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उत्तर प्रदेश में बोर्ड की परीक्षाओं में 10 लाख विद्यार्थियों का परीक्षा देने से इनकार करना चौंकाने वाली बात है. उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षाओं में सख्ती के कारण ऐसा हुआ है, क्योंकि सरकार ने फैसला किया है कि वह परीक्षा में नकल नहीं होने देगी और उत्तरपुस्तिकाओं में भी हेरफेर नहीं होने देगी. इन 10 लाख विद्यार्थियों के कई साल और परीक्षाओं में धांधली के लिए दिए गए पैसे मिट्टी में मिल गए. गरीब घरों से आने वाले इन 10 लाख छात्रछात्राओं की जो झूठी आस थी कि वे नकल कर के मिले प्रमाणपत्रों के सहारे शायद कभी कोई सरकारी नौकरी पा सकेंगे, अब समाप्त हो गई है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह काम अनुशासन लाने के लिए किया, यह मानना गलत होगा. परीक्षाओं में नकल करवाने का धंधा सुनियोजित है और इसे बड़ी सावधानी से सालदरसाल उस तरह लागू किया जाता है जैसे कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है.
स्कूलों में प्रवेश के साथ ही लाखों दलितों व पिछड़ों को समझा दिया जाता है कि उन को शिक्षा देना सरकार का काम नहीं. शिक्षक सरकार से गुरु होने की दक्षिणा पाने के लिए स्कूल आते हैं और उसी दक्षिणा में शिष्यों के योगदान को भी स्वीकार करते हैं, पर बदले में शिक्षा देना उन का कर्तव्य नहीं है. द्रोणाचार्य ने एकलव्य से दक्षिणा ली थी, उसे शिक्षा नहीं दी थी.
12वीं पास होने का अधिकार हर ऐरीगैरी जाति को कैसे दिया जा सकता है? 12वीं तक की कक्षाओं में अध्यापक हैं, स्कूल भवन हैं, मिड डे मील है, खेलों के लिए पैसा है, अध्यापकों के लिए मोटा वेतनमान है, निरीक्षकों के लिए वाहनों की सुविधाएं हैं, बड़े एयरकंडीशंड औफिसों में महंतनुमा डायरैक्टर हैं. अगर कुछ नहीं है तो वह है शिक्षा और परीक्षा के लिए अगर वह नहीं, तो परीक्षा देने कौन, कैसे आएगा.