भारत में हर साल करीब 1.25 करोड़ लोग कैंसर से पीडि़त पाए जाते हैं. इन में 5,99,000 से अधिक महिलाएं होती हैं. आंकड़े दर्शाते हैं कि इन में से करीब 50 प्रतिशत कैंसर रोगियों की उम्र 50 वर्ष से कम होती है.

युवा कैंसर रोगियों की इस तेजी से बढ़ती संख्या से उन की प्रजनन क्षमता को संरक्षित रखने को ले कर चिंता व्यक्त की जाने लगी है. अब तक तो किसी कैंसर पीडि़त को ले कर चिकित्सकों का मुख्य फोकस इस पर होता था कि कैंसर कोशिकाओं को हटा कर किसी तरह से मरीज की जान बचाई जाए. प्रजनन और बच्चे पैदा करने की क्षमता आदि के बारे में कम ही ध्यान दिया जाता था. परंतु, प्रौद्योगिकी में सुधार और चिकित्सा में प्रगति होने के साथ अब मरीज की जान बचाने के अलावा यह भी देखा जाने लगा है कि इलाज के बाद उस व्यक्ति को संतानोत्पत्ति योग्य भी बनाया जाए.

कैंसर रोगी अब अकसर बचा लिए जाते हैं और चिकित्सकीय प्रगति इस बीमारी पर भारी पड़ने लगी है. ऐसे में कैंसर से बचाए जा चुके लोग अब संतानोत्पत्ति और पारिवारिक जीवन के बारे में सोच सकते हैं.

कैंसर और बांझपन का खतरा

एक कैंसर रोगी के बांझपन का खतरा कैंसर के प्रकार और उसे दिए जा रहे विशेष उपचार पर निर्भर करता है. विभिन्न प्रकार के कैंसर और उन के उपचार, जैसे- कीमोथेरैपी, रेडिएशन थेरैपी, सर्जरी, टारगेटेड और जैविक (इम्यून) चिकित्सा, बोन मैरो या स्टेम सैल प्रत्यारोपण आदि गर्भधारण करने में रोगी की क्षमता को विभिन्न तरह से प्रभावित कर सकते हैं. ऊसाइट (प्रजनन में शामिल जर्म सैल) पर विषैले प्रभाव के कारण कीमोथेरैपी एक कैंसर रोगी की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है.

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