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आतंकी साजिशों के खिलाफ अशरफ गनी की अपील

हालिया खतरनाक आतंकी वारदातों, खासकर राजधानी काबुल की घटना के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश के राजनीतिक अभिजात वर्ग से दलगत भावना से ऊपर उठकर व्यापक देशहित और राज्य प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ एकजुट संघर्ष का जो आह्वान किया है, उस पर संजीदगी से गौर करने की जरूरत है. उन्होंने ट्वीट करके कहा कि ‘जो लोग खुद को मुसलमान या अफगान समझते हैं, उन्हें अब धार्मिक षड्यंत्रकारियों व खुफिया एजेंसियों की बर्बर कठपुतलियों से खुद को सिर्फ बातों में ही नहीं, व्यवहार में भी अलग दिखना होगा.’

पाकिस्तान समर्थित आतंकी गुटों की हालिया बर्बरता की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सभी स्तरों पर निंदा हुई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी तालिबान के साथ वार्ता की संभावना से इनकार करते हुए तीखी टिप्पणियां कीं. इस परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रपति गनी की अपील बहुत महत्वपूर्ण है. समझना होगा कि राष्ट्रीय एकता और एकजुटता इस वक्त देश की सबसे बड़ी जरूरत है, चुनौती भी. और बात जब आतंकवाद और आतंकवाद के प्रायोजक देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ने की आ जाए, तब तो यह सभी अफगानियों के लिए किसी भी भेदभाव से ऊपर उठकर एक हो जाने की बात हो जाती है.

याद करने का वक्त है कि ‘एकता में शक्ति होती है व अलगाव कभी जीतने नहीं देता.’ नहीं भूलना चाहिए कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी देश होने के कारण अफगानिस्तान ही नहीं, उसके रणनीतिक साझीदारों को भी अस्थिर करने की कोशिशें जारी हैं. आईएसआई का चेहरा खुलकर सामने आ चुका है.

काबुल के होटल और कंधार आर्मी बेस पर हमले में पाकिस्तान स्थित आतंकी गुटों का जिम्मेदारी लेना बताता है कि आईएसआई कैसा खतरनाक खेल खेल रही है. ऐसे में, किसी अफगान का खामोश रहना राष्ट्रीय अपराध से कम नहीं होगा. यह पाकिस्तान व तालिबान समर्थक तत्वों के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़ने, उन्हें बेनकाब करने का वक्त है. सबसे ज्यादा जरूरी इस मसले पर सभी दलों में एकता है, जिसके बिना कुछ भी संभव नहीं. नहीं भूलना चाहिए कि देश है, तभी सब कुछ है.

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वासना की आग में इस तरह झुलस गई एक मासूम कली

यमन देश कभी अपने मसालों और खनिजों की भरमार के लिए दुनियाभर में मशहूर था, लेकिन 5,31,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस देश से जो सनसनीखेज खबर आई है उस ने सब को शर्मसार कर दिया है. यमन एक मुसलिम बहुल देश है. वहां के उत्तरपश्चिमी प्रांत हज्जा के मीडी शहर में रावान नाम की एक 8 साल की मासूम बच्ची की कुछ दिन पहले शादी हुई थी. रावान के पति की उम्र 40 साल थी. उस 40 साला हट्टेकट्टे शौहर ने सुहागरात पर बेहद खौफनाक तरीके से उस के साथ बलात्कार किया, जिस से उस की मौत हो गई. औरतों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक शख्स ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि शादी की रात सैक्स के दौरान बच्ची का बहुत खून बहा और उस के नाजुक अंग को नुकसान पहुंचा, जिस से उस की दर्दनाक मौत हो गई. वे लोग उसे क्लिनिक ले गए, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

इस से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि न तो रावान के घर वालों और न ही यमन के प्रशासन ने उस हत्यारे पर कोई कार्यवाही की, बल्कि लोकल प्रशासन और लोगों ने इस मामले पर परदा डालने की कोशिश की. वजह, मुसलिम देशों में न तो बाल विवाह अपराध?है और न ही बीवी के साथ बलात्कार करना गुनाह माना जाता है. वहां तो ऐसी खबरें छापने या दिखाने पर भी एक तरह से अघोषित बैन लगा हुआ है. वैसे, मामले के खुलासे के बाद कुछ लोगों ने दबी आवाज में इस वाकिए के खिलाफ आवाज उठाई है और हत्यारे पति को गिरफ्तार करने की मांग की है, पर कोई ठोस कार्यवाही होगी, इस में शक है. दरअसल, यमन के कबीलाई इलाकों में गरीबी के चलते लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है. एक सर्वे के मुताबिक, यमन की कुल औरतों में से एकचौथाई की शादी 15 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है.

लड़कियों की जल्दी शादी करने के पीछे ऐसा माना जाता है कि इस से वे अपने पति का हुक्म हमेशा मानती हैं, उन के खूब बच्चे होते हैं और वे बदचलन भी नहीं होती हैं. यमन में गरीबी के चलते भी लोग अपनी बच्चियों की कम उम्र में शादी कर देते हैं, जिस से उन के पालनेपोसने पर होने वाला खर्च बच जाए. संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट से इस देश की गरीबी का पता चलता है. तकरीबन ढाई करोड़ की आबादी वाले यमन में तकरीबन एक करोड़ लोग ऐसे हैं जो भुखमरी के शिकार हैं, जबकि 1 करोड़ 30 लाख लोगों के पास पीने के लिए साफ पानी और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है.

अगर कानून की बात करें, तो पहले यमन में लड़कियों की शादी की उम्र कम से कम 15 साल तय की गई थी, लेकिन 90 के दशक में देश की संसद ने यह कह कर इस कानून को रद्द कर दिया था कि मांबाप ही तय करेंगे कि वे अपनी बेटी की शादी कब करें, सरकार नहीं. सांसदों ने तो इस जिम्मेदारी से छुटकारा पा लिया लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने दिसंबर 2011 में यमन की सरकार से गुजारिश की थी कि वह 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी पर बैन लगा दे, क्योंकि इस के चलते उन की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है और उन की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. इस मुद्दे पर अभी बातचीत चल ही रही थी कि राजनीतिक उठापटक के बीच वह बीच में ही रुक गई.

औरतों की जिंदगी बदहाल

संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के मुताबिक, मुसलिम देशों में औरतें सब से ज्यादा बदहाल जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. लेकिन वहां उन से जुड़ी ऐसी खबरों को दबा दिया जाता है या सिरे से नकार दिया जाता है. देखा जाए तो इसलाम धर्म के मुताबिक मुसलिम विवाह समझौते पर टिका है. मर्द 4-4 शादी कर सकते हैं. वे एकसाथ 4 बीवियां रख सकते हैं. उन्हें आसानी से तलाक दे सकते हैं, जिस के लिए उन्हें सिर्फ 3 बार ‘तलाक’ कहना होता है. शादी के समय मेहर की रकम तय होती है, जिस के मुताबिक अगर पति तलाक देता है या किसी वजह से अपनी पत्नी को छोड़ता है, तो मेहर की रकम उसे अपनी पत्नी को देनी होती है. ज्यादातर मामलों में मेहर की रकम बेहद कम होती है.

विवाह के यही एकतरफा समझौते औरतों को कमजोर बनाते हैं, उन्हें दासी की तरह जिंदगी जीने को मजबूर करते हैं. मान लीजिए, अगर सैक्स के दौरान रावान की मौत नहीं हुई होती, तो वह उस के बाद रोजाना वही जख्म खाने को मजबूर होती. उस का पति हर रोज उस के साथ वही दरिंदगी करता जिस के चलते उस की दर्दनाक मौत हो गई.

रावान के पति का तो अब भी शायद ही कुछ बिगड़े. वह कुछ दिनों में दूसरी बीवी ले आएगा, शायद रावान की उम्र की ही. पर इस सब में पिसती तो मासूम बच्चियां ही हैं. अगर कच्चे घड़े में ठंडा पानी भर दो तो वह भी उस घड़े को गला देता है. रावान के पति ने तो उस मासूम कली को वासना की धधकती आग से भर दिया था, जिस का नतीजा सब के सामने है.

बाल विवाह के कड़वे सच

*      दुनियाभर में तकरीबन 70 करोड़ ऐसी औरतें हैं जिन की शादी 18 साल से कम उम्र में हो गई थी. तकरीबन 25 करोड़ औरतों की 15 साल से भी पहले.

*      यूनिसेफ की लिस्ट में बंगलादेश का नंबर चौथा है और भारत का 12वां. भारत में बाल विवाह गैरकानूनी होने के बावजूद लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी जाती है.

*      आज भी भारत के कई राज्यों में होने वाली शादियां तय बचपन में हो जाती हैं, हालांकि लड़कियों का गौना बाद में होता है.

*      अफ्रीकी देशों में तो गरीबी के चलते अकसर लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है, वह भी अपनी उम्र से दोगुनीतिगुनी उम्र के मर्द से.

*      जिन लड़कियों की बचपन में शादी हो जाती है, वे स्कूल नहीं जा पाती हैं. कम उम्र में बच्चा पेट में आ जाने से जचगी के दौरान होने वाली मुसीबतों के चलते वे अपनी और बच्चे की जान तक खो बैठती हैं.

इन महत्वपूर्ण दस्तावेजों को मिलाकर बनता है बजट, जानिए विस्तार से

आम तौर पर बजट शब्द जहन में आते ही लोग यह मान लेते हैं कि यह आंकड़ों और योजनाओं का एक दस्तावेज भर होता होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है इसमें काफी कुछ शामिल होता है. बजट में सरकार की बीते वर्ष की योजनाओं के विश्लेषण के साथ-साथ भविष्य की योजनाओं का एक रोडमैप भी होता है. आज हम आपको यही बताने की कोशिश करेगे कि एक बजट में आखिर क्या कुछ शामिल होता है.

बजट में कुल 11 दस्तावेज शामिल होते हैं

  1. वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement)
  2. डिमांड औन ग्रांट (Demand for Grants)
  3. एप्रोप्रिएशन बिल (Appropriation Bill)
  4. फाइनेंस बिल (Finance Bill)
  5. वित्त विधेयक में प्रावधान की व्याख्या का ज्ञापन (Memorandum Explaining the Provisions in the Finance Bill)
  6. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए प्रासंगिक एवं व्यापक आर्थिक ढ़ांचा (Macro-economic framework for the relevant financial year)
  7. वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय रणनीति का ब्यौरा (Fiscal Policy Strategy Statement for the financial year)
  8. मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति का वक्तव्य (Medium Term Fiscal Policy Statement)
  9. एक्सपेंडीचर बजट वाल्यूम-1 (Expenditure Budget Volume -1)
  10. एक्सपेंडीचर बजट वाल्यूम-2 (Expenditure Budget Volume -2)
  11. रिसीप्ट्स बजट (Receipts Budget)

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जानिए इन सभी के बारे में

वार्षिक वित्तीय विवरण

संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार एक वित्त वर्ष की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण पेश करती है, जिसे वार्षिक वित्तीय विवरण कहा जाता है. संविधान के अनुच्छेद 112 में इसका उल्लेख है.

डिमांड औन ग्रांट

इसमें संचित निधि से निकाले जाने वाले खर्चों (वार्षिक वित्तीय विवरण में शामिल) का अनुमान दर्ज होता है. यह एक तरह का फौर्म होता है, जिसे अनुच्छेद 113 के तहत जमा किया जाता है. लोकसभा में इस पर मतदान जरूरी है.

विनियोग विधेयक

लोकसभा से मंजूर की गईं व्यय मांगों और संचित निधि में से किए जाने वाले खर्चों को एकत्रित करके एक विधेयक बनाया जाता है, जिसे विनियोग विधेयक कहा जाता है. इसे भी लोकसभा में पेश किया जाता है.

फाइनेंस बिल

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित किए गए नए करों का विवरण होता है, जिसमे मौजूदा करों में कुछ संशोधन भी शामिल होता है.

वित्त विधेयक में प्रावधान की व्याख्या का ज्ञापन

यह वित्त विधेयक में निहित कराधान प्रस्तावों को समझाने का एक व्याख्यात्म दस्तावेज है. साथ ही इसमें प्रावधानों और उसके प्रभावों का भी उल्लेख होता है.

एक्सपेंडीचर बजट वाल्यूम-1

एक्सपेंडीचर बजट वाल्यूम-1 के अंतर्गत राजस्व और मूल अदायगी शामिल होता है, जो कि योजनागत और गैर-योजनागत अनुमानों के बारे में बताता है.

एक्सपेंडीचर बजट वाल्यूम-2

व्यय अनुदान मांगों में प्रस्तावित अंतर्निहित उद्देश्य को समझाने वाला यह एक दस्तावेज होता है, जिसमें प्रमुख कार्यक्रमों पर व्यय के विभिन्न मदों का एक संक्षिप्त विवरण, बदलाव के कारणों के साथ मांगों में एक साथ शामिल पिछले वर्ष के लिए बजट अनुमान और संशोधित अनुमानों के बीच का अंतर और चालू वित्त वर्ष के अनुमान का उल्लेख किया जाता है.

रिसीप्ट्स बजट

वार्षिक वित्तीय विवरण में शामिल प्राप्तियों का अनुमान एक बार फिर से रिसीप्ट बजट में समझाया और विश्लेषित किया जाता है. सालभर के भीतर की राजस्व और पूंजीगत प्राप्तियों का ट्रेंड और बाहरी सहायता का पूरा ब्यौरा इसमे शामिल होता है.

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पद्मावत : करणी सेना ने मारी पलटी, कहा राजपूतों की वीरता को दर्शाती है फिल्म

संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म ‘पद्मावत’ का विरोध करने वाली श्री राजपूत करणी सेना अब फिल्म का विरोध नहीं करेगी. शुक्रवार को करणी सेना ने घोषणा की है कि क्योंकि फिल्म में राजपूतों की वीरता को दर्शाया गया है इसलिए अब उन्होंने फिल्म का विरोध नहीं करने का फैसला लिया है.

श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के नेता योगेंद्र सिंह कटार ने कहा- सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखदेव सिंह जी के निर्देशों के बाद ऐसा किया गया है.

सेना के कुछ सदस्यों ने मुंबई में शुक्रवार को फिल्म देखी और पाया कि फिल्म में राजपूतों के बलिदानों और उनकी वीरता का वर्णन किया गया है. हर राजपूत को इस फिल्म को देखने के बाद गर्व महसूस होगा.

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अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष की बात रखते हुए योगेंद्र सिंह ने बताया- फिल्म में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के बीच ऐसा कोई आपत्तिजनक सीन नहीं है जो राजपूतों की भावनाओं को आहत करता हो. इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए करणी सेना ने अपना विरोध वापस ले लिया है. इतना ही नहीं अब करणी सेना फिल्म को राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के सिनेमाघरों में फिल्म को रिलीज कराने का भी प्रयास करेगी.

गौरतलब है कि करणी सेना शूटिंग के वक्त से ही फिल्म का विरोध करती रही है. जयपुर में जिस वक्त फिल्म की शूटिंग चल रही थी तब निर्देशक संजय लीला भंसाली पर हमला किया गया था और इसके बाद कई बार सेट पर तोड़फोड़ की गई. फिल्म की रिलीज से ठीक पहले इसका जबरदस्त तरीके से विरोध हुआ और माहौल बिगड़ने की आशंका को ध्यान में रखते हुए भारत के चार राज्यों ने फिल्म को बैन कर दिया. इसके बाद मेकर्स ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जहां से इसे रिलीज की अनुमति दी गई और चारों राज्यों से बैन को हटा लिया गया.

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फिर टूटा सलमान का दिल, युलिया ने की इस एक्टर से शादी

कहा जाता है बौलीवुड के दबंग खान यानी कि सलमान खान का अफेयर रशियन मौडल युलिया वंतूर से चल रहा है. इंडस्ट्री में सलमान खान और युलिया के प्यार के किस्से भी आम थे. हालांकि इस बात पर सलमान खान ने कोई मुहर नहीं लगायी है, लेकिन खबरें तो यहां तक थी कि इंडस्ट्री के मोस्ट एलिजेबल बैचलर अपनी ‘वांटेड’ इमेज को तोड़ते हुए युलिया के साथ अपना घर बसा लेंगे. मगर हर बार की तरह इस बार भी भाईजान का दिल टूट गया, उन्हें एक बार फिर प्यार में धोखा मिला, क्योंकि युलिया वंतूर ने चुपके से स्वयंवर कर लिया है.

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ये खबर सुनकर आप भी हैरान हो गए ना, लेकिन असल मामला ये है कि ‘द वौयस इंडिया किड्स’ के सेट पर युलिया वंतूर आयी थीं, जहां पर उनके लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया था. इसके आगे देखना और भी हैरानी भरा था क्योंकि युलिया ने सलमान और रणबीर को छोड़कर शो के होस्ट जय भानुशाली से शादी रचा लीं.

शो को होस्ट कर रहे जय ने युलिया को स्टेज पर बुलाया और उनसे पूछा कि वह रोमानिया में अपने लिए लड़का ढूंढ रही हैं या भारत में? इस पर उन्होंने कहा, ‘चूंकि मैं भारत में हूं तो भारत में ही लड़का ढूंढ रही हूं.’ जब जय ने उनसे पूछा कि जिससे वह शादी करना चाह रही हैं वह कैसा होगा? युलिया ने कहा कि वो एक ऐसे इंसान की तलाश में हैं, जिनकी अच्छी-खासी दाढ़ी हो.

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जल्द ही जय ने मंच पर तीन कट आउट्स का इंतजाम किया और युलिया के हाथ में जयमाला दे दी. एक-एक कर उन्होंने कट आउट्स के चेहरे दिखाने शुरू किये, सलमान खान, रणवीर सिंह और रणबीर कपूर. आखिर में, वह आखिरी कट आउट के पास खुद चौथे विकल्प के रूप में खड़े हो गये. युलिया ने सलमान सहित तीनों को ना कर दिया और जय को अपना जीवनसाथी बना लिया. जी हां, अब धोखा तो दिया गया है और युलिया के ऐसा करने से सलमान खान के फैन नाराज हो सकते हैं. हालांकि जो हुआ एक मजेदार वाकया था जिस पर सभी ने काफी एन्जाय किया.

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गांगुली ने लौंच की अपनी किताब, शेयर की कुछ मजाकिया यादें

इंडियन क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और पूर्व खिलाड़ी सौरव गांगुली ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई बड़े खुलासे अपनी आगामी पुस्तक ‘ए सेंचुरी इज नौट इनफ’ में किए हैं.

उन्होंने अपनी आगामी पुस्तक में बहुत ही मजेदार किस्सों को भी अपने फैन्स को बताया है. पूरे भारत में और खासकर बंगाल में दुर्गा पूजा का पर्व बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है.

पूर्व भारतीय कप्तान को भी यह पर्व बहुत पसंद है, लेकिन मशहूर होने के कारण वह आम लोगों की तरह इस पर्व में शामिल होने नहीं जा सकते थे. यही कारण था कि दुर्गा पूजा को बाकी लोगों की तरह ही सेलिब्रेट करने के लिए एक बार गांगुली को सरदार का रूप लेना पड़ा था, लेकिन फिर भी उन्हें पुलिस ने पहचान लिया था.

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सौरभ ने बताया, ‘मुझे दुर्गा पूजा में शामिल होना बहुत पसंद है. मुझे देवी मां के विसर्जन के वक्त जुलूस में शामिल होना भी पसंद है. बंगाल में इसे ‘बिशर्जोन’ कहा जाता है. इस वक्त देवी मां को गंगा में सिरा दिया जाता है. यह दृश्य बहुत ही शानदार और प्रभावशाली होता है, उस वक्त जो एनर्जी निकलती है वह भी बहुत अच्छी होती है. विसर्जन के वक्त नदी के पास लोगों की बहुत भीड़ होती है, इसलिए एक बार जब मैं इस जुलूस में शामिल होने गया, तब मैंने हरभजन सिंह के लोगों जैसा रूप ले लिया, उस दौरान में टीम इंडिया का कप्तान हुआ करता था.’

उन्होंने अपनी पुस्तक में आगे लिखा, ‘मेरा सरदार जी वाला मेकअप मेरी पत्नी डोना ने किया. मेरे सभी भाई-बहन मेरा मजाक उड़ा रहे थे और कह रहे थे कि मैं पहचान लिया जाऊंगा. सबने मेरा बहुत मजाक उड़ाया, लेकिन मैंने चुनौती स्वीकार की और सिख का रूप लेकर ही दुर्गा विसर्जन के जुलूस में शामिल हुआ, लेकिन वे लोग सही साबित हुए.

मुझे पुलिस ने ट्रक में जाने की अनुमति नहीं दी और मुझे अपनी बेटी सना के साथ कार में ही जाना पड़ा. जैसे ही कार बाबुघाट के पास पहुंची, पुलिस इंसपेक्टर ने कार की खिड़की के अंदर झांका, मुझे ध्यान से देखा और मुस्कुरा दिया, उसने मुझे पहचान लिया था. मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई, लेकिन मैंने उससे कहा कि वो यह बात किसी को भी ना बताए. मेरा फैसला रंग लाया, मैंने दुर्गा विसर्जन देखा. वह दृश्य बेहद खास था. आपको उसे देखना चाहिए और उसे समझना चाहिए. वैसे भी दुर्गा मां पूरे साल में एक ही बार तो आती हैं.’

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मन की बात कहें या न कहें, हम आप को बताते हैं

‘ट्रिन-ट्रिन…ट्रिन-ट्रिन…’ नीता का फोन बजे जा रहा था. वह घर का काम खत्म कर के नहा कर निकल रही थी कि तभी बाहर मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी.

नीता ने फोन उठाया. अंजलि का फोन था. वह पूछ रही थी कि यदि वह ज्यादा व्यस्त नहीं है तो क्या वह आ जाए? नीता ने हंस कर कहा कि यह मौसम व्यस्तता का नहीं, मौजमस्ती का है. चल, जल्दी से आ जा. चाय का पानी चढ़ाती हूं. गरमगरम पकौड़ों के साथ सावन की बौछारों का आनंद लेंगे. पर जब अंजलि आई तो मस्ती का समां बंध नहीं पाया. वह अपने में खोईखोई सी परेशान सी थी. न चैन से बैठ पा रही थी न ही चलफिर पा रही थी. बैठने, चहलकदमी व अनायास ही बिना किसी उद्देश्य के चीजों को छूने व उस की उठापटक में व्यस्त अंजलि को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह कुछ कहना चाह रही है पर कह नहीं पा रही है. सांपछछूंदर वाली स्थिति थी कि न उगला जाए न निगला जाए. नीता अंजलि की मनोस्थिति तो पहचान रही थी पर कारण उस की समझ में नहीं आ रहा था. और कारण जाने बिना वह क्या कहती, इसी पसोपेश में चुप थी.

आखिरकार अंजलि ने ही बात शुरू की, ‘‘समझ नहीं आता कि तुझे बात बताऊं या न बताऊं. पर अगर नहीं बोली तो मेरा दिमाग फट जाएगा,’’ इस वाक्य के साथ ही नीता की डरी, सहमी और आश्चर्य से फटी आंखों में आंखें डाल अंजलि जल्दी से सब उगल गई कि कैसे वह किसी की तरफ आकर्षित हो रही है और अपने पति को तलाक देने की सोच रही है.

नीता अंजलि के स्वभाव, उस की आधुनिकता से परिचित थी और उस के पति शैलेश को भी जानती थी. दोनों परिवारों का 5 साल से उठनाबैठना था, जानपहचान समय के पायदान चढ़ते गहरी मित्रता में परिवर्तित हो रही थी.

नीता की आंखों की भावनाओं में जबड़े की भंगिमा भी जुड़ गई. स्वयं को बहुत रोकने के बावजूद उस के मुंह से निकल गया, ‘‘यह क्या कह रही हो? जहां तक मैं जानती हूं, शैलेश बहुत अच्छे व्यक्ति व पति हैं. ऐसा क्या हो गया जो तुम इस निर्णय पर पहुंच गई हो?’’

अंजलि बड़बड़ा उठी, ‘‘तुम्हें नहीं पता नीता, शैलेश कितने पुरातनपंथी होते जा रहे हैं. जीवन बिलकुल नीरस हो गया है…’’ आदिआदि. अंजलि न जाने कितनी ऐसी बातें नीता को बता गई जो बहुत ही व्यक्तिगत थीं.

लोग भावुकता में ऐसी व्यक्तिगत बातें कह तो देते हैं पर बाद में वही बातें बताए गए व्यक्ति से मुंह छिपाने का कारण बन जाती हैं. आप को उन कही बातों से कुछ तो लज्जा और कुछ इस बात का भय होता है कि वह व्यक्ति जिस से ये बातें कही गई हैं, आप के बारे में अब क्या सोचता है या कितने और व्यक्तियों से उस ने ये बातें बता दी हैं या भविष्य में कहीं बता न दे.

यही भय उस से हर समय जोंक की तरह चिपका रहने के कारण वह दूसरे व्यक्ति के साहचर्य, सान्निध्यता से कतराने लगता है और उस संबंध की जड़ को ही काटने को तत्पर हो जाता है ताकि उसे भविष्य में उस व्यक्ति का सामना ही न करना पड़े.

यही बात नीता और अंजलि के संबंधों में हुई. अंजलि का शैलेश से वैवाहिक जीवन तो बच गया और ढर्रे पर भी आ गया पर नीता और अंजलि की मित्रता में दरार पड़ गई.

अंजलि नीता से मिलने से कतराती चली गई. यहां तक कि फोन पर भी व्यस्तता का बहाना बनाती रही. नीता के पूछने पर कि क्या उस से कोई गलती हुई है, अंजलि नानुकर करती रही, मुकरती रही. यहां तक कि जब शैलेश को हार्ट अटैक हुआ उस समय नीता ने  आमनेसामने या फोन पर बात करने की जगह मैसेजिंग सिस्टम का सहारा ले सहानुभूतिभरे शब्दों में एसएमएस किया, ‘‘यदि वह किसी भी प्रकार की सहायता कर सकती है तो अंजलि निसंकोच बता दे.’’

इतने पर भी जब अंजलि का जवाब नहीं आया तो नीता ने इस संबंधविच्छेद को स्वीकार कर लिया. हालांकि नीता और अंजलि की मित्रता का अंत होने में नीता का दोष नहीं था. मित्र होने के नाते वह अंजलि की गोपनीय बातें न सुनती तो मित्र कैसी जो समय पर काम न आए, पर सुनने पर बिना दोष के ही मित्र से हाथ धो बैठी. नीता आज तक यही सोचती है कि काश, उस ने वे गोपनीय बातें न सुनी होतीं तो कदाचित वे अभी भी दोस्त, सहेलियां होतीं.

सवाल उठता है कि क्या अंजलि मित्र थी? जिस सहेली ने उस की सहायता की उसी को वह छोड़ बैठी. क्या यह मित्रता की पहचान है? इस से तो मित्रता और प्रगाढ़ होनी चाहिए थी, संबंधविच्छेद की नौबत नहीं आनी चाहिए थी.

दरअसल, अच्छे दोस्तों में भी कई बातें अनकही रहें तो अच्छा है. यद्यपि परेशानी में व्यक्ति एकदूसरे से बात कर समस्या का कोई उचित हल निकाल सकता है जो लाभदायक भी होगा पर गोपनीय बातों को पचाने की सामर्थ्य भी व्यक्ति में होनी चाहिए. जहां एक ओर व्यक्ति उस समय तो गोपनीय बातों को दूसरों से कह कर अपनी छाती का भार हलका कर लेता है वहीं दूसरी ओर कुछ समय गुजर जाने के बाद उन कही बातों को याद कर या परिस्थिति प्रतिकूल होने पर उन बातों के उजागर होने की आशंका से स्वयं को उन लोगों से दूर कर लेता है.

गोपनीयता से उपजी समस्याओं का हल दोनों मित्रों की प्रकृति या मित्रता की प्रगाढ़ता पर निर्भर करता है और ऐसी मित्रता बहुत ही कम व्यक्तियों को प्राप्त होती है. इसलिए आमतौर पर कुछ व्यक्तिगत बातों को किसी से शेयर न करना ही बेहतर है.

बर्कले, कैलिफोर्निया की साइकोलौजिस्ट डा. मार्डी एस आयरलैंड का कहना उचित जान पड़ता है कि किसी बात को शेयर करना, भागीदारी करना या बिना सोचेविचारे धाराप्रवाह किसी भी तथ्य को उजागर करना जिस के प्रति आप भविष्य में पश्चात्ताप करें, ऐसी बात मन में रखना आसान नहीं होता. यह समस्या स्त्रियों में विशेषरूप से पनपती है क्योंकि उन की मित्रता में बोलना, संवाद, मित्रता की प्रगाढ़ता को बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करता है.

न्यूयार्क की मशहूर साइकोलौजिस्ट डा. गिल्डा कारले की भी मान्यता है कि आप क्या और कहां तक स्वयं की भावनाओं को उजागर करना चाहते हैं, यह बहुत ही व्यक्तिगत मामला है. यह उजागर करने वाले व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वह उजागर की हुई किस बात से किस हद तक बाद में भयभीत होता है. कोई जरा सी बात से भयभीत हो सकता है और कोई बड़ी बात से भी नहीं. इसलिए गोपनीय बातों को उजागर करने से पहले आप को स्वयं की व उस मित्र की संवेदनशीलता से परिचित होना चाहिए.

सूचनाओं के आदानप्रदान में सच्ची मित्रता में कोई भी विषय परिधि से बाहर नहीं है लेकिन कुछ व्यक्तिगत, इंटीमेट सूचनाएं एक ‘टाइम बम’ का रूप धारण कर सकती हैं. वास्तव में विशेषज्ञों का कहना है कि व्यक्तिगत बात कहने से पहले इस बात पर, इस तथ्य पर अवश्य ध्यान दें कि आप क्या और किस से बात कर रहे हैं.

न्यूयार्क की ही साइकोलौजिस्ट डा. जौन मैगडोप का कहना है कि बहुत ही कम व्यक्तियों में बात को पचाने की ताकत होती है. अधिकतर प्रगाढ़ मित्र गोपनीय बातों को गोपनीय नहीं रख पाते, उसे कम से कम एक व्यक्ति को बता ही देते हैं. सम्माननीय व्यक्ति भी कभीकभार चाहेअनचाहे, जानेअनजाने अपने मित्रों की बात कर ही लेते हैं. बात कहने के उस आनंद में उचितअनुचित की बात वे भूल जाते हैं. और नहीं तो स्त्रियां कदाचित अपने पति से तो बात बता ही देंगी, यह बात ध्यान रखने योग्य है.

कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आप मित्र से अपने हृदय की बात न कहें, पर हां, किस से ऐसी बातें कर रहे हैं, इस का ध्यान अवश्य रखें. मित्र की पहचान आप को होनी चाहिए. मित्रता की कसौटी में कौन खरा है, कौन खोटा, इसे दृष्टिगत रखते हुए चुनाव करें. मानव ही मानव का संबल बन सकता है. गोपनीय बातों में किसे भागीदार बनाना है, इस का उचित चुनाव जरूरी है. मित्रता में वफादारी दोनों ही ओर से होनी चाहिए, तभी बात बनती है, अन्यथा नहीं.

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नशे में डूबती आधी आबादी और स्वस्थ परिवेश का अभाव

पिछले कुछ सालों से महिलाओं के बीच पीने का चलन तेजी से बढ़ा है, जिस की एक खास वजह है, शराब की कंपनियों का शराब पीने वाली महिलाओं को आधुनिक, आजाद व पुरुषों के समतुल्य प्रचारित करना. बीयर, शैंपेन आदि तो पुराने पड़ चुके शगल हैं, अब तो शराब के ढेरों ब्र्रैंड बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं. महिलाओं की पसंद में भी तबदीली आ गई है. पहले शराब भारत में इक्केदुक्के होटलों में ही मुहैया होती थी, लेकिन अब महिलाओं के शौक को देखते हुए तमाम होटलों, बारों, पबों, डिस्कोथिक आदि में शराब के ढेरों ब्रैंड आसानी से उपलब्ध हैं. वोदका, वाइन, व्हिस्की आदि के कौकटेल कालेज की छात्राओं व गृहिणियों में काफी प्रचलित हो रहे हैं. वे किट्टी पार्टियों, शादी की सालगिरह आदि मौकों पर पीनेपिलाने से कतई नहीं हिचकतीं.

शराब सेवन की पुरानी परंपराओं में पहले शराब पीने वाली महिलाएं 2 विपरीत वर्गों से संबंध रखतीं. पहले वर्ग में झुग्गी बस्तियों में रहने वाली दलित, वेश्याएं आती हैं. जिन के लिए नशा आजीविका का साधन रहा है, तो दूसरे वर्ग में पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित और भौतिक सुखसुविधाओं की प्रचुरता के चलते पेशेवर समाज की महिलाएं आती हैं, जो लेट नाइट पार्टियों अथवा पति के साथ ऐग्जीक्यूटिव पार्टियों में पीने को स्टेटस सिंबल समझती हैं. अब एक तीसरा नया वर्ग कालेज जाने वाली युवतियों का है, जो देर रात तक डांस फ्लोर पर थिरकने की चाह के चलते नशे के आगोश में घिरती जा रही हैं.

इस विषय में एसएमएस हौस्पिटल, जयपुर की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. शकुंतला यादव कहती हैं, ‘‘पेशेवर वर्ग की महिलाओं में पीना स्टेटस सिंबल है. वे पीने से खुद को पुरुष के बराबर का समझती हैं. भौतिक सुख की प्रचुरता के कारण जब पुरुष पी सकता है, तो वे क्यों नहीं? यही धारणा उन्हें पीने के लिए प्रेरित कर रही है.’’ हाल ही में जयपुर के बिड़ला सभागार में सिकोईडिकोन संस्था द्वारा ‘महिलाएं और नशा’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी की रिपोर्ट के मुताबिक, नशेबाज महिलाओं के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. इस के मुताबिक सब से ज्यादा शराब का सेवन करने वाली महिलाओं की उम्र 21 से 35 साल के बीच पाई गई है. 42 फीसदी कामकाजी महिलाएं, 31 फीसदी अकेलेपन की शिकार, 32 फीसदी तलाकशुदा और 80 फीसदी देह व्यापार से जुड़ी महिलाएं शराब समेत अन्य नशों की आदी हैं.

सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजहें हैं कि विभिन्न वर्गों की महिलाएं जानेअनजाने खुद को इस गर्त में धकेल रही हैं? सिकोईडिकोन संस्था की विचार गोष्ठी के मुताबिक, दलित, वेश्याएं, श्रमजीवी व मजदूर तबके की महिलाएं अपनी अज्ञानता, अशिक्षा, माली व सामाजिक स्तर के चलते घर में ही सस्ती देशी शराब, ताड़ी आदि पीती हैं. असुरक्षित भविष्य से पलायन की सोच उन्हें इस दलदल में धकेलती है. वहीं पेशेवर परिवारों की महिलाएं शराब के 2-3 घूंट हलक से नीचे उतारते ही आत्मविश्वासी, फुरतीली, स्मार्ट, खुद को ज्यादा शिष्ट व संयमी समझने लगती हैं. इस के साथसाथ मन में अनेक भ्रांतियां पालने के कारण भी नशे के प्रति आकर्षित होती हैं जैसे शराब से सैक्स व फोरप्ले में अधिक उत्तेजना और देर तक स्टैमिना बना रहना वगैरह. खुद को ज्यादा ऐडवांस, वैस्टर्न और सैक्स अपीलिंग बनाने के लिए भी कौकटेल का गिलास होंठों से लगाने से भी पेशेवर वर्ग की महिलाओं को फर्क नहीं पड़ता.

कालेज की पार्टी हो या लेडीज पार्टियां, फ्रूट जूस, कोला आदि के साथ कौकटेल व बीयर का चलन वर्तमान में जोरों पर है. यही नहीं बड़ीबड़ी केक शौप्स हों या फू्रट जूस कौर्नर कहीं भी फू्रट बीयर मिलना आम बात है. यही वजह है कि स्वाद बढि़या होने के कारण एक सहेली दूसरी सहेली को उकसाती है. फिर एक बार स्वाद चख लेने के बाद पार्टियों में शराब के गिलास की ओर खुदबखुद ही हाथ बढ़ जाता है.

बच्चों पर बुरा असर

बच्चा अपने पिता के शराबी होने का सच कबूल कर सकता है, लेकिन मां को बीयर, शराब पीते नहीं देख सकता. जिस परिवार में बच्चे अपनी मां को ऐसा करते देखते हैं, वे बचपन से किशोरावस्था की दहलीज तक पहुंचतेपहुंचते अपनी 17वीं 18वीं बर्थडे पार्टी में बीयर, शैंपेन की बोतलें खोलने से हिचकते नहीं. दरअसल, बच्चा अपनी मां से अधिक अपेक्षा रखता है. यही कारण है उस के मन में मां की बनी आदर्श छवि में मां के जरा भी गलत व्यवहार के छींटे उस से बरदाश्त नहीं होते हैं. ऐसे में वह मां को उपेक्षित नजरों से देखने लगता है. इस मामले में एसएमएस मैडिकल कालेज व हौस्पिटल जयपुर में कार्यरत मनोचिकित्सक डाक्टर शिव गौतम कहते हैं, ‘‘व्यक्ति शराब पीता है पल भर के आनंद के लिए और बदले में उसे मिलती है उम्र भर की परेशानी. अगर हम शराब को बिलकुल नकार दें, तभी हम तनाव को दूर करने के सार्थक उपाय ढूंढ़ पाएंगे, तभी हमें जिंदगी भर का सुख मिल सकेगा.’’

शराब करे सेहत खराब

शराब पीने के पल भर के आनंद के बाद गलत नतीजे सामने आते हैं, जो मर्दों की अपेक्षा औरतों पर ज्यादा असर करते हैं. इंगलैंड में स्थित रौयल मैडिकल कालेज की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को शराब से बीमारियां पुरुषों की  तुलना में ज्यादा होती हैं. स्त्री और पुरुष के समान मात्रा में शराब पीने के बावजूद स्त्री के रक्त में शराब की गाढ़ी मात्रा एकत्र होती है और रक्त में घुलनशील प्रक्रिया धीमी होने लगती है. नतीजतन उन में कैंसर, दिल की बीमारी आदि के रूप में रोग सामने आते हैं. ‘अलकोहल ऐंड फर्टिलिटी अमंग वूमन’ पुस्तक अनुसार, 1996 में 85 हजार नर्सों की सहायता से एक विश्वव्यापी शोध पूरा किया गया. अध्ययन से यह नतीजा निकाला गया कि 50 साल या उस से ज्यादा उम्र की महिलाओं को उच्च रक्तचाप की शिकायत थी और आनुवंशिकी तौर पर हुई हृदय की बीमारी की शिकायत थी. इन बीमारियों से मरने वाली महिलाओं में एक और बात सामने आई कि वे सप्ताह में 2-3 बार शराब का सेवन करती थीं. 34 से 39 साल की उम्र की महिलाओं में रक्तधमनियों की बीमारी की शिकायत न के बराबर थी, लेकिन भविष्य में आसार अधिक थे. इस के अलावा जो महिलाएं प्रतिदिन शराब पीने की आदी थीं, उन में स्तन कैंसर होने की संभावना 100 फीसदी पाई गई.

महिला और पुरुष में समान मात्रा में शराब का सेवन करने पर दोनों में विभिन्न प्रतिक्रियाएं होती हैं, महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा शरीर में वसा की मात्रा अधिक होती है. जिस के कारण कई तरह की बीमारियां शरीर में घर करने लगती हैं. अधिक मदिरापान से महिलाओं की प्रसवशक्ति प्रभावित होती है. कोल्ड जेनसन द्वारा लिखी गई किताब, ‘डज मौडरेट अलकोहल कंजंप्शन अफैक्ट फर्टिलिटी’ में शोध के अनुसार कुछ मात्रा में शराब का सेवन भी महिला की प्रजननशक्ति के लिए घातक साबित होता है. शराब का सेवन गर्भवती महिला को अधिक प्रभावित करता है. प्रसवोपरांत शिशु की मंदबुद्धि व विकलांगता का पता चलता है, लेकिन प्रसवपूर्व भ्रूण परीक्षण के दौरान डाक्टरों को अलकोहल रिलेट मल्टीपल कोजीनेटल अबनौर्मली का बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन करने के बाद पता चलता है.

पिलाती और कमाती सरकार

भारतीय संविधान की धारा 49 के अनुसार- राज्य अपनी जनता के पोषक भोजन और जीवन स्तर को उन्नत करने एवं जनस्वास्थ्य के सुधार को अपने प्रारंभिक कर्तव्यों में प्रमुख समझें और यह प्रयास करें कि मादक पेयों और नशीली औषधियां, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, का प्रयोग निषेध हो.’

कानून बनने के बाद कई राज्यों में शराबबंदी जरूरी हो गई थी, लेकिन समय के साथसाथ मद्यनिषेध संबंधी नीति एवं कार्यक्रम में धीरेधीरे ढील आ गई. केवल कुछ राज्यों में ही यह कानून सिमट कर रह गया. आंध्र प्रदेश में शराबबंदी थी, लेकिन लोग चोरी से पड़ोसी राज्यों से मंगवाने लगे. नतीजतन पड़ोसी राज्यों में राजस्व करों की बढ़ोतरी होने लगी. इसलिए दिवालिएपन की मार पड़ते ही वहां से शराबंदी हटा ली गई. गुजरात में वर्तमान में मद्यनिषेध है, लेकिन वहां लोग इस का सब से ज्यादा सेवन करते हैं.

दरअसल, पूरी तरह से शराबबंदी लागू किए जाने के मार्ग में 2 गंभीर दिक्कते हैं. उसे लागू करने में कठिनाई और शराब की ललक. लेकिन इस बात को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि शराब से सरकार को राजस्व की सब से ज्यादा वसूली होती है. हालांकि पानी, बिजली बिक्री कर से भी राजस्व वसूली की जाती है, लेकिन जितनी सहजता से नशे के कर वसूले जाते हैं, अन्य नहीं.

सच यह है कि फैशन और आधुनिकता को दिखाने के और भी कई तरीके हैं. फैशन दिखाने के लिए जरूरी नहीं कि शराब के 2 घूंट गले से नीचे उतारे जाएं और बुरी लत अपनाई जाए. प्रतिभा और व्यक्तित्व निखारें यकीनन आप फैशनेबल कहलाएंगी.

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औरत की आजादी पर धर्म की बढ़ती दखलंदाजी

‘‘मेरी बेटी इकोनौमिकली, इमोशनली और सैक्सुअली इंडिपैंडैंट है, तो उसे शादी करने की क्या जरूरत?’’ पीकू मूवी में अमिताभ बच्चन द्वारा बोला गया यह डायलौग मैट्रोसिटीज में रहने वाली हर इंडिपैंडैंट लड़की का सपना बनता जा रहा है. अब हर लड़की अपनी मरजी से अपनी लाइफ के फैसले करना चाहती है. शादी कब करनी है, करनी है या नहीं, यह खुद तय करना चाहती है. वह अपने तरीके से जिंदगी जीना चाहती है.

दिल्ली की 35 वर्षीय किरण हंसमुख, खूबसूरत होने के साथसाथ इंडिपैंडैंट भी है. वह अपनी लाइफ को अपने मनमुताबिक मस्ती से जी रही है. उस का शादी करने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन उसे कभीकभी समाज की बातें बेचैन कर देती हैं. हर किसी की जबान पर बस एक ही प्रश्न होता है कि कब सैटल हो रही हो? उम्र बढ़ती जा रही है. आगे प्रौब्लम होगी. दरअसल, किरण अपनी मनपसंद का जो जीवन जीना चाहती है, वह सामाजिक, धार्मिक मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है. इसीलिए हर सिंगल वूमन को समाज प्रश्नसूचक नजरों से देखता है. साथी औल फौर पार्टनरशिप की मनोचिकित्सक प्रांजलि मल्होत्रा कहती हैं, ‘‘हर व्यक्ति की सोच अलग होती है. यह जरूरी नहीं कि हमारे समाज के बनाए नियमों का हर कोई पालन करे. सही उम्र में पढ़ाई, शादी और बच्चा ये सब अब टिपिकल बातें हैं. अब लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं. अब इक्वैलिटी का जमाना है. अब लड़की भी पहले अपना घर, गाड़ी और बैंक बैलेंस बनाना चाहती है ताकि वह स्ट्रौंग फील कर सके. उस के बाद अगर शादी करनी हो तब इस का निर्णय लेती है वरना इस बारे में सोचती भी नहीं, क्योंकि उस के पास वह सब कुछ होता है, जो पहले के समय में लड़की को शादी के बाद पति से मिलता था.

‘‘अब लड़कियों को मेल पार्टनर की भी जरूरत महसूस नहीं होती. मेल पार्टनर औफिस में तो उन्हें मिल ही जाते हैं, जिन में किसी खास से वे इमोशनली जुड़ भी जाती हैं. वैसे भी आजकल कैरियर बनाने या सैटल होतेहोते 30 साल निकल ही जाते हैं. इस बीच वे फिजिकल जरूरत के लिए लिव इन रिलेशनशिप का भी सहारा लेने लगी हैं.’’

आज की स्त्री को चाहिए आजादी

शादी एक पर्सनल चीज है और यह पूरी जिंदगी का समझौता भी है. आज भी शादी से स्त्री की आजादी छिन जाती है. उस की पर्सनल स्पेस कम हो जाती है और तो और घर की सारी जिम्मेदारियां उसी के जिम्मे डाल दी जाती हैं. इसलिए वह शादी के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाने लगी है. नई जैनरेशन अधिक बोल्ड हो गई है. वह कोई भी निर्णय लेने से नहीं डरती. यही कारण है कि जैसेजैसे लड़कियां इंडिपैंडैंट हो रही हैं वे ज्यादती बरदाश्त नहीं कर रही हैं. लेकिन आज भी स्त्री अपनी मनमरजी से नहीं जी सकती. धर्म उस की आजादी में पाबंदी लगाना चाहता है.

स्त्री की आजादी में धर्म का दखल

जहां स्त्री अपनी मरजी की जिंदगी जीना चाहती है, वहीं धर्म से संचालित होने वाला समाज उस की मरजी को बुरा मानता है. अगर वह शादी नहीं करती, तो यह सामाजिक और धार्मिक मर्यादाओं का उल्लंघन माना जाता है, क्योंकि धर्म ने वैवाहिक नाम की संस्था को हाईजैक कर लिया है. इसलिए अगर कोई लड़की अपनी मरजी से शादी न करने का निर्णय लेती है या लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है अथवा संतान पैदा नहीं करना चाहती, तो यह सीधेसीधे धर्म का उल्लंघन माना जाता है.

एक युवती का समाज सम्मान तभी करता है जब वह धार्मिक रीतिरिवाजों से, पंडित के मंत्रों द्वारा अग्नि के सामने किसी युवक के साथ 7 फेरे ले कर उस की जीवनसंगिनी बनती है. उस के बाद वह संतानप्राप्त करने के लिए देवीदेवताओं से विनती करती है. अपने सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती है. मंदिरों, तीर्थस्थलों में जाती है. इस से पहले वह वर प्राप्ति के लिए व्रत, पूजा करती है. शादी के बाद पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखती है. इस के अलावा और कई तरह के हवनयज्ञ करवाती है, बाबाओं की शरण में जाती है. सुखी गृहस्थ जीवन के लिए तभी वह पूर्ण सम्मानित स्त्री मानी जाती है.

आज की युवतियां जो अपनी मरजी धर्मरहित आधुनिक जीवन जीना चाह रही हैं, उस के चलते वे समाज की नजरों में सम्मान के काबिल नहीं रह गईं. धर्म स्त्री की मरजी पर सदियों से पाबंदी लगाता आ रहा है. आज सिंगल वूमन जिस तरह से रहना चाहती है वह धार्मिक, सामाजिक सत्ता का खुला उल्लंघन है. इसीलिए धर्म के ठेकेदार उस के प्यार करने, पहननेओढ़ने, खानेपीने, पढ़नेलिखने जैसे नितांत निजी फैसलों पर अपने फतवे जारी करते रहते हैं.

सामाजिक दिक्कतें

समाज में शादी को पवित्र संस्था समझा जाता है. भले ही शादी बुरी साबित हो. स्त्री की सफलता का पैमाना उस के कैरियर की उपलब्धियों को नहीं, बल्कि सफल वैवाहिक जीवन को माना जाता है. समाज न सिंगल रहने वाली लड़की को आसानी से स्वीकार कर पाता है और न ही पुरुष को. दोनों को ही हजारों सवालों का सामना करना पड़ता है.

यह सही है कि समाज की सुविधा के लिए शादी करना जरूरी है, लेकिन जो शादी नहीं करना चाहते उन्हें इस की आजादी भी होनी चाहिए.

अकेला नहीं होता अविवाहित

किसी भी अविवाहित व्यक्ति को अकेला क्यों समझा जाता है? क्या सिर्फ पतिपत्नी बनने से ही रिश्ते बनते हैं? बाकी सभी रिश्ते गौण होते हैं? अगर पेरैंट्स का पूरा सहयोग हो, एक बेहतरीन कैरियर हो, अपने फैसले पर आप को पूरा यकीन हो, स्ट्रौंग पर्सनैलिटी हो और ऐसे फ्रैंड्स हों, जो जिंदगी के हर मोड़ पर आप के साथ खड़े हों, तो अविवाहित व्यक्ति खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करेगा.

विवाह न करने का फैसला क्यों

शादी न करने का फैसला अचानक लिया गया फैसला नहीं होता है. बचपन से ही लड़की को उस के परिवार द्वारा यह शिक्षा दी जाती है कि किसी गलत बात पर दबना नहीं चाहिए और जब तक अपने पैरों पर खड़ी न हो जाओ तब तक शादी नहीं करनी चाहिए. ऐसा करतेकरते समय बीतता जाता है और फिर आप के स्टेटस का लड़का मिलना मुश्किल हो जाता है. इस के अलावा लड़की जब अपने परिवार में मां, बूआ और बहन को पुरुष यंत्रणा का शिकार होते देखती है या बातबात पर पति या पिता को यह कहते सुनती है कि मेरे घर से निकल जाओ, तो बचपन से ही उस के मन में यह बात बैठ जाती है कि उसे इस सब का शिकार नहीं होना है. उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है. किसी के आगे नहीं झुकना है.

आज भी शादी होने के बाद इंडिपैंडैंट स्त्री के लिए औफिस की जिंदगी और घरेलू जिंदगी में तालमेल बैठाना मुश्किल हो गया है. पहले लोग विवाह के बाद बच्चे पैदा कर के सोचते थे कि वे उन के लिए इंश्योरैंस हैं. जब वे बूढ़े हो जाएंगे, तो वे उन की देखभाल करेंगे. पर अब ऐसा नहीं है. अब बच्चे अपने कैरियर के लिए पेरैंट्स से दूर जा बसते हैं. ऐसे में शादी के बाद भी बच्चों का साथ नहीं मिलता है. अकेलापन रहता है. तब ओल्ड ऐज होम ही सहारा होते हैं, तो फिर शादी की क्या जरूरत जब अकेले ही जिंदगी काटनी है? आजकल सोशलाइजेशन इतना ज्यादा है कि आप उसे जौइन कर सकती हैं.

अविवाहित का करें सम्मान

अब पढ़ाई के बाद के कामों की प्राथमिकता सूची में शादी काफी नीचे आ गई है. हालांकि ऐसा करने वाली लड़कियां कम हैं. विवाह का निर्णय स्वयं का होता है या किसी के दबाव में लिया गया निर्णय भी हो सकता है, किंतु अविवाहित रहने का निर्णय पूर्णरूप से स्वयं का होता है और स्वयं की इच्छाशक्ति से लिए गए इस निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए. लेकिन प्राय: ऐसा देखा जाता है कि उन का परिवार व मित्र उन के इस निर्णय को गलत बताते हैं, जबकि अपना जीवन कैसे जीना है, यह निर्णय लेने के लिए हर व्यक्ति पूरी तरह स्वतंत्र है.

शादी की कोई उम्र नहीं

प्रांजलि मल्होत्रा कहती हैं, ‘‘शादी की कोई उम्र नहीं होती. शादी की सही उम्र वही है जब आप मानसिकरूप से उस के लिए तैयार हों. समाज व परिवार ने आप की शादी की सही उम्र क्या तय कर रखी है, उस से कोई मतलब नहीं. हालांकि कई लोगों का मानना है कि देर से शादी करने में या न करने में आगे परिवार बढ़ाने के सिलसिले में परेशानी आती है. लेकिन अब मैडिकल साइंस के विकास के साथ ऐसी आशंकाएं बहुत कम हो गई हैं. वैसे शादी की बहस के बीच आजकल एक और चलन परवान चढ़ रहा है- लिव इन रिलेशनशिप का, जिस में बिना शादी के ही लड़कालड़की साथ रहते हैं. यह न सिर्फ ट्रैंडी है, बल्कि शादी जैसी बाध्यता भी इस में नहीं है. लेकिन भारतीय समाज में इसे स्वीकारना एक बड़ा मुद्दा है.’’

अविवाहित का बच्चा गोद लेने का फैसला

जुलाई, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में बिन ब्याही मां के अपने बच्चे के स्वाभाविक अभिभावक होने पर मुहर लगाई है. कोर्ट ने कहा है कि कोई भी सिंगल पेरैंट या अविवाहित मां बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करे, तो उसे वह जारी किया जाए. इस फैसले में कोई भी महिला बिना शादी किए भी अपने बच्चे का पालन कर कानूनन अभिभावक बन सकती है. इस के लिए पुरुष के नाम व साथ की जरूरत नहीं होगी. कोर्ट के ऐसे फैसले अविवाहिताओं में आत्मविश्वास भर देंगे.

अविवाहिताओं के प्रति पुरुषों की मानसिकता

अकसर ऐसा देखा जाता है कि अविवाहित स्त्री के प्रति पुरुषों का रवैया ठीक नहीं होता है. उन्हें ऐसा लगता है कि वह उन के लिए हर समय उपलब्ध है. वे उस से फ्लर्ट करने की कोशिश करते हैं. फ्लर्ट करना बुरी बात नहीं है, क्योंकि लाइट फ्लर्टिंग सभी महिलाओं को पसंद होती है. लेकिन जब वह लिमिट क्रौस करने लगे, तो उस से घबराएं नहीं बच कर निकलने की कोशिश करें या नजरअंदाज करें, क्योंकि पुरुष मानसिकता को आप बदल नहीं सकतीं? इसलिए ऐसी बातों को तूल न देते हुए आगे बढ़ें. हर रिश्ते में शोखी बनाएं रखें. तभी लाइफ बेहतर होगी.

धर्म के ठेकेदारों की दुकानदारी

धर्म औरत की आजादी पर इसलिए दखलंदाजी देता है, क्योंकि इस से धर्म का खाने वालों की दुकानदारी पर सीधा असर पड़ता है. इसीलिए वे प्रेम विवाह, समलैंगिक विवाह, लिव इन रिलेशन का विरोध करते हैं. ऐसे में सवाल है कि विवाह किसी भी युवक या युवती का निजी मामला होता है, फिर उस में धर्म का क्या काम? धर्म किसी विवाह की सफलता की गारंटी भी नहीं लेता. फिर भी पंडेपुजारी, मुल्लाकाजी वैवाहिक रिश्ते में खड़े दिखाई क्यों देते हैं?

लीक से हट कर

हर कोई गृहस्थ जीवन में बंधना ही चाहे, यह जरूरी नहीं. कुछ लोग अपनी लाइफ में कुछ अलग करना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि घर की जिम्मेदारियों के बीच वे बड़ा काम नहीं कर सकते, जो वे करना चाहते हैं. ऐसे में उन के इस निर्णय का सम्मान कर के उन का साथ दें. ऐसी कई हस्तियां हैं, जिन्होंने अविवाहित रह कर अपना नाम कमाया. उन में से कुछ महिलाएं रोल मौडल भी हैं. मसलन:

किरन देसाई: भारतीय मूल की अंगरेजी उपन्यासकार.
एकता कपूर: बालाजी टैलीफिल्म्स की क्रिएटिव हैड और जौइंट डायरैक्टर.
सुनीता नारायण: पर्यावरण विद और राजनीतिक कार्यकर्ता.
देवजानी घोष: साउथ एशिया इनटेल कौरपोरेशन की मैनेजिंग डायरैक्टर.
सुष्मिता सेन: हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री, पूर्व मिस इंडिया व मिस वर्ल्ड.
रितु डालमिया: पहले इटैलियन रैस्टोरैंट की शैफ और कोओनर.

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कुलदीप पटवल : बेहतरीन कलाकारों से सजी अति घटिया फिल्म

इन दिनों फिल्मकारों में सबसे बड़ी समस्या यह नजर आ रही है कि वह देश व समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को अपनी फिल्म की विषयवस्तु के रूप में चुन तो लेते हैं, मगर फिर पटकथा लेखन व निर्देशन के तौर पर उस पर आवश्यक मेहनत करने से बचते हुए घटिया फिल्म बनाकर परोस देते हैं. ऐसा ही कुछ लेखक व निर्देशक रेमी कोहली की फिल्म ‘‘कुलदीप पटवल’’ को देखकर अहसास होता है. अफसोस इस बात का है कि रेमी कोहली अपनी राजनीतिक व्यंग फिल्म ‘‘कुलदीप पटवल’’ में दीपक डोबरियाल, राइमा सेन, गुलशन देवैया जैसे बेहतरीन कलाकारों को जोड़ने के बावजूद अच्छी फिल्म नहीं बना पाए.

फिल्म ‘‘कुलदीप पटवल’’ की कहानी कुलदीप पटवल (दीपक डोबरियाल) नामक एक आम इंसान की है, जिस पर राज्य के मुख्य मंत्री वरूण चड्ढा (परवीन डबास) की हत्या करने का आरोप लगा है. अदालत में कुलदीप का मुकदमा ईमानदार व लोगों को न्याय दिलाने के लिए मशहूर वकील प्रदुम्न शाहपुरी (गुलशन देवैय्या) लड़ रहे हैं, जबकि कुलदीप को सजा दिलाने के लिए सरकारी वकील हैं-वरूण चड्ढा की पत्नी सिमरत चड्ढा (राइमा सेन).

कहानी जैसे आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि कुलदीप एक मध्यमवर्गीय परिवार का युवक है. उसके पिता औटो रिक्शा चालक हैं. कुलदीप ने पटवारी की परीक्षा दी है और अच्छे नंबर आए हैं. उसे नौकरी मिलती, उससे पहले ही राज्य के मुख्यमंत्री वरूण चड्ढा सरकारी नौकरी में आरक्षण लेकर आ जाते हैं और कुलदीप को नौकरी नहीं मिलती, जबकि उसके बचपन के दोस्त व आरक्षण श्रेणी में आने वाले जीतेंद्र उर्फ जीतू (जमील खान) को नौकरी मिल जाती है. फिर कुलदीप सड़क पर ठेला लगाकर सब्जी बेचना शुरू करता है और उसकी शादी हो जाती है. पर मुख्यमंत्री का नया आदेश उससे सड़क पर ठेला लगाकर सब्जी बेचने का हक भी छीन लेता है.

उसके बाद वह मां व पत्नी के सभी जेवर आदि बेचकर किराने की दुकान खोलता है. इसी बीच उसकी पत्नी जुड़वा बेटे व बेटी को जन्म देती है. मगर बच्चों के जिंदा रहने के लिए कुछ दिन उन्हें वेंटीलेटर पर रखना जरुरी है, पर सरकारी अस्पताल में यह सुविधा न होने की वजह से कुलदीप बच्चों को लेकर दूसरे अस्पताल जाता है, पर रास्ते में मुख्यमंत्री की वजह से जाम लगा होता है और उसके बच्चे रास्ते में मर जाते हैं. परिणामतः कुलदीप के मन में मुख्यमंत्री वरूण चड्ढा को लेकर गुस्सा है.

तो दूसरी तरफ एक अमीर खानदान से संबंध रखने वाले वरूण चड्ढा को उनके ससुर की वजह से भारतसर राष्ट्रवादी पार्टी से जुड़ने व फिर मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल जाता है. वरूण के इरादे नेक हैं, पर जाने अनजाने वह उद्योगपतियों के चंगुल व राजनीति के कुचक्र में फंसता जाता है. वह बड़े बड़े उद्योग पतियों से सांठ गांठ कर पार्टी फंड के अलावा आम लोगों को सुविधाएं देने के काम कर रहे हैं. पर इससे पार्टी के दूसरे कई सदस्य खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए उसे खिलाफ हैं.

पता चलता है कि एक उद्योगपति रमेश अग्रवाल अपने हित साधने के लिए मुख्यमंत्री पर दबाव डालकर कुछ नियम बनवाते हैं और इसके एवज में वह मिड डे मील व अन्य आम आदमी से जुड़ी योजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराते हैं. कुछ माह के बाद यह सारा पैसा आम आदमी की बजाय पार्टी से जुड़े नेताओं व मंत्रियों की जेब में जाने लगता है. यानी कि सरकारी कानून व नीतियां पूर्णरूपेण उद्योगपतियों के इशारे पर ही बनती हैं. परिणामतः जनता में वरूण के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जाता है. उधर वरूण की आम इंसानों की फिक्र को लेकर वरूण व उनकी पत्नी सिमरत के बीच मतभेद हैं. एक दिन सिमरत अपनी बेटी को लेकर घर छोड़कर चली जाती हैं.

अब कहानी आगे बढ़ती है और जीतू भी भारतसर राष्ट्रवादी पार्टी से जुड़ा हुआ है. वही कुलदीप को नशे की दवा खिलाकर उसके हाथ से वरूण पर गोली चलवाता है. मगर सबूत कुलदीप के पक्ष में नहीं हैं. पूरी बहस सुनने के बाद अदालत राज्य के कई मंत्रियों, रमेश अग्रवाल, जीतू व कुलदीप को पांच से सात साल तक की सजा सुनाती है. सजा सुनाने के बाद कुलदीप व सिमरत के बीच जो इशारे होते हैं, उससे यह साफ हो जाता है कि यह सारा किया धरा सिमरत का ही है. और कुलदीप पटवल का मुकदमा लड़ने वाले वकील प्रदुम्मन खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं. यानी कि फिल्मकार ने सरकारें किस तरह चलती हैं, इस बड़े मुद्दे की हवा महज निजी दुश्तनी पर खत्म करते हुए निकाल दी.

पूरी फिल्म बहुत धीमी गति से चलती है. फिल्म का कालखंड बार बार आगे पीछे होता रहता है. कई दृश्य कई बार दोहराए गए हैं, जिससे दर्शक फिल्म के साथ जुड़ नहीं पाता. बल्कि दर्शक मन ही मन बुदबुदाने लगता है कि ‘कहां फंसायो मेरे नाथ’. निर्माता, निर्देशक व लेखक ने कहानी तो जमीनी सच्चाई से जुड़ी हुई चुनी, मगर पटकथा लिखते समय वह बहक गए. जातिवाद, नौकरी में आरक्षण, मिड डे मील में घपला, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ उद्योगपति और राजनेताओं का भ्रष्ट गठबंधन सहित कई मुद्दों को एक साथ पेश करते हुए पूरी कहानी भटक गयी. एक भी मुद्दा ठीक से उभर नहीं पाता. इसकी लंबाई भी बेवजह बढ़ाई गयी है. यहां तक कि वह फिल्म के शीर्ष किरदार कुलदीप पटवल के संग भी न्याय नहीं कर पाए.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो दीपक डोबरियाल और गुलषन देवैय्या की जितनी तारीफ की जाए, कम है. दोनों ने जबरदस्त परफार्मेंस दी है. मगर राइमा सेन कई दृश्यों में चूक गयी. अनुराग अरोड़ा व जमील खान भी ध्यान आकर्षित करते हैं.

दो घंटे सात मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘कुलदीप पटवलःआई डिनौट डू इट’’ के लेखक, निर्माता व निर्देशक हैं-रिम्मी कोहली तथा कलाकार हैं-दीपक डोबरियाल, राइमा सेन, जमील खान, गुलशन देवैय्या, परवीन डबास व अन्य.

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