब दो लोगों में प्रेम होता है तो उन्हें शादी की जरूरत नहीं होती.

कमल हासन ने इंटरव्यू में कहा था, “मुझे कभी शादी में यकीन नहीं था. लोग अपने पास पड़ोस के लोगों के दबाव में शादी करते हैं लेकिन मैंने कभी भी भीड़ के साथ चलने में यकीन नहीं किया. मुझे शादी नहीं करना चाहिए थी. मैंने मेरे जीवन में आई महिलाओं की सुविधा के लिए शादी की थी. वाणी लिव-इन में नहीं रहती और मैं इतना मजबूत नहीं था कि अपने पैर पीछे खींच लूं. और हमारा समाज ऐसा है कि सारिका और मैं दो बच्चों के माता-पिता बनने के बावजूद होटल में एक ही कमरा नहीं ले सकते थे.”

कमल हासन की पहली पत्नी वाणी गणपति शास्त्रीय नृत्यांगना और कौस्ट्यूम डिजाइनर थीं. दोनों ने 1978 में शादी की. करीब 10 साल बाद 1988 में कमल हासन और वाणी गणपति के बीच तलाक हो गया. साल 1988 में ही कमल हासन ने अभिनेत्री सारिका से शादी की. कमल हासन की ये शादी काफी लम्बी चली लेकिन साल 2002 में अलग होने के बाद साल 2004 में दोनों ने आधिकारिक तौर पर तलाक ले लिया.

सारिका से अलग होने के बाद कमल हासन ने शादी नहीं की लेकिन अभिनेत्री गौतमी के साथ वो करीब एक दशक तक लिव-इन में रहे. कमल हासन और गौतमी ने साथ 2005 में साथ रहना शुरू किया. हालांकि दोनों करीब 11 साल तक साथ रहने के दौरान साल 2016 में अलग हो गये. कमल हासन ने जब एक इंटरव्यू में पूछा गया कि उनकी पूर्व पत्नी सारिका ने शादी को एक सुंदर ख्याल बताया है, इस पर कमल हासन ने कहा था कि वो ऐसा नहीं मानते. कमल हासन ने कहा था, “बिल्कुल नहीं, मेरे ख्याल से शादी एक पुराना ख्याल है.

ये एक कानूनी समझौता है जो आपको किसी के साथ रहने पर मजबूर करता है. मेरे ख्याल से जब आप किसी को सचमुच प्यार करते हैं तो आपको उसे प्रमाणित करने के लिए किसी कागज की जरूरत नहीं होती.”

पिछले साल एक इंटरव्यू में कमल हासन ने साफ कर दिया था कि वो अब शादी का इरादा नहीं रखते. कमल हासन तमिल, तेलुगु, मलायलम और हिन्दी इत्यादि भाषाओं की 200 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके हैं. हिन्दी में उन्हें सदमा, सागर, एक दूजे के लिए, अप्पू राजा और हिन्दुस्तानी जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. अभिनय में उनके लिए योगदान के लिए भारत सरकार उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित कर चुकी है. फ्रांस सरकार ने साल 2016 में उन्हें अपना सर्वोच्च कला सम्मान शेवलियर फ्रेंच अवार्ड दिया था. सारिका और कमल हासन की दो बेटियां हैं, श्रुति हासन और अक्षरा हासन. उनकी दोनों बेटियां अभिनय करती हैं.

अभिनय जगत में लम्बी पारी खेलने के बाद कमल हासन अब राजनीति में रुचि ले रहे हैं. इसी साल उन्होंने साफ कहा कि वो राजनीति में आएंगे. अभी तक वो किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं लेकिन हाल ही में उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले का पिछले साल स्वागत करने के लिए माफी मांगी. कमल हासन ने अपने 63वें जन्मदिन पर किसी तरह का उत्सव मनाने से इनकार कर दिया है. वो अपने जन्मदिन पर चेन्नई बाढ़ पीड़ितों से मिलेंगे.

HDFC में है आपका अकाउंट तो आपके लिए है ये खुशखबरी

अगर आपका एचडीएफसी बैंक में अकाउंट है और आप अपने पैसों का लेन-देन करने के लिए आरटीजीएस व एनईएफटी का इस्तेमाल करते हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है, क्योंकि आरटीजीएस व एनईएफटी के जरिए किए जाने वाले लेन-देन को एचडीएफसी बैंक ने अपने ग्राहको की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक नवंबर से नि:शुल्क कर दिया है.

वहीं बैंक ने चेक के जरिए लेन-देन के लिए विभिन्न शुल्कों को अगले महीने से बढ़ाने की घोषणा की है.

बैंक का कहना है कि “एनईएफएटी/आरटीजीएस आनलाइन शुल्कों में उक्त बदलाव सभी खुदरा बचतों, वेतनभोगी व अप्रवासी ग्राहकों के लिए एक नवंबर 2017 से लागू हो गया.” चेक बुक के बारे में बैंक ने कहा है कि ग्राहक को एक साल में 25 पन्नों की एक ही चेकबुक नि:शुल्क मिलेगी. अतिरिक्त चैकबुक 25 पन्ने के लिए 75 रुपये का शुल्क देना होगा.

मालूम हो कि पहले ग्राहकों को आरटीजीएस के जरिए 2-5 लाख रुपये तक के आनलाइन ट्रांजिक्शन पर 25 रुपये का शुल्क देना पड़ता था. वहीं, एनईएफटी के जरिए पांच लाख रुपये से अधिक पैसे भेजने पर 50 रुपये शुल्क लागू था. आनलाइन एनईएफटी पर लेन-देन पर 10,000 रुपये से कम राशि पर 2.5 रुपये, 10001 से एक लाख रुपये के लिए पांच रुपये व 1 लाख सो 2 लाख रुपये के आनलाइन लेनदेन पर 15 रुपये का शुल्क देय था.

नोटबंदी का एक साल : बदली देश की तस्वीर..!

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था. नोटबंदी की घोषणा करते समय पीएम मोदी ने कहा था कि ये ऐलान इसलिए किया जा रहा है ताकि देश में भ्राष्टाचार और कालेधन पर लगाम लगाई जा सके. पीएम मोदी की घोषणा के बाद बड़े-बड़े मंत्रियों से लेकर आम जनता तक हैरान हो गई थी.

भले ही लोग परेशान थे और इसमें कोई दोराय नहीं की नोटबंदी के फैसले के बाद लोगों को परेशानियां उठानी पड़ीं लेकिन लोगों के दिल में एक उम्मीद भी थी की शायद इस फैसले के बाद देश की तस्वीर बदलेगी.

इस नोटबंदी ने भारत पर काफी गहरा असर डाला है. जानिए नोटबंदी ने भारत को कितना बदला है और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर रहा.

इसलिए लाई गई थी नोटबंदी

नोटबंदी लाने की मोदी सरकार ने कई वजहें बताई हैं. इसमें कालेधन का खात्मा करना, सर्कुलेशन में मौजूद नकली नोटों को खत्म करना, आतंकवाद और नक्सल गतिविधियों पर लगाम कसने समेत कैशलेस इकोनामी को बढ़ावा देने जैसे कई वजहें गिनाई गई हैं.

नोटबंदी के बाद लौटा इतना पैसा

नोटबंदी के बाद 1.48 लाख बैंक खातों में 1.48 लाख करोड़ रुपये जमा किए गए. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में इसकी जानकारी दी थी. उन्होंने बताया कि इनमें से हर खाते में कम से कम 80 लाख रुपये जमा किए गए थे. 1.48 लाख बैंक खातों में औसत डिपोजिट 3.3 करोड़ रुपये रही.

दो तिहाई बंद नोट वापस आए

छोटी डिपोजिट्स की बात करें, तो 2 लाख रुपये से लेकर 80 लाख रुपये तक इसमें शामिल किए गए हैं. लगभग 1.09 करोड़ बैंक खातों में इस दायरे में रकम जमा की गई. इन खातों में औसत डिपोजिट 5 लाख रुपये की थी. एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के बाद बंद नोटों का दो तिहाई भाग वापस बैंकिंग सिस्टम में लौटा है.

फर्जी कंपनियों पर ताला

मोदी सरकार के मुताबिक नोटबंदी के बाद 3 लाख कंपनियों में से 5 हजार कंपनियों के बैंक खातों से 4000 करोड़ रुपये का लेन-देन होने का पता चला है. इसके साथ ही 56 बेंकों से मिली जानकारी के अनुसार 35000 कंपनियों के 58000 बैंक खातों में नोटबंदी के बाद 17 हजार करोड़ डिपोजिट हुए हैं और पैसे निकाले गए हैं.

नकली नोटों पर क्या रहा असर

अब तक मौजूदा रिकार्ड बताता है कि इस मोर्चे पर नोटबंदी सफल नहीं रही है. इस साल आई एक रिपोर्ट के मुताबिक 1000 रुपये के जितने बंद नोट वापस बैंकों में लौटे हैं, उसमें सिर्फ 0.0007 फीसदी ही नकली नोट थे. बंद 500 रुपये की नोट की बात करें, तो इसमें भी सिर्फ 0.002 फीसदी नकली नोट रहे. वहीं, राष्ट्रीय जांच एजेंसी के मुताबिक 2015 तक 400 करोड़ रुपये के नकली नोट सर्कुलेशन में थे. समीक्षकों का कहना है नोटबंदी नकली नोटों को बड़े स्तर पर पकड़ने में नाकामयाब रही है.

घटने लगे हैं कैशलेस ट्रांजैक्शन

पिछले साल नवंबर महीने में 67.149 करोड़ डि‍जिटल ट्रांजैक्शन हुए थे. दिसंबर महीने में य‍ह बढ़कर 95.750 करोड़ पर पहुंच गए. हालांकि इस साल जुलाई तक यह आंकड़ा घटकर 86.238 करोड़ पर आ गए. रिकार्ड्स के मुताबिक आरटीजीएस और एनईएफटी ट्रांसफर 2016-17 में क्रमश: 6 फीसदी और 20 फीसदी बढ़े हैं.

डिजिटलीकरण और नोटबंदी

नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट में बढ़ोत्तरी हुई है. पेमेंट्स काउंसिल औफ इंडिया के मुताबिक नोटबंदी के बाद कैशलेस लेनदेन की रफ्तार 40 से 70 फीसदी बढ़ी है. पहले यह रफ्तार 20 से 50 फीसदी पर थी. भले ही नोटबंदी के बाद कैशलेस लेनदेन में बढ़ोत्तरी देखने को मिली, लेकिन कुछ महीनों बाद ही इसमें कमी आने लगी और लोग फिर नगदी पर आ गए.

कैसा रहा जीडीपी का हाल

नोटबंदी की घोषणा के बाद की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्ध‍ि दर घटकर 6.1 फीसदी पर आ गई. पिछले साल इस दौरान यह 7.9 फीसदी पर थी. इसके बाद अप्रैल-जून तिमाही में वृद्धि दर और भी कम हुई और यह 5.7 फीसदी पर पहुंच गई. पिछले साल इस दौरान यह 7.1 फीसदी पर थी. हालांकि फिलहाल इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है कि क्या वृद्धि दर घटने के पीछे नोटबंदी वजह है कि नहीं. इसके लिए जीएसटी को कुछ हद तक जिम्मेदार माना जा रहा है.

नक्सल और आतंकवाद पर मार

नोटबंदी को लागू करने के दौरान यह भी कहा गया था कि इससे आतंकवाद और नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगायी जाएगी. लेकिन एक साल बाद भी ऐसा कोई पुख्ता डाटा नहीं है, जो ये बता सके कि इन गतिविधियों पर कितनी रोक नोटबंदी की वजह से लगी हुई है.

6 महीनों के इंतजार से कुछ निकलेगा

नोटबंदी को लेकर जहां कुछ अर्थशास्त्र‍ी सकारात्मक रुख रखते हैं, तो कई का मानना है कि इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी कहा है कि नोटबंदी की वजह से लघु अवधि में इकोनामी को नुकसान जरूर पहुंचा है, लेकिन लंबी अवधि में इसका फायदा नजर आएगा. सुरजीत भल्ला कहते हैं कि नोटबंदी का असर देखने के लिए 6 महीने और इंतजार कर लें. इस दौरान डाटा आ जाएगा और पता चल जाएगा कि नोटबंदी पास हुई या फेल.

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