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दागी नेताओं के खिलाफ मार्च से सुनवाई हो : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को निर्देश दिया कि दागी नेताओं के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की सुनवाई मार्च से शुरू हो जाए. कोर्ट ने कहा कि इसके लिए लिए गठित होने वाली 12 विशेष अदालतों को अगले 1 मार्च 2018 से काम शुरू कर देना चाहिए.

सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से कहा कि इन विशेष अदालतों के गठन के लिए संबंधित राज्यों को तत्काल 7.80 करोड़ रुपये में से आनुपातिक आधार पर धन आवंटित किया जाए. चुनाव विश्लेषक एनजीओ के अनुसार सांसदों और विधायकों पर 13,680 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं.

अदालत ने कहा, केंद्र से धन मिलने के तुरंत बाद संबंधित राज्य सरकारों को उच्च न्यायालयों से परामर्श कर विशेष अदालतें गठित करनी चाहिए. जस्टिस रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की पीठ ने केंद्र को सांसदों और विधायकों की संलिप्तता वाले लंबित आपराधिक मामलों का विवरण जुटाने के लिए दो महीने का समय दिया. पीठ ने इस मामले में केंद्र के अतिरिक्त हलफनामे का अवलोकन किया, जिसमें सरकार ने नेताओं की संलिप्तता वाले मामलों के लिए इस समय 12 विशेष अदालतें गठित करने का प्रस्ताव किया है.

पीठ ने कहा, इस तरह का आवंटन होने और संबंधित राज्य सरकारों को सूचित किए जाने के तुरंत बाद, राज्य सरकारें उच्च न्यायालयों से परामर्श कर त्वरित अदालतें गठित करेंगी. वे यह सुनिश्चित करेंगी कि ये अदालतें 1 मार्च 2018 से काम करना शुरू कर दें.

मोहब्बत के लिए : इश्क के चक्कर में कर दी हत्या

10 मई, 2017 की सुबह कानपुर के थाना काकादेव के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह रात में पकड़े गए 2 अपराधियों से पूछताछ कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन रिसीव कर के उन्होंने कहा, ‘‘थाना काकादेव से मैं इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह बोल रहा हूं, आप कौन?’’

‘‘सर, मैं लोहारन भट्ठा से बोल रहा हूं. जीटी रोड पर स्थित रामरती के होटल पर एक युवक की हत्या हो गई है.’’ इतना कह कर फोन करने वाले ने फोन तो काट ही दिया, उस का स्विच भी औफ कर दिया.

सूचना हत्या की थी, इसलिए मनोज कुमार सिंह ने पहले तो इस घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी, उस के बाद खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. रामरती का होटल जीटी रोड पर जहां था, सिपाहियों को उस की जानकारी थी.

इसलिए पुलिस वालों को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. पुलिस के पहुंचने तक वहां काफी लोग इकट्ठा हो गए थे. मनोज कुमार सिंह भीड़ को हटा कर वहां पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. एक अधेड़ उम्र महिला लाश के पास बैठी रो रही थी.

मनोज कुमार सिंह ने महिला को सांत्वना देते हुए लाश से अलग किया. उन्होंने उस से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम रामरती है. मैं ही यह होटल चलाती हूं. जिसे मारा गया है, उस का नाम छोटू है. यह मेरा मुंहबोला भाई है. रात में किसी ने इस का कत्ल कर दिया है.’’

लाश की शिनाख्त हो ही गई थी. मनोज कुमार सिंह ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतक छोटू की लाश तख्त पर पड़ी थी. किसी भारी चीज से उस के सिर पर कई वार किए गए थे, जिस से उस का सिर फट गया था.

शायद ज्यादा खून बह जाने से उस की मौत हो गई थी. खून से तख्त पर बिछा गद्दा, चादर, कंबल और तकिया भीगा हुआ था. तख्त के पास एक बाल्टी रखी थी, जिस का पानी लाल था. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्या करने के बाद हत्यारे ने बाल्टी के पानी में खून सने हाथ धोए थे.

मनोज कुमार सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि एसएसपी सोनिया सिंह और सीओ गौरव कुमार वंशवाल भी आ गए. अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम भी बुला ली थी. उन्होंने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और रामरती से पूछताछ की.

फोरैंसिक टीम ने कई जगहों से फिंगरप्रिंट लिए. उस के बाद खून से सनी चादर, तकिया, कंबल, एक जोड़ी चप्पल और मृतक के बाल जांच के लिए कब्जे में ले लिए. पुलिस ने अन्य औपचारिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया.

मनोज कुमार सिंह ने हत्या का खुलासा करने के लिए रामरती और आसपास वालों से पूछताछ की. इस पूछताछ में पता चला कि होटल में रात को 2 लड़के और सोए थे. मनोज कुमार सिंह ने तुरंत उन दोनों लड़कों बुधराम और सलाउद्दीन को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर दोनों लड़कों से सख्ती से पूछताछ की गई. तमाम सख्ती के बावजूद दोनों लड़कों ने छोटू की हत्या करने से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि वे रात में होटल पर सोए जरूर थे, लेकिन उन्हें हत्या के बारे में पता ही नहीं चला. काफी सख्ती के बावजूद जब दोनों ने हामी नहीं भरी तो मनोज कुमार सिंह को लगा कि ये दोनों निर्दोष हैं. उन्होंने उन्हें छोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने हत्यारे का पता लगाने के लिए अपने मुखबिरों को लगा दिया.

12 मई, 2017 को मुखबिर से पता चला कि छोटू की हत्या नाजायज रिश्तों में रुकावट बनने की वजह से हुई है. लोहारन भट्ठा का ही रहने वाला संजय रामरती की बेटी सुनयना से प्यार करता था. दोनों के प्यार में छोटू बाधक बन रहा था, इसलिए अंदाजा है कि संजय ने ही छोटू की हत्या की है.

मुखबिर की बात पर विश्वास कर के मनोज कुमार सिंह ने रामरती की बेटी सुनयना से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह संजय से प्यार करती थी. उस के प्यार में छोटू मामा बाधक बन रहे थे. उन के मिलने को ले कर अकसर संजय और मामा में कहासुनी होती रहती थी. मामा की शिकायत पर उसे मां की डांट सुननी पड़ती थी.

सुनयना के इस बयान पर मनोज कुमार सिंह को पक्का यकीन हो गया कि छोटू की हत्या संजय ने ही की थी. संजय को गिरफ्तार करने के लिए उन्होंने संजय के घर छापा मारा तो वह घर पर नहीं मिला. उन्होंने उस के बारे में पता करने के लिए मुखबिरों को लगा दिया. इस के बाद मुखबिरों की सूचना पर उन्होंने उसे गोल चौराहे से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए स्वरूपनगर स्थित सीओ औफिस ले आए.

सीओ गौरव कुमार वंशवाल की उपस्थिति में संजय से छोटू की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई तो उस ने हत्या करने से साफ मना कर दिया. लेकिन जब उस से थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने छोटू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि वह सुनयना से बहुत प्यार करता था. लेकिन सुनयना का मामा छोटू दोनों को मिलने नहीं देता था. इसीलिए उस ने उसे मौत की नींद सुला दिया था. अपराध स्वीकार करने के बाद संजय ने वह हथौड़ा, जिस से उस ने छोटू की हत्या की थी और खून से सने अपने कपड़े घर से बरामद करा दिए थे.

चूंकि संजय ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था और हथियार भी बरामद करा दिया था, इसलिए थाना काकादेव पुलिस ने रामरती को वादी बना कर अपराध संख्या 337/2017 पर आईपीसी की धारा 302 के तहत संजय के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया था. संजय से की गई पूछताछ में प्यार के जुनून में की गई छोटू की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर महानगर के थाना काकादेव का एक मोहल्ला लोहारन भट्ठा है. इस के एक ओर जीटी रोड है तो दूसरी ओर चर्चित जेके मंदिर है. वैसे यह मोहल्ला गंगनहर की जमीन पर अवैध रूप से बसा है. यहां ज्यादातर गरीब और निम्मध्यवर्ग के लोग रहते हैं. इसी मोहल्ले में धर्मेंद्र अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामरती के अलावा बेटी सुनयना थी.

धर्मेंद्र का जीटी रोड पर चायपान का होटल था, जिसे उस की पत्नी रामरती चलाती थी. वह काफी व्यवहारकुशल थी, इसलिए उस का यह होटल खूब चलता था. इसी होटल की कमाई से वह अपने पूरे परिवार का खर्चा चलाती थी.

रामरती के इसी होटल पर छोटू काम करता था. वह मूलरूप से आजमगढ़ का रहने वाला था. मांबाप की मौत के बाद रोजीरोटी की तलाश में वह कानपुर आ गया था. कई दिनों तक भटकने के बाद उसे रामरती के होटल पर ठिकाना मिला था. उस ने अपने काम और व्यवहार से रामरती का दिल जीत लिया, जिस से रामरती ने उसे अपना मुंहबोला भाई बना लिया.

इस के बाद तो छोटू का घर में अच्छाखासा दखल हो गया. रामरती कोई भी काम उस से पूछे बिना नहीं करती थी. रामरती ने छोटू को भाई बना लिया तो उस की बेटी सुनयना उसे मामा कहने लगी थी.

सुनयना, रामरती की एकलौती बेटी थी. 16 साल की होतेहोते वह युवकों की नजरों का केंद्र बन गई. मोहल्ले के जिस गली से वह निकलती, लड़के उसे देखते रह जाते. विधाता ने उसे अद्भुत रूप दिया था. मोहल्ले के लोग कहते थे कि यह कीचड़ में कमल की तरह है.

सुनयना भी जवानी का नशा महसूस करने लगी थी. हिरनी की तरह कुलांचे भरती जब वह घर से निकलती तो मोहल्ले वाले उसे ताकते ही रह जाते. उसे लगता कि लोगों की नजरें उस की देह को भेद कर उसे सुख दे रही हैं. उस समय वह अपने अंदर सिहरन सी महसूस करती. उस की इच्छा होती कि कोई उस का हाथ थाम कर उसे कहीं एकांत में ले जाए और उस से ढेर सारी प्यार की बातें करे.

सुनयना के ही मोहल्ले के दूसरे छोर पर संजय रहता था. उस के पिता बाबूराम नगर निगम में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. वह प्राइवेट नौकरी करता था. उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं थी, इसलिए खूब बनसंवर कर रहता था. उसे भजन और कीर्तन सुनने का बहुत शौक था, इसलिए अकसर वह राधाकृष्ण (जेके) मंदिर जाता रहता था.

किसी दिन मंदिर में संजय की नजर सुनयना पर पड़ी तो वह उसे देखता ही रह गया. सुनयना भी खूब सजधज कर मंदिर आई थी. पहली ही नजर में संजय का दिल सुनयना पर आ गया. वह उसे तब तक ताकता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

सुनयना संजय के मन को भाई तो वह उस का दीवाना हो गया. अब वह उस के इंतजार में मंदिर के गेट पर खड़ा रहने लगा. सुनयना उसे दिखाई पड़ती तो वह उसे चाहतभरी नजरों से ताकता रहता. उस की इन्हीं हरकतों से सुनयना समझ गई कि यह कोई प्रेम दीवाना है, जो उसे चाहतभरी नजरों से ताकता है. लेकिन उस ने उस की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

जबकि संजय सुनयना के लिए तड़प रहा था. हर पल उस के मन में सुनयना ही छाई रहती थी. उस का काम में भी मन नहीं लग रहा था. एक तरह सुनयना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. उसे पाने की तड़प जब संजय के लिए बरदाश्त से बाहर हो गई तो उस ने सुनयना के बारे में पता किया. पता चला कि वह उस रामरती की बेटी है, जिस का जीटी रोड पर चायपान का होटल है.

संजय रामरती के होटल पर चाय पीने जाने लगा. अपनी लच्छेदार बातों से जल्दी ही उस ने रामरती से नजदीकी बना ली. यही नहीं, उस ने उस के मुंहबोले भाई छोटू से भी दोस्ती गांठ ली. दोनों में खूब पटने लगी.

रामरती और छोटू से मधुर संबंध बना कर संजय रामरती के घर भी जाने लगा. वहां वह बातें भले ही किसी से करता था, लेकिन उस की नजरें सुनयना पर ही टिकी रहती थीं. सुनयना ने जल्दी ही इस बात को ताड़ लिया. संजय की नजरों में अपने लिए चाहत देख कर सुनयना भी उस के प्रति आकर्षित होने लगी. अब वह भी संजय के आने का इंतजार करने लगी.

दोनों ही एकदूसरे की नजदीकी पाने के लिए बेचैन रहने लगे. लेकिन यह सब अभी नजरों ही नजरों में था. संजय को भी सुनयना के इरादे का पता चल गया था. जब भी उस की चाहत भरी नजरें सुनयना के मुखड़े पर पड़तीं, सुनयना मुसकराए बिना नहीं रह पाती. वह भी उसे तिरछी नजरों से ताकते हुए उस के आगेपीछे घूमती रहती.

सुनयना की कातिल नजरों और मुसकान का मतलब संजय अच्छी तरह समझ रहा था. लेकिन उसे अपनी बात कहने का मौका नहीं मिल रहा था. जबकि सुनयना अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहती थी.

संजय अब ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात सुनयना से कह सके. चाह को राह मिल ही जाती है. एक दिन संजय को मौका मिल गया. उस ने अपने दिल की बात सुनयना से कह दी. सुनयना तो कब से उस के मुंह से यही सुनने का इंतजार कर रही थी.

उस दिन के बाद संजय और सुनयना का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा. सुनयना कोई न कोई बहाना बना कर घर से निकलती और संजय से जा कर मिलती. संजय उसे साथ ले कर सैरसपाटे के लिए निकल जाता. वह अकसर सुनयना को मोतीरेव ले जाता और वहां दोनों साथसाथ सिनेमा देखते. कभी मोतीझील के रमणीक उद्यान में बैठ कर प्यार भरी बातें करते और साथ जीनेमरने की कसमें खाते.

कहते हैं, बैर, प्रीति, खांसी और खुशी कभी छिपाए नहीं छिपती. यही हाल संजय और सुनयना के प्यार का भी यही हुआ. एक दिन कारगिल पार्क में मोहल्ले के एक युवक ने संजय और सुनयना को आपस में हंसतेबतियाते देख लिया. उस ने यह बात होटल पर जा कर सुनयना के मामा छोटू को बता दी. छोटू तुरंत घर गया. घर से सुनयना गायब थी, जिस से छोटू को विश्वास को गया कि सुनयना संजय के साथ है. उस ने सारी बात रामरती को बताई, जिसे सुन कर रामरती सन्न रह गई.

शाम को सुनयना घर लौटी तो मां का तमतमाया चेहरा देख कर वह समझ गई कि कुछ गड़बड़ जरूर है. वह रसोई की तरफ बढ़ी तो रामरती ने उसे टोका, ‘‘पहले मेरे पास आ कर बैठ और सचसच बता कि तू कहां गई थी?’’

मां की बात सुन कर सुनयना का हलक सूख गया. उस ने धीरे से कहा, ‘‘मां, मैं साईं मंदिर गई थी.’’

‘‘झूठ, तू साईं मंदिर नहीं, बल्कि संजय के साथ पार्क में बैठ कर प्यार की बातें कर रही थी.’’

‘‘नहीं मां, यह सच नहीं है. किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं.’’

‘‘फिर झूठ.’’ गुस्से में रामरती ने सुनयना के गाल पर 2 तमाचे जड़ दिए. वह गाल सहलाती हुई कमरे में चली गई.

दूसरी ओर छोटू ने संजय को आड़े हाथों लिया, ‘‘देख संजय, सुनयना मेरी भांजी है. उस की तरफ आंख उठा कर भी तूने देखा तो तेरी आंखें निकाल लूंगा. आज के बाद मेरीतेरी दोस्ती खत्म. तू मेरे घर के आसपास भी दिखा तो तेरे हाथपैर तोड़ डालूंगा.’’

रामरती ने भी संजय को खूब खरीखोटी सुनाई. इस के बाद संजय और सुनयना का मिलना बंद हो गया. रामरती और छोटू सुनयना पर कड़ी नजर रखने लगे. सुनयना जब कभी घर से बाहर जाती, उस के साथ रामरती या छोटू होता. छोटू ने अपने कुछ खास लोगों को भी संजय और सुनयना की निगरानी में लगा दिया था. छोटू किसी भी तरह संजय को सुनयना से मिलने नहीं दे रहा था.

4 मई, 2017 को किसी तरह सुनयना को मौका मिल गया तो वह शास्त्रीनगर के सिंधी कालोनी पार्क पहुंच गई. फोन कर के उस ने संजय को वहीं बुला लिया. संजय और सुनयना पार्क में बैठ कर बातें कर रहे थे, तभी पीछा करता हुआ छोटू वहां पहुंच गया. उस ने पार्क में ही संजय को पीटना शुरू कर दिया. संजय किसी तरह खुद को छुड़ा कर भागा. सुनयना को पकड़ कर छोटू घर ले आया और रामरती से शिकायत कर के उसे भी पिटवाया. यही नहीं, उस ने आननफानन में दूसरे दिन ही सुनयना का रिश्ता तय कर दिया.

संजय और सुनयना की पिटाई ने आग में घी का काम किया. संजय समझ गया कि जब तक सुनयना का मामा छोटू जिंदा है, तब तक वह अपना प्यार नहीं पा सकता. वह यह भी जान गया था कि छोटू ने सुनयना का रिश्ता इसलिए तय कर दिया है, ताकि वह उस से दूर चली जाए. छोटू उस के प्यार में दीवार बन कर खड़ा था, इसलिए छोटू को ठिकाने लगाने का निश्चय कर वह उचित मौके की तलाश में लग गया.

10 मई, 2017 की रात 10 बजे छोटू होटल बंद कर के सोने की तैयारी कर रहा था, तभी उधर से संजय निकला. छोटू को देख कर उस का खून खौल उठा. रात 12 बजे तक वह शराब के नशे में धुत हो कर जेके मंदिर के बाहर टहलता रहा. उस के बाद घर गया और लोहे का हथौड़ा ले कर छोटू के होटल पर जा पहुंचा.

छोटू गहरी नींद में सो रहा था. संजय ने उसे दबोच लिया और छाती पर सवार हो कर हथौड़े से उस के सिर पर वार पर वार करने लगा. हथौड़े के वार से छोटू का सिर फट गया और खून का फव्वारा फूट पड़ा. कुछ देर तड़प कर छोटू ने दम तोड़ दिया. हत्या करने के बाद संजय ने बाल्टी में रखे पानी में हाथ धोए और घर जा कर कपडे़ बदल लिए. खून से सना हथौड़ा और कपड़े उस ने बड़े बक्से के पीछे छिपा दिए.

रामरती सुबह होटल पर पहुंची तो छोटू तख्त पर मृत मिला. वह चीखने लगी. थोड़ी ही देर में तमाम लोग वहां जमा हो गए. उसी भीड़ में से किसी ने पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने जांच शुरू की तो मोहब्बत के जुनून में की गई हत्या का खुलासा हो गया.

13 मई, 2017 को थाना काकादेव पुलिस ने अभियुक्त संजय को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक उस की जमानत नहीं हुई थी

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जब चढ़ा प्यार का नशा : नाजायज संबंधों की फिसलन भरी राह

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी के भलस्वा गांव के रहने वाले सोहताश की बेटी की शादी थी. उन के यहां शादी में एक रस्म के अनुसार, लड़की की मां को सुबहसुबह कई घरों से पानी लाना होता है. रस्म के अनुसार पानी लाने के लिए सोहताश की पत्नी कुसुम सुबह साढ़े 5 बजे के करीब घर से निकलीं. यह 20 जून, 2017 की बात है.

पानी लेने के लिए कुसुम पड़ोस में रहने वाली नारायणी देवी के यहां पहुंचीं. नारायणी देवी उन की रिश्तेदार भी थीं. नारायणी के घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह उस की बहू मीनाक्षी को आवाज देते हुए सीधे अंदर चली गईं. वह जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, उन्हें नारायणी का 40 साल का बेटा अनूप फर्श पर पड़ा दिखाई दिया. उस का गला कटा हुआ था. फर्श पर खून फैला था. वहीं बैड पर नारायणी लेटी थी, उस का भी गला कटा हुआ था.

दोनों को उस हालत में देख कर कुसुम पानी लेना भूल कर चीखती हुई घर से बाहर आ गईं, उस की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. उस ने आंखों देखी बात उन्हें बताई तो कुछ लोग नारायणी के घर के अंदर पहुंचे. नारायणी और उस का बेटा अनूप लहूलुहान हालत में पड़े मिले.

अनूप की पत्नी मीनाक्षी, उस की 17 साल की बेटी कनिका, 15 साल का बेटा रजत बैडरूम में बेहोश पड़े थे. दूसरे कमरे में नारायणी की छोटी बहू अंजू और उस की 12 साल की बेटी भी बेहोश पड़ी थी. नारायणी का छोटा बेटा राज सिंह बालकनी में बिछे पलंग पर बेहोश पड़ा था.

मामला गंभीर था, इसलिए पहले तो घटना की सूचना पुलिस को दी गई. उस के बाद सभी को जहांगीरपुरी में ही स्थित बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया. सूचना मिलते ही एएसआई अंशु एक सिपाही के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वहां उन्हें पता चला कि सभी को बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया है तो सिपाही को वहां छोड़ कर वह अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों से बात करने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी थानाप्रभारी महावीर सिंह को दे दी.

घटना की सूचना डीसीपी मिलिंद डुंबरे को दे कर थानाप्रभारी महावीर सिंह भी घटनास्थल पर जा पहुंचे. उस इलाके के एसीपी प्रशांत गौतम उस दिन छुट्टी पर थे, इसलिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे के निर्देश पर मौडल टाउन इलाके के एसीपी हुकमाराम घटनास्थल पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया गया था. पुलिस ने अनूप के घर का निरीक्षण किया तो वहां पर खून के धब्बों के अलावा कुछ नहीं मिला. घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखा था, जिस से लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी.

कुसुम ने पुलिस को बताया कि जब वह अनूप के यहां गई तो दरवाजे खुले थे. पुलिस ने दरवाजों को चैक किया तो ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से लगता कि घर में कोई जबरदस्ती घुसा हो. घटनास्थल का निरीक्षण कर पुलिस अधिकारी जगजीवनराम अस्पताल पहुंचे. डाक्टरों ने बताया कि अनूप और उस की मां के गले किसी तेजधार वाले हथियार से काटे गए थे. इस के बावजूद उन की सांसें चल रही थीं. परिवार के बाकी लोग बेहोश थे, जिन में से 2-3 लोगों की हालत ठीक नहीं थी.

कनिका, रजत और राज सिंह की बेटी की हालत सामान्य हुई तो डाक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रात उन्होंने कढ़ी खाई थी. खाने के बाद उन्हें ऐसी नींद आई कि उन्हें अस्पताल में ही होश आया.

इस से पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि किसी ने सभी के खाने में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया था. अब सवाल यह था कि ऐसा किस ने किया था? अब तक राज सिंह को भी होश आ चुका था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि खाना खाने के बाद उसे गहरी नींद आ गई थी. यह सब किस ने किया, उसे भी नहीं पता.

पुलिस को राज सिंह पर ही शक हो रहा था कि करोड़ों की संपत्ति के लिए यह सब उस ने तो नहीं किया? पुलिस ने उस से खूब घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई बात सामने नहीं आई.

मामले के खुलासे के लिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे ने थानाप्रभारी महावीर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में अतिरिक्त थानाप्रभारी राधेश्याम, एसआई देवीलाल, महिला एसआई सुमेधा, एएसआई अंशु, महिला सिपाही गीता आदि को शामिल किया गया.

नारायणी और उस के बेटे अनूप की हालत स्थिर बनी हुई थी. अंजू और उस की जेठानी मीनाक्षी अभी तक पूरी तरह होश में नहीं आई थीं. पुलिस ने राज सिंह को छोड़ तो दिया था, पर घूमफिर कर पुलिस को उसी पर शक हो रहा था. उस के और उस के भाई अनूप सिंह के पास 2-2 मोबाइल फोन थे.

शक दूर करने के लिए पुलिस ने दोनों भाइयों के मोबाइल फोनों की कालडिटेल्स निकलवाई. इस से भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अनूप का एक भाई अशोक गुड़गांव में रहता था. उस का वहां ट्रांसपोर्ट का काम था. पुलिस ने उस से भी बात की. वह भी हैरान था कि आखिर ऐसा कौन आदमी है, जो उस के भाई और मां को मारना चाहता था?

21 जून को मीनाक्षी को अस्पताल से छुट्टी मिली तो एसआई सुमेधा कांस्टेबल गीता के साथ उस से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गईं. पूछताछ में उस ने बताया कि सभी लोगों को खाना खिला कर वह भी खा कर सो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं. पुलिस को मीनाक्षी से भी कोई सुराग नहीं मिला.

अस्पताल में अब राज सिंह की पत्नी अंजू, अनूप और उस की मां नारायणी ही बचे थे. अंजू से अस्पताल में पूछताछ की गई तो उस ने भी कहा कि खाना खाने के कुछ देर बाद ही उसे भी गहरी नींद आ गई थी.

जब घर वालों से काम की कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा मुखबिरों को लगा दिया. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. पुलिस को मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि अनूप की पत्नी मीनाक्षी के अब्दुल से अवैध संबंध थे. अब्दुल का भलस्वा गांव में जिम था, वह उस में ट्रेनर था. पुलिस ने अब्दुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह जहांगीरपुरी के सी ब्लौक में रहता था.

पुलिस 21 जून को अब्दुल के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. उस की पत्नी ने बताया कि वह कहीं गए हुए हैं. वह कहां गया है, इस बारे में पत्नी कुछ नहीं बता पाई. अब्दुल पुलिस के शक के दायरे में आ गया. थानाप्रभारी ने अब्दुल के घर की निगरानी के लिए सादे कपड़ों में एक सिपाही को लगा दिया. 21 जून की शाम को जैसे ही अब्दुल घर आया, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

थाने पहुंचते ही अब्दुल बुरी तरह घबरा गया. उस से अनूप के घर हुई घटना के बारे में पूछा गया तो उस ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि उस के मीनाक्षी से नजदीकी संबंध थे और उसी के कहने पर मीनाक्षी ने ही यह सब किया था. इस तरह केस का खुलासा हो गया.

इस के बाद एसआई देवीलाल महिला एसआई सुमेधा और सिपाही गीता को ले कर मीनाक्षी के यहां पहुंचे. उन के साथ अब्दुल भी था. मीनाक्षी ने जैसे ही अब्दुल को पुलिस हिरासत में देखा, एकदम से घबरा गई. पुलिस ने उस की घबराहट को भांप लिया. एसआई सुमेधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे और अब्दुल के बीच क्या रिश्ता है?’’

‘‘रिश्ता…कैसा रिश्ता? यह जिम चलाता है और मैं इस के जिम में एक्सरसाइज करने जाती थी.’’ मीनाक्षी ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मैडम, तुम भले ही झूठ बोलो, लेकिन हमें तुम्हारे संबंधों की पूरी जानकारी मिल चुकी है. इतना ही नहीं, तुम ने अब्दुल को जितने भी वाट्सऐप मैसेज भेजे थे, हम ने उन्हें पढ़ लिए हैं. तुम्हारी अब्दुल से वाट्सऐप के जरिए जो बातचीत होती थी, उस से हमें सारी सच्चाई का पता चल गया है. फिर भी वह सच्चाई हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’

सुमेधा का इतना कहना था कि मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, ‘‘मैडम, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही यह सब किया है. आप मुझे बचा लीजिए.’’

इस के बाद पुलिस ने मीनाक्षी को हिरासत में लिया. उसे थाने ला कर अब्दुल और उस से पूछताछ की गई तो इस घटना के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह अविवेक में घातक कदम उठाने वालों की आंखें खोल देने वाली थी.

उत्तर पश्चिमी दिल्ली के थाना जहांगीरपुरी के अंतर्गत आता है भलस्वा गांव. इसी गांव में नारायणी देवी अपने 2 बेटों, अनूप और राज सिंह के परिवार के साथ रहती थीं. गांव में उन की करोड़ों रुपए की संपत्ति थी. उस का एक बेटा और था अशोक, जो गुड़गांव में ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था. वह अपने परिवार के साथ गुड़गांव में ही रहता था. करीब 20 साल पहले अनूप की शादी गुड़गांव के बादशाहपुर की रहने वाली मीनाक्षी से हुई थी. उस से उसे 2 बच्चे हुए. बेटी कनिका और बेटा रजत. अनूप भलस्वा गांव में ही ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था.

नारायणी देवी के साथ रहने वाला छोटा बेटा राज सिंह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी में फलों का आढ़ती था. उस के परिवार में पत्नी अंजू के अलावा एक 12 साल की बेटी थी. नारायणी देवी के गांव में कई मकान हैं, जिन में से एक मकान में अनूप अपने परिवार के साथ रहता था तो दूसरे में नारायणी देवी छोटे बेटे के साथ रहती थीं.

तीनों भाइयों के बिजनैस अच्छे चल रहे थे. सभी साधनसंपन्न थे. अपने हंसतेखेलते परिवार को देख कर नारायणी खुश रहती थीं. कभीकभी इंसान समय के बहाव में ऐसा कदम उठा लेता है, जो उसी के लिए नहीं, उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है. नारायणी की बहू मीनाक्षी ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठा लिया था.

सन 2014 की बात है. घर के रोजाना के काम निपटाने के बाद मीनाक्षी टीवी देखने बैठ जाती थी. मीनाक्षी खूबसूरत ही नहीं, आकर्षक फिगर वाली भी थी. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उस ने खुद को अच्छी तरह मेंटेन कर रखा था. वह 34 साल की हो चुकी थी, लेकिन इतनी उम्र की दिखती नहीं थी. इस के बावजूद उस के मन में आया कि अगर वह जिम जा कर एक्सरसाइज करे तो उस की फिगर और आकर्षक बन सकती है.

बस, फिर क्या था, उस ने जिम जाने की ठान ली. उस के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे. अनूप रोजाना समय से अपने ट्रांसपोर्ट के औफिस चला जाता था. इसलिए घर पर कोई ज्यादा काम नहीं होता था. मीनाक्षी के पड़ोस में ही अब्दुल ने बौडी फ्लैक्स नाम से जिम खोला था. मीनाक्षी ने सोचा कि अगर पति अनुमति दे देते हैं तो वह इसी जिम में जाना शुरू कर देगी. इस बारे में उस ने अनूप से बात की तो उस ने अनुमति दे दी.

मीनाक्षी अब्दुल के जिम जाने लगी. वहां अब्दुल ही जिम का ट्रेनर था. वह मीनाक्षी को फिट रखने वाली एक्सरसाइज सिखाने लगा. अब्दुल एक व्यवहारकुशल युवक था. चूंकि मीनाक्षी पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए अब्दुल उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

मीनाक्षी अब्दुल से कुछ ऐसा प्रभावित हुई कि उस का झुकाव उस की ओर होने लगा. फिर तो दोनों की चाहत प्यार में बदल गई. 24 वर्षीय अब्दुल एक बेटी का पिता था, जबकि उस से 10 साल बड़ी मीनाक्षी भी 2 बच्चों की मां थी. पर प्यार के आवेग में दोनों ही अपनी घरगृहस्थी भूल गए. उन का प्यार दिनोंदिन गहराने लगा.

मीनाक्षी जिम में काफी देर तक रुकने लगी. उस के घर वाले यही समझते थे कि वह जिम में एक्सरसाइज करती है. उन्हें क्या पता था कि जिम में वह दूसरी ही एक्सरसाइज करने लगी थी. नाजायज संबंधों की राह काफी फिसलन भरी होती है, जिस का भी कदम इस राह पर पड़ जाता है, वह फिसलता ही जाता है. मीनाक्षी और अब्दुल ने इस राह पर कदम रखने से पहले इस बात पर गौर नहीं किया कि अपनेअपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात कर के वह जिस राह पर चलने जा रहे हैं, उस का अंजाम क्या होगा?

बहरहाल, चोरीछिपे उन के प्यार का यह खेल चलता रहा. दोढाई साल तक दोनों अपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इसी तरह मिलते रहे. पर इस तरह की बातें लाख छिपाने के बावजूद छिपी नहीं रहतीं. जिम के आसपास रहने वालों को शक हो गया.

अनूप गांव का इज्जतदार आदमी था. किसी तरह उसे पत्नी के इस गलत काम की जानकारी हो गई. उस ने तुरंत मीनाक्षी के जिम जाने पर पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी के मायके वालों को फोन कर के अपने यहां बुला कर उन से मीनाक्षी की करतूतें बताईं. इस पर घर वालों ने मीनाक्षी को डांटते हुए अपनी घरगृहस्थी की तरफ ध्यान देने को कहा. यह बात घटना से 3-4 महीने पहले की है.

नारायणी की दोनों बहुओं मीनाक्षी और अंजू के पास मोबाइल फोन नहीं थे. केवल घर के पुरुषों के पास ही मोबाइल फोन थे. लेकिन अब्दुल ने अपनी प्रेमिका मीनाक्षी को सिमकार्ड के साथ एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिसे वह अपने घर वालों से छिपा कर रखती थी. उस का उपयोग वह केवल अब्दुल से बात करने के लिए करती थी. बातों के अलावा वह उस से वाट्सऐप पर भी चैटिंग करती थी. पति ने जब उस के जिम जाने पर रोक लगा दी तो वह फोन द्वारा अपने प्रेमी के संपर्क में बनी रही.

एक तो मीनाक्षी का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया था, दूसरे पति ने जो उस के मायके वालों से उस की शिकायत कर दी थी, वह उसे बुरी लगी थी. अब प्रेमी के सामने उसे सारे रिश्तेनाते बेकार लगने लगे थे. पति अब उसे सब से बड़ा दुश्मन नजर आने लगा था. उस ने अब्दुल से बात कर के पति नाम के रोड़े को रास्ते से हटाने की बात की. इस पर अब्दुल ने कहा कि वह उसे नींद की गोलियां ला कर दे देगा. किसी भी तरह वह उसे 10 गोलियां खिला देगी तो इतने में उस का काम तमाम हो जाएगा.

एक दिन अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 10 गोलियां ला कर दे दीं. मीनाक्षी ने रात के खाने में पति को 10 गोलियां मिला कर दे दीं. रात में अनूप की तबीयत खराब हो गई तो उस के बच्चे परेशान हो गए. उन्होंने रात में ही दूसरे मकान में रहने वाले चाचा राज सिंह को फोन कर दिया. वह उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां अनूप को बचा लिया गया. पति के बच जाने से मीनाक्षी को बड़ा अफसोस हुआ.

इस के कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने पति को ठिकाने लगाने के लिए एक बार फिर नींद की 10 गोलियां खिला दीं. इस बार भी उस की तबीयत खराब हुई तो घर वाले उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां वह फिर बच गया.

मीनाक्षी की फोन पर लगातार अब्दुल से बातें होती रहती थीं. प्रेमी के आगे पति उसे फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. वह उस से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच अनूप की मां नारायणी को भी जानकारी हो गई कि बड़ी बहू मीनाक्षी की हरकतें अभी बंद नहीं हुई हैं. अभी भी उस का अपने यार से याराना चल रहा है.

अनूप तो अपने समय पर औफिस चला जाता था. उस के जाने के बाद पत्नी क्या करती है, इस की उसे जानकारी नहीं मिलती थी. उस के घर से कुछ दूर ही मकान नंबर 74 में छोटा भाई राज सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. मां भी वहीं रहती थी. कुछ सोचसमझ कर अनूप पत्नी और बच्चों को ले कर राज सिंह के यहां चला गया. मकान बड़ा था, पहली मंजिल पर सभी लोग रहने लगे. यह घटना से 10 दिन पहले की बात है. उसी मकान में ग्राउंड फ्लोर पर अनूप का ट्रांसपोर्ट का औफिस था.

इस मकान में आने के बाद मीनाक्षी की स्थिति पिंजड़े में बंद पंछी जैसी हो गई. नीचे उस का पति बैठा रहता था, ऊपर उस की सास और देवरानी रहती थी. अब मीनाक्षी को प्रेमी से फोन पर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता था. अब वह इस पिंजड़े को तोड़ने के लिए बेताब हो उठी. ऐसी हालत में क्या किया जाए, उस की समझ में नहीं आ रहा था?

एक दिन मौका मिला तो मीनाक्षी ने अब्दुल से कह दिया कि अब वह इस घर में एक पल नहीं रह सकती. इस के लिए उसे कोई न कोई इंतजाम जल्द ही करना होगा. अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 90 गोलियां ला कर दे दीं. इस के अलावा उस ने जहांगीरपुरी में अपने पड़ोसी से एक छुरा भी ला कर दे दिया. तेजधार वाला वह छुरा जानवर की खाल उतारने में प्रयोग होता था. अब्दुल ने उस से कह दिया कि इन में से 50-60 गोलियां शाम के खाने में मिला कर पूरे परिवार को खिला देगी. गोलियां खिलाने के बाद आगे क्या करना है, वह फोन कर के पूछ लेगी.

अब्दुल के प्यार में अंधी मीनाक्षी अपने हंसतेखेलते परिवार को बरबाद करने की साजिश रचने लगी. वह उस दिन का इंतजार करने लगी, जब घर के सभी लोग एक साथ रात का खाना घर में खाएं. नारायणी के पड़ोस में रहने वाली उन की रिश्तेदार कुसुम की बेटी की शादी थी. शादी की वजह से उन के घर वाले वाले भी खाना कुसुम के यहां खा रहे थे. मीनाक्षी अपनी योजना को अंजाम देने के लिए बेचैन थी, पर उसे मौका नहीं मिल रहा था.

इत्तफाक से 19 जून, 2017 की शाम को उसे मौका मिल गया. उस शाम उस ने कढ़ी बनाई और उस में नींद की 60 गोलियां पीस कर मिला दीं. मीनाक्षी के दोनों बच्चे कढ़ी कम पसंद करते थे, इसलिए उन्होंने कम खाई. बाकी लोगों ने जम कर खाना खाया. देवरानी अंजू ने तो स्वादस्वाद में कढ़ी पी भी ली. चूंकि मीनाक्षी को अपना काम करना था, इसलिए उस ने कढ़ी के बजाय दूध से रोटी खाई.

खाना खाने के बाद सभी पर नींद की गोलियों का असर होने लगा. राज सिंह सोने के लिए बालकनी में बिछे पलंग पर लेट गया, क्योंकि वह वहीं सोता था. अनूप और उस की मां नारायणी ड्राइंगरूम में जा कर सो गए. उस के दोनों बच्चे बैडरूम में चले गए. राज सिंह की पत्नी अंजू अपनी 12 साल की बेटी के साथ अपने बैडरूम में चली गई.

सभी सो गए तो मीनाक्षी ने आधी रात के बाद अब्दुल को फोन किया. अब्दुल ने पूछा, ‘‘तुम्हें किसकिस को निपटाना है?’’

‘‘बुढि़या और अनूप को, क्योंकि इन्हीं दोनों ने मुझे चारदीवारी में कैद कर रखा है.’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम उन्हें हिला कर देखो, उन में से कोई हरकत तो नहीं कर रहा?’’ अब्दुल ने कहा.

मीनाक्षी ने सभी को गौर से देखा. राज सिंह शराब पीता था, ऊपर से गोलियों का असर होने पर वह गहरी नींद में चला गया था. उस ने गौर किया कि उस की सास नारायणी और पति अनूप गहरी नींद में नहीं हैं. इस के अलावा बाकी सभी को होश नहीं था. मीनाक्षी ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा, ‘‘तुम नींद की 10 गोलियां थोड़े से पानी में घोल कर सास और पति के मुंह में सावधानी से चम्मच से डाल दो.’’

मीनाक्षी ने ऐसा ही किया. सास तो मुंह खोल कर सो रही थी, इसलिए उस के मुंह में आसानी से गोलियों का घोल चला गया. पति को पिलाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई, लेकिन उस ने उसे भी पिला दिया.

आधे घंटे बाद वे दोनों भी पूरी तरह बेहोश हो गए. मीनाक्षी ने फिर अब्दुल को फोन किया. तब अब्दुल ने सलाह दी कि वह अपनी देवरानी के कपड़े पहन ले, ताकि खून लगे तो उस के कपड़ों में लगे. देवरानी के कपड़े पहन कर मीनाक्षी ने अब्दुल द्वारा दिया छुरा निकाला और नारायणी का गला रेत दिया. इस के बाद पति का गला रेत दिया.

इस से पहले मीनाक्षी ने मेहंदी लगाने वाले दस्ताने हाथों में पहन लिए थे. दोनों का गला रेत कर उस ने अब्दुल को बता दिया. इस के बाद अब्दुल ने कहा कि वह खून सने कपड़े उतार कर अपने कपड़े पहन ले और कढ़ी के सारे बरतन साफ कर के रख दे, ताकि सबूत न मिले.

बरतन धोने के बाद मीनाक्षी ने अब्दुल को फिर फोन किया तो उस ने कहा कि वह उन दोनों को एक बार फिर से देख ले कि काम हुआ या नहीं? मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची तो उसे उस का पति बैठा हुआ मिला. उसे बैठा देख कर वह घबरा गई. उस ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा कि वह दोबारा जा कर गला काट दे नहीं तो समस्या खड़ी हो सकती है.

छुरा ले कर मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची. अनूप बैठा जरूर था, लेकिन उसे होश नहीं था. मीनाक्षी ने एक बार फिर उस की गरदन रेत दी. इस के बाद अनूप बैड से फर्श पर गिर गया. मीनाक्षी ने सोचा कि अब तो वह निश्चित ही मर गया होगा.

अपने प्रेमी की सलाह पर उस ने अपना मोबाइल और सिम तोड़ कर कूड़े में फेंक दिया. जिस छुरे से उस ने दोनों का गला काटा था, उसे और दोनों दस्ताने एक पौलीथिन में भर कर सामने बहने वाले नाले में फेंक आई. इस के बाद नींद की जो 10 गोलियां उस के पास बची थीं, उन्हें पानी में घोल कर पी ली और बच्चों के पास जा कर सो गई.

मीनाक्षी और अब्दुल से पूछताछ कर के पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 307, 328, 452, 120बी के तहत गिरफ्तार कर 22 जून, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार की कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में अन्य सबूत जुटा कर पुलिस ने उन्हें फिर से न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

मीनाक्षी ने अपनी सास और पति को जान से मारने की पूरी कोशिश की थी, पर डाक्टरों ने उन्हें बचा लिया है. कथा लिखे जाने जाने तक दोनों का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

मीनाक्षी के मायके वाले काफी धनाढ्य हैं. उन्होंने उस की शादी भी धनाढ्य परिवार में की थी. ससुराल में उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. खातापीता परिवार होते हुए भी उस ने देहरी लांघी. उधर अब्दुल भी पत्नी और एक बेटी की अपनी गृहस्थी में हंसीखुशी से रह रहा था. उस का बिजनैस भी ठीक चल रहा था. पर खुद की उम्र से 10 साल बड़ी उम्र की महिला के चक्कर में पड़ कर अपनी गृहस्थी बरबाद कर डाली.

बहरहाल, गलती दोनों ने की है, इसलिए दोनों ही जेल पहुंच गए हैं. निश्चित है कि दोनों को अपने किए की सजा मिलेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

2 करोड़ का इनामी डाकू पंचम सिंह अब बन गया शांतिदूत

मध्य प्रदेश के जिला भिंड के गांव सिंहपुरा के रहने वाले सीधेसादे पंचम सिंह लड़ाईझगड़े से दूर रहकर शांतिपूर्वक जीवन गुजार रहे थे. उन्हें अपने परिवार की खुशियों से मतलब था, जिस में उन के मातापिता, एक भाई और एक बहन के अलावा पत्नी थी. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन पाए थे.

कदकाठी से मजबूत पंचम सिंह निहायत ही शरीफ और मेहनती आदमी थे. अपनी खेतीबाड़ी में जीतोड़ मेहनत कर के वह अपने परिवार को हर तरह से सुखी रखने की कोशिश कर रहे थे. अब तक उन की उम्र लगभग 35 साल हो चुकी थी.

लेकिन एक बार हुए झगड़े में पंचम सिंह की ऐसी जबरदस्त पिटाई हुई कि उन के बचने की उम्मीद नहीं रह गई. इस के बावजूद पुलिस ने पिटाई करने वालों के बजाय बलवा करने के आरोप में उन्हें ही जेल भेज दिया. प्रताडि़त किया अलग से. यह सन 1958 की बात है.

दरअसल, गांव में पंचायत के चुनाव हो रहे थे. प्रचार अभियान जोरों पर था. पंचम की साफसुथरी छवि थी, जिस से गांव के ज्यादातर लोग उन्हें पसंद करते थे. इसलिए दबंग किस्म के लोगों की एक पार्टी ने चाहा कि वह उन के लिए प्रचार करें.

वे लोग गरीबों पर जुल्म किया करते थे, जो पंचम सिंह को पसंद नहीं था. लेकिन चाह कर भी वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकते थे. उन्हें राजनीति में भी कोई विशेष रुचि नहीं थी, इसलिए उन्होंने उन का प्रचार करने से साफ मना कर दिया. तब उन्होंने उन्हें धमकाया.

इस का परिणाम यह निकला कि वह उस प्रत्याशी के प्रचार में जुट गए, जो उन दबंगों के विरोध में खड़ा था. पंचम की निगाह में उस का जीतना गांव वालों के लिए अच्छा था. इस का असर यह हुआ कि उन दबंगों ने उन्हें अकेले में घेर कर इस तरह पीटा कि उन के पिता उन्हें बैलगाड़ी से अस्पताल ले गए, जहां 20 दिनों तक उन का इलाज चला.

इसी बीच उन पर झूठा मुकदमा दर्ज कर के पुलिस ने अस्पताल में उन के बैड पर पहरा लगा दिया. 20 दिनों बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज हुए तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. जमानत पर घर आने के बाद भी दबंग उन्हें परेशान करते रहे. घर वालों से भी मारपीट की गई, जिस में पिता ही नहीं, भाई और बहन भी घायल हुए.

इस मामले में पुलिस दबंगों के खिलाफ काररवाई करने के बजाय पंचम को ही दोषी ठहरा कर पकड़ ले गई. पुलिस ने उन्हें आदतन बलवाकारी कहना शुरू कर दिया, साथ ही कानूनी रूप से उन्हें ‘बाउंड’ करने की काररवाई भी शुरू कर दी. पुलिस की ओर से उन्हें धमकाया भी जाता रहा कि जल्दी ही उन्हें कई झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाएगा, जिन में उन्हें जमानत मिलनी मुश्किल हो जाएगी. फिर वह सारी जिंदगी जेल में सड़ते रहेंगे.

पंचम सिंह को अपनी बरबादी साफ दिखाई देने लगी थी. पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो दूसरा कोई उपाय न देख पंचम सिंह बीहड़ में कूद कर चंबल घाटी के कुख्यात दस्युसम्राट मोहर सिंह के गिरोह में शामिल हो गए. इस के बाद उन्होंने इस गिरोह की मदद से खुद को और घर वालों को पीटने वाले 12 लोगों को चुनचुन कर मौत के घाट उतार दिया.

इसी एक कांड के बाद पूरे इलाके में पंचम सिंह के आतंक का डंका बजने लगा. इस के बाद किसी में इतना दम नहीं रहा कि उन के परिवार की ओर आंख उठा कर भी देख ले. किसी में इतनी हिम्मत नहीं रही कि उन के खिलाफ पुलिस में जा कर शिकायत कर दे.

चंबल के बीहड़ों के बारे में कहा जाता था कि वहां बंदूक की नोक पर समानांतर सत्ता चलती थी. चौथी तक पढ़े और मात्र 14 साल की उम्र में वैवाहिक बंधन में बंध गए पंचम सिंह ने एक ही झटके में इस कहावत को चरितार्थ कर दिया था.

इस तरह एक शरीफ आदमी दिलेर डकैत बन कर कत्ल और लूटपाट करने लगा था. देखते ही देखते वह अनगिनत आपराधिक मामलों में नामजद हो गए. पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए परेशान थी. उन की गिरफ्तारी के लिए अच्छाखासा इनाम रख दिया गया, जो बढ़तेबढ़ते 1970 तक 2 करोड़ तक पहुंच गया.  डाकू पंचम सिंह का नाम सब से ज्यादा वांछित दस्यु सम्राटों में आ गया था.

अब तक पंचम सिंह एक सिरफिरे दस्यु सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने उन्हें चैलेंज कर दिया था कि उन के इलाके में उन के बजाय उन की सरकार बेहतर चलेगी. इस से नाराज हो कर इंदिरा गांधी ने चंबल में बमबारी कर के डाकुओं का सफाया करने का आदेश दे दिया था, लेकिन बाद में इस आदेश को वापस ले कर डाकुओं से आत्मसमर्पण कराने पर विचार किया जाने लगा था.

आखिरकार इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को डकैतों से आत्मसमर्पण कराने की जिम्मेदारी सौंपी. उन की पहल पर 3 मांगों की शर्त के साथ कई दस्यु सम्राट अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण को तैयार हो गए. अपनी आत्मा की आवाज पर सन 1972 में पंचम सिंह ने भी अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था. उन लोगों पर लूटपाट और फिरौती के लिए अपहरण के अनगिनत मुकदमों के अलावा 125 लोगों की हत्या का मुकदमा चला.

अदालत ने इन आरोपों के आधार पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई. पंचम सिंह का 556 डाकुओं का गिरोह था. इन सभी ने अपने सरदार के साथ आत्मसमर्पण किया था और अब इन सभी को एक साथ फांसी की सजा हुई थी.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने फांसी का विरोध करते हुए इस के खिलाफ आवाज उठाने के अलावा संबंधित अदालतों में अपील भी की. उन का कहना था कि वह डकैतों से इसी शर्त पर आत्मसमर्पण करवाने में सफल हुए थे कि सरकार उन पर दया दिखाते हुए उन्हें सुधरने का मौका देगी.

इस के बाद सभी डकैतों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी गई थी. इस के साथ इन कैदियों की यह शर्तें भी स्वीकार कर ली गई थीं कि उन्हें खुली जेल में रह कर खेतीबाड़ी करते हुए परिवार के साथ सजा काटने का मौका दिया जाए.

पंचम सिंह को उसी तरह के अन्य दुर्दांत कैदियों के साथ मध्य प्रदेश की खुली मूंगावली जेल में रखा गया. वहीं पर उन की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बीता.

एक बार ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा जीवन क्या है, विषय पर जेल में एक ऐसी प्रदर्शनी लगाई गई, जो निरंतर 3 सालों तक लगी रही. प्रदर्शनी द्वारा कैदियों को जीवन के उज्ज्वल पक्ष से संबंधित जानकारियां और शिक्षाएं भी दी जाती रहीं. कैदियों को न केवल राजयोग का अभ्यास कराया जाता था, आध्यात्मिक ज्ञान से सराबोर करने के प्रयास भी किए जाते रहे. इस से क्या हुआ कि अतीत के दुर्दांत डकैतों के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के चिह्न परिलक्षित होने लगे.

दस्यु सम्राट कहे जाने वाले पंचम सिंह भी उन्हीं में से एक थे. उन का कुछ ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि अंततोगत्वा वह भी इसी राह पर चल पड़े. बाद में जब उन के अच्छे आचरण को देखते हुए उन की बाकी की सजा माफ कर दी गई तो वह कहीं और जाने के बजाय उन्हीं शिक्षाओं का हिस्सा बन कर शांतिदूत के रूप में इस का प्रचार करने लगे.

इसी सिलसिले में कुछ समय पहले पंचम सिंह मोहाली के ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सुखशांति भवन में आए. अपने जीवन के अनुभव बांटते हुए उन्होंने बताया कि अपने डकैत जीवन में भी वह समाजसेवा के कामों को तरजीह दिया करते थे.

उन के अधीन 3 राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई इलाके थे, जहां के संपन्न लोगों से वह उन की कमाई का 10 फीसदी हिस्सा वसूल कर के उसी इलाके के गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी पर खर्च करने के अलावा अस्पतालों और स्कूलों को दान कर दिया करते थे.

डाकुओं के अपने नियम होते थे, जिन पर सभी डकैतों को निश्चित रूप से चलना होता था. पंचम सिंह के अनुसार, उन्होंने कभी भी बच्चों या महिलाओं को परेशान नहीं किया, न ही उन के गिरोह का कोई सदस्य किसी महिला को बुरी नजर से देखने का दुस्साहस कर सका. हां, जिस किसी ने भी उन की मुखबिरी की, उसे उन्होंने किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा.

इस समय 94 साल के हो चुके पंचम सिंह के बताए अनुसार, उन की गिरफ्तारी पर 2 करोड़ का इनाम था, लेकिन वह कभी पकड़े नहीं गए. पुलिस से हुई एक मुठभेड़ में उन की दाईं बाजू में गोली लगी थी, वह तब भी बच निकले थे.

अपने आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने फूलन देवी, मलखान सिंह, सीमा परिहार और सुमेर गुर्जर का भी आत्मसमर्पण कराने में मदद की थी. इस के अलावा उन्होंने दक्षिण भारत के चंदन तस्कर वीरप्पन से मिल कर अभिनेता राजकुमार को उस के चंगुल से मुक्त करवाने में पुलिस की मदद की थी.

देश की युवा पीढ़ी के लिए उन का संदेश है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वे कभी मर्यादा न खोएं. एकता, सत्य और दृढ़संकल्प हो कर जिस ने भी परिस्थितियों को अपने वश में किया, वह महान हुआ है. अपनी एक दिनचर्या बना कर उस पर दृढ़ता से अमल करना श्रेयस्कर रहता है.

एक डाकू होने और हर पल विपरीत परिस्थितियों में जीने के बावजूद पंचम सिंह ने अपनी मर्यादा को बचाए रखा, यही उन के जीवन की सब से बड़ी उपलब्धि है.

युवाओं का उपेक्षा वाला स्वभाव और असहयोग की भावना

हर युवा अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए प्रयत्नशील रहता है. वे अकसर बहस करते रहते हैं, कार्य पर ध्यान नहीं देते. वे दूसरों के कार्यों, विचारों का विरोध कर सकते हैं. युवा अकसर दिवास्वप्न देखते हैं. अपने विचारों में खोए रहते हैं. युवाओं को अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व व अलग अस्तित्व बनाना होता है. इस के लिए वे बड़ों, मातापिता की नसीहत, सलाह को नजरअंदाज कर सकते हैं.

अनेक युवा अपने परिवारों से ज्यादा दोस्तों के साथ समय व्यतीत करना पसंद करते हैं. लेकिन जब इन के अनादरपूर्ण, उपेक्षापूर्ण और शत्रुतापूर्ण व्यवहार से दूसरे प्रभावित होते हैं तो इन का पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक जीवन प्रभावित होता है. ऐसा व्यवहार उन के हमउम्र वालों से ज्यादा होता है. अगर किसी युवा में यह स्थिति लगातार 6 माह से ज्यादा समय तक रहती है तो यह मानसिक बीमारी मानी जाती है. इस को मनोचिकित्सक अपोजीशनल डिफिऐंट डिसऔर्डर यानी ओडीडी कहते हैं.

असहयोग की भावना

हर परिवार में गलत व्यवहार की सहनक्षमता भिन्नभिन्न होती है. कुछ परिवारों में मामूली सा अनुशासन तोड़ने को बहुत बुरा माना जाता है, जबकि ज्यादातर परिवारों में विरोधी, उपेक्षापूर्ण व्यवहार को अनदेखा कर दिया जाता है. इस तरह के व्यवहार को इन परिवारों में तभी गलत समझा जाता है, जब वह समस्याएं उत्पन्न करता है.

रोगग्रसित युवा दूसरों को सहयोग नहीं करते, दूसरों के साथ उपेक्षा, तिरस्कारपूर्ण और शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हैं. नतीजतन, उन की दैनिकचर्या, कार्यक्षमता प्रभावित होती है. इन को कभी भी गुस्सा आ जाता है और बड़ों से बेवजह बहस करते हैं, घर के नियममान्यताओं को तोड़ते हैं, जानबूझ कर दूसरों को नाराज करते हैं और गुस्सा दिलाते हैं.

विरोधी व्यवहार के शिकार युवा अपनी गलतियों की तोहमत दूसरों पर लगाते हैं. ये भावुक, संवेदनशील होते हैं, दूसरों की बातों को बुरा मान कर दुर्व्यवहार करते हैं, कभी भी क्रोधित हो सकते हैं. कभीकभी ये हलकाफुलका झगड़ा, मारपीट भी कर सकते हैं. इन की भाषा अश्लील व झगड़ालू होती है.

समस्या की शुरुआत अधिकांश में शिशुकाल में होती है. शिशुकाल यानी बचपन में बिना कारण रोते हैं, आसानी से शांत नहीं होते, अडि़यल होते हैं, अवज्ञाकारी होते हैं. ये खाना खाने, मल त्याग करने आदि कार्यों में मातापिता को परेशान करते हैं.

रोगग्रस्त युवा समय बरबाद करते हैं. वे बेकार में इधरउधर घूमते रहते हैं. यदि ये किसी कार्य को करने के लिए हां भी कर देते हैं तो बाद में उस कार्य के लिए अनभिज्ञता जाहिर करते हैं. ये घर, स्कूल, एवं अन्य स्थानों पर दिक्कत उत्पन्न करते हैं. इन युवाओं और परिवार के सदस्यों के बीच कमरा साफ रखने, नहाने, सही ढंग के कपड़े पहनने, अपनी देखभाल सही ढंग से करने, सही व्यवहार करने जैसी मामूली बातों में कहासुनी, बहस होती है. कभीकभी उन्हें अपनी बेइज्जती महसूस करते ये उत्तेजित हो कर लड़ाई पर पर उतारू हो जाते हैं. ये अपनी भाषा, व्यवहार के कारण पुलिस के चंगुल में फंस सकते हैं.

कारण और परिणाम

संभवतया यह रोग परिवार और बच्चों व युवाओं के आपस चक्रीय व्यवहार के कारण होता है. यदि बच्चा जिद्दी और आसानी से शांत नहीं होता तो मातापिता परेशान होते हैं, सोचने लगते हैं कि कहां गलती हुई. धीरेधीरे ये बच्चे को गलत, गंदा बच्चा समझने लगते हैं, जिस के कारण बच्चा अपने को असहाय और अनचाहा महसूस करने लगता है. नतीजतन, वह ज्यादा उग्र हो सकता है. मातापिता इन के गलत व्यवहार को अलग ढंग से नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, तो बच्चे सहयोग नहीं करते. जब ये बच्चे इस तरह का व्यवहार करते हैं तो मातापिता की सोच बच्चे के प्रति और ज्यादा नकारात्मक हो जाती है. बच्चों को सही आदतें, व्यवहार सिखाने के लिए मातापिता उन को बुराभला कहते हैं. पर फिर भी इन के व्यवहार में सुधार नहीं होता बल्कि उन का व्यवहार और ज्यादा उग्र हो जाता है.

युवाओं और मातापिता के संबंध जब इस तरह के हो जाते हों, तो अनुशासन नहीं रह पाता और मातापिता गुस्से में आगबबूला हो कर सजा देते हैं या कभीकभी अनदेखा कर मनमानी करने देते हैं.

रोगग्रसित बच्चे स्कूल में अध्यापक, साथियों के साथ भी इस तरह का व्यवहार करते हैं जिस के कारण इन को उन का गुस्सा, तिरस्कार, भर्त्सना सहनी पड़ती है. ये उन से बहस करते हैं, उन पर दोषारोपण करते हैं, झगड़ा भी कर सकते हैं.

भर्त्सना, तिरस्कार इत्यादि के कारण इन में हीनभावना पनप सकती है. ये खुद तथा दूसरों के लिए समस्याएं पैदा करते रहते हैं.

क्या है समाधान

यदि आशंका है कि युवा उपेक्षा रोग यानी ओडीडी ग्रस्त है तो लापरवाही न करें, मनोरोग चिकित्सक से परामर्श लें. वह विश्लेषण कर व्यवहार के मूल कारण जानने का प्रयास करेगा. रोग की पुष्टि होने पर चिकित्सक स्थिति के अनुसार उपचार विधि निर्धारण करता है.

मातापिता को बच्चों के साथ सही व्यवहार का प्रशिक्षण दिया जाता है. उन को बताया जाता है कि इन के व्यवहार पर वे कैसे प्रतिक्रिया करें. साथ ही, वे युवाओं के साथ संपर्क बनाए रखने के कैसे प्रयास करें.

इन युवाओं को मनोचिकित्सक द्वारा सिखाया जाता है कि वे कैसे अपने गुस्से को काबू करें ताकि इन का अवज्ञाकारी व्यवहार बदले. इन को समस्याओं को हल करने के सुझाव दिए जाते हैं.

मातापिता को इन युवाओं के सही व्यवहार की प्रशंसा करनी चाहिए, पुरस्कृत करना चाहिए जबकि गलत व्यवहार करने पर उन के लिए निर्धारित दंड देने का पालन करना चाहिए. पर इन को मारना, गाली देना उचित नहीं होता.

संज्ञान व्यावहारिक चिकित्सा द्वारा इन को खुद पर नियंत्रण करने, सही व्यवहार करने के लाभ बताए जाते हैं.

इन को समाज में व्यवहार करने की निपुणता भी सिखाई जाती है.

कभीकभी मनोचिकित्सक इन को अवसाद प्रतिरोधी, तनाव प्रतिरोधी दवाओं के सेवन का भी परामर्श देते हैं.

ओडीडी सामान्य समस्या है. यदि बच्चे या युवा इस से ग्रसित हैं तो ये घर, स्कूल एवं अन्य स्थानों पर परेशानी पैदा कर सकते हैं, इन का विकास प्रभावित होता है. इन का उपचार संभव है. उपचार न करने पर करीब 50 प्रतिशत में यही व्यवहार वयस्क होने पर भी रहता है. इन में से करीब आधे और ज्यादा गंभीर मनोरोग कंडक्ट डिसऔर्डर से ग्रसित हो सकते हैं.

सोशल मीडिया में प्रभावी मौजूदगी के लिए अपनाएं ये सोशल रंगढंग

सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने कुछकुछ नहीं, बहुत कुछ बदल दिया है. तकनीक के जमाने में नैटवर्किंग की तमाम सोशल साइट्स हैं, जैसे फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, लिंक्डइन, इंस्टाग्राम आदि. इन सब से हम ऐक्टिव अकाउंट द्वारा जुड़ सकते हैं. जहां एक ओर इन के कई फायदे हैं, वहीं सब से बड़ा नुकसान नैगेटिव पौपुलैरिटी का है यानी बिना जानेसमझे सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर सक्रियता आप पर बुराई का ठप्पा चस्पां सकती है. इसलिए आप को बता दें कि सिर्फ अकाउंट बनाना ही पर्याप्त नहीं है. नैगेटिव पौपुलैरिटी या बैड टैग का ठप्पा न लगे इस के लिए कुछ बेसिक मैनर्स को अपनाना पड़ता है.

प्राइवेसी मजबूत हो

किसी भी सोशल नैटवर्किंग साइट पर अकाउंट बनाएं, लेकिन अपनी प्राइवेसी मेंटेन करते रहें. ताकि कोई अनजान व्यक्ति आप के अकाउंट में ताकाझांकी न कर पाए. इस से बचने का उपाय है कि आप प्राइवेट अकाउंट और अपना पासवर्ड कठिन रखें. महीने में एक बार जरूर पासवर्ड बदलें, पासवर्ड किसी से शेयर न करें.

हेराफेरी न हो

यदि सोशल साइट्स पर आप के परिचित आप से जुड़े हैं, तो डींगे मत हांकिए, सही और सटीक जानकारी अपने प्रोफाइल में अपडेट करें. पब्लिक डिस्प्ले में क्या रखना है, क्या नहीं, यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है. प्रोफाइल फोटो से परहेज न करें. ऐसा करने से नैटवर्क से जुड़े लोग आप को करीब पाएंगे.

पर्सनल अलग, प्रोफैशनल अलग

सोशल नैटवर्किंग साइट्स फायदेमंद साबित हों, तो पर्सनल और प्रोफैशनल अकाउंट रखें वरना एक ही अकाउंट रखने से सब गुड़गोबर हो जाएगा. कई बार एक ही अकाउंट की वजह से हम जरूरी जानकारियों से अछूते रह जाते हैं और पर्सनल व प्रोफैशनल लाइफ में अंतर तथा सामंजस्य नहीं बिठा पाते.

संभल कर करें फोटो शेयर

सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने फोटो अपलोड की सुविधा दे कर यादों को संजोना आसान कर दिया है. मौका चाहे त्योहार का हो या दोस्तों के साथ मस्ती करने का या फिर अपनों के साथ सैरसपाटे या फिल्म देखने का, हम हर मौके को कैमरे में कैद कर सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपलोड कर सकते हैं. यहां तक तो सब ठीक है यदि फोटो सिर्फ आप की हैं, लेकिन मामला तब गड़बड़ा जाता है जब आप दूसरे का फोटो बिना उस से पूछे टैग या अपलोड करते हैं. याद रखें आप की इस छोटी सी हरकत से रिश्ते में दरार आ सकती है. कई लोगों को अपनी फोटो सार्वजनिक करना पसंद नहीं होता, इसलिए फोटो शेयर, टैग या अपलोड करने से पहले उस व्यक्ति की अनुमति जरूर लें.

संभल कर करें कमैंट

कम्युनिकेशन का बैस्ट औप्शन है सोशल साइट्स में कमैंट का औप्शन. पर्सनल और प्रोफैशनल अकाउंट में कमैंट ध्यान से करें. आपत्तिजनक शब्दों और अश्लील भाषा का प्रयोग कतई न करें. कमैंट लिखने के बाद दोबारा जरूर पढ़ें. यदि कुछ पर्सनल लिखना हो, तो मैसेजबौक्स का प्रयोग करें.

आंख बंद कर हामी न भरें

फ्रैंड रिक्वैस्ट की लाइन देख कर खुश न हों. भोलीभाली शक्ल में कोई शैतान छिपा हो सकता है. सोशल नैटवर्किंग साइट्स में हम काफी हद तक बच सकते हैं. मसलन, आंख बंद कर हर रिक्वैस्ट पर हामी न भरें. रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट करने से पहले उस व्यक्ति का अकाउंट अच्छी तरह देख लें. सोचसमझ कर ही फैसला लें. जिन्हें आप जानते हैं उन्हें ही फ्रैंड लिस्ट में शामिल करें. यदि कोई बारबार फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजे जिसे आप जानते नहीं, तो उस रिक्वैस्ट को स्पैम में डाल दें.

सब की अलग पसंद

यदि आप को सोशल साइट्स पर कैंडी क्रश खेलना पसंद हो तो जरूरी नहीं आप के सभी वर्चुअल फ्रैंड्स को भी पसंद होगा. बेवजह दूसरों को ऐसे गेम्स खेलने की रिक्वैस्ट न भेजें.

फौलो हो सही प्रोफाइल

कुछ गलत नहीं यदि आप सैलिब्रिटी के प्रोफाइल को फौलो करते हैं, लेकिन सही प्रोफाइल को फौलो करें, सैलिब्रिटी के अधिकांश प्रोफाइल सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर फेक होते हैं. ओरिजनल की पहचान नीले रंग का मार्क है. जिस सैलिब्रिटी के प्रोफाइल के आगे नीले रंग का निशान हो वह ओरिजनल है. नीले मार्क वाले प्रोफाइल को ही फौलो करें.

औफिस में रखें धैर्य, रहेगी आप की खैर

औफिस वह जगह है जहां व्यक्ति अपना पूरा समय बेहद व्यस्तता से गुजारता है. घर के वातावरण से एकदम उलट वहां का माहौल औपचारिक होता है और आप को भी औपचारिकता निभा कर औफिस के शिष्टाचार के अनुसार काम करना पड़ता है. ऐसे माहौल में काम करते समय व्यक्ति अकसर तनाव में आ जाता है और दिनभर में दोचार मौके ऐसे भी आते हैं जब हम अपना धैर्य खो देते हैं.

धैर्य खोने में केवल खोना ही होता है, पाना कुछ नहीं होता. इंसान जैसे ही धैर्य खोता है, गुस्सा और नाखुशी उस की जगह ले लेते हैं, जो आप के औफिस में बने रिश्तों को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसी मानसिकता का व्यक्ति जो भी कहता या करता है उस का उसे बाद में पछतावा होता है. औफिस में ऐसा होने पर व्यक्ति आपसी रिश्ते तो खोता ही है साथ में उस के प्रमोशन के अवसर भी समाप्त हो जाते हैं. अच्छा होगा कि आप अपने बौस, सहकर्मियों और औफिस के दूसरे स्टाफ या कस्टमर के साथ धैर्यपूर्वक बरताव करें. यही बरताव दूसरों से आप के रिश्ते बेहतर बनाता है और लोग आप को तवज्जुह देंगे व आप को काम करने में और आनंद आएगा.

अब यह जानना आवश्यक है कि आप किस तरह और कैसे अपने को अधीर होने से बचा सकते हैं. आप को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा.

रोजाना गहरी नींद लें : आप ने कभी नोटिस किया है कि जिस दिन आप भरपूर नींद ले कर उठते हैं उस दिन खुद को तरोताजा और यदि रात में नींद पूरी न हो तब आप खीझ और झल्लाहट महसूस करते हैं और आप का सारा दिन बोरिंग गुजरता है. मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से साबित हो चुका है कि 6 से 8 घंटे की नींद बहुत जरूरी है और यदि नींद पूरी न हो तो दिनभर आलस्य रहेगा. ऐसे में औफिस या कार्यस्थल पर धैर्य धारण करना थोड़ा कठिन हो सकता है.

रोजाना ऐक्सरसाइज करें : नियमित ऐक्सरसाइज आप को दिनभर तरोताजा रखेगी. केवल 10 मिनट भी आप ने यदि नियमित व्यायाम कर लिया तो निश्चित रूप से आप को मानसिक शांति मिलेगी जो धैर्य धारण करने के लिए बेहद जरूरी है.

ब्रैकफास्ट रोजाना लें : रोजाना ब्रैकफास्ट लेना जरूरी है. इस से आप खुद को ऊर्जावान पाएंगे और खुशी का अनुभव करेंगे. स्टडीज बताती हैं कि ब्रैकफास्ट का याद्दाश्त और एकाग्रता से सीधा संबंध है. दिनभर मूड भी ठीक रहता है और स्ट्रैस का स्तर भी कम रहता है. ये सारी बातें धैर्य के लिए जरूरी हैं. आप खुद सोचें कि भूखे रहने पर आप को कुछ भी नहीं सूझेगा.

धैर्यवान होने के फायदे पर विचार करें : घर से काम पर निकलने से पहले सोचें कि औफिस में धैर्य रखने के क्या फायदे हैं और यह दिनभर आप के काम को कैसे प्रभावित कर सकता है. आप जब इस बात को मानसिकरूप से बारबार दोहराएंगे तो आप औफिस में जरूर अधीर होने से खुद को रोक सकेंगे.

सब से हैलोहाय अवश्य करें : अपने साथ काम करने वालों से रोज हायहैलो अवश्य करें, चाहे वे आप को नापसंद ही क्यों न हों. सब के साथ सहयोग करें और उन के प्रति विनम्र रहें. इस का प्रभाव उन पर जरूर पड़ेगा और वे भी आप के साथ वैसा ही व्यवहार करना शुरू कर देंगे. इस से औफिस का वातावरण अधिक सुखद और खुशनुमा हो जाएगा, जो काम करने के लिए जरूरी है. यह सब बातें आप के धैर्य को चैलेंच नहीं करेंगी.

लोगों को हम नहीं बदल सकते : हम लोगों को नहीं बदल सकते पर उन के प्रति अपना रवैया जरूर बदल सकते हैं और यह सीख सकते हैं कि उन के व्यवहार पर हम किस तरह प्रतिक्रिया दे सकते हैं. यदि ऐसा करना जरूरी हो तो कुछ पल अवश्य रुकें और सोचें कि क्या वास्तव में प्रतिक्रिया देनी जरूरी है या नहीं?

यह पहली बार तो संभव नहीं होगा, क्योंकि इंसान का स्वभाव किसी बात पर तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देने का होता है. इस के लिए आप को कोशिश करनी होगी. कुछ समय बाद आप अपनी प्रतिक्रिया देने पर नियंत्रण करना सीख जाएंगे.

अपना धैर्य परखें : आप चाहें तो खुद को उन परिस्थितियों पर विचार कर सकते हैं जो आप को अधीर बनाती हैं. इस तरह खुद को शांत और धैर्यवान बनाने की कोशिश करें. यह ऐक्सरसाइज आप के धैर्य धारण करने की क्षमता को बढ़ाएगी.

आत्मानुशासित बनें : धैर्यवान बनने का यह सब से जरूरी गुण है. खुद पर अपना कंट्रोल ही हमें हर बुराई को करने से रोकता है. इसी से हम किसी भी परिस्थिति में खुद को अधीर होने से बचा सकते हैं. क्योंकि एक बार धीरज खोया तो उस के बाद हमें भी पता नहीं चलता कि हम ने क्या कर दिया.

औफिस या काम की जगह पर कैसे धैर्यवान रहा जाए, यह सीखना जरूरी है, क्योंकि गुस्सा आने पर यदि हम एक पल के लिए ठहर जाएं तो उस के कारण उपजने वाले दुख से हम बच सकते हैं. इतना जान लें कि रोम एक दिन में नहीं बनता. आप को अपने इन सतत प्रयासों को अपनी आदत बनाना होगा, तभी औफिस आप को दूसरा घर लगेगा, जहां आप अपनी आजादी से काम करने का आनंद उठा सकेंगे.

अभिभावक ही नहीं स्कूल भी रहें सावधान

स्कूली छात्रों द्वारा अपराध करना कोई नई बात नहीं है. दिल्ली के निकट गुरुग्राम के रेयान स्कूल के 11वीं के छात्र द्वारा दूसरी कक्षा के बच्चे की हत्या केवल इसलिए कर देना कि उस से परीक्षाएं स्थगित हो जाएंगी कोई ऐसी अनोखी बात नहीं कि इस पर आज के संचार माध्यमों को कोसा जाए. जहां भी लोग होंगे वहां अपराधी भी होंगे ही और यह अपराध करना कुछ बचपन से ही सीखने लगते हैं.

ऐसे मातापिताओं की कमी नहीं है जो बच्चों को मारनेपीटने के अपने बुनियादी हक का हर समय इस्तेमाल करते हैं. इन घरों के बच्चों के मन में गुस्सा, बदले की भावना, कुंठा, रोष, हताशा, विवेकशून्यता बहुत पहले से पैदा हो जाती है. बहुत छोटे बच्चे भी मातापिता की शह पर या प्राकृतिक कारणों से मारपीट में आनंद लेने लगते हैं. इन में से कुछ मातापिता की सही शिक्षा से सुधर जाते हैं, तो कुछ उन्हीं के और वातावरण के कारण और ज्यादा बिगड़ जाते हैं.

रेयान स्कूल के इस 11वीं कक्षा के छात्र के बारे में बहुत कुछ लिखना सही न होगा पर इस घटना पर कोई अचंभा करना भी गलत होगा. हर स्कूल में हमेशा से इस तरह के छात्र रहते रहे हैं. जब फौर्मल शिक्षा नहीं थी तब इस उम्र के किशोर गैंगों के हिस्से बन जाते थे. भारत में ही नहीं, अतिशिक्षित यूरोप व अमेरिका में भी किशोर अपराधियों के गैंग उत्पात मचाते रहते हैं. लड़कियां भी उन के साथ होती हैं और ये लड़केलड़कियों और बड़ों को परेशान ही नहीं करते, लूटते भी रहते हैं. नकल का विरोध करने पर अध्यापकों को धमकियां देना तो बहुत पुरानी बात है.

यह सोचना कि रेयान स्कूल का यह छात्र आज की सभ्यता की देन है गलत है. यह होता रहेगा और समाज के पास इस तरह के बच्चों को पकड़े जाने पर सुधारगृहों में रखने के अलावा और कोई चारा नहीं है. यह ठीक है कि इस प्रकार के किशोर आमतौर पर गलत रास्ते पर ही रहते हैं और सुधार की उम्मीद कम ही होती है और इन से ज्यादा अपेक्षाएं करना भी गलत होगा. यह सोचना कि नैतिक शिक्षा दे कर उन्हें सुधारा जा सकता है गलत सा है, क्योंकि इन पर न तो कोई पैसा खर्च करना चाहता है और न ही समय या शक्ति.

रैगिंग और नकल भी इसी उद्दंडता का रूप हैं और कई बार यह परपीड़न सुख वाली भावना इतना जोर पकड़ लेती है कि चाह कर भी कोई अंत नहीं हो पाता. अच्छा यही है कि स्कूल इस तरह के बच्चों से सीधे बच्चों को बचा कर रखें और उन्हें अपने हालबेहाल पर छोड़ दें. जिस तरह का तूल मीडिया इस कांड को दे रहा है वह गलत है.

1984 सिख दंगा : गड़े मुरदे उखाड़ना जरूरी नहीं

1984 के सिख दंगों के दौरान दिल्ली व आसपास के बहुत से इलाकों में मारे गए सिखों के हत्यारों में से 2-4 को ही सजा मिली है पर इस का हल्ला अभी भी मचाया जाता रहता है. यह हल्ला ठीक उस तरह का है जैसा औरतें अपने पतियों को आड़े हाथों लेने में करती हैं कि 20 साल पहले उन्होंने होली पर पड़ोसिन के ब्लाउज में रंग भरने की कोशिश की थी.

पति का गुलछर्रे कभीकभार उड़ा लेना गलत हो तो भी पत्नी जिंदगी भर उसे साइनबोर्ड की तरह अपनी जबान पर ले कर घूमेगी तो पतिपत्नी में खटास रहेगी और हल कुछ न होगा. ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय’ ही जीवन का सही फौर्मूला है. किसी गलत काम को हरदम हथियार की तरह इस्तेमाल करना एकदम गलत है.

सरकारों की तरह घरों में पति, पत्नी, बच्चे, सासें, ननदें, भाभियां, बहनोई आदि बहुत कुछ ऐसा कर देते हैं जो पीड़ा देता है, वर्षों देता है. घरों में जब बंटवारा होता है, तो बहुत सी घटनाएं होती हैं, जो दशकों तक याद रहती हैं. पतिपत्नी में तलाक होता है तो एकदूसरे पर सच्चेझूठे आरोप लगाए जाते हैं.

पर हर बार 2002 के गुजरात के मुसलिम दंगों की जवाबदेही में 1984 के सिख दंगों की बात दोहराई नहीं जा सकती. यह तो कांग्रेस की भलमनसाहत है कि 1984 के दंगों से 10-15 साल पहले सिख अलगाववादियों द्वारा की गई हत्याओं की याद नहीं दिलाती जब पूरा पंजाब देश से कट गया था. उन दिनों के लिए पूरी सिख कौम को 2017 में दोषी तो ठहराया नहीं जा सकता!

इतिहास समाजों के लिए आवश्यक है पर अपनी आगे की गलतियां सुधारने के लिए, एक के किए का बदला उस की संतानों या संतानों की संतानों से लेने के लिए नहीं. हमारे यहां धर्म के प्रचार की आड़ में इस का दुष्प्रचार रातदिन करा जा रहा है और औरतों को अपरोक्ष में सलाह दी जा रही है कि किसी को भी उस के दादापरदादा के गुनाहों के लिए दोषी ठहरा देना गलत नहीं है. यह मानसिकता बहुत से परिवारों में जहर घोलती है. यही मानसिकता तब आड़े आती है जब हिंदू कर्मकांडी घर का लड़का सिख या मुसलिम लड़की को घर लाना चाहे तो उन लोगों का इतिहास खंगालना शुरू कर दिया जाता है जिस का लड़की से कोई संबंध नहीं होता है.

अदालतों ने हाल ही में 1984 के दंगों के पीडि़तों या अपराधियों के मामले फिर से खोलने के आदेश दिए हैं. यह भर गए जख्मों को कुरेदने के बराबर है. इन्हें खोलने की कोई जरूरत नहीं. ये इतिहास के पन्नों में दफन कर दिए जाएं, क्योंकि दोषियों में अधिकांश अब मर चुके हैं और जो जिंदा हैं, वे किसी काम के नहीं. देश हो या समाज अथवा घर पुरानी बातों को जरूरत से ज्यादा तूल देना नितांत बेवकूफी है.

ऐसे बचाएं अपने स्मार्टफोन को हैकिंग से

हममें से ज्यादातर लोग अपने स्मार्टफोन को बिना किसी परेशानी के बेफिकर होकर इस्तेमाल करना चाहते हैं. हम अपने स्मार्टफोन में कई निजी जानकारियां रखते है. ऐसे में जब आपका फोन हैक होता है या चोरी हो जाता है तो सबसे ज्यादा चिंता हमें अपने डेटा को लेकर होती है कि कहीं कोई हमारी निजी जानकारियां और डेटा का मिसयूज न कर लें.

जिस तरीके से हैकर्स आज कल हैकिंग के नए-नए तरीके ढूंढ रहे हैं उस हिसाब से हमें अब आनलाइन सिक्योरिटी के बारे में और सजग होने की जरूरत है. हैकर्स हमारे जरूरी डेटा हमारे स्मार्टफोन से आराम से हैक कर सकते हैं और हमें पता भी नहीं चलेगा.

कई बार फोन में कुछ ऐप्स का बार बार अपने आप ओपन हो जाना, बैटरी का सामान्य से ज्यादा जल्दी खत्म हो जाना या फिर बिना इस्तेमाल के भी इंटरनेट डेटा खर्च होना भी हैकिंग के संकेत होते है. इससे निपटने के लिए सतर्क रहने के साथ-साथ आप कुछ तरीके अपनाकर अपने फोन को हैक होने से बचा सकते हैं.

लौक स्क्रीन का इस्तेमाल

अपने स्मार्टफोन को हैक होने से बचाने के लिए लौक स्क्रीन का सही इस्तेमाल बहुत जरूरी है. लौक स्क्रीन में एक विकल्प होता है जिसके तहत अगर पासवर्ड ज्यादा बार गलत डाल दिया जाए तो फोन खुद पे खुद पूरी तरह से लौक हो जाएगा. इसके बाद आपको कस्टमर केयर पर कौल करके अनलौक कराना पड़ता है. ऐसे में फोन अगर चोरी हो जाए तो आपका डेटा हैकर्स से बचा रहेगा.

डेटा शेयरिंग ऐप्स को बंद रखें

अपने फोन में ब्लूटूथ, लोकेशन सर्विस, नियर फील्ड कम्यूनिकेशन (NFC), वाई फाई और सेल्यूलर डेटा जैसी सेटिंग्स को बेवजह औन न रखें. ऐसा करने से फोन हैक होने से सुरक्षित रहता है. क्योंकि अगर ये सब औन रहता है तो हैकर के लिए आपके फोन तक पहुंचना आसान हो जाता है.

फोन गुम हो जाने पर

फोन चोरी होने पर सबसे ज्यादा खतरा अपने डेटा के मिसयूज का रहता है. ऐसी परिस्थिति में अपने डेटा को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह की ऐप्स जरूर डाउनलोड करें जो फोन की लोकेशन बता सकती हो या फिर SMS के जरिए डेटा डिलिट करने में सक्षम हो.

डाउनलोडिंग के समय सतर्क रहें

किसी भी ऐप को डाउनलोड करने से पहले उसकी रेटिंग, स्टार्स, कंपनी और यूजर कमेंट्स जरूर पढ़ें. मसलन अगर कोई बैंक की ऐप है तो पहले तो उसका नाम बैंक से ही होना चाहिए ना कि किसी डेवलपर के नाम से, उसके बाद उसकी अन्य चीजों पर ध्यान दें. अपने स्मार्टफोन की स्मार्ट वर्किंग के लिए एंटीवायरस ऐप भी ऐसी होनी चाहिए जो आपके फोन से अनचाही ऐप्स और बेफिजूल डेटा यूज के लिए आगाह करती रहे.

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