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विदेशी उच्च शिक्षा बनाम लाचार भारतीय शिक्षा

भारत में एक ओर उच्चशिक्षा के स्तर को ले कर सवाल उठते रहे हैं तो दूसरी ओर पढ़ने के लिए छात्र बड़ी संख्या में विदेशों का रुख कर रहे हैं. भारतीय छात्रों के माध्यम से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अरबों डौलर मिल रहे हैं. इस का बुरा प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है.

प्रतिभा किसी एक ही देश की परिरक्षित निधि नहीं है. प्रत्येक देश के अपनेअपने क्षेत्र के प्रवीण व्यक्ति होते हैं, जैसे वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, साहित्य या कलाओं के विद्वान, चित्रकार, कलाकार आदि. असाधारण प्रतिभा संपन्न ऐसे पुरुष और स्त्रियां अपने देश की  प्रगति व समृद्धि में योगदान तो देते ही हैं साथ ही, अपनी विशिष्टता वाले क्षेत्र में भी उत्कर्षता लाते हैं.

यह कोई असामान्य बात नहीं है कि इन योग्य व्यक्तियों में से कुछ लोगों को अपने ही देश में संतोषजनक काम नहीं मिल पाता या किसी न किसी कारण वे अपने वातावरण से तालमेल नहीं बिठा पाते. ऐसी परिस्थितियों में ये लोग बेहतर काम की खोज के लिए या अधिक भौतिक सुविधाओं के लिए दूसरे देशों में चले जाते हैं.

उच्चशिक्षा पर सवाल

अपने कुशल और प्रतिभासंपन्न व्यक्तियों की हानि से विकासशील देश सब से अधिक प्रभावित हुए हैं. इस का मुख्य कारण यह है कि विकासशील देशों में वेतन और अन्य सुविधाओं के रूप में प्राप्त होने वाले लाभ कम हैं. इन में भारत भी एक है.

भारत में उच्चशिक्षा के स्तर को ले कर हमेशा ही सवाल उठते रहते हैं. अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग में भारतीय विश्वविद्यालय पहले 100 संस्थानों में अपनी जगह क्यों नहीं बना पाते हैं? शीर्ष भारतीय संस्थानों में कोई मौलिक शोधकार्य क्यों नहीं होता है? दाखिले में आरक्षण का मुद्दा, ऊंचे अंक हासिल करने के बावजूद दाखिले से वंचित रह जाना, शिक्षक और छात्रों का बिगड़ा हुआ अनुपात, प्रोफैसरों और कुलपतियों की राजनीतिक नियुक्तियां और किस तरह से उच्चशिक्षा के संस्थान अकादमिक भ्रष्टाचार और औसत दरजे के डिगरीधारकों के उत्पादन की फैक्टरियां बन गए हैं. इन सवालों में एक बड़ा सवाल अब यह भी जुड़ गया है कि इतनी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र विदेशों का रुख क्यों कर रहे हैं? इतना ही नहीं, इन छात्रों के साथ फीस और पढ़ाई का पैसा भी बह कर विदेशों में जा रहा है.

ओपन डोर संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी कालेजों में दाखिला लेने वाले भारतीय छात्रों में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उन्होंने 5 अरब रुपए का योगदान दिया है.

सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि पिछले कुछ वर्षों में यूरोप और आस्ट्रेलिया जाने वाले छात्रों में भी नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है, जबकि इसी दौर में भारत में बड़ी संख्या में उच्च शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय खुले हैं. आखिर ये छात्र देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में क्यों नहीं पढ़ना चाहते?

ब्रेनड्रेन की बड़ी वजह

आज भारत की उच्चशिक्षा व्यवस्था विश्व की बड़ी व्यवस्थाओं में एक मानी जाती है. 2030 तक भारत में कालेज जाने की उम्र वाले 14 करोड़ से अधिक लोग होंगे और ये विश्व का सब से जवान देश माना जाएगा.

ताजा हालात में भारत के लिए यह चुनौती होगी कि वह किस तरह से इन संभावित विद्यार्थियों को स्वदेश में ही रोके और उन की प्रतिभा व योग्यता का अपने यहां अधिकतम इस्तेमाल कर सके ताकि वे मेक इन इंडिया में अपना सहयोग कर सकें.

ब्रेनड्रेन की सब से बड़ी वजह है कि विदेशी डिगरी खासतौर पर अमेरिकी डिगरी से नौकरी पाना आसान है. आर्थिक उदारीकरण के बाद मध्यवर्गीय परिवारों की आय का स्तर बढ़ा है और उन की दृष्टि में भारतीय उच्चशिक्षा प्रणाली में सीमित अवसर हैं.

भारत में चुनिंदा विश्वविद्यालयों में ही पढ़ाई का स्तर ठीक है और सीमित सीटों के कारण वहां दाखिला दुष्कर होता जा रहा है. ज्यादातर छात्र विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित पढ़ने के लिए बाहर जाते हैं. बेशुमार सरकारी स्कौलरशिप और अनुदान से छात्रों का बाहर जा कर पढ़ने का सपना पूरा होना आसान हो गया है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय और एसोचैम जैसे संस्थानों को इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि इसे कैसे रोका जाए. ब्रेनड्रेन अब निश्चित रूप से घाटे का सौदा बनता जा रहा है. प्रतिभा पलायन रोकने के लिए आईआईटी और आईआईएम जैसे और संस्थान स्थापित किए जाने की जरूरत है. विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन के लिए कर रियायतें और प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए जिस से हमारे देश का शिक्षा स्तर ऊपर हो. इस से ब्रेनड्रेन पर भी लगाम लगेगी.

दूसरी तरफ उच्चशिक्षा के लिए सिर्फ सरकार पर ही निर्भर रहना उचित नहीं है बल्कि उद्योग और अकादमिक सहयोग से नई संस्थाएं स्थापित करनी चाहिए और उन का स्तर बढ़ाया जाना चाहिए.

कदम उठाए सरकार

सरकार द्वारा उच्चशिक्षा की फीस भी बढ़ाई जाए, क्योंकि जो छात्र विदेशों में इतना खर्च करने के लिए तैयार हैं वे अच्छी शिक्षा के लिए स्वदेश में भी खर्च कर सकते हैं. जहां तक गरीब छात्रों का सवाल है, उन के लिए अमेरिका की तरह गारंटी प्रणाली की स्थापना की जाए जहां उन्हें बिना अभिभावकों की सुरक्षा के भी सस्ता लोन मिल सके.

विदेशों में पढ़ने के लिए उदार भाव से दी जा रही सरकारी छात्रवृत्तियों और अनुदानों में कटौती भी की जा सकती है. अभी ब्राजील ने ऐसा किया है और उस के बाद वहां के छात्रों के विदेश जाने में कमी आई है.

आज विदेश का रुख करने वाले छात्रों के लिए एक आकर्षक विकल्प देश में ही पैदा करने की जरूरत है. आज अधिकांश सरकारी संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए आमूलचूल बदलाव की जरूरत है. शिक्षा माफिया के काले धन पर भी सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत है. ये शिक्षा व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहे हैं.

विज्ञान, चिकित्सा या ज्ञान के किसी अन्य क्षेत्र का विशेषज्ञ कम वेतन और अन्य कठिनाइयों को भी सह सकता है, यदि उस की योग्यता को अच्छी मान्यता मिले. उस के काम का ठीक मूल्यांकन हो. अच्छे तरह साधनसंपन्न प्रयोगशाला या पुस्तकालय राष्ट्रीय प्रतिभाओं में से अधिकांश को अपनी मातृभूमि छोड़ने से रोक देंगे, चाहे विदेशों में  उन्हें कितना ही अधिक वेतन क्यों न मिले.

विकसित देशों के रहनसहन के ऊंचे स्तर ने विकासशील क्षेत्रों के लोगों को सदा ही अत्यधिक आकृष्ट किया है और प्रतिभाशाली लोग और विशेषज्ञ भी इस मोहजाल से अपनेआप को नहीं बचा पाए.

इस का परिणाम यह हुआ कि विकासशील देशों के अधिकांश प्रतिभासंपन्न व्यक्ति रहनसहन के इस स्तर को प्राप्त करने में प्रसन्नता का अनुभव करने लगे जोकि विकसित देशों के एक साधारण नागरिक को भी उपलब्ध होती है. इसलिए ऐसी सुविधा देश में ही उपलब्ध कराने की योजना बनाई जाए.

नशे की आजादी, युवाओं की बरबादी

शराब पीना एक बीमारी है. शराब पीने के लिए लोग आप को उकसाएंगे चाहे वे आप के दोस्त ही क्यों न हों. केरल का रहने वाला जैकब ऐसा ही एक व्यक्ति है. उस ने 9 वर्ष की छोटी सी उम्र से ही शराब पीनी शुरू कर दी थी. उस के पिता भी शराबी थे. पिताजी के पीने के बाद जब गिलास में कुछ शराब बच जाती थी, तो उसे वह गटक लेता था. इसी वजह से वह भी शराबी बन गया.

जब वह स्कूल में पढ़ता था तब सस्ती शराब पीया करता था. उस ने अपना बचपन शराब के नशे में ही बिताया और कालेज की पढ़ाई भी छोड़ दी. शराब की बुरी लत के कारण उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा. 2 बार उस ने अपने हाथ की नसें काट कर आत्महत्या करने की भी कोशिश की, लेकिन बच गया. शराबी होने के कारण उस के सगेसंबंधी, रिश्तेनाते सब छूट गए. उस ने समाज व परिवार में अपना सम्मान खो दिया. यह कहानी उस राज्य केरल की है जहां साक्षरता सब से ज्यादा है. सोचिए, अन्य राज्यों का क्या हाल होगा.

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शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो हमें अच्छा इंसान बनाता है. यह बात उस लड़की पर सटीक बैठती है जो अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए गांव में ही शराब की बोतलों में पैट्रोल बेचती है. उसे यह परवा नहीं कि लोग क्या कहेंगे. उसे तो बस, अधिकारी बनने की चाह है. इसलिए वह ऐसा करने को मजबूर है. फिरोजाबाद की एक लड़की ठेले पर बैठ कर बड़ी तल्लीनता से किताब पढ़ती रहती है. उस के पास रखी शराब जैसी दिखने वाली भरी बोतल ने लोगों को अचंभे में डाल रखा है.

काफी पूछने पर उस ने बताया कि उसे पढ़ने के लिए इस का सहारा लेना पड़ता है. राहगीरों को बीच रास्ते में पैट्रोल खत्म होने पर कोसों दूर मोटरसाइकिल नहीं घसीटनी पड़ती. पढ़ाई के प्रति ऐसी लगन बहुत कम छात्रों में देखने को मिलती है.

नशाखोरी में मस्त युवा

हमें अपनी युवाशक्ति पर गर्व है, लेकिन सचाई तो कुछ और ही है. इस समय भारत दुनिया में नशाखोरी के मामले में दूसरे स्थान पर है. यहां 10 करोड़ 80 लाख युवा धूम्रपान की गिरफ्त में हैं. देश में प्रतिवर्ष धूम्रपान की वजह से 10 लाख लोगों की मौत हो रही है. यह आंकड़ा देश में होने वाली कुल मौतों का 10 प्रतिशत है.

देश में पिछले डेढ़ दशक में सिगरेट पीने वालों की तादाद काफी बढ़ी है. सिगरेट पीने के मामले में आज भारत पूरी दुनिया में दूसरे स्थान पर है. वह सिर्फ चीन से पीछे है, जिस रफ्तार से भारतीय युवाओं में सिगरेट पीने का चलन बढ़ रहा है, अगर यही गति बनी रही तो जल्द ही वह चीन को भी पीछे छोड़ देगा.

तबाह होती सभ्यताएं

नशा हमेशा ही विनाशकारी रहा है. नशे के चक्कर में सभ्यता और संस्कृतियां तबाह हो गईं. एक जमाने में चीन भी अफीमचियों का देश कहा जाने लगा था. उस से उबरने में उसे दशकों लगे. आज भी कई देश हैं जो अपने शत्रु देशों से निबटने के लिए वहां के नागरिकों में नशे की लत डालने की कोशिश करते रहते हैं. हमारी सरकार भी नशाखोरी में हमसाज रहती है. राज्यों के आबकारी विभाग एक तरफ नशे को बढ़ावा देने में लगे रहते हैं तो दूसरी तरफ मद्यनिषेध विभाग इसे रोकने में. यह कैसा अंतर्विरोध और विरोधाभास है?

नशा कोई भी हो, वह एक मीठा जहर है. नशे को ले कर हमारी सरकारें दोहरा मापदंड अपनाती हैं. एक तरफ तो नशीली वस्तुओं का जोरशोर से उत्पादन और बिक्री हो रही है, वहीं दूसरी तरफ उस का सेवन न करने के खर्चीले अभियान चलाए जा रहे हैं.

लाखोंकरोड़ों रुपए इन विज्ञापनों में फूंके जा रहे हैं. पंजाब राज्य आज नशाखोरी की वजह से ही चर्चा का विषय बना हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, पिछले 10 साल में जहरीली शराब पीने से वहां 11,032 लोगों की मौत हो चुकी है, फिर भी सरकार आंखें बंद किए रहती है.

अभिव्यक्ति की आजादी पर हावी

फिल्मों में शराब पीते हीरो दिखाए जाते हैं. इस का बुरा असर युवाओं पर पड़ रहा है. वे भी फिल्मी स्टाइल में आप को शराब पीते दिख जाएंगे. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया है कि फिल्मों में नायकनायिकाओं द्वारा शराब पीते दिखाने से दर्शकों की मानसिकता पर इस का असर पड़ता है. लिहाजा, इसे प्रतिबंधित किया जाए.

नशे की वस्तुओं के पैकेटों पर दी जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी, गले और मुंह के कैंसर के खौफनाक चित्र और तमाम तरह के विज्ञापन किसी भी नशे को कम करने के लिए रत्तीभर भी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं. ऐसी कोशिशें हास्यास्पद हो कर रह गई हैं.

सरकार की सुस्ती

पूरे पंजाब को नशे ने अपनी गिरफ्त में लिया है, वहां हर तरफ नशा पसरा हुआ है. मादक द्रव्यों ने युवाओं को जकड़ रखा है. अफीम, मौरफीन और हेरोइन जैसे नशीले पदार्थों ने वहां अपना जाल बिछाया हुआ है. पंजाब में सब से ज्यादा हेरोइन का इस्तेमाल होता है. पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से आने वाली हेरोइन की खेप आसानी से यहां पहुंचती है.

नशे की भूख पर वहां तस्करों की पैनी नजर रहती है. वे पहले पंजाब में ही अपना बाजार तलाशते हैं. हेरोइन की तस्करी में लगे लोगों को पंजाब एक बड़ा बाजार मिल गया है. इस का नशा तो जल्दी लोगों को आदी बनाता है. शरीर के हर हिस्से पर इस का कुप्रभाव पड़ता है. पंजाब जैसे खुशहाल प्रदेश के लिए इस से बड़ा अभिशाप क्या होगा कि वहां के युवा हेरोइन जैसे खतरनाक नशे की चपेट में हैं.

अब प्रश्न यह है कि क्या सचमुच सरकार चाहती है कि लोग सिगरेटशराब का सेवन न करें? अगर हां, तो फिर वह इन चीजों के उत्पादन पर रोक क्यों नहीं लगा रही है? जनहित में जारी तमाम विज्ञापन आज ढोंग बन कर क्यों रह गए हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर अपने भाषणों में युवाओं के भविष्य का जिक्र करते हैं. क्या नशाखोरी से उन का भविष्य उज्ज्वल होगा?

राष्ट्रीय गान पर बवाल

फिल्म के पहले सिनेमाघरों में राष्ट्रीय गान को चलवाने व राष्ट्रीय गान पर खड़े रहने की बाध्यता की वैधानिकता पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोग सिनेमाघरों में मनोरंजन के लिए जाते हैं, राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिए नहीं. उस समय उन्हें जबरन खड़ा कराना अनावश्यक है. इस पर एक वकील ने कटाक्ष किया है कि ये जज ही उम्मीद करते हैं कि वे जब अदालत में आएं, तो सब लोग खड़े हो कर उन को सम्मान दें.

राष्ट्रभक्ति का गुणगान करते हुए कैसे लोग विवेक शून्य हो जाते हैं, यह अदालत के उदाहरण से स्पष्ट है. राष्ट्रगान कुछ खास अवसरों पर गाया जाना चाहिए. इसे हर पिक्चर, मदारी के तमाशे या नेता के भाषण से पहले नहीं गाया जाना चाहिए. जहां मामला देशप्रेम का हो, देश की प्रतिष्ठा का हो, वहां ही राष्ट्रगान होना चाहिए.

अंधभक्त चाहते हैं कि जैसे हर समय रामराम, टच वुड (लकड़ी के क्रौस को छूना), अल्लाह की नियामत, वाहे गुरु की कृपा बुलवाते रहना धर्म के दुकानदारों का खेल है, ताकि लोगों को इस तरह मैस्मराइज कर के रखा जाए कि वे हर समय धर्म का भरा लोटा अपने हाथ में रखें और एक बूंद पानी छलकने न दें, तभी वे धर्म के बारे में सवाल पूछने की हिम्मत न कर पाएंगे.

देशभक्ति लोगों का अपना फैसला होती है. देश की सीमाएं बढ़तीघटती रहती हैं, इस से देशभक्ति कम नहीं होती. लोग एक देश की नागरिकता छोड़ कर दूसरे देश की नागरिकता अपना लेते हैं, तो देशभक्ति शिफ्ट हो जाती है और कोई हल्ला नहीं मचता, जैसा धर्म परिवर्तन में मचता है, क्योंकि देशभक्ति ऐच्छिक है. इसे धर्मभक्ति के बराबर थोपने की कोशिश वही करते हैं, जो धर्मभक्ति के अंधविश्वासी होते हैं, जहां न तर्क चलता है, न सहीगलत के सवाल पूछे जाते हैं. देश के बारे में हर तरह के सवाल पूछने के तर्क रहते हैं. सरकार निकम्मी है, संविधान में संशोधन हो, कानून बदले जाएं, प्रधानमंत्री गलत हैं जैसे शब्द कहना देशद्रोह नहीं है, जबकि इसी तर्ज पर धर्म के बारे में कहा जाए, तो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच जाती है.

धर्म में संसद नहीं होती, बल्कि उस के दुकानदारों का एकतरफा निर्णय होता है. देश संसद, मंत्रिमंडल, अदालतों से चलता है, जहां हर फैसले, हर नियम पर सवाल उठते हैं. धर्म की अंधनिष्ठा को देशप्रेम पर थोपना देश की कल्पना को आमूल नष्ट करना है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह सिनेमाघरों में राष्ट्रगान चलवाने के आदेश पर पुनर्विचार करे और साथ ही कहा है कि देशप्रेम को हर समय आस्तीन पर दर्शाना जरूरी नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट बिलकुल सही है कि राष्ट्रगान का सम्मान हो पर वही राष्ट्रभक्ति का पैमाना न हो. हम राष्ट्रगान गा कर भी अंधविश्वास, रिश्वतखोर, चोर, निकम्मे, अत्याचारी, सरकारी टैंडरों से घर भरने वाले या देश का या उस की जनता का नुकसान करने वाले हो सकते हैं. जन गण मन कोई अजूबा मंत्र नहीं कि खजाने के दरवाजे खुल जाएं.

अश्लीलता पर प्रतिबंध के बहाने

अश्लीलता परोसने वाली लगभग 850 पोर्न वैबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाया गया है. हजारों वैबसाइट्स में से सिर्फ 850 ही क्यों चुनी गईं? इन्हें चुनने का क्या पैमाना है? इस के पीछे सरकार की क्या मंशा है? यदि इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की जगह क्या हम यह मान कर निश्चिंत हो सकते हैं कि पोर्नोग्राफी पर नियंत्रण से समाज में स्वस्थ मानसिकता फलीभूत होगी. फलस्वरूप क्राइम रेट घटेगा. यह कोई गारंटी नहीं है क्योंकि यौन अपराध तो साइबर क्रांति से पहले भी हो रहे थे. हां, इस बहाने सरकार को अपना छिपा एजेंडा लागू करने का मौका मिल रहा है और विरोधियों पर नियंत्रण करने का भी. कुछ लोगों का सही मानना है कि यह पाबंदी उन के अधिकारों का हनन है.

यह ठीक है कि यौन शोषण को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए. नियमों के साथ उस के पालन पर भी पैनी नजर सरकार की होनी चाहिए. अगर इस ओर सख्ती नहीं बरती गई तो मासूम बच्चों को जिस्मफरोशी से ले कर पोर्नोग्राफी जैसे गंदे व्यवसाय में धकेला जा सकता है.

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बेबुनियाद तर्क

मोबाइल पर पोर्न  देखने के मामले पर भारत चौथे स्थान पर है. कुछ ही दिनों में इंटरनैट के सब से अधिक उपभोक्ता भारत में होंगे. ऐसे में यह कहना कि पोर्न पर नियत्रंण की यह पहल समाज से हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि के नामोनिशान मिटाने में कारगर होगी, बेबुनियाद है.

इस प्रतिबंध से कुछ हासिल नहीं होगा. समाज में हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि घिनौनी हरकतों का अस्तित्व रहेगा. इंसान को जिस चीज के लिए रोका जाता है वह उसी के पीछे दौड़ता है. यह इंसान की फितरत है.

चीनी सरकार अपने नागरिकों पर नकेल कसने के लिए अनापशनाप पैसा खर्च करती है. वहां इस के लिए कई लोग नियुक्त किए गए हैं. और तो और इंटरनैट सरकारी नियंत्रण में है. फिर भी उसे आंशिक कामयाबी मिलती है. ऐसे में भारत की नीतियां व संसाधन मजबूत नहीं हैं.

चीन के मुकाबले भारत की नीतियां कमजोर हैं. हमारे यहां जिस गति से नियमकानून बनते हैं उसी गति से उन का उल्लंघन भी होता है. नियमों का पालन सख्ती से नहीं किया जाता. आपराधिक मामले लंबे अरसे तक कोट में चलते रहते हैं.

पोर्नोग्राफी मानसिक प्रदूषण फैला रहा है, जिस का सीधा प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ता है. यह नकारात्मक प्रभाव उस के व्यक्तित्व में इस कदर शुमार हो जाती है कि अमानवीय विकारों से समाज प्रदूषित होने में देर नहीं लगती.

सामाजिक स्तर पर पोर्नोग्राफी स्वस्थ समाज वाले संस्कारों जैसे नैतिकता शिष्टाचार आदि को नष्ट कर देती है. पोर्न  वैबसाइट्स पर प्रतिबंध तभी समाज में गहरी छाप छोड़ेगा जब प्रतिबंध के उल्लंघन को अपराध माना जाए.

इंटरनैट से पोर्न  वैबसाइट्स पर रोक के लिए सख्ती बहुत जरूरी है. हमारे यहां नियम बनते हैं. कुछ दिनों तक उस उस का बिगुल दुनिया भर में बजता है. फिर नियम किताबों में कैद हो जाते हैं. ऐसे में नियमों से समाज का कल्याण असंभव है.

माना हमारा संविधान भारतीय नागरिकों को इच्छानुसार जीने का अधिकार देता है, ऐसे में इस के खिलाफ आवाज उठाना गलत है. अगर कोई वयस्क चारदीवारी में पोर्न  देखता है और इस से समाज को कोई नुकसान नहीं. ऐसे में पोर्न वैबसाइट्स पर प्रतिबंध व्यक्ति का हनन है.

वहीं दूसरी ओर पोर्न वैबसाइट्स समाज के सामने हो तो वह सरासर गलत है. सरकार ने प्रतिबंध तो लगा दिया लेकिन इस के लिए सख्ती नहीं बरती तो ऐसे नियमों का कोई फायदा नहीं है. रोक लगाने के बाद भी इस की उपलब्धता को नष्ट करना होगा अन्यथा मानसिक रूप से विकृत इंसान के लिए सोशल मीडिया पर पोर्न  परोसा जा रहा है.

न हों निराश, जिएं बिंदास

ओएमजी, यार उस लेडी की ड्रैस देख, कितनी शानदार है. लगता है किसी बड़े डिजाइनर के कलैक्शन से ली है. कम से कम 18-20 हजार रुपए की तो होगी ही. और मुझे देखो, उस के पास खड़ी हो जाऊं तो कामवाली बाई सी लगूं. दूल्हे के पास स्टेज पर खड़ी एक महिला को देखते ही सीमा ने अपनी आदत के अनुसार आह भरी. मैं ने उसे घूरा तो वह एकबारगी तो सकपका कर चुप हो गई मगर थोड़ी ही देर बाद फिर शुरू हो गई.

कभी किसी से अपने गहनों की तुलना करती तो कभी हेयर स्टाइल की. कभी अपने फुटवियर की तरफ देख कर निराशा से भर उठती तो कभी उसे अपना मेकअप डल लगता. पूरी शाम सीमा ने न तो खुद ऐंजौय किया और न ही मुझे करने दिया. उस की इन हरकतों पर मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था मगर उस की आदत समझ कर मैं अपने गुस्से को पी गई.

सीमा को हमारे फ्रैंडसर्कल में प्रौब्लम के नाम से जाना जाता है. कारण है उस का हर वक्त रोतेबिसूरते रहना और अपनी तुलना दूसरों से कर कर के अपनेआप को बेचारी साबित करते रहना. कभी किसी की ड्रैस, कभी मेकअप, कभी गहने तो कभी किसी की परफैक्ट फिगर… सीमा के पास हीनभावना से ग्रस्त होने का कोई न कोई बहाना होता ही है.

यह समस्या केवल सीमा की ही नहीं, बल्कि हमारे आसपास ऐसी अनेक लड़कियों की है जो अपनेआप से कभी संतुष्ट नहीं होतीं. उन्हें दूसरों की थाली में हमेशा घी ज्यादा नजर आता है.

वंदना एक कालेज स्टूडैंट है. 2 घंटे डेली सोप देखना उस की दिनचर्या का प्रमुख अंग है और यही उस की परेशानी का कारण भी है. टीवी में दिखने वाले किरदारों से अपनी फिगर की तुलना करना और उन जैसा परफैक्ट बौडीशेप पाने के लिए तरहतरह के प्रयास करना व असफल होने पर हताशा से भर उठना. यह वंदना का प्रिय शगल है.

पूरा परिवार उस की इन हरकतों से परेशान रहता है. मगर वंदना पर इस का कोई असर दिखाई नहीं देता. वह टीवी विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली परफैक्ट फिगर दिलाने वाली चीजें व दवाओं पर हर महीने हजारों रुपए खर्च कर देती है.

सीमा और वंदना के ठीक विपरीत समाया हमेशा मुसकराती हुई नजर आती है. समाया थोड़ी मोटी है और कद में थोड़ी छोटी भी, मगर अपनेआप को ले कर कभी भी डिप्रैशन में नहीं आती. हां, उसे मेकअप करना बहुत सुहाता है, इसलिए जब भी देखो, वह बनीठनी ही नजर आती है. उस की बातचीत में कहीं भी खुद को ले कर कोई हीनभावना महसूस नहीं होती, बल्कि उस के साथ बिताया गया थोड़ा सा वक्त भी किसी को ऊर्जा से भरने के लिए काफी होता है.

परफैक्ट फिगर पाना आसान नहीं

दिनरात जिम में पसीना बहाना, मनपसंद खाने का त्याग करना, व्यायाम करना… शालू ने क्याक्या नहीं किया, करीना कपूर जैसी जीरो फिगर पाने के लिए. इस सारी कवायद से उस ने एक महीने में अपना 10 किलोग्राम वजन कम कर लिया था.

एक साइज छोटी जींस पहन कर बहुत खुश थी शालू. मगर चेहरे और पेट की लटकी त्वचा उसे अपनी वास्तविक उम्र से कहीं ज्यादा दिखा रही थी. पर्याप्त पोषण न मिलने के कारण उस का चेहरा एकदम निस्तेज और बेजान सा लगने लगा था. हर वक्त थकीथकी सी रहने लगी शालू ने हार कर जीरो फिगर का मोह छोड़ा और वापस अपनी पुरानी दिनचर्या में लौट आई.

मौडल या सिनेस्टार जैसा परफैक्ट फिगर पाना नामुमकिन तो नहीं मगर इतना आसान भी नहीं कहा जा सकता. परफैक्ट फिगर इस पेशे की सब से पहली शर्त होती है. स्टार्स और मौडल्स को न जाने क्याक्या त्याग करने पड़ते हैं, अपनेआप को सालोंसाल मेंटेन रखने के लिए, जो असल जिंदगी में बहुत मुश्किल है. तो  क्या इस बात के लिए खुद को कोसा जाए? बिलकुल नहीं.

परफैक्ट फिगर की चाह रखना गलत नहीं है. मगर हर कोई परफैक्ट फिगर का मालिक नहीं हो सकता, इस सच को स्वीकार करने की हिम्मत भी हर किसी में नहीं होती. इस कड़वी सचाई को स्वीकार कर के कई तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है.

गोलमटोल सी ऋचा के भरेभरे गाल बहुत ही मोहक दिखाई देते हैं. गालों पर पड़ते डिंपल और होंठों पर हर वक्त सजी रहने वाली मुसकान किसी को भी अपना दीवाना बनाने के लिए काफी है. ऋचा अपने मोटापे को अपना प्लस पौइंट मानती है. ऋचा कहती है, ‘‘मेरा मांसल शरीर मेरी हड्डियों की हिफाजत करता है. इस फैट की वजह से मेरी हड्डियां आसानी से टूटेंगी नहीं. साथ ही, अगर कभी मैं बीमार भी पड़ी, तो सूख कर हड्डियों का ढांचा नहीं बनूंगी. इतना फैट तो तब भी मेरे शरीर पर रहेगा जितना इन जीरो साइज की हीरोइनों के शरीर पर है.’’

स्लिमट्रिम या जीरो साइज बौडी से कहीं ज्यादा जरूरी है चुस्तदुरुस्त और फुरतीला शरीर. इसलिए डाइटिंग करें, वाक करें या जिम जाएं. मगर सिर्फ अपनेआप को चुस्त और ऐक्टिव रखने के लिए न कि परफैक्ट फिगर के पागलपन के लिए.

सजनासंवरना है अधिकार

याद कीजिए ‘मैरीकौम’ फिल्म का वह दृश्य जिस में वर्ल्ड टूरनामैंट में बौक्ंिसग रिंग में उतरने से पहले मैरीकौम को नेलपौलिश लगाते हुए दिखाया गया है. कहने का मतलब है कि सजना और खूबसूरत दिखना हर लड़की का अधिकार है. इसलिए, इस बात को दिल से निकाल दें कि यदि आप का फिगर परफैक्ट नहीं है तो आप पर कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा या फिर कहीं लोग आप का मजाक न उड़ाने लगें.

आप आत्मविश्वास के साथ हर उस ब्यूटी प्रौडक्ट को इस्तेमाल करें जो आप को सुंदर बनाते हैं. हां, एक बात का खयाल अवश्य रखें कि मेकअप इस तरह से करें कि वह आप के व्यक्तित्व की कमियों को छिपा कर खूबियों को निखारे.

इस के लिए किसी ब्यूटीपार्लर से सैल्फ मेकअप का शौर्ट कोर्स भी किया जा सकता है. लेटैस्ट परिधान पहनें, भले ही वे ब्रैंडेड न हों. अपने बजट और फैशन के अनुसार फंकी और ट्रैंडी ज्वैलरी ट्राई करें. मैचिंग फुटवियर पहनें.

सजें कुछ यों

ड्रैसअप होने के बेसिक रूल्स को फौलो करें. जैसे, यदि आप की लंबाई थोड़ी कम है तो खड़ी धारियों या वर्टिकल डिजाइन वाली ड्रैस पहनें और अगर थोड़ी मोटी हैं तो बड़े प्रिंट या फिर हौरिजैंटल डिजाइन की ड्रैस न पहनें. कंट्रास्ट कपड़े और हाईहील पहन कर भी आप अपनी लंबाई अधिक दर्शा सकती हैं.

कमर या हिप भारी हैं तो लौंग टौप पहनें. पतली कमर को डिजाइनर बैल्ट से सजाएं और अपनेआप को भीड़ से अलग दिखाएं. थुलथुली बांहों को नैट की स्लीव्स से कवर करें.

हेयरस्टाइल भी आप के व्यक्तित्व को बदल सकता है. अपने चेहरे की शेप के अनुसार हेयरस्टाइल बनाएं. कभी पोनी, कभी जूड़ा, कभीकभी यों ही जुल्फों को लहराने भी दिया जाए तो कोई हर्ज नहीं है. बस, बाल मजबूत और डैंड्रफ फ्री होने चाहिए. दोमुहें बालों को भी समयसमय पर ट्रिम कर के हटाते रहना चाहिए.

महीने में एकाध बार पार्लर भी जाना चाहिए. फैशियल, थ्रैडिंग, वैक्ंिसग आदि ट्रीटमैंट को आजकल चोंचले नहीं, बल्कि समय की जरूरत समझा जाने लगा है. यह एक तरह से खुद पर किया गया निवेश है जिस के फायदे समय आने पर पता चलेंगे.

सब से बड़ी और जरूरी बात है कि किसी भी स्थिति में अपना आत्मविश्वास न खोएं. किसी को देख कर अपने मन में हीनभावना न लाएं. सब की अपनी अलगअलग विशेषताएं होती हैं. बस, आप को जरूरत है अपनी विशेषता को पहचानने और दुनिया को उस से रूबरू करवाने की.

अब बीयर से चलेंगी कारें

पैट्रोल और डीजल के विकल्पों की तलाश दुनियाभर में हो रही है. लेकिन अगर हम आपसे कहे कि इस विकल्प की तलाश की जा चुकी है और आप बीयर को पैट्रोल और डीजल के जगह इस्तेमाल कर गाड़ियां चला सकते हैं तो. आप भी हैरान हो गये न यह सुनकर. शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कारें भी बीयर से चल सकती हैं. लेकिन कुछ ही सालों में हमारी यह बात हकीकत में तब्दील हो जाएगी और आप आने वाले समय में बीयर का इस्तेमाल कर गाड़ी चला सकेंगे.

बता दें कि दुनिया के कई देश पैट्रोल-डीजल की जगह पारंपरिक ब्यूटेनाल ईंधन को अपना रहे हैं. अब ऐसे में एक रिसर्च से पता चला है कि कारें वर्ष 2022 तक बीयर से भी चलने लगेंगी. यूनिवर्सिटी औफ ब्रिस्टल के वैज्ञानिकों के अनुसार बीयर में बड़ी मात्रा में एथेनाल मौजूद होता है जिसे ब्यूटेनाल में बदला जा सकता है और इसी से ईंधन भी बनाया जा सकता है जो पारंपरिक ईंधन का एक बढिय़ा विकल्प साबित हो सकता है.

विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2022 तक बीयर ईंधन का प्रमुख स्रोत भी बनकर उभरेगा. हालांकि वैज्ञानिको का कहना है कि अभी बड़े पैमाने पर बियर का इस्तेमाल किसी कार को चलाने में नहीं किया जा सकता. लेकिन लैब टेस्टिंग के लिए बियर आधारित ईंधन का इस्तेमाल एक अच्छा विकल्प है. यूनिवर्सिटी औफ ब्रिस्टल का मानना है कि बुटेनौल का लैब टेस्टिंग में अभी करीब पांच साल का वक्त और लग सकता है. जिसके बाद हम इस ईंधन को कारों और ट्रकों में इस्तेमाल कर सकते हैं.

इस रिसर्च को मानने से इंकार नहीं किया जा सकता पर इसे अभी एक आदर्श विकल्प भी नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें ऊर्जा घनत्व कम है ऐसे में यह शायद इंजन के लिए उपयुक्त नहीं होगा.

गौरतलब है कि भारत में प्रदूषण से बचने के लिए सरकार पैट्रोल और डीजल की जगह इलैक्ट्रिक गाडियों पर ज्यादा फोकस कर रही है तथा अभी हाल ही में सियाम ने कहा है कि वर्ष 2030 तक देश के औटोमोबाइल बाजार में 40 प्रतिशत इलैक्ट्रिक कारें होंगी.

रोहित शर्मा की बैटिंग देख सहवाग बोले, मजाक बना रखा है यार..!

भारतीय टीम ने शुक्रवार को होल्कर स्टेडियम में खेले गए दूसरे टी-20 मैच में श्रीलंका को 88 रनों से हराकर सीरीज पर अपना कब्जा जमा लिया है. इस मैच में भारतीय टीम इंडिया के कप्तान रोहित शर्मा ने एक बार फिर से कप्तानी पारी खेलकर टीम को बड़े अंतर से जीत दिलाने का काम किया. रोहित ने इस मैच के दौरान जिस अंदाज में शतक लगाया उसकी चर्चा चारों तरफ हो रही है.

रोहित शर्मा की इस धुआंधार पारी को देखकर पूर्व भारतीय ओपनर और अब कमेंटेटर वीरेंद्र सहवाग भी दंग रह गए क्योंकि एक जमाने में वह भी कुछ इसी तरह से बल्लेबाजी करते थे. रोहित की इस उपलब्धि पर सहवाग ने ट्वीट किया है. इस ट्वीट में सहवाग ने उनका हौंसला अफजाई करते हुए लिखा- रोहित ने अपनी बैटिंग से श्रीलंकाई गेंदबाजों का मजाक बना रखा है यार! बस फिर क्या था, सहवाग के ट्वीट करते ही फैंस ने उनके ट्वीट को लाइक कर रोहित की तारीफ करने लगे.

विशाल लक्ष्य का पीछा करने उतरी श्रीलंकाई टीम ने हालांकि भारत की तरह ही तेज शुरुआत की और चौकों-छक्कों की बरसात की. उसने 10 ओवरों में ही 100 का आंकड़ा पार कर लिया था, लेकिन कुलदीप यादव और युजवेंद्र चहल की जोड़ी के आगे एक बार फिर श्रीलंकाई बल्लेबाज बेबस नजर आए. रोहित के साथ सलामी जोड़ीदार लोकेश राहुल ने भी 49 गेंदों में पांच चौके और आठ छक्कों की मदद से 89 रनों की शानदार पारी खेली. इन दोनों की पारी के दम पर भारत ने 20 ओवरों में पांच विकेट के नुकसान पर 260 रन बनाए. जिसके जवाब में श्रीलंकाई टीम 17.2 ओवरों में नौ विकेट खोकर 172 रन ही बना सकी.

कप्तान रोहित शर्मा ने अपनी पारी के दौरान 43 गेंदों का सामना किया. जिसमें 12 चौके और 10 छक्कों की मदद से उन्होंने 118 रनों की विस्फोटक पारी खेली. इस मैच में रोहित शर्मा मैन औफ द मैच चुने गए.

भूल गएं अपने स्मार्टफोन का पैटर्न..? तो ऐसे करें अनलौक

हममें से कई लोग अपने स्मार्टफोन पर लौक लगाकर रखते हैं. ताकि कोई तीसरा हमारे प्राइवेट मैसेज, कौन्टैक्ट या फोटो को देख ना सके. इसके लिए हम अपने फोन पर पैर्टन लौक या फिर पासवर्ड का इस्तेमाल करते हैं.

ऐसे में कभी कभी होता है कि हम अपने फोन का पासवर्ड या लौक पैटर्न भूल जाते हैं. इसके साथ ही अगर किसी ने आपसे छुपकर आपका पासवर्ड या पैटर्न लौक बदल दिया तो आप मुश्किल में पड़ सकते हैं. ऐसे में आप अपना ही डाटा एक्सेस नहीं कर पाएंगे. यहां हम आपकी इसी समस्या का समाधान लेकर आए हैं. इस ट्रिक से आप फोन का पैटर्न लौक या पासवर्ड भूल जाने पर उसे आसानी से रिकवर कर सकते हैं.

कैसे करें अनलौक

अगर आप फोन का पैटर्न लौक भूल गए हैं तो सबसे पहले फोन की बैटरी को बाहर निकाल के स्विच औफ करें.

अगर आपके फोन की बैटरी नौन रिमूवेबल है तो फोन के वौल्यूम बटन (डाउन) और पावर बटन को 10 सेकेंड तक प्रेस करे इससे फोन रिस्टार्ट हो जाएगा.

फोन औन होने के बाद डिवाइस के वौल्यूम बटन के ऊपरी हिस्से को, फोन के होम और पावर बटन को एक साथ दबाएं.

फोन को इस स्थिति में तब तक रखें जब तक आपका फोन रिकवरी मोड में ना चला जाएं.

फोन के रिकवरी मोड में जाने के बाद आपको एंड्रौयड का लोगो दिखाई देगा. इसके बाद फोन के पावर बटन को दबाएं.

अब आपको data/factory reset, wipe cache partition का विकल्प दिखाई देगा.

अब आप wipe data/factory reset पर क्लिक करें. जिसके बाद आपको कुछ औप्शन दिखेंगे.

आपको Confirm wipe of all user data का विकल्प दिखेगा. इसमें से आपको Yes > Erase Everything पर क्लिक करना होगा.

अब आपको Yes-Delete all user का विकल्प मिलेगा. इस पर क्लिक करते ही आपके फोन का लौक खुल जाएगा. आपको बता दें कि इस प्रक्रिया से आपके फोन में मौजूद सभी प्रकार का डाटा डिलीट हो जाएगा.

अब आप भी मिल सकते हैं सनी लियोनी से, जाने कैसे

पूर्व पौर्न स्टार और बौलीवुड की सेक्सी बेबी डौल सनी लियोनी की गिनती आज बौलीवुड की टौप एक्ट्रेसों में की जाती है. उनकी अदाओं के पीछे लाखों फैन्स पागल हैं. अगर आप सनी लियोनी के बड़े फैन है और उनसे मिलना चाहते हैं तो आपके पास उनसे वीडियो चैट करने का सुनहरा मौका है, पर यह मौका पाने के लिए आपको सनी लियोनी का एक चैलेंज स्वीकार करना होगा.

दरअसल, सनी ने सोशल मीडिया पर अपने फैंस और यूजर्स को एक चैलेंज दिया है. अगर इस चैलेंज को कोई पूरा कर पाएंगे तो उसे न सिर्फ सनी के साथ वीडियो कौल करने का मौका मिलेगा बल्कि एक स्मार्टफोन भी गिफ्ट में दिया जाएगा.

सनी लियोनी ने अपने इंस्टाग्राम और ट्विटर पर इस चैलेंज को लेकर एक वीडियो अपलोड किया है. इस वीडियो में सनी लियोनी पहले तो पंजाबी गाने पर डांस करती हुई नजर आ रही हैं और इसके बाद वो अपने सनी लियोनी चैलेंज के बारे में बात करती हुई नजर आ रही हैं.

वह इस वीडियो में सभी को सनी लियोनी चैलेंज में भाग लेने के लिए कहती हैं. अंत में सनी लियोनी यह भी कहती हैं कि 29 तारीख को सनी लियोनी का एक्सक्लूसिव वीडियो देखना न भूलें.

सनी के इस चैलेंज वाले वीडियो को 15 हजार से ज्यादा लोग देख चुके हैं. ट्विटर पर भी सनी लियोनी चैलेंज एक नंबर पर ट्रेंड कर रहा है.

अगर आप सनी लियोनी चैलेंज में भाग लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपने ऐंड्रायड फोन में hypstar app डाउनलोड करना होगा. हाइपस्टार ऐप के जरिए एक फनी वीडियो बनाना होगा और इस वीडियो को ट्विटर पर #SunnyLeoneChallenge के साथ अपलोड करना होगा. ऐसा करने के बाद सनी लियोनी विजेताओं को चुनेंगी. सनी का यह चैलेंज 22 से 27 दिसंबर तक चलेगा.

आपको बता दें कि सनी लियोनी की हाल ही में ‘तेरा इंतजार’ फिल्म आई थी. लेकिन यह बौक्स औफिस पर कमाल नहीं दिखा सकी. सनी के साथ उनके को-स्टार सलमान खान के भाई अरबाज खान थे. सनी लियोनी को लेकर कर्नाटक में भी विरोध चल रहा है, क्योंकि वह नए साल के मौके पर राजधानी बेंगलुरू में परफौर्मेंस देने वाली थीं.

सचिन ने लिया सोशल मीडिया का सहारा, रखी मन की बात

टीम इंडिया के मास्टर ब्लास्टर और राज्यसभा सांसद सचिन तेंदुलकर गुरुवार को पहली बार राज्यसभा में बोलने वाले थे, लेकिन विपक्ष के हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई. इस तरह ‘राइट टु प्ले’, यानी ‘खेलने के अधिकार’ पर सचिन तेंदुलकर राज्यसभा में अपने विचार नहीं रख पाए. अगर सचिन तेंदुलकर संसद में बोल पाते, तो 2012 में राज्यसभा सदस्य मनोनीत किए जाने के बाद उनका पहला भाषण होता.

जब वह संसद के ऊपरी सदन में कांग्रेस के हंगामे के कारण अपनी बात नहीं रख पाए तो उन्होंने अपनी बात एक दिन बाद शुक्रवार को फेसबुक पर रखी. उन्होंने इस वीडियो की शुरुआत करते हुए कहा कि मैं कल आपके सामने कुछ बातें रखना चाहता था, आज भी वही कोशिश करूंगा.

सचिन ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि मेरे पिता एक कवि थे. उन्होंने हमेशा मुझे इस बात के लिए प्रेरित किया कि मैं अपने जीवन में वही करूं, जो मैं करना चाहता हूं. उनसे मुझे अपने जीवन में जो सबसे बड़ा उपहार मिला, वह था खेलने की आजादी. इसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूंगा. देश के सामने कई समस्याएं हों, चाहे गरीबी या आर्थिक वृद्धि दर. लेकिन एक खेलप्रेमी होने के नाते मैं खेल और स्वास्थ की बात करूंगा. मेरा सोच हैल्दी एंड फिट इंडिया है. मैं कहूंगा-जब स्वस्थ है युवा, तभी देश में कुछ हुआ.

दुनिया में भारत सबसे युवा आबादी वाला देश है. इसलिए ऐसा समझा जाता है कि देश युवा है तो फिट है. लेकिन ये गलत है. दुनिया में भारत को डायबिटीज की राजधानी कहा जाता है. 75 मिलियन लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं. मोटापे में हम दुनिया में तीसरे नंबर पर आते हैं. इन बीमारियों के कारण हमारी अर्थव्यस्था पर बुरा असर पड़ रहा है. हम अपनी सेहत को सुधारकर अपनी अर्थव्यस्था की मदद कर सकते हैं.

लेकिन इसके लिए हमें अपनी लाइफ स्टाइल बदलनी होगी. हमें अपनी आदतें बदलती होंगी. नौर्थ ईस्ट में देश की 4 फीसदी आबादी रहती है. लेकिन वहां स्पोर्ट्स कल्चर जबर्दस्त है. देश के इस हिस्से ने हमें दीपा कर्माकर, मेरी कौम, मीरा बाई चानू, बाइचुंग भूटिया जैसे कई एथलेटिक प्लेयर दिए हैं.

खेल एक देश को तो बनाने में मदद करता ही है, ये अकेले व्यक्ति का चरित्र गढ़ने में भी मदद करता है. मेरे पास एक लक्ष्य है और इसे हासिल करने की योजना भी. मैं इसमें अगर असफल भी होता हूं तो मेरा खेल मुझे इसे फिर से पूरा करने की हिम्मत देता है. बेटियों को लक्ष्मी की तरह रखना हमारी जिम्मेदारी है. हम उन्हें आगे बढ़ाएं हमारी जिम्मदारी है. सभी माता पिता को मेरा यही कहना है कि हम बेटे बेटियों में कोई फर्क नहीं करें.

हमारी ओलंपिक में उम्मीदें बहुत होती हैं. लेकिन इसके लिए हमें प्रतिभा को शुरुआत में ही पहचानना होगा. उनकी मदद करनी होगी. हम डिजीटल इंडिया की इसमें मदद ले सकते हैं, जिसमें कोच कई खिलाड़ियों को ट्रेनिंग मुहैया कराएं. जैसे पुलेला गोपीचंद कहना है कि देश में बैडमिंटन में बहुत प्रतिभा है. लेकिन कोचिंग की कमी है.

अभ्यास और तैयारी से हम अपने टारगेट को हासिल कर सकते हैं. देश में आर्थिक मदद बड़ी चुनौती है. मैं ये जानता हूं कि गई सरकारी विभागों में नौकरी देकर सरकार खिलाड़ियों को ये मदद देती है. लेकिन हमारी कई जिला और राज्य स्तर के खिलाड़ी होते हैं, जिन्हें मदद नहीं मिलती. उनकी फाइलें टेबल के बीच अटकी रहती हैं. हमें अपने खिलाड़ियों को अच्छी कोचिंग देनी होगी. हमारे कई ऐसे ही खिलाड़ियों को अपने अंतिम दिनों में बहुत बुरे दिन गुजारने पड़े हैं.

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