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मैं अपना शत प्रतिशत दे रहा हूं : बी.शांतनु

थिएटर में बीस साल की लंबी पारी खेलने के बाद फिल्मों में अपनी पारी शुरू कर चुके अभिनेता बी शांतनु फिल्म ‘‘रईस’’ में रईस यानी कि अभिनेता शाहरुख खान को पकड़ने के लिए जाल बिछाने वाले तथा फिल्म ‘‘मौम’’ में सीबीआई प्रमुख के किरदार में नजर आ चुके हैं. अब बी.शांतनु 23 मार्च को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘बा बा ब्लैकशिप’’ में मुख्य खलनायक के किरदार में नजर आने वाले हैं.

यूं तो थिएटर में काम करते समय भी बी.शांतनु ने नाटक ‘‘छलिया’’ में अपने दमदार नकारात्मक किरदार से दर्शकों को चकित किया था, अब ऐसा ही कारनामा उन्होंने फिल्म ‘बा बा ब्लैकशिप’ में किया है. मगर दोनों किरदारों में जमीन आसमान का अंतर है. खुद बी.शांतनु बताते हैं- ‘‘मैंने नाटक ‘छलिया’ में शिवराज का निगेटिव किरदार निभाया था, जो कि अपनी अंधी पत्नी व लेखिका के लिखे उपन्यासों को अपने नाम से छपवाता रहता है.

अपने नाम पर छपी किताब पत्नी को लाकर देता है और कहता है कि ‘जान देखो, तुम्हारी नई किताब छप कर आ गयी. ’वह अपनी पत्नी को घर से बाहर नही निकलने देता और न ही किसी से मिलने देता है. वह पूरी तरह से छलने का काम करता है, सामाजिक तौर पर नगेटिव किरदार है, कहीं मारता पीटता नहीं. जबकि फिल्म ‘बा बा ब्लैकशिप’ में मैने कमाल का किरदार निभाया है, जो कि राजनेताओं के इशारे पर हत्याएं करवाता है. यानी कि कमाल राजनेताओं के इशारे पर गलत काम करता है.’’

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नाटक ‘‘छलिया’’ और फिल्म ‘‘बा बा ब्लैक शिप’’ दोनों नकारात्मक चरित्र होते हुए भी बहुत अलग है और वर्तमान समय में यह दोनों तरह के नकारात्मक चरित्र हमारे समाज का हिस्सा हैं. इस बात पर जोर देते हुए बी.शांतनु कहते हैं – ‘‘दोनो ही तरह के नगेटिव इंसान इस संसार का हिस्सा हैं. छलिया का शिवराज आपको बड़े स्तर पर मिल जाएंगे. शिवराज उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जहां पाखंड ही पाखंड है. ‘हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और’ वाला मसला है. जबक ‘बाबा ब्लैकशिप’ के कमाल जैसे किरदार हर राजनेता के पास मिल जाएंगे. हर राजनेता अपने लिए काम करने वाले ऐसे लोगों को पालते हैं. पर फिल्म की कहानी अद्भुत है.’’

थिएटर की ही तरह बी.शांतनु फिल्मों में भी अपनी सार्थक उपस्थिति तेजी से दर्ज कराते जा रहे हैं. वह ‘बा बा ब्लैकशिप’ के अलावा प्राची देसाई के संग ‘‘कोषा’’ के अलावा कई दूसरी फिल्में कर रहे हैं. इतना ही नहीं वह चार वेब सीरीज का भी हिस्सा हैं. मगर उन्हें इस बात का मलाल है कि वर्तमान समय का हर फिल्मकार अपनी फिल्मों के लिए खुद कलाकार की तलाश करने की बजाय कास्टिंग डायरेक्टरों पर निर्भर हो गए हैं और यह कास्टिंग डायरेक्टर अपने असली काम को भूलकर हवा में उड़ रहे हैं. खुद बी. शांतनु कहते हैं- ‘‘सच कहूं तो बहुत कम कास्टिंग डायरेक्टर वास्तव में काबिल हैं. हर कास्टिंग डायरेक्टर समझता है कि उनके पास सौ कलाकारों का नंबर है, तो वह काबिल हैं. एक किरदार के लिए पचास कलाकारों का औडीशन लेकर निर्देशक के पास भेजकर वह अपनी काबिलियत साबित करते हैं. कास्टिंग डायरेक्टर निर्माता निर्देशक की नजर में अपनी छवि बनाने में लगा हुआ है. कास्टिंग डायरेक्टर का असली काम यह है कि वह एक किरदार के लिए 3 ऐसे कलाकारों का औडीशन लेकर भेजे कि निर्देशक के सामने मुश्किल हो जाए कि वह तीन में से किसे चुने? मगर कास्टिंग डायरेक्टर अपने इस काम को भूलकर बाकी सब कुछ कर रहे हैं. जिसके परिणाम स्वरुप कास्टिंग डायरेक्टर एक नवोदित कलाकार और पच्चीस वर्ष के अनुभवी कलाकार के बीच अंतर नही कर पाता है. 25 साल के अनुभवी कलाकार की 25 साल की जो यात्रा है, वह कास्टिंग डायरेक्टर को नजर नहीं आती. जहां चेहरा देखकर तिलक लगाने की प्रथा हो, वहां अनुभव बेमानी हो जाता है.’’

25 वर्ष तक ‘खामोश अदालत जारी है’, ‘मिट्टी की गाड़ी, ‘राशोमन’, ‘थ्री सिस्टर्स’, ‘रायल हंट औफ द सन सीगल’, ‘हनीमून’, ‘कहां हो फकीरचंद’, ‘झूठ’, ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ और ‘साजिश’ जैसे एक से बढ़कर एक नाटक कर इज्जत बटोरने वाले बी.शांतनु अब फिल्म व सीरियल करते हुए काफी खुश हैं. वह कहते हैं-‘‘अब मुझे बडे़ और छोटे परदे पर काम करते हुए आनंद आने लगा है. अब मैं यहां अपना शत प्रतिशत देना चाहता हूं. मैं तो चाहता हूं कि अच्छा काम मिले, दर्शकों का प्यार मिले. मैं फिल्मों के साथ ही वेब सीरीज कर रहा हूं. वहीं ‘स्टार भारत’ के सीरियल ‘आजाद’ में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के गुरू का किरदार कर रह हूं.’’

अभिनेता रोहित भारद्वाज बने निर्माता

इन दिनों बौलीवुड और टीवी इंडस्ट्री के कलाकारों के बीच फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कूदने की होड़ सी लगी हुई है. कोई फीचर फिल्म बना रहा है, तो कोई लघु फिल्म बना रहा है, तो कोई वेब सीरीज बना रहा है. ऐसे में भारतीय टीवी और इंडोनेशियन टीवी के चर्चित अभिनेता रोहित भारद्वाज कैसे पीछे रह जाते. वह भी अब निर्माता बन गए हैं.

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सिद्धार्थ कुमार तिवारी के टीवी सीरियल ‘‘महाभारत’’ में युधिष्ठिर का किरदार निभाकर सर्वाधिक शोहरत बटोरने वाले रोहित भारद्वाज ने अब अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘विस्तार फिल्मस एंड इंटरटेनमेंट’’ बनाकर वेब सीरीज ‘‘मायोपियाः सब माया है’’ का निर्माण कर रहे हैं. जिसकी कहानी आगरा के ताजमहल के इर्द गिर्द घूमती है.

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अभिनय करते करते निर्माण के क्षेत्र में कूदने के सवाल पर रोहित भारद्वाज कहते हैं- ‘‘इंडोनेशिया के टीवी पर काम करने के बाद वहां से लौटने पर मैंने दो बातें महसूस की. पहली बात तो मैं एक ही तरह के सीरियलों में अभिनय करते करते उब चुका हूं और दूसरा यह अनुभव किया कि वेब सीरीज काफी पसंद की जा रही है. इनका एक दर्शक वर्ग है.

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विदेशो में वेब सीरीज की काफी मांग है. मैं उन सीरियलों में अभिनय करना चाहता हूं, जिनमें अभिनय करने से मेरे अंदर की अभिनय प्रतिभा को विकसित होने का अवसर मिले. तो मुझे लगा कि अब मुझे खुद ही अपनी तरफ से कोई ठोस कदम उठाना चाहिए. तब मैने इस दिशा में सोचना शुरू किया. यह उस वक्त की बात है, जब नोटबंदी हुई थी. इसी के चलते मेरी वेब सीरीज को कोई निर्माता नहीं मिला. तब मैने अपने भाई के साथ मिलकर प्रोडक्शन कंपनी खोली, जिसे नाम दिया- ‘‘विस्तार फिल्मस एंड इंटरटेनमेंट’’उसके बाद कुंवर शिव सिंह को लेखक और दक्षिण भारत के मशहूर निर्देशक अजय भुयान को लेकर अपनी वेब सीरीज ‘मोपियाः सब माया है’का निर्माण कर रहा हूं. मैं इसमें मुख्य भूमिका निभा रहा हूं.’’

चोरी हुआ फेसबुक डाटा, ऐसे करें अपना बचाव

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक विवादों में घिर रही है. फेसबुक से लोगों का डेटा चोरी हो गया है. इस पर कंपनी ने सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने भी अपनी चुप्पी तोड़ दी है. जुकरबर्ग ने कैम्ब्रिज एनालिटिका के मामले में अपनी गलती को कबूला है. दरअसल, फेसबुक को आलोचना का सामना इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि एक ब्रिटिश कन्सल्टिंग कंपनी कैम्ब्रिज एनालिटिका (Cambridge Analytica) पर आरोप लगा है कि उसने पांच करोड़ फेसबुक यूजरों का डेटा बिना अनुमति के जमा किया और उस डेटा का इस्तेमाल राजनेताओं की मदद करने के लिए किया, जिनमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का चुनावी कैंपेन तथा ब्रेक्जिट आंदोलन शामिल हैं.

ऐसे सुरक्षित कर सकते हैं अपना फेसबुक डेटा

  • सबसे पहले अपने फेसबुक अकाउंट में वेबसाइट या मोबाइल ऐप से लौगिन करें.
  • लौगिन करने के बाद सबसे ऊपर नीली पट्टी पर राइट साइड में आ रहे तीर के निशान पर क्लिक करें. क्लिक करने के बाद कई औप्शन आएंगे, यहां सेटिंग्स में जाएं.
  • सेटिंग्स में जाने के बाद लेफ्ट साइड में काफी औप्शन दिखाई देंगे. यहां सबसे नीचे एक कौलम है. इसमें पांच औप्शन हैं, इनमें सबसे पहले ऐप्स के औप्शन पर क्लिक करें.
  • इस पर क्लिक करने के बाद 3 औप्शन आएंगे.

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इनमें सबसे पहले औप्शन Apps, Websites and Plug-ins (ऐप्स वेबसाइट एंड प्लगइन्स) के साथ आ रहे Edit (एडिट) पर क्लिक करें. इसपर क्लिक करने के बाद एक पौप अप विंडो खुल जाएगी. इसमें Disable Platform पर क्लिक कर दें. ऐसा करने के बाद यह होगा कि आप फेसबुक पर थर्ड पार्टी की साइटों का उपयोग करने में सक्षम नहीं होंगे.

  • इसके अलावा आप यह भी लिमिट लगा सकते हैं कि कौन सी इन्फोर्मेशन आपकी फेसबुक पर दिखाई देगी और कौन सी नहीं. जैसे बर्थ, फैमिली, धर्म, पोस्ट औन टाइमलाइन आदि.
  • इसके लिए आपको Apps के ही दूसरे औप्शन Apps others use में जाना होगा. इसके बाद इसमें आ रहे औप्शन के सामने बौक्स आ रहा होगा. अब आपको सिर्फ उसी के सामने वाले बौक्स में टिक करना है जिसे आप पब्लिक करना चाहते हो.

आपके पीएफ अकाउंट में कितना है पैसा, बस मिस कौल से करें पता

नौकरी करते समय नियमानुसार, हर कर्मचारी और कंपनी को पीएफ की राशि ईपीएफओ के पास जमा करानी होती है. हर महीने सैलरी से कटने वाली रकम ज्यादातर कर्मचारी रिटायर होने के बाद लेते हैं. लेकिन, नौकरी बदलते वक्त या पीएफ का पैसा ट्रांसफर कराते वक्त लोगों को नहीं पता होता कि उनके खाते में पैसा कितना है. नौकरी करते समय या उसके बाद अपने पीएफ की राशि जानना बहुत आसान है. इसके कई तरीके हैं. इनमें एक तरीका है मिस कौल. इसके लिए ईपीएफओ ने नंबर जारी किया हुआ है. इसके अलावा औनलाइन या एसएमएस से भी पीएफ राशि का पता लगाया जा सकता है.

ऐसे चेक करें ईपीएफ बैलेंस और पासबुक औनलाइन

1- ईपीएफओ ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर ईपीएफ बैलेंस चेक करने की सुविधा दी है. ई पासबुक का लिंक आपको वेबसाइट के ऊपरी दाएं हिस्से में मिल जाएगा.

2- इसके बाद व्यक्ति को यूएएन नंबर और उसका पासवर्ड डालना होगा.

3- वेबसाइट पर यूएएन नंबर और पासवर्ड डालने के बाद आपको व्यू पासबुक बटन पर क्लिक करना होगा और वहां आपको बैलेंस पता चल जाएगा.

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ऐप से कर सकते हैं बैलेंस चेक

इसके अलावा पीएफ बैलेंस का पता ईपीएफओ की ऐप से भी लगा सकते हैं. इसके लिए सबसे पहले मेंबर पर क्लिक करें और उसके बाद यूएएन नंबर और पासवर्ड डालें.

मिस कौल से पता करें पीएफ बैलेंस

जिसे अपना पीएफ बैलेंस के बारे में जानना है तो वह एक मिस कौल कर के भी पता कर सकता है. ईपीएफओ ने एक बयान में बताया है कि रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर से 011-22901406 पर मिस कौल करनी होगी. इसके बाद मैसेज के जरिए पता चल जाएगा कि आपके अकाउंट में कितना पीएफ का बैलेंस है.

मैसेज मिस्‍ड कौल के तुरंत बाद ही एक मैसेज भी आपको मिलता है यह मैसेज AM-EPFOHO की ओर से आता है. EPFO के द्वारा यह मैसेज भेजा जाता है. इस मैसेज में आपके अकाउंट की सारी जानकारी रहती है साथ ही कुछ और डिटेल जैसे कि: मेंबर आइडी, पीएफ नम्‍बर, नाम, जन्‍मतिथि, ईपीएफ बैलेंस, अंतिम योगदान.

अगर आपकी कंपनी कोई प्राइवेट ट्रस्‍ट है तो आपको बैलेंस डिटेल नहीं मिलेगा. आपको अपनी कंपनी से इसके लिए संपर्क करना होगा.

मिस्‍ड कौल क्यों पसंद है?

मिस्‍ड कौल की विधि सबको इसलिए पसंद है क्‍योंकि ईपीएफ बैलेंस जानने कि यह सबसे अच्‍छी विधि है. यह किसी मोबाइल ऐप और एसएमएस सर्विस से कहीं बेहतर है. इसके लिए किसी स्‍मार्टफोन की भी जरुरत नहीं है. किसी भी फोन से आप मिस कौल दे सकते हैं और न ही किसी ऐप की आवश्यकता है. मिस कौल करना मैसेज करने से ज्‍यादा सरल है. इसके लिए आपको पैसे भी देने की जरुरत नहीं होती.

जमा होती है तय राशि

पीएफ में पैसा जमा कराने के लिए एक राशि तय है. कर्मचारी और कंपनी को हर महीने बैसिक सैलरी और डीए (यदि है तो) का 12 फीसदी देना होता है. 12 फीसदी का 8.33% राशि ईपीएफ किटी में जाती है. वहीं, 3.67 फीसदी हिस्सा ईपीएफ में जमा होता है.

आईबीएम ने पेश किया दुनिया का सबसे छोटा कंप्यूटर, जानें फीचर्स

आईबीएम (इंटरनेशनल बिजनेस मशीन कौर्पोरेशन) ने अपने एक प्रोग्राम में एक माइक्रो कंप्यूटर को सबके सामने रखा. आईबीएम का दावा है कि यह दुनिया का सबसे छोटा कंप्यूटर है. कंपनी का कहना है कि इस डिवाइस में एक चिप लगी है. इसके अंदर प्रोसेसर, मेमोरी और स्टोरेज सहित पूरा कंप्यूटर सिस्टम मौजूद है. इस कंप्यूटर का आकार नमक के दाने के बराबर है.

एंटी फ्रौड डिवाइस

कंपनी का दावा है कि माइक्रो कंप्यूटर यानी ये डिवाइस एक एंटी फ्रौड डिवाइस है. जिससे डिजिटल फिंगरप्रिंट से रोजमर्रा की वस्तुओं में एम्बेडेड किया जा सकता है. इसका मकसद ऐसी तकनीक विकसित करना है, जिससे उत्पाद पर तकनीक की मदद से वाटर मार्क लगाया जा सके. इससे चोरी और धोखाधड़ी के मामलों में कमी आएगी.

क्रिप्टो एंकर प्रोग्राम डिवाइस

वन स्वायर मिलीमीटर साइज की इस डिवाइस को आईबीएम ने “क्रिप्टो एंकर प्रोग्राम” के तहत तैयार किया है. यही वजह है कि इसे एंटी फ्रौड डिवाइस का नाम दिया गया है. कंपनी का दावा है कि इस डिवाइस की मदद से फैक्ट्री से निकलने से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने के बीच में प्रोडक्ट से होने वाली छेड़छाड़ को रोका जा सकता है. इस डिवाइस की मदद से काला बाजारी और खाद्य समस्याओं से निपटने के लिए उत्पाद में क्रिप्टोग्राफिक्स एंकर लगाए जा सकते हैं. जिससे सप्लाई चेन में होने वाली गड़बड़ी को तुरंत पकड़ा जा सकता है.

1 लाख ट्रांजिस्टर मौजूद

आइबीएम की इस डिवाइस में छोटी सी रेंडम एक्सेस मेमोरी, एलईडी, फोटो डिटेक्टर, फोटोवोल्टिक सेल के साथ 1 लाख ट्रांजिस्टर हैं. ये कंप्यूटर इतना छोटा और सस्ता है कि इसे कभी भी और कहीं भी रखा जा सकता है. कंपनी ने कहा कि इसे असिस्टेंट कंपनियों को लक्ष्य कर पेश किया गया है ताकि वे अपने ब्रांड की विश्वसनीयता को विस्तृत कर सकें और उपभोक्ताओं के अनुभव को बेहतर कर सकें.

कीमत सिर्फ 7 रुपए

इतने छोटे साइज के इस कंप्यूटर को क्रिप्टो एंकर प्रोग्राम के तहत बनाया गया है. कंपनी का दावा है कि अगले 5 साल में यह बाजार में आ जाएगा और इसकी कीमत सिर्फ 7 रुपए होगी.

क्या है क्रिप्टो एंकर तकनीक?

अपने ब्लौग के जरिए आईबीएम के रिसर्चर अरविंद खन्ना ने कहा कि क्रिप्टो एंकर एक ऐसी तकनीक है जो नए समाधानों का मार्ग प्रशस्त करती है. इसके जरिए नकली वस्तुओं की पहचान,  खाद्य सुरक्षा और इनकी प्रामाणिकता का पता लगाया जा सकता है. साथ ही आईबीएम इस तकनीक के अलावा लेटिस क्रिप्टोग्राफिक एंकर, एआई पावर रोबोट माइक्रोस्कोप और क्वांटम कंप्यूटर जैसी दूसरी तकनीक भी ला रहा है. जिससे पर्यावरण प्रदूषण, पानी की कमी और बढ़ते तापमान की समस्याओं को कम किया जा सकता है.

युवतियों का है ये टशन : कम कपड़ों में सैल्फी

सैक्सी व अट्रैक्टिव फिगर की मलिका होना हर युवती की दिली ख्वाहिश होती है और उन का हक भी है. इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए युवतियों को हर मौके का फायदा उठाने को तैयार रहना चाहिए. जब से स्मार्टफोन का चलन बढ़ा है तब से युवतियों को अपनी सैक्सी फिगर दिखाने का एक नया औप्शन मिल गया है. हाथों में स्मार्टफोन थामे कम कपड़ों में अपने यौवन और गठीले बदन का प्रदर्शन करती ये युवतियां अपने बौयफ्रैंड व मित्रमंडली के साथ मौल, पार्कों, मैट्रो स्टेशनों और खंडहरों में सैल्फी लेती दिख जाएंगी. महानगरों से ले कर गांवों तक की युवतियों में सैल्फी लेने का शौक सिर चढ़ कर बोल रहा है.

बौयफ्रैंड के गालों से गाल सटाए, उस के गले में बांहें डाले ये युवतियां जम कर सैल्फी लेती हैं और इन्हें फेसबुक पर अपलोड कर उन्हें तब तक अपार खुशी का एहसास नहीं होता जब तक कि दोस्तों के लाइक व सैक्सी कमैंट्स नहीं मिल जाते. जैसे, ‘यार, शौर्ट्स में तो किसी हीरोइन जैसी दिख रही है’, ‘यार, अच्छा होता तू टौप पहनती ही नहीं,’  अरे, तू तो पटाखा लग रही है.’ आज की पीढ़ी ने मौडर्निज्म से जो कट्टरपंथी लबादा ओढ़ा था उतार दिया है. हां, कम कपड़ों में वे खतरों को दावत भी दे रही हैं. कम कपड़ों में सैल्फी लेने का शौक कई बार इन के लिए गले की फांस भी बन जाता है. तब इन्हें डर का एहसास होता है, पर तब तक काफी देर हो चुकी होती है.

रश्मि को अपने बौयफ्रैंड के साथ सैल्फी लेने का बहुत शौक था. जब भी वह रमेश के साथ किसी मौल या फूड कोर्ट में जाती तो वहां सैल्फी जरूर लेती. एक दिन रमेश ने उसे अपने घर बुलाया. घर पर रमेश के सिवा और कोई नहीं था. रश्मि ने उस दिन खासतौर से माइक्रो मिनी स्कर्ट पहनी थी, जिस में उस की खूबसूरत मांसल टांगें और यौवन झलक रहा था. रमेश ने उसे देखते ही बांहों में भर लिया. रश्मि को भी लगा जैसे उस की मुराद पूरी हो गई हो और फिर शुरू हुआ सैल्फी का सैशन. दोनों ने जम कर सैल्फी लीं और साथ के साथ उन्हें फेसबुक पर भी अपलोड कर दिया. इन सैल्फीज को उन के मित्रों द्वारा खूब लाइक मिले.

कुछ दिन बाद अचानक रश्मि और रमेश में अनबन हो गई, क्योंकि अब रश्मि का दिल मोहित पर आ गया था, मोहित अमीर घर का युवक था. रमेश को यह बरदाश्त नहीं हुआ कि उस की गर्लफ्रैंड किसी और की गर्लफ्रैंड बने. बस, उस ने रश्मि से बदला लेने की ठान ली. उस ने रश्मि की सैल्फीज किसी तरह उस के पेरैंट्स तक पहुंचा दीं. रश्मि पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो. बिंदास नेचर की रश्मि पर उस के पेरैंट्स ने पहरा लगा दिया और दोस्तों के साथ मिलनेजुलने पर पाबंदी लगा दी.

इसी तरह का वाकेआ नेहा के साथ भी हुआ. उसे भी कम कपड़ों में सैल्फी लेने का बहुत शौक था. उस की शादी तय हो गई थी और सगाई भी हो गई थी. शादी में करीब एक महीने का समय बाकी था कि लड़के वालों का फोन आया कि वह अपने बेटे की शादी नेहा से नहीं कर सकते. नेहा के पेरैंट्स ने जब इस की वजह जाननी चाही तो लड़के वालों ने उस की कम कपड़ों में खिंची सैल्फी उन्हें दिखा दी और कहा कि हम इतने मौडर्न विचारों के लोग नहीं हैं. नेहा हमारे घर की बहू बनने लायक नहीं है. इस में विलेन की भूमिका नरेश ने निभाई थी जो कभी नेहा का बौयफ्रैंड था और जिस ने उस के साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं, पर पिछले कुछ समय से दोनों के संबंधों में खटास पैदा हो गई थी.

इस तरह के षड्यंत्र का शिकार वे तमाम युवतियां हो सकती हैं जिन्हें कम कपड़ों में सैक्सी अदा दिखाते हुए सैल्फी लेने का बहुत क्रेज है. सच तो यह है कि दोस्तों के साथ सैल्फी लेने में कोई हर्ज नहीं है. इस से आपस में एकदूसरे के साथ दोस्ताना संबंध कायम होते हैं जो आज की फास्ट लाइफ में ऐंजौय करने के लिए जरूरी हैं, पर युवतियों को सैल्फी लेते समय सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए वरना सिवा पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता.

सैल्फी लेते समय कुछ खास बातों का रखें खयाल

कम कपड़ों से करें तोबा

आप की ड्रैस आप के चरित्र को दर्शाती है. हालांकि मौडर्न युवतियां इस से उलटी सोच रखती हैं. उन का मानना है जिस में वे हौट लगें वही ड्रैस पहननी चाहिए. पर ऐसी ड्रैस का क्या फायदा जिस में आप के शरीर के अंगों की बनावट झलके. कम कपड़ों में सैल्फी न ही खींचे तो अच्छा है, क्योंकि यह शौक आप के गले की हड्डी बन सकता है.

एकांत में सैल्फी ध्यान से लें

अकसर युवतियां अपने कथित बौयफ्रैंड्स के साथ एकांत स्थान जैसे ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों व पार्कों में सैल्फी ले लेती हैं. सैल्फी लेते वक्त शारीरिक स्पर्श तो होना लाजिमी है. ऐसे में कब हदें पार हो जाएं, पता नहीं और बाद में आप का बौयफ्रैंड इन सैल्फीज को ले कर आप को ब्लैकमेल नहीं करेगा, इस की भी कोई गारंटी नहीं है. इसलिए बौयफ्रैंड के साथ सैल्फी लेते समय एकांत स्थानों को प्रिफरैंस न दें और न ही कम कपड़े पहनें.

जरूरत से ज्यादा यकीन ठीक नहीं

अकसर युवतियों को अपने बौयफ्रैंड पर जरूरत से ज्यादा यकीन होता है. उन्हें उन की हर बात सच नजर आती है. वह धोखा भी दे सकता है, ऐसा वे सोच भी नहीं पातीं. तभी तो उस से लिपटलिपट कर कम कपड़ों में सैल्फी लेने में उन्हें अपूर्व आनंद की अनुभूति होती है, पर देखा यह गया है कि अकसर मीठीमीठी बातें कर के अपना उल्लू सीधा करने वाले बौयफ्रैंड सीरियस नहीं होते. वे कभी भी धोखा दे कर आप को खतरे में डाल सकते हैं. बौयफ्रैंड अवश्य बनाइए, पर उस पर यकीन कर उस के सामने पूरी तरह बिछें नहीं वरना आप को पछताना ही पड़ेगा.

सैल्फी अपने स्मार्टफोन से ही लें

अगर आप को कम वस्त्रों में सैल्फी लेने का शौक है तो ध्यान रहे कि इस के लिए बौयफ्रैंड का स्मार्टफोन इस्तेमाल न करें, बल्कि अपने फोन से ही सैल्फी खींचें. बौयफ्रैंड को सैल्फी व्हाट्सऐप न करें. कहीं ऐसा न हो कि वह आप की सैल्फी वायरल कर दे और आप मुंह दिखाने लायक न रहें. अगर वह व्हाट्सऐप पर सैल्फी मांगता है तो मुसकराते हुए कह दें, ‘भेज दूंगी न यार, जल्दी क्या है.’ इस तरह आप का शौक भी पूरा हो जाएगा और बदनामी होने की गुंजाइश भी नहीं रहेगी.

पेरैंट्स या सीनियर दोस्तों से शेयर करें

आप क्या कर रही हैं? आप का बौयफ्रैंड कौन है? उस के साथ कहां घूमने जा रही हैं? किस के साथ सैल्फी ले रही हैं, इस की जानकारी पेरैंट्स को देना फायदेमंद रहता है, क्योंकि उन्हें आप के अच्छेबुरे का पूरा ध्यान रहता है. वे आप को सही सलाह दे सकते हैं. यदि आप किसी मुसीबत में पड़ गई हैं तो वे आप को उस मुसीबत से निकाल सकते हैं. वे यह भी बता सकते हैं कि आप को सैल्फी खिंचवाते समय कैसी ड्रैस पहननी चाहिए. इसलिए अपने पेरैंट्स से हर बात शेयर करें.

31 मार्च के बाद नहीं चलेंगे इन बैंकों के चेक

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने एक बार फिर अपने ग्राहकों को याद दिलाया है कि उनके एसोसिएट बैंकों की चेक बुक 31 मार्च के बाद नहीं चलेगी. इसलिए वे सभी ग्राहक अपना चेक बुक बदल कर एस.बी.आई. से नया चेक इश्यू करवा लें. एसबीआई ने ग्राहकों से कहा है कि नई चेक बुक के लिए इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, एटीएम या फिर शाखा में जाकर तुरंत आवेदन कर लें.

इन 6 बैंकों का हुआ था SBI में विलय

जानकारी के लिए बता दें कि पिछले साल 5 एसोसिएट बैंकों का एस.बी.आई. में विलय किया गया है. अप्रैल, 2017 में स्टेट बैंक आफ बीकानेर एंड जयपुर (SBBJ), स्टेट बैंक आफ हैदराबाद (SBH), स्टेट बैंक आफ मैसूर (SBM), स्टेट बैंक आफ पटियाला (SBP), स्टेट बैंक आफ त्रावणकोर (SBT) और भारतीय महिला बैंक का एस.बी.आई. में विलय कर दिया गया है. स्टेट बैंक आफ मैसूर में एसबीआई का 90 पर्सेंट हिस्सा था जबकि बीकानेर एंड जयपुर में 75.07 पर्सेंट था. त्रवणकोर में एसबीआई की हिस्सेदारी 79.09 पर्सेंट है.

3 बार बढ़ा चुकी हैं तारीख

आपको बता दें कि बैंक अपने नए ग्राहकों की सहूलियत के लिए इस काम की तारीख पहले भी 3 बार बढ़ा चुका है. सबसे पहले 30 सितंबर तक का समय दिया था. इसके बाद इस समय सीमा को बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दिया गया था. हालांकि, ग्राहकों की परेशानी को देखते हुए इसे 31 मार्च कर दिया गया था. अब अगर आप 31 मार्च के बाद भी नई चे‍क बुक नहीं लेते हैं, तो आपके लिए वित्तीय लेन-देन करना मुश्क‍िल हो जाएगा. इससे आपके बैंक से जुड़े काम निपटाने में दिक्कतें पेश आ सकती हैं.

ऐसे करें चेक बुक के लिए आवेदन

ज्ञात हो कि बैंक की तरफ से ग्राहकों से अनुरोध किया गया था कि 31 मार्च से पहले नई चेक बुक के लिए आवेदन करना जरूरी है. अगर आपने अब तक नई चेक बुक के लिए आवेदन नहीं किया है तो आप इंटरनैट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग या ATM से आवेदन कर सकते हैं. इसके अलावा आप संबंधित शाखा में जाकर भी नई चेक बुक के लिए आवेदन कर सकते हैं.

खुद मोहम्मद भाई को जानती थीं हसीन जहां, जानें क्या है पूरा सच?

भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां ने बीते दिनों अपने पति पर फिक्सिंग के गंभीर आरोप लगाए थे. उनके बीच चल रहे इस विवाद में मोहम्मद भाई का नाम बार-बार सामने आ रहा था. हसीन जहां ने मोहम्मद भाई नामक एक शख्स के साथ शमी के पैसों के लेन-देन को लेकर उनपर मैच फिक्सिंग करने का आरोप लगाया था. हालांकि शमी खुद इस बात से कई बार इनकार कर चुके हैं लेकिन अब मोहम्मद भाई ने खुद सामने आकर इन आरोपों को खारिज किया है.

एक हिन्दी चैनल से बात करते हुए खुद मोहम्मद हानस्लाट उर्फ मोहम्मद भाई ने बताया कि वह लंदन में अपना बिजनेस चलाते हैं. उनका कहना है कि वह मोहम्मद शमी और हसीन जहां से लंदन में मिल चुके हैं. एक मैच के दौरान उनकी मुलाकात हुई थी और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती होती चली गई. हसीन जहां उन्हें भाई कहती थीं. वह हसीन को लंदन घुमाते थे. साथ ही मोहम्मद भाई का ये भी कहना है कि शमी पर लगा मैच फिक्सिंग का आरोप गलत है. उन्होंने कभी शमी को पैसे नहीं दिए हैं.

शमी और हसीन जहां के पूरे घटनाक्रम में पाकिस्तानी लड़की अलिश्बा का नाम भी कई बार सामने आया. हसीन जहां से आरोप लगाया था कि अलिश्बा, शमी और मोहम्मद भाई के बीच आपस में संबंध रहे हैं. शमी ने अलिश्बा के जरिए मोहम्मद भाई से पैसे लिए हैं. हालांकि मोहम्मद भाई ने इन आरोपों से इनकार किया. उन्होंने कहा कि वह अलिश्बा को जानते भी नहीं हैं. उन्होंने पाकिस्तानी लड़की अलिश्बा का नाम पहली बार सुना है.

हालांकि इससे पहले अलिश्बा ने भी एक चैनल से बात करते हुए कहा था कि उनकी शमी से बतौर फैन पहली मुलाकात देर रात एयरपोर्ट पर हुई थी. अगली सुबह वह शमी से मिलने उनके होटल में गईं, जहां उन्होंने शमी के साथ तकरीबन एक घंटे का वक्त बिताया. इस दौरान उन्होंने शमी के साथ नाश्ता किया. अलिश्बा का कहना है कि उनकी बहन शारजाह में रहती हैं, ऐसे में उनका दुबई अना-जाना लगा रहता है. पाकिस्तानी मॉडल के अनुसार, मुलाकात के दौरान पैसों को लेकर किसी भी तरह की बातचीत नहीं हुई थी.

मोहम्मद भाई का कहना है कि जांच एजेंसियों को मदद करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हूं. चाहे वह लाई डिटेक्टर टेस्ट हो या फिर नार्को वह इसके लिए तैयार हैं. अगर जांच एजेंसियां इसके लिए लंदन आना चाहें तो वह खुद उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट जाएंगे.’

बता दें कि मोहम्मद भाई को लेकर हसीन जहां के आरोप भी लगातार बदलते रहे हैं. हसीन ने पहली बार उन्हें एक अच्छा इंसान बताया था. वहीं दूसरी बार हसीन ने उन्हें मैच फिक्सिंग में लिप्त करार दिया था.

गलती से डिलीट हुए एसएमएस को वापस पाने के लिए अपनाएं ये उपाय

हर व्यक्ति मोबाइल पर आने वाले जरूरी एसएमएस को बेहद संभाल कर रखता है. लेकिन कई बार हमारी थोड़ी सी गलती के चलते वह एसएमएस डिलीट हो जाता है, जिसके चलते हमें कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है. अगर आपने भी गलती से एसएमएस डिलीट कर दिया है, जिसमें कोई जरूरी जानकारी थी तो अब आपको ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि अब आप अपने स्मार्टफोन पर डिलीट किए हुए एसएमएस को भी वापस पा सकते हैं. हालांकि ऐसी गारंटी नहीं है कि आपका मैसेज वापस मिल ही जाएगा लेकिन आप कोशिश करके देख सकते हैं.

आपको तो मालूम ही होगा कि जब आप कंप्यूटर पर कोई फाइल डिलीट करते हैं तो वो एक ट्रैश कैन में चला जाता है. ठीक वैसे ही एंड्रौयड स्मार्टफोन पर भी होता है. एंड्रौयड स्मार्टफोन पर जो फाइल या मैसेज आप डिलीट करते हैं वो थोड़े समय के लिए फोन में डिलीट होने के बाद भी रहता है.

मैसेज वापस पाने के लिए आप डेटा रिकवरी साफ्टवेयर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे सौफ्टवेयर आपके फोन को स्कैन करके जो भी कंटेंट डिलीट हो गया है उसको ढूंढ निकालते हैं. एंड्रौयड डेटा रिकवरी, डा. फोन, फोन पा, एंड्रौयड डेटा रिकवरी जैसे ऐप आपके काम आ सकते हैं.

सभी फोन कंपनियों के लिए आपके मैसेज स्टोर करना कानूनन जरूरी है इसलिए अगर ऐसा कोई भी मैसेज है जिसकी आपको कानूनन जरूरत है, तो उसे आप फोन कंपनी से भी मांग सकते हैं. लेकिन इसके लिए आपको उन्हें कुछ कागजात देने पड़ सकते हैं जो ये दिखाए कि आपको अदालत में उसे पेश करना है. पुलिस या दूसरी कानूनी एजेंसी अगर मांगें तो ऐसी जानकारी देना इन कंपनियों के लिए जरूरी होता है.

वैसे आपके स्मार्टफोन के लिए एसएमएस बैकअप का भी एक ऐप आता है जिसे आप बिना किसी परेशानी के इस्तेमाल कर सकते हैं. इसको आप अपने स्मार्टफोन पर प्ले स्टोर से बेहद ही आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं वो भी फ्री में.

अब बौलीवुड से जुड़े हर इंसान को मेरी प्रतिभा समझ में आयी : पंकज त्रिपाठी

पिछले 14 वर्षों से बौलीवुड में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते आए अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘अनारकली आफ आरा’, ‘न्यूटन’ और ‘फुकरे रिटर्न’ जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय की बदौलत बौलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बना ली है.

गत वर्ष राज कुमार राव व पंकज त्रिपाठी के अभिनय वाली फिल्म ‘‘न्यूटन’’ को भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में आस्कर के लिए भी भेजा गया था. पंकज त्रिपाठी की अभिनय प्रतिभा जिस तरह से निखर कर लोगों के सामने आ रही है, उसी के परिणाम स्वरूप उन्हें रजनीकांत, नाना पाटेकर व हुमा कुरेशी के साथ तमिल फिल्म ‘‘काला’’ करने का अवसर मिला, जिसमें उन्होंने पुलिस आफिसर का ग्रे किरदार निभाया है.

अप्रैल माह में प्रदर्शित इस फिल्म का निर्माण धनुष ने किया है, तो उनकी अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘मैंगो ड्रीम्स’’ भी ‘नेट फ्लिक्स’ पर आने वाली है.

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तो अब आपके करियर की गाड़ी सरपट दौड़ने लगी हैं?

हां! ऐसा आप कह सकते हैं. यूं तो मैं पिछले 14 वर्षों से बौलीवुड में ईमानदारी से काम करता आया हूं. लेकिन गत वर्ष प्रदर्शित मेरी फिल्मों ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘अनारकली आफ आरा’ और ‘न्यूटन’ की वजह से बौलीवुड से जुड़े हर इंसान को मेरा क्राफ्ट व मेरी प्रतिभा समझ में आयी. लंबे समय बाद लोगो को मेरी अभिनय की रेंज समझ में आयी है. ‘अनारकली आफ आरा’ में एक आक्रेस्ट्रा का मालिक नाचता भी है. तो ‘फुकरे रिटर्न’ में भी यह आदमी मनोरंजन करता है. न्यूटन का बीएसएफ आफिस भी पसंद आया. तीनों ही किरदार में लगता है कि यह किरदार पंकज त्रिपाठी के लिए लिखे गए हैं. मुझे लगता है कि मेरी जो क्राफ्ट है, वह आम जनता के साथ फिल्मों से जुड़े लोगों तक भी पहुंची है. जब मैं सड़क से गुजरता हूं, तो लोग पहचानते हैं. अभी जब मैं आपका इंतजार कर रहा था, तो 3-4 लोग आकर मेरे साथ सेल्फी लेकर गए. उनमें से 2- 3 लोग तो वह थे, जो यह बोलकर गए कि, ‘हम आपके काम से इंस्पायर होते हैं. हर किरदार को देखने के बाद ऐसा लगता है कि हां यार अभिनय ऐसा ही होना चाहिए. लोगों को मेरे अंदर की अभिनय प्रतिभा का अहसास पूरे बारह वर्षों बाद हुआ है.

तो यह कहा जाए कि आप स्टार बन गए?

नहीं..मैं खुद को स्टार नहीं समझता और स्टार बनने की इच्छा भी नहीं है. मैं तो अपनी पहचान एक अदाकार के रूप में ही चाहता हूं. व्यस्तता बढ़ गयी है. अब आलम यह है कि पिछले चार माह के अंदर मैने 30 फिल्मों के आफर ठुकराए. अब मुझे अपनी पसंदीदा फिल्में चुनने का अवसर मिल रहा है. पर यह भी सच है कि कुछ अच्छी फिल्में, शूटिंग की तारीखों की समस्या के चलते छोड़नी पड़ी. अब विज्ञापन फिल्मों के भी आफर आ रहे हैं. अब फिल्मकार मेरी तलाश करने लगे हैं. शायद 2018 यह पहला साल है, जब मैं मार्च माह में आपके साथ बैठा हूं और मेरे पास दिसंबर तक किसी नई फिल्म की शूटिंग के लिए तारीख देने का समय नहीं है. व्यस्तता का आलम यह है कि अगले आठ माह तक मैं चाहकर भी किसी नई बेहतरीन फिल्म के लिए वक्त देने की स्थिति में नही हूं. मेरी प्रतिभा को आंक कर ही मुझे रजनीकांत जी के साथ तमिल  फिल्म ‘‘काला’’ करने का मौका मिला.

फिल्म ‘‘काला’’ में आपका अपना किरदार क्या है?

इसमें पंकज पाटिल नामक ग्रे शेड्स वाले पुलिस का किरदार है. फिल्म में रजनीकांत के साथ मेरे काफी सीन हैं. मैं अभी डबिंग करके आया हूं. फिल्म अच्छी बनी है.

फिल्म ‘‘काला’’ करने की कोई खास वजह भी रही?

मैंने इस फिल्म को सिर्फ रंजनीकात के साथ कुछ समय बिताने के लिए किया है. रजनीकांत का जो औरा है, उनको लेकर जो चर्चाएं होती हैं, उससे मैं प्रभावित हूं. आखिर वह इंसान क्या हैं? मैं उन्हें नजदीक से जानना चाहता था. वैसे रजनीकांत के साथ पांच मिनट की कई छोटी मुलाकातें हुई हैं. पर मेरे दिमाग में था कि हम कुछ दिन साथ में रहकर काम करेंगे, तो उन्हें बेहतर ढंग से जान सकेंगे. इसलिए मुझे रजनीकांत से मिलना था. मैं उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित था. वह सिनेमा के परदे पर बहुत अलग नजर आते हैं. जबकि निजी जीवन में वह जिस तरह से हैं, उसी तरह से नजर आते हैं. निजी जीवन में वह लुंगी पहनकर नजर आते हैं. उनमें कभी कोई बनावटी पन नजर नहीं आया. मुझे हमेशा लगता है कि अभिनेता ही क्यों, किसी भी इंसान को, फिर चाहें वह जिस पेशे में हो, उसे अपने मूल स्वरूप को नहीं भूलना चाहिए. मान लिया कि अभिनय का पेशा ऐसा है, वहां ग्लैमर व तड़क भड़क चाहिए. पर यह सब आप परदे पर दिखाएं, निजी जिंदगी में आप जैसे हैं, वैसे ही नजर आएं, तो ज्यादा अच्छा है. इसी वजह से मैं रजनीकांत से बहुत प्रभावित था. इसी वजह से मैंने फिल्म की है. वैसे तमाम दृष्यों में हम दोनों आमने सामने हैं. रजनीकांत से मिलने के बाद मैंने उनको समझा. उनके व्यक्तित्व को समझा. मैंने सुना था कि वह हर साल कुछ समय के लिए हिमालय पर जाते हैं. इस बारे में मैंने उनसे बात की. तो उन्होंने खुद स्वीकार किया कि वह हर साल 25 से 30 दिन के लिए हिमालय पर जाते हैं.

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उन्होंने बताया कि वहां वह अकेले रहते हैं, कोई उनके साथ नहीं होता. उन्होंने कहा कि यदि आपकी आंखों में दृष्टि हो, तो हिमालय सिर्फ पहाड़ नहीं, बहुत कुछ हैं. मुझे उनके स्प्रिच्युअल पक्ष को जानने का मौका मिला. मुझे अहसास हुआ कि वह कितनी विनम्र हैं. उन्हें पता था कि मैं उत्तर भारत से हूं. तो वह अक्सर पूछते थे कि हमें चेन्नई में अच्छा लग रहा हैं या नहीं. वहां का भोजन मुझे पसंद आ रहा है या नहीं.

रजनीकांत को लेकर आपके दिमाग में उनकी एक छवि/ईमेज थी. उनसे मिलने के बाद क्या वह छवि टूटी?

नहीं! कोई फर्क नहीं पड़ा. अक्सर होता यही है कि आप दूर से लोगों के बारे में जो कुछ सुनते हैं, उससे उनकी एक छवी बन जाती है. जब आप उनसे मिलते हैं, तो उस छवि के टूटने का डर बना रहता है. अक्सर छवि टूटती है. लेकिन रजनीकांत के साथ ऐसा नहीं हुआ. उनकी जो छवि थी, उसी रूप में वह मुझे मिले. इसकी मूल वजह यह रही कि मैं उनकी फिल्मों से प्रभावित नहीं था. मैंने उनकी एक फिल्म देखी नहीं थी. मैं उनके अभिनय पक्ष से नहीं, बल्कि व्यक्तित्व से प्रभावित था. मैं जागरूक और संवेदशनशील इंसान हूं. हमेशा जमीन से जुड़ा रहता हूं. मुझे रजनीकांत से भी यही सीखने को मिला कि इंसान चाहे जितना काबिल हो, वह चाहे जितना सफल हो जाए, उसे हमेशा एक जागरूक व संवेदनशील इंसान के साथ जमीन पर बने रहना चाहिए. मेरा भी मानना है कि इंसान को अपने मूल स्वरूप में रहना चाहिए. सफल होने पर घमंड मत करो, परेशानी भी मत पालो. इंसान की जिंदगी में संतुलन बने रहना चाहिए.

आप भी जमीन से जुड़े रहना चाहते हैं?

जी हां! कल किसी पत्रकार ने मुझसे पूछा कि आप तो जमीनी आदमी हो? तो मैंने उससे कहा कि जमीनी आदमी होना गलत है क्या? यह कोई उपलब्धि भी नहीं. जितनी इमारतें, पेड़ पौधे खड़े हैं, वह सभी जमीन पर ही खड़े हैं. दुनिया में हर इंसान जमीन पर खड़ा है. जिसने जमीन यानी धरती को छोड़ दिया, उसके लिए खड़ा रहना मुश्किल है. बिना आधार के इंसान कैसे रहेगा?

आपकी फिल्म ‘‘न्यूटन’’ आस्कर’’ में क्यों नही चुनी गयी?

‘‘आस्कर’’बहुत बड़ा गेम है. कई वजहों से ‘न्यूटन’ पिछड़ गयी. भारत ने अपनी इस फिल्म को भेजने का निर्णय भी देर से लिया. दूसरी बात वह फिल्म भी अच्छी फिल्म थी, जिसको आस्कर मिला है. हमने उस फिल्म को वहां पर देखा था. ‘शिप आफ वाटर’ भी हमने देखी थी. तो विदेशी भाषा के तहत जिसे पुरस्कृत किया गया, वह निःसंदेह बेहतरीन फिल्म थी.

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एक कलाकार के तौर पर आपको क्या लगता है? न्यूटन को आस्कर में नहीं चुना गया?

मुझे लगता है कि यह सब तकदीर और मार्केटिंग का खेल है. विदेशी भाषा के तहत जिसे पुरस्कृत किया गया, वह सोनी पिक्चर्स की फिल्म थी. सोनी पिक्चर्स बहुत बड़ी कंपनी है. अमरीका में उसका अपना आधार है. दूसरी बात तकनीकी स्तर पर हम लोग थोड़ा पीछे हैं. हमारी फिल्म इंडस्ट्री भी ग्रो कर रही है. ‘न्यूटन’ आज से दस साल पहले नहीं बन सकती थी. वैसे इतने शुष्क व नीरस विषय पर फिल्म बनाने के लिए हिम्मत चाहिए. कथ्य के स्तर पर मुझे हमेशा ऐसा लगता है. पुरस्कार मिलना कोई माप दंड नही है. आस्कर एक देश का अवार्ड है. जैसे उनके पेप्सी कोला पूरे देश में बिकते हैं, वैसे ही आस्कर भी उनका एक अवार्ड है. आपने हमारे देश में आकर हमारी लस्सी, सत्तू और नींबू पानी को दबा दिया है. तो क्या हमारा लस्सी नींबू पानी, कोका कोला के मुकाबले खराब है? नहीं..हकीकत में कोकाकोला ने बाजार वाद के दौर में नींबू पानी को दबा दिया है. लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि फिल्म मेकिंग कोल्ड ड्रिंक नहीं है, फिर भी अवार्ड न मिलना कोई समस्या नही है. हमारे भारत देश की जनता ने ‘न्यूटन’ देखी, पसंद की. हमारे लिए यही उपलब्धि है. ‘‘न्यूटन’’ से किसी को नुकसान नहीं हुआ. अच्छी कमायी हुई है.

कालाके अलावा दूसरी कौन सी फिल्में हैं?

‘काला’ के अलावा हिंदी में ‘‘अंग्रेजी में कहते हैं’’ व ‘ड्राइव’ सहित 6-7 फिल्में आने वाली हैं. फिल्म ‘‘अंग्रेजी में कहते हैं’’ में मेरा कैमियो मगर जबरदस्त किरदार है. फिल्म भी जबरदस्त है. जिन लोगों ने भी इस फिल्म को देखा है, सभी तारीफ कर रहे हैं. ‘जयपुर फिल्म फेस्टिवल’ में इसे पुरस्कृत किया गया था. कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कृत हो चुकी है. इसमें अंशुमन झा और संजय मिश्रा भी हैं. एक अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘‘मैंगो ड्रीम्स’’ की है, जो कि नेट फिलिक्स पर आएगी. इसके लिए पिछले दिनों मुझे केप टाउन में पुरस्कृत किया गया था. इसके अलावा श्रद्धा कपूर और राज कुमार राव के साथ हौरर रोमांचक फिल्म ‘‘स्त्री’’ कर रहा हूं.

एक वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ की है. इसे एक्सेल इंटरटेनमेंट ने बनाया है. यह जुलाई माह से प्रसारित होगी. यह उत्तर प्रदेश पर आधारित अपराध कथा है. पर काफी रोचक है. इसकी शूटिंग पूरी हो गयी है. अभी पोस्ट प्रोडक्शन का काम चल रहा है.

वेबसीरीज का भविष्य क्या नजर आ रहा है?

देखिए, वेबसीरीज को अभी दो साल का समय देना पड़ेगा, तभी इसके भविष्य को लेकर कुछ स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है. फिलहाल वेब सीरीज बन बहुत अच्छी रही है. धीरे धीरे प्रसारित भी हो रही है. लगभग हर बड़ा प्रोडक्शन हाउस वेब सीरीज बना रहा है. मैं स्वयं इस साल करीबन चार वेब सीरीज करने वाला हूं. दो वर्ष में जब यह सारी वेब सीरीज प्रसारित होगी, तब भविष्य पता चलेगा. मैं आपको बता दूं कि मैंने एक सीरियल ‘पाउडर’ किया था, जो कि 2010 में सोनी टीवी पर प्रसारित हुआ था. उस वक्त इसे दर्शक नहीं मिले थे. 15 दिन पहले ‘नेटफिलिक्स’ ने उसे खरीदकर प्रसारित करना शुरू किया. अब सोशल मीडिया पर ‘पाउडर’ को लेकर मुझे कई तरह के संदेश मिल रहे हैं. लोग ‘पाउडर’ में मेरे काम की तारीफ भी कर रहे हैं. तो एक फायदा यह हुआ कि डिजिटल प्लेटफार्म की वजह से ‘पाउडर’ खोया नहीं.

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क्या फिल्मों का स्थान वेब सीरीज ले लेंगी?

दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता, पर ऐसा हो सकता है. वेब सीरीज एक ऐसा डिजिटल प्लेटफार्म है, जिसे आप सब्सक्राइब करके घर पर बैठकर देख सकते हैं. मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर पर देख सकते हैं. जब आपके पास वक्त हो, तब देख सकते हैं. इस तरह कंटेंट आपकी जेब में पहुंच गया है. सिनेमा देखने के लिए आपको तय समय पर टिकट खरीदकर सिनेमाघर के अंदर जाना पड़ता है. इंटरनेट की दुनिया बढ़ रही है, गति बढ़ रही है. इससे लगता है कि आने वाला वक्त डिजिटल मीडिया का है.

इससे सिनेमा को फायदा होगा या नुकसान होगा?

नुकसान नहीं होगा. सिनेमा की गुणवत्ता अच्छी होगी, क्योंकि वेब सीरीज में कंटेंट पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है. क्योंकि बटन दर्शक/ग्राहक के हाथ में है, उसे पसंद नहीं आएगा, तो तुरंत बंद कर देगा. जबकि सिनेमागृह में टिकट खरीदकर पहुंच गए, तो बात खत्म. वहां दर्शक कुछ नही कर सकता. पर वेब सीरीज दर्शक ने देखना छोड़ दिया, तो नुकसान हो जाएगा. इसके अलावा वेब सीरीज पर कोई सेंसरशिप नहीं है. तो लोग अपने मनमुताबिक सिनेमा बना रहे हैं. कुछ कहानियों में बेवजह सेंसर अड़ंगा लगाता है. कलात्मक प्रतिबंध लग जाते हैं. यदि कहानी में अपराधी किस्म के किरदार हैं, तो वह अच्छी भाषा में बात नहीं करेंगें, गाली गलौज ही करेंगे.

लेकिन कुछ वेब सीरीज में सेक्स परोसा जा रहा है?

कुछ लोग सनसनी फैलाने के लिए ऐसा कर रहे हैं, पर यह सफल नहीं है. पिछले वर्ष प्रदर्शित सभी एडल्ट सेक्स कामेडी की फिल्में असफल हुईं. देखिए, इंटरनेट की वजह से लोगों के हाथ में पोर्नोग्राफी पहुंच गयी है. ऐेसे में वह फिल्म या वेब सीरीज सेक्स के लिए नहीं देखना चाहता. अब लोगों को कंटेंट चाहिए, अच्छी परफार्मेंस चाहिए.

जिंदगी में नया क्या कर रहे हैं?

जिंदगी की अच्छी बात यह है कि पहली बार मेरी हेअर स्टालिंग कुछ अच्छी हुई है. पहली बार ऐेसा हुआ कि फिल्म ‘ड्राइव’ की शूटिंग के समय एक हेयर ड्रेसर मेरे साथ घूमता था कि मेरे बाल खराब ना हो जाएं. करण जौहर की फिल्मों में इन सब चीजों पर कुछ ज्यादा ध्यान भी दिया जाता है. सब कुछ साफ सुथरा नजर आता है. निर्देशक तरूण मनसुखानी की इस फिल्म में मेरा हामिद नामक पुलिस वाले का बहुत रोचक किरदार है, उम्मीद है कि दर्शकों को पसंद आएगा.

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आपकी निजी जिंदगी में क्या बदलाव आया?

सच कहूं तो बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है. एक बड़ी गाड़ी ले ली है, क्योंकि घर में कुत्ता आ गया है, तो बड़ी गाड़ी की जरूरत थी. आर्थिक रूप से थोड़ा सुरक्षित हूं. अब मुझे कोई फिल्म महज पैसे के लिए करने की जरूरत नहीं रही. अब मैं अपनी कला पर ज्यादा ध्यान दे पा रहा हूं. हां! एक बदलाव यह हुआ कि पहले मैं बिजली का बिल भरने, टिकट खरीदने, इंकम टैक्स व जीएसटी भरने, निर्माता को शूटिंग के लिए तारीख देने जैसे हर काम किया करता था, वह सब अब मुझसे नहीं हो पा रहा है. इसके लिए मैंने प्रोफेशनल लोगों को रख दिया है. अब मैं अभिनय पर ध्यान दूंगा या इन छोटी छोटी चीजों में उलझूंगा. अन्यथा इंसान के तौर पर मुझमें कोई बदलाव नहीं हुआ.

क्या आप मानते हैं कि अर्थिक मजबूती आने के बाद कलाकार अपनी कला को और अधिक निखार पाता है?

बिलकुल…क्योंकि आर्थिक मजबूती आने के बाद कलाकार मकान व गाड़ी की ईएमआई भरने व हर माह के घर खर्च की चिंता से मुक्त हो जाता है. इससे वह अपने अभिनय पर ज्यादा ध्यान दे पाता है. हालांकि अभाव व तकलीफों में कला ज्यादा बेहतर रची जाती है. दुनिया में जहां जहां अच्छा लिटरेचर कायम हुआ है, वह तभी हुआ, जब देश क्रायसेस में था. तो जब आदमी अभावग्रस्त होता है, तो वह कुछ बेहतर रचनात्मक काम करने का संघर्ष करता है. उस वक्त वह ज्यादा जागरूक होता है. उसके अंदर कुछ करने की बेचैनी होती है. अमूमन पैसा या आर्थिक मजबूती आने पर हम थोड़ा आलसी हो जाते हैं. पर मैं जागरूक हूं कि यह जो दौर मेरे जीवन में आया है, यदि हमने इसका सही उपयोग करने की बजाय आलस्य के स्वभाव में आकर बड़े होटलों में बैठकर महंगी शराब पीने लगे, तो गलत हो जाएगा. मेरा मानना है कि कलाकार का कला के प्रति फोकस विचलित नहीं होना चाहिए. कलाकार के लिए धन सिर्फ भौतिक सुख सुविधा दे सकता है, संतुष्टि तो अभिनय में ही मिलेगी.

सिनेमा में आए बदलाव को आप किस रूप में देख रहे हैं?

कलाकार के तौर पर तो यह बदलाव बहुत अच्छा है. सिनेमा में आए बदलाव की ही वजह से मेरे जैसे कलाकार के पास अगले दो वर्ष तक का काम है. अब मैं जो फिल्में ले रहा हूं, उन्हें दो साल के बाद शूटिंग की तारीखे दे पा रहा हूं. अब बड़े बड़े पत्रकार भी मुझसे बात करने लगे हैं. दर्शक मुझे देखना चाहता है. निर्माताओं का आत्मविश्वास मेरे जैसे कलाकार के प्रति बढ़ा है. सिनेमा और दर्शक के बदलने के कारण ही हमारी पूंछ बढ़ी है. मेरी राय में भारतीय सिनेमा में अभी एक कहानीकार, निर्देशक व कलाकार के लिए बहुत अच्छा समय है.

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