दिनरात का हंगामा शादी की सुलह क्या है
लिवइन में चलो जानम मस्ती की फतह क्या है
आजाद रहें हमतुम खुशरंग रहें हमतुम
लिवइन में रहें हमतुम शादी की गिरह क्या है
होते हैं पुरुष रुखसत जब यूज और थ्रो कर के
गिनते नहीं शौहर हम मजहब की जरूरत क्या है
बच्चे भी वही पाले बिस्तर भी वो गरमाए
मरना ही है औरत को उस का हक क्या है
मैं तेरी नई बीवी तू मेरा चौथा शौहर
चल खेलते हैं रिश्ते रोने की वजह क्या है
ये गेंद है लिवइन की इकदूजे पे फेंकें हम
उछले तो मजा आए रिश्तों की सतह क्या है
अब हम पे लिवइन का ठप्पा है अदालत का
औरत की रिहाई की आजाद सुबह क्या है
जज्बात के साए हैं क्या मेल, जुदाई क्या
सायों को जकड़ने का हासिल है विरह क्या है.
– राम मेश्राम
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