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सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाहों को ले कर एक मामले में कहा है कि चाहे बाल विवाह मानव अधिकारों के खिलाफ हों और कितने ही घृणित हों, जिस संख्या में ये देश में हो रहे हैं इन का अपराधीकरण नहीं करा जाना चाहिए. यह ठीक है. देश में हर काम को अपराध घोषित करने की परंपरा सी चालू हो गई है.
पहले जियो और जीने दो का जो सिद्धांत कानून बनाने वाले दिमाग में रखते थे अब धर्मों के अनुयायी बन गए हैं कि जो भी कुछ करोगे, पाप करोगे और प्रायश्चित्त करोगे ही.
सुप्रीम कोर्ट के पास मामला गया था कि क्या सहमति से 15 व 17 वर्ष के लड़कीलड़के के यौन संबंध जायज हैं? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, सहमति हो अथवा न हो, अपराध घोषित करा है. 15 से 18 साल की विवाहित लड़की से पति के यौन संबंध अब तक अपराध नहीं थे.
पर असल बात तो यह है कि लड़कियों के यौन संबंध 13-14 साल की उम्र से सहमति से शुरू हो जाते हैं और इस कदर होते हैं कि अगर सभी को कानूनी दायरे में लाया गया तो अदालतों में सैकड़ों लड़के अपराधी बने दिखेंगे और सैकड़ों लड़कियां पीडि़ता के रूप में गवाह. यह नकारना कि 17-18 वर्ष की लड़कियों में यौन संबंध अपवाद हैं गलत होगा.
ये संबंध गलत हैं, इस में शक नहीं है पर इन्हें सामान्य अपराधों की गिनती में डालना भी सही नहीं होगा. हमउम्र नाबालिगों के यौन संबंधों को अपराध मान लिया गया तो दोनों के ऊपर जीवन भर का धब्बा लग जाएगा. लड़के को बालगृह की यातनाओं को भुगतने के लिए भेजना होगा और उस का कैरियर चौपट हो जाएगा तो लड़की पर धब्बा लग जाएगा कि वह चालू है. उस की भी पढ़ाईलिखाई चौपट हो जाएगी.
अगर नाबालिग स्कूली यौन संबंध सहमति से हों तो बहुत सावधानी से हैंडल होने चाहिए. हमारी पुलिस और अदालतें इस तरह की नाजुक स्थिति को संभालने लायक नहीं हैं. पुलिस ऐसे मामले में मातापिताओं को लूटने में लग जाती है और अदालतें तारीख पर तारीख डालने में. दोनों की सहज प्राकृतिक क्रिया उन्हें एक अंधेरे कुएं में डाल देती है.
यह भयावह स्थिति आज दिखती नहीं है, क्योंकि अपराध होते हुए भी कोई कानून का दरवाजा नहीं खटखटाता और मामला दबा कर रखा जाता है. लड़कों को डांटडपट दिया जाता है और लड़कियों को घरों में बंद कर दिया जाता है. अगर पुलिस को भनक लगने लगे और जैसा सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि सहमति से नाबालिगों के बीच बना यौन संबंध बलात्कार है, जिस में दोषी केवल लड़का है तो हर चौथा घर लपेटे में आ जाए तो बड़ी बात नहीं.
इस तरह के संवेदनशील पर प्राकृतिक मामलों को सुप्रीम कोर्ट, दूसरी अदालतें और पुलिस खाप पंचायतों की तरह सुलझाने की कोशिश कर रही हैं कि हर मामले में बिना अगरमगर सुने अपराधी घोषित कर दिया जाए और सजा दे दी जाए. पुलिस की कैद खाप पंचायतों की सजा से भी बदतर होती है.
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वीरेंद्र देव दीक्षित जैसे बाबा कैसे लड़कियों को बहकाते हैं कि वे अपने मातापिता को भी भुला देती हैं, एक चमत्कार ही है. मध्य प्रदेश के सतना के राजेश प्रताप सिंह ने 7 साल पहले अपनी 16 वर्षीय बेटी को किस मोह में या किस अंधविश्वास में बाबा के द्वारका आश्रम में भेज दिया यह आश्चर्य है.
लोग खुले हाथ अपनी मेहनत की मोटी कमाई इन बाबाओं को देते रहते हैं जो कोई नई बात नहीं है पर बच्चों को भी आज के युग में उपहार की तरह बाकायदा स्टांप पेपर पर अनुबंध लिख कर दे दिया जाए यह गंभीर मामला है.
धर्म के नाम पर अनाचार सदियों से होता रहा है और पीडि़ताएं खुदबखुद इस अनाचार को ठीक उसी तरह नियति मान कर स्वीकार करती रही हैं जैसे वेश्याएं चकलों में जिंदगी को सहन करने लगती हैं और सैनिक गोलियों की बौछारों को. इन सब मामलों में निरंतर तर्क और सत्य के स्थान पर अंधभक्ति इस प्रकार दिमाग में प्रत्यारोपित कर दी जाती है कि लड़कियां व उन के मातापिता इसी को भाग्य मान कर संतुष्ट ही नहीं हो जाते, इस बात पर समाज में गर्व भी करने लगते हैं.
वैसे दुनिया के सभी समाजों में पिता अपनी बेटियों को उन के लिए ढूंढ़े गए वर के हाथ में सौंपते हुए भी यही कहते हैं कि बेटी, अब जो कुछ तुम्हारे साथ होगा, वह पति करेगा यानी कि वे बेटी को जीवन से पूरी तरह बाहर निकाल देते हैं. कई समाजों में तो विवाह बाद बेटियों की शक्ल ही नहीं देखी जाती. अन्य उदार समाजों में भी पिता के घर के दरवाजे लगभग बंद ही हो जाते हैं.
बेटियों के प्रति यही सोच आश्रमों के बाबाओं को मालामाल बनाती है. बेटी का भार ग्रहण करते हुए आश्रमों के बाबा मातापिता से मोटा दान भी दहेज की तरह ले लेते हैं और फिर उन का मनमाना दुरुपयोग करते हैं. 2-4 महीनों में बेटियां आश्रम के जीवन की आदी हो जाती हैं और मरजी से अपनी जगह वहीं बनाना शुरू कर देती हैं. सैकड़ों बाबाओं ने इसी का लाभ उठाया है. वे बेटियां भी ग्रहण करते हैं, पत्नियां भी. बहुत सी औरतें पतियों को जानबूझ कर छोड़ कर आश्रमों में बस जाती हैं तो कुछ घर में सेंध लगा कर आश्रम की अपने तन और पति के धन दोनों से सेवा करती हैं.
जब कभी हल्ला मचता है तो लोग ऐसे हायहाय करते हैं मानों राम रहीम या वीरेंद्र देव दीक्षित कई अपवाद और अपराधी हैं जबकि ये औरतें अपनी या मातापिता की मरजी से ही इन आश्रमों में आती हैं.
अगर इस दुर्दांत कथा का अंत करना है तो धर्म की दुकानदारी को गैरकानूनी करना होगा, जो भारत हो या अमेरिका कहीं भी संभव नहीं लगता. जब तक यह नहीं होगा राम रहीम, वीरेंद्र देव दीक्षित और अमेरिका के अपने ही ऐसे बाबा पनपते रहेंगे.
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छेड़छाड़, ऐसिड अटैक और किडनैपिंग जैसी वारदातों के कारण आजकल खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षा का मुद्दा सबसे बड़ा हो गया है. ऐसे में सेफ्टी टेक्नौलजी कंपनी Yepzon Oy ने महिलाओं और बच्चों के लिए एक खास ट्रैकिंग डिवाइस येपजोन (Yepzon) को लौन्च किया है.
सुरक्षा मुद्दों से निपटने के लिये सटीक जानकारी सबसे अच्छा हथियार है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कंपनी द्वारा विकसित सुरक्षा तकनीक, मोबाइल सेवा को येपजोन क्लाउड सर्विस के द्वारा प्रदित अनुकूल स्थिति (कम्पेटिबल पोजिशनिंग) तकनीक से जोड़ती है. इस डिवाइस की मदद से दुनिया के किसी भी हिस्से में क्लाउड सर्विस के जरिए कुछ ही सेकंड्स में ट्रैक किया जा सकता है कि वह घर के अंदर हैं या बाहर या फिर विश्व के दूसरे छोर पर. केवल एक बटन दबाने से सेफ्टी अलार्म मोबाइल ऐप के जरिए व्यक्ति की एकदम सही लोकेशन ट्रैक कर लेता है. फोन के साथ पेयर होने में यह डिवाइस मुश्किल से ही एक मिनट लेता होगा और इसकी बैटरी एक बार चार्ज करके हफ्तों तक चल सकती है.
येपजोन (Yepzon) के फाउंडर और चेयरमैन का कहना है कि 2013 में की गुमशुदा लोगों और सुरक्षा संबंधी घटनाओं के बाद हमने इस प्रौडक्ट पर काम करना शुरू किया. इस डिवाइस को घड़ी की तरह कलाई पर पहना जा सकता है और इसके साथ सुरक्षित महसूस किया जा सकता है.
बता दें कि येपजोन फ्रीडम, 3जी और जीपीएस तकनीक के साथ वाई-फाई इनडोर पोजिशनिंग को जोड़ने वाला पहला स्वतंत्र लोकेटर है. येपजोन सभी प्रमुख स्मार्टफोन प्लेटफार्म पर काम करता है, इसमें कोई व्यक्गित जानकारी नहीं पूछी जाएगी और कोई उपयोगकर्ता परिचय (क्रेडियेंशल) भी आवश्यक नहीं है. इस छोटे से उपकरण को पहनना और ले जाना आसान है.
येपजोन कंपनी को 2012 में निगमित किया गया था और वह लन्दन, यूनाइटेड किंगडम में सहायक कंपनी के साथ टाम्परे, फिनलैंड में स्थित है. येपजोन डिवाइसों का निर्माण भारत में भी किया जाता है. येपजोन के पास संतुष्ट और तेजी से बढ़ने वाले ग्राहकों का समुदाय है जो वहां पर इसके उत्पादों पर भरोसा करते हैं. येपजोन का अपने तीन भिन्न तरह के उत्पादों – Yepzon™ ONE, Yepzon™ Freedom, and Yepzon™ Industrial के लिए साबित हुआ एक अच्छा ट्रैक रिकार्ड है.
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बौलीवुड मे इवेंट कंपनी के रूप में अपनी कंपनी ‘विज क्राफ्ट’ की शुरुआत करने वाले सब्बास जोसेफ ने बौलीवुड को पूरे विश्व में पहुंचाने के मकसद से हर वर्ष अलग अलग देशों में ‘आइफा अवार्ड’ आयोजित करने का सिलसिला शुरू किया था. 2017 में 18वें आइफा अवार्ड के दौरानउन्होंने ‘आइफा अवार्ड’ को केंद्र में रखकर ‘आइफा अवार्ड’ में ही फिल्मकार चक्री तोलेटी के निर्देशन में जो कुछ फिल्माया, उसे फिल्म ‘‘वेलकम टू न्यूयार्क’’ के नाम से दर्शकों को परोस दिया है. फिल्म देखकर लगता है कि यह ‘आइफा अवार्ड’ पर बनायी गयी अति नीरस डाक्यूमेंट्री मात्र है.
फिल्म ‘‘वेलकम टू न्यूयार्क’’ की कहानी के केंद्र में मूलतः दो पात्र पंजाब के तेजी (दिलजीत दोसांज) और गुजरात की जीनल पटेल (सोनाक्षी सिन्हा) हैं. तेजी रिकवरी एजेंट हैं, पर उसकी चाहत सफल अभिनेता बनने की है. जबकि जीनल पटेल मशहूर फैशन डिजायनर बनना चाहती है. दोनों एक प्रतियोगिता का हिस्सा बनते हैं और उन्हे न्यूयार्क में आयोजित एक अवार्ड समारोह का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है.
उधर न्यूयार्क में अवार्ड समारोह के आयोजक गेरी (बोमन ईरानी) के साथ लंबे समय से काम करती आ रही सोफी (लारा दत्ता) भागीदार बनना चाहती है. जब गेरी मना कर देते हैं, तो वह तेजी व जीनल को गेरी से बदला लेने के काम में लगा देती है. पर सब कुछ गड़बड़ा जाता है,क्योंकि शो के संचालक करण जोहर (करण जोहर) का अपहरण हो जाता है. अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या तेजी व जीनल के सपनों पर सोफी की जीत होगी?
बेसिर पैर की इस फिल्म के निर्देशक चक्री तोलेटी का दावा है कि वह मनोरंजन परोसने में माहिर हैं, इसीलिए वह बौलीवुड से जुड़े हैं. मगर फिल्म देखकर अहसास होता है कि वह कितना अपरिपक्व फिल्मकार हैं. फिल्म के सभी किरदार काफी उथले हैं, पर और मजाकिया भी नहीं है. उपर से करण जोहर की दोहरी भूमिका और अधिक तकलीफ देती है. इस फिल्म में वह ‘बांबे वेल्वेट’ से भी बदतर हैं.
करण जोहर एक कार्यक्रम संचालक और गैंगस्टर के दोहरे चरित्र को जिस तरह से निर्देशक ने निस्पादित किया है, वह मनोरंजन या खुशी की बजाय कष्ट व गम ही देता है. फिल्मकार तेजी व जीनल पटेल के बीच भी हास्य क्षणों को ठीक से नहीं पेश कर पाए. दोनों की परदे पर केमिस्ट्रीजबरन थोपी हुई लगती है.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो दिलजीत दोसांज पंजाब के सुपर स्टार हैं. मगर बौलीवुड में वह कुछ खास प्रतिभा नहीं दिखा पा रहे हैं. इस फिल्म में उनका अभिनय काफी औसत दर्जे का है. फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं सोनाक्षी सिन्हा. वह गुजराती लड़की के किरदार में महज कैरीकेचर बनकर रह गयी हैं. उनके पास अपनी प्रतिभा को दिखाने का समय व पूरा अवसर था, मगर वह बुरी तरह से असफल रही हैं. जीनल पटेल का सपने वाला गीत जिसमें वह सलमान खान की नाप लेती हैं, यह बड़ा ही हास्यास्पद है. ह्यूमर के लिए गढ़ा गया यह गीत ह्यूमर नहीं लाता.
बोमन ईरानी ठीक ठाक हैं. ग्रे किरदार में लारा दत्ता जरुर दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती हैं. रितेश देशमुख, सलमान खान,सुशांत सिंह राजपूत, राणा डगुबट्टी, आदित्य राय कपूर व कटरीना कैफ जैसे बड़े नाम महज खानापूर्ति करते हैं.
फिल्म खत्म होने पर दर्शक सोचने पर मजबूर होता है कि उसने अपनी गाढ़ी कमाई इस फिल्म को देखने के लिए क्यों बर्बाद की. फिल्म कापार्श्व संगीत महज शोरगुल के कुछ नहीं है. गीत संगीत भी सतही है.
लगभग दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘वेलकम टू न्यूयार्क’’ का निर्माण वासु भगनानी और सब्बास जोसेफ ने किया है. लेखक धीरज रतन,निर्देशक चक्री तोलेटी, संगीतकार साजिद वाजिद, मीत ब्रदर्स व समीर टंडन, कैमरामैन संतोष थुडिईल व नेहा परती तथा कलाकार हैं- दिलजीत दोसांज, सोनाक्षी सिन्हा, करण जोहर, बोमन ईरानी, लारा दत्ता, रितेश देशमुख, सलमान खान, सुशांत सिंह राजपूत, राणा डगुबट्टी,आदित्य राय कपूर व कटरीना कैफ व अन्य.
चाइनीज मोबाइल निर्माता कंपनी शाओमी ने भारतीय बाजार में अपनी नोट सीरीज का विस्तार करते हुए दो नए स्मार्टफोन लौन्च किए थे. कंपनी की तरफ से उस दौरान लौन्च किए गए शाओमी रेडमी नोट 5 (Redmi Note 5) और रेडमी नोट 5 प्रो (Redmi Note 5 Pro) की बिक्री को इंडियन मार्केट में गुरुवार से शुरू किया जाना था. लेकिन शाओमी के फोन की लोकप्रियता के कारण ये फोन चंद मिनट में ही आउट औफ स्टौक हो गए. ई-कौमर्स वेबसाइट फ्लिपकार्ट और मी डौट कौम पर कुछ ही दिन में इन फोन को आउट औफ स्टौक दिखाया जाने लगा. कंपनी ने गुरुवार को दोपहर 12 बजे इनकी बिक्री शुरू की थी.
रेडमी नोट 4 का अपग्रेड वर्जन
अभी यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि शाओमी ने कितनी संख्या में हैंडसेट को बिक्री के लिए उपलब्ध कराया था. रेडमी नोट 5 और रेडमी नोट 5 प्रो को कंपनी ने दो-दो वेरिंएट में लौन्च किया था. रेडमी नोट 5 पिछले साल लौन्च किए गए रेडमी नोट 4 का अपग्रेड वर्जन है. फोन में 5.99 इंच 1080×2160 पिक्सल रिज्यूलूशन वाली डिस्पले है. यह फोन एंड्रायड नूगा पर बेस्ड एमआईयूआई 9 पर चलता है.
फोन में हाइब्रिड सिम स्लौट
फोन में औक्टा-कोर स्नैपड्रैगन 625 प्रोसेसर दिया गया है. फोन में 12 MP का रियर कैमरा और 5 MP का फ्रंट कैमरा है. फोन को 32 GB और 64 GB स्टोरेज वेरिएंट के साथ लौन्च किया गया है. लेकिन दोनों ही वेरिएंट में हाइब्रिड सिम स्लौट दिया गया है. 3 GB रैम वाले वेरिएंट की 32 GB इंटरनल स्टोरेज है.
फोन के 4 GB रैम वाले वेरिएंट की 64 GB इंटरनल स्टोरेज है. रेडमी नोट 5 में 4000 mAh की बैटरी है, जो फास्ट चार्जिंग को सपोर्ट करती है. इसमें प्रीमियम मेटल बौडी दी गई है और यह रेडमी नोट 4 से काफी पतला है. इसके कैमरे के बारे में कंपनी का दावा है कि इससे अंधेरे में भी अच्छी क्वालिटी की तस्वीर ली जा सकेगी.
रेडमी नोट 5 प्रो
रेडमी नोट 5 प्रो को भी 5.99 इंच की 1080×2160 पिक्सल रिज्यूलूशन वाली डिस्पले के साथ लौन्च किया गया है. यह क्वौलकौम स्नैपड्रैगन 636 प्रोसेसर के साथ आने वाला दुनिया का पहला स्मार्टफोन है. फोन में लेटेस्ट क्रायो 260 सीपीयू दिया गया है. कंपनी का दावा है कि यह रेडमी नोट सीरीज का सबसे फास्ट परफौर्मेंस वाला फोन है. इस फोन को 4 GB और 6 GB की रैम के साथ लौन्च किया गया है. लेकिन दोनों ही वेरिएंट में 64 GB की इंटरनल स्टोरेज दी गई है.
फोन में रियर ड्युल 12 MP व 5 MP कैमरा सेटअप है. ड्युल फ्रंट कैमरा 20 MP का है. कंपनी का कहना है कि इस फोन में कम लाइट में भी सेल्फी ली जा सकती है. कैमरे के साथ एलईडी सेल्फी लाइट भी है. इस फोन में फेसअनलौक का फीचर भी है, जिससे फोन का लौक चेहरे को पहचानकर खुलेगा. फोन में 4000 mAh की दमदार बैटरी है. यह फोन ब्लैक, रोज गोल्ड, गोल्ड और ब्लू रंग में मिलेगा.
कीमत
भारतीय बाजार में रेडमी नोट 5 की कीमत 9,999 रुपये से शुरू होती है. 3 GB रैम और 32 GB स्टोरेज वाला वेरिएंट की कीमत 9,999 रुपये है. इसके अलावा 11,999 रुपये में 4 GB रैम और 64 GB स्टोरेज वाला वेरिएंट मिलेगा. रेडमी नोट 5 प्रो (Redmi Note 5 Pro) के 4 GB रैम वाले वेरिएंट की कीमत 13,999 रुपये है. इसके 6 GB रैम वाले वेरिएंट की कीमत 16,999 रुपये है.
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दोस्त और लड़की में से जब भी किसी एक का चयन करना हो, तो एक लड़का किसे चुनेगा? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए फिल्मकार लव रंजन रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘सोनू के टीटू की स्वीटी’’ लेकर आए हैं, जो कि प्रभावित नहीं करती.
फिल्म ‘‘सोनू के टीटू की स्वीटी’’ की कहानी शुरू होती है टीटू (सनी सिंह) द्वारा शादी के लिए स्वीटी (नुसरत भरूचा) को देखने जाने से. टीटू के साथ उसका भाई समान दोस्त सोनू (कार्तिक आर्यन), उसके माता पिता, दादा घसीटे (आलोकनाथ) दादी व आदि भी जाते हैं. उससे पहले टीटू और सोनू में बहस होती है कि टीटू क्यों शादी करना चाहता है. सोनू, स्वीटी को पसंद नहीं करता.
मगर स्वीटी को टीटू पसंद कर लेता है. सगाई के दिन स्वीटी, सोनू से कह देती है कि वह बहुत बुरी है, वह विलेन है और उसकी शादी के बाद सोनू की इस घर से हमेशा के लिए विदाई हो जाएगी. उसके बाद सोनू अपनी तरफ से स्वीटी को गलत और स्वीटी हर बार खुद को एक नेक भली लड़की साबित करने में जुट जाते हैं.
कहानी आगे बढ़ती है तो टीटू की पूर्व प्रेमिका पिहू भी आ जाती है. अंततः एक दिन स्वीटी खुलेआम सोनू को चैलेंज करती है कि उसकी शादी होकर रहेगी. क्योंकि जब एक लड़के को दोस्त और लड़की में से किसी एक को चुनना होता है, तो वह लड़की को ही चुनता है. कई घटनाएं तेजी से घटित होती हैं. शादी के लिए बारात पहुंच जाती है. स्वीटी, टीटू के गले में माला डाल देती है. पर फिर क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखनी ही पड़ेगी.
लव रंजन इससे पहले ‘‘प्यार का पंचनामा’’ और ‘‘प्यार का पंचनामा 2’’ बना चुके हैं. अब यह उनकी तीसरी फिल्म है. पर यह फिल्म मनोरंजन करने की बनिस्बत बोर करती है. इसकी मूल वजह यह रही कि लव रंजन ने लोगों को हंसाने के लिए सिर्फ ‘सेक्स’ को हथियार के रूप मेंउपयोग किया. सेक्स कौमेडी जौनर पर बेहतर फिल्म बनाना आसान तो नहीं होता. पर बेसिर पैर की कहानी व बेसिर पैर के फूहड़ हास्य घटनाक्रमों को देखकर दर्शक सोचने लगता है कि वह फिल्म देख रहा है या सेक्सी फिल्मों से उठाए गए दृश्यों से बना चूंचूं का मोरब्बा.
पटकथा के स्तर पर यह फिल्म काफी घटिया है. लव रंजन ने स्वीटी को विलेन के रूप में पेश जरुर किया है, पर स्वीटी के किरदार को सही ढंग से गढ़ा ही नहीं गया. आखिर टीटू से स्वीटी शादी क्यों करना चाहती है? वह किस बात का बदला टीटू के परिवार से लेना चाहती है? उसकी सोनू से क्या दुश्मनी है, इस तरह के कई सवाल उठते हैं, जिनका जवाब नहीं मिलता. शायद फिल्मकार लव रंजन ने इस फिल्म को लिखते व बनाते समय मान लिया था कि दर्शकों के पास दिमाग व लाजिक नहीं होते, उन्हे कुछ भी परोस दो.
फिल्म में द्विअर्थी, फूहड़ व घटिया जोक्स से द्वारा दर्शकों को जबरन हंसाने का प्रयास किया गया है. भला हो सेंसर बोर्ड का जिसने कई गालियों पर ‘बीप’ की आवाज लगवा दी. प्यार या रोमांस भी उभरकर नहीं आता. प्यार की बजाय ‘सेक्स‘ शब्द ज्यादा सुनाई देते हैं. इतना ही नहींफिल्म इतनी अत्याधुनिक है कि फिल्म के किरदार अपने माता पिता व बड़ों की इज्जत ही नहीं करते. फिल्म केवल एक प्रतिशत भारतीयों का ही प्रतिनिधित्व करती है?
इन दिनों हर फिल्मकार ‘नारी उत्थान’ की बात अपनी फिल्मों में कर रहा है और लव रंजन की इस फिल्म की नायिका कहती है-‘‘मैं हीरोईन नहीं, विलेन हूं, विलेन..’’ यह किस तरह का नारी उत्थान है, लव रंजन ही बेहतर बता सकते हैं.
जहां तक अभिनय का सवाल है तो टीटू के किरदार में सनी सिंह प्रभावित नहीं करते. उन्हे अपने अंदर की अभिनय प्रतिभा को निखारने के लिए काफी मेहनत करने की जरुरत है. कार्तिक आर्यन का अभिनय काफी दमदार है. नुसरत भरूचा ने ठीक ठाक अभिनय किया है, पर उनके पास अपनी प्रतिभा को दिखाने का बहुत अच्छा अवसर था. उनके अंदर इससे बेहतर काम करने की क्षमता भी है. मगर दूसरे भाव पेश करने की बजाय वह सिर्फ आंखों तक ही सीमित होकर रह गयीं. आलोकनाथ व वीरेंद्र सक्सेना भी अपने किरदारों में ठीक ठाक हैं. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता.
दो घंटे 18 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘सोनू के टीटू की स्वीटी’’ का निर्माण भूषण कुमार, किशन कुमार, लव रंजन व अनुज गर्ग ने किया है. लेखक व निर्देशक लव रंजन, कैमरामैन सुधीर के चौधरी तथा कलाकार हैं – सनी सिंह, कार्तिक आर्यन, नुसरत भरूचा, आलोकनाथ, वीरेंद्र सक्सेना, दीपिका अमीन, आएशा रजा मिश्रा, राजेश जाएस, सोनू कौर व अन्य.
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सवाल मैं 58 वर्षीय महिला हूं. मुझे बारबार यूटीआई हो जाता है. कई बार उपचार कराया, लेकिन यह समस्या स्थाई रूप से दूर नहीं होती. बहुत परेशान हूं. क्या करूं?
जवाब
मेनोपौज के बाद महिलाओं को अकसर इस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ब्लैडर में यूरिन रुक जाता है, अच्छी तरह से पास नहीं होता. इसलिए संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. कई महिलाओं में मेनोपौज के बाद यूरिन पास करने का रास्ता ड्राई हो जाता है. हारमोन थेरैपी से इस समस्या का उपचार किया जाता है. कई बार औपरेशन के द्वारा यूरिन पास करने का रास्ता चौड़ा किया जाता है. मेनोपौज के बाद यूटीआई के संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है, क्योंकि ऐस्ट्रोजन हारमोन के कम होने से वैजाइना, यूरेथ्रा और ब्लैडर के निचले हिस्से के ऊतक बहुत पतले और आसानी से टूटने वाले हो जाते हैं.
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महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन
यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन या यूटीआई (यह ट्रैक्ट शरीर से मुख्यरूप से किडनी, यूरेटर ब्लैडर और यूरेथरा से मूत्र निकालता है) एक प्रकार का विषाणुजनित संक्रमण है. यह ब्लैडर में होने वाला सब से सामान्य प्रकार का संक्रमण है लेकिन कई बार मरीजों को किडनी में गंभीर प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है जिसे पाइलोनफ्रिटिस कहते हैं.
यौनरूप से सक्रिय महिलाओं में यह अधिक होता है क्योंकि यूरेथरा सिर्फ 4 सैंटीमीटर लंबा होता है और जीवाणु के पास ब्लैडर के बाहर से ले कर भीतर तक घूमने के लिए इतनी ही जगह होती है. डायबिटीज होने से मरीजों में यूटीआई होने का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है.
डायबिटीज से बढ़ता है जोखिम
डायबिटीज के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है, इसलिए शरीर जीवाणुओं, विषाणुओं और फुंगी से मुकाबला करने में अक्षम हो जाता है. इस वजह से डायबिटीज से पीडि़त मरीजों को अकसर ऐसे जीवाणुओं की वजह से यूटीआई हो जाता है. इस में सामान्य एंटीबायोटिक काम नहीं आते हैं.
लंबी अवधि की डायबिटीज ब्लैडर को आपूर्ति करने वाली नसों को प्रभावित कर सकती है जिस की वजह से ब्लैडर की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं जो यूरिनरी सिस्टम के बीच सिग्नल को प्रभावित कर ब्लैडर को खाली होने से रोक सकती हैं. परिणामस्वरूप, मूत्र पूरी तरह से नहीं निकल पाता है और इस की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
मेटाबोलिक नियंत्रण खराब होने से डायबिटीज से पीडि़त मरीज में किसी प्रकार के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है.
कुछ नई एंटीडायबिटीक दवाओं की वजह से मामूली यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन हो सकता है.
क्या हैं लक्षण
लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन
पेशाब करते हुए दर्द होना.
पेशाब में जलन महसूस होना.
तत्काल पेशाब करने की जरूरत महसूस होना.
असमंजस.
क्लाउडी यूरिन.
पेशाब में से अजीब सी बदबू आना.
पेशाब में खून.
पेट के निचले हिस्से में दर्द.
पीठ में दर्द.
अपर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन
सर्दी के साथ तेज बुखार.
उलटी होना.
पेट के निचले हिस्से में दर्द.
बगल में दर्द.
आमतौर पर इन लक्षणों का मतलब होता है कि संक्रमण किडनी तकपहुंच चुका है. इस गंभीर समस्या से नजात पाने के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत हो सकती है. तत्काल उपचार से लक्षणों से भी छुटकारा मिल सकता है और संक्रमण के फैलने से भी बचा जा सकता है. कई दुर्लभ मामलों में यूटीआई की वजह से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे किडनी को नुकसान या फिर किडनी फेल होना. यूटीआई का पता लगाने के लिए बैक्टीरिया और पस के लिए एक अत्यंत साधारण मूत्र परीक्षण काफी है. एंटीबायोटिक को ले कर संवेदनशीलता के लिए यूरिन कल्चर, पेट का अल्ट्रासाउंड और गंभीर मामलों में सीटी स्कैन किया जाता है.
उपचार
लोअर यूटीआई, जो जटिल नहीं होता है, का उपचार बाहरी रोगी के तौर पर ओरल एंटीबायोटिक के साथ डाक्टर की उचित देखरेख में किया जा सकता है. कोई भी रेनल या कार्डिएक बीमारी न होने पर विभिन्न प्रकार के ओरल फ्लुइड्स लेने की सलाह दी जा सकती है. उपचार करने वाले डाकटर की अनुमति से दर्द में राहत देने वाली सुरक्षित दवाएं दी जा सकती हैं. दर्दनिवारक दवाओं से आमतौर पर बचना चाहिए क्योंकि इन से किडनी को नुकसान हो सकता है.
जटिल यानी अपर यूटीआई के लिए अस्पताल में भरती होने के साथ लंबे समय तक एंटीबायोटिक लेनी पड़ती है.
पौलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम और डायबिटीज का संबंध
यह ऐसी परिस्थिति है जो बच्चे पैदा करने की उम्र की महिलाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है जहां उन के अंडाशय की सतह पर असामान्य छोटे दर्दरहित सिस्ट होते हैं. इस के अलावा उन में असामान्यरूप से अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरौन होते हैं और अन्य हार्मोन का असामान्य अनुपात होता है जिस के परिणामस्वरूप शरीर में इंसुलिन की मात्रा उच्च होने के साथ ही अनियमित मासिकचक्र होता है.
संकेत
अनियमित मासिकधर्म.
ओलिगोमेनोहोयिया यानी मासिकचक्र के दौरान कम रक्तस्राव.
चेहरे, छाती और निपल के पास अधिक बाल.
एक्ने.
बांझपन.
अधिक वजन.
कारक
इंसुलिन प्रतिरोध और वजन बढ़ना पौलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम यानी पीसीओएस के 2 प्रमुख कारक हैं. इंसुलिन प्रतिरोध की वजह से शरीर में सामान्य से अधिक इंसुलिन का उत्पादन होता है जिसे हाइपरइंसुलिनेमिया कहते हैं. अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से अंडाशय में अत्यधिक मात्रा में टेस्टोस्टेरौन होता है जिस की वजह से सामान्य अंडोत्सर्ग पैदा हो सकता है.
अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से वजन भी बढ़ सकता है जिसे टाइप 2 डायबिटीज और पीसीओएस से जोड़ा जा सकता है. पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कम उम्र में डायबिटीज होने का जोखिम चारगुना अधिक होता है.
पीसीओएस से पीडि़त कई मरीजों में मेटाबोलिक सिंड्रोम होते हैं जिन में पेट पर मोटापा, बैड कोलैस्ट्रौल सीरम ट्रिगलीसेराइड्स का बढ़ना, गुड कोलैस्ट्रौल का घटना, सीरम हाई डैंसिटी लिपोप्रोटिन और रक्तचाप बढ़ना शामिल हैं.
पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कोरोनरी आर्टरी कैल्शिफिकेशन और बढ़ा हुआ कैरोटिड इंटिमा की मोटाई देखने को मिलती है.
बचाव
जीवनशैली प्रबंधन, खाने पर ध्यान और व्यायाम करें.
वजन कम करें.
डाक्टर से सलाह कर इंसुलिन सैंसिटाइजर्स मैडिकेशन मेटफौर्मिन का इस्तेमाल किया जा सकता है.
हार्मोनली मैडिकेशन.
जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस
जब गर्भवती मां में गर्भवती होने के दौरान पहली बार ग्लूकोज प्रतिरोध अनियमित पाया जाता है तो उसे जेस्टेशन डायबिटीज कहते हैं. ऐसी महिलाओं में भ्रूण द्वारा अधिक मात्रा में ग्लूकोज लेने के परिणामस्वरूप बड़े आकार के बच्चे को जन्म देने का जोखिम होता है. अधिक ब्लड ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित न करने पर नवजात बच्चे की मौत का खतरा बना रहता है.
जेस्टेशनल डायबिटीजका इलाज
औब्सेट्रेटीशियन की सलाह के साथ नियमित व्यायाम करें.
न्यूट्रीशनिस्ट के पास जाएं और कम कार्बोहाइड्रेट अनुपात वाला डाइट चार्ट बनवाएं.
हर दिन ब्लड ग्लूकोज का स्तर जांचें.
नियमितरूप से अपने डायबिटीज डाक्टर और औब्सेट्रेटीशियन से मिलें.
जरूरत पड़ने पर आप को इंसुलिन लेने की सलाह दी जा सकती है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान एंटी डायबिटीक दवाएं नहीं ली जा सकती हैं.
डिलीवरी के बाद क्या करें
जेस्टेशन डायबिटीज वाली महिलाओं में डायबिटीज होने का जोखिम सामान्य जेस्टेशन वाली महिलाओं के मुकाबले कम रहता है.
डिलीवरी के 6-12 हफ्तों बाद पोस्ट पारटम ओरल ग्लूकोज टौलरैंस किया जाना चाहिए और उस के बाद प्रत्येक 3 वर्षों में एक बार.
महिला को सख्त जीवनशैली का पालन अवश्य करना चाहिए और अपना वजन कम करने की कोशिश करनी चाहिए व बीएमआई बरकरार रखनी चाहिए.
नियमित एरोबिक और मांसपेशियों को मजबूती देने वाले व्यायाम अवश्य करने चाहिए.
महिलाओं में धूम्रपान अधिक नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि इस से इंसुलिन का स्तर बढ़ता है जिस से इंसुलिन प्रतिरोध पैदा होता है जिस के परिणामस्वरूप डायबिटीज बढ़ सकती है. या इस से ठीक उलट भी हो सकता है क्योंकि डायबिटीज से पीडि़त मरीज, जो धूम्रपान करता है, की बीमारी ठीक करना बहुत मुश्किल होता है.
धूम्रपान करने वाली महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले कार्डियोवैस्क्यूलर जटिलताएं विकसित होने का खतरा अधिक रहता है.
धूम्रपान करने वाली महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन का खतरा अधिक रहता है जिस की वजह से समय से रजोनिवृत्ति, हड्डियों में कमजोरी यानी ओस्टियोपोरोसिस जैसी चीजें हो सकती हैं.
कुछ अध्ययन बताते हैं कि मासिकचक्र में अनियमितता, ओवरियन सिस्ट इंफर्टिलिटी धूम्रपान से जुड़ी हैं.
गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं में समय से पहले जन्म देने, अस्थानिक गर्भावस्था, मृतबच्चे का जन्म, बच्चे के कम वजन जैसे खतरे होते हैं.
यूटीआई से कैसे बचें
सख्त ग्लाइकैमिक नियंत्रण.
अगर कोई रेनल या कार्डिएक समस्या न हो तो अधिक मात्रा में तरल लें.
अच्छा जेनाइटल हाइजिन बनाए रखें.
सैनिटरी नैपकिंस को बारबार बदलें.
ब्लैडर को लगातार खाली करती रहें.
प्रसूति रोग विशेषज्ञ से चर्चा करने के बाद रजोनिवृत्त हो चुकी महिलाएं एस्ट्रोजेन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं.
यौनसंबंध बनाने के बाद उचित साफसफाई पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
यूटीआई का खतरा पैदा करने वाली एंटीडायबिटीक दवाओं के बारे में डायबिटीक विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लें.
लैक्स ब्लैडर का उपचार किया जाना चाहिए.
थायरायड और डायबिटीज
थायरायड विकार एक पैथोलौजिकल स्थिति है जो डायबिटीज नियंत्रण को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है और इस में मरीज के परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता होती है.
थायरायड बीमारी डायबिटीज के सब से सामान्यरूप में पाई जाती है और यह अधिक उम्र के साथ जुड़ी होती है. खासतौर पर टाइप 2 डायबिटीज और टाइप 1 डायबिटीज में औटोइम्यून बीमारियां जुड़ी होती हैं.
थायरायड विकार शरीर के मेटाबोलिक नियंत्रण को प्रभावित करता है और इसलिए ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित करना मुश्किल होता है.
थायरायड प्रोफाइल मरीजों को औटोइम्यूनिटी पर संशय होने पर थायरायड औटोएंटीबौडी की भी जांच करानी चाहिए.
ब्लड ग्लूकोज प्रबंधन के साथ उचित ढंग से नजर रखने के साथ ही थायरायड का उचित उपचार किया जाना चाहिए.
जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस की स्थिति में गर्भधारण के दौरान नवजात को जान का खतरा रहता है.
अब वह क्या कहती? शिक्षा के दीवाने बाबूजी क्या उन लोगों को छोड़ने वाले हैं? हाथ धो कर पीछे लगे रहते हैं ताकि उन लोगों की पढ़ाई पूरी हो जाए. शांत, समझदार सास कभीकभी तुनक भी उठतीं, ‘पढ़ाई के पीछे होशोहवास खो बैठते हैं. यही एक नशा है इन को. लड़कियां घर का कामधाम भले ही न सीखें, बस दिनरात किताबें लिए रटती रहेंगी. लड़कों को तो पढ़ालिखा कर बड़ा लाट बना दिया.’
‘लाट नहीं तो क्या? उन के ठाठ क्या किसी से कम हैं?’ बाबूजी एक संतोषपूर्ण मुखमुद्रा में चिल्लाचिल्ला कर कहते, ‘पड़ोसी पूछते हैं कि तुम्हारा कितना बैंक बैलेंस है? मैं कहता हूं कि मैं ने अपना पैसा बैंकों में जमा कर दिया है. पांचों बेटे मेरे हीरे हैं.’ उन्हें बैंक बैलेंस शून्य होने का कोई भी दुख नहीं था.
बेटे कभीकभी चिढ़ जाते, ‘हां, हां, लिखायापढ़ाया ही तो है. और क्या दिया है? हम लोग अपनी मेहनत से आगे बढ़े. तुम ने खापी कर सब खर्च कर दिया.’
‘जरूर किया. कमाया है, खाऊंगा नहीं?’ बाबूजी अपना धीरज खो बैठते. भिन्नभिन्न प्रकार के पकवानों के प्रति वे अपना लोभ न रोक पाते. खाने का शौक बराबर रहा है उन्हें. यह तो उन के बाजार से अपनी मनपसंद चीजें लाने का शौक देख कर ही वह समझ जाती. दूसरी बहुएं और सास मुंह में कपड़ा ठूंस कर ठिठोली करतीं, ‘‘दांत नहीं रहे, फिर भी खाते किस शौक से हैं. शायद उम्र के साथ लालच और भी बढ़ गया है.’’
मनोविज्ञान की छात्रा छोटी सोचती कि इन लोगों को कौन समझाए. स्नेह और प्यार की वह भूख जो मिट न पाई, उसे जीभ की संतुष्टि द्वारा पेटभर कर मिटाना चाहता है स्नेह का प्यासा वह व्यक्ति. उस के अतृप्त मन ने अपना समाधान खोज निकाला है, पर यदि वह बोलने लगे तो वे हंस कर बोलेंगी, ‘‘चल री, यह कोई तेरी विश्वविद्यालय की कक्षा है, जो लैक्चर झाड़ रही है. अपनी छात्राओं को सिखाना जा कर.’’
प्यार मिला नहीं, पर प्यार लुटाना आता है बाबूजी को. पतंग पकड़ने के लिए जाने पर किस तरह मामा के हाथों पिटाई हुई थी, वही किस्सा सुनातेसुनाते वे मंडू को पतंग बनाना सिखाते. ‘‘स्कूल खुल रहे हैं, मीतू की बरसाती लानी है,’’ सुबह से ही वे हल्ला मचाने लगते मानो मीतू की बरसाती लाने से बड़ा कोई काम इस दुनिया में बचा ही न हो. जब मीतू शैतानी करती तब संझली कहती, ‘‘अब मैं इसे होस्टल में डाल दूंगी.’’
‘‘मजाक में भी होस्टल का नाम मत लेना. बेटी, मांबाप के रहते बच्ची को भला होस्टल में क्यों रहना पड़े इस कच्ची उम्र में? मुझे भी मामा ने 9वीं कक्षा में होस्टल में रख दिया था…’’ वे खो जाते उन दिनों की याद में जब उन्हें पोखर से कमल चुरा कर लाने में बड़ा आनंद आता था. लालाजी के कुम्हड़े की बेल काट कर फेंक देने में हर्ष होता था. और कितना मजा आता था चाचाजी की गाय के बछड़े को छोड़ देने में, जिस से पूरा दूध बछड़ा पी जाए और लल्लन चाचा उसे गालियां सुनाने घर आ धमकें. इस खेल में उपलब्धि शायद भौतिक लाभ की दृष्टि से कुछ भी न होती, पर एक किशोर बालक का अहं तृप्त हो जाता. पर किस को परवा थी उस के अहं की. वह तो पराश्रित अनाथ बालक था, इसीलिए मामा ने उसे होस्टल में भरती कर दिया था.
‘‘जाड़े के दिन थे. बहू और मामा नई रजाई दे गए थे मुझे. लड़कों ने मेरी नईनई रजाई देखी तो ईर्ष्यावश दौड़े आए और हंसने लगे, ‘अरे, मुंडी रजाई है, मुंडी.’ मेरी रजाई के किनारों पर पाइपिंग नहीं थी. बस, छोकरों को बहाना मिल गया. सब के सब टूट पड़े मुंडी रजाई पर और सारी रुई नोचनोच कर हवा में उछालने लगे. एक असहाय किशोर पर उस रात क्या बीती, यह उस का दिल ही जानता है.
‘‘कमरे में रुई के गुब्बारे नहीं, उस के मथे हुए अरमानों की धूल उड़ रही थी. मेरे देखते ही देखते उन्होंने रजाई के चीथड़े कर दिए. ठंड से ठिठुर कर वह जाड़ा गुजारा मैं ने, पर मामा से दूसरी रजाई मांगने का साहस न जुटा पाया. जीवनभर कभी भी किसी से जिद कर के कुछ मांगने का दिन नहीं आया.
‘‘आज किसी बच्चे की कोई भी जिद पूरी कर के मुझे बड़ी आत्मतृप्ति होती है.
‘‘इस कच्ची उम्र में होस्टल में मत भेजो, जबकि तुम लोग जिंदा हो, मैं जिंदा हूं. कल से मैं पढ़ाया करूंगा मीतू को. वह सुधर जाएगी. मांबाप के प्यार में वह ताकत है जो शायद होस्टल के कठोर अनुशासन में नहीं है.’’
छोटी बहू की आंखें सजल हो उठतीं. क्या किसी के पास थोड़ा सा भी अतिरिक्त प्यार नहीं बचता है एक अनाथ बच्चे के लिए? थोड़ा सा स्नेह जहां जादू कर सकता है, सारे विष को अमृत में बदल सकता है, वहां ये समर्थ दुनिया वाले अपनी क्षमता का दुरुपयोग क्यों करते हैं?
कुछ देर के लिए बाबूजी की उन धुंधली आंखों की सजल गहराई में डूबतीउतराती वह वर्षों पीछे घिसटती चली जाती. प्यार का लबालब भरा प्याला किसी के होंठों से लगा है, पर वह उस स्वाद की अहमियत नहीं जानता और जिस के आगे से अचानक प्यार की भरी लुटिया खींच ली गई हो वह प्यासे मृग की भांति भाग रहा है. और वह खो जाती है अपने वार्षिक परीक्षाफल की घोषणा के दिनों की याद में. वह कक्षा में प्रथम आती है और उस से उम्र में बड़ी चचेरी बहन किसी तरह पास हो जाती है. चाची हाथ मटकामटका कर कहती है, ‘‘देखो, आजकल की बहुरूपिया लड़कियों को, कैसे दीदे फाड़ कर चीखती थी कि हाय, मेरा परचा बिगड़ गया. इधर देखो तो पहला नंबर ले कर आ रही है. हाय, कितने नाटक रचे.’
वह प्रथम आई है, इस की खुशी मनाना तो दूर रहा, पर कभी परचा बिगड़ जाने पर रो पड़ने की बात पर चाची उलाहना देना न भूलीं. स्वाभाविक था कि कितना भी अच्छा विद्यार्थी हो, वह परीक्षा के दिनों में ऊटपटांग सोचता है, डरता है. पर उस के लिए तो स्वाभाविक बात या व्यवहार करना भी संभव न था. वह सब की नजरों में एक वयस्क, समझदार और सख्त लड़की थी, जिस के लिए नाबालिग की तरह व्यवहार करना अशोभन था.
और जब आर्थिक झंझटों के बावजूद बाबूजी ने उसे अपनी छोटी बहू मनोनीत किया था, तब तो मानो कहर बरपा था.
‘क्या देख कर ले जा रहे हैं?’ एक ने कटाक्ष करते हुए कहा था.
ताईजी का स्नेह जरूर था इस पर. हौलेहौले वे बोली थीं, ‘अजी, ऐसा मत कहो. हमारी बिटिया का चेहरामोहरा तो अच्छा है. हरदम हंसती आंखें, तीखी नाक और पढ़ाई में अव्वल.’
हां, उस के साधारण से चेहरे पर एक ही असाधारण बात थी. उस की हंसती हुई आंखें-जैसे प्रतिज्ञा कर ली थी उन आंखों ने कि हर उदासी को हरा कर रहेंगे और यही उस का गुण बन गया था-हंसमुख बने रहना. वह अपने आसपास देखती कि इस अभावग्रस्त दुनिया में सुखसुविधा के बीच भी आदमी अभाव का अनुभव कर रहा है. जो भौतिक सुखों से वंचित है वह भी और जो सुविधाप्राप्त है वह भी. शायद भौतिक सुख दुनिया के हर कोने तक पहुंचाने में हम असमर्थ हैं, पर स्नेह के अगाध सागर से लबालब भरा है यह मानव मन. यदि थोड़ा सा भी सिंचन करना शुरू कर दे हर कोई तो सारी धरती, सारी जगती सिंच जाए.
इतना थोड़ा सा त्याग वह भी करेगी और करवाएगी. आखिर इस में तो कोई खर्च नहीं है? आजकल की दुनिया में हिसाब से चलना पड़ता है, पर मन का कोई बजट नहीं बन सका है आज तक और न ही प्यार का कोई माप. इसलिए जहां तक स्नेहप्रेम खर्च करने का सवाल है, बेझिझक आगे बढ़ा जा सकता है. वहां न कोई औडिट होगा न कोई चार्ज.
पर हिसाबी है न मानव मन. हो सकता है कभी कोई माप निकल आए और स्नेह का भी हिसाब देना पड़े. शायद यही सोच कर स्नेह के भंडार भरे पड़े हैं और रोते दिलों को लुटाने को कोई तैयार नहीं दूरदर्शी, समझदार आदमी की जात. खिलखिला कर हंस उठी वह.
‘‘कैसी पगली हो तुम? मन ही मन हंसती हो और रोती हो,’’ पति की मीठी झिड़की सुन कर चुप हो गई वह. फिर तुनक कर बोली, ‘‘क्यों, हंसने पर कोई टैक्स तो है नहीं और जहां तक रोने का सवाल है, तुम्हें पा कर, तुम लोगों के बीच इस ग्रीन हाउस की ठंडी छांव में रो कर भी शांति मिलती है. मानो, बीती कड़वी यादों को धो कर बहाए दे रही हूं.’’
कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. परिवार के सभी सदस्य रजाई में दुबके पड़े थे, पर इतना शोरगुल होने लगा कि एकएक कर सब उठने को मजबूर हो गए. बैठक से शोरगुल की आवाज आ रही थी. एकएक कर सब भीतर झांकने लगे.
‘‘आइए, आइए,’’ छोटी का सदा सहास स्वर.
मेज पर एक बड़ा सा केक रखा था. और चाय की प्यालियां सजी थीं. सारे बच्चे बाबूजी को खींच कर मेज तक ला रहे थे. छोटी ने प्यालियां भरनी शुरू कीं. चाय की सुगंध से कमरा महक उठा. बच्चों ने दादाजी को ताजे गुलाब के फूलों का गुलदस्ता भेंट किया. छोटी ने उन की कांपती उंगलियों में छुरी पकड़ा दी. बच्चे एकसाथ गाने लगे, ‘‘हैप्पी बर्थ डे टू यू… दादाजी, जन्मदिन मुबारक हो…’’
परिवार के सदस्यों ने भुने हुए काजुओं के साथ चाय की चुस्की ली. केक का बड़ा सा टुकड़ा छोटी ने बाबूजी को पकड़ा दिया. कनखियों से सास की ओर देखा बाबूजी ने. फिर उन की आंखों में जो स्नेह का सागर उमड़ रहा था वह सब के कल्याण के लिए, सारी दुनिया के वंचित लोगों के लिए, सारी जगती के अतृप्त बच्चों के मंगल के लिए बहने लगा… ‘‘मेरा जन्मदिन आज तक किसी ने नहीं मनाया था, बेटी…’’
और छोटी को लगा, स्नेह के इन कीमती मोतियों को वह पिरो कर रख ले.