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मेरी उम्र 32 साल है. मेरे घर वाले शादी के लिए दबाव बना रहे हैं. मैं जिंदगीभर अकेले रहना चाहती हूं. क्या करूं.

सवाल
मेरी उम्र 32 साल है और मैं आईटी कंपनी में सीनियर पद पर हूं. मेरे घर वाले मुझ पर शादी के लिए दबाव बना रहे हैं जिस कारण मेरा उन से झगड़ा रहता है क्योंकि मैं जिंदगीभर अकेले रहना चाहती हूं न कि बंदिशों में. अगर मेरे मम्मीपापा ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं घर से दूर चली जाऊंगी. क्या मेरा ऐसा सोचना सही है?

जवाब
भले ही आप कितनी अच्छी जौब करती हों लेकिन हमसफर की जरूरत तो लाइफ में एक न एक दिन हर किसी को होती है. और आप के पेरैंट्स आप के शुभचिंतक हैं तभी वे आप के लिए अपने जीतेजी अच्छा लड़का देख कर उस से आप की शादी करना चाहते हैं. जबकि, आप हैं कि उन से लड़ाई करती हैं और यहां तक कि पेरैंट्स से दूर जाने तक के बारे में भी सोच रही हैं, जो सही नहीं है. इसलिए आप कैसा लड़का पसंदकरती हैं, इस बारे में अपने पेरैंट्स को बता कर जल्द से जल्द किसी की जिंदगी को अपने प्यार से रोशन करिए. और यह बात मन से निकाल दें कि शादी मतलब बंदिश बल्कि यह तो आप की जिं?दगी को खुशियों से भरने वाला रिश्ता है.

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नवविवाहिता और नौकरी

‘‘लड़कियों की शादी देर से होने का एक कारण यह भी है कि आज लड़कियां अपना कैरियर बना कर आत्मनिर्भर बन कर ही शादी करना चाहती हैं. लेकिन जब नौकरी के दौरान किसी लड़की की शादी होती है तो बढ़ती हुई जिम्मेदारियों के साथ उस का कैरियर भी प्रभावित होने लगता है. इसलिए अगर आप की शादी हाल ही में हुई है या होने वाली है तो शादी और आफिस के बीच सामंजस्य बैठा कर चलें ताकि आप की शादीशुदा जिंदगी और आफिस दोनों ही प्रभावित न हों,’’ यह कहना है कैरियर काउंसलर प्रांजलि मल्होत्रा का.

रचना का कहना है, ‘‘जब मेरी नईनई शादी हुई तो आफिस और घर में सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो गया. अपने मायके में मैं ने वे सब काम जो कभी नहीं किए थे वे मुझे ससुराल में करने पड़े. यहां तक कि मेरा लंच भी मेरी मम्मी बाहर तक पकड़ाने आती थीं और अब ससुराल में अपने पूरे परिवार का लंच बनाना पड़ता है. इसी के चलते देर हो जाती थी. इस वजह से मेरे बौस मुझ से नाराज रहने लगे और एक दिन मेरी जौब पर बन आई तो मुझे होश आया और मैं ने उस दिन से अपने आफिस पर पूरा ध्यान देना शुरू कर दिया.’’

प्राथमिकता को समझें

शादी से पहले की और बाद की स्थितियों में बहुत बड़ा फर्क है. शादी के बाद आप को दोहरी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं. इसलिए अपने बढ़े हुए कार्यभार को देख कर घबरा न जाएं बल्कि उसे इस तरह मैनेज करें कि सब कुछ व्यवस्थित रहे. शादी होने से पहले ही अपने भावी पति से अपने आफिस के बारे में बीचबीच में बात करती रहें. उन्हें बताएं कि आप किस तरह का कार्य करती हैं और आप का कितना जिम्मेदारी वाला काम है ताकि वे आप के काम की प्रकृति के बारे में सब जान जाएं और भविष्य में जरूरत पड़ने पर आप का साथ दे सकें.

काम को मैनेज करें

आप की अनुपस्थिति में आप के जिस सहयोगी को आप का कार्यभार सौंपा जा रहा हो उस से मीटिंग करें और अपने कामकाज से संबंधित सभी जरूरी बातें उसे बता दें ताकि उसे आसानी हो और कोई काम समझ न आ रहा हो तो उसे समझा दें.

शादी के लिए ली गई छुट्टियों से लौटने पर एक दिन पहले फोन कर के अपने सहयोगी से अपने कामकाज के बारे में पूरी जानकारी ले लें ताकि आफिस आने पर आप किसी काम से अनभिज्ञ न रहें और आप को काम में कोई परेशानी न हो.

कई लड़कियों की आदत होती है कि शादी की छुट्टियों से आने के बाद भी वे काम के मूड में कम और मस्ती के मूड में ज्यादा रहती हैं. खुद तो काम करती नहीं, अपनी सहेलियों को भी शादी से जुड़ी बातें बताने के लिए घेरे बैठी रहती हैं. ऐसी बातें या हरकतें बौस से छिपी नहीं रहतीं इसलिए बेकार की बातों में समय व्यर्थ कर अपनी बनीबनाई इमेज को खराब न करें.

पहनावे पर ध्यान दें

नईनई शादी के बाद आफिस जाते समय अपने पहनावे व मेकअप पर भी ध्यान दें कि वह बहुत ज्यादा भड़कीला न हो.

शादी के बाद अचानक ही किसी भी लड़की के जीवन में जिम्मेदारियां आना स्वाभाविक है और अगर वह संयुक्त परिवार में है तो जिम्मेदारियां कुछ ज्यादा ही आ जाती हैं. फिर भी इन सब बातों के चलते आफिस को नजरअंदाज न करें.

कई लड़कियां परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने के कारण बारबार छुट्टियां लेती हैं. आफिस से घर जाने की जल्दी मचाती हैं और देर से आफिस पहुंचती हैं, जिस से उन के काम पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही बौस कोई जिम्मेदारी वाला काम भी उन्हें देने से पहले कई बार सोचते हैं. अपना सुबह का काम इस तरह से विभाजित करें कि आप घर का कामकाज भी निबटा लें और आफिस पहुंचने में देर भी न हो.

मेहमानों को छुट्टी के दिन ही घर बुलाएं. वर्किंग डे में बुलाने पर आप को दिक्कत हो सकती है.

अगर आप की कोई घरेलू परेशानी है तो उस का रोना आफिस में न रोएं. घर की परेशानियां घर ही छोड़ आएं, उन्हें अपने आफिस के काम पर हावी न होने दें.

होली के मौके पर ट्रेन से भी सस्ता हुआ हवाई टिकट

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होली का त्योहार नजदीक है. ऐसे में यदि आप कही घूमने का प्लान बना रहे हैं तो कई एयरलाइंस कंपनियां सस्ते एयर टिकट का बंपर औफर दे रही हैं. जी हां, इस बार आपके पास ट्रेन नहीं बल्कि प्लेन में सफर करने का मौका है, वो भी सस्ते किराये पर. हवाई यात्रा का सस्ता औफर देने वाली तमाम एयरलाइंस कंपनियों में गो एयर, एयर एशिया और जेट एयरवेज शामिल हैं. इनमें से गोएयर तो 991 रुपये की शुरुआती कीमत में हवाई सफर के टिकट की पेशकश कर रही है. वहीं एयर एशिया की तरफ से प्रमोशनल स्कीम के तहत 20 फीसद तक की छूट दी जा रही है. इसी तरह जेट एयरवेज भी चुनिंदा रूट्स की टिकट पर 20 फीसदी का डिस्काउंट दे रहा है. इन फ्लाइट टिकटों को एयरलाइन की वेबसाइट से बुक किया जा सकता है.

क्या है गोएयर का औफर

गोएयर घरेलू फ्लाइट टिकट 991 रुपये (सभी कर शामिल) की शुरुआती कीमत पर दे रही है. एयरलाइन के अनुसार यह डिस्काउंट औफर होली लौन्ग वीकेंड स्कीम का हिस्सा है. गोएयर का यह औफर कुछ चुनिंदा रूट्स के लिए ही वैध है. यदि आप भी गोएयर के औफर का फायदा उठाना चाहते हैं तो आपको कुछ नियम व शर्तों को पूरा करना जरूरी है. इसके लिए आप www.goair.in पर जाकर जानकारी ले सकते हैं. इसके अलावा यदि ग्राहक एचडीएफसी बैंक के डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिए भुगतान करते हैं तो वह 10 फीसद का अतिरिक्त छूट लाभ उठा सकते हैं.

किस रूट पर कितना है किराया

बागडोगरा से गुवाहाटी तक के लिए टिकट 991 रुपये

चेन्नई से कोच्चि तक के लिए 1120 रुपये

गुवाहाटी से बागडोगरा तक के लिए 1291 रुपये

बेंगलुरू से कोच्चि तक के लिए 1390 रुपये

पटना से रांची तक के लिए 1560 रुपये रखी गई है

इसमें इनके अलावा अन्य रूट्स भी शामिल है. सभी रूट्स के बारे में एयरलाइन की वेबसाइट पर देखा जा सकता है.

एयर एशिया का औफर

आमतौर पर हर फेस्टिवल पर डिस्काउंट देने वाली एयरलाइन एयर एशिया ने होली पर यात्रियों को 20 प्रतिशत तक की छूट देने की घोषणा की है. इसी तरह इंटरनेशनल फ्लाइट पर भी एयर एशिया की पैरेंट कंपनी की तरफ से 20 प्रतिशत की छूट दी जा रही है. कंपनी का यह औफर 25 फरवरी तक ही है. यदि आप भी एयर एशिया के औफर का फायदा उठाना चाहते हैं तो इस औफर के तहत शामिल किए गए रूट को आपको चुनना होगा. एयर एशिया बेंगलुरू, नई दिल्ली, चेन्नई, विशाखापटनम आदि के रूट्स पर छूट दे रहा है. इसके तहत 26 फरवरी, 2018 से 31 जुलाई 2018 तक के बीच यात्रा की जा सकती है.

क्या है जेट एयरवेज का डिस्काउंट

जेट एयरवेज होली औफर के तहत चुनिंदा रूट्स पर फ्लाइट टिकटों पर 20 फीसद तक का डिस्काउंट दे रहा है. इस औफर का लाभ प्रीमियम और इकोनौमी क्लास पर उठाया जा सकता है. यह जानकारी कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर दी है. इसके लिए आखिरी बुकिंग 23 फरवरी, 2018 तक की जा सकती है. वहीं, यात्रा 24 फरवरी, 2018 से लेकर 24 मार्च, 2018 के बीच की जा सकती है. 20 फीसद डिस्काउंट प्रीमियर के बेस फेयर पर और 10 फीसद इकोनौमी के बेस फेयर पर लागू है. अधिक जानकारी आप जेट एयरवेज की वेबसाइट (www.jetairways.com) से प्राप्त कर सकते हैं.

हमारी अर्थव्यवस्था एक भ्रम : खोखली हो चुकी है भारत की अर्थव्यवस्था

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हार्वर्ड शोधकर्ताओं का अनुमान है कि भारत आने वाले दशक के लिए सब से तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था होगी. विश्व बैंक और आईएमएफ द्वारा एकत्र आंकड़ों के आधार पर अमेरिका के कृषि आर्थिक अनुसंधान सेवा विभाग ने अनुमान लगाया है कि भारत 2030 तक तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है, जो 4 विकसित देशों, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस को पार कर जाएगी.

32 देशों के लिए प्राइस वाटरहाउस कूपर ने दीर्घकालिक वृद्धि की भविष्यवाणी की है कि 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सब से मजबूत अर्थव्यवस्था होगी.

सरकारें अर्थव्यवस्था के भ्रमित करते आंकड़ों से अपनी पीठ थपथपाने के बजाय देश की बड़ी आबादी की तंगहाल जीवनदशा को सुधारने के क्रम में कुछ कदम उठाए तो ही देश में गरीबी दूर हो सकती है. कृषि क्षेत्र की दयनीय स्थिति भी भारत में गरीबी का अहम कारण है.

उपरोक्त सुर्खियां भारत की अर्थव्यवस्था के बहुत अधिक सुदृढ़ होने व तेजी से आगे बढ़ने का भ्रम पैदा करती हैं, जबकि अनेक अर्थशास्त्री भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से नीचे जाने व विकास की गति मंद होने की आलोचना कर रहे हैं. नोटबंदी व जीएसटी उस की बड़ी वजह मानी जा रही हैं.

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अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सकल घरेलू उत्पाद 2.44 ट्रिलियन डौलर के साथ विश्व में 7वें नंबर पर थी जोकि विश्व की सकल घरेलू उत्पाद में 3.08 फीसदी का अंशदान कर रही है. विश्व की 10 सब से बड़ी अर्थव्यवस्थाएं, उन की जनसंख्या, वहां की प्रतिव्यक्ति आय व उन के क्षेत्रफल तालिका-1 में दर्ज हैं :

तालिका से स्पष्ट है कि यद्यपि भारत अर्थव्यवस्था के आकार में विश्व में 7वें स्थान पर है किंतु यह कोई गर्व करने वाली स्थिति नहीं है. अर्थव्यवस्था का यह स्थान मुख्यरूप से भारत की विशाल जनसंख्या के कारण है. भारत का कुल क्षेत्रफल यूएसए का लगभग 1/3 है जबकि उस की जनसंख्या वहां से 3 गुना अधिक है. भारत 144वें स्थान पर है.

बाकी ढोल पीटना है

वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय के मामले में भारत का विश्व में 144वां स्थान है जबकि क्रय शक्ति समता के आधार पर भारत का विश्व में 126वां स्थान है. एक अमेरिकी के मुकाबले एक भारतीय की प्रतिव्यक्ति आय मात्र 3.11 फीसदी है. यहां तक कि चीन के मुकाबले भी यह मात्र 21.58 फीसदी है. यह फर्क स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भारत की वास्तविक स्थिति क्या है. बहुत से पिछड़े कहे जाने वाले देश हम से बेहतर स्थिति में हैं.

अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 1.90 डौलर से कम आय के व्यक्ति अत्यधिक गरीब माने जाते हैं. वर्ष 2011 में भारत में 21.2 फीसदी व्यक्ति इस श्रेणी में आते थे. भारतीय रिजर्व बैंक के डाटा के अनुसार भी वर्ष 2011-12 में भारत की कुल जनसंख्या का 21.92 फीसदी भाग, लगभग 26.98 करोड़ व्यक्ति गरीबीरेखा के नीचे थे.

उक्त विवेचना से स्पष्ट है कि हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में 9वें स्थान पर है किंतु वह अभी भी विश्व के गरीबतम देशों में से एक है.

क्या हैं कारण

यदि हम भारत की गरीबी के कारणों की विवेचना करें तो ये कारण स्पष्ट रूप से सामने आते हैं :

वर्ष 2013 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में सैक्टरवार रोजगार की स्थिति थी: कृषि : 49.7 फीसदी, उद्दोग : 21.5 फीसदी और सेवा क्षेत्र : 28.7 फीसदी.

इन आंकड़ों की तुलना यूएसए और चीन से करें तो स्थिति भयावह व शर्मनाक नजर आती है. यूएसए में वर्ष 2014 में कुल कार्यरत जनसंख्या का मात्र 1.4 फीसदी सीधे कृषि क्षेत्र से जुड़ा था जबकि 12.7 फीसदी रोजगार उद्योग क्षेत्र में. 80.1 फीसदी रोजगार सेवा क्षेत्र में व 5.7 फीसदी स्वरोजगार क्षेत्र में था. यहां पर एक उल्लेखनीय बात है कि यूएसए में वर्ष 1870 में कम से कम 50 फीसदी जनसंख्या कृषि से रोजगार पा रही थी.

चीन में भी वर्ष 2016 में कुल कार्यरत जनसंख्या का 27.7 फीसदी सीधे कृषि क्षेत्र से जुड़ा था जबकि 28.8 फीसदी उद्योग क्षेत्र से तथा 43.5 फीसदी सेवा क्षेत्र में कार्यरत था. सो, यह स्पष्ट है कि जिस अर्थव्यवस्था में रोजगार के लिए कृषि पर निर्भरता जितनी अधिक है, उस की प्रतिव्यक्ति आय उतनी ही कम है.

कृषि की दयनीय स्थिति

भारत में गरीबी का एक बहुत बड़ा कारण उस के कृषि क्षेत्र की दयनीय स्थिति है. जहां एक ओर भारत की कुल कार्यरत जनसंख्या का 49.7 फीसदी भाग कृषि क्षेत्र से जुड़ा है वहीं कृषि क्षेत्र का कुल आय में योगदान मात्र 17.4 फीसदी है. भारतीय कृषकों का 62.8 फीसदी भाग सीमांत कृषकों का है जिन का औसत कृषि भूमि स्वामित्व मात्र 0.24 हैक्टेअर का है. इस का भी मात्र 51 फीसदी भाग ही सिंचित है. लघु कृषकों का भाग 17.8 फीसदी है जिन का औसत कृषि भूमि स्वामित्व 1.42 हैक्टेअर है और इस का मात्र 39 फीसदी भाग ही सिंचित है.

भारतीय कृषक परिवारों के प्रतिमाह आय व व्यय के आंकड़े क्या हैं, इस को तालिका-2 में दर्ज किया जा रहा है.

तालिका-2 से स्पष्ट है कि कुल कृषक परिवारों का 80 फीसदी से अधिक भाग अपने प्रतिमाह व्यय से बहुत कम कमा पाता है. परिणामस्वरूप उसे इस कमी को पूरा करने के लिए ऋण लेना पड़ता है. आय की कमी के कारण कृषक एक ऐसे कुचक्र में फंस जाता है जिस से बाहर आना उस के लिए तब तक संभव नहीं है जब तक कि उस को किसी अन्य माध्यम से नियमितरूप से अतिरिक्त आय प्राप्त नहीं हो जाती है.

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संपत्ति का असमान वितरण

समग्र प्रतिव्यक्ति आय कम होने के साथसाथ भारत में आर्थिक विषमता बहुत अधिक है. आर्थिक विषमता के मामले में भारत विश्व में रूस के बाद दूसरे स्थान पर है. भारत के 1 प्रतिशत सर्वाधिक धनी व्यक्ति कुल संपत्ति का 58.4 फीसदी भाग रखते हैं. सरकारें हमेशा इन्हीं 58.4 फीसदी धनवानों की सुनती हैं.

देश की कुल संपत्ति में निम्नतम

30 फीसदी लोगों के पास कुल संपत्ति का मात्र 1.4 फीसदी भाग ही है. देश के निम्नतम 70 फीसदी लोगों के पास कुल संपत्ति का मात्र 10.9 फीसदी भाग ही है. यह अंतर लगातार बढ़ता ही जा रहा है. परिणामस्वरूप, देश की आर्थिक प्रगति का लाभ नीचे के लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है.

निर्यात में कम हिस्सेदारी

विश्व की सब से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की तुलना करें तो हम पाते हैं कि यहां भी भारत की स्थिति संतोषजनक नहीं है. द वर्ड फैक्टबुक के अनुसार, वर्ष 2016 के अनुमानित आयात व निर्यात की स्थिति क्या थी, यह तालिका-3 में दर्ज है :

उक्त तालिका से स्पष्ट है कि खुद को विश्व की 7वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बता कर अपनी पीठ थपथपाने से भारत की स्थिति नहीं बदलेगी. यदि भारत को अपनी स्थिति बेहतर करनी है तो उसे अपनी मूलभूत कमजोरियों को दूर करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे.

कृषि पर निर्भर जनसंख्या को रोजगार के दूसरे स्रोत उपलब्ध कराने होंगे, उन की कृषि पर से निर्भरता कम करनी होगी, विश्व के निर्यात में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी और सब से महत्त्वपूर्ण संपत्ति के वितरण की असमानता को कम करना होगा. तभी हम अपनी अर्थव्यवस्था को हकीकत में गर्व करने लायक बना सकेंगे.

इस सब के लिए देश की सामाजिक स्थिति जिम्मेदार है जिस में धर्म का सब से ज्यादा रोल है जिस ने देश की जनता को अकर्मण्य बना रखा है.

शराब है खराब : घर, परिवार, समाज व प्रतिष्ठा सब को होता है नुकसान

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एक बोध कथा है जिस में अलौकिकता पर न जाएं. कथा के  अनुसार, एक दिन शैतान मनुष्य के पास आया और बोला, ‘तुम सब मरने ही वाले हो. मैं तुम्हें मौत से बचा सकता हूं बशर्ते, तुम अपने नौकर को मार डालो, अपनी पत्नी की पिटाई करो या यह शराब पी लो.’

मनुष्य ने कहा, ‘मुझे जरा सोचने दीजिए अपने विश्वसनीय नौकर की हत्या करना मेरे लिए संभव नहीं, पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करना बेतुकी बात होगी. हां, मैं यह शराब पी लूंगा.’ उस के बाद उस ने शराब पी ली और नशे में धुत हो कर पत्नी को पीटा तथा जब नौकर ने उस की पत्नी का बचाव करने की कोशिश की तो नौकर को मार डाला.

उपरोक्त बोधकथा से मद्यपान के हमारे जीवन पर पड़ने वाले कुप्रभाव को भलीभांति समझा जा सकता है. निसंहेद मद्यपान का हमारे जीवन पर घातक प्रभाव पड़ता है. किंतु इस के बावजूद आज जिधर देखो उधर युवाबूढ़े, स्त्रीपुरुष, अमीरगरीब सभी इस घातक जहर की चपेट में नजर आते हैं. शराब पीना आजकल फैशन सा बन गया है. फैशनपरस्त लोगों ने साजसिंगार तथा वेशभूषा तक ही सीमित न रह कर शराब को भी उस के दायरे में समेट लिया है. शराब पीने से इनकार करने वाले को अब पुराने विचारों का तथा रूढि़वादी करार दिया जाता है और अपने को आधुनिक व प्रभावशाली साबित करने का इच्छुक हर व्यक्ति उस के खतरों को नजरअंदाज करते हुए या जानेअनजाने में इस के जानलेवा जाल में फंसता जा रहा है.

क्यों पीते हैं शराब

इस के कई कारण हैं. अकसर देखने में आता है कि मानसिक तनाव के कारण लोग शराब पीते हैं. जब व्यक्ति किसी समस्या का हल पाने में असफल होता है तो शराब पी कर उसे भूलने की चेष्टा करता है. अधिकांश मामलों में यही देखा गया है कि हताशा मद्यपान का कारण बनती है. पारिवारिक कलह, आर्थिक अभाव या कभीकभी शारीरिक यंत्रणा से मुक्ति पाने के लिए लोग इसे मुंह से लगा बैठते हैं. किंतु क्या इसे उचित कहा जा सकता है? शराब किसी समस्या का समाधान तो नहीं हो सकती या शराब पी कर भूलने से आप की समस्या का अंत तो नहीं हो जाता. किसी भी परेशानी से घबरा कर शराब पीना एक और परेशानी को गले लगाना है, उस से छुटकारा पाना नहीं.

शराब पीने के लिए लोगों के पास बहानों की कमी नहीं है. कुछ व्यक्ति केवल इसलिए शराब पीते हैं कि लोग उन्हें विशिष्ट समझें, वे शराब को स्टेटस व संपन्नता का प्रतीक मानते हैं. वे यह भूल जाते हैं कि शराब का सेवन करना दिमागी खोखलेपन की निशानी भी है. दिनभर मेहनत करने के बाद शाम को शराब पीने वालों का तर्क होता है कि इस से थकान दूर हो जाती है. ये लोग शराब पीने के बाद डगमगा कर चलने व बेहोश हो जाने को ही शायद थकान का दूर होना समझते हैं.

आजकल किसी भी सामाजिक उत्सव या त्योहार पर गिलासों की खनखनाहट होनी आम बात होती है. ऐसे अवसरों पर अकसर ही यह सुना जाता है कि सोसायटी में रहना है तो उस के हिसाब से ही चलना होगा, और फिर सोसायटी में यह सब चलता ही है. इन चीजों को अपनाए बगैर कोई भी उन्नति नहीं कर सकता. यहां ये लोग शायद यह भूल जाते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने परिश्रम व लगन से उन्नति करता है, शराब पीने से नहीं.

शराब के संपर्क में आने के बाद व्यक्ति के पास चरित्र नाम की कोई चीज नहीं रह जाती है. कहने को इस के बचाव में वह कुछ भी कहता रहे, शराब पी कर वह केवल अपनेआप को धोखा देता है और जो व्यक्ति अपनेआप को धोखा देता है उस का क्या चरित्र हो सकता है.

विचारशक्ति खत्म होती है

कभीकभी कुछ व्यक्ति केवल झगड़ा करने के लिए शराब पीते हैं ताकि स्फूर्ति आ जाए. जबकि, ऐसा होता नहीं है. शराब पीने के बाद आदमी सामान्य नहीं रह पाता है क्योंकि हमारे मस्तिष्क में कुछ ऐसे तंत्र होते हैं जो हमारे बोलनेचालने या काम करने के तौरतरीके आदि को नियंत्रित करते हैं. शराब पीने के बाद वह नियंत्रण समाप्त हो जाता है और आदमी के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो जाती है. वह उचितअनुचित का भेद नहीं कर पाता है और सभ्यता व शिष्टाचार की सीमा लांघ कर अपशब्द बोलने लगता है. इस के अतिरिक्त, कुछ व्यक्ति यह सोच कर भी शराब पीते हैं कि वे जिस से झगड़ा करने जा रहे हैं वह उन्हें नशे में देख कर डर जाएगा. पर मजा तो तब आता है जब इस का उलटा होता है और इन की पिटाई हो जाती है क्योंकि नशे में इन की प्रतिरोध क्षमता खत्म हो जाती है.

जो व्यक्ति शराब के आदी नहीं होते हैं वे कभीकभी मित्रों आदि पर रोब गांठने के लिए पी लेते हैं तो कुछ लोग यह सोचते हैं कि जहां अन्य सभी पीने वाले हों, वहां एक व्यक्ति शराब को हाथ नहीं  लगाता है तो लोग उसे बेवकूफ समझेंगे और उसे इग्नोर करने लगेंगे. इसलिए वह न चाहते हुए भी अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए पीतापिलाता रहता है. ऐसा कर के वह सोचता है कि वह भी आधुनिक और उच्च श्रेणी में आ गया है. किंतु पीने के बाद यही व्यक्ति नशें में धुत हो कर जब घर जाता है और अपनी पत्नी व बच्चों को पीटता है तो ऐसा कर के वह अपनी नीचता का ही प्रदर्शन करता है, आधुनिकता या श्रेष्ठता का नहीं.

छोटेछोटे बालक शुरू में अपने बड़ेबुजुर्गों की देखादेखी शराब पीना शुरू करते हैं, क्योंकि जब वे उन्हें पीता देखते हैं तो उन के बालसुलभ मन में भी वैसा ही करने की स्वाभाविक इच्छा जागृत होती है. इस तरह वे छिप कर शराब पीना शुरू कर देते हैं और आगे चल कर इस के आदी हो जाते हैं.

पीने की आदत

एक बार शराब का सेवन करने के बाद व्यक्ति इस की गिरफ्त में आ जाता है और फिर एक आदत बन जाती है. पहली बार शराब का सेवन करते समय आदमी यह सोचता है कि वह शराब का आदी थोड़े ही बन रहा है. पर वह यह नहीं जानता है कि एक बार पीना शुरू कर देने पर इतना विवेक किस में होता है कि अच्छाबुरा सोच सके.

शराब पीने की आदत पड़ जाने पर लोग पैसा न हो तो उधार ले कर पीना शुरू कर देते हैं. उधार न मिलने पर शराब प्राप्त करने के लिए लोग चोरी, जेबकतरी और रिश्वतखोरी आदि करते हैं. घर में कलह शुरू होता है और घर बरबाद हो जाता है. शराब के नशे में गाडि़यां चला कर दुर्घटनाएं, हत्याएं, बलात्कार व अन्य जघन्य अपराध करने के समाचार हम प्रतिदिन पढ़ते, सुनते व देखते हैं. ऐसा कौन सा कुकृत्य है जो शराब के नशे में और शराब को प्राप्त करने के लिए नहीं किया जाता.

इन सब बातों के विपरीत कोई शराबी यह नहीं चाहता कि उस की संतान शराब को हाथ लगाए. वह यह  भी नहीं चाहता कि उस के निवास स्थान के पास शराब की दुकान या होटल आदि हो. क्या यह तथ्य यह बात सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि एक शराबी भी शराब को घृणा की दृष्टि से देखता है.

इन सब बातों को जानते व समझते हुए भी बहुत से लोग शराब पीना छोड़ना नहीं चाहते हैं. कुछ लोग छोड़ना चाहते हुए भी कहते हैं कि क्या करें, छूटती ही नहीं. माना शराब मनुष्य की बहुत बड़ी कमजोरी है पर कमजोरियों पर विजय भी तो मनुष्य ने ही पाई है. ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसे मनुष्य पूरी इच्छा से करना चाहे और न कर सके. आवश्यकता केवल दृढ़प्रतिज्ञ होने की है.

डिजिटल इंडिया में कियोस्क केंद्रों की लूट, सुविधा नहीं दुविधा केंद्र

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देश में तेजी से बढ़ते डिजिटाइजेशन के नाम पर हर कार्य औनलाइन किए जाने की अनिवार्यता के चलते जहां आमजन परेशानी का अनुभव करता है तो वहीं औनलाइन कार्य से जुड़े कियोस्क सैंटर्स लोगों की जेब पर डाका डालने का काम कर रहे हैं. मोदी सरकार द्वारा आधार कार्ड को बैंक खाते, मोबाइल नंबर, एलपीजी गैस आदि से लिंक कराने को अनिवार्य किए जाने से देश की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अपने रोजमर्रा के काम छोड़ कर आधार लिंक कराने के लिए इन औनलाइन सैंटर्स के चक्कर लगाने पर मजबूर है. सरकारी नौकरियों में अब प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिए चयन होने लगा है. अखबारों के माध्यम से पद विज्ञापित कर औनलाइन पोर्टल के माध्यम से परीक्षाओं के फौर्म भरवाए जाते हैं. ऐसे में बेरोजगार युवकयुवतियां सरकारी नौकरी की आस में इन औनलाइन कियोस्क सैंटर्स के इर्दगिर्द चक्कर पर चक्कर लगा कर अपना अमूल्य समय व धन खराब करने पर मजबूर हैं.

मध्य प्रदेश में पटवारी की भरती के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल, भोपाल द्वारा आयोजित होने जाने वाली परीक्षा के  9,235 पदों के लिए 10 लाख से अधिक आवेदन इन कियोस्क सैंटर्स द्वारा भरे गए हैं. इस परीक्षा को पास कर बेरोजगार युवकयुवतियां पटवारी बन कर रोजगार प्राप्त कर पाएं या नहीं, परंतु प्रदेशभर में स्थापित हजारों कियोस्क सैंटर्स ने 15 दिनों में अंधाधुंध कमाई कर अपना रोजगार स्थापित कर लिया है.

सर्वर डाउन होने के नाम पर आवेदकों से फौर्म भरने के नाम पर 500-500 रुपए  तक की राशि वसूल कर के लाचार और मजबूर आवेदकों का आर्थिक शोषण करने में इन के द्वारा कोई कसर नहीं छोड़ी गई है. मनमरजी से चलने वाले ये कियोस्क सैंटर्स ग्राहकों को खुलेआम लूट रहे हैं.

औनलाइन कियोस्क सैंटर

डिजिटल इंडिया के नाम पर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा हर गांव व शहर में औनलाइन कामकाज के लिए लोगों को सहूलियत देने हेतु कौमन सर्विस सैंटर खुलवाए गए थे. 10×10 फुट की दुकानों में स्थापित इन सर्विस सैंटर्स में कंप्यूटर सिस्टम, यूपीएस, प्रिंटर, स्कैनर की सुविधा होनी अनिवार्य है, लेकिन कई कियोस्क सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते किसी सरकारी विभाग के दफ्तर की तरह सुविधा शुल्क के नाम पर खुलेआम वसूली कर रहे हैं. शहरों में हर गलीचौराहे पर खुले इन कियोस्क सैंटर्स पर आधार कार्ड, पैन कार्ड के आवेदन, संशोधन जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों के साथ केंद्र और राज्य सरकार की सभी प्रकार की भरतियों के लिए औनलाइन फौर्म भरने का काम भी किया जाता है.

बिजली बिल, टैलीफोन बिल, जीवन बीमा प्रीमियम भरने के साथ डीटीएच और मोबाइल रिचार्ज जैसे कार्य भी इन कियोस्क सैंटर्स के माध्यम से कराए जा रहे हैं. स्कूल या विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रछात्राओं की फीस हो या किसी भी प्रकार का सरकारी चालान, सरकारी विभागों की सभी प्रकार की निविदाएं भरने के कार्य भी कियोस्क सैंटर्स के माध्यम से औनलाइन ही किए जाते हैं.

औनलाइन कार्य के लिए इन सैंटर्स को पोर्टल शुल्क के नाम पर अलगअलग प्रकार के कार्यों के लिए 50 से ले कर 500 रुपए तक का कमीशन मिलता है. उपभोक्ताओं या ग्राहकों की मजबूरी यह है कि उन्हें इन कियोस्क सैंटर्स पर जा कर ही ये कार्य संपादित कराने पड़ते हैं. ऐसे में इन सैंटर्स द्वारा उन की मजबूरी का बेजा फायदा उठाया जाता है.

लूट पर नियंत्रण नहीं

आज सरकारी नौकरी के आवेदन के लिए बेरोजगारों से भारीभरकम फीस वसूल की जा रही है. सरकार के किसी भी विभाग द्वारा होने वाली परीक्षा के लिए 250 से ले कर 1,000 रुपए तक परीक्षा शुल्क लिया जा रहा है. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तो लाइसैंस फीस ले कर हर गांवशहर में एमपी औनलाइन कियोस्क सैंटर खोले गए हैं जिन्हें परीक्षा फौर्म भरने के लिए परीक्षा शुल्क के साथ

50 से 500 रुपए तक पोर्टल शुल्क मिलता है. बावजूद इस के, ये कियोस्क सैंटर्स परीक्षा संबंधी दस्तावेजों को स्कैन व अपलोड करने के नाम पर बेरोजगारों से पोर्टल शुल्क के अलावा अतिरिक्त राशि भी धड़ल्ले से वसूल कर के उन की जेबों पर डाका डाल रहे हैं.

नवोदय विद्यालय में कक्षा में प्रवेश के लिए ली जाने वाली प्रवेश परीक्षा के फौर्म भी इस बार मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा औनलाइन भरे गए और इन सैंटर्स द्वारा नन्हेंमुन्ने बच्चों के साथसाथ अभिभावकों को भी परेशान करने के लिए उन से मनमाफिक वसूली की गई. इसी प्रकार मध्य प्रदेश सरकार की राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा के औनलाइन आवेदन के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क कियोस्क सैंटर्स को न लेने के निर्देश दिए जाने के बाद भी उन के द्वारा पोर्टल शुल्क के नाम पर अवैध वसूली की गई.

फीस के नाम पर गड़बड़झाला

मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत लगभग 10 लाख छात्रछात्राओं के हाईस्कूल और हायर सैकंडरी परीक्षा के फौर्म तथा 9वीं कक्षा के नामांकन फौर्म भरने के नाम पर प्रतिपरीक्षार्थी 25 रुपए का पोर्टल शुल्क प्रतिवर्ष वसूल किया जा रहा है. नियम के अनुसार, इस पोर्टल फीस में परीक्षा फौर्म भरने के साथ परीक्षार्थी की फोटो के स्कैन करने का कार्य करना होता है, परंतु मध्य प्रदेश में परीक्षा फौर्म भरने का कार्य अधिकांश सरकारी स्कूलों द्वारा अपने संसाधनों से किया जाता है.

सरकारी स्कूल में कार्यरत एक प्राचार्य बताते हैं कि परीक्षा फौर्म के डाटा में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो, इस के लिए स्कूल के शिक्षकों द्वारा स्कूल के कंप्यूटर सिस्टम के माध्यम से एमपी औनलाइन की वैबसाइट पर माध्यमिक शिक्षा मंडल के लिंक पर जा कर परीक्षा फौर्म भरे जाते हैं, जबकि परीक्षार्थियों की फीस एमपी औनलाइन के माध्यम से भरी जाती है. इस में दिलचस्प बात यह है कि कियोस्क सैंटर्स भी फीस भरने के लिए ईपिन के रूप में जो पासवर्ड उपयोग करते हैं वह प्राचार्य के मोबाइल नंबर पर आता है.

साइबर क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि जब परीक्षा फौर्म प्राचार्य अपने लौगइन से भरते हैं तो फीस की पेमैंट स्कूल बैंक खाते या डैबिड, क्रैडिट कार्य के माध्यम से की जा सकती है. एमपी औनलाइन और माध्यमिक शिक्षा मंडल के उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से यह गोरखधंधा 3 वर्षों से चल रहा है और कियोस्क सैंटर्स 25 रुपए प्रतिछात्र के हिसाब से कमीशन के रूप में करोड़ों का वारेन्यारे कर रहे हैं.

सुविधा नहीं दुविधा केंद्र

लोगों का कहना है कि जब मोबाइल के माध्यम से औनलाइन शौपिंग का चलन बढ़ रहा है और रुपयों का भुगतान भी ईवौलेट से हो रहा है, तो फिर औनलाइन पोर्टल की निर्भरता क्यों खत्म नहीं की जा रही है? इस का सीधा सा जवाब यही है कि सरकार प्रतिवर्ष लाखों रुपए लाइसैंस फीस की वसूली कर इन औनलाइन सैंटर्स? को प्रश्रय देने के साथ आम नागरिकों की जेब ढीली करने के षड्यंत्र में भागीदार है.

रहें हमेशा चहकतीमहकती : जिंदगी जीने के तरीकों से आप को रूबरू कराते हैं

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माया जब 5 वर्ष बाद अपनी बड़ी बहन सिया से मिली तो उसे वह बड़ी उदास सी दिखाई दी. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘दीदी, क्या बात है, आप के चेहरे की तो रौनक जैसे खो ही गई, कोई परेशानी है क्या?’’

‘‘परेशानी तो नहीं है माया बस ढलती उम्र है, हड्डियां जवाब देने लगी हैं और ऊपर से बाल झड़ना और चेहरे की झुर्रियां. यों कहो उम्र अपना असर दिखा रही है. चेहरा तो उदास दिखेगा ही,’’ सिया बोली.

‘‘आप ऐसा क्यों सोचती हैं दीदी. उम्र से क्या फर्क पड़ता है. थोड़ा बनठन कर और चुस्तदुरुस्त रहा करो.’’

‘‘किस के लिए माया. अब इस उम्र में कौन देखने वाला है? बच्चे भी होस्टल में हैं. फिर मैं एक विधवा हूं. बनठन कर रहूंगी तो लोग क्या कहेंगे? लोग मुझे शक की नजरों से देखने लगेंगे,’’ सिया ने कहा.

‘‘अरे, इस में क्या बुरा है? क्यों शक करेंगे लोग? कोई देखने वाला नहीं और विधवा होना आप का दोष तो नहीं. अपने जीवन व शरीर के प्रति उदासीन हो जाना ठीक नहीं. जब बच्चे अपनेअपने परिवार में व्यस्त हो जाएंगे तो कौन संभालने वाला है आप को. यदि आज जीजू होते तो वे आप का ध्यान रखते. लेकिन अब उन के न होने से आप को ही अपनेआप का ध्यान रखना चाहिए वरना 40 के बाद बढ़ती उम्र के साथसाथ शरीर में बीमारियां भी घर करने लगती हैं.’’

‘‘कहती तो तुम ठीक ही हो माया, लेकिन अकेलापन खाए जाता है. पहले तो बच्चों में व्यस्त रहती थी, पर अब सारा दिन अकेली घर बैठे रहती हूं. वक्त काटे नहीं कटता,’’ सिया ने कहा.

ऐसे न जाने कितने उदाहरण हमारे आसपास होंगे, जो महिलाएं किसी कारण से सिंगल रह जाती हैं और 40 के बाद अपने जीवन के प्रति उदासीन हो जाती हैं.

मेरे ही पड़ोस में रहने वाली स्मिता एक फार्मा कंपनी में कार्यरत है. अपने पिता के आकस्मिक निधन के बाद 2 छोटी बहनों की जिम्मेदारी उस पर आ गई. मां ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थीं. स्मिता ने स्वयं नौकरी कर अपनी दोनों बहनों को अपने पैरों पर तो खड़ा किया ही, उन के लिए योग्य वर ढूंढ़ कर उन के विवाह भी किए. बहनों के तो घर बस गए, लेकिन वह स्वयं जीवन भर के लिए अकेली रह गई. पहले तो मां के साथ रहती थी, लेकिन 2 साल पहले उन का भी देहांत हो गया. स्मिता 45 वर्ष की है. नौकरी कर रही है. अब जीवन का एकाकीपन और शरीर में जोड़ों का दर्द उसे परेशान करने लगा है. कल तक अपने कंधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी लेने वाली स्मिता चेहरे व मन से बुझीबुझी सी दिखने लगी है.

एक दिन मैं ने उसे सोसायटी में होने वाले कार्निवाल का आमंत्रण पत्र थमाते हुए कहा, ‘‘जरूर आना, बहुत मजा आएगा.’’

‘‘तुम्हारे तो बच्चे हैं, मैं वहां आ कर क्या करूंगी?’’ स्मिता बोली.

‘‘आप आइए तो सही. आप के लिए भी एक चेंज हो जाएगा.’’

मेरे जोर देने से वह कार्निवाल में आई. अब वह सोसायटी के हर प्रोग्राम में सहर्ष आती है और महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाती है.

इस से न सिर्फ स्मिता के चेहरे की रंगत निखर गई है, बल्कि ऐक्टिव रहने से उस में आत्मविश्वास भी आया है. सोसायटी के बच्चे उसे बहुत पसंद करते हैं, क्योंकि वह उन के लिए साल भर कोई न कोई आयोजन करती रहती है.

सिंगल्स को भी पूरा हक है कि वे अपने जीवन को संपूर्ण रूप से जिएं और अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि 40 के बाद सिंगल महिला हो या परिवार वाली, सभी की मेनोपौज की उम्र आ जाती है. 40 से 50 वर्ष की उम्र में महिलाओं का मासिकचक्र खत्म होने के कगार पर होता है, जिस के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. कई बार ये समस्याएं बहुत कष्टदायक होती हैं. इन के कारण शारीरिक व मानसिक दोनों परिवर्तन आने लगते हैं.

सुस्ती आना, नींद न आना, शरीर में शिथिलता आना, मोटापा बढ़ना, शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द होना आदि समस्याएं अकसर 40 के बाद ही होने लगती हैं. ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है:

अपने आहार पर ध्यान दें

आप अपने खाने में ऐसी चीजों को शामिल करें, जिन में आप के लिए जरूरी न्यूट्रिशंस हों, क्योंकि 40 वर्ष की आयु तक पहुंचतेपहुंचते आप का पाचनतंत्र कमजोर होने लगता है. यही कारण है कि मसल मास 45% तक कम होने लगता है, जिस कारण शरीर में फैट बढ़ने लगता है.

बढ़ती उम्र के साथ आप का मैटाबौलिज्म स्लो होने लगता है. ऐसे में आप को पहले के मुकाबले कम कैलोरी की आवश्यकता होती है. इसलिए आप जो भी खाएं कैलोरी पर जरूर ध्यान रखें.

व्यायाम को बनाएं दिनचर्या का हिस्सा

व्यायाम करने से आप स्वस्थ रहेंगी और अपनेआप को जवां महसूस करेंगी. इस से आप की मांसपेशियों को ताकत मिलेगी, आप को अच्छी नींद आएगी, शरीर में लचीलापन आएगा और आप का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

कई बार 40 के बाद जोड़ों में दर्द की समस्या हो जाती है, जिस के कारण जिम में व्यायाम करना मुश्किल हो जाता है, यहां तक कि पैदल चलने में भी तकलीफ होने लगती है. ऐसे में वाटर ऐक्सरसाइज भी लाभदायक है. आप व्यायाम किसी भी रूप में कर सकती हैं जैसे मौर्निंग वाक, ऐरोबिक्स, नृत्य, स्विमिंग आदि. जुम्बा डांस भी ऐक्सरसाइज के तौर पर समूह में किया जा सकता है. इस से न सिर्फ आप शारीरिक रूप से चुस्त रहती हैं, बल्कि म्यूजिक के साथ सहेलियों के संग नृत्य का आनंद भी ले सकती हैं.

हारमोंस में बदलाव

40 के बाद मेनोपौज शुरू होने के कारण हारमोंस में भी बदलाव आता है, जिस कारण वजन बढ़ता है, लेकिन हारमोंस पर ध्यान न दे कर अपनी फिटनैस पर ध्यान दें ताकि आप अपने शरीर में हो रहे हारमोंस में बदलाव को संतुलित कर सकें.

प्रोटीन युक्त भोजन लें

उम्र के साथ नाखून खराब होने लगते हैं, बाल झड़ने लगते हैं और त्वचा में झुर्रियां पड़ने लगती हैं. इस के लिए भोजन में प्रोटीन लेने से शरीर के साथसाथ मांसपेशियां, बाल, त्वचा और कनैक्टिव टिशू अच्छे रहते हैं. मांसपेशियां फिर से बनने लगती हैं, साथ ही लंबे समय तक भूख भी नहीं लगती है. कुछ प्रोटीन युक्त आहार जो आप खाने में ले सकती हैं उन में मुख्य हैं मांस, मछली, चिकन, अंडा, दूध, दही, दाल, पालक, छोले, राजमा, स्प्राउट्स, सोयाबीन, मूंगफली, अंजीर, बादाम, अखरोट आदि.

थोड़ा सोशल भी रहें

जो महिलाएं अपने परिवार के साथ हैं, उन्हें तो किसी न किसी बहाने दूसरे लोग आमंत्रित करते रहते हैं, लेकिन सिंगल महिला के लिए यह एक समस्या है कि वह किस से बोले, क्योंकि उस का विषय दूसरों से मैच नहीं होता.

ऐसे में आप अपनी सोसायटी में होने वाले कार्यक्रमों में हिस्सा लें. उन को सफल बनाने में अपना योगदान दें ताकि आप के समय का सदुपयोग हो सके और सोसायटी में आप की अपनी पहचान हो. आप के सहयोग को देख कर लोग स्वयं आप को आमंत्रित करने लगेंगे और इस बहाने आप का लोगों से मिलनाजुलना बढ़ जाएगा, जिस से आप का एकाकीपन दूर होगा.

इस के अलावा आप स्वयं महिलाओं के साथ एक मासिक किट्टी पार्टी की शुरुआत कर सकती हैं, जिस में अलगथलग थीम रख कर नए गेम्स रखें ताकि आप को भी अपनी पसंद के कपड़े पहनने का मौका मिले.

यदि आप कामकाजी महिला हैं तो दफ्तर की पिकनिक और्गेनाइज कर सकती हैं.

इस तरह से आप का टेलैंट भी सब के सामने आएगा और आप सब की चहेती बन कर रहेंगी.

यहां एक खास बात यह है कि जो महिलाएं अपने परिवार के साथ हैं उन का वक्त व जरूरत के हिसाब से कोई न कोई खयाल करने वाला होता है, लेकिन सिंगल्स के पास यह सुविधा नहीं होती है. ऐसे में अपने दफ्तर और आसपास के लोगों से दोस्ती आप के आड़े वक्त काम आएगी.

स्वयं हर तरह से अपना खयाल रखें.

जज करिए अपनेआप को कि कहीं आप अपने जीवन के प्रति उदासीन तो नहीं हो गईं? अपने सोशल सर्किल में जरूर बात कीजिए कि मैं अच्छी तो लग रही हूं न. जिन के दिलों में आप राज करती हैं वे नहीं चाहेंगे कि आप किसी से कमतर दिखें.

वूमन फ्रैंडली हैं ई बाइक्स : सोहिंदर गिल

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महिलाओं के आगे बढ़ने की राह में एक बड़ी बाधा है कहीं भी आनेजाने के लिए उन की पिता, पति या पुत्र पर निर्भरता. बाइक हो या गाड़ी, ड्राइविंग आसान नहीं होती. इसी वजह से ज्यादातर पुरुष ही ड्राइविंग सीट पर बैठते हैं.

मगर समय के साथ इस दिशा में भी अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं. नई तकनीकों ने ड्राइविंग को आसान बना दिया है. इस का बढि़या उदाहरण हैं ई बाइक्स, जिन्हें खासतौर पर बुजुर्गों, छात्रों और महिलाओं के लिए तैयार किया गया है.

पिछले 8 सालों में हीरो इलैक्ट्रिक करीब डेढ़ लाख ई बाइक्स बना चुकी है. इन में से करीब 35% ई बाइक्स महिलाएं ही प्रयोग में ला रही हैं. पिछले दिनों हीरो इलैक्ट्रिक के ग्लोबल बिजनैस के चीफ ऐग्जीक्यूटिव औफिसर सोहिंदर गिल से मुलाकात हुई. पेश हैं, उन से की गई बातचीत के मुख्य अंश:

ई बाइक्स वूमन फ्रैंडली कैसे हैं?

ई बाइक्स को चलाना बहुत आसान है. सब से बड़ी बात यह है कि इन में वियर ऐंड टियर पुरजे नहीं होते. सामान्य गाडि़यों में क्लच, गियर जैसे इतने झमेले होते हैं कि आएदिन कुछ न कुछ खराब होता रहता है. हर 3 माह बाद सर्विसिंग कराओ, ईंधन डालो. मगर हीरो इलैक्ट्रिक में सिवा एक मोटर के कोई वियरटियर पार्ट नहीं है. इसलिए ये गाडि़यां कभी सर्विस स्टेशन नहीं जातीं.

चलाते वक्त थ्रौटल जीरो कर दो, गाड़ी रुक जाएगी और बैटरी भी कटऔफ हो जाएगी. आप  रैड लाइट पर खड़े हैं तो यह नहीं कि स्विचऔफ करना पड़ेगा. बस थ्रौटल जीरो कर दो. बैटरी की खपत बंद हो जाएगी. आप चाबी लगाने के बाद जैसे ही थ्रौटल को घुमाएंगे गाड़ी चलनी शुरू हो जाएगी. न क्लच, न गियर न ही कुछ और. हाथ में केवल साइकिल ब्रेक. स्पीड उसी से कम या ज्यादा कर सकते हैं. अगर आप ने 1-2 बार साइकिल चलाई है तो आप को इसे चलाने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

घर में जो मोबाइल सौकेट है उसी से बैटरी चार्ज कर ली. अगर आप फ्लैट में रहते हैं तो इस की बैटरी इतनी हलकी है कि ब्रीफकेस की तरह घर ले जाएं, मोबाइल सौकेट में लगाएं और शांति से सो जाएं. सुबह तक यह 70 किलोमीटर तक के सफर के लिए चार्ज हो जाएगी. 1 यूनिट से 6 रुपए में 70 किलोमीटर घूम कर आ सकते हैं.

इस की स्पीड कैसी है?

2 तरह की गाडि़यां हैं. पहली गाड़ी सिंपल है. अगर आप के पास लाइसैंस नहीं है, तो भी आप यह गाड़ी चला सकते हैं. इस की स्पीड 25 किलोमीटर प्रति घंटा है, दूसरी वाली गाड़ी की स्पीड 55 किलोमीटर प्रति घंटा है.

मैं ने देखा है कि जिन्हें घर के आसपास जाना हो, आसपास के रोजमर्रा के काम निबटाने हों, बच्चों को स्कूल छोड़ना या लाना हो वे 25 किलोमीटर स्पीड वाली गाड़ी पसंद करते हैं.

इस में बारबार इंश्योरैंस नहीं कराना पड़ता, रजिस्ट्रेशन टैक्स नहीं देना पड़ता. शोरूम से निकलने के बाद इस पर कोई खर्चा नहीं होता. इसीलिए लोग 25 किलोमीटर स्पीड वाली गाड़ी पसंद करते हैं. अगर आप को कहीं दूर आनाजाना है तो 55 किलोमीटर स्पीड वाली गाड़ी ले सकते हैं.

आप इसे वूमन ऐंपावरमैंट से कैसे जोड़ सकते हैं?

हम 2 तरह की गाडि़यां बना रहे हैं. पहली जो 55-60 किलोमीटर की रफ्तार वाली है, वह स्कूलकालेज जाने वाले लड़केलड़कियों के लिए है और दूसरी गाड़ी जो कम स्पीड वाली है उसे हम वूमन ऐंपावरमैंट के लिए बना रहे हैं.

यह इतनी इकोनौमिकल है कि किसी को खलती नहीं. इस से बड़ा ऐंपावरमैंट और क्या हो सकता है? आप जहां भी जा रहे हैं अगर वहां सौकेट लगा है तो वहीं बैटरी रिचार्ज कर लें. पैट्रोल पंप जाने का झंझट ही नहीं.

यही नहीं इसे महिला सुरक्षा को ध्यान में रख कर भी तैयार किया गया है. आप सुरक्षा के लिए क्या करेंगे? जीपीएस वाली या इमरजैंसी सायरन वाली गाड़ी लेंगे. इस गाड़ी में ये दोनों ही सुविधाएं हैं. इस से महिला अपना कंट्रोल, अपनी लोकेशन, अपने पति, दोस्तों या बच्चों को दे सकती है.

जब किसी महिला के पास अपनी ई बाइक है तो वह बस या औटो से उतर कर पैदल घर क्यों जाए? सड़क पर पैदल क्यों चले? किसी और के आने का इंतजार क्यों करे?

ई बाइक्स की तरह ई कैब या ई कार कब लाएंगे?

अभी हमारा पूरा फोकस टू व्हीलर पर है. हमें लगता है कि भारत टू व्हीलर्स का देश है. इस वक्त 2 करोड़ टू व्हीलर बनते हैं जबकि कारें तो सिर्फ 30 लाख बनती हैं.

वैसे हम थ्री और फोर व्हीलर भी जल्दी लाएंगे. इस वक्त ई टैक्सी नागपुर में चल रही है.

क्या ई बाइक्स प्रदूषण कम करने में भी मदद करती हैं?

एक बार जब आप के हाथ में ई बाइक्स आ जाएगी तो समझिए कि आप ने हर 3 साल में एक बहुत बड़ा ट्री प्लांट कर दिया. यदि आप ने 8-10 साल ई बाइक चलाई तो 4-5 ट्री प्लांट के बराबर प्रदूषण कम कर दिया.

जो गाडि़यां सड़कों पर धुआं छोड़ती हैं वे 3-4 गुना प्रदूषण फैलाती हैं जबकि ई बाइक जीरो प्रदूषण फैलाती है. इस में साइलैंसर नहीं है और न ही इंजन है तो प्रदूषण कैसे होगा?

सिनेमा किसी भाषा का मोहताज नहीं : मजिद मजीदी

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सिनेमा कभी भी भाषा का मोहताज नही होता. हर बड़ा फिल्मकार मानता है कि सिनेमा किसी भी देश की संस्कृति का वाहक हो सकता है और अब यही बात माजिद मजीदी की भारतीय कलाकारों के साथ भारतीय पृष्ठभूमि की कहानी पर भारत में ही फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ से भी उभरकर आ रही है. जब से ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी भारत की यात्रा पर आए और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले, तब से यह चर्चा कुछ ज्यादा ही हो रही है.

इरानियन राष्ट्रपति हसन रूहानी और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपसी बातचीत के दौरान आतंकवाद के खात्मे के लिए दोनों देशों के बीच सभ्यता संस्कृति व सूचना के आपसी आदान प्रदान पर जोर दिया.

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दोनों नेताओं ने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए सिनेमाई सहयोग को सबसे बड़ी जरुरत बतायी. उन्होने सार्थक सिनेमा के माध्यम से दोनो देशों के प्रतिभाशाली लोगों को एक साथ लाने पर भी जोर दिया. इन नेताओं के बीच हुई बातचीत की पृष्ठभूमि में ईरानियन फिल्मकार माजिद मजीदी की फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ की  चर्चा हो रही है.

कहा जा रहा है कि फिल्मकार माजिद मजीदी का पहला सिनेमाई भारतीय प्रवास मुख्य केंद्र स्थान बन गया है. इस फिल्म का जिक्र करते हुए रूहानी ने कहा कि इसी तरह सिनेमा के क्षेत्र में दोनों देशों की प्रतिभाओं के ज्यादा से ज्यादा एक साथ आने पर बल दिया जाना चाहिए.

पति करण के जन्मदिन पर बिपाशा ने की खास तैयारियां, देखें तस्वीरें

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बौलीवुड और टीवी अभिनेता करण सिंह ग्रोवर का आज यानी कि 23 फरवरी को जन्मदिन हैं. करण अपने 36वें जन्मदिन का जश्न गोवा में पत्नी बिपाशा बसु के साथ मना रहे हैं. बिपाशा ने अपने लकी चार्म करण के जन्मदिन के लिए खास तैयारियां कीं. इंडस्‍ट्री के इस क्‍यूट कपल ने मुंबई की भीड़भाड़ से दूर गोवा में करीबियों के संग बर्थडे मनाया. इस जश्न की कई तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, जिसमें जोड़ी बर्थडे को खूब इंज्‍वाय करते नजर आ रहे हैं.

साल 2004 में टीवी शो ‘कितनी मस्त है जिंदगी’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले करण ‘कसौटी जिंदगी की (2005-06)’, ‘दिल मिल गए (2007-10), ‘कबूल है (2012-13)’ जैसे सीरियल के अलावा कई रिएलिटी शोज का हिस्सा बन चुके हैं. करण ने 2015 में ‘अलोन’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की. अलोन की शूटिंग दौरान ही बिपाशा और करण के बीच नजदीकियां बढ़ी, जिसके बाद से ही दोनों के डेट की खबरें आने लगी थी. 30 अप्रैल, 2016 को जोड़ी शादी के बंधन में बंधीं.

 

करण अपने प्रोफेशनल लार्इफ के अलावा अपनी पर्सनल लाईफ को लेकर भी खासा सुर्खियों में रहे. बिपाशा उनकी तीसरी पत्नी हैं. करण ने साल 2008 में टीवी एक्ट्रेस श्रद्धा निगम से पहली शादी की, लेकिन शादी के 10 महीने बाद ही उनका तलाक हो गया. साल 2012 उन्होंने अपनी को-स्टार जेनिफर विंगेट से दूसरी शादी की, लेकिन ये रिश्ता भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया और साल 2014 में इनका तलाक हो गया. फिर उन्होंने बिपाशा से शादी कर ली.

बिपाशा ने शादी के बाद फिलहाल किसी प्रोजेक्‍ट को हाथ नहीं लगाया है. हालांकि करण ‘3 देव’ और ‘फिर्की’ में व्यस्त हैं. पिछले दिनों खबरें थी कि दोनों टीवी रियेलिटी शो को जज करते नजर आयेंगे लेकिन फिर इस बारे में दोनों की ओर से कोई कमिटमेंट नहीं आया.

महान खिलाड़ियों को देख उन जैसा खेलने की कोशिश करता हूं : स्टीव स्मिथ

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आधुनिक क्रिकेट के इस युग में चार सबसे पसंदीदा खिलाड़ी माने जाते हैं- स्टीव स्मिथ, विराट कोहली, केन विलियम्सन और जो रूट. क्रिकेट की वर्तमान पीढ़ी में जब बल्लेबाजों का नाम लिया जाता है तो यही चार स्टार क्रिकेटर नजर आते हैं. इनकी अपनी कमजोरियां और अपनी ताकत है. इन्होंने कठिन समय और परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए अपने बल्लेबाजी को निखारा है. हर रोज इनकी कहानी आकर्षण के नए आयाम छू रही है. खासतौर पर जब औस्ट्रेलियाई टेस्ट और वनडे के कप्तान स्टीव स्मिथ की बात होती है.

स्टीव स्मिथ ने अपना अंतरराष्ट्रीय करियर स्पिन औलराउंडर के रूप में शुरू किया था, लेकिन समय ने उन्हें बेखौफ बल्लेबाज बना दिया. वह आधुनिक क्रिकेट के सबसे सफल बल्लेबाज माने जाते हैं. पिछले कुछ सालों में स्मिथ की तुलना सर डौन ब्रैडमैन से होने लगी है. माना जा रहा है कि स्मिथ ने अपनी तकनीक को शानदार बनाया है और किसी भी गेंदबाज का डर उनके मन में नहीं रहा. बल्लेबाजी को बेहतर बनाने के स्मिथ के स्रोत क्या हैं?

भारतीय कप्तान विराट कोहली, न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियम्सन और दक्षिण अफ्रीका के मिस्टर 360 एबी डिविलियर्स से वह कुछ न कुछ सीखकर आगे बढ़ रहे हैं. इनके खेल को देखकर स्मिथ अपने खेल को बेहतर बना रहे हैं. स्मिथ 61 टेस्ट मैचों में 6057 रन बना चुके हैं. उनका औसत 63.76 है. एक इंटरव्यू में स्मिथ ने बताया कि कैसे वे कई बार दूसरों की तरह बल्लेबाजी करते हैं.

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उन्होंने कहा, ”मैं दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों पर नजर डालता हूं और उनकी तरह बल्लेबाजी करने की कोशिश करता हूं. मैं इनके खेल को देखता हूं और सीखता हूं क्योंकि ये दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज हैं. मैदान पर स्मिथ के कोहली से ऐसे रिश्ते दिखाई नहीं पड़ते जिससे कहा जा सके कि ये दोनों अच्छे मित्र हैं. लेकिन स्मिथ इस बात पर नजर रखते हैं कि कोहली स्निपरों को कैसे खेलते हैं. इसका स्मिथ को फायदा भी हुआ है. पिछले साल फरवरी मार्च में औस्ट्रेलिया ने भारत का दौरा किया था. और स्मिथ ने यहां 71.29 की औसत से 499 रन बनाए थे. इनमें तीन शतक भी शामिल थे.”

स्टीव स्मिथ ने बताया, ”मैं देखता हूं कि विराट स्पिन को कैसे खेल रहे हैं, कैसे गेंदों को हिट कर रहे हैं. मैं उससे थोड़ा बहुत सीखता हूं. मुझे लगता है ये दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ी हैं. आप इनके खेल को देखकर बहुत कुछ सीख सकते हैं. स्मिथ ने बताया कि उनके एशियाई पिचों पर बैट को पकड़ने का अलग ढंग होता है. यहां वे स्पिन को अलग तरीके से खेलते हैं.”

दक्षिण अफ्रीका के विस्फोटक बल्लेबाज डीविलियर्स को कौपी करने के बारे में स्मिथ ने कहा, ”डिविलियर्स को मैं कुछ हद तक कौपी करने की कोशिश करता हूं. मैं उनके शौट खेलने के तरीके को फौलो करता हूं. खासतौक पर जब बौल रिवर्स स्विंग कर रही हो.”

औस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव स्मिथ ने यह भी कहा कि वह केन विलियम्सन के अंदाज में भी खेलते हैं. उन्होंने कहा, ”कुछ साल पहले मैंने विलियम्सन की तरह गेंद को लेट कट करके सीमा पार पहुंचाने का प्रयास किया था.” औस्ट्रेलियाई कप्तान की इन बातों को जानकर तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि स्टीव स्मिथ की बल्लेबाजी आधुनिक क्रिकेट के चार महान बल्लेबाजों का मिश्रण है.

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