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मां के लिए बेटियां बनी अपराधी : हैरान कर देने वाली है ये कहानी

‘अम्मा, यह बेटा है या बेटी?’’ एक युवती ने समीना से पूछा. अस्पताल के वार्ड में एक स्टूल पर बैठी समीना ने कहा, ‘‘अरी लाली, यह मेरा पोता है. आज सुबह ही पैदा हुआ है.’’

‘‘अम्मा, पोता होने से तेरी तो मौज हो गई,’’ उस युवती ने समीना को बातें में लगाते हुए कहा.

‘‘हां लाली, सब अल्लाह की मेहर है,’’ समीना आसमान की ओर हाथ उठा कर बोली.

‘‘अम्मा, तेरा पोता बड़ा खूबसूरत और गोलमटोल है,’’ युवती ने नवजात बच्चे को दुलारते हुए कहा, ‘‘अम्मा, तू कहे तो मैं इसे गोद में ले कर खिला लूं.’’

‘‘ले तेरा मन बालक को गोद में खिलाने की है तो खिला ले.’’ समीना ने अपने पोते को युवती की गोद में देते हुए कहा.

युवती नवजात को गोद में ले कर दुलारने, प्यार करने लगी. उसे अपने पोते पर इतना प्यार बरसाते देख कर समीना ने पूछा, ‘‘लाली, तू यहां क्या कर रही है?’’

‘‘अम्मा, मेरी चाची के औपरेशन से बच्चा हुआ है. वह इसी अस्पताल के बच्चा वार्ड में मशीन में रखा है.’’ युवती ने समीना को बताया, ‘‘मैं तो चाची की मदद के लिए आई थी, लेकिन बालक मशीन में रखा है, इसलिए इधर आ गई. मुझे बच्चा खिलाना अच्छा लगता है.’’

समीना ने उस युवती को आशीर्वाद दिया.

यह बीती 10 जनवरी की बात है. भरतपुर जिले की पहाड़ी तहसील के हैवतका गांव के निवासी तारीफ की पत्नी मनीषा ने तड़के 4 बज कर 20 मिनट पर पहाड़ी के राजकीय अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था. प्रसव के दौरान मनीषा को चूंकि अधिक रक्तस्राव हुआ था और वह एनीमिक भी थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे जिला मुख्यालय भरतपुर के जनाना अस्पताल रेफर कर दिया था.

मनीषा के परिवार वाले उसे पहाड़ी से भरतपुर के राजकीय जनाना अस्पताल ले आए. भरतपुर, राजस्थान का संभाग मुख्यालय है. वहां अच्छी चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं.

मनीषा दोपहर करीब 12 बज कर 28 मिनट पर अस्पताल पहुंची. कागजी खानापूर्ति के बाद उसे 12 बज कर 50 मिनट पर अस्पताल के पोस्ट नैटल केयर वार्ड नंबर-1 में बैड नंबर 7 पर भरती कर लिया गया.

अस्पताल में भरती होने पर प्रसूता मनीषा बैड पर लेट गई. मनीषा के साथ उस की सास समीना और समीना की सास जुम्मी सहित गांव के कई पुरुष भी भरतपुर आए थे. मनीषा का पति तारीफ साथ नहीं था. वह ट्रक चलाता था और ट्रक ले कर दिल्ली से मुंबई गया हुआ था. मनीषा की शादी करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. पहली संतान के रूप में उसे बेटा हुआ था.

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मनीषा के नवजात बेटे को समीना गोद में ले कर खिला रही थी, तभी वह युवती वहां आ गई थी. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा लिया. हंसहंस कर बात करते हुए उस ने समीना से उस का पोता अपनी गोद में ले लिया.

वह युवती जब नवजात को गोद में ले कर दुलार रही थी, तभी डाक्टर ने मनीषा को ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई. इस पर मनीषा का जेठ मुफीद और ताया ससुर सद्दीक भरतपुर के ही आरबीएम अस्पताल से ब्लड लेने चले गए. अस्पताल में भरती मनीषा, उस की सास समीना और दादी सास जुम्मी अस्पताल में रह गईं.

उस युवती को अपने पोते के साथ खेलता देख कर समीना ने उस से कहा, ‘‘लाली, हम ने सुबह से चाय तक नहीं पी है. तू हमारी बहू के पास बैठ कर बच्चे को खिला, हम अस्पताल के बाहर कैंटीन पर चायनाश्ता कर आते हैं.’’

इस के लिए वह युवती खुशीखुशी तैयार हो गई. दोपहर करीब 2 बजे युवती को वहां बैठा छोड़ कर समीना और उस की सास जुम्मी चाय पीने अस्पताल के बाहर चली गईं.

समीना और उस की सास के बाहर जाने के बाद उस युवती ने मनीषा से कहा कि तुम्हें शौचालय जाना हो तो मैं ले चलती हूं. मनीषा के हां कहने पर वह युवती उस का हाथ पकड़ कर उसे शौचालय ले गई. मनीषा का बेटा युवती की गोद में ही था. मनीषा शौचालय के अंदर चली गई.

कुछ देर बाद मनीषा शौचालय से बाहर निकली तो वहां वह युवती नहीं थी. मनीषा ने सोचा कि शायद वह बैड पर जा कर बैठ गई होगी.

मनीषा जैसेतैसे सहारा ले कर अपने बैड तक आई, लेकिन वह वहां भी नहीं थी. इस पर मनीषा ने शोर मचाया तो वार्ड में भरती अन्य प्रसूताओं के घर वाले एकत्र हो गए.

उधर अस्पताल के बाहर मनीषा की सास समीना जब चाय पी रही थी तो उस ने उस युवती को बच्चे को कंबल में लपेट कर ले जाते हुए देखा. समीना ने कंबल देख कर युवती को टोका भी लेकिन वह रुकी नहीं.

वह तेज कदमों से चली गई. इस से समीना को संदेह हुआ. वह वार्ड में बहू के पास आई तो वह रो रही थी. मनीषा ने बताया कि जो युवती बच्चे को गोद में ले कर खिला रही थी, वह उसे ले कर भाग गई है.

समीना तुरंत अस्पताल के बाहर आई, लेकिन युवती वहां कहीं नहीं थी. तब तक अस्पताल में भरती प्रसूताओं के घर वाले भी बाहर आ गए थे. लोगों ने पूछताछ की तो पता चला, कंबल में बच्चे को लपेटे हुए एक युवती सफेद रंग की स्कूटी पर गई है. उस स्कूटी के पास पहले से ही एक और युवती खड़ी थी. दोनों स्कूटी से गई हैं.

करीब 10 घंटे पहले कोख से जन्मा कलेजे का टुकड़ा चोरी हो जाने से मनीषा पीली पड़ गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे डाक्टरों ने संभाला.

भरतपुर के सरकारी अस्पताल से नवजात लड़का चोरी होने की घटना से पूरे अस्पताल में सनसनी फैल गई. मनीषा के ताया ससुर सद्दीक ने इस की सूचना मथुरा गेट थाना पुलिस को दी. पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर जांचपड़ताल की. अस्पताल के बाहर वाहन पार्किंग वाले से पूछताछ में पता चला कि जिस स्कूटी पर दोनों युवतियां गई हैं, उस का नंबर 1361 है. यह नंबर पार्किंग वाले के पास रहने वाली आधी पर्ची पर लिखा मिला.

पार्किंग वाले ने वाहन की सीरीज व जिले का कोड नंबर नहीं लिखा था. पुलिस ने अस्पताल के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग खंगाली. कैमरों की फुटेज में एक युवती गोद में बच्चा लिए हुए जाती नजर आई.

पुलिस के पास जांच करने के लिए केवल सफेद रंग की स्कूटी का नंबर 1361 था. पुलिस को इसी के सहारे अपनी जांच करनी थी. भरतपुर के एसपी अनिल कुमार टांक ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एडीशनल एसपी सुरेश खींची और डीएसपी (सिटी) आवड़दान रत्नू के नेतृत्व में कई पुलिस टीमें गठित कीं.

पुलिस टीमों ने स्कूटी के अलावा रंजिशवश ऐसी वारदात करने और दूसरे कारणों को भी ध्यान में रखा. पुलिस को यह भी शक हुआ कि किसी पारिवारिक रंजिशवश तो बच्चे का अपहरण नहीं हुआ. इसी अस्पताल में उसी दिन एक प्रसूता के 2 जुड़वां नवजात बच्चों की मौत हो गई थी, इस एंगल पर भी बच्चा चोरी की आशंका को ध्यान में रख कर जांच की गई.

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पुलिस का ध्यान इस बात पर भी गया कि युवती जब बच्चा ले जा रही थी तो उसे समीना ने देख लिया था. इस से घबरा कर उस ने कहीं नवजात को भरतपुर की सुजानगंगा नहर में न फेंक दिया हो.

पुलिस की एक टीम ने परिवहन कार्यालय जा कर जांचपड़ताल की तो भरतपुर में 1361 नंबर की 2 स्कूटी मिलीं. ये दोनों स्कूटी लाल रंग की थीं, जबकि बच्चा चोरी में इस्तेमाल की गई स्कूटी सफेद रंग की थी. इस पर आसपास के जिलों के परिवहन कार्यालयों की मदद लेने का निर्णय लिया गया.

मथुरा गेट थानाप्रभारी राजेश पाठक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम ने सुजानगंगा नहर और आसपास के इलाकों में नवजात की तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने प्रसूता मनीषा के गांव से भी जानकारी कराई कि कोई आपसी रंजिश का ऐसा मामला तो नहीं है, जिस के चलते नवजात का अपरहण कर लिया जाए.

दूसरे दिन पुलिस ने भरतपुर और आसपास के अस्पतालों व निजी नर्सिंगहोमों में बच्चे की तलाश की. पुलिस का मानना था कि नवजात की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उसे किसी अस्पताल या नर्सिंगहोम में भरती कराया जा सकता है. लेकिन पुलिस को इस भागदौड़ में भी सफलता नहीं मिली.

जांच में एक तथ्य यह जरूर सामने आया कि बच्चे की अपहर्त्ता युवती एक दिन पहले और उस से पहले भी कई बार अस्पताल में रैकी करने आई थी. एक संभावना यह भी थी कि किसी की सूनी गोद भरने के लिए बच्चे की चोरी की गई हो.

पुलिस की एक टीम भरतपुर जिले के कुम्हेर भी भेजी गई. वहां 2 मृत बच्चों को जन्म देने वाली महिला बदहवास स्थिति में थी, इसलिए बच्चा चोरी की आशंका जताई गई थी, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं मिला. फतेहपुर सीकरी में भी पुलिस टीम जांच करने गई, लेकिन नवजात का कोई सुराग नहीं मिला.

मामला उछलने पर दूसरे दिन पुलिस के साथ इस मामले की जांच बाल कल्याण समिति एवं अस्पताल प्रशासन ने भी शुरू की. अस्पताल प्रशासन ने जनाना अस्पताल की प्रभारी डा. ऊषा गुप्ता के नेतृत्व में 3 सदस्यीय जांच कमेटी बनाई.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद उन रास्तों पर जांच शुरू की, जहां से बच्चे को ले जाया गया था. इसी क्रम में पुलिस की टीमें जांच के लिए मथुरा और आगरा भेजी गईं. भरतपुर के पास सब से बड़ा शहर मथुरा और आगरा है. पुलिस की एक टीम ने भरतपुर के वाहन शोरूमों पर पहुंच कर सफेद रंग की स्कूटी की बिक्री के रिकौर्ड की पड़ताल की. इस के अलावा निस्संतान दंपतियों और बावरिया बस्ती में भी नवजात की खोजबीन की गई.

तीसरे दिन अस्पताल प्रशासन ने प्रसूता मनीषा, उस की सास समीना, दादी सास, देवर व अन्य परिजनों से कई घंटे पूछताछ की. उधर नवजात बेटे का कोई अतापता नहीं मिलने पर मनीषा रोरो कर बेहाल हो गई थी.

भरतपुर से मथुरा गई पुलिस टीम को 12 जनवरी को वहां के परिवहन कार्यालय का रिकौर्ड देखने के बाद 1361 नंबर की सफेद रंग की एक स्कूटी के बारे में पता चला. यह स्कूटी यूपी85 सीरीज की थी. पुलिस को इस स्कूटी के मालिक का नामपता मिल गया.

इस बीच, 12 जनवरी को ही पूरे भरतपुर जिले में यह अफवाह तेजी से फैल गई कि अस्पताल से चोरी हुआ नवजात भरतपुर शहर के पास सरसों के एक खेत में पड़ा मिल गया है. यह अफवाह पुलिस तक पहुंची तो जांचपड़ताल की गई.

कई लोगों की काल डिटेल्स निकलवाई गईं. जांच में सामने आया कि मनीषा के मायके से फोन आया था. उन लोगों को भी यह बात किसी और ने बताई थी.

घटना के चौथे दिन यानी 13 जनवरी की सुबह भरतपुर से 15 किलोमीटर दूर सांतरुक की सड़क पर गोवर्धन नहर के किनारे झाडि़यों में कंबल में लिपटा एक नवजात बालक मिला. यह नवजात मनीषा का ही बेटा था, जो 10 जनवरी को भरतपुर के अस्पताल से चोरी हुआ था.

झाडि़यों में पड़े इस नवजात को 2 बाइक सवार युवकों ने देखा था. उन्होंने शोर मचाया तो आसपास के लोग एकत्र हो गए.

कंबल में लिपटे नवजात के पास दूध की बोतल रखी थी. उस के सिर पर गर्म टोपा और पैरों में गर्म पायजामी थी. बच्चे के फुल स्लीव स्वेटर पर सेफ्टी पिन से एक पत्र लगा हुआ था. पत्र पर लिखा था, ‘यह बच्चा भरतपुर के जनाना अस्पताल से चोरी हुआ है, कृपया इसे इस के मांबाप को सौंप दें.’

लोगों की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची. नवजात को एंबूलेंस से भरतपुर के जनाना अस्पताल लाया गया. अस्पताल में 4 दिन से बदहवास पड़ी मनीषा ने अपने कलेजे के टुकड़े को देखते ही पहचान लिया.

मनीषा और उस की सास समीना ने बच्चे की बलाइयां लीं और उसे जी भर के दुलार किया. डाक्टरों ने नवजात का स्वास्थ्य परीक्षण कर के उसे आईसीयू में भरती करा दिया.

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दूसरी ओर भरतपुर पुलिस ने मथुरा में 1361 नंबर की सफेद स्कूटी के मालिक का पता लगा कर स्कूटी जब्त कर ली. यह स्कूटी मथुरा के रामवीर नगर निवासी सेना के सूबेदार की पत्नी मीना देवी के नाम पर थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने मीना देवी की शिक्षिका बेटी शिवानी को हिरासत में ले लिया.

शिवानी को पुलिस भरतपुर ले आई और उस से व्यापक पूछताछ की. पूछताछ के आधार पर पुलिस शिवानी की बहन प्रियंका को भी आगरा से भरतपुर ले आई.

भरतपुर की मथुरा गेट थाना पुलिस ने 14 जनवरी को दोनों बहनों को बच्चे के अपरहण के मामले में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में दोनों बहनों से जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी—

मथुरा के रहने वाले सेना के सूबेदार लक्ष्मण सिंह जाट की शादी मीना देवी से हुई थी. कालांतर में उन के 4 बच्चे हुए. 3 बेटियां और 1 बेटा. उन्होंने 2 बेटियों की शादी कर दी थी, जबकि 14 साल के एकलौते बेटे की 2016 में असामयिक मौत हो गई थी. तीसरी 15 वर्षीय बेटी खुशबू मथुरा में मातापिता के पास रहती थी.

एकलौते भाई की मौत से दोनों बड़ी बहनों को तो झटका लगा ही, उन की मां मीना देवी डिप्रेशन में आ गई थीं. लक्ष्मण सिंह को बेटे की चाहत थी. इस के लिए रिश्तेदार और करीबी लक्ष्मण सिंह पर दूसरी शादी के लिए दबाव बना रहे थे. क्योंकि मीना देवी फिर गर्भवती नहीं हो पा रही थीं.

डिप्रेशन की हालत में मीना देवी ने एक बार सुसाइड करने का भी प्रयास किया था. उन्होंने कोई बेटा गोद लेने की भी कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली थी. मां का घर न उजड़े, इस के लिए दोनों बड़ी बेटियां शिवानी व प्रियंका तरकीब सोचने लगीं. दोनों बहनों के नाना लाल सिंह भी चाहते थे कि उन की बेटी मीना का घर बसा रहे. इस बीच दोनों बहनों ने पिता व अन्य घर वालों के बीच यह बात फैला दी कि उन की मां गर्भवती है.

दोनों बहनों ने किसी नवजात को खरीदने के लिए मथुरा व आगरा के निजी अस्पतालों में भी बात की थी. एक नर्स के माध्यम से बच्चा खरीदने की बात तय भी हो गई थी, लेकिन जिस प्रसूता का बच्चा लेना था, उस की मौत हो गई. इस से दोनों बहनों को अपनी मां के गर्भवती बताने की योजना पर पानी फिरता नजर आया.

इस के बाद मीना देवी के पिता लाल सिंह कई दिनों तक हरियाणा के मेवात इलाके में नवजात खरीदने के लिए घूमे. उन्हें किसी नर्स ने बताया था कि मेवात इलाके में गरीब लोग सक्षम न होने के कारण नवजात बच्चा बेच सकते हैं.

काफी प्रयासों के बाद भी जब किसी नवजात का इंतजाम नहीं हुआ तो दोनों बहनों शिवानी व प्रियंका ने अपनी मां के लिए बच्चा चोरी करने की योजना बनाई. इस के लिए उन्हें भरतपुर का सरकारी अस्पताल सुरक्षित जगह लगी. इस पर दोनों बहनें 9 जनवरी को भरतपुर आईं और अस्पताल में किसी नवजात बच्चे की तलाश की, लेकिन वे किसी बच्चे को ले जाने में कामयाब नहीं हुईं.

इस के अगले दिन 10 जनवरी को दोनों बहनें मां की स्कूटी से मथुरा से भरपुर आईं. उन्होंने अपनी स्कूटी जनाना अस्पताल के बाहर पार्किंग में खड़ी की. शिवानी अस्पताल में अंदर चली गई, जबकि प्रियंका अस्पताल के अंदरबाहर चक्कर लगा कर शिवानी पर नजर रखती रही.

शिवानी ने अस्पताल के वार्ड में भरती मनीषा की सास की गोद में नवजात को देख कर सब से पहले यही पूछा कि लड़का है या लड़की.

समीना ने जब उसे बताया कि लड़का है तो शिवानी को अपनी योजना सफल होती नजर आई. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा कर बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. इस बीच समीना जब चायनाश्ता करने अस्पताल से बाहर चली गई तो शिवानी ने मनीषा को शौचालय चलने की बात कही. मनीषा के शौचालय में घुसते ही शिवानी बच्चे को ले कर तेजी से अस्पताल से बाहर निकल आई.

प्रियंका ने उसे बच्चे के साथ आता देख कर पार्किंग से स्कूटी निकाल ली. इस दौरान समीना ने अपने पोते का कंबल पहचान कर शिवानी को टोका तो वह रुकने के बजाय बाहर स्कूटी ले कर तैयार खड़ी प्रियंका के साथ भाग निकली.

दोनों बहनें स्कूटी से बच्चे को ले कर भरतपुर से सीधे मथुरा पहुंचीं. मथुरा से उन्होंने मां मीना देवी और आगरा में नाना लाल सिंह को बच्चा खरीद कर लाने की बात बताई. बाद में प्रियंका अपनी ससुराल आगरा चली गई.

जांच में सामने आया कि वारदात के बाद दोनों बहनें पुलिस की गतिविधि पर नजर रखे हुए थीं. पुलिस का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था. यह देख कर दोनों बहनें 13 जनवरी की सुबह बच्चे को भरतपुर सीमा में रारह में सांतरुक स्थित नहर के पास लावारिस छोड़ कर लौट आई थीं.

दोनों बहनों में 20 साल की प्रियंका छोटी है और 23 साल की शिवानी बड़ी. मथुरा के रहने वाले पुष्पेंद्र जाट की पत्नी शिवानी एक निजी स्कूल में शिक्षिका है, जबकि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हाथरस के सरूपा नौगावां निवासी और आजकल आगरा में रह रहे भूपेंद्र सिंह जाट की पत्नी प्रियंका बीए की पढ़ाई कर रही है.

शिवानी को औपरेशन से बेटी हुई थी. उसे डाक्टरों ने 2 साल तक बच्चा पैदा नहीं करने की सलाह दी थी. प्रियंका शादी के तुरंत बाद गर्भवती हो गई थी, लेकिन परीक्षा होने के कारण उस ने गर्भपात करा दिया था. इस से उस के ससुराल वाले नाराज थे. वारदात के दौरान वह 15 दिन से मायके में थी.

पुलिस ने शिवानी व प्रियंका को 15 जनवरी, 2018 को अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. शिक्षा के पेशे से जुड़ी और एक बेटी की मां शिवानी ने पढ़ीलिखी छोटी बहन के साथ मिल कर अपनी मां का टूटता घर बसाए रखने के लिए बच्चे को चुरा कर एक मां को जो यातना दी, उस अपराध के लिए कानून उन्हें सजा देगा. लेकिन इस वारदात ने दोनों के घर वालों व ससुराल वालों के सिर भी शर्म से झुका दिए.

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पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार : सैक्स रैकेट की सरगना बनी बरखा

कानपुर की क्राइम ब्रांच के आईजी आलोक कुमार सिंह को किसी व्यक्ति ने फोन पर जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंका देने वाली थी. एकबारगी तो आईजी साहब को भी खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ. पर इसे अनसुना करना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने उसी समय क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को फोन कर के अपने कैंप कार्यालय पर आने को कहा.

10 मिनट बाद क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला आईजी आलोक कुमार सिंह के निवास पर पहुंच गए. आईजी ने ऋषिकांत की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘शुक्लाजी, फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. और शर्मनाक बात यह है कि फीलखाना थाना व चौकी के कुछ पुलिसकर्मी ही कालगर्लों को संरक्षण दे रहे हैं. तुम जल्द से जल्द इस सूचना की जांच कर के दोषी पुलिसकर्मियों की जानकारी मुझे दो. इस बात का खयाल रखना कि यह खबर किसी भी तरह लीक न हो.’’

ऋषिकांत शुक्ला कानपुर के कई थानों में तैनात रह चुके थे. उन के पास मुखबिरों का अच्छाखासा नेटवर्क था. अत: आईजी का आदेश पाते ही उन्होंने फीलखाना क्षेत्र में मुखबिरों को अलर्ट कर दिया.

2 दिन बाद ही 2 मुखबिर ऋषिकांत शुक्ला के औफिस पहुंचे. उन्होंने उन्हें बताया, ‘‘सर, फीलखाना थाना क्षेत्र के पटकापुर में सूर्या अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर के एक फ्लैट में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चल रहा है. इस रैकेट की संचालिका बरखा मिश्रा है. वह पत्रकारिता की आड़ में यह धंधा करती है. उस ने बचाव के लिए वहां अपना एक औफिस भी खोल रखा है. उसे कथित मीडियाकर्मी, पुलिस तथा सफेदपोशों का संरक्षण प्राप्त है.’’

क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने मुखबिर से मिली सूचना से आईजी आलोक कुमार सिंह को अवगत करा दिया. सूचना की पुष्टि हो जाने के बाद आईजी ने एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को इस मामले में काररवाई करने के निर्देश दिए.

चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए मीणा ने एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ कोतवाली अजय कुमार, सीओ सदर समीक्षा पांडेय, क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला, फीलखाना इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, एसआई विनोद मिश्रा, रावेंद्र कुमार, महिला थानाप्रभारी अर्चना गौतम तथा महिला सिपाही पूजा व सरिता सिंह को शामिल किया.

3 जनवरी, 2018 की शाम को यह टीम पटकापुर पुलिस चौकी के सामने स्थित सूर्या अपार्टमेंट पहुंची. कांस्टेबल पूजा ने इस अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली बरखा मिश्रा के फ्लैट का दरवाजा खटखटाया. चंद मिनट बाद एक खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला. सामने पुलिस टीम को देख कर वह बोली, ‘‘कहिए, आप लोगों का कैसे आना हुआ?’’

‘‘क्या आप का नाम बरखा मिश्रा है?’’ सीओ समीक्षा पांडेय ने पूछा.

‘‘जी हां, कहिए क्या बात है?’’  वह बोली.

‘‘मैडम, हमें पता चला है कि आप के फ्लैट में देह व्यापार चल रहा है.’’ समीक्षा पांडेय ने कहा.

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इस बात पर बरखा मिश्रा न डरी न सहमी बल्कि मुसकरा कर बोली, ‘‘आप जिस बरखा की तलाश में आई हैं, मैं वह नहीं हूं. मैं तो मीडियाकर्मी हूं. क्या आप ने मेरा बोर्ड नहीं देखा. पत्रकार के साथसाथ मैं समाजसेविका भी हूं. मैं भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी की वाइस प्रेसीडेंट हूं.’’ रौब से कहते हुए बरखा ने एक समाचारपत्र का प्रैस कार्ड व कमेटी का परिचय पत्र उन्हें दिखाया.

बरखा मिश्रा ने पुलिस टीम पर अपना प्रभाव जमाने की पूरी कोशिश की, लेकिन पुलिस टीम उस के दबाव में नहीं आई. टीम बरखा मिश्रा को उस के फ्लैट के अंदर ले गई. वहां का नजारा कुछ और ही था. फ्लैट में 3 युवक, 3 युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थे. जबकि एक युवक पैसे गिन रहा था.

पुलिस को देख कर सभी भागने की कोशिश करने लगे. लेकिन पुलिस टीम ने उन्हें भागने का मौका नहीं दिया. सीओ सदर समीक्षा पांडेय ने महिला पुलिसकर्मियों के सहयोग से संचालिका सहित चारों युवतियों को कस्टडी में ले लिया, जबकि क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने चारों युवकों को अपनी कस्टडी में ले लिया.

फ्लैट की तलाशी ली गई तो वहां से 72,500 रुपए नकद, शक्तिवर्धक दवाएं, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक चीजें मिलीं. पुलिस ने इन सभी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया.

संचालिका बरखा मिश्रा के पास से प्रैस कार्ड, भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी का कार्ड, आधार कार्ड व पैन कार्ड मिले, जो 2 अलगअलग नामों से बनाए गए थे. सभी आरोपियों को हिरासत में ले कर पुलिस थाना फीलखाना लौट आई.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा और एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या भी थाना फीलखाना आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों के सामने अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो एक युवती ने अपना नाम प्रिया निवासी शिवली रोड, थाना कल्याणपुर, कानपुर सिटी बताया.

दूसरी युवती ने अपना नाम विनीता सक्सेना, निवासी आर्यनगर, थाना स्वरूपनगर तथा तीसरी युवती ने अपना नाम नेहा सेठी निवासी मकड़ीखेड़ा, कानपुर सिटी बताया. जबकि संचालिका बरखा मिश्रा ने अपना पता रतन सदन अपार्टमेंट, आजादनगर, कानपुर सिटी बताया.

अय्याशी करते जो युवक गिरफ्तार हुए थे, उन के नाम शेखर गुप्ता, गौरव सिंह, नवजीत सिंह और दीपांकर गुप्ता थे. सभी कानपुर सिटी के ही अलगअलग इलाकों के रहने वाले थे.

पुलिस ने संचालिका बरखा मिश्रा व अन्य आरोपियों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. पता चला कि बरखा मिश्रा का पूरा नेटवर्क औनलाइन चल रहा था.

उस ने कई वेबसाइटों पर युवतियों की फोटो व मोबाइल नंबर अपलोड कर रखे थे, जिन के जरिए ग्राहक संपर्क करते थे. इतना ही नहीं वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो व मैसेज भेज कर संपर्क किया जाता था.

ग्राहकों की डिमांड पर वह दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, बनारस व मुंबई आदि शहरों के दलालों की मार्फत रशियन व नेपाली युवतियों को भी मंगाती थी. बरखा को कुछ मीडियाकर्मियों, पुलिस वालों, रसूखदार लोगों व प्रशासनिक अधिकारयों का संरक्षण प्राप्त था. समाजसेवा का लबादा ओढ़े कुछ सफेदपोश भी बरखा मिश्रा को संरक्षण दे रहे थे. ऐसे लोग खुद भी उस के यहां रंगरलियां मनाते थे.

पूछताछ में पुलिस ने बरखा की पूरी जन्मकुंडली पता कर ली. साधारण परिवार में पली बरखा के कालेज टाइम में कई बौयफ्रैंड थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी.

समय आने पर बरखा के मांबाप ने उस की शादी कर दी. मायके से विदा हो कर बरखा ससुराल पहुंच गई. ससुराल में बरखा कुछ समय तक तो शरमीली बन कर रही पर बाद में वह धीरेधीरे खुलने लगी.

दरअसल, बरखा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना संजोया था, उसे वैसा पति नहीं मिला. उस का पति दुकानदार था और उस की आमदनी सीमित थी. वह न तो पति से खुश थी और न उस की आमदनी से उस की जरूरतें पूरी होती थीं. बरखा आए दिन उस से शिकायत करती रहती थी. फलस्वरूप आए दिन घर में कलह होने लगी.

पति चाहता था कि बरखा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे, लेकिन बरखा को बंधन मंजूर नहीं था. वह तो चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका करना या बंधन में रहना पसंद नहीं था. इन्हीं सब बातों को ले कर पति व बरखा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आखिर एक दिन ऐसा भी आया कि आजिज आ कर बरखा ने पति का साथ छोड़ दिया.

पति का साथ छोड़ने के बाद वह कौशलपुरी में किराए पर रहने लगी. वह पढ़ीलिखी और खूबसूरत थी. उसे विश्वास था कि उसे जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवन मजे से कटेगा. इसी दिशा में उस ने कदम बढ़ाया और नौकरी की तलाश में जुट गई.

बरखा को यह पता नहीं था कि नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिलती. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती, वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. उस ने सोचा कि जब शरीर ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे.

लिहाजा उस ने पैसे के लिए अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया. वह खूबसूरत भी थी और जवान भी, इसलिए उसे ग्राहक तलाशने में कोई ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पडी. यह काम करने में उसे शुरूशुरू में झिझक जरूर महसूस हुई लेकिन कुछ समय बाद वह देहधंधे की खिलाड़ी बन गई. आमदनी बढ़ाने के लिए उस ने अपने जाल में कई लड़कियों को भी फांस लिया था.

जब इस धंधे से उसे ज्यादा आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह किराए पर फ्लैट ले कर धंधे को सुचारू रूप से चलाने लगी.

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वह नई उम्र की लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर अपने जाल में फंसाती और देह व्यापार में उतार देती. उस के निशाने पर स्कूल कालेज की वे लड़कियां होती थीं, जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं. बरखा खूबसूरत होने के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी बातचीत से वह सामने वाले को जल्द प्रभावित कर लेती थी. इसी का फायदा उठा कर उस ने कई सामाजिक संस्थाओं के संचालकों, नेताओं, मीडियाकर्मियों, पुलिसकर्मियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध बना लिए थे. इन्हीं की मदद से वह बड़े मंच साझा करने लगी थी. पुलिस थानों में पंचायत करने लगी. यही नहीं, उस ने एक मीडियाकर्मी को ब्लैकमेल कर के प्रैस कार्ड भी बनवा लिया और एक सामाजिक संस्था में अच्छा पद भी हासिल कर लिया.

बरखा मिश्रा को देह व्यापार से कमाई हुई तो उस ने अपना दायरा और बढ़ा लिया. दिल्ली, मुंबई, आगरा व बनारस के कई दलालों से उस का संपर्क बन गया. इन्हीं दलालों की मार्फत वह लड़कियों को शहर के बाहर भेजती थी तथा डिमांड पर विदेशी लड़कियों को शहर में बुलाती भी थी.

कुछ ग्राहक रशियन व नेपाली बालाओं की डिमांड करते थे. उन से वह मुंहमांगी रकम लेती थी. ये लड़कियां हवाईजहाज से आती थीं और हफ्ता भर रुक कर वापस चली जाती थीं. बरखा के अड्डे पर 5 से 50 हजार रुपए तक में लड़की बुक होती थीं. होटल व खानेपीने का खर्च ग्राहक को ही देना होता था.

बरखा इस धंधे में कोडवर्ड का भी प्रयोग करती थी. एजेंट को वह चार्ली के नाम से बुलाती थी और युवती को चिली नाम दिया गया था. किसी युवती को भेजने के लिए वह वाट्सऐप पर भी चार्ली टाइप करती थी. मैसेज में भी वह इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करती थी. चार्ली नाम के उस के दर्जनों एजेंट थे, जो युवतियों की सप्लाई करते थे. एजेंट से जब उसे लड़की मंगानी होती तो वह कहती, ‘‘हैलो चार्ली, चिली को पास करो.’’

लोगों को शक न हो इसलिए बरखा एक क्षेत्र में कुछ महीने ही धंधा करती थी. जैसे ही उस के बारे में सुगबुगाहट होने लगती तो वह क्षेत्र बदल देती थी. पहले वह गुमटी क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने स्वरूपनगर में अपना काम जमाया. स्वरूपनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में उस ने किराए पर फ्लैट लिया और सैक्स रैकेट चलाने लगी.

नवंबर, 2017 में बरखा ने फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर स्थित सूर्या अपार्टमेंट में ग्राउंड फ्लोर पर एक फ्लैट किराए पर लिया. यह फ्लैट किसी वकील का था. उस ने वकील से कहा कि वह पत्रकार है. उसे फ्लैट में अपना औफिस खोलना है. इस फ्लैट में वह धंधा करती थी, जबकि रहने के लिए उस ने आजादनगर के सदन अपार्टमेंट में फ्लैट किराए पर ले रखा था.

दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने ही बरखा को सुझाव दिया था कि वह समाचारपत्र का कार्यालय खोल ले. इस से पुलिस तथा फ्लैटों में रहने वाले लोग दबाव में रहेंगे. यह सुझाव उसे पसंद आया और उस ने फ्लैट किराए पर ले कर समाचार पत्र का बोर्ड भी लगा दिया. यही नहीं, उस ने धंधे में शामिल लड़कियों से कह रखा था कि कोई पूछे तो बता देना कि वह प्रैस कार्यालय में काम करती हैं.

इस फ्लैट में सैक्स रैकेट चलते अभी एक महीना ही बीता था कि किसी ने इस की सूचना आईजी आलोक कुमार सिंह को दे दी, जिस के बाद पुलिस ने काररवाई की.

पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई 19 वर्षीय विनीता सक्सेना मध्यमवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी थी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद जब उस ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो वहां उस की कई फ्रैंड्स ऐसी थीं जो रईस घरानों से थीं. वे महंगे कपड़े पहनतीं और ठाठबाट से रहती थीं. महंगे मोबाइल फोन रखतीं, रेस्टोरेंट जातीं और खूब सैरसपाटा करती थीं. विनीता जब उन्हें देखती तो सोचती, ‘काश! ऐसे ठाठबाट उस के नसीब में भी होते.’

एक दिन एक संस्था के मंच पर विनीता की मुलाकात बरखा मिश्रा से हुई. उस ने विनीता को बताया कि वह समाजसेविका है. राजनेताओं, समाजसेवियों, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस की अच्छी पैठ है.

उस की बातों से विनीता प्रभावित हुई, फिर वह उस से मिलने उस के घर भी जाने लगी. घर आतेजाते बरखा ने विनीता को रिझाना शुरू कर दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. बरखा समझ गई कि विनीता महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में फंस सकती है.

इस के बाद विनीता जब भी बरखा के घर आती तो वह उस के अद्वितीय सौंदर्य की तारीफ करती. धीरेधीरे बरखा ने विनीता को अपने जाल में फांस कर उसे देह व्यापार में उतार दिया. घटना वाले दिन वह ग्राहक शेखर गुप्ता के साथ रंगेहाथ पकड़ी गई थी.

सैक्स रैकेट में पकड़ी गई 21 वर्षीय प्रिया के मातापिता गरीब थे. कालेज की पढ़ाई का खर्च व अपना खर्च वह ट्यूशन पढ़ा कर निकालती थी. प्रिया का एक बौयफ्रैंड था, जिस का बरखा मिश्रा के अड्डे पर आनाजाना था. उस ने प्रिया की मुलाकात बरखा से कराई. बरखा ने उसे सब्जबाग दिखाए और उस की पहुंच के चलते उसे नौकरी दिलाने का वादा किया.

नौकरी तो नहीं मिली, बरखा ने उसे देह व्यापार में धकेल दिया. प्रिया की एक रात की कीमत 10 से 15 हजार रुपए होती थी. मिलने वाली रकम के 3 हिस्से होते थे. एक हिस्सा संचालिका बरखा का, दूसरा दलाल का तथा तीसरा हिस्सा प्रिया का होता था. घटना वाली शाम वह दीपांकर गुप्ता के साथ पकड़ी गई थी.

जिस्मफरोशी का धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई 40 वर्षीय नेहा सेठी शादीशुदा व 2 बच्चों की मां थी. नेहा का पति शराबी था. वह जो कमाता, शराब पर ही उड़ा देता.

नेहा उस से शराब पीने को मना करती तो वह उस की पिटाई कर देता था. एक दिन तो हद ही हो गई. शराब के नशे में उस ने नेहा को पीटा फिर बच्चों सहित घर से निकाल दिया.

तब नेहा बच्चों के साथ मकड़ीखेड़ा में रहने लगी. उस ने बच्चों के पालनपोषण के लिए कई जगह नौकरी की. लेकिन जिस्म के भूखे लोगों ने नौकरी के बजाय उस के जिस्म को ज्यादा तवज्जो दी. नेहा ने सोचा जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे.

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उन्हीं दिनों उसे बरखा मिश्रा के सैक्स रैकेट के बारे में पता चला. उस ने एक दलाल के मार्फत बरखा मिश्रा से संपर्क किया, फिर उस के फ्लैट पर धंधे के लिए जाने लगी. घटना वाले रोज वह ग्राहक गौरव सिंह के साथ पकड़ी गई थी.

अय्याशी करते पकड़ा गया शेखर गुप्ता धनाढ्य परिवार का है. उस के पिता का सिविल लाइंस में बड़ा अस्पताल है. शेखर बरखा का नियमित ग्राहक था. वह उसे ग्राहक भी उपलब्ध कराता था. इस के बदले में उसे मुफ्त में मौजमस्ती करने को मिल जाती थी. शेखर के संबंध कई बड़े लोगों से थे.

शेखर जब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया तो इन्हीं रसूखदारों ने पुलिस को फोन कर के शेखर को छोड़ देने की सिफारिश की थी. लेकिन पुलिस ने यह कह कर मना कर दिया कि मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता.

गिरफ्तार हुए नवजीत सिंह उर्फ टाफी सरदार के पिता एक व्यवसायी हैं. नवजीत की पहले कौशलपुरी में कैसेट की दुकान थी. वहां वह अश्लील सीडी बेचने के जुर्म में पकड़ा गया था. बरखा मिश्रा जब कौशलपुरी में सैक्स रैकेट चलाती थी, तभी उस की मुलाकात नवजीत से हुई थी. पहले वह बरखा के अड्डे पर जाता था. फिर वह उस का खास एजेंट बन गया. ग्राहकों को लाने के लिए बरखा उसे अच्छाखासा कमीशन देती थी.

दीपांकर गुप्ता तथा गौरव सिंह व्यापारी थे. बरखा के खास एजेंट टाफी सरदार से उन की जानपहचान थी. घटना वाले दिन टाफी सरदार ही उन्हें बरखा के अड्डे पर ले गया था. दोनों ने 15 हजार में सौदा किया था. उसी दौरान पुलिस की रेड पर पड़ गई. यद्यपि दोनों ने पुलिस को चकमा दे कर भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए.

थाना फीलखाना पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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फुरसत मिलते ही

फुरसत मिलते ही

पुरानी किताब के मुड़े पन्ने

क्यों खोलने लगता है दिल

फुरसत मिलते ही

जो गुजर गया, वो गुजर गया

यादों के नश्तर

क्यों घोंपने लगता है दिल

फुरसत मिलते ही

चिडि़यों सा चहके, फूलों सा खिले

रोकने लगता है

क्यों नहीं देखता है दिल

फुरसत मिलते ही

जिस ने हाथ में हाथ दिया नहीं

आस उसी से लगा के

जाने क्यों बैठा है दिल.

– गीता यादवेंदु

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स्मृतियों ने साथ न छोड़ा

स्मृतियों ने साथ न छोड़ा

मनबसियों ने साथ न छोड़ा

धुंधले हुए चित्र बचपन के

कौन सुनाए परीकथाएं

ऐसी नींद नहीं आती अब

जिन में फिर वो सपने आएं

पर सपनों में जो आती थीं

उन परियों ने साथ न छोड़ा

जीवन की आपाधापी में

जाने कितने साथी छूटे

जग में मनभावन उपवन के

छूटे कितने ही गुलबूटे

जिन की गंध बसी थी मन में

उन कलियों ने साथ न छोड़ा

यायावर हम निपट अकेले

रह पाए किस घर के हो के

चौखट ऐसी कोई नहीं थी

कर मनुहार हमें जो रोके

पर हम साथ जहां चलते थे

उन गलियों ने साथ न छोड़ा.

– आलोक यादव

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भारत को आंख दिखा रहे बंगलादेश के बोल

जिस बंगलादेश को भारत ने 1971 में बनवाया था और उस की साढ़े 7 करोड़ जनता को पाकिस्तान के जुल्मों के कहर से मुक्ति दिलाई थी वही अब भारत को आंख दिखा रहा है. मई 2014 में अपने राजसिंहासन पर चढ़ते समय सफलतापूर्वक सातों पड़ोसी देशों के अध्यक्षों को बुला कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो आशा बंधाई थी, वह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में डूब सी गई है.

बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने साफसाफ कह दिया है कि भारत को बंगलादेश-चीन संबंधों के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है.  बंगलादेश का हक है कि वह अपने विकास के लिए कहीं से भी और किसी से भी सहायता ले सकता है. पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, नेपाल और यहां तक कि भूटान भी हमारी विदेश नीति को झटका दे चुके हैं जबकि भारत का साउथ ब्लौक केवल हार पहनाने और झूला झुलाने का काम कर सका था, दोस्त बनाने का नहीं.

भारत जैसे देश के लिए पड़ोसियों से बना कर रखना हमेशा ही कठिन रहा है. नेहरू के जमाने से भारत के पड़ोसी भारत से खार खाए हुए हैं क्योंकि हमारे विदेश मंत्रालय की नाक हमेशा टेढ़ी रही है. जेब में पैसा न होने के बावजूद हम विशाल भूमि, नदियों और निकम्मी व गरीब जनसंख्या के बल पर रोब झाड़ने की कोशिश करते रहे हैं, पर इसी विदेश मंत्रालय के राजनयिक जब गोरों के आगे सहायता के लिए चिरौरियां करते दिखते थे तो उस की कलई खुल जाती थी.

एक देश की विदेश नीति तब सफल होती है जब लेनदेन बराबरी के स्तर पर किए जाएं. देश के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री सदा छोटे देशों पर अपना रोब, बिना कुछ दिए, गांठते रहते थे जो उन देशों को खलता था. चीन ने हाल के सालों में भरपूर कमाया है और उस की मेहनती जनता ने दूसरे कई देशों की जनता के मुकाबले कई गुना काम कर के सिद्ध कर दिया कि धर्म, जाति, रीतिरिवाजों और संकीर्णता से ज्यादा उत्पादन नहीं होता और किसी को कुछ देने लायक बचता भी नहीं.

बंगलादेश की इस बंदर घुड़की को चेतावनी समझना चाहिए. देश के प्रधानमंत्री या सत्तारूढ़ पार्टी के बिछाए जाल के बावजूद हम सब को कड़ी मेहनत करनी चाहिए ताकि अगर हम चीन, अमेरिका, ब्रिटेन पर रोब न गांठ सकें तो कम से कम पाकिस्तान, बंगलादेश को तो जता सकें कि भारत से अलग हो कर उन्होंने भयंकर भूल की है. फिलहाल तो उन्हें लगता है कि 1947 में वे अलग न होते तो भारत धर्मयुद्ध की आग में जल रहा होता और जनता भूखी मर रही होती.

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योगी आदित्यनाथ के खंडित व्रत का सच क्या है

व्रत या उपवास एक धार्मिक कृत्य है जिसे करने वाला बेचारा व्रत के दौरान उस के टूट न जाने के भीषण तनाव में डूबा रहता है. व्रत का टूटना अनिष्ट माना जाता है. इस में दर्जनों वर्जनाएं होती हैं जिन का ईमानदारी से तो कोई भी पालन नहीं कर सकता. इस के बाद भी लोग व्रत करते हैं इस उम्मीद से कि भगवान अगर कहीं होगा, तो खुश हो कर कुछ दे न दे पर कभी नाखुश हुआ तो कुछ बिगाड़ेगा नहीं.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चैत्र नवरात्रि का व्रत सप्तमी के दिन ही बूंदी के छटांक भर के लड्डू की वजह से खंडित हो गया जिस का प्रायश्चित्त अब वे न जाने कैसेकैसे करेंगे. हुआ सिर्फ इतना भर था कि भाजपा उत्तर प्रदेश की 9वीं राज्यसभा सीट भी जीत गई थी. इसी जीत की खुशी और जोश में योगी ने जीत का लड्डू जीभ पर रख लिया तो अखिलेश यादव ताना कसने से नहीं चूके कि पता नहीं योगीजी व्रत करते भी हैं या नहीं. सच क्या है, यह तो योगी ही जानें पर अखिलेश यादव शायद नहीं जानते कि नामी संतमहंतों के तो सौ व्रत माफ होते हैं.

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फेसबुक को विज्ञापन मिलना हुआ कम, आमदनी घटी

ब्रिटेन की कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव में सांठगांठ करने के आरोप में घिरे सोशल नैटवर्किंग साइट फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक मार्क जुकरबर्ग फोर्ब्स अरबपतियों की सूची से फिसल कर 7वें स्थान पर पहुंच गए हैं. और 2 सप्ताह के भीतर उन को 10 अरब डौलर का नुकसान हुआ है.

फेसबुक पर आरोप है कि उस ने अपने 5 करोड़ यूजर्स के डाटा अवैध रूप से चुनाव को प्रभावित करने की इजाजत दी. उस ने यह डाटा विश्लेषक कंपनी के साथ साझा कर यूजर्स के साथ धोखा किया है.  इस से फेसबुक की छवि खराब हुई है और उसे विज्ञापन मिलने कम हुए हैं.

कैंब्रिज एनालिटिका ने डाटा का इस्तेमाल चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए किया था. फेसबुक उस की इस करतूत में शामिल रहा है. यह खुलासा होने के बाद फेसबुक के सीईओ सीधे आलोचकों के निशाने पर आ गए.

पूरी दुनिया में फेसबुक को कैंब्रिज एनालिटिक से सांठगांठ के कारण भारी बदनामी भी झेलनी पड़ी. इधर, भारत के राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस कैंब्रिज एनालिटिका पर एकदूसरे को मदद करने का आरोप लगा रहे हैं. कांग्रेस ने इस के लिए सभी तथ्य पत्रकारों को उपलब्ध कराए जबकि भाजपा ने चुनाव में मदद पर फेसबुक को कड़ी हिदायत दी है.

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मुंबई की सड़कों पर गली क्रिकेट खेलते कुछ यूं दिखें सचिन तेंदुलकर

मंगलवार को सोशल मीडिया पर सचिन तेंदुलकर का एक नया विडियो खूब वायरल हो रहा है. इस विडियो में दुनिया के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर अपने गृह नगर मुंबई के बांद्रा इलाके की एक सड़क पर क्रिकेट खेल रहे हैं. दरअसल, कुछ युवा क्रिकेट खेल रहे होते हैं और उन्हें देखकर सचिन खुद को रोक नहीं पाते और उनके साथ शामिल हो जाते हैं.

सोशल मीडिया पर जब यह विडियो वायरल हुआ, तो उनके फैन्स में एक बार फिर सनसनी मच गई कि क्रिकेट के मसीहा ने एक बार फिर बल्ला थामा है और अब एक बार फिर सचिन की बैटिंग की झलक देखने को मिलेगी.

तेंदुलकर कुछ ऐसे उतरे सड़क पर क्रिकेट खेलने को

सचिन तेंदुलकर अपने दोस्तों के साथ डिनर के लिए जा रहे थे. इस कार में सचिन के साथ उनके बचपन के दो दोस्त थे. एक थे मुंबई और गोवा के लिए क्रिकेट खेल चुके अतुल रहाणे और दूसरे थे डा. संजय, जो पिछले कई सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. संजय इन दिनों भारत आए हुए हैं और वह मुंबई आकर सचिन से मिल रहे थे. सचिन अपने दोस्त के साथ बेहद उत्साहित थे कि इस बीच बांद्रा से जब उनकी कार गुजर रही थी, तब मेट्रो कंस्ट्रक्शन के पास रात में कुछ युवा सड़क पर क्रिकेट खेलते हुए दिखे.

यहां पर सचिन के दोस्त डा. संजय ने उनसे कहा कि क्यों न अपने बचपन के दिनों को फिर से जिया जाए. फिर क्या था सचिन अपने दोस्त की इस भावना को समझ चुके थे कि वह क्या चाह रहे हैं और इतने में अतुल रहाणे ने भी गाड़ी से उतरकर उन नौजवानों से यह कह दिया, ‘भाऊ, हमारे पास एक छोटा खिलाड़ी है, जो बौल को हिट करना चाहता है.’ इतने में कार से बल्ले थामने के लिए, जो शख्स नीचे उतरता है, उसे तो कोई भी बौलिंग करना चाहेगा. यह थे सचिन तेंदुलकर.

रहाणे ने बताया, ‘जब सचिन ने सड़क पर खेल खेलना शुरू किया, तब वहां वे कुछ लड़के और दर्शक के रूप में रहाणे अकेले थे, जो मास्टर ब्लास्टर की बैटिंग को अपने मोबाइल में रिकौर्ड करने लगे. देखते ही देखते वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा होनी शुरू हो गई. जब सड़क से गुजर रहे लोगों को आभास हो गया कि आज यहां मास्टर ब्लास्टर स्ट्रोक लगा रहे हैं, तो एक बार फिर यहां सचिन-सचिन की आवाज गूंजने लगी.

सचिन के साथ सड़क पर क्रिकेट खेल रहे इन लड़कों के लिए यह पल किसी सपने के सच होने जैसा था. इन लोगों की आंखों में चमक देखने वाली थी. वे अपने हीरो के साथ क्रिकेट खेल रहे थे. उनसे बात कर रहे थे और उनके गले लग रहे थे उनसे हाथ मिला रहे थे. सचिन भी उत्साहित थे यह पल देखकर आनंद आ रहा था. यहां से गुजर रही गांड़ियां भी यहां थम गईं और सचिन-सचिन की आवाज गूंजने लगी.

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गायब है 2 हजार का नोट, क्या है इसकी मुख्य वजह

नोटबंदी के करीब डेढ़ साल बाद एक साथ कई राज्यों में खाली पड़े एटीएम नोटबंदी के दिनों की याद दिला रहे हैं. देश के कई हिस्सों जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश में लोगों को कैश की कमी से जूझना पड़ रहा है. हालांकि, सरकार और रिजर्व बैंक औफ इंडिया डैमेज कंट्रोल मोड में आ गए हैं. लोग कैश क्रंच की वजह जानना चाहते हैं और सरकार का कहना है कि नोटों की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि से समस्या आई है. हालांकि, अब तक सरकार की तरफ से कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है. कई बैंक अधिकारियों का कहना है कि 2000 के नोट बैंकों में वापस नहीं आ रहे हैं. यह भी अफवाह है कि कर्नाटक चुनावों में कैश होर्डिंग से संकट खड़ा हुआ है.

कर्नाटक चुनाव के लिए तो नहीं हो रही जमाखोरी?

एक थियोरी और चल रही है, जिसके चर्चे खासकर सोशल मीडिया पर हैं. कहा जा रहा है कि राजनीतिक दल और उनके समर्थक अगले महीने कर्नाटक चुनावों के लिए कैश की होर्डिंग कर रहे हैं. दो हजार रुपए के नोटों की सप्लाई घटने, चुनाव से पहले कर्नाटक में कैश की डिमांड बढ़ने और कैश क्रंच को लेकर सोशल मीडिया पर अटकलों का बाजार गर्म होने के कारण सामान्य से ज्यादा निकासी से देश के कई हिस्सों में एटीएम सूख गए हैं.

अचानक इतनी किल्लत क्यों?

देश में नकदी संकट पर बैंकिंग एक्‍सपर्ट का मानना है कि नोट की छपाई और सप्‍लाई को लेकर कुछ दिक्‍कते हैं, लेकिन यह इतना बड़ा कारण नहीं दिखता, जिससे कैश की किल्‍लत अचानक इतनी बढ़ जाए. सूत्रों की मानें तो अगले कुछ महीनों में पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव हैं. इसके अलावा 2019 में देश का आम चुनाव है. ऐसे में चुनाव की तैयारी में लोग बड़े पैमाने पर कैश जमा कर रहे हैं. चुनाव में बड़े पैमाने पर कैश का इस्‍तेमाल होता है. ऐसे यह तर्क काफी मजबूत लगता है कि चुनावी साल में राजनीतिक दल और नेता चुनाव में खर्च के लिए कैश का इंतजाम कर रहे हैं.

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चुनावी खर्च के लिए कैश का इंतजाम

सूत्रों का कहना है कि चुनावी साल में कैश की छपाई और सप्‍लाई को लेकर कुछ दिक्‍कतें हो सकती हैं. लेकिन, कैशलेस इकोनौमी को बढ़ावा देने के लिए कैश का सर्कुलेशन कम करने का तर्क सही नहीं लगता है. ऐसे में चुनाव के लिए पहले से कैश की होडिंग की जा रही है.

अभी से क्यों हो रही है जमाखोरी?

एक्सपर्ट्स की मानें तो पिछले कुछ समय से या यूं कहें नोटबंदी के बाद हर कोई इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के रडार पर है. चुनावी चंदे से लेकर चुनाव में होने वाले खर्च पर भी आईटी विभाग नजर रखता है. ऐसे में चुनाव के समय इतने बड़े पैमाने पर कैश का इंतजाम करना आसान नहीं होगा. इसलिए एक बार में पैसों का इंतजाम करने के बजाए पहले से थोड़ा-थोड़ा जमा करके इसकी तैयारी चल रही है. थोड़ी-थोड़ी जमाखोरी से जांच एजेंसियों को ऐसे लोगों को ट्रैक करना आसान नहीं होगा.

कहां ‘गायब’ है 2000 रुपए का नोट?

आर्थिक मामलों के सचिव एससी गर्ग ने कबूल किया कि इस वक्त 2000 रुपए का नोट गायब हैं. हालांकि, उन्होंने काला धन जमा होने की आशंका को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘अभी सिस्टम में 2000 रुपए के 6 लाख 70 हजार करोड़ नोट हैं. यह संख्या पर्याप्त से ज्यादा है. हमें भी पता है कि 2000 रुपए के नोट सर्कुलेशन में घटे हैं. इसकी कोई जांच तो नहीं कराई है, लेकिन अनुमान यह है कि बड़े नोट जमा करने में आसानी होती है. इसलिए लोग बचत की रकम 2000 रुपए के नोटों में ही जमा कर रहे हैं.’

ब्लौक हुई एटीएम की कैसेट

एससी गर्ग के मुताबिक, ‘एटीएम में हम 2000 रुपये के जितने भी नोट डालते हैं, वे निकल जाते हैं, लेकिन फिर काउंटर पर नहीं लौटते. लिहाजा 2000 रुपये का स्टौक कम होने के साथ एटीएम में कैसेट खाली चल रहे हैं. इसकी कपैसिटी करीब 50 लाख रुपए की होती है, जो अब ब्लौक हो गई है.’ एटीएम में चार कैसेटों में करीब 65 लाख रुपए भरे जा सकते हैं. एक कैसेट में 2000 रुपए के नोट, दो में 500 रुपए और एक में 100 रुपए के नोट भरे जाते हैं. बैंकरों का दावा है कि 2000 रुपए के नोटों की तंगी के कारण एटीएम की 45 पर्सेंट कपैसिटी का उपयोग ही नहीं हो पा रहा है.

आरबीआई क्यों और क्या दे रहा सफाई?

कैश की किल्‍लत के बीच रिजर्व बैंक ने बयान जारी करते हुए साफ किया कि कैश की कोई कमी नहीं है और आरबीआई के करंसी चेस्ट्स में पर्याप्त नकदी मौजूद है. आरबीआई ने बताया कि नोटों को छापने की प्रक्रिया भी तेज कर दी गई है. हालांकि, कुछ इलाकों में कैश को पहुंचाने में आने वाली दिक्कतों के कारण नकदी संकट से निपटने में कुछ दिन लग सकते हैं. रिजर्व बैंक ने कहा कि कुछ हिस्सों में ATMs में कैश पहुंचाने में कुछ समय लग सकता है. साथ ही कई ATM मशीनों में नए नोटों के लिए रीकैलिब्रेशन की प्रक्रिया अभी भी जारी है.

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प्रियंका चोपड़ा को मिला सलमान खान का साथ

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘बाजीराव मस्तानी’’ में काशीबाई का किरदार निभाने के बाद प्रियंका चोपड़ा अमरीकन टीवी सीरीज ‘क्वांटिको’ व वहां की फिल्मों व्यस्त हो गई थीं. मगर सूत्रों की माने तो वहां पर उनके करियर पर विराम लग गया है. क्योंकि टीवी सीरियल ‘‘क्वांटिको’’ के दूसरे सीजन को दर्शक नहीं मिले. वहीं प्रियंका की अमरीकन फिल्म ने भी बौक्स औफिस पर पानी नहीं मांगा. तो वह काफी समय से बौलीवुड फिल्म के लिए प्रयासरत थीं.

बहरहाल, अब यह तय हो चुका है कि अली अब्बास जफर निर्देशित फिल्म ‘भारत’ में वह सलमान खान की हीरोईन बनकर आएंगी. प्रियंका चोपड़ा ने अली अब्बास जफर के निर्देशन में ‘यश राज फिल्मस’ की फिल्म ‘‘गुंडे’’ की थी. जबकि सलमान खान के साथ उन्होंने अंतिम बार फिल्म ‘‘सलाम ए इश्क’’ की थी. अब फिल्म ‘‘भारत’’ के साथ उनकी बौलीवुड ही नहीं बल्कि सलमान खान व अली अब्बास जफर के साथ पुनः वापसी हो रही है. वैसे ‘‘भारत’’ के लिए कटरीना कैफ सहित कई दूसरी अभिनेत्रियों के नामों की चर्चा हो चुकी है.

फिल्म ‘‘भारत’’ के निर्देशक अली अब्बास जफर इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं- ‘‘हौलीवुड में टीवी सीरियल व फिल्म में अभिनय कर विश्व स्तर पर अपना एक अलग मुकाम बनाने के बाद फिल्म ‘भारत’ प्रियंका की घर वापसी है. वह हमारी फिल्म के लिए एकदम फिट हैं.

जबकि खुद प्रियंका चोपड़ा कहती हैं- ‘‘मैं सलमान खान व अली अब्बास जफर के साथ फिल्म ‘भारत’ की शूटिंग शुरू करने को लेकर काफी उत्साहित हूं. अपनी पिछली फिल्मों में इन दोनों से मैंने काफी कुछ सीखा था. मैं अलवीरा और ‘सलमान खान फिल्मस’ की टीम के साथ काम करने को लेकर भी उत्सुक हूं.

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