राजस्थान तो जैसे अंधविश्वास में ही जीता रहा है. गांवढांबी की बात तो छोड़ो, शहरी पढ़ेलिखे भी अंधविश्वास में जी रहे हैं. कसबों और शहरों में हर शनिवार को दुकान, मकान, गाड़ी में नीबूमिर्च टांगने का अंधविश्वास जोरों पर है.
लोगों की सोच है कि इस से नजर नहीं लगती और धंधा सही होता है. मगर वे लोग यह भूल जाते हैं कि बड़ीबड़ी कंपनियां, होटल व दफ्तरों में नीबूमिर्च नहीं बांधे जाते तो क्या उन का धंधा नहीं चलता?
जो लोग शनिदेव के नाम पर नीबूमिर्च हर शनिवार को बेचते हैं, उन की बल्लेबल्ले है. वे लोग इस के 10 रुपए लेते हैं. साथ ही, सरसों का तेल भी लेते हैं.
एक किलो हरी मिर्च व एक किलो नीबू तकरीबन सौ रुपए में आता है. इन को बांध कर बेचने से ऐसे लोग एक हजार से 15 सौ रुपए कमाते हैं और तेल अलग से मिलता है. वह तेल दुकान पर बेच देते हैं.
कहने का मतलब है कि इस धंधे से जुड़े लोग हर शनिवार को 2 हजार रुपए कमाते हैं. अगर महीने में 4 शनिवार हैं तो 8 हजार रुपए कमा लेते हैं, सिर्फ 4 दिन में.
इन्हीं की तरह बाबा लोग जटा बढ़ा कर, तिलक लगा कर झोलीझंडा लिए राजस्थान के गांवढांणी से ले कर शहरों तक में दानदक्षिणा लेते दिख जाते हैं.
ये लोग भोलेभाले लोगों को ऊपर वाले के नाम पर डरा कर और अच्छे दिन का झांसा दे कर लूटते फिरते हैं.
जैसलमेर शहर में सैकड़ों ऐसे बाबा दिख जाएंगे जो दिनभर भीख के नाम पर लोगों की जेबें हलकी करते हैं. इन बाबाओं का ठिकाना गड़सीसर सरोवर के पास है. वहां रात में ये भगवाधारी बाबा दारूमीट की दावत उड़ाते दिख जाते हैं. हर रोज यहां ऊपर वाले के नाम पर लिए गए पैसे से पार्टी होती है.