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यह तूफानी बल्लेबाज अब बैसाखियों के सहारे चलने पर हुआ मजबूर

अपनी तूफानी बल्लेबाजी से गेंदबाजों के दिलों में खौफ पैदा करने वाले पूर्व श्रीलंकाई क्रिकेटर सनथ जयसूर्या आज इतने लाचार हैं कि बिना सहारे के एक कदम भी नहीं चल पा रहे हैं. जयसूर्या को इन दिनों चलने के लिए बैसाखी की जरूरत पड़ रही है. अपने समय के धाकड़ बल्लेबाज और उपयोगी स्पिनर जयसूर्या के घुटने में दिक्कत हो गई, जिसके चलते उन्हें बैसाखी का सहारा लेना पड़ रहा है.

बैसाखी के साथ चलते हुए उनकी फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है.

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘जयसूर्या अपने घुटनों के इलाज के लिए 2 जनवरी को मेलबर्न गए हैं. करीब एक महीने वहां रहकर वो घुटने की सर्जरी कराएंगे.’ सर्जरी के बाद उन्हें इसकी जटिलताओं से बचाने के लिए देखरेख में रखा जाएगा और यह भी देखा जाएगा कि सर्जरी के बाद फिर से पैरों पर खड़े होकर चल पाते हैं या नहीं.

क्रिकेट से संन्यास ले चुके जयसूर्या दो बार श्रीलंका क्रिकेट की चयन समिति के चेयरमैन रहे. 2017 में दक्षिण अफ्रीका और घर में भारत के हाथों श्रीलंकी की हार के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था.

बता दें कि 48 वर्षीय जयसूर्या 2011 में रिटायर होने से पहले श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के मजबूत स्तंभ माने जाते थे. उनका खौफ गेंदबाजों में ऐसा था कि अच्छे-अच्छे गेंदबाजों की लाइन लेंथ बिगड़ जाती थी. इनके क्रिकेट करियर की बात करें तो इन्होंने 110 टेस्ट मैच 6973 रन बनाए, जिसमें 14 शतक और 3 दोहरा शतक शामिल है और 445 वनडे मैच में 13430 रन बनाए, जिसमें 28 शतक शामिल हैं. उन्होंने 31 टी 20 मैच खेले जिसमें 629 रन बनाए. वहीं जयसूर्या ने आईपीएल में भी हाथ अजमाया था, जिसमें इन्होंने 30 मैचों में 768 रन बनाए.

एसबीआई में है अकाउंट, तो मिल सकती है यह बड़ी छूट

भारतीय स्टेट बैंक ने नये साल की शुरुआत अपने ग्राहकों को ब्याज दरों में कटौती का तोहफा देकर की थी. लेकिन तोहफे मिलने का दौर अभी यहीं खत्म नहीं हुआ है. एसबीआई अब आपको एक और बड़ा तोहफा दे सकता है. इसकी बदौलत आप न सिर्फ बैंक में कम पैसे रख पाएंगे, बल्क‍ि चार्ज देने से भी बच जाएंगे.

मिनिमम बैलेंस चार्ज को लेकर एकबार फिर एसबीआई की आलोचना शुरू हो गई है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से भी उस पर दबाव बढ़ने लगा है. ऐसे में एसबीआई आपको मिनिमम बैलेंस रखने के साथ एक और बड़ी राहत दे सकता है.

सूत्रों के हवाले से पता चला है कि एसबीआई मिनिमम बैलेंस की सीमा 3000 से घटाकर 1000 रुपये करने की तैयारी कर रहा है. अगर ऐसा होता है, तो आपको शहरी भाग में 3000 रुपये मिनिमम बैलेंस रखने की शर्त को पूरा करना नहीं पड़ेगा. इसके बाद कम से कम 1000 रुपये आपके खाते में होने जरूरी होंगे.

इसके साथ ही एसबीआई एक और राहत अपने ग्राहकों को देने की तैयारी कर रहा है. इसमें बैंक मिनिमम बैलेंस को मासिक स्तर पर नहीं, बल्क‍ि त्रैमासिक स्तर पर रखने का नियम तय कर सकता है. मासिक की बजाय तिमाही बैलेंस के नियम से उन लोगों को फायदा होगा जिनके अकाउंट में किसी महीने कैश की कमी हो जाती है, लेकिन अगले महीने वह कैश जमा भी कर देते हैं.

हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक एसबीआई ने अप्रैल और नवंबर 2017 के बीच मिनिमम बैलेंस मेनटेन नहीं करने की वजह से ग्राहकों से 1,772 करोड़ रुपये जुर्मना वसूला. चार्जेज की ये रकम बैंक की एक तिमाही के नेट प्रोफिट से भी ज्यादा थी. ये एक तरह का घोटाला था जिसे मद्देनजर रखते हुए एसबीआई यह बड़ा कदम उठा सकती है.

बता दें कि SBI ने जून में मिनिमम बैलेंस को बढ़ाकर 5000 रुपये कर दिया था. हालांकि, विरोध के बाद मिनिमम बैलेंस सीमा को मेट्रो शहरों में घटाकर 3000, सेमी-अर्बन में 2000 और ग्रामीण क्षेत्रों में 1000 रुपये किया गया था. तब नाबालिग और पेंशनर्स के लिए भी इस सीमा को कम कर दिया गया था. पेनल्टी को 25-100 रुपये से घटाकर 20-50 रुपये के रेंज में लाया गया था.

राजनीति में रजनीकांत : क्या सफल हो पाएगा दक्षिण भारत का सुपर स्टार

दक्षिण भारत के सुपर स्टार रजनीकांत ने आखिर राजनीति में आने का ऐलान कर दिया. उन्होंने एक नई राजनीतिक पार्टी के गठन की बात कही है. रजनीकांत राजनीति में आ कर क्या करेंगे, अब तक उन का कोई राजनीतिक नजरिया सामने नहीं आया है. सामाजिक आंदोलन से निकल कर आए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक दृष्टिकोण अन्ना हजारे के जनआंदोलन के दौरान उन के नई पार्टी के ऐलान से पहले ही स्पष्ट हो चुका था. वह देश की भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की बात करते थे.

रजनीकांत राजनीति में भ्रष्टाचार की बात मानते तो हैं पर उन्होंने इस व्यवस्था के खिलाफ कोई रोडमैप पेश नहीं किया है. जैसा कि जनलोकपाल के लिए केजरीवाल अपना संकल्प दोहराते थे.

तमिलनाडु की राजनीति में दो द्रविड़ पार्टियों के बीच वह कहां स्थान बना पाएंगे, साफ नहीं है. ये दोनों पार्टियां बारीबारी से सत्ता में आती रही हैं. राज्य की राजनीति में दोनों पार्टियां द्रविड़ और गैरद्रविड़ के अपने अपने जातीय, वर्गीय आधार पर टिकी हैं. यहां द्रविड़ और गैर द्रविड़ जातियों में ऊंचनीच, भेदभाव, ईर्ष्या का टकराव चलता आया है.

फिल्मों में लोकप्रिय होना अलग बात है. भले ही ऐसे अभिनेता राजनीति में आ कर अपनी लोकप्रियता भुनाने में कामयाब हो जाए, सत्ता की कुर्सी पर जा विराजे पर राजनीति में आ कर परिवर्तन या करिश्मा कर पाएंगे, मुश्किल है.

रूपहले पर्दे से अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, वहीदा रहमान,, भावना चिलखिया, गोविंदा, रेखा, हेमामालिनी, स्मृति ईरानी जैसे सितारों की लंबी फेहरिश्त है पर फिल्मी पर्दें पर सुनी जाने वाली इन की बुलंद आवाज संसद में लगभग खामोश ही रही. संसद में ये महज शोपीस बने दिखाई दिए. जनता के लिए बहुत कम मुद्दे इन सितारों ने उठाए. इन की कोई परिवर्तनकारी सोच कभी सुनाई नहीं दी.

लाखों करोड़ों प्रशंसकों के चहेते खिलाड़ी भी संसद में आ कर जनता के पैसे से सुविधाएं और मोटा पैसा पाते रहे. क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और रेखा तो अपने कार्यकाल में संसद में न के बराबर दिखाई देते हैं. संसद के अधिवेशनों में भी नदारद रहते हैं. इन की उपस्थिति को ले कर कई बार सवाल उठे हैं. न सचिन खेलों के लिए कोई सुधार की बात संसद में रख सके, न रेखा जैसे सितारे फिल्म जगत की.

तमिलनाडु की राजनीति में फिल्मी सितारों का प्रवेश नया नहीं है. यहां की जनता की फिल्मी सितारों के प्रति दीवानगी जगजाहिर है. लोग सितारों से भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं. दक्षिण भारत से ही एमजी रामचंद्रन, जे.जयललिता, एम. करुणानिधि जैसे नेता फिल्मों से आए पर वह राज्य को भ्रष्टाचार, जातीय, मजहब, क्षेत्रीयता, भाषा की संकीर्णता से छुटकारा नहीं दिला पाए. उल्टे सत्ता के लिए यह संकीणर्ता ही इन का महत्वपूर्ण माध्यम रही.

पिछले समय दक्षिण के लोकप्रिय स्टार  चिरंजीव राजनीति में आए. अपनी नई प्रजा राज्यम पार्टी बनाई, पर पर्दे पर धमाल मचाने वाले यह हीरो राजनीति में फुस्स नजर आए. 2009 के आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनावों मे उन्हें 295 में से केवल 18 सीटें मिलीं. दो सीटों पर खड़े हुए चिरंजीवी एक सीट पर हार गए. बाद में उन्हें कांग्रेस में शामिल होना पड़ा.

सुपर स्टार के रूप मे रजनीकांत को पंसद करने वालों की तादाद असीमित है. जो लोग उन्हें पसंद करते हैं वे किसी खास जाति, धर्म, क्षेत्र, वर्ग या विचारधारा से जुड़े नहीं हैं. उन्हें कलाकार के रूप में पसंद करने वालों का दायरा बेहद व्यापक है पर राजनीति में ऐसा नहीं होता. राजनीति में जाति, धर्म एक शाश्वत सचाई है. ऐसे में रजनीकांत खुद किसी न किसी विचारधारा के प्रतीक बन जाएंगे. धर्म, जाति के प्रतीक समझे जाएंगे.

निचले तबके से आने वाले शिवाजी राव गायकवाड़ नाम के इस सितारे की स्वीकार्यता का दायरा उतना व्यापक नहीं रह पाएगा. राजनीति में आने पर उन की अपने प्रशंसकों से दूरी बन जाएगी. विपक्ष उन की जाति का सवाल उठाएगा. जैसाकि कबाली फिल्म में सोशल मीडिया पर उन के दलित होने का प्रचार किया गया. उन पर राजनीति से प्रेरित हमले होंगे. नीचे गिराने के लिए हर तरह से कीचड़ उछाला जाएगा. उन का हाल चिरंजीवी जैसा हो सकता है.

आज जब देश को नई सोच वाले क्रांतिकारी युवा नेताओं की जरूरत है, बैंगलुरु ट्रांसपोर्ट सेवा में बस कंडक्टर की नौकरी से अपना कैरियर शुरू करने वाले 67 वर्षीय रजनीकांत मिस्टर इंडिया या मिस्टर तमिलनाडु बन पाएंगे, मुश्किल है. फिल्मों के चमत्कार वास्तविक जीवन से बहुत भिन्न है. राजनीति की जमीन बड़ी खुरदरी है, जहां बेशुमार समस्याओं की हकीकत से रूबरू होना पड़ता है. इस के लिए लकीर के फकीर नहीं, कुछ अलग नया करने वाले बदलाव की सोच और व्यवस्था में परिवर्तन  के लिए माद्दा रखने वाले हीरो चाहिए.

अरुंधति की मेहरबानी

गुजरात के एक नए हीरो और युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को चुनाव लड़ने के लिए मशहूर और विवादित लेखिका अरुंधति राय ने 3 लाख रुपए दिए थे. यह अहम बात मंदिर, जनेऊ, मुगल और ऊंचनीच के शोर में दब कर रह गई. बड़गाम आरक्षित सीट से कांग्रेस के समर्थन से निर्दलीय लड़े जिग्नेश को यह बौद्धिक समर्थन अर्थरूप में अरुंधति ने दे कर एक संभावना को जिंदा रखने की ही कोशिश की थी.

आमतौर पर राजनीति से एक तयशुदा दूरी बना कर चलने वाली अरुंधति अहिंसा को हथियार नहीं मानतीं. दलित हितों की हिमायत करती रहने वाली इस बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका ने जता ही दिया कि लेखक इस तरह भी मदद कर सकते हैं. जिग्नेश ने क्राउड फंडिंग के जरिए 10 लाख रुपए जमा किए थे जिस में सब से बड़ा हिस्सा अरुंधति का था. हालांकि, इस पर किसी ने यह कह डाला कि अभी तो जिग्नेश को पाकिस्तान से भी पैसा मिलेगा.

हैप्पी बर्थडे दीपिका पादुकोण : खूबसूरती और अदाकारी का सुहाना सफर

अपनी हर फिल्म के साथ बैक टू बैक हिट साबित होने वाली दीपिका पादुकोण आज (5 जनवरी) को अपना 32वां जन्मदिन मना रही हैं. दीपिका पादुकोण का 32वां जन्मदिन खूब चर्चा में है. इसकी वजह भी खास है, चर्चा है कि श्रीलंका में दीपिका अपने जन्मदिन के खास मौके पर रणवीर सिं‍ह के साथ सगाई कर सकती हैं.

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आइये दीपिका के इस खास दिन पर जानें उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें –

अभिनेत्री दीपिका का जन्म डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में 5 जनवरी 1986 को हुआ. वह बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण की बेटी हैं. बेंगलुरू में पली-बढ़ी दीपिका की मातृभाषा कोंकणी है. उन्होंने बचपन में ही राष्ट्रीय स्तर की चैंपियनशिप में बैडमिंटन खेला था. इसके बाद उनका मन खेल से हट गया और उन्होंने बैडमिंटन को पीछे छोड़ मौडलिंग को अपना करियर चुना.

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दीपिका ने मौडलिंग में सफलता प्राप्त करने के बाद अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा. सबसे पहले उन्होंने हिमेश रेशमिया के पौप एल्बम ‘आप का सुरूर’ में गीत ‘नाम है तेरा’ से अभिनय की शुरुआत की.

इसके बाद उन्होंने 2006 में अभिनेता उपेंद्र के साथ कन्नड़ फिल्म ‘ऐश्वर्या’ में काम किया. फिर बौलीवुड में उनकी पहली फिल्म ‘ओम शांति ओम’ (2007) ने उन्हें रातोंरात शोहरत दिलाई. फराह खान निर्देशित ‘ओम शांति ओम’ में दीपिका को खूब पसंद किया गया. यह फिल्म भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सुपरहिट साबित हुई. इस फिल्म के लिए दीपिका को बेस्ट फीमेल डेब्यू अवार्ड मिला.

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‘ओम शांति ओम’, के अलावा  ‘बचना ऐ हसीनो’ , ‘चांदनी चौक टू चाइना’, ‘लव आज कल’, ‘हाउसफुल’ ‘दम मारो दम’, ‘आरक्षण’, ‘देसी ब्वायज’, ‘कौकटेल’, ‘रेस 2’, ‘ये जवानी है दीवानी’, ‘चेन्नई एक्सप्रेस’, ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसी कई सारी फिल्मों में अपनी बेहतरीन अदाकारी दिखा चुकी हैं. दीपिका को अभिनय के साथ-साथ नृत्य में भी दिलचस्पी है जिसके चलते फिल्मों में उनके नृत्य को भी काफी सराहा गया.

सिर्फ बौलीवुड ही नहीं बल्कि दीपिका हौलीवुड में भी कदम रख चुकी हैं. दीपिका ने फिल्म ‘ट्रिपल एक्स : रिटर्न औफ द जेंडर केज’ से 2017 में डेब्यू लिया. इस फिल्म में दीपिका और हौलीवुड स्टार विन डीजल की जोड़ी को काफी पसंद किया गया.

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दीपिका के चाहने वालों की बात करें तो उनकी फैन फौलोविंग सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक छाई है. इसका अंदाजा उनके ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर बने फैन क्लब से लगाया जा सकता है. दीपिका जितनी शानदार एक्ट्रेस हैं उतनी ही नेक दिल इंसान भी हैं. दीपिका पादुकोण यंग एक्टर्स को उत्साहित करने के लिए कई कदम उठाती देखी गई हैं. दीपिका ने आलिया भट्ट जैसी एक्ट्रेस को खत लिखकर कहा था कि वह उनकी सबसे बड़ी फैन हैं.

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दीपिका ना सिर्फ दर्शकों बल्कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों को भी अपनी अदायगी और विनम्र स्वभाव से दीवाना बना चुकी हैं. दीपिका का नाम अब बौलीवुड की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली अभिनेत्रियों में शुमार हो गया है. जिस 100 करोड़ में शामिल होने के लिए सभी एक्टर्स तरसते हैं उस क्लब में दीपिका अब तक पांच फिल्में दे चुकी हैं. ‘ओम शांति ओम’ से लेकर ‘बाजीराव-मस्तानी’ तक दीपिका सुपरहिट फिल्मों की लाइन लगा चुकी हैं.

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दीपिका जल्द ही पद्मावती में नजर आएंगी. इस फिल्म को लेकर पिछले साल से ही विवाद चल रहा है. सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली से फिल्म का नाम पद्मावती से पद्मावत करने को कहा है. इसी के साथ फिल्म के गाने घूमर में भी बदलाव करने और कुछ सीन्स हटाने के लिए कहा है. कहा जा रहा है कि ये सारे बदलाव होने के बाद ही इस फिल्म के रिलीज डेट की घोषणा की जाएगी. खैर जो भी हो पर फिल्म के ट्रैलर से तो यही लग रहा है कि एक बार फिर से दीपिका अपनी एक्टिंग से सभी को दीवाना बनाने वाली हैं.

वकील की अवमानना

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने वकीलों की तेज आवाज में बहस करने की आदत पर घोर नाराजगी जताते उदाहरण भी दे डाले कि दिल्ली सरकार वाले मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के तर्क बेहद उद्दंड और खराब थे और अयोध्या विवाद में पैरवी कर रहे वकीलों का लहजा तो और भी खराब था. इस विरोधाभासी टिप्पणी से यह तय कर पाना मुश्किल है कि अदालत की घुड़की दलीलों के खोखलेपन पर थी या उन की तेज आवाज पर थी.

तेज आवाज में बहस करना वकीलों की आदत नहीं, बल्कि काबिलीयत मानी जाती है. निचली अदालतों में तो दलाल मुवक्किलों को यही दिखाने के लिए ले जाते हैं कि देखो, क्या जोरदार वकील है. इधर, दीपक मिश्रा की तल्खी से खफा राजीव धवन ने वकालत छोड़ने का ही फैसला कर लिया तो किसी ने नहीं कहा कि वकीलों की भी अपनी इज्जत होती है, वे वकालत छोड़ देंगे पर अपनी तेज आवाज पर पहरेदारी बरदाश्त नहीं करेंगे.

नसीहत पर फजीहत

भाजपा सांसद और अभिनेत्री किरण खेर ने बात तो पते की कही थी कि, जिस गाड़ी में पहले से ही 3 लड़के बैठे थे उस में पीडि़ता को बैठने से परहेज करना चाहिए था.  चंडीगढ़ गैंगरेप के मामले में बोल रहीं किरण की मंशा दरअसल लड़कियों को एहतियात बरतने की सलाह देने की ही रही होगी कि उन्हें बेवजह के जोखिम उठाने के बजाय सुरक्षित विकल्प अपनाने चाहिए.

जब भी कहीं से गैंगरेप की खबर आती है तो हर किसी की पहली प्रतिक्रिया इसी तरह की रहती है. यह प्रतिक्रिया वादियों को रास नहीं आई. सोशल मीडिया पर किरण की जम कर खिंचाई हुई जिस का सार यह था कि हादसों के डर से सड़क पर चलना तो नहीं छोड़ा जा सकता. इस पर सफाई देने के लिए वे मजबूर हो गईं तो सहज लगा कि सलाह देना भी आजकल दुश्वार हो गया है.

मरोड़ दी आध्यात्म की टांग

आर्ट औफ लिविंग का हुनर और आकर्षक आयुर्वेदिक दवाइयां बेच रहे आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर किस कोने में खिसियाए से बैठे अपना गम मिटा रहे हैं, यह किसी को नहीं पता पर यह हर किसी को मालूम है कि उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बुरे तरीके से लताड़ते हुए जता दिया था कि बातबात में सुलह की सरपंची ठीक नहीं होती.

हुआ यों था कि रविशंकर को गलतफहमी हो आई थी कि अगर पहल और मध्यस्थता की जाए तो राममंदिर विवाद सुलझ भी सकता है. जोशजोश में वे लखनऊ जा कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अयोध्या के संतों, महंतों और मुसलिम धर्मगुरुओं से मिले भी. इस पर मोहन भागवत ने सर्द लहजे में इशारा कर दिया कि वे मंदिर विवाद के फटे में टांग न अड़ाएं. इस बेइज्जती से रविशंकर को सुकून से रहने का फार्मूला मिल गया कि उन्हें मंदिर विवाद सुलझाने के लिए तो पैदा नहीं किया गया था.

भरिए हौसलों की उड़ान

कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक हासिल कर चुके संग्राम सिंह भारतीय पहलवान और अभिनेता हैं. उन्होंने हाल ही में पहली के डी जाधव इंटरनैशनल रैसलिंग चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया है.

एक बातचीत में संग्राम सिंह ने बताया, ‘‘मैं अब दूरदर्शन चैनल पर एक कार्यक्रम ‘हौसलों की उड़ान’ को होस्ट करने जा रहा हूं. यह शो अपनेआप में अलग है जो लोगों, खासकर, बच्चों को अपनी राह खुद बनाने के लिए प्रेरित करेगा.’’

यह किन लोगों के हौसलों की उड़ान है? पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘यह कार्यक्रम अलगअलग खेलों में नाम कमा चुके खिलाडि़यों के संघर्ष से ले कर उन की उपलब्धियों पर आधारित है जिस में कई नामचीन खिलाड़ी अपनी जिंदगी के अनछुए किस्से दर्शकों के सामने रखेंगे.’’

उन्होंने आगे बताया, ‘‘इस शो में बिलियर्ड्स के महान खिलाड़ी गीत सेठी, हौकी के वेटरन खिलाड़ी अजीतपाल सिंह, फुटबौलर बाइचुंग भूटिया, जिमनास्ट दीपा कर्माकर, पहलवान साक्षी मलिक, मुक्केबाज एम सी मैरीकौम के अलावा और भी खिलाडि़यों की जिंदगी में झांकने की कोशिश की जाएगी.

‘‘हम ने अलगअलग खेलों के दिग्गज खिलाडि़यों को इस शो में शामिल करने की कोशिश की है ताकि रोचकता बनी रहे. हम ने उन की खेलजिंदगी के अला उन बातों को भी दिखाया है जिन से जनता अनजान है.’’

इस का मकसद क्या है? पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘बिना किसी लक्ष्य के हमारी जिंदगी कोई माने नहीं रखती और जब कोई हस्ती अपनी सकारात्मक बातों को सब से शेयर करती है तो उस का असर बहुत ज्यादा पड़ता है. इसी मकसद को ध्यान में रख कर यह शो तैयार किया है.’’

इस तरह के कार्यक्रम शुरू होना देश के उन दर्शकों के लिए अच्छी बात है जो क्रिकेट के अलावा भी भारत में प्रचारित दूसरे खेलों में रुचि रखते हैं. जो बच्चे खेलों में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं उन के लिए ऐसे कार्यक्रम मार्गदर्शक साबित हो सकते हैं.

जिम्मेदार कौन : नीतिशा की मौत की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा

आस्ट्रेलिया के एडिलेड शहर में पैसिफिक स्कूल गेम्स में भाग लेने के लिए अलगअलग देशों से तकरीबन 4 हजार बच्चों को बुलाया गया था. भारतीय स्कूल महिला फुटबौल टीम भी पैसिफिक स्कूल गेम्स चैंपियनशिप अंडर-18 में हिस्सा लेने के लिए गई हुई थी.

खेल की समाप्ति के बाद इन में से कुछ बच्चे एडिलेड के एक मशहूर समुद्री तट ग्लेनलग पर घूमने के लिए गए थे. इसी बीच अचानक एक तेज समुद्री लहर की चपेट में 5 बच्चे आ गए. वहां मौजूद गोताखोरों ने 4 बच्चों को तो बचा लिया पर दिल्ली की रहने वाली नीतिशा को नहीं बचा पाए. उस का शव अगले दिन निकाला गया.

क्या इसे महज हादसाभर मान कर भुला देना चाहिए? इन बच्चों की देखरेख व सुरक्षा की जिम्मेदारी किस की थी? भारत से भाग लेने के लिए इस आयोजन में 120 खिलाडि़यों का दल गया था. जाहिर है इस दल के साथ कई अधिकारी भी गए थे.

भारतीय अधिकारियों की लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये अपने परिवार के साथ घूमनेफिरने व मौजमस्ती करने में व्यस्त थे. अधिकारियों की सांठगांठ इतनी मजबूत है कि ये अपने परिवार को साथ ले गए थे जबकि परिवार को ले जाने की अनुमति के लिए नियमकायदे बनाए गए हैं और जब ये अधिकारी परिवार के साथ गए हैं तो जाहिर है नियमकायदों के अनुरूप ही गए होंगे या फिर नियमकायदों की धज्जियां उड़ा कर गए होंगे.

खैर, सवाल यह नहीं है कि वे किस के साथ गए थे, अहम सवाल यह है कि जब इन के जिम्मे इन बच्चों की जिम्मेदारी थी तो इन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी क्यों नहीं निभाया?

पैसिफिक स्कूल गेम्स का आयोजन आस्ट्रेलिया सरकार और आस्ट्रेलियाई स्कूल खेल ने किया था. इसलिए यह आयोजकों की भी जिम्मेदारी थी. इस घटना से साफ जाहिर है कि आयोजक प्रतियोगियों के प्रति कितने गंभीर व संवेदनशील हैं. इस से पहले भी पैसिफिक स्कूल गेम्स की अव्यवस्था को ले कर सवाल उठते रहे हैं पर इस पर किसी ने कोई कार्यवाही नहीं की. इस घटना के बाद मातापिता के जेहन में सवाल उठना लाजिमी है. आखिर कोई मातापिता कैसे अपने बच्चों को दूसरे के जिम्मे किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए भेजेगा? एक तरफ बच्चों का कैरियर दिखता है तो दूसरी तरफ मन में यह भी सवाल कौंधने लगता है कि कैरियर बनाने के लिए बच्चे को अपने से दूर तो भेज रहे हैं लेकिन कहीं उसे गंवा न बैठे. संबंधित अधिकारियों के लापरवाहीभरे रवैए के कारण ही मातापिता यहसब सोचने पर मजबूर हुए हैं.

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