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इस बल्लेबाज ने टेस्ट करियर में जड़े थे 12 दोहरे शतक, अब तक नही टूटा रिकार्ड

वनडे क्रिकेट में तीसरा दोहरा शतक लगाकर टीम इंडिया के सलामी बल्लेबाज रोहित शर्मा एक बार फिर पूरे विश्व में छा गए हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि टेस्ट फौर्मेट में सबसे ज्यादा दोहरे शतक लगाने वाला बल्लेबाज कौन है? कई रिकौर्ड्स अपने नाम दर्ज कर चुके इस क्रिकेटर का नाम है सर डौन ब्रैडमैन, जिन्होंने अपने टेस्ट करियर में 4 या 5 नहीं बल्कि 12 बार दोहरे शतक लगाए थे.

दुनिया के सबसे महानतम बल्लेबाजों में से एक इस बल्लेबाज के नाम टेस्ट क्रिकेट में सबसे शानदार औसत 99.94 का रिकौर्ड है, जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं सका है. 1928-1948 तक क्रिकेट खेलने वाले ब्रैडमैन ने अपने करियर में 2 तिहरे शतक जमाए हैं.

आपको जानकर हैरानी होगी कि टेस्ट क्रिकेट में 12 बार दोहरा शतक लगाने वाले ब्रैडमैन ने अपने करियर में सिर्फ 6 ही छक्के लगाए थे. वहीं 234 प्रथम श्रेणी मैचों की 338 पारियों में उन्होंने 43 बार नाबाद रहते हुए 28067 रन बनाए. इस दौरान उनका सर्वाधिक स्कोर स्कोर 452 (नाबाद) रहा.

फर्स्ट क्लास मैचों में इस महानतम बल्लेबाज ने 117 शतक और 69 अर्धशतक जड़े मगर इस फौर्मेट में वह एक भी सिक्स लगाने में नाकाम रहे. इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि ब्रैडमैन किस तरह संभलकर बल्लेबाजी करते थे और जमीनी शौट्स के जरिए ही हमेशा रन जुटाने की कोशिश करते थे.

बता दें कि डौन ब्रैडमैन के बाद कुमार संगाकार इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर हैं. श्रीलंका के पूर्व धाकड़ बल्लेबाज कुमार संगाकारा ने 11 बार टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक लगाया है. अपने 15 साल के करियर में उन्होंने 12400 रन, 38 शतक और 52 अर्धशतक लगाए हैं. उनका सर्वोच्च स्कोर 319 रन है और उनका औसत 57.40 का है.

खेती की मौजूदा चनौतियों के हल

आज युवा खेतीकिसानी से दूर भाग रहे हैं. कुछ तो शहरों की चमकदमक ने उन्हें अपनी तरफ खींचा?है और दूसरा वे कड़ी मेहनत नहीं करना चाहते. यही नहीं हकीकत यह भी है कि खेतीकिसानी में किसान जितना पैसा लगाता है, कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण उपज खराब होने से उस की लागत तक नहीं निकल पाती या फिर बंपर पैदावार होने से दाम इतने कम मिलते हैं कि उस का परता ही नहीं खाता. सरकार की योजनाएं भी किसानों तक नहीं पहुंच पातीं. न तो वह उपज को समय पर सही समर्थन मूल्य दे कर किसानों से खरीदती है और न ही किसानों को अनाज के सही भंडारण की सुविधा मुहैया कराती है. ऐसे में बिचौलिए औनेपौने दाम में उपज खरीद कर उसे मनमाने दामों पर मंडी में बेचते?हैं. यह किसान के साथ छलावा?है. इन्हीं सब कारणों से युवावर्ग खेती की तरफ रुख नहीं कर रहा है. ऐसे में हमें समस्याओं का हल ढूंढ़ना होगा.

* युवावर्ग का खेती से दूर भागना

हल : युवावर्ग में खेती के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए सरकार को सही लाभ की व्यवस्था करनी होगी, साथ ही सरकार को अनाज का समर्थन मूल्य पैदावार की लागत के हिसाब से तय करना चाहिए और उपज बिक्री का सही इंतजाम करना होगा. साथ ही क्षेत्र विशेष की स्थानीय जरूरतों के मुताबिक बिक्री की व्यवस्था करनी होगी और आधुनिक छोटेछोटे कृषि यंत्र स्थानीय स्तर पर उन्हें मुहैया कराने होंगे.

* उपज का सही मूल्य न मिलना

हल?: देश की आबादी की जरूरत के मुताबिक यह जानना जरूरी?है कि देश को किसकिस अनाज की कितनी जरूरत है. देश में जरूरी अनाज कितनी मात्रा में मौजूद हैं और जरूरत के मुताबिक हमें कितनी और पैदावार चाहिए. साथ ही पैदा किए गए अनाज को?क्षेत्रीय जरूरत के हिसाब से स्थानीय मंडियों में मुहैया कराने की जरूरत?है, जमाखोरों पर सख्ती से लगाम लगाई जाए, तभी ग्राहकों और कारोबारियों के हितों की सुरक्षा की जा सकती है, क्योंकि कारोबारी और ग्राहक हमेशा मुश्किलों का सामना करते?हैं और दलाल लाभ कमाते हैं. कारोबारियों को लागत के अनुसार सही कीमत न मिलने की शिकायत हमेशा रहती है.

इस के लिए सरकार को उपज का समर्थन मूल्य लागत को ध्यान में रखते हुए फसल बोआई से पहले तय करना चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उपज बाजार में आने के बाद समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत पर न बिके. ऐसा करने से किसानों को यह फैसला लेने में आसानी होगी कि उन्हें कौन सी फसल बोनी है और उस से उन्हें कितना लाभ मिल सकता?है.

आज देश की गंभीर समस्या यह है कि किसान फसलों की पैदावार तो करते हैं, लेकिन उस का उन्हें सही मूल्य न मिलने से काफी दिक्कत होती?है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद में किसान अच्छे तरीके अपना कर 1,500 से 2,000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गन्ना सफलतापूर्वक उगा रहे?हैं और लाभहानि का भी पहले ही अनुमान लगा लेते हैं.

* आज के दौर में प्रति किसान कृषि भूमि घटने से हर किसान को खेती के लिए साधन जैसे ट्रैक्टर, ट्राली, हैरो, रोटावेटर, स्प्रेयर वगैरह की जरूरत पड़ती है, जिन से पहले उन का परिवार बड़ी जोत पर खेती करता था. लेकिन इस का बुरा नतीजा यह निकला कि अब हर किसान की अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा ताउम्र इन साधनों को जुटाने में लग जाता है, साथ ही इन साधनों का सही इस्तेमाल भी नहीं होता और किसानों की हालत जस की तस बनी रहती है.

हल : लगातार छोटी होती जोत के हल के लिए कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है या सस्ते दामों पर किराए पर खेती के यंत्रों को मुहैया कराने के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर किसानों की संख्या के हिसाब से बनाए जाएं.

* मिट्टी में जीवाश्म और पोषक तत्त्वों का स्तर लगातार गिरना और हानिकारक कीड़े व बीमारियों का हमला बढ़ना.

हल?: मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए कार्बनिक खादों जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट व हरी खाद वगैरह के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए. खेत में हल चला कर कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दें, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई और सही फसलचक्र को बढ़ावा देना चाहिए.

* खेती में रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से किसान की सेहत पर असर पड़ता?है.

हल : रसायनों का इस्तेमाल कम करने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए. किसानों को अपने फार्म पर ही जैविक खेती के लिए अच्छी ट्रेनिंग दी जाए.

* पैदावार लागत बढ़ना और शुद्ध मुनाफा घटना.

हल : खेती में पैदावार लागत कम करने और मुनाफा बढ़ाने के लिए बाजार पर निर्भरता कम की जाए, खेती निवेशों का सही इस्तेमाल किया जाए और जैविक उपज फार्म पर ही तैयार करने का सही इंतजाम किया जाए.

* सभी फसलों में बीज की बेकार व्यवस्था.

हल : किसानों को अपनी जरूरत के मुताबिक बीजों का सही इंजजाम करना चाहिए, क्योंकि सही इंतजाम के अभाव में पैदावार लागत बढ़ती?है.

* बीमारियों, कीटों और खरपतवारों की रोकथाम की जानकारी की कमी

हल : रसायनों के इस्तेमाल का तरीका, इस्तेमाल का समय, रसायन की मात्रा और जरूरत के मुताबिक सही रसायन के चयन के बारे में किसानों को?ट्रेनिंग देने की जरूरत है,?क्योंकि इन के ज्यादा अैर गलत इस्तेमाल से पैदावार लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही?है, आमतौर पर किसानों की निर्भरता विक्रेताओं पर रहती है.

* लगातार जमीनी जल का स्तर  गिरना.

हल : ड्रिप, बौछारी और रेनगन सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाए.

पान की वैज्ञानिक खेती

हमारे प्रमुख कृषि  उद्योगों में पान की खेती का खासा महत्त्व है. कुछ इलाकों में इस का उतना ही महत्त्व है, जितना कि दूसरी खाद्य या नकदी फसलों का?है. भारत में पान की खेती अलगअलग क्षेत्रों में कई तरीके से की जाती?है, जैसे दक्षिण और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में जहां बारिश ज्यादा होती है और नमी ज्यादा रहती है, वहां पान की खेती कुदरती रूप से की जाती है.

उत्तर भारत में जहां भीषण गरमी और कड़ाके की सर्दी पड़ती है, वहां पान की खेती संरक्षित खेती के तौर पर की जाती है. पान की खेती के लिए अच्छी जलवायु बेहद महत्त्वपूर्ण है. पान की खेती मुंबई का बसीन क्षेत्र, असम, मेघालय, त्रिपुरा के पहाड़ी क्षेत्र, केरल के तटवर्ती इलाकों के साथसाथ उत्तर भारत के गरम व शुष्क इलाकों, कम बारिश वाले कडप्पा, चित्तुर, अनंतपुर, पुणे, सतारा, अहमदनगर उत्तर प्रदेश के बांदा, ललितपुर, महोबा व छतरपुर (मध्य प्रदेश) आदि इलाकों में सफलतापूर्वक की जाती है.

किसानों और व्यापारियों के मुताबिक भारत में पान की 100 से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं. इस की किस्मों में बढ़ोतरी इसलिए हुई है, क्योंकि एक ही किस्म को भिन्नभिन्न इलाकों में अलगअलग नामों से जाना जाता है.

उत्तर प्रदेश का पान की पैदावार में खास स्थान है, जिस में महोबा का पान की खेती में पहला स्थान है. महोबा में पान की खेती की शुरुआत 9वीं शताब्दी में चंदेल शासकों ने की थी. पहले यहां तकरीबन 500-600 एकड़ क्षेत्रफल में पान की खेती होती थी, लेकिन गुटखा खाने के बढ़ते प्रचलन, सिंचाई की समस्या, कच्चे माल की कमी और?घटती मांग के कारण मौजूदा समय में इस का क्षेत्रफल सिमट गया?है. महोबा पान की अच्छी मंडी है. चित्रकूट धाम मंडल में महोबा व बांदा और झांसी मंडल में ललितपुर पान की खेती के लिए जाने जाते हैं.

पान की खेती पर शोध और किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए महोबा में 1980-81 में पान प्रयोग और प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई.

पान बरेजे (पान की बाड़ी) की तैयारी और पान की खेती

जलवायु : पान एक ऊष्ण कटिबंधीय पौधा?है. इस की?बढ़वार नम, ठंडे व छायादार वातावरण में अच्छी होती है.

बरेजे के लिए सही जमीन : भारत में पान की बेल हर तरह की जमीन में उगाई जाती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए लाल मिट्टी मिली पडुवा मिट्टी बढि़या रहती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि जिस इलाके में पान की खेती करनी हो, वहां कम से कम 15 सेंटीमीटर मोटी परत वाली तालाब की काली मिट्टी डालनी चाहिए. जिस जमीन पर बरेजा बनाया जाए उस का ढाल सही होना चाहिए ताकि बरसात का पानी आसानी से निकल सके. यदि पानी का भराव या रुकाव होगा तो बरेजे में रोग लगने का खतरा रहता?है.

जमीन की तैयारी : बरेजा बनाने से पहले खेत की पहली जुताई मईजून में किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, ताकि तेज धूप में मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीड़ेमकोड़े व खरपतवार खत्म हो जाएं. इस के बाद अगस्त में देशी हल से जुताई कर के खेत खुला?छोड़ दें. बरेजा बनाने से 25 दिनों पहले फावड़े से गुड़ाई कर के देशी हल से आखिरी जुताई द्वारा मिट्टी भुरभुरी करनी चाहिए.

जमीन की सफाई : बरेजा बनने के बाद उस के भीतर से कूड़ाकरकट अच्छी तरह साफ करना चाहिए. कुदाल से गहरी गुड़ाई कर के वहां थोड़ी कलई यानी चूना डस्ट बुरक दें और अच्छी तराई करें. कुदाल से दोबारा मिट्टी ऊपर उठाएं और मिट्टी में से कूड़ाकरकट निकालें. तैयारी के बाद 0.25 फीसदी बोर्डों मिश्रण डालें. इस के साथ ही 30-40 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी पाउडर ठीक से मिला कर छायादार स्थान पर रखें, इस में नमी बनाएं रखें, 1 हफ्ते बाद जैविक खाद तैयार हो जाएगी. इस को आखिरी जुताई के बाद पान बेल की बोआई से पहले खेत में मिला दें. ऐसा करने से जमीन में पैदा होने वाले रोगों से बचाव हो जाता है और जमीन अच्छी तरह से साफ हो जाती है.

पान की मुख्य किस्में : वैज्ञानिकों के मुताबिक पान की खास किस्में हैं, बनारसी, सौंफिया, बंगला, देशावरी, कपूरी, मीठा व सांची आदि. पान में नरमादा पौधे अलगअलग होते हैं, लेकिन देश में नर पौधों को ही उगाया जाता?है. मादा पौधे कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल के वोनगांव इलाके से प्राप्त हुए?हैं. फूलों के न होने से इस में प्रजनन से नई किस्में विकसित करने में काफी रुकावट है. देश में मुख्य रूप से पान की देशी, देशावरी, कलकतिया, कपूरी, बांग्ला, सौंफिया, रामटेक, मघई व बनारसी आदि प्रजातियों का इस्तेमाल किया जाता है.

बोआई के लिए बेल का चुनाव : पान के बरेजे में बेल का भी काफी महत्त्व है. इस के लिए गांठ की कतरन बनाई जाती?है. पान की सालभर पुरानी बेल की कतरन ही चुननी चाहिए. किनारे से 2-3 पान छोड़ कर नीचे जमीन से 90 सेंटीमीटर ऊपर यानी बीचोंबीच से ही कतरन बनानी चाहिए. इन कटिंग्स की अंकुरण कूवत भी ज्यादा होती है. बेल करे ब्लेड या पनकटे से ही काटें. बेल की कतरन को 200 के बंडल बना कर इकट्ठा करें. पान की बेल रोगी पान बरेजे से कभी न लें. इस से आगामी फसल में रोग का खतरा रहता है.

बेल की सफाई : बोने से 1 दिन पहले बेल को 0.25 फीसदी बोर्डों मिश्रण या?ब्लाइटाक्स या 500 पीपीएम के घोल में 15-20 मिनट तक?डुबोएं.

पान की बेल की रोपाई : पान की रोपाई सुबह 11 बजे तक और शाम को 3 बजे के बाद करनी चाहिए. 1 गांठ और 1 पत्ती वाली बेल एक जगह पर 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी पर 4-5 सेंटीमीटर गहराई में लगा कर अच्छी तरह दबा दें. कूड़ों की आपसी दूरी 50 से 55 सेंटीमीटर रखते?हैं, जिस से निराईगुड़ाई व सिंचाई आदि काम आसानी से हो सकें. पान की बेलों की 2 लाइनों की बोआई उलटी दिशा में करते?हैं ताकि सिंचाई आसानी से की जा सके.

सिंचाई : पान की खेती में सिंचाई का खास महत्त्व है. बोआई के एकदम बाद ओहर यानी मल्चिंग डाल कर हजारा, लुटिया या स्प्रिंकलर से हलकी सिंचाई करनी चाहिए. मौसम के मुताबिक 3-4 दिनों में ढाई घंटे के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए. बरसात में सिंचाई की कोई खास जरूरत नहीं होती है, फिर भी जरूरी हो तो हलकी सिंचाई करें. सर्दी के मौसम में 7-8 दिनों बाद सिंचाई करनी चाहिए.

पान की बेल बांधना : पान की बेलों को सहारा देने के लिए बांस की पतली फट्टी का इस्तेमाल करते हैं. पौधे 15 सेंटीमीटर के हो जाएं तो उन्हें रस्सी से बांधें. इस से पान की पैदावार में बढ़ोतरी होती?है.

निराईगुड़ाई : जब भी खरपतवार दिखाई दे, निराईगुड़ाई करते रहें.

खाद और उर्वरक : जैविक खाद के तौर पर पान की खेती के लिए नीम, सरसों व तिल आदि की खली का इस्तेमाल करते हैं. इस के अलावा जौ, उड़द, दूध, दही व मट्ठे का भी इस्तेमाल करते हैं. तिल की खली 50-60 क्विंटल और नीम की खली 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. नाइट्रोजन 150 किलोग्राम, फास्फोरस 100 किलोग्राम और पोटाश 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

कीड़े व उन की रोकथाम

सफेद मक्खी : यह बरसात में पत्तियों की निचली सतह पर पाई जाती है और इन्हीं सतहों पर अपने अंडों का कवच बना लेती है, जिस से पत्तियां काफी प्रभावित होती हैं. यह मक्खी पत्तियों का रस चूसती है, जिस से बेल की बढ़ोतरी रुक जाती है.

इस की रोकथाम के लिए 0.5 फीसदी डायमेथोएट और 5 फीसदी नीम औयल तेल का छिड़काव इस के प्रभाव के तुरंत बाद करना अच्छा रहता?है. 0.5 मिलीलीटर डायमेथोएट या 5 मिलीलीटर नीम के तेल का प्रति लीटर की दर से स्वस्थ फसल में 2 महीने में एक बार छिड़काव करना चाहिए.

सूक्ष्म लाल मकड़ी : इस का प्रभाव पत्तियों की निचली सतह पर होता है, जिस की वजह से पत्तियों का रंग नीचे से लाल धब्बे की तरह दिखाई देता है. कीटों के ज्यादा प्रभाव से पान का रंग लाल हो जाता?है. इस की रोकथाम के लिए 30-40 ग्राम सल्फेक्स दवा 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

शल्क कीट : इस का प्रभाव पान की पत्तियों व डंठलों पर होता?है. मादा कीट का पिछला सिरा थोड़ा सा चौड़ा होता है. इन की मात्रा ज्यादा होने पर पत्ते सिकुड़ जाते?हैं. इन कीटों की रोकथाम के लिए 0.5 फीसदी डायमेथोएट का छिड़काव 15 दिनों पर करना चाहिए.

पान के खास रोग

पदगलन यानी फुट राट : यह रोग बीज और जमीन में फफूंद लगने से होता है. यह जमीन की सतह पर बेलों के तनों को प्रभावित करता?है, जिस से बेल सड़नी शुरू हो जाती?है और मुरझा कर खत्म हो जाती?है. पत्तियां भी हलके पीले रंग की हो कर गिरने लगती हैं. यह रोग सर्दियों में ज्यादा असर करता है. इस की रोकथाम के लिए पानी का निकास बहुत अच्छा होना चाहिए. जमीन पर गिरी पान की बेलों को जमीन से हटा देना चाहिए. इस रोग से बचने के लिए 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर 30-40 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर 1 हफ्ते बाद जमीन की तैयारी करते वक्त खेत में मिलाना चाहिए.

पान की सूखी जड़ सड़न रोग : इस की वजह राइजोप्टोनिया नामक फफूंद है. यह जमीन से पैदा होने वाला रोग?है. यदि जमीन को स्वस्थ और साफसुथरा रखा जाए तो इस रोग का खतरा बहुत कम होता है. इस रोग से बचाव के लिए खड़ी फसल में कार्बेंडाजिम 0.3 फीसदी या मैंकोजेब 0.2 फीसदी का महीने में 1 बार छिड़काव करें.

पत्ती का धब्बेदार और तने का एंथ्रेक्नोज रोग?: यह रोग कोलेरोट्राइकेन केपसीसी नामक फफूंद से होता है. पत्तियों पर इस से धंसे हुए अनियमित टेढ़ेमेढे़ गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते?हैं. पत्तियों के किनारे से ही इस रोग की शुरुआत होती?है और आखिर में पत्ती का ज्यादातर हिस्सा काला पड़ने लगता?है. यह रोग बरसात में ज्यादा होता है. इस की रोकथाम के लिए मैंकोजेब 0.3 फीसदी का छिड़काव बरसात में 10-15 दिनों पर करना चाहिए.

तना कैंसर : लंबाई में यह भूरे रंग के धब्बे के?रूप में तने पर दिखाई देता?है. इस के प्रभाव से तना फट जाता है. इस की रोकथाम के लिए 150 ग्राम प्लांटो बाइसिन व 150 ग्राम कापर सल्फेट का?घोल 600 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

जड़ों में गांठें बनना : यह रोग मलोयडोगायनी नामक सूत्रकृमि द्वारा फैलता है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में इस का प्रभाव ज्यादा देखा गया है. इस रोग से बेलें कम बढ़ती हैं और धीरेधीरे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. बेलों के सिरे मुरझा जाते?हैं. ऐसी बेलों पर छोटीछोटी गांठें बनती?हैं, जिस वजह से पौधों को पोषक तत्त्व कम मिलते हैं और पौधे छोटे ही रह जाते?हैं. इस की रोकथाम के लिए नीम की खली की 15-20 किलोग्राम मात्रा प्रति 100 मीटर की दर से 1 साल तक इस्तेमाल करें.

  • डा. बालाजी विक्रम व पूर्णिमा सिंह सिकरवार

बसंत में मीठा मक्का उगा कर लाभ कमाएं

मक्के को दाने, पापकार्न, बेबीकार्न, मीठा मक्का आदि के लिए उगाया जाता है. आजकल मीठे मक्के के भुट्टों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है. खासतौर पर बारिश का मौसम शुरू होने पर लोग भुट्टों को भून कर खाते हैं, लेकिन उस समय भुट्टों की कमी होती है. यदि मक्के को बंसत के मौसम में बोया जाए, तो इस की तोड़ाई बारिश का मौसम शुरू होने से पहले कर सकते हैं.

उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, वहां बसंत के मौसम में मक्के की बोआई की जा सकती है. इन इलाकों में आलू, मटर, तोरिया व गन्ने की फसल के बाद मक्के को आसानी से उगाया जा सकता है. किसान इस से प्राप्त भुट्टों से ज्यादा आय हासिल कर सकते हैं. बसंत के मौसम में 7-9 घंटे तक धूप होने के कारण पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अच्छी होती है. खरपतवार, कीट, रोग आदि की समस्या भी बसंत के मौसम में कम होती है. बसंत के मौसम में बोए गए मक्के का एक लाभ यह भी है कि कटाई के बाद पौधों से हरा चारा हासिल हो जाता है.

प्रजातियों का चुनाव व बोआई का समय

बसंत के मौसम में मीठे मक्के की प्रजाति का चुनाव बहुत खास है. मीठे मक्के की प्रजातियां प्रिया, माधुरी व शुगर 75 हैं. इन प्रजातियों में शुक्रोस की मात्रा बहुत अधिक होती है और ये खाने में बहुत मीठी होती हैं. संकुल प्रजातियों जैसे प्रगति, कंचन, श्वेता को भी हरे भुट्टे के लिए उगा सकते हैं, पर इन में मिठास की मात्रा कम होती है.

बसंत के मौसम में बोआई देर से करने पर तापमान ज्यादा होने के कारण अंकुरण कम होता है और पौधों की बढ़वार रुक जाती है, जिस से उपज घट जाती है. जल्दी बोआई करने पर तापमान कम होता है, जिस कारण अंकुरण कम होता है और पौधों की वृद्धि भी कम होती है. लिहाजा बसंत के मौसम में बोआई सही समय पर करनी चाहिए. बसंत के मौसम में मक्के की बोआई का सही समय फरवरी के दूसरे पखवारे से ले कर मार्च के पहले हफ्ते तक होता है.

बीज की मात्रा, उपचार व बोआई की विधि

मीठे मक्के का बीज छोटा व सिकुड़ा होता है, जिस कारण इस का भार भी कम होता है. लिहाजा मीठे मक्के की बीज दर सामान्य मक्के की तुलना में काफी कम होती है. 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 10 से 12 किलोग्राम बीज काफी होता है. यदि संकुल प्रजातियों को हरे भुट्टे के लिए उगाया जा रहा हो तो 18 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगता है.

मिट्टी से होने वाले रोगों से बचाव के लिए बीजों को थीरम या कारर्बेंडाजिम से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करना चाहिए. ज्वार की प्ररोह मक्खी के प्रकोप से बचाने के लिए बीजों को 5 मिलीलीटर इमेडाक्लोप्रिड से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोएं.

किसान मक्के की बोआई बिखेर कर करते हैं, पर इस से कम उपज हासिल होती है. लिहाजा बोआई लाइनों में ही करनी चाहिए. लाइनों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. इस तरह बोआई करने से 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल से 66000 से 83000 पौधे प्राप्त हो जाते हैं. बीजों को 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण न करने की स्थिति में उपज में काफी कमी हो जाती है. खरपतवार  नियंत्रण के लिए फसल में कम से कम 2 बार निराईगुड़ाई (पहली बोआई के 25 से 30 दिनों बाद व दूसरी 45-50 दिनों बाद) करनी चाहिए. रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई के 2-3 दिनों के अंदर एट्राजीन 1.0-1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में मिला कर खेत में छिड़कना चाहिए. एट्राजीन दवा न होने पर पैंडीमैथालीन को 3.33 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 2-3 दिनों में छिड़कें. छिड़काव के समय मिट्टी में सही नमी होनी चाहिए. संभव हो तो छिड़काव शाम के वक्त करना चाहिए. छिड़काव के बाद खेत में आनाजाना नहीं चाहिए वरना दवा का असर कम हो जाता है. रसायनों का इस्तेमाल करने के बाद मक्के में निराई की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि इन रसायनों का असर काफी समय तक रहता है. यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रकोप ज्यादा हो तो 2, 4 डी ईथाइल एस्टर की 2.65 किलोग्राम मात्रा या 2, 4 डी एमिन साल्ट की 860 ग्राम मात्रा को बोआई के 30-35 दिनों बाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. लेकिन इन दवाओं का इस्तेमाल लाइनों के बीच में करें. मक्के के पौधों पर इन दवाओं का उलटा असर पड़ता है, लिहाजा इन के छिड़काव के समय स्प्रेयर में हुड लगाएं और सावधानी बरतें वरना लाभ के बजाय नुकसान हो सकता है.

सिंचाई

बसंत के मौसम में मक्के की सफलता काफी हद तक सिंचाई पर निर्भर करती है. उस दौरान 5-6 सिंचाई की जरूरत होती है. यदि समयसमय पर बारिश हो जाए तो सिंचाई की जरूरत कम होती है. लेकिन फसल के दौरान बारिश कम हो तो सिंचाई करनी पड़ती है. सिंचाई पूरे खेत में समान रूप से हो, इस के लिए खेत को बोआई से पहले समतल करना जरूरी है वरना सिंचाई के समय खेत के कुछ भाग सूखे रह जाते हैं और कुछ भागों में पानी भर जाता है. खेत को समतल बनाने से सिंचाई पूरे खेत में अच्छे ढंग से होती है और फसल पानी को बेहतर ढंग से इस्तेमाल करती है.

बोआई के 20-25 दिनों बाद, फिर 20-25 दिनों के अंतराल पर, पौधों के घुटने तक पहुंचने की अवस्था में, फिर नर मंजरी निकलते समय, फिर भुट्टा निकलते समय और दानों में दूध पड़ते समय सिंचाई करनी चाहिए. अगर बोआई के समय मिट्टी में नमी कम हो तो पलेवा कर के बोआई करनी चाहिए वरना बीजों के अंकुरण पर असर पड़ता है.

यदि बोआई मेंड़ों पर की जाए तो सिंचाई करने में सुविधा होती है और पानी भी कम लगता है. लिहाजा कोशिश यही करनी चाहिए कि बोआई मेंड़ों पर करें. मेंड़ों के बीच बनी नालियों का इस्तेमाल सिंचाई के साथसाथ जल निकासी के लिए भी कर सकते हैं.

यदि बोआई मेंड़ बना कर करना मुमकिन न हो तो समतल खेत में लाइनों में बोआई करने के 25-30 दिनों बाद पौधों पर दोनों ओर से मिट्टी चढ़ा दें. इस से बीच में नालियां बन जाएंगी. इन नालियों में सिंचाई करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है, साथ ही साथ पानी का भी पूरा इस्तेमाल होता है. सिंचाई के समय खेत में 5-6 सेंटीमीटर (करीब 2 इंच) की गहराई तक पानी लगाएं. ज्यादा गहराई तक पानी लगाने से खेत में पानी भरने का खतरा रहता है, जिस का फसल की बढ़वार व उपज पर उलटा असर पड़ता है. यदि बोआई मेंड़ों पर की गई है, तब सिंचाई करते समय लाइनों के बीच बनी नालियों को पूरा भरने की जरूरत नहीं होती है. पानी मेंड़ की ऊंचाई के 2 तिहाई भाग तक लगाएं. सिंचाई समय से न करने से मिट्टी में नमी की कमी आ जाती है और पत्तियां मुरझा कर मुड़ने लगती है. अकसर पानी की कमी होने पर पूरा पौधा सूख जाता है.

जलनिकास

जल भराव की हालत में मक्के की फसल तबाह हो जाती है, लिहाजा खेत में जल निकास का सही इंतजाम होना चाहिए. इस के लिए खेत को ठीक से समतल कर लेना चाहिए और खेत के बीचबीच में नालियां बनानी चाहिए ताकि फालतू पानी को बाहर निकाला जा सके.

मक्के को मेंड़ों पर बोना चाहिए और मेंड़ों के बीच बनी नालियों का इस्तेमाल जल निकास के लिए करना चाहिए. मक्के को कभी भी निचले खेतों में जहां जल भराव की समस्या हो नहीं बोना चाहिए.

उर्वरकों की मात्रा

उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए. वैसे बसंत के मक्के के लिए आमतौर पर 5 से 10 टन गोबर की खाद, 120 किलोग्राम नाइट्रोजन,

60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश व 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. सड़ी हुई गोबर की खाद को बोआई से 10 से 15 दिन पहले खेत में डाल कर मिट्टी में मिला देना चाहिए.

फास्फोरस, पोटाश व जिंक की पूरी मात्रा बोआई के समय कूड़ों में इस्तेमाल करनी चाहिए. नाइट्रोजन की 10 फीसदी मात्रा बोआई के समय, 20 फीसदी मात्रा जब पौधों में 4 पत्तियां आ जाएं, 30 फीसदी मात्रा जब पौधे में 8 पत्तियां आ जाएं, 30 फीसदी मात्रा नरमंजरी निकलते समय और 10 फीसदी मात्रा दानों के भरने की अवस्था में इस्तेमाल करनी चाहिए. ऐसा करने से उपज में काफी इजाफा होता है.

कीट नियंत्रण

बसंत के मौसम में कीटों का प्रकोप कम होता है, फिर भी निम्नलिखित कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं:

ज्वार की प्ररोह मक्खी : इस कीट का प्रकोप बसंत के मौसम में बहुत ज्यादा होता है. इस कीट की सूंडि़यां फसल की शुरुआती अवस्था में हमला करती हैं, इस कारण पौधे सूख जाते हैं. इस कीट से बचाव के लिए बोआई के समय मिट्टी में कार्बोफ्यूरान 3 जी को 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं. बीजों को इमिडाक्लोप्रिड से 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर के बोएं.

तना भेदक : इस कीट की सूंडि़यां तनों में छेद कर के उन्हें अंदर ही अंदर खाती रहती हैं, जिस के कारण पूरा पौधा सूख जाता है. इस की रोकथाम के लिए जमाव के 2 से 3 हफ्ते बाद क्वीनालफास 25 ईसी का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें या प्रभावित पौधों में कार्बोफ्यूरान 3 जी की कणिकाएं गोफ में डालें जिस से कीट की आने वाली पीढ़ी को रोक कर अन्य स्वस्थ्य पौधों को बचाया जा सके.

गुलाबी तना बेधक : इस का लारवा गुलाबी रंग का होता है. यह तना बेधक की तरह नुकसान पहुंचाता है. इस की रोकथाम भी तना बेधक की तरह ही जाती है.

कटुआ : इस का लारवा मटमैले रंग का होता है. दिन के समय यह मिट्टी में छिपा रहता है और रात में पौधों को जड़ के पास से काट देता है. इस की रोकथाम के लिए कार्बाक्यूरान 3 फीसदी की कणिकाओं को 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए.

रोग नियंत्रण

बसंत के मौसम में रोगों का प्रकोप कम होता है. कभीकभी पत्ती झुलसा और रतुआ रोग फसल में लग जाते हैं. इन रोगों की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 2 किलोग्राम मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से 3-4 बार 15-20 दिनों के अंतर पर छिड़काव करने चाहिए.

तोड़ाई

हरे भुट्टे की तोड़ाई भुट्टे निकलने के 20 से 25 दिनों बाद करनी चाहिए. इस अवस्था में दानों में दूध भरा रहता है और दाने खाने में मुलायम रहते हैं. कभी भी पके हुए दानों की अवस्था में तोड़ाई नहीं करनी चाहिए, ऐसे दाने कठोर हो जाते हैं और खाने में स्वादिष्ठ नहीं होते हैं.

उपज

आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर बसंत के मौसम में भुट्टों की 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज हासिल की जा सकती है. बाजार में प्रचलित मूल्य के आधार पर प्रति हेक्टेयर 1 लाख रुपए तक का फायदा हासिल किया जा सकता है.

  • डा. अमित भटनागर, जयंत कुमार सिंह व दीपक पांडे

 

आलू की खुदाई और रखरवाव

आलू की खुदाई उस समय करनी चाहिए जब आलू के कंदों के छिलके सख्त हो जाएं. हाथ से खुदाई करने में ज्यादा मजदूरों के साथ समय भी ज्यादा लगता है. उस की जगह बैल या ट्रैक्टर से चलने वाले डिगर से  खुदाई करें तो आलू का छिलका भी कम छिलता है, जबकि हाथ या हल से आलू कट जाते हैं. आलू के कट या छिल जाने पर भंडारण के समय उस में बीमारी ज्यादा लगती है.

खुदाई के समय खेत में ज्यादा नमी या सूखा नहीं होना चाहिए. इस के लिए खुदाई के 15 दिन पहले ही फसल में सिंचाई रोक देनी चाहिए.

आलू की खुदाई से पहले यह जरूर देख लेना चाहिए कि कहीं आलू का छिलका अभी कच्चा तो नहीं है. कुछ आलुओं को खोद कर अंगूठे से रगड़ें, अगर छिलका उतर जाए तो खुदाई कुछ दिन तक नहीं करनी चाहिए.

खुदाई के बाद कटेसड़े आलू छांट कर निकाल दें. ऐसा न करने पर कटेसड़े आलू अच्छे आलुओं को भी सड़ा देते हैं.

खुदाई के बाद कटे, छिले, फटे और बीमार आलुओं को निकाल कर बचे हुए स्वस्थ आलुओं को 1 से डेढ़ मीटर ऊंचा और 4-5 मीटर चौड़ा ढेर बना कर छाया में सुखाया जाता है. आलुओं को सुखाने से फालतू नमी सूख जाती है, जिस से आलुओं की क्वालिटी में सुधार होता है और वे सड़ने से बचते हैं.

सूरज की सीधी रोशनी पड़ने से आलू हरापन या गहरा बैंगनी रंग ले लेता है, इस तरह का आलू खाने के लिए अच्छा नहीं होता है, परंतु बीज के लिए यह ठीक होता है.

आलुओं को हवादार जगह में ढक कर रखना चाहिए. आलू की क्योरिंग में 10-15 दिन लगते हैं, जो वातावरण और आलुओं की किस्म पर निर्भर करता है. सही क्योरिंग हो जाने से आलू के घाव ठीक हो जाते हैं और छिलका सख्त हो जाता है.

आलू की ग्रेडिंग : आलू की खुदाई के बाद आलू की सही तरह से क्योरिंग करनी चाहिए ताकि आलू के छिलके पक जाएं और ढुलाई में उतरे नहीं.

अच्छी तरह क्योरिंग के बाद सड़ेगले व कटेफटे आलुओं को ढेर से बाहर निकाल कर साफ आलुओं की आकार के आधार पर ग्रेडिंग करनी चाहिए. गे्रडिंग किए हुए बीज, खाने व प्रोसेसिंग के आलुओं का भाव बाजार में अच्छा मिलता है.

ग्रेडिंग हाथ से, झन्ने से या ग्रेडर मशीन से की जाती है. आलू की ग्रेडिंग 3 हिस्सों में जैसे 80 ग्राम से बड़े (बड़ा), 40-80 ग्राम (मध्यम) और 25-40 ग्राम तक (छोटे) ढेर में की जाती है.

मशीन से आलू की ग्रेडिंग : आलू ग्रेडिंग मशीन से बीज के लिए अलग, बाजार के लिए अलग, स्टोरेज के लिए अलग आलू की छंटाई कर सकते हैं.

हवा लगने के बाद जब आलू पर लगी मिट्टी सूख जाए तो उन की छंटाई करनी चाहिए. बड़े, मध्यम व छोटे आलुओं को बाजार भेज दिया जाता है. बीज के लिए मध्यम आकार के आलू ठीक रहते हैं. उन्हें अगले साल के बीज के लिए स्टोरेज किया जा सकता है.

‘2 हार्स पावर की मोटर से चलने वाली आलू ग्रेडिंग मशीन को ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर भी चलाया जा सकता है. आलू छंटाई मशीन की काम करने की कूवत 40 से 50 क्विंटल प्रति घंटा है. यह मशीन आलू की 4 साइजों में छंटाई करती है. पहले भाग में 20 से 35 मिलीमीटर, दूसरे भाग में 35 से 45 मिलीमीटर, तीसरे भाग में 45 से 55 मिलीमीटर और चौथे व आखिरी भाग में सब से बड़े आकार के आलू छंटते हैं.

‘इस मशीन की सब से खास बात यह है कि ग्रेडिंग करते समय आलू को किसी तरह का नुकसान नहीं होता. जैसा आलू डालोगे वैसा ही निकलेगा. आलू छंटाई के समय ही सीधे बोरे में भरा जाता है. बोरों को मशीन से लगा दिया जाता है, जिस की सुविधा मशीन में की गई है. इस मशीन के विषय में या हमारी किसी भी अन्य मशीन के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आप मोबाइल नंबर 9813048612 पर फोन कर सकते हैं.’

पैकिंग व रखरखाव : आलुओं को उन के आकार के अनुसार अलगअलग बोरियों में भरकर रखें. बोरों में रखते समय इस बात का ध्यान रखें कि 50 किलोग्राम आलू ही एक बोरी में भरा जाए. इस से बोरियों के रखरखाव में मजदूरों को आसानी होती है. ध्यान रखें कि उपचारित आलू का इस्तेमाल खाने के लिए न किया जाए.

बाजार की मांग के अनुसार छोटे या बड़े पैकेट में पैकिंग कर उन पर अपने ब्रांड और आलू की प्रजाति का नाम भी लिखना चाहिए. ढुलाई के समय यह सावधानी बरतनी चाहिए कि आलू को ऊंचे से न पटका जाए, क्योंकि पटकने से आलू ऊपर से न भी टूटे तो अंदर से फट जाते हैं.

आलू को पूरे साल उपलब्ध कराने के लिए इसे कोल्ड स्टोरेज में रखना पड़ता है जो काफी खर्चीला है. कोल्ड स्टोरेज से निकला आलू महंगा होता है और इस के कारण आलू का भाव बाजार में समय के साथसाथ नई फसल की खुदाई तक बढ़ता जाता है.

मुख्य फसल को ढेर में भंडारण की घर पर सुविधा हो, तो उस का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि फसल को लंबे समय तक बेचा जा सके. मुख्य फसल की कुछ मात्रा कोल्डस्टोर में रखनी चाहिए और कुछ मात्रा ढेर के रूप में छायादार जगह पर स्टोर करनी चाहिए.

बाजार की मांग को देखते हुए थोड़ाथोड़ा कर के आलू को बाजार में बेचना चाहिए. कोल्ड स्टोर में रखे हुए आलू को बाजार भाव के अच्छे होने पर बेचना चाहिए.

औस्कर से बाहर हुई भारतीय फिल्म ‘‘न्यूटन’’

एक बार फिर ‘औस्कर’ अवार्ड में भारत को नाकामी ही हासिल हुई. भारतीय फिल्म उद्योग की तरफ से से औस्कर में विदेशी भाषा की फिल्म खंड में भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में राज कुमार राव अभिनीत फिल्म ‘‘न्यूटन’’ को भेजा गया था. ‘न्यूटन’ की कहानी प्रजातंत्र में चुनाव को लेकर है. एक सरकारी मुलाजिम किस तरह नक्सल प्रभावित आदिवासी क्षेत्र के एक गांव के लोगों से वोट डलवाता है, उसकी पूरी कथा है. मगर अफसोस ‘न्यूटन’ को विदेशी भाषा फिल्म की श्रेणी में चुनी गई नौ फिल्मों में स्थान नहीं मिल पाया.

बहरहाल, विदेशी भाषा की फिल्म श्रेणी में जिन 9 फिल्मों को चुना गया है, वह हैं-चिली की फिल्म ‘‘ए फैंटास्टिक वूमन’’, जर्मनी की ‘इन ड फेड’, हंगरी की ‘औन बौडी एंड सोल’, इजराइल की ‘फौक्सर्टाट’, लेबनान की ‘द इंसल्ट’, रूस की ‘लवलेस’, सेनेगल की ‘फेलिसिटी’, दक्षिण अफ्रीका की ‘द वाउंड’,स्वीडन की ‘एंड द स्क्वायर’. अब वोटिंग के आधार पर इन नौ फिल्मों में से ही कोई एक फिल्म 4 मार्च को डौल्बी थिएटर मे आयोजित समारोह में विजेता घोषित की जाएगी.

किसी फिल्म ने नही जीता औस्कर

यहां ये जानना जरूरी है कि भारत ने अब तक एक बार भी विदेशी भाषा कैटेगरी में कोई औस्कर नहीं जीता है. बीते साल तमिल फिल्म ‘विसारानाई’ को भी इस कैटेगरी में नामित किया गया था, लेकिन ये भी बहुत जल्द ही इस रेस से बाहर हो गई थी. इससे पहले ‘अपुर संसार’ (1959), ‘गाइड’ (1965), ‘सारांश (1984)’, ‘नायकन’ (1987), ‘परिंदा’ (1989), ‘अंजलि’ (1990), ‘हे राम’ (2000), ‘देवदास’ (2002), ‘हरिचन्द्रा फैक्ट्री’ (2008), ‘बर्फी’ (2012) और ‘कोर्ट’ (2015) को भी भारत की तरफ से औस्कर के लिए चुना गया था.

यहां तक कि फाइनल लिस्ट तक पहुंचने वाली फिल्मों में भी भारत की ओर से सिर्फ तीन फिल्मों के नाम महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ (1957), मीरा नायर की ‘सलाम बौम्बे’ (1988) और आशुतोष गोवारिकर की ‘लगान’ (2001) ही शामिल हैं.

वैसे साल 2002 में औस्कर के लिए भारत की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही थी. इस दौरान नामित की गई आशुतोष गोवारिकर की फिल्म लगान के जीतने की पूरी उम्मीद थी. लेकिन यह फिल्म आखिरी दौर में बाहर हो गई थी.

साल 2013 में जब रितेश बत्रा की फिल्म ‘लंच बौक्स’ की बजाय ज्ञान कोरिया की ‘द गुड रोड’ को औस्कर में भेजा गया है, तब कहा गया था कि ‘लंच बौक्स’ औस्कर की दावेदारी के हिसाब से ज्यादा मजबूत फिल्म थी.

बिटकौइन के बाद आया लिटकौइन, कम दाम मगर दे रहा बंपर रिटर्न

बिटकौइन (Bitcoin) के बारे में तो आप जानते ही होंगे. पिछले करीब एक महीने से यह क्रिप्टो करेंसी हर घंटे बाजार में नए-नए रिकौर्ड कायम कर रही है.

इस डिजीटल करेंसी ने अपने निवेशकों को एक महीने के दौरान ही बड़ा रिटर्न दिया है. जिसके बाद निवेशकों में जबरदस्त उत्साह है. हालांकि बिटकौइन के ऊंचे स्तर पर जाने के दौरान रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने भी इसमें निवेश करने वाले लोगों को चेतावनी जारी की थी. दूसरी तरफ आयकर विभाग ने बुधवार को देश मे प्रमुख बिटकौइन एक्सचेंजों में छापेमारी की.

इस कार्रवाई की भनक लगने के बाद बिटकौइन निवेशकों में खलबली बच गई थी. आधिकारिक सूत्रों ने बताया था कि कथित रूप से कर चोरी के मामले में यह कार्रवाई की गई. आयकर विभाग की बेंगलुरु की जांच इकाई की अगुवाई में विभाग की विभिन्न टीमों ने दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोच्चि और गुरुग्राम सहित 9 एक्सचेंज परिसरों में सर्वे का काम किया. यह कार्रवाई आयकर विभाग की धारा 133ए के तहत की गई. इस बीच निवेशकों में एक और डिजीटल करेंसी लिटकौइन (Litcoin) चर्चा का विषय बनी हुई है.

क्या है लिटकौइन

दरअसल लिटकौइन की शुरुआत अक्टूबर 2011 में चार्ली ली ने की थी. मीडिया रिपोटर्स में बताया जा रहा है चार्ली ली गूगल में भी काम कर चुके हैं. नवंबर 2013 में लिटकौइन का बाजार पूंजीकरण 1 बिलियन डौलर था, जो नवंबर 2017 में बढ़कर 4.6 बिलियन डौलर तक पहुंच गया. इस समय एक लिटकौइन की कीमत करीब 85 डौलर है. इसके बाद करीब एक महीने में लिटकौइन की कीमत बढ़कर 300 डौलर तक पहुंच गई. इस तरह इस क्रिप्टो करेंसी ने निवेशकों को करीब 250 फीसदी का रिटर्न मिला. इसके बाद निवेशकों का ध्यान बिटकौइन के साथ ही लिटकौइन पर टिक गया है.

लिटकौइन से जुड़ी 5 अहम बातें

लिटकौइन (Litcoin) गुरुवार को 300 डौलर (करीब 20,000 रुपए) पर ट्रेड कर रहा था. वहीं बिटकौइन इस समय करीब 16,300 अमेरिकी डौलर पर ट्रेडिंग कर रहा है. हालांकि तीन दिन दिन पहले 12 दिसंबर को लिटकौइन करीब 200 डौलर पर ट्रेड कर रहा था. वहीं 7 दिसंबर को यह 100 डौलर के करीब कारोबार कर रहा था. इस तरह एक हफ्ते में लिटकाइन में 200 फीसदी की तेजी दर्ज की गई.

ऐसे निवेशक जो क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने के इच्छुक हैं. वे लिटकौइन में निवेश कर सकते हैं. इसकी कीमत बिटकौइन से काफी कम है. एक बिटकौइन की कीमत में आप करीब 80 लिटकौइन खरीद सकते हैं.

लिटकौइन सैन फ्रांसिस्को आधारित डिजीटल करेंसी है. इसे भी आप बिटकौइन की तरह ही इस्तेमाल कर सकते हैं. अन्य ट्रेडिंग भी बिटकौइन में लिटकौइन की ही तरह होती है.

उम्मीद की जा रही है कि शिकागो बेस्ड फ्यूचर एक्सचेंज सीबीओआई (CBOE) लिटकौइन को जल्द ही लौन्च करेगी.

लिटकौइन में निवेश करने का इच्छुक हर व्यक्ति बिटकौइन की ही तरह लिटकौइन की स्मौल यूनिट खरीद सकता है. लिटकौइन के एक हजारवे हिस्से को एक लाइट कहा जाता है. यह एक लिटकौइन का 0.001 पर्सेंट होगा. इसकी तरह लिटकौइन की सबसे छोटी यूनिट को फोटोन नाम से जाना जाता है. जो कि एक लिटकौइन का 0.00000001 पर्सेंट होगी.

फरहान अख्तर की पूर्व पत्नी अधुना को मिला नया जीवनसाथी

सोलह वर्ष तक अभिनेता, निर्माता व निर्देशक फरहान अख्तर की जीवन संगिनी रहने के बाद फरहान अख्तर से इसी वर्ष की शुरुआत में तलाक लेकर अलग हो जाने वाली अधुना भबानी को अब नया जीवन साथी मिल गया है, ,जिसका नाम है- निकोलो मोरिया.

गोवा से जुड़े सूत्र दावा कर रहे हैं कि पिछले कुछ माह से हर माह एक सप्ताह के लिए अधुना भबानी गोवा में निकोलो मोरिया के साथ नजर आती रहती हैं. इस बार लोगों ने अधुना और निकोलो को एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर गोवा के समुद्री बीच पर अति प्रसन्न मुद्रा में घूमते हुए देखा. जिससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि निकोलो मोरिया के रूप में अधुना ने अपने लिए नया जीवन साथी चुन लिया है. अब इनकी शादी की खबर कब आती है, इसका इंतजार रहेगा.

स्मार्टफोन देर में चार्ज होता है, तो रखें इस बात का ख्याल

आज हर कोई स्मार्टफोन का प्रयोग करता है और समय के साथ साथ ही इसकी आवश्यकता और इसका इस्तेमाल भी लगातार बढ़ता जा रहा है. कौलिंग के अलावा भी कई ऐसे काम हैं जिसके लिए स्मार्टफोन का प्रयोग किया जाता है. इसके इस्तेमाल को देखा जाए तो जाहिर सी बात है इसका मतलब हुआ कि आपको अच्छे बैटरी बैकअप की भी जरूरत है.

आपकी जरूरत को देखते हुए कंपनियां लगातार इस पर काम कर रही हैं और ऐसे स्मार्टफोन्स ला रही हैं जो ज्यादा बैटरी बैकअप देने के साथ साथ जल्दी चार्ज भी हो रहे हैं. लेकिन अगर आप फोन के चार्जिंग को लेकर परेशान हैं तो इस खबर को पढ़ने के बाद आपकी परेशानी दूर हो सकती है.

ऐसा इसलिए क्योंकि आज हम आपको कुछ ऐसी ट्रिक्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका फोन चार्ज करते वक्त अगर ख्याल रखा जाए तो आपका फोन न केवल जल्दी चार्ज होगा बल्कि ज्यादा बैटरी बैकअप भी देगा.

फोन को ओरिजनल चार्जर से करें चार्ज

इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि अपने स्मार्टफोन को हमेशा कंपनी के ओरिजनल चार्जर से ही चार्ज करें. मतलब कि आपको फोन के साथ जो चार्जर दिया गया है उसके अलावा किसी अन्य चार्जर से चार्ज न करें. इससे फोन और बैटरी दोनों ठीक रहेंगे. आपके फोन को किसी भी तरह का कोई नुकसान भी नहीं होगा साथ ही फोन जल्दी चार्ज होगा. अगर चार्जर खराब हो जाता है तो कंपनी के सर्विस सेंटर से जाकर नया ले लें. लोकल चार्जर से चार्ज न करें.

फ्लाइट मोड चार्ज करें

फोन चार्ज करते समय अपने स्मार्टफोन का फ्लाइट मोड औन कर दें. इससे फोन कौल, इंटरनेट, जीपीएस आदि बंद हो जाएंगे और फोन जल्दी चार्ज होगा और बैटरी भी ज्यादा चलेगी.

वाईफाई या ब्लूटूथ कनेक्टिविटी बंद

फोन चार्ज करते समय फ्लाइट मोड औन करने के अलावा वाईफाई और ब्लूटूथ कनेक्टिविटी को भी बंद कर दें. ऐसा करने से फोन जल्दी चार्ज होगा.

NFC मोड को करें औफ

फोन में NFC मोड को औफ कर चार्ज करने पर फोन की बैटरी जल्दी चार्ज होती है. इसलिए फोन चार्ज करते वक्त हमेशा कोशिश करें कि फोन में दिये गये NFC मोड को औफ कर दें.

बैटरी सेवर मोड करें औन

मौजूदा सभी स्मार्टफोन्स में बैटरी सेवर मोड का विकल्प दिया गया है. जो फोन की बैटरी को सेव करने में मददगार होता है. ऐसे में चार्जिंग के समय फोन में बैटरी सेवर मोड को औन रखें.

फोन की ब्राइटनेस को रखें कम

फोन की ब्राइटनेस भी बैटरी को जल्दी खत्म करती है. इसलिए फोन की ब्राइटनेस को हमेशा कम करके हा रखें.

क्या मल्लिका सच में आ गई हैं सड़क पर, बौयफ्रेंड के पास भी नहीं हैं पैसे

बौलीवुड की जानीमानी अदाकारा मल्लिका शेरावत भारत से पेरिस में शिफ्ट हो गई हैं. पिछले साल खबर आई थी कि तीन नकाबपोश बदमाशों ने मल्लिका पर पेरिस स्थित उनके अपार्टमेंट के बाहर हमला किया था. इसके बाद एक बार फिर मल्लिका मीडिया की सुर्खियों में आ गई हैं क्योंकि मल्लिका पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मल्लिका शेरावत और उनके बौयफ्रेंड कायरिल्ल औक्सेफैन्स जिस अपार्टमेंट में रहते हैं उन्होंने उसका किराया नहीं दिया है जिसके कारण हो सकता है कि उन्हें बेघर होना पड़े. मल्लिका और उनके बौयफ्रेड को इस अपार्टमेंट का 80 हजार यूरो या भारतीय मुद्रा में बताया जाए तो 64 लाख रुपए मकान मालिक को देने है.

मकान मालिक को किराया न दे पाने के पीछे मल्लिका के पास पैसा न होना बताया जा रहा है. इतना ही नहीं खबर यह है भी है कि मल्लिका के बौयफ्रेंड के पास भी अब पैसे नहीं है और दोनों तंगहाली की जिंदगी जी रहे हैं.

वहीं उनके वकील का कहना है कि नवंबर 2016 में मल्लिका के अपार्टमेंट के बाहर तीन नाकाबपोशों द्वारा उनके साथ मारपीट और आंसू गैस डाले जाने के कारण वे अपना गुस्सा दिखा रहे हैं और यही वजह है कि उन्होंने किराया नहीं दिया है.

उन्होंने कहा कि एक बार जब यह मामला सुलझा दिया जाएगा तो मल्लिका और उनके बौयफ्रेंड किराया भर देंगे. इसके साथ ही वकील ने कहा कि मल्लिका और कायरिल्ल इन दिनों थोड़ी अस्थायी आर्थिक समस्या से गुजर रहे हैं.

वहीं मकान मालिक के वकील ने मल्लिका के वकील के इस बयान का विरोध किया कि वे आसानी से किराया भर सकते हैं और वे केवल हमले के विरोध में किराए का भुगतान नहीं कर रहे हैं. बता दें कि मल्लिका 16वीं एरौनडिस्समेंट में रहती हैं जो कि पेरिस की सबसे मशहूर जगहों में से एक है. 1965 में आई जैम्स बांड फिल्म से लेकर अबतक कई हौलीवुड फिल्मों की शूटिंग इस इलाके में हो चुकी हैं.

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