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शादी का बंधन बना रहे अटूट, जीवन खुशनुमा बनाए रखने में ये बातें काम आएंगी

शादी बड़ी धूमधाम से की जाती है. सभी बड़ेबुजुर्ग, शुभचिंतक, रिश्तेदार नए जोड़े को आशीर्वाद देते हैं कि उन का वैवाहिक जीवन सफल हो. खुद पतिपत्नी भी इसी उम्मीद से अपने रिश्ते को आगे बढ़ाते हैं कि हाथों से हाथ न छूटे, यह साथ न छूटे. फिर क्यों कई बार नौबत तलाक तक पहुंच जाती है या क्यों ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर बनते हैं? आंकड़े बताते हैं कि आज के बदलते समाज में ये बातें कुछ आम सी होती जा रही हैं. लेकिन जो पतिपत्नी अपने रिश्ते को ले कर सजग हैं, वे छोटीछोटी बातों का भी ध्यान रखते हुए अपने दांपत्य जीवन को हंसतेखेलते बिताना जानते हैं.

न छूटे बातचीत का दामन

शादीशुदा जीवन के लिए आपसी बातचीत का होना अनिवार्य है. शादी चाहे नई हो या फिर उसे हुए कितने ही साल क्यों न बीत गए हों, पतिपत्नी को एकदूसरे से बात करनी और एकदूसरे की सुननी चाहिए.

देहरादून के एक विश्वविद्यालय में कार्यरत पवन कहते हैं, ‘‘हमारे दिल में जो आता है उसे हम एकदूसरे को बताने से कभी नहीं हिचकिचाते. हां, मगर ऐसा हम प्यार से करते हैं.’’

सालों से साथ रहने के कारण पतिपत्नी न सिर्फ कही गई बातें ही सुनते हैं, बल्कि अनकही बातों को भी भांप लेते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो शादी के बंधन से सुख पाने वाले पतिपत्नी अपने साथी के उन विचारों और भावनाओं को भी समझ लेते हैं, जिन्हें उन का साथी शायद जबान पर न ला पाए. बातचीत का तारतम्य टूटने से पतिपत्नी के रिश्ते में दरार आ जाना स्वाभाविक है, जबकि बातचीत से पतिपत्नी दोनों को फायदा होता है.

माफी मांगने में शर्म कैसी

अपने रिश्ते में विश्वास की मजबूती बनाए रखने के लिए कई बार अपनी गलती के लिए अपने साथी से माफी मांगना आवश्यक हो जाता है. जब हम सच्चे मन से माफी मांगते हैं तो हमारे साथी के मन में हमारे लिए और भी प्यार व सम्मान जाग उठता है. इलिनोइस विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की प्रोफैसर डा. जेनिफर रोबेनोल्ट के अनुसार, सच्चे मन से मांगी गई माफी से टूटे रिश्ते के भी जुड़ने के आसार बन जाते हैं. कई बार तो बिना गलती किए भी रिश्ते में आ गई खटास मिटाने के लिए अपने साथी से माफी मांगनी पड़ जाती है.

बड़प्पन इसी में है कि हम अपनी गलती को स्वीकारने में झिझकें नहीं. माफी की ताकत न केवल रिश्ते बचाती है, अपितु हमें बेहतर इंसान भी बनाती है.

दूसरों के समक्ष एकदूसरे के प्रति शालीनता

कई बार देखने में आता है कि दूसरों के समक्ष पतिपत्नी एकदूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लग जाते हैं. फिर चाहे बात पत्नी द्वारा बनाई चीजों या पकवानों में कमी निकालने की हो या फिर पति द्वारा लिए गए किसी गलत निर्णय को सब के सामने दोहराने की. इस से रिश्ते के विश्वास में तो दरार आएगी ही, साथ ही एकदूसरे के आत्मविश्वास को भी ठेस पहुंचेगी. होशियार पतिपत्नी वे होते हैं, जो अपने जीवनसाथी की तारीफ करने के लिए जाने जाएं न कि उस की नुक्ताचीनी करने के लिए. सब के सामने साथी का मजाक बना कर हम अपने साथी के साथसाथ अपने रिश्ते का भी अपमान कर बैठते हैं.

ध्यान दें छोटीछोटी बातों से ही रिश्ते मजबूत होते हैं. इसलिए निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान दे कर आप अपने दांपत्य जीवन को मजबूती दे सकते हैं:

– एकदूसरे की प्रशंसा करने में झिझकें नहीं.

– अपने साथी से अपनी दिनचर्या के बारे में बात करें.

– यदि आप को अपना साथी कुछ चुपचुप सा या आप के प्रति उदासीन लगे तो कारण जानने का प्रयास करें.

– जब भी कोई काम कहना हो तो बिना ताने मारे कहें जैसे ‘मैं चाय बना लाती हूं, तब तक आप बिस्तर ठीक कर लें.’

– अपनी प्यारी सी इच्छा भी जरूर साझा करें जैसे हम दोनों फलां फिल्म देखने चलें.

लड़ाईझगड़े के उपरांत

नौर्थवैस्टर्न विश्वविद्यालय में हुए शोध से एक बहुत रोचक बात सामने आई है कि यदि लड़ाईझगड़े के उपरांत पतिपत्नी किसी तीसरे की नजर से झगड़े के कारण व वजहों को लिखें तो झगड़ा बहुत जल्दी सुलझ जाता है. इस का श्रेय जाता है लिखने से पनपे तटस्थ दृष्टिकोण को. अगली बार जब आप दोनों में झगड़ा हो तो आप भी कारणों को लिख कर पढि़एगा. आप पाएंगी कि गुस्से की वजह से आप से कहां चूक हो गई.

संग चलें

ब्लैखेम कहते हैं कि एक ही दिशा में संग चलने से आपसी तालमेल तथा एकजुट होने की भावना का विकास होता है. एकदूसरे के आमनेसामने होने से अधिक एकदूसरे के साथ होने से पतिपत्नी में एकरसता बढ़ती है. इसी तरह जब बाहर खाना खाने जाएं तो एकसाथ बैठें. आमनेसामने तो विरोधी बैठते हैं या फिर इंटरव्यू देने गया व्यक्ति.

अच्छा रिपोर्ट कार्ड

‘‘मैं ने कहीं पढ़ा था कि सुखद बातें पत्थर पर लिखो और दुखद बातें पानी पर. मुझे यह बात इतनी अच्छी लगी कि शादी के बाद मैं ने घर की एक दीवार पर रिपोर्ट कार्ड लिख दिया. जब कभी मेरे पति कुछ सुखद करते हैं, चाहे मेरे बिना मांगे मेरी पसंद की आइसक्रीम लाना या फिर मेरे पसंदीदा हीरो की फिल्म मुझे दिखाना अथवा मेरे मायके का टिकट बुक करवा देना, मैं उस दीवार पर उस के लिए एक सितारा बनाती हूं और जब 5 सितारे इकट्ठे हो जाते हैं तब मैं उन की पसंद का कोई गिफ्ट उन्हें उपहारस्वरूप देती हूं.’’

जब बाकी के सभी रिश्ते जीवन की आपाधापी या उम्र की मार के आगे बिछुड़ जाते हैं तब पतिपत्नी का रिश्ता ही साथ निभाता है. हरकोई इसी उम्मीद में एक जीवनसाथी को चुनता तथा अपनाता है. लेकिन जब यह रिश्ता गलतफहमी, ईगो या प्रयास की कमी के कारण टूटता है तो दुख केवल 2 लोगों को ही नहीं, अपितु इस का असर पूरे समाज पर दिखता है. तो क्यों न जरा सी समझदारी दिखाते हुए अपने इस सुनहरे रिश्ते में थोड़ी और चमक घोल दी जाए.

जानिए कितना सुखमय है आप का दांपत्य

क्लीनिकल सैक्सोलौजिस्ट वैन वर्क, जो पुस्तक ‘द मैरिड सैक्स सौल्यूशन’ के लेखक भी हैं, कहते हैं, ‘‘एक जोड़े को आपसी प्यार बढ़ाने के लिए बढि़या सैक्स से अधिक ज्यादा सैक्स पर ध्यान देना चाहिए. यदि रोज सैक्स करना मुमकिन नहीं है, तो कम से कम रोज 10 मिनट आलिंगन, चुंबन या संग नहाने भर से अच्छा सैक्स होने के चांस बढ़ जाते हैं.’’

इस क्विज से जानिए अपने शादीशुदा रिश्ते की मजबूती. उत्तर सही या गलत में दें:

प्र. 1: हम दोनों की यौनक्रिया लाइफ आज भी नई जैसी है

सही या गलत

प्र. 2: हमारी सैक्स जल्दबाजी भरी होती है, जिस में फोरप्ले की गुंजाइश बहुत कम होती है.

सही या गलत

प्र. 3: हम दोनों के रिश्ते में सैक्स का महत्त्व कम है.

सही या गलत

प्र. 4: जब भी हम में लड़ाई होती है तो हम कईकई दिनों तक एकदूसरे से मुंह फुलाए रहते हैं.

सही या गलत

प्र. 5: हमारे बीच हाथ पकड़ना, गले मिलना, सट कर बैठना काफी कम होता जा रहा है.

सही या गलत

प्र. 6: हम दोनों कभी फिल्म देखने या खाना खाने बाहर नहीं जाते हैं. जब भी जाते हैं परिवार साथ होता है          

सही या गलत

प्र. 7: सैक्स की शुरुआत करने से मुझे डर लगता है कि कहीं मेरा साथी मुझे दुत्कार न दे.

सही या गलत

प्र. 8: अपनी कोई भी समस्या अपने साथी से बांटने में मुझे कोई संकोच नहीं होता है.

सही या गलत

प्र. 9: मेरा अपने साथी से भावनात्मक रूप से जुड़ाव है.

सही या गलत

प्र. 10: मैं/मेरा साथी आजकल काम के कारण परेशान है.

सही या गलत

यदि आप के अधिकतर उत्तर ‘सही’ में हैं तो आप को अपने रिश्ते की मजबूती की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है.

वीडियो : उधर हारी टीम इंडिया, इधर नाचते दिखे कोहली

VIDEO : ये नया हेयरस्टाइल ट्राई किया आपने 

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विराट कोहली की गैरमौजूदगी टीम इंडिया को महंगी पड़ी. टी-20 ट्राई सीरीज में भारत की खराब शुरुआत हुई है. मंगलवार रात भारतीय टीम निदहास ट्रौफी के शुरुआती मुकाबले में मेजबान श्रीलंका से हार गई. लेकिन, इसी झटके के बीच भारतीय कप्तान विराट कोहली छुट्टियों का पूरा फायदा उठा रहे हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर विराट कोहली की कुछ वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें वह पंजाबी गाने की धुन पर जमकर भांगड़ा करते नजर आ रहे हैं. यह वीडियो एक फैन ने अपने पेज पर शेयर किया है.

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा विराट कोहली का यह डांस वीडियो उनके एक दोस्त की शादी का बताया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विराट अपने दोस्‍त गगन और मलिका के शादी समारोह में शामिल होने पहुंचे थे. अपलोड किए गए इस वीडियो क्लिप में उनकी पत्नी अनुष्का तो नहीं दिख रही हैं, लेकिन उनके साथी क्रिकेटर शिखर धवन और केएल राहुल उस डांस में जरूर शामिल नजर आ रहे हैं.

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विराट वैसे भी डांस में माहिर हैं, ये पहला मौका नहीं है जब उनके डांस का वीडियो वायरल हो रहा है. इससे पहले भी कई बार विराट के भांगड़ा से लेकर वेस्टर्न डांस वायरल हुए हैं.

जैसा कि आपको पता है विराट कोहली इन दिनों छुट्टी पर चल रहे हैं. विराट टैटू के बहुत शौकीन हैं, तभी तो साउथ अफ्रीका दौरा खत्म होने के बाद स्वदेश लौटते ही नए टैटू बनवाना नहीं भूले. 58 दिन लंबे साउथ अफ्रीका दौरै से मुंबई लौटे विराट ने अनुष्का की फिल्म ‘परी’ देखी और ट्वीट के जरिए अपनी खुशी का इजहार किया. उन्होंने लिखा- ‘यह मेरी पत्नी का अब तक का सबसे बेहतरीन काम है.’

भारतीय टीम श्रीलंका में ट्राईसीरीज खेलने के लिए गई हुई है लेकिन कोहली ने इस सीरीज से आराम ले रखा है. उनकी जगह रोहित शर्मा कप्तानी संभाल रहे हैं. ऐसे में अपनी छुट्टियों में विराट कोहली खूब मौज मस्ती कर रहे हैं. कभी वह अपनी पत्नी अनुष्का के साथ नजर आते हैं तो कभी टैटू बनवाते दिखते हैं.

शूटिंग के दौरान इस अभिनेत्री की गोद में बैठे दिखे अनुराग कश्यप

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बौलीवुड के मशहूर डायरेक्टर अनुराग कश्यप ज्यादातर समय अपने किसी न किसी काम की वजह से लोगों का निशाना बन जाते हैं और एक बार फिर वह सुर्खियों में हैं और इस बार उनके चर्चा में आने की वजह बनी है उनकी एक फोटो, जिसे अनुराग ने खुद सोशल मीडिया पर शेयर किया है.

दरअसल अनुराग कश्यप इन दिनों अपनी अगली फिल्म मनमर्जियां की शूटिंग के सिलसिले में पिछले कुछ समय से फिल्म की पूरी यूनिट के साथ अमृतसर में बिजी हैं. शूटिंग के दौरान खींची इस फोटो में वह बौलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू की गोद में बैठे दिखाई दे रहे हैं.

अनुराग के इसी पोज की वजह से लोग अब उनका जमकर मजाक उड़ा रहे हैं, जबकि तापसी पन्नू अनुराग कश्यप को अपनी गोद में बैठाकर काफी खुश नजर आ रही हैं. फोटो को शेयर करते हुए अनुराग ने लिखा, ‘आपको यही करना चाहिए जब एक्टर आपकी सीट ले लें और आपकी उम्र और वरिष्ठता के बारे में भी कुछ विचार भी न करे’

इंस्टाग्राम पर शेयर किये गए अपने इस फोटो की वजह से अनुराग अब ट्रोर्लस के निशाने पर भी आ गए हैं. उनकी इस पोस्ट पर इंस्टाग्राम यूजर्स और तापसी के कुछ फैंस भी अनुराग पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. फोटो में जहां कुछ लोग उन्हें एक निर्देशक होने की सीख दे रहे हैं तो कुछ लोग उन्हें कलाकारों की इज्जत करने के लिए कह रहे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि कम से कम उसके पैर तो देखो और कुछ फैंस ने कहा ‘बच्चे की जान लोगे क्या.

बता दें अनुराग की फिल्म मनमर्जियां की शूटिंग कुछ दिन पहले ही शुरू हुई है. इस फिल्म में तापसी पन्नू, अभिषेक बच्चन और विक्की कौशल लीड रोल में नजर आने वाले हैं. फिल्म अनुराग कश्यप के निर्देशन में बन रही है जबकि इसका निर्माण आनंद एल. राय कर रहे हैं. इस फिल्म के जरिए अभिषेक बच्चन पूरे दो साल बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी करने जा रहे हैं.

हिंदुत्व का प्रेम पर प्रहार और देश में बढ़ता नफरत का माहौल

VIDEO : नेल आर्ट का ये तरीका है जबरदस्त

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देश में फैलाए जा रहे धार्मिक नफरत के माहौल में एक अच्छाखासा आदमी किस तरह दूसरे मजहब के लोगों से घृणा करने लगता है और एक दिन बेरहमी से वह अपने दोस्त का कत्ल करने से नहीं हिचकिचाता. राजस्थान के राजसमंद में 48 साल के मोहम्मद अफराजुल की हत्या करने वाला शंभूलाल रैगर इस की जीतीजागती मिसाल है. दलित समुदाय का शंभूलाल इसी विषैली हवा का शिकार बन गया. इसी में निश्चल प्रेम की भी बलि दी जा रही है. भगवा संदेश है कि धर्म, जाति, कुंडली वर्ण, वंश देख कर प्यार करो, यानी पंडित ने जिसे कहा उस से प्रेम करो.

6 दिसंबर को उदयपुर जिले के राजसमंद के राजनगर में शंभूलाल ने अफराजुल की लव जिहाद के नाम पर फावड़े और गैंती से निर्ममतापूर्वक हत्या की और फिर उसे पैट्रोल डाल कर जला दिया. इस बेरहम कत्ल का बाकायदा वीडियो बनाया गया और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर के नफरत की आग को और हवा देने की कोशिश की गई.

यह भयावह वीडियो जैसे ही वायरल हुआ, इसे देख कर लोग स्तब्ध रह गए. अनेक लोगों ने इस हत्या की निंदा की पर सोशल मीडिया पर कई हिंदू कट्टरपंथियों ने हत्या को जायज ठहराते हुए शंभूलाल का समर्थन किया और उसे हीरो का दरजा देने का प्रयास किया गया.

छदम देशभक्ति

शंभू ने अपने नाबालिग भतीजे से 3 वीडियो बनवाए थे. एक हत्या के समय का लाइव वीडियो है. 2 वीडियो कत्ल करने से पहले के हैं. इन में से एक वीडियो में वह स्त्री सम्मान, लव जिहाद और देशभक्ति जैसे मुद्दों पर भाषण दे रहा है. कत्ल के वीडियो में वह दावा कर रहा है कि अपनी बहन की बेइज्जती का बदला लेने और लव जिहाद को खत्म करने के लिए वह इस हत्या को अंजाम दे रहा है. वह चेतावनी भी दे रहा है कि हिंदू लड़कियों को पथभ्रष्ट करने वालों का अंजाम यही होगा.

इस हत्या पर उस ने लव जिहाद, मेवाड़ प्रेम, इसलाम विरोध और महाराणा प्रताप की वीरता की बात कही है. इस वीडियो को लाखों लोग देख चुके हैं.

शंभू को पुलिस ने जल्दी पकड़ लिया. उस ने पूछताछ में बताया कि  वह कुछ सालों से अपने महल्ले में रहने वाली एक औरत के साथ रहता था. जो उस के साथ ही काम करती थी. बाद में वह औरत उसे छोड़ कर अफराजुल के पास रहने लगी. शंभू और अफराजुल दोस्त बताए जाते हैं और एक ही महल्ले में रहते थे. शंभू ठेकेदारी करता था और अफराजुल पश्चिम बंगाल से उस के लिए मजदूर लाता था.

पुलिस के मुताबिक, शंभू ने बताया कि उस के महल्ले की 2 लड़कियां गायब हो गई थीं. इन में से सुनीता (बदला हुआ नाम) को वह मालदा जिले के सैयदपुर गांव जा कर वापस लाया था. वह सुनीता की मां की गुहार पर खुद ही सैयदपुर गया था. लड़की की मां से उसे लाने के एवज में शंभू ने 10 हजार रुपए इनाम के तौर पर लिए थे. अफराजुल इसी गांव का था. चर्र्चा थी कि उसे अफराजुल ने भगाया था.

यह भी बताया गया कि सुनीता को सैयदपुर गांव से लाने से नाराज बंगाली मजदूरों ने शंभू को मारापीटा था. इस से वह सनकी हो गया था. पिछले कई दिनों से वह इंटरनैट पर लव जिहाद से जुड़े भाषण सुन रहा था. पुलिस का मानना है कि वह इन बातों से परेशान रहने लगा और साथ के मुसलिम मजदूरों से नफरत करने लगा. इस के बाद वह हत्या की योजना बना रहा था.

आपसी रंजिश के मामले को वह पूरे हिंदू समाज से जोड़ने में सफल हो गया. इस घटना से लगता है कि अब एक हिंदू कट्टरता को अपनाकर आतंकवादी मानसिकता का रूप लेता जा रहा है. हत्या और दंगाफसाद करने वाले लोग माथे पर भगवा पट्टी और भगवान का नारा लगा कर हत्या और आगजनी को अंजाम देने लगे हैं.

देशभर में घातक किस्म का हिंदुत्व पांव पसार रहा है जो लोगों के मनमस्तिष्क में जहर की तरह घुसपैठ कर रहा है. यह काम भारत में राष्ट्रवाद, देशभक्ति के नाम पर बड़े शातिराना तरीके से कराया जा रहा है.

नफरत का माहौल

पिछले कुछ समय से देश में जिस तरह की विचारधारा और नफरत का वातावरण बनाया जा रहा है, यह घटना उस विचारधारा के फलनेफूलने को दर्शा रही है. देश में धर्मयुद्घ जैसा माहौल बन चुका है. एक बेकुसूर मजदूर की हत्या को धर्म का जामा पहना देना उस विचारधारा और समूह का षड्यंत्र है जो दूसरे धर्म के लोगों की हत्या को उकसाता है. वीडियो में शंभू की भावभंगिमा, भाषा उसी हिंदुत्व से प्रेरित लगती है.

यह दशकों से फैलाई जा रही जहरीली विचारधारा का नतीजा है. यह जो माहौल फैलाया जा रहा है उस से शंभू रैगर ही पैदा हो सकते हैं. लाखों की संख्या में इस नफरत के माहौल का असर युवाओं पर पड़ रहा है. युवा बेराजगारों को रोजगार नहीं दिया जा रहा है बल्कि उन्हें तालिबान, आईएसआईएस की तरह आतंकी बना कर धर्मयोद्धा बनाया जा रहा है.

देश के युवाओं को धार्मिक कट्टरता से प्रभावित कर के आतंक की ओर झोंका जा रहा है. लाखों युवा धर्म के नाम पर जान देने और जान लेने को तैयार हैं. लोगों का बे्रनवाश किया जा रहा है ताकि उन के जरिए दंगे, हत्याएं करवाई जा सकें. देश में एक विषैली पौध तैयार हो रही है. जिस के दुष्परिणाम तो दिखेंगे ही. ऐसे में भारत और मजहबी कट्टरपंथी पाकिस्तान में फर्क क्या रह जाता है.

हिंदू आतंकवाद की इस लैबोरेटरी में दलित, पिछड़ा, आदिवासी समुदाय के युवाओं का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है. जयपुर से गाय ले जा रहे हरियाणा के नूह के पशुपालक पहलू खान की जान लेने वाले पिछड़े समुदाय के युवा ही थे. इन वर्गों के युवा महज औजार हैं और हिंदुत्व के लिए इस्तेमाल होने के लिए तैयार हैं.

बाबरी मसजिद को ढहाने में यही लोग आगे थे. राममंदिर निर्माण के लिए झंडा उठाने वालों में पिछड़े सब से अधिक पैरोकार बने दिखाई दे रहे हैं. यह समुदाय बल में सब से ऊपर हैं, बुद्धि में नहीं. बुद्घि चलाने वाले तो बहुत थोड़े से हैं, हिंदुत्व की मलाई वही चाट रहे हैं.

मेवाड़ का कर्ज चुकाने, देशभक्ति दिखाने और हिंदुत्व की इज्जत के लिए क्या शंभू रैगर जैसों की जरूरत है? दलितों, पिछड़ों को इस साजिश पर सोचनासमझना होगा कि उन के दिमाग में धर्म, जाति की नफरत का जहर कौन घोल रहा है और क्यों? इसी में वे युवा पिस रहे हैं जिन के दिल किसी खास को देख कर धड़कने लगते हैं.

एंटी रोमियो, मनचलों के माने और मौलिक अधिकार का हनन

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युवतियों की सुरक्षा को ले कर प्रशासन पुलिस के दावों की पोल खोलती एक सीसीटीवी फुटेज सामने आई. उस में साफ देखा जा सकता है कि बाइक सवार 3 शोहदे स्कूल जाने वाली एक छात्रा को किस तरह छेड़ रहे हैं.

हैरानी की बात है कि चहलपहल वाली गली में 12 वर्षीय स्कूली छात्रा को अश्लील हरकतों से परेशान किया जा रहा है, लेकिन कोई उस की मदद के लिए आगे नहीं आ रहा. सीसीटीवी फुटेज में कैद देश में यह घटना अमृतसर के कटरा कर्मसिंह इलाके में घटी. ऐसी घटनाएं हर रोज घट रही हैं.

मनचलों के माने

आप ने कभी इस बात पर गौर किया है कि मजनूं का मतलब क्या है. मनचलों के माने क्या होता है. रोमियो कौन था. राउडी किसे कहते हैं? कोई पुलिस वाला यह कैसे पता लगाएगा कि किसी युवक ने युवती को छेड़ा है? क्या पास से गुजर जानेभर को छेड़ना माना जाएगा या सिर्फ नजरें मिलाने भर को छेड़खानी करार दिया जाएगा या फिर ये काम युवतियों की शिकायत पर होगा?

जाहिर है ये तमाम सवाल सुन कर अब तक आप समझ ही गए होंगे कि यहां बात किस की हो रही है. जी हां, रोमियो और एंटी रोमियो की.

कहां से आया रोमियो

करीब सवा 500 साल पहले एक नाटक के जरिए रोमियो का जन्म हुआ था. शेक्सपियर ने रोमियो को पैदा किया था. नाटक का नाम था रोमियाजूलियट. दोनों मुहब्बत के ऐसे दीवाने कि आखिर में एकदूसरे के लिए जान देते हैं और इस तरह इन की प्रेम कहानी हमेशाहमेशा के लिए अमर हो जाती है. मगर सवा 500 साल बाद अब वही रोमियो अचानक उत्तर प्रदेश का सब से बदनाम नाम बना दिया गया है, क्योंकि उस का नाम इश्क और मुहब्बत के खाने से निकाल कर अब उत्तर प्रदेश के बिगड़े शोहदों के साथ जोड़ दिया गया है.

रोमियो पर आफत

रोमियो इतना बदनाम इस से पहले शायद ही कभी हुआ हो. मजनूं की भी ऐसी हालत पहले नहीं हुई होगी जैसा कि उत्तर प्रदेश में अब हो रहा है. ऐसा लगता है कि यहां कानून की खूंटी पर मजनूं और मनचले दोनों एकसाथ टंगे हैं. अगर रोमियो और राउडी एक ही डंडे से हांके जाएं तो यह तो होगा ही. रोमियो के नाम से पहले एंटी लग गया और रोमियो के नाम से आगे दस्ता. इस तरह उत्तर प्रदेश में कानून की डिक्शनरी में एक नया नाम जोड़ दिया गया, ‘एंटी रोमियो दस्ता’. ऐसा लगता है मानो प्रदेश में इस वक्त मनचले ही सब से बड़ी आफत हैं.

राज्य में योगी सरकार आते ही सारा काम छोड़ कर पुलिस बस रोमियो के ही काम पर लगा दी गई, जबकि इसी राज्य में बड़ेबड़े और छटे हुए क्रिमिनल इन्हीं खाकी वालों का मजाक उड़ाते हुए लंबे वक्त से फरार हैं और भगोड़े बने हुए हैं. सरकार बनने से पहले ऐसे अपराधियों को एक हफ्ते के भीतर पकड़ कर अंदर करने के दावे किए गए थे. मगर शायद उन भगोड़े खूनी, रेपिस्ट और माफियाओं से कहीं ज्यादा मनचलों से सरकार को खतरा लग रहा है. इसीलिए सारी फोर्स रोमियो के पीछे छोड़ दी गई. लेकिन फिर भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है.

बच्चों के बरताव पर नजर

एक जमाना था जब बच्चों के बरताव पर घर वालों की नजर रहती थी. बच्चों को तहजीब घर में ही सिखाई जाती थी. अब जमाना बदल गया है. ऐसा लगता है कि इंटरनैट के इस युग में बच्चे मांबाप के हाथों से निकल चुके हैं. वे उन की बात नहीं मानते. इसलिए प्रशासन को मांबाप का रोल अदा करना पड़ रहा है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फरमान है कि अब पुलिस मनचलों पर निगाह रखेगी, लेकिन क्या यह मुमकिन है? दुनिया गवाह है कि कोई भी ताकत कभी प्यार करने वालों को नहीं रोक पाई है. कालेज जाती लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने वालों को रोकना तो ठीक है, लेकिन यह तय कर पाना वास्तव में बहुत मुश्किल काम है कि कौन लड़की को छेड़ रहा है कौन लड़की की मरजी के बगैर उस से मिल रहा है? या फिर कौन किसी काम से किसी गर्ल्स स्कूल या फिर कालेज के सामने से गुजर रहा है? यही वह तलवार की धार है जिस पर यूपी पुलिस चल रही है, लेकिन उसे यह भी देखना होगा कि कहीं मौलिक अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा?

मौलिक अधिकार का हनन तो नहीं

एंटी रोमियो दस्ता कहीं हमारे मौलिक अधिकारों का हनन तो नहीं कर रहा है आज यह सवाल सभी के दिमाग में है. मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं और जिन में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता. ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक हैं और जिन के बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता.

दरअसल, भारत में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की मांग ब्रिटिशकाल में ही शुरू हो गई थी. ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समय शुरू हुए राष्ट्रीय आंदोलनों के समय मौलिक अधिकारों को संविधान में शामिल करने की मांग 3 कारणों से की गई. पहला, कार्यपालिका के स्वेच्छाचारी व्यवहार पर अंकुश लगाने के लिए, दूसरा, सामाजिक आर्थिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, तीसरा, विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों को सुरक्षा व संरक्षण प्रदान करने के लिए.

किनकिन अधिकारों को संविधान में जगह दी जाए, इस पर संविधान सभा में पर्याप्त बहस हुई थी और विभिन्न मुद्दों के ऊपर सदस्यों के मध्य मतभेद कायम थे. जहां कुछ सदस्य स्वतंत्रता, न्याय के नकारात्मक अधिकारों की पैरोकारी कर रहे थे और इन पर किसी भी प्रकार के संवैधानिक या राजकीय प्रतिबंधों के खिलाफ थे, वहीं कुछ सदस्यों ने भारत की विशालता, विविधता और यहां फैले सामाजिक आर्थिक व सांस्कृतिक असमानता के मद्देनजर, लोकतांत्रिक कल्याणकारी दृष्टिकोण अपनाते हुए, स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा में विश्वास किया और नागरिकों के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सामाजिक व आर्थिक अधिकारों की मांग उठाई.

संविधान सभा ने तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप दोनों प्रकार की मांगों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया.

एक तरफ कुछ प्रमुख नागरिक और राजनीतिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में संविधान में शामिल किया गया और उन्हें राज्य की मनमानी से बचाने के लिए न्याययोग्य बनाया गया. वहीं दूसरी तरफ कुछ प्रमुख सामाजिक आर्थिक अधिकारों को भी नीतिनिर्देशक तत्त्वों के रूप में संविधान का भाग बनाया गया. लेकिन तत्कालीन भारत की क्षमताओं और संसाधनों की उपलब्धता को देखते हुए इन्हें बाध्यकारी और न्याय योग्य नहीं बनाया गया.

इन प्रावधानों को लागू करने का प्रावधान राज्य के ऊपर डाला गया और यह अपेक्षा की गई कि राज्य अपनी नीतियों को बनाते समय इन प्रावधानों को यथासंभव स्थान देंगे. मौलिक अधिकारों का प्रयोजन राज्य पर युक्तियुक्त बंधन लगा कर मर्यादित शासन स्थापित करना है. इसे विधिसम्मत शासन कहते हैं, जो मानवीय शासन से भिन्न है.

ब्रिटिशकाल में मूल अधिकार

ब्रिटिशकाल के दौरान हमारा अनुभव दुखद रहा क्योंकि हमारे मूल अधिकार शासकों की मरजी पर निर्भर थे. हमारा संविधान जनता को कुछ आधारभूत अधिकार प्रदान करता है जिन्हें राज्य भी कुचल नहीं सकता. भारत में मौलिक अधिकारों को संविधान द्वारा रक्षित किया गया है.

संविधान ही इन अधिकारों को प्रवृत्त भी करता है. जहां सामान्य अधिकारों को साधारण विधायी प्रक्रिया द्वारा बदला जा सकता है, वहीं मूल अधिकारों को परिवर्तित करने के लिए संविधान का संशोधन करना आवश्यक है. मूल अधिकारों का निलंबन या न्यूनीकरण संविधान में विहित रीति से ही किया जा सकता है.

मौलिक अधिकार ऐसे अधिकार हैं जिन में किसी व्यक्ति को राज्य के विरुद्ध अधिकार प्राप्त होता है. अतएव मूल अधिकार राज्य को भी आबद्ध करते हैं. मूल अधिकारों पर कार्यपािलका, विधायिका और न्यायपालिका आक्रमण न करें, इस के लिए संविधान में व्यापक सुरक्षा के उपबंध किए गए हैं.

कार्यपालिका  का कोई निर्णय या विधायिका का कोई कानून अगर मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो न्यायालय द्वारा उसे अविधिमान्य करार दिया जा सकता है.

हमारे संविधान में मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सीधे उच्चतम न्यायालय में अपील करने का प्रावधान मौजूद है. इन अधिकारों के हनन की दशा में न्यायालय जाने का अधिकार भी नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है. इस प्रकार भारतीय संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों का संरक्षक बनाया गया है.

कानून की नजर

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने एंटी रोमियो अभियान के तहत प्रदेश सरकार व पुलिस द्वारा जारी दिशानिर्देशों को उचित करार दिया और कहा है कि पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी दिशानिर्देश ठीक हैं, लेकिन न्यायालय ने इस का पालन कानून के दायरे में रह कर करने की हिदायत दी और कहा कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि कोई बेकुसूर व्यक्ति इस से पीडि़त न हो. न्यायालय ने इसी मामले में राज्य सरकार से यह भी अपेक्षा की है कि आम जनता के अनुपात में पुलिस बल की भरती भी की जानी चाहिए.

याचिका दायर कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एंटी रोमियो अभियान को चुनौती दी गई थी. याचिका में कहा गया था कि इस अभियान का दुरुपयोग किया जा रहा है पुलिस कुछ निर्दोष लोगों को भी प्रताडि़त कर रही है जो संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन और कानून के अनुसार गलत है. न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते समय फैसले की शुरुआत में कहा था कि जहां नारियों की इज्जत की जाती है वहां सद्भावना का वास होता है.

पढ़ना है एक शानदार शौक, यकीन नहीं होता तो आजमा कर देखें

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क्याआप ने कभी शब्दों और कल्पनाओं की दुनिया में डूब कर देखा है? पढ़ने का शौक अपना कर देखिए, किताबें आप को तनाव ओर जीवन की चिंताओं से दूर ऐसे अनूठे संसार में ले जाएंगी कि आप हैरान रह जाएंगे. कुछ देर ही कुछ भी मनपसंद पढ़ने के बाद आप का मन इतना हलका हो जाएगा कि आप स्वयं में उत्साह, ऊर्जा का अनुभव करेंगे. बारिश का मौसम हो, एक कप चाय और हाथ में अपनी मनपसंद किताब, एक बार इस अनुभव का आनंद अवश्य ले कर देखें. सारी बोरियत, अकेलापन, तनाव

चुटकियों में दूर हो जाएंगे. पढ़ने के शौक के फायदे क्या हैं, आइए, जानें :

  • पढ़ने की आदत हमें कई बार किसी और ही दुनिया में ले जाती है. पढ़ने के बाद आप की फिर यही इच्छा होती है कि अब दूसरी पुस्तक का आनंद लिया जाए. किताबों की दुनिया सब से आकर्षक दुनिया है. इस दुनिया का हिस्सा बनने पर आप को कोई नुकसान नहीं होगा. आप का व्यक्तित्व निखरता ही है.
  • मीनल वर्मा कहती हैं, ‘‘जितनी पुस्तकें आप पढ़ते हैं, उतना ही आप को एडवैंचर अच्छे लगते हैं. आप कई नायकों और खलनायकों का जीवन जी लेते हैं. आप सिर्फ वह पात्र जीते ही नहीं, उस पात्र का मस्तिष्क और उस की स्थिति भी समझने लगते हैं.’’
  • पढ़ते रहने से आप अकसर उन व्यक्तियों की बातों और विषयों के बारे में भी सोचने लगते हैं जिन पर आप कभी ध्यान न देते, यदि पढ़ा न होता. आप कई पात्रों के बारे में पढ़ कर जीवन को बेहतर समझ पाते हैं.
  • मनोवैज्ञानिक सीमा जैन कहती हैं, ‘‘यह अकसर कहा जाता है कि जिन्हें पढ़ने का शौक होता है वे दुनिया को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं बजाय उन के, जिन्हें पढ़ने की आदत नहीं होती. जब आप विभिन्न पात्रों के बारे में पढ़ते हैं, आप उन पात्रों को अकसर जी भी लेते हैं, उन का दुख और दर्द महसूस कर पाते हैं और दुनिया को कई तरह के दृष्टिकोण से समझ पाते हैं.’’
  • घूमनेफिरने की शौकीन और उत्सुक पुस्तकप्रेमी प्रिया जोशी को लगता है कि यदि घर पर बात करने के लिए कोई भी नहीं है या कभी अकेले समय बिताने का मन हो तो किताबें आप की सब से अच्छी साथी हैं. सफर की भी अच्छी साथी हैं किताबें. आप इन के साथ कभी बोर नहीं होंगे.

डब्लू सोमरसेट मौघेम ने भी यही कहा है, ‘‘पढ़ने की आदत आप को जीवन की परेशानियों से दूर ले जाती है.’’

सो, हर समय व्हाट्सऐप पर गुडमौर्निंग, गुडनाइट के मैसेज फौरवर्ड करने या फेसबुक पर ‘इस फोटो को लाइक करो तो बिगड़े काम पूरे होंगे’ जैसी पोस्ट पर अपना समय बरबाद न कर पढ़ने का शौक अपनाएं. कुछ भी पढ़ कर आप बहुतकुछ सीखते हैं, समझ जाते हैं. पढ़ने से अकेलापन या तनाव कुछ भी नहीं रहेगा.

उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले से सकते में बोर्ड परीक्षार्थी

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उत्तर प्रदेश में बोर्ड की परीक्षाओं में 10 लाख विद्यार्थियों का परीक्षा देने से इनकार करना चौंकाने वाली बात है. उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षाओं में सख्ती के कारण ऐसा हुआ है, क्योंकि सरकार ने फैसला किया है कि वह परीक्षा में नकल नहीं होने देगी और उत्तरपुस्तिकाओं में भी हेरफेर नहीं होने देगी. इन 10 लाख विद्यार्थियों के कई साल और परीक्षाओं में धांधली के लिए दिए गए पैसे मिट्टी में मिल गए. गरीब घरों से आने वाले इन 10 लाख छात्रछात्राओं की जो झूठी आस थी कि वे नकल कर के मिले प्रमाणपत्रों के सहारे शायद कभी कोई सरकारी नौकरी पा सकेंगे, अब समाप्त हो गई है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह काम अनुशासन लाने के लिए किया, यह मानना गलत होगा. परीक्षाओं में नकल करवाने का धंधा सुनियोजित है और इसे बड़ी सावधानी से सालदरसाल उस तरह लागू किया जाता है जैसे कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है.

स्कूलों में प्रवेश के साथ ही लाखों दलितों व पिछड़ों को समझा दिया जाता है कि उन को शिक्षा देना सरकार का काम नहीं. शिक्षक सरकार से गुरु होने की दक्षिणा पाने के लिए स्कूल आते हैं और उसी दक्षिणा में शिष्यों के योगदान को भी स्वीकार करते हैं, पर बदले में शिक्षा देना उन का कर्तव्य नहीं है. द्रोणाचार्य ने एकलव्य से दक्षिणा ली थी, उसे शिक्षा नहीं दी थी.

12वीं पास होने का अधिकार हर ऐरीगैरी जाति को कैसे दिया जा सकता है? 12वीं तक की कक्षाओं में अध्यापक हैं, स्कूल भवन हैं, मिड डे मील है, खेलों के लिए पैसा है, अध्यापकों के लिए मोटा वेतनमान है, निरीक्षकों के लिए वाहनों की सुविधाएं हैं, बड़े एयरकंडीशंड औफिसों में महंतनुमा डायरैक्टर हैं. अगर कुछ नहीं है तो वह है शिक्षा और परीक्षा के लिए अगर वह नहीं, तो परीक्षा देने कौन, कैसे आएगा.

इन 10 लाख विद्यार्थियों की परीक्षा देने की हिम्मत नहीं हुई तो इस की जिम्मेदारी उन के गुरुओं की है. हालांकि हिंदू माहात्म्य में गुरु गलत नहीं हो सकता. वे शिष्यों का जीवन बरबाद कर सकते हैं पर उन को कोई फटकार भी नहीं लगा सकता, योगी आदित्यनाथ के राज में तो बिलकुल भी नहीं.

यह नकल कराने की और दक्षिणा पाने की प्रथा अरसे से चली आ रही है. योगी सरकार इसे समाप्त नहीं करना चाहती होगी. वह इसे खास ओर मोड़ना चाहती होगी ताकि सारा धनधान्य सत्ताधारी के आश्रमवासी, ऋषिमुनियों को मिले, दूसरों को नहीं. चिंता न करें, जल्दी ही दक्षिणा पाने की नई योजना महंतों की ओर से आएगी. बस, थोड़ा इंतजार करिए. मुक्ति पाने के लिए तो कई जन्मों का इंतजार करना पड़ता है.

दो चुटकी सिंदूर : क्या बैजू को अपना पाई सविता

‘‘ऐ सविता, तेरा चक्कर चल रहा है न अमित के साथ?’’ कुहनी मारते हुए सविता की सहेली नीतू ने पूछा.

सविता मुसकराते हुए बोली, ‘‘हां, सही है. और एक बात बताऊं… हम जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘अमित से शादी कर के तो तू महलों की रानी बन जाएगी. अच्छा, वह सब छोड़. देख उधर, तेरा आशिक बैजू कैसे तुझे हसरत भरी नजरों से देख रहा है.’’

नीतू ने तो मजाक किया था, क्योंकि वह जानती थी कि बैजू को देखना तो क्या, सविता उस का नाम भी सुनना तक पसंद नहीं करती.

सविता चिढ़ उठी. वह कहने लगी, ‘‘तू जानती है कि बैजू मुझे जरा भी नहीं भाता. फिर भी तू क्यों मुझे उस के साथ जोड़ती रहती है?’’

‘‘अरे पगली, मैं तो मजाक कर रही थी. और तू है कि… अच्छा, अब से नहीं करूंगी… बस,’’ अपने दोनों कान पकड़ते हुए नीतू बोली.

‘‘पक्का न…’’ अपनी आंखें तरेरते हुए सविता बोली, ‘‘कहां मेरा अमित, इतना पैसे वाला और हैंडसम. और कहां यह निठल्ला बैजू.

‘‘सच कहती हूं नीतू, इसे देख कर मुझे घिन आती है. विमला चाची खटमर कर कमाती रहती हैं और यह कमकोढ़ी बैजू गांव के चौराहे पर बैठ कर पानखैनी चबाता रहता है. बोझ है यह धरती पर.’’

‘‘चुप… चुप… देख, विमला मौसी इधर ही आ रही हैं. अगर उन के कान में अपने बेटे के खिलाफ एक भी बात पड़ गई न, तो समझ ले हमारी खैर नहीं,’’ नीतू बोली.

सविता बोली, ‘‘पता है मुझे. यही वजह है कि यह बैजू निठल्ला रह गया.’’

मला की जान अपने बेटे बैजू में ही बसती थी. दोनों मांबेटा ही एकदूसरे का सहारा थे.

बैजू जब 2 साल का था, तभी उस के पिता चल बसे थे. सिलाईकढ़ाई का काम कर के किसी तरह विमला ने अपने बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था.

विमला के लाड़प्यार में बैजू इतना आलसी और निकम्मा बनता जा रहा था कि न तो उस का पढ़ाईलिखाई में मन लगता था और न ही किसी काम में. बस, गांव के लड़कों के साथ बैठ कर हंसीमजाक करने में ही उसे मजा आता था.

लेकिन बैजू अपनी मां से प्यार बहुत करता था और यही विमला के लिए काफी था. गांव के लोग बैजू के बारे में कुछ न कुछ बोल ही देते थे, जिसे सुन कर विमला आगबबूला हो जाती थी.

एक दिन विमला की एक पड़ोसन ने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘‘अब इस उम्र में अपनी देह कितना खटाएगी विमला, बेटे को बोल कि कुछ कमाएधमाए. कल को उस की शादी होगी, फिर बच्चे भी होंगे, तो क्या जिंदगीभर तू ही उस के परिवार को संभालती रहेगी?

‘‘यह तो सोच कि अगर तेरा बेटा कुछ कमाएगाधमाएगा नहीं, तो कौन देगा उसे अपनी बेटी?’’

विमला कहने लगी, ‘‘मैं हूं अभी अपने बेटे के लिए, तुम्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है… समझी. बड़ी आई मेरे बेटे के बारे में सोचने वाली. देखना, इतनी सुंदर बहू लाऊंगी उस के लिए कि तुम सब जल कर खाक हो जाओगे.’’

सविता के पिता रामकृपाल डाकिया थे. घरघर जा कर चिट्ठियां बांटना उन का काम था, पर वे अपनी दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना चाहते थे. उन की दोनों बेटियां थीं भी पढ़ने में होशियार, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि उन की बड़ी बेटी सविता अमित नाम के एक लड़के से प्यार करती है और वह उस से शादी के सपने भी देखने लगी है.

यह सच था कि सविता अमित से प्यार करती थी, पर अमित उस से नहीं, बल्कि उस के जिस्म से प्यार करता था. वह अकसर यह कह कर सविता के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की जिद करता कि जल्द ही वह अपने मांबाप से दोनों की शादी की बात करेगा.

नादान सविता ने उस की बातों में आ कर अपना तन उसे सौंप दिया. जवानी के जोश में आ कर दोनों ने यह नहीं सोचा कि इस का नतीजा कितना बुरा हो सकता है और हुआ भी, जब सविता को पता चला कि वह अमित के बच्चे की मां बनने वाली है.

जब सविता ने यह बात अमित को बताई और शादी करने को कहा, तो वह कहने लगा, ‘‘क्या मैं तुम्हें बेवकूफ दिखता हूं, जो चली आई यह बताने कि तुम्हारे पेट में मेरा बच्चा है? अरे, जब तुम मेरे साथ सो सकती हो, तो न जाने और कितनों के साथ सोती होगी. यह उन्हीं में से एक का बच्चा होगा.’’

सविता के पेट से होने का घर में पता लगते ही कुहराम मच गया. अपनी इज्जत और सविता के भविष्य की खातिर उसे शहर ले जा कर घर वालों ने बच्चा गिरवा दिया और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर उस की शादी करने का विचार कर लिया.

एक अच्छा लड़का मिलते ही घर वालों ने सविता की शादी तय कर दी. लेकिन ऐसी बातें कहीं छिपती हैं भला.

अभी शादी के फेरे होने बाकी थे कि लड़के के पिता ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘बंद करो… अब नहीं होगी यह शादी.’’ शादी में आए मेहमान और गांव के लोग हैरान रह गए.

जब सारी बात का खुलासा हुआ, तो सारे गांव वाले सविता पर थूथू कर के वहां से चले गए.

सविता की मां तो गश खा कर गिर पड़ी थीं. रामकृपाल अपना सिर पीटते हुए कहने लगे, ‘‘अब क्या होगा… क्या मुंह दिखाएंगे हम गांव वालों को? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा इस लड़की ने हमें. बताओ, अब कौन हाथ थामेगा इस का?’’

‘‘मैं थामूंगा सविता का हाथ,’’ अचानक किसी के मुंह से यह सुन कर रामकृपाल ने अचकचा कर पीछे मुड़ कर देखा, तो बैजू अपनी मां के साथ खड़ा था.

‘‘बैजू… तुम?’’ रामकृपाल ने बड़ी हैरानी से पूछा.

विमला कहने लगी, ‘‘हां भाई साहब, आप ने सही सुना है. मैं आप की बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहती हूं और वह इसलिए कि रा बैजू आप की बेटी से प्यार करता है.’’

रामकृपाल और उन की पत्नी को चुप और सहमा हुआ देख कर विमला आगे कहने लगी, ‘‘न… न आप गांव वालों की चिंता न करो, क्योंकि मेरे लिए मेरे बेटे की खुशी

सब से ऊपर है, बाकी लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, उस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

अब अंधे को क्या चाहिए दो आंखें ही न. उसी मंडप में सविता और बैजू का ब्याह हो गया.

जिस बैजू को देख कर सविता को उबकाई आती थी, उसे देखना तो क्या वह उस का नाम तक सुनना पसंद नहीं करती थी, आज वही बैजू उस की मांग का सिंदूर बन गया. सविता को तो अपनी सुहागरात एक काली रात की तरह दिख रही थी.

‘क्या मुंह दिखाऊंगी मैं अपनी सखियों को, क्या कहूंगी कि जिस बैजू को देखना तक गंवारा नहीं था मुझे, वही आज मेरा पति बन गया. नहीं… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इतनी बड़ी नाइंसाफी मेरे साथ नहीं हो सकती,’ सोच कर ही वह बेचैन हो गई.

तभी किसी के आने की आहट से वह उठ खड़ी हुई. अपने सामने जब उस ने बैजू को खड़ा देखा, तो उस का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

बैजू के मुंह पर अपने हाथ की चूडि़यां निकालनिकाल कर फेंकते हुए सविता कहने लगी, ‘‘तुम ने मेरी मजबूरी का फायदा उठाया है. तुम्हें क्या लगता है कि दो चुटकी सिंदूर मेरी मांग में भर देने से तुम मेरे पति बन गए? नहीं, कोई नहीं हो तुम मेरे. नहीं रहूंगी एक पल भी इस घर में तुम्हारे साथ मैं… समझ लो.’’

बैजू चुपचाप सब सुनता रहा. एक तकिया ले कर उसी कमरे के एक कोने में जा कर सो गया.

सविता ने मन ही मन फैसला किया कि सुबह होते ही वह अपने घर चली जाएगी. तभी उसे अपने मातापिता की कही बातें याद आने लगीं, ‘अगर आज बैजू न होता, तो शायद हम मर जाते, क्योंकि तुम ने तो हमें जीने लायक छोड़ा ही नहीं था. हो सके, तो अब हमें बख्श देना बेटी, क्योंकि अभी तुम्हारी छोटी बहन की भी शादी करनी है हमें…’

कहां ठिकाना था अब उस का इस घर के सिवा? कहां जाएगी वह? बस, यह सोच कर सविता ने अपने बढ़ते कदम रोक लिए.

सविता इस घर में पलपल मर रही थी. उसे अपनी ही जिंदगी नरक लगने लगी थी, लेकिन इस सब की जिम्मेदार भी तो वही थी.

कभीकभी सविता को लगता कि बैजू की पत्नी बन कर रहने से तो अच्छा है कि कहीं नदीनाले में डूब कर मर जाए, पर मरना भी तो इतना आसान नहीं होता है. मांबाप, नातेरिश्तेदार यहां तक कि सखीसहेलियां भी छूट गईं उस की. या यों कहें कि जानबूझ कर सब ने उस से नाता तोड़ लिया. बस, जिंदगी कट रही थी उस की.

सविता को उदास और सहमा हुआ देख कर हंसनेमुसकराने वाला बैजू भी उदास हो जाता था. वह सविता को खुश रखना चाहता था, पर उसे देखते ही वह ऐसे चिल्लाने लगती थी, जैसे कोई भूत देख लिया हो. इस घर में रह कर न तो वह एक बहू का फर्ज निभा रही थी और न ही पत्नी धर्म. उस ने शादी के दूसरे दिन ही अपनी मांग का सिंदूर पोंछ लिया था.

शादी हुए कई महीने बीत चुके थे, पर इतने महीनों में न तो सविता के मातापिता ने उस की कोई खैरखबर ली और न ही कभी उस से मिलने आए. क्याक्या सोच रखा था सविता ने अपने भविष्य को ले कर, पर पलभर में सब चकनाचूर हो गया था.

‘शादी के इतने महीनों के बाद भी भले ही सविता ने प्यार से मेरी तरफ एक बार भी न देखा हो, पर पत्नी तो वह मेरी ही है न. और यही बात मेरे लिए काफी है,’ यही सोचसोच कर बैजू खुश हो उठता था.

एक दिन न तो विमला घर पर थी और न ही बैजू. तभी अमित वहां आ धमका. उसे यों अचानक अपने घर आया देख सविता हैरान रह गई. वह गुस्से से तमतमाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की?’’

अमित कहने लगा, ‘‘अब इतना भी क्या गुस्सा? मैं तो यह देखने आया था कि तुम बैजू के साथ कितनी खुश हो? वैसे, तुम मुझे शाबाशी दे सकती हो. अरे, ऐसे क्या देख रही हो? सच ही तो कह रहा हूं कि आज मेरी वजह से ही तुम यहां इस घर में हो.’’

सविता हैरानी से बोली, ‘‘तुम्हारी वजह से… क्या मतलब?’’

‘‘अरे, मैं ने ही तो लड़के वालों को हमारे संबंधों के बारे में बताया था और यह भी कि तुम मेरे बच्चे की मां भी बनने वाली हो. सही नहीं किया क्या मैं ने?’’ अमित बोला.

सविता यह सुन कर हैरान रह गई. वह बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? बोलो न? जानते हो, सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मेरी जिंदगी नरक बन चुकी है. क्या बिगाड़ा था मैं ने तुम्हारा?

‘‘बड़ा याद आता है मुझे तेरा यह गोरा बदन,’’ सविता के बदन पर अपना हाथ फेरते हुए अमित कहने लगा, तो वह दूर हट गई.

अमित बोला, ‘‘सुनो, हमारे बीच जैसा पहले चल रहा था, चलने दो.’’

‘‘मतलब,’’ सविता ने पूछा.

‘‘हमारा जिस्मानी संबंध और क्या. मैं जानता हूं कि तुम मुझ से नाराज हो, पर मैं हर लड़की से शादी तो नहीं कर सकता न?’’ अमित बड़ी बेशर्मी से बोला.

‘‘मतलब, तुम्हारा संबंध कइयों के साथ रह चुका है?’’

‘‘छोड़ो वे सब पुरानी बातें. चलो, फिर से हम जिंदगी के मजे लेते हैं. वैसे भी अब तो तुम्हारी शादी हो चुकी है, इसलिए किसी को हम पर शक भी नहीं होगा,’’ कहता हुआ हद पार कर रहा था अमित.

सविता ने अमित के गाल पर एक जोर का तमाचा दे मारा और कहने लगी, ‘‘क्या तुम ने मुझे धंधे वाली समझ रखा है. माना कि मुझ से गलती हो गई तुम्हें पहचानने में, पर मैं ने तुम से प्यार किया था और तुम ने क्या किया?

‘‘अरे, तुम से अच्छा तो बैजू निकला, क्योंकि उस ने मुझे और मेरे परिवार को दुनिया की रुसवाइयों से बचाया. जाओ यहां से, निकल जाओ मेरे घर से, नहीं तो मैं पुलिस को बुलाती हूं,’’ कह कर सविता घर से बाहर जाने लगी कि तभी अमित ने उस का हाथ अपनी तरफ जोर से खींचा.

‘‘तेरी यह मजाल कि तू मुझ पर हाथ उठाए. पुलिस को बुलाएगी… अभी बताता हूं,’’ कह कर उस ने सविता को जमीन पर पटक दिया और खुद उस के ऊपर चढ़ गया.

खुद को लाचार पा कर सविता डर गई. उस ने अमित की पकड़ से खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, पर हार गई. मिन्नतें करते हुए वह कहने लगी, ‘‘मुझे छोड़ दो. ऐसा मत करो…’’

पर अमित तो अब हैवानियत पर उतारू हो चुका था. तभी अपनी पीठ पर भारीभरकम मुक्का पड़ने से वह चौंक उठा. पलट कर देखा, तो सामने बैजू खड़ा था.

‘‘तू…’’ बैजू बोला.

अमित हंसते हुए कहने लगा, ‘‘नामर्द कहीं के… चल हट.’’

इतना कह कर वह फिर सविता की तरफ लपका. इस बार बैजू ने उस के

मुंह पर एक ऐसा जोर का मुक्का मारा कि उस का होंठ फट गया और खून निकल आया.

अपने बहते खून को देख अमित तमतमा गया और बोला, ‘‘तेरी इतनी मजाल कि तू मुझे मारे,’’ कह कर उस ने अपनी पिस्तौल निकाल ली और तान दी सविता पर.

अमित बोला, ‘‘आज तो इस के साथ मैं ही अपनी रातें रंगीन करूंगा.’’

पिस्तौल देख कर सविता की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

बैजू भी दंग रह गया. वह कुछ देर रुका, फिर फुरती से यह कह कह अमित की तरफ लपका, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरी पत्नी पर गोली चलाए…’’

पर तब तक तो गोली पिस्तौल से निकल चुकी थी, जो बैजू के पेट में जा लगी.

बैजू के घर लड़ाईझगड़ा होते देख कर शायद किसी ने पुलिस को बुला लिया था. अमित वहां से भागता, उस से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

खून से लथपथ बैजू को तुरंत गांव वालों ने अस्पताल पहुंचाया. घंटों आपरेशन चला.

डाक्टर ने कहा, ‘‘गोली तो निकाल दी गई है, लेकिन जब तक मरीज को होश नहीं आ जाता, कुछ कहा नहीं जा सकता.’’

विमला का रोरो कर बुरा हाल था. गांव की औरतें उसे हिम्मत दे रही थीं, पर वे यह भी बोलने से नहीं चूक रही थीं कि बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सविता है.

‘सच ही तो कह रहे हैं सब. बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सिर्फ मैं ही हूं. जिस बैजू से मैं हमेशा नफरत करती रही, आज उसी ने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई,’ अपने मन में ही बातें कर रही थी सविता.

तभी नर्स ने आ कर बताया कि बैजू को होश आ गया है. बैजू के पास जाते देख विमला ने सविता का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘नहीं, तुम अंदर नहीं जाओगी. आज तुम्हारी वजह से ही मेरा बेटा यहां पड़ा है. तू मेरे बेटे के लिए काला साया है. गलती हो गई मुझ से, जो मैं ने तुझे अपने बेटे के लिए चुना…’’

‘‘आप सविता हैं न?’’ तभी नर्स ने आ कर पूछा.

डबडबाई आंखों से वह बोली, ‘‘जी, मैं ही हूं.’’

‘‘अंदर जाइए, मरीज आप को पूछ रहे हैं.’’

नर्स के कहने से सविता चली तो गई, पर सास विमला के डर से वह दूर खड़ी बैजू को देखने लगी. उस की ऐसी हालत देख वह रो पड़ी. बैजू की नजरें, जो कब से सविता को ही ढूंढ़ रही थीं, देखते ही इशारों से उसे अपने पास बुलाया और धीरे से बोला, ‘‘कैसी हो सविता?’’

अपने आंसू पोंछते हुए सविता कहने लगी, ‘‘क्यों तुम ने मेरी खातिर खुद को जोखिम में डाला बैजू? मर जाने दिया होता मुझे. बोलो न, किस लिए मुझे बचाया?’’ कह कर वह वहां से जाने को पलटी ही थी कि बैजू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बड़े गौर से उस की मांग में लगे सिंदूर को देखने लगा.

‘‘हां बैजू, यह सिंदूर मैं ने तुम्हारे ही नाम का लगाया है. आज से मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी हूं,’’ कह कर वह बैजू से लिपट गई.

शाकाहार से बढ़ेगा परिवार, डाइट का स्पर्म काउंट से है सीधा संबंध

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अपने देश में जब भी किसी जोड़े के बच्चे नहीं होते तो दोष आमतौर पर पत्नी पर ही मढ़ दिया जाता है. जब परिवार वाले जोर डालते हैं और टैस्ट होते हैं तो पता चलता है कि पति में स्पर्म काउंट कम है, ईश्वर की इच्छा नहीं जैसा पुजारीमुल्ला कहते हैं. यह खाने के साथ सीधा जुड़ा है. डाइट का स्पर्म काउंट से सीधा संबंध है. खाने में अधिक मीट और दूध के प्रोडक्ट केवल कमर को ही मोटा और शिथिल नहीं करते उस के जरा नीचे भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं. स्पर्म काउंट, साइज और घनत्व में परिवर्तन हो जाता है, नैगेटिव में.

स्पर्म काउंट में कमी

डाक्टर अकसर स्मोकिंग बंद करने, ढीले अंडरवियर पहनने, लैपटौप को लैप्स पर नहीं मेज पर रखने और कम बार सैक्स करने की सलाह देते हैं पर यह नाकाफी है. असल में गीगो सिद्घांत कहता है गारबेज इन, गारबेज आउट. गारबेज यानी बेकार का खाया. मैंस हैल्थ क्लीनिक,

वेक फौरैस्ट यूनिवर्सिटी के डा. रयान  टैरलेस्की का कहना है, ‘‘कई दशकों से हम देख रहे हैं कि पुरुषों में स्पर्म काउंट कम हो रहा है पर पुरुषों को यह नहीं बताया जा रहा है कि

वे क्या खा रहे हैं, जिस का सीधा संबंध स्पर्म काउंट से है.’’

खानपान में छिपा है राज

2006 में यूनिवर्सिटी औफ रौचेस्टर में प्रस्तुत किए गए एक शोधपत्र में साफ कहा गया है कि निस्संतान पुरुषों के खाने में फलों और सब्जियों की संख्या काफी कम होती है. 2011 के ब्राजील के एक शोध से पता चला है कि जो लोग गेहूं, बाजरा आदि ज्यादा खाते हैं उन का स्पर्म काउंट ज्यादा होता है.

एक और अध्ययन से पता चला है कि पनीर, चीज और दूसरी दूध से बनी चीजें खाने से स्पर्म काउंट घट जाता है. स्पर्म डोनर्स से स्पर्म एकत्र करने वाली संस्थाओं ने भी पाया है कि जो लोग डेरी प्रोडक्ट लेते हैं उन का स्पर्म काउंट 46% कम होता है.

डेरी प्रोडक्ट्स किसे फायदेमंद

डेनमार्क की जन्मदर 221 देशों में 185वें स्थान पर है पर यह वहां की जनता के जनसंख्या नियंत्रण करने की इच्छा के कारण नहीं, उन के खाने में डेरी प्रोडक्टों की भरमार के कारण हो रहा है. अमेरिकन जरनल औफ क्लीनिकल मैडिसिन ने इस बात की पुष्टि की है. मीट और चीज खाने वालों का स्पर्म काउंट सामान्य से 41% कम पाया गया है.

औरतों में भी पौधों से उगे खाने को डाइट में बढ़ाने और सैचुरेटड फैट जो मीट या दूध से मिलता है, कम करने से संतानोत्पत्ति की संभावनाएं बढ़ती हैं. अधिक मीट से सफल गर्भ ठहरने के चांस कम हो जाते हैं.

कैसे बढ़ाएं स्पर्म काउंट

शराब से भी स्पर्म काउंट कम हो जाता है. जिन फलों में ऐंटीऔक्सीडैंट होते हैं उन का जूस भी स्पर्म काउंट बढ़ाने में सहायक होता है. डेनमार्क की शोध संस्था ने पाया है कि थोड़ी मात्रा में अलकोहल लेने वालों में स्पर्म काउंट कम हो जाता है. तो क्या समझे? यही न कि अपना स्पर्म काउंट बढ़ाना है तो फल, सब्जियां, दालें, हरे पत्तों का सलाद खाइए और मीट व डेरी प्रोडक्ट्स छोड़ दें.

गंभीर बीमारी के शिकार हुए इरफान खान

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बौलीवुड से 2018 में अच्छी खबरे नहीं आ रही हैं. श्रीदेवी के निधन के बाद अपने समय की मशहूर अदाकारा शम्मी का भी देहांत हो गया. तो वहीं अभिनेता इरफान खान भी गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए हैं. लगभग पंद्रह दिन पहले खबर आयी थी कि इरफान खान को पीलिया हो गया है. उसके बाद से ही इरफान की बीमारी को लेकर कई तरह की अटकलें गर्म रही हैं.

अंततः अब इरफान खान ने स्वयं ट्विटर का सहारा लेकर घोषणा की है कि वह दुर्लभ बीमारी से ग्रसित हैं, पर वह अपनी इस गंभीर बीमारी को लेकर आठ दस दिन में सारी जांच रिपोर्ट आने के बाद ही खुलासा करेंगे.

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इरफान खान ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है- ‘‘कभी कभी आप ऐसे झटके के साथ उठते हैं कि आपकी जिंदगी आपको हिलाकर रख देती है. मेरी जिंदगी के पिछले 15 दिन रहस्यमय कहानी की तरह रहे हैं. मुझे नहीं पता था कि दुर्लभ कहानियों की खोज मुझे दुर्लभ बीमारी तक पहुंचा देगी.

मैने कभी हार नहीं मानी और हमेशा अपनी पसंद के लिए लड़ता आया हूं, आगे भी ऐसा ही करुंगा. मेरा परिवार और मेरे दोस्त मेरे साथ हैं. हम सबसे अच्छे तरीके से निपटने की कोशिश कर रहे हैं. तब तक आप लोग कृपया कोई अंदाजा न लगाएं. सप्ताह या दस दिन में जांच रिपोर्ट सामने आ जाएंगी, तब मैं खुद ही अपनी कहानी आपको बताउंगा. तब तक मेरे लिए दुआ करें.’’

सूत्रों के अनुसार किसी को भी इस बात की सही जानकारी नही है कि इरफान खान फिलहाल कहां पर हैं, वह अपने घर पर हैं, या अस्पताल मे हैं या मुंबई से बाहर कहीं हैं.

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