संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘बाजीराव मस्तानी’’ में काशीबाई का किरदार निभाने के बाद प्रियंका चोपड़ा अमरीकन टीवी सीरीज ‘क्वांटिको’ व वहां की फिल्मों व्यस्त हो गई थीं. मगर सूत्रों की माने तो वहां पर उनके करियर पर विराम लग गया है. क्योंकि टीवी सीरियल ‘‘क्वांटिको’’ के दूसरे सीजन को दर्शक नहीं मिले. वहीं प्रियंका की अमरीकन फिल्म ने भी बौक्स औफिस पर पानी नहीं मांगा. तो वह काफी समय से बौलीवुड फिल्म के लिए प्रयासरत थीं.
बहरहाल, अब यह तय हो चुका है कि अली अब्बास जफर निर्देशित फिल्म ‘भारत’ में वह सलमान खान की हीरोईन बनकर आएंगी. प्रियंका चोपड़ा ने अली अब्बास जफर के निर्देशन में ‘यश राज फिल्मस’ की फिल्म ‘‘गुंडे’’ की थी. जबकि सलमान खान के साथ उन्होंने अंतिम बार फिल्म ‘‘सलाम ए इश्क’’ की थी. अब फिल्म ‘‘भारत’’ के साथ उनकी बौलीवुड ही नहीं बल्कि सलमान खान व अली अब्बास जफर के साथ पुनः वापसी हो रही है. वैसे ‘‘भारत’’ के लिए कटरीना कैफ सहित कई दूसरी अभिनेत्रियों के नामों की चर्चा हो चुकी है.
फिल्म ‘‘भारत’’ के निर्देशक अली अब्बास जफर इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं- ‘‘हौलीवुड में टीवी सीरियल व फिल्म में अभिनय कर विश्व स्तर पर अपना एक अलग मुकाम बनाने के बाद फिल्म ‘भारत’ प्रियंका की घर वापसी है. वह हमारी फिल्म के लिए एकदम फिट हैं.
जबकि खुद प्रियंका चोपड़ा कहती हैं- ‘‘मैं सलमान खान व अली अब्बास जफर के साथ फिल्म ‘भारत’ की शूटिंग शुरू करने को लेकर काफी उत्साहित हूं. अपनी पिछली फिल्मों में इन दोनों से मैंने काफी कुछ सीखा था. मैं अलवीरा और ‘सलमान खान फिल्मस’ की टीम के साथ काम करने को लेकर भी उत्सुक हूं.
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फिल्म ‘‘हेट स्टोरी 4’’ फेम अभिनेत्री उर्वशी रौतेला ने दो करोड़ रुपए की लागत की जर्मन कंपनी की ‘‘मर्सडीज बेंज एस क्लास’’ गाड़ी खरीदी है. इस तरह अब उर्वशी के पास चार महंगी कारें हो गयी हैं.
सूत्रों का दावा है कि जब उर्वशी रौतेला ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी, उस वक्त उन्होंने रेंज रोवर कार खरीदी थी.
उर्वशी रौतेला का दावा है कि उन्हें गाड़ियों का शौक है. उनकी तमन्ना मस्तंग, बुगाटी, अल्फा रोमियो, मसेरती, मकलारेन ब्रांड की गाड़ियां खरीदने की है, जिसे वह एक न एक दिन जरुर खरीदेंगी.
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चिल्ड्रेन्स आफ हैवेन’, कलर आफ पैराडाइज, बरन, सांग आफ स्पैरोज और मोहम्मद: द मैसेंजर आफ गाड जैसी ईरानियन फिल्मों के सर्जक और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निर्देशक माजिद मजीदी इन दिनों अपनी 20 अप्रैल को ईरान व भारत सहित विश्व के 34 देशों में एक साथ प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ को लेकर चर्चा में हैं. माजिद मजीदी के करियर की पहली फिल्म है, जिसे उन्होंने अपने वतन ईरान से इतर देश भारत में बनाया है. माजिद मजीदी को इस बात का दुःख सताता रहा है कि भारतीय फिल्मकार भारतीय सभ्यता संस्कृति व भारतीय कहानियों से इतर कहानियों पर ही फिल्में क्यों बनाते हैं. ऐसे में उनका भारत आकर फिल्म बनाना अपने आप में एक नए इतिहास का सूत्रपात है. इस नए इतिहास का सूत्रपात भारतीय फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ‘‘नमः पिक्चर्स’’ के किशोर अरोड़ा व शरीन मंत्री केड़िया के ही प्रयासों से हो पाया.
अपने इस प्रयास से अति उत्साहित मेरठ निवासी किशोर अरोड़ा कहते हैं- ‘‘हम दुनिया भर के सिनेमा प्रेमियों को बताना चाहते हैं कि भारत में असंख्य रंगों में निहित और जड़ित सम्मोहक कहानियां हैं, जिन्हें हम सुनाते हैं. आस्कर नामित ईरानी लेखक व निर्देशक माजिद मजीदी द्वारा निर्देशित हमारी पहली फिल्म ‘बियांड द क्लाउड्स’ उसी दिशा में पहला कदम हैं. जी स्टूडियोज और नमः पिक्चर्स द्वारा निर्मित ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी के जादू को हम अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘नमः पिक्चर्स’ के माध्यम से भारत लेकर आए हैं.’’
मजेदार बात यह है किशोर अरोड़ा का माजिद मजीदी से पहले से कोई परिचय नहीं था. पर माजिद मजीदी की फिल्म ‘‘चिल्ड्रेन्स आफ हैवेन’’ देखकर किशोर अरोड़ा ने जब फिल्म के संबंध में जानकारी हासिल की, तो उन्हें इस बात का गम हुआ कि वह सिनेमा के भगवान को नहीं जानते हैं. खुद किशोर अरोड़ा कहते हैं- ‘‘मुझे फिल्में देखने का शौक है.
हम हर दिन कोई न कोई एक विदेशी फिल्म देखते रहते हैं. लगभग नौ वर्ष पहले हमने एक दिन ‘चिल्ड्रेन्स आफ हैवेन’ देखी. फिल्म देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ और मुझे लगा कि मुझे इसका रीमेक भारत में बनाना चाहिए. इसलिए हमने पता किया कि फिल्म के निर्माता निर्देशक कौन हैं. तो हमें माजिद मजीदी के बारे में पता चला. पता चला कि वह तो सिनेमा के भगवान हैं. फिर हमने उनसे संपर्क किया. पर पता चला कि उनकी इस फिल्म का रीमेक बौलीवुड में हो चुका है. पर हमारे बीच बातचीत होती रही. एक दिन हमने उनके सामने भारत आकर फिल्म बनाने का आफर रख दिया. उस वक्त वह अपनी फिल्म ‘मोहम्मदः द मैसेंजर आफ गाड’ में व्यस्त थे. फोन पर लंबी बात हुई और यह तय हुआ कि वह भारत आकर आमने सामने बैठकर बात करेंगे. जब वह भारत आए और हमारे बीच लंबी बात हुई, तो उस वक्त उन्होंने कहा कि वह तो अपनी फिल्म ‘मोहम्मदः मैसेंजर आफ गाड’ में व्यस्त हैं, इसलिए अभी भारत आकर फिल्म नहीं बना सकते. हमने उनसे साफ साफ कहा कि हम तो उनका इंतजार करने के लिए तैयार हैं, पर हम उनके साथ भारत में फिल्म बनाना चाहते हैं. अब पूरे आठ वर्ष बाद हम माजिद मजीदी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ 20 अप्रैल को सिनेमाघरों में लेकर आ रहे हैं. यह पहली भारतीय फिल्म होगी, जो कि ईरान में भी प्रदर्शित होगी. इसके अलावा विश्व के 34 अन्य देशों में प्रदर्शित होगी.’’
पर आप दोनों एक दूसरे की भाषा से अनभिज्ञ हैं. ऐसे में किस तरह की समस्याएं आयीं? इस सवाल पर किशोर अरोड़ा ने कहा- ‘‘यदि आपने माजिद मजीदी की फिल्में देखी होंगी, तो पाया होगा कि माजिद मजीदी की फिल्मों में पात्रों के बीच संवाद कम होते हैं. हर पात्र अपने चेहरे के भाव से ज्यादा बातें करते हैं. इसलिए हमें लगा कि ऐसा भारत में भी हो पाएगा. पहले हमने अंग्रेजी भाषा में फिल्म बनाने की सोची थी. मगर माजिद मजीदी जब भारत आएं, तो उन्होंने कहा कि फिल्म की कहानी जिनके बारे में हैं, वह अंग्रेजी जानते नहीं हैं. वह तो हिंदी जानते हैं. इसलिए फिल्म हिंदी में बननी चाहिए. तो मुझे भी लगा कि हमें हिंदी में फिल्म बनानी चाहिए. आखिर हम अपने देश के लिए फिल्म बना रहे हैं.’’
हिंदी भाषा की फिल्म “बियांड द क्लाउड्स’’ का नाम अंग्रेजी में रखने पर सफाई देते हुए किशोर अरोड़ा कहते हैं- ‘‘देखिए, हम अपनी फिल्म को पूरे विश्व में प्रदर्शित कर रहे हैं. तो हमने फिल्म का नाम ऐसा रखा है, जिसे हर देश का दर्शक समझ सके. पर हमने कोई सख्त या कठिन अंग्रेजी नाम नहीं रखा. यह एक युनिवर्सल फिल्म है.’’
फिल्म की कहानी माजिद मजीदी की ही है. इस बारे में किशोर कहते हैं- ‘‘कहानी मेरी नही है..माजिद मजीदी सर खुद ही लिखी कहानी पर ही फिल्म बनाना पसंद करते हैं. वह एडीटिंग भी करते हैं. उन्हें संगीत व कास्ट्यूम आदि की भी बहुत अच्छी समझ है. उन्हें कैमरा लाइटिंग सब कुछ पता है.’’
तो उन्होंने एक कहानी सुनाई, वही आपको पसंद आ गयी? इस सवाल पर किशोर अरोड़ा व शरीन ने कहा- ‘‘ऐसा नहीं है. हम उनके साथ पहले कश्मीर पर आधारित ‘फ्लोटिंग गार्डेन’ बनाने वाले थे. पर जब उन्होंने हमें ‘बियांड द क्लाउड्स’ की कहानी सुनाई, तो हम दोनों को लगा कि पहले इसे बनाना चाहिए. ‘फ्लोटिंग गार्डेन’ का विषय भी बहुत अच्छा है. उस पर भी काम चल रहा है. भविष्य में माजिद मजीदी के साथ ही हम इसे बनाएंगे. पर माजिद मजीदी को लगा कि मुंबई पर आधारित विषय पर पहले फिल्म बनायी जाए. माजिद मजीदी ने कहानी लिखने से पहले भी काफी भारत भ्रमण व शोध कार्य किया. जब तय हो गया कि मुंबई की कहानी पर फिल्म पहले बनेगी, तो पूरे एक माह तक वह मुंबई के चप्पे चप्पे की यात्रा की. लोकेशन पर उनका शोध काम किया.’’
फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ की कहानी की चर्चा चलने पर किशोर ने कहा- ‘‘भाई बहन की कहानी व उनके इमोशन की कहानी है, जो कि भारतीय फिल्मों में नजर नही आता. भारतीय फिल्मों में तो प्रेम कहानी हावी हैं और वह भी नकली. हम भी कुछ नया बनाना चाहते थे.’’
फिल्म ‘बियांड द क्लाउड्स’ की कहानी मुंबई की है. मगर फिल्म में एक घर के दृष्यों की शूटिंग राजस्थान के सांबर में करने की वजह स्पष्ट करते हुए किशोर कहते हैं-‘‘उन्हें जिस तरह का घर चाहिए था, वैसा घर मुंबई में नहीं था. उन्हें चाहिए था कि छोटे छोटे चबूतरे वाला घर हों. गाय बकरी वगैरह बंधी हों. उन्हें चैपाल चाहिए थी. इस तरह के घर उत्तर प्रदेश में मिल सकते थे. पर उन्हें राजस्थान के सांबर में वैसा घर मिला, तो हमने वहां शूटिंग की. वह सेट नहीं लगाना चाहते थे, पर उन्होंने पटकथा में जैसा घर लिखा था, वैसा ही घर तलाश रहे थे. माजिद मजीदी सर ने पूरी फिल्म वास्तविक लोकेशन पर ही फिल्मायी है.’’
अक्सर निर्माता की शिकायत होती है कि निर्देशक की वजह से फिल्म का बजट बढ़ गया? इस सवाल पर किशोर ने कहा- ‘‘भगवान से क्या शिकायत. भगवान हमारे घर आए, यही बड़ी बात है. उसके बाद शिकायत करना तो बहुत बड़ा अपराध होगा. दूसरी बात मैंने पहले ही कहा कि वह एडीटिंग सहित सब कुछ जानते हैं. इसलिए बेवजह किसी सीन के कई टेक भी नहीं लेते थे. बौलीवुड के निर्देशक एक ही सीन को कई एंगल से फिल्माते हैं. उन्होंने ऐसा नहीं किया. उनकी योजना काफी सही रही. पूरी फिल्म 63 दिन में फिल्मायी गयी.’’
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आपने कई बार दखा होगा कि कुछ लोग अपने फोन पर किसी भी ऐप या दूसरी मीडिया फाइल को हाईड कर देते हैं. दरअसल गूगल प्ले स्टोर पर कई ऐप्स मौजूद हैं, जिनकी मदद से आप अपने फोन के ऐप्स, फोल्डर्स के साथ-साथ फोटोज और वीडियोज को भी हाईड कर सकते हैं. लेकिन उस हाईड किये गए ऐप को कोई और नहीं देख सकता. उसे केवल वहीं देख सकता है जिसने उसे हाईड कर रखा है.
लेकिन इस खबर को पढ़ने के बाद आप किसी भी स्मार्टफोन में हाईड किये गए ऐप और फोल्डर को देख सकते हैं. जी हां, आज हम आपके लिए एक ऐसा तरीके लेकर आएं हैं जिसकी मदद से आप किसी के भी मोबाइल में जाकर हाईड ऐप्स या फोल्डर को आसानी से देख सकेंगे. इसके लिए आपको ना ही अलग से कुछ खास करने की जरूरत है और ना ही अलग से कोई ऐप डाउनलोड करने की आवश्यकता.
स्टेप 1: हाईड ऐप्स या फोल्डर का पता लगाने के लिए सबसे पहले आप अपने फोन की सेटिंग्स में जाइये.
स्टेप 2: यहां आपको कई सारे विकल्प दिखेंगे. इनमें आपको Apps का विकल्प भी दिखाई देगा, इसपर टैप करें.
स्टेप 3: Apps पर टैप करने के बाद एक पेज खुलेगा. यहां आपको फोन के सारे ऐप्स दिखाई देंगे. इन ऐप्स में से उन ऐप्स को खोजिए जो मोबाइल के ऐप्स या फोल्डर को हाईड करते हैं. फिर उस ऐप पर टैप करें.
स्टेप 4: यहां आपको Force Stop का विकल्प दिखाई देगा इस पर टैप करें.
स्टेप 5: आपका स्मार्टफोन एक बार फिर से आपसे पूछेगा कि ऐप को Force Stop करना है या नहीं. OK पर टैप कर दें.
इसके बाद ऐप काम करना बंद कर देगा और फोन के सारे हाईड किए हुए ऐप्स दिखने लगेंगे. ऐसे ही सारे हाईड की हुई फोटोज, वीडियोज और फोल्डर्स को आप आसानी से देख सकते हैं वो भी बिना किसी परेशानी के.
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सीरिया में चल रहे तनाव से पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. रोजाना तय होने वाले रेट का बोझ तो पहले ही आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है. लेकिन, अब वैश्विक स्तर पर गहराते संकट से इसमें और तेजी आने की उम्मीद है. सीरिया हमले के बाद रूस और अमेरिका में भी तनातनी है. तनाव इतना बढ़ चुका है कि कुछ जानकारों को तीसरे विश्व युद्ध की आहट नजर आने लगी है. दुनियाभर के शेयर बाजारों में गिरावट देखने को मिली है. सीरिया पर अमेरिकी मिसाइलों के बरसने का असर आपकी जेब पर भी पड़ सकता है. वजह है अचानक कच्चे तेल की कीमतों में उछाल. यदि यह दौर जारी रहा तो भारत में भी पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढ़ सकती हैं.
80 डौलर के पार जा सकता है क्रूड
दरअसल, क्रूड औयल के दाम पहले ही तीन साल से ज्यादा की ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं. ऐसे में सीरिया संकट और ईरान पर नए प्रतिबंध की तैयारी से भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम पर असर पड़ना तय है. रिसर्च फर्म जेपी मौर्गन के मुताबिक, ब्रेंट क्रौड के दाम 80 डौलर प्रति बैरल के पार जा सकते हैं. फिलहाल, ब्रेंट क्रूड का दाम 71.85 डौलर प्रति बैरल है.
क्या जताई गई है आशंका
जेपी मौर्गन के मुताबिक अमेरिका के सीरिया पर हमले के कारण मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया है. साथ ही ईरान पर भी अमेरिका नए प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है. ऐसे में क्रूड औयल की कीमतों में बढ़ा उछाल देखने को मिल सकता है. अगर कच्चे तेल की कीमतें 80 डौलर तक पहुंचती हैं तो जाहिर तौर पर भारत में इसका असर पेट्रोल-डीजल पर पड़ेगा. फिलहाल, भारत में मुंबई में पेट्रोल के दाम सबसे ज्यादा है. इस वक्त मुंबई में पेट्रोल के दाम 82 रुपए तक पहुंच चुके हैं. अगर क्रूड में तेजी आती है तो यह आंकड़ा 90 के आसपास पहुंच सकता है.
क्यों महंगा होगा पेट्रोल
एक्सपर्ट के मुताबिक, भारतीय तेल कंपनियां ज्यादातर तेल इंपोर्ट करती हैं. साथ ही इसका भुगतान भी अमेरिकी डौलर में होता है. अगर ब्रेंट क्रूड के दाम बढ़ते हैं तो उन्हें भुगतान भी ज्यादा करना होगा. तेल कंपनियों पर बढ़ने वाला बोझ को कंपनिया आगे बढ़ाएंगी. साथ ही रुपए के भाव पर भी इसका सीधा असर देखने को मिलेगा. यही वजह है कि पेट्रोल-डीजल के दाम में तेजी देखने को मिल सकती है.
महंगाई बढ़ने की भी आशंका
डौलर का भाव बढ़ने से रुपया कमजोर होगा. ऐसे में महंगाई बढ़ने का भी खतरा है. रुपया कमजोर होने से सभी तरह के इंपोर्ट महंगे हो जाएंगे. साथ ही कच्चे तेल के लिए भी ज्यादा कीमत चुकानी होगी. इसका सीधा असर सरकार के राजकोषीय घाटे पर भी पड़ेगा. सरकार की उधारी बढ़ेगी और घाटा भी बढ़ता जाएगा. इससे आम आदमी पर भी दोहरी मार पड़ने की आशंका है.
सीरिया पर हमले से कच्चे तेल में आग
अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त रूप से सीरिया के ठिकानों पर मिसाइल हमला किया था. इस हमले के बाद से मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा है. कच्चे तेल के दाम पर इसका असर देखने को मिला. पिछले हफ्ते ब्रेंट क्रूड की कीमत 8.6 फीसदी बढ़कर नवंबर 2014 के बाद से सबसे ज्यादा के स्तर पर पहुंच गई.
तनाव बढ़ा तो कीमतें बढ़ना तय
जेपी मौर्गन के मुताबिक, सीरिया ग्लोबल पेट्रोलियम सप्लाई का केवल 0.04 फीसदी ही उत्पादन करता है, जो कि क्यूबा, न्यूजीलैंड और पाकिस्तान से भी कम है, लेकिन इसके पड़ोस में मौजूद कई देश बड़े तेल उत्पादक हैं. सीरिया की सीमा ईराक से मिलती है, जो OPEC (और्गनाइज़ेशन औफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) का दूसरा सबसे बड़ा मेंबर है. इसके तुरंत बाद सऊदी अरब और ईरान जैसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं. अगर तनाव बढ़ेगा तो तेल की कीमतों पर भी बुरा असर पड़ेगा.
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बौलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर पिछले कुछ दिनों से अपनी शादी की खबरों को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं. मुंबई में होने जा रही इस शादी की फाइनल डेट सामने आ गई है. जिसके बाद से सोनम और आनंद की शादी की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं.
सोनम कपूर के पारिवारिक सूत्रों की माने तो इस माह के अंत में सोनम कपूर अपने प्रेमी आनंद आहुजा के संग मुंबई में ही शादी के बंधन में बंध जाएंगी. इन दिनों अनिल कपूर के बंगले पर सोनम कपूर के पूरे परिवार के साथ साथ आनंद आहुजा व नृत्य निर्देशक फरहा खान नजर आ रही हैं.
सूत्र बता रहे हैं कि सोनम कपूर और आनंद आहुजा की शादी से पहले की संगीत सेरेमनी का भार फरहा खान के कंधों पर है. इसलिए वह हर दिन अनिल कपूर के बंगले पर पहुंचकर संगीत सेरेमनी के दिन के लिए सोनम कपूर व आनंद आहुजा को नृत्य की ट्रेनिंग देने के साथ साथ रिहर्सल कराती रहती हैं. खबरों के मुताबिक इस सेरेमनी में पापा अनिल कपूर पत्नी सुनीता के साथ स्पेशल परफौर्मेंस देंगे.
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देश-विदेश के कई क्रिकेटरों के बेटे अपने पिता के नक्शे-कदमों पर चलते हुए क्रिकेट खेले हैं. भले ही वह अपने पिता जितने सफल नहीं हुए हों, लेकिन उन्होंने क्रिकेट में हाथ जरूर आजमाया है. वर्तमान में देखें तो सचिन तेंदुलकर का बेटा अर्जुन, राहुल द्रविड़ का बेटा समित, स्टीव वा का बेटा औस्टिन वा, मखाया नतिनी का बेटा थांडो नतिनी यह सभी अपने पिता की तरह क्रिकेट की दुनिया में कदम रख चुके हैं, लेकिन ‘स्पिन के किंग’ औस्ट्रेलिया के दिग्गज क्रिकेटर शेन वौर्न का बेटा अपने पिता से अलग है. शेन वौर्न के बेटे जैक्सन वौर्न ने अपने पिता की तरह क्रिकेट को नहीं चुना, बल्कि उनका पैशन कुछ और ही है.
अपनी शानदार स्पिन बौलिंग के साथ-साथ विवादों को लेकर भी सुर्खियों में रहने वाले शेन वौर्न के बेटे ने अपना करियर क्रिकेट को नहीं, बल्कि मौडलिंग को चुना है. शेन वार्न भी अपने बेटे की इस च्वाइस को लेकर काफी खुश हैं और गौरवान्वित भी हैं.
इन दिनों सोशल मीडिया पर शेन वौर्न के बेटे की तस्वीर छाई हुई हैं. खुद शेन वौर्न ने भी एक तस्वीर शेयर कर अपने बेटे की जमकर तारीफ की है. जैक्सन वौर्न की इस तस्वीर को फैन्स काफी पसंद कर रहे हैं.
शेन वौर्न ने अपने औफिशयल इंस्टाग्राम से जैक्सन वौर्न की कुछ तस्वीरें शेयर की हैं. इन तस्वीरों को शेयर करते हुए शेन वौर्न ने जैक्सन से सभी का परिचय करवाया है. जैक्सन की तस्वीर शेयर करते हुए शेन वौर्न ने लिखा है- ‘अपने बेटे जैक्सन वौर्न पर मुझे गर्व है.’
इसी तस्वीर को शेन वौर्न ने टि्वटर पर साझा करते हुए लिखा है- ‘मौडलिंग में हाथ आजमाने पर मुझे अपने बेटे पर बहुत गर्व है. उसने एक फोटोशूट भी किया. उसी में से एक तस्वीर ये रही. क्या आपको लगता है उसके लुक्स पसंद आए.’
शेन वौर्न और जैक्सन की बौन्डिंग भी काफी अच्छी है. जैक्सन ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम पर शेन वौर्न के साथ कई तस्वीरें शेयर की हैं.
बता दें कि पहले सत्र में राजस्थान को खिताबी जीत दिलाने वाले औस्ट्रेलिया के महान स्पिनर शेन वौर्न 10 साल बाद इसी टीम के मेंटर के रूप में इंडियन प्रीमियर लीग में लौटे हैं. शेन वौर्न 2008 में राजस्थान के कप्तान और कोच थे, जब बड़े सितारों के बिना भी टीम ने खिताब जीतकर सभी को चौंका दिया था. राजस्थान की आईपीएल में दो साल के बाद वापसी हुई है.
इस साल की नीलामी में राजस्थान ने दो सबसे महंगे खिलाड़ियों बेन स्टोक्स (12.5 करोड़) और जयदेव उनादकट (11.5 करोड़) को खरीदा. इसके साथ ही राजस्थान रौयल्स ने नीलामी में राइट टू मैच का इस्तेमाल करते हुए अजिंक्य रहाणे (4 करोड़) और धवल कुलकर्णी (75 लाख) को फिर से अपनी टीम में शामिल किया. राजस्थान ने भारतीय खिलाड़ियों में संजू सैमसन (8 करोड़) और विदेशी खिलाड़ियों में जोफ्रा आर्चर को भी 7.2 करोड़ में खरीदा. इसके अलावा अनकैप्ड खिलाड़ियों में कृष्णप्पा गौतम (6.2 करोड़) में खरीदा.
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित कर केंद्र को मंजूरी के लिए भेजा है. इस पर हिंदू समाज के भीतर तो कोई हलचल नहीं हुई पर राजनीतिक दलों, खासतौर से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, में घमासान शुरू हो गया. भाजपा और संघ का कहना है कि कांग्रेस हिंदू समाज का विभाजन कर रही है, जबकि कांग्रेस भाजपा व संघ पर लोगों को बांटने का आरोप लगा रही है.
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, इसलिए लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव विशुद्ध राजनीतिक मुद्दा है. दोनों ही दलों के नेता कर्नाटक के दौरे में लिंगायत समुदाय के धर्मगुरुओं से जा कर मिल रहे हैं, उन के चरणों में लोट रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तुमकुर में लिंगायतों के सब से बड़े मठ सिद्धगंगा गए और धर्मगुरु श्रीश्री शिवकुमार स्वामी को दंडवत प्रणाम कर आशीर्वाद मांगा. इस के बाद वे शिवमोगा के बेक्कीनक्कल मठ भी गए.
उधर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब तक 5 बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं. वे गुजरात विधानसभा चुनावों के मंदिर परिक्रमा अभियान की तरह यहां अब तक 15 मंदिरों में दर्शन कर चुके हैं. उन्होंने अपने दौरे की शुरुआत लिंगायत मंदिर हुलीगेमा से की थी. मंदिरमठों में जाते समय राहुल गांधी बाकायदा लिंगायत साधुओं जैसे वस्त्र पहने नजर आते हैं.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया लिंगायतों को चुनावी मुद्दा बना रहे हैं. ऐन चुनाव के समय लिंगायतों को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव भाजपा के लिए परेशानी का सबब है. राज्य में 17 प्रतिशत लिंगायत मतदाता हैं. यह भाजपा का परंपरागत वोट माना जाता रहा है. राज्य के पूर्र्व मुख्यमंत्री और इस बार मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार वी एस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं. राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 100 सीटों पर लिंगायत मतदाताओं का प्रभाव है और वर्तमान में 55 विधायक इसी समुदाय से हैं.
भाजपा का दावा है कि वह देश में विकास के बल पर राज्यदरराज्य विजय हासिल करती जा रही है. ऐसे में अगर भाजपा को अपने विकास पर भरोसा है तो उसे डर किस बात का है. उसे धर्मगुरुओं की शरण में जाने की क्या जरूरत है.
असल में कांग्रेस और भाजपा दोनों का धार्मिक एजेंडा एक ही है. दोनों के मुंह धर्म का खून लग चुका है. दोनों ही धर्म को भुना कर सत्ता का मजा चखती आई हैं. भाजपा को दिक्कत यह है कि वह समझती है (और असल में है भी) कि हिंंदुत्व की अधिकृत ठेकेदार तो वह ही है. धर्म के नाम पर घृणा, बैर, कलह, मारकाट और समाज को बांटने का जो काम उसे करना चाहिए वह कांग्रेस क्यों कर रही है, उन कामों में कांग्रेस क्यों टांग फंसा रही है. समाज को जाति, धर्म, वर्ग, गोत्र, उपगोत्र में विभाजित करने की मूल मिलकीयत भाजपा की है.
सेंध लगाती कांग्रेस
कांग्रेस पिछले दिनों गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे में सेंधमारी कर उसे छका चुकी है. राहुल गांधी गुजरात के मंदिरों, मठों में चक्कर लगाते दिखते थे. खुद को जनेऊधारी हिंदू और शिवभक्त प्रचारित करते घूम रहे थे. अब वही फार्मूला कर्नाटक में आजमाना शुरू कर दिया गया है. भाजपा को यह बुरी तरह अखर रहा है.
हिंदू समाज पहले ही पिछले 3 हजार वर्षों से विभाजित है. यह विभिन्न जातियों, वर्गों, पंथों और संप्रदायों में बंटा हुआ है. हिंदू समाज जातियों का एक ढेर है. समयसमय पर हिंदू समाज में सुधार के लिए नेता आगे आए और फिर कुछ समय बाद उन का अपना एक अलग पंथ बन गया. ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, शैव, वैष्णव संप्रदाय, शाक्त, वल्लभ संप्रदाय, राम स्नेही, नाथ संप्रदाय, राधास्वामी, आनंदपुर, स्वामिनारायण, स्थानकवासी, कबीरपंथी, दादूपंथी, नामधारी, ब्रह्मकुमारी, निरंकारी, जयगुरुदेव, विश्नोई, अंबेडकरवादी जैसे सैकड़ों मत, पंथ और संप्रदाय समाज में अज्ञानता व द्वेष का बीज बो रहे हैं.
इन के अलावा पहले से सुधारक पंथ बने, बाद में धर्म बन गए व अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त जैन, बौद्ध, सिख धर्मों मे भी अलगअलग पंथ बन गए. जैनियों में श्वेतांबर और दिगंबर, बौद्धों में हीनयान और महायान, सिख धर्म में जटसिख और रविदासीय. इन के बीच एका नहीं है. आपस में अनबन, कलह चलती आईर् है. एक गुरु या देवता को मानते हुए भी आपस में बैर ही नहीं रहा, कट्टर दुश्मनी भी पनपती रही है.
धर्म एक मत अनेक
भारत के बाहर से आए दूसरे धर्मों में भी अलगअलग मत बने हुए हैं. इसलाम में शिया और सुन्नी, ईसाइयों में कैथोेलिक और प्रोटेस्टैंट. भारत के हिंदू धर्म में तो जो भी गुरु आया उस ने अपनी अलग दुकान खोल ली, अलग ग्राहक बना लिए, उन्हें अलग पहचान चिह्न दे दिए और अपनेअपने अनुयायियों को दूसरों से अलग रहने का आदेश दे दिया.
भारत का एक विशाल समूह स्वयं को किसी न किसी धर्म से संबंधित अवश्य बताता है. शैव समाज की स्थापना बासवन्ना ने 12वीं शताब्दी में की थी. इसी मत के उपासक लिंगायत कहलाते हैं. बासवन्ना के अनुयायियों में अधिकतर दलित थे. हिंदू धर्म की भेदभाव वाली व्यवस्था के बीच उन्होंने समाज सुधार शुरू किया. उन्होंने जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा. वेदों को खारिज किया और मूर्तिपूजा का विरोध किया.
लिंगायत को अलग धर्म घोषित करने की मांग हमेशा से की जाती रही है. इस समुदाय के 2 वर्ग हैं. लिंगायत और वीरशैव. लिंगायत दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश की हिंदू धर्म की चातुर्वर्ण्य व्यवस्था की सताई निचली जातियां हैं जिन के साथ सदियों से छुआछूत, भेदभाव होता आया है. वे अब वेदों में विश्वास नहीं करते और हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार अपना जीवन नहीं जीते. इस के उलट, वीरशैव लिंगभाव वेदों में विश्वास करते हैं. वे चातुर्वर्ण्य व्यवस्था को भी मानते हैं और सभी परंपराओं व मान्यताओं का दृढ़ता से पालन करते हैं जो ब्राह्मण कहते या करते हैं?.
आम मान्यता है कि लिंगायत और वीरशैव एक ही हैं पर कहा गया है कि एक हैं नहीं. वीरशैव लोगों का अस्तित्व बासवन्ना के आने से पहले था और वे शिव की पूजा करते हैं. उधर, लिंगायत समुदाय का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते, लेकिन अपने शरीर पर ईष्टलिंग धारण करते हैं. ईष्टलिंग एक गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर से बांधते हैं.
हिंदू धर्म से जितने भी अलग पंथ, संप्रदाय बने हैं वे इस के भीतर की जातिगत भेदभाव, छुआछूत, ऊंचनीच जैसी बुराइयों को खत्म करने के नाम ले कर बने पर बाद में इन पंथों ने भी उसी तरह की बुराइयां अपना लीं. हर पंथ अपने अनुयायियों के लिए आचारसंहिता बनाता है और जोर दिया जाता है कि वे अपनी जीवन पद्धति को उस के बताए अनुसार चलाएं. हर पंथ में किसी न किसी तरह की जाति व्यवस्था पिछले दरवाजे से कहीं न कहीं आ बैठी है.
गैरबराबरी का पेंच
समाज में विभाजन के भेदभाव के चलते एकता बाधित रही है. हिंदू वर्णव्यवस्था के प्रति बढ़ते आक्रोश के कारण हाल के दशकों में हजारों दलित, अछूत बौद्ध और ईसाई धर्म की शरण में चले गए. इस की प्रतिक्रियास्वरूप भाजपा द्वारा शासित कई राज्यों द्वारा कानून बना कर इसलाम या ईसाई धर्म में धर्मपरिवर्तन करना मुश्किल बना दिया गया पर हिंदू धर्म में बराबरी पर ध्यान नहीं दिया गया. भेदभाव वाली व्यवस्था को अब भी जायज ठहराने की कोशिश की जाती है.
बासवन्ना जैसे समाजसुधारकों का उद्देश्य विभिन्न जातियों, वर्गों में बंटे समाज को भेदभाव से मुक्त कर समानता, एकता के सूत्र में बांधना था, पर राजनीतिक दल और धर्म के कारोबारी अपने स्वार्थों के लिए समाज को विभाजित कर फायदा उठा रहे हैं.
1980 के दशक में लिंगायतों ने कर्नाटक में ब्राह्मण रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया था. जब लोगों को लगा कि जनता दल स्थायी सरकार देने में विफल है तो उन्होंने कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल का समर्थन किया. 1989 में कांग्रेस की सरकार बनी और पाटिल मुख्यमंत्री चुने गए पर विवाद के चलते राजीव गांधी ने पाटिल को एयरपोर्ट पर ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था. इस के बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया और फिर से हेगड़े का समर्थन किया.
हेगड़े की मृत्यु के बाद लिंगायतों ने भाजपा के बी एस येदियुरप्पा को अपना नेता माना और 2008 में येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बने पर कुछ समय बाद उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पद से हटाया गया तो 2013 के चुनाव में लोगों ने भाजपा से मुंह मोड़ लिया.
अब विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा को एक बार फिर से भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की वजह है कि लिंगायत समाज में उन का मजबूत जनाधार है. कांग्रेस द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दे कर येदियुरप्पा के जनाधार को कमजोर करने की ही बड़ी कोशिश मानी जा रही है.
हिंदू समाज ने अपने धर्म के विभाजन से निकले बुरे नतीजों से कोई सबक नहीं सीखा. वह टुकड़ोंटुकड़ों में बंटता जा रहा है. जितना विभाजन बढ़ रहा है उतनी ही नफरत, संघर्ष और हिंसा बढ़ रही है.
हिंदू धर्म हजारों समाजों, पंथों, संप्रदायों और विचारधाराओं का कूड़ाघर है. इस के कमजोर बौद्धिक आधार वाले भारतीय समाज की प्रकृति मूर्खता से सराबोर यों ही नहीं है जिसे आसानी से किसी भी दिशा में हांका जा सकता है.
नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, म्यांमार, पाकिस्तान, बंगलादेश, मलयेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया के राजा अलगअलग थे, पर फिर भी मिथक रहा है कि यह अखंड भारतवर्ष था, वह टुकड़ेटुकड़े क्यों हुआ? वहां अब केवल अवशेष बचे हैं. 1947 में राजनीतिक कारणों से एक बड़ा भाग भारत बना और एक ही केंद्र के अंतर्गत है पर क्या यह आज भी एक ही समाज के लोगों का देश है?
विभाजन और हिंसा
एक ही धर्म में होने के बावजूद बराबरी न होना, समाज का अलगअलग विभाजन और इस विभाजन के कारण जंबूद्वीपे भारत का इतिहास विभाजनों के खून से सना हुआ है. मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे. आर्यअनार्य के युद्ध, ब्राह्मणबौद्धों का संघर्ष इतिहास में दर्ज है. लिखित इतिहास के उदाहरणों में से 1310 महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और वैष्णवों के बीच हुए खूनी संघर्ष में सैकड़ों जानें गईं. 1760 में शैव संन्यासियों और वैष्णव बैरागियों के बीच लड़ाई में सैकड़ों लोग मारे गए.
1984 सिख विरोधी दंगे इसी विभाजन से उपजी घृणा का परिणाम था. उस से पहले पंजाब में हिंदुओं की हत्याएं हुईं. सिखों में स्वयं आपसी ऊंचनीच के भेद पर दंगे, हिंसा आम हैं. देशभर में आएदिन दलितों के खिलाफ हिंसा जारी है.
यूरोपीय समाज ने अपने धर्म में फैलते पाखंड से सीख ली. वहां मध्यकाल में पुनर्जागरण आंदोलन शुरू हुआ. 14वीं से ले कर 17वीं शताब्दी तक आंदोलन चला. इस आंदोलन में ज्ञानार्जन ने जोर पकड़ा. शिक्षा में सर्वव्यापी सुधार हुआ. तकनीक का विकास हुआ और लोगों में दुनिया को समझने में आमूल परिवर्तन आया.
असल में जितने धर्म, पंथ, संप्रदाय होंगे उतनी ही संकीर्णता बढे़गी. कहने को हर धर्म कहता है कि वह प्रेम, सहिष्णुता, शांति और एकता का पाठ सिखाता है पर पंथों ने उसे बांट दिया. पंथ एक संकीर्ण विचारधारा है जिस ने सिर्फ बांटने का काम किया है. और धर्म तो एक गांव को भी एक शामियाने के नीचे नहीं ला पाता, देश तो बहुत दूर की बात है.
स्वार्थी व पाखंडी लोग अलग पंथ का निर्माण कर लेते हैं. किसी वाकपटु प्रचारक के उपदेशों के नाम पर ढेर सारी आचारसंहिताएं, नियम, आचरण संबंधी लंबी फेहरिस्त बना कर समाज पर थोप दी जाती है. उस के नाम पंथ बन जाता है और फिर पंथ के नाम पर अलग किताबें बनेंगी, नियम बनेंगे, मूर्तियां बनेंगी, ध्वजा बनेंगी. फिर अपनेअपने पंथ का प्रचार किया जाने लगेगा. अनुयायी बनाने की होड़ लगेगी, इस से पंथों के बीच स्पर्धा, ईर्ष्या उपजेगी. और आपस में झगड़े होने लगेंगे.
हर पंथ कहता है मेरा पंथ बड़ा है, सच्चा है, असली है. मेरी ध्वजा ऊंची है. इस तरह पंथ और उस के अनुयायी दूसरे पंथों और उन के अनुयायियों से अलग हो जाते हैं. बंटवारे से अपनापन भूल कर नफरत का मिजाज बन जाता है. आपस में आस्था और विचारधाराओं का बंटवारा हो जाता है पर, दरअसल, यह मानवता का बंटवारा होता है. शांति, प्रेम, एकता खत्म हो जाती है. पंथ कई बार धर्म बन जाता है, दूसरों के खून का प्यासा.
अंधविश्वासी भीड़
चतुर, पाखंडी लोगों द्वारा गुरु बन कर अंधविश्वासी जनता को अपना अनुयायी बना कर नया मत पेश कर चलाना व्यवसाय हो गया है. हिंदू समाज खुद ही टुकड़ों में बंट कर अपनी अलग पहचान बनाए रखना चाहता है. वह बराबरी की बात तो करता है पर जब फायदे की बात आती है जो स्वयं को धर्म, जाति, वर्ग, गोत्र, उपगोत्र से मुक्त नहीं कर पाता. इसी का फायदा धर्मगुरु उठा रहे हैं और अपने स्वार्थ के लिए उसे बांट रहे हैं. पंथों ने जनता की उत्पादक सोच को कुंद कर दिया है. क्या यह वजह नहीं है कि पिछले दशकों में देश में कोई नया उद्योग नहीं आया, सिर्फ धंधे आए हैं.
जो भी व्यक्ति जिस भी देवता, अवतार, गुरु, संत, नेता को पूज रहा है वह देश के टुकड़े कर रहा है. ये जितने पंथ, संप्रदाय बने हुए हैं या बन रहे हैं वे समाज के भले के लिए नहीं बन रहे. कोई भी पंथ समाज के भले के लिए कुछ नहीं कर रहा है. अगर सुधार के लिए बने हैं तो समाज में सुधार दिखता क्यों नहीं.
अनगिनत पंथों, संप्रदायों के चलते चोरी, बेईमानी, अकर्मण्यता, अंधविश्वास, आडंबर, पाखंड कम नहीं हुआ. समाज में प्रेम, शांति कायम नहीं हुई है. इस के उलट, समाज, परिवार में कलह, अशांति बढ़ती जा रही है. पंथों, संप्रदायों की सत्ता में भ्रष्टाचार, ऐयाशी की गंगा मुहाने तोड़ रही है. आएदिन पंथों के गुरु बलात्कार, छेड़खानी के मामलों में जेल जा रहे हैं.
यह सब खंडखंड बंटते समाज के कारण है. यह भारतीय समाज के लिए एक चुना हुआ आत्मघात है. राजनीतिक दलों और धर्म के धंधेबाजों को हिंदुओं को बांट कर रखने में ही भलाई नजर आती है. कठिनाई यह है कि शिक्षित समाज भी कर्मठता से ज्यादा धर्मस्थलों की चिंता कर रहा है. कारखानों और प्रयोगशालाओं की जगह सदियों पुराने रीतिरिवाजों का मूर्खतापूर्ण पालन कर नए भारत की कल्पना की जा रही है. यह कमजोर नींव पर न होगा.
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नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.
3 वर्षों पहले ही तो मैं साकेत के साथ शिमला आई थी. तब इस गाड़ी में बैठ कर शिमला पहुंचने तक की बात ही कुछ और थी. जीवन की नई डगर पर अपने मनचाहे मीत के साथ ऐसी सुखद यात्रा का आनंद ही और था.
पहाडि़यां काट कर बनाई गई सुरंगों के अंदर से जब गाड़ी निकलती थी तब कितना मजा आता था. पर अब ये अंधेरी सुरंगें लड़कियों की चीखों से गूंज रही हैं और मैं अपने जीवन की काली व अंधेरी सुरंग से निकल कर जल्द से जल्द रोशनी तलाश करने को बेताब हूं. मेरा जीवन भी तो इन सुरंगों जैसा ही है- काला और अंधकारमय.
तभी किसी लड़की ने पहाड़ी के ऊपर उगे कैक्टस को छूना चाहा तो उस की चीख निकल गई. साथ आई हुई एनसीसी टीचर निर्मला उसे फटकारने लगीं तो मैं अपने वर्तमान में लौटने का प्रयत्न करने लगी.
तभी सूरज बादलों में छिप गया और हरीभरी खाइयां व पहाड़ और भी सुंदर दिखने लगे. सुहाना मौसम लड़कियों का मन जरूर मोह रहा होगा पर मुझे तो एक तीखी चुभन ही दे रहा था क्योंकि इस मौसम को देख कर साकेत के साथ बिताए हुए लमहे मुझे रहरह कर याद आ रहे थे. सोलन तक पहुंचतेपहुंचते लड़कियां हर स्टेशन पर सामान लेले कर खातीपीती रहीं, लेकिन मुझे मानो भूख ही नहीं थी. निर्मला के बारबार टोकने के बावजूद मैं अपने में ही खोई हुई थी उन 20 दिनों की याद में जो मैं ने विवाहित रह कर साकेत के साथ गुजारे थे.
तारा के बाद 103 नंबर की सुरंग पार कर रुकतीचलती हमारी गाड़ी ने शिमला के स्टेशन पर रुक कर सांस ली तो एक बार मैं फिर सिहर उठी. वही स्टेशन था, वही ऊंचीऊंची पहाडि़यां, वही गहरी घाटियां. बस, एक साकेत ही तो नहीं था. बाकी सबकुछ वैसा का वैसा था.
लड़कियों को साथ ले कर शिमला आने का मेरा बिलकुल मन नहीं था, लेकिन प्रिंसिपल ने कहा था, ‘एनसीसी की अध्यापिका के साथ एक अन्य अध्यापिका का होना बहुत जरूरी है. अन्य सभी अध्यापिकाओं की अपनीअपनी घरेलू समस्याएं हैं और तुम उन सब से मुक्त हो, इसलिए तुम्हीं चली जाओ.’
और मुझे निर्मला के साथ लड़कियों के एनसीसी कैंप में भाग लेने के लिए आना पड़ा. पिं्रसिपल बेचारी को क्या पता कि मेरी घरेलू समस्याएं अन्य अध्यापिकाओं से अधिक गूढ़ और गहरी हैं पर खैर… लड़कियां पूर्व निश्चित स्थान पर पहुंच कर टैंट में अपनेअपने बिस्तर बिछा रही थीं. मैं ने और निर्मला ने भी दूसरे टैंट में अपने बिस्तर बिछा लिए. खानेपीने के बाद मैं बिस्तर पर जा लेटी.
थकान न तो लड़कियों को महसूस हो रही थी और न निर्मला को. वह उन सब को ले कर आसपास की सैर को निकल गई तो मैं अधलेटी सी हो कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी.
यद्यपि हम लोग शिमला के बिलकुल बीच में नहीं ठहरे थे और हमारा कैंप भी शिमला की भीड़भाड़ से काफी दूर था फिर भी यहां आ कर मैं एक अव्यक्त बेचैनी महसूस कर रही थी.
मेरा किसी काम को करने का मन नहीं कर रहा था. मैं सिर्फ पत्रिका के पन्ने पलट रही थी, उस में लिखे अक्षर मुझे धुंधले से लग रहे थे. पता नहीं कब उन धुंधले हो रहे अक्षरों में कुछ सजीव आकृतियां आ बैठीं और इस के साथ ही मैं तेजी से अपने जीवन के पन्नों को भी पलटने लगी…
वह दिन कितना गहमागहमी से भरा था. मेरी बड़ी बहन की सगाई होने वाली थी. मेरे होने वाले जीजाजी आज उस को अंगूठी पहनाने वाले थे. सभी तरफ एक उल्लास सा छाया हुआ था. पापा अतिथियों के स्वागतसत्कार के इंतजाम में बेहद व्यस्त थे.
सब अपेक्षित अतिथि आए. उस में मेरे जीजाजी के एक दोस्त भी थे. जीजाजी ने दीदी के हाथ में अंगूठी पहना दी, उस के बाद खानेपीने का दौर चलता रहा. लेकिन एक बात पर मैं ने ध्यान दिया कि जीजाजी के उस
दोस्त की निगाहें लगातार मुझ पर ही टिकी रहीं. यदि कोई और होता तो इस हरकत को अशोभनीय कहता, किंतु पता नहीं क्यों उन महाशय की निगाहें मुझे बुरी नहीं लगीं और मुझ में एक अजीब सी मीठी सिहरन भरने लगी. बातचीत में पता चला कि उन का नाम साकेत है और उन का स्वयं का व्यापार है.
सगाई के बाद पिक्चर देखने का कार्यक्रम बना. जीजाजी, दीदी, साकेत और मैं सभी इकट्ठे पिक्चर देखने गए. साकेत ने बातोंबातों में बताया, ‘तुम्हारे जीजाजी हमारे शहर में 5 वर्षों पहले आए थे. हम दोनों का घर पासपास था, इसलिए आपस में कभीकभार बातचीत हो जाती थी पर जब उन का तबादला मेरठ हो गया तो हम लोगों की बिलकुल मुलाकात न हो पाई.
‘मैं अपने काम से कल मेरठ आया था तो ये अचानक मिल गए और जबरदस्ती यहां घसीट लाए. कहो, है न इत्तफाक? न मैं मेरठ आता, न यहां आता और न आप लोगों से मुलाकात होती,’ कह कर साकेत ठठा कर हंस दिए तो मैं गुदगुदा उठी.
सगाई के दूसरे दिन शाम को सब लोग चले गए, लेकिन पता नहीं साकेत मुझ पर कैसी छाप छोड़ गए कि मैं दीवानी सी हो उठी.
घर में दीदी की शादी की तैयारियां हो रही थीं पर मैं अपने में ही खोई हुई थी. एक महीने बाद ही दीदी की शादी हो गई पर बरात में साकेत नहीं आए. मैं ने बातोंबातों में जीजाजी से साकेत का मोबाइल नंबर ले लिया और शादी की धूमधाम से फुरसत पाते ही मैसेज किया.
साकेत का रिप्लाई आ गया. व्यापार की व्यस्तता की बात कह कर उन्होंने माफी मांगी थी. और उस के बाद हम दोनों में मैसेज का सिलसिला चलता रहा. मैं तब बीएड कर चुकी थी और कहीं नौकरी की तलाश में थी, क्योंकि पापा आगे पढ़ाने को राजी नहीं थे. मैसेज के रूप में खाली वक्त गुजारने का बड़ा ही मोहक तरीका मुझे मिल गया था.
साकेत के प्रणयनिवेदन शुरू हो गए थे और मैं भी चाहती थी कि हमारा विवाह हो जाए पर मम्मीपापा से खुद यह बात कहने में शर्म आती थी. तभी अचानक एक दिन साकेत का मैसेज मेरे मोबाइल पर मेरी अनुपस्थिति में आ गया. मैं मोबाइल घर पर छोड़ मार्केट चली गई, पापा ने मैसेज पढ़ लिया.
मेरे लौटने पर घर का नकशा ही बदला हुआ सा लगा. मम्मीपापा दोनों ही बहुत गुस्से में थे और मेरी इस हरकत की सफाई मांग रहे थे.
लेकिन मैं ने भी उचित अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और अपने दिल की बात पापा को बता दी. पहले तो पापा भुनभुनाते रहे, फिर बोले, ‘उस से कहो कि अगले इतवार को हम से आ कर मिले.’
और जब साकेत अगले इतवार को आए तो पापा ने न जाने क्यों उन्हें जल्दी ही पसंद कर लिया. शायद बदनामी फैलने से पहले ही वे मेरा विवाह कर देना चाहते थे. जब साकेत भी विवाह के लिए राजी हो गए तो पापा ने उसी दिन मिठाई का डब्बा और कुछ रुपए दे कर हमारी बात पक्की कर दी. साकेत इस सारी कार्यवाही में पता नहीं क्यों बहुत चुप से रहे, जाते समय बोले, ‘अब शादी अगले महीने ही तय कर दीजिए. और हां, बरात में हम ज्यादा लोग लाने के हक में नहीं हैं, सिर्फ 5 जने आएंगे. आप किसी तकल्लुफ और फिक्र में न पड़ें.’
और 1 महीने बाद ही मेरी शादी साकेत से हो गई. सिर्फ 5 लोगों का बरात में आना हम सब के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श था.
किंतु शादी के बाद जब मैं ससुराल पहुंची तो मुंहदिखाई के वक्त एक उड़ता सा व्यंग्य मेरे कानों में पड़ा, ‘भई, समय हो तो साकेत जैसा, पहली भी कम न थी लेकिन यह तो बहुत ही सुंदर मिली है.’
मुझे समझ नहीं आया कि इस का मतलब क्या है? जल्दी ही सास ने आनेजाने वालों को विदा किया तो मैं उलझन में डूबनेउतरने लगी.
कहीं ऐसा तो नहीं कि साकेत ने पहले कोई लड़की पसंद कर के उस से सगाई कर ली हो और फिर तोड़ दी हो या फिर प्यार किसी से किया हो और शादी मुझ से कर ली हो? आखिर हम ने साकेत के बारे में ज्यादा जांचपड़ताल की ही कहां है. जीजाजी भी उस के काफी वक्त बाद मिले थे. कहीं तो कुछ गड़बड़ है. मुझे पता लगाना ही पड़ेगा.
VIDEO : मैटेलिक कलर स्मोकी आईज मेकअप
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