रामपाल सिंह मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री हैं जिन की गिनती उन इनेगिने मंत्रियों में होती थी जिन के दामन पर कोई दाग नहीं लगा था, पर अब लग गया है. बात कहने को तो बहुत मामूली सी है कि उन के मंझले बेटे गिरजेश प्रताप सिंह ने अपने से थोड़ी सी कम जाति की एक युवती से चोरीछिपे आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली, लेकिन मांबाप के सामने वह ढीला पड़ गया और दूसरी जगह सगाई कर ली.
पीड़िता ने अग्निपरीक्षा देते खुदकुशी कर ली तो राज्यभर में खासा बबाल मच गया. इस मुश्किल घड़ी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उन के काम आए और दोस्ती निभाई.
होनहार पुलिस वाले समझ गए कि कानून व्यवस्था कैसे बनाए रखनी है और जांच किस पद्धति से करनी है, लिहाजा, सबकुछ मैनेज हो गया और जो डैमेज हुआ वह इस साल के विधानसभा चुनाव में दिखना तय है, क्योंकि पीड़िता के समुदाय वाले भी कम ठसक वाले नहीं.
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भगवा राजनीति का पूरापूरा लाभ देशभर के धर्म के दुकानदारों को मिल रहा है. हिंदूमुसलिम विवाद, आरक्षण, पद्मावती, पाकिस्तान, गौसेवा, गौवध, तीन तलाक, योग, वंदेमातरम, राष्ट्रभक्ति के नाम पर पूजापाखंड, भक्ति आदि का लाभ मिल रहा है नेताओं को और पंडेपुजारियों को भी. इस वर्ष मकर सक्रांति के मौके पर इलाहाबाद के माघ मेले में रिकौर्ड संख्या में अंधभक्तों ने गंगायमुना में डुबकी लगाई.
यह सेवा ईश्वर की या जनता की नहीं, यह भक्तों ने खुद की सेवा भी नहीं की, बल्कि यह सेवा की गई निठल्ले हजारों साधुओं, पुजारियों, पंडों, हस्तरेखा पाखंडियों की, फूलपत्ते बेचने वाले दुकानदारों की, खाना परोसने वाले दुकानदारों की और बस मालिकों की. हर अंधभक्त ने दिल खोल कर अपनी जेब ढीली की ताकि उस के खाते में पुण्य जमा हो जाए व मरने के बाद उसे स्वर्ग मिले और जीतेजी धनधान्य ऊपर से टपक कर उस की झोली में आ गिरे.
इस बार 1.55 करोड़ अंधभक्तों ने 2 दिनों में पानी में डुबकी लगा कर इस बहकावे पर मुहर लगाई कि इसी से, और केवल इसी से, उन का कल्याण होगा. ये 1.55 करोड़ लोग जहां भी जो भी काम करते हैं, उस के प्रति उन की निष्ठा उतनी नहीं होती जितनी इस पांखड के प्रति कि डुबकी लगाने से ही वे कुछ पा सकेंगे.
सरकार इसे सफल बनाने के लिए वर्षों से करोड़ों रुपए हर साल खर्च करती है. सरकार करों से एकत्र पैसा अंधभक्तों पर इस तरह से खर्च करती है मानो विकास की कुंजी यही है. भगवा राजनीति का उद्देश्य इसी तरह का पर्यटन बढ़ाना है ताकि लोग घूमने के बहाने दानदक्षिणा दें और एक संकुचित विचारधारा के गुलाम बने रहें.
धर्म के नाम पर कितनी ही सभ्यताओं ने बड़े विशाल निर्माण किए हैं तो साथ ही, लाखों नहीं, अरबों को मारा भी है. धर्म ने सुरक्षा देने का ऐसा छद्म जाल बुन रखा है कि हर व्यक्ति का दिमाग तर्क के प्रति सुन्न हो जाता है. विज्ञान व तकनीक की उन्नति के बावजूद अच्छेअच्छे अस्पतालों और आधुनिक कारखानों में मूर्तियों की बरात लगी रहती है मानो मानव अपनेआप में सक्षम नहीं है. मानव द्वारा ही निर्मित पर अब उस का लाभ उठा रहे बिचौलिए अंधभक्तों को यही बताते हैं कि धर्म ही अकेला स्वस्थ, सार्थक, साधनसंपन्न और संपूर्ण जीवन दे सकता है.
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पहाड़ के गांव में पहले मोटा अनाज मंड़ुआ, सांवा आदि की पर्याप्त खेती होती थी. कारण, इस मोटे अनाज के लिए सिंचित जमीन की जरूरत नहीं थी. लेकिन खाने में यह ज्यादा स्वादिष्ठ नहीं था तो मां से हमेशा मंड़ुआ की रोटी की जगह गेहूं की रोटी और सांवा की जगह चावल की मांग रहती थी. तब पिताजी कहते थे कि पहाड़ पर तेजी से चढ़ना है और हट्टाकट्टा बना रहना है तो रोज मंड़ुवे की 2 रोटी खाओ.
हाल ही में सरकार ने 2018 को मोटा अनाज का वर्ष घोषित किया है. सरकार का मानना है कि ज्वार तथा बाजरा जैसे मोटे अनाजों में भरपूर पोषण तत्त्व होते हैं और देश के नागरिकों के स्वस्थ पोषण के लिए इन अनाजों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. सरकार स्कूलों में मध्याह्न भोजन में भी मोटे अनाज का इस्तेमाल करेगी ताकि बच्चों को अच्छा पोषण मिल सके.
मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक उपयोगी है और उस का इस्तेमाल बताया जाना चाहिए. यही स्थिति जौ जैसे अनाज की भी है. पूरे देश में इन अनाजों की बहुत कमी है. इस का बड़ा कारण यह है कि मोटे अनाज की मांग नहीं है. इसलिए इन की खेती नहीं की जा रही है.
मोटे अनाज का रकबा लगातार घट रहा है. खुद कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का कहना है कि 2016-17 में मोटे अनाज का रकबा 47.2 लाख हैक्टेयर रहा जो 1965-66 में 3 करोड़ 69 लाख हैक्टेयर था.
देश में मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रोत्साहन योजना शुरू करेगी. इस के साथ ही इसे मध्याह्न भोजन में शामिल किया जा रहा है. मोटा अनाज कम मेहनत से तैयार होने वाली फसल है. इस में मेहनत कम है और यह आसानी से पैदा होता है इसलिए इस का महत्त्व कम आंका जा रहा है.
मोटे अनाज के बारे में कहा जाता है कि इस में लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में होते हैं जो शरीर को मजबूत बनाते हैं और रोग से लड़ने की जबरदस्त क्षमता शरीर में पैदा करते हैं.
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मेहुल की शराब पीने की लत के चलते राधिका राजन के नजदीक आ गई. वह अपने पति का घर छोड़ कर उस के साथ रहने लगी. थोड़े दिन तक तो सब ठीक रहा, पर बाद में राजन का असली रूप सामने आया. वह उसे अपने काम के लिए दूसरों को परोसना चाहता था. इस तरह वह धीरेधीरे कालगर्ल बन गई. एक दिन राधिका किसी से मिलने होटल गई. वहां उस के सामने उस का बेटा आ गया. वह घबरा कर वापस हो ली.
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‘‘ठीक है, उन्हें चाय वगैरह सर्व करो. मैडम अभी तैयार हो कर आ रही हैं,’’ कह कर राजन कमरे से बाहर आ गया.
राधिका ने जैसे ही ड्राइंगरूम में कदम रखा, सामने नजर पड़ते ही ऐसे तड़प उठी, जैसे भूल से जले तवे पर हाथ रख दिया हो.
वह घबरा कर वापस जाने लगी, तभी उस के कानों में अमृत घोलती
एक आवाज गूंजी, ‘‘मम्मी, मैं आप का बंटी… आप को कहांकहां नहीं ढूंढ़ा हम ने? आखिरकार आप मिल ही गईं,’’ इतना कह कर वह राधिका से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगा.
बंटी रोतेरोते ही कहने लगा, ‘‘मम्मी, आप के बगैर पापा ने भी अपनी कैसी हालत बना ली है, कितने साल बीत गए… आप के बगैर जीते हुए. अब मैं एक पल भी आप के बगैर नहीं रह सकता. प्लीज मम्मी, घर लौट चलो. आप को लिए बगैर मैं यहां से नहीं जाऊंगा.’’
जब होटल में राधिका ने बंटी को देखा, जो बिलकुल मेहुल की शक्ल पाए हुए था. उसे लगा कि उस ने ममता के रिश्ते में भी तेजाब घोल दिया. अगर उस की शक्ल हूबहू न होती, तो वह तो… उस के आगे वह नहीं सोच पाई.
उधर राधिका जब मेहुल को छोड़ कर चली गई थी, तब वह एकदम टूट सा गया था. वह उसे बहुत प्यार करता था. निराशा व हताशा से बेहाल मेहुल ने सारा कारोबार समेटा और बेंगलुरु की किसी अनाम जगह पर चला गया. अब वह अपने बेटे बंटी के लिए जी रहा था. सुबह उसे तैयार कर के स्कूल भेजता, फिर अपने दफ्तर जाता, जल्दी काम निबटा कर वह फिर घर लौटता.
धीरेधीरे सारे काम घर में मोबाइल फोन से ही करने लगा. बंटी को भी पापा का ढेर सारा प्यार पा कर लगा कि जैसे अपनी मम्मी को भूलने लगा है, पर वह भूला नहीं था.
कभीकभी बंटी पूछ ही बैठता, ‘पापा, मम्मी कहां गई हैं?’
तब मेहुल की बेबसी से आंखें भर आतीं, फिर मासूम बंटी को सीने से लगा कर रो पड़ता. उस ने सोचा कि ढूंढ़ा तो उसे जाता है, जो खो जाता है. जो खुद ही छिप गया हो, उसे ढूंढ़ कर क्यों परेशान करूं?
जैसे ही बंटी बड़ा हुआ, उस का भी एमबीए का कोर्स अभीअभी पूरा हुआ था. वह अपनी मम्मी की तलाश में लगा. वह पापा मेहुल को सैमिनार है बोल कर कोलकाता गया, जहां पहले मम्मीपापा के साथ रहता था बचपन में. वहीं से पता चला कि मम्मी मुंबई में हैं. शायद तभी से वह मुंबई में आ कर तलाश करने लगा.
एक दिन एक होटल में उस ने राजन के साथ राधिका को देखा. वहां से सारी जानकारी हासिल की. फिर अपनी मम्मी से मिलने का प्लान बनाया. और कुछ तो समझ में नहीं आया कि कैसे मिले?
वह राधिका को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था. और कोई चारा भी तो नहीं था उस के पास, लेकिन अफसोस, मेहुल का हमशक्ल होने से बाजी पलट गई. उस की सूरत देखते ही राधिका लौट गई. वह तुरंत पहचान जो गई थी.
‘‘मम्मी, मेरी सूरत देख कर आप मुझे तुरंत पहचान गईं और आप लौट गईं. मम्मी, मेरा इरादा आप को परेशान करने का नहीं था. पापा भी आप के जाने के बाद एकदम टूट से गए हैं. वे तिलतिल कर मर रहे हैं.
‘‘मैं उन्हें ऐसे घुटतेतड़पते नहीं देख सकता था. उन्हें भी अपनी गलतियों का एहसास हो गया है. वैसे, वे मुझ पर जताते नहीं हैं कि वे दुखी हैं, मैं जानता हूं कि पापा आप को बहुत प्यार करते हैं और आप के बगैर अकेले जी रहे हैं. वे भी मेरे साथ आए हैं, बाहर खड़े हैं.’’
एक ही जगह मूर्ति सी खड़ी राधिका किस मुंह से मेहुल के सामने जाती? उस से नजरें मिलाती? उस ने बेजान, थके हाथों से बंटी को अपने से अलग किया. उस की आंखें पथरा सी गई थीं. लग रहा था कि उन आंखों में भावनाएं नहीं हैं.
इतने में मेहुल भी भीतर आ गया. कितना बीमार, थकाथका, लाचार सा लग रहा था. राधिका के दिल में कुछ टूटने, पिघलने लगा. मन दर्द से भर उठा. मेहुल का क्या कुसूर? पर वह इस कलंकित देह के साथ कैसे आगे बढ़ती?
राजन तो मेहुल को देख कर शर्म से पानीपानी हुए जा रहा था. दोस्त हो कर पीठ में छुरा घोंपने का अपराध जो किया था, इसलिए नजरें न मिला कर एक ओर सिर झुकाए खड़ा रहा.
मेहुल थके कदमों से राधिका के करीब आया और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए. मेहुल ने कहा, ‘‘सच राधिका, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. मेरी ही नादानी की वजह से हमारा बच्चा हम दोनों की परवरिश नहीं पा सका, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है.
‘‘हम दोनों मिल कर अब भी अपने बेटे बंटी को अच्छे संस्कार देंगे. उसे कारोबार में फलतफूलता देखेंगे. अभी तो उस की शादी करनी है. उन के प्यारेप्यारे बच्चों को गोद में खिलाना है.’’
‘‘नहीं मेहुल, यह अब कभी नहीं हो सकता… मैं चाह कर भी इस दलदल से बाहर नहीं आ सकती. मैं इस लायक ही नहीं रह गई हूं कि तुम्हारे साथ जा सकूं.’’
अपने भर आए गले को खंखारते हुए राधिका फिर बोली, ‘‘मेहुल, जब बदन का कोई अंग सड़ जाता है, तो उस को काट कर अलग कर दिया जाता है, नहीं तो पूरे जिस्म में जहर फैल जाता है. मैं अब वह दाग हूं, जिसे सिर्फ छिपाया और मिटाया जा सकता है, पर दिखाया नहीं जाता. प्लीज, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,’’ कहतेकहते वह बुरी तरह कांपने व रोने लगी थी.
तब मेहुल ने राधिका का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘राधिका, मैं ने कहा था कि मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मेरे ही रूखे बरताव के चलते तुम्हें घर छोड़ने जैसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा. इस के लिए तुम अपनेआप को अकेले दोष मत दो. मुझे तुम मिल गईं, अब कोई मलाल नहीं.
‘‘मुझे समाज, रिश्तेदार किसी की कोई परवाह नहीं. देखो, तुम्हारे बेटे बंटी को, जिसे तुम ने 8 साल का नन्हे बंटी के रूप में देखा था, आज वह पूरा गबरू नौजवान बन गया है. एमबीए की डिगरी भी हासिल कर ली है.
‘‘मैं ने इस का तुम्हारी गैरहाजिरी में ठीक से तो लालनपालन किया है कि नहीं? कोई शिकायत हो तो बोलो?’’
मेहुल का गला भर आया था. आंखें गीली हो गई थीं.
कितना बड़ा कलेजा था मेहुल का. राधिका, जो शर्म, अपराध के बोझ तले दबी जा रही थी, वह भी सारी लाज भूल कर मेहुल की बांहों में समा गई. कभी सोचा भी नहीं था कि मेहुल से नफरत की जगह माफी मिलेगी. उस के चेहरे पर एक दृढ़ विश्वास की चमक थी.
शहरी दौड़भाग से दूर पहाड़ों की शांत वादियों में घूमने का मजा ही कुछ और है. हिमालय की पहाडि़यों पर स्थित कुल्लू, मनाली, रोहतांग व लेह महत्त्वपूर्ण स्थान हैं. पहाड़ी विरासत लिए यहां के पहाड़ भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं. यहां का मौसम गरमी में हलका ठंडा रहता है इसलिए गरमी की छुट्टियों में शहरी लोग गरमी से बचाव के लिए भी यहां का रुख करते हैं. प्रकृति की अद्भुत छटा बिखेरते ये इलाके आप को बारबार यहां आने को आमंत्रित करते हैं.
आप यदि हिमालय की ओर का रुख कर रहे हैं तो किसी एक शहर को घूमने के बजाय एक कौरिडोर को कवर कीजिए जैसे कुल्लू, मनाली रोहतांग व लेह. जिन के एक ही रूट पर होने के कारण आप को यहां पहुंचने में आसानी भी होगी और आप को घूमने के लिए कई दर्शनीय स्थल भी मिल जाएंगे.
कितनी दूरी पर कौन सी जगह
– कुल्लू से मनाली की दूरी लगभग 42 किलोमीटर.
– मनाली से रोहतांग की दूरी लगभग 51 किलोमीटर.
– रोहतांग से लेह की दूरी लगभग 421 किलोमीटर.
पहला पड़ाव कुल्लू
कुल्लू व्यास नदी के किनारे बसा एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटन स्थल है. यह समुद्रतल से 1,230 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां हमेशा ही पर्यटकों का हुजूम उमड़ा रहता है. कलकल करती नदियां, सेब के बागान और ऊंचेऊंचे पहाड़ देख किस का मन इस जगह पर बारबार आने को नहीं करेगा.
देखने लायक स्थान
ऐंडवैंचर स्पोर्ट्स का मजा : व्यास नदी में रोमांच से भरपूर वाटर राफ्ंिटग का मजा लेने के साथसाथ आप ट्रैकिंग का भी मजा ले कर खुद के ऐंडवैंचर शौक को पूरा कर सकते हैं.
ग्रेट हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान : ग्रेट हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान को जवाहरलाल नेहरू गे्रट हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान के नाम से भी जाना जाता है.
765 वर्ग किलोमीटर में फैलने के साथ ही यह अपनी जैव विविधता के लिए भी प्रसिद्ध है. इस पार्क को 1999 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया था.
पंडोह डैम : कुल्लू गए और आप ने पंडोह डैम नहीं देखा तो क्या देखा. यहां आ कर आप को पानी से घिरी पहाडि़यां देख कर कुछ देर ठहरने को दिल करेगा. इस जगह आ कर आप जी भर कर फोटोग्राफी कर सकते हैं.
दूसरा पड़ाव मनाली
बर्फ से ढके पहाड़, पहाड़ों से बहते झरने और देवदार के घने जंगल, ये खूबसूरती लोगों को बारबार अपनी ओर खींचती है. यहां पहुंचने के लिए आप को कुल्लू से 42 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा.
हिडिंबा मंदिर : यह डुंबरी वन में स्थित है जो चारों तरफ से देवदार के पेड़ों से घिरा है.
सोलंग वैली : यह घाटी मनाली से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां पर समर और विंटर ऐक्टिविटीज जैसे पैराग्लाइडिंग, पैराशूट, हौर्स राइडिंग, स्कीइंग आदि को पर्यटक खूब एंजौय करते हैं.
राहाला वाटरफौल : यह मनाली से 16 किलोमीटर दूर स्थित है. इस वाटरफौल के चारों ओर फैले देवदार के पेड़ मन को अलग ही सुकून देते हैं.
नेहरू कुंड : इस कुंड पर हमेशा ही पर्यटकों की भीड़ उमड़ी रहती है, क्योंकि प्रकृतिप्रेमी इस जगह को देखे बिना नहीं रह पाते.
वन विहार : यह स्थल पर्यटकों के साथसाथ यहां के स्थानीय लोगों के बीच भी काफी मशहूर है. यहां आप बोटिंग का लुत्फ उठा कर आनंद का अनुभव कर सकते हैं.
मणिकरण : मणिकरण, जिस की समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 1,750 मीटर है, बेहद खूबसूरत है. यह स्थान गरम पानी के कुंड और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है. कहा जाता है कि यहां एक तरफ नदी में बहता ठंडा पानी है तो वहीं किनारे पर गरम पानी का कुंड है.
नागर किला : अगर आप पेंटिंग के शौकीन हैं तो इस किले में जाना न भूलें, क्योंकि यहां आप को रशियन आर्टिस्ट निकोलस रोरिक की अद्भुत व आकर्षक पेंटिंग्स देखने को मिलेंगी.
तीसरा पड़ाव रोहतांग
रोहतांग दर्रा 3,979 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के साथ मनाली से 51 किलोमीटर दूर है. यहां तरहतरह की ऐंडवैंचरस ऐक्टिविटीज जैसे स्कीइंग, माउंटेन बाइकिंग, ट्रैकिंग जैसी गतिविधियों को अंजाम दे कर पर्यटक काफी खुश होते हैं. यहां आ कर प्रकृतिप्रेमी ग्लेशियर्स और लाहौल घाटी से निकलने वाली चंद्रा नदी के खूबसूरत नजारों को देखना नहीं भूलते. यहां पहुंचने वाला रास्ता भी बेहद खूबसूरत है.
अंतिम पड़ाव लेह
लेह जम्मूकश्मीर के लद्दाख जिले का प्रमुख नगर है. यह समुद्रतल से 11,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. लेह चारों तरफ से खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा है.
लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यहां पहुंचने के बाद घूमने न निकलें बल्कि एक दिन पूरा रैस्ट करें ताकि आप वहां के वातावरण के हिसाब से खुद को ढाल कर इस ट्रिप को अच्छे से एंजौय कर पाएं.
पेंगौंग झील : यह झील समुद्रतल से 14,270 फुट की ऊंचाई पर स्थित है और यह लेह से कुछ ही दूरी पर है. यह बहुत ही खूबसूरत पारदर्शी झील है. आप को बता दें कि लद्दाख से आसमान कुछ ज्यादा ही नीला दिखाई देता है, इसलिए झील में उस का प्रतिबिंब साफ दिखाई देता है. पेंगौंग में सुंदरसुंदर छोटे से ले कर रौयल साइज के टैंट आसानी से उपलब्ध हैं.
शांति स्तूप : यह जगह समुद्रतल से 11,841 फुट की ऊंचाई पर है. इस की संरचना सफेद गुंबद की भांति है और इस की नक्काशी बेहद खूबसूरत है. यहां रात का नजारा कुछ और ही रहता है.
लेह पैलेस : यह पैलेस पूरी तरह मिट्टी का बना है. इसे 17वीं शताब्दी में राजा सेंगेज नामग्याल ने बनवाया था. इस पैलेस के ऊपर से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखने का रोमांच कुछ और ही रहता है.
मैग्नेटिक हिल : अकसर यहां आ कर पर्यटक महसूस करते हैं कि उन की गाड़ी ऊपर उठ रही है. आप भी इस जगह जा कर ऐसा फील करें, ताकि हमेशा याद रहे.
नुबरा वैली : नुबरा वैली हरियाली से भरी हुई है.
यहां यदि आप गरमी में जा रहे हैं तो पूरी घाटी आप को पिंक और पीले फूलों से ढकी मिलेगी.
चादर ट्रैक : यहां बहती जांस्कर नदी में बर्फ की ढकी चादर पर यात्रा करवाई जाती है जिसे चादर ट्रैक कहते हैं. इसे पर्यटक खूब एंजौय करते हैं.
हेमिस हाई एटिट्य्ट वाइल्डलाइफ सैंचुरी : दुनिया में सब से ऊंची होने के साथ यह सैंचुरी साउथ एशिया का सब से बड़ा पार्क है. यहां पर स्नो तेंदुओं का वास है.
ऐंडवैंचरस ऐक्टिविटीज : यहां आ कर आप बाइकिंग, ट्रैकिंग जैसे रोमांचक विकल्पों का लुत्फ उठा सकते हैं.
इस के लिए आप यहां आने से कुछ दिन पहले से मौर्निंग व इवनिंग वौक करना जरूर शुरू करें ताकि आप की बौडी उस के लिए तैयार हो सके.
यहां बहुत सारी मोनैस्टरीज भी हैं जहां आप जरूर जाएं.
फोतुला दर्रा : अगर आप लेह घूम चुके हैं और आसपास कोई और रोमांचक जगह देखना चाहते हैं तो श्रीनगरलेह राजमार्ग पर सब से ऊंचे दर्रे फोतुला का आनंद उठा सकते हैं.
कैसे पहुंचे
– अगर आप हवाई जहाज से कुल्लूमनाली जाना चाहते हैं तो आप को भुंतर हवाईअड्डे पर उतरना पड़ेगा. आप चंडीगढ़ हवाईअड्डे पर उतर कर भी यहां पहुंच सकते हैं.
– यदि आप ट्रेन से जाना चाहते हैं तो आप को जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन उतरना पड़ेगा, जो कूल्लू के काफी नजदीक है.
– आप हिमाचल प्रदेश टूरिज्म की बसों द्वारा भी खूबसूरत पहाडि़यों का नजारा देख कर वहां पहुंच सकते हैं. कुल्लू पहुंचने के बाद आप वहां प्राइवेट गाड़ी कर के इन सभी स्थलों की सैर कर सकते हैं.
आप इन सभी जगहों के स्थानीय बाजार व स्ट्रीट फूड को भी एंजौय करें और अपने ट्रिप को यादगार बनाएं.
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पश्चिमी कौरिडोर के एक भाग में महाराष्ट्र का कोंकण तट आता है, जो भारत के पश्चिमी भाग का पर्वतीय हिस्सा है. यह स्थान समुद्रतटों के साथसाथ पहाड़ों और प्राकृतिक वनस्पति की खूबसूरती को भी अपने में समेटे हुए है. ऐडवैंचर के शौकीन पर्यटकों के लिए यह स्थान खास है. एमटीडीसी (महाराष्ट्र टूरिज्म डैवलपमैंट कौरपोरेशन) के जौइंट एमडी आशुतोष राठौड़ कहते हैं कि पहले महाराष्ट्र केवल धार्मिक और प्राकृतिक टूरिज्म के लिए ही जाना जाता था लेकिन पिछले 3-4 सालों में यह ग्लोबल टूरिज्म स्पौट के तौर पर उभरा है, जिस में मैडिकल, ऐडवैंचर, फोर्ट सर्किट, एग्रो टूरिज्म आदि आ गए हैं. यहां सैलानियों की संख्या में करीब 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. महाराष्ट्र में उस के वैलनैस हब होने की अवधारणा पर काम किया जा रहा है.
मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली मुंबई में पर्यटकों के लिए ढेरों ऐसी जगहें हैं जहां सैलानी अपनी छुट्टियों का आनंद उठा सकते हैं. मायानगरी की माया ऐसी है कि यहां कोई एक बार आता है तो उस का मन बारबार यहां आना चाहता है.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट से मुंबई घूमा जा सकता है. यहां एसी और नौन एसी बसें और टैक्सी चलती हैं, जो शहर के हर स्थान को कवर करती हैं.
7-8 घंटे में ये बसें पूरी मुंबई की सैर करवा देती हैं. ये काफी किफायती भी होती हैं. यातायात की यह सुविधा मुंबई के बीचोंबीच गेटवे औफ इंडिया और दादर में उपलब्ध है, जिसे औनलाइन बुक किया जा सकता है.
गेटवे औफ इंडिया को भारत का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. 1924 में ब्रिटिशकाल में बने इस द्वार का उद्देश्य ब्रिटिश महाराज जौर्ज बी और महारानी मैरी के भारत आगमन पर स्वागत करना था. इस के अलावा मुंबई के देश के प्रमुख बंदरगाह होने की वजह से भी इस का नाम गेटवे औफ इंडिया रखा गया. यह इलाका अपोलो बंदरगाह के सामने होने की वजह से आज दुनियाभर का दर्शनीय स्थल बन गया है.
गेटवे औफ इंडिया के पास ही होटल ताज है, जो देखने लायक है. इसे 1902 में जमशेदजी टाटा ने बनवाया था. 2008 में 26/11 का आतंकवादी हमला इसी होटल में हुआ था.
छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय गेटवे से पैदल दूरी पर है. इस की स्थापना 10 जनवरी, 1922 को हुई थी. इस के निर्माण में मुगलों, मैराथन और जैनों की मिलीजुली शैली दिखाई पड़ती है. यहां आने पर भारत की पुरानी संस्कृति के बारे में पता चलता है. यहां अंदर औडियो गाइड मिलते हैं जो 40 रुपए ले कर संग्रहालय के अंदर रखी वस्तुओं के बारे में बताते हैं.
मरीन ड्राइव की सुंदरता रात को देखते ही बनती है. रात को जब स्ट्रीट लाइट्स जलती हैं तो ऐसा लगता है कि मानो किसी रानी ने गले में हार पहना हो. इसे क्लीन नेकलैस भी कहते हैं. 4 किलोमीटर में फैली यह सड़क मुंबई की सब से सुंदर सड़कों में से एक है. इसे लवर्स पौइंट भी कहते हैं. यहां की चाट और चाय बहुत प्रसिद्ध हैं.
मरीन ड्राइव के पास ही चौपाटी बीच है, जिसे गिरगांव चौपाटी भी कहा जाता है. खानपान के शौकीनों के लिए यह खास है. यहां ठेलों पर कई तरह की चाट, पानीपूरी और भेलपूरी मिलती हैं. यहां बग्घी पर बैठने का आनंद भी लिया जा सकता है.
जुहू बीच पर सैलानियों का हमेशा तांता लगा रहता है. साथ ही यहां कई नामीगिरामी फिल्मी हस्तियों के घर होने की वजह से यह समुद्री किनारा काफी पौपुलर है.
यहां की पावभाजी, भेलपूरी, पानीपूरी, बर्फ का गोला आदि पूरे मुंबई में प्रसिद्ध होने की वजह से लोग दूरदूर से इस का स्वाद लेने पहुंचते हैं. यहां घुड़सवारी, बंदर नाच और लोकल खिलौनों का मजा भी पर्यटक खूब लेते हैं.
एलिफैंटा केव, गेटवे औफ इंडिया से 9 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र के बीच में पहाड़ को काट कर बनाया गया एक विशेष स्थल है जिस की कलाकृति बहुत ही उम्दा है. इस में बने हौल, आंगन, खंभे काफी कलात्मक हैं. यहां जाने के लिए मोटरबोट का सहारा लेना पड़ता है, जो हर 30 मिनट पर आतीजाती हैं. यह बोट सेवा गेटवे औफ इंडिया से सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक उपलब्ध रहती है.
इस के अलावा मुंबई में देखने के लिए एस्सेल वर्ल्ड, संजय गांधी नैशनल पार्क, कलाघोड़ा भवन आदि हैं जिन्हें घूमने में 2 दिन का समय लगता है.
यहां रहने और खानेपीने की ढेरों जगहें हैं, जिन्हें बजट के अनुसार बुक किया जा सकता है. मुंबई स्ट्रीट शौपिंग के लिए जानी जाती है. यहां कई चीजें किफायती दामों पर मिल जाती हैं. कोलाबाकाजवे, लिंकिंग रोड, हिल रोड आदि कुछ ऐसी जगहें हैं, जहां जूते, चप्पल और कपड़े सस्ते दामों पर मिलते हैं.
माथेरान
महाबलेश्वर से तकरीबन 5 घंटे की ड्राइव के बाद रायगढ़ स्थित माथेरान हिल स्टेशन पर पहुंचा जा सकता है. समुद्रतल से 2,650 फुट की ऊंचाई पर बसा यह महाराष्ट्र का खास पर्यटन स्थल है. यहां प्रदूषणरहित वातावरण, आकर्षक दृश्य, ठंडी हवा के झोंके, दूरदूर तक फैली हरीभरी घाटी और उड़ते बादल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं. यहां के खास आकर्षण चरलोटी झील, पेमास्टर पार्क, रामबाग, ओलंपिया रेसकोर्स, पैनोरमा पौइंट, कैथेड्रल पार्क, मंकी पौइंट आदि हैं.
चरलोटी झील में पिकनिक के लिए काफी लोग आते हैं. इसी झील से पूरे माथेरान को पानी सप्लाई होता है. पेमास्टर पार्क बच्चों के लिए खास आकर्षक जगह है, जबकि रामबाग माथेरान के घने जंगलों के बीच स्थित है. इस का मुख्य आकर्षण इस की सीढि़यां हैं, जहां से ऊपर चढ़ कर वहां की हरियाली का आनंद लिया जा सकता है. ओलंपिया रेसकोर्स में घुड़सवारी का आनंद लिया जा सकता है, जो यूथ के लिए खास आकर्षण का केंद्र है. पैनोरमा पौइंट अपनी नैचुरल खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है, जबकि कैथेड्रल पार्क की सुंदरता रात को देखते ही बनती है.
यह स्थान रेल और सड़कमार्ग से जुड़ा है. निकटतम रेलवेस्टेशन नेरल है.
यहां एक छोटी टौय ट्रेन भी है, जो नेरल को माथेरान के मुख्य बाजार से जोड़ती है. इस के अलावा सार्वजनिक और निजी बसें भी यहां आती हैं, जो लक्जरी और नौन लक्जरी दोनों तरह की होती हैं.
यहां ठहरने की अच्छी सुविधा है. होटल, गैस्टहाउस, विला, मोटेल के अलावा छोटेछोटे मकानों में भी ठहरने की उत्तम व्यवस्था है. वैसे तो पूरे साल यहां सैलानियों का तांता लगा रहता है लेकिन जाड़े के मौसम में यहां आना उत्तम होता है.
खंडाला
लोनावाला से 3 किलोमीटर की दूरी पर मुंबईपुणे राजमार्ग पर प्रसिद्ध रमणीक स्थल और पर्वतीय नगर खंडाला है. सहृद्री पर्वत शृंखला के पश्चिमी घाट पर भोरघाट के छोर पर स्थित यह स्थान छोटा, लेकिन शांत है. वर्षाऋतु की प्रथम फुहार के बाद खंडाला का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत मनोहारी हो जाता है. इस स्थान पर बौलीवुड फिल्मों की अकसर शूटिंग होने की वजह से पर्यटकों के लिए यह काफी लोकप्रिय है. हाईकिंग के शौकीन पर्यटकों के लिए खंडाला खास है. ड्यूक की नाक पहाड़ी से खंडाला और भोर घाट के सुंदर नजारों का आनंद लिया जा सकता है.
यहां विशेषकर, विश्रामगृहों, धर्मशालाओं, सैनिटोरियम और कम बजट के होटलों की भरमार है. किसी भी मौसम में यहां जाया जा सकता है, क्योंकि यहां मौसम पूरे साल खुशनुमा रहता है.
लोनावाला
मुंबई से करीब 2 घंटे की ड्राइव कर लोनावाला पहुंचा जा सकता है. परिवार के साथ घूमने के लिए यह उत्तम जगह है. समुद्रतल से 622 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह हिल स्टेशन सहयाद्रि पर्वत पर स्थित है. यहां जलवायु पूरे साल अच्छी रहती है, जो पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र है. बरसात में इस स्थान की खूबसूरती और अधिक बढ़ जाती है. यहां की गुफाएं लोनावाला के आकर्षणों में से एक हैं. 200 ईसापूर्व की बनी 18 गुफाएं भिन्नभिन्न शैली की हैं. इस के अलावा यहां ट्रैकिंग का भी मजा लिया जा सकता है. इस के अलावा वलवम डैम, रोज गार्डन, वैक्स म्यूजियम, करला केव्स, लोहागढ़ किला आदि भी घूमने के लिए बेहतर स्थान हैं. लोनावाला के पास बुशी डैम है, जो स्थानीय लोगों के लिए पार्टी करने के लिए बेहतर जगह है.
बस, रेल और टैक्सी से आसानी से यहां जाया जा सकता है. पुणे जाने वाली सभी ट्रेनें लोनावाला से हो कर गुजरती हैं. यहां ठहरने और खानेपीने की ढेरों जगहें हैं, जिन्हें अपने बजट के अनुसार औनलाइन बुक कराया जा सकता है.
पुणे
लोनावाला से करीब सवा घंटे ड्राइव कर पुणे पहुंचा जा सकता है. पुणे को महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है. इसे क्वीन औफ दक्कन के नाम से भी जाना जाता है. यहां उच्चकोटि के शिक्षण संस्थान, शोध केंद्र के साथसाथ योगा, आयुर्वेद, समाज सेवा आदि से जुडे़ कई केंद्र हैं. वर्तमान समय में पुणे तकनीकी दृष्टिकोण से भी काफी विकसित हो चुका है.
ऐतिहासिक रूप से भी यह स्थान काफी चर्चित है. मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म पुणे के शिवनेरी में ही हुआ था. उन का साम्राज्य यहीं था. फलस्वरूप, यहां कई बड़ेबड़े महल और उन के अवशेष देखने को मिलते हैं.
शनिवार वाड़ा : यह पेशवाओं का निवास था. इस की नींव बाजीराव प्रथम ने 1730 ईस्वी में रखी थी. इस महल की दीवारों पर रामायण और महाभारत के दृश्य चित्रित हैं. कमल के 16 फूलों के आकार में बना फौआरा उस समय की तकनीक की पहचान है.
इस महल में हर दिन लाइट ऐंड म्यूजिक शो का आयोजन किया जाता है. यह सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक प्रत्येक दिन खुला रहता है, जिस का प्रवेश शुल्क 15 रुपए है.
आगा खान महल : इस का निर्माण आगा खान ने 1892 में कराया था. 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, उन की पत्नी कस्तूरबा गांधी और उन के सचिव महादेव भाई देसाई इसी महल में रहे थे.
कात्रज सर्प उद्यान : इस उद्यान में बड़ी संख्या में सांप और रेंगने वाले जंतुओं के अलावा मगरमच्छ भी पाए जाते हैं. यहां एक संग्रहालय है, जहां सांपों के बारे में काफी दिलचस्प जानकारी मिलती है.
पुणे से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर खूबसूरत कोणार्क पक्षी अभयारण्य है. यहां कई विदेशी पक्षी भी मौजूद हैं, जिन में औस्ट्रेलिया का बेयर आइड कोकेटू, चीन का पीला सुनहरा तीतर, कीनिया का रिंग आइड तीतर आदि हैं.
पुणे में खानेपीने की अच्छी सुविधाएं हैं. सब से अधिक रैस्तरां सैनिक छावनी के पास बोट क्लब रोड, कोरगांव पार्क और मुख्य सड़क पर स्थित हैं.
खरीदारी के लिए यह स्थान बहुत अच्छा है. महाराष्ट्र की नौवारी साड़ी से ले कर गहने तक सभी यहां किफायती दामों पर मिलते हैं. यहां कपड़े, साडि़यां, डिजाइनर घडि़यां, जूते, बैग आदि खरीदे जा सकते हैं, लेकिन ये दुकानें 1 बजे से 4 बजे तक बंद रहती हैं.
पुणे हवाई, रेल और सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है. यहां ठहरने की भी सुविधाएं मौजूद हैं. छोटे बजट के होटल भी काफी हैं.
महाबलेश्वर
महाराष्ट्र के सतारा जिले के महाबलेश्वर में तापमान पूरे साल खुशनुमा रहता है. समुद्रतल से 1,438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पर्यटन स्थल को महाराष्ट्र के हिल स्टेशन की रानी कहा जाता है. दूरदूर तक फैली हरीभरी पहाडि़यों की छटा देखते ही बनती है. पुणे से करीब 3 घंटे की ड्राइव के बाद पश्चिमोत्तर में सह्याद्रि की पहाडि़यों में स्थित इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है.
एलिफैंट हैड पौइंट, बौंबे पौइंट, सावित्री पौइंट, और्थर पौइंट आदि यहां काफी मशहूर पौइंट हैं. महाबलेश्वर जाने पर प्रतापगढ़ का किला देखना न भूलें, जो वहां से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर है.
कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने ताकतवर योद्धा अफजल खान को नाटकीय तरीके से मार कर किले पर कब्जा कर लिया था. जहां से मराठा साम्राज्य ने निर्णायक मोड़ लिया था. पानघाट पर स्थित यह किला शिवाजी महाराज के 8 प्रमुख किलों में से एक है. सनराइज पौइंट देखने की खास जगह है, जहां से आप सूर्योदय का आनंद ले सकते हैं.
एलिफैंट हैड पौइंट में पत्थरों की बनावट हाथी के सिर के आकार की है, जो देखने लायक है, जबकि बौंबे पौइंट से पहले पूरी मुंबई दिखाई पड़ती थी, लेकिन अब केवल साफ मौसम में ही दिखती है.
इस के अलावा लिंग्माला वाटर फौल, वेन्ना लेक, पुराना महाबलेश्वर मंदिर, हेरेसन फौल, कमलगढ़ का किला आदि सभी देखने योग्य स्थान हैं. वेन्ना लेक में पैडल बोट, रोइंग बोट, रंगबिरंगी मछलियां पकड़ना, घुड़सवारी करने का आनंद आप परिवार के साथ ले सकते हैं. यहां एग्रो टूरिज्म का भी काफी विकास हुआ है. इस के अंतर्गत यहां बडे़ पैमाने पर स्ट्राबैरी की खेती होती है. यहां पर्यटक ताजीताजी स्ट्राबैरी के स्वाद का आनंद लेते हैं.
महाबलेश्वर में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन मिलता है. यहां आने वाले 75 प्रतिशत पर्यटक गुजराती होते हैं, इसलिए यहां पर उन की पसंदीदा कढ़ीखिचड़ी और दालखिचड़ी हर रैस्तरां में मिलती है.
खरीदारी के लिए यह स्थान काफी अच्छा है. यहां छोटीछोटी दुकानों में हैंडमेड नैचुरल स्ट्राबैरी आइसक्रीम मिलती है, जिसे आप अपनी पसंद के अनुसार बनवा कर खा सकते हैं.
यहां स्थानीय फलों से बने जैम, जैली, जूस, सिरप और चौकलेट फ्रेश व सस्ते होने के साथसाथ स्वादिष्ठ भी होते हैं. यहां आने के लिए सब से अच्छा मौसम अप्रैल से दिसंबर तक रहता है. मानसून के दौरान भी यहां लोग आते हैं.
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पूर्वोत्तर भारत में गरमी के मौसम में घूमने लायक कई अच्छे शहर है जो प्राकृतिक संपदा के साथ आधुनिकता का बेहतर तालमेल रखते हैं. पर्यटन के लिए पूर्वी कौरिडोर में दार्जिलिंग, कलिंगपोंग, कोलकाता, भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क प्रमुख स्थल हैं. यहां पहाड़, झरने व झील देखने में बहुत सुंदर लगते हैं. ऐतिहासिक पर्यटन के साथसाथ यहां बागबानी को भी देखासमझा जा सकता है. प्रदूषण यहां न के बराबर है. ये सभी स्थल शुद्ध हवा के साथ मन को शांति देते हैं.
दार्जिलिंग
दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का खूबसूरत शहर है. यह चाय के साथ मसालों के लिए भी प्रसिद्ध है. इस का नजदीकी रेलजोन जलपाईगुड़ी है. कोलकाता से दार्जिलिंग मेल तथा कामरूप ऐक्सप्रैस जलपाईगुड़ी जाती हैं. दिल्ली से गुवाहाटी डिब्रूगढ़ राजधानी ऐक्सप्रैस यहां तक आती है. इस के अलावा टौय ट्रेन से जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग 8-9 घंटे में पहुंचा जा सकता है.
दार्जिलिंग सड़कमार्ग से सिलीगुड़ी से 2 घंटे की दूरी पर स्थित है. कोलकाता से सिलीगुड़ी के लिए बहुत सी सरकारी व निजी बसें चलती हैं. दार्जिलिंग हवाईमार्ग से भी जुड़ा हुआ है. बागडोगरा (सिलीगुड़ी) यहां का नजदीकी हवाईअड्डा (90 किलोमीटर) है. यह दार्जिलिंग से 2 घंटे की दूरी पर है. यहां से कोलकाता और दिल्ली के लिए प्रतिदिन उड़ानें संचालित की जाती हैं. इस के अलावा गुवाहाटी तथा पटना से भी यहां के लिए उड़ानें हैं.
दार्जिलिंग के टाइगर हिल का मुख्य आनंद चढ़ाई करने में है. हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे. इसी के पास कंचनजंघा चोटी है. टाइगर हिल से कंचनजंघा और एवरेस्ट दोनों चोटियों को देख सकते हैं. दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फुट का अंतर है. वर्तमान में कंचनजंघा विश्व की तीसरी सब से ऊंची चोटी है. कंचनजंघा को सब से रोमांटिक माउंटेन की उपाधि से नवाजा गया है. इस की सुंदरता के कारण पर्यटकों ने इसे इस उपाधि से नवाजा है.
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का निर्माण 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था. यह रेलमार्ग इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना है. यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है. यह पूरा रेलखंड समुद्रतल से 7,546 फुट ऊंचाई पर स्थित है.
यह रेलखंड कई टेढ़ेमेढ़े रास्तों तथा वृत्ताकार मार्गों से हो कर गुजरता है. इस रेलखंड का सब से सुंदर भाग बताशिया लूप है. इस जगह रेलखंड 8 अंक के आकार में हो जाता है. ट्रेन से पूरा दार्जिलिंग घूम सकते हैं. ट्रेन से सफर करते हुए इस के चारों ओर के प्राकृतिक नजारों का लुत्फ ले सकते हैं. ट्रेन पर यात्रा करने के लिए या तो सुबह जाएं या फिर देर शाम को.
कलिंगपोंग
कलिंगपोंग शहर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में स्थित है. यह प्रमुख हिल स्टेशन है. दार्जिलिंग और गंगटोक इसी शहर से हो कर जाया जाता है. गाड़ी से इस शहर को एक दिन में घूमा जा सकता है. इस शहर को पैदल घूमने में 2 या 3 दिन का समय लगता है. कलिंगपोंग पूर्वोत्तर हिमालय के पीछे स्थित है. यहां से कंचनजंघा पर्वतशृंखला तथा तिस्ता नदी की घाटी का बहुत सुंदर नजारा दिखता है.
गोंपा कलिंगपोंग में स्थित सभी मठों में सब से पुराना है. इसे भूटानी मठ के नाम से भी जाना जाता है. यहां प्रसिद्ध आर्मी गोल्फ क्लब है. इस के अलावा यहां तिस्ता नदी में रोमांचक खेल राफ्टिंग की शुरुआत की गई है. यह स्थान तिस्ता बाजार के नजदीक स्थित है. यहां घूमने के लिए मध्य नंवबर से फरवरी तक सब से अच्छा सीजन रहता है.
इस के अलावा हाइकिंग खेल का मजा तिस्ता नदी की घाटी में सालभर लिया जा सकता है. तिस्ता नदी पर प्रसिद्ध शांको रोपवे है. यह रोपवे 120 फुट की ऊंचाई पर है.
कलिंगपोंग में हर चौराहे पर स्टीम मोमोज, हक्का (नूडल सूप) तथा चो आदि खाने को मिलता है. कलिंगपोंग में अच्छे रैस्टोरैंट भी हैं. केक, पेस्ट्री, पैटीज, चाय तथा कौफी यहां मिलती है. मंडारिन रैस्टोरैंट मांसाहारी भोजन के लिए प्रसिद्ध है. लिंक रोड को तिब्बती भोजन के लिए जाना जाता है. भूटिया शिल्प, लकड़ी का हस्तशिल्प, बैग, पर्स, आभूषण, थंगा पेंटिंग्स तथा चाइनीज लालटेन की खरीदारी यहां की जा सकती है. कलिंगपोंग का स्थानीय चीज तथा लौलीपौप यहां आने वाले पर्यटकों को बहुत पसंद आता है.
हवाईमार्ग से कलिंगपोंग का सब से नजदीकी हवाईअड्डा बागडोगरा है. यहां से सिलीगुड़ी 69 किलोमीटर दूर है. रेलमार्ग का सब से नजदीकी रेलवे स्टेशन नई जलपाईगुड़ी जंक्शन है. सड़कमार्ग से सिलीगुड़ी (70 किलोमीटर) से यह जुड़ा हुआ है. यहां से कलिंगपोंग के लिए सरकारी व निजी बसें चलती हैं.
कोलकाता
हुगली नदी के किनारे स्थित कोलकाता पश्चिम बंगाल की राजधानी है. देश का सब से बड़ा बंदरगाह यहीं है. कोलकाता को पूर्वी भारत का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. यह रेलमार्ग, वायुमार्ग तथा सड़कमार्ग से देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है. यह यातायात का केंद्र, विस्तृत बाजार वितरण केंद्र, शिक्षा केंद्र, औद्योगिक केंद्र तथा व्यापार का केंद्र है. यहां अजायबघर, चिडि़याखाना, बिरला तारामंडल, हावड़ा ब्रिज, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मैमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं.
कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के अधिकांश जूट के कारखाने हैं. इस के अलावा यहां मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूतीवस्त्र उद्योग, कागज उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग और चाय विक्रय केंद्र आदि स्थित हैं.
फोर्ट विलियम, हुगली नदी के समीप भारत के सब से बड़े पार्कों में से एक है. यह 3 वर्ग किलोमीटर में फैला है. मैदान के पश्चिम में फोर्ट विलियम है. फोर्ट विलियम को अब भारतीय सेना के लिए उपयोग में लाया जाता है. यहां प्रवेश के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है. ईडन गार्डन्स में एक छोटे से तालाब में बर्मा का पेगोडा स्थापित किया गया है, जो इस गार्डन का विशेष आकर्षण है. 1906 से 21 के बीच निर्मित विक्टोरिया मैमोरियल रानी विक्टोरिया को समर्पित है. इस स्मारक में शिल्पकला का सुंदर मिश्रण है.
भुवनेश्वर
भुवनेश्वर ओडिशा की राजधानी है. यहां के निकट कोणार्क में विश्वप्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है. यह बहुत खूबसूरत और हराभरा प्रदेश है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. इतिहास में यह अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. तीसरी शताब्दी, ईसापूर्व यहीं कलिंग युद्ध हुआ था. इसी युद्ध के परिणामस्वरूप अशोक एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रूप में परिणत हो गया था. बौद्ध धर्म की तरह यहां जैन धर्म से संबंधित कलाकृतियां भी मिलती हैं.
राजधानी से 6 किलोमीटर दूर उदयगिरि तथा खंडगिरि की गुफाओं में जैन राजा खारवेल की बनवाई कलाकृतियां मिली हैं जोकि काफी अच्छी हालत में है.
राजारानी मंदिर की दीवारों पर सुंदर कलाकृतियां बनी हुई हैं. ये कलाकृतियां खजुराहो मंदिर की कलाकृतियों की याद दिलाती हैं. राजारानी मंदिर से थोड़ा आगे जाने पर ब्रह्मेश्वर मंदिर स्थित है. इस मंदिर की दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गई है. इन में से कुछ कलाकृतियों में स्त्रीपुरुष को कामकला की विभिन्न मुद्राओं में दर्शाया गया है. राजारानी मंदिर से 100 गज की दूरी पर मुक्तेश्वर मंदिर समूह है.
भुवनेश्वर में कई मशहूर मंदिर हैं जिन को देखने से मूर्तिकारों की कुशलता का पता चलता है. इस मंदिर की दीवारों पर खजुराहो के मंदिरों जैसी मूर्तियां उकेरी गई हैं. इसी मंदिर के भोग मंडप की बाहरी दीवार पर मनुष्य और जानवर को सैक्स करते हुए दिखाया गया है. भुवनेश्वर का राज्य संग्रहालय देखने योग्य है. यह संग्रहालय जयदेव मार्ग पर स्थित है. भुवनेश्वर के आसपास देखने योग्य स्थलों में हीरापुर है जो 15 किलोमीटर दूर बसा एक गांव है. इसी गांव में भारत का सब से छोटा योगिनी मंदिर चौसठ योगिनी है. इस मंदिर में 64 योगिनियों की मूर्तियां बनाई गई हैं. धौली भुवनेश्वर के दक्षिण में राजमार्ग संख्या 203 पर स्थित है.
यह वही स्थान है जहां अशोक कलिंग युद्ध के बाद पश्चात्ताप की अग्नि में जला था. इसी के बाद उस ने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया और जीवनभर अहिंसा के संदेश का प्रचारप्रसार किया. अशोक के प्रसिद्ध पत्थर स्तंभों और शांति स्तूप भी घूमने लायक हैं जोकि धौली पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है.
खाने के लिए मशहूर
भुवनेश्वर में ओडिशा और बंगाली भोजन को लगभग एकसमान माना जाता है लेकिन स्वाद के मामले में एकदूसरे से बहुत भिन्न. चावल ओडिशा का प्रमुख भोजन है. पखाभात यहां की लोकप्रिय डिश है. यह भोजन एक दिन पहले के चावल को आलू के साथ तल कर बनाया जाता है. इस के साथ आम, आलू भरता, बड़ी चूरा पोईसाग खाया जाता है. ओडिशा की छतु तरकारी एक तीखा भोजन है जो मशरूम से बनता है.
यहां हर खाने में पंचफ ोरन मिलाने का रिवाज है. यह एक खास तरह का मसाला होता है जिसे हर भोजन में मिला दिया जाता है. इसे भोजन में मिलाने से खाना स्वादिष्ठ हो जाता है. इस के अलावा यहां का तड़का, डालमा, पीठा तथा नारियल के तेल में बनी पूड़ी भी लोग खाते है. महूराली-चड़चड़ी एक प्रकार की मछली डिश है जो छोटी मछली से बनती है.
चिंगुडि भी एक प्रकार की डिश है जो चिलका झील में पाई जाने वाली झींगा मछली से बनी होती है. यह भोजन तरकारी की तरह बनाया जाता है. इसी प्रकार का एक अन्य भोजन माछभजा है जो मीठे पानी में पाई जाने वाली रोहू मछली से बना होता है.
मिठाइयों में छेनापोड और छेनागजा मिलती हैं. यहां का दहीबड़ा भी काफी प्रसिद्ध है जोकि इमली की चटनी के साथ परोसा जाता है.
पुरी
पुरी ओडिशा प्रांत का एक जिला है. यहां लहरों का भरपूर आनंद लिया जा सकता है. 65 मीटर ऊंचा जगन्नाथ मंदिर पुरी के सब से शानदार स्मारकों में से एक है. पुरी से 8 किलोमीटर दूर नुआनई नदी के मुहाने पर बालीघई बीच प्रसिद्ध पिकनिकस्पौट है, यह चारों ओर से कौसरीना के पेड़ों से घिरा है. पुरी में समुद्रतट का मजा भी लिया जा सकता है.
कोणार्क
कोणार्क ओडिशा प्रदेश के पुरी जिले में पुरी के जगन्नाथ मंदिर से 21 मील उत्तरपूर्व में समुद्रतट पर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित है. यहां का सूर्य मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है. मंदिर के भीतर एक नृत्यशाला और एक हौल है.
कई नक्काशियां, विशेषकर मुख्य प्रवेशद्वार पर पत्थरों से निर्मित हाथियों को मारते 2 बड़े सिंह दिखते हैं. प्रत्येक मूर्ति बनाने में हाथ के कौशल और दिमाग की चतुराई का इस्तेमाल किया गया है.
सूर्यदेव की 3 सिरों वाली आकृति इस बात का उदाहरण है कि सूर्यदेव के तीनों सिर विभिन्न दिशाओं में हैं जो सूर्योदय, उस के चमकने और सूर्यास्त का आभास देते हैं. इस मूर्ति के बदलते भावों को देखना चाहिए. सुबह के समय की स्फूर्ति और सायंकाल होतेहोते दिखने वाली थकान के भाव देखने योग्य हैं.
मंदिर परिसर के दक्षिणपूर्वी कोने में सूर्यदेव की पत्नी माया देवी को समर्पित एक मंदिर है. यहां नवग्रहों वाला मतलब सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, जुपीटर, शुक्र, शनि, राहू और केतु को समर्पित मंदिर भी है. यहां मंदिर के समीपवर्ती समुद्रतट पर आराम किया या घूमा जा सकता है.
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किंतु रात को अकेले होते ही साकेत से जब मैं ने यह बात पूछनी चाही तो साकेत मुझे बाहों में भर कर बोले, ‘देखो, कल रात कालका मेल से शिमला जाने के टिकट ले आया हूं. अब वहां सिर्फ तुम होगी और मैं, ढेरों बातें करेंगे.’ और भी कई प्यारभरी बातें कर मेरे निखरे रूप का काव्यात्मक वर्णन कर के उन्होंने बात को उड़ा दिया.
मैं ने भी उन उन्मादित क्षणों में यह सोच कर विचारों से मुक्ति पा ली कि ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि प्यार किसी और से किया होगा पर विवाह तो मुझ से हो गया है. और मैं थकान से बोझिल साकेत की बांहों में कब सो गई, मुझे पता ही न चला.
दूसरे दिन शिमला जाने की तैयारियां चलती रहीं. तैयारियां करते हुए कई बार वही सवाल मन में उठा लेकिन हर बार कोई न कोई बात ऐसी हो जाती कि मैं साकेत से पूछतेपूछते रह जाती. रात को कालका मेल से रिजर्व कूपे में हम दोनों ही थे. प्यारभरी बातें करतेकरते कब कालका पहुंच गए, हमें पता ही न चला. सुबह 7 बजे टौय ट्रेन से शिमला पहुंचने के लिए उस गाड़ी में जा बैठे.
घुमावदार पटरियों, पहाड़ों और सुरंगों के बीच से होती हुई हमारी गाड़ी बढ़ी जा रही थी और मैं साकेत के हाथ पर हाथ धरे आने वाले कल की सुंदर योजनाएं बना रही थी.
मैं बीचबीच में देखती कि साकेत कुछ खोए हुए से हैं तो उन्हें खाइयों और पहाड़ों पर उगे कैक्टस दिखाती और सुरंग आने पर चीख कर उन के गले लग जाती.
खैर, किसी तरह शिमला भी आ गया. पहाड़ों की हरियाली और कोहरे ने मन मोह लिया था. स्टेशन से निकल कर हम मरीना होटल में ठहरे.
कुछ देर आराम कर के चाय आदि पी कर हम माल रोड की सैर को निकल पड़े. साकेत सैर करतेकरते इतनी बातें करते कि ऊंची चढ़ाई हमें महसूस ही न होती. माल रोड की चमकदमक देख कर और खाना खा कर हम अपने होटल लौट आए. लौटते हुए काफी रात हो गई थी व पहाड़ों की ऊंचाईनिचाई पर बसे होटलों व घरों की बत्तियां अंधेरे में तारों की झिलमिलाहट का भ्रम पैदा कर रही थीं. दूसरे दिन से घूमनेफिरने का यही क्रम रहने लगा. इधरउधर की बातें करतेकरते हाथों में हाथ दिए हम कभी रिज, कभी माल रोड, कभी लोअर बाजार और कभी लक्कड़ बाजार घूम आते.
दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए तो साकेत हमेशा टैक्सी ले लेते. संकरी होती नीचे की खाई देख कर हम सिहर जाते. हर मोड़ काटने से पहले हमें डर लगता पर फिर प्रकृति की इन अजीब छटाओं को देखने में मग्न हो जाते.
इस प्रकार हम ने वाइल्डफ्लावर हौल, मशोबरा, फागू, चैल, कुफरी, नालडेरा, नारकंडा और जाखू की पहाड़ी सभी देख डाले. हर जगह ढेरों फोटो खिंचवाते. साकेत को फोटोग्राफी का बहुत शौक था. हम ने वहां की स्थानीय पोशाकें पहन कर ढेरों फोटो खिंचवाईं. मशोबरा के संकरे होते जंगल की पगडंडियों पर चलतेचलते साकेत कोई ऐसी बात कह देते कि मैं खिलखिला कर हंस पड़ती पर आसपास के लोगों के देखने पर
हम अचानक अपने में लौट कर चुप हो जाते. नारकंडा से हिमालय की चोटियां और ग्लेशियर देखदेख कर प्रकृति के इस सौंदर्य से और उन्मादित हो जाते.
इस प्रकार हर जगह घूम कर और माल रोड से खापी कर हम अपने होटल लौटने तक इतने थक जाते कि दूसरे दिन सूरज उगने पर ही उठते.
इस तरह घूमतेघूमते कब 10 दिन गुजर गए, हमें पता ही न चला. जब हम लौट कर वापस दिल्ली पहुंचे तो शिमला की मस्ती में डूबे हुए थे.
साकेत अब अपनी वर्कशौप जाने लगे थे. मैं भी रोज दिन का काम कराने के लिए रसोई में जाने लगी.
एक दिन चुपचाप मैं अपने कमरे में खिड़की पर बैठी थी कि साकेत आए. मैं अभी कमरे में उन के आने का इंतजार ही कर रही थी कि मेरी सासूजी की आवाज आई, ‘साकेत, कल काम पर मत जाना, तुम्हारी तारीख है.’ और साकेत का जवाब भी फुसफुसाता सा आया, ‘हांहां, मुझे पता है पर धीरे बोलो.’
उन लोगों की बातचीत से मुझे कुछ शक सा हुआ. एक बार आगे भी मन में यह बात आई थी लेकिन साकेत ने टाल दिया था. मुझे खुद पर आश्चर्य हुआ, पहले दिन जिस बात को साकेत ने प्यार से टाल दिया था उसे मैं शिमला के मस्त वातावरण में पूछना ही भूल गई थी. खैर, आज जरूर पूछ कर रहूंगी. और जब साकेत कमरे में आए तो मैं ने पूछा, ‘कल किस बात की तारीख है?’
साकेत सहसा भड़क से उठे, फिर घूरते हुए बोले, ‘हर बात में टांग अड़ाने को तुम्हें किस ने कह दिया है? होगी कोई तारीख, व्यापार में ढेरों बातें होती हैं. तुम्हें इन से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. और हां, कान खोल कर सुन लो, आसपड़ोस में भी ज्यादा आनेजाने की जरूरत नहीं. यहां की सब औरतें जाहिल हैं. किसी का बसा घर देख नहीं सकतीं. तुम इन के मुंह मत लगना.’ यह कह कर साकेत बाहर चले गए.
मैं जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गई. एक तो पहली बार डांट पड़ी थी, ऊपर से किसी से मिलनेजुलने की मनाही कर दी गई. मुझे लगा कि दाल में अवश्य ही कुछ काला है. और वह खास बात जानने के लिए मैं एड़ीचोटी का जोर लगाने के लिए तैयार हो गई.
दूसरे दिन सास कहीं कीर्तन में गई थीं और साकेत भी घर पर नहीं थे. काम वाली महरी आई. मैं उस से कुछ पूछने की सोच ही रही थी कि वह बोली, ‘मेमसाहब, आप से पहले वाली मेमसाहब की साहबजी से क्या खटरपटर हो गई थी कि जो वे चली गईं, कुछ पता है आप को?’
यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसकने लगी. कुछ रुक कर वह धीमी आवाज में मुझे समझाती हुई सी बोली, ‘साहब की एक शादी पहले हो चुकी है. अब उस से कुछ मुकदमेबाजी चल रही है तलाक के लिए.’ सुन कर मेरा सिर चकरा गया.
सगाई और शादी के समय साकेत का खोयाखोया रहना, सगाई के लिए मांबाप तक को न लाना और शादी में सिर्फ 5 आदमियों को बरात में लाना, अब मेरी समझ में आ गया था. पापा खुद सगाई के बाद आ कर घरबार देख गए थे. जा कर बोले थे, ‘भई, अपनी सुनीता का समय बलवान है. अकेला लड़का है, कोई बहनभाई नहीं है और पैसा बहुत है. राज करेगी यह.’
उन को भी तब इस बात का क्या गुमान था कि श्रीमान एक शादी पहले ही रचाए हुए हैं.
जीजाजी भी तब यह कह कर शांत हो गए थे, ‘लड़का मेरा जानादेखा है पर पिछले 5 वर्षों से मेरी इस से मुलाकात नहीं हुई, इसलिए मैं इस से ज्यादा क्या बता सकता हूं.’
इन्हीं विचारों में मैं न जाने कब तक खोई रही और गुस्से में भुनभुनाती रही कि वक्त का पता ही न चला. अपने संजोए महल मुझे धराशायी होते लगे. साकेत से मुझे नफरत सी होने लगी.
क्या इसी को प्यार कहते हैं? प्यार की पुकार लगातेलगाते मुझे कहां तक घसीट लिया और इतनी बड़ी बात मुझ से छिपाई. यदि तलाक मिल जाता तो शादी भी कर लेते पर अभी तो यह कानूनन जुर्म था. तो क्या साकेत इतना गिर गए हैं?
और मैं ने अचानक निश्चय कर लिया कि मैं अभी इसी वक्त अपने मायके चली जाऊंगी. साकेत से मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए. इतना बड़ा धोखा मैं कैसे बरदाश्त कर सकती थी? और मैं दोपहर को ही बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने मायके के लिए चल पड़ी. आते समय एक नोट जल्दी में गुस्से में लिख कर अपने तकिए के नीचे छोड़ आई थी :
‘मैं जा रही हूं. वजह तुम खुद जानते हो. मुझे धोखे में रख कर तुम सुख चाहते थे पर यह नामुमकिन है. अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करते तुम को शर्म नहीं आई? क्या मालूम और कितनी लड़कियां ऐसे फांस चुके हो. मुझे तुम से नफरत है. मिलने की कोशिश मत करना. -सुनीता’
सवाल मुझे नेल पेंट्स का बेहद शौक है. मैं चाहती हूं कि मेरे नेल्स से नेलपौलिश जल्दी न उतरे. क्या कोई ऐसा नेल पेंट है, जो शाइन करने साथसाथ लौंगलास्टिंग भी हो?
जवाब
शिमर, ग्लौस, ग्लिटर्स बेस्ड नेल पेंट्स के साथसाथ इन दिनों सोक औफ नेल पेंट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. सोक औफ नेल पेंट जैल बेस्ड होता है, जो सिंगल कोट ही शाइन करता है, साथ ही लौंग लास्टिंग भी होता है.
इन दिनों नाखूनों के लिए खास चित्रकारी और मीनाकारी की जा रही है. इस में नाखूनों पर फूलपत्तियां, डौल्फिन, तितली आदि की डिजाइनें बनाई जाती हैं और ऊपर से स्टड्स लगा कर इन्हें और भी आकर्षक बनाया जाता है.
इस के अलावा आर्ट के तौर पर नाखूनों पर हीरेमोती या कुंदन जड़ कर खास मीनाकारी भी की जाती है. मीनाकारी द्वारा नाखूनों को आभूषणों की तरह की सजाया जा सकता है और नाखूनों को एक विशेष सीलर्स द्वारा एक पारदर्शी परत चढ़ा कर सील भी किया जा सकता है.
इस से नाखूनों पर की गई चित्रकारी और मीनाकारी लगभग 1 माह तक पूरी तरह से सुरक्षित रहती है और उन की चमक भी बनी रहती है.
VIDEO : रेड वेलवेट नेल आर्ट
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सवाल मैं 25 वर्षीय विवाहित युवक हूं. विवाह को 3 वर्ष हो चुके हैं. एक डेढ़ वर्ष का बेटा भी है. पत्नी के साथ विवाह के पहले 2 साल बहुत अच्छे या यों कहूं कि बहुत रंगीन थे. हम दोनों जी भर कर घूमेफिरे, दिनरात रोमांस में डूबे रहते. मेरे यारदोस्त हमें लवबर्ड कहते थे, क्योंकि हम हमेशा रोमांटिक मूड में रहते थे. लगता था कि हम ताउम्र यों ही रहेंगे पर 2 साल बीततेबीतते और बेटे की मां बनने के साथ ही पत्नी के व्यवहार में जमीनआसमान का फर्क आ गया.
अब उस की सैक्स में रुचि मानो समाप्त सी होती जा रही है. पहले जहां वह सहवास के लिए बेताब रहती थी, वहीं अब कतराती है और मेरे द्वारा प्रवृत्त होने पर भी विशेष उत्साह नहीं दिखाती. कई बार तो मुझे यों महसूस होता है कि मैं बलात्कार कर रहा हूं.
सहवास को भी वह अन्य कामों की तरह निबटाने का ही प्रयास करती है. ढूंढ़ता हूं कि पहली सी ऊष्मा, पहले जैसा उत्साह अचानक कहां खो गया? क्या सभी दंपतियों के साथ ऐसा ही होता है?
जवाब
थोड़ा व्यवहारिक हो कर सोचेंगे तो विवाह के प्रारंभिक वर्षों से बाद के समय की तुलना कर के मायूस नहीं होंगे. आप को समझना चाहिए कि विवाह के शुरुआती दिनों में आप लोग अलमस्त हो कर रोमांस इसीलिए कर पाए क्योंकि उस समय कोई जिम्मेदारी नहीं थी. आप को सिर्फ खुद नहीं, पत्नी के नजरिए से भी देखना चाहिए.
पहले गर्भावस्था के कठिन 9 महीने, फिर संतानोत्पत्ति और उस के बाद नन्हे शिशु की देखभाल. इन सब के साथ यदि पत्नी आप की थोड़ी अनदेखी कर देती है, अनजाने में ही सही तो आप को उस की परिस्थिति को समझना चाहिए.
अच्छा होगा कि पत्नी को शिशु की देखरेख या घर के छिटपुट कामों में सहयोग दें. आर्थिक रूप से सक्षम हैं तो कोई मेड रख दें. इस से उसे थोड़ा आराम मिलेगा और शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.
इस के अलावा शिशु के थोड़ा बड़ा होने के बाद भी आप का दांपत्य जीवन स्वत: पटरी पर आ जाएगा. विवाह के शुरुआती दिनों सा तो नहीं पर काफी बेहतरमहसूस जरूर करेंगे. अत: थोड़ा धीरज रखें.
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