इन दिनों फिल्मकारों में सबसे बड़ी समस्या यह नजर आ रही है कि वह देश व समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को अपनी फिल्म की विषयवस्तु के रूप में चुन तो लेते हैं, मगर फिर पटकथा लेखन व निर्देशन के तौर पर उस पर आवश्यक मेहनत करने से बचते हुए घटिया फिल्म बनाकर परोस देते हैं. ऐसा ही कुछ लेखक व निर्देशक रेमी कोहली की फिल्म ‘‘कुलदीप पटवल’’ को देखकर अहसास होता है. अफसोस इस बात का है कि रेमी कोहली अपनी राजनीतिक व्यंग फिल्म ‘‘कुलदीप पटवल’’ में दीपक डोबरियाल, राइमा सेन, गुलशन देवैया जैसे बेहतरीन कलाकारों को जोड़ने के बावजूद अच्छी फिल्म नहीं बना पाए.
फिल्म ‘‘कुलदीप पटवल’’ की कहानी कुलदीप पटवल (दीपक डोबरियाल) नामक एक आम इंसान की है, जिस पर राज्य के मुख्य मंत्री वरूण चड्ढा (परवीन डबास) की हत्या करने का आरोप लगा है. अदालत में कुलदीप का मुकदमा ईमानदार व लोगों को न्याय दिलाने के लिए मशहूर वकील प्रदुम्न शाहपुरी (गुलशन देवैय्या) लड़ रहे हैं, जबकि कुलदीप को सजा दिलाने के लिए सरकारी वकील हैं-वरूण चड्ढा की पत्नी सिमरत चड्ढा (राइमा सेन).
कहानी जैसे आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि कुलदीप एक मध्यमवर्गीय परिवार का युवक है. उसके पिता औटो रिक्शा चालक हैं. कुलदीप ने पटवारी की परीक्षा दी है और अच्छे नंबर आए हैं. उसे नौकरी मिलती, उससे पहले ही राज्य के मुख्यमंत्री वरूण चड्ढा सरकारी नौकरी में आरक्षण लेकर आ जाते हैं और कुलदीप को नौकरी नहीं मिलती, जबकि उसके बचपन के दोस्त व आरक्षण श्रेणी में आने वाले जीतेंद्र उर्फ जीतू (जमील खान) को नौकरी मिल जाती है. फिर कुलदीप सड़क पर ठेला लगाकर सब्जी बेचना शुरू करता है और उसकी शादी हो जाती है. पर मुख्यमंत्री का नया आदेश उससे सड़क पर ठेला लगाकर सब्जी बेचने का हक भी छीन लेता है.