‘ट्रिन-ट्रिन…ट्रिन-ट्रिन…’ नीता का फोन बजे जा रहा था. वह घर का काम खत्म कर के नहा कर निकल रही थी कि तभी बाहर मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी.

नीता ने फोन उठाया. अंजलि का फोन था. वह पूछ रही थी कि यदि वह ज्यादा व्यस्त नहीं है तो क्या वह आ जाए? नीता ने हंस कर कहा कि यह मौसम व्यस्तता का नहीं, मौजमस्ती का है. चल, जल्दी से आ जा. चाय का पानी चढ़ाती हूं. गरमगरम पकौड़ों के साथ सावन की बौछारों का आनंद लेंगे. पर जब अंजलि आई तो मस्ती का समां बंध नहीं पाया. वह अपने में खोईखोई सी परेशान सी थी. न चैन से बैठ पा रही थी न ही चलफिर पा रही थी. बैठने, चहलकदमी व अनायास ही बिना किसी उद्देश्य के चीजों को छूने व उस की उठापटक में व्यस्त अंजलि को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह कुछ कहना चाह रही है पर कह नहीं पा रही है. सांपछछूंदर वाली स्थिति थी कि न उगला जाए न निगला जाए. नीता अंजलि की मनोस्थिति तो पहचान रही थी पर कारण उस की समझ में नहीं आ रहा था. और कारण जाने बिना वह क्या कहती, इसी पसोपेश में चुप थी.

आखिरकार अंजलि ने ही बात शुरू की, ‘‘समझ नहीं आता कि तुझे बात बताऊं या न बताऊं. पर अगर नहीं बोली तो मेरा दिमाग फट जाएगा,’’ इस वाक्य के साथ ही नीता की डरी, सहमी और आश्चर्य से फटी आंखों में आंखें डाल अंजलि जल्दी से सब उगल गई कि कैसे वह किसी की तरफ आकर्षित हो रही है और अपने पति को तलाक देने की सोच रही है.

नीता अंजलि के स्वभाव, उस की आधुनिकता से परिचित थी और उस के पति शैलेश को भी जानती थी. दोनों परिवारों का 5 साल से उठनाबैठना था, जानपहचान समय के पायदान चढ़ते गहरी मित्रता में परिवर्तित हो रही थी.

नीता की आंखों की भावनाओं में जबड़े की भंगिमा भी जुड़ गई. स्वयं को बहुत रोकने के बावजूद उस के मुंह से निकल गया, ‘‘यह क्या कह रही हो? जहां तक मैं जानती हूं, शैलेश बहुत अच्छे व्यक्ति व पति हैं. ऐसा क्या हो गया जो तुम इस निर्णय पर पहुंच गई हो?’’

अंजलि बड़बड़ा उठी, ‘‘तुम्हें नहीं पता नीता, शैलेश कितने पुरातनपंथी होते जा रहे हैं. जीवन बिलकुल नीरस हो गया है…’’ आदिआदि. अंजलि न जाने कितनी ऐसी बातें नीता को बता गई जो बहुत ही व्यक्तिगत थीं.

लोग भावुकता में ऐसी व्यक्तिगत बातें कह तो देते हैं पर बाद में वही बातें बताए गए व्यक्ति से मुंह छिपाने का कारण बन जाती हैं. आप को उन कही बातों से कुछ तो लज्जा और कुछ इस बात का भय होता है कि वह व्यक्ति जिस से ये बातें कही गई हैं, आप के बारे में अब क्या सोचता है या कितने और व्यक्तियों से उस ने ये बातें बता दी हैं या भविष्य में कहीं बता न दे.

यही भय उस से हर समय जोंक की तरह चिपका रहने के कारण वह दूसरे व्यक्ति के साहचर्य, सान्निध्यता से कतराने लगता है और उस संबंध की जड़ को ही काटने को तत्पर हो जाता है ताकि उसे भविष्य में उस व्यक्ति का सामना ही न करना पड़े.

यही बात नीता और अंजलि के संबंधों में हुई. अंजलि का शैलेश से वैवाहिक जीवन तो बच गया और ढर्रे पर भी आ गया पर नीता और अंजलि की मित्रता में दरार पड़ गई.

अंजलि नीता से मिलने से कतराती चली गई. यहां तक कि फोन पर भी व्यस्तता का बहाना बनाती रही. नीता के पूछने पर कि क्या उस से कोई गलती हुई है, अंजलि नानुकर करती रही, मुकरती रही. यहां तक कि जब शैलेश को हार्ट अटैक हुआ उस समय नीता ने  आमनेसामने या फोन पर बात करने की जगह मैसेजिंग सिस्टम का सहारा ले सहानुभूतिभरे शब्दों में एसएमएस किया, ‘‘यदि वह किसी भी प्रकार की सहायता कर सकती है तो अंजलि निसंकोच बता दे.’’

इतने पर भी जब अंजलि का जवाब नहीं आया तो नीता ने इस संबंधविच्छेद को स्वीकार कर लिया. हालांकि नीता और अंजलि की मित्रता का अंत होने में नीता का दोष नहीं था. मित्र होने के नाते वह अंजलि की गोपनीय बातें न सुनती तो मित्र कैसी जो समय पर काम न आए, पर सुनने पर बिना दोष के ही मित्र से हाथ धो बैठी. नीता आज तक यही सोचती है कि काश, उस ने वे गोपनीय बातें न सुनी होतीं तो कदाचित वे अभी भी दोस्त, सहेलियां होतीं.

सवाल उठता है कि क्या अंजलि मित्र थी? जिस सहेली ने उस की सहायता की उसी को वह छोड़ बैठी. क्या यह मित्रता की पहचान है? इस से तो मित्रता और प्रगाढ़ होनी चाहिए थी, संबंधविच्छेद की नौबत नहीं आनी चाहिए थी.

दरअसल, अच्छे दोस्तों में भी कई बातें अनकही रहें तो अच्छा है. यद्यपि परेशानी में व्यक्ति एकदूसरे से बात कर समस्या का कोई उचित हल निकाल सकता है जो लाभदायक भी होगा पर गोपनीय बातों को पचाने की सामर्थ्य भी व्यक्ति में होनी चाहिए. जहां एक ओर व्यक्ति उस समय तो गोपनीय बातों को दूसरों से कह कर अपनी छाती का भार हलका कर लेता है वहीं दूसरी ओर कुछ समय गुजर जाने के बाद उन कही बातों को याद कर या परिस्थिति प्रतिकूल होने पर उन बातों के उजागर होने की आशंका से स्वयं को उन लोगों से दूर कर लेता है.

गोपनीयता से उपजी समस्याओं का हल दोनों मित्रों की प्रकृति या मित्रता की प्रगाढ़ता पर निर्भर करता है और ऐसी मित्रता बहुत ही कम व्यक्तियों को प्राप्त होती है. इसलिए आमतौर पर कुछ व्यक्तिगत बातों को किसी से शेयर न करना ही बेहतर है.

बर्कले, कैलिफोर्निया की साइकोलौजिस्ट डा. मार्डी एस आयरलैंड का कहना उचित जान पड़ता है कि किसी बात को शेयर करना, भागीदारी करना या बिना सोचेविचारे धाराप्रवाह किसी भी तथ्य को उजागर करना जिस के प्रति आप भविष्य में पश्चात्ताप करें, ऐसी बात मन में रखना आसान नहीं होता. यह समस्या स्त्रियों में विशेषरूप से पनपती है क्योंकि उन की मित्रता में बोलना, संवाद, मित्रता की प्रगाढ़ता को बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करता है.

न्यूयार्क की मशहूर साइकोलौजिस्ट डा. गिल्डा कारले की भी मान्यता है कि आप क्या और कहां तक स्वयं की भावनाओं को उजागर करना चाहते हैं, यह बहुत ही व्यक्तिगत मामला है. यह उजागर करने वाले व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वह उजागर की हुई किस बात से किस हद तक बाद में भयभीत होता है. कोई जरा सी बात से भयभीत हो सकता है और कोई बड़ी बात से भी नहीं. इसलिए गोपनीय बातों को उजागर करने से पहले आप को स्वयं की व उस मित्र की संवेदनशीलता से परिचित होना चाहिए.

सूचनाओं के आदानप्रदान में सच्ची मित्रता में कोई भी विषय परिधि से बाहर नहीं है लेकिन कुछ व्यक्तिगत, इंटीमेट सूचनाएं एक ‘टाइम बम’ का रूप धारण कर सकती हैं. वास्तव में विशेषज्ञों का कहना है कि व्यक्तिगत बात कहने से पहले इस बात पर, इस तथ्य पर अवश्य ध्यान दें कि आप क्या और किस से बात कर रहे हैं.

न्यूयार्क की ही साइकोलौजिस्ट डा. जौन मैगडोप का कहना है कि बहुत ही कम व्यक्तियों में बात को पचाने की ताकत होती है. अधिकतर प्रगाढ़ मित्र गोपनीय बातों को गोपनीय नहीं रख पाते, उसे कम से कम एक व्यक्ति को बता ही देते हैं. सम्माननीय व्यक्ति भी कभीकभार चाहेअनचाहे, जानेअनजाने अपने मित्रों की बात कर ही लेते हैं. बात कहने के उस आनंद में उचितअनुचित की बात वे भूल जाते हैं. और नहीं तो स्त्रियां कदाचित अपने पति से तो बात बता ही देंगी, यह बात ध्यान रखने योग्य है.

कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आप मित्र से अपने हृदय की बात न कहें, पर हां, किस से ऐसी बातें कर रहे हैं, इस का ध्यान अवश्य रखें. मित्र की पहचान आप को होनी चाहिए. मित्रता की कसौटी में कौन खरा है, कौन खोटा, इसे दृष्टिगत रखते हुए चुनाव करें. मानव ही मानव का संबल बन सकता है. गोपनीय बातों में किसे भागीदार बनाना है, इस का उचित चुनाव जरूरी है. मित्रता में वफादारी दोनों ही ओर से होनी चाहिए, तभी बात बनती है, अन्यथा नहीं.

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