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इस बैंक का एटीएम इस्तेमाल करने के लिए नहीं होगी कार्ड और पिन की जरूरत

सरकारी बैंक सेक्टर हो या प्राइवेट बैंक सेक्टर सभी नये साल के मौके पर अपने ग्राहकों के लिए तोहफे के तौर पर नई-नई सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं. ऐसे में यस बैंक भी अपने ग्राहकों को नई सुविधा देने की तैयारी कर रहा है.

प्राइवेट सेक्टर का यस बैंक अपने ग्राहकों को अब एक ऐसा एटीएम कार्ड देगा, जिसे चलाने के लिए उन्हें न कार्ड की जरूरत होगी और न ही किसी पिन की. ऐसा संभव हो सकेगा उस नई तकनीक से जो यस बैंक को अपने नए करार के जरिए मिल रही है.

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यस बैंक ने नियरबाय टेक्नोलौजीज के साथ किया करार

दरअसल यस बैंक ने फिनटेक क्षेत्र की स्टार्टअप नियरबाय टेक्नोलौजी के साथ करार किया है. इस करार के तहत नियरबाय टेक बैंक पर आधारित यस बैंक के ग्राहकों को एक ऐसा एटीएम मुहैया कराएगा जिसमें कार्ड या पिन की जरूरत नहीं होगी. ऐसे में बैंक ग्राहक रिटेलरों के पास पैसा जमा करा सकेंगे और निकाल सकेंगे.

यस बैंक और नियरबाय ने इस सेवा को शुरू करने के लिए नेशनल पेमेंट्स कौरपोरेशन आफ इंडिया के साथ काफी अच्छी तरह जुड़कर काम किया है.

नियरबाय ने आधार सेवाओं के बारे में जागरूकता और इसको लोकप्रिय बनाने के लिए रिटेलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया से करार किया है. इसके तहत ग्राहकों को जागरूक किया जाएगा और यह सेवा देश के दूरदराज स्थानों तक पहुंचाई जाएगी.

नियरबाय टेक्नोलौजीज के संस्थापक आनंदकुमार बजाज ने कहा कि इस सर्विस के साथ हमारा उद्देश्य पेमेंट के लिए सुविधा प्रदान करना है.

डिजिटल अधिकारी रितेश पई ने कहा कि इस गठजोड़ के जरिये हम कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था के सपने को पूरा करना चाहते हैं.

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कैसे काम करेगा ये एटीएम

पेनियरबाय आधार एटीएम यस बैंक और बिजनेस कौरस्पौन्डेंट के जरिये उपलब्ध होगा. इसके नेटवर्क में 40,000 टच पौइंट होंगे.

यस बैंक ने बयान में कहा कि पेनियरबाय मोबाइल एप्लिकेशन का इस्तेमाल स्मार्टफोन पर किया जाएगा. इसमें रिटेलर ग्राहकों के लिए आधार एटीएम-आधार बैंक शाखा के रूप में काम करेगा और नकदी जमा कराने या निकालने की सुविधा दी जा सकेगी.

आधार नंबर और उंगली की छाप का इस्तेमाल कर ग्राहक नकदी निकाल सकेंगे या किसी तरह का दूसरा ट्रांजेक्शन कर सकेंगे.

बर्थडे स्पेशल : कपिल देव के बेमिसाल 59 साल

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और सर्वश्रेष्ठ हरफनमौला खिलाड़ियों में शुमार कपिल देव आज (6 जनवरी) अपना 59वां जन्मदिन मना रहे हैं. आज से 59 साल पहले दुनिया को कपिल देव के रूप में ऐसा क्रिकेट खिलाड़ी मिला जिसने बतौर कप्तान, बल्लेबाज, गेंदबाज ऐसा प्रदर्शन किया कि सब देखते रह गए. यूं तो कपिल देव के नाम कई बड़ी उपलब्धियां दर्ज हैं, लेकिन उनकी फिटनेस का जवाब नहीं.

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स्विंग गेंदबाजी, बेहद चुस्त फील्डिंग और ताबड़तोड़ बल्लेबाजी ने उन्हें दुनिया का सबसे बेहतरीन औल राउंडर और आक्रामक खिलाड़ी बनाया. मालूम हो कि कपिल देव को अर्जुन पुरस्कार, पद्म श्री, पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है.

यहां जानिए टीम इंडिया को उसका पहला विश्वकप दिलाने वाले कपिल पाजी के बारे में कुछ खास बातें –

कपिल का पूरा नाम कपिलदेव रामलाल निकंज है. कपिल 6 जनवरी 1959 में चंडीगढ़ में पैदा हुए थे. उनका परिवार 1947 में पाकिस्तान से भारत आया था. उनकी 4 बहनें और 2 भाई अविभाजित पाकिस्तान में ही पैदा हुए थे.

कपिल देव शुरुआत से ही क्रिकेट में दिलचस्पी रखते थें. 15 साल की उम्र में उन्हें एक खास क्रिकेट कैंप के लिए चुना गया जिसमें वह टैलेंटेड युवा क्रिकेटर बुलाए गए.

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1975 में हरियाणा के लिए कपिल ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू किया और पंजाब के खिलाफ पहले ही मैच में 6 विकेट लिए. पहले ही सीजन में कपिल ने 30 मैचों में 121 विकेट ले लिए.

1977-76 में कपिल ने एक ही मैच में 10 विकेट लिए. अपने इस शानदार प्रदर्शन के चलते वह दिलीप ट्रौफी, ईरानी ट्रौफी में भी चुने गए.

1978 में पाक में हुई सीरीज के दौरान कपिल की बाउंसर्स ने पाकिस्तानी बल्लेबाजों को परेशान कर दिया. सीरीज के तीसरे मैच में कपिल ने सिर्फ 33 गेंदों में हाफ सेंचुरी लगाई.

1979 में औस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू टेस्ट सीरीज में उन्होंने 28 विकेट झटके और 212 रन भी बनाए. इसी साल कपिल ने पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में एक ही मैच में 10 विकेट लिए. इस सीरीज के दौरान कपिल टेस्ट में 100 विकेट और 1000 रन बनाने वाले सबसे युवा खिलाड़ी बने.

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भारत के औस्ट्रेलिया दौरे के दौरान एक मैच में कपिल ने चोट के बावजूद बेहतरीन गेंदबाजी की और सिर्फ 17 ओवर में 5 विकेट लेकर भारत को मैच जिता दिया.

1981-82 में इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज में कपिल ने 318 रन बनाए और 22 विकेट लेकर मैन औफ द सीरीज बने.

1983 के वनडे विश्वकप में भारत की कप्तानी कपिल के पास थी और टीम से किसी को ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं. जिम्बाबे के खिलाफ मैच में भारत ने 17 रन पर 5 विकेट खो दिए. लेकिन कपिल ने इसके बाद 175 रनों की यादगार पारी खेलकर न कि केवल भारत को जीत दिलाई बल्कि इतिहास भी रच दिया.

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इसी विश्वकप के फाइनल में भारत की पारी सिर्फ 183 रन पर सिमट गई. वेस्टइंडीज जैसी पक्की टीम तीसरी बार विश्व कप जीतने की कगार पर थी. ऐसे में कपिल ने विव रिचर्ड्स का कैच पकड़ कर मैच का रुख बदल दिया. इसके बाद शानदार गेंदबाजी के चलते भारत ने पहला विश्वकप जीता. इस जीत ने भारतीय क्रिकेट की तस्वीर ही बदल कर रख दी थी.

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1987 विश्वकप में कपिल की ईमानदारी की मिसाल दुनिया ने देखी. औस्ट्रेलिया ने भारत के खिलाफ मैच में 268 रन बनाए लेकिन टीम ने कहा कि उनका एक शौट छक्के की जगह चौका दिया गया. भारतीय कप्तान कपिल ने ये बात मान ली और कंगारूओं का स्कोर 270 कर दिया गया. खास बात ये है कि भारतीय टीम 269 रन ही बना पाई और सिर्फ 1 रन से मैच हार गई.

1991-92 सीजन में कपिल ने कारनामा किया और टेस्ट इतिहास में 400 विकेट लेने वाले दूसरे गेंदबाज बने. 1994 में कपिल ने क्रिकेट से जब रिटायरमेंट लिया तो उनके नाम सबसे ज्यादा 434 टेस्ट विकेट का रिकार्ड दर्ज था.

कपिल देव इकलौते ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने टेस्ट मैच में 400 से ज्यादा विकेट लिए और 5 हजार से ज्यादा रन बनाए. कपिल के नाम 131 टेस्ट में 434 विकेट और 5248 रन हैं.

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1999 से लेकर 2000 के बीच कपिल भारतीय क्रिकेट टीम के कोच भी रहे.

2007 में कपिल आईसीएल से बतौर चेयरमैन जुड़े. बीसीसीआई ने इसे विरोधी कदम माना और कपिल देव समेत आईसीएल से जुड़े सभी क्रिकेटरों की पेंशन बंद कर दी.

2008 में कपिल देव को सम्मान स्वरूप टेरिटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में शामिल किया गया.

सबसे बढ़कर 184 टेस्ट पारियों में बल्लेबाजी करते हुए कपिल देव कभी रन आउट नहीं हुए. हां, एक बार उन्हें जरूर टीम से निकाला गया था, जब दिसंबर 1984 में इंग्लैंड के खिलाफ कोलकाता टेस्ट में उन्हें ड्रौप कर दिया गया था. जिससे फैंस काफी नाराज हुए थे.

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कपिल देव ने साल 1980 में रोमी भाटिया से शादी की. दोनों की एक बेटी है अमिया देव.

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जल्द ही कपिल देव के जीवन पर एक फिल्म बनने वाली है, 1983 नाम की इस फिल्म में रणवीर सिंह कपिल देव का किरदार निभाते नजर आएंगे.

मोबाईल बैंकिंग इस्तेमाल करने वाले हो जाएं सावधान, वायरस का बढ़ रहा खतरा

डिजीटल बैंकिंग से एक तरफ जहां लोगों को सहूलियत हुई है, वहीं दूसरी तरफ कई मामलों में इसका दुरुपयोग भी बढ़ रहा है. ऐसे में इसका प्रयोग करते समय आपको सचेत रहने की जरूरत है. कई बार बैंकों की तरफ से भी आपको महत्वपूर्ण जानकारी किसी से भी शेयर नहीं करने की सलाह दी जाती है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट में एंड्रायड यूजर्स को अलर्ट किया गया है. यदि आप भी एंड्रायड यूजर हैं और आप बैंक का लेनदेन चेक करने के लिए मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करते हैं तो यह खबर आपके लिए है.

यह खबर आपके लिए इसलिए जरूरी है ताकि आप इसे पढ़कर आने वाले समय में आपके बैंक खाते में होने वाले किसी भी नुकसान से बच सकते हैं. यदि आपका खाता SBI, ICICI या HDFC बैंक में है और आपने संबंधित बैंक का ऐप डाउनलोड कर रखा है तो यह आपके लिए रिस्की साबित हो सकता है. ग्लोबल IT सिक्योरिटी कंपनी क्विक हील सिक्युरिटी लैब ने एक एंड्रायड बैंकिंग ट्रोजन के बारे में जानकरी दी है.

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इस खतरनाक ट्रोजन ने 232 से भी अधिक बैंकिंग एंड फाइनेंस ऐप को निशाने पर लिया हुआ है. इसका नाम एंड्रायड.बैंक.ए9480 (Android.banker.A9480) है. यह मालवेयर आपकी गोपनीय जानकारी को चुराने के लिए एसएमएस और फेक नोटिफिकेशन का सहारा ले रहा है. यह मालवेयर आपका इंटरनेट बैंकिंग लौगइन आईडी और पासवर्ड की जानकारी चुरा सकता है.

एक बार यह जानकारी किसी दूसरे के हाथ लगी तो यह बहुत ही रिस्की हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक फेक फ्लैश प्लेयर ऐप के जरिए भी आपको परेशान कर सकता है. इस खतरनाम मालवेयर की जद में HDFC, ICICI, IDBI, SBI और एक्सिस बैंक सहित कई बड़े बैंक शामिल हैं. रिपोर्ट में इसमें 12 बड़े बैंकिंग ऐप बताए जा रहे हैं. खासतौर से इस ट्रोजन का निशाना बैंकिंग और क्रिप्टो करेंसी ऐप हैं.

एक बार यूजर को टारगेट करने के बाद इस ट्रोजन के माध्यम से फेक नोटिफिकेशन लौगिन और पासवर्ड एंटर करने के निर्देश दिए जाते हैं, जिसके जरिए हैकर आपकी लौगइन से जुड़ी जानकारी को आसानी से चुरा सके. यूजर्स को सलाह दी गई है कि वह थर्ड पार्टी ऐप, SMS और मेल के जरिए मिलने वाले अनजान लिंक से बचकर रहें.

वीडियो : क्रिकेट से बाहर चल रहे सुरेश रैना सिंगिंग में बना रहे अपना करियर

जहां क्रिकेट पिच पर सुरेश रैना के फैंस उन्हें बेहद मिस कर रहे हैं और वापस आने को कह रहे हैं तो वहीं इस भारतीय बल्लेबाज ने खुद को कहीं और व्यस्त कर रखा है. बता दें कि पिछले कुछ समय से खराब फौर्म की वजह से भारतीय टीम से बाहर चल रहे क्रिकेटर सुरेश रैना अब अपने दूसरे हुनर पर फोकस कर रहे हैं.

ये तो आप सभी जानते हैं कि टीम इंडिया के क्रिकेटर सिर्फ बल्लेबाजी और गेंदबाजी में ही माहिर नहीं हैं बल्कि उनके अंदर दूसरे तरह के हुनर भी हैं कोई डांस में माहिर है तो कोई गाने में. पिछले काफी समय से क्रिकेट से बाहर सुरेश रैना इन दिनों अपनी गायकी पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. हाल ही उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो जारी किया है, जो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

इस वीडियो को महज 2 घंटे में 212,778 लोग देख चुके हैं और वहीं हजारों शेयर हो गए हैं. इस वीडियो में सुरेश रैना ‘सपनों के ननिहाल में’ गाने गाते नजर आ रहे हैं. इस वीडियो में उनके साथ पत्नी प्रियंका चौधरी भी साथ नजर आ रही हैं. रैना का यह गाना @redfmindia पर ब्रोडकास्ट होगा.

उनके गाने को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं और तारीफों के पुल बांध रहे हैं. गौरतलब है कि इससे पहले रैना ने 2015 में भी एक गाना ‘तू मिली सब मिला और क्या मांगू’ गाया था. इस गाने को भी फैंस ने खूब सराहा और शेयर किया था. सुरेश रैना के गायिकी के हुनर के बारे में उनके क्रिकेटर्स फ्रेंड्स तो जानते थे लेकिन अब उनके फैंस भी रूबरू हो रहे हैं.

रैना ने तू मिली सब मिला और क्या मांगू गाना फिल्म Meeruthiya Gangsters के लिए गाया था. सुरेश रैना की आवाज को सुनकर आप कहीं से भी ये अंदाजा नहीं लगा सकेंगे कि उनकी गायिकी में कोई कमी है. वह जो भी गाना गाते हैं पूरी इमोशंस के साथ गाते हैं.

2011 में सुरेश रैना स्टार प्लस के क एक अवौर्ड शो के दौरान भी 2 लाइनें ऐश्वर्या के लिए गुनगुनाई थी. रैना ने ऐश्वर्या के लिए गाना ‘मुझसे नाराज हो तो हो जाओ…लेकिन मुझसे यूं खफा-खफा न रहो..गाया था. हालांकि ये उन्होंने किसी स्टेज पर नहीं बल्कि शो को होस्ट कर रहे आयुष्मान खुराना के कहने पर गाया था. रैना के ताजा वीडियो से साफ जाहिर होता है कि अब उनकी गायिकी में काफी निखार आया है और वह गायिकी के क्षेत्र में भी अपना बेस्ट दे सकते हैं.

श्रद्धा कपूर के लिए 2018 की शुरूआत लेकर आया मनहूस खबर

श्रद्धा कपूर लंबे समय से साइना नेहवाल की बायोपिक फिल्म को लेकर चर्चा में रही हैं. वह साइना नेहवाल की बायोपिक फिल्म में साइना नेहवाल का किरदार निभा रही थी. साइना नेहवाल को यथार्थ परक ढंग से परदे पर निभा लेने के लिए श्रद्धा कपूर काफी तैयारी कर रही थीं. इसी सिलसिले में श्रद्धा कपूर दो तीन बार साइना से न सिर्फ मिली थी, बल्कि कुछ दिन उनके साथ बिताएं थे. मगर उनकी यह सारी मेहनत बेकार हो गयी है. क्योंकि साइना नेहवाल की बायोपिक बनाने वाले फिल्मकार अमोल गुप्ते ने इस फिल्म को हमेशा के लिए डिब्बे बंद कर दिया है.

2018 की शुरूआत में ही श्रद्धा कपूर के लिए साइना नेहवाल की बायोपिक फिल्म के बंद होने की बुरी खबर आयी है. सूत्रों के अनुसार 2017 में श्रद्धा कपूर की एक के बाद एक ‘‘ओ के जानू’’,‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ और ‘‘हसीना’’सहित तीन फिल्मों के लगातार असफल होने के बाद ही अमोल गुप्ते ने साइना नेहवाल की बायोपिक फिल्म को बंद करने का निर्णय लिया है. इसी के साथ श्रद्धा कपूर के करियर पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लग गया है.

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सूत्रों पर यकीन किया जाए, तो फिलहाल श्रद्धा कपूर के पास एक मात्र फिल्म ‘साहो’ है, जिसमें उनके साथ दक्षिण भारत के सुपर स्टार व ‘बाहुबली’ फेम अभिनेता प्रभाष है. जानकारों का मानना है कि ‘साहो’ से श्रद्धा कपूर के करियर पर कोई असर नहीं पड़ना है, क्योंकि हर कोई मानकर चल रहा है कि ‘साहो’ तो प्रभाष की फिल्म है. उधर 2017 में जिस तरह से श्रद्धा कपूर की तीन फिल्मों की बौक्स आफिस पर दुर्गति हुई है, उससे बौलीवुड का कोई भी फिल्मकार उनके साथ फिल्म बनाने को लेकर उत्सुक नजर नहीं आ रहा है.

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अब अपने इंस्टाग्राम स्टोरी को व्हाट्सऐप पर भी कर सकेंगे शेयर

फेसबुक अपने उपभोक्ताओं के लिए प्रतिदिन कुछ नया करता रहता है. इसी कड़ी में फेसबुक एक परीक्षण कर रहा है जिससे उसके उपभोक्ता अपनी इंस्टाग्राम ‘स्टोरीज’ को सीधे व्हाट्सऐप स्टेटस पर साझा कर सकेंगे. नए फीचर से उपभोगकर्ता अपनी सजावटी फोटो, वीडियो, जीआईएफ व्हाट्सऐप पर पोस्ट कर सकेंगे जो 24 घंटों के बाद अपने आप गायब हो जाएंगे.

30 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता

फेसबुक के एक प्रवक्ता के हवाले से बताया गया, ‘हम हमेशा से ऐसे तरीकों का परीक्षण करते रहे हैं, जो इंस्टाग्राम पर अनुभव बेहतर बनाता हो और उन लोगों से अपने पलों को साझा करने में आपको आसानी हो जो आपके लिए महत्व रखते हैं.’ फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग ने घोषणा की है कि ‘इंस्टाग्राम स्टोरीज’ और ‘व्हाट्सऐप स्टेटस’ के 30 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता हैं.

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स्नैपचैट के 17.3 करोड़ यूजर     

प्रतिद्वंदी ऐप स्नैपचैट के फीचर्स की नकल कर बनाए गए इस ऐप के उपभोक्ताओं की संख्या स्नैपचैट के 17.3 करोड़ उपभोक्ताओं की तुलना में लगभग दोगुनी हो चुकी है. आपको बता दें कि फेसबुक अपने यूजर्स के लिए समय-समय पर नए फीचर्स लौन्च करता रहता है. इससे पहले फेसबुक ने बच्चों के लिए ऐसा मैसेंजर ऐप पेश किया था, जिसका कंट्रोल अभिभावकों के हाथ में रहेगा.

पैरंटल कंट्रोल का विकल्प

इससे 12 साल से कम उम्र वाले बच्चों के लिए फेसबुक को और आसान बनाने के साथ ही ऐप में पैरंटल कंट्रोल (यानी बच्चे के फेसबुक मैसेंजर का कंट्रोल अभिभावक के हाथों में) का भी विकल्प है. इसकी मदद से अभिभावक अपने बच्चों की गतिविधियों की निगरानी कर सकेंगे और उसे जरूरत के हिसाब से कंट्रोल कर सकेंगे. इसकी लौन्चिंग के समय फेसबुक अधिकारी ने कहा ‘फेसबुक मैसेंजर किड्स को इसलिए लाया गया है ताकि 12 साल से कम उम्र वाले बच्चे अपने खास लोगों से जुड़े रह सकें. साथ ही उनके अभिभावकों को इस बारे में जानकारी रहे कि वे किससे जुड़े हुए हैं.

इस ऐप को 6 से 12 साल की उम्र के बच्चों के लिए बनाया गया है. अभिभावक बच्चों की कौन्टैक्ट लिस्ट को कंट्रोल करने के साथ ही किसी खास व्यक्ति से बच्चे के बात करने की परमिशन को भी डिसेबल कर सकते हैं.

सुरों के बादशाह ए आर रहमान का आज है जन्मदिन

संगीत एक ऐसी चीज है, जो व्यक्ति को मानसिक रूप से शान्ति पहुंचाती है. यही वजह है कि संगीत की दुनिया में कई ऐसे धुरंधर पैदा हुए हैं, जो लोगों के दिलों को छू लेते हैं. इन्हीं लोगों में से एक ऐसा नाम है जिसे भगवान का दर्जा हासिल है और यह नाम है, ए आर रहमान. ए आर रहमान संगीत की दुनिया के ऐसे बादशाह हैं, जिनकी हुकूमत ना सिर्फ देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चलती है.

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सभी उनके सामने इज्जत से सिर झुकाते हैं और ऐसी शख्सियत के धनी ए आर रहमान का आज 51वां जन्मदिन है. इस मौके पर हम आज आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जो बेहद कम लोग जानते हैं.

ए आर रहमान का असली नाम दिलीप कुमार है, जो आज संगीत की दुनिया में एक कंपोजर, म्यूजिक प्रोड्यूसर, सिंगर, सौन्ग राइटर और म्यूजिशियन सब कुछ है.

साल 1980 में ए आर रहमान ने अपना पहला TV डेब्यू दूरदर्शन के लिए बच्चों के प्रोग्राम वंडर बैलून से किया था. इसके बाद वे लोगों के बीच काफी पौपुलर हो गए, क्योंकि इस शो में उन्होंने चार अलग-अलग की बोर्ड से धुनें बजाई थी और उस समय उनकी उम्र मात्र 13 साल थी.

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ए आर रहमान ने स्कूल जाना 15 साल की उम्र में ही छोड़ दिया था, क्योंकि उनकी अटेंडेंस पूरी नहीं थी. उन्होंने स्कूलिंग भी कंप्लीट नहीं की है.

यह बात बहुत हैरान कर देने वाली है कि ए आर रहमान एक कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन ईश्वर ने उन्हें ऐसी कला दी है कि वे आज दुनिया के शिखर पर राज कर रहे हैं.

ए आर रहमान की शख्सियत से लोग इतने प्रभावित हुए हैं कि ओंटारियो कनाडा में एक सड़क का नाम ‘अल्लाह रखा रहमान’ रखा गया है, जो ए आर रहमान के नाम पर है.

जैसा कि सभी जानते हैं वह बौलीवुड के लिए ही नहीं, बल्कि हौलीवुड के लिए भी अपना म्यूजिक दे चुके हैं. जिसमें 127 आवर्स, स्लमडौग मिलेनियर, गौड औफ वार, मिलियन डौलर जैसी फिल्में शामिल है.

2007 में रहमान को लिम्का बुक औफ अवार्ड की ओर से इंडियन औफ द ईयर फौर कंट्रीब्यूशन टू पौपुलर म्यूजिक अवार्ड से नवाजा गया था.

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ए आर रहमान के पास 15 फिल्म फेयर अवार्ड हैं. इसके अलावा आज तक उन्हें 138 अवार्ड के लिए नौमिनेट किया गया है, जिसमें से उन्होंने 125 जीत दर्ज की हैं.

वे पहले एशियन हैं, जिन्हें औस्कर अवार्ड मिला है.

एयरटेल के लिए बनाई गई सिग्नेचर ट्यून को ए आर रहमान ने ही कंपोज किया था, जिसके डेढ़ सौ मिलियन डाउनलोड हुए थे.

ए आर रहमान का गाना टाइम्स के 10 बेस्ट साउंड ट्रेक्स में शामिल हुआ था, जो फिल्म ‘रोजा’ से था.

इसी के बाद 2009 में टाइम्स मैगजीन द्वारा वर्ल्ड मोस्ट इन्फ्लुएंशियल पीपल में ए आर रहमान का नाम शामिल किया गया.

ए आर रहमान को अब तक पांच बार डौक्टरेट की उपाधि से नवाजा गया है, इसके अलावा उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण अवार्ड भी भारतीय सरकार द्वारा दिए जा चुके हैं.

क्रौसफिट : फिटनैस का नया फंडा और युवाओं की बढ़ती दिलचस्पी

साल 1989 में आई फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक नया सुपरस्टार सलमान खान दिया था. सलमान खान ने फिल्म इंडस्ट्री को दिया फिट रहने का मंत्र. फिल्म ‘सूर्यवंशी’ में उन के सिक्स पैक ऐब्स ने लोगों को दीवाना बना दिया था.

इस के बाद तो फिल्म हो या टैलीविजन, हर जगह ऐसे मेल कलाकारों की डिमांड ज्यादा बढ़ गई, जिन का बदन गठीला होता था. बड़ा या छोटा परदा ही क्यों, शहरकसबों तक में जिम खुलने लगे थे, जहां नई उम्र के लड़के बौडी बनाने की मानो होड़ सी करने लगे थे. अब समय बदला है तो कसरत करने के तरीके भी बदलने लगे हैं. भारत में क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों के बढ़ते चलन और खिलाडि़यों की फिटनैस पर नौजवान नजर रखते हैं, उन के अपनाए गए तरीकों से ही वे खुद को फिट बनाए रखना चाहते हैं. इन्हीं तरीकों में से एक है क्रौसफिट तकनीक.

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बात साल 2000 की है. अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के सांताक्रूज में ग्रैग ग्लासमैन और लौरेन जेनई ने क्रौसफिट नाम से एक फिटनैस ब्रांड की शुरुआत की थी. इसे ट्रेनिंग करने का मौडर्न वर्जन भी कह सकते हैं.

क्रौसफिट की खासीयत यह है कि इस तकनीक में लोगों को कुदरत से जोड़ कर ट्रेनिंग दी जाती है यानी सभी ऐक्सरसाइज खुले आसमान के नीचे की जाती हैं. साथ ही, लोगों को ‘सेहतमंद खाएं और अच्छा खाएं’ की सलाह दी जाती है. इस के अलावा उन्हें किसी तरह का सप्लीमैंट फूड लेने से भी मना किया जाता है.

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क्रौसफिट तरीके से ऐक्सरसाइज करने से लोग कम समय में अपनी बौडी को फिट रख सकते हैं. इस से मसल्स, स्टैमिना, शरीर की अंदरूनी ताकत यानी बौडी पावर को बढ़ाने में अच्छी मदद मिलती है. चूंकि ये ऐक्सरसाइज खुले आसमान के नीचे कराई जाती हैं, इसलिए लोगों को ताजा हवा और औक्सिजन भरपूर मात्रा में मिलती है.

क्रौसफिट तकनीक में लोगों को कार्डियो, वेट ट्रेनिंग, बौडी बैलैंस के साथ रनिंग और जंपिंग भी सिखाई जाती है. कुछ फिटनैस ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर 30 मिनट तक क्रौसफिट तरीके से ऐक्सरसाइज कर ली जाए, तो इस से 5 सौ कैलोरी आसानी से कम की जा सकती है. क्रौसफिट तकनीक से आदमी तन से ही फिट नहीं रहता है, बल्कि मन से भी हिट रहता है.

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इस तरह की कसरत के बारे में फरीदाबाद में ‘फिटकेयर इंडिया’ के कोच और स्टेट लैवल तक मुक्केबाजी मुकाबलों में हिस्सा ले चुके संजय कुमार ने बताया, ‘‘क्रौसफिट वर्कआउट में आमतौर पर हाई लैवल की ऐक्सरसाइज कराई जाती हैं, जो प्रोफैशनल वेटलिफ्टरों, जिमनास्ट या दूसरे खेलों के खिलाडि़यों को ट्रेनिंग देने में काम आती हैं.

‘‘लेकिन इस के भी कई लैवल हो सकते हैं, जिन में नए सीखने वालों को बौडी की ताकत, उम्र वगैरह को ध्यान में रख कर उन्हें कसरत कराई जाती है. जहां तक इस को सीखने की उम्र का सवाल है, तो यह कसरत करने वाले की फिटनैस पर निर्भर करता है. हां, 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे इस को शुरू कर सकते हैं.

‘‘क्रौसफिट तकनीक से कसरत करने का तरीका जिम में कसरत करने से अलग होता है. इस में महंगे उपकरणों की जरूरत नहीं पड़ती है और चूंकि यह खुले मैदान में कराई जाती है, इसलिए कसरत करने वाले को कुदरती औक्सिजन भी मिलती रहती है.’’

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क्रौसफिट तकनीक से कसरत करने में खानपान का भी खासा खयाल रखा जाता है. संतुलित भोजन करना बहुत जरूरी होता है, जिस से शरीर को सही ऊर्जा भी मिलती रहे.

मुंबई में ‘आइडियल बौडी फिटनैस’ नाम से जिम चला रही फिटनैस कोच अंजू गुप्ता ने बताया, ‘‘सिर्फ कसरत करने से कुछ नहीं होता. कसरत तो 20 फीसदी काम करती है, जबकि 80 फीसदी खानपान पर निर्भर करता है. सब से पहले तो यह तय करना होता है कि आप का टारगेट क्या है. उसी के मुताबिक खानपान के बारे में बताया जाता है.

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‘‘बहुत से लोग पतला होने के लिए या शरीर को छरहरा बनाने के लिए खानापीना छोड़ देते हैं, जो गलत है. हमारे परिवारों में एक दिक्कत यह है कि लोग दिनभर काम करते हैं और रात को जब इकट्ठा होते हैं, तो पूरा परिवार एकसाथ खाना खाता है, जो पूरा मील होता है, जबकि रात के खाने को दिन के खाने के हिसाब से कम करना चाहिए, क्योंकि रात को हम आराम ज्यादा करते हैं.‘‘आमतौर पर बिस्तर पर जाने से 4 घंटे पहले हमें खाना खा लेना चाहिए. उस में भी प्रोटीन की मात्रा सही हो तो बेहतर है. खाने में सलाद का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा हो. दही खाने के बजाय दूध पी लें. दही दिन के खाने में ही लें.

‘‘एक बार में ज्यादा खाने से बेहतर है कि धीरेधीरे थोड़ेथोड़े अंतराल पर कम खाना खाएं. दिन में अगर 3 बार में खाना खाते हैं तो उसी मील को आप 6 बार कर दें.’’

चूंकि क्रौसफिट में कराई जाने वाली कसरतें ज्यादा ताकत मांगती हैं और थोड़ी मुश्किल होती हैं, इसलिए इन्हें शुरू करने से पहले अगर माहिर डाक्टर की सलाह ले ली जाए तो अच्छा होता है. अगर किसी को कोई बड़ी बीमारी है तो उसे उसी तरीके से ट्रेनिंग दी जाती है और खानेपीने का खयाल भी रखा जाता है.

मेहमान बनते वक्त इन बातों का हमेशा खयाल रखना चाहिए

अपने किसी जानपहचान वाले या सगेसंबंधी के यहां छुट्टियां मनाने जाना एक सुखद अनुभव है. भागदौड़ भरी जिंदगी में वहां कई ऐसे पल मिल जाते हैं, जब हमें चैन की सांसें मिलती हैं. आबोहवा बदलने से बहुत सी परेशानियां तो अपनेआप ही चली जाती हैं. चाहे कोई भी उम्र हो, सब के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है. हम खुद को तरोताजा महसूस करने लगते हैं.

आसान शब्दों में कहें तो हमारा तनमन आने वाले समय के लिए रीचार्ज हो जाता है, इसलिए हमारा भी यह फर्ज है कि जिन लोगों के चलते हम को इतना सब मिला, उन के लिए हम भी थोड़ा सोचें.

चलिए, जिक्र करते हैं उन बातों की, जिन का हमें मेहमान बनते वक्त हमेशा खयाल रखना चाहिए:

* अगर हमारा कार्यक्रम लंबा है यानी 15-20 दिन या महीनेभर का है, तो कोशिश की जानी चाहिए कि उसी शहर में जाएं, जहां एक से ज्यादा रिश्तेदार हों. 2-2, 3-3 दिन तक बारीबारी से सब के यहां रुकते रहने से किसी पर ज्यादा बोझ भी नहीं पड़ेगा और सभी से मुलाकात भी हो जाएगी.

* छुट्टियों में किसी खास के पास जाने की आदत नहीं बनानी चाहिए. इस से उस के मन में आप के लिए नयापन लगातार कम होता जाता है, भले ही वह आप का मायका या पुश्तैनी घर ही क्यों न हो. समय के साथ लोगों की पसंद और प्राथमिकताएं लगातार बदलती हैं.

* बहुत से लोगों की आदत होती है कि किसी के भी घर पहुंच जाते हैं. लोग भले ही ऊपर से कुछ न कहें, लेकिन आज की गलाकाट प्रतियोगिता के जमाने में हर कोई इतना फ्री नहीं होता कि उस को बारबार किसी की खातिरदारी करने में दिलचस्पी हो, वह भी दूर के जानपहचान वालों की. खुद को किसी के सिर पर थोपने की लत अपनी इज्जत के लिए भी खतरा है.

* हम अपने घर में तो बच्चों को खूब रोकटोक करते हैं, लेकिन किसी के घर मेहमान बन कर जाते ही उन पर से ध्यान हटा लेते हैं. ऊपर से उन के सामने ही यह बोल कर कि ‘यह तो बहुत शरारती है’ एक तरह से उन को खुली छूट दे देते हैं.

मेजबान खुद आप को संभालने में जुटा हुआ है, ऐसे में अगर आप के बच्चे उस के घर में धमाचौकड़ी, तोड़फोड़ करते रहेंगे, तो झिझक के मारे वह उन को तो कुछ नहीं कहेगा, लेकिन आप के अगली बार न आने की बात मन में जरूर सोचने लगेगा.

* अकसर देखा गया है कि अपने से कम पैसे वाले मेजबान को मेहमान अपना रोब दिखाने का ‘सौफ्ट टारगेट’ समझ लेते हैं. आप कितने महंगे कपड़े पहनते हैं, कितने का खाते हैं. इस का गैरजरूरी हिसाब देना मेजबान के मन में आप के लिए नेगेटिव भाव पैदा करता है.

* मेजबान के बच्चों की तुलना ज्यादा नंबर लाने वाले अपने बच्चे से मत कीजिए. इस से वे बच्चे आप से कन्नी काटने लगेंगे. बच्चों को असहज देख उन के मांबाप भी असहज हो जाएंगे.

अगर आप मेजबान के बच्चों का सचमुच भला चाहते हैं, तो उन्हें कभीकभार दोस्त की तरह सलाह दे दें. अपने बच्चों के सामने इशारोंइशारों में छोटा कतई न दिखाएं.

* हर किसी का अपना स्वभाव होता है. हो सकता है कि किसी को ज्यादा लोगों से मिलनाजुलना पसंद न हो या वह आप से न मिलना चाहे. घर में जिन से आप की अच्छी अंडरस्टैंडिंग है, उन तक ही सीमित रहिए. इस से आप को भरपूर स्वागत का अनुभव होगा.

* जिस मेजबान की जो हैसियत है, उसे उस की जरूरत के हिसाब से उपहार दें. सभी जगह आधा किलो मिठाई का डब्बा ले कर चलने की आदत सही नहीं है. हर कोई आप से प्यार किसी न किसी उम्मीद के साथ ही करता है, इस सच को स्वीकार करना सीखें.

* मेजबान से बहुत ज्यादा प्यार जताना वह भी केवल शब्दों के जरीए, उन के मन में आप की इमेज पर बुरा असर डालेगा. सच्चा प्यार है तो उस को अपने काम से दिखलाइए, वरना बदलाव सामान्य रखिए. खोखली बातें कुछ दिनों तक ही अच्छी लगती हैं.

इन बातों का ध्यान रखें और देखें कि हर मेजबान खुद ही कहेगा, ‘‘आप का हमारे घर में स्वागत है.’’

जनता के मुद्दों पर आखिर सरकार कब देगी जवाब

धीरेधीरे ही सही कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी मंजे हुए नेता बनते जा रहे हैं. इस में उन की सियासी काबिलीयत का कितना योगदान है, इस पर बात करना थोड़ी जल्दबाजी होगी, लेकिन जब से हालिया केंद्र सरकार के 2 सियासी दांवों नोटबंदी और जीएसटी ने बैकफायर किया है, तब से वे बड़े विपक्षी नेता के रूप में बड़ी तेजी से उभरे हैं.

यह सब हुआ है गुजरात के विधानसभा चुनावों की वजह से जहां वर्तमान सरकार से नाराज जनता सड़कों व गलियों में उतर कर केंद्र सरकार तक की चूलें हिला रही है.

राहुल गांधी ने जनता की इस नब्ज को सही पकड़ा है. बेरोजगारी के मुद्दे पर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर हमला करते हुए कहा, ‘‘चीन में हर रोज 50000 नौकरियां पैदा होती हैं और भारत में केवल 450. ‘मेक इन इंडिया’ के बावजूद ये हालात हैं. किसान और गरीब को पानी नहीं मिलता, पूरा पानी चंद अमीरों को दिया जा रहा है.’’

एसोसिएशन फौर डैमोक्रेटिक रिफौर्म्स के एक सर्वे के मुताबिक गुजरात के वोटरों ने रोजगार, सार्वजनिक परिवहन सेवा, महिला सशक्तीकरण और सुरक्षा को ऊपर रखा है.

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गांवदेहात के वोटरों ने भी रोजगार, फसलों की सही कीमत, खेती के लिए बिजली और सिंचाई सुविधा को बेहतर करने की मांग रखी.

केवल गुजरात की बात की जाए तो इस बार पाटीदार आरक्षण का मुद्दा बहुत बड़ा मुद्दा बन कर उभरा है. हार्दिक पटेल समेत पाटीदार समाज के कई नेता भारतीय जनता पार्टी से खासा नाराज हैं.

लेकिन राहुल गांधी ने गुजरात में नोटबंदी और जीएसटी के नुकसान को ले कर उन मुद्दों को हवा दी जो ज्यादातर जनता के गले की फांस बन चुके हैं.

इस के अलावा राहुल गांधी यह भी साबित करना चाहते हैं कि कांग्रेस उन वंचितों के साथ खड़ी है, जिसे ‘गुजरात मौडल’ की तथाकथित कामयाबी के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ है.

लेकिन इस बार गुजरात चुनावी घमासान के दौरान कुछ खास भी हुआ है, जो है जनता की एकजुटता.

केंद्र सरकार की तानाशाही नीतियों के चलते एक बात जो सामने आई है वह यह है कि जनता सरकारों के खुद पर थोपे गए मुद्दों से परेशान हो गई है. उसे मंदिरमसजिद, हिंदूमुसलिम, गौरक्षा, पाकिस्तान, कश्मीर वगैरह से कोई मतलब नहीं है, बल्कि वह तो केंद्र सरकार के ऊलजलूल फैसलों नोटबंदी और जीएसटी के कहर से एकजुट हो कर तिलमिलाई सी अपने सवालों के जवाब नरेंद्र मोदी और उन के सिपहसालारों से मांग रही है. कम से कम राहुल गांधी, हार्दिक पटेल आदि की सभाओं से तो ऐसा लगा.

पहले नोटबंदी पर बात करते हैं. भारत के 500 और 1000 रुपए के नोटों को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को रात के 8 बजे अचानक चलन में नहीं रहने का ऐलान किया था. मीडिया ने जनता को समझाने के लिए इसे आसान भाषा में ‘नोटबंदी’ शब्द दिया था.

इस नोटबंदी का मकसद न केवल काले धन पर काबू पाना था, बल्कि देशभर में चल रहे जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था. लेकिन क्या नोटबंदी से सरकार के ये दोनों मकसद पूरे हो पाए

नोटबंदी होते ही जनता में अफरातफरी मच गई. बैंकों, डाकखानों के आगे नोट बदलवाने की लंबीलंबी लाइनें लग गईं. घंटों सड़कों पर खड़े रहने के बावजूद नोट बदलने की कोई गारंटी नहीं होती थी.

इतना ही नहीं, 18 नवंबर, 2016 को कारोबार चलाने के लिए पैसे नहीं होने की बात कहते हुए मणिपुर राज्य में अखबारों ने अपने दफ्तर बंद कर दिए थे.

इस सब के बावजूद भक्तों ने नरेंद्र मोदी के इस कड़े फैसले की तारीफ की थी, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि कुछ दिनों की परेशानी के बाद देश में रामराज्य आ जाएगा.

नोटबंदी के जरीए सरकार को भी पूरी उम्मीद थी कि नोटबंदी से बैंकों में जो पैसा आएगा वह सफेद होगा और जो बचा रहेगा यानी जमा न होगा उसे काला धन मान लिया जाएगा.

लेकिन ऐसा न हो पाया. सब से बड़ा नुकसान लोगों को लेनदेन के रूप में देखने को मिला. छोटेबड़े कारोबारी इस वजह से किसी तरह का लेनदेन नहीं कर पाए. जो कारोबारी नकद पर कारोबार करते थे, जब वे बेरोजगार हो गए, तो उन के यहां काम करने वाले लोग भी काम से हाथ धो बैठे.

यही हाल किसानों का भी हुआ. वे तो सरकार के इस फैसले के खिलाफ धरनेप्रदर्शन करते नजर आए.

सरकार के सामने जनता द्वारा पूछा गया लाख टके का सवाल यह था कि नोटबंदी के एक साल बाद भी क्या काला धन वापस लौटा  बैंकों में कितना पैसा आया  सरकार ऐसे सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं देना चाह रही और इस संबंध में ठोस आंकड़े नहीं दिखा रही है.

इस का नतीजा यह हुआ कि सभी विपक्षी दल पूरी एकजुटता से सरकार के नोटबंदी के फैसले को नाकाम और देश को पीछे धकेलने वाला साबित करने की कोशिश में लग गए.

सरकार को नोटबंदी के फैसले से कोई फायदा होता तो नहीं दिखा, पर उस ने फिर भी दूसरा दांव गुड्स ऐंड सर्विसेस टैक्स का खेलना शुरू कर दिया जिस का छोटा नाम है जीएसटी.

1 जुलाई, 2017 को यह टैक्स लागू होते ही देश में अलगअलग जगहों पर लगने वाले 18 टैक्स खत्म कर दिए गए. मतलब 1 जुलाई, 2017 से पहले हम किसी भी सामान को खरीदते या सेवा को लेते समय अलगअलग तरह के टैक्स सरकार को देते थे जैसे कि सेल्स टैक्स, औक्ट्रौय सर्विस टैक्स वगैरह. 1 जुलाई, 2017 के बाद सिर्फ जीएसटी ही रहा. पर यह जितना आसान दिख रहा था उतना था नहीं.

वजह, यह एक भ्रामक शब्द था. एक टैक्सेशन के नाम पर 2 तरह का टैक्स लगा. एक सैंट्रल टैक्स और दूसरा स्टेट टैक्स.

इतना ही नहीं, भारत जैसे देश में जहां हर जगह कंप्यूटर मुहैया नहीं हैं, वहां जीएसटी जैसी कंप्यूटरीकृत व्यवस्था लागू कर डाली गई. बहुत से छोटे कारोबारियों को कंप्यूटर की एबीसी भी नहीं मालूम थी. वे तो सिर धुनते दिख रहे हैं.

किसानों के लिए यह नुकसान का सौदा रहा. कहने को तो खाद्यान्न चीजों पर जीएसटी लागू नहीं किया गया, लेकिन इन को उगाने में इस्तेमाल किए जाने वाले हर कैमिकल व कीटनाशक जैसी चीजों पर यह टैक्स जम कर लगा, जिस से खेतीबारी में आने वाला खर्च बढ़ गया.

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जीएसटी का गड़बड़झाला धीरेधीरे इस कदर बढ़ता गया कि राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स का नया नाम दे दिया. गब्बर सिंह हिंदी फिल्म ‘शोले’ का वह दुर्दांत डाकू था जो अपने और खुद के गुरगों को पालने के लिए आसपास के गांवों से डाकू टैक्स वसूलता था.

उस का कहना था कि वह उन सब का रखवाला है और इस के लिए अगर वह गांव वालों से खानेपीने का सामान लेता है तो इस में गलत क्या है  मतलब जनता की गाढ़ी कमाई पर हाथ की सफाई. ऐसे मेहनती लोगों, जिन में छोटे कारोबारी, किसान, मजदूर और सब्जी बेचने वाले थे, को लूट कर गब्बर सिंह खुद को उन का मसीहा कहता था.

नोटबंदी और जीएसटी से वर्तमान सरकार की इमेज उस गब्बर सिंह जैसी हो गई है, जो भारत की जनता की गाढ़ी कमाई बैंकों में भर रही है जबकि लोगों को रोजमर्रा की चीजें खरीदने में परेशानी हो रही है. उसे अपना ही पैसा मांगने के लिए सरकार का मुंह ताकना पड़ रहा है.

गुजरात में विधानसभा चुनाव होने के मद्देनजर सरकार ने पेचीदा जीएसटी में नवंबर में काफी बदलाव किए हैं, लेकिन इस का फायदा होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि राहुल गांधी ने गुजरात के चुनावों को नया मोड़ दे दिया है.

उन्होंने इसे देशभर के कारोबारियों, किसानों, मजदूरों, कारखानेदारों की मुसीबतों का चुनाव साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. पहली बार जनता सरकार की नाकामी पर उस से सवाल कर रही है.

अब तक के हुए 16 लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो इन में ‘गरीबी हटाओ’, ‘भ्रष्टाचार’, ‘रिजर्वेशन’, ‘राममंदिर’, ‘गौरक्षा’, ‘पाकिस्तान’, ‘कश्मीर’, ‘मुसलिम’ वगैरह बेबुनियादी मसलों पर चुनाव लड़े जाते रहे. जनता को समझ में ही नहीं आता था कि उस की तरक्की की बात कब की जाएगी.

लेकिन नरेंद्र मोदी के नोटबंदी और जीएसटी वाले बेतुके फैसलों ने जनता को एकजुट कर दिया है. कारोबारी हों या मजदूर अब सब समझ गए हैं कि वे एकदूसरे के पूरक हैं. अगर वे एकजुट हो जाएं तो देश में बेरोजगारी की समस्या खुदबखुद खत्म हो जाएगी.

वे सभी सरकार से सवाल कर रहे हैं कि उन की गाढ़ी कमाई की सरकार छीनाझपटी क्यों कर रही है  लोग अपना पैसा घर में नहीं रख सकते. क्यों  सरकार ने तो जैसे हर पैसे वाले को कालाबाजारी साबित कर दिया है.

जनता का यह गुस्सा अगले लोकसभा चुनावों में नया रंग ला सकता है. अगर कारोबारी, किसान, मजदूर, कारखानेदार एक हो गए तो नेता, चाहे वे किसी भी दल के क्यों न हों, उन्हें फालतू के हवाहवाई मुद्दों में नहीं उलझा पाएंगे.

भले ही गुजरात के विधानसभा चुनाव लोकसभा जितने बड़े नहीं हैं, लेकिन वहां की जनता ने सरकार से जो सवाल पूछे हैं, उन के जवाब भारत का हर वह नागरिक जानना चाहता है, जो 18 साल से ऊपर का हो गया है और सही उम्मीदवार को वोट दे कर देश का भविष्य बदल सकता है.

15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ था. अगर चुनावों खासकर लोकसभा चुनावों की बात करें तो अब तक देश में 16 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इन सभी चुनावों में नेताओं द्वारा जानबूझ कर ऐसे मुद्दे हवा में उछाले जाते थे, ताकि लोग उन के भ्रामक नारोंवादों में उलझ कर अपनी समस्याओं के बारे में जबान ही न खोल पाएं.

साल 1952 और 1957 में हुए पहले व दूसरे लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू की अच्छी इमेज के चलते आसानी से जीत लिए थे. पाकिस्तान बनने के बाद भारत खुद संभल रहा था. जनता अंगरेजों से मिले जख्मों पर मरहम ही लगा रही थी.

लेकिन साल 1962 में हुए तीसरे लोकसभा चुनावों से पहले जवाहरलाल नेहरू ने विकास के क्षेत्रों में देश के एक नए रूप की कल्पना की थी.

पंचवर्षीय योजना का उदय भी इसी समय हुआ था, जिस का मसकद कुदरती संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल कर के लोगों की जिंदगी में सुधार लाना था.

जनता ने भी जवाहरलाल नेहरू की शख्सीयत से ऊपर उठ कर मुद्दों को तरजीह दी थी. आजादी की लड़ाई की खुमारी अब उतर चुकी थी.

उस समय भारत के पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध नहीं थे. अक्तूबर, 1962 में भारत और चीन की लड़ाई भी एक नए मुद्दे के रूप में उभरी थी. इस से कांग्रेस की साख को नुकसान हुआ था.

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साल 1966 में इंदिरा गांधी को जब देश का प्रधानमंत्री बनाया गया, तब कांग्रेस में भीतरी कलह बहुत ज्यादा थी. चीन और पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाइयों से भारत की अर्थव्यवस्था भी हिली हुई थी. इस से कुछ नए मुद्दे सामने आए थे, जिन में मिजो आदिवासी बगावत, अकाल, श्रमिक अशांति खास थे. रुपए में गिरावट के चलते भारत में गरीबी का आलम था. पंजाब में धार्मिक अलगाववाद के लिए भी आंदोलन चल रहा था.

5वीं लोकसभा के चुनाव कई माने में अहम थे. वे अपने समय से एक साल पहले 1971 में हो गए थे. इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ नारा दे कर चुनाव प्रचार किया था और 352 सीटों पर जीत हासिल की थी.

1971 में भारत पाकिस्तान की लड़ाई हुई थी और पाकिस्तान के 2 टुकडे़ हो कर बंगलादेश नया देश बन गया था. 12 जून, 1975 को चुनावी भ्रष्टाचार के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1971 के चुनाव को गैरकानूनी करार दिया था.

‘गूंगी गुडि़या’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी ने इस्तीफा नहीं दिया, बल्कि उन्होंने देश में इमर्जैंसी लगा कर पूरे विपक्ष को ही जेल में डाल दिया था.

इस का नतीजा साल 1977 में हुए छठे लोकसभा चुनावों में देखने को मिला. कांग्रेस की इमर्जैंसी इन चुनावों में मुख्य मुद्दा थी. 4 विपक्षी दलों कांग्रेस (ओ), भारतीय जनसंघ, भारतीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने जनता पार्टी के रूप में मिल कर चुनाव लड़ने का फैसला किया था.

जनता को इमर्जैंसी में की गई ज्यादतियों की याद दिलाई गई थी. ‘गरीबी हटाओ’ के बजाय ‘इंदिरा हटाओ’ के नारे लगाए गए. विपक्ष की एकजुटता रंग लाई और कांग्रेस को पहली बार हार का सामना करना पड़ा.

जनता पार्टी ने यह चुनाव तो जीत लिया था, पर उस की सत्ता पर पकड़ अच्छी नहीं थी. इस से कांगे्रस दोबारा मजबूत होने लगी थी. वह इंदिरा की इमेज को दोबारा बनाने में जुट गई.

चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने महंगाई, सामाजिक समस्या और कानून व्यवस्था को तरजीह दी. उस का नारा ‘काम करने वाली सरकार को चुनिए’ काम कर गया और 1980 के मध्यावधि लोकसभा चुनाव में उसे लोकसभा में 353 सीटें मिलीं.

31 अक्तूबर, 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी. इस से कांग्रेस के पक्ष में हमदर्दी की लहर बन गई थी. जब चुनाव हुए तो राजीव गांधी की अगुआई में कांग्रेस ने रिकौर्ड 404 लोकसभा सीटें जीतीं और राजीव गांधी की ‘मिस्टर क्लीन’ नेता की इमेज बनी. पर वे जल्दी ही बोफोर्स कांड, पंजाब के आतंकवाद, लिट्टे और श्रीलंका सरकार के बीच गृहयुद्ध जैसी समस्याओं से जूझने लगे.

90 के दशक में भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा राम जन्मभूमि व बाबरी मसजिद के मुद्दे पर रथयात्रा शुरू की गई.

10वीं लोकसभा में 1991 के चुनाव मध्यावधि चुनाव थे. इस के 2 खास मुद्दे मंडल आयोग की सिफारिशों का लागू करना और राम जन्मभूमि व बाबरी मसजिद विवाद थे. इन चुनावों को ‘मंडलमंदिर’ चुनाव भी कहा गया.

मंडल और राम मंदिर मुद्दे पर देश में एक तरह से दंगे हो गए थे. वोटरों का जाति और धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण किया गया था.

1996 के 11वें लोकसभा चुनावों तक हर्षद मेहता घोटाला, राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा की रिपोर्ट, जैन हवाला कांड और ‘तंदूर कांड’ मामलों ने पीवी नरसिंह राव सरकार की किरकिरी कर दी थी. कांग्रेस ने आर्थिक सुधारों की बात की, तो भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व व राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर वोटरों को रिझाया.

साल 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव हुए. पिछले लोकसभा चुनावों के महज डेढ़ साल बाद. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने.

कारगिल की लड़ाई भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में सकारात्मक हवा बना रही थी. अटल बिहारी वाजपेयी 13 अक्तूबर को फिर प्रधानमंत्री बने. इस के बाद भारत में ‘फील गुड फैक्टर’ की लहर बनाई गई. ‘भातर उदय’ का नारा जोर पकड़ रहा था.

भारतीय जनता पार्टी को लग रहा था कि वह साल 2004 के लोकसभा चुनावों में दोबारा सत्ता पा लेगी. यह टकराव सीधा अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी के बीच था. वैसे, जनता अपने आसपास के मुद्दों जैसे पानी की कमी, सूखे वगैरह के बारे में ज्यादा चिंतित दिख रही थी.

कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों की मदद और सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में 543 में से 335 सदस्यों का बहुमत हासिल किया. चुनाव के बाद इस गठबंधन को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का नाम दिया गया. सोनिया गांधी ने खुद प्रधानमंत्री बनना स्वीकार नहीं किया और वित्त मंत्री रह चुके डाक्टर मनमोहन सिंह को यह जिम्मेदारी दी गई.

साल 2009 में 15वीं लोकसभा के हुए चुनावों में कांग्रेस की अगुआई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को दोबारा सरकार बनाने का मौका मिला. डाक्टर मनमोहन सिंह दोबारा प्रधानमंत्री बने.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने आपसी विरोधों के बावजूद नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बना कर चुनाव लड़ने की ठानी. उस ने कांग्रेस के राज में हुए भ्रष्टाचार को सब से बड़ा मुद्दा बनाया. ‘अच्छे दिन आएंगे’ का नारा दिया.

भारतीय जनता पार्टी की यह रणनीति काम कर गई. 330 सीटों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सब से बड़ा घटक और 282 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी. इस सरकार के पिछले 3 सालों के काम और फैसले सब के सामने हैं.

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