भाजपा में ‘बाहरी नेता’ बनाम ‘पार्टी कार्यकर्ता’ के बीच चल रहा द्वंद सतह पर आ गया है. उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल अपने पूरे कुनबे के साथ सपा की साइकिल की सवारी को छोड़कर कमल के फूल की खुशबू लेने आ गये हैं. नरेश अग्रवाल ऐसे नेताओं में हैं, जिन्होंने दलबदल की हर परिधि को तोड़ दिया है. कांग्रेस से लेकर सपा-बसपा हर जगह वह रहे हैं. उनके बारे में एक कहावत है कि ‘जिसकी सत्ता उसके नरेश’.
नरेश अग्रवाल ने विधानसभा चुनाव के समय भी सपा का साथ न देकर भाजपा का साथ दिया था. सपा में रहते भीतरघात देने का प्रभाव यह रहा कि भाजपा ने उनको पार्टी में शामिल कर लिया. नरेश अग्रवाल सपा में परिवारवाद विवाद के बाद से ही भाजपा में अपनी जगह सुरक्षित करने में लगे थे. नरेश अग्रवाल के करीबी संबंध भाजपा और संघ के कुछ नेताओं से हैं. ऐसे में उनके लिये भाजपा में जाने की राह बनाना मुश्किल नहीं था.
भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में नरेश अग्रवाल की जरूरत को महत्व देते उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के समय उनको पार्टी में शामिल कर लिया. भाजपा हाई कमान को यह लग रहा था कि पार्टी कार्यकर्ता राज्यसभा चुनाव के महत्व को समझते हुये नरेश अग्रवाल के पार्टी में आने को स्वीकार कर लेंगे. नरेश अग्रवाल के मसले में भाजपा अपने कार्यकर्ताओं की भावनाओं का सही आकलन नहीं कर पाई.
दिल्ली में जैसे ही नरेश अग्रवाल भाजपा में शामिल हुये उत्तर प्रदेश में भाजपा का हाजमा खराब हो गया. पार्टी के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर इसका विरोध करने लगे. विरोध की वजह यह थी कि नरेश अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘तेली’ कहा था तो राम को ‘रम’ में बसा बताया था.
भाजपा में नरेश का विरोध शामिल होने वाले मंच से ही शुरू हो गया. भाजपा में शामिल होने की वजह बताते नरेश अग्रवाल ने फिल्म अभिनेत्री और सपा की राज्यसभा उम्मीदवार जया बच्चन को लेकर ओछी टिप्पणी कर दी. मंच पर ही पार्टी नेता संबित पात्रा ने इसे नरेश का व्यक्तिगत बयान बता कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की. शाम होते होते जया बच्चन पर की गई टिप्पणी ने शोले को रूप ले लिया. पहले भाजपा की वरिष्ठ महिला नेता सुषमा स्वराज और उसके बाद केन्द्र सरकार में मंत्री स्मृति इरानी ने इसकी आलोचना कर दी.
इससे पार्टी के नीचे स्तर के कार्यकताओं का मनोबल बढ़ा और सोशल मीडिया के फोरम पर नरेश अग्रवाल का विरोध शुरू हो गया. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक भाजपा का कोई नेता मुंह खोलने को तैयार नहीं है.
मोदी को ‘तेली’ और ‘राम’ को रम
नरेश अग्रवाल ने सपा में रहते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘तेली’ कहा था. मोदी को तेली कहते हुये नरेश अग्रवाल ने कहा था ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो तेली हैं. वह बनिया नहीं हैं. सिर्फ बनिया यानि वैश्य ही व्यापार कर सकता है.’ जातिगत व्यवस्था को देखें तो बनिया बिरादी में तेली को निम्न स्तर का माना जाता है. कहावतों में भी कहा गया है ‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली’. नरेश अग्रवाल ने खुद को उंची श्रेणी का बनिया बताते हुये नरेन्द्र मोदी को तेली कहा था. नरेश अग्रवाल का यही बयान अब उनके गले की फांस बन गया है. इस बयान से ही भाजपा नेताओं की बोलती बंद है और कार्यकर्ता गुस्से में हैं. नरेश अग्रवाल ने केवल नरेन्द्र मोदी को ही तेली नहीं कहा, हिन्दुत्व का झंडा उठाये भाजपा के मर्म यानि राम पर भी करारी चोट की थी.
नरेश अग्रवाल ने कहा था कि ‘कुछ लोग हिन्दू धर्म के ठेकेदार बन गये हैं. बीजेपी और वीएचपी जैसे लोग जो हमारा सार्टीफिकेट लेकर नहीं आयेगा वो हिन्दू नहीं है. इनकी ‘व्हिस्की में बिष्णु बसे, रम में बसे श्रीराम, जिन में माता जानकी और ठर्रे में हनुमान, सियापति रामचन्द्र की जय’. बात केवल धर्म की आलोचना तक ही सीमित नहीं रही. नरेश अग्रवाल ने पाकिस्तान और भारत के सैनिकों पर भी ऐसा बयान दिया था जो आज उनके गले में फंस गया है.
संसद के सदन में कुलभूषण जाधव पर बोलते नरेश अग्रवाल ने कहा था कि ‘आज पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को आंतकवादी अपने देश में बोला है. उस हिसाब से जाधव के साथ व्यवहार करेगा. हमारे देश में भी आतंकवादियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिये’. भारतीय सैनिकों पर टिप्पणी करते नरेश अग्रवाल ने कहा कि ‘अगर आतंकवादी ऐसा हाल कर रहे हैं तो पाकिस्तान की फौज आयेगी तो क्या हालत होगी?’
नरेश अग्रवाल अपने इन बयानों को सच नहीं मानते. उनका कहना है कि उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया. उनके विरोधियों ने साजिश के तहत यह बातें फैलाई. नरेश अग्रवाल के यह पुराने बयान हैं. जिन पर भाजपा के हर नेता और कार्यकर्ता ने नरेश अग्रवाल को खूब कोसा था. अब वहीं नरेश अग्रवाल पार्टी में हैं तो भाजपा के लोग उनको हजम नहीं कर पा रहे.
जया बच्चन पर नये बयान और केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी के बयान के बाद पुराने बयान भी मुंह फाड कर खड़े नजर आ रहे हैं. भाजपा अपने लोगों को यह समझाने में लगी है कि उत्तर प्रदेश में राज्यसभा सीटों में दूसरे दलों के विधायकों से टिकट दिलाने में नरेश की महत्वपूर्ण भूमिका है. कार्यकर्ता पार्टी के इस तर्क से सहमत नहीं है.
दलबदल की धुरी हैं नरेश अग्रवाल
नरेश अग्रवाल ने अपना राजनैतिक कैरियर 1980 में कांग्रेस से शुरू किया था. वह 7 बार विधायक रहे. 1997 में जब मायावती-कल्याण सिंह विवाद हुआ और भाजपा को सदन में बहुमत चाहिये था, तब नरेश अग्रवाल ने लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाकर दलबदल कर कल्याण सिंह को बहुमत दिलाने में मदद की. कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के मंत्रिमडल में वह मंत्री रहे. उनकी कार्यशैली से नाराज राजनाथ सिंह ने 2001 में नरेश अग्रवाल को बर्खास्त किया था.
2003 में जब मायावती को हटाकर मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो नरेश अग्रवाल सरकार में मंत्री बने. 2004 से 2007 तक वह परिवहन मंत्री रहे. 2008 में वह सपा का साथ छोड़ कर बसपा के साथ हो गये. बसपा में पार्टी के महासचिव बन गये. तब नरेश ने पहली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में मायावती को प्रधानमंत्री घोषित कर दिया था. 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले नरेश अग्रवाल सपा में वापस शामिल हो गये और अपने बेटे नितिन अग्रवाल को विधायक बनाने में सफल रहे. नितिन बाद में अखिलेश मंत्रिमडल में मंत्री भी बने. बसपा और सपा से नरेश अग्रवाल राज्यसभा सदस्य बने थे.
हरदोई जिले की राजनीति में नरेश अग्रवाल और अशोक वाजपेई के बीच सहज रिश्ते नहीं है. सपा में दोनों के बीच गहरी खाई थी. नरेश अग्रवाल का प्रभाव अधिक था, जिसकी वजह से अशोक वाजपेई सपा को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुये थे. अब नरेश के भी भाजपा में शामिल होने से अशोक वाजपेई फिर से खुद को असहज अनुभव करेंगे. नरेश अग्रवाल का पूरा परिवार राजनीति में है. जिसका प्रभाव हरदोई जिले में राजनीति करने वाले दूसरे नेताओं पर भी पड़ेगा. नरेश अग्रवाल को लेकर केवल भाजपा कार्यकर्ता ही असहज नहीं है, संघ और दूसरे संगठन भी कुछ बोलने की हालत में नहीं है.
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