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भरिए हौसलों की उड़ान

कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक हासिल कर चुके संग्राम सिंह भारतीय पहलवान और अभिनेता हैं. उन्होंने हाल ही में पहली के डी जाधव इंटरनैशनल रैसलिंग चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया है.

एक बातचीत में संग्राम सिंह ने बताया, ‘‘मैं अब दूरदर्शन चैनल पर एक कार्यक्रम ‘हौसलों की उड़ान’ को होस्ट करने जा रहा हूं. यह शो अपनेआप में अलग है जो लोगों, खासकर, बच्चों को अपनी राह खुद बनाने के लिए प्रेरित करेगा.’’

यह किन लोगों के हौसलों की उड़ान है? पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘यह कार्यक्रम अलगअलग खेलों में नाम कमा चुके खिलाडि़यों के संघर्ष से ले कर उन की उपलब्धियों पर आधारित है जिस में कई नामचीन खिलाड़ी अपनी जिंदगी के अनछुए किस्से दर्शकों के सामने रखेंगे.’’

उन्होंने आगे बताया, ‘‘इस शो में बिलियर्ड्स के महान खिलाड़ी गीत सेठी, हौकी के वेटरन खिलाड़ी अजीतपाल सिंह, फुटबौलर बाइचुंग भूटिया, जिमनास्ट दीपा कर्माकर, पहलवान साक्षी मलिक, मुक्केबाज एम सी मैरीकौम के अलावा और भी खिलाडि़यों की जिंदगी में झांकने की कोशिश की जाएगी.

‘‘हम ने अलगअलग खेलों के दिग्गज खिलाडि़यों को इस शो में शामिल करने की कोशिश की है ताकि रोचकता बनी रहे. हम ने उन की खेलजिंदगी के अला उन बातों को भी दिखाया है जिन से जनता अनजान है.’’

इस का मकसद क्या है? पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘बिना किसी लक्ष्य के हमारी जिंदगी कोई माने नहीं रखती और जब कोई हस्ती अपनी सकारात्मक बातों को सब से शेयर करती है तो उस का असर बहुत ज्यादा पड़ता है. इसी मकसद को ध्यान में रख कर यह शो तैयार किया है.’’

इस तरह के कार्यक्रम शुरू होना देश के उन दर्शकों के लिए अच्छी बात है जो क्रिकेट के अलावा भी भारत में प्रचारित दूसरे खेलों में रुचि रखते हैं. जो बच्चे खेलों में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं उन के लिए ऐसे कार्यक्रम मार्गदर्शक साबित हो सकते हैं.

जिम्मेदार कौन : नीतिशा की मौत की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा

आस्ट्रेलिया के एडिलेड शहर में पैसिफिक स्कूल गेम्स में भाग लेने के लिए अलगअलग देशों से तकरीबन 4 हजार बच्चों को बुलाया गया था. भारतीय स्कूल महिला फुटबौल टीम भी पैसिफिक स्कूल गेम्स चैंपियनशिप अंडर-18 में हिस्सा लेने के लिए गई हुई थी.

खेल की समाप्ति के बाद इन में से कुछ बच्चे एडिलेड के एक मशहूर समुद्री तट ग्लेनलग पर घूमने के लिए गए थे. इसी बीच अचानक एक तेज समुद्री लहर की चपेट में 5 बच्चे आ गए. वहां मौजूद गोताखोरों ने 4 बच्चों को तो बचा लिया पर दिल्ली की रहने वाली नीतिशा को नहीं बचा पाए. उस का शव अगले दिन निकाला गया.

क्या इसे महज हादसाभर मान कर भुला देना चाहिए? इन बच्चों की देखरेख व सुरक्षा की जिम्मेदारी किस की थी? भारत से भाग लेने के लिए इस आयोजन में 120 खिलाडि़यों का दल गया था. जाहिर है इस दल के साथ कई अधिकारी भी गए थे.

भारतीय अधिकारियों की लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये अपने परिवार के साथ घूमनेफिरने व मौजमस्ती करने में व्यस्त थे. अधिकारियों की सांठगांठ इतनी मजबूत है कि ये अपने परिवार को साथ ले गए थे जबकि परिवार को ले जाने की अनुमति के लिए नियमकायदे बनाए गए हैं और जब ये अधिकारी परिवार के साथ गए हैं तो जाहिर है नियमकायदों के अनुरूप ही गए होंगे या फिर नियमकायदों की धज्जियां उड़ा कर गए होंगे.

खैर, सवाल यह नहीं है कि वे किस के साथ गए थे, अहम सवाल यह है कि जब इन के जिम्मे इन बच्चों की जिम्मेदारी थी तो इन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी क्यों नहीं निभाया?

पैसिफिक स्कूल गेम्स का आयोजन आस्ट्रेलिया सरकार और आस्ट्रेलियाई स्कूल खेल ने किया था. इसलिए यह आयोजकों की भी जिम्मेदारी थी. इस घटना से साफ जाहिर है कि आयोजक प्रतियोगियों के प्रति कितने गंभीर व संवेदनशील हैं. इस से पहले भी पैसिफिक स्कूल गेम्स की अव्यवस्था को ले कर सवाल उठते रहे हैं पर इस पर किसी ने कोई कार्यवाही नहीं की. इस घटना के बाद मातापिता के जेहन में सवाल उठना लाजिमी है. आखिर कोई मातापिता कैसे अपने बच्चों को दूसरे के जिम्मे किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए भेजेगा? एक तरफ बच्चों का कैरियर दिखता है तो दूसरी तरफ मन में यह भी सवाल कौंधने लगता है कि कैरियर बनाने के लिए बच्चे को अपने से दूर तो भेज रहे हैं लेकिन कहीं उसे गंवा न बैठे. संबंधित अधिकारियों के लापरवाहीभरे रवैए के कारण ही मातापिता यहसब सोचने पर मजबूर हुए हैं.

बीड़ी सिगरेट के पैकेटों पर हैल्पलाइन नंबर

तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यह चेतावनी तंबाकू के सेवन से होने वाले नुकसान के प्रति बड़ी आबादी को प्रभावित कर चुकी है और यह नारा जनजन की जबान पर चढ़ चुका है. तंबाकू के प्रति इसी चेतावनी के असर के प्रभाव को देखते हुए सरकार ने सिगरेट तथा बीड़ी के पैकेट पर 85 प्रतिशत हिस्से तक उस के सेवन के दुष्प्रभाव का चित्र छापने का फैसला लिया था और अप्रैल 2016 से इसे अनिवार्य कर दिया था. लोगों की इस पर प्रतिक्रिया को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय उत्साह से एक कदम आगे बढ़ कर सभी पैकेटों पर टोलफ्री हैल्पलाइन नंबर छापने की योजना पर काम कर रहा है. इस हैल्पलाइन नंबर पर फोन करने से तंबाकू की लत छुड़ाने तथा इस से होने वाले दुष्प्रभाव की जानकारी दी जाएगी.

एक सरकारी आंकड़े में कहा गया है कि देश में 2017 में तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों की संख्या 6 प्रतिशत घटी है और अब यह 34.6 फीसदी रह गई है. हालांकि अब भी 19 प्रतिशत पुरुष, 2 प्रतिशत महिलाएं तथा 10.7 प्रतिशत वयस्क धूम्रपान का सेवन कर रहे हैं. जबकि 26.6 फीसदी पुरुष, 12.8 फीसदी महिलाएं और 21.4 प्रतिशत वयस्क अन्य रूप में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं.

सरकार को उम्मीद है कि हैल्पलाइन 1800227787 के सभी तंबाकू पैकेटों पर छपने से तथा अन्य चेतावनी लिखी जाने से तंबाकू का सेवन करने वालों की संख्या में कमी आएगी.

इन उत्पादों की कीमत बढ़ाने का तंबाकू उत्पाद करने वाले किसान विरोध कर रहे हैं और उन का कहना है कि इस पर रोक लगनी बंद होनी चाहिए क्योंकि इस से उन का कारोबार अत्यधिकरूप से प्रभावित हो रहा है.

बहरहाल, तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इस के इस्तेमाल को कम करने के लिए प्रभावी पहल आवश्यक है. सिगरेट और बीड़ी के बंडल पर जब उस के 85 फीसदी स्थान तक धूम्रपान के दुष्प्रभाव संबंधी चित्र छापने को कहा गया था तो उस का भी जम कर विरोध हुआ था लेकिन अब इस के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं.

धर्म के आधार पर बैंकिंग शुरू नहीं करेगी सरकार

देश में वोटबैंक की राजनीति चरम पर है. राजनीतिक दलों तथा सरकारों द्वारा समुदाय विशेष को लुभाने के लिए लुभावनी घोषणाएं और योजनाएं शुरू करने की होड़ सी मची है. ऐसे में सरकार का यह कहना साहसिक और अच्छा कदम है कि  देश में इसलामिक बैंक खोलने की उस की कोई योजना नहीं है.

कुछ संगठनों और कुछ लोगों की इसलामिक बैंकिंग शुरू करने की सलाह पर अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने स्पष्ट किया है कि सरकार की इस तरह की बैंकिंग व्यवस्था शुरू करने की कोई योजना नहीं है. उन का कहना है कि देश में सभी लोगों की वित्तीय जरूरतों के मुताबिक विभिन्न प्रकार के बैंकों का बड़ा नैटवर्क है और उसे देखते हुए सरकार का समुदाय विशेष के लिए इसलामिक बैंक खोलने जैसा कोई इरादा नहीं है.

इसलामिक बैंकिंग शरीयत के सिद्धांतों पर आधारित होती है और उस व्यवस्था में ब्याज प्रणाली को लागू नहीं किया जा सकता. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश में अनेक सरकारी और अनुसूचित बैंक हैं और मौजूदा बैंकिंग प्रणाली सुदृढ़ व सब के लिए है. भारत धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है और यहां बैंक सब के लिए समान अवधारणा पर काम करते हैं. केंद्रीय मंत्री का यह बयान स्वागतयोग्य है. धर्मनिरपेक्ष और पंथनिरपेक्ष राष्ट्र की मजबूती के लिए इस तरह के फैसले अच्छे हैं.

कुछ विश्वविद्यालयों के साथ हिंदू या मुसलिम शब्द लिखने के पहले किए गए प्रयोगों से आज खासी परेशानी हो रही है. भविष्य में किसी बैंक या राष्ट्रीय स्तर के संस्थान का नामकरण किसी जाति, समुदाय या धर्म के आधार पर करने के भी आने वाले समय में कई तरह के दुष्परिणाम हो सकते हैं इसलिए देश में वही काम होने चाहिए जो हमारे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए अच्छे हों और इन के दूरगामी दुष्परिणाम भी न हों.

जियो का ये प्लान है सबसे सस्ता, क्या आपने लिया

रिलायंस जियो ने ‘हैप्पी न्यू ईयर 2018’ औफर के तहत दो प्रीपेड रिचार्ज प्लान लौन्च किए हैं. इनमें एक प्लान 199 रुपए और दूसरा प्लान 299 रुपए का है. लेकिन, जियो के ये औफर्स आपके लिए कितने फायदेमंद है? 199 रुपए में क्या कोई दूसरी कंपनी इतने फायदे देती है. क्या किसी प्लान में आपको इतना सबकुछ फ्री में मिलता है? इसलिए जियो का ये प्लान बाजार का सबसे सस्ता प्लान कहा जा रहा है.

199 रुपए में कितना कुछ?

जियो के 199 रुपए वाले प्लान में 1.2GB डाटा प्रतिदिन मिल रहा है. प्लान की वैलिडिटी 28 दिनों की है. इसमें अनलिमिटेड एसटीडी, लोकल वौइस कौलिंग है. साथ ही एसएमएस बेनिफिट भी जियो ग्राहकों को दिए जा रहे हैं.

299 रुपए में क्या मिलेगा?

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299 रुपए के प्लान में जियो 56GB डाटा दे रहा है. यह प्लान 28 दिनों की वैलिडिटी के साथ आता है. इस औफर में यूजर्स हर रोज 2GB डाटा यूज कर सकते हैं. अनलिमिटेड लोकल और एसटीडी कौलिंग की सुविधा इस प्लान में भी है.

पूरे महीने 33.6 जीबी डाटा

जियो के 199 रुपए के प्लान में हर दिन ग्राहकों को 1.2 जीबी डाटा मिल रहा है. इसकी वैलेडिटी 28 दिन की होगी. इसका मतलब ग्राहकों को पूरे महीने में 33.6 जीबी डाटा मिलेगा. फ्री वौयस कौल के अलावा जियो के अन्य फायदे भी इस रिचार्ज पैक पर मिलेंगे.

2018 में जियो के ये प्लान भी

दो नए प्लान के अलावा जियो के पुराने प्लान में अब भी ग्राहकों के लिए उपलब्ध हैं. कंपनी के 149 रुपए के प्लान में 28 दिन वैधता के अलावा 4 जीबी डाटा मिलता है. यह प्लान उन लोगों के लिए जो डाटा कम खर्च करते हैं. इसके अलावा 399, 459, 499 रुपए के प्लान भी जारी रहेंगे. इन सभी प्लान में रोजाना 1 जीबी डाटा मिलता है.

नए उद्यमियों का आर्थिक भार वहन करेगी सरकार

केंद्रीय सरकार देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने और स्टार्टअप कार्यक्रम को और ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए उद्यमियों, विशेषकर नए उद्यमियों, को प्रोत्साहित करने के लिए नईनई योजनाओं को लागू कर रही है. देशभर में औद्योगिकीकरण को तेजी से विकसित किया जा सके, इस के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना प्रोत्साहन के तहत उद्यमियों के अंश में से कर्मचारी भविष्य निधि यानी ईपीएफ का दोतिहाई हिस्सा वहन करने का जिम्मा केंद्र सरकार ने खुद ले लिया है.

श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री संतोष गंगवार का कहना है कि इस से नए उद्यमियों पर आर्थिक भार कम होगा. गारमैंट टैक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में उद्यमिता को इस योजना के तहत ज्यादा प्रोत्साहित किया जा सके, इस के लिए उद्यमियों का ईपीएफ का पूरा अंश सरकार ही भरेगी. मंत्री का कहना है कि देश में औद्योगिकीकरण का माहौल बनाने और निवेशकों की मदद एवं प्रोत्साहन के लिए प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना लागू है. इस के तहत नया उद्योग लगाने पर केंद्र सरकार पहले 3 वर्षों तक नियोक्ता द्वारा दिए जाने वाले 12 प्रतिशत अंश के ईपीएफ में से 8.33 प्रतिशत सरकार वहन करेगी, उद्यमी सिर्फ 3.67 प्रतिशत ही अंशदान करेगा.

सरकार के इस कदम से लघु तथा मझोले उद्योग क्षेत्र में प्रवेश करने वाले नए कारोबारियों को मदद मिलेगी और देश में कारोबार करने का माहौल निश्चितरूप से उत्साहजनक होगा. सरकार को इस पहल के साथ ही उन कंपनियों पर भी ध्यान देना चाहिए जिन के नियोक्ता अपने कर्मचारियों का पीएफ जमा नहीं कर पा रहे हैं और इस का खमियाजा बड़ी संख्या में कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है. कर्मचारियों को पैंशन नहीं मिल पा रही है और समय पर उन्हें पीएफ का भुगतान भी नहीं किया जा रहा है.

मजबूत आर्थिक आंकड़ों से बाजार में रही रौनक

गुजरात में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी, राजनीतिक स्तर पर कई तरह के बदलाव तथा अर्थव्यवस्था के अच्छे संकेतों के बीच बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई में उतारचढ़ाव के साथ सूचकांक 8 दिसंबर को 417.30 अंक यानी 1.27 प्रतिशत की साप्ताहिक बढ़त पर रहा जबकि नैशनल स्टौक एक्सचेंज में भी अच्छा माहौल होने से निफ्टी 1.42 प्रतिशत की तेजी यानी 143.85 अंक की साप्ताहिक तेजी पर रहा.  उस से पहले के सप्ताह में बाजार में गिरावट रही लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक की समीक्षा में अर्थव्यवस्था के लिए सख्त रुख, निजी सर्वेक्षण आंकड़ों में देश के विनिर्माण क्षेत्र के 13 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंचने, सकल घरेलू उत्पाद के दूसरी तिमाही में मजबूत रहने जैसे आंकड़ों के कारण बाजार में कई दिनों की सुस्ती के बाद रौनक लौटी और बाजार तेजी पर बंद हुआ.

इस से पहले के सप्ताह के दौरान बिकवाली रहने और वैश्विक स्तर पर कमजोर संकेतों के कारण बाजार पर नकारात्मक असर रहा. अमेरिकी राष्ट्रपति के इसराईल की राजधानी के रूप में येरूशलम को मान्यता देने की घोषणा तथा अरब राष्ट्र, जरमनी, फ्रांस, ब्रिटेन सहित कई प्रमुख देशों द्वारा इस घोषणा से तनाव बढ़ने की आशंका जता कर नाराजगी व्यक्त करने का भी बाजार पर नकारात्मक प्रभाव रहा. इस से निवेशकों का उत्साह घटा और सूचकांक 33 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर से बहुत नीचे चला गया लेकिन दिसंबर के पहले सप्ताह में अच्छे संकेतों ने बाजार को उत्साहित किया.

बोहेमियन मिजाज के नूर शशि कपूर

अभिनेता शशि कपूर को समझना है तो सिर्फ उन की हिंदी फिल्में या कपूर खानदान के कनैक्शन को समझना काफी नहीं है. उन का काम, कैरियर और व्यक्तित्व कई मानो में इन सब से परे और अलहदा रहा है. उन्हें समझने के लिए आप को अभिनय के हर कैनवास से गुजरना होगा, फिर चाहे वह थिएटर जगत की गलियां हों या फिर हौलीवुड से हो कर ब्रिटिश फिल्मों की ओर जाने वाले इंडिपैंडैंट सिनेमा का चौराहा हो. सिनेमाई सफर के हर एक मील के पत्थरों से शशि कपूर कभी न कभी जरूर गुजरे हैं.

हिंदी दर्शकों के बीच शशि कपूर ‘वक्त’, ‘आ गले लग जा’, ‘चोर मचाए शोर’, ‘फकीरा’, ‘जबजब फूल खिले’, ‘कन्यादान’, ‘शर्मीली’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘दीवार’, ‘त्रिशूल’, ‘कभीकभी’ और ‘नमक हलाल’ जैसी फिल्मों में रंग जमाते दिखते हैं तो वहीं सामानांतर सिनेमा के शौकीनों को वे ‘जुनून’, ‘विजेता’, ‘36 चौरंगी लेन’, ‘उत्सव’, ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ जैसे सार्थक व सामाजिक सरोकारी सिनेमा में नजर आते हैं.

इन से इतर पृथ्वी थिएटर के साथ उन का संबंध और योगदान तो एक अलग ही अध्याय है. और इंटरनैशनल या वर्ल्ड सिनेमा में उन की मौजूदगी तो आज भी भारत में पूरी तरह से अंडररेटेड है. उन्होंने 70 -80 के दशक में हौलीवुड से ले कर ब्रिटेन की कई फिल्मों में न सिर्फ लीड रोल किए हैं बल्कि बतौर निर्माता भी जुड़े रहे हैं. बावजूद इस के, आज लोग उन की ‘हाउसहोल्डर’, ‘शेक्सपियर वाला’, ‘बौम्बे टाकीज’, ‘हीट ऐंड डस्ट’, ‘सिद्धार्थ’, ‘जिन्ना’ और ‘इन कस्टडी’ जैसी अंगरेजी फिल्मों से वाकिफ नहीं हैं.

सच तो यह है कि उन को अपने हिस्से की वह सफलता, प्रसिद्धि कभी मिली ही नहीं जिस के वे हकदार थे. हिंदी फिल्मों में उन की सफलता का सारा श्रेय अभिताभ बच्चन के स्टारडम तले दब गया तो वहीं इंटरनैशनल सिनेमा में अपनी मौजूदगी को ले कर उन्होंने कभी हल्ला नहीं मचाया जैसा कि आजकल के अभिनेता किसी अंगरेजी फिल्म में अपने 5 मिनट के रोल को सुर्खियों में लाने के लिए अपना हौलीवुड डैब्यू कह कर प्रचारित करते नहीं थकते हैं.

जेनिफर और थिएटर से जुगलबंदी

पृथ्वी थिएटर को ले कर वे इतने गंभीर थे कि जब पृथ्वीराज कपूर अपना अधूरा सपना छोड़ कर दुनिया से रुखसत हुए तो शशि ने ही अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए थिएटर की स्थापना की, जिस ने रंगमंच की दुनिया के नियम ही बदल डाले. शशि कपूर ने पृथ्वी थिएटर को स्थायी बनाते हुए उसे एक नया आयाम दिया. वैसे, यह उन के पिता का सपना था.

1942 में 150 कलाकारों के घूमंत दल के रूप में पृथ्वी थिएटर शुरू करने वाले पृथ्वीराज कपूर चाहते थे कि इस का एक स्थायी ठिकाना हो. इस के लिए उन्होंने मुंबई में एक प्लौट भी ले लिया था. लेकिन 1972 में उन की मौत हो गई. 1978 में उसी जमीन पर शशि कपूर ने पृथ्वी थिएटर शुरू किया. हिंदुस्तानी रंगमंच को इस संस्था ने और समृद्ध बनाया. यह सब उन्होंने अपनी उसी कमाई से किया जो उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए मिलती थी.

थिएटर में उन की जिंदगी की स्क्रिप्ट का एक खास हिस्सा लिखा जाना था, शायद इसीलिए जो काम राज कपूर या शम्मी कपूर को करना चाहिए था वह काम शशि कपूर ने अपने कैरियर के पीक दौर में किया और सफलता भी हासिल की.

दरअसल, थिएटर ग्रुप में शामिल हो कर वे दुनियाभर में घूमे. इसी दौरान उन्हें ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर कैंडल से प्रेम हुआ. 1958 में सिर्फ 20 साल की उम्र में शशि कपूर ने खुद से 3 साल बड़ी जेनिफर से शादी कर ली. कैंडल परिवार इस बेमेल शादी के खिलाफ था. लेकिन शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली ने अपने देवर की शादी के लिए बात आगे बढ़ाई और इस तरह दोनों की शादी हो गई.

हालांकि, उन की इस स्क्रिप्ट में ट्रेजिडी ही लिखी थी, सो, मात्र 26 साल की उम्र में जेनिफर ने उन का साथ छोड़ दुनिया को अलविदा कह दिया. वैसे शशि और जेनिफर की इस पहल से कई प्रतिभाशाली कलाकार निकले. फिलहाल, इस की कमान उन के बेटे कुणाल कपूर के हाथ में है.

अवसाद से सार्थक सिनेमा की ओर

सही माने में उन का अभिनय की दुनिया से मन तभी से उठ गया था जब से जेनिफर ने उन्हें अकेला छोड़ दिया. उस के बाद वे सदमे में रहे और एकाकी जीवन अपना लिया. इस दौरान उन की सेहत भी बिगड़ी और मोटापे के चलते उन्हें वे फिल्में भी नहीं मिलीं जो उन से ज्यादा उम्र के अभिनेताओं को मिल रही थीं. उन्होंने अपने बेटों के साथ कुछ अच्छी और सार्थक फिल्मों का निर्माण किया और आर्ट फिल्मों के मैदान में बतौर अभिनेता व निर्माता सक्रियता दिखाई और नुकसान के बावजूद अच्छे कंटैंट के सिनेमा को प्रोत्साहित किया. व्यावसायिक सिनेमा के बड़े स्टार शशि कपूर का मन समानांतर सिनेमा में लगा तो वे फिल्म निर्माता की भूमिका में आ गए. अपने प्रोडक्शन हाउस फिल्मवाला के तहत उन्होंने श्याम बेनेगल के साथ ‘जुनून’ बनाई, गोविंद निहलानी के साथ ‘विजेता’, अपर्णा सेन के साथ ‘36 चौरंगी लेन’ और फिर गिरीश कर्नाड के साथ ‘उत्सव’. 1979 में ‘जुनून’ के लिए उन्हें बतौर निर्माता राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. 1986 में आई ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ में अपने अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 2011 में शशि कपूर पद्मभूषण से नवाजे गए.

कपूर पदार्पण

कपूर खानदान में यह अलिखित, अघोषित संवैधानिक नियम सा बन गया था कि परिवार का हरेक सदस्य फिल्मों में पदार्पण जरूर करेगा. फिर भले ही असफलता मिलने पर बाद में वह किसी और क्षेत्र में चला जाए. कोशिश यही रहती थी कि कपूर परिवार कला के विभिन्न आयामों से किसी न किसी तरह जुड़ा रहे. शायद इसीलिए अंगरेजीदां शशि अलग मिजाज के होने के बावजूद फिल्मों में पदार्पित हुए और जब उन के बेटों कुणाल और करन कपूर को अपने विदेशी लुक्स के चलते फिल्मों में अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली तो उन्होंने एड वर्ल्ड और थिएटर की दुनिया में कामयाबी हासिल की.

उन के कैरियर के पदार्पण की बात करें तो 18 मार्च, 1938 को कोलकाता में जन्मे शशि कपूर ने बड़े भाई राजकपूर की फिल्मों ‘आग’ और ‘आवारा’ से अभिनय के मैदान में अपने पांव रख दिए थे. ‘आवारा’ में उन्होंने राजकपूर के बचपन की भूमिका निभाई थी. चूंकि यह भूमिका बाल कलाकार के तौर पर अभिनीत की गई थी, इसलिए उन का डैब्यू एक मुख्य अभिनेता के तौर पर 1961 में फिल्म ‘धर्मपुत्र’ से माना जाता है. यह  यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म थी. अपने समय से काफी आगे के विषय वाली इस फिल्म में हिंदूमुसलिम दंगे और सियासत जैसे संवेदनशील विषय पर दिलचस्प कहानी बुनी गई थी.

बहरहाल, इस के बाद उन्होंने कई यादगार फिल्में कीं. ‘जबजब फूल खिले’, ‘कन्यादान’, ‘फकीरा’, ‘शर्मीली’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘दीवार’, ‘चोर मचाए शोर’, ‘त्रिशूल’, ‘कभीकभी’ और ‘नमक हलाल’ में उन की भूमिकाएं हमेशा के लिए दर्शकों के जेहन में बस गईं.

करीब 116 से भी ज्यादा फिल्मों में अभिनय के दौरान उन्होंने इतना ज्यादा काम किया कि उस समय के सब से व्यस्ततम  ऐक्टर बन गए थे और घर पर दिखने के बजाय हमेशा फिल्मों के सैट पर ही दिखते तो परेशान हो कर भाई राजकपूर ने उन का नाम टैक्सी रख दिया जो हमेशा बुकिंग के लिए रेडी रहती थी.

अमिताभ के साथ उन की जोड़ी सुपरहिट रही. इन दोनों कलाकारों ने एकसाथ 12 फिल्मों में काम किया है. इन में ‘दीवार’, ‘सुहाग’, ‘त्रिशूल’ और ‘नमक हलाल’ सुपरहिट रहीं. उन का मशहूर ‘मेरे पास मां है…’ वाला डायलौग ‘दीवार’ फिल्म का ही था.

एक रास्ता है जिंदगी…

अपनी जिंदगी के तमाम उतारचढ़ाव, सुखदुख के बीच शशि कपूर ने शो मस्ट गो औन वाले फलसफे को चरितार्थ करते हुए काम करना जारी रखा. खुद पर ही फिल्माए गए एक गीत ‘एक रास्ता है जिंदगी, जो थम गए तो कुछ नहीं…’ की तर्ज पर वे 79 साल की उम्र में 4 दिसंबर, 2017 को इस दुनिया से कूच कर गए. मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में उन के निधन के साथ फिल्म इंडस्ट्री के एक युग का भी अंत हो गया है.

खास यादें

शशि कपूर का असली नाम बलबीरराज कपूर रखा गया था.

शशि कपूर फिल्म सिद्धार्थ (1972) में सिमी ग्रेवाल के साथ न्यूड सीन को ले कर विवादों में रहे.

शशि कपूर को 3 बार नैशनल अवार्ड मिले हैं. 1979 में फिल्म ‘जुनून’ को बैस्ट फीचर फिल्म के लिए, 1986 में फिल्म ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ के लिए बैस्ट ऐक्टर का नैशनल अवार्ड और 1994 में फिल्म ‘मुहाफिज’ के लिए स्पैशल ज्यूरी अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया.

2014 में उन्हें दादासाहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया.

शशि कपूर को 2011 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया.

शशि कपूर अपने बड़े भाई राजकपूर और सत्यजीत रे के बड़े प्रशंसक थे.

शशि कपूर व अमिताभ बच्चन ने करीब 12 फिल्मों में काम किया. दोनों ने पहली बार ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ में साथ काम किया था.

1991 में शशि कपूर ने पहली बार निर्देशन में हाथ आजमाया. उन के निर्देशन में बनी ‘अजूबा’ फिल्म में  अमिताभ बच्चन ने मुख्य किरदार निभाया था.

हिंदी सिनेमा के पहले इंटरनैशनल स्टार

शशि कपूर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले भारत के शुरुआती अभिनेताओं में से एक थे. उन्होंने कई ब्रिटिश और अमेरिकन फिल्मों में काम किया. इन में ‘हाउसहोल्डर’ (1963), ‘शेक्सपियर वाला’ (1965), ‘बौंबे टाकीज’ (1970), तथा ‘हीट ऐंड डस्ट’ (1982) शामिल हैं. ‘सिद्धार्थ’ (1972) व ‘मुहाफिज’ (1994) में भी उन की भूमिकाएं सराही गईं. 90 के दशक में गिरती सेहत की वजह से शशि कपूर ने फिल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया था. 1998 में प्रदर्शित फिल्म ‘जिन्ना’ उन के सिने कैरियर की अंतिम फिल्म थी. ब्रिटेन और पाकिस्तान में प्रदर्शित इस फिल्म में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई थी.

शबाना के क्रश थे शशि

संगीत के शौकीन शशि कपूर को म्यूजिक इंसट्रूमैंट बजाना बहुत पसंद था. खाली समय में संगीत सुनते थे और फिल्म देखते थे. उन की पसंदीदा, उन के साथ कई फिल्मों में काम कर चुकी अभिनेत्री और समाजसेवी शबाना आजमी ने एक इंटरव्यू के दौरान माना था कि उन्हें शशि कपूर पर क्रश था. इतना ही नहीं, उन के चलते एक बार शशि कपूर की शादी में भी दरार आने लगी थी. वैसे दोनों की जोड़ी परदे की सुपरहिट जोडि़यों में से एक थी. संयोगवश उन की आखिरी फिल्म ‘इन कस्टडी’ में उन के साथ शबाना आजमी ही थीं. दोनों ने ‘फकीरा’ फिल्म में पहली बार साथ काम किया था. यह भी इत्तफाक है कि 2015 में जब उन्हें दादासाहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया, तब भी उन के साथ कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन,  श्याम बेनेगल, रमेश सिप्पी, हेमा मालिनी के साथ उन के सब से करीब शबाना आजमी ही खड़ी थीं.

बौलीवुड ही मेरा घर है : अली फजल

अपनी मौजूदा कामयाबी की शुरुआत के पहले की कहानी बताते हुए अली फजल कहते हैं, ‘‘बचपन से ही मुझे अभिनय का शौक रहा है. स्कूल की पढ़ाई के साथ ही मैं थिएटर करने लगा था. मैं ने कालेज पहुंचते ही विज्ञापन फिल्में करनी शुरू कर दी थीं. जब मैं कालेज में पढ़ाई कर रहा था, तब मैं ने पहली बार फिल्म में अभिनय किया था. जब राज कुमार हिरानी फिल्म ‘थ्री इडिएट्स’ का निर्देशन करने जा रहे थे, तभी उन्होंने मेरा एक नाटक देखा और फिर उन्होंने मुझे फिल्म ‘थ्री इडिएट्स’ में लोबो का किरदार निभाने का मौका दिया. फिल्म ‘थ्री इडिएट्स’ में छोटी सी भूमिका करने के बाद धीरेधीरे अच्छे किरदार मिले, फिर हीरो बन गया. फिर हौलीवुड फिल्म ‘फास्ट ऐंड फ्यूरियस 7’ और ‘विक्टोरिया ऐंड अब्दुल’ से कैरियर सही दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. कुछ फिल्मों में लीड रोल कर रहा हूं.’’ हालांकि हौलीवुड फिल्मों में सक्रिय अली बौलीवुड को ही अपना घर व कर्मभूमि मानते हैं.

अपने अगले प्रोजैक्ट को ले कर अली बताते हैं, ‘‘करण अंशुमान के निर्देशन में एक वैब सीरीज ‘मिर्जापुर’ कर रहा हूं, जिस में मेरे साथ रसिका दुग्गल व विक्रांत मैसे हैं. इस वैब सीरीज का निर्माण फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी कर रहे हैं. फिल्म की कहानी उत्तर भारत के ग्रामीण इलाके की पृष्ठभूमि पर है. इस में मैं उत्तर भारत के गैंगस्टर का किरदार निभा रहा हूं. इस की ज्यादातर शूटिंग मिर्जापुर में हुई है. कुछ हिस्सा मुंबई में फिल्माया जा रहा है. जल्दी ही यह फिल्म पूरी हो जाएगी. इस के अलावा आनंद एल राय की 2016 में आई फिल्म ‘हैप्पी भाग जाएगी’ की सीक्वल ‘हैप्पी भाग जाएगी रिटर्न’ कर रहा हूं.’’

वैब सीरीज के बढ़ते चलन को ले कर वे कहते हैं, ‘‘वैब सीरीज को नजरअंदाज नहीं कर सकते. यह तूफान है, जो तेजी से आगे बढ़ रहा है. हर वैब सीरीज में सैक्स ही परोसा जा रहा है. पर वैब सीरीज में मिश्रित कंटैंट ही दिखेंगे. मैं ने पहले भी यशराज फिल्मस की एक वैब सीरीज ‘बैंड बाजा बरात’ समेत कई शौर्ट फिल्में की हैं.’’

अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर अली बताते हैं, ‘‘निजी जिंदगी को ले कर चर्चा करना पसंद नहीं करता. पर मैं अपने किसी रिश्ते को छिपाने में भी यकीन नहीं करता. रिचा चड्ढा से हमारी दोस्ती है, जो समय के साथ पक्की होती चली गई. लोगों के लिए इसे प्यार का नाम देना बड़ा आसान है. प्यार का अर्थ होता है एकदूसरे में खो जाना. हम उम्मीद कर रहे हैं कि हम कहीं न कहीं उस के करीब पहुंच रहे हैं. हमारे बीच जो भी रिश्ता है, उस को ले कर हम काफी खुश हैं.’’

अपनी फिटनैस को ले कर उन का मानना है, ‘‘मैं नियमितरूप से ‘किक बौक्ंसग’ करता हूं. किक बौक्ंसग मुझे शारीरिक और मानसिकरूप से चुस्तदुरुस्त रखती है. इस के अलावा मेरी सुबह उठने की आदत है. सुबह 6 बजे उठ कर बौक्ंिसग की कोचिंग लेता हूं. मेरी राय में सुबहसुबह जो वर्कआउट किया जाता है, वही शरीर व सेहत के लिए सही होता है.’’

बराबरी की होड़ : अमेरिका की जगह लेने की तैयारी में है चीन

चीन अब अमेरिका की जगह लेने की तैयारी में है और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका फर्स्ट के नाम पर अपना दखल दूसरे देशों में कम कर रहे हैं, जबकि चीन बढ़ा रहा है. इस का असर भारत पर भी पड़ेगा. अमेरिका ने एच1बी1 वीजा को सख्त बना कर करीब 40,000 भारतीय युवाओं के लिए अमेरिका में जा कर नौकरी पाने के मौके खत्म कर दिए हैं.

अमेरिका ने अपनी आईटी कंपनियों से कह दिया है कि  जहां भी दूसरे देशों से आए लोग काम कर रहे हैं उन्हें निकाल कर केवल अमेरिकियों को रखा जाए चाहे वे महंगे हों, आलसी हों या उतने योग्य न हों. यह ठीक वैसे ही है जैसे मुंबई में शिवसेना बीचबीच में फरमान जारी कर देती है कि महाराष्ट्र में टैक्सियां, आटो सिर्फ मराठी चलाएंगे, बिहारी या पंजाबी नहीं. शिवसेना का जन्म दक्षिण भारतीयों के खिलाफ बाल ठाकरे के गुस्से से हुआ था पर आज 40 साल बाद भी हाल वही है.

अमेरिका ने अपने पुराने दोस्त पाकिस्तान से हाथ खींचने की तैयारी कर ली है. भारत को इस पर खुश होने की जरूरत नहीं क्योंकि चीन उस की जगह लेने को तैयार है. भारत जल्दी ही नेपाल, भूटान, म्यांमार और पाकिस्तान में चीन की भारी मौजूदगी पाएगा. अगर चीन को कभी भारत को डराना हो तो उस के लिए यह बाएं हाथ का काम होगा और भारत अब 1962 की तरह अमेरिका के आगे बचाओबचाओ की गुहार भी न लगा सकेगा.

भारत की सरकार फिलहाल खुश है कि मुसलिम देशों के अमेरिका जाने वालों पर डोनाल्ड ट्रंप रोकटोक लगा रहे हैं पर, वह यह भूल रही है कि अमेरिका तो अपना बचाव चीन, रूस, मुसलिम देशों से कर सकता है क्योंकि वह अमीर है, बेहद अमीर.

चीन फिलहाल पाकिस्तान से गुजरता रेल व सड़क रास्ते बना रहा है ताकि चीनी माल खाड़ी के देशों में जल्दी पहुंच जाए. वहीं, इस रास्ते से चीनी टैंक भी पाकिस्तान के रास्ते पंजाब व राजस्थान पहुंच सकते हैं. चीन माउंट एवरैस्ट में छेद कर तिब्बत से नेपाल तक सुरंग का रास्ता बना रहा है ताकि इन देशों से लेनदेन बढ़ सके. वहीं, इस सुरंग से चीनी सैनिक भी आ सकते हैं.

ऐसे में भारत की हालत अजीब होगी. हम से तो अपना देश ही नहीं संभलता. देशरक्षा के नाम पर हम झंडा लहराते हैं, हल्ला मचाते हैं या सच दिखाने वाले

को देशद्रोही कह कर चुप करा देते हैं. अमेरिका की नई नीति, चीन का उस की जगह लेना, चीन को अपना दुश्मन बनाना हमें महंगा पड़ेगा. मंगोल मुगलों ने अरसे तक भारत पर राज किया है. क्या यह दोहराया जाएगा?

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